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उपन्यासकार

सूची उपन्यासकार

उपन्यास के लेखक को उपन्यासकार कहते हैं। यह साहित्य की एक गद्य विधा है जिसमें किसी कहानी को विस्तृत रूप से कहा जाता है।। यह साहित्य की अत्यंत प्रचिलित विधा है इसलिये उपन्यासकार भी बहुत से मिलते हैं। उनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार से हैं - प्रेमचन्द नरेन्द्र कोहली शिवानी आचार्य चतुरसेन चार्ल्स डिकेंस आचार्य गणपतिचंद्र गुप्त ने उपन्यासों के वैज्ञानिक वर्गीकरण की चर्चा करते हुए निम्न वर्गीकरण किया है। श्रेणी:साहित्यकार.

68 संबंधों: चार्ल्स डिकेंस, चिनुआ अचेबे, नित्य प्रकाश, नजीब महफ़ूज़, नीलम सक्सेना चंद्रा, पंकज बिष्ट, प्रभा खेतान, प्रेमचंद, प्रीति सिंह, फराज काजी, बिभूतिभूषण बंधोपाध्याय, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, भीमनिधि तिवारी, मधु कांकरिया, मिखाइल शोलोखोव, मुरासाकि शिकिबु, यशपाल, यान मार्टल, रबीन्द्रनाथ ठाकुर, रमेश चन्द्र झा, रशीद जहाँ, रामदरश मिश्र, रामवृक्ष बेनीपुरी, रांगेय राघव, रविंदर सिंह, रवीन्द्र कालिया, लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा, शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय, शिवानी, शोभा डे, समीना अली, सागर प्रकाश खतनानी, सुखबीर (पंजाबी उपन्यासकार), से॰रा॰ यात्री, सी वी रामन पिल्लै, सीता राम गोयल, हरमन मेलविल, हरमन हेस, हार्पर ली, हिमांशु श्रीवास्तव, हैरियट बीचर स्टो, जयशंकर प्रसाद, वर्जिनिया वुल्फ़, विभूति नारायण राय, विश्व-भारती विश्वविद्यालय, विक्रम सेठ, ख़्वाजा अहमद अब्बास, खादीज़ा मुमताज़, खुशवन्त सिंह, गुनाहों का देवता, ..., आचार्य चतुरसेन शास्त्री, आर्थर कॉनन डॉयल, आशापूर्णा देवी, इंदु मेनन, कन्नदासन, कमला सांकृत्यायन, कमला सुरय्या, कानन कुसुम (जयशंकर प्रसाद की कृति), काज़ुओ इशिगुरो, किरण देसाई, केरला साहित्योत्सव, अनुजा चौहान, अशोक आत्रेय, अशोकमित्रन, अगाथा क्रिस्टी, उन्निकृष्णन पुथूर, उपेन्द्रनाथ अश्क, १० अक्टूबर सूचकांक विस्तार (18 अधिक) »

चार्ल्स डिकेंस

चार्ल्स डिकेंस चार्ल्स डिकेंस (७ फ़रवरी १८१२ – ९ जून १८७०), विक्टोरियन युग के सबसे लोकप्रिय अंग्रेजी उपन्यासकार थे, साथ ही एक सशक्त सामाजिक आंदोलन के सदस्य भी थे। चार्ल्स डिकेंस की लोकप्रियता इसी तथ्य से आंकी जा सकती है कि उनके उपन्यास और लघु कथाएँ आज तक 'प्रिंट' से बाहर ही नहीं गये। चार्ल्स के लगभग दर्जन भर प्रमुख उपन्यास, लघु कथाओं की एक बड़ी संख्या, अनेकों नाटक और कई गैर कल्पना किताबें आज भी सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। अपने साहित्य से उन्होंने समकालीन अंग्रेजी समाज का मनोरंजन ही नहीं किया, वरन् उसे दिशा भी दी। .

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चिनुआ अचेबे

चिनुआ अचेबे (१६ नवम्बर १९३० - २१ मार्च २०१३, बोस्टन) एक नाइजीरियाई उपन्यासकार, कवि, प्राध्यापक एवं आलोचक थे। .

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नित्य प्रकाश

नित्य प्रकाश (जन्म १९ फरवरी, १९८८) एक प्रसिद्ध भारतीय उपन्यासकार, लेखक एवं ट्रेनर हैं। इनकी अब तक कुल ७ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और दो फिल्में । इन्हे २०१६ में करम वीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है। .

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नजीब महफ़ूज़

नजीब महफूज़ (अरबी: نجيب محفوظ, अंग्रेज़ी: Naguib Mahfouz) एक मिस्री लेखक व साहित्यकार थे जिन्होंने सन् १९८८ में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीता। तौफ़ीक़ अल-हकीम के साथ, उन्हें २०वी शताब्दी के दूसरे भाग में उभरने वाले समकालीन अस्तित्ववादी अरबी लेखकों के सर्वप्रथम गुट में माना जाता है। अपने ७० साल के लेखन में उन्होंने ३४ उपन्यास, ३५० लघुकथाएँ, दर्ज़नों फ़िल्मों की पटकथाएँ और पाँच नाटक लिखे। उनकी कई कृतियों को मिस्री व विदेशी फ़िल्मों में ढाला जा चुका है। .

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नीलम सक्सेना चंद्रा

नीलम सक्सेना चंद्रा (जन्म २७ जून, १९६९) एक प्रसिद्ध भारतीय उपन्यासकार, लेखिका, कवियित्री, गीतकार एवं बाल साहित्यकार हैं। इनकी अब तक कुल २७ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। वे अंग्रेजी व हिंदी दोनों भाषाओ में लिखती हैं। वर्ष २०१४ में इन्हें प्रतिष्ठित रबिन्द्रनाथ टैगोर अन्तराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फोर्ब्स इंडिया की १०० सबसे प्रभावशाली हस्तियों की सूची (२०१४ संस्करण) में इनका नाम है।, Forbes India, Nov 26, 2014 .

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पंकज बिष्ट

पंकज बिष्ट हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित पत्रकार, कहानीकार, उपन्यासकार व समालोचक है। वर्तमान में वे दिल्ली से प्रकाशित समयांतर नामक हिन्दी साहित्य की मासिक पत्रिका का सम्पादन व संचालन कर रहे हैं। .

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प्रभा खेतान

डॉ प्रभा खेतान डॉ॰ प्रभा खेतान (१ नवंबर १९४२ - २० सितंबर २००८) प्रभा खेतान फाउन्डेशन की संस्थापक अध्यक्षा, नारी विषयक कार्यों में सक्रिय रूप से भागीदार, फिगरेट नामक महिला स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापक, १९६६ से १९७६ तक चमड़े तथा सिले-सिलाए वस्त्रों की निर्यातक, अपनी कंपनी 'न्यू होराईजन लिमिटेड' की प्रबंध निदेशिका, हिन्दी भाषा की लब्ध प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कवयित्री तथा नारीवादी चिंतक तथा समाज सेविका थीं। उन्हें कलकत्ता चैंबर ऑफ कॉमर्स की एकमात्र महिला अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त था। वे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की सदस्या थीं। .

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प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

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प्रीति सिंह

प्रीति सिंह (जन्म: २६ अक्टूबर १९७१) चंडीगढ़ में स्थित एक लेखिका, उपन्यासकार हैं। प्रीति पिछले १५ सालो से एक पेशेवर लेखक के रूप में काम कर रही है। २०१२ में महावीर पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित इनका पहला उपन्यास "फ्लर्टिंग विथ फेट" बेस्ट सेलिंग उपन्यास रहा और वे अपनी दूसरी किताब "क्रॉसरोड्स" के साथ एक अवॉर्ड विजेता लेखिका बन चुकी हैं। १७ दिसंबर, २०१५ साहित्यकार प्रीति सिंह को अनुपमा फाउंडेशन द्वारा स्वयंसिद्धा सम्मान से पुरस्कृत किया गया। साल २०१६ में इनकी तीसरी पुस्तक वॉच्ड, जो एक क्राइम थ्रिलर उपन्यास हैं, का प्रकाशन ओमजी पब्लिशिंग हाउस द्वारा किया गया। .

