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कश्मीर

सूची कश्मीर

ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .

357 संबंधों: चतुर्थ बौद्ध संगीति, ऊन, चन्द्रपीड, चश्माशाही, चिटफंड, चित्राल ज़िला, चित्रकला, चंद्रगोमिन्‌, चंद्रकांता (लेखिका), चेतन चीता, ची वर्ग वितरण, चीर, टार्न, ट्यूलिप, ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट, ट्राइऐसिक युग, टैंगो चार्ली (2005 फ़िल्म), टू द फोर्थ ऑफ़ जुलाई, एचएएल ध्रुव, एस पी महादेवन, ऐंथ्रासाइट, झूला पुल, ठाकुर रामसिंह, डल झील, डोमाकी भाषा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, तारपीड, तिब्बत, तिब्बत का पठार, तिब्बत का इतिहास, तिब्बती तीतर, तिब्बती साम्राज्य, तगर, तंत्रसाहित्य के विशिष्ट आचार्य, तंत्राख्यायिका, त्रिलोकी नाथ मदन, तैमूरलंग, दशहरा, दार्द लोग, दार्दिस्तान, दुर्लभवर्धन, दुर्गा पूजा, दुख़्तरान-ए-मिल्लत, द्रास, दोस्त मुहम्मद ख़ान, नथुराम विनायक गोडसे, नन्द ऋषि, नमक कोह, नरेन्द्र मोदी, नालापत बालमणि अम्मा, ..., नागर, नागसेन, निताशा कौल, निर्मला देशपांडे, निशात, नगीन, नेपाली भाषाएँ एवं साहित्य, नेहरू–गांधी परिवार, नीति, नीलमत पुराण, पञ्चतन्त्र, पण्डित, पनुन कश्मीर, पनीर, परमवीर चक्र, परवेज़ रसूल, पहाड़ी चित्रकला शैली, पहाड़ी भाषाएँ, पाक अधिकृत कश्मीर, पंजाब (पाकिस्तान), पुरुषोत्तम नागेश ओक, पुलवामा, पुंछ, प्रतापदित्य, प्रत्यभिज्ञा दर्शन, प्रयाग प्रशस्ति, प्रीति ज़िंटा, पृथिव्यपीड, पीर पंजाल पर्वतमाला, फरीद पर्बती, फिरोजुद्दीन मीर, बड़गाम की लड़ाई, बन्दा सिंह बहादुर, बादाम, बाबरी मस्जिद, बारामूला, बारामूला ज़िला, बिलाड़ा, बिल्हण, बख्शी ग़ुलाम मोहम्मद, बगलीहार पनबिजली परियोजना, बुरहान मुज़फ़्फ़र वानी, बुरज़िल दर्रा, बुरंजी, ब्रिटिश भारत में रियासतें, बौद्ध धर्म एवं हिन्दू धर्म, बृज नारायण चकबस्त, बैजू बावरा, बोन धर्म, भड़ल, भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार, भारत में सांस्कृतिक विविधता, भारत में आए भूकम्पों की सूची, भारत में आतंकवाद, भारत का राजनीतिक एकीकरण, भारत का इतिहास, भारत के ध्वजों की सूची, भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय, भारत के क्षेत्र, भारत २०१०, भारत-संयुक्त राज्य सम्बन्ध, भारत-इज़राइल सम्बन्ध, भारतीय चुनाव, भारतीय थलसेना, भारतीय लिपियाँ, भारतीय संगीत का इतिहास, भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, भारतीय इतिहास की समयरेखा, भाषा-परिवार, भांड, भांड पाथेर, भिम्बेर, भूदृश्य वास्तुकला, मदल पंजी, मध्य हिमालय, मनाली, हिमाचल प्रदेश, मर्ग, महमूद ग़ज़नवी, महमूद गामी, महमूदा अली शाह, महाराज गुलाब सिंह, महावंश, महिम भट्ट, मानसबल झील, मारखोर, मार्तंड मंदिर, कश्मीर, मंजरी चतुर्वेदी, मंखक, मकर संक्रान्ति, मुग़ल साम्राज्य, मुकुल भट्ट, मेधातिथि, मोती लाल केम्मू, मोमिन, यशोवर्मन (कन्नौज नरेश), यारकन्द ज़िला, युद्धविराम, ये जवानी है दीवानी, रत्नाकर स्वामी, रसूल मीर, रहमान राही, राम चन्द्र काक, राय वंश, राय खोखर देव, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, श्रीनगर, राजतरंगिणी, राजबहादुर 'विकल', राजभवन (जम्मू और कश्मीर), श्रीनगर, राजू खेर, राव गोपाल सिंह खरवा, रुय्यक, रुखसाना कौसर, रैडक्लिफ़ अवार्ड, रोग़न जोश, लम्हा, ललितपीड, ललितादित्य मुक्तपीड, लल्लेश्वरी, लाहौर संकल्पना, लाजवंती (धारावाहिक), लिद्दर नदी, लिद्दर घाटी, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम, लिग्नाइट, लोल्लट, शामी कबाब, शारदा लिपि, शार्ङ्गदेव, शालीमार बाग (श्रीनगर), शाह शुजा, शिवालिक, शिवकुमार शर्मा, शंकर शेष, शंकराचार्य मंदिर, शक्सगाम नदी, शुजात बुखारी, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, श्रीनगर रेलवे स्टेशन, श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर, शीना भाषा, सचिन पायलट, सत्या 2, सप्तर्षि संवत, सप्रू, सरदार हरि सिंह नलवा, सरोजिनी काक, सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम, सावित्री बाई खानोलकर, सिन्द नदी, सिन्धु नदी, सिख धर्म का इतिहास, सिख साम्राज्य, संतूर, संदीपा धर, संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची, संग्रामपीड १, संग्रामपीड २, सुभाष काक, सुम्गल, सुहागा, स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास, स्वामी आनन्दबोध, सैयद अली शाह गिलानी, सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला, सूर्य मंदिर, जम्मू, सोमदेव, सोमानन्द, हरमुख, हरि पर्वत, हरिपुर ज़िला, हामिद गुल, हिन्दुओं का उत्पीड़न, हिन्दू मेला, हिमालय, हिमालयी भूगर्भशास्त्र, हिमालयी मोनाल, हज़रतबल, ह्वेन त्सांग, हींग, जम्मू, जम्मू (बहुविकल्पी), जम्मू एवं काश्मीर का इतिहास, जम्मू और कश्मीर, जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस, जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकार हनन, जम्मू और कश्मीर में विद्रोह, जम्मू और कश्मीर का ध्वज, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट, जयपाल, जयपीड, जयश्री ओडिन, जयादित्य, जल्हण, जलौक, ज़ैन-उल-अबिदीन, जैश-ए-मोहम्मद, जेट कनेक्ट, जोनराज, वटेश्वर, वनस्पती वर्गिकरण, वल्लभ भाई पटेल, वाहलीक, विलय, विशनसर, विक्की विश्वकर्मा, वज्रादित्य, वृंदावन उद्यान, वेरीनाग, वी के कृष्ण मेनन, ख़ुबानी, खासिया, गाँजा, गाडसर, गाशरब्रुम, गंभीरनाथ, गंगाबल झील, गुलमर्ग, गुलाब, गुलाम अहमद महजूर, गुलज़ार देहलवी, गोएयर, गोनन्द, गोलमेज सम्मेलन (भारत), गोजरी भाषा, गीतरामायणम्, ऑपरेशन मेघदूत, आचार्य मम्मट, आचार्य आनन्दवर्धन, आदरसूचक, आनन्दपाल, आभासवाद, आम आदमी पार्टी, आरज़ू (1965 फ़िल्म), आलूबालू, इन्दिरा गांधी, इन्द्रायुध, इंदिरा रायसम गोस्वामी, इक़बाल खान, कथासरित्सागर, कथासाहित्य (संस्कृत), कमलापुरी, कर्नाटक का इतिहास, कलसियां, कल्हण, कश्मीर, कश्मीर रेलवे, कश्मीर का इतिहास, कश्मीरी भाषा, कश्मीरी साहित्य, कश्मीरी हंगुल, कश्मीरी खाना, क़हवा, कारगिल युद्ध, कार्कोट राजवंश, कालिदास का काव्य सौन्दर्य, काश्मीरी पण्डित, कासनिया, काज़ीगुंड, काग़ान घाटी, कागज उद्योग, किशनगंगा नदी, कंपनी राज, कंबोज, कछवाहा, कुट्टनी, कुरुविन्द, कुवलयपीड, क्रीत, क्षेमराज, क्षेमेंद्र, कौसरनाग, कृशनसर, कैटरीना कैफ़, कैयट, कैलाश (तीर्थ), केसर, कोलाहोइ हिमानी, कोकलास, अनन्तनाग ज़िला, अनुभा भोंसले, अब्दूल अहद आज़ाद, अभिनवगुप्त, अमरनाथ, अय्यारी (२०१८ फ़िल्म), अस्तोर घाटी, अज्ञेय, अवन्तिवर्मन, अविनाश काक, अगस्त २०१०, अग्निशेखर, अकबर, अक्टूबर २०१५ हिन्दू कुश भूकंप, उत्तर अफ़्रीका, उत्तराखण्ड, उत्पल वंश, उत्पलाचार्य, उत्कीर्णन, उद्भट, उन्मत्तावंती, उवट, १९४७ का भारत-पाक युद्ध, १९५३, २०१०, २३ जून, ५ अगस्त, 2014 भारत - पाकिस्तान बाढ़, 2016 कश्मीर अशांति सूचकांक विस्तार (307 अधिक) »

चतुर्थ बौद्ध संगीति

चतुर्थ बौद्ध संगीति दो भिन्न बौद्ध संगीति बैठकों का नाम है। पहली श्रीलंका में प्रथम ईशा पूर्व हुई थी। चतुर्थ बौद्ध संगीति में थेरवाद त्रिपिटक को ताड़ के पतों पर लिखा गया। यह संगीति कश्मीर के कुण्डलवं में कनिष्क के काल में हुई थी। दूसरी सर्वास्तिवाद विद्यालय, कश्मीर में पहली शताब्दी में हुई। .

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ऊन

ऊन के लम्बे एवं छोटे रेशे ऊन मूलतः रेशेदार (तंतुमय) प्रोटीन है जो विशेष प्रकार की त्वचा की कोशिकाओं से निकलता है। ऊन पालतू भेड़ों से प्राप्त किया जाता है, किन्तु बकरी, याक आदि अन्य जन्तुओं के बालों से भी ऊन बनाया जा सकता है। कपास के बाद ऊन का सर्वाधिक महत्व है। इसके रेशे उष्मा के कुचालक होते हैं। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर इन रेशों की सतह असमान, एक दूसरे पर चढ़ी हुई कोशिकाओं से निर्मित दिखाई देती है। विभिन्न नस्ल की भेड़ों में इन कोशिकाओं का आकार और स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है। महीन ऊन में कोशिकाओं के किनारे, मोटे ऊन के रेशों की अपेक्षा, अधिक निकट होते हैं। गर्मी और नमी के प्रभाव से ये रेशे आपस में गुँथ जाते हैं। इनकी चमक कोशिकायुक्त स्केलों के आकार और स्वरूप पर निर्भर रहती है। मोटे रेशे में चमक अधिक होती है। रेशें की भीतरी परत (मेडुल्ला) को महीन किस्मों में तो नहीं, किंतु मोटी किस्मों में देखा जा सकता है। मेडुल्ला में ही ऊन का रंगवाला अंश (पिगमेंट) होता है। मेडुल्ला की अधिक मोटाई रेशे की संकुचन शक्ति को कम करती है। कपास के रेशे से इसकी यह शक्ति एक चौथाई अधिक है। .

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चन्द्रपीड

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणी:कश्मीर.

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चश्माशाही

कश्मीर में विख्यात उद्यान है।.

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चिटफंड

चिट फंड का अभ्यास भारत में एक बचत योजना के रूप में किया जाता है। एक कंपनी जो चिटफंड का प्रबंधन, आयोजिन और पर्यवेक्षण करता है, इस तरह के कंपनी को, चिट फंड अधिनियम की धारा १९८२ के द्वारा चिट फंड कंपनी के नाम से परिभाषित किया जाता है। चिट फंड अधिनियम, १०८२ की धारा २ (ख) के अनुसार: "चिट का मतलब लेन-देन है जो चाहे चिट, चिट फंड, चिट्टि, कुरी या किसी अन्य नाम से, जिस्के द्वारा या जिसके तहत एक व्यक्ति, व्यक्तियों के एक निर्धारित संख्या के साथ एक समझौते में प्रवेश करता है कि उनमें से हर एक पैसे की एक निश्चित राशि का सदस्यता करेगा (या अनाज की एक निश्चित मात्रा), समय-समय पर किश्तों के माध्यम से एक निश्चित अवधि तक और ऐसे प्रत्येक ग्राहक को अपनी बारी के दौरान बेतरतीब ढंग से चुनाव, या नीलामी से, या निविदा द्वारा या इस तरह के अन्य तरीकों के रूप में जो चिट समझौते में निर्दिष्ट किया गया हो, पुरस्कार राशि के हकदार बनेंगे।" इस तरह के चिट फंड योजनाओं संगठित वित्तीय संस्थाओं द्वारा आयोजित किया जा सकता है, या दोस्तों या रिश्तेदारों के बीच आयोजित असंगठित योजनाओं से भी हो सकता है।चिट फंड के कुछ रूपों में, बचत विशिष्ट प्रयोजनों के लिए किया जाता है।चिट फंड, ऋण सुविधा के लिए आसान पहुँच प्रदान करके दक्षिण भारतीय राज्य केरल के लोगों की वित्तीय विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। केरल में चिट्टि (चिट फंड) एक आम घटना समाज के सभी वर्गों द्वारा अभ्यास किया जाता है।केरल राज्य वित्तीय उद्यम नामक एक कंपनी है जो केरल सरकार द्वारा चलाया जाता है जिसका मुख्य कारोबारी कार्यकलाप चिट्टि है। चिट फंड की अवधारणा १८०० में लोगों की आँखों के सामने आयी जब राजा राम वर्मा- तत्कालीन कोचीन राज्य के शासक, एक सीरियाई ईसाई व्यापारी को एक ऋण दिया था, जिसमें खुद के अन्य खर्चों के लिए उस में का एक निश्चित भाग रख कर और बाद में वह समानता के सिद्धांत के आधार पर बाकी पैसे भी ले लिय। राजा राम वर्मा .

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चित्राल ज़िला

चित्राल (उर्दू:, अंग्रेज़ी: Chitral) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ज़िला है। यह उस प्रान्त का सबसे बड़ा ज़िला है। इसका क्षेत्रफल १४,८५० वर्ग किमी है और १९९८ की जनगणना में इसकी आबादी ३,१८,६८९ थी। ७,७०८ मीटर ऊँचा तिरिच मीर, जो दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ों में से है, इस ज़िले में स्थित है। चित्राल ज़िले की राजधानी चित्राल शहर है।, Sarina Singh, Lindsay Brown, Paul Clammer, Rodney Cocks, John Mock, Lonely Planet, 2008, ISBN 978-1-74104-542-0 .

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चित्रकला

राजा रवि वर्मा कृत 'संगीकार दीर्घा' (गैलेक्सी ऑफ म्यूजिसियन्स) चित्रकला एक द्विविमीय (two-dimensional) कला है। भारत में चित्रकला का एक प्राचीन स्रोत विष्णुधर्मोत्तर पुराण है। .

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चंद्रगोमिन्‌

चंद्रगोमिन्‌ प्रसिद्ध बौद्ध वैयाकरण थे। वे 'चांद्र व्याकरण' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ के प्रवर्तक माने जाते र्हे। इनके अन्य प्रसिद्ध नाम थे 'चंद्र' और 'चंद्राचार्य'। इनका समय जयादित्य और वामन की 'काशिका' (वृत्तिसूत्र, समय 650 ई. के आसपास) तथा भर्तृहरि (या हरि) के 'वाक्यपदीय' से निश्चित रूप में पूर्ववर्ती है। काशिकासूत्रवृत्ति में इनके अनेक नियमसूत्र बिना नामोल्लेख के गृहीत हैं। वाक्य पदीय में बताया गया है कि पंतजलि को शिष्यपरंपरा में जो व्याकरण नष्टभ्रष्ट हो गया था उसे चंद्राचार्यादि ने अनेक शाखाओं में पुन-प्रणीत किया (य: पंतजलिशिष्येभ्यो भ्रष्टो व्याकरणागम:। सनीतो बहुशाखत्वं चंद्राचार्यादिभि: पुन: 2/489)। चांद्र व्याकरण में उद्घृत उदाहरण 'अजयद् गुप्तो हूणान्‌' के सन्दर्भवैशिष्ट्य से सूचित है कि गुप्त (स्कंदगुप्त 465 ई. अथवा यशोवर्मा 544 ई.) सम्राट् की विजयघटना ग्रंथकार चंद्राचार्य के जीवनकाल में ही घटित हुई थी। अत: सामान्य रूप से चंद्रगोमिन्‌ का समय 470 ई. के आसपास माना जाता है। इनका सर्वप्रथम नामोल्लेख संभवत: 'वाक्यपदीय' में है। .

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चंद्रकांता (लेखिका)

श्रीमती चन्द्रकान्ता चन्द्रकान्ता (जन्म 3 दिसम्बर 1938) हिन्दी की विख्यात लेखिका हैं। 'कथा सतीसर' उनकी सबसे विख्यात उपन्यास है। श्रीमती चन्द्रकान्ता का जन्म श्रीनगर में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रो.

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चेतन चीता

चेतन चीता सीआरपीएफ कीर्ति चक्र विजेता केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के कमांडिंग ऑफिसर है जो कश्मीर में बांदीपुरा में हुई मुठभेड़ में गंभीर रूप से घायल हुए थे, एनकाउंटर में एक आतंकवादी ढेर हुआ था और सेना के तीन जवान शहीद हुए थे । दो महीने कोमा में रहने के बाद स्‍वस्‍थ हुए। चेतन चीता कोटा के रहने वाले हैं। उनके पिता रिटायर्ड आरएएस अफसर हैं, जो कोटा में ही रहते हैं। चेतन की पत्नी और दोनों बच्चें दिल्ली रहते हैं। .

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ची वर्ग वितरण

सिद्धांत संभावना और सांख्यिकी में, स्वतंत्रता की डिग्री के साथ कश्मीर ची-वर्ग बंटन (भी ची के वर्ग या χ²-वितरण) कश्मीर स्वतंत्र मानक सामान्य यादृच्छिक चर के वर्गों की राशि का वितरण है। यह गामा वितरण की एक विशेष मामला है और परिकल्पना परीक्षण में या विश्वास अंतराल के निर्माण में, आनुमानिक आँकड़े, उदा में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल प्रायिकता वितरण में से एक है।जब यह है अधिक सामान्य ची-वर्ग बंटन से प्रतिष्ठित किया जा रहा है, इस वितरण कभी कभी केंद्रीय ची-वर्ग बंटन कहा जाता है। ची-वर्ग बंटन एक की आबादी के मानक विचलन के लिए एक सैद्धांतिक एक, गुणात्मक डेटा के वर्गीकरण के दो मापदंड की स्वतंत्रता के लिए एक मनाया वितरण के फिट की भलाई के लिए आम ची चुकता परीक्षणों में प्रयोग किया जाता है, और विश्वास अंतराल आकलन में एक नमूना मानक विचलन से सामान्य वितरण। कई अन्य सांख्यिकीय परीक्षण भी खेमे से विचरण के फ्राइडमैन के विश्लेषण की तरह, इस वितरण का उपयोग करें। चि वग्र वितरन .

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चीर

चीर (Cheer pheasant) (Catreus wallichii) एक मयूरवंशी पक्षी है जो कि पाक अधिकृत कश्मीर, भारत तथा नेपाल में पाया जाता है। .

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टार्न

टार्न या सर्क झील अथवा गिरिताल एक हिमनद निर्मित स्थलरूप है। सर्क या हिमगह्रवर की घाटी में स्थित चट्टानों पर अत्यधिक हिम के दबाव तथा अधिक गहराई तक अपरदन की क्रिया सम्पन्न होने के कारण छोटे-छोटे अनेक गड्ढ़ों का निर्माण हो जाता है और जब हिम पिघल जाती है तो इसका जल इन गड्ढ़ों में भर जाता है तथा झीलों का निर्माण होता है, इन्हीं झीलों को टार्न या सर्क झील कहते है। टार्न शब्द नार्वेजियन भाषा (के tjörn) से निकला है और इसका अर्थ छोटा तालाब होता है। सामान्यतः ये झीलें छोटे आकार की होती हैं। भारत के हिमालय क्षेत्र में कश्मीर घाटी में गंगाबल झील इस स्थलरूप का एक सुन्दर उदाहरण है। .

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ट्यूलिप

ट्यूलिप के फूल ट्यूलिप (Tulip) वसंत ऋतु में फूलनेवाला पादप है। ट्यूलिप (Tulip) के नैसर्गिक वासस्थानों में एशिया माइनर, अफगानिस्तान, कश्मीर से कुमाऊँ तक के हिमालयी क्षेत्र, उत्तरी ईरान, टर्की, चीन, जापान, साइबीरिया तथा भूमध्य सागर के निकटवर्ती देश विशेषतया उल्लेखनीय हैं। वनस्पति विज्ञान के ट्यूलिया (Tulipa) वंश का पारिभाषिक उद्गम ईरानी भाषा के शब्द टोलिबन (अर्थात् पगड़ी) से इसलिये माना जाता है कि ट्यूलिप के फूलों को उलट देने से ये पगड़ी नामक शिरोवेश जैसे दिखाई देते हैं। ट्यूलिपा वंश के सहनशील पौधों का वानस्पतिक कुल लिलिएसिई (Liliaceae) है। टर्की से यह पौधा 1554 ई0 में ऑस्ट्रिया, 1571 ई0 में हॉलैंड और 1577 ई0 में इग्लैंड ले जाया गया। इस पौधे का सर्वप्रथम उल्लेख 1559 ई0 में गेसनर ने अपने लेखों और चित्रों में किया था और उसी के आधार पर ट्यूलिपा गेसेनेरियाना (Tulipa gesenereana) का नामकरण हुआ। अल्प काल में ही इसके मनमोहक फूलों के चित्ताकर्षक रूपरंग के कारण यह पौधा यूरोप भर में सर्वप्रिय होकर फैल गया है। ट्यूलिप के अंदर .

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ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट

शक्स्गाम वादी कश्मीर के इस नक़्शे के मध्य उत्तर में देखी जा सकती है काराकोरम-पार क्षेत्र (अंग्रेज़ी: Trans-Karakoram Tract, ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट) या शक्सगाम वादी एक लगभग ५,८०० वर्ग किमी का इलाक़ा है जो कश्मीर के उत्तरी काराकोरम पर्वतों में शक्सगाम नदी के दोनों ओर फैला हुआ है। यह भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा हुआ करता था जिसे १९४८ में पाकिस्तान ने अपने नियंत्रण में ले लिया। १९६३ में एक सीमा समझौते के अंतर्गत पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को चीन को भेंट कर दिया। पाकिस्तान की दलील थी कि इस से पाकिस्तान और चीन के बीच में मित्रता बन जाएगी और उनका कहना था की ऐतिहासिक रूप से इस इलाक़े में कभी अंतरराष्ट्रीय सीमा निर्धारित थी ही नहीं इसलिए इस ज़मीन को चीन के हवाले करने से पाकिस्तान का कोई नुक़सान नहीं हुआ। भारत इस बात का पुरज़ोर खंडन करता है और शक्सगाम को अपनी भूमि का अंग बताता है। उसके अनुसार यह पुरा क्षेत्र भारतीय जम्मू एवं कश्मीर राज्य का अभिन्न भाग है।, Routledge, 2009, ISBN 978-1-134-07956-8,...

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ट्राइऐसिक युग

ट्राइएसिक (Triassic) भूवैज्ञानिक काल है जिसका विस्तार लगभग 250 से 200 Ma (million years ago) तक है। यह मध्यजीव कल्प के पहला युग है। .

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टैंगो चार्ली (2005 फ़िल्म)

टैंगो चार्ली (अंग्रेजी; Tango Charlie) वर्ष २००५ की हिंदी भाषा में बनी, युद्ध आधारित फ़िल्म है जिसका लेखन एवं निर्देशन मणि शंकर ने किया है। फ़िल्म में कई अदाकर जैसे अजय देवगन, बाॅबी द्योल, संजय दत्त, सुनील शेट्टी, तनीषा, नंदना सेन, तथा सुदेश बैरी आदि शामिल है। फ़िल्म का सार तरुण चौहान (द्योल) नामक अर्द्धसैनिक से भारतीय सीमा सुरक्षा बल में बतौर नव नियुक्त सिपाही के तथाकथित युद्ध में कठोर अनुभवों पर केंद्रित है। फ़िल्म में प्रस्तुत किया गया है कि सच्चे सिपाही जन्म नहीं लेते, बस बन जाते हैं। फ़िल्म में भारत के विभिन्न भागों में पनपते आंतरिक द्रोह एवं अतिवाद को दिखाया गया है, तथा बीबीसी पत्रकार जसप्रीत पांडोहर के वर्णन में यह "यह भारत में फैले आतंकवाद, हिंसा और उनसे जुझते लोगों की वीरता को जानने का नया रुचिकर अध्याय खोलती है।" अंग्रेजी अखबार द हिन्दू ने फ़िल्म के विषय में लिखते है "इस कठोर विषय को सामना करने के लिए पर्याप्त साहस की जरूरत है" तथा "यह एक साहसिक कदम है जहाँ भारतीय पत्रकारिता जाने से बचती है।" .

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टू द फोर्थ ऑफ़ जुलाई

टू द फोर्थ ऑफ़ जुलाई (To the Fourth of July, चार जुलाई के लिए) एक अंग्रेजी कविता है जो भारतीय साधु और समाज सुधारक स्वामी विवेकानन्द द्वारा रचित है। विवेकानन्द ने यह कविता 4 जुलाई 1898 को अमेरिकी स्वतंत्रता की वर्षगाँठ पर रचित की। इस कविता में विवेकानन्द ने स्वतंत्रता की प्रशंसा और महिमा का गुणगान किया हौ और स्वतंत्रता के लिए अपनी प्रभावशाली लालसा को भावुक कथन के रूप में कविता के माध्यम से वर्णित किया। प्रसंगवश विवेकानन्द स्वयं का निधन 4 जुलाई 1902 को हुआ। .

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एचएएल ध्रुव

ध्रुव हैलीकॉप्टर हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा विकसित और निर्मित भारत का एक बहूद्देशीय हैलीकॉप्टर है। इसकी भारतीय सशस्त्र बलों को आपूर्ति की जा रही है और एक नागरिक संस्करण भी उपलब्ध है। इसे पहले नेपाल और इज़रायल को निर्यात किया गया था फिर सैन्य और वाणिज्यिक उपयोग के लिए कई अन्य देशों द्वारा मंगाया गया है। सैन्य संस्करण परिवहन, उपयोगिता, टोही और चिकित्सा निकास भूमिकाओं में उत्पादित किये जा रहे हैं। ध्रुव मंच के आधार पर, एच ए एल हल्का लड़ाकू हेलीकाप्टर, एक लड़ाकू हेलीकाप्टर और एचएएल लाइट अवलोकन हेलीकाप्टर, एक उपयोगिता और प्रेक्षण हेलिकॉप्टर विकसित किए गए है। .

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एस पी महादेवन

जनरल एसपी महादेवन अति विशिष्ट सेवा पदक प्राप्त,को सेना के अति प्रभावी अधिकारी के रूप में जाना जाता था जिन्होंने अगस्त १९४६ में कलकत्ता दंगों के दौरान महात्मा गांधी की रक्षा की थी और बाद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन ने तमिलनाडु सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया था। मेजर जनरल एस पी महादेवन का दिनाक ६ अप्रैल २०१८ को निधन हो गया। वे ९२ वर्ष के थे। महादेवन को १९४६ में तत्कालीन बेंगलुरु स्थित अधिकारियों प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए) से भारतीय सेना में नियुक्त किया गया था। .

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ऐंथ्रासाइट

ऐंथ्रासाइट कोयला ऐंथ्रासाइट (Anthracite) कोयले की सबसे अच्छी किस्म का नाम है। इसका रंग काला होता है, पर हाथ में लेने पर उसे काला नहीं करता। इसकी चमक अधात्विक होती है। टूटने पर इसके नवीन पृष्ठों में से एक अवतल और दूसरा उत्तल दिखाई पड़ता है; इसे ही शंखाभ (कनकॉयडल) टूट कहते हैं। इसमें बहुधा विभंग समतल विद्यमान रहते हैं। इसकी कठोरता ०.५ से २.५ तक तथा आपेक्षिक घनत्व १.३६ से १.८४ तक होता है। .

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झूला पुल

सैन फ्रांसिस्को का प्रसिद्ध झूला पुल (गोल्डेन गेट पुल) झूला पुल में मुख्यतया दो रस्से या रस्सों के सेट होते हैं, जो मार्ग के दोनों ओर रज्जुवक्र (catenary, कैटिनेरी) की आकृति में लटकते रहते हैं और जिनसे सारा रास्ता झूलों द्वारा लटकता रहता है। रस्से किसी भी मजबूत नम्य पदार्थ के हो सकते हैं। तार के केबल (cable) सर्वोत्तम होते हैं, क्योंकि ये खिचकर बढ़ते नहीं। लोहे की जंजीर से झूले लटकाने में सुविधा होती है, किंतु यह केबल की भाँति विश्वसनीय नहीं होती। सन का रस्सा छोटे छोटे पाटों के लिए काम में लाया जा सकता है, किंतु यह उतना टिकाऊ नहीं होता और खिचकर इतना बढ़ जाता है कि परेशानी का कारण होता है। अन्य अच्छा पदार्थ न मिल सकने की दशा में बेत, टहनियों या बाँस की खपचियों से बनी रस्सियाँ भी काम में लाई जाती हैं। जहाँ कश्मीर और तिब्बत के रस्सीवाले पुल (जिनमें तीन समांतर रस्सियाँ, दो हाथों से पकड़ने के लिए और एक पैर रखने के लिए, थोड़े थोड़े अंतर पर बँधी लकड़ियों के सहारे यथास्थान स्थिर रहती हैं) यात्रियों के लिए खतरनाक और भयप्रद होते हैं, वहाँ पूर्वोत्तर भारत के हिमालय की घाटियों के बेत के पुल कलात्मक तथा दर्शनीय होते हैं और एक सिरे से दूसरे सिरे तक उनका बेतों का घेरा यात्री में सुरक्षा भाव बनाए रखता है। .

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ठाकुर रामसिंह

ठकुर राम सिंह ठाकुर रामसिंह (16 फ़रवरी 1915 - ०६ सितम्बर २०१०) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं इतिहास संकलन समिति के संस्थापक सदस्य थे। .

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डल झील

डल झील श्रीनगर, कश्मीर में एक प्रसिद्ध झील है। १८ किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई यह झील तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरी हुई है। जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी झील है। इसमें सोतों से तो जल आता है साथ ही कश्मीर घाटी की अनेक झीलें आकर इसमें जुड़ती हैं। इसके चार प्रमुख जलाशय हैं गगरीबल, लोकुट डल, बोड डल तथा नागिन। लोकुट डल के मध्य में रूपलंक द्वीप स्थित है तथा बोड डल जलधारा के मध्य में सोनालंक द्वीप स्थित है। भारत की सबसे सुंदर झीलों में इसका नाम लिया जाता है। पास ही स्थित मुगल वाटिका से डल झील का सौंदर्य अप्रतिम नज़र आता है। पर्यटक जम्मू-कश्मीर आएँ और डल झील देखने न जाएँ ऐसा हो ही नहीं सकता। डल झील के मुख्य आकर्षण का केन्द्र है यहाँ के शिकारे या हाउसबोट। सैलानी इन हाउसबोटों में रहकर झील का आनंद उठा सकते हैं। नेहरू पार्क, कानुटुर खाना, चारचीनारी आदि द्वीपों तथा हज़रत बल की सैर भी इन शिकारों में की जा सकती है। इसके अतिरिक्त दुकानें भी शिकारों पर ही लगी होती हैं और शिकारे पर सवार होकर विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ भी खरीदी जा सकती हैं। तरह तरह की वनस्पति झील की सुंदरता को और निखार देती है। कमल के फूल, पानी में बहती कुमुदनी, झील की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है। सैलानियों के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन जैसे कायाकिंग (एक प्रकार का नौका विहार), केनोइंग (डोंगी), पानी पर सर्फिंग करना तथा ऐंगलिंग (मछली पकड़ना) यहाँ पर उपलब्ध कराए गए हैं। डल झील में पर्यटन के अतिरिक्त मुख्य रूप से मछली पकड़ने का काम होता है। .

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डोमाकी भाषा

डोमाकी (Domaaki) पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र में कुछ सैंकड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक दार्दी भाषा है। यह डूमा समुदाय के सदस्यों द्वारा बोली जाती है जिनकी लोकमान्यता है कि वे कहीं दक्षिण में मध्य भारत से आकर कश्मीर घाटी से गुज़रते हुए नगर और हुन्ज़ा की घाटियों में पहुंचकर बस गए थे। यहाँ से वे आगे काश्गर तक भी पहुँच गए। अधिकतर डूमा लोगों ने अपनी मातृभाषा छोड़कर शीना भाषा बोलना शुरू कर दिया और केवल नगर व हुन्ज़ा वादियों में ही डोमाकी चलती आ रही है। डूमा लोग पेशे से लोहार और मरासी (संगीतकार) हुआ करते थे लेकिन आजकल यह भिन्न व्यवसायों में लग गए हैं। १९८९ में केवल ५०० लोग डोमाकी मातृभाषी गिने गए थे और इनकी गिनती कम होती जा रही थी। इनमें से अधिकतर हुन्ज़ा में और कुछ नगर में हैं। हुन्ज़ा की डोमाकी और नगर की डोमाकी में कुछ अंतर हैं लेकिन इनके बोलने वाले एक-दूसरे को समझ सकते हैं। सभी डोमाकी बोलने वाले अपने आसपास के बहुसंख्यक बुरुशसकी या शीना लोगों की ज़बाने भी बोल लेते हैं। .

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तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान

तहरीक-ए-तालिबान का ध्वज फ़ाटा क्षेत्र से शुरु हुई थी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (उर्दू), जिसे कभी-कभी सिर्फ़ टी-टी-पी (TTP) या पाकिस्तानी तालिबान भी कहते हैं, पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा के पास स्थित संघ-शासित जनजातीय क्षेत्र से उभरने वाले चरमपंथी उग्रवादी गुटों का एक संगठन है। यह अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान से अलग है हालांकि उनकी विचारधाराओं से काफ़ी हद तक सहमत है। इनका ध्येय पाकिस्तान में शरिया पर आधारित एक कट्टरपंथी इस्लामी अमीरात को क़ायम करना है। इसकी स्थापना दिसंबर २००७ को हुई जब बेयतुल्लाह महसूद​ के नेतृत्व में १३ गुटों ने एक तहरीक (अभियान) में शामिल होने का निर्णय लिया।, Marlène Laruelle, Sébastien Peyrouse, pp.

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तारपीड

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणी:कश्मीर के राजा.

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तिब्बत

तिब्बत का भूक्षेत्र (पीले व नारंगी रंगों में) तिब्बत के खम प्रदेश में बच्चे तिब्बत का पठार तिब्बत (Tibet) एशिया का एक क्षेत्र है जिसकी भूमि मुख्यतः उच्च पठारी है। इसे पारम्परिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है। इसके प्रायः सम्पूर्ण भाग पर चीनी जनवादी गणराज्य का अधिकार है जबकि तिब्बत सदियों से एक पृथक देश के रूप में रहा है। यहाँ के लोगों का धर्म बौद्ध धर्म की तिब्बती बौद्ध शाखा है तथा इनकी भाषा तिब्बती है। चीन द्वारा तिब्बत पर चढ़ाई के समय (1955) वहाँ के राजनैतिक व धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत में आकर शरण ली और वे अब तक भारत में सुरक्षित हैं। .

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तिब्बत का पठार

तिब्बत का पठार हिमालय पर्वत शृंखला से लेकर उत्तर में टकलामकान रेगिस्तान तक फैला हुआ है तिब्बत का बहुत सा इलाक़ा शुष्क है तिब्बत का पठार (तिब्बती: བོད་ས་མཐོ།, बोड सा म्थो) मध्य एशिया में स्थित एक ऊँचाई वाला विशाल पठार है। यह दक्षिण में हिमालय पर्वत शृंखला से लेकर उत्तर में टकलामकान रेगिस्तान तक विस्तृत है। इसमें चीन द्वारा नियंत्रित बोड स्वायत्त क्षेत्र, चिंग हई, पश्चिमी सीश्वान, दक्षिण-पश्चिमी गांसू और उत्तरी यून्नान क्षेत्रों के साथ-साथ भारत का लद्दाख़ इलाक़ा आता है। उत्तर-से-दक्षिण तक यह पठार १,००० किलोमीटर लम्बा और पूर्व-से-पश्चिम तक २,५०० किलोमीटर चौड़ा है। यहाँ की औसत ऊँचाई समुद्र से ४,५०० मीटर (यानी १४,८०० फ़ुट) है और विशव के ८,००० मीटर (२६,००० फ़ुट) से ऊँचे सभी १४ पर्वत इसी क्षेत्र में या इसे इर्द-गिर्द पाए जाते हैं। इस इलाक़े को कभी-कभी "दुनिया की छत" कहा जाता है। तिब्बत के पठार का कुल क्षेत्रफल २५ लाख वर्ग किमी है, यानी भारत के क्षेत्रफल का ७५% और फ़्रांस के समूचे देश का चौगुना। .

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तिब्बत का इतिहास

तिब्बत का ऐतिहासिक मानचित्र 300px मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16000 फुट की ऊँचाई पर स्थित तिब्बत का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल 1207 ई0 में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत 1720 ई0 में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर 1788-1792 ई0 के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणामस्वरूप 19वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। इतिहास के अनुसार तिब्बत ने दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत ने हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से सहायता माँगी। चीन के सहायता से उसने नेपाल से छुटकारा तो पाया लेकिन इसके बाद 1906-7 ई0 में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार बनाया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। 1912 ई0 में चीन से मांछु शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् 1913-14 में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी दो भागों में विभाजित कर दिया गया.

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तिब्बती तीतर

तिब्बती तीतर (तिब्बती:सकफा) (Tibetan Partridge) (Perdix hodgsoniae) फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है जो व्यापक रूप से तिब्बती पठार में पाया जाता है। इस पक्षी का आवासीय क्षेत्र बहुत विशाल है और इसी वजह से इसे संकट से बाहर की जाति माना गया है। इस पक्षी का मूल निवास चीन, भारत, भूटान और नेपाल है। .

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तिब्बती साम्राज्य

तिब्बती साम्राज्य (तिब्बती: བོད་, बोड) ७वीं से ९वीं सदी ईसवी तक चलने वाला एक साम्राज था। तिब्बत-नरेश द्वारा शासित यह साम्राज्य तिब्बत के पठार से कहीं अधिक विस्तृत क्षेत्रों पर फैला हुआ था। अपने चरम पर पश्चिम में आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान, उज़बेकिस्तान, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश से लेकर बंगाल और युन्नान प्रान्त के कई भाग इसके अधीन थे।, Saul Mullard, pp.

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तगर

तगर (वानस्पतिक नाम: Valeriana wallichii) एक प्रकार का पेड़ जो अफगानिस्तान, कश्मीर, भूटान और कोंकण में नदियों के किनारे पाया जाता है। भारत के बाहर यह मडागास्कर और जंजीबार में भी होता है। इसकी लकड़ी बहुत सुगंधित होती है और उसमें से बहुत अधिक मात्रा में एक प्रकार का तेल निकलता है। यह लकड़ी अगर की लकड़ी के स्थान पर तथा औषध के काम में आती है। लकड़ी काले रंग की और सुगंधित होती है और उसका बुरादा जलाने के काम में आता है। भावप्रकाश के अनुसार तगर दो प्रकार का होता है, एक में सफेद रंग के और दूसरे में नीले रंग के फूल लगते हैं। इसकी पत्तियों के रस से आँख के अनेक रोग दूर होते हैं। वैद्यक में इसे उष्ण, वीर्यवर्धक, शीतल, मधुर, स्निग्ध, लघु और विष, अपस्मार, शूल, दृष्टिदोष, विषदोष, भूतोन्माद और त्रिदोष आदि का नाशक माना है। श्रेणी:औषधीय पादप.

