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कलचुरी

सूची कलचुरी

कलचुरी वंश बुंदेलखंड का एक महत्‍वपूर्ण शासक रहा है। उनके शासनकाल के दौरान बुंदेलखंड में कई युद्ध हुए और निरंतर अनिश्चय का वातावरण रहा। कलचुरी वंश लगभग तीन सौ वर्ष तक दक्षिणी बुंदेलखंड का शासक रहा। बारहवीं शताब्दी में चंदेल शासकों की बढ़ती शक्ति के कारण कलचुरियों का पराभव हुआ। कलचुरी शैवोपासक थे इसलिए उनके बनवाए मदिरों में शिव मंदिर अधिक हैं। उनमें त्रिदेवों की पूजा भी होती थी। स्‍थापत्‍य और मूर्तिकला को कलचुरियों ने काफी प्रोत्‍साहन दिया। ऐसी भी धारणा है कि समाज में विभिन्न वर्गों में उपजातियों का निर्माण इसी काल में हुआ था। श्रेणी:बुंदेलखंड.

11 संबंधों: चौसठ योगिनी मंदिर, जबलपुर, त्रिपुरी, प्राचीन भारत, बिलासपुर जिला (छत्तीसगढ़), बुन्देलखण्ड, बुंदेलखंड के शासक, भारतीय पक्षियों की सूची, लक्ष्मीकर्ण, सागर ज़िला, गुर्जर प्रतिहार राजवंश, कर्णचेदि

चौसठ योगिनी मंदिर, जबलपुर

चौसठ योगिनी मंदिर मध्य प्रदेश के जबलपुर में स्थित देवी का एक मंदिर है। इस मंदिर को त्रिपुरी राज घराने के महाराज कर्णदेव की महारानी अरुणा देवी ने बनबाया था। श्रेणी:मध्य प्रदेश के हिन्दू मंदिर.

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त्रिपुरी

त्रिपुरी से निम्निखित का बोध होता है-.

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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बिलासपुर जिला (छत्तीसगढ़)

बिलासपुर भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक जिला है। इसका मुख्यालय बिलासपुर है जो राज्य की राजधानी नया रायपुर से १३३ किलोमीटर उत्तर में स्थित है तथा प्रशासनिक दृष्टि से राज्य का दूसरा सबसे प्रमुख शहर है। छत्तीसगढ़ राज्य का उच्च न्यायालय भी इसी शहर में स्थित है अतः इसे “न्यायधानी” होने का भी गौरव प्राप्त है। बिलासपुर सुगंधित दूबराज चावल की किस्म के लिए भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ हथकरघा उद्योग से निर्मित कोसे की साड़ियाँ भी देशभर में विख्यात है। बिलासपुर सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध है और यहाँ की संस्कृति अनेक विविधताओं एवं रंगों को समाहित किये हुए है। .

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बुन्देलखण्ड

बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है।इसका प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है.

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बुंदेलखंड के शासक

' बुंदेलखंड के ज्ञात इतिहास के अनुसार यहां ३०० ई. प सौरभ तिवारी ब्राह्मण सासक मौर्य शासनकाल के साक्ष्‍य उपलब्‍ध है। इसके पश्‍चात वाकाटक और गुप्‍त शासनकाल, कलचुरी शासनकाल, चंदेल शासनकाल, खंगार1खंगार शासनकाल, बुंदेल शासनकाल (जिनमें ओरछा के बुंदेल भी शामिल थे), मराठा शासनकाल और अंग्रेजों के शासनकाल का उल्‍लेख मिलता है। .

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भारतीय पक्षियों की सूची

यहाँ भारत में पायी जाने वाली पक्षियों की सूची दी गयी है। भारत में पक्षियों की कोई 1301 प्रजातियाँ (species) हैं जिनमें से 42 केवल भारत में पायी जाती हैं; 1 मानव द्वारा विकसित है तथा 26 दुर्लभ प्रजातियाँ हैं। मोर (Pavo cristatus) भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। सूची में पक्षियों के पाये जाने का विवरण इस प्रकार है:-.

