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ओमकारा

सूची ओमकारा

ओमकारा (उर्दू: امکارا) वर्ष 2006 की अपराध-ड्रामा पर आधारित हिंदी भाषा की भारतीय फिल्म है, जिसे विशाल भारद्वाज ने निर्देशन एवं सह-लेखन किया है। फिल्म शेक्सपियर की कृति 'ओथेलो' का आधुनिक सिनेरूपांतरण है। मुख्य भूमिकाओं में अजय देवगन, सैफ अली खान, विवेक ओबराॅय एवं करीना कपूर के साथ सह-भूमिकाओं में नसीरुद्दीन शाह, कोंकणा सेन शर्मा और बिपाशा बसु सम्मिलित हैं। निर्देशक विशाल भारद्वाज ने संगीत निर्देशन के साथ फिल्म की पार्श्वसंगीत भी तैयार किया है, और गीत दिए है गुलजार ने। फिल्म की शुटआउट राज्य उत्तरप्रदेश के पश्चिमी प्रांत, मेरठ में की गई है। फिल्म को मारशे-ड्यु फिल्म सेक्शन के सहयोग से कांस फिल्म उत्सव में ट्रेलर प्रदर्शन के साथ फिल्म ओमकारा के निर्माण पर किताब का विमोचन भी हुआ। कायरो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव में पर्दापर्ण के साथ ही भारद्वाज को बतौर सिनेमा निर्देशक का उत्कृष्ट कलात्मक सेवादान से शोभित किया गया। कारा फिल्म उत्सव में फिल्म को तीन पुरस्कार मिले फिर एशियन फेस्टिवल के प्रथम फिल्म के साथ तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार एवं सात फिल्मफेयर पुरस्कार से भी विजयी हुई। भारद्वाज के लोकप्रिय शेक्सपियर के नाट्य-कृतियों के देशी रूपांतरण में यह उनका दूसरा संस्करण है। इससे पूर्व विशाल ने वर्ष 2003 में 'मकबूल' और 2014 में 'हैदर' का भी बतौर निर्माण-निर्देशन किया जो क्रमशः 'मेकबैथ' एवं 'हेमलेट' पर आधारित था। भारद्वाज ने अन्य कृतियों जैसे लेखक रस्किन बाॅण्ड की दो किताब पर आधारित क्रमशः 'द ब्लू अंब्रेला' और 'सात खून माफ' का भी निर्माण किया। .

19 संबंधों: एक मामूली आदमी, दीपक डोबरियाल, नसीरुद्दीन शाह, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार, बिपाशा बसु, भारतीय सिनेमा, माचिस (1996 फ़िल्म), स्टार स्क्रीन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार, सैफ़ अली ख़ान, विशाल भारद्वाज, विवेक ओबेरॉय, गुलज़ार (गीतकार), करीना कपूर, कोंकणा सेन शर्मा, अस्मिता, अजय देवगन द्वारा अभिनीत फ़िल्में

एक मामूली आदमी

न स डी सादगी इकिरू अका १९५२ भलाई और दया अशोक लाल का नाटक 'एक मामूली आदमी' अकिरा कुरोसावा की फ़िल्म ‘इकिरू’(Ikiru, aka To Live, 1952) से प्रेरित है। 'एक मामूली आदमी 'नाटक को निदेशक अरविन्द गौड़ ने गत दशक में ८० से अधिक बार मंचित किया है। अस्मिता थियेटर ग्रुप ने 'एक मामूली आदमी' का मंचन रा ना वि (NSD) के भारत रंग महोत्सव और सन्गीत नाटक अकादमी महोत्सव मे भी किया है। स्वदेश दीपक के कोर्ट मार्शल के बाद निदेशक अरविन्द गौड़ का यह सर्वाधिक चर्चित व सफल नाटक है। 'एक मामूली आदमी' के नायक ईश्वर चन्द अवस्थी की भूमिका दिल्ली-६ फिल्म से चर्चित,ओमकारा के लिए फिल्म फेयर अवार्ड पाने वाले अभिनेता दीपक डोबरियाल ने की है। .