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फराज काजी

TOI बैंगलोर लिटरेरी कार्निवल में फराज काजी फराज काजी (जन्म: १० नवम्बर १९८७) एक भारतीय अंग्रेजी उपन्यासकार हैं। ट्रू मैडली डीपली इनका पहला उपन्यास हैं, जो २०१० में प्रकाशित हुआ जिसे अक्टूबर २०१२ में पुनः प्रकाशित किया गया। फराज का दूसरा उपन्यास द अदर साइड हैं, जिस फिल्म निर्माता विक्रम भट्ट ने १५ नवम्बर २०१३ लौंच किया।वें मुंबई से हैं, इन्हें भारत का निकोलस स्पार्क्स कहा जाता हैं।Naheed Varma (6 जनवरी 2014),, The Lucknow Tribune .

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बिभूतिभूषण बंधोपाध्याय

बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय (बांग्ला: বিভুতিভূষণ বন্দ্যোপাধ্যায়) बांग्ला के सुप्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार थे। वे अपने महाकाव्य पाथेर पांचाली के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। जिसके ऊपर प्रसिद्ध फ़िल्मकार सत्यजित राय ने एक लोकप्रिय फ़िल्म का निर्माण भी किया था। श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन श्रेणी:बांग्ला साहित्यकार.

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भट्ट मथुरानाथ शास्त्री

कवि शिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री (23 मार्च 1889 - 4 जून 1964) बीसवीं सदी पूर्वार्द्ध के प्रख्यात संस्कृत कवि, मूर्धन्य विद्वान, संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक और युगपुरुष थे। उनका जन्म 23 मार्च 1889 (विक्रम संवत 1946 की आषाढ़ कृष्ण सप्तमी) को आंध्र के कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अनुयायी वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के प्रसिद्ध देवर्षि परिवार में हुआ, जिन्हें सवाई जयसिंह द्वितीय ने ‘गुलाबी नगर’ जयपुर शहर की स्थापना के समय यहीं बसने के लिए आमंत्रित किया था। आपके पिता का नाम देवर्षि द्वारकानाथ, माता का नाम जानकी देवी, अग्रज का नाम देवर्षि रमानाथ शास्त्री और पितामह का नाम देवर्षि लक्ष्मीनाथ था। श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट आदि प्रकाण्ड विद्वानों की इसी वंश परम्परा में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने विपुल साहित्य सर्जन की आभा से संस्कृत जगत् को प्रकाशमान किया। हिन्दी में जिस तरह भारतेन्दु हरिश्चंद्र युग, जयशंकर प्रसाद युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग हैं, आधुनिक संस्कृत साहित्य के विकास के भी तीन युग - अप्पा शास्त्री राशिवडेकर युग (1890-1930), भट्ट मथुरानाथ शास्त्री युग (1930-1960) और वेंकट राघवन युग (1960-1980) माने जाते हैं। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य एवं रचनात्मक संस्कृत लेखन इतना विपुल है कि इसका समुचित आकलन भी नहीं हो पाया है। अनुमानतः यह एक लाख पृष्ठों से भी अधिक है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली जैसे कई संस्थानों द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन किया गया है तथा कई अनुपलब्ध ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी हुआ है। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री का देहावसान 75 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण 4 जून 1964 को जयपुर में हुआ। .

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भीमनिधि तिवारी

भीमनिधि तिवारी (वि.सं. १९६८ – वि.सं. २०३०) नेपाली भाषा के अग्रज साहित्यकार है। .

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मधु कांकरिया

मधु कांकरिया हिन्दी साहित्य की प्रतिष्ठित लेखिका, कथाकार तथा उपन्यासकार हैं। उन्होंने बहुत सुन्दर यात्रा-वृत्तांत भी लिखे हैं। उनकी रचनाओं में विचार और संवेदना की नवीनता तथा समाज में व्याप्त अनेक ज्वलंत समस्याएें जैसे संस्कृति, महानगर की घुटन और असुरक्षा के बीच युवाओं में बढ़ती नशे की आदत, लालबत्ती इलाकों की पीड़ा नारी अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं के विषय रहे हैं। .

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मिखाइल शोलोखोव

मिखाइल शोलोख़ोव (1905-1984) रूसी साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्य के क्षेत्र में 1965 के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। .

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मुरासाकि शिकिबु

मुरासाकी शिकिबु (c.973 या 978- सी। 1014 या 1031)एक जापानी उपन्यासकार और कवि जो हीयान अवधि के थे और इंपीरियल कोर्ट.इस युग पर विस्तार से लिखा था एक अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण था और राजधानी वर्तमान में जाना जाता था शहर क्योटो के रूप में। उसे सबसे प्रसिद्ध कार्य में गेंजी की कथा 1000-1012 के बीच जापानी में लिखा, लेडी मुरासाकी और काव्य संस्मरण की डेयरी जो 128 कविताओं का एक संग्रह था भी शामिल है। वह पहली बार एक शाही लेडी इन वेटिंग के रूप में 1007 में एक अदालत डेयरी में उल्लेख किया गया था। परंपरागत रूप से पति और पत्नी अलग परिवारों और बच्चों में रहते थे उनकी माताओं द्वारा उठाए गए थे। परंपरा के विपरीत हालांकि, मुरासाकी अपने पिता के घर जो उसे चीनी, जो उस समय महिलाओं को सीखने से बाहर रखा गया में एक प्रवाह प्राप्त करने के लिए अनुमति में उठाया गया था। यह अनुमान है कि वह गेंजी की कथा में लिखा था के बाद वह उसे देर बिसवां दशा में विधवा हो गया था। शिकिबु हीयान जापान के फुजिवारा कबीले के थे। इस कबीले रणनीतिक इंपीरियल संकलन करने के लिए योगदान में अपनी बेटियों को बंद से शादी करके 11 वीं सदी के अंत तक अदालत की राजनीति बोलबाला है। उसका असली नाम स्पष्ट नहीं हुआ है, लेकिन शिकिबु उसके पिता का शीर्षक है जो अनुष्ठानों के मंत्रालय में सेवा के संदर्भ में है। मुरासाकी गेंजी की कथा से महिलाओं में से एक को संदर्भित करता है और शाब्दिक अर्थ है वैओलेट्स्।इस अवधि के दौरान राजनीतिक परिदृश्य है कि अदालत फुजिवारा कबीले के उत्तरी शाखा का वर्चस्व रहा था। महिलाओं के रूप में वे मोहरे के रूप में और के रूप में 'उधार गर्भ' का इस्तेमाल सत्ता के इस खेल में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे भी कुछ अधिकार, आय और संपत्ति जो उन्हें अपेक्षाकृत अधिक बाद के समय में महिलाओं की तुलना में विशेषाधिकार प्राप्त किया था। अभी तक वे परिवार के पुरुषों द्वारा आयोजित खिताब की छाया में रहना पड़ा था। मुरासाकी शिकिबु भी इसका एक अपवाद नहीं है। वह पहली बार उसकी तीसवां दशक के मध्य में अदालतों के लिए आया था। उस समय दरबारियों बहुत परिष्कृत कर रहे थे और थोड़ा करना था, इसलिए वे कलात्मक अवकाश में अपने समय बिताया। उनके लोकप्रिय अतीत-समय में से कुछ प्रेम संबंधों, कपड़ा, सुगंध, सुलेख, कविता लेखन और डेयरियों रखने का कलात्मक प्रयोग होने शामिल थे। शिकिबु के लेखन भावनाओं को बर्बाद किया जा रहा है कि एक महिला के दरबारी कवि-प्रतिद्वंद्विता, वापस काटने, निरर्थक और समय की भावना होने के साथ साथ चला गया से कुछ पर प्रतिबिंबित करते हैं। इन भावनाओं को अभी भी सार्वभौमिक अनुभव किया जा सकता क्योंकि वह एक तरह से है कि अदालत के समारोहों में वर्णित में लिखा था। वह ज्ञान और ज्ञान की एक महिला माना जाता था। चीनी संस्कृति बहुत जापानी की लेखन शैली को प्रभावित किया क्योंकि वे अपनी खुद की कोई लेखन प्रणाली थी। इस प्रकार, साहित्य की अवधारणा उधार लिया था। मिड-नौवीं सदी में, चीनी अक्षरों का एक सेट का उपयोग किया गया है केवल के लिए यह ध्वन्यात्मक मूल्य है जो बदले में लिखा जापानी के विकास के लिए नेतृत्व किया है। यह स्क्रिप्ट, नौकरशाही में इस्तेमाल किया जा करने के लिए सीखने चीनी महिलाओं पर इसलिए पितृसत्ता सिकोड़ी माना जाता था। यह उसका डेयरी में मुरासाकी के महत्वपूर्ण अंश में से एक में पढ़ा जा सकता है। यह इस तरह है कि यह पुरुष हाथों में नौकरशाही रखा में तैयार किया गया था। लेकिन महिलाओं के बस में आदेश खुद को अभिव्यक्त करने में अपनी खुद की एक लेखन को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। हीयान जापान एक औरत शाब्दिक मामले में उसकी खुद की पहचान खोजने के प्रयास का जल्द से जल्द प्रयासों में से एक है।। मुरासाकी जापानी गद्य के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह एक लेखन शैली है कि पहले से ही कहा गया था और यहां तक ​​कि उनकी अनुपस्थिति में, संदेश के रिसीवर के लिए बातचीत करने के लिए एक रास्ता खोजने के लिए बनाने के लिए एक कठिन प्रक्रिया है। उसकी डायरी में एक परीक्षण के आधार पर विचार किया जा सकता है लेखन के तीन प्रकार, एक तथ्यात्मक मोड, तरह एक इतिहासकार का अभ्यास होता है, एक काल्पनिक लेखक और तीसरे की तरह है कि एक आत्म विश्लेषणात्मक प्रतिबिंब शैलियों- के लिए एक दोस्त या परिवार को एक पत्र के रूप में। के रूप में चीन, जापान एक अनम्य माध्यम है जो किसी को भी अपने अंतरतम विचारों को व्यक्त करने की अनुमति नहीं दी थी दूसरी शैली विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। फिर भी मुरासाकी की डायरी उन्हें कुशलता का पता चलता है, इसलिए एक प्रभावी तरीके से भाषा का विकास। गेंजी की कथा एक संस्कृति आत्म अभिव्यक्ति का एक परिष्कृत रूप है खोजने की कोशिश का एक उत्पाद है। यह एक दर्जन महत्वाकांक्षा और कई मनोवैज्ञानिक जटिलताओं के साथ कुलीन समाज की अच्छी तरह से सोचा बाहर अक्षर है। कहानी आंतरिक संघर्ष के आसपास केंद्रित है। गेनजिवास की कथा पहले 1882 में अंग्रेजी में अनुवाद किया और आज तक अनुवाद किया जा करने के लिए जारी किया गया था। नवीनतम अनुवाद 2015 में डेनिस वाशबर्न https://en.wikipedia.org/wiki/Dennis_Washburn द्वारा किया गया है जिसमें उन्होंने गद्य से कविताओं अलग और इटैलिक में भीतर विचार लिखता है, जो मूल पाठ के प्रवाह को तोड़ता है। .

