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काठगोदाम

सूची काठगोदाम

काठगोदाम भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित हल्द्वानी नगर के अंतर्गत स्थित एक क्षेत्र है। इसे ऐतिहासिक तौर पर कुमाऊँ का द्वार कहा जाता रहा है। यह छोटा सा नगर पहाड़ के पाद प्रदेश में बसा है। गौला नदी इसके दायें से होकर हल्द्वानी बाजार की ओर बढ़ती है। पूर्वोतर रेलवे का यह अन्तिम स्टेशन है। यहाँ से बरेली, लखनऊ तथा आगरा के लिए छोटी लाइन की रेल चलती है। काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ के लिए केएमओयू की बसें जाती है। कुमाऊँ के सभी अंचलों के लिए यहाँ से बसें जाती हैं। १९०१ में काठगोदाम ३७५ की जनसंख्या वाला एक छोटा सा गाँव था। १९०९ तक इसे रानीबाग़ के साथ जोड़कर नोटिफ़िएड एरिया घोषित कर दिया गया। काठगोदाम-रानीबाग़ १९४२ तक स्वतंत्र नगर के रूप में उपस्थित रहा, जिसके बाद इसे हल्द्वानी नोटिफ़िएड एरिया के साथ जोड़कर नगर पालिका परिषद् हल्द्वानी-काठगोदाम का गठन किया गया। २१ मई २०११ को हल्द्वानी-काठगोदाम को नगर पालिका परिषद से नगर निगम घोषित किया गया, और फिर इसके विस्तार को देखते हुए इसका नाम बदलकर नगर निगम हल्द्वानी कर दिया गया। .

27 संबंधों: चौकोड़ी, नौकुचियाताल, नैनीताल, पिथौरागढ़, भवाली, भीमताल झील, मानिला देवी मन्दिर, उत्तराखण्ड, रुहेलखंड व कुमाऊँ रेलवे, हल्द्वानी, हल्द्वानी नगर निगम, हल्द्वानी में यातायात, हल्द्वानी का इतिहास, जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल, रानीखेत, गौला नदी, काठगोदाम रेलवे स्टेशन, काशीपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन, काशीपुर का इतिहास, काशीपुर, उत्तराखण्ड, किच्छा, कुमाऊँ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड, कुशीनगर, अल्मोड़ा, अल्मोड़ा जिला, उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ३७, उत्तरायणी मेला, बागेश्वर, उत्तराखण्ड के नगर निगमों की सूची, उत्तराखण्ड के राज्य राजमार्गों की सूची

चौकोड़ी

चौकोरी एक छोटा सा पहाड़ी नगर है, जो पिथौरागढ़ जिले की बेरीनाग तहसील में स्थित है। समुद्र तल से २०१० मीटर की ऊंचाई पर स्थित चौकोड़ी से नंदा देवी, नंदा कोट, और पंचचूली पर्वत श्रंखलाओं के सुन्दर दृश्य देखे जा सकते हैं। यह राष्ट्रीय राजमार्ग ३०९ए पर बेरीनाग से १० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। .

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नौकुचियाताल

नौकुचियाताल भीमताल से ४ किलोमीटर दक्षिण-पूरब समुद्र की सतह से १२९२ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नैनीताल से इस ताल की दूरी २६.२ कि॰मी॰ है। यह ९८३ मीटर लम्बी, ६९३ मीटर चौड़ी और ४० मीटर गहरी है। इस नौ कोने वाले ताल की अपनी विशिष्ट महत्ता है। इसके टेढ़े-मेढ़े नौ कोने हैं। इस अंचल के लोगों का विश्वास है कि यदि कोई व्यक्ति एक ही दृष्टि से इस ताल के नौ कोनों को देख ले तो उसे मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। परन्तु वास्तविकता यह है कि सात से अधिक कोने एक बार में नहीं देखे जा सकते। इस ताल की एक और विशेषता यह है कि इसमें विदेशों से आये हुए नाना प्रकार के पक्षी रहते हैं। ताल में कमल के फूल खिले रहते हैं। इस ताल में मछलियों का शिकार बड़े अच्छे ढ़ंग से होता है। २०-२५ पौण्ड तक की मछलियाँ इस ताल में आसानी से मिल जाती है। मछली के शिकार करने वाले और नौका विहार शौकीनों की यहाँ भीड़ लगी रहती है। इस ताल के पानी का रंग गहरा नीला है। यह भी आकर्षण का एक मुख्य कारण है। पर्यटकों के लिए यहाँ पर खाने और रहने की सुविधा है। धूप और वर्षा से बचने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था की गयी है। .

