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कण भौतिकी

सूची कण भौतिकी

कण भौतिकी, भौतिकी की एक शाखा है जिसमें मूलभूत उप परमाणविक कणो के पारस्परिक संबन्धो तथा उनके अस्तित्व का अध्ययन किया जाता है, जिनसे पदार्थ तथा विकिरण निर्मित हैं। हमारी अब तक कि समझ के अनुसार कण क्वांटम क्षेत्रों के उत्तेजन (excitations) हैं। दूसरे कणों के साथ इनकी अन्तःक्रिया की अपनी गतिकी है। कण भौतिकी के क्षेत्र में अधिकांश रुचि मूलभूत क्षेत्रों (fundamental fields) में है। मौलिक क्षेत्रों और उनकी गतिशीलताओ के सार को सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसिलिये कण भौतिकी में अधिकतर स्टैंडर्ड मॉडल (Standard Model) के मूल कणों तथा उनके सम्भावित विस्तार के बारे में अध्यन किया जाता है। .

52 संबंधों: एंटीमैटर, डेविड ग्रॉस, दुर्बल हाइपर आवेश, दुर्बल अन्योन्य क्रिया, द्विध्रुवी चुम्बक, नाभिकीय भौतिकी, पाइआन, पंजाब विश्वविद्यालय, प्रति-कण, प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धान्त, फर्मी अन्योन्यक्रिया, फर्मीलैब, फ्लेवर (कण भौतिकी), बेरिऑन संख्या, बीजिंग इलेक्ट्रॉन पोजीट्रान कोलाइडर, भारत में स्थित न्यूट्रिनो वेधशाला, भौतिक शास्त्र, भौतिक विज्ञानी, मानक मॉडल से परे भौतिकी, मार्क्स जनित्र, मूलकण, यांत्रिकी, यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन, रोहिणी गोडबोले, लेप्टॉन संख्या, सर्न कूरियर, सुनील मुखी, स्ट्रिंग सिद्धांत, सीएमएस प्रयोग, हिग्स बोसॉन, हैड्रॉन, जॉन डेविड जैक्सन, विचित्रता, विद्युत-चुम्बकीय-दुर्बल अन्योन्य क्रिया, वोल्टता गुणक, ग्लुओन, गेज बोसॉन, कण त्वरक, कणाभ, कार्लो रुबिया, क्वार्क, क्वांटीकरण (भौतिकी), अति तरलता, अतुल गुर्टु, अदिश बोसॉन, अनुप्रस्थ द्रव्यमान, अवपरमाणुक कण, उत्क्रम समस्या, B − L, ROOT (सॉफ्टवेयर), ..., X (आवेश), X और Y बोसॉन सूचकांक विस्तार (2 अधिक) »

एंटीमैटर

एंटीमैटर क्लाउड कण भौतिकी में, प्रतिद्रव्य या एंटीमैटर (antimatter) वस्तुतः पदार्थ के एंटीपार्टिकल के सिद्धांत का विस्तार है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार पदार्थ कणों का बना होता है उसी प्रकार प्रतिद्रव्य प्रतिकणों से मिलकर बना होता है। उदाहरण के लिये, एक एंटीइलेक्ट्रॉन (एक पॉज़ीट्रॉन, जो एक घनात्मक आवेश सहित एक इलेक्ट्रॉन होता है) एवं एक एंटीप्रोटोन (ऋणात्मक आवेश सहित एक प्रोटोन) मिल कर एक एंटीहाईड्रोजन परमाणु ठीक उसी प्रकार बना सकते हैं, जिस प्रकार एक इलेक्ट्रॉन एवं एक प्रोटोन मिल कर हाईड्रोजन परमाणु बनाते हैं। साथ ही पदार्थ एवं एंटीमैटर के संगम का परिणाम दोनों का विनाश (एनिहिलेशन) होता है, ठीक वैसे ही जैसे एंटीपार्टिकल एवं कण का संगम होता है। जिसके परिणामस्वरूप उच्च-ऊर्जा फोटोन (गामा किरण) या अन्य पार्टिकल-एंटीपार्टिकल युगल बनते हैं। वैसे विज्ञान कथाओं और साइंस फिक्शन चलचित्रों में कई बार एंटीमैटर का नाम सुना जाता रहा है। एंटीहाइड्रोजन परमाणु का त्रिआयामी चित्र एंटीमैटर केवल एक काल्पनिक तत्व नहीं, बल्कि असली तत्व होता है। इसकी खोज बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुई थी। तब से यह आज तक वैज्ञानिकों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। जिस तरह सभी भौतिक वस्तुएं मैटर यानी पदार्थ से बनती हैं और स्वयं मैटर में प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन होते हैं, उसी तरह एंटीमैटर में एंटीप्रोटोन, पोसिट्रॉन्स और एंटीन्यूट्रॉन होते हैं।। नवभारत टाइम्स। १२ नवम्बर २००८। हिन्दुस्तान लाइव। ५ मार्च २०१० एंटीमैटर इन सभी सूक्ष्म तत्वों को दिया गया एक नाम है। सभी पार्टिकल और एंटीपार्टिकल्स का आकार एक समान किन्तु आवेश भिन्न होते हैं, जैसे कि एक इलैक्ट्रॉन ऋणावेशी होता है जबकि पॉजिट्रॉन घनावेशी चार्ज होता है। जब मैटर और एंटीमैटर एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो दोनों नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति का सिद्धांत महाविस्फोट (बिग बैंग) ऐसी ही टकराहट का परिणाम था। हालांकि, आज आसपास के ब्रह्मांड में ये नहीं मिलते हैं लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड के आरंभ के लिए उत्तरदायी बिग बैंग के एकदम बाद हर जगह मैटर और एंटीमैटर बिखरा हुआ था। विरोधी कण आपस में टकराए और भारी मात्रा में ऊर्जा गामा किरणों के रूप में निकली। इस टक्कर में अधिकांश पदार्थ नष्ट हो गया और बहुत थोड़ी मात्रा में मैटर ही बचा है निकटवर्ती ब्रह्मांड में। इस क्षेत्र में ५० करोड़ प्रकाश वर्ष दूर तक स्थित तारे और आकाशगंगा शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार सुदूर ब्रह्मांड में एंटीमैटर मिलने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के खगोलशास्त्रियों के एक समूह ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के गामा-किरण वेधशाला से मिले चार साल के आंकड़ों के अध्ययन के बाद बताया है कि आकाश गंगा के मध्य में दिखने वाले बादल असल में गामा किरणें हैं, जो एंटीमैटर के पोजिट्रान और इलेक्ट्रान से टकराने पर निकलती हैं। पोजिट्रान और इलेक्ट्रान के बीच टक्कर से लगभग ५११ हजार इलेक्ट्रान वोल्ट ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इन रहस्यमयी बादलों की आकृति आकाशगंगा के केंद्र से परे, पूरी तरह गोल नहीं है। इसके गोलाई वाले मध्य क्षेत्र का दूसरा सिरा अनियमित आकृति के साथ करीब दोगुना विस्तार लिए हुए हैं।। याहू जागरण। १४ जनवरी २००९ एंटीमैटर की खोज में रत वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्लैक होल द्वारा तारों को दो हिस्सों में चीरने की घटना में एंटीमैटर अवश्य उत्पन्न होता होगा। इसके अलावा वे लार्ज हैडरन कोलाइडर जैसे उच्च-ऊर्जा कण-त्वरकों द्वारा एंटी पार्टिकल उत्पन्न करने का प्रयास भी कर रहे हैं। पार्टिकल एवं एंटीपार्टिकल पृथ्वी पर एंटीमैटर की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में बहुत थोड़ी मात्रा में एंटीमैटर का निर्माण किया है। प्राकृतिक रूप में एंटीमैटर पृथ्वी पर अंतरिक्ष तरंगों के पृथ्वी के वातावरण में आ जाने पर अस्तित्व में आता है या फिर रेडियोधर्मी पदार्थ के ब्रेकडाउन से अस्तित्व में आता है। शीघ्र नष्ट हो जाने के कारण यह पृथ्वी पर अस्तित्व में नहीं आता, लेकिन बाह्य अंतरिक्ष में यह बड़ी मात्र में उपलब्ध है जिसे अत्याधुनिक यंत्रों की सहायता से देखा जा सकता है। एंटीमैटर नवीकृत ईंधन के रूप में बहुत उपयोगी होता है। लेकिन इसे बनाने की प्रक्रिया फिल्हाल इसके ईंधन के तौर पर अंतत: होने वाले प्रयोग से कहीं अधिक महंगी पड़ती है। इसके अलावा आयुर्विज्ञान में भी यह कैंसर का पेट स्कैन (पोजिस्ट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा पता लगाने में भी इसका प्रयोग होता है। साथ ही कई रेडिएशन तकनीकों में भी इसका प्रयोग प्रयोग होता है। नासा के मुताबिक, एंटीमैटर धरती का सबसे महंगा मैटेरियल है। 1 मिलिग्राम एंटीमैटर बनाने में 250 लाख डॉलर रुपये तक लग जाते हैं। एंटीमैटर का इस्तेमाल अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाने वाले विमानों में ईधन की तरह किया जा सकता है। 1 ग्राम एंटीमैटर की कीमत 312500 अरब रुपये (3125 खरब रुपये) है। .

