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उपन्यास

सूची उपन्यास

उपन्यास गद्य लेखन की एक विधा है। .

686 संबंधों: चदुरंग, चन्दना गोस्वामी, चन्द्रकान्ता, चमन नाहल, चायुव नारकालि, चार्ल्स डिकेंस, चित्रलेखा, चित्रलेखा (उपन्यास), चित्रा मुद्गल, चिदंबर रहस्य, चंदन नेगी, चंद्रप्रसाद सइकीया, चंद्रकांता (लेखिका), चंद्रकांता संतति, चेतन भगत, चेम्मीन, चेरमान कादली, टार्ज़न, ट्रेन टू पाकिस्तान, टू स्टेट्स, टी. वी. सरदेशमुख, टी. गोपीचंद, टी. आर. सुब्बाराव, ऍच॰ जी॰ वेल्स, ए न्यू वर्ल्ड, ए. चित्रेश्वर शर्मा, ए. सेतुमाधवन (सेतु), एच. गुनो सिंह, एडवर्ड नॉर्टन, एडवर्ड मॉर्गन फार्स्टर, एडोगवा रंपो, एधानी माहीर हाँहि, एन. पी. मुहम्मद, एम एंड द बिग हूम, एम. मुकुंदन, एम. वी. वेंकटराम, एम.टी. वासुदेवन् नायर, एमा वॉटसन, एस. एन. पेंडसे, एस. एल. भैरप्प, एस. के. पोट्टेक्काट, एस्थर डेविड, एहो हमारा जीवणा, एक चादर मैली–सी, एक और चंद्रकांता, एकांत के सौ वर्ष, झाँसी की रानी (उपन्यास), झवेरचन्द मेघाणी, झुम्पा लाहिड़ी, झोंबी, ..., ठाकुर जगन्मोहन सिंह, डांगोरा : एका नगरीचा, डिसऑर्डरली वुमेन, ड्यून (उपन्यास), ड्रूड, डैनियल डेफॉ, डू ऍन्ड्रॉइड्स ड्रीम ऑफ़ इलॅक्ट्रिक शीप?, डी. नवीन, डी. सेल्वराज, ढाई घर, तट्टकम, तणकट, तत्त्वमसि (गुजराती उपन्यास), तपोभूमि, तमस (उपन्यास), तसलीमा नसरीन, ताम्रपट, तारा मीरचंदाणी, ताराशंकर बंद्योपाध्याय, ताराशंकर बंधोपाध्याय, तिस्ता पारेर वृत्तांत, तकजि शिवशंकर पिल्लै, त्रिपुरसुंदरी लक्ष्मी, तौशाली दी हंसो, तृकोट्टूर नोवल्लकळ, तेरु, तेलुगू साहित्य, तेजपाल सिंह धामा, तोप्पिल मोहम्मद मीरान, तोल, थरोशंबी, थॉमस हार्डी, द ट्रॉटरनामा, द मैमरीज़ ऑफ़ द वेलफेयर स्टेट, द लास्ट लेबिरिंथ, द शैडो लाइन्स, द सर्पेण्ट एंड द रोप, द साड़ी शॉप, दण्डपाणि जयकान्तन, दाटु, दामोदर माऊज़ो, दाइनि?, दिव्येन्दु पालित, दिका, दु पत्र, दुर्गाप्रसाद खत्री, दुर्गास्तमान, दुर्गेशनन्दिनी, द्रोह, दैट लांग साइलेन्स, दैवत्तिण्टे विकृतिकळ, दैवत्तिण्टे कण्णु, देशबंधु डोगरा नूतन, देवदास (उपन्यास), देवरानी जेठानी की कहानी, देविदास रा. कदम, देवकीनन्दन खत्री, देवुडु नरसिंह शास्त्री, देवेन्द्रनाथ आचार्य, देवेश राय, देओ लाङ्खुइ, दो गज़ ज़मीन, दीर्घतपा, धु्रव प्रबोधराय भट्ट, ध्रुव ज्योति बोरा, ध्रुवपुत्र, धूँधभरी खींण, धीरूबेन पटेल, धीरेन्द्र महेता, न हन्यते, नरसिंह देव जम्वाल, नरेन्द्र कोहली, नरेन्द्रपाल सिंह, ना. पार्थसारथी, नानक सिंह, नामदेव कांबळे, नित्यांनद महापात्र, नियति, निरंजन सिंह तसनीम, निरुपमा बरगोहाइँ, निर्मला (उपन्यास), निशात (फिल्म निर्देशिका), निशि–कुटुंब, निकोल किडमैन, निकोलाई गोगोल, नज़ीर अहमद देहलवी, नजीब महफ़ूज़, नवारुण भट्टाचार्य, नव्योत्तर काल, नगेंद्रनाथ वसु, नंद भारद्वाज, नंगा रुख, नैका बनिजारा, नील पद्मनाभन, नील शैल, नीला चाँद, नीहाररंजन गुप्त, पटकथा, पद्मराजन, पद्मा सचदेव, परती परिकथा, परिणीता (2005 फ़िल्म), परीक्षा गुरू (हिन्दी का प्रथम उपन्यास), परीक्षागुरु, पलटू बाबू रोड, पश्चिमी संस्कृति, पहला गिरमिटिया, पाचा मेहताई, पाटकाईर ईपारे मोर देश, पाताल भैरवी (असमिया उपन्यास), पात्र (कलाशास्त्र), पारसमणि दङ्गाल, पिता–पुत्र (असमिया उपन्यास), पंडित परमेश्वर शास्त्री वीलुनामा, पंकज बिष्ट, पुदिय दरिशनंगळ, पुनत्तिल कुंञ्जब्दुल्ला, पुन्सीगी मरुद्यान, पुन–ते–पाप, पुरवी बरमुदै, प्यार जी प्यास, प्यारीचाँद मित्र, प्रपंचन, प्रफुल्ल राय, प्रभाकर माचवे, प्राण किशोर कौल, प्रकाश परिमल, प्रेम प्रधान, प्रेमचंद, प्रेमचंद साहित्य संस्थान, प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएँ, प्रेमचंद की रचनाएँ, प्रेयोक्ति, प्रीति सिंह, पोन्नीलन (कंदेश्वर भक्तवत्सलम्), पी. सी. कुट्टिकृष्णन उरूब, पी. केशवदेव, पी॰ वी॰ अकिलानंदम, फ़ायर एरिया, फ़ायर ऑन द माउंटेन, फ़ाउन्डेशन शृंखला, फिलीपींस का इतिहास, फकीर मोहन सेनापति, फुल्ल बिना डाली, फ्रांको मोरेत्ति, फ्रैंकनस्टाइन, फैनी