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दीपक डोबरियाल

दीपक डोबरियाल - नई पीढ़ी के युवा सिनेमा अभिनेता, फिल्म 'दिल्ली -6' मे जलेबी वाला और ओमकारा मे राज्जू से चर्चित। अरविन्द गौड़ के निर्देशन मे ६ वर्ष तक नाटको मे काम करने के बाद गत सालो मे दीपक डोबरियाल ने अपने ताजगी भरे सनसनाते अभिनय से बॉलीवुड मे अलग पहचान बनाई है। 'मकबूल' से लेकर ओमकारा, 1971, शौर्य, दिल्ली-६ तक हर फिल्म में दीपक डोबरियाल ने खुद को साबित किया है। दीपक को ओमकारा के लिये फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला है। .

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नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज हो। नसीर की काबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी। नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की मुख्य धारा या व्यापारिक फ़िल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है। नसीर अपने शानदार अंदाज से मुख्य धारा के चहेते सितारे बन गए, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से जिंदा कर दिया। ये सितार जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। उसकी कॉमेडी ने पब्लिक को खूब गुदगुदाया तो एक्शन में भी उसका अलग ही अंदाज नजर आया। मुख्य धारा सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत 1980 में आई फ़िल्म 'हम पांच' से हुई। फ़िल्म भले ही व्यापारिक थी, लेकिन इसमें नसीर के अभिनय की गहराई समानांतर सिनेमा वाली फ़िल्मों से कम नहीं थी। गुलामी को अपनी तकदीर मान चुके एक गांव में विद्रोह की आवाज बुलंद करते नौजवान के किरदार में नसीर ने जान फूंक दी। हालांकि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही और एक व्यापारिक एक्टर के तौर पर सफलता साबित करने के लिए नसीर को टिकट खिड़की पर भी बिकाऊ बनने की जरूरत थी। और उनके लिए ये काम किया 'जाने भी दो यारों' ने। बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट कॉमेडी फ़िल्मों में शुमार 'जाने भी दो यारों' में रवि वासवानी और नसीर की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फ़िल्म बेहद कामयाब रही। लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी 'मासूम'। बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती 'मासूम' में नसीर ने कमाल की अदाकारी से ना केवल खूब वाहवाही बटोरी बल्कि फ़िल्म भी सुपरहिट हुई और नसीर को एक स्टार का दर्जा मिल गया। नसीर के इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फ़िल्म 'कर्मा' ने। फ़िल्म में नसीर के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट "दिलीप कुमार भी थे। और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे। 1987 में गुलजार की 'इजाजत' नसीर के लिए कामयाबी का एक और जरिया बन कर आई। एक जज्बाती कहानी, बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और यादगार संगीत। 'इजाजत' ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की और बतौर व्यापारिक एक्टर नसीर का रुतबा और बढ़ गया। 'त्रिदेव' जैसी सुपरहिट फ़िल्म देकर, 90 का दशक आते-आते नसीर ने व्यापारिक फ़िल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी। 2003 में आई हॉलीवुड फ़िल्म 'द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन' में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदार निभाया तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी फ़िल्म 'खुदा के लिए' में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है। लेकिन नसीर अपनी काबिलियत को खुशकिस्मती का नाम देते हैं। वो कहते हैं, 'मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं व्यापारिक फ़िल्मों से अभी संतुष्ट नहीं हूँ।' 2008 में आई 'अ वेडनेसडे' ने नसीर की कमाल की अदाकारी का एक और नजराना पेश किया तो 'इश्किया', 'राजनीति', 'सात खून माफ' और 'डर्टी पिक्चर' जैसी फ़िल्मों के जरिए नसीरुद्दीन ने बार-बार ये साबित किया कि एक सच्चे कलाकार को उम्र बांध नहीं सकती। हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म 'मैक्सिमम' में भी नसीर की जोरदार एक्टिंग ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है। आज के नसीरुद्दीन शाह की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई रोल है जो उनपर फिट नहीं बैठे। आखिर वो एक्टर ही ऐसे हैं कि हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक समय था जब नसीर को दो रोल करने की इच्छा थी जो उस समय उन्हें नहीं मिले। लेकिन बाद 'मिर्जा गालिब', दूरदर्शन धारावाहिक में उन्हें दो रोल मिले जिसमें उन्होंने ग़ालिब का वास्तविक चित्र उभारने की कोशिश की। लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि गालिब बनने की नसीर की तमन्ना उनके दिल में एक अधूरे ख्वाब की तरह अटकी हुई थी। 1988 में सीरियल बनाने से सालों पहले गुलजार साहब गालिब पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उस फ़िल्म में गालिब के तौर पर उनकी दिली इच्छा संजीव कुमार को लेने की थी। नसीर साहब ने इस बारे में बताते हुए कहा, 'मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फ़िल्म में आपको मुझे लेना चाहिए।' लेकिन संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ गया था और सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी। फिर उसके बाद गुलजार साहब के दिल में उस रोल के लिए अमिताभ के नाम का खयाल आया। लेकिन वहां भी बात नहीं बनी और आखिरकार गालिब पर फ़िल्म बनाने का प्लान ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। शायद उस वक्त गुलजार को भी नहीं मालूम होगा कि इस किरदार पर तो तकदीर ने किसी और का नाम लिख दिया है। कई साल बाद गुलजार साहब ने एक दिन नसीर को फोन लगाया। नसीर ने बताया, 'एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे। मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया गालिब पर है। मैंने बिना कुछ सोचे फौरन हां कह दिया।' साल 1982 में 'गांधी' के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने 'हे राम' बनाई, जिसने नसीर साहब की गांधी बनने की तमन्ना को भी पूरा कर दिया। सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने ना केवल गांधी के किरदार में जान डाल दी। बेजोड़ एक्टिंग और गजब की क्षमता से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी छाप नकारात्मक भूमिकाओं में भी छोड़ी। समानांतर सिनेमा का ये हीरो कमर्शियल फ़िल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा। हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने। वैसे खलनायक के तौर पर उनकी एक दो फ़िल्में नहीं थीं। 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी, लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी। नसीर की असली पहचान समानांतर सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी जैसे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को एक नई पहचान दी। 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी। .

