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किण्वन

सूची किण्वन

किण्वन की क्रिया किण्वन एक जैव-रासायनिक क्रिया है। इसमें जटिल कार्बनिक यौगिक सूक्ष्म सजीवों की सहायता से सरल कार्बनिक यौगिक में विघटित होते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। किण्वन के प्रयोग से अल्कोहल या शराब का निर्माण होता है। पावरोटी एवं बिस्कूट बनाने में भी इसका उपयोग होता है। दही, सिरका एवं अन्य रासायनिक पदार्थों के निर्माण में भी इसका प्रयोग होता है। श्रेणी:जैवरसायनिकी श्रेणी:श्वसन.

39 संबंधों: चुआक, चॉकलेट, एसिटिक अम्ल, दही, प्रांगार चक्र, प्रकाश-संश्लेषण, पृथ्वी का इतिहास, बियर, ब्रांडी, मद्यकरण, मापक उपकरणों की सूची, मीन सॉस, रम, रासायनिक इंजीनियरी, रोमंथक, शराब का इतिहास, साइलेज, साके, सिट्रिक अम्ल, सिरका, सिगार, सक्सीनिक अम्ल, सूक्ष्मजीव, हाला, जोंस बर्जिलियस, जीवाणु, जीवविज्ञान का इतिहास, घी, वाहितमल उपचार, वाइटिस, खाद्य परिरक्षण, ग्लूकोज़, गेहूँ, कार्बनिक यौगिक, कांजी, कूमीस, अवायवीय अपघटन, अंगूर, छाछ

चुआक

चुआक (Chuak) भारत के पूर्वोत्तर में स्थित त्रिपुरा राज्य में चावल से बनाई जाने वाली एक पारम्परिक बियर है। इसे चावल को जल में डालकर किण्वित (फ़रमेंट) करने से बनाया जाता है। चुआक सामाजिक समारोहों में पी जाती है और परम्परानुसार इसका पहला भोग ग्राम के बड़े-बूढ़े करते हैं। .

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चॉकलेट

चाकलेट के टुकड़े चाकलेट कोको के बीजों से निर्मित एक कच्चा या संसाधित भोज्य पदार्थ है। कोको के बीजों का स्वाद अत्यन्त कड़ुवा होता है। इसमें स्वाद उत्पन्न करने के लिये इसका किण्वन करना पड़ता है। .

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एसिटिक अम्ल

शुक्ताम्ल (एसिटिक अम्ल) CH3COOH जिसे एथेनोइक अम्ल के नाम से भी जाना जाता है, एक कार्बनिक अम्ल है जिसकी वजह से सिरका में खट्टा स्वाद और तीखी खुशबू आती है। यह इस मामले में एक कमज़ोर अम्ल है कि इसके जलीय विलयन में यह अम्ल केवल आंशिक रूप से विभाजित होता है। शुद्ध, जल रहित एसिटिक अम्ल (ठंडा एसिटिक अम्ल) एक रंगहीन तरल होता है, जो वातावरण (हाइग्रोस्कोपी) से जल सोख लेता है और 16.5 °C (62 °F) पर जमकर एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस में बदल जाता है। शुद्ध अम्ल और उसका सघन विलयन खतरनाक संक्षारक होते हैं। एसिटिक अम्ल एक सरलतम कार्बोक्जिलिक अम्ल है। ये एक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिकर्मक और औद्योगिक रसायन है, जिसे मुख्य रूप से शीतल पेय की बोतलों के लिए पोलिइथाइलीन टेरिफ्थेलेट; फोटोग्राफिक फिल्म के लिए सेलूलोज़ एसिटेट, लकड़ी के गोंद के लिए पोलिविनाइल एसिटेट और सिन्थेटिक फाइबर और कपड़े बनाने के काम में लिया जाता है। घरों में इसके तरल विलयन का उपयोग अक्सर एक डिस्केलिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है। खाद्य उद्योग में एसिटिक अम्ल का उपयोग खाद्य संकलनी कोड E260 के तहत एक एसिडिटी नियामक और एक मसाले के तौर पर किया जाता है। एसिटिक अम्ल की वैश्विक मांग क़रीब 6.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Mt/a) है, जिसमें से क़रीब 1.5 Mt/a प्रतिवर्ष पुनर्प्रयोग या रिसाइक्लिंग द्वारा और शेष पेट्रोरसायन फीडस्टोक्स या जैविक स्रोतों से बनाया जाता है। स्वाभाविक किण्वन द्वारा उत्पादित जलमिश्रित एसिटिक अम्ल को सिरका कहा जाता है। .