बर्नी, बच्चन सिंह, बदुकु, बर्नार्ड मलामड, बलवंत सिंह (लेखक), बा मुलाहज़ा होशिआर, बाणभट्ट की आत्‍मकथा, बाणी बसु, बारोमास, बिद्यासागर नार्जारी, बिन्दु भट्ट, बिन्द्या सुब्बा, बिपन्न समय, बिमल कर, बिरगोस्रिनि थुंग्रि, बखरे–बखरे सच्च, बंडाय, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, बुक ऑफ़ रैचल, ब्रह्मपुत्रका छेउ–छाउ, ब्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म, बोलवार मोहम्मद कुन्ही, बी. एम. माइस्नाम्बा, बी. पुट्टस्वामय्या, बीट पीढ़ी, बीरासन, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी, भारतेन्दु युग, भारतीय महाकाव्य, भालचंद्र नेमाडे, भाग्यवती उपन्यास, भवानी भट्टाचार्य, भगवती कुमार शर्मा, भूदेव मुखोपाध्याय, भूले बिसरे चित्र, भोगदंड, भीम दाहाल, भीष्म साहनी, मणिपुरी साहित्य, मति नंदी, मत्स्येन्द्र प्रधान, मथओ कनवा डि एन ए, मधु कांकरिया, मनुभाई पाँचोली, 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इयारुइंगम, इलयास अहमद गद्दी, इलै उदीर कालम, इस्मत चुग़ताई, इंदिरा रायसम गोस्वामी, इंद्र सुंदास, इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग, इक मिआन दो तलवारां, कथा यू.के., कथा रत्नामकर, कथानक, कन्नदासन, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, कपालकुण्डला, कपोलकल्पना, कबीरुद्दीन कलीम, कमल दास, कमला सुरय्या, कमलेश्वर, कर्मभूमि, करेल चपेक, कल अज ते भलक, कलमरम, कला प्रकाश, कलानाथ शास्त्री, कलि–कथा : वाया बाइपास, कल्पना कुमारी देवी, कल्कि कृष्णमूर्ति, कहानी, क़ैदी, कातिन्द्र सोरगियारि, कादम्बरी, कादुगळ्, कान्हूचरण मोहांती, कायाकल्प (लक्ष्मीनंदन बोरा), कार्मेलिन, कार्ल गुत्स्‌को, कालबेला, कालम, कालरेखलु, कालुतुन्ना पूलातोटा, काजल ओझा वैद्य, कावल कोत्तम, काका देउतार हार, कि. राजनारायणन्, कितने चौराहे, कितने पाकिस्तान, किशोरीलाल गोस्वामी, कुट्रालकुरिञ्जी, कुँवर वियोगी, कुरुति पुनल, कुसुमबाले, कुं. वीरभद्रप्पा, कुंदनिका कापडीआ, क्याप, क्रान्तिकाल, क्रान्ति–कल्याण, क्रिस्टीन वेस्टन, कृशिन खटवाणी, कृष्ण बलदेव वैद, कृष्णसिंह मोक्तान, कृष्णा अग्निहोत्री, कूवो, के पी सक्सेना, के. पी. पूर्णचंद्र तेजस्वी, कॅकॅल्ड, कोलकातार काछेई, कोहरे में कैद रंग, कोवि. मणिशेखरन, कोविलन (वी. वी. अय्यप्पन), अचिन बासभूमि, अडयाळंगळ, अणसार, अतुल कनक, अथाह, अधचानणी रात, अनन्त गोपाल शेवड़े, अनातोले फ्रांस, अन्जेल्स एंड डेमन्स (देवदूत और शैतान), अब्दुल वहीद कमल, अब्दुस्समद, अभिजात्री, अमर मित्र, अमित चौधुरी, अमिताव घोष, अमियभूषण मजूमदार, अमृत राय, अमृत और विष, अमृतर संतान, अमृतस्य पुत्री, अमृता प्रीतम, अमेरिकी साहित्य, अमेरिकीकरण, अयलक्कार, अरण्येर अधिकार, अरमने, अरांबम बीरेन सिंह, अरविन्द अडिग, अरुण शर्मा (असमिया साहित्यकार), अरुण जोशी, अर्द्धनारीश्वर, अल्पना मिश्र, अल्हड़, अलेक्सान्द्र अब्रामोविच कबकोव, अलेक्सांदर कुप्रिन, अलीक मानुष, अशोक एस. कामत, अशोक आत्रेय, अशोकपुरी गोस्वामी, असमय, असूर्यलोक, अजय नवारिया, अज्ञेय, अघरी आत्मार काहिनी, अवधेश्वरी, अवसर, अविनाशि, अवकासिकाळ, अखेपातर, अगल विळक्कु, अग्निसाक्षी, अग्निगर्भा, अंतरभाषिक अनुवाद, अंग्रेजी साहित्य, अंग्रेजी कहानी, अकबर, उड जा रे सुआ, उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति, उत्सुकतेने मी झोपलो, उदासीन रूखहरू, उपन्यासकार, उपमन्यु चटर्जी, उपरवास कथात्रयी, उपेन्द्रनाथ झा, उपेन्द्रनाथ अश्क, छावणी, छंदोबद्ध उपन्यास सूचकांक विस्तार (636 अधिक) »

चदुरंग

चदुरंग कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास वैशाख के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चन्दना गोस्वामी

चन्दना गोस्वामी असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास पाटकाईर ईपारे मोर देश के लिये उन्हें सन् 2012 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चन्द्रकान्ता

चन्द्रकान्ता निम्न में से कोई एक हो सकता है.