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यशपाल

---- यशपाल (३ दिसम्बर १९०३ - २६ दिसम्बर १९७६) का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .

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यान मार्टल

यान मार्टल (जन्म २५ जून १९६३) स्पेन में जन्मे कनैडियन लेखक हैं, जिनकी सबसे प्रसिद्ध कृति लाइफ़ ऑफ़ पाई के लिए इन्हें मैन बुकर पुरस्कार मिला है। इनका जन्म सालामांका, स्पेन में हुआ था, लेकिन कोस्टा रीका, फ्रांस, मेक्सिको और कनाडा में पले बढ़े। इन्होंने पोर्ट होप, ऑण्टारिओ के ट्रिनिटी कॉलेज स्कूल में शिक्षा पाई। इस दौरान इन्होंने लेखन का कौशल संवारा। इन्होंने ट्रेंट युनिवर्सिटी से दर्शन की पढ़ाई की और फिर सारा संसार घूमे, विशेषतया ईरान, तुर्की और भारत। इन्होंने१३ महीने भारत में गुजारे और यहाँ मन्दिर, गिरजाघर, मस्जिद और चिड़ियाघर घूमे। इसके बाद इन्होंने २ वर्ष धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और समाज से बहिष्कृत लोगों की कहानियाँ पढ़ीं। इन्हें बचपन मे ही पढ़ने का बहुत शौक था, अल्फ़ोंस दौदे की ल पति शोज़ (फ्रांसीसी: Le Petit Chose, छोटी सी चीज़) इन्हें बहुत पसंद थी। यान ने दांते की डिवाइन कॉमेडी को संसार की सबसे प्रभावशाली पुस्तक माना है। यान की पहली कृति सेवन स्टोरीज़ (अंग्रेजी: Seven Stories, सात कहानियाँ) १९९३ में प्रकाशित हुई। २००१ में इन्होंने लाइफ़ ऑफ़ पाई (पाई का जीवन) प्रकाशित की, जिसे वर्ष २००२ का मैन बुकर पुरस्कार मिला। इस पुस्तक को २००३ की कैनेडा रीड्स प्रतियोगिता में चुना गया। यान सास्कातून, सास्काचवान में सप्तम्बर २००३ से एक साल तक एक सार्वजनिक पुस्तकालय में राइटर-इन-रेज़िडेंस रहे। इन्होंने टोरंटो की रॉयल कंज़रवेटरी ऑफ़ म्यूज़िक के कम्पोज़र-इन-रेज़िडेंस ओमार डैनियल के साष मिलकर यू आर वेयर यू आर (तुम जहाँ हो वहीं हो) नामक संगीतमय रचना रची, जिसमें आम दिनों की आम बातचीत को वाक्यों को पिरोया गया है। नवम्बर २००५ में युनिवर्सिटी ऑफ़ सास्काचवान ने इन्हें स्कालर-इन-रेज़िडेंस घोषित किया। इनका अगला उपन्यास बीट्रिस और वर्जिल होलोकास्ट पर आधारित होगा। इसके अलावा ये वाट इज़ स्टीफ़न हार्पर रीडिंग (स्टीफ़न हार्पर क्या पढ़ रहे हैं) नामक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, जिसमें ये कनाडा के प्रधान मंत्री को हर दो हफ्ते में एक किताब भेजते हैं, एक छोटे व्याख्यात्मक नोट के साथ। .

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रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। .

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रमेश चन्द्र झा

रमेशचन्द्र झा (8 मई 1928 - 7 अप्रैल 1994) भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय क्रांतिकारी थे जिन्होंने बाद में साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। वे बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ हिन्दी के कवि, उपन्यासकार और पत्रकार भी थे। बिहार राज्य के चम्पारण जिले का फुलवरिया गाँव उनकी जन्मस्थली है। उनकी कविताओं, कहानियों और ग़ज़लों में जहाँ एक तरफ़ देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर है, वहीं दुसरी तरफ़ मानव मूल्यों और जीवन के संघर्षों की भी अभिव्यक्ति है। आम लोगों के जीवन का संघर्ष, उनके सपने और उनकी उम्मीदें रमेश चन्द्र झा कविताओं का मुख्य स्वर है। "अपने और सपने: चम्पारन की साहित्य यात्रा" नाम के एक शोध-परक पुस्तक में उन्होंने चम्पारण की समृद्ध साहित्यिक विरासत को भी बखूबी सहेजा है। यह पुस्तक न केवल पूर्वजों के साहित्यिक कार्यों को उजागर करता है बल्कि आने वाले संभावी साहित्यिक पीढ़ी की भी चर्चा करती है। .

