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कलचुरि राजवंश

सूची कलचुरि राजवंश

1200 ई में एशिया के राज्य; इसमें 'यादव' राज्य एवं उसके पड़ोसी राज्य देख सकते हैं। कलचुरि प्राचीन भारत का विख्यात राजवंश था। 'कलचुरी ' नाम से भारत में दो राजवंश थे- एक मध्य एवं पश्चिमी भारत (मध्य प्रदेश तथा राजस्थान) में जिसे 'चेदि', या 'हैहय' या 'उत्तरी कलचुरि' कहते हैं तथा दूसरा 'दक्षिणी कलचुरी' जिसने वर्तमान कर्नाटक के क्षेत्रों पर राज्य किया। चेदी प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका शासन क्षेत्र मध्य तथा पश्चिमी भारत था। आधुनिक बुंदलखंड तथा उसके समीपवर्ती भूभाग तथा मेरठ इसके आधीन थे। शक्तिमती या संथिवती इसकी राजधानी थी। कलचुरी शब्द के विभिन्न रूप- कटच्छुरी, कलत्सूरि, कलचुटि, कालच्छुरि, कलचुर्य तथा कलिचुरि प्राप्त होते हैं। विद्वान इसे संस्कृत भाषा न मानकर तुर्की के 'कुलचुर' शब्द से मिलाते हैं जिसका अर्थ उच्च उपाधियुक्त होता है। अभिलेखों में ये अपने को हैहय नरेश अर्जुन का वंशधर बताते हैं। इन्होंने २४८-४९ ई. से प्रारंभ होनेवाले संवत् का प्रयोग किया है जिसे कलचुरी संवत् कहा जाता है। पहले वे मालवा के आसपास रहनेवाले थे। छठी शताब्दी के अंत में बादमी के चालुक्यों के दक्षिण के आक्रमण, गुर्जरों का समीपवर्ती प्रदेशों पर आधिपत्य, मैत्रकों के दबाव तथा अन्य ऐतिहासिक कारणों से पूर्व जबरपुर (जाबालिपुर?) के आसपास बस गए। यहीं लगभग नवीं शताब्दी में उन्होंने एक छोटे से राज्य की स्थापना की। अभिलेखों में कृष्णराज, उसके पुत्र शंकरगण, तथा शंकरगण के पुत्र बुधराज का नाम आता है। उसकी मुद्रओं पर उसे 'परम माहेश्वर' कहा गया है। शंकरगण शक्तिशाली नरेश था। इसने साम्राज्य का कुछ विस्तार भी किया था। बड़ौदा जिले से प्राप्त एक अभिलेख में निरिहुल्लक अपने को कृष्णराज के पुत्र शंकरगण का सांमत बतलाता है। लगभग ५९५ ई. के पश्चात शंकरगण के बाद उसका उतराधिकारी उसका पुत्र बुधराज हुआ। राज्यारोहण के कुछ ही वर्ष बाद उसने मालवा पर अधिकार कर लिया। महाकूट-स्तंभ-लेख से पता चलता है कि चालूक्य नरेश मंगलेश ने इसी बुधराज को पराजित किया था। इस प्रदेश से कलचुरी शासन का ह्रास चालुक्य विनयादित्य (६८१-९६ ई.) के बाद हुआ। त्रिपुरी के आसपास चंदेल साम्राजय के दक्षिण भी कलचुरियों ने अपना साम्राज्य सथापित किया था। त्रिपुरी के कलचुरियों के वंश का प्रथम व्यक्ति कोकल्स प्रथम था। अपने युग के इस अद्भुत वीर ने भोज प्रथम गुर्जर प्रतीहार तथा उसके सामंतों को दक्षिण नहीं बढ़ने दिया। इनकी निधियों को प्राप्त कर उसने इन्हें भय से मुक्त किया। अरबों को पराजित किया तथा वंग पर धावा किया। इसके १८ पुत्रों का उल्लेख मिलता है किंतु केवल शंकरगण तथा अर्जुन के ही नाम प्राप्त होते हैं। शंकरगण ने मुग्धतुंग, प्रसिद्ध धवल तथा रणविग्रह विरुद्ध धारण किए। इसने राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय से मिलकर चालुकय विजयादित्य तृतीय पर आक्रमण किया किंतु दोनों को पराजित होना पड़ा। प्रसिद्ध कवि राजशेखर उसके दरबार से भी संबंधित रहे। इसके बाद इसका छोटा भाई युवराज सिंहासनारूढ़ हुआ। विजय के अतिरिक्त शैव साधुओं को धर्मप्रचार करने में सहयता पहुँचाई। युवराज के बाद उसका पुत्र लक्ष्मणराज गद्दी पर बैठा, इसने त्रिपुरी की पुरी को पुननिर्मित करवाया। इसी के राज्यकाल से राज्य में ह्रास होना प्रारंभ हो गया। चालुक्य तैलप द्वितीय और मुंज परमार ने इनकी शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया। मुंज ने त्रिपुरी पर विजय प्राप्त कर ली। उसके वापस जाने पर मंत्रियों ने युवराज द्वितीय को राजकीय उपाधि नहीं धारण करने दी और उसके पुत्र कोकल्ल द्वितीय को गद्दी पर बैठाया। इसने साम्राज्य की शक्ति को कुछ दृढ़ किया, किंतु उसके बाद धीरे-धीरे राजनीतिक शक्तियों ने त्रिपुरी के कलचुरियों के साम्राज्य का अंत कर दिया। उत्तर में गोरखपुर जिले के आसपास कोकल्ल द्वितीय के जमाने में कलचुरियों ने एक छोटा सा राज्य स्थापित किया। इस वंश का प्रथम पुरुष राजपुत्र था। इसके बाद शिवराज प्रथम, शंकरगण ने राज्य किया। कुछ दिनों के लिए इस क्षेत्र पर मलयकेतु वंश के तीन राजाओं, जयादित्य, धर्मादित्य, तथा जयादिव्य द्वितीय ने राज किया था। संभवत: भोज प्रथम परिहार ने जयादिव्य को पराजित कर गुणांबोधि को राज्य दिया। गुणांबोधिदेव के पुत्र भामानदेव ने महीपाल गुर्जर प्रतिहार की सहायता की थी। उसके बाद शंकरगण द्वितीय मुग्धतुंग, गुणसागर द्वितीय, शिवराज द्वितीय (भामानदेव), शंकरगण तृतीय तथा भीम ने राज किया। अंतिम महाराजधिराज सोढ़देव के बाद इस कुल का पता नहीं चलता। संभवत: पालों ने इनकी शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया। जेजाकभुक्ति के चंदेलों के राज्य के दक्षिण में कलचुरि राजवंश का राज्य था जिसे चेदी राजवंश भी कहते हैं। कलचुरि अपने को कार्तवीर्य अर्जुन का वंशज बतलाते थे और इस प्रकार वे पौराणिक अनुवृत्तों की हैहय जाति की शाखा थे। इनकी राजधानी त्रिपुरी जबलपुर के पास स्थित थी और इनका उल्लेख डाहल-मंडल के नरेशों के रूप में आता है। बुंदेलखंड के दक्षिण का यह प्रदेश 'चेदि देश' के नाम से प्रसिद्ध था इसीलिए इनके राजवंश को कभी-कभी चेदि वंश भी कहा गया है।ओडिसा के सोहपुर नमक स्थान से 27 कलचुरी सिक्को के साथ2500 कौड़िया प्राप्त हुई है। .