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फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार

फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका पुरस्कार हिंदी फिल्मों के लिए वार्षिक फिल्मफेयर पुरस्कार के हिस्से के रूप में फिल्मफेयर द्वारा दिया जाने वाला पुरस्कार है। यह किसी महिला पार्श्व गायिका को दिया जाता है जिसने फिल्म गीत में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। यद्यपि पुरस्कार समारोह की स्थापना 1954 में हुई थी लेकिन 1959 में सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक की श्रेणी शुरू की गई थी। यह पुरस्कार 1967 तक पुरुष और माहिला गायक दोनों के लिए शुरू में एक ही था। इस श्रेणी को अगले वर्ष विभाजित किया गया था और जब से पुरुष और महिला गायक को अलग पुरस्कार से प्रस्तुत किया जाता है। .

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फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार

फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका द्वारा प्रति वर्ष दिया जाने वाला पुरस्कार है। यह हिन्दी फ़िल्म में बेहतर अभिनय के लिये सहायक अभिनेत्री को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार समारोह में दिया जाता है। .

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फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार

फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार‎ फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका द्वारा प्रति वर्ष दिया जाने वाला पुरस्कार है। यह हिन्दी फ़िल्म में सबसे बेहतर अभिनय के लिये फ़िल्म के खलनायक को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार समारोह में दिया जाता है। यद्यपि फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों कि शुरुआत 1953 में ही हो गई थी पर इस श्रेणी में खलनायकों को पुरस्कार देने का सिलसिला 1992 से ही शुरु हुआ। .

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फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार

फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका द्वारा प्रति वर्ष दिया जाने वाला पुरस्कार है। .

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बिपाशा बसु

बिपाशा बसु (जन्म: ७ जनवरी, १९७९) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। .