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चमन नाहल

चमन नाहल अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आज़ादी के लिये उन्हें सन् 1977 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चायुव नारकालि

चायुव नारकालि तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार तोप्पिल मोहम्मद मीरान द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1997 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चार्ल्स डिकेंस

चार्ल्स डिकेंस चार्ल्स डिकेंस (७ फ़रवरी १८१२ – ९ जून १८७०), विक्टोरियन युग के सबसे लोकप्रिय अंग्रेजी उपन्यासकार थे, साथ ही एक सशक्त सामाजिक आंदोलन के सदस्य भी थे। चार्ल्स डिकेंस की लोकप्रियता इसी तथ्य से आंकी जा सकती है कि उनके उपन्यास और लघु कथाएँ आज तक 'प्रिंट' से बाहर ही नहीं गये। चार्ल्स के लगभग दर्जन भर प्रमुख उपन्यास, लघु कथाओं की एक बड़ी संख्या, अनेकों नाटक और कई गैर कल्पना किताबें आज भी सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। अपने साहित्य से उन्होंने समकालीन अंग्रेजी समाज का मनोरंजन ही नहीं किया, वरन् उसे दिशा भी दी। .

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चित्रलेखा

चित्रलेखा 1964 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जो भगवती चरण वर्मा द्वारा रचित हिन्दी उपन्यास ‘चित्रलेखा’ (1934) पर आधारित है। फिल्म के मुख्य कलाकार हैं अशोक कुमार, मीना कुमारी, प्रदीप कुमार और महमूद। फिल्म के निर्देशक है केदार शर्मा जिन्होंने इसी नाम से १९४१ में भी एक फिल्म बनाई थी। फिल्म रोचक है परंतु उपन्यास की तुलना में हलकी पड़ती है। जहाँ लेखक ने विभिन्न विचारधाराओं में संतुलन बनाये रखा फिल्म में योग' की अपेक्षा 'भोग' के पक्ष में असंतुलन देखने को मिलता है। साहिर लुधियानवी के गीत और रोशन का संगीत कर्ण प्रिय हैं। 'संसार से भागे फिरते हो' और 'मन रे तू काहे न धीर धरे' आज भी लोकप्रिय हैं। .

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चित्रलेखा (उपन्यास)

खुबसुरति चित्रलेखा भगवती चरण वर्मा द्वारा रचित हिन्दी उपन्यास है। यह न केवल भगवतीचरण वर्मा को ए॰ उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने वाला पहला उपन्यास है बल्कि हिन्दी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है जिनकी लोकप्रियता काल की सीमा को लाँघती रही है। 1934 में प्रकाशित 'चित्रलेखा' ने लोकप्रियता के कई पुराने कीर्तिमान बनाए॰थे। कहा जाता है कि अनेक भारतीय भाषाओं में अनूदित होने के अतिरिक्त केवल हिन्दी में नवें दशक तक इसकी ढाई लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी थीं। 1940 में केदार शर्मा के निर्देशन में "चित्रलेखा' पर एक फिल्म भी बनी। चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? - इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नांबर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमश: सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नांबर की टिप्पणी है, ‘‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।’’ .

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चित्रा मुद्गल

चित्रा मुद्गल हिन्दी की वरिष्ठ कथालेखिका हैं। उनका जीवन किसी रोमांचक प्रेम-कथा से कम नहीं है। उन्नाव के जमींदार परिवार में जन्मी किसी लड़की के लिए साठ के दशक में अंतरजातीय प्रेमविवाह करना आसान काम नहीं था। लेकिन चित्रा जी ने तो शुरू से ही कठिन मार्ग के विकल्प को अपनाया। पिता का आलीशान बंगला छोड़कर 25 रुपए महीने के किराए की खोली में रहना और मजदूर यूनियन के लिए काम करना - चित्रा ने हर चुनौती को हँसते-हँसते स्वीकार किया। १० दिसम्बर १९४४ को जनमी चित्रा मुद्गल की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक ग्राम निहाली खेड़ा (जिला उन्नाव, उ.प्र.) से लगे ग्राम भरतीपुर के कन्या पाठशाला में। हायर सेकेंडरी पूना बोर्ड से की और शेष पढ़ाई मुंबई विश्वविद्यालय से। बहुत बाद में स्नातकोत्तर पढ़ाई पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से एस.एन.डी.टी.

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चिदंबर रहस्य

चिदंबर रहस्य कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार के. पी. पूर्णचंद्र तेजस्वी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चंदन नेगी

श्रीमती चंदन नेगी (जन्म 26 जून, 1937) एक पंजाबी उपन्यासकार और कहानीकार है। उसने अनुवाद के क्षेत्र में भी कई काम किया है। .