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तंत्रसाहित्य के विशिष्ट आचार्य

तन्त्र साहित्य अत्यन्त विशाल है। प्राचीन समय के दुर्वासा, अगस्त्य, विश्वामित्र, परशुराम, बृहस्पति, वशिष्ठ, नंदिकेश्वर, दत्तात्रेय आदि ऋषियों ने तन्त्र के अनेकों ग्रन्थों का प्रणयन किया, उनका विवरण देना यहाँ अनावश्यक है। ऐतिहासिक युग में शंंकराचार्य के परम गुरु गौडपादाचार्य का नाम उल्लेखयोग्य है। उनके द्वारा रचित 'सुभगोदय स्तुति' एवं 'श्रीविद्यारत्न सूत्र' प्रसिद्ध हैं। मध्ययुग में तांत्रिक साधना एवं साहित्य रचना में जितने विद्वानों का प्रवेश हुआ था उनमें से कुछ विशिष्ट आचार्यो का संक्षिप्त विवरण यहाँ दिया जा रहा है- लक्ष्मणदेशिक: ये शादातिलक, ताराप्रदीप आदि ग्रथों के रचयिता थे। इनके विषय में यह परिचय मिलता है कि ये उत्पल के शिष्य थे। आदि शंकराचार्य: वेदांगमार्ग के संस्थापक सुप्रसिद्ध भगवान शंकराचार्य वैदिक संप्रदाय के अनुरूप तांत्रिक संप्रदाय के भी उपदेशक थे। ऐतिहासिक दृष्टि से पंडितों ने तांत्रिक शंकर के विषय में नाना प्रकार की आलोचनाएं की हैं। कोई दोनों को अभिन्न मानते हैं और कोई नहीं मानते हैं। उसकी आलोचना यहाँ अनावश्यक है। परंपरा से प्रसिद्ध तांत्रिक शंकराचार्य के रचित ग्रंथ इस प्रकार हैं- किसी-किसी के मत में 'कालीकर्पूरस्तव' की टीका भी शंकराचार्य ने बनाई थी। पृथिवीधराचार्य अथवा 'पृथ्वीधराचार्य: यह शंकर के शिष्कोटि में थे। इन्होंने 'भुवनेश्वरी स्तोत्र' तथा 'भुवनेश्वरी रहस्य' की रचना की थी। भुवनेश्वरी स्तोत्र राजस्थान से प्रकाशित है। वेबर ने अपने कैलाग में इसका उल्लेख किया है। भुवनेश्वरी रहस्य वाराणसी में भी उपलब्ध है और उसका प्रकाशन भी हुआ है। पृथ्वीधराचार्य का भुवनेश्वरी-अर्चन-पद्धति नाम से एक तीसरा ग्रंथ भी प्रसिद्ध है। चरणस्वामी: वेदांत के इतिहास में एक प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं। तंत्र में इन्होंने 'श्रीविद्यार्थदीपिका' की रचना की है। 'श्रीविद्यारत्न-सूत्र-दीपिका' नामक इनका ग्रंथ मद्रास लाइब्रेरी में उपलब्ध है। इनका 'प्रपंच-सार-संग्रह' भी अति प्रसिद्ध ग्रंथ है। सरस्वती तीर्थ: परमहंस परिब्राजकाचार्य वेदांतिक थे। यह संन्यासी थे। इन्होंने भी 'प्रपंचसार' की विशिष्ट टीका की रचना की। राधव भट्ट: 'शादातिलक' की 'पदार्थ आदर्श' नाम्नी टीका बनाकर प्रसिद्ध हुए थे। इस टीका का रचनाकाल सं॰ 1550 है। यह ग्रंथ प्रकाशित है। राधव ने 'कालीतत्व' नाम से एक और ग्रंथ लिखा था, परंतु उसका अभी प्रकाशन नहीं हुआ। पुण्यानंद: हादी विद्या के उपासक आचार्य पुण्यानंद ने 'कामकला विलास' नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी। उसकी टीका 'चिद्वल्ली' नाम से नटनानंद ने बनाई थी। पुण्यानंद का दूसरा ग्रंथ 'तत्वविमर्शिनी' है। यह अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। अमृतानंदनाथ: अमृतानदनाथ ने 'योगिनीहृदय' के ऊपर दीपिका नाम से टीकारचना की थी। इनका दूसरा ग्रंथ 'सौभाग्य सुभगोदय' विख्यात है। यह अमृतानंद पूर्ववर्णित पुणयानंद के शिष्य थे। त्रिपुरानंद नाथ: इस नाम से एक तांत्रिक आचार्य हुए थे जो ब्रह्मानंद परमहंस के गुरु थे। त्रिपुरानंद की व्यक्तिगत रचना का पता नहीं चलता। परंतु ब्रह्मानंद तथा उनके शिष्य पूर्णानंद के ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। सुंदराचार्य या सच्चिदानंद: इस नाम से एक महापुरुष का आविर्भाव हुआ था। यह जालंधर में रहते थे। इनके शिष्य थे विद्यानंदनाथ। सुंदराचार्य अर्थात् सच्चिदानंदनाथ की 'ललितार्चन चंद्रिका' एवं 'लधुचंद्रिका पद्धति' प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। विद्यानंदनाथ का पूर्वनाम श्रीनिवास भट्ट गोस्वामी था। यह कांची (दक्षिण भारत) के निवासी थे। इनके पूर्वपुरुष समरपुंगव दीक्षित अत्यंत विख्यात महापुरुष थे। श्रीनिवास तीर्थयात्रा के निमित जालंधर गए थे और उन्होंने सच्चिदानंदनाथ से दीक्षा ग्रहण कर विद्यानंद का नाम धारण किया। गुरु के आदेश से काशी आकर रहने लगे। उन्होंने बहुत से ग्रंथों की रचना की जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं- 'शिवार्चन चंद्रिका', 'क्रमरत्नावली', 'भैरवार्चापारिजात', 'द्वितीयार्चन कल्पवल्ली', 'काली-सपर्या-क्रम-कल्पवल्ली', 'पंचमेय क्रमकल्पलता', 'सौभाग्य रत्नाकर' (36 तरंग में),'सौभग्य सुभगोदय', 'ज्ञानदीपिका' और 'चतु:शती टीका अर्थरत्नावली'। सौभाग्यरत्नाकर, ज्ञानदीपिका और अर्थरत्नावली सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्रकाशित हुई हैं। नित्यानंदनाथ: इनका पूर्वनाम नाराणय भट्ट है। उन्होंने दुर्वासा के 'देवीमहिम्न स्तोत्र' की टीका की थी। यह तन्त्रसंग्रह में प्रकाशित है। तन्त्रसंग्रह सम्पूर्णानन्दविश्वविद्यालय से प्रकाशित है। उनका 'ताराकल्पलता पद्धति' नामक ग्रंथ भी मिलता है। सर्वानंदनाथ: इनका नाम उल्लेखनीय है। यह 'सर्वोल्लासतंत्र' के रचयिता थे। इनका जन्मस्थान मेहर प्रदेश (बांग्लादेश) था। ये सर्वविद्या (दस महाविद्याओं) के एक ही समय में साक्षात् करने वाले थे। इनका जीवनचरित् इनके पुत्र के लिखे 'सर्वानंद तरंगिणी' में मिलता है। जीवन के अंतिम काल में ये काशी आकर रहने लगे थे। प्रसिद्ध है कि यह बंगाली टोला के गणेश मोहल्ला के राजगुरु मठ में रहे। यह असाधारण सिद्धिसंपन्न महात्मा थे। निजानंद प्रकाशानंद मल्लिकार्जुन योगीभद्र: इस नाम से एक महान सिद्ध पुरुष का पता चलता है। यह 'श्रीक्रमोत्तम' नामक एक चार उल्लास से पूर्ण प्रसिद्ध ग्रंथ के रचयिता थे। श्रीक्रमोत्तम श्रीविद्या की प्रासादपरा पद्धति है। ब्रह्मानंद: इनका नाम पहले आ चुका है। प्रसिद्ध है कि यह पूर्णनंद परमहंस के पालक पिता थे। शिक्ष एवं दीक्षागुरु भी थे। 'शाक्तानंद तरंगिणी' और'तारा रहस्य' इनकी कृतियाँ हैं। पूर्णानंद: 'श्रीतत्त्वचिंतामणि' प्रभृति कई ग्रंथों के रचयिता थे। श्रीतत्वचिन्तामणि का रचनाकाल 1577 ई॰ है। 'श्यामा अथवा कालिका रहस्य', 'शाक्त क्रम', 'तत्वानंद तरंगिणी', 'षटकर्मील्लास' प्रभृति इनकी रचनाएँ हैं। प्रसिद्ध 'षट्चक्र निरूपण', 'श्रीतत्वचितामणि' का षष्ठ अध्याय है। देवनाथ ठाकुर तर्कपंचानन: ये 16वीं शताब्दी के प्रसिद्ध ग्रंथकार थे। इन्होंने 'कौमुदी' नाम से सात ग्रंथों की रचना की थी। ये पहले नैयायिक थे और इन्होंने 'तत्वचिंतामणि' की टीका आलोक पर परिशिष्ट लिखा था। यह कूचविहार के राजा मल्लदेव नारायण के सभापंडित थे। इनके रचित 'सप्तकौमुदी' में 'मंत्रकौमुदी' एवं 'तंत्र कौमुदी' तंत्रशास्त्र के ग्रंथ हैं। इन्होंने 'भुवनेश्वरी कल्पलता' नामक ग्रंथ की भी रचना की थी। गोरक्ष: प्रसिद्ध विद्वान् एवं सिद्ध महापुरुष थे। 'महार्थमंजरी' नामक ग्रंथरचना से इनकी ख्याति बढ़ गई थी। इनके ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं- "महार्थमंजरी' और उसकी टीका 'परिमल', 'संविदुल्लास', 'परास्तोत्र', 'पादुकोदय', 'महार्थोदय' इत्यादि। 'संवित्स्तोत्र' के नाम से गोरक्ष के गुरु का भी एक ग्रंथ था। गोरक्ष के गुरु ने 'ऋजु विमर्शिनी' और 'क्रमवासना' नामक ग्रंथों की भी रचना की थी। सुभगानंद नाथ और प्रकाशानंद नाथ: सुभगांनंद केरलीय थे। इनका पूर्वनाम श्रीकंठेश था। यह कश्मीर में जाकर वहाँ के राजगुरु बन गए थे। तीर्थ करने के लिये इन्होंने सेतुबंध की यात्रा भी की जहाँ कुछ समय नृसिंह राज्य के निकट तंत्र का अध्ययन किया। उसके बाद कादी मत का 'षोडशनित्या' अर्थात् तंत्रराज की मनोरमा टीका की रचना इन्होंने गुरु के आदेश से की। बाईस पटल तक रचना हो चुकी थी, बाकी चौदह पटल की टीका उनके शिष्य प्रकाशानंद नाथ ने पूरी की। यह सुभगानंद काशी में गंगातट पर वेद तथा तंत्र का अध्यापन करते थे। प्रकाशानंद का पहला ग्रंथ 'विद्योपास्तिमहानिधि' था। इसका रचनाकाल 1705 ई॰ है। इनका द्वितीय ग्रंथ गुरु कृत मनोरमा टीका की पूर्ति है। उसका काल 1730 ई॰ है। प्रकाशानंद का पूर्वनाम शिवराम था। उनका गोत्र 'कौशिक' था। पिता का नाम भट्टगोपाल था। ये त्र्यंबकेश्वर महादेव के मंदिर में प्राय: जाया करते थे। इन्होंने सुभगानंद से दीक्षा लेकर प्रकाशानंद नाम ग्रहण किया था। कृष्णानंद आगमबागीश: यह बंग देश के सुप्रसिद्ध तंत्र के विद्वान् थे जिनका प्रसिद्ध ग्रंथ 'तंत्रसार' है। किसी किसी के मतानुसार ये पूर्णनंद के शिष्य थे परंतु यह सर्वथा उचित प्रतीत नहीं होता। ये पश्वाश्रयी तांत्रिक थे। कृष्णानंद का तंत्रसार आचार एवं उपासना की दृष्टि से तंत्र का श्रेष्ठ ग्रंथ है। महीधर: काशी में वेदभाष्यकार महीधर तंत्रशास्त्र के प्रख्यात पंडित हुए हैं। उनके ग्रंथ 'मन्त्रमहोदधि' और उसकी टीका अतिप्रसिद्ध हैं (रचनाकाल 1588 ई॰)। नीलकंठ: महाभारत के टीकाकार रूप से महाराष्ट्र के सिद्ध ब्रह्मण ग्रंथकार। ये तांत्रिक भी थे। इनकी बनाई 'शिवतत्वामृत' टीका प्रसिद्ध हैं। इसका रचनाकाल 1680 ई॰ है। आगमाचार्य गौड़ीय शंकर: आगमाचार्य गौड़ीय शंकर का नाम भी इस प्रसंग में उल्लेखनीय है। इनके पिता का नाम कमलाकर और पितामह का लंबोदर था। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ तारा-रहस्य-वृत्ति और शिवार्च(र्ध)न माहात्म्य (सात अध्याय में) हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा रचित और भी दो-तीन ग्रंथों का पता चलता है जिनकी प्रसिद्धि कम है। भास्कर राय: 18वीं शती में भास्कर राय एक सिद्ध पुरुष काशी में हो गए हैं जो सर्वतंत्र स्वतंत्र थे। इनकी अलौकिक शक्तियाँ थी। इनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं- सौभाग्य भास्कर' (यह ललिता सहस्र-नाम की टीका है, रचनाकाल 1729 ई0) 'सौभाग्य चंद्रोदय' (यह सौभाग्यरत्नाकर की टीका है।) 'बरिबास्य रहस्य', 'बरिबास्यप्रकाश'; 'शांभवानंद कल्पलता'(भास्कर शाम्भवानन्दकल्पलता के अणुयायी थे - ऐसा भी मत है), 'सेतुबंध टीका' (यह नित्याषोडशिकार्णव पर टीका है, रचनाकाल 1733 ई॰); 'गुप्तवती टीका' (यह दुर्गा सप्तशती पर व्याख्यान है, रचनाकाल 1740 ई॰); 'रत्नालोक' (यह परशुराम 'कल्पसूत्र' पर टीका है); 'भावनोपनिषद्' पर भाष्य प्रसिद्ध है कि 'तंत्रराज' पर भी टीका लिखी थी। इसी प्रकार 'त्रिपुर उपनिषद्' पर भी उनकी टीका थी। भास्कर राय ने विभिन्न शास्त्रों पर अनेक ग्रंथ लिखे थे। प्रेमनिधि पंथ: इनका निवास कूर्माचल (कूमायूँ) था। यह घर छोड़कर काशी में बस गए थे। ये कार्तवीर्य के उपासक थे। थोड़ी अवस्था में उनकी स्त्री का देहांत हुआ। काशी आकर उन्होंने बराबर विद्यासाधना की। उनकी 'शिवतांडव तंत्र' की टीका काशी में समाप्त हुई। इस ग्रंथ से उन्हें बहुत अर्थलाभ हुआ। उन्होने तीन विवाह किए थे। तीसरी पत्नी प्राणमंजरी थीं। प्रसिद्व है कि प्राणमंजरी ने 'सुदर्शना' नाम से अपने पुत्र सुदर्शन के देहांत के स्मरणरूप से तंत्रग्रंथ लिखा था। यह तंत्रराज की टीका है। प्रेमनिधि ने 'शिवतांडव' टीका ' मल्लादर्श', 'पृथ्वीचंद्रोदय' और 'शारदातिलक' की टीकाएँ लिखी थीं। उनके नाम से 'भक्तितरंगिणी', 'दीक्षाप्रकाश' (सटीक) प्रसिद्ध है। कार्तवीर्य उपासना के विषय में उन्होंने 'दीपप्रकाश नामक' ग्रथ लिखा था। उनके 'पृथ्वीचंद्रोदय' का रचनाकाल 1736 ई॰ है। कार्तवीर्य पर 'प्रयोग रत्नाकर' नामक प्रसिद्ध ग्रंथ है। 'श्रीविद्या-नित्य-कर्मपद्धति-कमला' तंत्रराज से संबंध रखता है। वस्तुत: यह ग्रंथ भी प्राणमंजरी रचित है। उमानंद नाथ: यह भास्कर राय के शिष्य थे और चोलदेश के महाराष्ट्र राजा के सभापंडित थे। इनके दो ग्रंथ प्रसिद्ध हैं- 1.

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तंत्राख्यायिका

तंत्राख्यायिका एक संस्कृत आख्यान है। इसका मूल स्थान कश्मीर है। पंचतंत्र का सबसे प्राचीन रूप "तंत्राख्यायिका" में सुरक्षित है। तंत्राख्यायिका" या "तंत्राख्यान" में कथाओं की रूपरेखा बहुत ही परिमित है। नीतिमय पद्यों का संकलन बहुत ही संक्षिप्त तथा औचित्यपूर्ण है। .

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त्रिलोकी नाथ मदन

त्रिलोकी नाथ मदन (1933) कश्मीर के विख्यात विद्वान हैं। वह समाज शास्त्री मानवविज्ञानी हैं। इनका Ph.D. आस्टेलिया से है। यह कई वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। इनका सबसे विख्यात ग्रन्थ Family and Kinship among the Pandits of Rural Kashmir (1966, 1989) है। श्रेणी:जीवित लोग श्रेणी:1933 में जन्मे लोग श्रेणी:कश्मीर के लोग श्रेणी:श्रीनगर के लोग श्रेणी:लेखक.

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तैमूरलंग

तैमूर लंग (अर्थात तैमूर लंगड़ा) (जिसे 'तिमूर' (8 अप्रैल 1336 – 18 फ़रवरी 1405) चौदहवी शताब्दी का एक शासक था जिसने महान तैमूरी राजवंश की स्थापना की थी। उसका राज्य पश्चिम एशिया से लेकर मध्य एशिया होते हुए भारत तक फैला था। उसकी गणना संसार के महान्‌ और निष्ठुर विजेताओं में की जाती है। वह बरलस तुर्क खानदान में पैदा हुआ था। उसका पिता तुरगाई बरलस तुर्कों का नेता था। भारत के मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक बाबर तिमूर का ही वंशज था। .

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दशहरा

दशहरा (विजयादशमी या आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा .

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दार्द लोग

दार्द या दारद उन समुदायों को कहा जाता है जो दार्दी भाषाएँ बोलते हैं। यह हिन्द-आर्य लोगों की एक उपशाखा है। दार्द लोग मुख्य रूप से उत्तर भारत के कश्मीर व लद्दाख़ क्षेत्र, पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र, पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त और पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के कुछ भागों में बसते हैं। अलग-अलग स्थनों के दार्द लोगों को 'ब्रोकपा', 'द्रोकपा' व 'शीन' जैसे नामों से भी जाना जाता है। .

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दार्दिस्तान

दार्दिस्तान (पारसी-अरबी: داردستان) जी डब्ल्यू लिटनर द्वारा दिया गया एक भौगोलिक नाम है जो भारतीय कश्मीर, उत्तरी पाकिस्तान तथा उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान को सूचित करता है। इस भूभाग के निवासी दार्दी भाषाएँ बोलते हैं और 'दार्द' कहलाते हैं। इसके अंतर्गत चित्राल, यासिन, पेंन्याल, गिलगिट घाटी, हुजा एवं नागार बुंजी से वातेरा तक की सिंधु घाटी अस्तोर घाटी तथा कोहिस्तान मालाजाई क्षेत्र थे। इसका उल्लेख प्लिनी एवं टालिमी नामक इतिहासवेत्ताओं ने भी किया है। दार्द लोग 'आर्य जाति' के माने गए हैं। वे चौदहवीं शती में मुसलमान बन गए थे। श्रेणी:कश्मीर श्रेणी:भारत के क्षेत्र.

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दुर्लभवर्धन

दुर्लभ वर्धन सातवीं शताब्दी ई. में कश्मीर के कर्कोटक वंश का प्रवर्तक था।.

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दुर्गा पूजा

दूर्गा पूजा (দুর্গাপূজা अथवा দুৰ্গা পূজা अथवा ଦୁର୍ଗା ପୂଜା, सुनें:, "माँ दूर्गा की पूजा"), जिसे दुर्गोत्सव (দুর্গোৎসব अथवा ଦୁର୍ଗୋତ୍ସବ, सुनें:, "दुर्गा का उत्सव" के नाम से भी जाना जाता है) अथवा शरदोत्सव दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला एक वार्षिक हिन्दू पर्व है जिसमें हिन्दू देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इसमें छः दिनों को महालय, षष्ठी, महा सप्तमी, महा अष्टमी, महा नवमी और विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा को मनाये जाने की तिथियाँ पारम्परिक हिन्दू पंचांग के अनुसार आता है तथा इस पर्व से सम्बंधित पखवाड़े को देवी पक्ष, देवी पखवाड़ा के नाम से जाना जाता है। दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है। अतः दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर भलाई की विजय के रूप में भी माना जाता है। दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाता है जहाँ इस समय पांच-दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। बंगाली हिन्दू और आसामी हिन्दुओं का बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है। पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दुर्गा पूजा का उत्सव दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का उत्सव 91% हिन्दू आबादी वाले नेपाल और 8% हिन्दू आबादी वाले बांग्लादेश में भी बड़े त्यौंहार के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राज्य अमेरीका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैण्ड, सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में आयोजित करवाते हैं। वर्ष 2006 में ब्रिटिश संग्रहालय में विश्वाल दुर्गापूजा का उत्सव आयोजित किया गया। दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे-धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। .

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दुख़्तरान-ए-मिल्लत

दुख़्तरान-ए-मिल्लत (अर्थ: राष्ट्र की बेटियाँ) कश्मीर में इस्लामी क़ानून स्थापित करने के लिए और भारत से एक अलग राष्ट्र स्थापित करने के लिए, कश्मीरी महिलाओं का एक जिहादी संगठन है। भारत द्वारा यह संगठन को आतंकवादी घोषित किया गया है। समूह की स्थापना 1987 में की गई थी, और आसिया अंद्राबी इसकी अगवाई कर रही है, जो अपने आप को एक "इस्लामी नारीवादी" मानती है। .

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द्रास

द्रास भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के करगिल ज़िले में स्थित एक बस्ती है। ३,२३० मीटर (१०,९९० फ़ुट) पर बसा हुआ यह क़स्बा १६,००० से २१,००० फ़ुट के पहाड़ों से घिरा हुआ है। द्रास वादी ज़ोजिला दर्रे के चरणों में है और कश्मीर से लद्दाख़ जाने के लिये यहाँ से गुज़रना पड़ता है, जिस कारणवश इसे 'लद्दाख़ का द्वार' भी कहा जाता है। .

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दोस्त मुहम्मद ख़ान

दोस्त मोहम्मद खान (पश्तो: दोस्त मोहम्मद खान, 23 दिसंबर 1793 - 1863) 9 जून प्रथम आंग्ल-अफगान दौरान बारक़ज़ई वंश का संस्थापक और अफगानिस्तान के प्रमुख शासकों में से एक था।826-1839 अफगानिस्तान के अमीर बन गया और दुर्रानी वंश के पतन के साथ, वह 1845 से 1863 तक अफ़ग़ानिस्तान पर शासन किया। वह सरदार पाइंदा खान (बरक़ज़ई जनजाति के प्रमुख) का 11 वां बेटा था जो जमान शाह दुर्रानी से 1799 में मारा गया था। दोस्त मोहम्मद के दादा हाजी जमाल खान था। अफ़ग़ानों और अंग्रेजों की पहली लड़ाई के बाद उसे कलकत्ता निर्वासित कर दिया गया था लेकिन शाह शुजा की हत्या के बाद, 1842 में ब्रिटिश उसे अफ़ग़ानिस्तान का अमीर बना गए। उसने पंजाब के रणजीत सिंह से भी लोहा लिया। .

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नथुराम विनायक गोडसे

नथुराम विनायक गोडसे, या नथुराम गोडसे(१९ मई १९१० - १५ नवंबर १९४९) एक कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी समर्थक थे, जिसने ३० जनवरी १९४८ को नई दिल्ली में गोली मारकर मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या कर दी थी। गोडसे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुणे से पूर्व सदस्य थे। गोडसे का मानना था कि भारत विभाजन के समय गांधी ने भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों के पक्ष का समर्थन किया था। जबकि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आंखें मूंद ली थी। गोडसे ने नारायण आप्टे और ६ लोगों के साथ मिल कर इस हत्याकाण्ड की योजना बनाई थी। एक वर्ष से अधिक चले मुकद्दमे के बाद ८ नवम्बर १९४९ को उन्हें मृत्युदंड प्रदान किया गया। हालाँकि गांधी के पुत्र, मणिलाल गांधी और रामदास गांधी द्वारा विनिमय की दलीलें पेश की गई थीं, परंतु उन दलीलों को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, महाराज्यपाल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एवं उपप्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल, तीनों द्वारा ठुकरा दिया गया था। १५ नवम्बर १९४९ को गोडसे को अम्बाला जेल में फाँसी दे दी गई। .

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नन्द ऋषि

नन्द ऋषि (1377-1440) कश्मीर के सूफ़ी संत कवि थे। उनकी कविता का अनुवाद जयश्री ओडिन ने किया है। .

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नमक कोह

मियाँवाली ज़िले में नमक कोह का नज़ारा नमक कोह के दुसरे सबसे ऊँचे पहाड़, टिल्ला जोगियाँ (यानि 'योगियों का टीला') पर हिन्दू मंदिर नमक कोह या नमक सार या नमक पर्वत (सिलसिला कोह-ए-नमक; Salt Range, सॉल्ट रेन्ज) पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के उत्तरी भाग में स्थित एक पर्वत शृंखला है। यह पहाड़ झेलम नदी से सिन्धु नदी तक, यानि सिंध-सागर दोआब कहलाने वाले क्षेत्र में, फैले हुए हैं। नमक कोह के पहाड़ों में सेंधे नमक के बहुत से भण्डार क़ैद हैं, जिनसे इस शृंखला का नाम पड़ा है। नमक कोह का सबसे ऊँचा पहाड़ १,५२२ मीटर ऊँचा सकेसर पर्वत (Sakesar) और दूसरा सबसे ऊँचा पहाड़ ९७५ मीटर ऊँचा टिल्ला जोगियाँ (Tilla Jogian) है। यहाँ खबिक्की झील (Khabikki Lake) और ऊछाली झील (Uchhalli Lake) जैसे सरोवर और सून सकेसर जैसी सुन्दर वादियाँ भी हैं जो हर साल पर्यटकों को सैर करने के लिए खेंचती हैं। इन पहाड़ियों में बहुत सी नमक की खाने भी हैं जिनसे नमक खोदकर निकाला जाता है। इन खानों में खेवड़ा नमक खान मशहूर है लेकिन वरचा, कालाबाग़ और मायो की खाने भी जानीमानी हैं। यहाँ का नमक हज़ारों सालों से पूरे उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में भेजा जाता रहा है और इसका ज़िक्र राजा हर्षवर्धन के काल में आए चीनी धर्मयात्री ह्वेन त्सांग ने भी अपनी लिखाईयों में किया था।, Tapan Raychaudhuri, Irfan Habib, Dharma Kumar, CUP Archive, 1982, ISBN 978-0-521-22692-9,...

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नरेन्द्र मोदी

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी (નરેંદ્ર દામોદરદાસ મોદી Narendra Damodardas Modi; जन्म: 17 सितम्बर 1950) भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री हैं। भारत के राष्‍ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें 26 मई 2014 को भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ दिलायी। वे स्वतन्त्र भारत के 15वें प्रधानमन्त्री हैं तथा इस पद पर आसीन होने वाले स्वतंत्र भारत में जन्मे प्रथम व्यक्ति हैं। वडनगर के एक गुजराती परिवार में पैदा हुए, मोदी ने अपने बचपन में चाय बेचने में अपने पिता की मदद की, और बाद में अपना खुद का स्टाल चलाया। आठ साल की उम्र में वे आरएसएस से  जुड़े, जिसके साथ एक लंबे समय तक सम्बंधित रहे । स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने घर छोड़ दिया। मोदी ने दो साल तक भारत भर में यात्रा की, और कई धार्मिक केंद्रों का दौरा किया। गुजरात लौटने के बाद और 1969 या 1970 में अहमदाबाद चले गए। 1971 में वह आरएसएस के लिए पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। 1975  में देश भर में आपातकाल की स्थिति के दौरान उन्हें कुछ समय के लिए छिपना पड़ा। 1985 में वे बीजेपी से जुड़े और 2001 तक पार्टी पदानुक्रम के भीतर कई पदों पर कार्य किया, जहाँ से वे धीरे धीरे वे सचिव के पद पर पहुंचे।   गुजरात भूकंप २००१, (भुज में भूकंप) के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के असफल स्वास्थ्य और ख़राब सार्वजनिक छवि के कारण नरेंद्र मोदी को 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। मोदी जल्द ही विधायी विधानसभा के लिए चुने गए। 2002 के गुजरात दंगों में उनके प्रशासन को कठोर माना गया है, की आलोचना भी हुई।  हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) को अभियोजन पक्ष की कार्यवाही शुरू करने के लिए कोई है। मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी नीतियों को आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए । उनके नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और 282 सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीत दर्ज़ की। इससे पूर्व वे गुजरात राज्य के 14वें मुख्यमन्त्री रहे। उन्हें उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार 4 बार (2001 से 2014 तक) मुख्यमन्त्री चुना। गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं।। माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी वे सबसे ज्यादा फॉलोअर वाले भारतीय नेता हैं। उन्हें 'नमो' नाम से भी जाना जाता है। टाइम पत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द ईयर 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है। अटल बिहारी वाजपेयी की तरह नरेन्द्र मोदी एक राजनेता और कवि हैं। वे गुजराती भाषा के अलावा हिन्दी में भी देशप्रेम से ओतप्रोत कविताएँ लिखते हैं। .

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नालापत बालमणि अम्मा

नालापत बालमणि अम्मा (मलयालम: എൻ. ബാലാമണിയമ്മ; 19 जुलाई 1909 – 29 सितम्बर 2004) भारत से मलयालम भाषा की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है। उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है। अम्मा के साहित्य और जीवन पर गांधी जी के विचारों और आदर्शों का स्पष्ट प्रभाव रहा। उनकी प्रमुख कृतियों में अम्मा, मुथास्सी, मज़्हुवींट कथाआदि हैं। उन्होंने मलयालम कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल संस्कृत में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत के कोमल शब्दों को चुनकर मलयालम का जामा पहनाया। उनकी कविताओं का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। वे प्रतिभावान कवयित्री के साथ-साथ बाल कथा लेखिका और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। अपने पति वी॰एम॰ नायर के साथ मिलकर उन्होने अपनी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया। अम्मा मलयालम भाषा के प्रखर लेखक एन॰ नारायण मेनन की भांजी थी। उनसे प्राप्त शिक्षा-दीक्षा और उनकी लिखी पुस्तकों का अम्मा पर गहरा प्रभाव पड़ा था। अपने मामा से प्राप्त प्रेरणा ने उन्हें एक कुशल कवयित्री बनने में मदद की। नालापत हाउस की आलमारियों से प्राप्त पुस्तक चयन के क्रम में उन्हें मलयालम भाषा के महान कवि वी॰ नारायण मेनन की पुस्तकों से परिचित होने का अवसर मिला। उनकी शैली और सृजनधर्मिता से वे इस तरह प्रभावित हुई कि देखते ही देखते वे अम्मा के प्रिय कवि बन गए। अँग्रेजी भाषा की भारतीय लेखिका कमला दास उनकी सुपुत्री थीं, जिनके लेखन पर उनका खासा असर पड़ा था। अम्मा को मलयालम साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय मलयालम महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और 'एज्हुथाचन पुरस्कार' सहित कई उल्लेखनीय पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1987 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। वर्ष 2009, उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया। .

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नागर

नागर या नागर ब्रहामण भारतीय मूल के धर्मो में वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मणो की एक ज्ञाति है। नागरो को ब्राह्मणो में सब से श्रेष्ठ माना जाता है। भारत में गुजरात, काश्मीर, मध्यप्रदेश इत्यादि राज्यो में नागर समुदाय की बस्ती ज्यादा है। नागर समुदाय के लोग कलम, कड़छी और बरछी में निपुण होते है एसा माना जाता है। नागरो के बारे में वेद व्यास द्वारा लिखित स्कन्दपुराण के नागरखंड में प्राचीन उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार भगवान शिव ने उमा से विवाह के लिए नागरों को उत्पन्न किया था तथा इसके पश्चात प्रसन्न होकर उत्सव मनाने के लिए इन्हें हाटकेश्वर नाम का स्थान वरदान के रूप में दिया था। नागर ब्राह्मण के मूल स्थान के आधार पर ही उन्हें जाना जाने लगा जैसे वडनगर के वडनगरा ब्राह्मण विसनगर के विसनगरा, प्रशनिपुर के प्रशनोरा (राजस्थान) जो अब भावनगर तथा गुजरात के अन्य प्रान्तों में बस गए, क्रशनोर के क्रशनोरा तथा शतपद के शठोदरा आदि छ प्रकार के नामो से नागर ब्राह्मणो को जाना जाता है। एक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण पुत्र क्रथ एक बार घूमते- घूमते नागलोक के नागतीर्थ में पहुँच गया। वहां उसका मुकाबला नाग लोक के राजकुमार रुदाल से हो गया, इसमें नाग कुमार मारा गया। इससे नाग राज को क्रोध आ गया और उसने पुत्र की हत्या करने वाले कुल का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा कर ली। उसने गाँव पर चढ़ाई कर दी जो आज वडनगर के नाम से जाना जाता है, वहीँ ब्राह्मण कुमार क्रथ अपने परिवार तथा अन्य कुटुंब के साथ रहता था। इसमें बहुत सारे ब्राह्मण परिवार मारे गए और बचे हुए लोगों ने भाग कर एक संत मुनि त्रिजट के पास शरण ली।त्रिजट ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा। बाह्मणों ने पूरे मन और भक्ति भाव से भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव प्रसन्न हो गए पर चूंकि नाग भी शिव के भक्त थे अतः शिव ने नागों का अहित करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की परन्तु ब्राह्मणों को सर्पों के विष से बचने की शक्ति प्रदान कर दी। ब्राह्मण अपने गाँव को लौट गए और तब से इन्हें ना-गर (जिस पर अगर अर्थात विष का प्रभाव ना पड़ता हो) कहा जाने लगा। इसीलिए नागर समुदाय सारे ब्राह्मणों में सबसे अधिक श्रद्धेय तथा पवित्र भी माने जाते हैं क्योकि वे अपने ह्रदय में कोई बुराई (विष) उत्पन्न नहीं होने देते हैं। हाटकेश्वर मन्दिर -.......गुजरात के पुरा ग्रंथो में उल्लेख मिलता है कि वडनगर (चमत्कारपूर) की भूमि राजा द्वारा आभार -चिह्न के रूप में नागरो को भेंट किया था। राजा को एक हिरन को मारकर स्वयम व् अपने पुत्रो को खिलने कर्ण गल्य्त्व मुनि द्वारा एक अभिशाप के कारण जो श्वेत कुश्त हो गया राजा ने नागर सभा से करुना की याचना की, कृनाव्र्ट धरी नागर ने राजा के कष्टों का जड़ी बूटियों और प्राकृतिक दवाओं...के अपने ज्ञान की मदद से इलाज किया गया। राजा चमत्कारपूर (देश जहाँ वडनगर स्थित है) देश नागरो को दान में देना चाह, परन्तु अपनी करुना का मूल्य न लगाने के कारण राजा का इनाम स्वीकार नहीं किया ! नागर ब्राह्मण के 72 परिवार उच्च सिद्धांतों, के थे जिन्होंने दान स्वीकार नहीं किया राजा चमत्कार की रानी से अनुनय के बाद छह परिवारों ने उपहार स्वीकार कर लिया, परन्तु 66 परिवार जिन्होंने रजा का उपहार स्वीकार नहीं किया अपना देश त्याग चले गए और उनके वंशज साठ गाडियों में अपना कुनबा लेकर चले थे इसीसे सठोत्रा गोत्र के कहलाये ! आज भी वे अपने त्याग ओर आदर्शो के कारण श्रद्धेय हैं। ! एक अन्य किवदन्...ती जो की नागर समाज के तीर्थ पुरोहितो की पोथी के अनुसार यह है कि गुजरात के तत्कालीन नवाब नासिर-उद-दीन (महमूद शाह) ई.स. 1537- 1554 के लगभग धर्म परिवर्तन, मुस्लिम वंश में कन्या देना एवं जागीर और सरकारी कामकाज में गैर मुस्लिमों की बेदखली से क्षुब्ध हो गुजरात छोड़ कर मालवा और राजस्थान की और पलायन किया, साठ बैलगाड़ी में अपना सब कुछ वही छोड़ रात ही रात एकसाथ पलायन करने से साठोत्रा कहलाये ! कहते है यात्रा में एक दिन जिस स्थान से मालवा और राजस्थान के दोराहे पर कन्थाल और कालीसिंध के तट पर जिस बैलगाड़ी में अपने साथ अपने इष्ट व् कुलदेव भगवान हाटकेश्वर का चलायमान शिवलिंग स्वरूप (जिसे वडनगर के प्राचीन व् स्वयम्भू हाटकेश्वर मंदिर में उत्सव एवं शोभायात्राओ में नगर में निकला जाता था) को रात्रि विश्राम के बाद प्रात: सभी चलने को उद्यत हुए तो जिस बैलगाड़ी में भगवान हाटकेश्वर मुर्तिस्वरूप विराजमान थे बहुत कोशिश के बाद भी आगे नहीं चला पाए, प्रभु की इच्छा जान सभी नागर जन वही अपने इष्ट देव की पूजन करने लगे! संयोगवश उसी रात महाराणा उदयसिंग को स्वप्न में भगवान हाटकेश्वर के दर्शन हुए और आज्ञा दी की तुम्हारे राज्य की सीमा पर मेरे प्रिय जन भूखे है जाकर उन ब्रहामणों को अन्न आदि दो, महाराणा ने तुरंत अपने स्थानीय प्रतिनिधि को सूचित किया, जब महाराणा उदयसिंग के प्रतिनिधी ने अपने दूतो को आज्ञा दी ओर उन्होंने नागर जनों को भोजन अन्न व् गाये देना चाहा तो उन सभी ने कहा जब तक हमारे इष्ट देव को स्थापित नहीं कर देते तब तक अन्न नहीं लेंगे, जब महाराणा उदयसिंग को पता लगा तो उन्होंने सभी नागर को राजभटट की उपाधी दी!तथा राजपुरोहित को भेज कर सोयत कलां में शिवलिंग स्थापित करवाकर गो, भूमि और भोजन आदि की व्यवस्था की ! प्रति वर्ष हाटकेश्वर जयंती पर इसी स्थान पर सभी एकत्र होकर परस्पर मिलेंगे ऐसा विमर्श कर तथा यहाँ मन्दिर स्थान पर एक स्वजन को पूजन में नियुक्त कर, यही से सभी नागर जन अपनी अपनी आजीविका की तलाश में आगे बढ़े, आज उन्ही पुण्य श्लोक पूर्वजो और अपने इष्ट व् कुलदेव भगवान हाटकेश्वर की कृपा से आज हम सब पूर्णत:कुशल मंगल है! भगवान् हाटकेश्वर सदा अपनी करूणा कृपा हम सब पर बनाये रखें! श्रेणी:ब्राह्मण.

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नागसेन

नागसेन सर्वस्तिवादी बौद्ध भिक्षु थे जिनका जीवनकाल १५० ई॰पूर्व है। वे कश्मीर के निवासी थे। उनके द्वारा रचित पालि ग्रन्थ मिलिन्दपन्हो में भारतीय-यूनानी शासक मिलिन्द (यूनानी: Menander I) द्वारा बौद्ध धर्म के सम्बन्ध में उनसे पूछे गये प्रश्नों का वर्णन है। इस ग्रन्थ का संस्कृत रूप नागसेनभिक्षुसूत्र है। श्रेणी:बौद्ध भिक्षु.

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निताशा कौल

निताशा कौल (जन्म: 1976) एक प्रसिद्ध भारतीय अध्यापिका, कवयित्री, लेखिका, अर्थशास्त्री और उपन्यासकार हैं। वे आम तौर पर उनके कश्मीर के बारे में लेख और विचारों के लिये जानी जाती हैं। .

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निर्मला देशपांडे

निर्मला देशपांडे (१९ अक्टूबर १९२९ - १ मई २००८) गांधीवादी विचारधारा से जुड़ी हुईं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने अपना जीवन साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं, आदिवासियों और अवसर से वंचित लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया। उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। निर्मला का जन्म नागपुर में विमला और पुरुषोत्तम यशवंत देशपांडे के घर १९ अक्टूबर १९२९ को हुआ था। इनके पिता को मराठी साहित्य (अनामिकाची चिंतनिका) में उत्कृष्ट काम के लिए 1962 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। .

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निशात

निशात या नशात हिन्दी में अरबी से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है "जोश, उर्जा, भभक, रौनक़"। इसे अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखते हैं। यह एक बहुअर्थी शब्द है।.

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नगीन

नगीन कश्मीर में एक रमणीय सरोवर है। श्रेणी:कश्मीर.

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नेपाली भाषाएँ एवं साहित्य

नेपाल में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, जैसे किराँती, गुरुंग, तामंग, मगर, नेवारी, गोरखाली आदि। काठमांडो उपत्यका में सदा से बसी हुई नेवार जाति, जो प्रागैतिहासिक गंधर्वों और प्राचीन युग के लिच्छवियों की आधुनिक प्रतिनिधि मानी जा सकती है, अपनी भाषा को नेपाल भाषा कहती रही है जिसे बोलनेबालों की संख्या उपत्यका में लगभग 65 प्रतिशत है। नेपाली, तथा अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों के ही समान नेवारी भाषा के दैनिक पत्र का भी प्रकाशन होता है, तथापि आज नेपाल की सर्वमान्य राष्ट्रभाषा नेपाली ही है जिसे पहले परवतिया "गोरखाली" या खस-कुरा (खस (संस्कृत: कश्यप; कुराउ, संस्कृत: काकली) भी कहते थे। .

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नेहरू–गांधी परिवार

नेहरू परिवार का सन् 1927 का चित्र खड़े हुए (बायें से दायें) जवाहरलाल नेहरू, विजयलक्ष्मी पण्डित, कृष्णा हठीसिंह, इंदिरा गांधी और रंजीत पण्डित; बैठे हुए: स्वरूप रानी, मोतीलाल नेहरू और कमला नेहरू नेहरू–गांधी परिवार भारत का एक प्रमुख राजनीतिक परिवार है, जिसका देश की स्वतन्त्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर करीब-करीब वर्चस्व रहा है। नेहरू परिवार के साथ गान्धी नाम फिरोज गान्धी से लिया गया है, जो इन्दिरा गान्धी के पति थे। गान्धी नेहरू परिवार में गान्धी शब्द महात्मा गान्धी से जुड़ा हुआ नहीं है। इस परिवार के तीन सदस्य - पण्डित जवाहर लाल नेहरू, इंन्दिरा गान्धी और राजीव गान्धी देश के प्रधानमन्त्री रह चुके थे, जिनमें से दो - इन्दिरा गान्धी और राजीव गान्धी की हत्या कर दी गयी। नेहरू–गांधी परिवार के चौथे सदस्य राजीव गान्धी के पुत्र राहुल गान्धी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। राहुल गान्धी ने 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीता। राजीव गान्धी के छोटे भाई संजय गांधी की विधवा पत्नी मेनका गान्धी व उनके पुत्र वरुण गांधी को परिवार की सम्पत्ति में कोई हिस्सा न मिलने के कारण वे माँ-बेटे भारतीय जनता पार्टी में चले गये जो देश का कांग्रेस के बाद एक प्रमुख राजनीतिक दल है। .

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नीति

उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला को नीति (Policy) कहते हैं। नीति, सोचसमझकर बनाये गये सिद्धान्तों की प्रणाली है जो उचित निर्णय लेने और सम्यक परिणाम पाने में मदद करती है। नीति में अभिप्राय का स्पष्ट उल्लेख होता है। नीति को एक प्रक्रिया (procedure) या नयाचार (नय+आचार / protocol) की तरह लागू किया जाता है। .

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नीलमत पुराण

नीलमत पुराण एक प्राचीन ग्रन्थ (६ठी से ८वीं शताब्दी का) है जिसमें कश्मीर के इतिहास, भूगोल, धर्म एवं लोकगाथाओं के बारे में बहुत सारी जानकारी है। .

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पञ्चतन्त्र

'''पंचतन्त्र''' का विश्व में प्रसार संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। यद्यपि यह पुस्तक अपने मूल रूप में नहीं रह गयी है, फिर भी उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस- पास निर्धारित की गई है। इस ग्रंथ के रचयिता पं॰ विष्णु शर्मा है। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि जब इस ग्रंथ की रचना पूरी हुई, तब उनकी उम्र लगभग ८० वर्ष थी। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है.

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पण्डित

एक कर्मकाण्डी पण्डित (ब्राह्मण) का चित्र पण्डित (पंडित), या पण्डा (पंडा), अंग्रेजी में Pandit का अर्थ है एक विद्वान, एक अध्यापक, विशेषकर जो संस्कृत और हिंदू विधि, धर्म, संगीत या दर्शनशास्त्र में दक्ष हो। अपने मूल अर्थ में 'पण्डित' शब्द का तात्पर्य हमेशा उस हिन्दू ब्राह्मण से लिया जाता है जिसने वेदों का कोई एक मुख्य भाग उसके उच्चारण और गायन के लय व ताल सहित कण्ठस्थ कर लिया हो। .

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पनुन कश्मीर

पनुन कश्मीर कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं का संहठन है। इसकी स्थापना सन् १९९० के दिसम्बर माह में की गयी थी। इस संगठन की मांग है कि काश्मीर के हिन्दुओं के लिये कश्मीर घाटी से एक अलग राज्य का निर्माण किया जाय। ध्यातव्य है कि सन १९९० में कश्मीर घाटी से लगभग सम्पूर्ण हिन्दुओं को पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के चलते घाटी से विस्थापित होना पड़ा था। .

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पनीर

पनीर पनीर (Indian cottage cheese) एक दुग्ध-उत्पाद है। यह चीज़ (cheese) का एक प्रकार है जो भारतीय उपमहाद्वीप में खूब उपयोग किया जाता है। इसी तरह छेना भी एक विशेष प्रकार का भारतीय चीज़ है जो पनीर से मिलता-जुलता है और रसगुल्ला बनाने में प्रयुक्त होता है। भारत में पनीर का प्रयोग सीमित मात्रा में ही होता है। कश्मीर आदि जैसे ठंढे प्रदेशों में अपेक्षाकृत अधिक पनीर खाया जाता है। .

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परमवीर चक्र

परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च शौर्य सैन्य अलंकरण है जो दुश्मनों की उपस्थिति में उच्च कोटि की शूरवीरता एवं त्याग के लिए प्रदान किया जाता है। ज्यादातर स्थितियों में यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया है। इस पुरस्कार की स्थापना 26 जनवरी 1950 को की गयी थी जब भारत गणराज्य घोषित हुआ था। भारतीय सेना के किसी भी अंग के अधिकारी या कर्मचारी इस पुरस्कार के पात्र होते हैं एवं इसे देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के बाद सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार समझा जाता है। इससे पहले जब भारतीय सेना ब्रिटिश सेना के तहत कार्य करती थी तो सेना का सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रास हुआ करता था। लेफ्टीनेंट या उससे कमतर पदों के सैन्य कर्मचारी को यह पुरस्कार मिलने पर उन्हें (या उनके आश्रितों को) नकद राशि या पेंशन देने का भी प्रावधान है। हालांकि पेंशन की न्यून राशि जो सैन्य विधवाओं को उनके पुनर्विवाह या मरने से पहले तक दी जाती है अभी तक विवादास्पद रही है। मार्च 1999 में यह राशि बढ़ाकर 1500 रुपये प्रतिमाह कर दी गयी थी। जबकि कई प्रांतीय सरकारों ने परमवीर चक्र से सम्मानित सैन्य अधिकारी के आश्रितों को इससे कहीं अधिक राशि की पेंशन मुहैय्या करवाती है। परमवीर चक्र हासिल करने वाले शूरवीरों में सूबेदार मेजर बन्ना सिंह ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो कारगिल युद्ध तक जीवित थे। सूबेदार सिंह जम्मू कश्मीर लाइट इनफेन्ट्री की आठवीं रेजीमेंट में कार्यरत थे। .

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परवेज़ रसूल

परवेज़ ग़ुलाम रसूल ज़रगर (जन्म: २३ फ़रवरी १९८९) एक भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं। वे घरेलू क्रिकेट में जम्मू और कश्मीर के लिए एक हरफ़नमौला के तौर पर खेलते हैं। रसूल दाहिने हाथ से ऑफ ब्रेक गेंदबाजी और दाहिने हाथ से ही बल्लेबाजी करते हैं। २0१४ में बांग्लादेश के खिलाफ खेलने के साथ ही वे भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय मैच खेलने वाले जम्मू कश्मीर के पहले क्रिकेटर बने। .

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पहाड़ी चित्रकला शैली

पहाड़ी शैली में नल-दमयन्ती कथा का चित्रण पहाड़ी चित्रकला एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली हैं। .

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पहाड़ी भाषाएँ

हिमालय पर्वतश्रृंखलाओं के दक्षिणवर्ती भूभाग में कश्मीर के पूर्व से लेकर नेपाल तक पहाड़ी भाषाएँ बोली जाती हैं। ग्रियर्सन ने आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का वर्गीकरण करते समय पहाड़ी भाषाओं का एक स्वतंत्र समुदाय माना है। चैटर्जी ने इन्हें पैशाची, दरद अथवा खस प्राकृत पर आधारित मानकर मध्यका में इनपर राजस्थान की प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं का प्रभाव घोषित किया है। एक नवीन मत के अनुसार कम से कम मध्य पहाड़ी भाषाओं का उद्गम शौरसेनी प्राकृत है, जो राजस्थानी का मूल भी है। पहाड़ी भाषाओं के शब्दसमूह, ध्वनिसमूह, व्याकरण आदि पर अनेक जातीय स्तरों की छाप पड़ी है। यक्ष, किन्नर, किरात, नाग, खस, शक, आर्य आदि विभिन्न जातियों की भाषागत विशेषताएँ प्रयत्न करने पर खोजी जा सकती हैं जिनमें अब यहाँ आर्य-आर्येतर तत्व परस्पर घुल मिल गए हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से ऐसा विदित होता है कि प्राचीन काल में इनका कुछ पृथक् स्वरूप अधिकांश मौखिक था। मध्यकाल में यह भूभाग राजस्थानी भाषा भाषियों के अधिक संपर्क में आया और आधुनिक काल में आवागमन की सुविधा के कारण हिंदी भाषाई तत्व यहाँ प्रवेश करते जा रहे हैं। पहाड़ी भाषाओं का व्यवहार एक प्रकार से घरेलू बोलचाल, पत्रव्यवहार आदि तक ही सीमित हो चला है। पहाड़ी भाषाओं में दरद भाषाओं की कुछ ध्वन्यात्मक विशेषताएँ मिलती हैं जैसे घोष महाप्राण के स्थान पर अघोष अल्पप्राण ध्वनि हो जाना। पश्चिमी तथा मध्य पहाड़ी प्रदेश का नाम प्राचीन काल में संपादलक्ष था। यहाँ मध्यकाल में गुर्जरों एवं अन्य राजपूत लोगों का आवागमन होता रहा जिसका मुख्य कारण मुसलमानी आक्रमण था। अत: स्थानीय भाषाप्रयोगों में जो अधिकांश "न" के स्थान पर "ण" तथा अकारांत शब्दों की ओकारांत प्रवृत्ति लक्षित होती है, वह राजस्थानी प्रभाव का द्योतक है। पूर्वी हिंदी को भी एकाधिक प्रवृत्तियाँ मध्य पहाड़ी भाषाओं में विद्यमान हैं क्योंकि यहाँ का कत्यूर राजवंश सूर्यवंशी अयोध्या नरेशों से संबंध रखता था। इस आधार पर पहाड़ी भाषाओं का संबंध अर्ध-मागधी-क्षेत्र के साथ भी स्पष्ट हो जाता है। इनके वर्तमान स्वरूप पर विचार करते हुए दो तत्व मुख्यत: सामने आते हैं। एक तो यह कि पहाड़ी भाषाओं की एकाधिक विशेषता इन्हें हिंदी भाषा से भिन्न करती हैं। दूसरे कुछ तत्व दोनों के समान हैं। कहीं तो हिंदी शब्द स्थानीय शब्दों के साथ वैकल्पिक रूप से प्रयुक्त होते हैं और कहीं हिंदी शब्द ही स्थानीय शब्दों का स्थान ग्रहण करते जा रहे हैं। खड़ी बोली के माध्यम से कुछ विदेशी शब्द, जैसे "हजामत", "अस्पताल", "फीता", "सीप", "डागदर" आदि भी चल पड़े हैं। .