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दही

तुर्की की दही. दही एक दुग्ध-उत्पाद है जिसका निर्माण दूध के जीवाणुज किण्वन द्वारा होता है। लैक्टोज का किण्वन लैक्टिक अम्ल बनाता है, जो दूध प्रोटीन से प्रतिक्रिया कर इसे दही मे बदल देता है साथ ही इसे इसकी खास बनावट और विशेष खट्टा स्वाद भी प्रदान करता है। सोया दही, दही का एक गैर दुग्ध-उत्पाद विकल्प है जिसे सोया दूध से बनाया जाता है। खाने में दही का प्रयोग पिछले लगभग 4500 साल से किया जा रहा है। आज इसका सेवन दुनिया भर में किया जाता है। यह एक स्वास्थ्यप्रद पोषक आहार है। यह प्रोटीन, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, विटामिन B6 और विटामिन B12 जैसे पोषक तत्वों से समृद्ध होता है। .

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प्रांगार चक्र

कार्बन चक्र आरेख. काली संख्याएं बिलियन टनों में सूचित करती हैं कि विभिन्न जलाशयों में कितना कार्बन संग्रहीत है ("GtC" से तात्पर्य कार्बन गिगाटन और आंकडे लगभग 2004 के हैं). गहरी नीली संख्याएं सूचित करती हैं कि प्रत्येक वर्ष कितना कार्बन जलाशयों के बीच संचालित होता है। इस चित्र में वर्णित रूप से अवसादों में कार्बोनेट चट्टान और किरोजेन के ~70 मिलियन GtC शामिल नहीं हैं। कार्बन चक्र जैव-भूरासायनिक चक्र है जिसके द्वारा कार्बन का जीवमंडल, मृदामंडल, भूमंडल, जलमंडल और पृथ्वी के वायुमंडल के साथ विनिमय होता है। यह पृथ्वी के सबसे महत्वपूर्ण चक्रों में एक है और जीवमंडल तथा उसके समस्त जीवों के साथ कार्बन के पुनर्नवीनीकरण और पुनरुपयोग को अनुमत करता है.

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प्रकाश-संश्लेषण

हरी पत्तियाँ, प्रकाश संश्लेषण के लिये प्रधान अंग हैं। सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधों की हरी पत्तियों की कोंशिकाओं के अन्दर कार्बन डाइआक्साइड और पानी के संयोग से पहले साधारण कार्बोहाइड्रेट और बाद में जटिल काबोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च (मंड) आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। जल, कार्बनडाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल (पर्णहरित) को प्रकाश संश्लेषण का अवयव कहते हैं। इसमें से जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण का कच्चा माल कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं। प्रकाश संश्वेषण करने वाले सजीवों को स्वपोषी कहते हैं। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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बियर

सीधे पीपा से 'श्लेंकेरला राउख़बियर' नामक बियर परोसी जा रही है​ बियर संसार का सबसे पुराना और सर्वाधिक व्यापक रूप से खुलकर सेवन किया जाने वाला मादक पेय है।Origin and History of Beer and Brewing: From Prehistoric Times to the Beginning of Brewing Science and Technology, John P Arnold, BeerBooks, Cleveland, Ohio, 2005, ISBN 0-9662084-1-2 सभी पेयों के बाद यह चाय और जल के बाद तीसरा सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है।, European Beer Guide, Accessed 2006-10-17 क्योंकि बियर अधिकतर जौ के किण्वन (फ़र्मेन्टेशन​) से बनती है, इसलिए इसे भारतीय उपमहाद्वीप में जौ की शराब या आब-जौ के नाम से बुलाया जाता है। संस्कृत में जौ को 'यव' कहते हैं इसलिए बियर का एक अन्य नाम यवसुरा भी है। ध्यान दें कि जौ के अलावा बियर बनाने के लिए गेहूं, मक्का और चावल का भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। अधिकतर बियर को राज़क (हॉप्स) से सुवासित एवं स्वादिष्ट कर दिया जाता है, जिसमें कडवाहट बढ़ जाती है और जो प्राकृतिक संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है, हालांकि दूसरी सुवासित जड़ी बूटियां अथवा फल भी यदाकदा मिला दिए जाते हैं।, Max Nelson, Routledge, Page 1, Pages 1, 2005, ISBN 0-415-31121-7, Accessed 2009-11-19 लिखित साक्ष्यों से यह पता चलता है कि मान्यता के आरंभ से बियर के उत्पादन एवं वितरण को कोड ऑफ़ हम्मुराबी के रूप में सन्दर्भित किया गया है जिसमें बियर और बियर पार्लर्स से संबंधित विनियमन कानून तथा "निन्कासी के स्रुति गीत", जो बियर की मेसोपोटेमिया देवी के लिए प्रार्थना एवं किंचित शिक्षित लोगों की संस्कृति के लिए नुस्खे के रूप में बियर का उपयोग किया जाता था। आज, किण्वासवन उद्योग एक वैश्विक व्यापार बन गया है, जिसमें कई प्रभावी बहुराष्ट्रीय कंपनियां और हजारों की संख्या में छोटे-छोटे किण्वन कर्म शालाओं से लेकर आंचलिक शराब की भट्टियां शामिल हैं। बियर के किण्वासन की मूल बातें राष्ट्रीय और सांस्कृतिक सीमाओं से परे भी एक साझे में हैं। आमतौर पर बियर को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है - दुनिया भर में लोकप्रिय हल्का पीला यवसुरा और आंचलिक तौर पर अलग किस्म के बियर, जिन्हें और भी कई किस्मों जैसे कि हल्का पीला बियर, घने और भूरे बियर में वर्गीकृत किया गया है। आयतन के दृष्टीकोण से बियर में शराब की मात्रा (सामान्य) 4% से 6% तक रहती है हालांकि कुछ मामलों में यह सीमा 1% से भी कम से आरंभ कर 20% से भी अधिक हो सकती है। बियर पान करने वाले राष्ट्रों के लिए बियर उनकी संस्कृति का एक अंग है और यह उनकी सामजिक परंपराओं जैसे कि बियर त्योहारों, साथ ही साथ मदिरालयी सांस्कृतिक गतिविधियों जैसे कि मदिरालय रेंगना तथा मदिरालय में खेले जाने वाले खेल जैसे कि बार बिलियर्ड्स शामिल हैं। .

