1917 ई. में भीलों व गरासियों ने मिलकर दमनकारी नीति व बेगार के विरुद्ध महाराणा को पत्र लिखा। इसका कोई परिणाम नहीं निकालता देखकर 1921 में बिजौलिया के किसान आन्दोलन से प्रभावित होकर भीलों ने पुनः महाराणा को शिकायत की। इन सभी अहिंसात्मक प्रयासों को जब कोई परिणाम नहीं निकला तो भोमट के खालसा क्षेत्र के भीलों ने लगाने व बेगार चुकाने से इनकार कर दिया। 1921 ई में मोतीलाल तेजावत ने इस आन्दोलन को नेतृतव प्रदान किया। इस आन्दोलन को जनजातियों में राजनितिक जागरण का प्रतिक माना जाता है। यह आन्दोलन भोमट क्षेत्र के अतिरिक्त सिरोही व गुजरात राज्यों में भी फैला।.
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