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डेविड ग्रॉस

डेविड जोनाथन ग्रॉस (जन्म 19 फ़रवरी 1941) एक अमेरिकी कण भौतिक विज्ञानी और स्ट्रिंग विचारक हैं। उन्हें प्रबल अन्योन्य क्रिया सिद्धान्त में उपगामी स्वतंत्रता के आविष्कार के लिए ह्यूग डेविड पुलित्ज़र और फ्रैंक एंथनी विल्चेक के साथ संयुक्त रूप से 2004 का भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दुर्बल हाइपर आवेश

दुर्बल हाइपर कण भौतिकी में दुर्बल हाइपर आवेश एक संरक्षित क्वांटम संख्या है जो विद्युत आवेश और दुर्बल समभारिक प्रचक्रण के तृतीय घटक में संबंध स्थापित करता है तथा प्रबल अन्योन्य क्रियाओं के समभारिक प्रचक्रण के लिए गेल-मान-निशिजमा सूत्र (Gell-Mann–Nishijima formula) के समान होता है (जो संरक्षित नहीं रहता)। इसे अक्सर YW द्वारा निरूपित किया जाता है और यह गेज सममिति (gauge symmetry) U(1) के समान होत है। .

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दुर्बल अन्योन्य क्रिया

दुर्बल अन्योन्य क्रिया (अक्सर दुर्बल बल व दुर्बल नाभिकीय बल के नाम से भी जाना जाता है) प्रकृति की चार मूलभूत अन्योन्य क्रियाओं में से एक है, अन्य चार अन्योन्य क्रियाएं गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुम्बकीय अन्योन्य क्रिया और प्रबल अन्योन्य क्रिया हैं। यह अन्योन्य क्रिया, उप-परमाणविक कणों के रेडियोधर्मी क्षय और नाभिकीय संलयन के लिए उत्तरदायी है। सभी ज्ञात फर्मिऑन (वे कण जिनका स्पिन अर्द्ध-पूर्ण संख्या होती है) यह अन्योन्य क्रिया करते हैं। कण भौतिकी मेंमानक प्रतिमान के अनुसार दुर्बल अन्योन्य क्रिया Z अथवा W बोसॉन के विनिमय (उत्सर्जन अथवा अवशोषण) से होती है और अन्य तीन बलों की भांती यह भी अस्पृशी बल माना जाता है। बीटा क्षय रेडियोधर्मिता का एक उदाहरण इस क्रिया का सबसे ज्ञात उदाहरण है। W व Z बोसॉनों का द्रव्यमान प्रोटोन व न्यूट्रोन की तुलना में बहुत अधीक होता है और यह भारीपन ही दुर्बल बल की परास कम होने का मुख्य कारण है। इसे दुर्बल बल कहने का कारण इस बल का अन्य दो बलों विद्युत चुम्बकीय व प्रबल की तुलना में इसका मान का परिमाण की कोटि कई गुणा कम होना है। अधिकतर कण समय के साथ दुर्बल बल के अधीन क्षय होते हैं। क्वार्क फ्लेवर परिवर्तन भी केवल इस बल के अधीन ही होता है। .

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द्विध्रुवी चुम्बक

द्विध्रुवी चुम्बक (ऐडवांस फोटॉन सोर्स, यूएसए) द्विध्रुवी चुम्बक का योजनामूलक चित्र: '''पीला''': धारीवाही कुण्डली, '''आसमानी''': लोहे की कोर द्विध्रुवी चुम्बक कण त्वरकों में काम में आने वाला एक विद्युतचुम्बक है जो कुछ दूर तक एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करता है। इसका उपयोग गतिमान आवेशित कणों को अपने मार्ग से मोड़ने के लिए किया जाता है। एक के बाद एक करके कई द्विध्रुवी चुम्बकों का प्रयोग करके आवेशित कणपुंज (particle beam) को मोड़कर एक 'वृत्तीय पथ' पर बनाए रखा जा सकता है। .