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रशीद जहाँ

रशीद जहाँ (5 अगस्त 1905 – 29 जुलाई 1952, उर्दू:ڈاکٹر رشید جہاں), भारत से उर्दू की एक प्रगतिशील लेखिका, कथाकार और उपन्यासकार थीं, जिन्होंने महिलाओं द्वारा लिखित उर्दू साहित्य के एक नए युग की शुरुआत की। वे पेशे से एक चिकित्सक थीं। .

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रामदरश मिश्र

डॉ॰ रामदरश मिश्र (जन्म: १५ अगस्त, १९२४) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। ये जितने समर्थ कवि हैं उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी। इनकी लंबी साहित्य-यात्रा समय के कई मोड़ों से गुजरी है और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई है। ये किसी वाद के कृत्रिम दबाव में नहीं आये बल्कि उन्होंने अपनी वस्तु और शिल्प दोनों को सहज ही परिवर्तित होने दिया। अपने परिवेशगत अनुभवों एवं सोच को सृजन में उतारते हुए, उन्होंने गाँव की मिट्टी, सादगी और मूल्यधर्मिता अपनी रचनाओं में व्याप्त होने दिया जो उनके व्यक्तित्व की पहचान भी है। गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता यानी कि कविता की कई शैलियों में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ गजल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है। .

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रामवृक्ष बेनीपुरी

रामवृक्ष बेनीपुरी (२३ दिसंबर, 1900 - ९ सितंबर, १९६८) भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक थे।वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। .

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रांगेय राघव

रांगेय राघव (१७ जनवरी, १९२३ - १२ सितंबर, १९६२) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए।आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी। .

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रविंदर सिंह

रविंदर सिंह (जन्म:४ फ़रवरी १९८२) एक प्रसिद्ध अंग्रेजी भाषा के भारतीय उपन्यासकार व लेखक हैं। .

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रवीन्द्र कालिया

हिंदी साहित्य में रवींद्र कालिया की ख्याति उपन्यासकार, कहानीकार और संस्मरण लेखक के अलावा एक ऐसे बेहतरीन संपादक के रूप में है, जो मृतप्राय: पत्रिकाओं में भी जान फूंक देते हैं। रवींद्र कालिया हिंदी के उन गिने-चुने संपादकों में से एक हैं, जिन्हें पाठकों की नब्ज़ और बाज़ार का खेल दोनों का पता है। 11 नवम्बर, 1939 को जालंधर में जन्मे रवीन्द्र कालिया हाल ही में भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्होंने ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादन का दायित्व संभालते ही उसे हिंदी साहित्य की अनिवार्य पत्रिका बना दिया। धर्मयुग में रवींद्र कालिया के योगदान से सारा साहित्य-जगत परिचित है। रवीन्द्र कालिया ग़ालिब छुटी शराब में लिखते हैं “मोहन राकेश ने अपने मोटे चश्‍मे के भीतर से खास परिचित निगाहों से देखते हुए उनसे पूछा / ‘बम्‍बई जाओगे?' / ‘बम्बई ?' कोई गोष्‍ठी है क्‍या?' / ‘नहीं, ‘धर्मयुग' में।' / ‘धर्मयुग' एक बड़ा नाम था, सहसा विश्‍वास न हुआ। / उन्‍होंने अगले रोज़ घर पर बुलाया और मुझ से सादे काग़ज़ पर ‘धर्मयुग' के लिए एक अर्ज़ी लिखवायी और कुछ ही दिनों में नौकरी ही नहीं, दस इन्‍क्रीमेंट्‌स भी दिलवा दिये....” रवीन्द्रजी ने वागर्थ, गंगा जमुना, वर्ष का प्रख्यात कथाकार अमरकांत पर एकाग्र अंक, मोहन राकेश संचयन, अमरकांत संचयन सहित अनेक पुस्तकों का संपादन किया है। हाल ही में उन्होंने साहित्य की अति महत्वपूर्ण ३१ वर्षों से प्रकशित हो रही ‘वर्तमान साहित्य’ में सलाहकार संपादक का कार्यभार सम्हाला है। .

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लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा

लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा (१८६४-१९३८) आधुनिक असमिया साहित्य के पथ-प्रदर्शक कहे जाते हैं। कविता, नाटक, गल्प, उपन्यास, निबन्ध, रम्यरचना, समालोचना, प्रहसन, जीवनी, आत्मजीवनी, शिशुसाहित्य, इतिहास अध्ययन, सांवादिकता आदि दृष्टियों से बेजबरुवा का योगदानदान अमूल्य है। उनका "असमिया साहित्येर चानेकी" नामक संकलन विशेष प्रसिद्ध है। असमिया साहित्य में उन्होंने कहानी तथा ललित निबंध के बीच के एक सहित्य रूप को अधिक प्रचलित किया। बेजबरुआ की हास्यरस की रचनाओं को काफी लोकप्रियता मिली। इसीलिए उसे "रसराज" की उपाधि दी गई। .

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शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय

शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय (१५ सितंबर, १८७६ - १६ जनवरी, १९३८) बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंट्रेंस पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने "बासा" (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। शरतचन्द्र ललित कला के छात्र थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह इस विषय की पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार के तलाश में शरतचन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। कुछ समय बर्मा रहकर कलकत्ता लौटने के बाद उन्होंने गंभीरता के साथ लेखन शुरू कर दिया। बर्मा से लौटने के बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ जो था तो बड़ा विद्वान पर शराबी और उछृंखल था। यहीं से चरित्रहीन का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है। जब वह एक बार बर्मा से कलकत्ता आए तो अपनी कुछ रचनाएँ कलकत्ते में एक मित्र के पास छोड़ गए। शरत को बिना बताए उनमें से एक रचना "बड़ी दीदी" का १९०७ में धारावाहिक प्रकाशन शुरु हो गया। दो एक किश्त निकलते ही लोगों में सनसनी फैल गई और वे कहने लगे कि शायद रवींद्रनाथ नाम बदलकर लिख रहे हैं। शरत को इसकी खबर साढ़े पाँच साल बाद मिली। कुछ भी हो ख्याति तो हो ही गई, फिर भी "चरित्रहीन" के छपने में बड़ी दिक्कत हुई। भारतवर्ष के संपादक कविवर द्विजेंद्रलाल राय ने इसे यह कहकर छापने से मना कर दिया किया कि यह सदाचार के विरुद्ध है। विष्णु प्रभाकर द्वारा आवारा मसीहा शीर्षक रचित से उनका प्रामाणिक जीवन परिचय बहुत प्रसिद्ध है। .

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शिवानी

शिवानी हिन्दी की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। इनका वास्तविक नाम गौरा पन्त था किन्तु ये शिवानी नाम से लेखन करती थीं। इनका जन्म १७ अक्टूबर १९२३ को विजयदशमी के दिन राजकोट, गुजरात मे हुआ था। इनकी शिक्षा शन्तिनिकेतन में हुई! साठ और सत्तर के दशक में, इनकी लिखी कहानियां और उपन्यास हिन्दी पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुए और आज भी लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं। शिवानी का निधन 2003 ई० मे हुआ। उनकी लिखी कृतियों मे कृष्णकली, भैरवी,आमादेर शन्तिनिकेतन,विषकन्या चौदह फेरे आदि प्रमुख हैं। हिंदी साहित्य जगत में शिवानी एक ऐसी श्ख्सियत रहीं जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड रही और जो अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर 21 मार्च 2003 को उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बडे दिलचस्प अंदाज में किया कहानी के क्षेत्र में पाठकों और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी को जाता है।वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उसे पढने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था। उनकी कृतियों से यह झलकता है कि उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की।शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है। वह चरित्र को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोकर पेश करती थीं जैसे पाठकों की आंखों के सामने राजारवि वर्मा का कोई खूबसूरत चित्र तैर जाए। उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी का इस्तेमाल किया। जब शिवानी का उपन्यास कृष्णकली में प्रकाशित हो रहा था तो हर जगह इसकी चर्चा होती थी। मैंने उनके जैसी भाषा शैली और किसी की लेखनी में नहीं देखी। उनके उपन्यास ऐसे हैं जिन्हें पढकर यह एहसास होता था कि वे खत्म ही न हों। उपन्यास का कोई भी अंश उसकी कहानी में पूरी तरह डुबो देता था। भारतवर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास का बहुत प्यारा पन्ना थीं। अपने समकालीन साहित्यकारों की तुलना में वह काफी सहज और सादगी से भरी थीं। उनका साहित्य के क्षेत्र में योगदान बडा है परिचय जन्म: 17 अक्टूबर 1923, राजकोट (गुजरात) भाषा: हिंदी विधाएँ: उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, आत्मकथा मुख्य कृतियाँ उपन्यास: कृष्णकली, कालिंदी, अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरों घर आपने, श्मशान चंपा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप, आकाश कहानी संग्रह: शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ, शिवानी की मशहूर कहानियाँ, झरोखा, मृण्माला की हँसी संस्मरण: अमादेर शांति निकेतन, समृति कलश, वातायन, जालक यात्रा वृतांत: चरैवैति, यात्रिक आत्मकथा: सुनहुँ तात यह अमर कहानी .

