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कण्व

सूची कण्व

कण्व वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का लालन पालन हुआ था। सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर शृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है। श्रेणी:ऋषि मुनि श्रेणी:महाभारत के पात्र श्रेणी:महाभारत के पात्र.

12 संबंधों: दरभंगा, नवादा, प्राचीन भारतीय शिक्षा, बिजनौर, मधुबनी, मेनका, शकुन्तला (मेनका पुत्री), समस्तीपुर, सिद्धिविनायक महागणपति मन्दिर, गोपालगंज, असिता/असित, ऋषि

दरभंगा

भारत प्रान्त के उत्तरी बिहार में बागमती नदी के किनारे बसा दरभंगा एक जिला एवं प्रमंडलीय मुख्यालय है। दरभंगा प्रमंडल के अंतर्गत तीन जिले दरभंगा, मधुबनी, एवं समस्तीपुर आते हैं। दरभंगा के उत्तर में मधुबनी, दक्षिण में समस्तीपुर, पूर्व में सहरसा एवं पश्चिम में मुजफ्फरपुर तथा सीतामढ़ी जिला है। दरभंगा शहर के बहुविध एवं आधुनिक स्वरुप का विकास सोलहवीं सदी में मुग़ल व्यापारियों तथा ओईनवार शासकों द्वारा विकसित किया गया। दरभंगा 16वीं सदी में स्थापित दरभंगा राज की राजधानी था। अपनी प्राचीन संस्कृति और बौद्धिक परंपरा के लिये यह शहर विख्यात रहा है। इसके अलावा यह जिला आम और मखाना के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। .

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नवादा

नवादा दक्षिण बिहार का एक खूबसूरत एवं ऐतिहासिक जिला है। इसका मुख्यालय पटना के दक्षिण-पूर्व में 93 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवादा शहर में है। प्रकृति की गोद में बसा नवादा जिला को कई प्रमुख पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है। ककोलत जलप्रपात, प्रजातंत्र द्वार, नारद संग्रहालय, सेखोदेवरा और गुनियाजी तीर्थ आदि यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। नवादा के उत्तर में नालंदा, दक्षिण में झारखंड का कोडरमा जिला, पूर्व में शेखपुरा एवं जमुई तथा पश्चिम में गया जिला है। मगही यहाँ की बोली और हिन्दी तथा उर्दू मुख्य भाषाएँ हैं। .