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नाभिकीय भौतिकी

यह भौतिकी की एक शाखा है, जो अणु के नाभि से सम्बंधित है। इसके तीन मुख्य पहलू हैं:-.

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पाइआन

कण भौतिकी में पाइआन अथवा पाइमेसॉन एक संयुक्त हैड्रॉन कण है। दो भिन्न क्वार्क के संयोजन से यह कण प्राप्त होता है। प्रकृति में तीन प्रकार के पाइआन, और पाये जाते हैं। पाइआन सबसे कम द्रव्यमान वाले मेसॉन कण होते हैं जो निम्न ऊर्जा पर प्रबल अन्योन्य क्रियाओं को साझने में सहायक है। .

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पंजाब विश्वविद्यालय

छात्र केंद्र पंजाब विश्वविद्यालय (Panjab University, पंजाबी:ਪੰਜਾਬ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ) भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक है। यह चंडीगढ में स्थित हैं। इसकी स्थापना 1882 में हुई। .

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प्रति-कण

कण (बायें) और प्रति-कण (दायें) के आकार और विद्युत आवेश का चित्रण। ऊपर से नीचे इलेक्ट्रॉन/पोजीट्रॉन,प्रोटॉन/प्रतिप्रोटोन, न्यूट्रॉन/प्रतिन्यूट्रॉन. किसी भी कण से संबद्ध प्रतिकण भी होता है जिसका द्रव्यमान अभिन्न होता है लेकिन विद्युत आवेश विपरीत होता है। उदाहरण के लिये इलेक्ट्रॉन का प्रति-कण प्रति-इलेक्ट्रॉन एक धनावेशित कण जिसे पोजीट्रॉन कहते हैं, सामान्यतः इसे रेडियोधर्मी पदार्थों के क्षय से बनाया जाता है। प्रकृति के नियम कणों और प्रतिकणो के लिये लगभग सममितीय होते हैं। उदाहरण के लिये एक प्रतिप्रोटोन और पोजीट्रॉन से प्रति-हाइड्रोजन परमाणु का निर्माण होता है, जिसके गुणधर्म भी हाइड्रोजन परमाणु के समान ही हैं। .

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प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धान्त

क्वांटम क्षेत्र सिद्धान्त (QFT) या प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धांत, क्वांटम यांत्रिकी के निर्माण के लिए एक सैद्धांतिक ढांचा प्रदान करता है जिसमें क्वांटम यांत्रिक प्रणालियों को अनंत स्वतंत्रता की डिग्री प्रदर्शित किया जाता है। प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धान्त में कणों को आधारभूत भौतिक क्षेत्र की उत्तेजित अवस्था के रूप में काम में लिया जाता है अतः इसे क्षेत्र क्वांटा कहते हैं। उदाहरण के लिए प्रमात्रा विद्युतगतिकी में एक इलेक्ट्रॉन क्षेत्र एवं एक फोटोन क्षेत्र होते हैं; प्रमात्रा क्रोमोगतिकी में प्रत्येक क्वार्क के लिए एक क्षेत्र निर्धारित होता है और संघनित पदार्थ में परमाणवीय विस्थापन क्षेत्र से फोटोन कण की उत्पति होती है। एडवर्ड विटेन प्रमात्रा क्षेत्र सिद्धान्त को भौतिकी के "अब तक" के सबसे कठिन सिद्धान्तों में से एक मानते हैं। .

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फर्मी अन्योन्यक्रिया

कण भौतिकी में, फर्मी अन्योन्यक्रिया (Fermi's interaction) (जिसे बीटा क्षय का फर्मी सिद्धांत भी कहा जाता है) 1933 में एन्रीको फर्मी द्वारा प्रस्तावित बीटा क्षय की व्याख्या है। इस सिद्धान्त के अनुसार चार फर्मीऑन एक ही शीर्ष पर एक साथ अन्योन्य क्रिया करते हैं। उदाहरण के लिए, इस अन्योन्य क्रिया में न्यूट्रॉन का क्षय, न्यूट्रॉन के निम्न कणों से सीधे संयुग्मन में दर्शाया गया है.

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फर्मीलैब

'''फर्मीलैब का ऊपर से लिया गया दृष्य''': सामने स्थित वलय (रिंग) मुख्य इंजेक्टर त्वरक है; पीछे की तरफ टेवाट्रॉन वलय है। फर्मीलैब या फर्मी राष्ट्रीय त्वरक प्रयोगशाला (Fermi National Accelerator Laboratory) अमेरिका का एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है जो उच्च उर्जा कण भौतिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिये कार्य कर रहा है। यह शिकागो के पास बटाविया (Batavia) में स्थित है और यूएसए के परमाणु उर्जा विभाग की राष्ट्रीय प्रयोगशाला है। .

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फ्लेवर (कण भौतिकी)

कण भौतिकी में, फ्लेवर या आस्वाद मानक मॉडल में परिभाषित मूलभूत कणों (या तो क्वार्क या लेप्टॉन) के विभिन्न प्रकारों को निर्दिष्ट करता है। "फ्लेवर" शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1968 में हैड्रॉनों के क्वार्क मॉडल में किया गया था। .

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बेरिऑन संख्या

कण भौतिकी में बेरिऑन संख्या निकाय की लगभग संरक्षित क्वान्टम संख्या है। जहाँ nq क्वार्क की एक संख्या है और n प्रतिक्वार्क की एक संख्या है। बेरिऑनों (तीन क्वार्क) की बेरिऑन संख्या +1, मेसॉनों (एक क्वार्क, एक प्रतिक्वार्क) की बेरिऑन संख्या 0 (शून्य) और प्रतिबेरिऑनों (तीन प्रतिक्वार्क) की बेरिऑन संख्या −1 होती है। इतर हैड्रॉन जैसे पेन्टाक्वार्क (चार क्वार्क, एक प्रति क्वार्क) और चतुष्क्वार्क (दो क्वार्क, दो प्रतिक्वार्क) को भी उनकी बेरिऑन संख्या के आधार पर बेरिऑनों एवं मेसॉनों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। .