11 संबंधों: चन्देल, चेदि, मध्य प्रदेश का इतिहास, मध्यकालीन भारत, महामेघवाहन वंश, राजनांदगाँव, जगदेकमल्ल तृतीय, गांगेयदेव, गुर्जर प्रतिहार राजवंश, गुलबर्ग किला, कर्णचेदि

चन्देल

खजुराहो का कंदरीय महादेव मंदिर चन्देल वंश मध्यकालीन भारत का प्रसिद्ध राजवंश, जिसने 08वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से यमुना और नर्मदा के बीच, बुंदेलखंड तथा उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी भाग पर राज किया। चंदेल वंश के शासकों का बुंदेलखंड के इतिहास में विशेष योगदान रहा है। उन्‍होंने लगभग चार शताब्दियों तक बुंदेलखंड पर शासन किया। चन्देल शासक न केवल महान विजेता तथा सफल शासक थे, अपितु कला के प्रसार तथा संरक्षण में भी उनका महत्‍वपूर्ण योगदान रहा। चंदेलों का शासनकाल आमतौर पर बुंदेलखंड के शांति और समृद्धि के काल के रूप में याद किया जाता है। चंदेलकालीन स्‍थापत्‍य कला ने समूचे विश्‍व को प्रभावित किया उस दौरान वास्तुकला तथा मूर्तिकला अपने उत्‍कर्ष पर थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं खजुराहो के मंदिर। .

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चेदि

'चेदि' का निम्नलिखित अर्थों में प्रयोग होता है-.

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मध्य प्रदेश का इतिहास

मध्य प्रदेश का इतिहास पेलियोलिथिक समय से ही शुरुआत मे आ गया था। इसे मुख्यत: तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता है। .

