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कर्ण

सूची कर्ण

जावानी रंगमंच में कर्ण। कर्ण महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक है। कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थी। कर्ण का जन्म कुन्ती का पाण्डु के साथ विवाह होने से पूर्व हुआ था। कर्ण दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र था और महाभारत के युद्ध में वह अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ा। वह सूर्य पुत्र था। कर्ण को एक आदर्श दानवीर माना जाता है क्योंकि कर्ण ने कभी भी किसी माँगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी भी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उसके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों। कर्ण की छवि आज भी भारतीय जनमानस में एक ऐसे महायोद्धा की है जो जीवनभर प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता रहा। बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि कर्ण को कभी भी वह सब नहीं मिला जिसका वह वास्तविक रूप से अधिकारी था। तर्कसंगत रूप से कहा जाए तो हस्तिनापुर के सिंहासन का वास्तविक अधिकारी कर्ण ही था क्योंकि वह कुरु राजपरिवार से ही था और युधिष्ठिर और दुर्योधन से ज्येष्ठ था, लेकिन उसकी वास्तविक पहचान उसकी मृत्यु तक अज्ञात ही रही। कर्ण की छवि द्रौपदी का अपमान किए जाने और अभिमन्यु वध में उसकी नकारात्मक भूमिका के कारण धूमिल भी हुई थी लेकिन कुल मिलाकर कर्ण को एक दानवीर और महान योद्धा माना जाता है। .

51 संबंधों: चीर हरण, टैंक ईएक्स, द्रौपदी, द्रोणपर्व, नवग्रह, परशुराम, पायथागॉरियन प्रमेय, पाइथागोरस प्रमेय, पितृ पक्ष, पंकज धीर, प्राचीन मिस्र, पृथ्वीराज चौहान, बृहदबला, बैब्बिली ब्रह्मन्ना, भागलपुर, महाभारत, महाभारत (टीवी धारावाहिक), महाभारत (२०१३ धारावाहिक), महाभारत (२०१३ फ़िल्म), महाभारत में विभिन्न अवतार, महाभारत का रचना काल, महाभारत के पात्र, महाभारत की संक्षिप्त कथा, मोहनलाल (अभिनेता), युधिष्ठिर, रश्मिरथी(खंड काव्य), राजनीति (२०१० चलचित्र), शल्य, शल्यपर्व, श्रव्य प्रवर्धक, स्त्रीपर्व, सूर्यपुत्र कर्ण, हम्मीर चौहान, हिन्दू धर्म की शब्दावली, हिन्दी पुस्तकों की सूची/क, विश्वरूप, वृषसेन, वेणीसंहार, कर्ण झील, कर्णपर्व, कर्णवास, कंबोज, कुरुक्षेत्र युद्ध, अधिरथ, अरयण्कपर्व, अलायुध, अश्वसेन, अगवानपुर, अगवानपुर गाँव, बाढ (पटना), अंग महाजनपद, ..., छठ पूजा सूचकांक विस्तार (1 अधिक) »

चीर हरण

के सौजन्य से श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:धर्म श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:धर्म ग्रंथ श्रेणी:पौराणिक कथाएँ.

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टैंक ईएक्स

टैंक ईएक्स या एमबीटी ईएक्स (Tank Ex या MBT Ex) भारत की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन दवारा 2002 में विकसित किये जा रहे मुख्य युद्धक टैंक का कोड नाम है। यह अफवाह थी कि टैंक कर्ण (भारतीय महाकाव्य महाभारत के नायकों में से एक) के नाम से जाना जाएगा। इसके छह महीने के परीक्षण के बाद भारतीय सेना ने इसे ठुकरा दिया। कम से कम दो टैंक ईएक्स प्रोटोटाइप बनाए गए थे। .

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द्रौपदी

द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पाण्डवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री आदि अन्य नामो से भी विख्यात है। द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव भाईयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे। .

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द्रोणपर्व

द्रोण पर्व के अन्तर्गत ८ उपपर्व और २०२ अध्याय हैं। .

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नवग्रह

ग्रह (संस्कृत के ग्रह से - पकड़ना, कब्जे में करना) माता भूमिदेवी (पृथ्वी) के प्राणियों पर एक 'ब्रह्मांडीय प्रभावकारी' है। हिन्दू ज्योतिष में नवग्रह (संस्कृत: नवग्रह, नौ ग्रह या नौ प्रभावकारी) इन प्रमुख प्रभावकारियों में से हैं। राशि चक्र में स्थिर सितारों की पृष्ठभूमि के संबंध में सभी नवग्रह की सापेक्ष गतिविधि होती है। इसमें ग्रह भी शामिल हैं: मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, और शनि, सूर्य, चंद्रमा, और साथ ही साथ आकाश में अवस्थितियां, राहू (उत्तर या आरोही चंद्र आसंधि) और केतु (दक्षिण या अवरोही चंद्र आसंधि).

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परशुराम

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक ब्राह्मण थे। उन्हें विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है। .

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पायथागॉरियन प्रमेय

पायथागॉरियन प्रमेय: दो वर्गों के क्षेत्रों का जोड़ (a और b) पैरों पर कर्ण पर वर्ग के क्षेत्र (c) बराबर होता है। गणित में, पायथागॉरियन प्रमेय (अमेरिकी अंग्रेजी) या पायथागॉरस' प्रमेय (ब्रिटिश अंग्रेजी) युक्लीडीयन ज्यामिति में एक समकोण त्रिकोण(समकोण त्रिकोण - ब्रिटिश अंग्रेजी) के तीन पार्श्वों के बीच एक रिश्ता है। इस प्रमेय को आमतौर पर एक समीकरण के रूप में लिखा जाता है: जहाँ c कर्ण की लंबाई को प्रतिनिधित्व करता है और a और b अन्य दो पार्श्वों की लंबाई को प्रतिनिधित्व करते हैं। शब्दों में:समकोण त्रिकोण के कर्ण का वर्ग अन्य दो पार्श्वों के वर्गों की राशि के बराबर है।पायथागॉरियन प्रमेय यूनानी गणितज्ञ पायथागॉरस के नाम पर रखा गया है, जिन्हें रिवाज से अपनी अपनी खोज और प्रमाण का श्रेय दिया जाता है,हेथ, ग्रंथ I,p.