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पाक अधिकृत कश्मीर

भारतीय कश्मीर है और अकसाई चिन चीन के अधिकार में है। इस क्षेत्र का अधिकार चीन को पाकिस्तान द्वारा सौंपा गया था। पाक अधिकृत कश्मीर मूल कश्मीर का वह भाग है, जिस पर पाकिस्तान ने १९४७ में हमला कर अधिकार कर लिया था। यह भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र है। इसकी सीमाएं पाकिस्तानी पंजाब एवं उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत से पश्चिम में, उत्तर पश्चिम में अफ़गानिस्तान के वाखान गलियारे से, चीन के ज़िन्जियांग उयघूर स्वायत्त क्षेत्र से उत्तर और भारतीय कश्मीर से पूर्व में लगती हैं। इस क्षेत्र के पूर्व कश्मीर राज्य के कुछ भाग, ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को पाकिस्तान द्वारा चीन को दे दिया गया था व शेष क्षेत्र को दो भागों में विलय किया गया था: उत्तरी क्षेत्र एवं आजाद कश्मीर। इस विषय पर पाकिस्तान और भारत के बीच १९४७ में युद्ध भी हुआ था। भारत द्वारा इस क्षेत्र को पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के) कहा जाता है।रीडिफ, २३ मई २००६ संयुक्त राष्ट्र सहित अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं एम.एस.एफ़, एवं रेड क्रॉस द्वारा इस क्षेत्र को पाक-अधिकृत कश्मीर ही कहा जाता है। .

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पंजाब (पाकिस्तान)

पंजाब पंजाब पाकिस्तान का एक प्रान्त है। इसमें ३६ जिले हैं। पंजाब आबादी के अनुपात से पाकिस्तान का सब से बड़ा राज्य है। पंजाब में रहने वाले लोग पंजाबी कहलाते हैं। पंजाब की दक्षिण की तरफ़ सिंध, पश्चिम की तरफ़ ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा और बलोचिस्तान,‎‎‎ उत्तर की तरफ़ कश्मीर और इस्लामाबाद और पूर्व में हिन्दुस्तानी पंजाब और राजस्थान से मिलता है। पंजाब में बोली जाने वाली भाषा भी पंजाबी कहलाती है। पंजाबी के अलावा वहां उर्दु और सराइकी भी बोली जाती है। पंजाब की (राजधानी) लाहौर है। पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों - 'पंज' यानि 'पांच' (५) और 'आब' यानि 'पानी' से मिल कर बना है। इन पांच दरियाओं के नाम हैं.

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पुरुषोत्तम नागेश ओक

पुरुषोत्तम नागेश ओक, (जन्म: 2 मार्च, 1917-मृत्यु: 7 दिसंबर, 2007), जिन्हें पी०एन० ओक के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय इतिहास लेखक थे। .

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पुलवामा

कश्मीर का नगर है। यह ज़िले का केन्द्र भी है। श्रेणी:जम्मू कश्मीर के शहर.

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पुंछ

पुंछ नगर पुंछ जिले में स्थित एक नगर परिषद है, जो कि भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर में स्थित है। इस नगर का उल्लेख महाभारत में मिलता है तथा चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस नगर का उल्लेख किया है। .

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प्रतापदित्य

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणीः व्यक्तिगत जीवन श्रेणीः कश्मीर.

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प्रत्यभिज्ञा दर्शन

प्रत्यभिज्ञा दर्शन, काश्मीरी शैव दर्शन की एक शाखा है। यह ९वीं शताब्दी में जन्मा एक अद्वैतवादी दर्शन है। इस दर्शन का नाम उत्पलदेव द्वारा रचित ईश्वरप्रत्यभिज्ञाकारिका नामक ग्रन्थ के नाम पर आधारित है। प्रत्यभिज्ञा (.

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प्रयाग प्रशस्ति

प्रयाग प्रशस्ति गुप्त राजवंश के सम्राट समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित लेख था। इस लेख को समुद्रगुप्त द्वारा २०० ई में कौशाम्बी से लाये गए अशोक स्तंभ पर खुदवाया गया था। इसमें उन राज्यों का वर्णन है जिन्होंने समुद्रगुप्त से युद्ध किया और हार गये तथा उसके अधीन हो गये। इसके अलावा समुद्रगुप्त ने अलग अलग स्थानों पर एरण प्रशस्ति, गया ताम्र शासन लेख, आदि भी खुदवाये थे। इस प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का अच्छा विस्तार किया था। उसको क्रान्ति एवं विजय में आनन्द मिलता था। इलाहाबाद के अभिलेखों से पता चलता है कि समुद्रगुप्त ने अपनी विजय यात्रा का प्रारम्भ उत्तर भारत से किया एवं यहां के अनेक राजाओं पर विजय प्राप्त की। .

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प्रीति ज़िंटा

प्रीटी ज़िंटा (जन्म ३१ जनवरी १९७५) एक भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री है। वे हिन्दी, तेलगू, पंजाबी व अंग्रेज़ी फ़िल्मों में कार्य कर चुकी है। मनोविज्ञान में उपाधी ग्रहण करने के बाद ज़िंटा ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत दिल से.. में १९९८ से की और उसी वर्ष फ़िल्म सोल्जर में पुनः दिखी। इन फ़िल्मों में अभिनय के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ नई अदाकारा का पुरस्कार प्रदान किया गया और आगे चलकर उन्हें फ़िल्म क्या कहना में कुँवारी माँ के किरदार के लिए काफ़ी सराहा गया। उन्होंने आगे चलकर भिन्न-भिन्न प्रकार के किरदार अदा किए व उनके अभिनय व किरदारों ने हिन्दी फ़िल्म अभिनेत्रियों की एक नई कल्पना को जन्म दिया। जिंटा को २००३ में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार कल हो ना हो फ़िल्म में उनके अभिनय के लिए प्रदान किया गया। उन्होंने सर्वाधिक कमाई वाली दो भारतीय फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमे काल्पनिक विज्ञान पर आधारित फ़िल्म कोई... मिल गया (२००३) और रोमांस फ़िल्म वीर-ज़ारा (२००४) शमिल है जिसके लिए उन्हें समीक्षकों द्वारा बेहद सराहा गया। उन्होंने आधुनिक भारतीय नारी का किरदार फ़िल्म सलाम नमस्ते और कभी अलविदा ना कहना में निभाया जो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उच्च-कमाई वाली फ़िल्में रही। इन उपलब्धियों ने उन्हें हिन्दी सिनेमा के मुख्य अभिनेत्रियों में से एक बना दिया। उनका पहला अंतर्राष्ट्रीय किरदार कनेडियाई फ़िल्म हेवन ऑन अर्थ में था जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का सिल्वर ह्यूगो पुरस्कार २००८ के शिकागो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में प्रदान किया गया। फ़िल्मों में अभिनय के आलावा जिंटा ने बीबीसी न्यूज़ ऑनलाइन में कई लेख लिखे है, साथ ही वे एक सामाजिक कार्यकर्त्ता, टेलिविज़न मेज़बान और नियमित मंच प्रदर्शनकर्ता है। वे पीज़ेडएनज़ेड इण्डिया प्रोडक्शन कंपनी की संस्थापक भी है जिसकी स्थापना उन्होंने अपने पूर्व-साथी नेस वाडिया के साथ की है और दोनों साथ-ही-साथ इंडियन प्रीमियर लीग की क्रिकेट टीम किंग्स XI पंजाब के मालिक भी है। .

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पृथिव्यपीड

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणीः व्यक्तिगत जीवन श्रेणीः कश्मीर श्रेणी:कार्कोट राजवंश श्रेणी:कश्मीर के राजा.

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पीर पंजाल पर्वतमाला

पीर पंजाल पर्वतमाला (Pir Panjal Range) हिमालय की एक पर्वतमाला है जो भारत के हिमाचल प्रदेश व जम्मू और कश्मीर राज्यों और पाक-अधिकृत कश्मीर में चलती है। हिमालय में धौलाधार और पीर पंजाल शृंख्लाओं की ओर ऊँचाई बढ़ने लगती है और पीर पंजाल निचले हिमालय की सर्वोच्च शृंख्ला है। सतलुज नदी के किनारे यह हिमालय के मुख्य भाग से अलग होकर अपने एक तरफ़ ब्यास और रावी नदियाँ और दूसरी तरफ़ चेनाब नदी रखकर चलने लगती है। पश्चिम में आगे जाकर उत्तरी पाकिस्तानी पंजाब और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा की पहाड़ी गलियाँ इसी पीर पंजाल शृंख्ला का अंतिम कम-ऊँचाई वाला भाग है। इसी में उत्तरी पंजाब का मरी हिल-स्टेशन स्थित है। पाक-अधिकृत कश्मीर के बाग़ ज़िले में गंगा चोटी पीर पंजाल शृंख्ला का एक प्रसिद्ध ३,०४४ मीटर (९,९८७ फ़ुट) ऊँचा पर्वत व पर्यटन-स्थल है। .

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फरीद पर्बती

चित्र:350px| फरीद पर्बती फरीद पर्बती (जन्मनाम: ग़ुलाब नबी भट) कशमीर के उर्दू कवि थे। उन्होंने काव्य सहित अनेक पुस्तकों की रचना की। उन्होंने ग़ज़लें और रुबाई लिखी। उन्हें कला, संस्कृति और भाषा अकादमी सहित उनकी साहित्यिक रचनाओं के लिए विभिन्न पुरस्कार प्राप्त हुए। .

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फिरोजुद्दीन मीर

फिरोजुद्दीन मीर फिरोजुद्दीन मीर एक ऐसे भारतीय हैं जो वर्तमान समय में दुनिया के सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं। एक सरकारी दस्तावेज के अनुसार उनकी जन्म तिथि 10 मार्च 1872 है। इस हिसाब से उनकी उम्र 141 साल है। दैनिक जागरण ने 23 जुलाई 2013 जुलाई को प्रकाशित समाचार में बताया कि मीर के दावे की जाँच शीघ्र ही गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉ‌र्ड्स करेगा। अभी तक सबसे अधिक उम्र का रिकार्ड एक जापानी महिला मिसाओ ओकावा के नाम पर दर्ज़ है जो 115 वर्ष की हैं। कश्मीर लाइफ पत्रिका की 17 दिसम्बर 2012 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उन्हें अब बहुत कम दिखाई देता है और वे अपने परिजनों की सहायता से ही चल फिर पाते हैं। मीर ने ही इस पत्रिका को बताया कि वह अविभाजित भारत के कराची शहर में फल और मेवा बेचने का धन्धा करते थे। 1890 में उनका निकाह हुआ और बीसवीं सदी के आते-आते उनकी पहली पत्नी चल बसीं। पहली बीबी की मौत के बाद वे कश्मीर आ गये और उड़ी जिले के बिहजामा स्थित अपने पुश्तैनी मकान में आकर रहने लगे। बाद में उन्होंने चार शादियाँ और कीं। उनकी पाँचवीं पत्नी मिसरा की उम्र 80 साल है जो अभी जीवित है। इस प्रकार वे अपनी मौजूदा पत्नी से साठ साल बड़े हैं। मीर का मानना है कि अत्याधुनिक तकनीक के बावजूद आज आम आदमी के जीवन में शान्ति कम और उलझनें ज्यादा हैं। लोगबाग एक दूसरे से मेलजोल रखने के बजाय दूर होने लगे हैं। इससे पहले जापान के ही 116 वर्षीय जिरोमॉन किमूरा दुनिया के सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे जिनका पिछले महीने ही निधन हुआ था। दैनिक भास्करडॉटकॉम की एक खबर के मुताबिक मीर सबसे उम्रदराज जीवित शख्स के अलावा सबसे लम्बी उम्र जीने का खिताब भी अपने नाम कर सकते हैं। दैनिक भास्कर के अनुसार सबसे ज्यादा समय तक जीने का रिकॉर्ड किसी फ्रांसीसी महिला जीने कामेंट के नाम दर्ज़ है जिसकी मौत 1997 में 122 साल की उम्र में हुई थी। मीर सिर्फ पहाड़ी भाषा बोल सकते हैं। .

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बड़गाम की लड़ाई

बड़गाम की लड़ाई एक छोटे स्तर की बचाव मुठभेड़ थी जो कि कश्मीर घाटी के बड़ग़ाम में ३ नवम्बर १९४७ को १९४७ के भारत-पाक युद्ध के दौरान हुई थी। यह मुठभेड़ भारतीय सेना तथा पाकिस्तानी कबायलियों के मध्य हुई थी जिनमे भारतीय सेना के लगभग ५० जवान व पाकिस्तानी कबायलियों के लगभग ५०० आक्रमणकारी थे। यह छोटी मुठभेड़ निर्णायक थी जो कि कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की एक कम्पनी, जिसका नेतृत्व मरणोपरान्त परम वीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा कर रह रहे थे। इस लड़ाई में पहाड़ी पर डेरा जमाये कबायली लश्करों पर भारतीय सेना ने निर्णायक बढ़त बना ली। इस युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा वीरगति को प्राप्त हो गये। .

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बन्दा सिंह बहादुर

बन्दा सिंह बहादुर बैरागी एक सिख सेनानायक थे। उन्हें बन्दा बहादुर, लक्ष्मन दास और माधो दास भी कहते हैं। वे पहले ऐसे सिख सेनापति हुए, जिन्होंने मुग़लों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा; छोटे साहबज़ादों की शहादत का बदला लिया और गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्तासम्पन्न लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ में ख़ालसा राज की नींव रखी। यही नहीं, उन्होंने गुरु नानक देव और गुरू गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरे जारी करके, निम्न वर्ग के लोगों की उच्च पद दिलाया और हल वाहक किसान-मज़दूरों को ज़मीन का मालिक बनाया। .

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बादाम

बादाम (अंग्रेज़ी:ऑल्मंड, वैज्ञानिक नाम: प्रूनुस डल्शिस, प्रूनुस अमाइग्डैलस) मध्य पूर्व का एक पेड़ होता है। यही नाम इस पेड़ के बीज या उसकी गिरि को भी दिया गया है। इसकी बड़े तौर पर खेती होती है। बादाम एक तरह का मेवा होता है। संस्कृत भाषा में इसे वाताद, वातवैरी आदि, हिन्दी, मराठी, गुजराती व बांग्ला में बादाम, फारसी में बदाम शोरी, बदाम तल्ख, अंग्रेजी में आलमंड और लैटिन में एमिग्ड्रेलस कम्युनीज कहते हैं। आयुर्वेद में इसको बुद्धि और नसों के लिये गुणकारी बताया गया है। भारत में यह कश्मीर का राज्य पेड़ माना जाता है। एक आउंस (२८ ग्राम) बादाम में १६० कैलोरी होती हैं, इसीलिये यह शरीर को उर्जा प्रदान करता है।|नीरोग लेकिन बहुत अधिक खाने पर मोटापा भी दे सकता है। इसमें निहित कुल कैलोरी का ¾ भाग वसा से मिलता है, शेष कार्बोहाईड्रेट और प्रोटीन से मिलता है। इसका ग्लाईसेमिक लोड शून्य होता है। इसमें कार्बोहाईड्रेट बहुत कम होता है। इस कारण से बादाम से बना केक या बिस्कुट, आदि मधुमेह के रोगी भी ले सकते हैं। बादाम में वसा तीन प्रकार की होती है: एकल असंतृप्त वसीय अम्ल और बहु असंतृप्त वसीय अम्ल। यह लाभदायक वसा होती है, जो शरीर में कोलेस्टेरोल को कम करता है और हृदय रोगों की आशंका भी कम करता है। इसके अलावा दूसरा प्रकार है ओमेगा – ३ वसीय अम्ल। ये भी स्वास्थवर्धक होता है। इसमें संतृप्त वसीय अम्ल बहुत कम और कोलेस्टेरोल नहीं होता है। फाईबर या आहारीय रेशा, यह पाचन में सहायक होता है और हृदय रोगों से बचने में भी सहायक रहता है, तथा पेट को अधिक देर तक भर कर रखता है। इस कारण कब्ज के रोगियों के लिये लाभदायक रहता है। बादाम में सोडियम नहीं होने से उच्च रक्तचाप रोगियों के लिये भी लाभदायक रहता है। इनके अलावा पोटैशियम, विटामिन ई, लौह, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फास्फोरस भी होते हैं।। हिन्दी मीडिया.इन। २५ सितंबर २००९। मीडिया डेस्क .

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बाबरी मस्जिद

बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद ज़िले के अयोध्या शहर में रामकोट पहाड़ी ("राम का किला") पर एक मस्जिद थी। रैली के आयोजकों द्वारा मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाने देने की भारत के सर्वोच्च न्यायालय से वचनबद्धता के बावजूद, 1992 में 150,000 लोगों की एक हिंसक रैली.

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बारामूला

बारामूला, जिसे कश्मीरी भाषा में वरमूल कहते हैं, भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का एक शहर है। यह बारामूला ज़िले में स्थित है और उस ज़िले का मुख्यालय है। भारत के विभाजन से पहले कश्मीर घाटी में दाख़िल होने का प्रमुख मार्ग यहीं से होकर जाता था और इस कारण से इसे कश्मीर का द्वार भी कहा जाता है। बारामूला झेलम नदी के किनारे बसा हुआ है, जिसे स्थानीय रूप से नदी के संस्कृत नाम (वितस्ता नदी) के अनुसरण में कश्मीरी में "व्यथ नदी" कहा जाता है। .

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बारामूला ज़िला

बारामूला ज़िला, जिसे कश्मीरी भाषा में वरमूल कहते हैं, भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का एक ज़िला है। इसका मुख्यालय बारामूला शहर है और गुलमर्ग का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी इसी ज़िले मे स्थित है। .

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बिलाड़ा

बिलाड़ा भारत के राजस्थान राज्य के जोधपुर ज़िले का एक शहर तथा नगरपालिका है यह बिलाड़ा तहसील में आता है यह मुख्य रूप से कृषि के लिए जाना जाता है ' बिलाड़ा अपनी मीठी वाणी के लिए तथा धार्मिक कार्यक्रमों के लिए भी जाना जाता है बिलाड़ा शहर में कई निजी होटल भी है जिसमे अच्छी खासी सुविधाएँ भी है यह एक राजस्थान के कश्मीर के रूप में भी जाना जाता है ' बिलाड़ा में ओर खेती भी खूब होती है बिलाडा बाजार में कपड़ो का मार्किट भी बहुत बड़ा है दिन भर भीड़ भाड़ बानी रहती है यहां पर कृषि मंडी भी बहुत ही बड़ी है यहां कपास गेहू सोप सरसो जीरा मुख्य फसल है यह आई माता जी का मंदिर भव्य मंदिर है ओर जीजीपाल मंदिर जोड़ रनिया हर्ष देवल सिद्धि विनायक मन्दिर मुख्य है .

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बिल्हण

बिल्हण, ग्यारहवीं शताब्दी के कश्मीर के प्रसिद्ध कवि थे जिनकी रचना.

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बख्शी ग़ुलाम मोहम्मद

बख्शी ग़ुलाम मोहम्मद (1907-1972) कश्मीर के प्रधान मन्त्री (1953-1964) थे। .

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बगलीहार पनबिजली परियोजना

बगलीहार पनबिजली परियोजना भारत की कश्मीर में चल रही एक महत्वपूर्ण पनबिजली परियोजना है जो अपने विवादों की वजह से चर्चा में रहा है। पाकिस्तान कहता रहा है कि बगलीहार में यह परियोजना शुरू करके भारत पुरानी सिंधु संधि का उल्लंघन कर रहा है और यह बांध बनने से पाकिस्तान को मिलने वाले पानी का प्रवाह बाधित होगा। भारत का तर्क है कि वह ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा है। वह तो सिर्फ पानी का बेहतर इस्तेमाल करना चाहता है। वह पाकिस्तान जाने वाले चेनाब के पानी को बिलकुल भी नहीं रोक रहा है। श्रेणी:जम्मू और कश्मीर में बांध.

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बुरहान मुज़फ़्फ़र वानी

बुरहान मुज़फ़्फ़र वानी (अंग्रेजी: Burhan Muzaffar Wani), कश्मीरी उग्रवादी गुट का एक कमांडर था। जिसको ०८जुलाई २०१६ को एनकाउंटर करके मार गिराया। बुरहान वानी के अलावा इनके ७ और आतंकवादी सदस्यों को मार गिराया है। .

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बुरज़िल दर्रा

बुरज़िल दर्रा (Burzil Pass) कश्मीर क्षेत्र का एक ऐतिहासिक दर्रा है जो श्रीनगर को पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र में स्थित गिलगित और स्कर्दू से जोड़ता है। यहाँ से यात्री और व्यापारी घोड़ों और टट्टुओं पर सवार यातायात करा करते थे लेकिन भारत के विभाजन के बाद यह पाकिस्तान द्वारा बन्द कर दिया गया। इसके शिखर पर एक चौकी हुआ करती थी जहाँ से भारत और चीन के दरम्यान डाक आया-जाया करती थी। .

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बुरंजी

प्राचीन हस्थलिखि - बुरंजी। बुरंजी, असमिया भाषा में लिखी हुईं ऐतिहासिक कृतियाँ हैं। अहोम राज्य सभा के पुरातत्व लेखों का संकलन बुरंजी में हुआ है। प्रथम बुरंजी की रचना असम के प्रथम राजा सुकफा के आदेश पर लिखी गयी जिन्होने सन् १२२८ ई में असम राज्य की स्थापना की। आरंभ में अहोम भाषा में इनकी रचना होती थी, कालांतर में असमिया भाषा इन ऐतिहासिक लेखों की माध्यम हुई। इसमें राज्य की प्रमुख घटनाओं, युद्ध, संधि, राज्यघोषणा, राजदूत तथा राज्यपालों के विविध कार्य, शिष्टमंडल का आदान प्रदान आदि का उल्लेख प्राप्त होता है - राजा तथा मंत्री के दैनिक कार्यों के विवरण भी प्रकाश डाला गया है। असम प्रदेश में इनके अनेक वृहदाकार खंड प्राप्त हुए हैं। राजा अथवा राज्य के उच्चपदस्थ अधिकारी के निर्देशानुसार शासनतंत्र से पूर्ण परिचित विद्वान् अथवा शासन के योग्य पदाधिकारी इनकी रचना करते थे। घटनाओं का चित्रण सरल एवं स्पष्ट भाषा में किया गया है; इन कृतियों की भाषा में अलंकारिकता का अभाव है। सोलहवीं शती के आरंभ से उन्नीसवीं शती के अंत तक इनका आलेखन होता रहा। बुरंजी राष्ट्रीय असमिया साहित्य का अभिन्न अंग हैं। गदाधर सिंह के राजत्वकाल में पुरनि असम बुरंजी का निर्माण हुआ जिसका संपादन हेमचंद्र गोस्वामी ने किया है। पूर्वी असम की भाषा में इन बुरंजियों की रचना हुई है। "बुरंजी" मूलत: एक टाइ शब्द है, जिसका अर्थ है "अज्ञात कथाओं का भांडार"। इन बुरंजियों के माध्यम से असम प्रदेश के मध्ययुग का काफी व्यवस्थित इतिहास उपलब्ध है। बुरंजी साहित्य के अंतर्गत कामरूप बुरंजी, कछारी बुरंजी, आहोम बुरंजी, जयंतीय बुंरजी, बेलियार बुरंजी के नाम अपेक्षाकृत अधिक प्रसिद्ध हैं। इन बुरंजी ग्रंथों के अतिरिक्त राजवंशों की विस्तृत वंशावलियाँ भी इस काल में हुई। आहोम राजाओं के असम में स्थापित हो जाने पर उनके आश्रय में रचित साहित्य की प्रेरक प्रवृत्ति धार्मिक न होकर लौकिक हो गई। राजाओं का यशवर्णन इस काल के कवियों का एक प्रमुख कर्तव्य हो गया। वैसे भी अहोम राजाओं में इतिहासलेखन की परंपरा पहले से ही चली आती थी। कवियों की यशवर्णन की प्रवृत्ति को आश्रयदाता राजाओं ने इस ओर मोड़ दिया। पहले तो अहोम भाषा के इतिहास ग्रंथों (बुरंजियों) का अनुवाद असमिया में किया गया और फिर मौलिक रूप से बुरंजियों का सृजन होने लगा। .

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ब्रिटिश भारत में रियासतें

15 अगस्त 1947 से पूर्व संयुक्त भारत का मानचित्र जिसमें देशी रियासतों के तत्कालीन नाम साफ दिख रहे हैं। ब्रिटिश भारत में रियासतें (अंग्रेजी:Princely states; उच्चारण:"प्रिंस्ली स्टेट्स्") ब्रिटिश राज के दौरान अविभाजित भारत में नाममात्र के स्वायत्त राज्य थे। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में "रियासत", "रजवाड़े" या व्यापक अर्थ में देशी रियासत कहते थे। ये ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं थे बल्कि भारतीय शासकों द्वारा शासित थे। परन्तु उन भारतीय शासकों पर परोक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का ही नियन्त्रण रहता था। सन् 1947 में जब हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ तब यहाँ 565 रियासतें थीं। इनमें से अधिकांश रियासतों ने ब्रिटिश सरकार से लोकसेवा प्रदान करने एवं कर (टैक्स) वसूलने का 'ठेका' ले लिया था। कुल 565 में से केवल 21 रियासतों में ही सरकार थी और मैसूर, हैदराबाद तथा कश्मीर नाम की सिर्फ़ 3 रियासतें ही क्षेत्रफल में बड़ी थीं। 15 अगस्त,1947 को ब्रितानियों से मुक्ति मिलने पर इन सभी रियासतों को विभाजित हिन्दुस्तान (भारत अधिराज्य) और विभाजन के बाद बने मुल्क पाकिस्तान में मिला लिया गया। 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश सार्वभौम सत्ता का अन्त हो जाने पर केन्द्रीय गृह मन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल के नीति कौशल के कारण हैदराबाद, कश्मीर तथा जूनागढ़ के अतिरिक्त सभी रियासतें शान्तिपूर्वक भारतीय संघ में मिल गयीं। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में सैनिक कार्रवाई द्वारा हैदराबाद को भी भारत में मिला लिया गया। इस प्रकार हिन्दुस्तान से देशी रियासतों का अन्त हुआ। .

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बौद्ध धर्म एवं हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म दोनों ही प्राचीन धर्म हैं और दोनों ही भारतभूमि से उपजे हैं। हिन्दू धर्म के वैष्णव संप्रदाय में गौतम बुद्ध को दसवाँ अवतार माना गया है हालाँकि बौद्ध धर्म इस मत को स्वीकार नहीं करता। ओल्डेनबर्ग का मानना है कि बुद्ध से ठीक पहले दार्शनिक चिंतन निरंकुश सा हो गया था। सिद्धांतों पर होने वाला वाद-विवाद अराजकता की ओर लिए जा रहा था। बुद्ध के उपदेशों में ठोस तथ्यों की ओर लौटने का निररंतर प्रयास रहा है। उन्होंने वेदों, जानवर बलि और इश्वर को नकार दिया। भुरिदत जातक कथा में ईश्वर, वेदों और जानवर बलि की आलोचना मिलती है। बौद्धधर्म भारतीय विचारधारा के सर्वाधिक विकसित रूपों में से एक है और हिन्दुमत (सनातन धर्म) से साम्यता रखता है। हिन्दुमत के दस लक्षणों यथा दया, क्षमा अपरिग्रह आदि बौद्धमत से मिलते-जुलते है। यदि हिन्दुमत में मूर्ति पूजा का प्रचलन है तो बौद्ध मन्दिर भी मूर्तियों से भरे पड़े हैं। भारतीय कर्मकाण्ड में मन्त्र-तंत्र का प्रचलन है तो बौद्ध मत में भी तन्त्र-मन्त्र का विशेष महत्व है। प्रसिद्ध अंग्रेज यात्री डाॅ.

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बृज नारायण चकबस्त

ब्रजनारायण चकबस्त (1882–1926) उर्दू कवि थे। वे प्रसिद्ध तथा सम्मानित कश्मीरी परिवार के थे। यद्यपि इनके पूर्वज लखनऊ के निवासी थे तथापि इनका जन्म फैजाबाद में सन्‌ 1882 ई. में हुआ था। इनके पिता पं॰ उदित नारायण जी इनकी अल्पावस्था ही में गत हो गए। इनकी माता तथा बड़े भाई महाराजनारायण ने इन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई, जिससे ये सन्‌ 1907 ई. में वकालत परीक्षा में उत्तीर्ण होकर सफल वकील हुए। ये समाजसुधारक थे और सेवाकार्यो में सदा संनद्ध रहा करते थे। उर्दू कविता भी करने लगे थे और शीघ्र ही इसमें ऐसी योग्यता प्राप्त कर ली कि उर्दू के कवियों की प्रथम पंक्ति में इन्हें स्थान मिल गया। एक मुकदमे से रायबरेली से लौटते समय 12 फ़रवरी सन्‌ 1926 ई. को स्टेशन पर ही फालिज का ऐसा आक्रमण हुआ कि कुछ ही घंटों में इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु से उर्दू भाषा तथा कविता को विशेष क्षति पहुँची। चकबस्त लखनऊ के व्यवहार आदि के अच्छे आदर्श थे। इनके स्वभाव में ऐसी विनम्रता, मिलनसारी, सज्जनता तथा सुव्यवहारशीलता थी कि ये सर्वजन प्रिय हो गए थे। धार्मिक कट्टरता इनमें नाम को भी नहीं थी। इन्होंने पूर्ववर्ती कवियों की उर्दू कविताएँ बहुत पढ़ी थी और इनपर अनीस, आतिश तथा गालिब का प्रभाव अच्छा पड़ा था। उर्दू में प्राय: कविगण गजलों से ही कविता करना आरंभ करते हैं परंतु इन्होंने नज्म द्वारा आपनी कविता आरंभ की और फिर गज़लें भी ऐसी लिखीं जो उर्दू काव्यक्षेत्र में अपना जोड़ नहीं रखती। इनकी कविता में बौद्धिक कौशल अधिक है अर्थात्‌ केवल सुनकर आनंद लेने योग्य नहीं है प्रत्युत्‌ पढ़कर मनन करने योग्य है। इन्होंने अपने समय के नेताओं के जो मर्सिए लिखे हैं उन्हें पढ़ने से पाठकों के हृदय में देशभक्ति जाग्रत होती है। दृश्यवर्णन भी इनका उच्च कोटि का हुआ है और इसके लिये भाषा भी साफ सुथरी रखी है। इनकी वर्णनशैली में लखनऊ की रंगीनी तथा दिल्ली की सादगी और प्रभावोत्पादकता का सुंदर मेल है। उपदेश तथा ज्ञान की बातें भी ऐसे अच्छे ढंग से कहीं गई हैं कि सुननेवाले ऊबते नहीं। पद्य के सिवा गद्य भी इन्होंने बहुत लिखा है, जो मुजामीने चकबस्त में संगृहीत हैं। इनमें आलोचनात्मक तथा राष्ट्रोन्नति संबंधी लेख हैं जो ध्यानपूर्वक पढ़ने योग्य है। गंभीर, विद्वत्तापूर्ण्‌ तथा विशिष्ट गद्य लिखने का इन्होंने नया मार्ग निकाला और देश की भिन्न भिन्न जातियों में तथा व्यवहार का संबंध दृढ़ किया। सुबहे वतन में इनकी कविताओं का संग्रह है। इन्होंने कमला नामक एक नाटक लिखा है। .

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बैजू बावरा

बैजू बावरा (१५४२-१६१३) भारत के ध्रुपदगायक थे। उनको बैजनाथ प्रसाद और बैजनाथ मिश्र के नाम से भी जाना जाता है। वे ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार के गायक थे और अकबर के दरबार के महान गायक तानसेन के समकालीन थे। उनके जीवन के बारे में बहुत सी किंवदन्तियाँ हैं जिनकी ऐतिहासिक रूप से पुष्टि नहीं की जा सकती है। .

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बोन धर्म

बोन धर्म या बॉन धर्म (བོན་, Bön) तिब्बत की प्राचीन और पारम्परिक धार्मिक प्रथा है। आधुनिक युग में इसमें बौद्ध धर्म और बौद्ध धर्म से पहले की तिब्बती संस्कृति में प्रचलित धार्मिक आस्थाएँ शामिल हैं। बहुत से ऐसी बौद्ध-पूर्व आस्थाएँ तिब्बती बौद्ध धर्म में भी सम्मिलित की जा चुकी हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार बोन धर्म के तत्व सिर्फ़ तिब्बत तक ही सीमित नहीं थे बल्कि उनका ऐतिहासिक प्रभाव तिब्बत से दूर कई मध्य एशिया के क्षेत्रों तक भी मिलता था। इतिहासकार बोन धर्म को तिब्बती साम्राज्य से पहले आने वाले झ़ंगझ़ुंग राज्य से भी सम्बन्धित समझते है।, Gary McCue, pp.

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भड़ल

हिमालयी भड़ल भड़ल या हिमालयी नीली भेड़ (Pseudois nayaur) काप्रिने (Caprinae) उपपरिवार का एक स्तनपाई जीव है। भड़ल मुख्यतः नेपाल, भूटान, कश्मीर, पाकिस्तान, तिब्बत और भारत के ऊच्च हिमालय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। भड़ल के सींग होते हैं जो ऊपर की ओर बढ़ते हैं, कुछ उभार लेते हैं और फिर पीछे को मुड़ते हैं। .

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भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार

भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का संजाल भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची भारतीय राजमार्ग के क्षेत्र में एक व्यापक सूची देता है, द्वारा अनुरक्षित सड़कों के एक वर्ग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण। ये लंबे मुख्य में दूरी roadways हैं भारत और के अत्यधिक उपयोग का मतलब है एक परिवहन भारत में। वे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा भारतीय अर्थव्यवस्था। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 laned (प्रत्येक दिशा में एक), के बारे में 65,000 किमी की एक कुल, जिनमें से 5,840 किमी बदल सकता है गठन में "स्वर्ण Chathuspatha" या स्वर्णिम चतुर्भुज, एक प्रतिष्ठित परियोजना राजग सरकार द्वारा शुरू की श्री अटल बिहारी वाजपेयी.

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भारत में सांस्कृतिक विविधता

अंगूठाकार .

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भारत में आए भूकम्पों की सूची

भारतीय उपमहाद्वीप के भूकम्पों का एक इतिहास है। भारतीय प्लेट एशिया के भीतर 49 मिलीमीटर प्रतिवर्ष.

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भारत में आतंकवाद

भारत बहुत समय से आतंकवाद का शिकार हो रहा है। भारत के काश्मीर, नागालैंड, पंजाब, असम, बिहार आदि विशेषरूप से आतंक से प्रभावित रहे हैं। यहाँ कई प्रकार के आतंकवादी जैसे पाकिस्तानी, इस्लामी, माओवादी, नक्सली, सिख, ईसाई आदि हैं। जो क्षेत्र आज आतंकवादी गतिविधियों से लम्बे समय से जुड़े हुए हैं उनमें जम्मू-कश्मीर, मुंबई, मध्य भारत (नक्सलवाद) और सात बहन राज्य (उत्तर पूर्व के सात राज्य) (स्वतंत्रता और स्वायत्तता के मामले में) शामिल हैं। अतीत में पंजाब में पनपे उग्रवाद में आंतकवादी गतिविधियां शामिल हो गयीं जो भारत देश के पंजाब राज्य और देश की राजधानी दिल्ली तक फैली हुई थीं। 2006 में देश के 608 जिलों में से कम से कम 232 जिले विभिन्न तीव्रता स्तर के विभिन्न विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से पीड़ित थे। अगस्त 2008 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के.

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भारत का राजनीतिक एकीकरण

१९४७ में स्वतन्त्रता के तुरन्त बाद भारत की राजनीतिक स्थिति १९०९ में 'ब्रितानी भारत' तथा देसी रियासतें स्वतंत्रता के समय 'भारत' के अन्तर्गत तीन तरह के क्षेत्र थे-.

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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भारत के ध्वजों की सूची

यह सूची भारत में प्रयोग हुए सभी ध्वजों की है.

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भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय

भारतीय उपमहाद्वीप में कई स्थान अत्यंत पुराने शिक्षण केन्द्र रहे हैं:-.

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भारत के क्षेत्र

भारत में सास्कृतिक, भौगोलिक तथा प्रशासनिक आधार कई प्रदेश हैं जिनकी अन्य क्षेत्रों से अलग पहचान है। इनमें से कई क्षेत्र भारत की प्रशासनिक सीमाओं के बाहर भी है - जैसे कश्मीर, पंजाब तथा बंगाल। .

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भारत २०१०

इन्हें भी देखें 2014 भारत 2014 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2014 साहित्य संगीत कला 2014 खेल जगत 2014 .

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भारत-संयुक्त राज्य सम्बन्ध

भारत (हरा) तथा संयुक्त राज्य अमेरिका (केशरिया) भारत-संयुक्त राज्य सम्बन्ध से आशय भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध से है। यद्यपि भारत १९६१ में गुट निरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना करने वाले देशों में प्रमुख था किन्तु शीत युद्ध के समय उसके अमेरिका के बजाय सोवियत संघ से बेहतर सम्बन्ध थे। .

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भारत-इज़राइल सम्बन्ध

भारत और इज़राइल भारत-इज़राइल सम्बन्ध भारतीय लोकतंत्र तथा इज़राइल राज्य के मध्य द्विपक्षीय संबंधो को दर्शाता है। १९९२ तक भारत तथा इज़राइल के मध्य किसी प्रकार के सम्बन्ध नहीं रहे। इसके मुख्यतः दो कारण थे- पहला, भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था जो की पूर्व सोवियत संघ का समर्थक था तथा दूसरे गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इज़राइल को मान्यता नहीं देता था। दूसरा मुख्य कारण भारत फिलिस्तीन की आज़ादी का समर्थक रहा। यहाँ तक की १९४७ में भारत ने संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन (उन्स्कोप) नमक संगठन का निर्माण किया परन्तु १९८९ में कश्मीर में विवाद तथा सोवियत संघ के पतन तथा पाकिस्तान के गैर कानूनी घुसपैठ के चलते राजनितिक परिवेश में परिवर्तन आया और भारत ने अपनी सोच बदलते हुए इज़राइल के साथ संबंधो को मजबूत करने पर जोर दिया और १९९२ में नए दौर की शुरुआत हुई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की हार के बाद भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आते ही भारत और इज़राइल के मध्य सहयोग बढ़ा और दोनों राजनितिक दलों की इस्लामिक कट्टरपंथ के प्रति एक जैसे मानसिकता होने की वजह से और मध्य पूर्व में यहूदी समर्थक नीति की वजह से भारत और इज़राइल के सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए। आज इज़राइल, रूस के बाद भारत का सबसे बड़ा सैनिक सहायक और निर्यातक है। '''बेने इज़राइल''' (इज़राइल पुत्र) नामक यहूदी समूह जिसने १९४८ के बाद इज़राइल प्रस्थान करना आरम्भ किया। .

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भारतीय चुनाव

चुनाव लोकतंत्र का आधार स्तम्भ हैं। आजादी के बाद से भारत में चुनावों ने एक लंबा रास्ता तय किया है। 1951-52 को हुए आम चुनावों में मतदाताओं की संख्या 17,32,12,343 थी, जो 2014 में बढ़कर 81,45,91,184 हो गई है। 2004 में, भारतीय चुनावों में 670 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (यह संख्या दूसरे सबसे बड़े यूरोपीय संसदीय चुनावों के दोगुने से अधिक थी) और इसका घोषित खर्च 1989 के मुकाबले तीन गुना बढ़कर $300 मिलियन हो गया। इन चुनावों में दस लाख से अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल किया गया। 2009 के चुनावों में 714 मिलियन मतदाताओं ने भाग लिया (अमेरिका और यूरोपीय संघ की संयुक्त संख्या से भी अधिक).

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भारतीय थलसेना

भारतीय थलसेना, सेना की भूमि-आधारित दल की शाखा है और यह भारतीय सशस्त्र बल का सबसे बड़ा अंग है। भारत का राष्ट्रपति, थलसेना का प्रधान सेनापति होता है, और इसकी कमान भारतीय थलसेनाध्यक्ष के हाथों में होती है जो कि चार-सितारा जनरल स्तर के अधिकारी होते हैं। पांच-सितारा रैंक के साथ फील्ड मार्शल की रैंक भारतीय सेना में श्रेष्ठतम सम्मान की औपचारिक स्थिति है, आजतक मात्र दो अधिकारियों को इससे सम्मानित किया गया है। भारतीय सेना का उद्भव ईस्ट इण्डिया कम्पनी, जो कि ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में परिवर्तित हुई थी, और भारतीय राज्यों की सेना से हुआ, जो स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्रीय सेना के रूप में परिणत हुई। भारतीय सेना की टुकड़ी और रेजिमेंट का विविध इतिहास रहा हैं इसने दुनिया भर में कई लड़ाई और अभियानों में हिस्सा लिया है, तथा आजादी से पहले और बाद में बड़ी संख्या में युद्ध सम्मान अर्जित किये। भारतीय सेना का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद की एकता सुनिश्चित करना, राष्ट्र को बाहरी आक्रमण और आंतरिक खतरों से बचाव, और अपनी सीमाओं पर शांति और सुरक्षा को बनाए रखना हैं। यह प्राकृतिक आपदाओं और अन्य गड़बड़ी के दौरान मानवीय बचाव अभियान भी चलाते है, जैसे ऑपरेशन सूर्य आशा, और आंतरिक खतरों से निपटने के लिए सरकार द्वारा भी सहायता हेतु अनुरोध किया जा सकता है। यह भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना के साथ राष्ट्रीय शक्ति का एक प्रमुख अंग है। सेना अब तक पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ चार युद्धों तथा चीन के साथ एक युद्ध लड़ चुकी है। सेना द्वारा किए गए अन्य प्रमुख अभियानों में ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन मेघदूत और ऑपरेशन कैक्टस शामिल हैं। संघर्षों के अलावा, सेना ने शांति के समय कई बड़े अभियानों, जैसे ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स और युद्ध-अभ्यास शूरवीर का संचालन किया है। सेना ने कई देशो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में एक सक्रिय प्रतिभागी भी रहा है जिनमे साइप्रस, लेबनान, कांगो, अंगोला, कंबोडिया, वियतनाम, नामीबिया, एल साल्वाडोर, लाइबेरिया, मोज़ाम्बिक और सोमालिया आदि सम्मलित हैं। भारतीय सेना में एक सैन्य-दल (रेजिमेंट) प्रणाली है, लेकिन यह बुनियादी क्षेत्र गठन विभाजन के साथ संचालन और भौगोलिक रूप से सात कमान में विभाजित है। यह एक सर्व-स्वयंसेवी बल है और इसमें देश के सक्रिय रक्षा कर्मियों का 80% से अधिक हिस्सा है। यह 1,200,255 सक्रिय सैनिकों और 909,60 आरक्षित सैनिकों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्थायी सेना है। सेना ने सैनिको के आधुनिकीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसे "फ्यूचरिस्टिक इन्फैंट्री सैनिक एक प्रणाली के रूप में" के नाम से जाना जाता है इसके साथ ही यह अपने बख़्तरबंद, तोपखाने और उड्डयन शाखाओं के लिए नए संसाधनों का संग्रह एवं सुधार भी कर रहा है।.

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भारतीय लिपियाँ

भारत में बहुत सी भाषाएं तो हैं ही, उनके लिखने के लिये भी अलग-अलग लिपियाँ प्रयोग की जातीं हैं। किन्तु इन सभी लिपियों में बहुत ही साम्य है। ये सभी वर्णमालाएँ एक अत्यन्त तर्कपूर्ण ध्वन्यात्मक क्रम (phonetic order) में व्यवस्थित हैं। यह क्रम इतना तर्कपूर्ण है कि अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ (IPA) ने अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि के निर्माण के लिये मामूली परिवर्तनों के साथ इसी क्रम को अंगीकार कर लिया। .

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भारतीय संगीत का इतिहास

पाँच गन्धर्व (चौथी-पाँचवीं शताब्दी, भारत के उत्तर-पश्चिम भाग से प्राप्त) प्रगैतिहासिक काल से ही भारत में संगीत कीसमृद्ध परम्परा रही है। गिने-चुने देशों में ही संगीत की इतनी पुरानी एवं इतनी समृद्ध परम्परा पायी जाती है। माना जाता है कि संगीत का प्रारम्भ सिंधु घाटी की सभ्यता के काल में हुआ हालांकि इस दावे के एकमात्र साक्ष्य हैं उस समय की एक नृत्य बाला की मुद्रा में कांस्य मूर्ति और नृत्य, नाटक और संगीत के देवता रूद्र अथवा शिव की पूजा का प्रचलन। सिंधु घाटी की सभ्यता के पतन के पश्चात् वैदिक संगीत की अवस्था का प्रारम्भ हुआ जिसमें संगीत की शैली में भजनों और मंत्रों के उच्चारण से ईश्वर की पूजा और अर्चना की जाती थी। इसके अतिरिक्त दो भारतीय महाकाव्यों - रामायण और महाभारत की रचना में संगीत का मुख्य प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली और पद्धति में जबरदस्त परिवर्तन हुआ है। भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि स्वामी हरिदास, तानसेन, अमीर खुसरो आदि ने भारतीय संगीत की उन्नति में बहुत योगदान किया है जिसकी कीर्ति को पंडित रवि शंकर, भीमसेन गुरूराज जोशी, पंडित जसराज, प्रभा अत्रे, सुल्तान खान आदि जैसे संगीत प्रेमियों ने आज के युग में भी कायम रखा हुआ है। भारतीय संगीत में यह माना गया है कि संगीत के आदि प्रेरक शिव और सरस्वती है। इसका तात्पर्य यही जान पड़ता है कि मानव इतनी उच्च कला को बिना किसी दैवी प्रेरणा के, केवल अपने बल पर, विकसित नहीं कर सकता। .

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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन

* भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। इस आन्दोलन की शुरुआत १८५७ में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९३० कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी। .

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भारतीय इतिहास की समयरेखा

पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं भारत एक साझा इतिहास के भागीदार हैं इसलिए भारतीय इतिहास की इस समय रेखा में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की झलक है। .

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भाषा-परिवार

विश्व के प्रमुख भाषाकुलों के भाषाभाषियों की संख्या का पाई-चार्ट आपस में सम्बंधित भाषाओं को भाषा-परिवार कहते हैं। कौन भाषाएँ किस परिवार में आती हैं, इनके लिये वैज्ञानिक आधार हैं। इस समय संसार की भाषाओं की तीन अवस्थाएँ हैं। विभिन्न देशों की प्राचीन भाषाएँ जिनका अध्ययन और वर्गीकरण पर्याप्त सामग्री के अभाव में नहीं हो सका है, पहली अवस्था में है। इनका अस्तित्व इनमें उपलब्ध प्राचीन शिलालेखो, सिक्कों और हस्तलिखित पुस्तकों में अभी सुरक्षित है। मेसोपोटेमिया की पुरानी भाषा ‘सुमेरीय’ तथा इटली की प्राचीन भाषा ‘एत्रस्कन’ इसी तरह की भाषाएँ हैं। दूसरी अवस्था में ऐसी आधुनिक भाषाएँ हैं, जिनका सम्यक् शोध के अभाव में अध्ययन और विभाजन प्रचुर सामग्री के होते हुए भी नहीं हो सका है। बास्क, बुशमन, जापानी, कोरियाई, अंडमानी आदि भाषाएँ इसी अवस्था में हैं। तीसरी अवस्था की भाषाओं में पर्याप्त सामग्री है और उनका अध्ययन एवं वर्गीकरण हो चुका है। ग्रीक, अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि अनेक विकसित एवं समृद्ध भाषाएँ इसके अन्तर्गत हैं। .