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प्राचीन भारतीय शिक्षा

भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति में हमें अनौपचारिक तथा औपचारिक दोनों प्रकार के शैक्षणिक केन्द्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। औपचारिक शिक्षा मन्दिर, आश्रमों और गुरुकुलों के माध्यम से दी जाती थी। ये ही उच्च शिक्षा के केन्द्र भी थे। जबकि परिवार, पुरोहित, पण्डित, सन्यासी और त्यौहार प्रसंग आदि के माध्यम से अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त होती थी। विभिन्न धर्मसूत्रों में इस बात का उल्लेख है कि माता ही बच्चे की श्रेष्ठ गुरु है। कुछ विद्वानों ने पिता को बच्चे के शिक्षक के रुप में स्वीकार किया है। जैसे-जैसे सामाजिक विकास हुआ वैसे-वैसे शैक्षणिक संस्थाएं स्थापित होने लगी। वैदिक काल में परिषद, शाखा और चरण जैसे संघों का स्थापन हो गया था, लेकिन व्यवस्थित शिक्षण संस्थाएं सार्वजनिक स्तर पर बौद्धों द्वारा प्रारम्भ की गई थी। गुरुकुलों की स्थापना प्रायः वनों, उपवनों तथा ग्रामों या नगरों में की जाती थी। वनों में गुरुकुल बहुत कम होते थे। अधिकतर दार्शनिक आचार्य निर्जन वनों में निवास, अध्ययन तथा चिन्तन पसन्द करते थे। वाल्मीकि, सन्दीपनि, कण्व आदि ऋषियों के आश्रम वनों में ही स्थित थे और इनके यहाँ दर्शन शास्त्रों के साथ-साथ व्याकरण, ज्योतिष तथा नागरिक शास्त्र भी पढ़ाये जाते थे। अधिकांश गुरुकुल गांवों या नगरों के समीप किसी वाग अथवा वाटिला में बनाये जाते थे। जिससे उन्हें एकान्त एवं पवित्र वातावरण प्राप्त हो सके। इससे दो लाभ थे; एक तो गृहस्थ आचार्यों को सामग्री एकत्रित करने में सुविधा थी, दूसरे ब्रह्मचारियों को भिक्षाटन में अधिक भटकना नहीं पड़ता था। मनु के अनुसार `ब्रह्मचारों को गुरु के कुल में, अपनी जाति वालों में तथा कुल बान्धवों के यहां से भिक्षा याचना नहीं करनी चाहिए, यदि भिक्षा योग्य दूसरा घर नहीं मिले, तो पूर्व-पूर्व गृहों का त्याग करके भिक्षा याचना करनी चाहिये। इससे स्पष्ट होता है कि गुरुकुल गांवों के सन्निकट ही होते थे। स्वजातियों से भिक्षा याचना करने में उनके पक्षपात तथा ब्रह्मचारी के गृह की ओर आकर्षण का भय भी रहता था अतएव स्वजातियों से भिक्षा-याचना का पूर्ण निषेध कर दिया गया था। बहुधा राजा तथा सामन्तों का प्रोत्साहन पाकर विद्वान् पण्डित उनकी सभाओं की ओर आकर्षित होते थे और अधिकतर उनकी राजधानी में ही बस जाते थे, जिससे वे नगर शिक्षा के केन्द्र बन जाते थे। इनमें तक्षशिला, पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, मिथिला, धारा, तंजोर आदि प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार तीर्थ स्थानों की ओर भी विद्वान् आकृष्ट होते थे। फलत: काशी, कर्नाटक, नासिक आदि शिक्षा के प्रसिद्ध केन्द्र बन गये। कभी-कभी राजा भी अनेक विद्वानों को आमंत्रित करके दान में भूमि आदि देकर तथा जीविका निश्चित करके उन्हें बसा लेते थे। उनके बसने से वहां एक नया गांव बन जाता था। इन गांवों को `अग्रहार' कहते थे। इसके अतिरिक्त विभिन्न हिन्दू सम्प्रदायों एवं मठों के आचार्यों के प्रभाव से ईसा की दूसरी शताब्दी के लगभग मठ शिक्षा के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गये। इनमें शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य आदि के मठ प्रसिद्ध हैं। सार्वजनिक शिक्षण संस्थाएँ सर्वप्रथम बौद्ध विहारों में स्थापित हुई थीं। भगवान बुद्ध ने उपासकों की शिक्षा-दीक्षा पर अत्यधिक बल दिया। इस संस्थाओं में धार्मिक ग्रन्थों का अध्यापन एवं आध्यात्मिक अभ्यास कराया जाता था। अशोक (३०० ई. पू.) ने बौद्ध विहारों की विशेष उन्नति करायी। कुछ समय पश्चात् ये विद्या के महान केन्द्र बन गये। ये वस्तुत: गुरुकुलों के ही समान थे। किन्तु इनमें गुरु किसी एक कुल का प्रतिनिधि न होकर सारे विहार का ही प्रधान होता था। ये धर्म प्रचार की दृष्टि से जनसाधारण के लिए भी सुलभ थे। इनमें नालन्दा विश्वविद्यालय (४५० ई.), वल्लभी (७०० ई.), विक्रमशिला (८०० ई.) प्रमुख शिक्षण संस्थाएँ थीं। इन संस्थाओं का अनुसरण करके हिन्दुओं ने भी मन्दिरों में विद्यालय खोले जो आगे चल कर मठों के रूप में परिवर्तित हो गये। .