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नैनीताल

नैनीताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। यह नैनीताल जिले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है। देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। 'नैनी' शब्द का अर्थ है आँखें और 'ताल' का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है। बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है। इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है। .

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पिथौरागढ़

पिथौरागढ़ भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख शहर है। पिथौरागढ़ का पुराना नाम सोरघाटी है। सोर शब्द का अर्थ होता है-- सरोवर। यहाँ पर माना जाता है कि पहले इस घाटी में सात सरोवर थे। दिन-प्रतिदिन सरोवरों का पानी सूखता चला गया और यहाँपर पठारी भूमि का जन्म हुआ। पठारी भूमी होने के कारण इसका नाम पिथौरा गढ़ पड़ा। पर अधिकांश लोगों का मानना है कि यहाँ राय पिथौरा (पृथ्वीराज_चौहान) की राजधानी थी। उन्हीं के नाम से इस जगह का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। राय पिथौरा ने नेपाल से कई बार टक्कर ली थी। यही राजा पृथ्वीशाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। .

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भवाली

भवाली या भुवाली उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल जनपद में स्थित एक नगर है। यह कुमाऊँ मण्डल में आता है। शान्त वातावरण और खुली जगह होने के कारण 'भवाली' कुमाऊँ की एक शानदार नगरी है। यहाँ पर फलों की एक मण्डी है। यह एक ऐसा केन्द्र - बिन्दु है जहाँ से काठगोदाम हल्द्वानी और नैनीताल, अल्मोड़ा - रानीखेत भीमताल - सातताल और रामगढ़ - मुक्तेश्वर आदि स्थानों को अलग - अलग मोटर मार्ग जाते हैं। भवाली नगर अपने प्राचीन टीबी सैनिटोरियम के लिए विख्यात है, जिसकी स्थापना १९१२ में हुई थी। चीड़ के पेड़ों की हवा टी.

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भीमताल झील

भीमताल एक त्रिभुजाकर झील है। यह उत्तरांचल में काठगोदाम से 10 किलोमीटर उत्तर की ओर है। इसकी लम्बाई 1674 मीटर, चौड़ाई 447 मीटर गहराई १५ से ५० मीटर तक है। नैनीताल से भी यह बड़ा ताल है। नैनीताल की तरह इसके भी दो कोने हैं जिन्हें तल्ली ताल और मल्ली ताल कहते हैं। यह भी दोनों कोनों सड़कों से जुड़ा हुआ है। नैनीताल से भीमताल की दूरी २२.५ कि.

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मानिला देवी मन्दिर, उत्तराखण्ड

मानिला देवी मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के शल्ट क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान रामनगर से लगभग ७० किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ तक बस या निजी वाहन द्वारा पहुँचा जा सकता है। यह इस क्षेत्र का एक प्रसिद्द मन्दिर है और हर वर्ष यहाँ दूर-दूर से लोग देवी के दर्शनों के लिए आते हैं। यह मन्दिर कत्यूरी लोगो की पारिवारिक देवी मानिला का मंदिर है। मन्दिर दो भागों में बँटा हुआ है जिसे स्थानीय भाषा में मल मानिला (ऊपरी मानिला) और तल मानिला (निचला मानिला) कहते है। प्राचीन मन्दिर तो तल मनीला में ही स्थित है लेकिन मल मानिला मन्दिर के पीछे की कहानी जो स्थानीय लोगो के बीच बहुत प्रचलित है वो ये हैं कि "एक बार कुछ चोर मानिला देवी की मूर्ति को चुराना चाहते थे। लेकिन जब वो मूर्ति उठा रहे थे तो उठा न सके और तब वे मूर्ति का एक हाथ ही उखाड़ कर ले गए, लेकिन उस हाथ को भी वे अधिक दूर ना लेजा सके।" और तबसे वही पर माता का एक और मन्दिर स्थापित कर दिया गया जिसे आज मल मानिला के नाम से लोग जानते है। .

