करमा
करमा झारखण्ड के आदिवासियों का एक प्रमुख त्यौहार है। मुख्य रूप से यह त्यौहार भादो (लगभग सितम्बर) मास की एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आसपास मनाया जाता है। इस मौके पर आदिवासी प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं, साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। करमा पर झारखंड के आदिवासी ढोल और मांदर की थाप पर झूमते-गाते हैं। यह दिन इनके लिए प्रकृति की पूजा का है। ऐसे में ये सभी उल्लास से भरे होते हैं। परम्परा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जौ डाल दिए जाते हैं, इसे 'जावा' कहा जाता है। यही जावा आदिवासी बहनें अपने बालों में गूंथकर झूमती-नाचती हैं। आदिवासी बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई 'करम' वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं। .
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करमा नाच
करम पूजा करम नृत्य, उरांव समाज का करम पूजा के अवसर का नृत्य है। यह भादो, आश्विन, कार्तिक तक चलता है। यह इसके कई भेद हो जाते हैं। करम तैयारी के नृत्य जावा जगाने के करम स्वागत के काटने, लाने, गाड़ने तथा विजर्सन के अलग-अलग नृत्य गीत है। कोठा करम नृत्य में भी अधरतिया, भिनसरिया नृत्य होते हैं तो चाली करम के भी। .
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