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भारतीय सिनेमा

भारतीय सिनेमा के अन्तर्गत भारत के विभिन्न भागों और भाषाओं में बनने वाली फिल्में आती हैं जिनमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और बॉलीवुड शामिल हैं। भारतीय सिनेमा ने २०वीं सदी की शुरुआत से ही विश्व के चलचित्र जगत पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।। भारतीय फिल्मों का अनुकरण पूरे दक्षिणी एशिया, ग्रेटर मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व सोवियत संघ में भी होता है। भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से अब संयुक्त राज्य अमरीका और यूनाइटेड किंगडम भी भारतीय फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार बन गए हैं। एक माध्यम(परिवर्तन) के रूप में सिनेमा ने देश में अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की और सिनेमा की लोकप्रियता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सभी भाषाओं में मिलाकर प्रति वर्ष 1,600 तक फिल्में बनी हैं। दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के जनक के रूप में जाना जाते हैं। दादा साहब फाल्के के भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के प्रतीक स्वरुप और 1969 में दादा साहब के जन्म शताब्दी वर्ष में भारत सरकार द्वारा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना उनके सम्मान में की गयी। आज यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित और वांछित पुरस्कार हो गया है। २०वीं सदी में भारतीय सिनेमा, संयुक्त राज्य अमरीका का सिनेमा हॉलीवुड तथा चीनी फिल्म उद्योग के साथ एक वैश्विक उद्योग बन गया।Khanna, 155 2013 में भारत वार्षिक फिल्म निर्माण में पहले स्थान पर था इसके बाद नाइजीरिया सिनेमा, हॉलीवुड और चीन के सिनेमा का स्थान आता है। वर्ष 2012 में भारत में 1602 फ़िल्मों का निर्माण हुआ जिसमें तमिल सिनेमा अग्रणी रहा जिसके बाद तेलुगु और बॉलीवुड का स्थान आता है। भारतीय फ़िल्म उद्योग की वर्ष 2011 में कुल आय $1.86 अरब (₹ 93 अरब) की रही। जिसके वर्ष 2016 तक $3 अरब (₹ 150 अरब) तक पहुँचने का अनुमान है। बढ़ती हुई तकनीक और ग्लोबल प्रभाव ने भारतीय सिनेमा का चेहरा बदला है। अब सुपर हीरो तथा विज्ञानं कल्प जैसी फ़िल्में न केवल बन रही हैं बल्कि ऐसी कई फिल्में एंथीरन, रा.वन, ईगा और कृष 3 ब्लॉकबस्टर फिल्मों के रूप में सफल हुई है। भारतीय सिनेमा ने 90 से ज़्यादा देशों में बाजार पाया है जहाँ भारतीय फिल्मे प्रदर्शित होती हैं। Khanna, 158 सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, अडूर गोपालकृष्णन, बुद्धदेव दासगुप्ता, जी अरविंदन, अपर्णा सेन, शाजी एन करुण, और गिरीश कासरावल्ली जैसे निर्देशकों ने समानांतर सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और वैश्विक प्रशंसा जीती है। शेखर कपूर, मीरा नायर और दीपा मेहता सरीखे फिल्म निर्माताओं ने विदेशों में भी सफलता पाई है। 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रावधान से 20वीं सेंचुरी फॉक्स, सोनी पिक्चर्स, वॉल्ट डिज्नी पिक्चर्स और वार्नर ब्रदर्स आदि विदेशी उद्यमों के लिए भारतीय फिल्म बाजार को आकर्षक बना दिया है। Khanna, 156 एवीएम प्रोडक्शंस, प्रसाद समूह, सन पिक्चर्स, पीवीपी सिनेमा,जी, यूटीवी, सुरेश प्रोडक्शंस, इरोज फिल्म्स, अयनगर्न इंटरनेशनल, पिरामिड साइमिरा, आस्कार फिल्म्स पीवीआर सिनेमा यशराज फिल्म्स धर्मा प्रोडक्शन्स और एडलैब्स आदि भारतीय उद्यमों ने भी फिल्म उत्पादन और वितरण में सफलता पाई। मल्टीप्लेक्स के लिए कर में छूट से भारत में मल्टीप्लेक्सों की संख्या बढ़ी है और फिल्म दर्शकों के लिए सुविधा भी। 2003 तक फिल्म निर्माण / वितरण / प्रदर्शन से सम्बंधित 30 से ज़्यादा कम्पनियां भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध की गयी थी जो फिल्म माध्यम के बढ़ते वाणिज्यिक प्रभाव और व्यसायिकरण का सबूत हैं। दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग दक्षिण भारत की चार फिल्म संस्कृतियों को एक इकाई के रूप में परिभाषित करता है। ये कन्नड़ सिनेमा, मलयालम सिनेमा, तेलुगू सिनेमा और तमिल सिनेमा हैं। हालाँकि ये स्वतंत्र रूप से विकसित हुए हैं लेकिन इनमे फिल्म कलाकारों और तकनीशियनों के आदान-प्रदान और वैष्वीकरण ने इस नई पहचान के जन्म में मदद की। भारत से बाहर निवास कर रहे प्रवासी भारतीय जिनकी संख्या आज लाखों में हैं, उनके लिए भारतीय फिल्में डीवीडी या व्यावसायिक रूप से संभव जगहों में स्क्रीनिंग के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं। Potts, 74 इस विदेशी बाजार का भारतीय फिल्मों की आय में 12% तक का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसके अलावा भारतीय सिनेमा में संगीत भी राजस्व का एक साधन है। फिल्मों के संगीत अधिकार एक फिल्म की 4 -5 % शुद्ध आय का साधन हो सकते हैं। .