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बीजिंग इलेक्ट्रॉन पोजीट्रान कोलाइडर

बीजिंग इलेक्ट्रॉन पोजीट्रान कोलाइडर (Beijing Electron Positron Collider, संक्षिप्त:BEPC) एक इलेक्ट्रॉन-पोजीट्रान संघट्ट है, एक प्रकार का कण त्वरक जो चीन में स्थित है। इसकी स्थापना चीन में १९८४ में की गई। २००४ से २००९ तक इसके द्वितीय संस्करण (BEPC-II) का निर्माण किया गया। यह मुख्य रूप से उच्च ऊर्जा भौतिकी के शोध कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें विकिरण की समकालिकता का अध्ययन किया जाता है। अन्तरराष्ट्रीय संघट्ट प्रयोगों की तुलना में इसके कणों का मध्यम उर्जा मान नाभिकीय भौतिकी प्रयोगों में भी उपयोगी है। यह प्रयोग अपने उन्नत स्तर के ऊर्जा क्षेत्र के लिए भौतिकी में अन्तरराष्ट्रीय आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। .

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भारत में स्थित न्यूट्रिनो वेधशाला

भारत स्थित न्यूट्रिनो वेधशाला (India-based Neutrino Observatory) (आईएनओ) कण भौतिकी में शोध के लिए निर्मित विज्ञान परियोजना है। इसका उद्देश्य ब्रह्माण्डीय न्यूट्रिनो का अध्ययन करना है। न्यूट्रिनो मूल कण होते हैं जिनका सूर्य, तारों एवं वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से निर्माण होता है। .

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भौतिक शास्त्र

भौतिकी के अन्तर्गत बहुत से प्राकृतिक विज्ञान आते हैं भौतिक शास्त्र अथवा भौतिकी, प्रकृति विज्ञान की एक विशाल शाखा है। भौतिकी को परिभाषित करना कठिन है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह ऊर्जा विषयक विज्ञान है और इसमें ऊर्जा के रूपांतरण तथा उसके द्रव्य संबन्धों की विवेचना की जाती है। इसके द्वारा प्राकृत जगत और उसकी आन्तरिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। स्थान, काल, गति, द्रव्य, विद्युत, प्रकाश, ऊष्मा तथा ध्वनि इत्यादि अनेक विषय इसकी परिधि में आते हैं। यह विज्ञान का एक प्रमुख विभाग है। इसके सिद्धांत समूचे विज्ञान में मान्य हैं और विज्ञान के प्रत्येक अंग में लागू होते हैं। इसका क्षेत्र विस्तृत है और इसकी सीमा निर्धारित करना अति दुष्कर है। सभी वैज्ञानिक विषय अल्पाधिक मात्रा में इसके अंतर्गत आ जाते हैं। विज्ञान की अन्य शाखायें या तो सीधे ही भौतिक पर आधारित हैं, अथवा इनके तथ्यों को इसके मूल सिद्धांतों से संबद्ध करने का प्रयत्न किया जाता है। भौतिकी का महत्व इसलिये भी अधिक है कि अभियांत्रिकी तथा शिल्पविज्ञान की जन्मदात्री होने के नाते यह इस युग के अखिल सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मूल प्रेरक है। बहुत पहले इसको दर्शन शास्त्र का अंग मानकर नैचुरल फिलॉसोफी या प्राकृतिक दर्शनशास्त्र कहते थे, किंतु १८७० ईस्वी के लगभग इसको वर्तमान नाम भौतिकी या फिजिक्स द्वारा संबोधित करने लगे। धीरे-धीरे यह विज्ञान उन्नति करता गया और इस समय तो इसके विकास की तीव्र गति देखकर, अग्रगण्य भौतिक विज्ञानियों को भी आश्चर्य हो रहा है। धीरे-धीरे इससे अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की उत्पत्ति हुई, जैसे रासायनिक भौतिकी, तारा भौतिकी, जीवभौतिकी, भूभौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, आकाशीय भौतिकी इत्यादि। भौतिकी का मुख्य सिद्धांत "उर्जा संरक्षण का नियम" है। इसके अनुसार किसी भी द्रव्यसमुदाय की ऊर्जा की मात्रा स्थिर होती है। समुदाय की आंतरिक क्रियाओं द्वारा इस मात्रा को घटाना या बढ़ाना संभव नहीं। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं और उसका रूपांतरण हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में किसी प्रकार परिवर्तन करना संभव नहीं हो सकता। आइंस्टाइन के सापेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान भी उर्जा में बदला जा सकता है। इस प्रकार ऊर्जा संरक्षण और द्रव्यमान संरक्षण दोनों सिद्धांतों का समन्वय हो जाता है और इस सिद्धांत के द्वारा भौतिकी और रसायन एक दूसरे से संबद्ध हो जाते हैं। .

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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मानक मॉडल से परे भौतिकी

मानक मॉडल से परे भौतिकी (Physics beyond the Standard Model) का तात्पर्य उस भौतिकी से है जो सैद्धांतिक विकास को समझने के लिए मानक मॉडल की अपूर्णता को दूर करे, यथा उत्क्रम समस्या, डार्क मैटर, ब्रह्मांडीय नियतांक समस्या, प्रबल आवेश-समता समस्या, न्यूट्रिनो दोलन आदि। अन्य समस्या मानक मॉडल के गणितीय ढ़ाँचे के साथ है – मानक मॉडल सामान्य आपेक्षिकता के संगत नहीं है। मानक मॉडल ज्ञात दिक्-काल में विचित्रता जैसे महाविस्फोट सिद्धांत और घटना क्षितिज में ब्लैक होल को समझाने में असमर्थ है। .

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मार्क्स जनित्र

उच्च वोल्टता की प्रयोगशाला में निर्माणाधीन एक मार्क्स जनित्र मार्क्स जनित्र का परिपथ आरेख (चार्जिंग एवं डिस्चार्जिंग) मार्क्स जनित्र (मार्क्स जनरेटर), उच्च वोल्टता की स्पन्द (पल्स) उत्पन्न करने वाला एक विद्युत परिपथ है। इसका वर्णन सबसे पहले १९२४ में एडविन ऑटो मार्क्स ने किया था। इसका उपयोग उच्च ऊर्जा भौतिकी के प्रयोगों में होता है। इसके अलावा इसका उपयोग बिजली की लाइनों एवं विमानों आदि पर आकाशीय विद्युत से होने वाले प्रभावों को सिमुलेट करने के लिये आवश्यक उच्च वोल्टता की पल्स पैदा करने के लिये भी किया जाता है। .