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बिजनौर

बिजनौर भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। हिमालय की उपत्यका में स्थित बिजनौर को जहाँ एक ओर महाराजा दुष्यन्त, परमप्रतापी सम्राट भरत, परमसंत ऋषि कण्व और महात्मा विदुर की कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है, वहीं आर्य जगत के प्रकाश स्तम्भ स्वामी श्रद्धानन्द, अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ॰ आत्माराम, भारत के प्रथम इंजीनियर राजा ज्वालाप्रसाद आदि की जन्मभूमि होने का सौभाग्य भी प्राप्त है। साहित्य के क्षेत्र में जनपद ने कई महत्त्वपूर्ण मानदंड स्थापित किए हैं। कालिदास का जन्म भले ही कहीं और हुआ हो, किंतु उन्होंने इस जनपद में बहने वाली मालिनी नदी को अपने प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' का आधार बनाया। अकबर के नवरत्नों में अबुल फ़जल और फैज़ी का पालन-पोषण बास्टा के पास हुआ। उर्दू साहित्य में भी जनपद बिजनौर का गौरवशाली स्थान रहा है। क़ायम चाँदपुरी को मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी उस्ताद शायरों में शामिल किया है। नूर बिजनौरी जैसे विश्वप्रसिद्ध शायर इसी मिट्टी से पैदा हुए। महारनी विक्टोरिया के उस्ताद नवाब शाहमत अली भी मंडावर,बिजनौर के निवासी थे, जिन्होंने महारानी को फ़ारसी की पढ़ाया। संपादकाचार्य पं. रुद्रदत्त शर्मा, बिहारी सतसई की तुलनात्मक समीक्षा लिखने वाले पं. पद्मसिंह शर्मा और हिंदी-ग़ज़लों के शहंशाह दुष्यंत कुमार,विख्यात क्रांतिकारी चौधरी शिवचरण सिंह त्यागी, पैजनियां - भी बिजनौर की धरती की देन हैं। वर्तमान में महेन्‍द्र अश्‍क देश विदेश में उर्दू शायरी के लिए विख्‍यात हैं। धामपुर तहसील के अन्‍तर्गत ग्राम किवाड में पैदा हुए महेन्‍द्र अश्‍क आजकल नजीबाबाद में निवास कर रहे हैं। .

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मधुबनी

मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन १९७२ में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। .

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मेनका

मेनका स्वर्गलोक की छह सर्वश्रेष्ठ अप्सराओं में से एक है। यह उल्लेख किया गया है कि उसने ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भँंग की। मेनका को स्वर्ग की सबसे सुन्दर अप्सरा माना जाता था। मेनका वृषणश्र (ऋग्वेद १-५१-१३) अथवा कश्यप और प्राधा (महाभारत आदिपर्व, ६८-६७) की पुत्री तथा ऊर्णयु नामक गंधर्व की पत्नी थी। अर्जुन के जन्म समारोह तथा स्वागत में इसने नृत्य किया था। अपूर्व सुंदरी होने से पृषत् इस पर मोहित गया जिससे द्रुपद नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। इंद्र ने विश्वामित्र को तप भ्रष्ट करने के लिये इसे भेजा था जिसमे यह सफल हुई और इसने एक कन्या को जन्म दिया। उसे यह मालिनी तट पर छोड़कर स्वर्ग चली गई। शकुन पक्षियों द्वारा रक्षित एवं पालित होने के कारण महर्षि कण्व ने उस कन्या को शकुन्तला नाम दिया जो कालान्तर में दुष्यन्त की पत्नी और भरत की माता बनी। .

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शकुन्तला (मेनका पुत्री)

शकुन्तला-राजा रवि वर्मा की कलाकृतिशकुंतला की कथा महाभारत के आदिपर्व में मिलती है। शकुन्तला ऋषि विश्वामित्र तथा स्वर्ग की अप्सरा, मेनका की पुत्री थी। देवराज इंद्र ने तपस्यारत महर्षि विश्वामित्र की तपस्या को भंग करने के लिये अप्सरा मेनका को भेजा। मेनका की सुंदरता से मोहित विश्वामित्र ने उससे शारीरिक संबंध बनाए। मेनका गर्भवती हुई और एक कन्या को जनम दिया। मेनका ने उसे जन्म होते ही त्याग दिया था। कण्व ऋषि ने उसे पड़ा हुए पाया और पुत्री के रूप में उसका लालन-पालन किया। एक दिन राजा दुश्यंत शिकार करते हुए वन में साथियों से बिछड् गये। वहाँ भटकते समय उन्होंने शकुंतला को देखा। मोहित होकर उससे गान्धर्वविवाह किया और उसके साथ सहवास करके यह वचन देकर लौट गये कि राजधानी में पहुँच कर उसे बुलवा लेंगे। इस सहवास से शकुंतला गर्भवती हो गई थी। बाद में जब गर्भवती शकुन्तला दुश्यंत के दरबार में गयी, तो राजा ने उसे नहीं पहचाना। क्योंकि दुर्वासा मुनि के शाप के कारण राजा दुश्यंत की दी हुई अँगूठी खो जाने से दुश्यंत शकुंतला को भूल गए थे। शकुंतला निराश होकर राजमहल के बाहर निकली। उस समय उसकी माँ मेनका उसे उठा ले गई और कश्यप ऋषि के आश्रय में उनके आश्रम में रखा जहाँ शकुन्तला ने एक पुत्र को जन्म दिया। कुछ दिनों के बाद एक मछुआरा मछली के पेट से मिली अँगूठी राजा को भेंट करने आया। इस अँगूठी को देखते ही दुश्यन्त को शकुन्तला की याद आई। इसके बाद दुश्यन्त ने शकुन्तला का ढूँढना शुरू किया और पुत्र सहित उसे सम्मानपूर्वक राजमहल ले आए। इसके बाद शकुंतला और दुश्यन्त सुख—पूर्वक जीवन बिताने लगे। कहा जाता है कि उनके पुत्र भरत के ही नाम पर दक्षिण एशिया के सबसे देश का नाम भारत कहलाया जाता है। भरत के वंश में ही पाण्डव और कौरवों ने जन्म लिया तथा उनके ही बीच महाभारत नामक विश्वविख्यात संग्राम हुआ। .