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माचिस (1996 फ़िल्म)

माचिस गुलज़ार द्वारा निर्देशित 1996 की एक हिन्दी फ़िल्म है, जिसके निर्माता आर.वी पंडित हैं। ओम पुरी, तब्बू, चन्द्रचूड़ सिंह और जिमी शेरगिल फ़िल्म में मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह फ़िल्म 1980 के दशक के मध्य पंजाब में सिख विद्रोह के समय में एक सामान्य व्यक्ति के आतंकवादी बन जाने के सफर पर केंद्रित है। फ़िल्म का शीर्षक "माचिस" एक अलंकार की तरह है, जो दर्शाता है कि कोई भी युवा माचिस की तरह होता है, जो राजनीतिज्ञों या नीति-निर्माताओं की खामियों की वजह से कभी भी जल सकता है। माचिस को समीक्षकों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई, तथा बॉक्स आफिस पर भी यह सफल रही। 2.5 करोड़ रुपये के बजट पर बनी इस फ़िल्म ने कुल 6.38 करोड़ रुपये का व्यापार किया, और इसे बॉक्स आफिस इंडिया द्वारा "एवरेज" घोषित किया गया। गुलज़ार के निर्देशन तथा विशाल भारद्वाज के संगीत फ़िल्म के प्रमुख बिंदु थे। रिलीस के कई वर्षों बाद तक भी फ़िल्म के कई गीत, प्रमुखतः "चप्पा चप्पा चरखा चले" तथा "छोड़ आये हम वो गालियां" एफएम रेडियो या टीवी पर सुने जाते थे। विशाल भारद्वाज ने भी इस फ़िल्म के बाद निर्देशन के क्षेत्र में हाथ आजमाना प्रारम्भ किया और मक़बूल, ओमकारा तथा हैदर जैसी प्रसिद्ध फिल्मों का निर्देशन किया। .

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स्टार स्क्रीन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार

स्टार स्क्रीन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार का चुनाव फ़िल्म उद्योम के एक विशिष्ट निर्णायक-मंडल द्वारा किया जाता है। विजेताओं की घोषणा जनवरी में होती है। सबसे पहले यह पुरस्कार माधुरी दीक्षित को 1994 में दिया गया। .

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सैफ़ अली ख़ान

सैफ़ अली ख़ान (जन्म: 16 अगस्त, 1970) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। उनके पिता मंसूर अली ख़ान पटौदी एक मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी एवं माँ शर्मिला टैगोर हिन्दी फ़िल्मों की मशहूर अभिनेत्री हैं। उनके पूर्वज पटौदी रियासत के नवाब थे | उन्होंने अपना शालेय जीवन लॉरेंस स्कूल, सनावर और लाकर्स पार्क स्कूल, हेर्टफोर्डशिरे,इंग्लैंड में पूरा किया | जिसके बाद महाविद्यालीन पढाई के लिए वह विंचेस्टर कॉलेज इंडिपेंडेंट स्कूल फॉर बॉयज इन यूनाइटेड किंगडम चले गए | अपनी पढ़ाई पूरी कर लौटने के बाद उन्होंने २ महीनो तक दिल्ली स्थित एक एडवरटाइजिंग फर्म के लिए काम किया | उसके बाद उनके पारिवारिक मित्र के कहने पर उन्होंने कपड़ो के ब्रांड "ग्वालियर सुइटिंग्स" के लिए कुछ विज्ञापनों में काम किया | पर किसी कारणवश वह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया और उन्हें मुंबई आना पड़ा | जहां से उन्होंने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की | उनकी पहली फिल्म "परंपरा" १९९२ में रिलीज़ हुई थी, जो बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं कर पायी। उन्होंने 2010 में पद्म श्री को चौथा सबसे बड़ा भारतीय नागरिक पुरस्कार प्राप्त किया। .