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भांड

भांड (उर्दू:, पंजाबी: ਭਾਂਡ, अंग्रेज़ी: Bhand) उत्तर भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बंगलादेश के पारम्परिक समाजों में लोक-मनोरंजन करने वाले लोगों को कहा जाता है जो समय के साथ एक भिन्न जाति बन चुकी है। भांडों द्वारा किये प्रदर्शन को कभी-कभी स्वांग कहा जाता है।, Manohar Laxman Varadpande, Abhinav Publications, 1992, ISBN 978-81-7017-278-9,...

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भांड पाथेर

भांड पाथेर कश्मीर की लोक कला है। भांड पाथेर सदियों से कश्मीर के लोगों का मनोरंजन करती आ रही है। जब प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का चलन नहीं था तो उस समय कश्मीरी समाज में सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संदेश प्रसारित करने का अपना अनोखा तरीका था। व्यंग्यात्मक लहजे में पेश की जाने वाली कश्मीर की लोक कला 'बांध पाथेर' राजनीतिक प्रतिरोध और ज्वलंत मुद्दों को अपने अनोखे अंदाज में उठाती थी। लोक कला के इस माध्यम में घाटी के संघर्ष, भ्रष्टाचार और दूसरी सामाजिक बुराइयों का चित्रण किया जाता है। इसके साथ ही साथ ये समाज की कड़वी सच्चाइयों और शिकायतों को भी सरकार और लोगों के सामने लाती है। भांड पाथेर के नाटकों में अधिकांशतः विचारोत्तेजक वेश-भूषा, संवादों, भाव-भंगिमाओं और भावनाओं का प्रयोग किया जाता है। ये नाटक घंटों लोगों का ध्यान बांधे रखते हैं। लोकप्रियता भांड पाथेर में आमतौर पर कथ्य का अहसास कराने वाले पोशाकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे लोगों का घंटों ध्यान बंधा रहता है। भांड पाथेर हिंदू शासकों के समय में हिंदू मंदिरों में खेला जाता था। कल्हण अपनी रचना 'राजतरंगिणी' में उस समय में इसकी लोकप्रियता का वर्णन करते हैं। .

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भिम्बेर

भिम्बेर (अंग्रेज़ी: Bhimber, उर्दु: بھمبر‎) आज़ाद कश्मीर के भिम्बेर ज़िले का प्रमुख शहर है। यह पाकिस्तान और कश्मीर की सीमा के समीप स्थित है और भारत इसे अपना भाग मानता है। भिम्बेर मीरपुर से ४८ किमी और श्रीनगर से २४१ किमी दूर स्थित है। यहाँ के अधिकतर लोग पंजाबी और डोगरी (पहाड़ी) की उपभाषाएँ बोलते हैं। .

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भूदृश्य वास्तुकला

भूदृष्य वास्तुकला का एक उदाहरण - न्यूयार्क का केन्द्रीय पार्क भूदृश्य वास्तुकला (Landscape Architecture) स्थल को मानव उपयोग और आमोद के लिये सुव्यस्थित करने और उपयुक्त बनाने की सृजनात्मक कला है। इसका उद्देश्य संपूर्ण विन्यास के फलस्वरूप, मानव मस्तिष्क को अत्यधिक प्रभावित करना और स्थल या संरचना से संबद्ध भावनात्मक प्रेरणाओं को संतुष्ट करना है, ताकि लोग अत्यधिक प्रशंसा करें। इसके अतिरिक्त भूदृश्य वस्तुकला के अंतर्गत भूदृश्य इंजीनियरी, भूदृश्य उद्यानकर्म और भलीभाँति आकल्पित चित्र विचित्र पार्क भी भूदृश्य वास्तुकला में सम्मिलित हैं। .

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मदल पंजी

मदल पंजी (Palm-leaf Chronicles) ओडिशा के जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ का इतिहास है। इसमें भगवान जगन्नाथ और जगन्नाथ मन्दिर से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन है। इस पंजी के आरम्भ होने की वास्तविक तिथि ज्ञात नहीं है किन्तु ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह १३वीं या १४वीं शती में आरम्भ हुई होगी। यह पुस्तक साहित्यिक दृष्टि से अनूठी है। इसकी तुलना श्रीलंका के राजवंशम् से, कश्मीर के राजतरंगिणी से और असम के बुरुंजी से की जा सकती है। इसमें गद्य का प्रयोग हुआ है। .

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मध्य हिमालय

मध्य हिमालय या लघु हिमालय (अंग्रेजी: Lower Himalaya या Lesser Himalaya) हिमालय पर्वत तंत्र की एक श्रेणी है जो महान हिमालय के दक्षिण में और शिवालिक श्रेणी के उत्तर में स्थित है। इसे क्षेत्रीय रूप से कई नामों से जाना जाता है जैसे कुमाऊँ में धौलाधार श्रेणी, नेपाल में महाभारत श्रेणी इत्यादि। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून नमक घाटियाँ पायी जाती है। मध्य हिमालय और महान हिमालय के बीच दो प्रमुख घाटियाँ स्थित हैं, पश्चिम में कश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। श्रेणी:हिमालय.

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मनाली, हिमाचल प्रदेश

मनाली (ऊंचाई 1,950 मीटर या 6,398 फीट) कुल्लू घाटी के उत्तरी छोर के निकट व्यास नदी की घाटी में स्थित, भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य की पहाड़ियों का एक महत्वपूर्ण पर्वतीय स्थल (हिल स्टेशन) है। प्रशासकीय तौर पर मनाली कुल्लू जिले का एक हिस्सा है, जिसकी जनसंख्या लगभग 30,000 है। यह छोटा सा शहर लद्दाख और वहां से होते हुए काराकोरम मार्ग के आगे तारीम बेसिन में यारकंद और ख़ोतान तक के एक अतिप्राचीन व्यापार मार्ग का शुरुआत था। मनाली और उसके आस-पास के क्षेत्र भारतीय संस्कृति और विरासत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसे सप्तर्षि या सात ऋषियों का घर बताया गया है। .

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मर्ग

हिमाचल प्रदेश में खज्जियार मर्ग स्विट्ज़रलैंड में ऐल्प पर्वतों में एक मर्ग मर्ग या केदार या चारागाह ऐसे मैदान को कहते हैं जिसमें वृक्षों की बजाए घास व अन्य छोटे पौधे ही उग रहें हों। इसमें अक्सर मवेशी चराए जाते हैं।, Ricky Evans, Karen Evans, pp.

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महमूद ग़ज़नवी

महमूद ग़ज़नवी (971-1030) मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित गज़नवी वंश का एक महत्वपूर्ण शासक था जो पूर्वी ईरान भूमि में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता है। वह तुर्क मूल का था और अपने समकालीन (और बाद के) सल्जूक़ तुर्कों की तरह पूर्व में एक सुन्नी इस्लामी साम्राज्य बनाने में सफल हुआ। उसके द्वारा जीते गए प्रदेशों में आज का पूर्वी ईरान, अफगानिस्तान और संलग्न मध्य-एशिया (सम्मिलिलित रूप से ख़ोरासान), पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत शामिल थे। उनके युद्धों में फ़ातिमी सुल्तानों (शिया), काबुल शाहिया राजाओं (हिन्दू) और कश्मीर का नाम प्रमुखता से आता है। भारत में इस्लामी शासन लाने और आक्रमण के दौरान लूटपाट मचाने के कारण भारतीय हिन्दू समाज में उनको एक आक्रामक शासक के रूप में जाना जाता है। वह पिता के वंश से तुर्क था पर उसने फ़ारसी भाषा के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाँलांकि उसके दरबारी कवि फ़िरदौसी ने शाहनामे की रचना की पर वो हमेशा कवि का समर्थक नहीं रहा था। ग़ज़नी, जो मध्य अफ़गानिस्तान में स्थित एक छोटा शहर था, को उन्होंने साम्राज्य के धनी और प्रांतीय शहर के रूप में बदल गया। बग़दाद के इस्लामी (अब्बासी) ख़लीफ़ा ने उनको सुल्तान की पदवी दी। .

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महमूद गामी

महमूद गामी (1765–1855) कश्मीर प्रान्त के प्रमुख कवि थे। उन्होंने कश्मीरी कविता मे मसनवी और गज़ल लाई। .

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महमूदा अली शाह

महमूदा अली शाह एक भारतीय शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता और सरकारी कॉलेज ऑफ विमेन, एमएए रोड श्रीनगर की प्रधान अध्यापक थी। वह एक करीबी दोस्त और सहयोगी थी इंदिरा गांधी की। उन्होंने शिक्षा के महत्व और उनके सामाजिक सशक्तिकरण के लिए कश्मीर की महिलाओं के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए काम किया है। भारत सरकार ने भारतीय शिक्षा में उनके योगदान के लिए, २००६ में पद्म श्री के चौथे उच्चतम नागरिक सम्मान से उन्हें सम्मानित किया। मेहमूदा अली शाह का जन्म १९२० में दुलहान बेगम और सैयद अहमद अली शाह के घर हुआ। उनके तीन भाई थे। स्थानीय मिशनरी गर्ल्स स्कूल में उनकी पढ़ाई की फिर उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से कला (बीए) में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री (एमए)। वह पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर की पहली महिला स्नातकोत्तर के रूप में जानी जाती है। महमूदा श्री नगर लौट आए और एक शिक्षक के रूप में माईसुमा में एक स्थानीय स्कूल में पड़ने लगी फिर तत्कालीन महाराजा द्वारा बारामूला में नया विद्यालय खोला गया और उन्हें प्रमुख शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। वहाँ उन्होंने काफ़ी सालो तक काम किया। और बाद में वह सरकारी कॉलेज ऑफ विमेन, एमएए रोड श्रीनगर की प्रधान अध्यापक बन गई। ११ मार्च २०१४ को ९४ वर्ष की आयु में श्री नगर में उनके निवास पर निधन हो गया। .

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महाराज गुलाब सिंह

महाराज गुलाब सिंह(शाहमुखी: ﮔﻼﺏ ﺳﻨﮕﮫ ﮈﻭﮔﺮﺍ; गुरुमुखी: ਮਹਾਰਾਜਾ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ) (१७९२-१८५७) डोगरा राजवंश एवं जम्मू और कश्मीर राजघराने के संस्थापक और जम्मू और कश्मीर रियासत के पहले महाराज थे। उनका जन्म सन् १७९२ में जामवल कुल के एक डोगरा राजपूत परिवार में हुआ था, जो जम्मू के राजपरिवार से ताल्लुख़ रखता था। उन्हों ने अपनी क्षत्रिय जीवन की शुरुआत जम्मू रियासल के अधीपति, महाराज रणजीत सिंह की सेना में एक पैदल सैनिक के रूप में की थी पर आगे चल कर वे स्वतंत्र जम्मू और कश्मीर रियासत के पहले स्वतंत्र नरेश बन कर उबरे थे। उन्हें,सिख साम्राज्य के अधिपत्य, "जम्मू के राजा" का पद राजा जीत सिंह से उत्तराधिकृत किया था और प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध में, जिसमें उन्होंने अंग्रेज़ों के साथ संधी कर ली थी, सिख साम्राज्य की पराजय के बाद स्वतंत्र जम्मू और कश्मीर रियासत की स्थापना की और महाराज के पद पर ख़ुद को विराजमान किया था। १८४६ की अमृतसर संधि के आधार पर आधिकारिक तौर पर महाराज ने ७५,००,००० नानकशाही रुपययों के भुकतान के बाद कश्मीर का पूरा भूखंड अंग्रेज़ों से खरीद लिया था जिसे अंग्रेज़ों ने लाहौर संधि द्वारा हासिल की थी। इसके अलावा भी महाराज गुलाब सिंह ने अपनी जीवनकाल के दौरान कई प्रदेशों और रियासतों पर फ़तह हासिल किया था। .

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महावंश

महावंश एक महान इतिहास के लिखि पद्य है। महावंश (शाब्दिक अर्थ: महान इतिहास) पालि भाषा में लिखी पद्य रचना है। इसमें श्रीलंका के राजाओं का वर्नन है। इसमें कलिंग के राजा विजय (५४३ ईसा पूर्व) के श्रीलंका आगमन से लेकर राजा महासेन (334–361) तक की अवधि का वर्णन है। यह सिंहल का प्रसिद्ध ऐतिहासिक महाकाव्य है। भारत का शायद ही कोई प्रदेश हो, जिसका इतिहास उतना सुरक्षित हो, जितना सिंहल का; डब्ल्यू गेगर की इस सम्मति का आधार महावंस ही है। महान लोगों के वंश का परिचय करानेवाला होने से तथा स्वयं भी महान होने से ही इसका नाम हुआ "महावंस" (महावंस टीका)। इस टीका ग्रंथ की रचना "महानाम" स्थविर के हाथों हुई। आप दीघसंद सेनापति के बनाए विहार में रहते थे (महावंस टीका, पृ. 502)। दीघसंद सेनापति राजा देवानांप्रिय तिष्य का सेनापति था। "महावंस" पाँचवीं शताब्दी ई पू से चौथी शताब्दी ई तक लगभग साढ़े आठ सौ वर्षों का लेखा है। उसमें तथागत के तीन बार लंका आगमन का, तीनों बौद्ध संगीतियों का, विजय के लंका जीतने का, देवानांप्रिय तिष्य के राज्यकाल में अशोकपुत्र महेंद्र के लंका आने का, मगध से भिन्न भिन्न देशों में बौद्ध धर्म प्रचारार्थ भिक्षुओं के जाने का तथा बोधि वृक्ष की शाखा सहित महेंद्र स्थविर की बहन अशोकपुत्री संघमित्रा के लंका आने का वर्णन है। सिंहल के महापराक्रमी राजा दुष्टाग्रामणी से लेकर महासेन तक अनेक राजाओं और उनके राज्य काल का वर्णन है। इस प्रकार कहने को "महावंस" केवल सिंहल का इतिहासग्रंथ है, लेकिन वस्तुत: यह सारे भारतीय इतिहास की मूल उपादान सामग्री से भरा पड़ा है। "महावंस" की कथा महासेन के समय (325-352 ई) तक समाप्त हो जाती है। किंतु सिंहल द्वीप में इस "महावंस" का लिखा जाना आगे जारी रहा है। यह आगे का हिस्सा चूलवंस कहा जाता है। "महावंस" सैंतीसवें परिच्छेद की पचासवीं गाथा पर पहुँचकर एकाएक समाप्त कर दिया गया है। छत्तीस परिच्छेदों में प्रत्येक परिच्छेद के अंत में "सुजनों के प्रसाद और वैराग्य के लिये रचित महावंस का......परिच्छेद" शब्द आते हैं। सैंतीसवाँ परिच्छेद अधूरा ही समाप्त है। जिस रचयिता ने महावंस को आगे जारी रखा उसने इसी परिच्छेद में 198 गाथाएँ और जोड़कर इस परिच्छेद को "सात राजा" शीर्षक दिया। बाद के हर इतिहासलेखक ने अपने हिस्से के इतिहास को किसी परिच्छेद पर समाप्त न कर अगले परिच्छेद की भी कुछ गाथाएँ इसी अभिप्राय से लिखी प्रतीत होती हैं कि जातीय इतिहास को सुरक्षित रखने की यह परंपरा अक्षुण्ण बनी रहे। महानाम की मृत्यु के बाद महासेन (302 ई) के समय से दंबदेनिय के पंडित पराक्रमबाहु (1240-75) तक का महावंस धम्मकीर्ति द्वितीय ने लिखा। यह मत विवादास्पद है। उसके बाद से कीर्ति राजसिंह की मृत्यु (1815) के समय तक का इतिहास हिक्कडुवे सुमंगलाचार्य तथा बहुबंतुडावे पंडित देवरक्षित ने। 1833 में दोनों विद्वानों ने "महावंस"का एक सिंहली अनुवाद भी छापा। 1815 से 1935 तक का इतिहास यगिरल प्रज्ञानंद नायक स्थविर ने पूर्व परंपरा के अनुसार 1936 में प्रकाशित कराया। मूल महावंस की टीका के रचयिता का नाम भी महानाम है। किसी किसी का कहना है कि महावंस का रचयिता और टीकाकार एक ही है। पर यह मत मान्य नहीं हो सकता। महावंस टीकाकार ने अपनी टीका को "वंसत्थप्पकासिनी" नाम दिया है। इसकी रचना सातवीं आठवीं शताब्दी में हुई होगी। और स्वयं महावंस की? इसकी रचना महावंस टीका से एक दो शताब्दी पहले। धातुसेन नरेश का समय छठी शताब्दी है, उसी के आस पास इस महाकाव्य की रचना होनी चाहिए। .

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महिम भट्ट

महिम भट्ट सम्पादन महिम भट्ट "वक्रोक्तिजीवित" के रचयिता "कुंतक" के अनंतर ध्वनि सिद्धांत के प्रबल विरोधी के रूप में आचार्य महिम भट्ट का नाम संस्कृत साहित्य मे प्रथित है। इनका ग्रंथ "व्यक्तिविवेक" तीन विमर्शों में लिखा गया है। सभी प्रकार की ध्वनियों का अनुमान में अंतर्भाव करने के उद्देश्य से ही इस ग्रंथ की रचना की गई है। मंगलाचरण में ही महिम भट्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है। इसके प्रथम विमर्श में ध्वनि का लक्षण तथा उसका अनुमान में अंतर्भाव, द्वितीय में शब्द और अर्थसंबंधी अनौचित्य का विवेचन और तृतीय विमर्श में "ध्वन्यालोक" में दिखाए गए ध्वनि के चालीस उदाहरणों को अनुमान में ही गतार्थ किया गया है। ध्वनिकार ने जिस प्रतीयमान अर्थ को अर्थात् व्यंग्य को व्यंजनावृत्ति का व्यापार और काव्य में सर्वप्रधान चमत्कारकारक तत्व बताया है, महिम भट्ट उसे अनुमान का विषय बताते हैं। वे शब्द की व्यंजनावृत्ति को भी अस्वीकार करते हैं और केवल अभिधावृत्ति ही मानते हैं। ध्वनिकार ने शब्द के तीन अर्थ कहे हैं -- अभिधेय, लक्ष्य और व्यंग्य। किंतु महिम दो ही अर्थ मानते हैं, एक अभिधेय और दूसरा अनुमेय; यथा--;:"अर्थोऽपि द्विविधो वाच्योऽनुमेयश्च"। महिम भट्ट उल्लेखनीय तार्किक तथा प्रखर मेधावी आलोचक थे। ध्वनि का खंडन करते हुए इन्होंने रस को अनुमेय सिद्ध किया है और इस प्रकार आचार्य शंकुक के अनुमितिवाद को और आगे बढ़ाया है। काव्य में "रस" को ये प्राणभूत मानते हैं और रस, भाव तथा प्रकृति के औचित्य को भी स्वीकार करते हैं। इनके अनुसार काव्य का सर्वातिशायी दोष है अनौचित्य। इसमें काव्य के समस्त दोषों का अंतर्भाव हो जाता है। रस की अप्रतीति ही इस अनौचित्य का सामान्य रूप है जो काव्य की मुख्य भावनाओं से और रस से संबद्ध होने के कारण "अंतरंग" तथा शब्दगत होने से "बहिरंग" रूपों में व्यक्त होता है। अनौचित्य की इस प्रकार व्याख्या करते हुए महिम भट्ट, काव्यगत दोषों का आलोचनात्मक दृष्टि से सूक्ष्म और प्रांजल विवेचन करनेवालों में पूर्ववर्ती ठहरते हैं। इन्होंने पाँच प्रकार के दोषों का प्रतिपादन किया है, जिन्हें मम्मट ने भी स्वीकार कर लिया है। महिम भट्ट कश्मीरी थे। इनकी उपाधि "राजानक" थी। इनके पिता का नाम श्रीधैर्य था और ये महाकवि श्यामल के शिष्य थे। "व्यक्तिविवेक" के अंत में महिम ने अपना यह परिचय दिया है। क्षेमेंद्र ने अपने ग्रंथ "औचित्य-विचार-चर्चा" और "सुवृत्ततिलक" में श्यामल के पद्य उद्धृत किए हैं। राजानक रुय्यक ने "व्यक्तिविवेक व्याख्या" नाम से महिम के ग्रंथ की टीका की है और आचार्य मम्मट ने "काव्यप्रकाश" के पाँचवे उल्लास में "व्यक्तिविवेक" के विचारों का खंडन किया है। अत: महिम भट्ट क्षेमेंद्र, मम्मट और रुय्यक के पूर्ववर्ती तथा आनंदवर्धन और अभिनव गुप्त के परवर्ती ठहरते हैं। इस प्रकार "व्यक्तिविवेक" और उसके निर्माता महिम भट्ट का काल ईसा की 11वीं शताब्दी का प्रारंभ निश्चित होता है। श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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मानसबल झील

मानसबल​ झील या मनसबल झील जम्मू व कश्मीर राज्य में श्रीनगर से उत्तर में स्थित एक पर्वतीय झील है। इसके किनारे तीन बस्तियाँ हैं - जरोकबल, कोंडाबल और गान्दरबल। इसके स्वच्छ पानी के किनारे कमल के फूल उगे हुए हैं और १३ मीटर (४३ फ़ुट​) की अधिकतम गहराई के साथ यह जम्मू-कश्मीर की सबसे गहरी झील मानी जाती है। .

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मारखोर

मारखोर मारखोर एक पाकिस्तानी टंदोह है जो आम बकरे से मिलता जुलता है। .

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मार्तंड मंदिर, कश्मीर

प्राचीन मार्तण्ड मंदिर के भग्नावेष, चित्र:जॉन बुर्के, १८६८ मार्तंड मंदिर कश्मीर के दक्षिणी भाग में अनंतनाग से पहलगाम के रास्ते में मार्तण्ड (वर्तमान बिगड़ कर बने मटन) नामक स्थान पर है। इस मंदिर में एक बड़ा सरोवर भी है, जिसमें मछलियां हैं। इसकी संभावित निर्माण तिथि ४९०-५५५ ई. रही होगी। निर्माण श्रेणी:कश्मीर श्रेणी:सूर्य मंदिर.

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मंजरी चतुर्वेदी

मंजरी चतुर्वेदी (जन्म ९ दिसंबर, १९७४) भारत के एक लोकप्रिय सूफी कथक नर्तक है। वह लखनऊ घराना से संबंधित रखती है। वह भारतीय शास्त्रीय नृत्य का एक नया कला बनाने के लिए जानी जाती है जो सूफी कथक हैं। .

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मंखक

मंखक, संस्कृत के महाकवि थे। कश्मीर में सिंधु और वितस्ता के संगम पर महाराज प्रवरसेन द्वारा प्रवरपुर नामक नगर बसाया गया था। यह नगर वर्तमान श्रीनगर से 125 मील उत्तर पूर्व की ओर है। यहीं महाकवि मंखक का जनम हुआ था। पितामह मन्मथ बड़े शिवभक्त थे। पिता विश्ववर्त भी उसी प्रकार दानी, यशस्वी एवं शिवभक्त थे। वे कश्मीर नरेश सुस्सल के यहाँ राजवैद्य तथा सभाकवि थे। मंखक से बड़े तीन भाई थे श्रृंगार, भृंग तथा लंक या अलंकार। तीनों महाराज सुस्सल के यहाँ उच्च पद पर प्रतिष्ठित थे। मंखक के व्याकरण, साहित्य, वैद्यक, ज्योतिष तथा अन्य लक्षण ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त किया था। आचार्य रुय्यक उनके गुरु थे। गुरु के अलंकारसर्वस्व ग्रंथ पर मंखक ने वृत्ति लिखी थी। .

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मकर संक्रान्ति

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। एक दिन का अंतर लौंद वर्ष के ३६६ दिन का होने ही वजह से होता है | मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति गलत है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है । उत्तरायण का प्रारंभ २१ या २२ दिसम्बर को होता है | लगभग १८०० वर्ष पूर्व यह स्थिति उत्तरायण की स्थिति के साथ ही होती थी, संभव है की इसी वजह से इसको व उत्तरायण को कुछ स्थानों पर एक ही समझा जाता है | तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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मुकुल भट्ट

मुकुल भट्ट कश्मीर के यशस्वी विद्वान एवं सिद्ध आचार्य कल्लट के पुत्र थे। राजतरंगिणी के अनुसार भट्ट कल्लट कश्मीर नरेश अवंतिवर्मा के शासनकाल में वर्तमान थे। अवंतिवर्मा का समय सन् ८५७-८८४ ई० मान्य है अत: मुकुल भट्ट का समय नवीं शताब्दी का अंतिम चरण और दसवीं का प्रारंभ मान्य होता है। मुकुल भट्ट ने 'अभिधावृत्तिमातृका' नाम का ग्रंथ लिखा है जिसमें कुल १५ कारिकाएँ हैं। इन कारिकाओं पर विस्तृत वृत्ति भी मुकुल भट्ट ने ही लिखी है। इस छोटे किंतु महत्वपूर्ण ग्रंथ में वाच्यार्थ (मुख्यार्थ) और लक्ष्यार्थ का तथा अभिधा और लक्षणा मात्र का निरूपण किया गया है। यह निरूपण विस्तृत एवं समीक्षात्मक है। अभिनव भारती में भी मुकुल भट्ट की कारिकाएँ उद्धृत हैं। काव्यप्रकाश में भी यत्र तत्र मुकुल भट्ट के विचार पूर्व पक्ष के रूप में उद्धृत किए गए हैं। उद्भटाचार्य के 'काव्यालंकार सारसंग्रह' पर 'लघुवृत्ति' व्याख्याकार प्रतिहारेंदुराज या इंदुराज ने अपनी व्याख्या के अंतिम पद्य में अपने आचार्य के रूप मे मुकुल भट्ट का गौरव के साथ उल्लेख किया है। यह प्रतिहारेंदुराज कोंकण निवासी था। मुकुल भट्ट द्वारा रचित अन्य कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है, फिर भी इस छोटे से ग्रंथ 'अभिधावृत्तिमातृका' द्वारा साहित्य क्षेत्र में उनका नाम उल्लेखनीय एवं समादरणीय आचार्यों में परिगणित है। श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार.

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मेधातिथि

मेधातिथि मनुस्मृति के प्राचीनतम भाष्यकार हैं। उन्होने मनुस्मृति पर 'मनुभाष्य' नामक एक विशद टीका लिखी है। अपने ग्रंथ में ये कुमारिल का उल्लेख करते हैं अत: इनका जीवनकाल सातवीं शताब्दी क बाद का होना चाहिए। मनुस्मृति पर लिखी मिताक्षरा (१०७६ से ११२१) में इनका उल्लेख है। अत: डॉ० गंगानाथ झा के अनुसार इनका काल नवीं शताब्दी ठहरता है। डॉ० बुहलर इनको कश्मीर का तथा जॉली दक्षिण का मानते हैं। केवल इतना ही इनके ग्रंथ के आधार पर स्वीकार किया जा सकता है कि ये कश्मीर की बोली तथा कश्मीर और पंजाब के रीति रिवाजों से पूर्णत: परिचित थे। इनका एक अन्य ग्रंथ 'स्मृति विवेक' भी था। .

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मोती लाल केम्मू

मोती लाल केम्मू (मोती लाल क्यमू) (1933-) कश्मीर प्रान्त के प्रमुख लेखक और नाटककार हैं। श्रेणी:कश्मीर के लोग श्रेणी:श्रीनगर के लोग श्रेणी:कश्मीरी साहित्यकार.

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मोमिन

मुहम्मद मोमिन खाँ (1800-1851) भारत के उर्दू कवि थे। उन्होने गजलें लिखीं हैं। कश्मीरी थे पर वे दिल्ली में आ बसे थे। उस समय शाह आलम बादशाह थे और इनके पितामह शाही हकीमों में नियत हो गए। अँग्रेजी राज्य में पेंशन मिलने लगा, जो मोमिस को भी मिलती थी। इनका जन्म दिल्ली में सन्‌ 1800 ई. में हुआ। फारसी -अरबी की शिक्षा ग्रहण कर हकीमी और मजूम में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। छोटेपन ही से यह कविता करने लगे। तारीख कहने में यह बड़े निपुण थे। अपनी मृत्यु की तारीख इन्होंने कही थी-दस्तों बाजू बशिकस्त। इससे सन्‌ 1852 ई. निकलता है और इसी वर्ष यह कोठे से गिरकर मर गए। इनमें अहंकार की मात्रा अधिक थी, इसी से जब राजा कपूरथला ने इन्हें तीन सौ रुपए मासिक पर अपने यहाँ बुलाया तब यह केवल इस कारण वहाँ नहीं गए कि उतना ही वेतन एक गवैए को भी मिलता था। मोमिन बड़े सुंदर, प्रेमी, मनमौजी तथा शौकीन प्रकृति के थे। सुंदर वस्त्रों तथा सुगंध से प्रेम था। इनकी कविता में इनकी इस प्रकृति तथा सौंदर्य का प्रभाव लक्षित होता है। इसमें तत्सामयिक दिल्ली का रंग तथा विशेषताएँ भी हैं अर्थात्‌ इसमें अत्यंत सरल, रंगीन शेर भी हैं और क्लिष्ट उलझे हुए भी। इनकी गजलें भी लोकप्रिय हुई। इन्होंने बहुत से अच्छे वासोख्त भी लिखे हैं। वासोख्त लंबी कविता होत है जिसमें प्रेमी अपने प्रेमिका की निन्दा और शिकायत बड़े कठोर शब्दों में करता है। श्रेणी:उर्दू शायर.

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यशोवर्मन (कन्नौज नरेश)

हिमालय.jpg himalaya यशोवर्मन का राज्यकाल ७०० से ७४० ई० के बीच में रखा जा सकता है। कन्नौज उसकी राजधानी थी। कान्यकुब्ज (कन्नौज) पर इसके पहले हर्ष का शासन था जो बिना उत्तराधिकारी छोड़े ही मर गये जिससे शक्ति का 'निर्वात' पैदा हुआ। यह भी संभ्भावना है कि उसे राज्याधिकार इससे पहले ही ६९० ई० के लगभग मिला हो। यशोवर्मन्‌ के वंश और उसके प्रारंभिक जीवन के विषय में कुछ निश्चयात्मक नहीं कहा जा सकता। केवल वर्मन्‌ नामांत के आधार पर उसे मौखरि वंश से संबंधित नहीं किया जा सकता। जैन ग्रंथ बप्प भट्ट, सूरिचरित और प्रभावक चरित में उसे चंद्रगुप्त मौर्य का वंशज कहा गया है किंतु यह संदिग्ध है। उसका नालंदा अभिलेख इस विषय पर मौन है। गउडवहो में उसे चंद्रवंशी क्षत्रिय कहा गया है। गउडवहो में यशोवर्मन्‌ की विजययात्रा का वर्णन है। सर्वप्रथम इसके बाद बंग के नरेश ने उसकी अधीनता स्वीकार की। दक्षिणी पठार के एक नरेश को अधीन बनाता हुआ, मलय पर्वत को पार कर वह समुद्रतट तक पहुँचा। उसने पारसीकों (पारसी) को पराजित किया और पश्चिमी घाट के दुर्गम प्रदेशों से भी कर वसूल किया। नर्मदा नदी पहुँचकर, समुद्रतट के समीप से वह मरू देश पहुँचा। तत्पश्चात्‌ श्रीकंठ (थानेश्वर) और कुरूक्षेत्र होते हुए वह अयोध्या गया। मंदर पर्वत पर रहनेवालों को अधीन बनाता हुआ वह हिमालय पहुँचा और अपनी राजधानी कन्नौज लौटा। इस विरण में परंपरागत दिग्विजय का अनुसरण दिखलाई पड़ता है। पराजित राजाओं का नाम न देने के कारण वर्णन संदिग्ध लगता है। यदि मगध के पराजित नरेश को ही गौड़ के नरेश स्वीकार कर लिया जाय तो भी इस मुख्य घटना को ग्रंथ में जो स्थान दिया गया है वह अत्यल्प है। किंतु उस युग की राजनीतिक परिस्थिति में ऐसी विजयों को असंभव कहकर नहीं छोड़ा जा सकता। अन्य प्रमाणों से विभिन्न दिशाओं में यशोवर्मन्‌ की कुछ विजयों का संकेत और समर्थन प्राप्त होता है। नालंदा के अभिलेख में भी उसकी प्रभुता का उल्लेख है। अभिलेख का प्राप्तिस्थान मगध पर उसके अधिकार का प्रमाण है। चालुक्य अभिलेखों में सकलोत्तरापथनाथ के रूप में संभवत: उसी का निर्देश है और उसी ने चालुक्य युवराज विजयादित्य को बंदी बनाया था। अरबों का कन्नौज पर आक्रमण सभवत: उसी के कारण विफल हुआ। कश्मीर के ललितादित्य से भी आरंभ में उसके संबंध मैत्रीपूर्ण थे और संभवत: दोनों ने अरब और तिब्बत के विरूद्ध चीन की सहायता चाही हो किंतु शीघ्र ही ललितादित्य और यशोवर्मन्‌ की महत्वाकांक्षाओं के फलस्वरूप दीर्घकालीन संघर्ष हुआ। संधि के प्रयत्न असफल हुए और यशोंवर्मन्‌ पराजित हुआ। संभवत: युद्ध में यशोवर्मन्‌ की मृत्यु नहीं हुई थी, फिर भी इतिहास के लिये उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। यशेवर्मन्‌ ने भवभूति और वाक्पतिराज जैसे प्रसिद्ध कवियों को आश्रय दिया था। वह स्वयं कवि था। सुभाषित ग्रथों के कुछ पद्यों और रामाभ्युदय नाटक का रचयिता कहा जाता है। उसने मगध में अपने नाम से नगर बसाया था। उसका यश गउडवहो और राजतरंगिणी के अतिरिक्त जैन ग्रंथ प्रभावक चरित, प्रबंधकोष और बप्पभट्ट चरित एवं उसके नालंदा के अभिलेख में परिलक्षित होता है। कश्मीर से यशोवर्मा के नाम के सिक्के प्राप्त होते हैं। यशोवर्मा के संबंध में विद्वानों ने अटकलबाजियाँ लगाई थीं। कुछ ने उसे कन्नौज का यशोवर्मन्‌ ही माना है। किंतु अब इसमें संदेह नहीं रह गया है कि यशोवर्मा कश्मीर के उत्पलवंशीय नरेश शंकरवर्मन का ही दूसरा नाम था। .

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यारकन्द ज़िला

चीन के शिंजियांग प्रांत के काश्गर विभाग (पीला रंग) के अन्दर स्थित यारकन्द ज़िला (गुलाबी रंग) यारकन्द शहर में एक सड़क यारकन्द ज़िला (उइग़ुर:, चीनी: 莎车县, अंग्रेज़ी: Yarkand) चीन के शिंजियांग प्रांत के काश्गर विभाग में स्थित एक ज़िला है। इसका क्षेत्रफल ८,९६९ वर्ग किमी है और सन् २००३ की जनगणना में इसकी आबादी ३,७३,४९२ अनुमानित की गई थी। इसकी राजधानी यारकंद नाम का ही एक ऐतिहासिक शहर है जिसका भारतीय उपमहाद्वीप के साथ गहरा सांस्कृतिक और व्यापारिक सम्बन्ध रहा है। यारकन्द तारिम द्रोणी और टकलामकान रेगिस्तान के दक्षिणी छोर पर स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) क्षेत्र है जो अपना जल कुनलुन पर्वतों से उत्तर की ओर उतरने वाली यारकन्द नदी से प्राप्त करता है। इसके मरूद्यान (ओएसिस) का क्षेत्रफल लगभग ३,२१० वर्ग किमी है लेकिन कभी इस से ज़्यादा हुआ करता था। तीसरी सदी ईस्वी में यहाँ रेगिस्तान के फैलने से यह उपजाऊ इलाक़ा थोड़ा घट गया। यारकन्द में अधिकतर उइग़ुर लोग बसते हैं। यहाँ कपास, गेंहू, मक्की, अनार, ख़ुबानी, अख़रोट और नाशपाती उगाए जाते हैं। इस ज़िले के ऊँचे इलाक़ों में याक और भेड़ पाले जाते हैं। यहाँ की धरती के नीचे बहुत से मूल्यवान खनिज मौजूद हैं, जैसे की पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, सोना, ताम्बा, सीसा और कोयला। .

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युद्धविराम

सीनाई में इस्राइल और मिस्र के सिपहसालारों का मिलना युद्धविराम या अवहार या जंगबंदी (ceasefire या truce) किसी युद्ध में जूझ रहे पक्षों में आपसी समझौते से लड़ाई रोक देने को कहते हैं। जंग की यह रुकावट स्थाई या अस्थाई रूप से की गई हो सकती है। अक्सर युद्धविराम पक्षों में किसी औपचारिक संधि का हिस्सा होते है लेकिन यह अनौपचारिक रूप से बिना किसी समझौते पर हस्ताक्षर करे भी हो सकते हैं।, British Broadcasting Corporation Monitoring Service, British Broadcasting Corporation, 1986,...

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ये जवानी है दीवानी

ये जवनी है दीवानी २०१३ में प्रकाशित बॉलीवुड की हास्यप्रधान और युवा पसन्द फिल्म है जिसके निर्माता करण जौहर हैं और यह अयान मुखर्जी द्वारा निर्देशित है। इस फील्म में मुख्य भूमिकाओं में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण हैं। २००८ की फील्म बचना ऐ हसीनो के बाद एक साथ प्रथम फील्म है। आदित्य रॉय कपूर और कल्की केकलां सहकलाकार हैं। पहले इसे मार्च २०१३ में प्रदर्शित किया जाना तय हुआ था लेकिन बाद में ३१ मई २०१३ को प्रदर्शित की गई। .

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रत्नाकर स्वामी

रत्नाकर स्वामी संस्कृत के कवि थे। कश्मीर में अवंतिवर्मा के दरबार में मुक्ताकण, शिवस्वामी और आनंदवर्धन के साथ रत्नाकर का भी नाम लिया जाता है। अवंतिवर्मा का शासनकाल ८५५ से ८८४ ई. माना जाता है अत: इनका भी यही काल होना चाहिए। 'ध्वनि गाथा पंजिका', 'वक्रोक्तिपंजाशिका' तथा ५० सर्गोवाले एक बृहत्, आलंकारिका शैली में लिखे गए 'हरविजय' नामक महाकाव्य के लेखक के रूप में इनकी प्रसिद्धि है। श्रेणी:संस्कृत कवि.

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रसूल मीर

रसूल मीर (देहान्त 1870) कश्मीर प्रान्त के प्रमुख कवि थे। उनका जन्म डोरू शाहबाद (अनन्तनाग जिले) में हुआ। श्रेणी:कश्मीर के लोग श्रेणी:कश्मीरी साहित्यकार श्रेणी:कश्मीरी कवि.

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रहमान राही

रहमान राही (1925-) कश्मीर के प्रमुख कवि हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार उन्हें २००४ में मिला। .

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राम चन्द्र काक

राम चन्द्र काक (१८९३-१९८३) कश्मीरी राजनयिक और विद्वान थे। १९४५ से १९४७ तक वह कश्मीर के प्रधान मन्त्री रहे। शेख अब्दुल्ला ने इन्हें कश्मीर से देश निकाला निर्वासित कर दिया। उन्होंने कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक पुरातात्विक स्थलों का अन्वेषण एवं उत्खनन किया। .

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राय वंश

राय राजवंश (416 ई–644 ई) सिन्ध का एक हिन्दू राजवंश था जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर शासन किया। इनका प्रभाव पूरब में कश्मीर से लेकर, पश्चिम में मकरान और देबल बन्दरगाह (आधुनिक कराची) तक, दक्षिण में सूरत बन्दरगाह तक और उत्तर में कान्धार, सुलैमान, फरदान और किकानान पहाड़ियों तक था। .

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राय खोखर देव

राजा खोखर देव डोगरा राजवंश के एक राजा थे। वह काश्मिर के अथिपथि थे। डोगरा राजवंश एक हिंदू राजपूत वंश था जो जम्मू एवं काश्मीर में शासन करता था। kashmir श्रेणी:जम्मू के राजा.

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राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, श्रीनगर

एनाअईटी के शैक्षणिक ब्लॉक का मुख्य भवन राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, श्रीनगर, कश्मीर की स्थापना १९६० में की गई थी तथा ७ अगस्त २००३ को इसे राष्‍ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान का दर्जा दिया गया था। संस्थान सिविल इंजीनियरिंग, विद्युत इंजीनियरिंग, इलैक्ट्रानिक तथा संचार इंजीनियरिंग, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, रसायन तथा धातुकर्मीय इंजीनियरिंग, विषयों में अवर स्नातक पाठयक्रम तथा संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी और मैकेनिकल सिस्टम डिजाईन में एमई पाठयक्रम संचालित करता है। संस्थान सभी विज्ञान विभागों तथा कुछ इंजीनियरिंग विभागों हेतु एम.फिल तथा पी.एच-डी.

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राजतरंगिणी

राजतरंगिणी, कल्हण द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है। 'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'। यह कविता के रूप में है। इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। इसका रचना काल सन ११४७ से ११४९ तक बताया जाता है। भारतीय इतिहास-लेखन में कल्हण की राजतरंगिणी पहली प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है। इस पुस्तक के अनुसार कश्मीर का नाम "कश्यपमेरु" था जो ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र थे। राजतरंगिणी के प्रथम तरंग में बताया गया है कि सबसे पहले कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई सहदेव ने राज्य की स्थापना की थी और उस समय कश्मीर में केवल वैदिक धर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में औरेल स्टीन (Aurel Stein) ने पण्डित गोविन्द कौल के सहयोग से राजतरंगिणी का अंग्रेजी अनुवाद कराया। राजतरंगिणी एक निष्पक्ष और निर्भय ऐतिहासिक कृति है। स्वयं कल्हण ने राजतरंगिणी में कहा है कि एक सच्चे इतिहास लेखक की वाणी को न्यायाधीश के समान राग-द्वेष-विनिर्मुक्त होना चाहिए, तभी उसकी प्रशंसा हो सकती है- .

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राजबहादुर 'विकल'

काव्यपाठ करते हुए विकल जी की एक भावमुद्रा राजबहादुर 'विकल' (जन्म: 2 जुलाई 1924 - म्रत्यु: 15 अक्टूबर 2009) वीर रस के सिद्धहस्त कवियों में थे। विकल उनका उपनाम था जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बेचैन आत्मा। निस्संदेह उनके शरीर में किसी शहीद की बेचैन आत्मा प्रविष्ट हो गयीं थी। काकोरी शहीद इण्टर कालेज जलालाबाद (शाहजहाँपुर) में काफी समय तक अध्यापन करते रहने के कारण उन्हें विकल जलालाबादी के नाम से भी जाना जाता था। "दुनिया मत पन्थ बने, इसका, अपने हाथों निपटारा है। रणभेरी के स्वर में गरजो, पूरा कश्मीर हमारा है।" इन पंक्तियों से अवाम को झकझोर कर रख देने वाले आग्नेय कवि राजबहादुर 'विकल' का जीवन-दीप सन् 2009 की दीपावली को उस समय बुझ गया जब पूरा देश रोशनी में नहा रहा था। उन्होंने 85 वर्ष का यशस्वी जीवन पाया। .

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राजभवन (जम्मू और कश्मीर), श्रीनगर

राजभवन श्रीनगर भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के राज्यपाल का अधिकारिक ग्रीष्मकालीन आवास है। यह राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में स्थित है। नरिन्दर नाथ वोहरा जम्मू और कश्मीर के वर्तमान राज्यपाल हैं और उन्होंने २५ जून २००८ को राज्यपाल का पद ग्रहण किया था। .

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राजू खेर

राजू खेर एक भारतीय हिन्दी फ़िल्मों के बॉलीवुड के एक अभिनेता तथा फ़िल्म निर्देशक है। १९९९ में चला संस्कार धारावाहिक के निर्देशक राजू खेर ही थे। Category:जीवित लोग Category:कश्मीर के लोग .

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राव गोपाल सिंह खरवा

राव गोपालसिंह खरवा (1872–1939), राजपुताना की खरवा रियासत के शासक थे। अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के आरोप में उन्हें टोडगढ़ दुर्ग में ४ वर्ष का कारावास दिया गया था। .