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मध्यकालीन भारत

मध्ययुगीन भारत, "प्राचीन भारत" और "आधुनिक भारत" के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की लंबी अवधि को दर्शाता है। अवधि की परिभाषाओं में व्यापक रूप से भिन्नता है, और आंशिक रूप से इस कारण से, कई इतिहासकार अब इस शब्द को प्रयोग करने से बचते है। अधिकतर प्रयोग होने वाले पहली परिभाषा में यूरोपीय मध्य युग कि तरह इस काल को छठी शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक माना जाता है। इसे दो अवधियों में विभाजित किया जा सकता है: 'प्रारंभिक मध्ययुगीन काल' 6वीं से लेकर 13वीं शताब्दी तक और 'गत मध्यकालीन काल' जो 13वीं से 16वीं शताब्दी तक चली, और 1526 में मुगल साम्राज्य की शुरुआत के साथ समाप्त हो गई। 16वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक चले मुगल काल को अक्सर "प्रारंभिक आधुनिक काल" के रूप में जाना जाता है, लेकिन कभी-कभी इसे "गत मध्ययुगीन" काल में भी शामिल कर लिया जाता है। एक वैकल्पिक परिभाषा में, जिसे हाल के लेखकों के प्रयोग में देखा जा सकता है, मध्यकालीन काल की शुरुआत को आगे बढ़ा कर 10वीं या 12वीं सदी बताया जाता है। और इस काल के अंत को 18वीं शताब्दी तक धकेल दिया गया है, अत: इस अवधि को प्रभावी रूप से मुस्लिम वर्चस्व (उत्तर भारत) से ब्रिटिश भारत की शुरुआत के बीच का माना जा सकता है। अत: 8वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के अवधि को "प्रारंभिक मध्ययुगीन काल" कहा जायेगा। .

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महामेघवाहन वंश

भुवनेश्वर के समीप उदयगिरि पहाड़ी पर हाथीगुंफा के अभिलेख से कलिंग में एक चेति (चेदि) राजवंश का इतिहास ज्ञात होता है। यह वंश अपने को प्राचीन चेदि नरेश वसु की संतति (वसु-उपरिचर) कहता है। कलिंग में इस वंश की स्थापना संभवत: महामेघवाहन ने की थी जिसके नाम पर इस वंश के नरेश महामेघवाहन भी कहलाते थे। खारवेल, जिसके समय में हाथीगुंफा का अभिलेख उत्कीर्ण हुआ इस वंश की तीसरी पीढ़ी में था। महामेघवाहन और खारवेल के बीच का इतिहास अज्ञात है। महाराज वक्रदेव, जिसके समय में उदयगिरि पहाड़ी की मंचपुरी गुफा का निचला भाग बना, इस राजवंश की संभवत: दूसरी पीढ़ी में था और खारवेल का पिता था। .

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राजनांदगाँव

राजनंदगांव भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के राजनंदगाँव जिले का मुख्य शहर है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसँख्या 1,63,122 है। यह दक्षिण-पूर्वी रेलवे के मुंबई-हावड़ा मार्ग पर स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग 6 राजनंदगाँव से होकर गुजरती है। यहाँ से निकटतम हवाई अड्डा लगभग 70 किमी दूर माना (रायपुर) में स्थित है। 9 तहसील 9 विकासखंड जिले मे है राज्य का सबसे बड़ा जिला है .

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जगदेकमल्ल तृतीय

जगदेकमल्ल तृतीय, पश्चिमी भारत के प्रतीच्य चालुक्य राजवंश का राजा था। ११४६ से ११८१ ई. तक के काल में कल्याणी पर कलचुरि लोगों का अधिकार रहा। किंतु ११६३ में तैल द्वितीय की मृत्यु के बाद भी चालुक्यों ने अपना दावा नहीं छोड़ा। जगदेकमल्ल तृतीय इसी समय हुआ। उसके अभिलेखों की तिथि ११६४ से ११८३ तक है। कदाचित् वह तैल तृतीय का पुत्र था। संभवत: परिस्थिति के अनुकूल वह कभी कलचुरि नरेश का आधिपत्य स्वीकार करता था और कभी स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य करता था। उसके अभिलेख चितलदुर्ग, बेल्लारी और दूसरे जिलों से प्राप्त हुए हैं। एक अभिलेख में तो उसे कल्याण से राज्य करता हुआ कहा गया है। विजय पांड्य उसका सामन्त था। श्रेणी:भारत के राजा श्रेणी:भारत का इतिहास.

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गांगेयदेव

गांगेयदेव (सन् १०१५-१०४१ ई.) कल्चुरि राजवंश का प्रमुख शासक था। वह सन् १०१५ के लगभग कलचुरि चेदि राज्य के सिंहासन पर बैठा। उसके पिता कोकल्लदेव द्वितीय और दादा युवराजदेव द्वितीय के समय राज्य की स्थिति कुछ कमजोर हो चली थी। गांगेयदेव ने इस स्थिति को केवल सँभाला ही नहीं, उसने चेदिराज का फिर भारत का अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली राज्य बना दिया। .