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मूलकण

मूलभूत कणों का मानक मॉडल भौतिकी में मूलकण (elementary particle) वे कण हैं, जिनकी कोई उपसंरचना ज्ञात नहीं है। यह किन कणों से मिलकर बना है, अज्ञात है। मूलकण ब्रह्माण्ड की आधारभूत संरचना है, समस्त ब्रह्माण्ड इन्ही मूलभूत कणों से मिलकर बना है। कण भौतिकी के मानक मॉडल (standard model) के अनुसार क्वार्क, लेप्टॉन और गेज बोसॉन मूलकण है। .

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यांत्रिकी

यांत्रिकी (Mechanics) भौतिकी की वह शाखा है जिसमें पिण्डों पर बल लगाने या विस्थापित करने पर उनके व्यवहार का अध्ययन करती है। यांत्रिकी की जड़ें कई प्राचीन सभ्यताओं से निकली हैं। .

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यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन

सर्न (Organisation Européenne pour la Recherche Nucléaire या CERN (फ़्रान्सीसी में) .

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रोहिणी गोडबोले

रोहिणी गोडबोले एक भारतीय भौतिक विज्ञानी और अकादमिक है। वह उच्च ऊर्जा भौतिकी, भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर के केंद्र में प्रोफेसर हैं। वह भारत के विज्ञान के तीनों अकादमियों और विकासशील विश्व के विज्ञान अकादमी (टीयूएएस) के निर्वाचित साथी हैं। रोहिणी गोडबोले ने अपनी बीएससी सर परशुरामभाऊ कॉलेज, पुणे विश्वविद्यालय से प्राप्त कि और एमएससी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई से की। स्टॉनी ब्रुक में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के सैद्धांतिक कण भौतिकी में पीएचडी की उन्होंने। .

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लेप्टॉन संख्या

लेप्टॉन संख्या कण भौतिकी में लेप्टॉन संख्या लेप्टॉन में से प्रतिलेप्टॉनों की संख्या को घटाने अर प्ताप्त संख्या है। समीकरण रूप में, इस प्रकार सभी लेप्टॉनों को +1 आवंटित किया जाता है, सभी प्रतिलेप्टॉनों को −1 और जो लेप्टॉन नहीं हैं उनकी लेप्टॉन संख्या 0 मानी जाती है। लेप्टॉन संख्या (कभी-कभी लेप्टॉन आवेश भी कहा जाता है) एक योगज क्वांटम संख्या है, अर्थात किसी भी अन्योन्य क्रिया में कुल लेप्टॉन संख्या संरक्षित रहती है। लेप्टॉनीय संख्या की तुलना में, लेप्टॉनिक परिवार संख्या भी परिभाषित की जाती है.

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सर्न कूरियर

सर्न कूरियर (कभी-कभी सर्न कूरियर:इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ हाई एनर्जी फिजिक्स, सर्न कूरियर:उच्च ऊर्जा भौतिकी के इंटरनेशनल जरनल) सर्न के उच्च ऊर्जा भौतिकी समुदाय से सम्बंधित समाचार और घटनाएं प्रकाशित करने वाली मासिक व्यापार पत्रिका है। .

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सुनील मुखी

सुनील मुखी एक भारतीय सैध्दांतिक भौतिक शास्त्री हैं जो स्ट्रिंग सिद्धांत, क्वांटम क्षेत्र सिद्धान्त और कण भौतिकी के क्षेत्र में काम करते हैं। .

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स्ट्रिंग सिद्धांत

स्ट्रिंग सिध्दांत कण भौतिकी का एक सक्रीय शोध क्षेत्र है जो प्रमात्रा यान्त्रिकी और सामान्य सापेक्षता में सामजस्य स्थपित करने का प्रयास करता है। इसे सर्वतत्व सिद्धांत का प्रतियोगी सिद्धान्त भी कहा जाता है, एक आत्मनिर्भर गणितीय प्रतिमान जो द्रव्य के रूप व सभी मूलभूत अन्योन्य क्रियाओं को समझाने में सक्षम है। स्ट्रिंग सिद्धांत के अनुसार परमाणु में स्थित मूलभूत कण (इलेक्ट्रॉन, क्वार्क आदि) बिन्दु कण नहीं हैं अर्थात इनकी विमा शून्य नहीं है बल्कि एक विमिय दोलक रेखाएं हैं (स्ट्रिंग अथवा रजु)। .

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सीएमएस प्रयोग

सीएमएस या कॉम्पैक्ट म्यूऑन सोलेनोइड या सुसम्बद्ध म्यूऑन परिनालिका प्रयोग स्विट्जरलैंड और फ्रान्स में सर्न में स्थित लार्ज हैड्रान कोलाइडर (एलएचसी) पर बने दो बृहद् व्यापक प्रयोजन कण भौतिकी संसूचकों में से एक है। सीएमएस प्रयोग का उद्देश्य हिग्स बोसॉन, अधि-विमाएं, अदृश्य पदार्थ के लिए उत्तरदायी कणों के आविष्कार सहित भौतिकी की एक विस्तृत परास का पता लगाना है। सीएमएस का भार १२,५०० टन, लम्बाई २५ मीटर और व्यास १५ मीटर है। लगभग ४३०० लोग इस प्रयोग में कार्य करते हैं जिनमें से १५३५ छात्र हैं, इस प्रयोग में ४१ देशों की १७९ संस्थाएं काम शामिल हैं। इस प्रयोग का निर्माण १४ टेराइलेक्ट्रॉन वोल्ट (TeV) द्रव्यमान केन्द्र ऊर्जा पर प्रत्येक २५ नैनोसैकण्ड (ns) पश्चात प्रेक्षषित करने के लिए किया गया लेकिन २०११ तक केवल 7 TeV पर ही कार्य किया गया जबकि २०१२ में यह ऊर्जा 8 TeV थी। .

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हिग्स बोसॉन

एक सिमुलेट की गयी घटना जो हिग्स बोसान की उत्पत्ति को दर्शा रही है। हिग्स बोसॉन (Higgs boson) एक मूल कण है जिसकी प्रथम परिकल्पना 1964 में दी गई और इसका प्रायोगिक सत्यापन 14 मार्च 2013 को किया गया। इस आविष्कार को एक 'यादगार' कहा गया क्योंकि इससे हिग्स क्षेत्र की पुष्टि हो गई। कण भौतिकी के मानक मॉडल द्वारा इसके अस्तित्व का अनुमान लगाया गया है। वर्तमान समय तक इस प्रकार के किसी भी कण के विद्यमान होने की ज्ञान नहीं है। हिग्स बोसॉन को कणो के द्रव्यमान या भार के लिये जिम्मेदार माना जाता है। प्रायः इसे अंतिम मूलभूत कण माना जाता है। .