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पाइथागोरस प्रमेय

'''बौधायन का प्रमेय''': समकोण त्रिभुज की दो भुजाओं की लम्बाइयों के वर्गों का योग कर्ण की लम्बाई के वर्ग के बराबर होता है। पाइथागोरस प्रमेय (या, बौधायन प्रमेय) यूक्लिडीय ज्यामिति में किसी समकोण त्रिभुज के तीनों भुजाओं के बीच एक सम्बन्ध बताने वाला प्रमेय है। इस प्रमेय को आमतौर पर एक समीकरण के रूप में निम्नलिखित तरीके से अभिव्यक्त किया जाता है- जहाँ c समकोण त्रिभुज के कर्ण की लंबाई है तथा a और b अन्य दो भुजाओं की लम्बाई है। पाइथागोरस यूनान के गणितज्ञ थे। परम्परानुसार उन्हें ही इस प्रमेय की खोज का श्रेय दिया जाता है,हेथ, ग्रंथ I,p.

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पितृ पक्ष

श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। पुराणों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर छोड़ने पर धारण करती है प्रेत होती है। प्रिय के अतिरेक की अवस्था "प्रेत" है क्यों की आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है तब भी उसके अन्दर मोह, माया भूख और प्यास का अतिरेक होता है। सपिण्डन के बाद वह प्रेत, पित्तरों में सम्मिलित हो जाता है। पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है। पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर हैं जिसमें कर्ण के पुनर्जन्म की कथा काफी प्रचलित है। एवं हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख है एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया। पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं; निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है। अर्थात् जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है। हमारे हिंदू धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं। परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्मानीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से, उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितरों को दोष लगता है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश-वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख सुविधाएँ होते भी मन असन्तुष्ट रहना आदि पितृ दोष हो सकते हैं। यदि परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई हो तो पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार उसकी आत्म शांति के लिए किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर श्राद्ध करवाएँ। अपने माता-पिता तथा अन्य ज्येष्ठ जनों का अपमान न करें। प्रतिवर्ष पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण अवश्य करें। यदि इन सभी क्रियाओं को करने के पश्चात् पितृ दोष से मुक्ति न होती हो तो ऐसी स्थिति में किसी सुयोग्य कर्मनिष्ठ विद्वान ब्राह्मण से श्रीमद् भागवत् पुराण की कथा करवायें। वैसे श्रीमद् भागवत् पुराण की कथा कोई भी श्रद्धालु पुरुष अपने पितरों की आम शांति के लिए करवा सकता है। इससे विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध प्रमुख बताये गए है। त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते के अनुसार मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए है, जिन्हें नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्ध कहते हैं। यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम से श्राद्ध है। नित्य श्राद्ध- प्रतिदिन किए जानें वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। इस श्राद्ध में विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता। यह श्राद्ध में केवल जल से भी इस श्राद्ध को सम्पन्न किया जा सकता है। नैमित्तिक श्राद्ध- किसी को निमित्त बनाकर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। इसे एकोद्दिष्ट के नाम से भी जाना जाता है। एकोद्दिष्ट का मतलब किसी एक को निमित्त मानकर किए जाने वाला श्राद्ध जैसे किसी की मृत्यु हो जाने पर दशाह, एकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है। इसमें भी विश्वेदेवोंको स्थापित नहीं किया जाता। काम्य श्राद्ध- किसी कामना की पूर्ति के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है। वह काम्य श्राद्ध के अन्तर्गत आता है। वृद्धि श्राद्ध- किसी प्रकार की वृद्धि में जैसे पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाहादि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। इसे नान्दीश्राद्ध या नान्दीमुखश्राद्ध के नाम भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का कर्म कार्य होता है। दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पित्र तर्पण भी किया जाता है। पार्वण श्राद्ध- पार्वण श्राद्ध पर्व से सम्बन्धित होता है। किसी पर्व जैसे पितृपक्ष, अमावास्या या पर्व की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। यह श्राद्ध विश्वेदेवसहित होता है। सपिण्डनश्राद्ध- सपिण्डनशब्द का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना। पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डनहै। प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है। इसे ही सपिण्डनश्राद्ध कहते हैं। गोष्ठी श्राद्ध- गोष्ठी शब्द का अर्थ समूह होता है। जो श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्न किए जाते हैं। उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं। शुद्धयर्थश्राद्ध- शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं। उसे शुद्धयर्थश्राद्ध कहते हैं। जैसे शुद्धि हेतु ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। कर्मागश्राद्ध- कर्मागका सीधा साधा अर्थ कर्म का अंग होता है, अर्थात् किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं। उसे कर्मागश्राद्ध कहते हैं। यात्रार्थश्राद्ध- यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थश्राद्ध कहलाता है। जैसे- तीर्थ में जाने के उद्देश्य से या देशान्तर जाने के उद्देश्य से जिस श्राद्ध को सम्पन्न कराना चाहिए वह यात्रार्थश्राद्ध ही है। इसे घृतश्राद्ध भी कहा जाता है। पुष्ट्यर्थश्राद्ध- पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न हो, जैसे शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थश्राद्ध कहलाता है। धर्मसिन्धु के अनुसार श्राद्ध के ९६ अवसर बतलाए गए हैं। एक वर्ष की अमावास्याएं'(12) पुणादितिथियां (4),'मन्वादि तिथियां (14) संक्रान्तियां (12) वैधृति योग (12), व्यतिपात योग (12) पितृपक्ष (15), अष्टकाश्राद्ध (5) अन्वष्टका (5) तथा पूर्वेद्यु:(5) कुल मिलाकर श्राद्ध के यह ९६ अवसर प्राप्त होते हैं।'पितरों की संतुष्टि हेतु विभिन्न पित्र-कर्म का विधान है। पुराणोक्त पद्धति से निम्नांकित कर्म किए जाते हैं:- एकोदिष्ट श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, नाग बलि कर्म, नारायण बलि कर्म, त्रिपिण्डी श्राद्ध, महालय श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म उपरोक्त कर्मों हेतु विभिन्न संप्रदायों में विभिन्न प्रचलित परिपाटियाँ चली आ रही हैं। अपनी कुल-परंपरा के अनुसार पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। कैसे करें श्राद्ध कर्म महालय श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त घर में क्या कर्म करना चाहिए। मान्य स्थान गया जब बात आती है श्राद्ध कर्म की तो बिहार स्थित गया का नाम बड़ी प्रमुखता व आदर से लिया जाता है। गया समूचे भारत वर्ष में हीं नहीं सम्पूर्ण विश्व में दो स्थान श्राद्ध तर्पण हेतु बहुत प्रसिद्द है। वह दो स्थान है बोध गया और विष्णुपद मन्दिर | विष्णुपद मंदिर वह स्थान जहां माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित है, जिसकी पूजा करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। गया में जो दूसरा सबसे प्रमुख स्थान है जिसके लिए लोग दूर दूर से आते है वह स्थान एक नदी है, उसका नाम "फल्गु नदी" है। ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं इस स्थान पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंड दान किया था। तब से यह माना जाने लगा की इस स्थान पर आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरो के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उरिण हो जायेगा | इस स्थान का नाम ‘गया’ इसलिए रखा गया क्योंकि भगवान विष्णु ने यहीं के धरती पर असुर गयासुर का वध किया था। तब से इस स्थान का नाम भारत के प्रमुख तीर्थस्थानो में आता है और बड़ी ही श्रद्धा और आदर से "गया जी" बोला जाता है। .