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विशाल भारद्वाज

विशाल भारद्वाज भारतीय हिन्दी फिल्म उद्योग बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध संगीतकार, गीतकार, पटकथा लेखक व निर्देशक हैं। उन्हे गॉडमदर और इश्किया के लिये सर्वश्रेष्ठ संगीत के राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। विशाल के शब्दों मे "गुलजार" उनके प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। .

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विवेक ओबेरॉय

विवेक ओबरोय एक हिन्दी फिल्म अभिनेता हैं। विवेक ऑबेरॉय का जन्म 3 सितम्बर 1976 को एक भारतिय परिवार में हुआ था। राम गोपाल वर्मा की फ़िल्म कंपनी (2002) के साथ उन्होंने अपने करियर की शुरूवात की है। इस फ़िल्म में अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट मेल डेब्यू के लिए और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए पुरस्कृत किया गया है। फ़िल्म रक्त चरित्र और क्रिश 3 के अभिनय के लिए उनके अभिनय की प्रशंसा हुई। .

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गुलज़ार (गीतकार)

ग़ुलज़ार नाम से प्रसिद्ध सम्पूर्ण सिंह कालरा (जन्म-१८ अगस्त १९३६) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं। इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। उनकी रचनाए मुख्यतः हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं, परन्तु ब्रज भाषा, खङी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी इन्होने रचनाये की। गुलजार को वर्ष २००२ में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष २००४ में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष २००९ में डैनी बॉयल निर्देशित फिल्म स्लम्डाग मिलियनेयर में उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हे सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार पुरस्कार मिल चुका है। इसी गीत के लिये उन्हे ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। .

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करीना कपूर

करीना कपूर (जन्म: २१ सितम्बर १९८०) बॉलीवुड फिल्मों में काम करने वाली एक भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री हैं। कपूर फ़िल्म परिवार में जन्मी करीना ने अभिनय की शुरुआत साल २००० में रिलीज़ हुई फ़िल्म रिफ्युज़ी के साथ की। इस फ़िल्म में अपने अभिनय के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट फीमेल डेब्यू यानि उस साल अपने अभिनय जीवन की शुरुआत करने वाली अभिनेत्रियों में से सर्वश्रेष्ठ अभिनत्री का पुरस्कार भी मिला। साल २००१ में, अपनी दूसरी फ़िल्म मुझे कुछ कहना है रिलीज़ होने के साथ ही, कपूर को अपनी पहली व्यावसायिक सफलता मिली। इसके बाद इसी साल आई करन जौहर की नाटक से भरपूर फ़िल्म कभी खुशी कभी ग़म में भी करीना नज़र आयीं। ये फ़िल्म उस साल विदेशों में सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली भारतीय फ़िल्म बन गई और साथ ही करीना के लिए ये तब तक की सबसे बड़ी व्यावसायिक सफलता थी। २००२ और २००३ में लगातार कई फिल्मों की असफलता और एक जैसी भूमिकाएं करने की वजह से करीना को समीक्षालों से काफ़ी नकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलीं, उसके बाद करीना ने एक जैसी भूमिकाओं या टाईपकास्ट (typecast) से बचने के लिए ज्यादा मेहनत वाली और कठिन भूमिकाएं लेना शुरू कर दिया। फ़िल्म चमेली (Chameli) में देह व्यापार करने वाली एक लड़की की भूमिका ने उनके करियर की दिशा बदल दी। इस फ़िल्म में अपने अभिनय के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर स्पेशल परफोर्मेंस अवार्ड या फ़िल्मफेयर विशिष्ट प्रदर्शन पुरस्कार (Filmfare Special Performance Award) भी मिला। इसके बाद, फ़िल्म समीक्षकों द्वारा बहुप्रशंसित फिल्मों देव और ओंकारा में अभिनय के लिए उन्हें फिल्मफेयर समारोह में आलोचकों की दृष्टि से दो सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार (Critics Awards for Best Actress) भी मिले। २००४ और २००६ के बीच अभिनय के क्षेत्र में इतनी अलग-अलग तरह की भूमिकाएं करने के बाद उन्हें बहुमुखी प्रतिभा की धनी अभिनेत्री के रूप में जाना जाने लगा। वर्ष २००७ में, कपूर ने व्यावसायिक दृष्टि से बेहद सफल रही कॉमेडी-रोमांस फ़िल्म जब वी मेट में अपने प्रदर्शन के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार जीता.बॉक्स ऑफिस पर कमाई करने के मामले में भले ही उनकी फिल्मों का प्रदर्शन काफी अलग अलग रहा हो लेकिन करीना ख़ुद को हिन्दी फ़िल्म उद्योग में आज कल की अग्रणी फ़िल्म अभिनेत्री के रूप में स्थापित करने में सफल रही हैं। .