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हैड्रॉन

कण भौतिकी में, हैड्रॉन (hadron) एक मिश्रित कण है जो क्वार्कों से मिलकर बनता है। हैड्रॉन में क्वार्क तीव्र बलों द्वारा संयुक्त किये गये रहते हैं, वैसे ही जैसे अणु परस्पर विद्युतचुम्बकीय बलों के कारण आपस में जुड़े रहते हैं। .

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जॉन डेविड जैक्सन

जॉन डेविड जैक्सन (19 जनवरी 1925 – 20 मई 2016) एक कनाडाई–अमेरिकी नागरीक थे जो कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में भौतिक विज्ञान के एमेरिटस प्रोफेसर और लॉरेंस बर्कले राष्ट्रीय प्रयोगशाला में  वरिष्ठ वैज्ञानिक है। वो सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी के रूप में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के सदस्य और कई प्रसिद्ध पुस्तकों के प्रकाशन और ग्रीष्मकालीन स्कूलों में नाभिकीय और कण भौतिकी के व्याख्यानों के लिए भी जाने जाते हैं। इसके अतिरिक्त वो व्यापक रूप से उपयोग में ली जाने वाली स्नातक स्नातक स्तर की पाठ्य पुस्तक चिरसम्मत विद्युत चुंबकत्व (अंग्रेज़ी में) के लिए भी जाने जाते हैं। .

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विचित्रता

कण भौतिकी में विचित्रता S कण का गुणधर्म है जिसे क्वान्टम संख्या के रूप उल्लिखित किया जाता है, जो प्रबल और वुद्युत चुम्बकीय अभिक्रियाओं, जो अतिअल्प कालावधि में घटित हो जाती हैं, में कणों के क्षय का वर्णन करने लिए काम में लिया जाता है। एक कण की विचित्रता निम्न प्रकार परिभाषित की जाती है: जहाँ n विचित्र क्वार्कों की संख्या को तथा n विचित्र प्रतिक्वार्कों की संख्या को निरूपित करता हि। पद विचित्र और विचित्रता क्वार्क के आविष्कार से पहले प्रेक्षित की गयी। .

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विद्युत-चुम्बकीय-दुर्बल अन्योन्य क्रिया

कण भौतिकी में विद्युत-चुम्बकीय-दुर्बल अन्योन्य क्रिया प्रकृति की चार मूलभूत अन्योन्य क्रियाओं में से दो विद्युत-चुम्बकीय अन्योन्य क्रिया और दुर्बल अन्योन्य क्रिया का एकीकृत रूप है। यद्यपि ये दोनों बल निम्न ऊर्जा क्षेत्र में बहुत अलग दिखाई देते हैं, सैद्धान्तिक रूप से इन भिन्न छवि के दो बलों की एक बल के रूप में प्रतिकृती करते हैं। एकीकरण पैमाने से उपर, 100 GeV कोटि पर, वो एक बल में परिणीत हो जाते हैं। मूलभूत कणों में विद्युत-चुम्बकीय व दुर्बल अन्योन्य क्रियाओं के एकीकरण में सहयोग के लिए सन् १९७९ में अब्दुस सलाम, शेल्डन ग्लास्हौ और स्टीवन वाईनबर्ग को भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विद्युत-चुम्बकीय-दुर्बल अन्योन्य क्रिया के अस्तित्व को प्रायोगिक रूप से दो स्तरों में प्रमाणित किया गया, प्रथम ई.सन् १९७३ में Gargamelle सहयोग द्वारा न्यूट्रिनो प्रकिर्णन द्वारा उदासीन धारा की खोज और द्वितीय १९८३ में यूए१ व यूए२ प्रयोगो ने सुपर प्रोटॉन सिंक्रोट्रॉन से प्राप्त प्रोटॉन प्रति-प्रोटॉन कीरण पूँज की टक्कर में W और Z आमान बोसोनों की का आविष्कार। .

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वोल्टता गुणक

पूर्ण-तरंग कॉक्रॉफ्ट-वाल्टन वोल्टता गुणक 'विलार्ड कास्केड' वोल्टता गुणक का आउटपुट वोल्टेज: ध्यान दें कि आउटपुट वोल्टता धीरे-धीरे इनपुट वोल्टता के लगभग दो गुना होने जा रही है। वोल्टता गुणक (voltage multiplier) एक विशेष विद्युत परिपथ है जो कम वोल्टता के एसी को अपेक्षाकृत अधिक वोल्टता के डीसी में बदलने का काम करता है। इसमें प्रायः डायोड और संधारित्र का प्रयोग होता है। इनका उपयोग उच्च वोल्टता (हजारों किलोवोल्ट) पैदा करने के लिये किया जाता है जो मुख्यतः उच्च ऊर्जा भौतिकी के प्रयोगों के लिये या तड़ित-सुरक्षा से सम्बन्धित उपकरणों के परीक्षण के लिये लगती है। जो वोल्टता गुणक ए.सी.

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ग्लुओन

ग्लुओन कण भौतिकी में एक मूलभूत कण है। इसका आवेश शून्य होता है अतः यह विद्युत चुम्बकीय अन्योन्य क्रियाओं में भाग नहीं लेता है। इसका द्रव्यमान शून्य होता है अतः यह गुरुत्वीय अन्योन्य क्रियाओं में भी भाग नहीं लेता। इस कण का प्रचक्रण 1 होता है। यह कण एक गेज बोसॉन है। यह कण प्रबल अन्योन्य क्रिया का बल वाहक कण है। ग्लुओन कलर आवेशित (colour charge) होता है इस कारण यह आठ भिन आस्वादों (flavour) में पाया जाता है। जिन्हें गणितीय रूप में निम्न समीकरणों से प्राप्त किया जाता है: केवल निम्न सम्भावित अवस्था के ग्लुऑन प्राप्त नहीं किये जा सकते: चूँकि कलर (वर्ण) आवेश सहित एक कण मुक्त अवस्था में प्राप्त नहीं किया जा सकता अतः इसकी पहुँच केवल फर्मी कोटि (10-15 मीटर) की होती है। .

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गेज बोसॉन

मानक प्रतिमान के अनुसार मूलभूत कण, यहाँ चतुर्थ स्तम्भ में गेज बोसॉन हैं। कण भौतिकी में, गेज बोसॉन (gauge boson) एक बोसॉनिक कण है जो प्रक्रिति के मूलभूत बलो के वाहक की भूमिका निभाता है अर्थात यह एक प्रकार का बल वाहक कण (force carrier particle) है। * श्रेणी:मूलकण श्रेणी:कण भौतिकी श्रेणी:बोसोन.