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पंकज धीर

पंकज धीर एक भारतीय अभिनेता हैं। जो टीवी धारावाहिक महाभारत में अपने कर्ण के किरदार के लिए जाने जाते है। .

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प्राचीन मिस्र

गीज़ा के पिरामिड, प्राचीन मिस्र की सभ्यता के सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले प्रतीकों में से एक हैं। प्राचीन मिस्र का मानचित्र, प्रमुख शहरों और राजवंशीय अवधि के स्थलों को दर्शाता हुआ। (करीब 3150 ईसा पूर्व से 30 ई.पू.) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है। यह सभ्यता 3150 ई.पू.

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पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान (भारतेश्वरः पृथ्वीराजः, Prithviraj Chavhan) (सन् 1178-1192) चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे, जो उत्तर भारत में १२ वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर (अजयमेरु) और दिल्ली पर राज्य करते थे। वे भारतेश्वर, पृथ्वीराजतृतीय, हिन्दूसम्राट्, सपादलक्षेश्वर, राय पिथौरा इत्यादि नाम से प्रसिद्ध हैं। भारत के अन्तिम हिन्दूराजा के रूप में प्रसिद्ध पृथ्वीराज १२३५ विक्रम संवत्सर में पंद्रह वर्ष (१५) की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ हुए। पृथ्वीराज की तेरह रानीयाँ थी। उन में से संयोगिता प्रसिद्धतम मानी जाती है। पृथ्वीराज ने दिग्विजय अभियान में ११७७ वर्ष में भादानक देशीय को, ११८२ वर्ष में जेजाकभुक्ति शासक को और ११८३ वर्ष में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया। इन्हीं वर्षों में भारत के उत्तरभाग में घोरी (ग़ोरी) नामक गौमांस भक्षण करने वाला योद्धा अपने शासन और धर्म के विस्तार की कामना से अनेक जनपदों को छल से या बल से पराजित कर रहा था। उसकी शासन विस्तार की और धर्म विस्तार की नीत के फलस्वरूप ११७५ वर्ष से पृथ्वीराज का घोरी के साथ सङ्घर्ष आरंभ हुआ। उसके पश्चात् अनेक लघु और मध्यम युद्ध पृथ्वीराज के और घोरी के मध्य हुए।विभिन्न ग्रन्थों में जो युद्ध सङ्ख्याएं मिलती है, वे सङ्ख्या ७, १७, २१ और २८ हैं। सभी युद्धों में पृथ्वीराज ने घोरी को बन्दी बनाया और उसको छोड़ दिया। परन्तु अन्तिम बार नरायन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात् घोरी ने पृथ्वीराज को बन्दी बनाया और कुछ दिनों तक 'इस्लाम्'-धर्म का अङ्गीकार करवाने का प्रयास करता रहा। उस प्रयोस में पृथ्वीराज को शारीरक पीडाएँ दी गई। शरीरिक यातना देने के समय घोरी ने पृथ्वीराज को अन्धा कर दिया। अन्ध पृथ्वीराज ने शब्दवेध बाण से घोरी की हत्या करके अपनी पराजय का प्रतिशोध लेना चाहा। परन्तु देशद्रोह के कारण उनकी वो योजना भी विफल हो गई। एवं जब पृथ्वीराज के निश्चय को परिवर्तित करने में घोरी अक्षम हुआ, तब उसने अन्ध पृथ्वीराज की हत्या कर दी। अर्थात्, धर्म ही ऐसा मित्र है, जो मरणोत्तर भी साथ चलता है। अन्य सभी वस्तुएं शरीर के साथ ही नष्ट हो जाती हैं। इतिहासविद् डॉ.

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बृहदबला

बृहदबला भारतीय महाकाव्य महाभारत में एक चरित्र है। वह भगवान् राम के एक वंशज थे, वह इक्ष्वाकु राजवंश के अंतर्गत विश्रुतवन्ता के पुत्र के रूप में कोशल राज्य के अंतिम शासक थे। कुरुक्षेत्र युद्ध में बृहदबला ने कौरवों की ओर से युध्द लड़ा और चक्रव्यूह में अभिमन्यु द्वारा मारा गया था। .

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बैब्बिली ब्रह्मन्ना

बोब्बिली Brahmanna है एक 1984 तेलुगु, एक्शन फिल्म, द्वारा उत्पादित यू सूर्यनारायण राजू पर गोपी कृष्ण फिल्मों और द्वारा निर्देशित लालकृष्ण राघवेंद्र राव.

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भागलपुर

भागलपुर बिहार प्रान्त का एक शहर है। गंगा के तट पर बसा यह एक अत्यंत प्राचीन शहर है। पुराणों में और महाभारत में इस क्षेत्र को अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है। भागलपुर के निकट स्थित चम्पानगर महान पराक्रमी शूरवीर कर्ण की राजधानी मानी जाती रही है। यह बिहार के मैदानी क्षेत्र का आखिरी सिरा और झारखंड और बिहार के कैमूर की पहाड़ी का मिलन स्थल है। भागलपुर सिल्क के व्यापार के लिये विश्वविख्यात रहा है, तसर सिल्क का उत्पादन अभी भी यहां के कई परिवारों के रोजी रोटी का श्रोत है। वर्तमान समय में भागलपुर हिन्दू मुसलमान दंगों और अपराध की वजह से सुर्खियों में रहा है। यहाँ एक हवाई अड्डा भी है जो अभी चालू नहीं है। यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा गया और पटना है। रेल और सड़क मार्ग से भी यह शहर अच्छी तरह जुड़ा है। प्राचीन काल के तीन प्रमुख विश्‍वविद्यालयों यथा तक्षशिला, नालन्‍दा और विक्रमशिला में से एक विश्‍वविद्यालय भागलपुर में ही था जिसे हम विक्रमशिला के नाम से जानते हैं। पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन में प्रयुक्‍त मथान अर्थात मंदराचल तथा मथानी में लपेटने के लिए जो रस्‍सा प्रयोग किया गया था वह दोनों ही उपकरण यहाँ विद्यमान हैं और आज इनका नाम तीर्थस्‍थ‍लों के रूप में है ये हैं बासुकीनाथ और मंदार पर्वत। पवित्र् गंगा नदी को जाह्नवी के नाम से भी जाना जाता है। जिस स्‍थान पर गंगा को यह नाम दिया गया उसे अजगैवी नाथ कहा जाता है यह तीर्थ भी भागलपुर में ही है। प्रसिद्ध गाँधीवादी विचारक तथा पूर्व सांसद प्रो.