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कोंकणा सेन शर्मा

कोंकणा सेन शर्मा (কঙ্কনা সেন শর্মা(2कोंग्कोना शेन शोर्मा, हिंदी:कोंकणा सेन शर्मा), का जन्म 3 दिसम्बर 1979 को हुआ था, वह एक भारतीय अभिनेत्री हैं। वह फिल्म निर्माता और अभिनेत्री अपर्णा सेन की बेटी हैं। शर्मा मुख्यतया भारतीय कलागृहों और स्वतंत्र फिल्मों में दिखती हैं और अपने क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों ने उन्हें समकालीन समानांतर सिनेमा में एक उत्कृष्ट अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर दिया है। इन्होने फिल्म इंदिरा (1983) से एक बाल कलाकार के रूप में शुरुआत की थी, कोंकणा ने एक वयस्क अभिनेत्री के रूप में शुरुआत बंगाली फिल्म एक जे आछे कन्या (2000) से की। पहली बार अंग्रेजी फिल्म मिस्टर एंड मिसेज़ अय्यर (2002) द्वारा लोगों का ध्यान उनकी ओर गया, इस फिल्म का निर्देशन उनकी माँ ने किया था और इस फिल्म में अपने अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला। इन्हें नाटकीय फिल्म पेज 3 (2005) के द्वारा दर्शकों के बीच व्यापक पहचान मिली और तब से वह कई फिल्मों में अभिनय कर चुकी हैं, जिनमे से अधिकांश के लिए उन्हें व्यवसायिक सफलता से अधिक आलोचनात्मक प्रसंशा मिली। उन्हें फिल्म ओमकारा (2006) और लाइफ इन ए मेट्रो (2007) के लिए लगातार दो बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। ओमकारा में अपने अभिनय के लिए उन्हें दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री की श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. .

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अस्मिता

अस्मिता दिल्ली स्थित रंगमंच कर्मियों की एक नाट्य संस्था (थियेटर ग्रुप) है। अस्मिता नाट्य संस्था ने नुक्कड़ नाटकॉ के साथ- साथ दो दशकों में 60 से अधिक मंच नाटक किये है। संस्था सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से प्रासंगिक व समकालीन मुद्दों पर नाटक करने के लिए प्रतिबद्ध है। इन दिनो अरविन्द गौड़ अस्मिता थियेटर ग्रुप के निदेशक के रूप मे कार्यरत है। .

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अजय देवगन द्वारा अभिनीत फ़िल्में

अजय देवगन एक भारतीय बॉलीवुड फिल्म अभिनेता है, इनकी पत्नी बॉलीवुड अभिनेत्री काजोल है। इन्होंने भारतीय सिनेमा जगत दर्जनों फिल्मों में अभिनय किया है। अजय देवगन ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत सन १९९१ में बनी फूल और काँटे फ़िल्म से की थी। इन्होंने सबसे ज्यादा १९९२ के साल में फिल्मों में अभिनय किया था उस साल इन्होंने ८ सुपरहिट फिल्मों में कार्य किया था। २०१७ में इनकी फिल्म बादशाहो प्रदर्शित हुई। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

ओमकारा (2006 फ़िल्म)

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