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ब्रांडी

कोन्येक ब्रांडी (cognac brandy) ब्रांडी (Brandy) एक मद्य है जो सामान्यत: फलों के किण्वित रसों का आसवन करके से प्राप्त किया जाता है। इसमें 35 से 60% तक अल्कोहल होता है। इसे प्रायः रात्रि के भोजन के बाद ग्रहण किया जाता है। .

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मद्यकरण

शराब बनाने वाले एक कारखाने का दृश्य शराब, अल्कोहल युक्त पेय एवं अल्कोहल युक्त ईंधन बनाने की विधि को मद्यकरण (Brewing) कहते हैं। किण्वन की क्रिया द्वारा सूक्ष्मजीव जैसे कवक, शर्करा को अल्कोहल में परिवर्तित करते हैं, इसी सिद्धान्त का प्रयोग मद्यकरण में किया जाता है। मद्यकरण का एक लम्बा इतिहास है। आधुनिक युग में सूक्ष्मजैविकी की तकनीको ने इसे एक लाभजनक औद्दोगिक व्यवसाय का रूप दे दिया है। ऐल्कोहॉलयुक्त पेय की विशेषता उपयोग में आनेवाले कच्चे माल पर ही निर्भर नहीं करती, वरन् इसके स्वाद तथा सुवास पर बनाने की रीतियों का भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक सुरा की अपनी विशेषता होती है और इसमें उपस्थित ऐल्कोहॉल की मात्रा उतनी महत्वपूर्ण नहीं होती जितना उसका स्वाद, सुवास तथा अन्य "निजी विशेषताएँ"। .

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मापक उपकरणों की सूची

श्रेणी:मापन.

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मीन सॉस

मीन सॉस, एक पीले रंग का तरल है जिसे, मछली और समुद्री नमक के किण्वन से प्राप्त किया जाता है। इसका प्रयोग विभिन्न व्यंजनों में एक मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। मीन सॉस, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के तटीय क्षेत्रों की कई संस्कृतियों के भोजन का एक मुख्य घटक है और मुख्यत: थाई, कंबोडियाई, वियतनामी और फिलिपीनी भोजन में प्रयोग किया जाता है। .

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रम

रम एक आसुत पेय है जिसे गन्ने के उपोत्पाद, शीरे और गन्ने के रस का पहले किण्वन करके और तत्पश्चात आसवन की प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है। आसुत जो एक साफ तरल होता है, को फिर लकड़ी के पीपों में भर कर कई सालों तक परिपक्व करने के लिए रख देते हैं। श्रेणी:शराब.