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लक्ष्मीकर्ण

लक्ष्मीकर्ण (शासनकाल 1041-1073 CE), त्रिपुरी के कल्चुरी राजवंश का शासक था जिसे 'कर्ण' भी कहते हैं। उसका राज्य वर्तमान मध्य प्रदेश के चेदि या दहल के आसपास केन्द्रित था। श्रेणी:भारत के राजा.

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सागर ज़िला

सागर जिले में प्रमुख रूप से धसान, बेबस, बीना, बामनेर और सुनार नदियां निकलती हैं। इसके अलावा कड़ान, देहार, गधेरी व कुछ अन्य छोटी बरसाती नदियां भी हैं। अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मामले में सागर जिले को समृद्ध नहीं कहा जा सकता लेकिन वास्तव में जो भी संसाधन उपलब्ध हैं, उनका बुद्धिमत्तापूर्ण दोहन बाकी है। कृषि उत्पादन में सागर जिले के कुछ क्षेत्रों की अच्छी पहचान हैं। खुरई तहसील में उन्नत किस्म के गेहूं का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है। अक्षांश - 23.10 से 24.27 उत्तर देशांतर - 78.5 से 79.21 पूर्व औसत वर्षा - 1252 मि.मी.

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गुर्जर प्रतिहार राजवंश

प्रतिहार वंश मध्यकाल के दौरान मध्य-उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में राज्य करने वाला राजवंश था, जिसकी स्थापना नागभट्ट नामक एक सामन्त ने ७२५ ई॰ में की थी। इस राजवंश के लोग स्वयं को राम के अनुज लक्ष्मण के वंशज मानते थे, जिसने अपने भाई राम को एक विशेष अवसर पर प्रतिहार की भाँति सेवा की। इस राजवंश की उत्पत्ति, प्राचीन कालीन ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ज्ञात होती है। अपने स्वर्णकाल में साम्राज्य पश्चिम में सतुलज नदी से उत्तर में हिमालय की तराई और पुर्व में बगांल असम से दक्षिण में सौराष्ट्र और नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। सम्राट मिहिर भोज, इस राजवंश का सबसे प्रतापी और महान राजा थे। अरब लेखकों ने मिहिरभोज के काल को सम्पन्न काल बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि गुर्जर प्रतिहार राजवंश ने भारत को अरब हमलों से लगभग ३०० वर्षों तक बचाये रखा था, इसलिए गुर्जर प्रतिहार (रक्षक) नाम पड़ा। गुर्जर प्रतिहारों ने उत्तर भारत में जो साम्राज्य बनाया, वह विस्तार में हर्षवर्धन के साम्राज्य से भी बड़ा और अधिक संगठित था। देश के राजनैतिक एकीकरण करके, शांति, समृद्धि और संस्कृति, साहित्य और कला आदि में वृद्धि तथा प्रगति का वातावरण तैयार करने का श्रेय प्रतिहारों को ही जाता हैं। गुर्जर प्रतिहारकालीन मंदिरो की विशेषता और मूर्तियों की कारीगरी से उस समय की प्रतिहार शैली की संपन्नता का बोध होता है। .

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कर्णचेदि

कर्ण (चेदि) (१०४१-११७३ ई.), कलचुरि वंश का सबसे प्रतापी शासक था। वह चेदि नामक प्राचीन भारतीय महाजनपद राज्य का राजा था। लगभग सन्‌ 1041 में अपने पिता चेदीश्वर गांगेयदेव की मृत्यु होने पर राजगद्दी पर बैठा। उसने अनेक राजाओं को हराया। किंतु कर्ण केवल योद्धा ही नहीं, भारतीय संस्कृति का भी पोषक था। काशी में उसने कर्णमेरु नाम का द्वादशभूमिक मंदिर बनाया। प्रयाग में कर्णतीर्थ का निर्माण कर उसने अपनी कीर्ति को चिरस्थायी किया। उसने विद्वान्‌ ब्राह्मणों के लिए कर्णावती नामक ग्राम की स्थापना की और काशी को अपनी राजधानी बनाया। ब्राह्मणों को उसने अनेक दान दिए और अपने कर्ण का नाम सार्थक किया। उसके दरबार के अनेक कवियों में विशेष रूप से वल्लण, नाचिराज, कर्पूर, विद्यापति और कनकामर के नाम उल्लेख्य हैं। कश्मीरी कवि विल्हण को भी उसने सत्कृत किया था। .

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