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चंद्रप्रसाद सइकीया

चंद्रप्रसाद सइकीया असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास महारथी के लिये उन्हें सन् 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चंद्रकांता (लेखिका)

श्रीमती चन्द्रकान्ता चन्द्रकान्ता (जन्म 3 दिसम्बर 1938) हिन्दी की विख्यात लेखिका हैं। 'कथा सतीसर' उनकी सबसे विख्यात उपन्यास है। श्रीमती चन्द्रकान्ता का जन्म श्रीनगर में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रो.

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चंद्रकांता संतति

चंद्रकांता संतति लोक विश्रुत साहित्यकार बाबू देवकीनंदन खत्री का विश्वप्रसिद्ध ऐय्यारी उपन्यास है। खत्री जी ने पहले चन्द्रकान्ता लिखा फिर उसकी लोकप्रियता और सफलता को देख कर उन्होंने कहानी को आगे बढ़ाया और 'चन्द्रकान्ता संतति' की रचना की। हिन्दी के प्रचार प्रसार में यह उपन्यास मील का पत्थर है। कहते हैं कि लाखों लोगों ने चन्द्रकान्ता संतति को पढ़ने के लिए ही हिन्दी सीखी। घटना प्रधान, तिलिस्म, जादूगरी, रहस्यलोक, एय्यारी की पृष्ठभूमि वाला हिन्दी का यह उपन्यास आज भी लोकप्रियता के शीर्ष पर है। बाबू देवकीनंदन खत्री लिखित चन्द्रकान्ता संतति हिन्दी साहित्य का ऐसा उपन्यास है जिसने पूरे देश में तहलका मचाया था। इस उपन्यास की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इसे पढ़ने के लिए हजारों गैर-हिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी। चंद्रकांता संतति उपन्यास को आधार बनाकर निरजा गुलेरी ने इसी नाम से टेलीविजन धारावाहिक बनाई। यह धारावाहिक दूरदर्शन के सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिकों में शुमार हुई। "चन्द्रकान्ता" और "चन्द्रकान्ता सन्तति" में यद्यपि इस बात का पता नहीं लगेगा कि कब और कहाँ भाषा का परिवर्तन हो गया परन्तु उसके आरम्भ और अन्त में आप ठीक वैसा ही परिवर्तन पायेंगे जैसा बालक और वृद्ध में। एक दम से बहुत से संस्कृत शब्दों का प्रचार करते तो कभी सम्भव न था कि उतने संस्कृत शब्द हम ग्रामीण लोगों को याद करा देते। इस पुस्तक के लिए वह लोग भी बोधगम्य उर्दू के शब्दों को अपनी विशुद्ध हिन्दी में लाने लगे जो आरम्भ में इसका विरोध करते थे। .

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चेतन भगत

चेतन भगत (जन्म २२ अप्रैल १९७४), मशहूर उपन्यास लेखक हैं। उनके पहले दोनों उपन्यास बहुत कामयाब रहे थे। उनकी पहली उपन्यास 'फाइव पोइंट समवन' जहाँ आई.आई.टी.

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चेम्मीन

चेम्मीन मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार तकष़ी शिवशंकर पिळ्ळै द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1957 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चेरमान कादली

चेरमान कादली तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार कण्णदासन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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टार्ज़न

टार्जन एक काल्पनिक चरित्र है, वह एक आदिरूप जंगली बच्चा है जिसे अफ्रीका के जंगलों में मंगानी "महान वानरों" के द्वारा पाल पोस कर बड़ा किया जाता है; बाद में वह सामाजिक जीवन में लौट आता है, लेकिन इसे स्वीकार नहीं कर पाता है और एक साहसी वीर के रूप में फिर से जंगल में लौट आता है। टार्ज़न एक ऐसा पात्र है जिसे एडगर राईस बरोज के द्वारा बनाया गया, सबसे पहले इस पात्र को उपन्यास टार्ज़न ऑफ़ द एप्स (मैगजीन प्रकाशन 1912, पुस्तक प्रकाशन 1914) में देखा गया और इसके बाद इसके 25 सिक्वल्स में, अन्य लेखकों की तीन अधिकृत पुस्तकों में और मीडिया के असंख्य अधिकृत या अनाधिकृत कामों में भी देखा गया। .

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ट्रेन टू पाकिस्तान

ट्रेन टू पाकिस्तान या पाकिस्तान मेल (Train To Pakistan) सुप्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यासकार खुशवंत सिंह का 1956 में अमेरिका के ग्रोव प्रेस अवार्ड से पुरुस्कृत उपन्यास है। यह अगस्त 1947 में भारत विभाजन की त्रासदी पर केन्द्रित है। ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ में पंजाब के एक कल्पित गांव ‘मनु माजरा’ की कहानी कहता है। यह गाँव भारत-पाक सीमा के क़रीब ही स्थित है यहाँ सदियों से मुसलमान और सिख मिल-जुल कर रह रहे हैं। पर देश के विभाजन के साथ ही स्थितियाँ बदल जाती हैं और लोग एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे हो जाते हैं। यह सारा वृत्तांत एक प्रेम कहानी की पृष्ठभूमि में है। .

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टू स्टेट्स

'टू स्टेट्स: द स्टोरी ऑफ़ माय मैरिज' चेतन भगत द्वारा २००९ में लिखा गया एक उपन्यास है। यह भारत के दो अलग अलग राज्यों से जुड़े एक युगल की प्रेम कहानी है, जिनके माता पिता इस प्रेम विवाह के विरुद्ध हैं। यह एक काल्पनिक कथा है, जोकि मुख्य रूप से लेखक और उसकी पत्नी अनुषा की वास्तविक कहानी से प्रेरित मानी जाती है। .

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टी. वी. सरदेशमुख

टी.

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टी. गोपीचंद

टी.

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टी. आर. सुब्बाराव

टी.