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रासायनिक इंजीनियरी

प्रक्रम अभियन्ता (Process engineers) संयंत्रों की डिजाइन करते हैं, निर्माण करते हैं और इन्हें चलाते हैं। रासायनिक अभियान्त्रिकी (en:Chemical Engineering) रसायन शास्त्र, भौतिकी, अर्थशास्त्र वगैरह और उनके सिद्धान्तों को औद्योगिक उपयोगों में प्रयुक्त कराने वाला विज्ञान या व्यवसाय है। इसका मुख्य हिस्सा प्रक्रम अभियान्त्रिकी कहलाता है, जिसमें भारी मात्रा में निर्मित रसायनों को औद्योगिक स्तर पर सहज तरीके से बनाने का अध्ययन किया जाता है। लेकिन आज रासायनिक अभियान्त्रिकी सिर्फ़ इसी तक सीमित नहीं है। आज रासायनिक अभियन्ता जैवप्रौद्योगिकी (जेनेटिक्स, ख़मीरीकरण आदि) विषयों पर काम और शोध करते हैं और विमान, अन्तरिक्ष यान, खाद्य पदार्थ, जैवमेडिकल संयन्त्र, सिलिकॉन तकनीकी.

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रोमंथक

कड़ी.

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शराब का इतिहास

शराब का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है तथा कृषि के इतिहास एवं पश्चिमी सभ्यता से इसका गहरा सम्बन्ध है। वर्तमान समय में अंगूर पर आधारित किण्वित पेय का सबसे पुराना अस्तित्व ७ हजार ईसा पूर्वष पूर्व में चीन में होना सिद्ध है। श्रेणी:शराब.

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साइलेज

साइलेज हरे चारे को हवा की अनुपस्थिति में गड्ढे के अन्दर रसदार परिरक्षित अवस्था में रखनें से चारे में लैक्टिक अम्ल बनता है जो हरे चारे का पीएच कम कर देता है तथा हरे चारे को सुरक्षित रखता है। इस सुरक्षित हरे चारे को साईलेज (Silage) कहते हैं। अधिकतर किसान भूसा या पुआल का उपयोग करते हैं जो साईलेज की तुलना में बहुत घटिया होते हैं क्योंकि भूसा या पुआल मे से प्रोटीन, खनिज तत्व एवं उर्जा की उपलब्धता कम होती है। .

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साके

साके (जापानी: 酒, अंग्रेज़ी: Sake) या साकी, जिसे जापानी चावल वाइन (Japanese rice wine) भी कहा जाता है एक प्रकार का मादक पेय है। इसे चावल के दानों की बाहरी परतों को हटाकर उसके भीतरी भाग को किण्वित (फ़रमेंट) कर के बनाया जाता है। साके जापान का राष्ट्रीय पेय माना जाता है और वहाँ इसका पारम्परिक महत्व भी है। इसे अक्सर एक तोक्कुरी (徳利, tokkuri) नामक चीनी की बोतल में हलका गरम कर के प्रस्तुत करा जाता है और साकाज़ुकी (sakazuki) नामक छोटे प्यालों में पिया जाता है। .

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सिट्रिक अम्ल

सिट्रिक अम्ल (Citric acid) एक दुर्बल कार्बनिक अम्ल है। नींबू, संतरे और अनेक खट्टे फलों में सिट्रिक अम्ल और इसके लवण पाए जाते हैं। जांतव पदार्थों में भी बड़ी अल्प मात्रा में यह पाया जाता है। नींबू के रस से यह तैयार होता है। नींबू के रस में ६ से ७ प्रतिशत तक सिट्रिक अम्ल रहता है। नींबू के रस को चूने के दूध से उपचारित करने से कैल्सियम सिट्रेट का अवक्षेप प्राप्त होता है। अवक्षेप को हल्के सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ उपचारित करने से सिट्रिक अम्ल उन्मुक्त होता है। विलयन के उद्वाष्पन से अम्ल के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं जिनमें जल का एक अणु रहता है। शर्करा के किण्वन से भी सिट्रिक अम्ल प्राप्त होता है। रसायनशाला में सिट्रिक अम्ल का संश्लेषण भी हुआ है। यह वस्तुत: २-हाइड्रोक्सि-प्रोपेन १: २: ३ ट्राइकार्बोसिलिक अम्ल है। 300px 300px .

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सिरका

विभिन्न आकार वाली सिरके की बोतलें सिरका या चुक्र (Vinagar) भोजन का भाग है जो पाश्चात्य, यूरोपीय एवं एशियायी देशों के भोजन में प्राचीन काल से ही प्रयुक्त होता आया है। किसी भी शर्करायुक्त विलयन के मदिराकरण के अनंतर ऐसीटिक (अम्लीयامیر) किण्वन (acetic fermentation) से सिरका या चुक्र (Vinegar, विनिगर) प्राप्त होता है। इसका मूल भाग ऐसीटिक अम्ल का तनु विलयन है पर साथ ही यह जिन पदार्थों से बनाया जाता है उनके लवण तथा अन्य तत्व भी उसमें रहते हैं। प्रायः भोजन के लिये प्रयुक्त सिरके में ४% से ८% तक एसेटिक अम्ल होता है। विशेष प्रकार का सिरका उसके नाम से जाना जाता है, जैसे मदिरा सिरका (Wine Vinegar), मॉल्ट (यव्य या यवरस) सिरका (Malt Vinegar), अंगूर का सिरका, सेब का सिरका (Cider Vinegar), जामुन का सिरका और कृत्रिम सिरका इत्यादि। .