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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महाभारत (टीवी धारावाहिक)

महाभारत एक टीवी धारावाहिक का नाम है जो बी आर चोपड़ा द्वारा निर्मित और उनके पुत्र रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित था। यह महाभारत नामक एक भारतीय पौराणिक काव्य पर आधारित धारावाहिक था और विश्व के सर्वाधिक देखे जाने वाले धारावाहिकों में से एक था। ९४-कड़ियों के इस धारावाहिक का प्रथम प्रसारण १९८८ से १९९० तक दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर किया गया था। प्रत्येक धारावाहिक ४५ मिनट का था। इसका प्रसारण एक अन्य सफ़ल पौराणिक धारावाहिक रामायण के बाद किया गया था जो १९८७-१९८८ में प्रसारित किया गया था। ब्रिटेन में इस धारावाहिक का प्रसारण बीबीसी द्वारा किया गया था जहाँ इसकी दर्शक संख्या ५० लाख के आँकड़े को भी पार कर गई, जो दोपहर के समय प्रसारित किए जाने वाले किसी भी धारावाहिक के लिए एक बहुत बड़ी बात थी। .

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महाभारत (२०१३ धारावाहिक)

यह लेख 2013 में शुरु हुए धारावाहिक के उपर हैं, पुराने वाले के लिए देखे महाभारत (टीवी धारावाहिक)। फ़िल्म के लिए महाभारत (२०१३ फ़िल्म)। | show_name .

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महाभारत (२०१३ फ़िल्म)

महाभारत अमान खान निर्देशित भारतीय पौराणिक कथा नाटक एनिमेटेड फ़िल्म है। फ़िल्म के निर्माता कौशल कांतिलाल गदा एवं धवल जयंतिलाल गदा हैं। फ़िल्म क्रिसमस के अवसर पर २७ दिसम्बर २०१३ को जारी की गई। Several actors like अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित, अजय देवगन, विद्या बालन, सनी देओल, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ, मनोज बाजपेयी, दीप्ती नवल फ़िल्म में विभिन्न पात्रों को आवाज देने के लिए चुने गये हैं। महाभारत को बॉलीवुड की सबसे मंहगी एनिमेटेड फ़िल्म माना जा रहा है। .

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महाभारत में विभिन्न अवतार

यहाँ पर महाभारत में वर्णित अवतारों की सूची दी गयी है और साथ में वे किस देवता के अवतार हैं, यह भी दर्शाया गया है। .

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महाभारत का रचना काल

सुत जी द्वारा महाभारत ऋषि मुनियो को सुनाना। वेदव्यास जी को महाभारत को पूरा रचने में ३ वर्ष लग गये थे, इसका कारण यह हो सकता है कि उस समय लेखन लिपी कला का इतना विकास नही हुआ था, संस्कृत ऋषियो की भाषा थी और ब्राह्मी आम बोल चाल की भाषा हुआ करती थी। यह सर्वमान्य है कि महाभारत का आधुनिक रूप कई अवस्थाओ से गुजर कर बना है, इसकी रचना की चार प्रारम्भिक अवस्थाए पहचानी गयी है- .

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महाभारत के पात्र

* विदुर: हस्तिनापुर का महामंत्री।.

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महाभारत की संक्षिप्त कथा

महाभारत प्राचीन भारत का सबसे बड़ा महाकाव्य है। ये एक धार्मिक ग्रन्थ भी है। इसमें उस समय का इतिहास लगभग १,११,००० श्लोकों में लिखा हुआ है। इस की पूर्ण कथा का संक्षेप इस प्रकार से है। .

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मोहनलाल (अभिनेता)

मोहनलाल विश्वनाथन नायर (जन्म 21 मई 1960), एक नाम मोहनलाल या लाल के नाम से जाने जाने वाले, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध भारतीय फिल्म अभिनेता और निर्माता हैं, जो मलयालम सिनेमा का सब सबसे बड़ा नाम है।മോഹന്‍ലാല്‍ चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रहे मोहनलाल ने दो सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार, एक विशेष जूरी पुरस्कार और एक सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार (निर्माता के रूप में) जीता। 2001 में भारत सरकार ने उन्हें भारतीय सिनेमा के प्रति योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया। सन 2009 में भारतीय प्रादेशिक सेना द्वारा उन्हें मानद लेफ्टिनेंट कर्नल का पद दिया गया,Lt.Col.

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युधिष्ठिर

प्राचीन भारत के महाकाव्य महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर पांच पाण्डवों में सबसे बड़े भाई थे। वह पांडु और कुंती के पहले पुत्र थे। युधिष्ठिर को धर्मराज (यमराज) पुत्र भी कहा जाता है। वो भाला चलाने में निपुण थे और वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। महाभारत के अंतिम दिन उसने अपने मामा शलय का वध किया जो कौरवों की तरफ था। .

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रश्मिरथी(खंड काव्य)

रश्मिरथी, जिसका अर्थ "सूर्य की सारथी" है, हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। यह १९५२ में प्रकाशित हुआ था। इसमें ७ सर्ग हैं। इसमें कर्ण के चरित्र के सभी पक्षों का सजीव चित्रण किया गया है। रश्मिरथी में दिनकर ने कर्ण की महाभारतीय कथानक से ऊपर उठाकर उसे नैतिकता और विश्वसनीयता की नयी भूमि पर खड़ा कर उसे गौरव से विभूषित कर दिया है। रश्मिरथी में दिनकर ने सारे सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को नए सिरे से जाँचा है। चाहे गुरु-शिष्य संबंधें के बहाने हो, चाहे अविवाहित मातृत्व और विवाहित मातृत्व के बहाने हो, चाहे धर्म के बहाने हो, चाहे छल-प्रपंच के बहाने। युद्ध में भी मनुष्य के ऊँचे गुणों की पहचान के प्रति ललक का काव्य है ‘रश्मिरथी’। ‘रश्मिरथी’ यह भी संदेश देता है कि जन्म-अवैधता से कर्म की वैधता नष्ट नहीं होती। अपने कर्मों से मनुष्य मृत्यु-पूर्व जन्म में ही एक और जन्म ले लेता है। अंततः मूल्यांकन योग्य मनुष्य का मूल्यांकन उसके वंश से नहीं, उसके आचरण और कर्म से ही किया जाना न्यायसंगत है। दिनकर में राष्ट्रवाद के साथ-साथ दलित मुक्ति चेतना का भी स्वर है, रश्मिरथी इसका प्रमाण है। दिनकर के अपने शब्दों में, कर्ण-चरित्र का उद्धार, एक तरह से नई मानवता की स्थापना का ही प्रयास है। .