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शोभा डे

शोभा डे (मूल नाम: शोभा राजाध्यक्ष, जन्म: 7 जनवरी 1948) एक भारतीय लेखिका, स्तंभकार और उपन्यासकार हैं। .

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समीना अली

समीना अली भारतीय मूल की अँग्रेजी भाषा की अमेरिकी कथाकार और उपन्यासकार हैं। उनका पहला उपन्यास "मद्रास ऑन रैनी डे" था। .

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सागर प्रकाश खतनानी

सागर प्रकाश खतनानी, (पोर्ट क्रॉस के लिए, तेनरीफ़, 6 जून, 1983) भारतीय मूल के एक स्पेनिश लेखक हैं। इनकी पहली पुस्तक, अमागी (Amagi), 2013 में स्पेन में सूमा डी लेट्रास् (Suma de Letras) पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित हुई थी, और एक बेस्टसेलर बानी थी, जिसे लैटिन अमेरिका में पुनः प्रकाशित किया गया था। साथ ही, सागर प्रकाश, एल पाइस् (El Pais) अख़बार के ब्लॉग, मिग्रेटेड के सहयोगी लेखक भी हैं। उनकी गृहनागरी पुएर्टो डी ला क्रूज़ ने २०१४ में उन्हें प्रेमोइस् जोवेन कैनारिअस (Premios "Joven Canarias"), के सम्मान से नवाज़ा था। उनकी पुस्तक अमागी के इतालियाई आयुवद को वर्ष २०१६ में प्रकाशित किया गया था। .

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सुखबीर (पंजाबी उपन्यासकार)

सुखबीर, (पंजाबी: ਸੁਖਬੀਰ) (9 जुलाई 1925 - 22 फ़रवरी 2012), उर्फ़ बलबीर सिंह पंजाबी उपन्यासकार, कहानीकार, कवि और निबन्धकार थे। उनका जन्म 9 जुलाई 1925 को सरदार मंशा सिंह और श्रीमती शिव कौर के घर मुम्बई में हुआ था। ह्रदय रोग से 22 फ़रवरी 2012 को उनका निधन हुआ।http://www.countercurrents.org/date050312.htm .

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से॰रा॰ यात्री

से.रा.यात्री (मूल नाम: सेवा राम यात्री, जन्म 10 जुलाई 1932) एक भारतीय लेखक, कथाकार, व्यंग्यकार और उपन्यासकार हैं। 1971 ई. में 'दूसरे चेहरे' नामक कथा संग्रह से शुरू हुई उनकी साहित्यिक यात्रा अनवरत जारी है। तकरीबन चार दशकों के अपने लेखकीय यात्रा में उन्होंने 18 कथा संग्रह, 33 उपन्यास, 2 व्यंग्य संग्रह, 1 संस्मरण तथा 1 संपादित कथा संग्रह हिंदी जगत के पाठकों को दी है। हाल ही में उत्‍तर प्रदेश सरकार ने उन्‍हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की ओर से संचालित पुरस्कार योजना के तहत 2008 का महात्‍मा गांधी पुरस्‍कार दिये जाने की घोषणा की है। .

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सी वी रामन पिल्लै

युवावस्था में सी वी रामन पिल्ला सी वी रामन पिल्लै (मलयालम:സി.വി. രാമന്‍പിള്ള; १८५७-१९२१) मलयालम के महान उपन्यासकार, नाटककार तथा पत्रकार थे। उन्हें प्रायः 'सी वी' कहा जाता है। मलयालम में वे सबसे महान ऐतिहासिक उपन्यासकार हुए हैं। सी वी का जन्म तिरुवनंतपुरम् में हुआ था। उनके उपन्यासों की पृष्ठभूमि १८वीं शताब्दी की घटनाओं की शृंखलाएँ हैं जिनके द्वारा तिरुवितांकूर राज्य का निर्माण एवं संस्थापन हुआ। मार्तंड वर्मा उपन्यास में रामनतपि और मार्तंडवर्मा के बीच उत्तराधिकारी के कलह की कहानी का वर्णन है। धर्मराजा उपन्यास कार्तिकतिरुनाल रामवर्मराज के शासनकाल की राजनीतिक एवं सैनिक घटनाओं के ऊपर आधारित है। रामराजबहादुर उपन्यास टीपू सुल्तान के तिरुवितांकूर पर किए गए आक्रमण की पृष्ठभूमि पर तैयार किया गया है। इन सभी उपन्यासों के कथानक विस्तृत हैं। केरल के इतिहास की गतिविधियों में उनकी अंतर्दृष्टि और सजीव पात्रों के चित्रण की योग्यता ने पाठकों के नेत्रों के समक्ष तत्कालीन घटनाओं का जीता-जागता चित्र उपस्थित कर दिया है। उनकी शैली में सरलता की कमी है। उन्होंने बहुत से व्यंगमय प्रहसन भी लिखे हैं। .

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सीता राम गोयल

सीता राम गोयल (१९२१ - २००३) भारत के बीसवीं शती के प्रमुख इतिहाकार, लेखक, उपन्यासकार और प्रकाशक थे। उन्होने हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में पुस्तकों का प्रकाशन किया। विख्यात ऋषि और दार्शनिक राम स्वरूप उनके गुरु और सहयोगी थे। १९४० के दशक में उनका झुकाव मार्क्सवाद की तरफ था किन्तु बाद में वे घोर साम्यवाद-विरोधी हो गये। बाद में वे इसाईयत, इस्लाम एवं भारतीय इतिहास एवं राजनीति के प्रमुख व्याख्याता (कमेंटेटर) बनकर उभरे। .

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हरमन मेलविल

हरमन मेलविल (1 अगस्त, 1819 – 28 सितम्बर, 1891) अमेरिकी पुनर्जागरण काल के एक अमेरिकी उपन्यासकार, लघु कथाकार और कवि थे। उनके सबसे प्रसिद्ध कृतियों में  टाआइपी (Typee -1846) शामिल है जो उनके पोलिनेशियाई जीवन के अनुभवों का स्नेहात्मक चित्रण है। व्हेल मछलियों के शिकार पर आधारित उपन्यास मोबी-डिक (1851) भी उन्ही की लिखी है। उनके कार्यों पिछले 30 वर्षों के दौरान लगभग भुला दिया गया था। इसलिए हरमन ने स्कूल छोड़कर कारोबार सँभाल लिया। हरमन ने अपनी शिक्षा कारोबार के साथ साथ जारी रखी। उसने बैंक की नौकरी करने के साथ फ़र्र कंपनी में भी काम किया। इसके अलावा वह छोटे छोटे गाँव के स्कूलों में पढ़ाने लगा। 1839 ईः में उन्होंने समुंद्री जहाज़ में नौकरी का चयन किया। फिर वह लिवरपूल, इंगलैंड तक का सफ़र किए। इंगलैंड से वापसी पर उन्होंने अपने चाचा के साथ काम करना शुरू कर दिया। मगर अच्छी तरह से ये साझेदारी निभ नहीं पाई। फिर 1840 ई में समुद्री जहाज़ की नौकरी पर काम करने लगे। .