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सिगार

विभिन्न ब्रांडों के चार सिगार (ऊपर से: एच. अपमैन, मोंटेक्रिस्टो, माकानुडो, रोमियो वाय जुलिएट) एक -सेमीएयरटाईट सिगार संग्रहण ट्यूब और एक डबल गिलोटिन-स्टाइल कटर सिगार सूखे और किण्वित तम्बाकू का कसकर-लपेटा गया एक बंडल होता है जिसको जलाकर उसके धुंए का कश मुंह के अंदर खींचा जाता है। सिगार का तम्बाकू ब्राज़ील, कैमरून, क्यूबा, डोमिनिकन गणराज्य, होंडुरास, इंडोनेशिया, मैक्सिको, निकारागुआ, फिलीपींस और पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में काफी मात्रा में उगाया जाता है। .

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सक्सीनिक अम्ल

सक्सिनिक अम्ल (Succinic Acid) ऐवर में यह अम्ल तीन से चार प्रतिशत तक पाया जाता है। सक्सिनिक शब्द लैटिन के सक्सिनम (Succinum) से निकला है, जिसका अर्थ होता है ऐबर। इसका IUPAC नाम है ब्यूतेनिडिओइक अम्ल (butanedioic acid)। ऐतिहासिक रूप से इसे 'स्पिरिट ऑफ ऐम्बर (spirit of amber) कहा जाता रहा है। वस्तुत: यह एक डाइकार्बोजिलिक अम्ल (dicarboxylic acid) है। साइट्रिक अम्ल-चक्र में सक्सिनेट एक जैवरासायनिक भूमिका अदा करता है। अन्य रेज़िनों, लिग्नाइट, काष्टाश्म और अनेक पेड़ों में यह पाया जाता है। अंगूर, चुकंदर, गूजंकेरी तथा रेवंद चीनी के रसों में भी यह रहता है। प्राणी जगत् में भी यह थाइमस ग्रंथि (thymus gland) और प्लीहा (spleen) में पाया जाता है। अनेक पदार्थो से, जैसे अमोनियम टाट्रेंट व कैल्सियम मैलेट के जीवाणु किण्वन से तथा वसा या वसाम्लों के ऑक्सीकरण से भी यह बनता है। एथिलीन गैस से इसका संश्लेषण हुआ है। बेंजीन के ऑक्सीकरण से मैलेइक अम्ल बनता है और मैलेइक अम्ल के ऑक्सीकरण से सक्सिनिक अम्ल प्राप्त हो सकता है। .

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सूक्ष्मजीव

जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .

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हाला

हाला या द्राक्षिरा या वाइन (Wine) अंगूर के रस को किण्वित (फ़र्मेन्ट) करने से बनने वाला एक मादक पेय है। इसमें अंगूरों का किण्वन बिना किसी शर्करा, अम्ल, प्रकिण्व (एन्ज़ाइम), जल या अन्य किसी पोषक तत्व को डाले होता है। खमीर (यीस्ट) अंगूर रस में उपस्थित शर्करा को किण्वित कर के इथेनॉल व कार्बन डाईऑक्साइड में परिवर्तित कर देते हैं। अंगूर और खमीर की अलग-अलग नस्लों से अलग-अलग स्वाद, गंध व रंगों वाली हाला बनती है। हाला पर अंगूरों के उगाए जाने के स्थान, वर्षा, सूरज व अंगूरों को तोड़ने के समय का भी असर पड़ता है। अंगूरों के अलावा अन्य फलों की भी हाला बनाई जाती है हालांकि उसकी मात्रा व लोकप्रियता अंगूरों की हाला की तुलना में बहुत कम है। शहतूत, अनार, सेब, नाशपाती, आलू बुख़ारा, आलूबालू (चेरी) और अन्य फलों की हाला बनती है। हाला बनाने की प्रथा अति-प्राचीन है और कॉकस क्षेत्र में जॉर्जिया में ८,००० वर्ष पुराने हाला की सुराहियाँ मिली हैं। .