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ऍच॰ जी॰ वेल्स

हर्बट जॉर्ज वेल्स (२१ सितंबर १८६६ - १३ अगस्त १९४६) - एॅच० जी० वेल्स से प्रचलित - बहुत सी विधाओं, जिनमें उपन्यास, इतिहास, राजनीति, सामाजिक टिप्पणी, पाठ्यपुस्तके, एवं युद्ध वाले खेलों के नियम सम्मिलित हैं, में निपुण अंग्रेजी के एक बहुप्रजनक लेखक थे। वेल्स अब सर्वश्रेष्ठ रूप से अपने काल्पनिक विज्ञान (सांइस फि़क्शन) उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं और जूल्स वर्न एवं ह्यूगो गर्नस्बेक के साथ काल्पनिक विज्ञान शैली के पिता कहें जाते हैं। उनके सबसे उल्लेखनीय काल्पनिक विज्ञान लेखन कार्यों में 'दी टाइम मशीन (१८९५)', 'दी आईलैंड आॅफ़ डाॅक्टर मोरियो (१८९६)', 'दी इनविजी़बिल मैन (१८९७)' एवं 'दी वाॅर आॅफ़ दी वर्ल्डज़ (१८९८)' सम्मिलित हैं। उनका नाम साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए चार बार नामांकित किया गया था। वेल्स का आरंभिक विशेषीकृत प्रशिक्षण जीवविज्ञान में हुआ, और नैतिक विषयों पर उनके विचार विनिर्दिष्ट एवं मौलिक रूप से डार्विन सन्दर्भ में संघटित हुए। वे शुरुआती दिनों से एक स्पष्टवादी समाजवादी भी थे, (पर हमेशा से नहीं, जैसे प्रथम विश्व युद्ध की शुरूआत में) जो अक्सर शांतिवादी विचारों का समर्थन करतें। उनके बाद के लेखन कार्य उत्तरोत्तर रूप से राजनीतिक एवं शिक्षाप्रद होते चले गए, और उन्होंने काल्पनिक विज्ञान शैली में थोड़ा ही लिखा, और इसी दौरान उन्होंनें कई बार औपचारिक लेख्य पत्रों में स्पष्ट भी किया कि उनका व्यवसाय एक पत्रकार का हैं। 'किप्स' और 'दी हिस्ट्री आॅफ़ मिस्टर पाॅली' जैसे उपन्यासों, जो निचले-मध्यम-वर्ग के जीवन का बखान करते हैं, ने छपने के बाद, इसी ओर संकेत किया, कि वेल्स,  चार्ल्स डिकेंस के सुयोग्य उत्तराधिकारी हैं, परंतु डिकेंस के विपरीत, वेल्स ने सामाजिक स्तरों का वर्णन विस्तारपूर्वक किया और 'टोनो-बंगे (१९०९)' में समूचे अंग्रेजी समाज का मूल्यांकन करने का भी प्रयास किया। एक मधुमेह रोगी, वेल्स ने १९३४ में 'दी डायबिटीज़ एसोसिएशन' (आज 'डायबिटीज़ यूके' से प्रचलित) की सह-संस्थापना की। .

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ए न्यू वर्ल्ड

ए न्यू वर्ल्ड अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार अमित चौधुरी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ए. चित्रेश्वर शर्मा

ए. चित्रेश्वर शर्मा मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास थरोशंबी के लिये उन्हें सन् 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ए. सेतुमाधवन (सेतु)

ए. सेतुमाधवन (सेतु) मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अडयाळंगळ के लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एच. गुनो सिंह

एच.

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एडवर्ड नॉर्टन

एडवर्ड हैरिसन नॉर्टन (जन्म 18 अगस्त 1969) एक अमेरिकी फिल्म अभिनेता, पटकथा लेखक और निर्देशक हैं। 1996 में, अदालती नाटक प्राइमल फियर में उनकी सहायक भूमिका ने उनके लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के अकादमी पुरस्कार का नामांकन एकत्रित किया। दो साल बाद, अमेरिकन हिस्ट्री X में व्हाइट पावर स्किनहेड के रूप में अपनी मुख्य भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए अकादमी अवार्ड में नामांकन प्राप्त हुआ। उनकी अन्य फिल्मों में किंगडम ऑफ़ हेवेन (2005), दी इल्युशनिस्ट (2006) और दी पेंटेड वेल (2006), जैसे पीरिअड फ़िल्में शामिल हैं; उनकी अन्य उल्लेखनीय फ़िल्में हैं राउंडर्स (1998),फाइट क्लब (1999), 25th आवर (2002), रेड ड्रैगन (2002) और दी इनक्रेडिबल हल्क (2008).

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एडवर्ड मॉर्गन फार्स्टर

एडवर्ड मॉर्गन फार्स्टर एडवर्ड मॉर्गन फार्स्टर (Edward Morgan Forster; १८७९ - १९७०) - अंग्रेजी उपन्यासकार और आलोचक थे। .