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रुहेलखंड व कुमाऊँ रेलवे

रुहेलखंड व कुमाऊँ रेलवे (R&KR) भारत में मीटरगेज की रेलवे कंपनी थी, जिसका नेटवर्क 953 किलोमीटर था।; Retrieved 8 Dec 2016 1 जनवरी 1943 को इसे भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया गया और इसका विलय अवध व तिरहुत रेलवे में हो गया। .

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हल्द्वानी

हल्द्वानी, उत्तराखण्ड के नैनीताल ज़िले में स्थित एक नगर है जो काठगोदाम के साथ मिलकर हल्द्वानी-काठगोदाम नगर निगम बनाता है। हल्द्वानी उत्तराखण्ड के सर्वाधिक जनसँख्या वाले नगरों में से है और इसे "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" भी कहा जाता है। कुमाऊँनी भाषा में इसे "हल्द्वेणी" भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ "हल्दू" (कदम्ब) प्रचुर मात्रा में मिलता था। सन् १८१६ में गोरखाओं को परास्त करने के बाद गार्डनर को कुमाऊँ का आयुक्त नियुक्त किया गया। बाद में जॉर्ज विलियम ट्रेल ने आयुक्त का पदभार संभाला और १८३४ में "हल्दु वनी" का नाम हल्द्वानी रखा। ब्रिटिश अभिलेखों से हमें ये ज्ञात होता है कि इस स्थान को १८३४ में एक मण्डी के रूप में उन लोगों के लिए बसाया गया था जो शीत ऋतु में भाभर आया करते थे। .

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हल्द्वानी नगर निगम

नगर निगम हल्द्वानी उत्तराखण्ड के हल्द्वानी, काठगोदाम तथा रानीबाग नगरों को नियंत्रित करने वाला नागरिक निकाय है। इसकी स्थापना २०११ में तत्कालीन हल्द्वानी-काठगोदाम नगरपालिका परिषद के उन्नयन द्वारा हुई थी। जोगिंदर रौतेला हल्द्वानी के वर्तमान महापौर हैं। .

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हल्द्वानी में यातायात

कुमाऊँ का प्रवेश द्वार, हल्द्वानी उत्तराखण्ड के नैनीताल ज़िले में स्थित हल्द्वानी राज्य के सर्वाधिक जनसँख्या वाले नगरों में से है। इसे "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" भी कहा जाता है। नगर के यातायात साधनों में २ रेलवे स्टेशन, २ बस स्टेशन तथा एक अधिकृत टैक्सी स्टैंड है। इनके अतिरिक्त नगर से २८ किमी की दूरी पर एक घरेलू हवाई अड्डा स्थित है, और नगर में एक अंतर्राज्यीय बस अड्डा निर्माणाधीन है। .

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हल्द्वानी का इतिहास

कुमाऊँ का प्रवेश द्वार, हल्द्वानी उत्तराखण्ड के नैनीताल ज़िले में स्थित हल्द्वानी राज्य के सर्वाधिक जनसँख्या वाले नगरों में से है। इसे "कुमाऊँ का प्रवेश द्वार" भी कहा जाता है। .

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जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल, रानीखेत

जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल की स्थापना १९८७ में भारतीय उद्योगपति घंश्याम दास बिरला की स्मृति में श्री बी के बिरला और श्रीमती सरला बिरला द्वारा कि गई थी। यह एक विद्यालय है जो भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत नामक कस्बे में स्थित है। यहाँ गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान कि जाती है और इस विद्यालय में आवासीय सुविधा के साथ कक्षा ४ से १२ तक ७०० छात्र पढ़ते हैं। यह दिल्ली से ३६० किमी दूर है। यह विद्यालय, एक पहाड़ी के हलके ढलान पर रानीखेत से ५ किमी की दूरी पर है। निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जो ८५ किमी दूर है। .