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जोंस बर्जिलियस

प्रसिद्ध रसायनशास्त्री '''वर्जीलियस''' जॉन्स जैकब बर्ज़ीलियस (Jons Jacob Berzelius, Baron; १७७९ - १८४८) स्वीडन निवासी रसायनज्ञ थे। बर्ज़ीलियस का योगदान रसायन के विविध क्षेत्रों में है। आधुनिक भौतिकी के संस्थापकों में उनकी गणना होती है। .

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जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

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जीवविज्ञान का इतिहास

कोई विवरण नहीं।

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घी

घी घी (संस्कृत: घृतम्), एक विशेष प्रकार का मख्खन (बटर) है जो भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से भोजन के एक अवयव के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। भारतीय भोजन में खाद्य तेल के स्थान पर भी प्रयुक्त होता है। यह दूध के मक्खन से बनाया जाता है। दक्षिण एशिया एवं मध्य पूर्व के भोजन में यह एक महत्वपूर्ण अवयव है। .

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वाहितमल उपचार

मलजल प्रशोधन का उद्देश्य - समुदायों के लिए कोई मुसीबत पैदा किए बिना या नुकसान पहुंचाए बिना निषकासनयोग्य उत्प्रवाही जल को उत्पन्न करना और प्रदूषण को रोकना है।1 मलजल प्रशोधन, या घरेलू अपशिष्ट जल प्रशोधन, अपवाही (गन्दा जल) और घरेलू दोनों प्रकार के अपशिष्ट जल और घरेलू मलजल से संदूषित पदार्थों को हटाने की प्रक्रिया है। इसमें भौतिक, रासायनिक और जैविक संदूषित पदार्थों को हटाने की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसका उद्देश्य एक अपशिष्ट प्रवाह (या प्रशोधित गन्दा जल) और एक ठोस अपशिष्ट या कीचड़ का उत्पादन करना है जो वातावरण में निर्वहन या पुनर्प्रयोग के लिए उपयुक्त होता है। यह सामग्री अक्सर अनजाने में कई विषाक्त कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिकों से संदूषित हो जाती है। .

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वाइटिस

वाइटिस (Vitis), जिसके सदस्यों को साधारण भाषा में अंगूरबेल (grapevine) कहा जाता है, सपुष्पक द्विबीजपत्री वनस्पतियों के वाइटेसिए कुल के अंतर्गत एक जीववैज्ञानिक वंश है। इस वंश में ७९ जीववैज्ञानिक जातियाँ आती हैं जो अधिकतर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में उत्पन्न हुई हैं और लताओं के रूप में होती हैं। अंगूर इसका एक महत्वपूर्ण सदस्य है और उसके फल सीधे खाये जाते हैं और उसके रस को किण्वित (फ़रमेन्ट) कर के बड़े पैमाने पर हाला (वाइन) बनाई जाती है। अंगूरबेलों के पालन-पोषण और अंगूर-उत्पादन के अध्ययन को द्राक्षाकृषि (viticulture, विटिकल्चर) कहा जाता है। .

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खाद्य परिरक्षण

विभिन्न संरक्षित खाद्य पदार्थ कनाडा का विश्व युद्ध प्रथम के समय का पोस्टर जो लोगों को सर्दियों के लिए भोजन संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। खाद्य परिरक्षण खाद्य को उपचारित करने और संभालने की एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे उसके खराब होने (गुणवत्ता, खाद्यता या पौष्टिक मूल्य में कमी) की उस प्रक्रिया को रोकता है या बहुत कम कर देता है, जो सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा होती या तेज कर दी जाती है। यद्दपि कुछ तरीकों में, सौम्य बैक्टीरिया, जैसे खमीर या कवक का प्रयोग किया जाता है ताकि विशेष गुण बढ़ाए जा सके और खाद्य पदार्थों को संरक्षित किया जा सके (उदाहरण के तौर पर पनीर और शराब).