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राजनीति (२०१० चलचित्र)

राजनीति बालीवुड में जून, २०१० में प्रदर्शित भारतीय राजनीति पर बनायी गयी फिल्म है। इसके निर्माता एवं निर्देशक प्रकाश झा है जिन्होनें पूर्व में गंगाजल जैसी फिल्मों का निर्देशन एवं निर्माण किया है। इस फिल्म में कैटरीना कैफ, अजय देवगन, रणबीर कपूर, अर्जुन रामपाल, मनोज बाजपेयी एवं नाना पाटेकर मुख्य भूमिका में है। फिल्म का संगीत प्रसिद्ध संगीतकार प्रीतम चक्रवर्ती ने दिया है। इस फिल्म का प्रदर्शन भारत में में ४ जून, २०१० को आरंभ हुआ था। फिल्म का अधिकतर भाग भोपाल में फिल्माया गया है। कुछ क्षेपक मुंबई में जोड़े गए हैं, जिनमें कुछ गानों के फिल्मांकन के अलावा पार्श्व में उनको दृश्य से संबद्ध किया गया है। भरपूर दृश्यों के साथ इसका संपादन मुंबई के एडिटिंग स्टूडियो में किया गया है। इस चलचित्र के निर्देशक ने अपने व्यवसाय का आरंभ ही इस तरह के काम से किया था और बीच में नियमित सिनेमा की तरह एक दो फिल्में बनाकर शांत हो गए। प्रकाश झा ने जब अजय देवगन और काजोल को लेकर फिल्म:दिल क्या करे बनाई, तभी से उनको अपनी फिल्म के लिए एक स्थायी नायक मिला। गंगाजल और अपहरण के उनके अनुभव अजय देवगन के साथ बड़े अच्छे रहे और शायद यही कारण है कि राजनीति फिल्म का भी वे एक महत्त्वपूर्ण भाग हैं। फिल्म के साथ दिग्गज निर्देशक के रूप में प्रकाश झा का नाम जुड़ा होना ही बड़ी बात नहीं बल्कि फिल्म की पूरी चरित्र-सूची (स्टार कास्ट) पर दृष्टिपात करना फिल्म के बारे में अनुमान लगाने के लिये आवश्यक है। अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण रोल कर रही अभिनेत्री कैटरीना कैफ का कायाल्प भी दर्शनीय है अब से पहले ग्लैमडॉल के रूप में जानी जाती रहीं कैटरीना इस बार हल्के रंगों वाली सूती साड़ी में दिखायी दी। .

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शल्य

शल्य, माद्रा (मद्रदेश) के राजा जो पाण्डु के सगे साले और नकुल व सहदेव के मामा थे। महाभारत में दुर्योधन ने उन्हे छल द्वारा अपनी ओर से युद्ध करने के लिए राजी कर लिया। उन्होने कर्ण का सारथी बनना स्वीकार किया और कर्ण की मृत्यु के पश्चात युद्ध के अंतिम दिन कौरव सेना का नेतृत्व किया और उसी दिन युधिष्ठिर के हाथों मारे गए। इनकी बहन माद्री, कुंती की सौत थीं और पाण्डु के शव के साथ चिता पर जीवित भस्म हो गई थीं। कर्ण का सारथी बनते समय शल्य ने यह शर्त दुर्योधन के सम्मुख रखी थी कि उसे स्वेच्छा से बोलने की छूट रहेगी, चाहे वह कर्ण को भला लगे या बुरा। वे कर्ण के सारथी तो बन गये किन्तु उन्होने युधिष्ठिर को यह भी वचन दे दिया कि वे कर्ण को सदा हतोत्साहित करते रहेंगे। (मनोवैज्ञानिक युद्ध) दूसरी तरफ कर्ण भी बड़ा दम्भी था। जब भी कर्ण आत्मप्रशंसा करना आरम्भ करता, शल्य उसका उपहास करते और उसे हतोत्साहित करने का प्रयत्न करते। शल्य ने एक बार कर्ण को यह कथा सुनाई- .

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शल्यपर्व

शल्य पर्व के अन्तर्गत २ उपपर्व है और इस पर्व में ५९ अध्याय हैं। .

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श्रव्य प्रवर्धक

एकीकृत परिपथ (आईसी) से बना एक श्रव्य शक्ति प्रवर्धक आईसी के रूप में एक श्रव्य-आवृत्ति प्रवर्धक (Lm3886tf) ऐसे एलेक्ट्रानिक प्रवर्धक को श्रव्य प्रवर्धक या आडियो एम्प्लिफायर (audio amplifier) कहते हैं जो कम शक्ति के श्रव्य संकेतों का प्रवर्धन कर सकें। श्रव्य-आवृत्‍ति शक्ति प्रवर्धक (audio power amplifier) वह एलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक है जो कम शक्ति के श्रव्य आवृत्ति वाले विद्युत संकेतों को प्रवर्धित करके उनको इतना शक्तिशाली बना दे कि वे लाउडस्पीकर को चला सकें। उन संकेतों को श्रव्य संकेत (आडियो सिगनल) कहते हैं जिनकी आवृत्ति २० हर्ट्ज से लेकर २० हजार हर्ट्ज के बीच होती है। इस सीमा के भीतर की आवृत्तियों वाले संकेत ही मानव कर्ण को सुनाई पड़ते हैं, इससे कम या अधिक के नहीं। श्रव्य प्रवर्धकों का निवेश संकेत (इनपुट सिगनल) कुछ सौ माइक्रोवाट के स्तर का होता है जबकि आउटपुट दस, सौ या हजार वाट के स्तर का हो सकता है। श्रव्य प्रवर्धक, रेडियो, टीवी, टेलीफोन, सेलफोन आदि के आवश्यक अंग है। .

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स्त्रीपर्व

स्त्री पर्व के अन्तर्गत ३ उपपर्व आते हैं, तथा २७ अध्याय है। .

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सूर्यपुत्र कर्ण

सूर्यपुत्र कर्ण एक आगे आनेवाला भारतीय पौराणिक धारावाहिक हे जो सोनी टीवी पर सोमवार से शनिवार रात 8:30 बजे प्रसारित होता है। यह कार्यक्रम सबसे बड़े दानवीर कर्ण के जीवन पर आधारित है। कर्ण कुंती का पुत्र होता है परंतु उसे पता नहीं होता है कि वह कुंती अर्थात् पांडव का पुत्र है। .