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गौला नदी

गौला नदी भारत के उत्तराखण्ड राज्य में बहने वाली एक नदी है। लगभग 500 किमी (310 मील) लंबी इस नदी को किच्छा नाम से भी जाना जाता है। यह नदी उत्तराखण्ड राज्य में सात ताल से निकल कर उत्तर प्रदेश में बरेली से 15 किमी (9.3 मील) उत्तर-पश्चिम में रामगंगा नदी में मिल जाती है। इसका मूल उद्गम भीडापानी, मोरनौला-शहरफाटक की ऊंची पर्वतमाला के जलस्रोतों से होता है। उसके बाद भीमताल, सात ताल की झीलों से आने वाली छोटी नदियों के मिलने से यह हैड़ाखान तक काफ़ी बड़ी नदी बन जाती है। काठगोदाम, हल्द्वानी, किच्छा, शाही इत्यादि नगर इसके तट पर बसे हैं। पिछले कई वर्षों में, भू-क्षरण और वनों की कटाई से गौला का जलग्रह भूस्खलन के लिए प्रवण बन गया है। वर्षा में गिरावट आने से, इसके प्रवाह में भी कमी आई है। हल्द्वानी के समीप मैदान पर आने के बाद गौला नदी का किनारा, अत्यधिक खनन के चलते भी क्षरण का सामना कर रहा है। .

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काठगोदाम रेलवे स्टेशन

काठगोदाम रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह काठगोदाम शहर में स्थित है। इसकी ऊंचाई मी.

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काशीपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन

काशीपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन उत्तराखण्ड राज्य के ऊधम सिंह नगर जनपद का एक रेलवे स्टेशन है, जो काशीपुर नगर में स्थित है। इसका स्टेशन कोड "KPV" है। काशीपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन रेल नेटवर्क द्वारा रामनगर, काठगोदाम, मुरादाबाद, बरेली, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, चंडीगढ़, आगरा, जैसलमेर, हरिद्वार और दिल्ली से जुड़ा है। यह रेलवे स्टेशन भारतीय रेल के उत्तर पूर्वी रेलवे क्षेत्र के इज्जतनगर मण्डल के प्रशासनिक नियंत्रण में है। काशीपुर शहर के लिए कई नए रेल लिंक प्रस्तावित हैं, जिनमें काशीपुर-नजीबाबाद रेलवे लाइन तथा रामनगर-चौखुटिया रेल लिंक प्रमुख हैं। .

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काशीपुर का इतिहास

काशीपुर, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। .