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हरमन हेस

हरमन हेस या हेरमान हेस्से (२ जुलाई १८७७ – ९ अगस्त १९६२) एक जर्मन उपन्यासकार, कहानीकार और कवि थे।नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जर्मन साहित्यकार हरमन हेस मुख्य रूप से अपने तीन उपन्यासों सिद्धार्थ, स्टेपेनवौल्फ़ और मागिस्टर लुडी के लिये जाने जाते हैं। उन्होनें कविताएँ भी लिखीं और पेंटिंग्स भी बनाईं है। उन्हें १९४६ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया। हरमन हेस के सृजन में जो अन्तर्बोध और पूर्वी रहस्यवाद की व्यापक धारा बहती है, उसने उन्हें अपनी मृत्यु के बाद यूरोप में युवा वर्ग के बीच अत्यंत लोकप्रिय बना दिया। .

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हार्पर ली

हार्पर ली (28 अप्रैल, 1926 - 19 फ़रवरी, 2016) एक अमरीकी उपन्यासकार थीं जो अपने उपन्यास टू किल अ मॉकिंगबर्ड के लिए विख्यात हैं। श्रेणी:उपन्यासकार श्रेणी:1926 में जन्मे लोग श्रेणी:२०१६ में निधन.

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हिमांशु श्रीवास्तव

हिमांशु श्रीवास्तव हिमांशु श्रीवास्तव (जन्म: ११ मार्च १९३४: हराजी, सारण जिला, बिहार; मृत्यू: २६ मई १९९६) एक साहित्यकार, उपन्यासकार थे, जिनकी लगभग ५० उपन्यास और कहानी संग्रह प्रकाशित हुई हैं। .

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हैरियट बीचर स्टो

हैरियट एलिजाबेथ स्टो हैरियट बीचर स्टो (Harriet Beecher Stowe) (14 जून 1811 - 1 जुलाई 1896) विश्वविख्यात अमेरिकी लेखिका, रंगभेद एवं दासप्रथा की कट्टर विरोधी, एवं उपन्यासकार थी। उनके नाम की तुलना में उनका उपन्यास, अंकल टॉम्स केबिन (1852), अधिक प्रसिद्ध है। हिंदी में, "टाम काका की कुटिया", शीर्षक से उसका अनुवाद 1916 में ही हो गया था। हैरियट बीचर स्टो के मशहूर उपन्यास, अंकल टॉम्स केबिन, की गिनती दुनिया को हिला देनेवाले उपन्यासों में होती है। पहले यह उपन्यास प्रख्यात पत्र 'नेशनल एरा’ में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ था। जून 1851 के अंक में इसकी पहली किस्त छपी थी। उस समय श्रीमती स्टो की आयु चालीस वर्ष थी और वे सात बच्चों की मां थीं। इस पत्र में इस उपन्यास की चालीस किस्तें छपीं और अमरीकी जनता ने इसमें इतनी रुचि दिखायी थी कि पत्र की प्रसारण संख्या कई गुना हो गयी। इसके बाद 1852 में इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया और पहले ही संस्करण की तीन लाख से अधिक प्रतियां बिक गयीं। इसके बाद अगले दस वर्षों में इसके चौदह सौ संस्करण प्रकाशित हुए और इसने संयुक्त राज्य अमरीका के उत्तरी राज्यों में दासताविरोधी चेतना को प्रखर बनाने में अग्रणी भूमिका निभायी। अगले दस वर्षों में विश्व की साठ भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका था। जर्मन अनुवाद पढ़कर मार्क्स-एंगल्स के मित्र और प्रख्यात क्रांतिकारी जर्मन कवि हाइने ने भावविभोर होकर इसकी प्रशंसा की थी और रूसी अनुवाद पढ़कर लियो टोल्स्टोय ने इसे विश्व साहित्य की एक महान कृति कहा था। .

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जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937)अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं०-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई०,पृ०-2(तिथि एवं संवत् के लिए)।(क)हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-10, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-1971ई०, पृ०-145(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख)www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।, हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र नारायण, शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की। उन्हें 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवन में कभी साहित्य को अर्जन का माध्यम नहीं बनाया, अपितु वे साधना समझकर ही साहित्य की रचना करते रहे। कुल मिलाकर ऐसी बहुआयामी प्रतिभा का साहित्यकार हिंदी में कम ही मिलेगा जिसने साहित्य के सभी अंगों को अपनी कृतियों से न केवल समृद्ध किया हो, बल्कि उन सभी विधाओं में काफी ऊँचा स्थान भी रखता हो। .

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वर्जिनिया वुल्फ़

वर्जिनिया वुल्फ। एडलीन वर्जिनिया वुल्फ़ (अंग्रेज़ी: Adeline Virginia Woolf) (२५ जनवरी, १८८२ - २८ मार्च, १९४१) २०वीं सदी की एक प्रतिभाशाली अंग्रेज साहित्यकार और निबंधकार थीं। ए रूम ऑफ वन्स ओन की लेखिका वर्जिनिया वुल्फ प्रसिद्ध लेखिका, आलोचक और पर्वतारोही पिता सर स्टीफन और मां जूलिया स्टीफन की बेटी थीं। उनका जन्म १८८२ में लंदन में हुआ था। बुद्धिजीवियों की आवाजाही उनके घर में होती रहती थी। जाहिर है वर्जिनिया का भी रुझान आरंभ से ही लिखने-पढ़ने की ओर रहा। वर्जिनिया की अधिकतर स्मृतियां कॉर्नवाल की हैं, जहां वह अकसर गर्मीयों की छुट्टियां बिताने जाती थीं। इन्हीं स्मृतियों की देन थी उनकी प्रमुख रचना - टु द लाइटहाउस। जब वह केवल १३ वर्ष की थीं, तब उनकी मां का आकस्मिक निधन हो गया। इसके दो वर्ष बाद अपनी बहन व १९०४ में पिता को भी उन्होंने खो दिया। यह उनका अवसाद भरा दौर था। इसके बाद आजीवन अवसाद के दौरे उन्हें घेरते रहे। इसके बाद भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की। शारीरिक रूप से बहुत दुर्बल होने के कारण उनकी पढ़ाई-लिखाई घर पर ही हुई। बाद में उन्होंने अध्यापन कार्य आरंभ किया। ३० वर्ष की आयु में उन्होंने लोयोनार्ड वुल्फ़ से विवाह किया। उन्होंने डायरी, जीवनियां, उपन्यास, आलोचना सभी लिखे। लेकिन उनकी प्रिय विषयवस्तु स्त्री विमर्श ही थी। इसी का परिणाम था, उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक ए रूम ऑफ वन्स ओन। १९४० में द्वितीय विश्वयुद्ध में नाज़ियों के हमले के दौरान वुल्फ दंपती बहुत परेशान रहा करते थे, क्योंकि उनके पति लियोनार्ड यहूदी थे, जिनसे नाज़ी घृणा करते थे। इसी वर्ष बमबारी में उनका प्रेस नष्ट हो गया। अवसाद की स्थिति में उन्होंने २८ मार्च १९४१ में नदी में छलांग लगा दी और आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त कर लिया। गूगल ने उनके १३६वें जन्मदिन को एक डूडल के साथ मनाया। .

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विभूति नारायण राय

विभूति नारायण राय(अंग्रेजी: Vibhuti Narain Rai) (२८ नवम्बर १९५१) आज़मगढ़(उत्तर प्रदेश) में जन्मे| विभूति नारायण राय १९७५ बैच के यू.पी.कैडर के आई.पी.एस.