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हम्मीर चौहान

हम्मीर देव चौहान, पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। उन्होने रणथंभोर पर १२८२ से १३०१ तक राज्य किया। वे रणथम्भौर के सबसे महान शासकों में सम्मिलित हैं। हम्मीर देव का कालजयी शासन चौहान काल का अमर वीरगाथा इतिहास माना जाता है। हम्मीर देव चौहान को चौहान काल का 'कर्ण' भी कहा जाता है। पृथ्वीराज चौहान के बाद इनका ही नाम भारतीय इतिहास में अपने हठ के कारण अत्यंत महत्व रखता है। राजस्थान के रणथम्भौर साम्राज्य का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतिभा सम्पन शासक हम्मीर देव को ही माना जाता है। इस शासक को चौहान वंश का उदित नक्षत्र कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। डॉ॰ हरविलास शारदा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह का प्रथम पुत्र था और इनके दो भाई थे जिनके नाम सूरताना देव व बीरमा देव थे। डॉक्टर दशरथ शर्मा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह का तीसरा पुत्र था वहीं गोपीनाथ शर्मा के अनुसार सभी पुत्रों में योग्यतम होने के कारण जैत्रसिंह को हम्मीर देव अत्यंत प्रिय था। हम्मीर देव के पिता का नाम जैत्रसिंह चौहान एवं माता का नाम हीरा देवी था। यह महाराजा जैत्रसिंह चौहान के लाडले एवं वीर बेटे थे। .

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हिन्दू धर्म की शब्दावली

यहाँ हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) से सम्बन्धित धार्मिक एवं दार्शनिक अवधारणाओं को व्यक्त करने वाले शब्दों की संक्षेप में व्याख्या की गयी है। अधिकांश शब्द संस्कृत के हैं, किन्तु कुछ शब्द हिन्दी या अन्य प्रादेशिक भाषाओं के भी हो सकते हैं। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/क

कोई विवरण नहीं।

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विश्वरूप

विश्वरूप अथवा विराट रूप भगवान विष्णु तथा कृष्ण का सार्वभौमिक स्वरूप है। इस रूप का प्रचलित कथा भगवद्गीता के अध्याय ११ पर है, जिसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध में विश्वरूप दर्शन कराते हैं। यह युद्ध कौरवों तथा पाण्डवों के बीच राज्य को लेकर हुआ था। इसके संदर्भ में वेदव्यास कृत महाभारत ग्रंथ प्रचलित है। परंतु विश्वरूप दर्शन राजा बलि आदि ने भी किया है। भगवान श्री कृष्ण नें गीता में कहा है-- पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः। नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।। अर्थात् हे पार्थ! अब तुम मेरे अनेक अलौकिक रूपों को देखो। मैं तुम्हें अनेक प्रकार की आकृतियों वाले रंगो को दिखाता हूँ। कुरुक्षेत्र में कृष्ण और अर्जुन युद्ध के लिये तत्पर। विश्वरूप अर्थात् विश्व (संसार) और रूप। अपने विश्वरूप में भगवान संपूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन एक पल में करा देते हैं। जिसमें ऐसी वस्तुऐं होती हैं जिन्हें मनुष्य नें देखा है परंतु ऐसी वस्तुऐं भी होतीं हैं जिसे मानव ने न ही देखा और न ही देख पाएगा। .

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वृषसेन

वृषसेन कर्ण का पुत्र था और कौरव सेना का एक महायोद्धा और कुशल धनुर्धर था। १७ वें दिन के युद्ध में कर्ण और उसके पुत्र का वध अर्जुन के हाथों हुआ। .

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वेणीसंहार

वेणीसंहारम्, भट्टनारायण द्वारा रचित प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है। भट्टनारायण ने महाभारत को 'वेणीसंहार' का आधार बनाया है। 'वेणी' का अर्थ है, स्त्रियों का केश अर्थात् 'चोटी' और 'संहार' का अर्थ है सजाना, व्यवस्थित करना या, गुंफन करना। वेणीसंहार नाटक को नाटयकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है और भटटनारायण को एक सफल नाटककार के रूप में स्मरण किया जाता है। नाट्यशास्त्र की नियमावली का विधिवत पालन करने के कारण नाटयशास्त्र के आचार्यों ने भटटनारायण को बहुत महत्त्व दिया है। दुःशासन, द्रौपदी के खुले हुए केश पकड़ के बलपूर्वक घसीटता हुआ द्युतसभा में लाता है, तभी द्रौपदी प्रतिज्ञा करती है कि जबतक दुःशासन के रक्त से अपने बालों को भिगोएगी नहीं तब तक अपने बाल ऐसे ही बिखरे हुए रखेगी। भट्टनारायण रचित इस नाटक के अंत में भीम दुःशासन का वध करके उसका रक्त द्रौपदी के खुले केश में लगाते हैं और चोटी का गुंफन करते हैं। इसी प्रसंग के आधार भट्ट नारायण ने इस नाटक का शीर्षक 'वेणीसंहार' रखा है। छः अंक के कथावस्तु वाले इस 'वेणीसंहार' नाटक की मुख्य और सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें महाभारत की सम्पूर्ण युद्धकथा को समाविष्ट किया गया है। 'वेणीसंहार' नाटक की दूसरी विशेषता तृतीय अंक का प्रसंग कर्ण और अश्वत्थामा का कलह है। नाटक का नायक दुर्योधन है, क्योंकि उसको लक्ष्य में रखकर समस्त घटनाएं चित्रित हैं। इसीलिए उसके दु:ख, पराभव और मृत्यु का वर्णन होने से यह एक दुःखान्त नाटक माना जाता है। कुछ विद्वान भीम को नाटक का नायक मानने के पक्ष में हैं, क्योंकि इसमें वीर रस की प्रधानता है तथा नाटक की कथा भीम की प्रतिज्ञाओं पर आधारित है। भीमसेन का चरित्र प्रभावशाली और आकर्षक है। उनके भाषणों से उनकी वीरता और पराक्रम का पता लगता है। उसमें आत्मविश्वास का अतिरेक है। अश्वत्थामा अपने गुणों को प्रकट किये बिना अपूर्ण व्यक्तित्व सा है। नाटककार निस्सन्देह घटना-संयोजन में अत्यन्त दक्ष हैं। उनके वर्णन सार्थक और स्वाभाविक हैं। नाटक का प्रधान रस, वीर है। गौड़ी रीति, ओज गुण और प्रभावी भाषा-उसकी अन्य विशेषताएं हैं। कर्ण का वक्तव्य देखिये- .