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एडोगवा रंपो

एडोगवा रांपो 'टारो हिराइ' (२१ अक्तूबर १८९४ - २८ जुलाई १९६५) एडोगवा रांपो उपनाम से एक मशहूर जापानी लेखक और आलोचक थे जिन्होनें जापानी रहसयमय कहानियों को विकसित करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका को स्थापित किया है। टारो हिराइ १८९४ में मेइ प्रांत के नाबारी नाम स्थल में जनमें थे, जहाँ उनके दादा सु वंश की सेवा में एक समुराई थे। जब वे दो साल के थे, उनके परिवार मेइ प्रांत में कामेयामा से नगोया प्रचलित हुए। उनके कयी कहनियों का नायक जासूस कोगोरो अकेची जो आगे आने वाले कहनियो में "बाल जासूसों का क्लब" नाम का बाल जासूसों की एक समूह का नेता था। रांपो पश्चिमी रहस्यमइ लेखकों के प्रशंसक थे, विशेष तौर से एडगर आलन पो के। उनके उपनाम पो नाम का एक रूप है। रांपो पर खास प्रभाव डालने वाले अन्य लेखकों में एक थे, सर ऑरतर कोनन डायल, जिनकी रचनाओं को वासिडा विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के छात्र होने वक्त जापानी भाषा में अनुवादित करने को प्रयत्न किये। और दूसरे थे, जापानी रहस्यमय कहनियों के लेखक रुइको कुरोइवा। द्वितीय विशवयुद्ध के पहले १९१६ में अर्थशास्त्र में उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होनें कई प्रकार के छोटे-मोटे नौकरी की, जैसे अखबार का भाषाशोधन करना, पत्रिकाओं के लिये हास्यचित्रों का आरेखन करना, सडक में सोबा नूडल बेचना, और पुराने किताबों के दुकान में काम करना। १९२३ में उनहोनें अपने साहित्यिक शुरूआत 'एडोगवा रांपो' उपनाम में "नि-सेन डोका" नाम के रहस्यमय कहानी की प्रकाशन से किया। यह कहानी किशोर लोगों के लिये रचाया गया 'शिन सेनन' नामक लोकप्रिय पत्रिका में प्रकट हुआ। १९२३ में उसके कलम नाम "एडोगवा रांपो" से लिखी गयी रहस्य कहानी "दो सेन तांबे का सिक्का"के प्रकाशन द्वारा अपने साहित्यिक नौकरी की शुरुआत हुई। कहानी 'शिन सिनेन' नमक लोकप्रिय पत्रिका, जो किशोर दर्शकों के लिए लिखी गई थी। 'शिन सिनेन' पहले पो, आर्थर कॉनन डॉयल, और जीके चेस्टरटन सहित पश्चिमी लेखकों की कहानियाँ प्रकाशित किया था, लेकिन इस पत्रिका के लिए एक जापानी लेखक द्वारा रहस्य कथा का एक बड़ा टुकड़ा प्रकाशित करना पहली बार हुआ था। ऐसे जेम्स बी हैरिस (अंग्रेजी में रांपो की पहली अनुवादक), ग़लती से इसको आधुनिक रहस्‍य उपन्यास का पहला टुकड़ा माना गया था.लेकिन रांपो १९२३ में साहित्यिक दृश्‍य में प्रवेश से पहले ही, अन्य लेखकों जैसे रूयिको कुरईवा, किदो ओकामोटो, जुनिचिरो तनिज़की, हारूओ साटो और कैता मुरायमा के कहानियों के भीतर तहकीक़त, रहस्य, और अपराध के तत्वों को शामिल किया था। रांपो की पहली कहानी "दो सेन तांबे का सिक्का" के बारे में आलोचकों ने बताया गया कि एक कहानी के भीतर एक रहस्य को सुलझाने के लिए इस्तेमाल किया 'रेटियसिनेशन' की तार्किक प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया गया था और यह बारीकी से जापानी संस्कृति से संबंधित है। इस कहानी एक व्यापक शामिल "नेंबुत्सु", जो एक बुद्धिस्ट जादू के आधार पर बनाया गया स्वदेशी अक्षरो, और जापानी ब्रेल पद्धति का विवरण किया गया था। अगले कई वर्षों के दौरान पर, एडोगवा अपराधों और उन्हें सुलझाने में शामिल प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने हुए अन्य कहानियों लिखा गया। इन कहानियों को अब २० वीं सदी जापानी मे लोकप्रिय साहित्य के क्लासिक्स माना जाता है। "डी हिल पर हत्या के मामले का"(जनवरी 1925)- एक महिला के बारे में है जो एक परपीड़क-स्वपीड़क विवाहेतर संबंध के पाठ्यक्रम में मार दिया जाता है, "अटारी में शिकारी" (अगस्त 1925) एक आदमी के बारे में है, जो अटारी मे छिपकर अपने शिकार लोगों के मुँह मे ज़हर डालते है,और "मानव कुर्सी" (अक्टूबर 1925), में एक आदमी अपने शिकार लोगो के शिव से कुर्सी बनाकर, उसको महसूस करने के लिए उसके उपर बैठता है - इन सब उस्के अन्य कहनियों क उधाहरनण हैं। "दर्पण के नरक" जैसे कहानियो मे रांपो दर्पण,ताल, और अन्य दृष्टि- विषयक उपकरणों दिखाई जाती हैं। अपनी पहली कहानियों के कई मुख्य रूप से तहकीकात और अपराधों को सुलझाने में इस्तेमाल की प्रक्रिया के बारे में था, लेकिन १९३० से उन्हे अपने कहानियो मे स्मवेदनशीलता का मेल, जो कामुकता, अजीबोगरीब, और 'अतर्कसंग' का सम्मिमन किया था। इन संवेदनाओं की उपस्थिति से लोग उसको पड़ने के लिए बड़ी उत्सुक थी और लेखक की कहानियों को बेचने में मदद किय गया था। इन कहानियों पड़कर, लोगों को 'असामान्य कामुकता" नामक जापानी तत्वो का शामिल करने के लिए एक लगातार प्रवृत्ति पाता है। उदाहरण के लिए, उपन्यास "लोनली आइल के दानव की साजिश" का एक बड़ा हिस्सा में एक समलैंगिक डॉक्टर एक अन्य मुख्य चरित्र को प्यार किया जाता था। १९३0 के दशक तक, एडोगवा लोकप्रिय साहित्य की प्रमुख सार्वजनिक पत्रिकाओं का एक नंबर के लिए नियमित रूप से लिख रहा था, और वह जापानी रहस्य उपन्यास की सबसे बड़ी आवाज के रूप में उभरा था। रांपो की कहानियों मे मुखयपत्र जासूसी नायक कोगोरो अकेची, "डी हिल पर हत्या के मामले का" नमक कहानी मे पहली बार आया था। उनकी कई कहानियों में कोगोरो अपने अपराधित खिलाफ़ 'बीस चेहरे' के साथ संघर्ष करता है। 1930 उपन्यास कोगोरो की दिली दोस्त के रूप में किशोर कोबायाशी को भी अपने कहानियों मे पेश किया था। इन कार्यों में बेतहाशा लोकप्रिय थे और अभी भी कई युवा जापानी पाठकों द्वारा पढ़े रहते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1939 में, दो साल मार्को पोलो पुल हादसा और 1937 में द्वितीय चीन-जापान युद्ध के फैलने के बाद, एडोगवा के कहानी "कमला", प्रकाशित न करने के लिए सरकार ने सेंसर बोर्ड द्वारा आदेश दिया गया था। "कमला" एक अनुभवी मानव कि क्वाडरिप्लीजिक स्थिति के बारे में विकृत किया गया था जो सहयता से बिना नही रह सकता था। सेंसर बोर्ड ने जाहिरा तौर पर कहानी वर्तमान युद्ध के प्रयास से कम करना होने के मन मे कहानी पर प्रतिबंध लगा दिया। इस आय के लिए प्रकाशन से रॉयल्टी पर भरोसा है जो रांपो, के लिए एक झटका के रूप में आया था। (60 वें बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में गोल्डन बियर की प्रतियोगिता के लिए जो यह अपनी फिल्म कमला, से आकर्षित किया है जो लघु कहानी प्रेरित निदेशक कोजी वाकामतसू)। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, विशेष रूप से १९४१ में जापान और अमेरिका के बीच पूर्ण युद्ध के दौरान पर, एडोगवा अपने स्थानीय देशभक्ति, पड़ोस संगठन में सक्रिय था, और वह युवा जासूस और अधिकारियों के बारे में कहानियों का एक नंबर लिखा था। फरवरी १९४५ में, उसके परिवार को उत्तरी जापान में फुकुशिमा के लिए इकेबुकुरो टोक्यो में उनके घर से बाहर निकाल लिया गया था। वह कुपोषण से पीड़ित था जब एडोगवा जून तक बने रहे। इकेबुकुरो के ज्यादा मित्र देशों के हवाई हमलों और शहर में बाहर तोड़ दिया है कि बाद में आग में नष्ट हो गया था। लेकिन चमत्कारिक ढंग से, वह अपने मोटी, मिट्टी घिरी गोदाम स्टूडियो बचा गया था, और अभी भी रिक्कयो विश्वविद्यालय के बगल में खड़ा है। युद्ध के बाद का युद्ध के बाद की अवधि में, एडोगवा अपने इतिहास की समझ के मामले में, नए रहस्य कथा के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए और दोनों रहस्य कथा को बढ़ावा देने के लिए उर्जा सौदा समर्पित किया। १९४६ में 'ज्वेल्स' नामक पत्रिका शुरू की.