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रुय्यक

कश्मीर के एक विद्वान्‌ परिवार में राजानक रुय्यक या रुचक का जन्म बारहवीं शताब्दी के प्रथम भाग में हुआ था। उद्भट के काव्यालंकार संग्रह के विवृतिकार राजानक तिलक इनके पिता थे, जो अलंकारशास्त्र के पंडित थे। 'श्रीकंठचरित्‌' में मंखक ने अध्यापक, विद्वान्‌ व्याख्याकार तथा साहित्यशास्त्री के रूप में अपने गुरु रुय्यक का परिचय दिया है। इनके ग्रंथों की संख्या बारह है। सहृदयलीला, साहित्यमीमांसा, काव्यप्रकाशसंकेत, व्यक्तिविवेकव्याख्यान्‌, तथा अलंकार सर्वस्व प्रकाशित ग्रंथ हैं। नाटकमीमांसा, अलंकारानुसारिणी, अलंकारमंजरी, अलंकारवार्तिक, (नाट्यशास्त्र, सुलंकारशास्त्र), श्रीकंठस्तव (काव्य), हर्षचरितवार्तिक, तथा बृहती (टीकाएँ) की सूचना संदर्भों से मिलती है पर अभी तक प्राप्य नहीं हैं। स्पष्ट है कि रुय्यक का प्रधान प्रतिपाद्य विषय काव्यशास्त्र - विशेषत: अलंकारमीमांसा - है। अलंकारसर्वस्व, जिसका प्रणयन 1135-50 ई. के बीच हुआ था, भाषा के पाक और चिंतन की प्रौढ़ि (परिक्वता) से इनकी सर्वश्रेष्ठ देन है। इसी लिए रुय्यक की प्रसिद्धि सर्वस्वकार के रूप में है। इसके दो भाग हैं, सूत्र तथा वृत्ति सत्तासी सूत्रों में छह: शब्दालंकार तथा पचहत्तर अर्थालंकारों का (जिनमें परिणाम, रसवदादि, विकल्प तथा विचित्र नवीन अलंकार हैं) संक्षेप में नपी तुली भाषा में निरूपण है। इन सूत्रों की वृत्ति में भामह से प्रारंभ कर सर्वस्वकार के समय तक विकसित अलंकारमीमांसा का - स्वरूप, भेद तथा उदाहरणों के साथ-मौलिक उपस्थापन हैं। इसके तीन टीकाकार हैं कश्मीर के जयरथ (1193 ई.) केरल के समुद्रबंध (1300 ई.) तथा गुजरात के श्री विद्याचक्रवर्ती (14वीं शती)। प्रथम तथा अंतिम टीकाकार निर्विावाद रूप से अलंकारसर्वस्व का लेखक रुय्यक या रुचक को ही मानते हैं; शोभाकर से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक आलंकारिकों की सुदीर्ध परंपरा में मंखक का आलंकारिक के रूप में, एक प्रसंग को छोकर, कहीं संदर्भ नहीं है। प्राचीन पांडुलिपियों की पुष्पिकाएँ रुय्यक को सर्वस्व का लेखक घोषित करती हैं। अंत: साक्ष्य भी यही बात प्रमाणित करता है, तथापि समुद्रबंध ने अलंकार सर्वस्व को मंखक की कृति माना है। संभव है, संधिविग्रहिक मंखक ने अपने गुरु के ग्रंथ का संपादन संशोधन किया हो जिससे सुदूर दक्षिण में उसके कृतित्व की भ्रांत परंपरा चल पड़ी हो। अलंकारों के शब्द, अर्थ तथा उभय में विभाग के लिए रुय्यक का सिद्धांत (जिसके बीज राजानक तिलक की काव्यालंकार संग्रह की विवृति में थे) आश्रयाश्रयिभाव का है। जो अलंकार जिस पर आश्रित होता है वह उसका अलंकार होता है। किसी शब्द का होना या न होना (अन्ययव्यतिरेक) अलंकार विभाग का नियामक नहीं है। इस प्रकार तो इवादिप्रयोगसापेक्ष शाब्दी उपमा अर्थालंकार न होकर शब्दालंकार कहलाएगी। कुंडल कान का और तार हार कंठ का आभूषण कहलाता है, क्योंकि वे उनपर आश्रित हैं; कान या कंठ के रहनने या रहने से कर्णालंकार अथवा कंठ के हार का कोई संबंध नहीं है। लौकिकालंकार का सिद्धांत काव्यालंकार के संदर्भ में भी चरितार्थ है। इस आश्रय का बोध सहृदयंवेद्या अनुभव पर अवलंबित है; शब्दार्थ के चमत्कार विच्छित्ति या वैचित्रय का वही निर्णायक निकष है। अत: आश्रयाश्रयभाव का जीवातु यद्वैचित्रयवाद है। रुय्यक ने अर्थालंकारों को सादृश्य, विरोध, श्रृंखलाबंध, तर्कन्याय, वाक्यन्याय, लोकन्याय, गूढार्थप्रतीति पर, तथा चित्तवृत्तिमूल के वर्गों में बाँटा है। इस वर्गीकरण को सर्वाधिक व्यवस्थित तथा वैज्ञानिक माना जाता है। इसके पूर्व वस्तुत: किसी भी आलंकारिक ने किन्हीं मूलाधारों को लेकर व्यवस्थित वर्गीकरण की पद्धति नहीं अपनाई थी। प्रतीति का पौर्वापर्य तथा अलंकार लक्षणों का परस्पर साधर्म्य वैधर्म्य एक वर्ग में आनेवाले अलंकारों के क्रम के नियामक तत्व है। अलंकारों की सांगोपांग मीमांसा, ध्वनिसिद्धांत से उसका संबंध ही नहीं अपितु महिमभट्ट के ध्वनिविरोधी सिद्धांत अनुमितिवाद का व्याख्यान तथा ध्वनिसंप्रदाय की पुन:प्रतिष्ठा भी रुय्यक का प्रधान कार्य है। व्यक्तिविवेक व्याख्यान या 'विचार' में महिमभट्ट के मत का विवेचन करते हुए यह सिद्ध किया है कि अनुमानप्रक्रिया में ध्वनिमार्ग को या अनुमिति में व्यंग्यार्थ सौंदर्य को नहीं बाँधा जा सकता। अलंकारसर्वस्व की प्रस्तावना में रुय्यक ने भामह, उद्भट, रुद्रट आदि के अलंकारप्राधान्यवाद में तथा वामन के रीतिवाद में ध्वनि के बीज बताते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि भट्टनायक के भावना तथा भोग नामक काव्यव्यापारों में कुंतक की वक्रोक्ति तथा महिमभट्ट के 'अनुमान' में ध्वनि का अंतर्भाव संभव नहीं है। संस्कृत के साहित्यशास्त्र का रुय्यक द्वारा यह संक्षिप्त सर्वेक्षण एक महत्वपूर्ण कार्य है। .

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रुखसाना कौसर

रुखसाना कौसर, भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के कश्मीर के राजौरी जिले के अंतर्गत स्थित कलसियां गांव की एक बहादुर लड़की है। उसने 27 सितंबर 2009 की रात को अपने घर में घुसे लश्कर-ए-तैयबा के एक शीर्ष पाकिस्तानी आतंकवादी को मार गिराया, तथा एक अन्य को घायल कर दिया था। उसने और उसके भाई बहनों ने मिलकर आतंकवादियों से जमकर टक्कर ली थी। रुखसाना ने एक आतंकवादी की राइफल छीनकर उसे घटनास्थल पर ही ढेर कर दिया था। इस घटना में रुखसाना के माता-पिता राशिदा और नूर हुसैन घायल हो गए थे। 27 सितंबर की इस घटना से पहले रुखसाना ने कभी बंदूक नहीं पकड़ी थी, लेकिन उस दिन उसने बहादुरी की मिसाल कायम की। भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल तथा गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी उसके बहादुरी की तारीफ की। .

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रैडक्लिफ़ अवार्ड

रैडक्लिफ़ रेखा 17 अगस्त 1947 को भारत विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा बन गई। सर सिरिल रैडक्लिफ़ की अध्यक्षता में सीमा आयोग द्वारा रेखा का निर्धारण किया गया, जो 88 करोड़ लोगों के बीच क्षेत्र को न्यायोचित रूप से विभाजित करने के लिए अधिकृत थे। भारत का विभाजन .

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रोग़न जोश

रोग़न जोश भेड़ के मांस का एक कश्मीरी व्यंजन है जो कश्मीरी खाने की एक ख़ासियत मानी जाती है। .

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लम्हा

लम्हा (उर्दू: لمحا) एक 2010 मज़ा सामाजिक-एक्शन थ्रिलर फिल्म है लिखा है और राहुल ढोलकिया - द्वारा निर्देशित.

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ललितपीड

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणी:कश्मीर के राजा.

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ललितादित्य मुक्तपीड

जम्मू-कश्मीर का मार्तण्ड मंदिर का दृष्य; यह चित्र सन् १८६८ में जॉन बर्क ने लिया था ललितादित्य मुक्तापीड (राज्यकाल 724-761 ई) कश्मीर के कर्कोटा वंश के हिन्दू सम्राट थे। उनके काल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया और बंगाल तक पहुंच गया। उन्होने अरब के मुसलमान आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा तिब्बती सेनाओं को भी पीछे धकेला। उन्होने राजा यशोवर्मन को भी हराया जो हर्ष का एक उत्तराधिकारी था। उनका राज्‍य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्‍तान और उत्‍तर-पूर्व में तिब्‍बत तक फैला था। उन्होने अनेक भव्‍य भवनों का निर्माण किया। कार्कोट राजवंश की स्थापना दुर्र्लभवर्धन ने की थी। दुर्र्लभवर्धन गोन्दडिया वंश के अंतिम राजा बालादित्य के राज्य में अधिकारी थे। बलादित्य ने अपनी बेटी अनांगलेखा का विवाह कायस्थ जाति के एक सुन्दर लेकिन गैर-शाही व्यक्ति दुर्र्लभवर्धन के साथ किया। कार्कोटा एक नाग का नाम है ये नागवंशी कर्कोटक क्षत्रिय थे। प्रसिद्ध इतिहासकार आर सी मजुमदार के अनुसार ललितादित्य ने दक्षिण की महत्वपूर्ण विजयों के पश्चात अपना ध्यान उत्तर की तरफ लगाया जिससे उनका साम्राज्य काराकोरम पर्वत शृंखला के सूदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा। साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उसका सैंतीस वर्ष का राज्य उसके सफल सैनिक अभियानों, उसके अद्भुत कला-कौशल-प्रेम और विश्व विजेता बनने की उसकी चाह से पहचाना जाता है। लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है। ललितादित्य ने पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा। कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी। ललितादित्य की सेना की पदचाप अरण्यक (ईरान) तक पहुंच गई थी। .

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लल्लेश्वरी

लल्लेश्वरी या लल्ल-दय्द (1320-1392) के नाम से जाने जानेवाली चौदवहीं सदी की एक भक्त कवियित्री थी जो कश्मीर की शैव भक्ति परम्परा और कश्मीरी भाषा की एक अनमोल कड़ी थीं। लल्ला का जन्म श्रीनगर से दक्षिणपूर्व मे स्थित एक छोटे से गाँव में हुआ था। वैवाहिक जीवन सु:खमय न होने की वजह से लल्ला ने घर त्याग दिया था और छब्बीस साल की उम्र में गुरु सिद्ध श्रीकंठ से दीक्षा ली। कश्मीरी संस्कृति और कश्मीर के लोगों के धार्मिक और सामाजिक विश्वासों के निर्माण में लल्लेश्वरी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। .

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लाहौर संकल्पना

लाहौर प्रस्तावना,(قرارداد لاہور, क़रारदाद-ए-लाहौर; बंगाली: লাহোর প্রস্তাব, लाहोर प्रोश्ताब), सन 1940 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा प्रस्तावित एक आधिकारिक राजनैतिक संकल्पना थी जिसे मुस्लिम लीग के 22 से 24 मार्च 1940 में चले तीन दिवसीय लाहौर सत्र के दौरान पारित किया गया था। इस प्रस्ताव द्वारा ब्रिटिश भारत के उत्तर पश्चिमी पूर्वी क्षेत्रों में, तथाकथित तौर पर, मुसलमानों के लिए "स्वतंत्र रियासतों" की मांग की गई थी एवं उक्तकथित इकाइयों में शामिल प्रांतों को स्वायत्तता एवं संप्रभुता युक्त बनाने की भी बात की गई थी। तत्पश्चात, यह संकल्पना "भारत के मुसलमानों" के लिए पाकिस्तान नामक मैं एक अलग स्वतंत्र स्वायत्त मुल्क बनाने की मांग करने में परिवर्तित हो गया। हालांकि पाकिस्तान नाम को चौधरी चौधरी रहमत अली द्वारा पहले ही प्रस्तावित कर दिया गया था परंतु सन 1933 तक मजलूम हक मोहम्मद अली जिन्ना एवं अन्य मुसलमान नेता हिंदू मुस्लिम एकता के सिद्धांत पर दृढ़ थे, परंतु अंग्रेजों द्वारा लगातार प्रचारित किए जा रहे विभाजन प्रोत्साह गलतफहमियों मैं हिंदुओं में मुसलमानों के प्रति अविश्वास और द्वेष की भावना को जगा दिया था इन परिस्थितियों द्वारा खड़े हुए अतिसंवेदनशील राजनैतिक माहौल ने भी पाकिस्तान बनाने के उस प्रस्ताव को बढ़ावा दिया था इस प्रस्ताव की पेशी के उपलक्ष में प्रतीवर्ष 23 मार्च को पाकिस्तान में यौम-ए-पाकिस्तान(पाकिस्तान दिवस) के रूप में मनाया जाता है। .

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लाजवंती (धारावाहिक)

लाजवंती का पोस्टर्। लाजवंती एक भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण ज़ी टीवी पर 28 सितम्बर 2015 से सोमवार से शुक्रवार रात 10:30 बजे होता है। यह कहानी राजिंदर सिंह बेदी के लाजवंती नामक समान शीर्षक वाले पुस्तक पर बनी है। इसका निर्माण ट्रिलोजी ने किया है। .

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लिद्दर नदी

लिद्दर नदी भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य की कश्मीर घाटी में बहने वाली एक ७३ किमी लम्बी नदी है। सिन्द नदी के बाद यह झेलम नदी की दूसरी सबसे बड़ी उपनदी है। .

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लिद्दर घाटी

लिद्दर घाटीमनमोहन एन॰ कौल, Glacial and Fluvial Geomorphology of Western Himalaya, South Asia Books, 1990, p. 23, ISBN 978-8170222446 भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में लिद्दर नदी द्वारा निर्मित एक हिमालय उप-घाटी है जो कश्मीर घाटी का उत्तरी-पूर्वी भाग है। लिद्दर घाटी में प्रवेश का मार्ग अनंतनाग शहर से सात किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है तथा यह श्रीनगर, जो जम्मू कश्मीर की ग्रीष्म कालीन राजधानी है, के ६२ किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह एक ४० किलोमीटर लंबी गॉर्ज घाटी है जिसकी औसत चौड़ाई ३ किलोमीटर है। .

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लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम

कोई विवरण नहीं।

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लिग्नाइट

लिग्नाइट (Lignite) निकृष्ट वर्ग का पत्थर कोयला है। इसका रंग कत्थई या काला-भूरा होता है तथा आपेक्षिक घनत्व भी पत्थर कोयला से कम होता है। यह वानस्पतिक ऊतक (plant tissue) के रूपांतरण की प्रारंभिक अवस्था को प्रदर्शित करता है। लाखों वर्ष पूर्व वानस्पतिक विकास की दर संभवत: अधिक द्रुत थी। वानस्पतिक पदार्थों का संचयन तथा उनके जीवरसायनिक क्षय (biochemical decay) से पीट (peat) की रचना हुई, जो गलित काष्ठ (rotten wood) की भाँति होता है। यह प्रथम अवस्था थी। संभवत: द्वितीय अवस्था में मिट्टियों आदि के, जो युगों तक पीट के ऊपर अवसादित होती रहीं, दबाव ने जीवाणुओं की क्रियाओं को समाप्त कर दिया और पीट के पदार्थ को अधिक सघन तथा जलरहित एक लिग्नाइट में परिवर्तित कर दिया। जब लिग्नाइट पर अधिक दबाव विशेषत: क्षैतिज क्षेप (thrust) और भी बढ़ जाता है, तो लिग्नाइट अधिक सघन हो जाता है तथा इस प्रकार कोयले का जन्म होता है। .

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लोल्लट

आचार्य अभिनवगुप्त ने "अभिनवभारती" में लोल्लट का उल्लेख भरतमुनि के नाट्यसूत्र के मान्य टीकाकार आचार्य के रूप में किया है। भरत के रसपरक सिद्धांत की व्याख्या करनेवाले सर्वप्रथम विद्वान् लोल्लट ही हैं। रसनिष्पत्ति के सबंध में इनका स्वतंत्र मत साहित्यजगत् में विख्यात हैं। ये मीमांसक और अभिधावादी थे। इनके मत में शब्द के प्रत्येक अर्थ की प्रतिपत्ति अभिधा से ठीक उसी तरह हो जाती है, जैसे एक ही बाण कवच को भेदते हुए शरीर में घुसकर प्राणों को पी जाता है। इनकी दृष्टि से महाकाव्य के प्रधान रस तथा उसके विभिन्न अंगों में पूरा सामंजस्य होना आवश्यक है। ये रस की स्थिति रामादि अनुकार्य पात्रों में मानते हैं, नटों एवं सहृदयों में नहीं मानते। औचित्यसमर्थक आचार्यों में इनका एक महत्वपूर्ण स्थान है। इनके कथनानुसार अर्थ के समुदाय का अंत नहीं है, किंतु काव्य में रसवाले अर्थ का ही निबंधन उचित एवं युक्त है, नीरस का नहीं। कोई भी वर्णन सरस भले ही हो, किंतु यदि वह प्रकृत रस के साथ सामंजस्य नहीं रखता तो इसका विस्तार नहीं करना चाहिए। महाकाव्यों में यमक तथा चित्रकाव्य का निबंधन कवि के अभिमान का ही परिचायक होता है, वह काव्य के मुख्य रस का अभिव्यंजक नहीं होता। अलंकार संप्रदाय के मान्य अनुयायी आचार्य उद्भट के इस सिद्धांत की कि वृत्तियाँ तीन ही हैं और वे भरत द्वारा निर्दिष्ट चार वृतियों से भिन्न हैं, लोल्लट ने कड़ी आलोचना की है और उद्भट द्वारा निरूपित न्यायवृत्ति, अन्यायवृत्ति और फलवृत्ति को न मानते हुए उसकी कल्पना को अमान्य ठहराते हैं। "शकली गर्भ" नाम से नाट्यशास्त्र के आचार्य का भी इन्होंने खंडन किया है, जिन्होंने उद्भट का खंडन किया है पर "भरत" की वृत्ति चतुष्टयी को मानते हुए "आत्मसंवित्ति" नाम की एक पाँचवीं वृत्ति की उद्भावना की है। भट्ट लोल्लट के तीन पद्यों को राजशेखर, हेमचंद्र तथा नमिसाधु ने उद्धृत किया है जो औचित्यविचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। राजशेखर ने इन पद्यों को "काव्यमीमांसा" में "इति आपराजिति: यदाह" कहकर आपराजिति के नाम से उद्धृत किया है और हेमचंद्र ने "काव्यानुशासन" में इनमें से दो पद्यों को भट्ट लोल्लट के नाम से उद्धृत किया है। इससे यह ज्ञात होता है कि इनका एक नाम आपराजिति था। संभवत: ये अपराजित पुत्र थे। ध्वन्यालोक की टीका में इनका मत प्रभाकर के अनुसार कह गया है- "भाट्टं प्राभाकरं वैयाकरणं च पक्षं सूचयति"। इनके समय का तथा ग्रंथ आदि का निश्चित पता नहीं। अभिनयभारती, ध्वन्यालोक आदि में इनके कुछ स्फुट विचार प्राप्त होते हैं, जिनसे इनकी विद्वत्ता और सिद्धांत का परिज्ञान होता है। काव्यप्रकाश की संकेत टीका से और शंकुक आदि आचार्यों द्वारा इनका खंडन करने से ज्ञात होता है कि ये शंकुक के पूववर्ती थे। शंकुक का समय ई. 850 है। अत: इनका समय नवीं सदी के प्रथम चरण के लगभग ठहरता है। ये कश्मीरी थे। श्रेणी:साहित्यशास्त्री श्रेणी:काव्यशास्त्र.

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शामी कबाब

शामी कबाब एक मुगलाई पकवान है। यह भारत एवं पाकिस्तान मे बहुत प्रचलित है। शामी कबाब भारतीय उपमहाद्वीप मे खाया जाने वाले कबाब का एक खास प्रकार है.

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शारदा लिपि

शारदा लिपि में लिखी एक पाण्डुलिपि शारदा लिपि का उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग में सीमित था। यह लिपि पश्चिमी ब्राह्मी लिपि से नौवीं शताब्दी में उत्पन्न हुई। आज इसका उपयोग बहुत ही कम होता है (कुछ पुराने पण्डित इसका उपयोग करते हैं)। हिमाचल प्रदेश में यह लिपि तेरहवीं शती तक प्रयोग में आती थी और फल-फूल रही थी। अल बरुनी ने अपने भारत यात्रा वर्णन में इसे "सिद्ध मात्रिक" नाम से उल्लेख किया है इसका कारण यह है कि शारदा वर्णमाला "ओम् स्वस्ति सिद्धम्" से आरम्भ की जाती है। कश्मीर देश की अधिष्ठात्री देवी 'शारदा' मानी जाती हैं दिससे वह देश 'शारदादेश' या 'शारदमंडल' कहलाता है और इसी से वहाँ की लिपि को 'शारदालिपि' कहते हैं। पीछे से उसको (कश्मीर को) 'देवदेश' भी कहते थे। मूल शारदालिपि ईस्वी सन् की दसवीं शताब्दी के आस पास कुटिल लिपि से निकली है और उसका प्रचार कश्मीर तथा पंजाब में रहा। उस में परिवर्तन होकर वर्तमान शारदा लिपि बनी जिसका प्रचार अब कश्मीर में बहुत कम रह गया है। उसका स्थान बहुधा नागरी, गुरुमुखी या टाकरी ने ले लिया है। .

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शार्ङ्गदेव

शार्ंगदेव (1210–1247) भारत के संगीतशास्त्री थे जिन्होने संगीतरत्नाकर नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में संगीत व नृत्य का विस्तार से वर्णन है। शार्ंगदेव यादव राजा सिंघण (1210–1247) के दरबारी थे। उनके पूर्वज कश्मीर के थे। उनके पितामह कश्मीर से देवगिरि (महाराष्ट्र) आकर बस गये थे। संगीतरत्नाकार पर १४५६-७७ के बीच विजयनगर के राजा प्रतापदेव के आदेश पर काल्लिनाथ ने टीका लिखी। यह ग्रन्थ ६०० वर्षों से संगीत-शास्त्रियों का पथ प्रदर्शक रहा है। शारंगदेव पर दक्षिणी संगीत का विशेष प्रभाव पड़ा था। उनके ग्रन्थ से पता चलता है कि उनके पूर्ववर्ती संगीतज्ञ दक्षिण में बहुत थे। संगीतरत्नाकार में संगीत पद्धति की जो स्थापना की गई है, उसे अब बहुत कम लोग समझते मानते हैं। शारंगदेव का मुख्य मेल `मुखारी' है यह दक्षिणी संगीत का मुख्य मेल है। श्रेणी:भारतीय संगीतशास्त्रीश्रेणी:कश्मीर के लोग.

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शालीमार बाग (श्रीनगर)

शालीमार बाग़,(शालीमार बाग़; شالیمار باغ) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में विख्यात उद्यान है जो मुगल बाग का एक उदाहरण है। इसे मुगल बादशाह जहाँगीर ने श्रीनगर में बनवाया था। श्रीनगर भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर की ग्रीष्म-कालीन राजधानी है। इसे जहाँगीर ने अपनी प्रिय एवं बुद्धिमती पत्नी मेहरुन्निसा के लिये बनवाया था, जिसे नूरजहाँ की उपाधि दी गई थी। इस बाग में चार स्तर पर उद्यान बने हैं एवं जलधारा बहती है। इसकी जलापूर्ति निकटवर्ती हरिवन बाग से होती है। उच्चतम स्तर पर उद्यान, जो कि निचले स्तर से दिखाई नहीं देता है, वह हरम की महिलाओं हेतु बना था। यह उद्यान ग्रीष्म एवं पतझड़ में सर्वोत्तम कहलाता है। इस ऋतु में पत्तों का रंग बदलता है एवं अनेकों फूल खिलते हैं। ग्रीष्म ऋतु में शालीमार बाग यही उद्यान अन्य बागों की प्रेरणा बना, खासकर इसी नाम से लाहौर, पाकिस्तान में निर्मित और विकसित बाग की। यह वर्तमान में एक सार्वजनिक बाग़ है। इसके पूर्ण निर्माण होने पर जहाँगीर ने फारसी की वह प्रसिद्ध अभिव्यक्ति कही थी: .

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शाह शुजा

शाह शुजा दुर्रानी अफ़ग़ानिस्तान का अमीर था(1803-9, 1839-42) जो दोस्त मुहम्मद ख़ान से हारकर कश्मीर में रहा था। प्रथम आंग्ल अफ़ग़ान युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने उसे अफ़ग़ानिस्तान का शासक फिर से बनाया लेकिन २ साल के भीतर उसकी काबुल में हत्या कर दी गई। इसके बाद दुर्रानी वंश का पतन हो गया था। उसे सिख महाराजा रणजीत सिंह ने एक आक्रमण में कश्मीर से छुड़वाया था और अपनी रिहाई के बदले में उसने रणजीत सिंह को प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा दिया था। श्रेणी:अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास.

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शिवालिक

शिवालिक श्रेणी या बाह्य हिमालय भी कहा जाता है) हिमालय पर्वत का सबसे दक्षिणी तथा भौगोलिक रूप से युवा भाग है जो पश्चिम से पूरब तक फैला हुआ है। यह हिमायल पर्वत प्रणाली के दक्षिणतम और भूगर्भ शास्त्रीय दृष्टि से, कनिष्ठतम पर्वतमाला कड़ी है। इसकी औसत ऊंचाई 850-1200 मीटर है और इसकी कई उपश्रेणियां भी हैं। यह 1600 कि॰मी॰ तक पूर्व में तिस्ता नदी, सिक्किम से पश्चिमवर्त नेपाल और उत्तराखंड से कश्मीर होते हुए उत्तरी पाकिस्तान तक जाते हैं। सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से देहरादून और मसूरी के पर्वतों में जाने हेतु मोहन दर्रा प्रधान मार्ग है। पूर्व में इस श्रेणी को हिमालय से दक्षिणावर्ती नदियों द्वारा, बड़े और चौड़े भागों में काटा जा चुका है। मुख्यत यह हिमालय पर्वत की बाह्यतम, निम्नतम तथा तरुणतम श्रृंखला हैं। उत्तरी भारत में ये पहाड़ियाँ गंगा से लेकर व्यास तक २०० मील की लंबाई में फैली हुई हैं और इनकी सर्वोच्च ऊंचाई लगभग ३,५०० फुट है। गंगा नदी से पूर्व में शिवालिक सदृश संचरना पाटली, पाटकोट तथा कोटह को कालाघुंगी तक हिमालय को बाह्य श्रृंखला से पृथक्‌ करती है। ये पहाड़ियाँ पंजाब में होशियारपुर एवं अंबाला जिलों तथा हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले को पार कर जाती है। इस भाग की शिवालिक श्रृंखला अनेक नदियों द्वारा खंडित हो गई है। इन नदियों में पश्चिम में घग्गर सबसे बड़ी नदी है। घग्गर के पश्चिम में ये पहाड़ियाँ दीवार की तरह चली गई हैं और अंबाला को सिरसा नदी की लंबी एवं तंग घाटी से रोपड़ तक, जहाँ पहाड़ियों को सतलुज काटती है, अलग करती हैं। व्यास नदी की घाटी में ये पहाड़ियाँ तरंगित पहड़ियों के रूप में समाप्त हो जाती हैं। इन पहड़ियों की उत्तरी ढलान की चौरस सतहवाली घाटियों को दून कहते हैं। ये दून सघन, आबाद एवं गहन कृष्ट क्षेत्र हैं। सहारनपुर और देहरादून को जोड़नेवाली सड़क मोहन दर्रे से होकर जाती है। भूवैज्ञानिक दृष्टि से शिवालिक पहाड़ियाँ मध्य-अल्प-नूतन से लेकर निम्न-अत्यंत-नूतन युग के बीच में, सुदूर उत्तर में, हिमालय के उत्थान के समय पृथ्वी की हलचल द्वारा दृढ़ीभूत, वलित एवं भ्रंशित हुई हैं। ये मुख्यत: संगुटिकाश्म तथा बलुआ पत्थर से निर्मित है और इनमें स्तनी वर्ग के प्राणियों के प्रचुर जीवाश्म मिले हैं .

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शिवकुमार शर्मा

पंडित शिवकुमार शर्मा (जन्म १३ जनवरी, १९३८, जम्मू, भारत) प्रख्यात भारतीय संतूर वादक हैं। संतूर एक कश्मीरी लोक वाद्य होता है। इनका जन्म जम्मू में गायक पंडित उमा दत्त शर्मा के घर हुआ था। १९९९ में रीडिफ.कॉम को दिये एक साक्षातकार में उन्होंने बताया कि इनके पिता ने इन्हें तबला और गायन की शिक्षा तब से आरंभ कर दी थी, जब ये मात्र पाँच वर्ष के थे। इनके पिता ने संतूर वाद्य पर अत्यधिक शोध किया और यह दृढ़ निश्चय किया कि शिवकुमार प्रथम भारतीय बनें जो भारतीय शास्त्रीय संगीत को संतूर पर बजायें। तब इन्होंने १३ वर्ष की आयु से ही संतूर बजाना आरंभ किया और आगे चलकर इनके पिता का स्वप्न पूरा हुआ। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में १९५५ में किया था। १९८८ में वादन करते हुए शिवकुमार शर्मा संतूर के महारथी होने के साथ साथ एक अच्छे गायक भी हैं। एकमात्र इन्हें संतूर को लोकप्रिय शास्त्रीय वाद्य बनाने में पूरा श्रेय जाता है। इन्होंने संगीत साधना आरंभ करते समय कभी संतूर के विषय में सोचा भी नहीं था, इनके पिता ने ही निश्चय किया कि ये संतूर बजाया करें। इनका प्रथम एकल एल्बम १९६० में आया। १९६५ में इन्होंने निर्देशक वी शांताराम की नृत्य-संगीत के लिए प्रसिद्ध हिन्दी फिल्म झनक झनक पायल बाजे का संगीत दिया। १९६७ में इन्होंने प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और पंडित बृजभूषण काबरा की संगत से एल्बम कॉल ऑफ द वैली बनाया, जो शास्त्रीय संगीत में बहुत ऊंचे स्थान पर गिना जाता है। इन्होंने पं.

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शंकर शेष

शंकर शेष (1933-1981) हिन्दी की साठोत्तरी पीढ़ी के सुप्रसिद्ध नाटककार थे। समकालीन जीवन की ज्वलंत समस्याओं से जूझते व्यक्ति की त्रासदी शंकर शेष के बहुसंख्यक नाटकों के केंद्र में रहती है। वे मोहन राकेश के बाद की पीढ़ी के महत्वपूर्ण नाटककार के रूप में मान्य हैं। फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित डॉ० शेष ने फिल्मों के लिए कहानियाँ भी लिखी हैं। .

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शंकराचार्य मंदिर

शंकराचार्य मंदिर शंकराचार्य मंदिर कश्मीर के शंकराचार्य पर्वत पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। इसे 'ज्येष्ठेश्वर मंदिर' और 'पास-पहाड़' भी कहते हैं। वस्तुतह् यह शिवमंदिर है। यह मन्दिर समुद्र तल से ३०० मीटर की ऊंम्चाई पर स्थित है। श्रेणी:भारत के मंदिर.

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शक्सगाम नदी

शक्सगाम नदी काराकोरम पर्वतों के यहाँ दिख रहे उत्तरपूर्वी क्षेत्र से उत्पन्न होती है शक्सगाम नदी (चीनी: 沙克斯干河, अंग्रेजी: Shaksgam River) सुदूर उत्तरी कश्मीर के काराकोरम पर्वतों से उभरने वाली एक नदी है जो यारकन्द नदी की एक उपनदी भी है। शक्सगाम नदी को केलेचिन नदी और मुज़ताग़ नदी के नामों से भी जाना जाता है। यह काराकोरम शृंखला की गाशेरब्रुम, उरदोक, स्ताग़र, सिन्ग़ी और क्याग़र हिमानियों (ग्लेशियरों) से शुरू होती है और फिर शक्सगाम वादी में काराकोरम शृंखला के साथ-साथ पश्चिमोत्तरी दिशा में चलती है। इसमें शिमशाल ब्रल्दु नदी और फिर ओप्रांग नदी का विलय होता है और इन दोनों संगमों के बीच में शक्सगाम नदी पाकिस्तान और चीन के आपसी समझौते के अनुसार उन दोनों देशों के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा है। भारत इस बात से पूरा इनकार करता है और इस पूरे क्षेत्र को अपने जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा मानता है। सर्दियों में पास के शिमशाल गाँव के लोग इस क्षेत्र का प्रयोग अपने मवेशी चराने के लिए करते हैं और यह तारिम द्रोणी में स्थित इकलौता पाकिस्तान-नियंत्रित इलाक़ा है।, Sharad Singh Negi, Indus Publishing, 1991, ISBN 978-81-85182-61-2,...

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शुजात बुखारी

शुजात बुखारी (25 फरवरी 1968 - 14 जून 2018) एक भारतीय कश्मीरी पत्रकार और श्रीनगर से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र "राइजिंग कश्मीर" के प्रधान संपादक थे।, जिन्हें श्रीनगर में उनके कार्यालय के बाहर अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। निजी सुरक्षा गार्ड के तौर पर उन्हें उपलब्ध कराए गए दो पुलिस अधिकारी भी इस हमले में मारे गए थे। .

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श्यामाप्रसाद मुखर्जी

डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी (जन्म: 6 जुलाई 1901 - मृत्यु: 23 जून 1953) शिक्षाविद्, चिन्तक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। .

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श्रीनगर रेलवे स्टेशन

श्रीनगर रेलवे स्टेशन या नौगाम रेलवे स्टेशन श्रीनगर शहर का एक रेलवे स्टेशन है जो भारत के जम्मू एवं कश्मीर राज्य में है। यह स्टेशन कश्मीर रेलवे का एक भाग हैं एवं जब एक बार यह पूरा हो जाएगा तब यह शहर सारे भारत के रेल नेटवर्क से जुड़ जाएगा। वर्तमान में यह सेवा बारामूला और बनिहाल के लिए उपलब्ध हैं। रेलवे के यह कार्य जब पूर्ण हो जायेगा तब यह कश्मीर घाटी की यात्रा करने एवं पर्यटन बढ़ाने में मदद करेगा। चिनाब पुल पर चल रहा काम अपने अंतिम चरण में हैं एवं 2017 में इसके पूर्ण होने की उम्मीद है। एक बार जब यह कार्य पूरा हो जाएगा तब श्रीनगर भारत की मुख्य भूमि के साथ 24X7 पूरी तरीके से जुड़ जाएगा। यह स्टेशन श्रीनगर-कारगिल-लेह रेलवे का दूसरा हिस्सा होगा। .

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श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर

श्रीनगर भारत के जम्मू और कश्मीर प्रान्त की राजधानी है। कश्मीर घाटी के मध्य में बसा यह नगर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से हैं। श्रीनगर एक ओर जहां डल झील के लिए प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर विभिन्न मंदिरों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। 1700 मीटर ऊंचाई पर बसा श्रीनगर विशेष रूप से झीलों और हाऊसबोट के लिए जाना जाता है। इसके अलावा श्रीनगर परम्परागत कश्मीरी हस्तशिल्प और सूखे मेवों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। श्रीनगर का इतिहास काफी पुराना है। माना जाता है कि इस जगह की स्थापना प्रवरसेन द्वितीय ने 2,000 वर्ष पूर्व की थी। इस जिले के चारों ओर पांच अन्य जिले स्थित है। श्रीनगर जिला कारगिल के उत्तर, पुलवामा के दक्षिण, बुद्धगम के उत्तर-पश्चिम के बगल में स्थित है। श्रीनगर जम्मू और कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। ये शहर और उसके आस-पार के क्षेत्र एक ज़माने में दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल माने जाते थे -- जैसे डल झील, शालिमार और निशात बाग़, गुलमर्ग, पहलग़ाम, चश्माशाही, आदि। यहाँ हिन्दी सिनेमा की कई फ़िल्मों की शूटिंग हुआ करती थी। श्रीनगर की हज़रत बल मस्जिद में माना जाता है कि वहाँ हजरत मुहम्मद की दाढ़ी का एक बाल रखा है। श्रीनगर में ही शंकराचार्य पर्वत है जहाँ विख्यात हिन्दू धर्मसुधारक और अद्वैत वेदान्त के प्रतिपादक आदि शंकराचार्य सर्वज्ञानपीठ के आसन पर विराजमान हुए थे। डल झील और झेलम नदी (संस्कृत: वितस्ता, कश्मीरी: व्यथ) में आने जाने, घूमने और बाज़ार और ख़रीददारी का ज़रिया ख़ास तौर पर शिकारा नाम की नावें हैं। कमल के फूलों से सजी रहने वाली डल झील पर कई ख़ूबसूरत नावों पर तैरते घर भी हैं जिनको हाउसबोट कहा जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि श्रीनगर मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बसाया गया था। डल झील में एक शिकारा श्रीनगर से कुछ दूर एक बहुत पुराना मार्तण्ड (सूर्य) मन्दिर है। कुछ और दूर अनन्तनाग ज़िले में शिव को समर्पित अमरनाथ की गुफ़ा है जहाँ हज़ारों तीर्थयात्री जाते हैं। श्रीनगर से तीस किलोमीटर दूर मुस्लिम सूफ़ी संत शेख़ नूरुद्दिन वली की दरगाह चरार-ए-शरीफ़ है, जिसे कुछ वर्ष पहले इस्लामी आतंकवादियों ने ही जला दिया था, पर बाद में इसकी वापिस मरम्मत हुई। .

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शीना भाषा

शीना एक दार्दी भाषा है जो पाकिस्तान-नियंत्रित गिलगित-बल्तिस्तान और भारत के लद्दाख़ और कश्मीर क्षेत्रों में बोली जाती है। जिन पाकिस्तान-नियंत्रित वादियों में यह बोली जाती है उनमें अस्तोर, चिलास, दरेल, तंगीर, गिलगित, ग़िज़र और बल्तिस्तान और कोहिस्तान के कुछ हिस्से शामिल हैं। जिन भारत-नियंत्रित वादियों में यह बोली जाती हैं उनमें गुरेज़, द्रास, करगिल और लद्दाख़ के कुछ पश्चिमी हिस्से शामिल हैं। अंदाजा लगाया जाता है के १९८१ में इसे कुल मिलकर क़रीब ३,२१,००० लोग बोलते थे। शीना एक सुरभेदी भाषा है जिसमे दो सुर हैं - उठता हुआ और समतल (यानि बिना किसी बदलाव वाला)। .

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सचिन पायलट

लेफ्टिनेंट सचिन पायलट (जन्म ७ सितंबर १९७७) एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रीमंडलमें संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री में मंत्री रहे है। ये चौदहवीं लोकसभा में राजस्थान के दौसा लोकसभा क्षेत्र का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से प्रतिनिधित्व करते हैं। .

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सत्या 2

सत्या २ राम गोपाल वर्मा द्वारा निर्देशित फ़िल्म सत्या (1998) की उत्तरकृति फ़िल्म है। फ़िल्म को एक साथ दो भारतीय भाषाओं हिन्दी और तेलुगू में जारी किया गया। फ़िल्म का निर्देशन राम गोपाल वर्मा ने किया है और निर्माता सैनी एस जोहरी हैं। फ़िल्म अभिनेता पुनीत सिंह रतन (हिन्दी), शर्वानन्द (तेलुगू), अनायिका सोती, आराधना गुप्ता और महेश टाकुर प्रमुख भूमिका में हैं। फ़िल्म में आप्रवासी सत्या की कहानी को दिखाया जाता है जो मुम्बई में मुम्बई अण्डरवर्ल्ड को पुनःनिर्मित करने के उद्देश्य से आता है। .

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सप्तर्षि संवत

सप्तर्षि संवत् भारत का प्राचीन संवत है जो ३०७६ ईपू से आरम्भ होता है। महाभारत काल तक इस संवत् का प्रयोग हुआ था। बाद में यह धीरे-धीरे विस्मृत हो गया। एक समय था जब सप्तर्षि-संवत् विलुप्ति की कगार पर पहुंचने ही वाला था, बच गया। इसको बचाने का श्रेय कश्मीर और हिमाचल प्रदेश को है। उल्लेखनीय है कि कश्मीर में सप्तर्षि संवत् को 'लौकिक संवत्' कहते हैं और हिमाचल प्रदेश में 'शास्त्र संवत्'। .

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सप्रू

दया किशन सप्रू या सप्रू, जैसा उनको फ़िल्म जगत में जाना जाता था, हिन्दी सिनेमा में अभिनेता थे। १९६० और १९७० के दशक में उन्होंने कई फ़िल्मों में खलनायक की भूमिका की जिससे उन्हें काफ़ी ख्याति प्राप्त हुयी। लेकिन शुरुआत में उन्होंने कई चरित्र रोल भी निभाये। .

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सरदार हरि सिंह नलवा

सरदार हरि सिंह (1791 - 1837), सिक्ख महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे जिन्होने पठानों से साथ कई युद्धों का नेतृत्व किया। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है। हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लोहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले अफगान आक्रमणों से देश को मुक्त किया। इतिहास में पहली बार हुआ था कि पेशावरी पश्तून, पंजाबियों द्वारा शासित थे। महाराजा रणजीत सिंह के निर्देश के अनुसार हरि सिंह नलवा ने सिख साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं को पंजाब से लेकर काबुल बादशाहत के बीचोंबीच तक विस्तार किया था। महाराजा रणजीत सिंह के सिख शासन के दौरान 1807 ई. से लेकर 1837 ई. तक हरि सिंह नलवा लगातार अफगानों के खिलाफ लड़े। अफगानों के खिलाफ जटिल लड़ाई जीतकर नलवा ने कसूर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर में सिख शासन की व्यवस्था की थी। सर हेनरी ग्रिफिन ने हरि सिंह को "खालसाजी का चैंपियन" कहा है। ब्रिटिश शासकों ने हरि सिंह नलवा की तुलना नेपोलियन से भी की है। .

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सरोजिनी काक

सरोजिनी काक (१९२९ -२०१२) श्रीनगर, कश्मीर में जन्मी। उनकी कविता का संग्रह "नगर और वैराग्य" (२००४) बहुत चर्चित रहा। इन्हें कश्मीर की एक प्रमुख कवियित्री माना जाता है। .

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सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम

सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम भारतीय संसद द्वारा 11 सितंबर 1958 में पारित किया गया था। अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड के ‘अशांत इलाकों’ में तैनात सैन्‍य बलों को शुरू में इस कानून के तहत विशेष अधिकार हासिल थे। कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून सशस्त्र बल (जम्मू एवं कश्मीर) विशेष शक्तियां अधिनियम, 1990 के रूप में जम्मू कश्मीर में भी लागू किया गया। हालांकि राज्‍य के लदाख इलाके को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया। .

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सावित्री बाई खानोलकर

सावित्री बाई खानोलकर या खानोलंकार (जन्म के समय का नाम इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज़) भारतीय इतिहास के ऐसे व्यक्तियों में से हैं जिनका जन्म तो पश्चिम में हुआ किंतु उन्होंने अपनी इच्छा से भारतीय संस्कृति को अपनाया और भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। सावित्री बाई खानोलकर को सर्वोच्च भारतीय सैनिक अलंकरण परमवीर चक्र के रूपांकन का गौरव प्राप्त है। सावित्री बाई खानोलकर .

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सिन्द नदी

सिन्द नदी (Sind River) या सिन्ध नाला जम्मू व कश्मीर राज्य के गान्दरबल ज़िले में बहने वाली एक नदी है। यह १०८ किमी लम्बी नदी झेलम नदी की एक मुख्य उपनदी है। ध्यान दें कि यह सिन्धु नदी से बिलकुल अलग है (हालांकि इसका पानी पहले झेलम में और अंत में उसी महान सिन्धु नदी में जा मिलता है)।, Sir Walter Roper Lawrence, pp.

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सिन्धु नदी

पाकिस्तान में बहती सिन्घु सिन्धु नदी (Indus River) एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह पाकिस्तान, भारत (जम्मू और कश्मीर) और चीन (पश्चिमी तिब्बत) के माध्यम से बहती है। सिन्धु नदी का उद्गम स्थल, तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा माना जाता है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहां से यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर अरब सागर में मिलती है। इस नदी का ज्यादातर अंश पाकिस्तान में प्रवाहित होता है। यह पाकिस्तान की सबसे लंबी नदी और राष्ट्रीय नदी है। सिंधु की पांच उपनदियां हैं। इनके नाम हैं: वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा एंव शतद्रु.

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सिख धर्म का इतिहास

सिख धर्म का इतिहास प्रथम सिख गुरु, गुरु नानक के द्वारा पन्द्रहवीं सदी में दक्षिण एशिया के पंजाब क्षेत्र में आग़ाज़ हुआ। इसकी धार्मिक परम्पराओं को गुरु गोबिन्द सिंह ने 30 मार्च 1699 के दिन अंतिम रूप दिया। विभिन्न जातियों के लोग ने सिख गुरुओं से दीक्षा ग्रहणकर ख़ालसा पन्थ को सजाया। पाँच प्यारों ने फिर गुरु गोबिन्द सिंह को अमृत देकर ख़ालसे में शामिल कर लिया। इस ऐतिहासिक घटना ने सिख धर्म के तक़रीबन 300 साल इतिहास को तरतीब किया। सिख धर्म का इतिहास, पंजाब का इतिहास और दक्षिण एशिया (मौजूदा पाकिस्तान और भारत) के 16वीं सदी के सामाजिक-राजनैतिक महौल से बहुत मिलता-जुलता है। दक्षिण एशिया पर मुग़लिया सल्तनत के दौरान (1556-1707), लोगों के मानवाधिकार की हिफ़ाज़ात हेतु सिखों के संघर्ष उस समय की हकूमत से थी, इस कारण से सिख गुरुओं ने मुस्लिम मुगलों के हाथो बलिदान दिया। इस क्रम के दौरान, मुग़लों के ख़िलाफ़ सिखों का फ़ौजीकरण हुआ। सिख मिसलों के अधीन 'सिख राज' स्थापित हुआ और महाराजा रणजीत सिंह के हकूमत के अधीन सिख साम्राज्य, जो एक ताक़तवर साम्राज्य होने के बावजूद इसाइयों, मुसलमानों और हिन्दुओं के लिए धार्मिक तौर पर सहनशील और धर्म निरपेक्ष था। आम तौर पर सिख साम्राज्य की स्थापना सिख धर्म के राजनैतिक तल का शिखर माना जाता है, इस समय पर ही सिख साम्राज्य में कश्मीर, लद्दाख़ और पेशावर शामिल हुए थे। हरी सिंह नलवा, ख़ालसा फ़ौज का मुख्य जनरल था जिसने ख़ालसा पन्थ का नेतृत्व करते हुए ख़ैबर पख़्तूनख़्वा से पार दर्र-ए-ख़ैबर पर फ़तह हासिल करके सिख साम्राज्य की सरहद का विस्तार किया। धर्म निरपेक्ष सिख साम्राज्य के प्रबन्ध के दौरान फ़ौजी, आर्थिक और सरकारी सुधार हुए थे। 1947 में पंजाब का बँटवारा की तरफ़ बढ़ रहे महीनों के दौरान, पंजाब में सिखों और मुसलमानों के दरम्यान तनाव वाला माहौल था, जिसने पश्चिम पंजाब के सिखों और हिन्दुओं और दूसरी ओर पूर्व पंजाब के मुसलमानों का प्रवास संघर्षमय बनाया। .