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कर्ण झील

कर्ण झील हरियाणा के करनाल शहर के पास स्थित है। यह राज्य की राजधानी चंडीगढ तथा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दोनों से लगभग १२५ किमी की दूरी पर है। इस कारण से यह स्थान इन दो महत्वपूर्ण स्थानों के यात्रियों के लिये विश्राम स्थल का कार्य करता है। .

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कर्णपर्व

कर्ण पर्व के अन्तर्गत कोई भी उपपर्व नहीं है और अध्यायों की संख्या ७९ है। .

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कर्णवास

कर्णवास, उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर के निकट गंगा तट पर स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह प्राचीन भृगु-क्षेत्र माना गया है जहाँ कल्याणी देवी और कर्ण शिला दर्शनीय तीर्थ हैं। अलीगढ़-बरेली रेलमार्ग से नरौरा रेलवे स्टेशन पर उतर कर यहाँ पहुंचा जा सकता है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कर्णवास में तपस्या की थी। महाभारत काल के कर्ण का इस स्थान से सम्बन्ध बताया जाता है, जिसका नामकरण महाभारत के नायक कर्ण के नाम पर किया गया है। राजा कर्ण परोपकार के लिए काफी प्रसिद्ध थे, इसलिए उन्हें ‘दानवीर कर्ण’ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कर्ण ने उस समय हर दिन 50 किग्रा सोना दान किया करते थे। पर्यटक यहां महाभारत काल के देवी कल्याणी मंदिर भी घूम सकते हैं। कर्णवास बुलंदशहर से ज्यादा दूर नहीं हैं और ऑटो रिक्शा व टैक्सी के जरिए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर.

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कंबोज

200px कंबोज प्राचीन भारत के १६ महाजनपदों में से एक था। इसका उल्लेख पाणिनी के अष्टाध्यायी में १५ शक्तिशाली जनपदों में से एक के रूप में भी मिलता है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु मे १६ महाजनपदों में भी कम्बोज का कई बार उल्लेख हुआ है - ये गांधारों के समीपवर्ती थे। इनमें कभी निकट संबंध भी रहा होगा, क्योंकि अनेक स्थानों पर गांधार और कांबोज का नाम साथ साथ आता है। इसका क्षेत्र आधुनुक उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मिलता है। राजपुर, द्वारका तथा Kapishi इनके प्रमुख नगर थे। इसका उल्लेख इरानी प्राचीन लेखों में भी मिलता है जिसमें इसे राजा कम्बीजेस के प्रदेश से जोड़ा जाता है।.

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कुरुक्षेत्र युद्ध

कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,सौप्तिकपर्व इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गये जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था। इस युद्ध में सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के क्षत्रिय वीरों ने भी भाग लिया और सब के सब वीर गति को प्राप्त हो गये। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,भीष्मपर्व इस युद्ध के परिणामस्वरुप भारत में ज्ञान और विज्ञान दोनों के साथ-साथ वीर क्षत्रियों का अभाव हो गया। एक तरह से वैदिक संस्कृति और सभ्यता जो विकास के चरम पर थी उसका एकाएक विनाश हो गया। प्राचीन भारत की स्वर्णिम वैदिक सभ्यता इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो गयी। इस महान युद्ध का उस समय के महान ऋषि और दार्शनिक भगवान वेदव्यास ने अपने महाकाव्य महाभारत में वर्णन किया, जिसे सहस्राब्दियों तक सम्पूर्ण भारतवर्ष में गाकर एवं सुनकर याद रखा गया। महाभारत में मुख्यतः चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का वृत्तांत है। १०० कौरवों और पाँच पाण्डवों के बीच कुरु साम्राज्य की भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंतत: महाभारत युद्ध का सृजन हुआ। उक्त युद्ध को हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुआ माना जाता है। इस युद्ध में पाण्डव विजयी हुए थे। महाभारत में इस युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है, क्योंकि यह सत्य और न्याय के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध था। महाभारत काल से जुड़े कई अवशेष दिल्ली में पुराना किला में मिले हैं। पुराना किला को पाण्डवों का किला भी कहा जाता है। कुरुक्षेत्र में भी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महाभारत काल के बाण और भाले प्राप्त हुए हैं। गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे ७०००-३५०० वर्ष पुराने शहर खोजे गये हैं, जिनको महाभारत में वर्णित द्वारका के सन्दर्भों से जोड़ा गया, इसके अलावा बरनावा में भी लाक्षागृह के अवशेष मिले हैं, ये सभी प्रमाण महाभारत की वास्तविकता को सिद्ध करते हैं। .

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अधिरथ

ये महाभारत में वर्णित पाँडव-माता कुंती के विवाह पूर्व भगवान सूर्य से उत्पन्न पुत्र कर्ण को पालने वाले पिता थे। अधिरथ अंग वंश में उत्पन्न सत्कर्मा के पुत्र थे। इनकी पत्नी का नाम राधा था। संजय से पहले ये धृतराष्ट्र के सखा और सारथी थे। कर्ण के जन्म ग्रहण करते ही कुन्ती ने उन्हें एक मंजूषा में रखकर गंगा में प्रवाहित कर दिया। यह पेटी अधिरथ और राधा को गंगा में जल-क्रीडा करते समय मिली। दम्पति निस्सन्तान थे, अत: कर्ण का पुत्र की भाँति भरण-पोषण किया। कर्ण को पाल-पोसकर इन्होंने ही बड़ा किया था। .

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अरयण्कपर्व

महाभारत के वन पर्व के अन्तर्गत २२ उपपर्व और ३१५ अध्याय हैं। .