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एधानी माहीर हाँहि

एधानी माहीर हाँहि असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार महिमा बरा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एन. पी. मुहम्मद

एन.

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एम एंड द बिग हूम

एम एंड द बिग हूम अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार जेरी पिन्टो द्वारा रचित एक उपन्यास है। इनके लिये उन्हें सन् २०१६ में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एम. मुकुंदन

एम.

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एम. वी. वेंकटराम

एम.

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एम.टी. वासुदेवन् नायर

एम.टी.

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एमा वॉटसन

एमा चारलॉट डुएरे वॉटसन (जन्म 15 अप्रैल 1990) एक ब्रिटिश अभिनेत्री है जो ''हैरी पॉटर'' फिल्म श्रृंखला की तीन स्टार भूमिकाओं में से एक, हरमाइन ग्रेनजर की भूमिका में उभर कर सामने आई.

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एस. एन. पेंडसे

एस.

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एस. एल. भैरप्प

एस.

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एस. के. पोट्टेक्काट

एस.

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एस्थर डेविड

एस्थर डेविड अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बुक ऑफ़ रैचल के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एहो हमारा जीवणा

एहो हमारा जीवणा पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार दलीप कौर टिवाणा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1971 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एक चादर मैली–सी

एक चादर मैली–सी उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार राजिन्दर सिंह बेदी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1965 में उर्दू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एक और चंद्रकांता

एक और चंद्रकांता कमलेश्वर का एक उपन्यास है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:कमलेश्वर श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:गद्य.

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एकांत के सौ वर्ष

हंगरी में "एकान् त के सौ वर्ष" की एक नाटकीय प्रस्तुति में अभिनेत्री दानिस लीदिया एकांत के सौ वर्ष (स्पेनी: Cien años de soledad, सियेन अन्योस दे सोलेदाद) गेब्रियल गार्सिया मार्ख़ेस द्वारा लिखित एक उपन्यास है जो एक काल्पनिक बुएन्दीआ (Buendía) नामक परिवार की कई पीढ़ियों की दास्तान है। कहानी का घटनास्थल दक्षिण अमेरिका के कोलम्बिया देश में ओरिनोको नदी के किनारे स्थित माकोन्दो (Macondo) नाम का शहर है जिसे बुएन्दीआ परिवार का पितामह, जोज़ आर्कादियो बुएन्दीआ (Jose Arcadio Buendía) स्थापित करता है। यह उपन्यास सन् १९६७ में छपा था और मार्ख़ेस की सबसे श्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इसकी २ करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं और ३७ भाषाओँ में अनुवाद किया जा चुका है। इस उपन्यास में जादुई यथार्थवाद शैली का प्रयोग किया गया है, जिसने अपने प्रकाशन के पश्चात लातिन अमेरिकी साहित्य की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। एक ओर तो कहानी बिलकुल सत्य लगनी वाली घटनाओं पर आधारित है लेकिन बीच-बीच में जादूई चीज़ें भी घटती रहती हैं। यह सत्य और जादू का मिश्रण १९६० और १९७० के दशकों में दक्षिण अमेरिका से आने वाले बहुत से उपन्यासों में देखा गया था। .