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काशीपुर, उत्तराखण्ड

काशीपुर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। उधम सिंह नगर जनपद के पश्चिमी भाग में स्थित काशीपुर जनसंख्या के मामले में कुमाऊँ का तीसरा और उत्तराखण्ड का छठा सबसे बड़ा नगर है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार काशीपुर नगर की जनसंख्या १,२१,६२३, जबकि काशीपुर तहसील की जनसंख्या २,८३,१३६ है। यह नगर भारत की राजधानी, नई दिल्ली से लगभग २४० किलोमीटर, और उत्तराखण्ड की अंतरिम राजधानी, देहरादून से लगभग २०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। काशीपुर को पुरातन काल से गोविषाण या उज्जयनी नगरी भी कहा जाता रहा है, और हर्ष के शासनकाल से पहले यह नगर कुनिन्दा, कुषाण, यादव, और गुप्त समेत कई राजवंशों के अधीन रहा है। इस जगह का नाम काशीपुर, चन्दवंशीय राजा देवी चन्द के एक पदाधिकारी काशीनाथ अधिकारी के नाम पर पड़ा, जिन्होंने इसे १६-१७ वीं शताब्दी में बसाया था। १८ वीं शताब्दी तक यह नगर कुमाऊँ राज्य में रहा, और फिर यह नन्द राम द्वारा स्थापित काशीपुर राज्य की राजधानी बन गया। १८०१ में यह नगर ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया, जिसके बाद इसने १८१४ के आंग्ल-गोरखा युद्ध में कुमाऊँ पर अंग्रेजों के कब्जे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। काशीपुर को बाद में कुमाऊँ मण्डल के तराई जिले का मुख्यालय बना दिया गया। ऐतिहासिक रूप से, इस क्षेत्र की अर्थव्यस्था कृषि तथा बहुत छोटे पैमाने पर लघु औद्योगिक गतिविधियों पर आधारित रही है। काशीपुर को कपड़े और धातु के बर्तनों का ऐतिहासिक व्यापार केंद्र भी माना जाता है। आजादी से पहले काशीपुर नगर में जापान से मखमल, चीन से रेशम व इंग्लैंड के मैनचेस्टर से सूती कपड़े आते थे, जिनका तिब्बत व पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापार होता था। बाद में प्रशासनिक प्रोत्साहन और समर्थन के साथ काशीपुर शहर के आसपास तेजी से औद्योगिक विकास हुआ। वर्तमान में नगर के एस्कॉर्ट्स फार्म क्षेत्र में छोटी और मझोली औद्योगिक इकाइयों के लिए एक इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल एस्टेट निर्माणाधीन है। भौगोलिक रूप से काशीपुर कुमाऊँ के तराई क्षेत्र में स्थित है, जो पश्चिम में जसपुर तक तथा पूर्व में खटीमा तक फैला है। कोशी और रामगंगा नदियों के अपवाह क्षेत्र में स्थित काशीपुर ढेला नदी के तट पर बसा हुआ है। १८७२ में काशीपुर नगरपालिका की स्थापना हुई, और २०११ में इसे उच्चीकृत कर नगर निगम का दर्जा दिया गया। यह नगर अपने वार्षिक चैती मेले के लिए प्रसिद्ध है। महिषासुर मर्दिनी देवी, मोटेश्वर महादेव तथा मां बालासुन्दरी के मन्दिर, उज्जैन किला, द्रोण सागर, गिरिताल, तुमरिया बाँध तथा गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब काशीपुर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं। .

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किच्छा

किच्छा भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधमसिंहनगर जिले में स्थित एक नगर निगम बोर्ड है। .

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कुमाऊँ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड

हल्द्वानी के केमू स्टेशन में खड़ी बसें। कुमाऊँ मोटर ओनर्स यूनियन लिमिटेड (Kumaon Motor Owners Union Limited), जो अपने संक्षिप्त नाम के॰एम॰ओ॰यू॰ (K.M.O.U) या केमू से अधिक प्रसिद्ध है, उत्तराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में बस सेवा प्रदान करने वाली एक निजी कम्पनी है। १९३९ में १३ निजी कम्पनियों के विलय द्वारा अस्तित्व में आयी यह मोटर कम्पनी स्वतन्त्रता पूर्व कुमाऊँ क्षेत्र में बसें चलाने वाली एकमात्र बस कम्पनी थी। १९८७ तक यह इस क्षेत्र की सबसे बड़ी बस कम्पनी थी। .