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ग्लूकोज़

ग्लूकोज के संतुलन की योजनाबद्ध प्रतिनिधित्व। ग्लूकोज़ (Glucose) या द्राक्ष शर्करा (द्राक्षधु) सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट है। यह जल में घुलनशील होता है तथा इसका रासायनिक सूत्र C६H१२O६ है। यह स्वाद में मीठा होता है तथा सजीवों की कोशिकाओं के लिये उर्जा का सर्व प्रमुख स्रोत है। यह पौधों के फलों जैसे काजू, अंगूर व अन्य फलों में, जड़ों जैसे चुकुन्दर की जड़ों में, तनों में जैसे ईख के रूप में सामान्य रूप से संग्रहित भोज्य पदार्थों के रूप में पायी जाती है। ग्लूकोज़ प्रमुख आहार औषध है। इससे देह में उष्णता और शक्ति उत्पन्न होती है। मिठाइयों और सुराओं के निर्माण में भी यह व्यवहृत होता है। ग्लाइकोजन के रूप में यह यकृत और पेशियों में संचित रहता है। इसका अणुसूत्र (C6 H12 O6) और आकृतिसूत्र है: (CH2 OH. CHOH. CHOH. CHOH. CHOH. CHO) ग्लूकोज़ (Glucose) को द्राक्षा, शर्करा और डेक्सट्रोज भी कहते हैं। यह अंगूर और अंजीर सदृश मीठे फलों, कुछ वनस्पतियों और मधु में पाया जाता है। अल्प मात्रा में यह रक्त और मूत्र (विशेषत: मधुमेह-रोगी के मूत्र) सदृश जांतव उत्पादों, लसीका (lymph) और प्रमस्तिष्क मेरुतरल (cerebrospinal fluid) में भी पाया जाता है। स्टार्च, सेलुलोज, सेलोबायोस और माल्टोज़ सदृश कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज़ से ही बने हैं। चीनी और दुग्धशर्करा जैसी कुछ शर्कराओं में अन्य शर्कराओं के साथ यह संयुक्त पाया जाता है। प्राकृतिक ग्लूकोसाइडों का यह आवश्यक अवयव है। तनु सलफ्यूरिक अम्ल द्वारा स्टार्च के जलविश्लेषण से बड़ी मात्रा में ग्लूकोज़ तैयार किया जाता है। अल्प मात्रा में प्रयोगशालाओं में चीनी से यह तैयार हो सकता है। कृत्रिम रीति से भी इसका संश्लेषण हुआ है। .

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गेहूँ

गेहूँ गेहूं (Wheat; वैज्ञानिक नाम: Triticum spp.),Belderok, Bob & Hans Mesdag & Dingena A. Donner.

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कार्बनिक यौगिक

मिथेन सबसे सरल कार्बनिक यौगिक कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। .

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कांजी

कांजी उत्तर भारत का वसंत ऋतु का सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है। यह एक किण्वित पेय है जो प्राय: गाजर (लाल या काली) और चुकन्दर से बनाया जाता है। यह स्वाद में चटपटा होता है और पेट के लिए स्वास्थ्यवर्धक समझा जाता है। यह उत्तर भारत में होली के अवसर पर बनाया जाने वाला एक विशेष व्यंजन है। कुछ लोग इसमें दाल के बड़े डालकर भी बनाते हैं। गाजर की कांजी बहुत ही स्वादिष्ट और पाचक होती है। यह खाने से पहले भूख को बढ़ा देती है। इसका उपयोग गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में कर सकते हैं। कांजी कई रुपों में पी जाती है पर बनाने का ढंग एक सा ही है। इसका पानी तैयार करने के लिए पानी के अतिरिक्त राई, नमक और लाल मिर्च की आवश्यकता होती है। इसके अलावा आधा किलो धुली और छिली हुई काली या लाल गाजर के टुकड़े चाहिए होते हैं। इसको बनाने के लिए पानी को उबाल कर ठंडा कर लिया जाता है और एक बड़े मुँह के बर्तन में रखा जाता है। राई के दानों को सूखा पीस कर इसमें मिला दिया जाता है। स्वाद के लिए नमक और मिर्च भी मिलाए जाते हैं। फिर उसमें गाजर को छीलकर उसके टुकड़े काट कर डाल दिया जाता है। बर्तन का मुंह किसी महीन कपड़े से बंद करके उसे चार पाँच दिन के लिए धूप में रख दिया जाता है जिससे इस मिश्रण में हल्का खमीर आ जाता है। गाजर की कांजी का निकट दृश्य-राई के तैरते हुए टुकड़े देखेंइसका स्वाद हल्का खट्टा हो जाता है और गाजर नर्म हो जाती है। कांजी का तैयार होना बनना तब माना जाता है, जब उसका पानी बहुत ही स्वादिष्ट खट्टा हो जाये। इसके बन जाने के बाद उसे ठंडक (प्रशीतन) में रख सकते हैं, जिससे वह और अधिक खट्टी नहीं होगी। इसके बाद लगभग १५ दिनों तक यह चलेगी। गाजर की जगह चुकंदर, मूली या बड़े भी डाले जाते हैं, या लाल गाजर की कांजी में धुली मूँग की दाल के मगोड़े (पकौड़े) डालकर भी खाए जाते हैं, जिन्हें कांजी के बड़े/मगौड़े कहा जाता है। मानव शरीर में अच्छे और बुरे दोनो तरह के जीवाणु होते हैं। कांजी तथा अन्य किण्वित खाद्य पदार्थ शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करते हैं। इससे पाचन शक्ति में लाभ होता है और साथ ही रोगों से लड़नें की क्षमता प्राप्त होती है। चुकन्दर की कांजी से यकृत को साफ रखनें में मदद मिलती है। १० ग्राम सौंफ का रस निकाल कर काँजी में मिलाकर पीने से गठिया यानी घुटनों का दर्द कम होता है। सुबह, शाम कांजी पीना अति लाभदायक बताया गया है। .