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अलायुध

अलायुध महाभारत काल का एक राक्षस था जो उसी काल के एक अन्य राक्षस अलम्बुष के साथ चौदहवें दिन के युद्ध में घटोत्कच के हाथों मारा गया। अलायुध कौरव पक्ष का एक योद्धा था। अलायुध राक्षस जाति का था और वह भीम का रिश्तेदार भी था पर वह भीम के हिडिम्बा से विवाह से नाखुश था। वह भीम के हाथों हिडिम्बा के भाई हिडिम्ब की मौत से आहत था। वह वकाशुर के मारे जाने का बदला लेना चाहता था। वह नस्ली भावना से पीड़ित था और भीम को अपनी जाति के अपमान से जोड़ कर देखता था। अपने किशोरावस्था से ही वह भीम से घृणा पाले बैठा था और किसी ना किसी दिन भीम से बदला लेने का स्वप्न देखता। वह भीम के पुत्र घटोत्कच को भी आधा विजातीय मान उससे बराबर घृणा करता पर साथ-साथ रहने के कारण वह उसे सीधे कुछ कह ना पाता। अनेक बार उसने घटोत्कच को अपने वंश का कलंक और अविश्वासी सिद्ध करने का प्रयास भी किया पर घटोत्कच के अच्छे व्यवहार, पराक्रम और हिडिम्बा के प्रभाव के कारण अलायुध की एक ना चली। उस कबीले में सामान्य तौर पर सभी लोग पांडवों और विशेष कर भीम के लिये श्रद्धा रखते पर अलायुध और उसके कुछ साथी भीम को अपने वंश के अपमान का प्रतीक मानते। युद्ध के पहले भीम ने घटोत्कच को आपने पक्ष से युद्ध हेतु निमंत्रण भेजा। घटोत्कच वहाँ अपने अन्य मित्रों और स्वजनो के साथ युद्ध करने पहुँचा। उसने अलायुध को भी साथ आने का आग्रह किया पर अलायुध के मन में तो कुछ और ही था। युद्ध के चौदहवें दिन युद्द रात्रि में भी जारी रहा तो घटोत्कच की शक्तियाँ अन्धकार के कारण एकदम बढ़ी और वह भीषण रूप से कौरवों का अन्त करने लगा। वह मायावी भी था और उसे रोक पाना कर्ण के लिये भी कठिन था। तभी युद्ध भूमि में अलायुध ने प्रवेश किया। उसने दुर्योधन को संपर्क कर कौरव पक्ष से युद्ध करने की अनुमति माँगी। उसका एकमात्र उद्देश्य था भीम का अन्त करना। दुर्योधन तो खुश हो गया पर कर्ण ने विरोध करते हुए ऐसे असुरों को अविश्वासी बताया और अपने दम पर भीम और अर्जुन के अन्त की बात की। घटोत्कच के पराक्रम और प्रलय से त्रस्त दुर्योधन ने कर्णकी एक ना सुनी और उसे घटोत्कच तक ही सीमित रहने को कह अलायुध का स्वागत किया। अलायुध ने संपूर्ण बल, छल और आवेश से भीेम पर आक्रमण किया। वह बदले की भावना से जलता हुआ और भयंकर हो उठा। लम्बे युद्ध के बाद भीम धीरे-धीरे शिथिल पड़ने लगा। एक ओर अलायुध का छल-भरा युद्ध और दूसरी ओर उसकी माया, भीम बचाव की मुद्रा में आने लगा। भगवान कृष्ण के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें उभरने लगीं। तभी हुँकार करता घटोत्कच बीच में आ खडा हुआ। घटोत्कच ने अलायुध को समझाते हुए वापस जाने को कहा। उसने परिवार के लोगों का वास्ता दे कर कहा कि आपस में युद्ध करना मूर्खता है। उसने बचपन के साथ के दिनों का हवाला दे कर आपसी युद्ध टालना चाहा। पर अलायुध नकारात्मक विष से भरा था। उसने जहर उगलते हुए अपने पूर्वजों की भीम के हाथों पराजय की बात की और भीम के साथ- साथ घटोत्कच का भी वध करके अपने वंश के अपमान का बदला लेने की घोषणा की। विवश हो कर घटोत्कच अलायुध से लड़ पड़ा। उसने अलायुध को अनेक मौके दिये और बार-बार उसे समझाता रहा पर अलायुध भीषण और भीषण होता गया। उसने घटोत्कच की सदाशयता को उसकी कमजोरी से ज्यादा कुछ नहीं समझा। आखिर भगवान कृष्ण ने घटोत्कच को समझाया - हे पुत्र घटोत्कच ! अभी तुम पर वार कर रहा अलायुध तुम्हारा स्वजन नहीं है ना ही दया का पात्र है। युद्ध में शत्रु को अनेक बार अवसर देने वाले अपने विनाश का कारण स्वयँ बनते हैं अतः प्रथम अवसर पर ही शत्रु का अन्त करना ही समझदारी है। घटोत्कच ने अगले ही पल अलायुध को गिरा कर उसका वध कर दिया। श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अश्वसेन

अश्वसेन, तक्षक नाग का पुत्र। अर्जुन द्वारा खांडववन जलाए जाने के समय (महाभारत, आदि पर्व, 218.9; 220.40; 60.35) तक्षक की पत्नी तथा पुत्र अश्वसेन वहीं थे। जान बचाने के लिए तक्षक की पत्नी ने पुत्र को मुंह में दबाकर आकाशमार्ग से भाग निकलने का प्रयत्न किया। किंतु अर्जुन ने तक्षकभार्या का सिर काट डाला। तक्षक से मित्रता होने के कारण इंद्र ने अर्जुन के विरुद्ध वर्तन करके अश्वसेन की रक्षा की। पश्चात्‌ महाभारत (कर्ण पर्व 66) में कर्णर्जुन युद्ध के समय अश्वसेन ने कर्ण के बाण पर आरोहण किया। लेकिन कृष्ण तत्काल स्थिति समझ गए और उन्होंने रथ के अश्वों को घुटनों के बल बैठा दिया। बाण चूका और अर्जुन की ग्रीवा की बजाए उसके मुकुट को टुकड़े-टुकड़े करता हुआ निकल गया। अर्जुन ने अश्वसेन को मार डाला। श्रेणी:पौराणिक पात्र.

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अगवानपुर

अगवानपुर बाढ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। .

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अगवानपुर गाँव, बाढ (पटना)

अगवानपुर बाढ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। .

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अंग महाजनपद

अंग प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। बौद्ध ग्रंथो में अंग और वंग को प्रथम आर्यों की संज्ञा दी गई है। महाभारत के साक्ष्यों के अनुसार आधुनिक भागलपुर, मुंगेर और उससे सटे बिहार और बंगाल के क्षेत्र अंग प्रदेश के क्षेत्र थे। इस प्रदेश की राजधानी चम्पापुरी थी। यह जनपद मगध के अंतर्गत था। प्रारंभ में इस जनपद के राजाओं ने ब्रह्मदत्त के सहयोग से मगध के कुछ राजाओं को पराजित भी किया था किंतु कालांतर में इनकी शक्ति क्षीण हो गई और इन्हें मगध से पराजित होना पड़ा। महाभारत काल में यह कर्ण का राज्य था। इसका प्राचीन नाम मालिनी था। इसके प्रमुख नगर चम्पा (बंदरगाह), अश्वपुर थे। .

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छठ पूजा

छठ पर्व या छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है। छठ पूजा सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है। यह त्यौहार नेपाली और भारतीय लोगों द्वारा अपने डायस्पोरा के साथ मनाया जाता है। .

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कर्ण (महाभारतपात्र)

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