3 संबंधों: भ्रूणविज्ञान, जैविक तंत्रिका तंत्र, अकशेरुकी भ्रूणविज्ञान।
भ्रूणविज्ञान
६ सप्ताह का मानव भ्रूण भ्रूणविज्ञान (Embroyology) के अंतर्गत अंडाणु के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक जीव के उद्भव एवं विकास का वर्णन होता है। अपने पूर्वजों के समान किसी व्यक्ति के निर्माण में कोशिकाओं और ऊतकों की पारस्परिक क्रिया का अध्ययन एक अत्यंत रुचि का विषय है। स्त्री के अंडाणु का पुरुष के शुक्राणु के द्वारा निषेचन होने के पश्चात जो क्रमबद्ध परिवर्तन भ्रूण से पूर्ण शिशु होने तक होते हैं, वे सब इसके अंतर्गत आते हैं, तथापि भ्रूणविज्ञान के अंतर्गत प्रसव के पूर्व के परिवर्तन एवं वृद्धि का ही अध्ययन होता है।:ऍस्तुदिअ एल देसर्रोल्लो प्रेनतल्। ऍच्ह पोर ंअर्तिन् .
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जैविक तंत्रिका तंत्र
350px तंत्रिका विज्ञान में जैविक तंत्रिका नेटवर्क ऐसे न्यूरांस के समूह को कहाँ जाता है जो मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान करने के काम आते है। इस सूचना का प्रसारण एक विद्युत-रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा होता है। इसको दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं.
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अकशेरुकी भ्रूणविज्ञान
जिन प्राणियों में रीढ़ नहीं होती उन्हें अकशेरुकी या अपृष्ठवंशी (invertebrate) कहते हैं। विज्ञान का वह विभाग अकशेरुकी भ्रूणविज्ञान (invertebrate embryology) कहलाता है जिसमें ऐसे प्राणियों में बच्चों के जन्म के आरंभ पर विचार होता है। अपृष्ठवंशी प्राणियों को 15-16 श्रेणियों में बाँटा गया है, तथापि इनके भ्रूणविज्ञान से यही सिद्ध होता है कि यह विभाग केवल बाह्यिक है और प्राणियों में, विशेषकर भ्रूणों में, एक अंतर्निहित परस्पर संबंध है जिसके द्वारा विकासवाद की पुष्टि होती है। प्राणियों की विभन्नता उनके वातावरण और तदनुसार उनकी जीवनपद्धति के कारण होती है। इस सिद्धांत के अनुसार सभी प्राणियों को केवल दो विभागों में बाँटा जा सकता है। एक तो आद्यमुखी और दूसरा द्वितीयमुखी। इन दोनों शाखाओं को शरकृमिवर्ग संबंधित करता है। इससे यही सिद्ध होता है कि प्राणियों के विकास में आद्यमुखी पहले बने और उसके पश्चात् द्वितीयमुखी। द्वितीयमुखी से सभी पृष्ठवंशियों (वर्टेब्रेटा) का विकास हुआ। .
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