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विश्व-भारती विश्वविद्यालय

विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के शान्तिनिकेतन नगर में की। यह भारत के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है। अनेक स्नातक और परास्नातक संस्थान इससे संबद्ध हैं। शान्ति निकेतन के संस्थापक रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म १८६१ ई में कलकत्ता में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने १८६३ ई में अपनी साधना हेतु कलकत्ते के निकट बोलपुर नामक ग्राम में एक आश्रम की स्थापना की जिसका नाम `शांति-निकेतन' रखा गया। जिस स्थान पर वे साधना किया करते थे वहां एक संगमरमर की शिला पर बंगला भाषा में अंकित है--`तिनि आमार प्राणेद आराम, मनेर आनन्द, आत्मार शांति।' १९०१ ई में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसी स्थान पर बालकों की शिक्षा हेतु एक प्रयोगात्मक विद्यालय स्थापित किया जो प्रारम्भ में `ब्रह्म विद्यालय,' बाद में `शान्ति निकेतन' तथा १९२१ ई। `विश्व भारती' विश्वविद्यालय के नाम से प्रख्यात हुआ। टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। .

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विक्रम सेठ

विक्रम सेठ विक्रम सेठ (जन्म 20 जून, 1952) भारतीय साहित्य में एक जाने माने नाम है। मुख्य रूप से ये उपन्यासकार और कवि हैं। इनकी पैदाइश और परवरिश कोलकाता में हुई। दून स्कूल और टानब्रिज स्कूल में इनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में इन्होंने दर्शनशास्त्र राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र का अध्यन किया, बाद में इन्होंने नानजिंग विश्वविद्यालय में क्लासिकल चीनी कविता का भी अध्यन किया। उन्हें उनके चार प्रमुख उपन्यासों के लिये जाना जाता है.

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ख़्वाजा अहमद अब्बास

ख़्वाजा अहमद अब्बास प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और उर्दू लेखक थे। उन्होंने 'अलीगढ़ ओपिनियन' शुरू किया। 'बॉम्बे क्रॉनिकल' में ये लंबे समय तक बतौर संवाददाता और फ़िल्म समीक्षक काम किया। इनका स्तंभ 'द लास्ट पेज' सबसे लंबा चलने वाले स्तंभों में गिना जाता है। यह 1941 से 1986 तक चला। अब्बास इप्टा के संस्थापक सदस्य थे। .

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खादीज़ा मुमताज़

खादीज़ा मुमताज़ (जन्म: 1955) एक मलयालम लेखिका हैं। उन्हें 2010 में उनके दूसरे उपन्यास 'बरसा' के लिए "केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार" से सम्मानित किया गया हैं। वे पेशे से चिकित्सक हैं। .

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खुशवन्त सिंह

खुशवन्त सिंह (जन्म: 2 फ़रवरी 1915, मृत्यु: 20 मार्च 2014) भारत के एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार थे। एक पत्रकार के रूप में उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली। उन्होंने पारम्परिक तरीका छोड़ नये तरीके की पत्रकारिता शुरू की। भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय में भी उन्होंने काम किया। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। खुशवन्त सिंह जितने भारत में लोकप्रिय थे उतने ही पाकिस्तान में भी लोकप्रिय थे। उनकी किताब ट्रेन टू पाकिस्तान बेहद लोकप्रिय हुई। इस पर फिल्म भी बन चुकी है। उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक जिन्दादिल इंसान की तरह पूरी कर्मठता के साथ जिया। .

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गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता हिंदी उपन्यासकार धर्मवीर भारती के शुरुआती दौर के और सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है। यह सबसे पहले १९५९ में प्रकाशित हुई थी। इसमें प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का अन्यतम चित्रण है। सजिल्द और अजिल्द को मिलाकर इस उपन्यास के एक सौ से ज्यादा संस्करण छप चुके हैं। पात्रों के चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। .

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आचार्य चतुरसेन शास्त्री

आचार्य चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 – 2 फ़रवरी 1960)) हिन्दी भाषा के एक महान उपन्यासकार थे। इनका अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। इनकी प्रमुख कृतियां गोली, सोमनाथ, वयं रक्षाम: और वैशाली की नगरवधू इत्यादि हैं। आभा इनकी पहली रचना थी। .

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आर्थर कॉनन डॉयल

सर आर्थर इग्नाशियस कॉनन डॉयल, डीएल (22 मई 1859 - जुलाई 7, 1930) एक स्कॉटिश चिकित्सक और लेखक थे जिन्हें अधिकतर जासूस शरलॉक होम्स की उनकी कहानियों (इन कहानियों को आम तौर पर काल्पनिक अपराध कथा के क्षेत्र में एक प्रमुख नवप्रवर्तन के तौर पर देखा जाता है) और प्रोफ़ेसर चैलेंजर के साहसिक कारनामों के लिए जाना जाता है। वह विज्ञान कल्पना कथाएँ, ऐतिहासिक उपन्यासों, नाटकों और रोमांस, कविता और विभिन्न कल्पना साहित्य के एक विपुल लेखक थे। वे एक सफल लेखक थे जिनकी अन्य रचनाओं में काल्पनिक विज्ञान कथाएं, ऐतिहासिक उपन्यास, नाटक एवं रोमांस, कविता और गैर-काल्पनिक कहानियां शामिल हैं। .

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आशापूर्णा देवी

आशापूर्णा देवी (बांग्ला: আশাপূর্ণা দেবী, 8 जनवरी 1909-13 जुलाई 1995) भारत से बांग्ला भाषा की कवयित्री और उपन्यासकार थीं, जिन्होंने 13 वर्ष की अवस्था से लेखन प्रारम्भ किया और आजीवन साहित्य रचना से जुड़ीं रहीं। गृहस्थ जीवन के सारे दायित्व को निभाते हुए उन्होंने लगभग दो सौ कृतियाँ लिखीं, जिनमें से अनेक कृतियों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके सृजन में नारी जीवन के विभिन्न पक्ष, पारिवारिक जीवन की समस्यायें, समाज की कुंठा और लिप्सा अत्यंत पैनेपन के साथ उजागर हुई हैं। उनकी कृतियों में नारी का वयक्ति-स्वातन्त्र्य और उसकी महिमा नई दीप्ति के साथ मुखरित हुई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं स्वर्णलता, प्रथम प्रतिश्रुति, प्रेम और प्रयोजन, बकुलकथा, गाछे पाता नील, जल, आगुन आदि। उन्हें 1976 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली वे पहली महिला हैं। .

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इंदु मेनन

इंदु मेनन एक भारतीय साहित्यिक, उपन्यासकार, लघु कथालेखक, पटकथालेखक और समाजशास्त्री हैं। वह साहित्यिक क्षेत्र में है। .

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कन्नदासन

कन्नदासन (கண்ணதாசன்; 24 जून1927-17 अक्टूबर 1981) तमिल कवि और गीतकार थे, जिन्हें तमिल भाषा के आधुनिक युग के सबसे महान और सबसे महत्वपूर्ण प्रारम्भिक लेखक के रूप में मान्यता प्राप्त है।वे प्रायः 'कविअरासु' (कविराज) नाम से प्रसिद्ध अधिक प्रसिद्ध थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास चेरमान कादली के लिये उन्हें सन् १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। कन्नदासन तमिल फिल्मों में अपने गीतों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय थे। इन्होने ५००० से अधिक गीतों के अलावा, ६००० कविताओं और महाकाव्य, नाटकों, निबंध, उपन्यास, सहित लगभग २३२ से अधिक पुस्तकों की रचना की, जिसमें से दस भागों में अर्थमुल्ल इन्धुमथम (सार्थक हिन्दू धर्म) शीर्षक से हिंदू धर्म पर आधारित उनके सबसे लोकप्रिय (10) धार्मिक निबंध हैं। उन्हें वर्ष 1980 में अपने उपन्यास चेरमन कदली के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। 1969 में, कुज्हंथैक्कागा फिल्म में सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने वाले पहले गीतकार थे। .

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कमला सांकृत्यायन

कमला सांकृत्यायनकमला सांकृत्यायन हिन्दी भाषा की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। .