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सिख साम्राज्य

महाराजा रणजीत सिंह सिख साम्राज्य(ਸਿੱਖ ਸਲਤਨਤ; साधारण नाम खाल्सा राज) का उदय, उन्नीसवीं सदी की पहली अर्धशताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर में एक ताकतवर महाशक्ती के रूप में हुआ था। महाराज रणजीत सिंह के नेत्रित्व में उसने, स्वयं को पश्चिमोत्तर के सर्वश्रेष्ठ रणनायक के रूप में स्थापित किया था, जन्होंने खाल्सा के सिद्धांतों पर एक मज़बूत, धर्मनिर्पेक्ष हुक़ूमत की स्थापना की थी जिस की आधारभूमि पंजाब थी। सिख साम्राज्य की नींव, सन् १७९९ में रणजीत सिंह द्वारा, लाहौर-विजय पर पड़ी थी। उन्होंने छोटे सिख मिस्लों को एकत्रित कर एक ऐसे विशाल साम्राज्य के रूप में गठित किया था जो अपने चर्मोत्कर्ष पर पश्चिम में ख़ैबर दर्रे से लेकर पूर्व में पश्चिमी तिब्बत तक, तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मिथान कोट तक फैला हुआ था। यह १७९९ से १८४९ तक अस्तित्व में रहा था। .

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संतूर

संतूर भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है। संतूर एक वाद्य यंत्र है। संतूर का भारतीय नाम 'शततंत्री वीणा' यानी सौ तारों वाली वीणा है जिसे बाद में फ़ारसी भाषा से संतूर नाम मिला।.

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संदीपा धर

संदीपा धर भारतीय अभिनेत्री हैं। संदीपा ने फ़िल्मों में अभिनय की शुरुआत 2010 में हिन्दी फ़िल्म इसी लाइफ में से की। उन्हें फ़िल्म में उनके अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार के फ़िल्मफेयर पुरस्कार, स्टार स्क्रीन अवार्ड और स्टारडस्ट पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया। संदीपा फ़िल्म दबंग 2 में केमियो अभिनय में आयीं। .

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संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची

यह संस्कृत मूल के अंग्रेजी शब्दों की सूची है। इनमें से कई शब्द सीधे संस्कृत से नहीं आये बल्कि ग्रीक, लैटिन, फारसी आदि से होते हुए आये हैं। इस यात्रा में कुछ शब्दों के अर्थ भी थोड़े-बहुत बदल गये हैं। .

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संग्रामपीड १

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणी:कश्मीर के राजा.

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संग्रामपीड २

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणी:कश्मीर के राजा.

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सुभाष काक

सुभाष काक सुभाष काक (जन्म 26 मार्च 1947) प्रमुख भारतीय-अमेरिकी कवि, दार्शनिक और वैज्ञानिक हैं। वे अमेरिका के ओक्लाहोमा प्रान्त में संगणक विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके कई ग्रन्थ वेद, कला और इतिहास पर भी प्रकाशित हुए हैं। उनका जन्म श्रीनगर, कश्मीर में राम नाथ काक और सरोजिनी काक के यहाँ हुआ। उनकी शिक्षा कश्मीर और दिल्ली में हुई। .

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सुम्गल

अंतरिक्ष से ली गई इस तस्वीर में लद्दाख़ का सुम्गल बस्ती, ख़ोतान क्षेत्र की पूषा बस्ती और उन्हें जोड़ता हुआ हिन्दूताश दर्रा (लाल रंग में) देखा जा सकता है सन् १९११ में बनाए भारतीय भौगोलिक निरीक्षण में ओरल स्टाइन द्वारा बनाये गए इस नक़्शे में सुम्गल और हिन्दूताश दवान देखे जा सकते हैं सुम्गल लद्दाख़ के अक्साई चीन क्षेत्र में काराकाश नदी की वादी में स्थित एक उजड़ी हुई बस्ती है। यह उस क्षेत्र में पड़ता है जिसे भारत अपना अंग मानता है लेकिन जिसपर चीन का क़ब्ज़ा है। चीन ने इसे शिनजियांग प्रान्त का हिस्सा घोषित कर दिया है। लद्दाख़ क्षेत्र के सुम्गल से लगभग उत्तर में हिन्दूताश दर्रा है जिस से कुनलुन पर्वत शृंखला पार करके ऐतिहासिक ख़ोतान क्षेत्र पहुँचा जा सकता है, इसलिए सुम्गल भारत की मुख्यभूमि को ख़ोतान राज्य से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण मार्ग पर एक अहम पड़ाव हुआ करता था। .

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सुहागा

बोरेक्स का क्रिस्टल सुहागा (Na2B4O7·10H2O; संस्कृत: सुभग; अंग्रेजी: Borax) टांकण (बोरॉन) का एक यौगिक, खनिज तथा बोरिक अम्ल का लवण है। इसे 'क्षारातु बोरेट', 'सोडियम टेट्राबोरेट', या 'डाईसोडियम टेट्राबोरेट' भी कहते हैं। प्राय: यह मुलायम सफेद पाउडर के रूप में मिलता है जो पानी में आसानी से घुल जाता है। सुहागा तिब्बत, लद्दाख और कश्मीर में बहुत मिलता है। .

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स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास

कोई विवरण नहीं।

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स्वामी आनन्दबोध

स्वामी आनन्दबोध सरस्वती (१९०९ - अक्टूबर १९९४) आर्यसमाज के नेता तथा संसद सदस्य थे। उनका मूल नाम 'रामगोपाल शालवाले' था। श्री आनन्दगोपाल शालवाले का जन्म कश्मीर के अनन्तनाग में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री लाला नन्दलाल था जो मूलतः अमृतसर के निवासी थे। .

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सैयद अली शाह गिलानी

सैय्यद अली शाह गिलानी भारत के एक पाकिस्तानपरस्त इस्लामिक अलगाववादी व्यक्तित्व है जिनका कश्मीरी आतंकवादिता को बढावा देने में खुला हाथ है। वे कश्मीर के पाकिस्तान में विलय करने के समर्थक हैं। गीलानी भारत के जम्मू कश्मीर छेत्र के प्रमुख अलगावादी नेता हैं। वह पहले जमात ए इस्लामी कश्मीर के एक सदस्य थे, लेकिन बाद में इन्होने तहरीक ए हुर्रियत के नाम से अपनी पार्टी की स्थापना की। इस समय यह हुर्रियत कांफ्रेंस के सभी दलों के अध्य्क्श हैं जो जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी दलों का एक समूह है। यह जम्मू एवं कश्मीर के सोपोर क्षेत्र के एक पूर्व विधायक भी हैं। यह कश्मीर में लोक्प्रिय हैं और वहाँ की जनता उन्हे 'बाब" केहलाती है। गीलानी का ताल्लुक़ बारामूला ज़िले के क़स्बे सोपोर से है। पाकिस्तानपरस्त अलगाववादी होने के साथ साथ वो इलम और अदब से शग़फ़ रखने वाली शख़्सियत भी हैं और अल्लामा इक़बाल के बहुत बड़े मद्दाह हैं। वो अपने दौर असीरी की याददाश्तें एक किताब की सूरत में तहरीर करचुके हैं जिस का नाम "रूदाद क़फ़स" है। सय्यद अलीशाह गिलानी ऐसी शख्स हैं जो पासपोर्ट भारत का ही लेते है, और लिख कर देते है कि मैं भारतीय नागरिक हूँ। पाकिस्तान परस्ती की वजह से उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक हिस्सा कश्मीरी जेल में और अपने आलीशान घर में नजरबंदी में रह कर भी गुज़ारा है। अलगाववादी नेता सैय्यद अलीशाह गिलानी को भारतीय नागरिक बने रहने तथा भारत के प्रति ही वफादार बने रहने की शपथ और लिखित / घोषित शपथपत्रों तथा पाकिस्तानी राजदूतावास के ईद मिलन व अन्य कार्यक्रमों का भारत व कश्मीर के विस्तृत हित को देखते हुऐ बहिष्कार करने के पुरस्कार स्वरूप हालिया भारत सरकार ने 21 जुलाई 2015 को 9 माह तक का वैध भारतीय पासपोर्ट जारी कर दिया है .

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सूरजकुण्ड हस्तशिल्प मेला

उत्तराखंड राज के थीम पर बना बद्रीनाथ मंदिर की तरह का मेले का प्रवेशद्वार सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला, भारत की एवं शिल्पियों की हस्तकला का १५ दिन चलने वाला मेला लोगों को ग्रामीण माहौल और ग्रामीण संस्कृति का परिचय देता है। यह मेला हरियाणा राज्य के फरीदाबाद शहर के दिल्ली के निकटवर्ती सीमा से लगे सूरजकुंड क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगता है। यह मेला लगभग ढाई दशक से आयोजित होता आ रहा है। वर्तमान में इस मेले में हस्तशिल्पी और हथकरघा कारीगरों के अलावा विविध अंचलों की वस्त्र परंपरा, लोक कला, लोक व्यंजनों के अतिरिक्त लोक संगीत और लोक नृत्यों का भी संगम होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। २८ जनवरी २०१० इस मेले में हर वर्ष किसी एक राज्य को थीम बना कर उसकी कला, संस्कृति, सामाजिक परिवेश और परंपराओं को प्रदर्शित किया जाता है। वर्ष २०१० में राजस्थान थीम राज्य है। इसे दूसरी बार यह गौरव प्राप्त हुआ है। मेले में लगे स्टॉल हर क्षेत्र की कला से परिचित कराते हैं। सार्क देशों एवं थाईलैंड, तजाकिस्तान और मिस्र के कलाशिल्पी भी यहां आते हैं। पश्चिम बंगाल और असम के बांस और बेंत की वस्तुएं, पूर्वोत्तर राज्यों के वस्त्र, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश से लोहे व अन्य धातु की वस्तुएं, उड़ीसा एवं तमिलनाडु के अनोखे हस्तशिल्प, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब और कश्मीर के आकर्षक परिधान और शिल्प, सिक्किम की थंका चित्रकला, मुरादाबाद के पीतल के बर्तन और शो पीस, दक्षिण भारत के रोजवुड और चंदन की लकड़ी के हस्तशिल्प भी यहां प्रदर्शित हैं। यहां अनेक राज्यों के खास व्यंजनों के साथ ही विदेशी खानपान का स्वाद भी मिलता है। मेला परिसर में चौपाल और नाट्यशाला नामक खुले मंच पर सारे दिन विभिन्न राज्यों के लोक कलाकार अपनी अनूठी प्रस्तुतियों से समा बांधते हैं। शाम के समय विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। दर्शक भगोरिया डांस, बीन डांस, बिहू, भांगड़ा, चरकुला डांस, कालबेलिया नृत्य, पंथी नृत्य, संबलपुरी नृत्य और सिद्घी गोमा नृत्य आदि का आनंद लेते हैं। विदेशों की सांस्कृतिक मंडलियां भी प्रस्तुति देती हैं। .

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सूर्य मंदिर, जम्मू

दक्षिण कश्मीर के मार्तण्ड के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के प्रतिरूप का सूर्य मंदिर जम्मू में भी बनाया गया है। बसंत नगर पालौरा स्थित मंदिर के परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु इकट्ठा हुए। मार्तण्ड तीर्थ ट्रस्ट ‘मंदिर प्रशासन’ के अध्यक्ष अशोक कुमार सिद्ध के अनुसार मंदिर मुख्यत: तीन हिस्सों में बना है। पहले हिस्से में भगवान सूर्य रथ पर सवार हैं जिसे सात घोड़े खींच रहे हैं। दूसरे हिस्से में दुर्गा गणेश कार्तिकेय पार्वती और शिव की प्रतिमा है और तीसरे हिस्से में यज्ञशाला है। हिन्दू मिथक के अनुसार मार्तण्ड कश्यप ऋषि के तीसरे बेटे का जन्म स्थान है। सूर्य मंदिर श्रेणी:सूर्य मंदिर.

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सोमदेव

सोमदेव (अनुमानतः ग्यारहवीं शताब्दी) कथासरित्सागर के रचयिता हैं। वे कश्मीर के निवासी थे। सोमदेव के जीवन के बारे में कुछ भी पता नहीं है। उनके पिता का नाम 'राम' था। सम्भवतः १०६३ और १०८१ के मध्य उन्होने रानी सूर्यमती के चित्तविनोद के लिये उन्होने इस महाग्रन्थ की रचना की। सूर्यमती जालन्धर की राजकुमारी और कश्मीर के राजा अनन्तदेव की पत्नी थीं। कहा जाता है कि भयानक राजनैतिक अशान्ति, रक्तपात और जटिल परिस्थितियों के कारण बिषादग्रस्त हुई रानी के मानसिक स्वास्थ्य के लिये इस ग्रन्थ की रचना हुई। सोमदेव शैव ब्राह्मण थे। तथापि बौद्ध धर्म के प्रति भी उनकी अगाध श्रद्धा थी। कथासरित्सागर के किसी-किसी कथा में इसी कारण बौद्ध प्रभाव परिलक्षित होता है। .

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सोमानन्द

सोमानन्द (875 – 925 ई) कश्मीर के शैव दर्शन के प्रमुख स्तम्भों में से एक थे। श्रेणी:शैव दर्शन.

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हरमुख

हरमुख भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के गान्दरबल ज़िले में सिन्द नदी (सिन्धु नदी से भिन्न) और किशनगंगा नदी के बीच स्थित एक ५,१४२ मीटर (१६,८७० फ़ुट) ऊँचा पहाड़ है। यह गंगाबल झील से उभरता हुआ प्रकट होता है और हिन्दुओं द्वारा पवित्र माना जाता है।, kousa.org, Accessed 2012-04-24 इसे चढ़ने का सबसे आसान मार्ग बांडीपूर ज़िले के आरीन क्षेत्र से जाता है। .

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हरि पर्वत

हरि पर्वत भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में डल झील के पश्चिम ओर स्थित है। इस छोटी पहाड़ी के शिखर पर इसी नाम का एक किला बना है जिसका अनुरक्षण जम्मू कश्मीर सरकार का पुरातत्व विभाग के अधीन है। इस किले में भ्रमण हेतु पर्यटकों को पहले पुरातत्त्व विभाग से अनुमति लेनी होती है। क़िले का निर्माण एक अफ़ग़ान गर्वनर मुहम्मद ख़ान ने १८वीं शताब्दी में करवाया था। उसके बाद १५९० ई॰ में मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा इस क़िले की चहारदीवारी का निर्माण करवाया गया। .

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हरिपुर ज़िला

हरिपुर (उर्दू:, पश्तो:, अंग्रेज़ी: Mansehra) पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत का एक ज़िला है। इसके पश्चिम में स्वाबी ज़िला, पश्चिमोत्तर में बुनेर ज़िला, उत्तर में मानसेहरा ज़िला, पूर्वोत्तर में ऐब्टाबाद ज़िला और दक्षिण में पंजाब प्रांत पड़ता है। हरिपुर ज़िला ऐतिहासिक हज़ारा क्षेत्र का हिस्सा है, जो ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा में होने के बावजूद एक पंजाबी प्रभावित क्षेत्र माना जाता है। .

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हामिद गुल

हामिद गुल एक प्रमुख पाकिस्तानी जनरल (सीनियर सैनिक ऑफ़िसर) हैं जो कश्मीरी अलगाववादियों को सहायता देने के लिए जाने जाते हैं। .

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हिन्दुओं का उत्पीड़न

हिन्दुओं का उत्पीडन हिन्दुओं के शोषण, जबरन धर्मपरिवर्तन, सामूहिक नरसहांर, गुलाम बनाने तथा उनके धर्मस्थलो, शिक्षणस्थलों के विनाश के सन्दर्भ में है। मुख्यतः भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा मलेशिया आदि देशों में हिन्दुओं को उत्पीडन से गुजरना पड़ा था। आज भी भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ हिस्सो में ये स्थिति देखने में आ रही है। .

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हिन्दू मेला

हिन्दु मेला एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था थी जिसकी स्थापना 1867 में गणेन्द्रनाथ ठाकुर ने द्विजेन्द्र नाथ ठाकुर, राजनारायण बसु और नवगोपाल मित्र के साथ मिलकर की थी। इसे 'चैत्र मेला' भी कहते थे क्योंकि इसकी स्थापना चैत्र संक्रान्ति (बंगाली वर्ष का अन्तिम दिन) के दिन हुई थी। गगेन्द्रनाथ ठाकुर इसके संस्थापक सचिव थे। हिन्दु मेला ने बंगाल के पढे लिखे वर्ग में देश के लिये सोचने, उसके प्रति देशवासियों को तैयार करने की कोशिश की। यह किसी धार्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बनी थी। यह देशभक्ति का विकास और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने का कार्य करती थी। इसका उद्देश्य भारत की सभ्यता की कीर्ति को पुनर्जीवित करना, देशवासियों को जागृत करना, राष्ट्रभाषा का विकास करना, उनके विचारों को उन्नत बनाना था ताकि अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे सांस्कृतिक उपनिवेशीकरण का प्रतिकार किया जा सके। यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र संक्रान्ति को आयोजित किया जाता था। इसमें देशभक्ति के गीत, कविताएँ और व्याख्यान होते थे। इसमें भारत के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक दशा की विस्तृत समीक्षा की जाती थी। स्वदेशी कला, स्वदेशी हस्तशिल्प, स्वदेशी व्यायाम और पहलवानी की प्रदर्शनी लगती थी। इसमें अखिल भारतीयता का भी ध्यान रखा जाता था तथा बनारस, जयपुर, लखनऊ, पटना और कश्मीर आदि की कलात्मक वस्तुएं, हस्तशिल्प आदि का प्रदर्शन न्ही किया जाता था। 'लज्जय भारत-यश गाइबो की कोरे?' नामक गाना इसमें कई बार गाया गया। इसके रचयिता गगेन्द्रनाथ थे। १८९० के दशक में इस संस्था का प्रभाव कम हो गया किन्तु इसने स्वदेशी आन्दोलन के लिए जमीन तैयार कर दी थी। .

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हिमालय

हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं। इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत पाँच देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान और चीन। अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 7200 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है। हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। भूनिर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्र प्लेटों के एशियाई प्लेट में टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)। .

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हिमालयी भूगर्भशास्त्र

हिमालयी भूगर्भशास्त्र (अंग्रेज़ी: Geology of the Himalaya) हिमालय पर्वत तंत्र की भूगर्भशास्त्रीय व्याख्या करता है। इसके अन्तर्गत हिमालय पर्वत के उद्भव और विकास की, तथा इसकी भूगर्भिक संरचना और यहाँ पायी जाने वाली शैल समूहों और क्रमों की व्याख्या की जाती है। .

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हिमालयी मोनाल

हिमालयी मोनाल (Himalayan monal) (Lophophorus impejanus) जिसे नेपाल और उत्तराखंड में डाँफे के नाम से जानते हैं। यह पक्षी हिमालय पर पाये जाते हैं। यह नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी और उत्तराखण्ड का "राज्य पक्षी" है। .

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हज़रतबल

हज़रतबल (درگاہ حضرت بل, दरगाह हज़रतबल) भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर में स्थित एक प्रसिद्ध दरगाह है। मान्यता है कि इसमें इस्लाम के नबी, पैग़म्बर मुहम्मद, का एक दाढ़ी का बाल रखा हुआ है, जिस से लाखों लोगों की आस्थाएँ जुड़ी हुई हैं। कश्मीरी भाषा में 'बल' का अर्थ 'जगह' होता है, और हज़रतबल का अर्थ है 'हज़रत (मुहम्मद) की जगह'। हज़रतबल डल झील की बाई ओर स्थित है और इसे कश्मीर का सबसे पवित्र मुस्लिम तीर्थ माना जाता है। फ़ारसी भाषा में 'बाल' को 'मू' या 'मो' (مو) कहा जाता है, इसलिए हज़रतबल में सुरक्षित बाल को 'मो-ए-मुक़द्दस' या 'मो-ए-मुबारक' (पवित्र बाल) भी कहा जाता है। .

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ह्वेन त्सांग

ह्वेन त्सांग का एक चित्र ह्वेन त्सांग एक प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु था। वह हर्षवर्द्धन के शासन काल में भारत आया था। वह भारत में 15 वर्षों तक रहा। उसने अपनी पुस्तक सी-यू-की में अपनी यात्रा तथा तत्कालीन भारत का विवरण दिया है। उसके वर्णनों से हर्षकालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक अवस्था का परिचय मिलता है। .

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हींग

हींग (अंग्रेजी: Asafoetida) सौंफ़ की प्रजाति का एक ईरान मूल का पौधा (ऊंचाई 1 से 1.5 मी. तक) है। ये पौधे भूमध्यसागर क्षेत्र से लेकर मध्य एशिया तक में पैदा होते हैं। भारत में यह कश्मीर और पंजाब के कुछ हिस्सों में पैदा होता है। हींग एक बारहमासी शाक है। इस पौधे के विभिन्न वर्गों (इनमें से तीन भारत में पैदा होते हैं) के भूमिगत प्रकन्दों व ऊपरी जडों से रिसनेवाले शुष्क वानस्पतिक दूध को हींग के रूप में प्रयोग किया जाता है। कच्ची हींग का स्वाद लहसुन जैसा होता है, लेकिन जब इसे व्यंजन में पकाया जाता है तो यह उसके स्वाद को बढा़ देती है। इसे संस्कृत में 'हिंगु' कहा जाता है। हींग दो प्रकार की होती हैं- एक हींग काबूली सुफाइद (दुधिया सफेद हींग) और दूसरी हींग लाल। हींग का तीखा व कटु स्वाद है और उसमें सल्फर की मौजूदगी के कारण एक अरुचिकर तीक्ष्ण गन्ध निकलता है। यह तीन रूपों में उपलब्ध हैं- 'टियर्स ', 'मास ' और 'पेस्ट'। 'टियर्स ', वृत्ताकार व पतले, राल का शुध्द रूप होता है इसका व्यास पाँच से 30 मि.मी.

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जम्मू

जम्मू (جموں, पंजाबी: ਜੰਮੂ), भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब (चंद्रभागा) है। जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को "मन्दिरों का शहर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है। .

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जम्मू (बहुविकल्पी)

कोई विवरण नहीं।

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जम्मू एवं काश्मीर का इतिहास

सन १८४५ की अंग्रेजो और सिखों के बीच हुई लडाई में सिख हार गए ! इसलिए राजा गुलाब सिंह की उपस्थिथि मैं अंग्रेजो व सिखों के बीच संधि मार्च ९, १८४६ को लाहोर में हुई ! फलस्वरूप अंग्रेजो ने जम्मू और कश्मीर राजा गुलाब सिंह को ७५ लाख नानकशाही रूपये में दे दिया ! इसके बाद ही जम्मू और कश्मीर एक अलग राज्य के रूप में स्थापित हो पाया ! महाराजा गुलाब सिंह -> महाराजा रणबीर सिंह ->महाराजा प्रताप सिंह -->महाराजा हरी सिंह श्रेणी:इतिहास.

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जम्मू और कश्मीर

जम्मू और कश्मीर भारत के सबसे उत्तर में स्थित राज्य है। पाकिस्तान इसके उत्तरी इलाके ("पाक अधिकृत कश्मीर") या तथाकथित "आज़ाद कश्मीर" के हिस्सों पर क़ाबिज़ है, जबकि चीन ने अक्साई चिन पर कब्ज़ा किया हुआ है। भारत इन कब्ज़ों को अवैध मानता है जबकि पाकिस्तान भारतीय जम्मू और कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र मानता है। राज्य की आधिकारिक भाषा उर्दू है। जम्मू नगर जम्मू प्रांत का सबसे बड़ा नगर तथा जम्मू-कश्मीर राज्य की जाड़े की राजधानी है। वहीं कश्मीर में स्थित श्रीनगर गर्मी के मौसम में राज्य की राजधानी रहती है। जम्मू और कश्मीर में जम्मू (पूंछ सहित), कश्मीर, लद्दाख, बल्तिस्तान एवं गिलगित के क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस राज्य का पाकिस्तान अधिकृत भाग को लेकर क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग कि॰मी॰ एवं उसे 1,38,124 वर्ग कि॰मी॰ है। यहाँ के निवासियों अधिकांश मुसलमान हैं, किंतु उनकी रहन-सहन, रीति-रिवाज एवं संस्कृति पर हिंदू धर्म की पर्याप्त छाप है। कश्मीर के सीमांत क्षेत्र पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सिंक्यांग तथा तिब्बत से मिले हुए हैं। कश्मीर भारत का महत्वपूर्ण राज्य है। .

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जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस

जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस (JKN), जम्मू-कश्मीर के भारतीय राज्य में एक राज्य राजनीतिक पार्टी है। शेख अब्दुल्ला ने 1947 में भारत की आजादी के समय के नेतृत्व में, यह कई दशकों से राज्य में चुनावी राजनीति हावी रही। यह शेख के पुत्र फारूक अब्दुल्ला (1981-2002) और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला (2002-2009) द्वारा बाद में नेतृत्व किया गया है। फारूक अब्दुल्ला को फिर 2009 में पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था। .

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जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकार हनन

जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकार हनन एक बहुत अहम मामला है जिसमें कश्मीरी लोग या कश्मीर के रहने वालों के सामूहिक हत्या, जबरन गायब, बलात्कार, यातना, बाल सैनिक प्रयोग, राजनीतिक दमन, अभिव्यक्ति स्वतंत्रता का दमन किये जाते हैं। भारतीय केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल और सीमा सुरक्षा पर यह आरोप लगाया हुआ है कि वे गंभीर रूप से कश्मीर में मानवाधिकार हनन कर रहे हैं। यह आरोप को विभिन्न भारतीय सेनाएँ और अन्य अर्धसैनिक समूहों पर भी लगाया हुआ है। मानवाधिकार हनन के कारण से कश्मीर में विभिन्न उग्रवादी स्वतंत्रता संगठन जन्मे हुए हैं। .

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जम्मू और कश्मीर में विद्रोह

कश्मीर में उग्रवाद (इनसर्जन्सी) विभिन्न रूपों में मौजूद है। वर्ष 1989 के बाद से उग्रवाद और उसके दमन की प्रक्रिया, दोनों की वजह से हजारों लोग मारे गए। 1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरूआत हुई, जिसमें राज्य विधानसभा के कुछ तत्वों ने एक आतंकवादी खेमे का गठन किया, जिसने इस क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह में एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई.

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जम्मू और कश्मीर का ध्वज

जम्मू और कश्मीर के ध्वज की गहरी लाल पृष्ठभूमि श्रम की परिचायक है, जिसके ऊपर बना हल कृषि को दर्शाता है। ध्वज पर बनी तीन ऊर्ध्वाधर धारियाँ, राज्य के तीन भूभागों, जम्मू, कश्मीर घाटी तथा लद्दाख का प्रतिनिधित्व करती हैं। जम्मू और कश्मीर भारत का एकमात्र राज्य है, जिसे अपना ध्वज फहराने का अधिकार प्राप्त है, क्यूँकि इस राज्य को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 अंतर्गत विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है। .

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जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट

जेकेएलएफ़ का चिह्न, स्वतंत्र कश्मीर के लिए एक प्रसावित परचम जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट (जेकेएलएफ़, अंग्रेज़ी: Jammu Kashmir Liberation Front - JKLF) जम्मू और कश्मीर में एक राजनीतिक संगठन है जिसका स्थापना अमानुल्लाह ख़ान और मक़बूल भट्ट ने किया है। यह मूलतः प्लेबिसाइट फ़्रंत की मिलिटेंट शाखा थी लेकिन 29 मई, 1977 को बर्मिंघम, इंग्लिस्तान में यह जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट में परिवर्तित हो गया। उस समय से 1994 तक यह एक सक्रिय मिलिटेंत संगठन रहा है। संयुक्त राजशाही, यूरोप, संयुक्त राज्य और मध्य-पूर्व के कई नगरों में इस संगठन की शाखाएँ मौजूद हैं। 1982 में पाक-अधिकृत कश्मीर के आज़ाद कश्मीर क्षेत्र में इसकी एक शाखा स्थापित हुई थी; जबकि 1987 में भारत-अधिकृत कश्मीर की कश्मीर घाटी में इसकी एक शाखा स्थापित हुई। 1994 के बाद कश्मीर घाटी में मौजूद जेकेएलएफ़ के सैन्य बलों ने यासीन मलिक के नेतृत्व में 'अनिश्चितकालीन युद्धविराम' का ऐलान किया था, और कथित तौर पर इसकी सैन्य शाखा विघटित हुई। इसके नए उद्देश्य पूर्व जम्मू और कश्मीर रियासत के संपूर्ण क्षेत्र की स्वतंत्रता के लिए राजनीतिक संघर्ष करना है। पाकिस्तान में स्थित जेकेएलएफ़ की शाखा इस नए उद्देश्य से असहमत थे और नतीजे में ये घाटी में स्थित शाखा से अलग हुए। 2005 में दोनों समूहों फिर से एकजुट हुआ और अंततः संगठन का मूल पहचान बरक़रार रखा गया था। हालांकि जेकेएलएफ़ के केवल मुसलमान सदस्य हैं, किन्तु फ़्रंट का दावा है कि संगठन धारणात्मक रूप से धर्मनिरपेक्ष है। इसका अंतिम लक्ष्य एक धर्मनिरपेक्ष और स्वतंत्र कश्मीर है जो दोनों भारत और पाकिस्तान से मुक्त है।, UNHCR,2003-08-07 पाकिस्तानी सेना से हथियार और प्रशिक्षण प्राप्त करने के बावजूद, यह संगठन पाकिस्तान को एक 'क़ब्ज़ा करने वाली शक्ति' के रूप में मानता है और आज़ाद कश्मीर में यह पाकिस्तान के ख़िलाफ़ राजनीतिक संघर्ष भी करता है। .

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जयपाल

जयपाल काबुल में जाट राजवंश का प्रसिद्ध शासक था जिसने 964 से 1001 ई तक शासन किया। उसका राज्य लघमान से कश्मीर तक और सरहिंद से मुल्तान तक विस्तृत था। पेशावर इसके राज्य का केन्द्र था। वह हतपाल का पुत्र तथा आनन्दपाल का पिता था। बारी कोट के शिलालेख के अनुसार उसकी पदवी "परम भट्टरक महाराजाधिराज श्री जयपालदेव" थी। मुसलमानों का भारत में प्रथम प्रवेश जयपाल के काल में हुआ। 977 ई. में गजनी के सुबुक्तगीन ने उस पर आक्रमण कर कुछ स्थानों पर अधिकार कर लिया। जयपाल ने प्रतिरोध किया, किंतु पराजित होकर उसे संधि करनी पड़ी। अब पेशावर तक मुसलमानों का राज्य हो गया। दूसरी बार सुबुक्तगीन के पुत्र महमूद गजनवी ने जयपाल को पराजित किया। लगातार पराजयों से क्षुब्ध होकर इसने अपने पुत्र अनंगपाल को अपना उत्तराधिकारी बनाया और आग में जलकर आत्महत्या कर ली। .

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जयपीड

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणीः व्यक्तिगत जीवन श्रेणीः कश्मीर.

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जयश्री ओडिन

जयश्री काक ओडिन एक कश्मीरी लेखिका है जो अमेरिका के हवाई विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है। उनका शोध शैव दर्शन और कश्मीर की कवियित्री लल्लेश्वरी पर हुआ है। उन्होंने कश्मीर की सूफी ऋषि परम्परा पर भी लिखा है और नन्द ऋषि की कविताओं का अनुवाद किया है। उन्होंने टेक्नालिजी और समाज पर भी शोध किया है। .

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जयादित्य

जयादित्य संस्कृत के वैयाकरण थे। काशिकावृत्ति जयादित्य और वामन की सम्मिलित रचना है। हेमचंद्र (११४५ वि.) ने अपने 'शब्दानुशासन' में व्याख्याकार जयादित्य को बहुत ही रुचिपूर्ण ढंग से स्मरण किया है। चीनी यात्री इत्सिंग ने अपनी भारत यात्रा के प्रसंग में जयादित्य का प्रभावपूर्ण ढंग से वर्णन किया है। जयादित्य के जनम मरण आदि वृत्तांत के बारे में कोई भी परिमार्जित एवं पुष्कल ऐतिहासिक सामग्री नहीं मिलती। इत्सिंग की भारतयात्रा एवं विवरण से कुछ जानकारी मिलती है। तदनुसार जयादित्य का देहावसान सं.

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जल्हण

जल्हण संस्कृत के एक प्रख्यात कश्मीरी कवि। इनके पिता का नाम लक्ष्मीदेव था। ये राजपुरी के कृष्ण नामक राजा के मंत्री थे जिसने सन्‌ 1147 ई. में राज्य प्राप्त किया था। इनकी अनेक रचनाएँ प्राप्त हैं। ऐतिहासिक काव्य लिखनेवालों में इनका नाम राजतरंगिणीकार कल्हण के बाद आता है। 'श्रीकंठचरित' महाकाव्य के रचयिता मंख या मंखक के कथानुसार जल्हण उसके भाई अलंकार की विद्वत्सभा के पंडित थे। अलंकार कश्मीर नरेश जयसिंह के मंत्री थे जिनका समय ई. 1129-1150 है। .

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जलौक

जलौक कश्मीर का शासक था। उसका उल्लेख राजतरंगिणी में हुआ है। जलौक की पहचान के विषय में मतैक्य नहीं है। जलौक, शायद कोई कुषाण शासक हो जिसका नाम गलत रूप में प्रयुक्त् होता आया हो। किन्तु वर्तमान स्थिति में जलौक के विषय में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। आधुनिक विद्वान् उसे अशोक का पुत्र मानते हैं। संभवत: अशोक के राज्यकाल में जलौक कश्मीर का राज्यपाल रहा होगा। अनंतर जलौक ने स्वयं को वहाँ का स्वतंत्र शासक घोषित किया होगा। कल्हण उसे म्लेच्छों का संहारकर्त्ता एवं संपूर्ण धरित्री का विजेता बताते हैं। किंतु साधारणतया कान्यकुब्ज तक के प्रदेशों पर ही उसके आक्रमण ऐतिहासिक जान पड़ते हैं। उत्तर भारत में उसके साम्राज्यविस्तार की सीमा का निर्धारण संभव नहीं है। उसने कश्मीर में वर्णाश्रम व्यवस्था स्थापित की। बौद्धवादिसमूहजित् शैव गुरु के प्रभाव से वह विजयेश्वर एवं भूतेश का उपासक हुआ होगा। राजतरंगिणी से विदित होता है कि आरंभ में वह बौद्धविरोधी था, पर बाद में उसकी आस्था बौद्ध धर्म में भी हुई और उसने कीर्ति आश्रम विहार की स्थापना कराई। श्रेणी:कश्मीर श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास.

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ज़ैन-उल-अबिदीन

सुल्तान ग़ियास​-उद​-दीन ज़ैन​-उल-अबिदीन (Zain-ul-Abidin) मध्यकालीन कश्मीर में १४२३-१४७४ काल में राज करने वाले एक सुल्तान थे जिनका राज्य आधुनिक भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य पर विस्तृत था। वे मध्यकालीन कश्मीर के सबसे महान शासकों में से एक गिने जाते हैं जिन्होनें सर्वधार्मिक उदारता और प्रशासनिक निपुणता के साथ राज किया। हिन्दू व मुस्लिम कश्मीरी लोग इज़्ज़त से बुड शाह (यानि 'बड़े शाह' या 'महान शाह') के नाम से याद करते हैं। उनके देहांत के बाद कश्मीर में शाह मीर वंश का पतन होना शुरु हो गया।, Mohan C. Bhandari, pp.

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जैश-ए-मोहम्मद

जैश-ए-मुहम्मद का ध्वज जिसमें अरबी भाषा में 'अल-जिहाद' लिखा हुआ है जैश-ए-मुहम्मद एक पाकिस्तानी जिहादी संगठन है जिसका एक ध्येय भारत से कश्मीर को अलग करना है हालांकि यह अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों में भी शामिल समझे जाती हैं। इसकी स्थापना मसूद अज़हर नामक पाकिस्तानी पंजाबी नेता ने मार्च २००० में की थी। इसे भारत में हुए कई आतंकवादी हमलो के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है और जनवरी २००२ में इसे पाकिस्तान की सरकार ने भी प्रतिबंधित कर दिया। इसके बाद जैश-ए-मुहम्मद ने अपना नाम बदलकर 'ख़ुद्दाम उल-इस्लाम​' कर दिया। सुरक्षा विषयों के समीक्षक बी रामन ने इसे एक 'मुख्य आतंकवादी संगठन' बताया है और यह भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा जारी आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल है। .

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जेट कनेक्ट

जेट कनेक्ट के रूप में संचालित जेटलाइट (पूर्व नाम: एयर सहारा) मुंबई, भारत में आधारित एक वायुसेवा थी। रीडिफ.कॉम, 16 अप्रैल 2007 इसे पहले जेट एयर वेज़ कनेक्ट के नाम से जाना जाता था, जेट लाईट इंडिया लिमिटेड का एक व्यावसायिक नाम है। यह मुंबई में स्थित एक विमानन सेवा है जिस पर की जेट एयरवेज का मालिकाना हक़ है। यह विमान सेवा भारत के सभी मेट्रोपोल शहरों को जोड़ने के लिए नियमित उड़ान सेवाएँ प्रदान करती है। .

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जोनराज

जोनराज (देहांत: १४५९ ईसवी) १५वीं सदी के एक कश्मीरी इतिहासकार और संस्कृत कवि थे। उन्होंने 'द्वितीय राजतरंगिणी' नामक इतिहास-ग्रन्थ लिखा जिसमें उन्होंने कल्हण की राजतरंगिणी का सन् ११४९ तक का वृत्तान्त जारी रखते हुए अपने समकालीन सुल्तान ज़ैन-उल-अबिदीन​ (उर्फ़ 'बुड शाह') तक का वर्णन लिखा। बुड शाह का राज सन् १४२३ से १४७४ तक चला लेकिन जोनराज उनके शासनकाल का पूरा बखान नहीं लिख पाए क्योंकि उनके राजकाल के ३५वें वर्ष में ही जोनराज का देहांत हो गया। उनके शिष्य श्रीवर ने वृत्तांत आगे चलाया और उनकी कृति का नाम 'तृतीय राजतरंगिणी' था जो १४५९-१४८६ काल के बारे में है।, Rājānaka Jonarāja, Jogesh Chandra Dutt, Shyam Lal Sadhu, Atlantic Publishers & Distributors, 1993,...

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वटेश्वर

वटेश्वर (जन्म 880), दसवीं शताब्दी के भारतीय (काश्मीरी) गणितज्ञ थे जिन्होने 24 वर्ष की उम्र में वटेश्वर-सिद्धान्त नामक ग्रन्थ की रचना की और कई त्रिकोणमितीय सर्वसमिकाएँ प्रस्तुत कीं। वटेश्वर-सिद्धान्त, खगोल शास्त्र और व्यावहारिक गणित से सम्बन्धित ग्रन्थ है जिसकी रचना सन् 904 में हुई थी। .

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वनस्पती वर्गिकरण

कोई विवरण नहीं।

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वल्लभ भाई पटेल

श्रेणी: सरदार वल्लभ भाई पटेल (સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ; 31 अक्टूबर, 1875 - 15 दिसंबर, 1950) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है। .

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वाहलीक

वाहलीक या बहलीक, वाहलीक साम्राज्य का राजा था, जो आज के कश्मीर के निकट कहीं स्थित है। वह प्रतीप का पुत्र था, शांतनु का भाई और भीष्म का चाचा। कुरुक्षेत्र युद्ध में वह कुरुसेना का सबसे वयोवृद्ध योद्धा था। कुरुक्षेत्र के युद्ध में वह अनने पुत्रो और पौत्रों सहित कौरव पक्ष की ओर से लडा़। उसने सेनाविन्दु का वध किया। राजा वाहलीक का वध अपने पड़पौते भीम के हाथों १४ वें दिन के युद्ध में हुआ।.

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विलय

विलय का अर्थ है किसी वस्तु का दूसरे वस्तु में समाहित हो जाना। .

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विशनसर

विशनसर (Vishansar) भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के गान्दरबल ज़िले के सोनमर्ग क़स्बे के पास स्थित एक स्वच्छ पर्वतीय झील है। ३,७१० मीटर पर स्थित यह झील प्रसिद्ध किशनगंगा नदी का स्रोत है। इसकी लम्बाई १.० किमी और चौड़ाई ०.६ किमी है। .

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विक्की विश्वकर्मा

विक्की विश्वकर्मा केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सिआरपिएफ) के एक जवान हैं। कश्मीर में हो रही पथ्थरबाजी के विरुद्ध उन्होंने धैर्य और सहनशीलता दिखाई इसके लिये उनकी भारत में प्रशंसा की गई। जम्मू कश्मीर में पिछले दिनों केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीआरपीएफ के जवानों पर पत्थरबाजों के हमले और बदसलूकी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। उस वीडियो सामने आने के बाद भारत में लोगों ने जवानों के साथ इस प्रकार के व्यवहार की भर्त्सना की थी। .

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वज्रादित्य

वज्रादित्य कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणी:कश्मीर के राजा.

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वृंदावन उद्यान

बृंदावन उद्यान भारत के कर्नाटक राज्य के मैसूर नगर में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह उद्यान कावेरी नदी में बने कृष्णासागर बांध के साथ सटा है। इस उद्यान की आधारशिला १९२७ में रखी गयी थी और इसका कार्य १९३२ में सम्पन्न हुआ।.

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वेरीनाग

वेरिनाग भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में अनंतनाग जिले में स्थिति तहसील(शाहबाद बाला वेरिनाग) के साथ एक पर्यटन स्थल और एक अधिसूचित क्षेत्रीय समिति है। यह अनंतनाग से लगभग 26 किलोमीटर दूर और श्रीनगर से लगभग 78 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व है जो जम्मू और कश्मीर राज्य की गर्मियों की राजधानी है। जम्मू से श्रीनगर के लिए सड़क यात्रा करते समय, वेरिनाग कश्मीर घाटी का पहला पर्यटन स्थल है। यह जवाहर सुरंग को पार करने के बाद कश्मीर घाटी के प्रवेश बिंदु पर स्थित है और इसे गेटवे ऑफ कश्मीर भी कहा जाता है। कश्मीर की वितस्ता नदी उद्भव वेरीनाग नामी नगर में है। कश्मीरी भाषा में "नाग" शब्द का मतलब "पानी का चश्मा" होता है और "वेरी" शब्द की जड़ संस्कृत का "विरह" शब्द है जिसका मतलब "वापस जाना" होता है। इसका सम्बन्ध एक शिव-पार्वती के क़िस्से से है जिसमें झेलम नदी कहीं और से उत्पन्न होना चाहती थी लेकिन उसे वापस इसी जगह से चश्मे के रूप में उत्पन्न होने पर मजबूर किया गया। यहाँ हर साल भादों के महीने के कृष्ण-पक्ष की तेहरवी तारीख़ को कश्मीरी हिन्दू झेलम नदी का जन्मदिन मनाते है, जिसे "व्येथ त्रुवाह" कहते हैं। कश्मीरी में "त्रुवाह" का मतलब "तेहरवी" है और "व्येथ" झेलम नदी का कश्मीरी नाम है, यानि "व्येथ त्रुवाह" का मतलब "झेलम तेहरवी" है। पर्यटन/इतिहास- इस जगह का प्रमुख पर्यटक आकर्षण है वेरिनाग स्प्रिंग है, जिसके नाम प्सर स्थान का नाम वेरीनाग है। वेरिनाग स्प्रिंग में एक अष्टकोनी पत्थर बेसिन है और इसके आसपास के एक आर्केड है जो मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा 1620 ई.पू.

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वी के कृष्ण मेनन

वेंङालिल कृष्णन कृष्ण मेनोन (വി., ३ मई १८९६ - ६ अक्टूबर १९७४), जिन्हें सामान्यतः कृष्ण मेनोन कहा जाता है, एक भारतीय राष्ट्रवादी, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, तथा सन् १९५७ से १९६२ तक भारत के रक्षा मंत्री थे। .

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ख़ुबानी

ख़ुबानी एक गुठलीदार फल है। वनस्पति-विज्ञान के नज़रिए से ख़ुबानी, आलू बुख़ारा और आड़ू तीनों एक ही "प्रूनस" नाम के वनस्पति परिवार के फल हैं। उत्तर भारत और पाकिस्तान में यह बहुत ही महत्वपूर्ण फल समझा जाता है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह भारत में पिछले ५,००० साल से उगाया जा रहा है।Huxley, A., ed.

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खासिया

खसिया या खस कुमायूँ और टेहरी गढ़वाल (उत्तराखण्ड) में बसनेवाली एक जातिhttp://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbteditpage/khasiya-rajput-of-uttarakhand1/ जो कदाचित् उस प्राचीन खस लोगों की वंशज है, जिसका उल्लेख महाभारत, पुराण एवं अन्य साहित्य में मिलता है। प्राचीनकाल में खसों ने कश्मीर की सीमा से लेकर नेपाल पर्यंत हिमालय के निचले भाग पर अधिकार कर लिया था। उस कारण कुमायूँ प्रदेश को 'खस देश' भी कहते है। मूल खस और अन्य स्थानीय लोगों के पारस्परिक सामाजिक आदान प्रदान के फलस्वरूप खसिया जाति ने रूप धारण किया। खस राजपूत लोगोनें उत्तराखण्डमें शासन किया हुआ इतिहास हैं। कत्युरी वंश के राजाओं ने इस प्रदेश के अपने समग्र राज्य में बाहर से ब्राह्मण और क्षत्रियों को लाकर बसाया था। उनका स्थानीय खसिया लोगों के साथ जब रोटी-बेटी का व्यवहार आरंभ हुआ तो उनमें खस ब्राह्मण और खस क्षत्रिय के रूप में दो भेद हो गए। .

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गाँजा

मादा भांग के पधे के फूल, आसपास की पत्तियों एवं तने को सुखाकर बनाया गया '''गांजा''' गांजा (Cannabis या marijuana), एक मादक पदार्थ (ड्रग) है जो गांजे के पौधे से भिन्न-भिन्न विधियों से बनाया जाता है। इसका उपयोग मनोसक्रिय मादक (psychoactive drug) के रूप में किया जाता है। मादा भांग के पौधे के फूल, आसपास की पत्तियाँ एवं तनों को सुखाकर बनने वाला गांजा सबसे सामान्य (कॉमन) है। .

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गाडसर

गाडसर (Gadsar) या येमसर (Yemsar) भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के गान्दरबल ज़िले के सोनमर्ग क़स्बे के पास स्थित एक स्वच्छ पर्वतीय झील है। ३,६०० मीटर पर स्थित इस झील की लम्बाई ०.८५ किमी और चौड़ाई ०.७६ किमी है। .

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गाशरब्रुम

गाशरब्रुम (Gasherbrum) हिमालय की काराकोरम पर्वतश्रेणी की बाल्तोरो हिमानी के पूर्वोत्तरी छोर पर स्थित एक पर्वतों का समूह है जो उत्तरी कश्मीर में ३५ अंश ४४ मिनट उत्तरी अक्षांश तथा ७६ अंश ४२ मिनट पूर्वी देशान्तर पर स्थित हैं। यह शक्सगाम घाटी और गिलगित-बल्तिस्तान की सीमा पर स्थित है, जिनपर चीन व पाकिस्तान का नियंत्रण है हालांकि जिन्हें भारत अपना भाग बताता है। इस पुंजक में विश्व के तीन आठ हज़ारी पर्वत हैं, यानि वे जिनकी ऊँचाई 8,000 मीटर से अधिक है। .