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कूमीस

रूस में कूमीस की एक बोतल और गिलास कूमीस (किरगिज़: Кымыз, अंग्रेज़ी: Kumis) घोड़ी के दूध को किण्वित (फ़रमॅन्ट​) करके बनाए जाने वाले मध्य एशिया के स्तेपी क्षेत्र के एक पारम्परिक पेय को कहते हैं। किण्वन की वजह से घोड़ी के दूध में प्राकृतिक रूप से मौजूद लैक्टोस चीनी की कुछ मात्रा शराब में बदल जाती है और इस प्रक्रिया में कुछ कार्बन डाई-ऑक्साइड बनने से दूध में गैस के बुदबुदे भी बन जाते हैं। कूमीस को मंगोलिया में ऐरग (Айраг, Airag) कहा जाता है। अन्य शराबों की तुलना में कूमीस कम नशीली होती है और इसमें केवल २% शराब होती है।, Iain Gately, Penguin, 2009, ISBN 978-1-59240-464-3,...

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अवायवीय अपघटन

तेल अवीव में कार्यरत एक अवायवीय अपघटन संयंत्र अवायवीय अपघटन या 'अवायवीय पाचन' (Anaerobic digestion) कई प्रक्रियाओं के समूह का नाम है जिसमें सूक्ष्मजीव आक्सीजन की अनुपस्थिति में जैव-अपघटनीय पदार्थों को विघटित कर देते हैं। अवायवीय अपघटन की यह प्रक्रिया बहुत उपयोगी है और औद्योगिक तथा घरेलू कचरा के प्रबन्धन या/एवं ईंधन (बायोगैस) के उत्पादन में प्रयोग की जाती है। इसके अलावा खाद्य पदार्थ तथा पेय बनाने के लिये जिस किण्वन का उपयोग किया जाता है वह भी अवायवीय अपघटन पर ही आधारित है। अवायवीय अपघटन प्राकृतिक रूप से बहुत सी मृदाओं में होता है। यह झीलों और समुद्रों के द्रोणी (बेसिन) के तलछटों में भी होता है। वोल्टा ने १७७६ में जो मार्श गैस (मीथेन) खोजी थी उसका स्रोत यही था। अवायवीय विघटन के चरण .

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अंगूर

अंगूर अंगूर (संस्कृत: द्राक्षा) एक फल है। अंगूर एक बलवर्द्धक एवं सौन्दर्यवर्धक फल है। अंगूर फल माँ के दूध के समान पोषक है। फलों में अंगूर सर्वोत्तम माना जाता है। यह निर्बल-सबल, स्वस्थ-अस्वस्थ आदि सभी के लिए समान उपयोगी होता है। ये अंगूर की बेलों पर बड़े-बड़े गुच्छों में उगता है। अंगूर सीधे खाया भी जा सकता है, या फिर उससे अंगूरी शराब भी बनायी जा सकती है, जिसे हाला (अंग्रेज़ी में "वाइन") कहते हैं, यह अंगूर के रस का ख़मीरीकरण करके बनायी जाती है। .

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छाछ

छाछ, मट्ठा या तक्र (Buttermilk) एक पेय है जो दही से बनता है। मूलत: दही को मथनी से मथकर घी निकालने के बाद बचे हुए द्रव को छाछ कहते थे। आजकल दूध के किण्वन से बने हुए अनेक पेय भी छाछ की श्रेणी में गिने जाते हैं। ये पेय गरम जलवायु वाले देशों (जैसे भारत) में बहुत लोकप्रिय हैं। आयुर्वेद में तक्र को बहुत उपयोगी माना गया है। आयुर्वेद के एक आचार्य का कथन है- भोजनान्ते पिबेत्‌ तक्रं, दिनांते च पिबेत्‌ पय:। निशांते पिबेत्‌ वारि: दोषो जायते कदाचन:। यानी भोजन के बाद छाछ, दिनांत यानी शाम को दूध, निशांत यानी सुबह पानी पीने वाले के शरीर में कभी किसी तरह का दोष या रोग नहीं होता। इसलिए भोजन के बाद मट्‌ठा पीना स्वास्थ्य के लिए ठीक माना जाता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

लैक्टिक अम्ल का निर्माण, ख़मीरीकरण, इथाइल अल्कोहल का निर्माण, किण्वित

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