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समस्तीपुर

समस्तीपुर भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल स्थित एक शहर एवं जिला है। समस्तीपुर के उत्तर में दरभंगा, दक्षिण में गंगा नदी और पटना जिला, पश्चिम में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली, तथा पूर्व में बेगूसराय एवं खगड़िया जिले है। यहाँ शिक्षा का माध्यम हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी है लेकिन बोल-चाल में बज्जिका और मैथिली बोली जाती है। मिथिला क्षेत्र के परिधि पर स्थित यह जिला उपजाऊ कृषि प्रदेश है। समस्तीपुर पूर्व मध्य रेलवे का मंडल भी है। समस्तीपुर को मिथिला का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। .

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सिद्धिविनायक महागणपति मन्दिर

सिद्धिविनायक महागणपति मन्दिर हाथी के सिर वाले हिन्दू बुद्धिदेव गणेश को समर्पित एक हिन्दू मन्दिर हैं। यह टिटवाला में स्थित हैं, जो भारतीय राज्य महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के कल्याण तालुका का एक छोटा सा नगर हैं, तथा मुम्बई से थोड़ी ही दूरी पर स्थित हैं। टिटवाला कण्व ऋषि के आश्रम की कल्पित भूमि हैं, जो शकुन्तला, जिनका जन्म यही हुआ, के पालक पिता थे। .

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गोपालगंज

गोपालगंज भारत के बिहार राज्य में सारन प्रमंडल अंतर्गत एक शहर एवं जिला है। गंडक नदी के पश्चिमी तट पर बसा यह भोजपुरी भाषी जिला ईंख उत्पादन के लिए जाना जाता है। मध्यकाल में चेरों राजाओं तथा अंग्रेजों के समय यह हथुवा राज का केंद्र रहा है। राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख, बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री एवं भूतपूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद का गृह जिला है। थावे स्थित दुर्गा मंदिर एवं दिघवा दुबौली प्रमुख दर्शनीय स्थल है। गोपालगंज उत्तर बिहार का अंतिम जिला है। जो उत्तर प्रदेस के सिमा के समीप है। .

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असिता/असित

गान्धार से प्राप्त तीसरी/चौथी शताब्दी की पट्टिका जिसमें असित की भविष्यवाणी को दर्शाया गया है। (Rietberg Museum, Zurich; Inv. No. RVI 11) असिता ईसा पूर्व ६ठवीँ शताब्दी के एक तपस्वी संत थे जिन्होंने सिद्धार्थ गौतम के जन्म पर उनके असाधारण होने की भविष्यवाणी की थी। ऐसा कहा जाता है कि असित और राजा शुद्धोधन (सिद्धार्थ के पिता) बचपन के साथी थे। सिद्धार्थ के जन्म पर वे पहली बार महल पधारे। शिशु की अद्वितीय महानता और ईश्वरीय गुणों से अवगत असित जब नवजात शिशु से मिले तो उन्होंने शिशु के चरणों में माथा टेका। शिशु के चरण असित की जटाओं में फँस गए। महात्मा रो पड़े.

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ऋषि

ऋषि भारतीय परंपरा में श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने (यानि यथावत समझ पाने) वाले जनों को कहा जाता है। आधुनिक बातचीत में मुनि, योगी, सन्त अथवा कवि इनके पर्याय नाम हैं। ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' है जिसका अर्थ देखना होता है। ऋषि के प्रकाशित कृतियों को आर्ष कहते हैं जो इसी मूल से बना है, इसके अतिरिक्त दृष्टि (नज़र) जैसे शब्द भी इसी मूल से हैं। सप्तर्षि आकाश में हैं और हमारे कपाल में भी। ऋषि आकाश, अन्तरिक्ष और शरीर तीनों में होते हैं। .

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निवर्तमानआने वाली
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