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गुर्जर प्रतिहार राजवंश

प्रतिहार वंश मध्यकाल के दौरान मध्य-उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में राज्य करने वाला राजवंश था, जिसकी स्थापना नागभट्ट नामक एक सामन्त ने ७२५ ई॰ में की थी। इस राजवंश के लोग स्वयं को राम के अनुज लक्ष्मण के वंशज मानते थे, जिसने अपने भाई राम को एक विशेष अवसर पर प्रतिहार की भाँति सेवा की। इस राजवंश की उत्पत्ति, प्राचीन कालीन ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ज्ञात होती है। अपने स्वर्णकाल में साम्राज्य पश्चिम में सतुलज नदी से उत्तर में हिमालय की तराई और पुर्व में बगांल असम से दक्षिण में सौराष्ट्र और नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। सम्राट मिहिर भोज, इस राजवंश का सबसे प्रतापी और महान राजा थे। अरब लेखकों ने मिहिरभोज के काल को सम्पन्न काल बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि गुर्जर प्रतिहार राजवंश ने भारत को अरब हमलों से लगभग ३०० वर्षों तक बचाये रखा था, इसलिए गुर्जर प्रतिहार (रक्षक) नाम पड़ा। गुर्जर प्रतिहारों ने उत्तर भारत में जो साम्राज्य बनाया, वह विस्तार में हर्षवर्धन के साम्राज्य से भी बड़ा और अधिक संगठित था। देश के राजनैतिक एकीकरण करके, शांति, समृद्धि और संस्कृति, साहित्य और कला आदि में वृद्धि तथा प्रगति का वातावरण तैयार करने का श्रेय प्रतिहारों को ही जाता हैं। गुर्जर प्रतिहारकालीन मंदिरो की विशेषता और मूर्तियों की कारीगरी से उस समय की प्रतिहार शैली की संपन्नता का बोध होता है। .

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गुलबर्ग किला

गुलबर्ग किला उत्तर कर्नाटक के गुलबर्ग जिले में गुलबर्ग शहर में स्थित है। मूल रूप से इसका निर्माण वारंगल राजवंश के राज में राजा गुलचंद ने करवाया था। इसके बाद सन् 1347 में बहमनी राजवंश के अलाउद्दीन बहमन शाह ने दिल्ली सल्तनत के साथ संबंधों को तोड़ने के बाद इसे काफ़ी बड़ा करवाया था। बाद में किले के भीतर मस्जिदों, महलों, कब्रों जैसे इस्लामी स्मारकों और अन्य संरचनाओं का निर्माण हुआ। 1367 में किले के भीतर बनाया गया सभी ओर से बंद जामा मस्जिद मनोहर गुंबदों और मेहराबदार स्तंभों सहित फ़ारसी वास्तु शैली में निर्मित एक अद्वितीय संरचना है। यह 1327 से 1424 के बीच गुलबर्ग किले पर बहमनी शासन की स्थापना के उपलक्ष्य में बनाया गया था। यह 1424 तक बहमनी राज्य की राजधानी रहा, जिसके बाद बेहतर जलवायु परिस्थितियों के कारण राजधानी बीदर किले में ले जाई गयी। .

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कर्णचेदि

कर्ण (चेदि) (१०४१-११७३ ई.), कलचुरि वंश का सबसे प्रतापी शासक था। वह चेदि नामक प्राचीन भारतीय महाजनपद राज्य का राजा था। लगभग सन्‌ 1041 में अपने पिता चेदीश्वर गांगेयदेव की मृत्यु होने पर राजगद्दी पर बैठा। उसने अनेक राजाओं को हराया। किंतु कर्ण केवल योद्धा ही नहीं, भारतीय संस्कृति का भी पोषक था। काशी में उसने कर्णमेरु नाम का द्वादशभूमिक मंदिर बनाया। प्रयाग में कर्णतीर्थ का निर्माण कर उसने अपनी कीर्ति को चिरस्थायी किया। उसने विद्वान्‌ ब्राह्मणों के लिए कर्णावती नामक ग्राम की स्थापना की और काशी को अपनी राजधानी बनाया। ब्राह्मणों को उसने अनेक दान दिए और अपने कर्ण का नाम सार्थक किया। उसके दरबार के अनेक कवियों में विशेष रूप से वल्लण, नाचिराज, कर्पूर, विद्यापति और कनकामर के नाम उल्लेख्य हैं। कश्मीरी कवि विल्हण को भी उसने सत्कृत किया था। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

चेदी राजवंश, कल्चुरि राजवंश

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