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कमला सुरय्या

कमला सुरय्या पूर्व नाम कमला दास (अँग्रेजी: Kamala Surayya, मलयालम: കമല സുറയ്യ, 31 मार्च 1934- 31 मई 2009) अँग्रेजी वो मलयालम भाषा की भारतीय लेखिका थीं। वे मलयालम भाषा में माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं। उन्हें उनकी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ से अत्यधिक प्रसिद्धि मिली। .

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कानन कुसुम (जयशंकर प्रसाद की कृति)

कानन कुसुम हिन्दी भाषा के कवि, लेखक और उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद की एक काव्य कृति है। जिसकी भाषा ब्रज है। .

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काज़ुओ इशिगुरो

काज़ुओ इशिगुरो ओबीई FRSA FRSL (カズオ・イシグロ या; जन्म 8 नवंबर 1954) एक ब्रिटिश उपन्यासकार, पटकथा लेखक, और लघु कहानी लेखक है। वह  नागासाकी, जापान में पैदा हुआ था; उसका परिवार 1960 में  इंग्लैंड में स्थानांतरित कर गया था, जब वह पांच साल का था। ईशिगुरु ने 1978 में अंग्रेजी और दर्शन में स्नातक की डिग्री के साथ केंट विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1980 में ईस्ट एंग्लिया के रचनात्मक लेखन पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय से मास्टर की उपाधि प्राप्त की। इशिगुरो को अंग्रेजी भाषाई दुनिया में मशहूर समकालीन कथालेखकों में से एक माना जाते है, इन्होनें चार मैन बुकर पुरस्कार नामांकन और 1989 के अपने उपन्यास 'The Remains of the Day' के लिए एक पुरस्कार भी जीत चुके हैं। उनका 2005 का उपन्यास, नेवर लेट मी गो, को 2005 के सर्वश्रेष्ठ उपन्यास के रूप में टाइम मैग्जिन द्वारा नामित किया गया था और 1923 से 2005 तक 100 सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी-भाषा के उपन्यासों की सूची में शामिल किया गया था। 2017 में, स्वीडिश अकादमी ने इशिगुरो को साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया, जिसमें उन्होंने एक लेखक के रूप में उनके प्रशस्ति पत्र में "महान भावनात्मक बल के उपन्यासों में, दुनिया के साथ संबंध के हमारे विवेकपूर्ण भावनाओं को गहराई से खोल कर रख दिया" लिखा था। .

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किरण देसाई

किरण देसाई (जन्म: 3 सितंबर, 1971) भारतीय मूल की अंग्रेजी उपन्यासकार हैं। उनकी माता अनीता देसाई भी एक उपन्यासकार हैं। .

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केरला साहित्योत्सव

केरला साहित्योत्सव या केरला लिटरेचर फेस्टिवल (के. एल. एफ) एक वार्षिक साहित्योत्सव है जो हर साल कोषीकोड के समुद्र तट में मनाया जाता है। डी सी कीषकेमुरी फाउंडेशन और अन्य संगठनों की सहायता से के.

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अनुजा चौहान

अनुजा चौहान (जन्म 1970; मेरठ, उत्तर प्रदेश) लेखिका व उपन्यासकार हैं और विज्ञापन लिखने में उन्होंने खूब नाम कमाया है। १९९३ में उन्होंने दुनिया की चौथी सबसे बड़ी एडवरटाइजिंग कंपनी जेडब्ल्यूटी ज्वाइन किया था, जिससे उन्होंने इसी साल इस्तीफा दे दिया। पेप्सी कोका कोला के लिए ‘ये दिल मांगे मोर’, ‘मेरा नंबर कब आएगा’, ‘नथिंग ऑफिशियल एबाउट इट’, ओए बब्ली, माउंटेन ड्यू के लिए ‘डर के आगे जीत है’, कुरकुरे के लिए ‘टेढ़ा है पर मेरा है’ जैसे शानदार स्लोगन उनके ही दिए हुए हैं। अनुजा चौहान ने द जोया फैक्टर और बैटिल फॉर बिटोरा जैसी बेस्टसेलर किताबें भी लिखी हैं। .

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अशोक आत्रेय

अशोक आत्रेय बहुमुखी प्रतिभा के संस्कृतिकर्मी सातवें दशक के जाने माने वरिष्ठ हिन्दी-कथाकार और (सेवानिवृत्त) पत्रकार हैं | मूलतः कहानीकार होने के अलावा यह कवि, चित्रकार, कला-समीक्षक, रंगकर्मी-निर्देशक, नाटककार, फिल्म-निर्माता, उपन्यासकार और स्तम्भ-लेखक भी हें| .

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अशोकमित्रन

अशोकमित्रन (22 सितंबर,1931 - 23 मार्च,2017, मूल नाम जगदीस त्यागराजन) तमिल भाषा के लेखक व उपन्यासकार थे। उनकी कृति में 200 लघु कथाएं, 8 उपन्यास, 15 अन्य लंबी कथाएं शामिल हैं। उनकी बहुत-सी लघु कथाएं अँग्रेजी, हिंदी, मलयालम, तेलगू और अन्य भाषाओं में अनुवादित की गई है। उन्हें वर्ष 1996 में उनके लघु कथाओं के संग्रह अप्पाविन सिनेहिदर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1931 में सिकंदराबाद में जन्में अशोकमित्रन वर्ष 1952 में चेन्नई चले गए थे। जिसके बाद वे तमिल साहित्य के एक प्रभावशाली साहित्यकार के रूप में उभरे।वे संक्षिप्त और सूक्ष्म हास्य के लिए जाने जाते थे।उन्होने 1960 के दशक में अपना साहित्यिक नाम अशोकमित्रन ग्रहण किया था। वर्ष 2014 में तमिलनाडू की निवर्तमान मुख्यमंत्री जयललिता ने तमिल साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हे 'तिरु वी का' पुरस्कार प्रदान किया था। .

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अगाथा क्रिस्टी

अगाथा क्रिस्टी (1890-1976) (पूरा नाम अगाथा मैरी क्लरिस्सा क्रिस्टी, लेडी मैलोवैन/डेम अगाथा क्रिस्टी; Agatha Mary Clarissa, Lady Mallowan/Dame Agatha Christie) विश्वप्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यासकार थीं। वो अंग्रेजी अपराध उपन्यासकार, लघु कथा लेखिका, और नाटक रचनाकार थी। वह अपने 66 जासूसी उपन्यासों के लिए विशेष तौर पर जानी जाती हैं। इनके द्वारा रचित दो मुख्य पात्र हैं एर्क्यूल प्वारो और मिस मार्पल। इनकी प्रसिद्धि इस बात से ज़ाहिर होती है कि इनकी लिखित किताबें विलियम शेक्सपियर के अतिरिक्त विश्व के किसी और लखक की किताबों से अधिक बिकी हैं। 2006 तक विश्व की महानतम महिला लेखिकाओं में से एक गिनी जाने वाली अगाथा के उपन्यासों की एक अरब से भी अधिक प्रतिलिपियाँ बिक चुकी हैं, तथा 100 से भी अधिक भाषाओं में अनुवादित की गई हैं। .

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उन्निकृष्णन पुथूर

उन्निकृष्णन पुथूर (१५ जुलाई १९३३ – २ अप्रैल २०१४) दक्षिण भारतीय राज्य केरल से मलयालम भाषा के उपन्यासकार और लघुकथा लेखक थे। उन्होंने १५ उपन्यास और लगभग ७०० लघुकथायें लिखी। उन्हें बालिक्कल्लू नामक उपन्यास लिखने के लिए १९६८ में केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया। .

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उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्र नाथ अश्क (१९१०- १९ जनवरी १९९६) उर्दू एवं हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार तथा उपन्यासकार थे। ये अपनी पुस्तक स्वयं ही प्रकाशित करते थे। .

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१० अक्टूबर

10 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 283वॉ (लीप वर्ष मे 284 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 82 दिन बाकी है। .

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