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कण त्वरक

'''इन्डस-२''': भारत (इन्दौर) का 2.5GeV सिन्क्रोट्रान विकिरण स्रोत (SRS) कण-त्वरक एसी मशीन है जिसके द्वारा आवेशित कणों की गतिज ऊर्जा बढाई जाती हैं। यह एक ऐसी युक्ति है, जो किसी आवेशित कण (जैसे इलेक्ट्रान, प्रोटान, अल्फा कण आदि) का वेग बढ़ाने (या त्वरित करने) के काम में आती हैं। वेग बढ़ाने (और इस प्रकार ऊर्जा बढाने) के लिये वैद्युत क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है, जबकि आवेशित कणों को मोड़ने एवं फोकस करने के लिये चुम्बकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है। त्वरित किये जाने वाले आवेशित कणों के समूह या किरण-पुंज (बीम) धातु या सिरैमिक के एक पाइप से होकर गुजरती है, जिसमे निर्वात बनाकर रखना पड़ता है ताकि आवेशित कण किसी अन्य अणु से टकराकर नष्ट न हो जायें। टीवी आदि में प्रयुक्त कैथोड किरण ट्यूब (CRT) भी एक अति साधारण कण-त्वरक ही है। जबकि लार्ज हैड्रान कोलाइडर विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है। कण त्वरकों का महत्व इतना है कि उन्हें 'अनुसंधान का यंत्र' (इंजन्स ऑफ डिस्कवरी) कहा जाता है। .

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कणाभ

भौतिकी में कणाभ (Quasiparticle) उन्मज्जी संवृति है जो स्थूल रूप से एक जटिल प्रणाली है जैसे एक ठोस का व्यवहार जिसमें कि मुक्त आकाश में दुर्बल अन्योन्य क्रिया करने वाले भिन्न कण हों। उदाहरण के लिए इलेक्ट्रॉन किसी अर्धचालक में गति करता है तो अन्य इलेक्ट्रोनों और नाभिक से टक्करों के कारण इसकी गति जटिल रूप से पथित होती है लेकिन यह लगभग उसी तरह व्यवहार करता है जैसे भिन्न द्रव्यमान का कोई इलेक्ट्रॉन व्यवधान रहित मुक्त आकाश में गति करता है। भिन्न द्रव्यमान के इस "इलेक्ट्रॉन" को "इलेक्ट्रॉन कणाभ" कहते हैं। .

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कार्लो रुबिया

कार्लो रुबिया (Carlo Rubbia; जन्म ३१ मार्च, १९३४) इटली के कण भौतिकविज्ञानी एवं आविष्कारक हैं जिनको डब्ल्यू एवं जेड बोसान के आविष्कार के लिये १९८४ का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार साइमन फॉन दर मीर के साथ संयुक्त रूप से दिया गया था। .

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क्वार्क

प्रोटॉन क्वार्क एक प्राथमिक कण है तथा यह पदार्थ का मूल घटक है। क्वार्क एकजुट होकर सम्मिश्र कण हेड्रॉन बनाते है, परमाणु नाभिक के मुख्य अवयव प्रोटॉन व न्यूट्रॉन इनमें से सर्वाधिक स्थिर हैं। नैसर्गिक घटना रंग बंधन के कारण, क्वार्क ना कभी सीधे प्रेक्षित हुआ या एकांत में पाया गया; वे केवल हेड्रॉनों के भीतर पाये जा सकते है, जैसे कि बेरिऑनों (उदाहरणार्थ: प्रोटान और न्यूट्रान) और मेसॉनों के रूप में। क्वार्क के अनेक आंतरिक गुण है, जिनमे विद्युत आवेश, द्रव्यमान, रंग आवेश और स्पिन सम्मिलित है। कण भौतिकी के मानक मॉडल में क्वार्क एकमात्र प्राथमिक कण है जो सभी चार मूलभूत अंतःक्रिया या मौलिक बलों (विद्युत चुंबकत्व, गुरुत्वाकर्षण, प्रबल अंतःक्रिया और दुर्बल अंतःक्रिया) को महसूस करता है, साथ ही यह मात्र ज्ञात कण है जिसका विद्युत आवेश प्राथमिक आवेश का पूर्णांक गुणनफल नहीं है। क्वार्क के छह प्रकार है, जो जाने जाते है फ्लेवर से: अप, डाउन, स्ट्रेन्ज, चार्म, टॉप और बॉटम। अप व डाउन क्वार्क के द्रव्यमान सभी क्वार्को में सबसे कम है। अपेक्षाकृत भारी क्वार्क कणिका क्षय की प्रक्रिया के माध्यम से तीव्रता से अप व डाउन क्वार्क में बदल जाते हैं। कणिका क्षय, एक उच्च द्रव्य अवस्था का एक निम्न द्रव्य अवस्था में परिवर्तन है। इस वजह से, अप व डाउन क्वार्क आम तौर पर स्थिर होते है और ब्रह्मांड में सबसे आम हैं, वहीं स्ट्रेन्ज, चार्म, बॉटम और टॉप क्वार्क केवल उच्च ऊर्जा टक्करों में उत्पन्न किए जा सकते है। हर क्वार्क फ्लेवर के प्रतिकण होते है जिनके परिमाण तो क्वार्क के बराबर होते है परंतु चिन्ह विपरीत रखते है तथा यह एंटीक्वार्क के रूप में जाने जाते है। क्वार्क मॉडल स्वतंत्र रूप से भौतिकविदों मरे गेल-मन और जॉर्ज वाइग द्वारा 1964 में प्रस्तावित किया गया था। क्वार्क हेड्रॉनों के अंग के रूप में पेश किए गए थे। 1968 में स्टैनफोर्ड रैखिक त्वरक केंद्र पर प्रयोग होने तक उनके भौतिक अस्तित्व के बहुत कम प्रमाण थे। त्वरक प्रयोगों ने सभी छह फ्लेवरों के लिए प्रमाण प्रदान किए। टॉप क्वार्क सबसे अंत में फर्मीलैब पर 1995 में खोजा गया। .