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गंभीरनाथ

गंभीरनाथ, नाथ पंथ के एक प्रख्यात योगी थे जिनका जन्म कश्मीर के एक धनी परिवार में हुआ था। किंतु युवावस्था में ही उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने गोरखपुर में गोपालनाथ से दीक्षा प्राप्त की। कहा जाता है कि उन्होंने तीनों योगों की सिद्धि प्राप्त की थी। आध्यात्मिक क्षेत्र में उनका उच्च स्थान समझा जाता है। वे उन्नीसवीं शती में किसी समय हुए थे। .

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गंगाबल झील

गंगाबल झील (Gangabal Lake) या गंगबल झील भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के गान्दरबल ज़िले में हरमुख पर्वत के चरणों में स्थित एक स्वच्छ पर्वतीय झील है।, gaffarakashmir.com, Accessed 2012-04-19 भौगोलिक दृष्टि से यह एक टार्न झील या गिरिताल की श्रेणी में आती है। .

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गुलमर्ग

गुलमर्ग जम्‍मू और कश्‍मीर का एक खूबसूरत हिल स्‍टेशन है। इसकी सुंदरता के कारण इसे धरती का स्‍वर्ग भी कहा जाता है। यह देश के प्रमुख पर्यटन स्‍थलों में से एक हैं। फूलों के प्रदेश के नाम से मशहूर यह स्‍थान बारामूला ज़िले में स्थित है। यहाँ के हरे भरे ढलान सैलानियों को अपनी ओर खींचते हैं। समुद्र तल से 2730 मी.

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गुलाब

गुलाब एक बहुवर्षीय, झाड़ीदार, कंटीला, पुष्पीय पौधा है जिसमें बहुत सुंदर सुगंधित फूल लगते हैं। इसकी १०० से अधिक जातियां हैं जिनमें से अधिकांश एशियाई मूल की हैं। जबकि कुछ जातियों के मूल प्रदेश यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका भी है। भारत सरकार ने १२ फरवरी को 'गुलाब-दिवस' घोषित किया है। गुलाब का फूल कोमलता और सुंदरता के लिये प्रसिद्ध है, इसी से लोग छोटे बच्चों की उपमा गुलाब के फूल से देते हैं। .

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गुलाम अहमद महजूर

गुलाम अहमद महजूर (1885-1952) कश्मीर प्रान्त के कवि थे।.

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गुलज़ार देहलवी

पंडित आनंद कुमार ज़ुत्शी: गुल्ज़ार देह्लवी के नाम से मशहूर पंडित आनंद कुमार ज़ुत्शी, उर्दु साहिती जगत के ऐक प्रमुख शायर हैं। .

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गोएयर

गो-एयर(GoAir) भारत की कम कीमत वाली विमान सेवा है। मई २०१३ के शेयर गणना के अनुसार यह भारत की पांचवी सबसे बड़ी विमानन सेवा है। इस सेवा का प्रारंभ नवम्बर २००५ से शुरू हुआ। यह २१ शहरों में दिन भर की १०० तथा सप्ताह की ७५० उड़ानों द्वारा घरेलू विमानन सेवा प्रदान करता है। इस पर वाडिया समूह का स्वामित्व है। .

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गोनन्द

गोनन्द,काश्मीर के शासक थे। भारत के इतिहास में गोनन्द नाम के तीन राजा हुए जो प्राचीन काश्मीर के शासक थे। उन्हीं के लिये इस नाम का विशेष प्रयोग हुआ और कल्हण ने अपने काश्मीर के इतिहास राजतरंगिणी में उनका यथास्थान काफी वर्णन किया है। प्रथम गोनन्द तो प्रागैतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है और कल्हण ने उसे कलियुग के प्रारंभ होने के पूर्व का एक प्रतापी शासक माना है। उसके राज्य का विस्तार गंगा के उद्गमस्थान कैलाश पर्वत तक बताया गया है (काश्मीरेंद्र से गोनदो वेल्लगंगादुकूलया। दिशा कैलासहासिन्या प्रतापी पर्य्युपासत - राजतरंगिणी, १.५७)। यह गोनंद मगध के राजा जरासंध का संबंधी (भाई) था ओर वृष्णियों के विरुद्ध मथुरानगरी के पश्चिमी द्वार पर अवरोध किया था ताकि कृष्ण आदि उधर से भाग न निकलें। परंतु अंत में वह बलराम के हाथों संभवत: युद्ध करते मारा गया। द्वितीय गोनन्द उसके थोड़े दिन बाद शासक हुआ और कल्हण का कथन है कि उसी के समय महाभारत का युद्ध लड़ा गया। किंतु उस समय वह अभी बालक ही था और कौरवों पांडवों में किसी ने भी उससे महाभारत युद्ध में भाग लेने को नहीं कहा। उसकी माता का नाम यशोमति था, जिसकी कल्हण ने प्रशंसापूर्ण चर्चा की है। तृतीय गोनन्द काश्मीर के ऐतिहासिक युग का राजा प्रतीत होता है, परंतु उसका ठीक ठीक समय निश्चित कर सकना कठिन कार्य है। इतना निश्चित है कि व मौर्यवंशी अशोक और जालौक के बाद हुआ था। (अशोक और जालौक दोनों ही काश्मीर पर अधिकार बनाए रखने में सफल रहे थे।) वह परंपरागत वैदिक धर्म का माननेवाला था, क्योंकि उसके द्वारा बौद्धधर्मावलंबियों की कुरीतियों की समाप्ति, वैदिक आचरों की पुन: प्रतिष्ठा और दुष्ट (?) बौद्धों के अत्याचारों की समाप्ति की बात राजतंरगिणी में कल्हण ने कही है। यह भी वर्णन मिलता है कि उसके राज्य में सुखशांति की कमी नहीं थी और प्रजा धनधान्य से पूर्ण थी। स्पष्ट है कि वह शक्तिशाली और सुशासक था और प्रजा के हित की चिंता करता था। राजतंरगिणी के अनुसार उसने ३५ वर्षों तक राज्य किया। इतिहास की आधुनिक कृतियों में गोनंद नामधारी राजाओं की काश्मीर में बहुतायत के कारण उस प्रदेश के विशिष्ट राजवंश का नाम ही गोनंद वंश से अभिहित होता है। .

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गोलमेज सम्मेलन (भारत)

यह लेख आंग्ल-भारतीय गोलमेज सम्मेलन के बारे में है। डच-इन्डोनेशियाई गोलमेज सम्मेलन के लिए, डच-इन्डोनेशियाई गोलमेज सम्मेलन देखिये। गोलमेज के अन्य उपयोगों के लिए, कृपया गोलमेज (स्पष्टीकरण) देखें। ---- पहला गोल मेज सम्मेलन नवम्बर 1930 में आयोजित किया गया जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोल मेज सम्मेलनों का आयोजन शुरू किया। अंग्रेज़ सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1930-32 के बीच सम्मेलनों की एक श्रृंखला के तहत तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किये गए थे। ये सम्मलेन मई 1930 में साइमन आयोग द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट के आधार पर संचालित किये गए थे। भारत में स्वराज, या स्व-शासन की मांग तेजी से बढ़ रही थी। 1930 के दशक तक, कई ब्रिटिश राजनेताओं का मानना था कि भारत में अब स्व-शासन लागू होना चाहिए। हालांकि, भारतीय और ब्रिटिश राजनीतिक दलों के बीच काफी वैचारिक मतभेद थे, जिनका समाधान सम्मलेनों से नहीं हो सका। .

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गोजरी भाषा

गोजरी या गूजरी एक हिन्द-आर्य भाषा है जो उत्तर भारत व पाकिस्तान में गुर्जर समुदाय के कई सदस्यों द्वारा बोली जाती है। भारत में यह भाषा राजस्थान,हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर, उत्तराखण्ड और पंजाब राज्यों में बोली जाती है। पाकिस्तान में यह पाक-अधिकृत कश्मीर और पंजाब (पाकिस्तान) में बोली जाती है। इस भाषा का मूल ढांचा और गहरी शब्दावली दोनों राजस्थानी भाषा की है लेकिन स्थानानुसार इसमें कई पंजाबी, डोगरी, कश्मीरी, गुजराती, हिन्दको और पश्तो प्रभाव देखे जाते हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य में इसे आधिकारिक दर्जा प्राप्त है। .

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गीतरामायणम्

गीतरामायणम् (२०११), शब्दार्थ: गीतों में रामायण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००९ और २०१० ई में रचित गीतकाव्य शैली का एक संस्कृत महाकाव्य है। इसमें संस्कृत के १००८ गीत हैं जो कि सात कांडों में विभाजित हैं - प्रत्येक कांड एक अथवा अधिक सर्गों में पुनः विभाजित है। कुल मिलाकर काव्य में २८ सर्ग हैं और प्रत्येक सर्ग में ३६-३६ गीत हैं। इस महाकाव्य के गीत भारतीय लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के विभिन्न गीतों की ढाल, लय, धुन अथवा राग पर आधारित हैं। प्रत्येक गीत रामायण के एक या एकाधिक पात्र अथवा कवि द्वारा गाया गया है। गीत एकालाप और संवादों के माध्यम से क्रमानुसार रामायण की कथा सुनाते हैं। गीतों के बीच में कुछ संस्कृत छंद हैं, जो कथा को आगे ले जाते हैं। काव्य की एक प्रतिलिपि कवि की हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन संस्कृत कवि अभिराज राजेंद्र मिश्र द्वारा जनवरी १४, २०११ को मकर संक्रांति के दिन किया गया था। .

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ऑपरेशन मेघदूत

वास्तविक जमीनी स्थिति रेखा के साथ दिखाया पीले रंग की बिंदीदार ऑपरेशन मेघदूत, भारत के जम्मू कश्मीर राज्य में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए भारतीय सशस्त्र बलों के ऑपरेशन के लिए कोड-नाम था, जो सियाचिन संघर्ष से जुड़ा था। 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया यह सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण प्राप्त कर किया था। आज, भारतीय सेना की तैनाती के स्थान को वास्तविक ग्राउंड पॉजिशन लाइन (एजीपीएल) के रूप में जाना जाता है, कभी-कभी गलत तरीके से ऑपरेशन मेघदूत भी कहा जाता है। भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना प्रत्येक के दस पैदल सेना बटालियन, 6,400 मीटर (21,000 फीट) तक ऊंचाई पर सक्रिय रूप से तैनात किए जाते हैं। .

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आचार्य मम्मट

आचार्य मम्मट संस्कृत काव्यशास्त्र के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में से एक समझे जाते हैं। वे अपने शास्त्रग्रंथ काव्यप्रकाश के कारण प्रसिद्ध हुए। कश्मीरी पंडितों की परंपरागत प्रसिद्धि के अनुसार वे नैषधीय चरित के रचयिता श्रीहर्ष के मामा थे। उन दिनों कश्मीर विद्या और साहित्य के केंद्र था तथा सभी प्रमुख आचार्यों की शिक्षा एवं विकास इसी स्थान पर हुआ। वे कश्मीरी थे, ऐसा उनके नाम से भी पता चलता है लेकिन इसके अतिरिक्त उनके विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। वे भोजराज के उत्तरवर्ती माने जाते है, इस हिसाब से उनका काल दसवीं शती का लगभग उत्तरार्ध है। ऐसा विवरण भी मिलता है कि उनकी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी में हुई। .

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आचार्य आनन्दवर्धन

आचार्य आनन्दवर्धन, काव्यशास्त्र में ध्वनि सम्प्रदाय के प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं। काव्यशास्त्र के ऐतिहासिक पटल पर आचार्य रुद्रट के बाद आचार्य आनन्दवर्धन आते हैं और इनका ग्रंथ ‘ध्वन्यालोक’ काव्य शास्त्र के इतिहास में मील का पत्थर है। आचार्य आनन्दवर्धन कश्मीर के निवासी थे और ये तत्कालीन कश्मीर नरेश अवन्तिवर्मन के समकालीन थे। इस सम्बंध में महाकवि कल्हण ‘राजतरंगिणी’ में लिखते हैं: कश्मीर नरेश अवन्तिवर्मन का राज्यकाल 855 से 884 ई. है। अतएव आचार्य आनन्दवर्धन का काल भी नौवीं शताब्दी मानना चाहिए। इन्होंने पाँच ग्रंथों की रचना की है- विषमबाणलीला, अर्जुनचरित, देवीशतक, तत्वालोक और ध्वन्यालोक। .

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आदरसूचक

आदरसूचक (honorific) ऐसा शब्द या वाक्यांश होता है जो किसी के लिए प्रयोग करने से उसके लिए इज़्ज़त या सम्मान की भावना प्रकट करता है। हिन्दी, उर्दू, पंजाबी और अन्य हिन्द-आर्य भाषाओं के 'जी' ('मौलवी जी'), 'साहब' ('डॉक्टर साहब') और 'जान' ('भाई जान') शब्द इसके उदाहरण हैं। कभी-कभी यह शब्द सम्मानित वस्तुओं के लिए भी प्रयोग होते हैं, मसलन सिख सांगत को सामूहिक रूप से 'ख़ालसा जी' और लंका के देश को 'श्रीलंका' कहा जाता है। कुछ आदरसूचक पूरे नाम के स्थान पर प्रयोग किये जाते हैं। उदाहरण के लिए 'हाँ, शुक्ल जी' के स्थान पर 'जी हाँ, साहब' या केवल 'जी, साहब' या 'हाँ जी' कहा जा सकता है।, Pingali Sailaja, pp.

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आनन्दपाल

आनन्दपाल या अनन्तपाल खटाणा राजवंश का तीसरा और अन्तिम शासक था। उसका शासन १००१ ई से १०१० ई तक रहा। वह जयपाल का पुत था जिसका राज्य लघमान से कश्मीर तथा सरहिन्द से मुल्तान तक विस्तृत था। पेशावर इसके राज्य के केन्द्र में था। आनन्दपाल के राज्य का अधिकांश भाग सुबुकदीन तथा उसके बेटे महमूद ने जीत लिया। श्रेणी:भारत का इतिहास.

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आभासवाद

आभासवाद त्रिक दर्शन की दार्शनिक दृष्टि का अभिधान है। कश्मीर का त्रिक दर्शन अद्वैतवादी है। इसके अनुसार परमशिव (जो "अनुत्तर", "संविद्" आदि अनेक नामों से प्रख्यात हैं) अपनी स्वातंत्रयशक्ति से (जो उनकी इच्छाशक्ति का ही अपर नाम है) अपने भीतर स्थित होनेवाले पदार्थ समूह को इदं रूप से बाहर प्रकट करते हैं। इस प्रकार जो कुछ वस्तु है, अर्थात् जो वस्तु किसी प्रकार सत्ता धारण करती है, जिसके विषय में किसी भी प्रकार का शब्द प्रयोग किया जा सकता है, चाहे वह विषयी हो, विषय हो, ज्ञान का साधन हो या स्वंय ज्ञानरूप ही हो, वह "आभास" कहलाती है। ईश्वर और जगत् के संबंध को समझने के लिए अभिनवगुप्त ने दर्पण की उपमा प्रस्तुत की है। जिस प्रकार निर्मल दर्पण में ग्राम, नगर, वृक्ष आदि पदार्थ प्रतिबिंबित होने पर वस्तुत: अभिन्न होने पर भी दर्पण से और आपस में भी भिन्न प्रतीत होते हैं, उसी प्रकार इस विश्व की दशा है। यह परमेश्वर में प्रतिबिंबित होने पर वस्तुत: उससे अभिन्न ही है, परंतु घट पट आदि रूप से वह भिन्न प्रतीत होता है। इस आभास या प्रतिबिंब के सिद्धांत को मानने के कारण त्रिक दर्शन का दार्शनिक मत "आभासवाद" के नाम से जाना जाता है। इस विषय में एक वैचित्र्य है जिसपर ध्यान देना आवश्यक है। लोक में प्रतिबिंब की सत्ता बिंब पर आश्रित रहती है। मुकुर के सामने मुख रहने पर ही उसका प्रतिबिंब उसमें पड़ता हैं, परंतु अद्वैतवादी त्रिक दर्शन में इस प्रतिबिंब का उदय बिंब के अभाव में भी स्वत: होता है और इसे परमेश्वर की स्वतंत्र शक्त्ति की महिमा माना जाता है। इस प्रकार इस दर्शन में अद्वैत भावना वास्तविक है। द्वैत की कल्पना नितांत कल्पित हैं। श्रेणी:भारतीय दर्शन.

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आम आदमी पार्टी

आम आदमी पार्टी, संक्षेप में आप, सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल एवं अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन से जुड़े बहुत से सहयोगियों द्वारा गठित एक भारतीय राजनीतिक दल है। इसके गठन की आधिकारिक घोषणा २६ नवम्बर २०१२ को भारतीय संविधान अधिनियम की ६३ वीं वर्षगाँठ के अवसर पर जंतर मंतर, दिल्ली में की गयी थी। सन् २०११ में इंडिया अगेंस्ट करपशन नामक संगठन ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए जन लोकपाल आंदोलन के दौरान भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा जनहित की उपेक्षा के खिलाफ़ आवाज़ उठाई। अन्ना भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आंदोलन को राजनीति से अलग रखना चाहते थे, जबकि अरविन्द केजरीवाल और उनके सहयोगियों की यह राय थी कि पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा जाये। इसी उद्देश्य के तहत पार्टी पहली बार दिसम्बर २०१३ में दिल्ली विधानसभा चुनाव में झाड़ू चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरी। पार्टी ने चुनाव में २८ सीटों पर जीत दर्ज की और कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनायी। अरविन्द केजरीवाल ने २८ दिसम्बर २०१३ को दिल्ली के ७वें मुख्य मन्त्री पद की शपथ ली। ४९ दिनों के बाद १४ फ़रवरी २०१४ को विधान सभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया। .

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आरज़ू (1965 फ़िल्म)

आरज़ू १९६५ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। जो कश्मीर में बनाई गई है। जिसमें राजेंद्र कुमार, साधना एवं फ़िरोज़ ख़ान मुख्य भूमिका मे है। .

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आलूबालू

गिलास, जिसे आलूबालू या (अंग्रेज़ी में) चेरी भी कहा जाता है पतझड़ के मौसम में गिलास के पेड़ बसंत ऋतू में फूलों से लदे हुए गिलास के छोटे पेड़ आलूबालू, गिलास या चेरी एक खट्टा-मीठा गुठलीदार फल है। इसका रंग लाल, काला या पीला होता है और इसका अकार आधे से सवा इंच के व्यास (डायामीटर) का गोला होता है। .

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इन्दिरा गांधी

युवा इन्दिरा नेहरू औरमहात्मा गांधी एक अनशन के दौरान इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। .

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इन्द्रायुध

इंद्रायुध एक राजा था। वह कन्नौज में हर्ष और यशोवर्मन् के बाद आयुधकुल का राजा बना। जैन 'हरिवंश' से प्रमाणित है कि इंद्रायुध ७८३-८४ ई. में राज करता था। संभवत: उसी के शासनकाल में कश्मीर के राजा जयापीड विजयदित्य ने कन्नौज पर चढ़ाई कर उसे जीता था। इंद्रायुध को अनेक चोटें सहनी पड़ीं और विजयादित्य के लौटते ही उसे ध्रव राष्ट्रकूट का सामना करना पड़ा जिसने उसे परास्त कर अपने राजचिह्नों में गंगा और यमुना की धाराएँ भी अंकित कराई। पाल नरेश धर्मपाल इंद्रायुध की यह दुर्बलता न सह सका और राष्ट्रकूट राजा के दक्षिण लौटते ही वह भी कन्नौज पर जा टूटा। इंद्रायुध को उसने गद्दी से उतारकर उसकी जगह चक्रायुध को बैठाया। श्रेणी:भारत के शासक श्रेणी:प्राचीन भारत का इतिहास.

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इंदिरा रायसम गोस्वामी

इंदिरा गोस्वामी (१४ नवम्बर १९४२ - नवम्बर, २०१०) असमिया साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर थीं। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती गोस्वामी असम की चरमपंथी संगठन उल्फा यानि युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम और भारत सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की राजनैतिक पहल करने में अहम भूमिका निभाई। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन उपन्यास के लिये उन्हें सन् १९८२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया) से सम्मानित किया गया। .

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इक़बाल खान

मुहम्मद इक़बाल खान आमतौर पर इक़बाल खान के रूप में जाना जाता है, एक भारतीय टेलीविजन और बॉलीवुड अभिनेता है। .

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कथासरित्सागर

कथासरित्सागर, संस्कृत कथा साहित्य का शिरोमणि ग्रंथ है। इसकी रचना कश्मीर में पंडित सोमदेव (भट्ट) ने त्रिगर्त अथवा कुल्लू कांगड़ा के राजा की पुत्री, कश्मीर के राजा अनंत की रानी सूर्यमती के मनोविनोदार्थ 1063 ई और 1082 ई. के मध्य संस्कृत में की। सोमदेव रचित कथासरित्सागर गुणाढ्य की बृहत्कथा का सबसे बेहतर, बड़ा और सरस रूपांतरण है। वास्तविक अर्थों में इसे भारतीय कथा परंपरा का महाकोश और भारतीय कहानी एवं जातीय विरासत का सबसे अच्छा प्रतिनिधि माना जा सकता है। मिथक, इतिहास यथार्थ, फैंटेसी, सचाई, इन्द्रजाल आदि का अनूठा संगम इन कथाओं में है। ईसा लेकर मध्यकाल तक की भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक धाराओं के इस दस्तावेज में तांत्रिक अनुष्ठानों, प्राकेतर घटनाओं तथा गंधर्व, किन्नर, विद्याधर आदि दिव्य योनि के प्राणियों के बारे में ढेरों कथाएं हैं। साथ ही मनोविज्ञान सत्य, हमारी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों तथा धार्मिक आस्थाओं की छवि और विक्रमादित्य, बैताल पचीसी, सिंहासन बत्तीसी, किस्सा तोता मैना आदि कई कथाचक्रों का समावेश भी इसमें हैं। कथासरित्सागर में 21,388 पद्म हैं और इसे 124 तरंगों में बाँटा गया है। इसका एक दूसरा संस्करण भी प्राप्त है जिसमें 18 लंबक हैं। लंबक का मूल संस्कृत रूप 'लंभक' था। विवाह द्वारा स्त्री की प्राप्ति "लंभ" कहलाती थी और उसी की कथा के लिए लंभक शब्द प्रयुक्त होता था। इसीलिए रत्नप्रभा लंबक, मदनमंचुका लंबक, सूर्यप्रभा लंबक आदि अलग-अलग कथाओं के आधार पर विभिन्न शीर्षक दिए गए होंगे। .

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कथासाहित्य (संस्कृत)

संस्कृत भाषा में निबद्ध कथाओं का प्रचुर साहित्य है जो सैकड़ों वर्षो से मनोरंजन करता हुआ उपदेश देता आ रहा है। कथासाहित्य से संबद्ध ग्रंथों के आलोचन से स्पष्ट हो जाता है कि संस्कृत साहित्य में तीनों प्रकार की कहानियों के उदाहरण मिलते हैं जो वर्तमान समय में पश्चिमी देशों में (१) फ़ेअरी टेल्स (परियों की कहानियाँ), (२) फ़ेबुल्स (जंतुकथाएँ) तथा (३) डायडेक्टिक टेल्स (उपदेशमयी कहानियाँ) कही जातीं हैं। .

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कमलापुरी

कमलापुरी एक भारतीय उपनाम हैं। यह वैश्य समुदाय में आता हैं। कमलापुरी वैश्य मूलतः कमलापुर, कश्मीर के मूल निवासी है। इनके पूर्वज व्यापार हेतु नेपाल के तराई में आया करते थे। इनकी महारानी कमलावती थी राज्य धन संपदा से परिपूर्ण था, कमलापूरी वैश्य का गोत्र कश्यप है। कमलापुर नगर का वर्णन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक में किया है किन्तु बाद में मुस्लिम आक्रमणकारियों के कारण राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। सुरक्षा के लिए जो जहाँ व्यापार करते थे वही बस गए परिणाम स्वरूप आज उत्तर प्रदेश व बिहार के जनपद बस्ती, गोंडा, बलरामपुर, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, जौनपुर, पटना, छपरा, पलामू में है। बाद में लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, मुंबई होते हुए भारत वर्ष में फ़ैल गए और साथ ही नेपाल में काठमांडू, कृष्णानगर, बहादुरगंज, चंद्रौता, दान, बुटवल आदि स्थानों में भी बस गये। ये समुदाय कमलापुरी, गुप्ता, कमल आदि उपनाम का प्रयोग करता हैं। .

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कर्नाटक का इतिहास

बदामी के चालुक्यों के अन्दर ही सम्पूर्ण कर्नाटक एक शासन सूत्र में बंध पाया था। वे अपने शासनकाल में बनाई गई कलाकृतियों के लिए भी जाने जाते हैं। इसी कुल के पुलकेशिन द्वितीय (609-42) ने हर्षवर्धन को हराया था। पल्लवों के साथ युद्ध में वे धीरे-धीरे क्षीण होते गए। बदामी के चालुक्यों की शक्ति क्षीण होने के बाद राष्ट्रकूटों का शासन आया पर वे अधिक दिन प्रभुत्व मे नहीं रह पाए। कल्याण के चालुक्यों ने सन् 973 में उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। सोमेश्वर प्रथम ने चोलों के आक्रमण से बचने की सफलतापूर्वक कोशिश की। उसने कल्याण में अपनी राजधानी स्थापित की और चोल राजा राजाधिराज की कोप्पर में सन् 1054 में हत्या कर दी। उसका बेटा विक्रमादित्य षष्टम तो इतना प्रसिद्ध हुआ कि कश्मीर के कवि दिल्हण ने अपनी संस्कृत रचना के लिए उसके नायक चुना और विक्रमदेव चरितम की रचना की। वो एक प्रसिद्ध कानूनविद विज्ञानेश्वर का भी संरक्षक था। उसने चोल राजधानी कांची को 1085 में जीत लिया। चालुक्य साम्राज्य अपने महत्तम विस्तार पर - सातवीं सदी यादवों (या सेवुना) ने देवगिरि (आधुनिक दौलताबाद, जो बाद में मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी बना) से शासन करना आरंभ किया। पर यादवों को दिल्ली सल्तनत की सेनाओं ने 1296 में हरा दिया। यादवों के समय भास्कराचार्य जैसे गणितज्ञों ने अपनी अमर रचनाए कीं। हेमाद्रि की रचनाए भी इसी काल में हुईं। चालुक्यों की एक शाखा इसी बीच शकितशाली हो रही थी - होयसल। उन्होंने बेलुरु, हेलेबिदु और सोमनाथपुरा में मन्दिरों की रचना करवाई। जब तमिल प्रदेश में चोलों और पाण्ड्यों में संघर्ष चल रहा था तब होयसलों ने पाण्ड्यों को पीछे की ओर खदेड़ दिया। बल्लाल तृतीय (मृत्यु 1343) को दिल्ली तथा मदुरै दोनों के शासकों से युद्ध कना पड़ा। उसके सैनिक हरिहर तथा बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी। होयसलों के शासनकाल में कन्नड़ भाषा का विकास हुआ। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के समय वो दक्षिण में एक हिन्दू शक्ति के रूप में देखा गया जो दिल्ली और उत्तरी भारत पर सत्तारूढ़ मुस्लिम शासकों के विरूद्ध एक लोकप्रिय शासक बना। हरिहर तथा बुक्का ने न केवल दिल्ली सल्तनत का सामना किया बल्कि मदुरै के सुल्तान को भी हराया। कृष्णदेव राय इस काल का सबसे महान शासक हुआ। विजयनगर के पतन (1565) के बाद बहमनी सल्तनत के परवर्ती राज्यों का छिटपुत शासन हुआ। इन राज्यों को मुगलों ने हरा दिया और इसी बीच बीजापुर के सूबेदार शाहजी के पुत्र शिवाजी के नेतृत्व में मराठों की शक्ति का उदय हुआ। मराठों की शक्ति अठारहवीं सदी के अन्त तक क्षीण होने लगी थी। दक्षिण में हैदर अली ने मैसूर के वोड्यार राजाओं की शक्ति हथिया ली। चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान को मात देकर अंग्रेजों ने मैसूर का शासन अपने हाथों में ले लिया। सन् 1818 में पेशवाओं को हरा दिया गया और लगभग सम्पूर्ण राज्य पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। सन् 1956 में कर्नाटक राज्य बना। श्रेणी:कर्नाटक का इतिहास.

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कलसियां

यह कश्मीर (भारत) के राजौरी जिले के अंतर्गत स्थित एक गाँव है। श्रेणी:कश्मीर के गाँव.

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कल्हण

कल्हण कश्मीरी इतिहासकार तथा विश्वविख्यात ग्रंथ राजतरंगिनी (1148-50 ई.) के रचयिता थे। .

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कश्मीर

ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .

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कश्मीर रेलवे

श्रीनगर जम्मू-बारामूला लाइन (उर्दू: کشمیر ریلوے) भारत में निर्मित की जा रही एक रेलवे लाइन है जो कि देश के बाकी के हिस्से को जम्मू एवं कश्मीर राज्य के साथ मिलाएगी। रेलवे जम्मू से शुरू होता है और, जब पूरी की, 345 किलोमीटर (214 मील) कश्मीर घाटी के पश्चिमोत्तर किनारे पर बारामूला के शहर के लिए यात्रा करेंगे। परियोजना की अनुमानित लागत के बारे में 60 अरब भारतीय रुपये (अमेरिका 1.3 अरब डॉलर) है। .

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कश्मीर का इतिहास

भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू और कश्मीर का इतिहास अति प्राचीन काल से आरंभ होता है। राजधानी में डल झील में एक शिकारे से दृश्य .

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कश्मीरी भाषा

कश्मीरी भाषा एक भारतीय-आर्य भाषा है जो मुख्यतः कश्मीर घाटी तथा चेनाब घाटी में बोली जाती है। वर्ष २००१ की जनगणना के अनुसार भारत में इसके बोलने वालों की संख्या लगभग ५६ लाख है। पाक-अधिकृत कश्मीर में १९९८ की जनगणना के अनुसार लगभग १ लाख कश्मीरी भाषा बोलने वाले हैं। कश्मीर की वितस्ता घाटी के अतिरिक्त उत्तर में ज़ोजीला और बर्ज़ल तक तथा दक्षिण में बानहाल से परे किश्तवाड़ (जम्मू प्रांत) की छोटी उपत्यका तक इस भाषा के बोलने वाले हैं। कश्मीरी, जम्मू प्रांत के बानहाल, रामबन तथा भद्रवाह में भी बोली जाती है। प्रधान उपभाषा किश्तवाड़ की "कश्तवाडी" है। कश्मीर की भाषा कश्मीरी (कोशुर) है ये कश्मीर में वर्तमान समय में बोली जाने वाली भाषा है। कश्मीरी भाषा के लिए विभिन्न लिपियों का उपयोग किया गया है, जिसमें मुख्य लिपियां हैं- शारदा, देवनागरी, रोमन और परशो-अरबी है। कश्मीर वादी के उत्तर और पश्चिम में बोली जाने वाली भाषाएं - दर्ददी, श्रीन्या, कोहवाड़ कश्मीरी भाषा के उलट थीं। यह भाषा इंडो-आर्यन और हिंदुस्तानी-ईरानी भाषा के समान है। भाषाविदों का मानना ​​है कि कश्मीर के पहाड़ों में रहने वाले पूर्व नागावासी जैसे गंधर्व, यक्ष और किन्नर आदि,बहुत पहले ही मूल आर्यन से अलग हो गए। इसी तरह कश्मीरी भाषा को आर्य भाषा जैसा बनने में बहुत समय लगा। नागा भाषा स्वतः ही विकसित हुई है इस सब के बावजूद, कश्मीरी भाषा ने अपनी विशिष्ट स्वर शैली को बनाए रखा और 8 वीं-9 वीं शताब्दी में अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं की तरह, कई चरणों से गुजरना पड़ा। .

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कश्मीरी साहित्य

परम्परागत रूप से कश्मीर का साहित्य संस्कृत में था। नीचे काश्मीर के संस्कृत के प्रमुख साहित्यकारों के नाम दिये गये हैं-.

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कश्मीरी हंगुल

कश्मीरी हंगुल हंगुल एक उत्तर भारत और पाकिस्तान, ख़ासकर कश्मीर, में पायी जाने वाली लाल हिरण की नस्ल है। यह जम्मू और कश्मीर का राज्य पशु है। हंगुल का वैज्ञानिक नाम "सॅर्वस ऍलाफस हंगलु" (Cervus elaphus hanglu) है। .

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कश्मीरी खाना

कश्मीरी नून चाय हिन्दुस्तानी प्रदेश कश्मीर से कश्मीरी खाना (कश्मीरी: कॉशुर खयून(देवनागरी) کٲشُر خیون(नस्तालीक़)) कश्मीर की प्राचीन परंपरा पर आधारित है। ऋग्वेद में इस क्षेत्र के मांस खाने परंपराओं का उल्लेख है। कश्मीर की प्राचीन महाकाव्य, अर्थात् निल्मातापूर्ण हमें बताता है कि कश्मीरियों मांस भक्षण करते थे। यह आदत आज कश्मीर में बनी रहती है। आज कश्मीर व्यंजन में सबसे उल्लेखनीय घटक मटन है, जिनमें से ३० किस्मों से अधिक हैं। इसके अलावा करने के लिए ध्यान दिया जाना चाहिए बाल्टी करी, अपने विदेशी स्वाद के लिए यूनाइटेड किंगडम में लोकप्रिय है, कि बाल्टिस्तान से फैला है। .

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क़हवा

क़हवा (قهوة क़ह्व, قهوه क़ह्वे, जिनका अर्थ है "कॉफ़ी"; قہوہ‎ क़ह्वा) एक प्रकार की चाय होती है जो मुख्यतः कश्मीर, अफ़्ग़ानिस्तान, और उत्तरी पाकिस्तान में पी जाती है। यह पेय कश्मीर में ख़ास तौर पर "वज़वान" भोजन के बाद लिया जाता है। श्रेणी:चाय श्रेणी:पेय.

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कारगिल युद्ध

right कारगिल युद्ध (ऑपरेशन विजय भी) भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है। पाकिस्तान की सेना और कश्मीरी उग्रवादियों ने भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार करके भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। पाकिस्तान ने दावा किया कि लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेज़ों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी। लगभग 30,000 भारतीय सैनिक और करीब 5,000 घुसपैठिए इस युद्ध में शामिल थे। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। यह युद्ध ऊँचाई वाले इलाके पर हुआ और दोनों देशों की सेनाओं को लड़ने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था। .

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कार्कोट राजवंश

लौह युग के वैदिक भारत में किकट राज्य की स्थिति कर्कोट या कर्कोटक कश्मीर का एक राजवंश था, जिसने गोनंद वंश के पश्चात् कश्मीर पर अपना आधिपत्य जमाया। 'कर्कोट' पुराणों में वर्णित एक प्रसिद्ध नाग का नाम है। उसी के नाम पर इस वंश का नाम पड़ा। .

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कालिदास का काव्य सौन्दर्य

कालिदास अपनी विषय-वस्तु देश की सांस्कृतिक विरासत से लेते हैं और उसे वे अपने उद्देश्य की प्राप्ति के अनुरूप ढाल देते हैं। उदाहरणार्थ, अभिज्ञान शाकुन्तल की कथा में शकुन्तला चतुर, सांसारिक युवा नारी है और दुष्यन्त स्वार्थी प्रेमी है। इसमें कवि तपोवन की कन्या में प्रेमभावना के प्रथम प्रस्फुटन से लेकर वियोग, कुण्ठा आदि की अवस्थाओं में से होकर उसे उसकी समग्रता तक दिखाना चाहता है। उन्हीं के शब्दों में नाटक में जीवन की विविधता होनी चाहिए और उसमें विभिन्न रुचियों के व्यक्तियों के लिए सौंदर्य और माधुर्य होना चाहिए। त्रैगुण्योद्भवम् अत्र लोक-चरितम् नानृतम् दृश्यते। नाट्यम् भिन्न-रुचेर जनस्य बहुधापि एकम् समाराधनम्।। कालिदास के जीवन के बारे में हमें विशेष जानकारी नहीं है। उनके नाम के बारे में अनेक किवदन्तियां प्रचलित हैं जिनका कोई ऐतिहासिक मूल्य नहीं है। उनकी कृतियों से यह विदित होता है कि वे ऐसे युग में रहे जिसमें वैभव और सुख-सुविधाएं थीं। संगीत तथा नृत्य और चित्र-कला से उन्हें विशेष प्रेम था। तत्कालीन ज्ञान-विज्ञान, विधि और दर्शन-तंत्र तथा संस्कारों का उन्हें विशेष ज्ञान था। उन्होंने भारत की व्यापक यात्राएं कीं और वे हिमालय से कन्याकुमारी तक देश की भौगोलिक स्थिति से पूर्णतः परिचित प्रतीत होते हैं। हिमालय के अनेक चित्रांकन जैसे विवरण और केसर की क्यारियों के चित्रण (जो कश्मीर में पैदा होती है) ऐसे हैं जैसे उनसे उनका बहुत निकट का परिचय है। जो बात यह महान कलाकार अपनी लेखिनी के स्पर्श मात्र से कह जाता है, अन्य अपने विशद वर्णन के उपरांत भी नहीं कह पाते। कम शब्दों में अधिक भाव प्रकट कर देने और कथन की स्वाभाविकता के लिए कालिदास प्रसिद्ध हैं। उनकी उक्तियों में ध्वनि और अर्थ का तादात्मय मिलता है। उनके शब्द-चित्र सौन्दर्यमय और सर्वांगीण सम्पूर्ण हैं, जैसे – एक पूर्ण गतिमान राजसी रथ (विक्रमोर्वशीय, 1.4), दौड़ते हुए मृग-शावक (अभिज्ञान-शाकुन्तल, 1.7), उर्वशी का फूट-फूटकर आंसू बहाना (विक्रमोर्वशीय, छन्द 15), चलायमान कल्पवृक्ष की भांति अन्तरिक्ष में नारद का प्रकट होना (विक्रमोर्वशीय, छन्द 19)। उपमा और रूपकों के प्रयोग में वे सर्वोपरि हैं।;सरसिजमनुविद्धं शैवालेनापि रम्यं;मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्म लक्ष्मीं तनोति।;इयमिधकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी;किमिह मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।। ‘कमल यद्यपि शिवाल में लिपटा है, फिर भी सुन्दर है। चन्द्रमा का कलंक, यद्यपि काला है, किन्तु उसकी सुन्दरता बढ़ाता है। ये जो सुकुमार कन्या है, इसने यद्यपि वल्कल-वस्त्र धारण किए हुए हैं तथापि वह और सुन्दर दिखाई दे रही है। क्योंकि सुन्दर रूपों को क्या सुशोभित नहीं कर सकता ?’ कालिदास की रचनाओं में सीधी उपदेशात्मक शैली नहीं है अपितु प्रीतमा पत्नी के विनम्र निवेदन सा मनुहार है। मम्मट कहते हैं: ‘कान्तासम्मिततयोपदेशायुजे।’ उच्च आदर्शों के कलात्मक प्रस्तुतीकरण से कलाकार हमें उन्हें अपनाने को विवश करता है। हमारे समक्ष जो पात्र आते हैं हम उन्हीं के अनुरूप जीवन में आचरण करने लगते हैं और इससे हमें व्यापक रूप में मानवता को समझने में सहायता मिलती है। .

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काश्मीरी पण्डित

काश्मीरी पण्डित (१८९५ का फोटो) कश्मीर घाटी के निवासी हिन्दुओं को काश्मीरी पण्डित या काश्मीरी ब्राह्मण कहते हैं। ये सभी ब्राह्मण माने जाते हैं। सदियों से कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडितों को 1990 में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की कारण से घाटी छोड़नी पड़ी या उन्हें जबरन निकाल दिया गया। पनुन कश्मीर काश्मीरी पंडितों का संगठन है। .

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कासनिया

कासनिया राजस्थान, भारत की एक जाट गोत्र है। उनके वंशज परम्पराओं के अनुसार भगवान कृष्ण से चले आ रहे हैं। संस्कृत में कृष्ण शब्द से ही कृष्णिया और कासनिया व्युत्पन्न हुए। कासनिया वंश के लोग चीन में कुषाण और युझी के रूप में जाने जाते हैं। उनके अनुसार वो लोग कासगार नामक स्थान के वंशज माने जाते हैं। ठाकुर देशराज के अनुसार, जाटों ने महाभारत के युद्ध के बाद शिवालिक की पहाड़ियों और मानसरोवर झील के नीचले क्षेत्रों को छोड़कर उत्तरकुरु (जाहिर तौर पर एक पौराणिक जगह जिसे कभी-कभी कुरु साम्राज्य भी कहा जाता है।) की ओर आ गये। उनमें से कुछ पंजाब में बस गये और कुछ कश्मीर की ओर चले गये एवं बाकी बचे हुए साइबेरिया क्षेत्रों में चले गये। .

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काज़ीगुंड

काज़ीगुंड (अंग्रेज़ी: Qazigund, उर्दु: قاضی گُنڈ), भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के अनंतनाग ज़िले में एक नगर है। जम्मू से श्रीनगर के मुख्य मार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग १ए) में पीर पंजाल पर्वतमाला को बनिहाल दर्रा द्वारा पार करा जाता है, जिसमें बनिहाल जम्मू विभाग का अंतिम और काज़ीगुंड कश्मीर विभाग का पहला पड़ाव है। इसलिए इसे कश्मीर घाटी का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। .

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काग़ान घाटी

काग़ान घाटी (अंग्रेज़ी: Kaghan Valley, उर्दु: وادی کاغان) पाकिस्तान के उत्तरी भाग में ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त के मानसेहरा ज़िले में स्थित एक पर्वतीय घाटी है। यह पाक-अधिकृत कश्मीर की सीमा पर स्थित है और बाबूसर दर्रा इसे कश्मीर से जोड़ता है। घाटी १५५ किमी लम्बी है और इसकी ऊँचाई एक छोर पर २,१३४ फ़ुट (६५० मीटर) से आरम्भ होकर दूसरे छोर पर १३,६९० फ़ुट (४,१७० मीटर) ऊँचे बाबूसर दर्रे तक बढ़ती है। कुनहार नदी इस घाटी से निकलती है और इसी में स्थित लूलूसर झील से आरम्भ होती है। घाटी को घेरने वाले पर्वतों में सबसे ऊँचा ५,२९० मीटर (१७,३५६ फ़ुट) लम्बा मलिका परबत है। .

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कागज उद्योग

कागज उद्योग, कच्चे माल के रूप में लकड़ी का उपयोग करते हुए लुगदी, कागज, गत्ते एवं अन्य सेलुलोज-आधारित उत्पाद निर्मित करता है। वैश्विक, आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था में कागज के योगदान की उपेक्षा नहीं की जा सकती है क्योंकि बिना कागज के सम्पूर्ण कार्यप्रणाली का पूर्ण हो पाना सम्भव नहीं रहा है। शिक्षा का प्रचार-प्रसार, व्यापार, बैंक, उद्योग तथा सरकारी व गैरसरकारी, संस्थानों या प्रतिष्ठानों में कागज का ही बहुधा प्रयोग किया जाता है। विश्व की लगभग सभी प्रक्रियाओं की शुरूआत कागज से ही प्रारम्भ होती है। कागज व्यक्ति व समाज के विकास में ‘‘आदि और अन्त’’ दोनों प्रकार की भूमिका का निर्वहन करता है। इस तरह मानवीय सभ्यता का विकास व उन्नति कागज के ही विकास से सम्बन्धित है। .

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किशनगंगा नदी

किशनगंगा नदी कश्मीर क्षेत्र की एक नदी है। इसका नाम पाकिस्तान में बदलकर नीलम नदी कर दिया गया है। .

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कंपनी राज

कंपनी राज का अर्थ है ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारत पर शासन। यह 1773 में शुरू किया है, जब कंपनी कोलकाता में एक राजधानी की स्थापना की है, अपनी पहली गवर्नर जनरल वार्रन हास्टिंग्स नियुक्त किया और संधि का एक परिणाम के रूप में बक्सर का युद्ध के बाद सीधे प्रशासन, में शामिल हो गया है लिया जाता है1765 में, जब बंगाल के नवाब कंपनी से हार गया था, और दीवानी प्रदान की गई थी, या बंगाल और बिहार में राजस्व एकत्रित करने का अधिकार हैशा सन १८५८ से,१८५७ जब तक चला और फलस्वरूप भारत सरकार के अधिनियम १८५८ के भारतीय विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार सीधे नए ब्रिटिश राज में भारत के प्रशासन के कार्य ग्रहण किया। .

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कंबोज

200px कंबोज प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक था। इसका उल्लेख पाणिनी के अष्टाध्यायी में १५ शक्तिशाली जनपदों में से एक के रूप में भी मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु मे १६ महाजनपदों में भी कम्बोज का कई बार उल्लेख हुआ है - ये गांधारों के समीपवर्ती थे। इनमें कभी निकट संबंध भी रहा होगा, क्योंकि अनेक स्थानों पर गांधार और कांबोज का नाम साथ साथ आता है। इसका क्षेत्र आधुनुक उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिलता है। राजपुर, द्वारका तथा Kapishi इनके प्रमुख नगर थे। इसका उल्लेख इरानी प्राचीन लेखों में भी मिलता है जिसमें इसे राजा कम्बीजेस के प्रदेश से जोड़ा जाता है।.

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कछवाहा

कछवाहा(कुशवाहा) वंश सूर्यवंशी राजपूतों की एक शाखा है। कुल मिलाकर बासठ वंशों के प्रमाण ग्रन्थों में मिलते हैं। ग्रन्थों के अनुसार: अर्थात दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का प्रमाण मिलता है। इन्हीं में से एक क्षत्रिय शाखा कछवाहा (कुशवाहा) निकली। यह उत्तर भारत के बहुत से क्षेत्रों में फ़ैली। .