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कुशीनगर

यह पन्ना कुशीनगर नामक स्थान और बौद्ध तीर्थ के लिये है। प्रशाशनिक जनपद के लिये देखें कुशीनगर जिला ---- कुशीनगर एवं कसिया बाजार उत्तर प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी सीमान्त इलाके में स्थित एक क़स्बा एवं ऐतिहासिक स्थल है। "कसिया बाजार" नाम कुशीनगर में बदल गया है और उसके बाद "कसिया बाजार" आधिकारिक तौर पर "कुशीनगर" नाम के साथ नगर पालिका बन गया है। यह बौद्ध तीर्थ है जहाँ गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। कुशीनगर, राष्ट्रीय राजमार्ग २८ पर गोरखपुर से कोई ५० किमी पूरब में स्थित है। यहाँ अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर हैं। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है जहाँ विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। कुशीनगर कस्बे के और पूरब बढ़ने पर लगभग २० किमी बाद बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है। यहाँ बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुद्ध इण्टरमडिएट कालेज तथा कई छोटे-छोटे विद्यालय भी हैं। अपने-आप में यह एक छोटा सा कस्बा है जिसके पूरब में एक किमी की दूरी पर कसयां नामक बड़ा कस्बा है। कुशीनगर के आस-पास का क्षेत्र मुख्यत: कृषि-प्रधान है। जन-सामन्य की बोली भोजपुरी है। यहाँ गेहूँ, धान, गन्ना आदि मुख्य फसलें पैदा होतीं हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर में एक माह का मेला लगता है। यद्यपि यह तीर्थ महात्मा बुद्ध से संबन्धित है, किन्तु आस-पास का क्षेत्र हिन्दू बहुल है। इस मेले में आस-पास की जनता पूर्ण श्रद्धा से भाग लेती है और विभिन्न मन्दिरों में पूजा-अर्चना एवं दर्शन करती है। किसी को संदेह नहीं कि बुद्ध उनके 'भगवान' हैं। .

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अल्मोड़ा

अल्मोड़ा भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक महत्वपूर्ण नगर है। यह अल्मोड़ा जिले का मुख्यालय भी है। अल्मोड़ा दिल्ली से ३६५ किलोमीटर और देहरादून से ४१५ किलोमीटर की दूरी पर, कुमाऊँ हिमालय श्रंखला की एक पहाड़ी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार अल्मोड़ा की कुल जनसंख्या ३५,५१३ है। अल्मोड़ा की स्थापना राजा बालो कल्याण चंद ने १५६८ में की थी। महाभारत (८ वीं और ९वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के समय से ही यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों के विवरण मिलते हैं। अल्मोड़ा, कुमाऊं राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी। स्वतंत्रता की लड़ाई में तथा शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है। .

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अल्मोड़ा जिला

अल्मोड़ा भारत के उत्तराखण्ड नामक राज्य में कुमांऊँ मण्डल के अन्तर्गत एक जिला है। इस जिले का मुख्यालय भी अल्मोड़ा में ही है। अल्मोड़ा अपनी सांस्कृतिक विरासत, हस्तकला, खानपान और ठेठ पहाड़ी सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। .

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उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ३७

उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ३७ (SH 37 जिसे नैनीताल मार्ग भी कहते हैं) उत्तर प्रदेश का एक राज्य राजमार्ग है। यह बरेली को किच्छा से जोड़ता है बारास्ता बहेरी। .

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उत्तरायणी मेला, बागेश्वर

उत्तरायणी मेला उत्तरांचल राज्य के बागेश्वर शहर में आयोजित होता है। तहसील व जनपद बागेश्वर के अन्तर्गत सरयू गोमती व सुष्प्त भागीरथी नदियों के पावन सगंम पर उत्तरायणी मेला बागेश्वर का भव्य आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सगंम में स्नान करने से पाप कट जाते है बागेश्वर दो पर्वत शिखरों की उपत्यका में स्थित है इसके एक ओर नीलेश्वर तथा दूसरी ओर भीलेश्वर शिखर विद्यमान हैं बागेश्वर समुद्र तट से लगभग 960 मीटर की ऊचांई पर स्थित है। .

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उत्तराखण्ड के नगर निगमों की सूची

नगर निगम उत्तराखण्ड राज्य के नगरों की स्थानीय शासी निकाय हैं। इस भारतीय राज्य में ८ नगर निगम हैं। २००३ में बना देहरादून नगर निगम राज्य का सबसे बड़ा और पुराना नगर निगम है। वर्ष २०११ में हरिद्वार और हल्द्वानी नगरपालिकाओं को नगर निगम बनाने के बाद राज्य सरकार ने २०१३ में रुद्रपुर, काशीपुर और रुड़की को, और फिर २०१७ में ऋषिकेश और कोटद्वार की नगरपालिकाओं को भी नगर निगम का दर्ज़ा दे दिया। .

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उत्तराखण्ड के राज्य राजमार्गों की सूची

निम्नलिखित सूची उत्तराखण्ड राज्य के राज्य राजमार्गों की है: .

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