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कांची कामकोटि पीठ

सूची कांची कामकोटि पीठ

कांची मठ कांचीपुरम में स्थापित एक हिन्दू मठ है। यह पांच पंचभूतस्थलों में से एक है। यहां के मठाधीश्वर को शंकराचार्य कहते हैं। आज यह दक्षिण भारत के महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। .

5 संबंधों: चैतन्य महाप्रभु, भारत के चार धाम, माधवाचार्य विद्यारण्य, हिन्दू संगठनों की सूची, जयेन्द्र सरस्वती

चैतन्य महाप्रभु

चैतन्य महाप्रभु (१८ फरवरी, १४८६-१५३४) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामंत्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। यह भी कहा जाता है, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता। वैष्णव लोग तो इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं। गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत। इसके अलावा श्री वृंदावन दास ठाकुर रचित चैतन्य भागवत तथा लोचनदास ठाकुर का चैतन्य मंगल भी हैं। .

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भारत के चार धाम

भारतीय धर्मग्रंथों में बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम की चर्चा चार धाम के रूप में की गई है।.

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माधवाचार्य विद्यारण्य

माधवाचार्य, द्वैतवाद के प्रवर्तक माध्वाचार्य से भिन्न हैं। ---- माधवाचार्य या माधव विद्यारण्य (१२९६ -- १३८६), विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर राया प्रथम एवं बुक्का राया प्रथम के संरक्षक, सन्त एवं दार्शनिक थे। उन्होने दोनो भाइयों को सन् १३३६ में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में सहायता की। वे विद्या के भण्डार-सरस्वती के वरद पुत्र, महान तपस्वी और अद्भुत प्रतिभावान् थे। संस्कृत वाङ्मय में इतनी अधिक एवं उनकी इतनी उच्चकोटि की कृतियाँ है कि उन्हें इस युग के व्यास कहा जाता है। उन्होने सर्वदर्शनसंग्रह की रचना की जो हिन्दुओं दार्शनिक सम्प्रदायों के दर्शनों का संग्रह है। इसके अलावा उन्होने अद्वैत दर्शन के 'पंचदशी' नामक ग्रन्थ की रचना भी की। विद्यारण्य की तुलना में यदि मध्यकाल में दूसरा कोई नाम लिया जा सकता है, तो वह समर्थ गुरु रामदास का है, जिन्होंने शिवाजी महाराज को माध्यम बनाकर इस्लामी साम्राज्य का मुकाबला किया। स्वामी विद्यारण्य का जन्म 11 अप्रैल 1296 को तुंगभद्रा नदी के तटवर्ती पम्पाक्षेत्र (वर्तमान हम्पी) के किसी गांव में हुआ था। उनके पिता मायणाचार्य उस समय के वेद के प्रकांड विद्वान थे। मां श्रीमती देवी भी विदुषी थी। इन्हीं विद्यारण्य के भाई आचार्य सायण ने चारों वेदों का वह प्रतिष्ठित टीका की थी, जिसे ‘सायणभाष्य’ के नाम से जाना जाता है। विद्यारण्य का बचपन का नाम माधव था। विद्यारण्य का नाम तो 1331 में उन्होंने तब धारण किया, जब उन्होंने संन्यास ग्रहण किया। विद्यारण्य ने हरिहर प्रथम के समय से राजाओं की करीब तीन पीढ़ियों का राजनीतिक व सांस्कृतिक निर्देशन किया। 1372 में करीब 76 वर्ष की आयु में उन्होंने राजनीति से सेवानिवृत्ति ली और श्रृंगेरी वापस पहुंच गये और उसके पीठाधीश्वर बने। इसके करीब 14 वर्ष बाद 1386 में उनका स्वर्गवास हो गया। लेकिन जीवनभर वह भारत देश, समाज व संस्कृति के संरक्षण की चिंता करते रहे। उन्होंने अद्वैत दर्शन से संबंधित ग्रंथों के साथ सामाजिक महत्व के ग्रंथों का भी प्रणयन किया। अपनी पुस्तक ‘प्रायश्चित सुधानिधि’ में उन्होंने हिन्दुओं के पतन के कारणों की भी अपने ढंग से व्याख्या की है। उन्होंने हिन्दुओं की विलासिता को उनके पतन का सबसे बड़ा कारण बताया। नियंत्रणहीन विलासिता का इस्लामी जीवन हिन्दुओं को बहुत आकर्षित कर रहा था। नाचने गाने वाली दुश्चरित्र स्त्रियों व मुस्लिम वेश्याओं के संग का उन्होंने कठोरता से निषेध किया है। विद्यारण्य की प्रारंभिक शिक्षा तो उनके पिता के सान्निध्य में ही हुई थी, लेकिन आगे की शिक्षा के लिए वह कांची कामकोटि पीठ के आचार्य विद्यातीर्थ के पास गये थे। इन स्वामी विद्यातीर्थ ने विद्यारण्य को मुस्लिम आक्रमण से देश की संस्कृति और समाज की रक्षा हेतु नियुक्त किया था। विद्यारण्य ने गुरु का आदेश पाकर पूरा जीवन उसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समर्पित कर दिया। .

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हिन्दू संगठनों की सूची

अनेकों संगठन हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। .

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जयेन्द्र सरस्वती

जयेन्द्र सरस्वती जयेन्द्र सरस्वती (जन्म: सुब्रहमण्यम महादेव अय्यर) (१८ जुलाई १९३५ – २८ फरवरी २०१८) दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के काँचीपुरम नगर में स्थित कांची कामकोटि पीठ के ६९वें शंकराचार्य थे। उन्हें वेदों के ज्ञाता माना जाता है, और जून २००३ में उन्हें काँची पीठ के शंकराचार्य के पद पर आसीन हुए पचास वर्ष हो गए थे। सन् १९८३ में उन्होंने शंकर विजयेन्द्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। १८ जुलाई १९३५ को उनका देहान्त हो गया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

काँची मठ, कामकोटि पीठ, कांची मठ, कांची कामकोटि पीठम्

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