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क्वांटीकरण (भौतिकी)

भौतिकी में क्वांटीकरण भौतिकीय घटनाओं की चिरसम्मत समझ को नये रूप से जिसे क्वांटम यांत्रिकी कहते हैं के रूप में व्यक्त करने की प्रक्रिया है। यह चिरसम्मत क्षेत्र सिद्धान्त को क्वांटम क्षेत्र सिद्धान्त निर्माण की प्रक्रिया है। यह चिरसम्मत यांत्रिकी से क्वांटम यांत्रिकी के विकास के लिए व्यपकीकरण की प्रक्रिया है। क्षेत्र क्वांटीकरण को "विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र के क्वांटीकरण" के रूप में भी देखा जाता है, जहां फोटोन को क्षेत्र के क्वांटा (उदाहरण के लिए प्रकाश क्वांटा के रूप में)। यह कण भौतिकी, नाभिकीय भौतिकी, संघनित पदार्थ भौतिकी और क्वांटम प्रकाशिकी के सिद्धांतों का आधार है। मूलभूत अवधारणा यह है कि भौतिक राशि क्वांटीकृत हो सकती है जिसे "क्वांटीकरण की अवधारणा" से निर्दिष्ट किया जाता है। इसका मतलब यह है कि परिमाण केवल कुछ विविक्त मान प्राप्त कर सकता है। .

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अति तरलता

हिलियम II सतह से 'रेंगते हुए' अपना 'स्तर' स्वयं ढूंढ़ लेती है। कुछ समय बाद देखेंगे कि चित्र में दिखाये गये दोनों पात्रों में द्रव हिलियम का स्तर एकसमान हो जायेगा। अति तरलता (Superfluidity) पदार्थ की वह अवस्था है जिसमें पदार्थ ऐसा व्यवहार करता है जैसे वह शून्य श्यानता का द्रव हो। मूलतः यह गुण द्रव हिलियम में पाया गया था किन्तु अति-तरलता का गुण खगोलभौतिकी, उच्च ऊर्जा भौतिकी, तथा क्वाण्टम गुरुत्व के सिद्धान्तों में भी में भी देखने को मिलता है। यह परिघटना बोस-आइंस्टाइन संघनन से सम्बन्धित है। किन्तु सभी बोस-आइंस्टाइन द्राव (condensates) अति तरल नहीं कहे जा सकते हैं और सभी अति तरल बोस-आइंस्टाइन द्राव नहीं होते। श्रेणी:द्रव गतिकी श्रेणी:पदार्थ प्रावस्थाएँ श्रेणी:उदीयमान प्रौद्योगिकी.

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अतुल गुर्टु

अतुल गुर्टु एक भारतीय उच्च ऊर्जा भौतिक विज्ञानी हैं। उन्होंने १९७१ में टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान, मुम्बई से जुड़ गये और २०११ में एक लम्बे कण भौतिकी शोध के पश्चात् एक वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत हुये। .

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अदिश बोसॉन

अदिश बोसॉन (Scalar boson) उन बोसॉनों को कहा जाता है जिनका प्रचक्रण शून्य होता है। बोसॉन का अर्थ पूर्णांक प्रचक्रण से होता है; और अदिश इसके मान को शून्य 0 बना देता है। "अदिश बोसॉनों" की अवधारणा क्वांटम क्षेत्र सिद्धान्त की देन है। यह लोरेन्ट्ज रुपान्तरण सम्बंधी गुणधर्म को उल्लिखित करता है। .

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अनुप्रस्थ द्रव्यमान

अनुप्रस्थ द्रव्यमान कण भौतिकी में उपयोग की जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण भौतिक राशी है जिस रूप में यह z दिशा के अनुदिश लोरेन्ट्स अभिवर्धन में निश्चर रहती है। प्राकृत विमा में हैड्रोन संघट्ट भौतिक विज्ञानी अनुप्रस्थ द्रव्यमान की अलग परिभाषा का उपयोग करते हैं, किसी कण के द्वि-कण क्षय की स्थिति में: अतः इसी प्रकार, द्रव्यमान रहित क्षय कणों के लिए, जहाँ m_1 .

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अवपरमाणुक कण

अवपरमाणुक कणों का सोपान (हाइरार्की) भौतिकी में अवपरमाणुक कण (subatomic particles) उन कणों को कहते हैं जिनसे मिलकर न्युक्लियॉन (nucleons) और परमाणु बने हैं। अवपरमाणुक कण दो प्रकार के हैं -.

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उत्क्रम समस्या

सैद्धान्तिक भौतिकी में उत्क्रम समस्या (English: Hierarchy Problem हाइरार्की समस्या) दुर्बल नाभिकीय व गुरुत्व बलों के मध्य विशाल भिन्नता है। भौतिक वैज्ञानिक अभी तक इसको समझा पाने में असमर्थ हैं, जैसे - दुर्बल बल, गुरुत्व से 1032 (१०३२) गुणा प्रबल क्यों हैं। .

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B − L

उच्च ऊर्जा भौतिकी में B − L (उच्चारण "बी माइनस एल" या "बी ऋण एल") बेरिऑन संख्या (B) और लेप्टॉन संख्या (L) का अन्तर है। .

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ROOT (सॉफ्टवेयर)

रूट (अंग्रेजी: ROOT) सर्न द्वारा विकसित किया गया एक वस्तु उन्मुख प्रोग्राम और लाइब्रेरी है। यह मूलतः कण भौतिकी में आँकड़े विश्लेषण के लिए तैयार किया गया और इस क्षेत्र के कई विशेष गुण रखता है, लेकिन यह खगोल शास्त्र और डाटा माइनिंग जैसे अन्य अनुप्रयोगों में भी उपयोग होता है। .

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X (आवेश)

कण भौतिकी में, X-आवेश (अथवा साधारणतया X) SO(10) महा एकीकृत सिद्धांत से सम्बध एक संरक्षित क्वान्टम संख्या है। X बेरिऑन संख्या B और लेप्टॉन संख्या L के अन्तर (''B'' − ''L'') से सम्बंधित है और दुर्बल हाइपर आवेश YW से निम्न संबंध है: .

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X और Y बोसॉन

कण भौतिकी में X और Y बोसॉन (अथवा कभी-कभी संयुक्त रूप से केवल X बोसॉन भी कहा जाता है) W और Z बोसॉनों के सदृश परिकल्पित मूलकण हैं, लेकिन यहाँ कार्यरत बल भिन्न है जिसे ग्रांड यूनिफाइड सिद्धान्त में जॉर्जी-ग्लेशो मॉडल ने प्रागुक्त किया है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

मूल कणों की भौतिकी, उच्च ऊर्जा भौतिकी, उच्च-ऊर्जा भौतिकी

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