6 संबंधों: बाबा गुरमुख सिंह, भाई परमानन्द, जाट सिक्ख, विष्णु गणेश पिंगले, ग़दर पार्टी, ग़दर राज्य-क्रांति।
बाबा गुरमुख सिंह
बाबा गुरमुख सिंह (1888 – 13 मार्च, 1977) एक ग़दर क्रांतिकारी और एक सिख नेता थे.
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भाई परमानन्द
भाई परमानन्द का एक दुर्लभ चित्र भाई परमानन्द (जन्म: ४ नवम्बर १८७६ - मृत्यु: ८ दिसम्बर १९४७) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। भाई जी बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे जहाँ आर्यसमाज और वैदिक धर्म के अनन्य प्रचारक थे, वहीं इतिहासकार, साहित्यमनीषी और शिक्षाविद् के रूप में भी उन्होंने ख्याति अर्जित की थी। सरदार भगत सिंह, सुखदेव, पं॰ राम प्रसाद 'बिस्मिल', करतार सिंह सराबा जैसे असंख्य राष्ट्रभक्त युवक उनसे प्रेरणा प्राप्त कर बलि-पथ के राही बने थे। देशभक्ति, राजनीतिक दृढ़ता तथा स्वतन्त्र विचारक के रूप में भाई जी का नाम सदैव स्मरणीय रहेगा। आपने कठिन तथा संकटपूर्ण स्थितियों का डटकर सामना किया और कभी विचलित नहीं हुए। आपने हिंदी में भारत का इतिहास लिखा है। इतिहास-लेखन में आप राजाओं, युद्धों तथा महापुरुषों के जीवनवृत्तों को ही प्रधानता देने के पक्ष में न थे। आपका स्पष्ट मत था कि इतिहास में जाति की भावनाओं, इच्छाओं, आकांक्षाओं, संस्कृति एवं सभ्यता को भी महत्व दिया जाना चाहिए। आपने अपने जीवन के संस्मरण भी लिखे हैं जो युवकों के लिये आज भी प्रेरणा देने में सक्षम हैं। .
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जाट सिक्ख
जाट सिख या पंजाबी भाषा में जट्ट सिक्ख (गुरमुखी: ਜੱਟ ਸਿੱਖ) सिख धर्म में यक़ीन रखने वाले जाट जाति के समुदाय को पुकारा जाता हैं। यह लोग भारत के राज्य पंजाब, उत्तरी राजस्थान, हरयाणा, दिल्ली के अलावा भारत भर में हर जगह निवास करते हैं थोड़ी थोड़ी सख्या में। जट्ट सिक्ख पूर्वी पाकिस्तान में भी बहुतायत संख्या में है। पंजाबी दलितों के बाद जाट सिख भारतीय पंजाब की सबसे बड़ी आबादी है। जाट सिख से सात जट्ट सिक्ख फ़िलहाल के समय कनाडा की संसद में सदस्य हैं। जाटों में सिक्ख जाटों ने जिस तरह से तरक़्क़ी की वो काबीले तारीफ़ हैं। जट्ट सिक्ख पांखड अंधविश्वास से कोसे दूर सच्चाई के मार्ग पर चलने वाली महान जाट क़ौम है। भगत सिंह,हरि सिंह नलवा, महाराजा रणजीत सिंह, बंदा सिंह बहादुर बैरागी(उप्पल गोत्री), करतार सिंह सराभा,(ग्रैवाल) उधम सिंह, इत्यादी बहुत से ऐसे महापुरूष रहे हैं जो जट्ट सिक्ख समुदाय से हैं। .
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विष्णु गणेश पिंगले
महान क्रांतिकारी विष्णु गणेश पिंगले विष्णु गणेश पिंगले (2 जनवरी 1888-17 नवम्बर 1915) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रान्तिकारी थे। वे गदर पार्टी के सदस्य थे। लाहौर षडयंत्र केस और हिन्दू-जर्मन षडयंत्र में उनको सन् १९१५ फांसी की सजा दी गयी। विष्णु का जन्म 2 जनवरी 1888 को पूना के गांव तलेगांव में हुआ। सन 1911 में वह इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने अमेरिका पहुंचे जहां उन्होंने सिटेल विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लिया। वहां लाला हरदयाल जैसे नेताओं का उन्हें मार्गदर्शन मिला। महान क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा से उनकी मित्रता थी। देश में गदर पैदा करके देश को स्वतंत्र करवाने का सुनहरी मौका देखकर विष्णु गणेश बाकी साथियों के साथ भारत लौटे और ब्रिटिश इंडिया की फौजों में क्रांति लाने की तैयारी में जुट गये। उन्होंने कलकत्ता में श्री रास बिहारी बोस से मुलाकात की। वह शचीन्द्रनाथ सांयाल को लेकर पंजाब चले आए। उस समय पंजाब, बंगाल और उतर प्रदेश में सैनिक क्रांति का पूरा प्रबंध हो गया था किन्तु एक गद्दार की गद्दारी के कारण सारी योजना विफल हो गई। विष्णु पिंगले को नादिर खान नामक एक व्यक्ति ने गिरफ्तार करवा दिया। गिरफ्तारी के समय उनके पास दस बम थे। उन पर मुकदमा चलाया गया और 17 नवम्बर 1915 को सेंट्रल जेल लाहौर में उन्हें फांसी दे दी गयी। .
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ग़दर पार्टी
गदर पार्टी का झंडा ग़दर पार्टी पराधीन भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से बना एक संगठन था। इसे अमेरिका और कनाडा के भारतीयों ने 25 जून1913 में बनाया था। इसे प्रशान्त तट का हिन्दी संघ (Hindi Association of the Pacific Coast) भी कहा जाता था। यह पार्टी "हिन्दुस्तान ग़दर" नाम का पत्र भी निकालती थी जो उर्दू और पंजाबी में छपता था। इस संगठन ने भारत को अनेक महान क्रांतिकारी दिए। ग़दर पार्टी के महान नेताओं सोहन सिंह भाकना, करतार सिंह सराभा, लाला हरदयाल आदि ने जो कार्य किये, उसने भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को उत्प्रेरित किया। पहले महायुद्ध के छिड़ते ही जब भारत के अन्य दल अंग्रेज़ों को सहयोग दे रहे थे गदरियों ने अंग्रेजी राज के विरूध्द जंग घोषित कर दी। उनका मानना था- .
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ग़दर राज्य-क्रांति
गदर राज्य-क्रान्ति फरवरी १९१५ में ब्रितानी भारतीय सेना में हुई एक अखिल भारतीय क्रान्ति थी जिसकी योजना गदर पार्टी ने बनायी थी। यह क्रान्ति भारत से ब्रिटिश राज को समाप्त करने के उद्देश्य से १९१४ से १९१७ के बीच हुए अखिल भारतीय विद्रोहों (जिन्हें हिन्दू-जर्मन षडयन्त्र कहते हैं।) में से सबसे बड़ी थी। इसे प्रथम लाहौर षडयन्त्र भी कहते हैं। .
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