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कुट्टनी

वेश्याओं को कामशास्त्र की शिक्षा देनेवाली नारी को कुट्टनी कहते हैं। वेश्या संस्था के अनिवार्य अंग के रूप में इसका अस्तित्व पहली बार पाँचवीं शती ई. के आसपास ही देखने में आता है। इससे अनुमान होता है कि इसका आविर्भाव गुप्त साम्राज्य के वैभवशाली और भोगविलास के युग में हुआ। कुट्टनी के व्यापक प्रभाव, वेश्याओं के लिए महानीय उपादेयता तथा कामुक जनों को वशीकरण की सिद्धि दिखलाने के लिए कश्मीर नरेश जयापीड (779 ई.-812) के प्रधान मंत्री दामोदर गुप्त ने कुट्टनीमतम् नामक काव्य की रचना की थी। यह काव्य अपनी मधुरिमा, शब्दसौष्ठव तथा अर्थगांभीर्य के निमित्त आलोचनाजगत् में पर्याप्त विख्यात है, परंतु कवि का वास्तवकि अभिप्राय सज्जनों को कुट्टनी के हथकंडों से बचाना है। इसी उद्देश्य से कश्मीर के प्रसिद्ध कवि क्षेमेंद्र ने भी एकादश शतक में समयमातृका तथा देशोपदेश नामक काव्यों का प्रणयन किया था। इन दोनों काव्यों में कुट्टनी के रूप, गुण तथा कार्य का विस्तृत विवरण है। हिंदी के रीतिग्रंथों में भी कुट्टनी का कुछ वर्णन उपलब्ध होता है। कुट्टनी अवस्था में वृद्ध होती है जिसे कामी संसार का बहुत अनुभव होता है। कुट्टीनमत में चित्रित 'विकराला' नामक कुट्टनी (कुट्टनीमत, आर्या 27-30) से कुट्टनी के बाह्य रूप का सहज अनुमान किया जा सकता है - अंदर को धँसी आँखें, भूषण से हीन तथा नीचे लटकनेवाला कान का निचला भाग, काले सफेद बालों से गंगाजमुनी बना हुआ सिर, शरीर पर झलकनेवाली शिराएँ, तनी हुई गरदन, श्वेत धुली हुई धोती तथा चादर से मंडित देह, अनेक ओषधियों तथा मनकों से अलंकृत गले से लटकनेवाला डोरा, कनिष्ठिका अँगुली में बारीक सोने का छल्ला। वेश्याओं को उनके व्यवसाय की शिक्षा देना तथा उन्हें उन हथकंडों का ज्ञान कराना जिनके बल पर वे कामी जनों से प्रभूत धन का अपहरण कर सकें, इसका प्रधान कार्य है। क्षेमेंद्र ने इस विशिष्ट गुण के कारण उसकी तुलना अनेक हिंस्र जंतुओं से की है - वह खून पीने तथा माँस खानेवाली व्याघ्री है जिसके न रहने पर कामुक जन गीदड़ों के समान उछल कूछ मचाया करते हैं: कुट्टनी के बिना वेश्या अपने व्यवसाय का पूर्ण निर्वाह नहीं कर सकती। अनुभवहीना वेश्या की गुरु स्थानीया कुट्टनी कामी जनों के लिये छल तथा कपट की प्रतिमा होती है, धन ऐंठने के लिए विषम यंत्र होती हैं; वह जनरूपी वृक्षों को गिराने के लिये प्रकृष्ट माया की नदी होती है जिसकी बाढ़ में हजारों संपन्न घर डूब जाते हैं: कुट्टनी वेश्या को कामुकों से धन ऐंठने की शिक्षा देती हैं, हृदय देने की नहीं; वह उसे प्रेमसंपन्न धनहीनों को घर से निकाल बाहर करने का भी उपदेश देती है। उससे बचकर रहने का उपदेश उपर्युक्त ग्रंथों में दिया गया है। श्रेणी:समाज श्रेणी:प्राचीन भारत श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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कुरुविन्द

विभिन्न रंग-रूप के कुरुविन्द कुरुविंद या कुरंड एक मणिभीय खनिज पत्थर है, जो संसार के विभिन्न स्थलों में पाया जाता है। इस पत्थर की दो विशेषाएँ हैं, एक तो यह कठोर होता है, दूसरे चमकदार। भारत में भी कुरुविंद प्राप्य है। असम की खासी और जयंतिया पहाड़ियों, झारखण्ड (हजारीबाग, सिंहभूम और मानभूम जिलों में), तमिलनाडु (सेलम जिले में), मध्यप्रदेश (पोहरा, भंडारा तथा रीवाँ), उड़ीसा तथा कर्नाटक प्रदेशों में यह पत्थर मिलता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और कश्मीर में प्राप्त होनेवाली कुरुविंद अधोवर्ती वर्ग (लोवर कग्रेड) का है। सामान्य कुरुविंद में कोई आकर्षक रंग नहीं होता। यह साधारणतया धूसर, भूरा, नीला और काला होता है। कुछ रंगीन कुरु्व्राद विशिष्ट आकर्षक रंगों के होने के कारण रत्न के रूप में, माणिक, नीलम, याकूत आदि नामों से बिकते हैं। थोड़े अपद्रव्यों के कारण इसमें रंग होता है। ये अपद्रव्य धातुओं के आक्साइड, विशेषत: क्रोमियम और लोहे के आक्साइड होते हैं। कुरुविंद की कठोरता ९ है, जबकि हीरे की कठोरता १० होती है। इसका विशिष्ट घनत्व ३.९४ से ४.१० होता है। यह ऐल्यूमिनियम का प्राकृतिक आक्साइड (Al2 O3) है, जिसके मणिभ षट्कोणीय तथा कभी-कभी बेलन या मृदंग की आकृति के होते हैं। अंगुठी में लगा हुआ कुरुविंद कुरुविंद का अभियांत्रिकी उद्योगों में तथा अपघर्षकों (abrasives) और शणचक्रों (ग्राइंडिंग ह्वील) के निर्माण में अधिकतर प्रयोग किया जाता है। पारदर्शक कुरुविंद का प्रयोग बहुमूल्य पत्थर की भाँति होता है। आजकल कुरुविंद का स्थान एक नवीन पदार्थ कार्बोरंडम ने ले लिया है, जो भारत में विदेशों से आयात होता है। .

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कुवलयपीड

कश्मीर के कार्कोट राजवंश का राजा। श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन श्रेणी:कश्मीर.

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क्रीत

क्नोसोस पुरातन स्थल पर मिनोआई सभ्यता के एक महल का खंडर यूनान और क्रीत का नक़्शा पारम्परिक क्रीती सामूहिक नाच वाई का तटीय इलाक़ा क्रीत या क्रीट (यूनानी: Κρήτη, क्रीति; अंग्रेज़ी: Crete, क्रीट) यूनान के द्वीपों में सब से बड़ा द्वीप है और भूमध्य सागर का पाँचवा सब से बड़ा द्वीप है। यह यूनान की आर्थिक व्यवस्था और यूनानी संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण अंग मन जाता है लेकिन इस द्वीप की अपनी एक अलग सांस्कृतिक पहचान भी है। आज से पाँच हज़ार साल पूर्व क्रीत "मिनोआई सभ्यता" नामक संस्कृति का केंद्र भी थी जो २७०० से १४२० ईसापूर्व के काल में फली-फूली और यूरोप की एक प्राचीनतम तहज़ीब मानी जाती है। Oxford Bibliographies Online: Classics .

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क्षेमराज

क्षेमराज (१०वीं शताब्दी का उत्तरार्ध -- ११वीं शताब्दी का पूर्वार्ध) एक दार्शनिक थे। वे अभिनवगुप्त के शिष्य थे। क्षेमराज तन्त्र, योग, काव्यशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र के पण्डित थे। उनके जीवन एवं माता-पिता आदि के बारे में बहुत कम ज्ञात है। प्रत्याभिज्ञानहृदयम् नामक उनकी कृति का कश्मीर के 'त्रिक' साहित्य में वही स्थान है जो वेदान्तसार का अद्वैत दर्शन में। .

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क्षेमेंद्र

क्षेमेन्द्र (जन्म लगभग 1025-1066) संस्कृत के प्रतिभासंपन्न काश्मीरी महाकवि थे। ये विद्वान ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए थे। ये सिंधु के प्रपौत्र, निम्नाशय के पौत्र और प्रकाशेंद्र के पुत्र थे। इन्होंने प्रसिद्ध आलोचक तथा तंतरशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान् अभिनवगुप्त से साहित्यशास्त्र का अध्ययन किया था। इनके पुत्र सोमेन्द्र ने पिता की रचना बोधिसत्त्वावदानकल्पलता को एक नया पल्लव (कथा) जोड़कर पूरा किया था। .

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कौसरनाग

कौसरनाग या विष्णुपाद जम्मू और कश्मीर के कुलगाम जिले के पीर पंजाल पर्वतश्रेणी में ऊंचाई पर स्थित एक झील है। यह झील लगभग ३ किमी लम्बी है। इसकी अधिकतम चौड़ाई लगभग १ किमी है।.

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कृशनसर

कृशनसर (Krishansar) या कृष्णसर भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के गान्दरबल ज़िले के सोनमर्ग क़स्बे के पास स्थित एक स्वच्छ पर्वतीय झील है। ३,७१० मीटर पर स्थित यह झील प्रसिद्ध किशनगंगा नदी का सर्वप्रथम स्रोत है। इसकी लम्बाई ०.९५ किमी और चौड़ाई ०.६ किमी है। .

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कैटरीना कैफ़

कैटरीना कैफ़ (जन्म: 16 जुलाई 1983) एक ब्रितानी भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं जो मुख्य रूप से हिंदी फिल्म जगत में काम करती हैं, हालांकि उन्होनें कुछ तेलुगू और मलयालम फिल्मों में भी काम किया है। भारत की सबसे अधिक पारिश्रमिक पाने वाली अभिनेत्रियों में से एक होने के साथ-साथ, कैटरीना को सबसे आकर्षक हस्तियों में से एक के रूप में मीडिया में उद्धृत किया जाता है। एक सफल मॉडलिंग कैरियर के बाद, 2003 में कैटरीना ने व्यावसायिक रूप से असफल फ़िल्म बूम में एक भूमिका के साथ अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी। फलस्वरूप वह एक तेलुगू हिट फिल्म, रोमांटिक कॉमेडी मल्लीस्वारी में दिखाई दी। कैफ ने बाद में रोमांटिक कॉमेडी ''मैंने प्यार क्यूँ किया'' और नमस्ते लंदन के साथ बॉलीवुड में व्यावसायिक सफलता अर्जित की, जिनमें से बाद वाली के लिये उनके अभिनय की प्रशंसा हुई। इसके बाद उनकी कुछ और सफल फ़िल्में आईं जैसे ''पार्टनर'', ''वेलकम'', सिंह इज़ किंग। 2009 में आई फ़िल्म ''न्यू यॉर्क'' जिसके लिये उन्हें फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार का नामांकन मिला, ने उनके करियर को नया मोड़ दिया। वह बाद में ''राजनीति'', ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा, मेरे ब्रदर की दुल्हन और एक था टाइगर जैसी हिट फिल्मों में और अधिक प्रमुख भूमिकाओं में दिखीं। वो धूम 3 में संक्षिप्त भूमिका में दिखीं जिसने भारतीय फ़िल्मों में सबसे ज़्यादा कमाई की थी। अपने अभिनय कौशल के लिए समीक्षकों से मिश्रित समीक्षाएँ प्राप्त करने के बावजूद, उन्होनें अपने आप को हिंदी फिल्मों में व्यावसायिक रूप से एक सफल अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया है। अभिनय के अलावा, कैटरीना स्टेज शो और अवार्ड कार्यक्रमों में भाग लेती हैं। वह विशेष रूप से अपने निजी जीवन के बारे में संरक्षित रहने के लिए जानी जाती हैं, जो व्यापक रूप से मीडिया जांच का विषय रहा हैं। .

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कैयट

कैयट पतंजलि के व्याकरण भाष्य की 'प्रदीप' नामक टीका के रचयिता। देवीशतक के व्याख्याकार कैयट इनसे भिन्न है। उनके पिता का नाम जैयटोपाध्याय था (महामाष्यार्णवाऽवारपारीणंविवृतिप्लवम्। यथागमं विधास्येहं कैयटो जैयटात्मज)। अनुमान है कि वे कश्मीर निवासी थे। पीटर्सन ने कश्मीर की रिपोर्ट में कैयट (और उव्वट) को प्रकाशक ऽर मम्मट का भाई और जैयट का पुत्र कहा है। काव्यप्रकाश की 'सुधासागर' नामक टीका में १८वीं शती के भीमसेन ने भी कैयट और औवट शुक्लयजुर्वेद को सम्मट के भाष्यकार को मम्मट का अनुज और शिष्य बताया है। पर यजुर्वेदभाष्य पुष्पिका में औवट (या उव्वट) के पिता का नाम वज्रट कहा गया है। काश्मीरी ब्राह्मणपंडितों के बीच प्रचलित अनुश्रुति के अनुसार कैयट पामपुर (या येच) गाँव के निवासी थे। महाभाष्यांत पाणिनि व्याकरण को वे कंठस्थ ही पढ़ाया करते थे। आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण उदरपोषण के लिये उन्हें कृषि आदि शरीरश्रम करना पड़ता था। एक बार दक्षिण देश से कश्मीर आए हुए पंडित कृष्ण भट्ट ने कश्मीरराज से मिलकर तथा अन्य प्रयत्नों द्वारा कैयट के लिए एक गाँव का शासन और धनधान्य संग्रह किया और उसे लेकर जब वे उसे समर्पित करने उनके यहाँ पहुँचे तो उन्होने भिक्षा दान ग्रहण करना अस्वीकार कर दिया। वे कश्मीर से पैदल काशी आए और शास्त्रार्थ मे अनेक पंडितों को हराया। वहीं प्रदीप की रचना हुई। इस टीकाग्रंथ के संबंध में उन्होने लिखा है कि उसका आधार भर्तृहरि (वाक्यपदीयकार) की भाष्यटीका है जो अब पूर्णरूप से अप्राप्य है)। प्रदीप में स्थान स्थान पर पतंजलि और भर्तृहरि के स्फोटवाद का अच्छा दार्शनिक विवेचन हुआ है। .

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कैलाश (तीर्थ)

कैलास (तीर्थ) हिमालय के तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है जिसे 'गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलास के बर्फ से आच्छादित 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है और इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। कदाचित प्राचीन साहित्य में उल्लिखित मेरु भी यही है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि एवं रावण, भस्मासुर आदि ने यहाँ तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और बाक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था। जैन धर्म में भी इस स्थान का महत्व है। वे कैलास को अष्टापद कहते है। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। बौद्ध साहित्य में मानसरोवर का उल्लेख अनवतप्त के रूप में हुआ है। उसे पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। बौद्ध अनुश्रुति है कि कैलास पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है। उसकी उपत्यका में रत्नखचित कल्पवृक्ष है। डेमचोक (धर्मपाल) वहाँ के अधिष्ठाता देव हैं; वे व्याघ्रचर्म धारण करते, मुंडमाल पहनते हैं, उनके हाथ में डम डिग्री और त्रिशूल है। वज्र उनकी शक्ति है। ग्यारहवीं शती में सिद्ध मिलेरेपा इस प्रदेश में अनेक वर्ष तक रहे। विक्रमशिला के प्रमुख आचार्य दीपशंकर श्रीज्ञान (982-1054 ई0) तिब्बत नरेश के आमंत्रण पर बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ यहाँ आए थे। कैलास पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलास है। इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है। तिब्बती (भोटिया) लोग कैलास मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है। .

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केसर

thumb केसर का पुष्प केसर (saffron) एक सुगंध देनेवाला पौधा है। इसके पुष्प की वर्तिकाग्र (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल की क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) नामक क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है, यद्यपि इसकी खेती स्पेन, इटली, ग्रीस, तुर्किस्तान, ईरान, चीन तथा भारत में होती है। भारत में यह केवल जम्मू (किस्तवार) तथा कश्मीर (पामपुर) के सीमित क्षेत्रों में पैदा होती हैं। प्याज तुल्य इसकी गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर में रोपी जाती हैं और अक्टूबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं। केसर का क्षुप 15-25 सेंटीमीटर ऊँचा, परंतु कांडहीन होता है। पत्तियाँ मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिसपर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। पंखुडि़याँ तीन तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनकी ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। चिकित्सा में यह उष्णवीर्य, उत्तेजक, आर्तवजनक, दीपक, पाचक, वात-कफ-नाशक और वेदनास्थापक माना गया है। अत: पीड़ितार्तव, सर्दी जुकाम तथा शिर:शूलादि में प्रयुक्त होता है। केसर का वानस्पतिक नाम क्रोकस सैटाइवस (Crocus sativus) है। अंग्रेज़ी में इसे सैफरन (saffron) नाम से जाना जाता है। यह इरिडेसी (Iridaceae) कुल का क्षुद्र वनस्पति है जिसका मूल स्थान दक्षिण यूरोप है। 'आइरिस' परिवार का यह सदस्य लगभग 80 प्रजातियों में विश्व के विभिन्न भू-भागों में पाया जाता है। विश्व में केसर उगाने वाले प्रमुख देश हैं - फ्रांस, स्पेन, भारत, ईरान, इटली, ग्रीस, जर्मनी, जापान, रूस, आस्ट्रिया, तुर्किस्तान, चीन, पाकिस्तान के क्वेटा एवं स्विटज़रलैंड। आज सबसे अधिक केसर उगाने का श्रेय स्पेन को जाता है, इसके बाद ईरान को। कुल उत्पादन का 80% इन दोनों देशों में उगाया जा रहा है, जो लगभग 300 टन प्रतिवर्ष है। भारत में केसर केसर विश्व का सबसे कीमती पौधा है। केसर की खेती भारत में जम्मू के किश्तवाड़ तथा जन्नत-ए-कश्मीर के पामपुर (पंपोर) के सीमित क्षेत्रों में अधिक की जाती है। केसर यहां के लोगों के लिए वरदान है। क्योंकि केसर के फूलों से निकाला जाता सोने जैसा कीमती केसर जिसकी कीमत बाज़ार में तीन से साढ़े तीन लाख रुपये किलो है। परंतु कुछ राजनीतिक कारणों से आज उसकी खेती बुरी तरह प्रभावित है। यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सुन्दर गंधयुक्त होती है। असली केसर बहुत महंगी होती है। कश्मीरी मोंगरा सर्वोतम मानी गई है। एक समय था जब कश्मीर का केसर विश्व बाज़ार में श्रेष्ठतम माना जाता था। उत्तर प्रदेश के चौबटिया ज़िले में भी केसर उगाने के प्रयास चल रहे हैं। विदेशों में भी इसकी पैदावार बहुत होती है और भारत में इसकी आयात होती है। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से सिर्फ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे शहर पंपोर के खेतों में शरद ऋतु के आते ही खुशबूदार और कीमती जड़ी-बूटी ‘केसर’ की बहार आ जाती है। वर्ष के अधिकतर समय ये खेत बंजर रहते हैं क्योंकि ‘केसर’ के कंद सूखी ज़मीन के भीतर पनप रहे होते हैं, लेकिन बर्फ़ से ढकी चोटियों से घिरे भूरी मिट्टी के मैदानों में शरद ऋतु के अलसाये सूर्य की रोशनी में शरद ऋतु के अंत तक ये खेत बैंगनी रंग के फूलों से सज जाते हैं। और इस रंग की खुशबू सारे वातावरण में बसी रहती है। इन केसर के बैंगनी रंग के फूलों को हौले-हौले चुनते हुए कश्मीरी लोग इन्हें सावधानी से तोड़ कर अपने थैलों में इक्ट्ठा करते हैं। केसर की सिर्फ 450 ग्राम मात्रा बनाने के लिए क़रीब 75 हज़ार फूल लगते हैं। केसर का पौधा 'केसर' को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहता है। यह पौधा कली निकलने से पहले वर्षा एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। मध्य एवं पश्चिमी एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद (बल्ब) द्वारा उगाया जाता है। केसर का पौधा सुगंध देनेवाला बहुवर्षीय होता है और क्षुप 15 से 25 सेमी (आधा गज) ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो मूलोभ्दव (radical), सँकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड (scapre) निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकाकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। प्याज तुल्य केसर के कंद / गुटिकाएँ (bulb) प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह में बोए जाते हैं, जो दो-तीन महीने बाद अर्थात नवंबर-दिसंबर तक इसके पत्र तथा पुष्प साथ निकलते हैं। इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों (stigma) को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन (saffron) कहते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है। प्रत्येक फूल में केवल तीन केसर ही पाए जाते हैं। लाल-नारंगी रंग के आग की तरह दमकते हुए केसर को संस्कृत में 'अग्निशाखा' नाम से भी जाना जाता है। इन फूलों में पंखुडि़याँ तीन-तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग के पुंकेशर होते हैं। कुक्षिवृंत (style) नारंग रक्तवर्ण के, अखंड अथवा खंडित और गदाकार होते हैं। इनके ऊपर तीन कुक्षियाँ, लगभग एक इंच लंबी, गहरे, लाल अथवा लालिमायुक्त हल्के भूरे रंग की होती हैं, जिनके किनारे दंतुर या लोमश होते हैं। इन फूलों की इतनी तेज़ खुशबू होती है कि आसपास का क्षेत्र महक उठता है। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंतु लाक्षणिक और स्वाद किंचित् कटु, परंतु रुचिकर, होता है। इसके बीज आयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं जिनमें से गोलकार मींगी निकलती है। 'केसर को निकालने के लिए पहले फूलों को चुनकर किसी छायादार स्थान में बिछा देते हैं। सूख जाने पर फूलों से मादा अंग यानि केसर को अलग कर लेते हैं। रंग एवं आकार के अनुसार इन्हें - मागरा, लच्छी, गुच्छी आदि श्रेणियों में वर्गीकत करते हैं। 150000 फूलों से लगभग 1 किलो सूखा केसर प्राप्त होता है। 'केसर' खाने में कड़वा होता है, लेकिन खुशबू के कारण विभिन्न व्यंजनों एवं पकवानों में डाला जाता है। इसका उपयोग मक्खन आदि खाद्य द्रव्यों में वर्ण एवं स्वाद लाने के लिये किया जाता हैं। गर्म पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग देता है। यह रंग कैरेटिनॉयड वर्णक की वजह से होता है। यह घुलनशील होता है, साथ ही अत्यंत पीला भी। प्रमुख वर्णको में कैरोटिन, लाइकोपिन, जियाजैंथिन, क्रोसिन, पिकेक्रोसिन आदि पाए जाते हैं। इसमें ईस्टर कीटोन एवं वाष्पशील सुगंध तेल भी कुछ मात्रा में मिलते हैं। अन्य रासायनिक यौगिकों में तारपीन एल्डिहाइड एवं तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं। इन रासायनिक एवं कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति केसर को अनमोल औषधि बनाती है। केसर की रासायनिक बनावट का विश्लेषण करने पर पता चला हैं कि इसमें तेल 1.37 प्रतिशत, आर्द्रता 12 प्रतिशत, पिक्रोसीन नामक तिक्त द्रव्य, शर्करा, मोम, प्रटीन, भस्म और तीन रंग द्रव्य पाएं जाते हैं। अनेक खाद्य पदार्थो में केसर का उपयोग रंजन पदार्थ के रूप में किया जाता है। .

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कोलाहोइ हिमानी

कोलाहोइ हिमानी भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य में पहलगाम से २६ किमी उत्तर में और सोनमर्ग से १६ किमी दक्षिण में स्थित हिमालय की एक हिमानी (ग्लेशियर) है। कोलाहोइ हिमानी की औसत ऊँचाई ४,७०० मीटर है और यहाँ का सबसे ऊँचा शिखर (जिसका नाम भी कोलाहोइ शिखर है) ५,४२५ मीटर की ऊँचाई रखता है। यही हिमानी लिद्दर नदी का स्रोत है जिसके किनारे पहलगाम बसा हुआ है और जो आगे चलकर सिन्द नदी (सिन्धु नदी से भिन्न) में जा मिलती है। ९१७४ में इसकी लम्बाई ५ किमी मापी ग​ई थी। भूमंडलीय ऊष्मीकरण (ग्‍लोबल वॉर्मिंग) के कारण अन्य हिमानियों की तरह यह भी सिकुड़ रही है। ९१६३ में यह १३.५७ किमी२ के क्षेत्रफल पर विस्तृत था लेकिन २००५ तक यह सिकुड़कर १०.६९ किमी२ रह गया था। .

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कोकलास

कोकलास (Koklass pheasant) (Pucrasia macrolopha) फ़ीज़ॅंट कुल का पक्षी है जो अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल तथा चीन में पाया जाता है। .

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अनन्तनाग ज़िला

अनन्तनाग भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक जिला है। जिले का मुख्यालय अनन्तनाग है। क्षेत्रफल - 3984 वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - 11,70,000 (2001 जनगणना) साक्षरता - 44.10% एस॰टी॰डी॰ कोड - जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में) समुद्र तल से उचाई -1700 m अक्षांश - 33-20' - 34-15' N देशांतर - 74-30' - 75-35' E औसत वर्षा - .

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अनुभा भोंसले

अनुभा भोंसले सीएनएन आईबीएन की एक कार्यकारी संपादक हैं और भारत में स्थित टेलिविज़न पत्रकार है। .

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अब्दूल अहद आज़ाद

अब्दुल अहद आज़ाद (1903-1948) कश्मीर प्रान्त के प्रमुख लेखक थे। श्रेणी:1903 में जन्मे लोग श्रेणी:कश्मीरी साहित्यकार श्रेणी:कश्मीरी कवि श्रेणी:१९४८ में निधन श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अभिनवगुप्त

अभिनवगुप्त (975-1025) दार्शनिक, रहस्यवादी एवं साहित्यशास्त्र के मूर्धन्य आचार्य। कश्मीरी शैव और तन्त्र के पण्डित। वे संगीतज्ञ, कवि, नाटककार, धर्मशास्त्री एवं तर्कशास्त्री भी थे। अभिनवगुप्त का व्यक्तित्व बड़ा ही रहस्यमय है। महाभाष्य के रचयिता पतंजलि को व्याकरण के इतिहास में तथा भामतीकार वाचस्पति मिश्र को अद्वैत वेदांत के इतिहास में जो गौरव तथा आदरणीय उत्कर्ष प्राप्त हुआ है वही गौरव अभिनव को भी तंत्र तथा अलंकारशास्त्र के इतिहास में प्राप्त है। इन्होंने रस सिद्धांत की मनोवैज्ञानिक व्याख्या (अभिव्यंजनावाद) कर अलंकारशास्त्र को दर्शन के उच्च स्तर पर प्रतिष्ठित किया तथा प्रत्यभिज्ञा और त्रिक दर्शनों को प्रौढ़ भाष्य प्रदान कर इन्हें तर्क की कसौटी पर व्यवस्थित किया। ये कोरे शुष्क तार्किक ही नहीं थे, प्रत्युत साधनाजगत् के गुह्य रहस्यों के मर्मज्ञ साधक भी थे। अभिनवगुप्त के आविर्भावकाल का पता उन्हीं के ग्रंथों के समयनिर्देश से भली भाँति लगता है। इनके आरंभिक ग्रंथों में क्रमस्तोत्र की रचना 66 लौकिक संवत् (991 ई.) में और भैरवस्तोत्र की 68 संवत (993 ई.) में हुई। इनकी ईश्वर-प्रत्यभिज्ञा-विमर्षिणी का रचनाकाल 90 लौकिक संवत् (1015 ई.) है। फलत: इनकी साहित्यिक रचनाओं का काल 990 ई. से लेकर 1020 ई. तक माना जा सकता है। इस प्रकार इनका समय दशम शती का उत्तरार्ध तथा एकादश शती का आरंभिक काल स्वीकार किया जा सकता है। .

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अमरनाथ

अमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में १३५ सहस्त्रमीटर दूर समुद्रतल से १३,६०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस गुफा की लंबाई (भीतर की ओर गहराई) १९ मीटर और चौड़ाई १६ मीटर है। गुफा ११ मीटर ऊँची है। अमरनाथ गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहां आते हैं। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं। .

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अय्यारी (२०१८ फ़िल्म)

अय्यारी २०१८ की एक भारतीय क्राइम-थ्रिलर फिल्म है, जिसके निर्देशक तथा लेखक नीरज पांडे हैं। शीतल भाटिया, धवल गड़ा तथा मोशन पिक्चर कैपिटल द्वारा निर्मित इस फिल्म के वितरक रिलायंस एंटरटेनमेंट, प्लान सी स्टूडियो, फ्राइडे फ़िल्म्वर्क तथा पेन इंडिया लिमिटेड हैं। फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा, मनोज बाजपेयी, रकुल प्रीत सिंह, पूजा चोपड़ा, आदिल हुसैन, कुमुद मिश्रा, नसीरुद्दीन शाह तथा अनुपम खेर मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह फिल्म एक भारतीय कर्नल के बारे में है, जिसके पास अपने पूर्व संरक्षक को पकड़ने के लिए ३६ घंटे हैं; जिसके पास ऐसे राज हैं, जो सरकार गिरा सकते हैं। इस फिल्म की घोषणा मई २०१७ में की गई थी, और इसकी शूटिंग दिल्ली, लंदन, कश्मीर, काहिरा तथा आगरा में हुई। यह फिल्म मूल रूप से २६ जनवरी २०१८ को रिलीज़ होने वाली थी, लेकिन पद्मवत के साथ संघर्ष से बचने के लिए इसकी रिलीज़ तिथि को स्थानांतरित कर ९ फरवरी तक बढ़ा दिया गया था। अंततः यह फिल्म १६ फरवरी २०१८ को रिलीज़ हुई। फिल्म को समीक्षकों से नकारात्मक समीक्षाएं प्राप्त हुई, और यह बॉक्स ऑफिस पर भी सफल नहीं रही। .

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अस्तोर घाटी

अस्तोर घाटी से पास के एक ५,४०० फ़ुट के एक पर्वत का दृश्य अस्तोर घाटी पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित गिलगित-बाल्तिस्तान क्षेत्र के अस्तोर ज़िले में २,६०० मीटर (८,५०० फ़ुट) की ऊँचाई पर स्थित है। भारत के नज़रिए से इसे पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में माना जाता है। अस्तोर घाटी नंगा परबत की पूर्व की ओर पड़ती है। यह १२० किमी लम्बी है और इसका क्षेत्रफल लगभग ५,०९२ वर्ग किमी (१,९६६ वर्ग मील) है। इसकी मुख्य वादी से चार छोटी वादियाँ उपशाखाएँ बनकर निकलती हैं। पूरी अस्तोर वादी के दायरे में लगभग १०० गाँव बसे हुए हैं जिनमें १९९८ में ७१,६६६ लोगों की आबादी थी। अस्तोर घाटी में दाख़िल होने का सब से सरल रास्ता गिलगित शहर से आता है। अस्तोर घाटी गिलगित से क़रीब ६० किमी दक्षिण-पूर्व में पड़ती है। .

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अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी.

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अवन्तिवर्मन

अवंतिवर्मन् (लगभग ८५५ ई - ८८३) ८८५ से ८८४ तक कश्मीर के राजा थे। वह ललितादित्य के बाद राजा बने। उनका राज्य एक सुवर्ण काल माना जाता है। अवन्तिपुर नगर उनके नाम पर है। .

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अविनाश काक

अविनाश काक (उर्फ अवि काक, जन्म: 1944) का जन्म श्रीनगर, कश्मीर में हुआ। वह में विद्युत एवं संगणक अभियांत्रिकी के एक प्रोफेसर है, जिन्होंने सूचना संसाधन के कई अलग अलग पहलुओं पर अग्रणी अनुसंधान किया है। उन्होंने संगणन शास्त्र पर भी कई ग्रन्थ लिखे हैं। .

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अगस्त २०१०

कोई विवरण नहीं।

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अग्निशेखर

अग्निशेखर हिन्दी लेखक एवं साहित्यकार हैं। वो मूल रूप से कश्मीर के हैं। उनका कविता संग्रह जवाहर टनल काफी प्रसिद्ध हुआ। इस पुस्तक को वर्ष २०१२ में जम्मू सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के रूप में चुना गया था। हालांकि उन्होंने बाद में यह पुरस्कार लेने से मना कर दिया। .

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अकबर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .

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अक्टूबर २०१५ हिन्दू कुश भूकंप

२६ अक्टूबर २०१५ को, १४:४५ पर (०९:०९ यूटीसी), हिंदू कुश के क्षेत्र में, एक 7.5 परिमाण के भूकंप ने दक्षिण एशिया को प्रभावित किया। मुख्य भूकंप के 40 मिनट बाद 4.8 परिमाण के पश्चात्वर्ती आघात ने फिर से प्रभावित किया; 4.1 परिमाण या उससे अधिक के तेरह और अधिक झटकों ने 29 अक्टूबर की सुबह को प्रभावित किया। मुख्य भूकंप 210 किलोमीटर की गहराई पर हुआ। 5 नवम्बर तक, यह अनुमान लगाया गया था कि कम से कम 398 लोगों की मौत हो गयी हैं, ज्यादातर पाकिस्तान में। http://abcnews.go.com/International/wireStory/latest-strong-afghan-earthquake-felt-south-asia-34730075 भूकंप के झटके अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, ताजिकिस्तान, और किर्गिस्तान में महसूस किए गए। भूकंप के झटके भारतीय शहरों नई दिल्ली, श्रीनगर, अमृतसर, चंडीगढ़ लखनऊ आदि और चीन के जनपदों झिंजियांग, आक़्सू, ख़ोतान तक महसूस किए गए जिनकी सूचना अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भी दिया गया। कंपन नेपालियों की राजधानी काठमांडू में भी महसूस किया गया, जहां लोगों ने शुरू में सोचा कि यह अप्रैल 2015 में आए भूकंप के कई मायनों आवर्ती झटकों में से एक था। दैनिक पाकिस्तानी "द नेशन" ने सूचित किया कि यह भूकंप पाकिस्तान में 210 किलोमीटर पर होने वाला सबसे बड़ा भूकंप है। .

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उत्तर अफ़्रीका

उत्तर अफ़्रीका के देश (गहरे हरे रंग में) - हल्के हरे रंग के देश भी कभी-कभी उत्तर अफ़्रीका में माने जाते हैं तूनीशीया के सिदी बू सैद शहर की एक गली एटलस शृंखला के जबल तुबकल पहाड़ पर बर्फ़ तुनीसिया की एक बर्बर औरत (सन् 1900 के क़रीब ली गई तस्वीर) उत्तर अफ़्रीका (अरबी:, शुमाल अफ़्रीक़िया) अफ़्रीका के महाद्वीप का उत्तरी भाग है। इसके और उप-सहारा अफ़्रीका के दरमयान सहारा का विशाल रेगिस्तान आता है जो उत्तर अफ़्रीका और बाक़ी अफ़्रीका में इतना बड़ा फ़ासला बना देता है के उत्तर अफ़्रीका की जातियाँ, भाषाएँ, रीति-रिवाज, मौसम और जानवर बाक़ी अफ़्रीका के काफ़ी भिन्न हैं। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार उत्तर अफ़्रीका में सात राष्ट्र आते हैं: मोरक्को, अल्जीरिया, तूनीशीया, लीबिया, मिस्र, सूडान और पश्चिमी सहारा। इस भूभाग में कुछ छोटे-से स्पेन-नियंत्रित उत्तर अफ़्रीकी क्षेत्र भी आते हैं। उत्तर अफ़्रीका में अरबी, बर्बरी भाषाएँ और कुछ अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं। मोरक्को, अल्जीरिया, तूनीशीया, लीबिया और मौरितानिया के समूह को "मग़रिब" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ अरबी में (और हिन्दी-उर्दु में भी) "पश्चिमी" है। .

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उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया। राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है। राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है। .

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उत्पल वंश

उत्पल वंश कश्मीर का राजकुल जिसने लगभग ८५५ ई. से लगभग ९३९ ई. तक राज किया। अंतिम करकोट राजा के हाथ से अवंतिवर्मन् ने शासन की बागडोर छीन उत्पल राजवंश का आरंभ किया। इस राजकुल के राजाओं में प्रधान अवंतिवर्मन् और शंकरवर्मन् थे। इस कुल के अंतिम राजा उन्मत्तावंती के अनौरस पुत्र सूरवर्मन द्वितीय ने केवल कुछ महीने राज किया। उत्पल राजकुल का अंत मंत्री प्रभाकरदेव द्वारा हुआ जिसके बेटे यश:कर को चुनकर ब्राह्मणों ने काश्मीर का राजा बनाया। श्रेणी:भारत का इतिहास.

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उत्पलाचार्य

उत्पलाचार्य प्रत्यभिज्ञादर्शन के एक आचार्य थे। ये काश्मीर शैवमत की प्रत्यभिज्ञा शाखा के प्रवर्तक सोमानंद के पुत्र तथा शिष्य थे। इनका समय नवम शती का अंत और दशम शती का पूर्वार्ध था। इन्होंने प्रत्यभिज्ञा मत को अपने सर्वश्रैष्ठ प्रमेयबहुल ग्रंथ 'ईश्वर-प्रत्यभिज्ञा-कारिका' द्वारा तथा उसकी वृत्तियों में अन्य मतों का युक्तिपूर्वक खंडन कर उच्च दार्शनिक कोटि में प्रतिष्ठित किया। इनके पुत्र तथा शिष्य लक्ष्मणपुत्र अभिनवगुप्त के प्रत्यभिज्ञा तथा क्रमदर्शन के महामहिम गुरु थे। उत्पल की अनेक कृतियाँ हैं जिनमें इन्होंने प्रयत्यभिज्ञा के दार्शनिक रूप को विद्वानों के लिए तथा जनसाधारण के लिए भी प्रस्तुत किया है। इनके मान्य ग्रंथ हैं-.

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उत्कीर्णन

लकड़ी पर उत्कीर्ण सुन्दर दृष्य लकड़ी, हाथीदाँत, पत्थर आदि को गढ़ छीलकर अलंकृत करने या मूर्ति बनाने को उत्कीर्णन या नक्काशी करना (अंग्रेजी में कर्विग) कहते हैं। यहाँ काष्ठ उत्कीर्णन पर प्राविधिक दृष्टिकोण से विचार किया गया है। उत्कीर्णन के लिए लकड़ी को सावधानी से सूखने देना चाहिए। एक रीति यह है कि नई लकड़ी को बहते पानी में डाल दिया जाए, जिसमें उसका सब रस बह जाए हवादार जगह में छोड़ देना काफी होता है। शीशम, बाँझ (ओक) और लकड़ियों पर सूक्ष्म उत्कीर्णन किया जा सकता है। मोटा काम प्राय: सभी लकड़ियों पर हो सकता है। उत्कीर्णन के लिए छोटी बड़ी अनेक प्रकार की चपटी और गोल रुखानियों तथा छुरियों का प्रयोग किया जाता है। काम को पकड़ने के लिए बाँक (वाइस) भी हो तो सुविधा होती है। काठ की एक मुँगरी (हथौड़ा) भी चाहिए। कोने अँतरे में लकड़ी को चिकना करने के लिए टेढ़ी रेती भी चाहिए। बारीक काम में रुखानी को ठोंका नहीं जाता। केवल एक हाथ की गदोरी से दबाया जाता है और दूसरे हाथ की अँगुलियों से उसके अग्र को नियंत्रित किया जाता है। उत्कीर्णन सीख सकता है। नौसिखुए के लिए दस बारह औजार पर्याप्त होंगे। उत्कीर्णन के लिए बने यंत्रों को बढ़िया इस्पात का होना चाहिए और उन्हें छुरा तेज करने की सिल्ली पर तेज करे अंतिम धार चमड़े की चमोटी पर रगड़कर चढ़ानी चाहिए। अतीक्ष्ण यंत्रों से काम स्चच्छ नहीं बनता और लकड़ी के फटने या टूटने का डर रहाता है। गोल रुखानियों को नतोदार पृष्ठ की ओर से तेज करने के लिए बेलनाकार सिल्लियाँ मिलती हैं या साधारण सिल्लियाँ भी घिसकर वैसी बनाई जा सकती हैं। यों तो थोड़ा बहुत उत्कीर्णन सभी जगह होता है, पंरतु कश्मीर की बनी अखरोट की लकड़ी की उत्कीर्ण वस्तुएँ बड़ी सुंदर होती हैं। चीन और जापान के मंदिरों में काष्ठोत्कीर्णन के आश्चर्यजनक सूक्ष्म और सुंदर उदाहरण मिलते हैं। .

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उद्भट

उद्भट अलंकार संप्रदाय (संस्कृत) में भामह और दंडी के परवर्ती प्रधान प्रतिनिधि आचार्य थे। कल्हणकृत राजतरंगिणी के अनुसार ये कश्मीर के शासक जयापीड की विद्वत्परिषद् के सभापति थे और इनका वेतन प्रति एक लक्ष दीनार (स्वर्णमुद्रा) था। इतिहासकारों ने जयापीड का शासनकाल सन् ७७९-८१३ ई. माना है। उद्भट जयापीड के शासनकाल के प्रथम चरण में रख जा सकते हैं क्योंकि मान्यता है कि जयापीड ने अपने शासन के अंतिम चरण में प्रजा को पर्याप्त उत्पीड़ित किया था। इससे क्षुब्ध हो ब्राह्मणों ने उसका बहिष्कार कर दिया था। अतएव उद्भट का समय ईसवी सन् की आठवीं शताब्दी में ही संभव हो सकता है। उद्भट ने 'काव्यलंकारसारसंग्रह' नामक ग्रंथ की रचना की थी। यह ग्रंथ अप्राप्य था किंतु डॉ॰ वूलर ने इसकी लघुवृत्तियुक्त एक प्रति जैसलमेर में खोज निकाली थी। उक्त ग्रंथ छह वर्गों में विभक्त है, इसकी ७५ कारिकाओं में ४१ अलंकारों का निरूपण है और ९५ पद्यों में उदाहरण हैं जो उद्भट ने स्वरचित 'कुमारसंभव' काव्य से प्रस्तुत किए हैं। उक्त संख्या बांबे संस्कृत सीरीज़ द्वारा प्रकाशित संस्करण के अनुसार है जब कि निर्णय सागर प्रेस के संस्करण में ७९ कारिकाओं में लक्षण तथा १०० में उदाहरण हैं। इनके एक अन्य ग्रंथ 'भामह विवरण' के भी उल्लेख प्रतिहारेंदुराजकृत 'काव्यालंकारसारसंग्रह' की लघुवृत्ति तथा अभिनवगुप्ताचार्य के 'ध्वन्यालोकलोचन' में मिलते हैं। उद्भट ने अलंकारों का क्रम और उनके वर्ग भामह के काव्यालंकार के अनुरूप रखे हैं और प्राय: संख्या भी वही दी है। भामह द्वारा निरूपति ३९ अलंकारों में से इन्होंने आशी, उत्प्रेक्षावयव, उपमारूपक और यमक इत्यादि चार अलंकारों को छोड़ दिया है तथा पुनरुक्तवदाभास, छेकानुप्रास, लाटानुप्रास, काव्यहेतु, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टांत और संकर, इन छह नवीन अलंकारों को लिया है। इतना ही नहीं, उक्त छह अलंकारों में पुनरुक्तवदाभास, काव्यहेतु तथा दृष्टांत तो सर्वप्रथम उद्भट द्वारा ही आविष्कृत हैं, क्योंकि पूर्ववर्ती भामह, दंडी आदि आचार्यों में से किसी ने भी इनका उल्लेख नहीं किया है। अनुप्रास, उत्प्रेक्षा, रसवत् और भाविक के अतिरिक्त और भी १२ अलंकारों के लक्षण इन्होंने भामह के अनुसार ही दिए हैं। श्रेणी:संस्कृत साहित्य श्रेणी:अलंकार शास्त्र श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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उन्मत्तावंती

उन्मत्तावंती (९३७-३९ ई.) यह कश्मीर के प्रसिद्ध उत्पल राजवंश का अंतिम औरस राजा था, अपने समूचे राजकुल में क्रूरतम। उसकी क्रूरता की कहानी इतिहासप्रसिद्ध है और उसका वर्णन कल्हण ने अपनी राजतरंगिणी में विशद रूप से किया है। क्रूरता के कार्य उसे असाधारण आह्लाद प्रदान करते थे। गर्भवती स्त्रियों के बच्चों को मार डालने में उसे असाधारण आनंद मिलता था। उसके पहले कश्मीर की दशा आंतरिक युद्धों और पदाधिकारियों की बेईमानियों से क्षतविक्षत हो रही थी। उन्मत्तावंती के पिता पार्थ ने विरक्त होकर जयंद्रविहार में रहना आरंभ किया था। अस्वाभाविक पुत्र उन्मत्तावंती ने विरक्त पिता की भी हत्या कर डाली और अपने सारे भाइयों को मरवा डाला। परंतु बहुत काल तक वह भी राज न कर सका और केवल दो वर्ष के क्रूर शासन के बाद राज्य का अधिकार उसके अनौरस पुत्र सूरवर्मन् के हाथ में चला गया। श्रेणी:कश्मीर का इतिहास.

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उवट

उवट विख्यात वेद-भाष्यकार थे। यजुर्वेद-मंत्र-भाष्य द्वारा विदित होता है कि इनके पिता का नाम वज्रट था। साथ ही वहीं इनका जन्मस्थान आनंदपुर कहा गया है: कतिपय विद्वानों के कथनानुसार ये महाराज भोज के समय ग्यारहवीं शताब्दी ईसवी मे अवंतिनगरी में विद्यमान थे। उव्वट ने भोज के शासन काल में उज्जयिनी में रहकर शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन वाजसनेयी संहिता का सम्पूर्ण चालीस अध्यायों वाला भाष्य किया था, जो उवट भाष्य के नाम से सुविख्यात है। 'भविष्य-भक्ति-माहात्म्य' नामक संस्कृत ग्रंथ इन्हें कश्मीर देश का निवासी और मम्मट तथा कैयट का समसामयिक बताता है: इन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की काण्व शाखा का भाष्य और ऋग्वेदीय शौनक प्रातिशाख्य नामक ग्रंथ की रचना की। कुछ लोगों का कहना है कि ऋग्वेदीय शौनक प्रातिशाख्य भाष्य करने के बाद इन्होंने ऋग्वेद का भाष्य भी रचा था। .

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१९४७ का भारत-पाक युद्ध

भारत और पाकिस्तान के बीच प्रथम युद्ध सन् १९४७ में हुआ था। यह कश्मीर को लेकर हुआ था जो १९४७-४८ के दौरान चला। .

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१९५३

1953 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२०१०

वर्ष २०१० वर्तमान वर्ष है। यह शुक्रवार को प्रारम्भ हुआ है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष २०१० को अंतराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इन्हें भी देखें 2010 भारत 2010 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2010 साहित्य संगीत कला 2010 खेल जगत 2010 .

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२३ जून

23 जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 174वाँ (लीप वर्ष में 175 वाँ) दिन है। साल में अभी और 191 दिन बाकी हैं। .

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५ अगस्त

5 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 217वॉ (लीप वर्ष मे 218 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 148 दिन बाकी है। .

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2014 भारत - पाकिस्तान बाढ़

सितम्बर 2014 में, मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितम्बर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। भारत के गृह मंत्रालय के अनुसार 450 गाँव जल समाधि ले चुके हैं। .

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2016 कश्मीर अशांति

वर्ष 2016 के दौरान कश्मीर में अशांति की शुरुआत जुलाई के महीने में, कश्मीरी अलगाववादी नौजवान व हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान मुज़फ़्फ़र वानी की भारतीय सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में हुई मृत्यु के उपरांत हुई थी। .

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