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झाँसी की रानी (उपन्यास)

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हिंदी लेखक वृंदावनलाल वर्मा द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसका प्रथम प्रकाशन सन् 1946 में हुआ। 1946 से 1948 के बीच लेखक ने इसी शीर्षक से एक नाटक भी लिखा जिसे 1955 में मंचित किया गया हालाँकि, उपन्यास अधिक प्रसिद्ध हुआ और इसे हिंदी भाषा में ऐतिहासिक उपन्यासों की श्रेणी में एक मील का पत्थर माना जाता है। 1951 में इस उपन्यास का पुनर्प्रकाशन हुआ। उपन्यास का कथानक भारत में ब्रिटिश राज के काल में मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर आधारित है। साथ ही यह 1857 के विद्रोह की आधुनिक व्याख्या भी प्रस्तुत करता है। .

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झवेरचन्द मेघाणी

झवेरचंद मेघाणी (१८९६ - १९४७) गुजराती साहित्यकार तथा पत्रकार थे। गुजराती-लोकसाहित्य के क्षेत्र में मेघाणी का स्थान सर्वोपरि है। वे सफल कवि ही नहीं, उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार, जीवनीलेखक तथा अनुवादक भी थे। .

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झुम्पा लाहिड़ी

झुम्पा लाहिड़ी (बंगाली: ঝুম্পা লাহিড়ী, 11 जुलाई 1967, को जन्म) एक भारतीय अमेरिकी लेखिका हैं। भारतीय अमेरिकी लेखक झुम्पा लाहिड़ी को लघु कथा में उत्कृष्टता के लिए 2017 पीएएन / मालामुद अवॉर्ड के प्राप्तकर्ता के रूप में घोषित किया गया है। लाहिड़ी के प्रथम लघु कथा संग्रह, इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलडीज़ (1999) को 2000 में उपन्यास के पुलित्जर पुरस्कार सम्मानित किया गया और उनके पहले उपन्यास द नेमसेक (2003) पर आधारित उसी नाम की एक फिल्म बनाई गयी।आइज़ैक चोटीनर.

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झोंबी

झोंबी मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार आनंद रतन यादव द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ठाकुर जगन्मोहन सिंह

ठाकुर जगन्मोहन सिंह (१८५७ विजयराघवगढ़ -- ४ मार्च १८९९ सुहागपुर) हिन्दी के भारतेन्दुयुगीन कवि, आलोचक और उपन्यासकार तथा जगन्मोहन मण्डल के संस्थापक थे। छत्तीसगढ़ में ठाकुर जगमोहनसिंह का हिन्दी का साहित्यिक वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने सन् 1880 से 1882 तक धमतरी में और सन् 1882 से 1887 तक शिवरीनारायण में तहसीलदार और मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया। यही नहीं, छत्तीसगढ़ के बिखरे साहित्यकारों को जगन्मोहन मंडल बनाकर एक सूत्र में पिरोया और उन्हें लेखन की सही दिशा भी दी। .

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डांगोरा : एका नगरीचा

डांगोरा: एका नगरीचा मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार टी. वी. सरदेशमुख द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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डिसऑर्डरली वुमेन

डिसऑर्डरली वुमेन अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार मालती राव द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ड्यून (उपन्यास)

फ़्रैंक हर्बर्ट द्वारा बनाया गया काल्पनिक रेगिस्तानी ग्रह अर्राकिस का एक चित्र ड्यून अमेरिकी लेखक फ़्रैंक हर्बर्ट द्वारा सन् १९६५ में प्रकाशित विज्ञान कथा उपन्यास है। १९६६ में इसने ह्यूगो पुरस्कार जीता और १९६६ में नॅब्युला पुरस्कार जीता: यह दोनों ही हर साल छपने वाली सर्वश्रेष्ठ विज्ञान कथा को दिए जाते हैं। ड्यून की १.२ करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं और इसे विश्व का सब से ज़्यादा बिकने वाला विज्ञान कथा उपन्यास माना जाता है। इसके प्रकाशन के बाद फ़्रैंक हर्बर्ट ने इसकी कथा को पाँच और ड्यून उपन्यासों में आगे बढ़ाया। .

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ड्रूड

ड्रूड (मूलत: द मिस्ट्री ऑफ एडविन ड्रूड) चार्ल्स डिकेंस के अपूर्ण उपन्यास द मिस्ट्री ऑफ एडविन ड्रूड पर आधारित एक संगीत नाटक है। यह रूपर्ट होम्स द्वारा लिखा गया है और यह पहला मुख्यधारा का संगीत नाटक था, जिसका अंत विविधता लिए हुए था (दर्शकों के मत द्वारा निर्धारित).

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डैनियल डेफॉ

डैनियल डेफॉ या डैनियल डिफो, मूल नाम डैनियल फॉ (जन्म: 1659-1661 मृत्यु: 24 अप्रैल 1731), एक अंग्रेजी लेखक, पत्रकार, पैंफ्लेट लेखक तथा उपन्यासकार था, जिसने अपने उपन्यास रोबिंसन क्रूसो के लिए चिरस्थायी प्रसिद्धि प्राप्त की। ब्रिटेन में डैफो ने उपन्यास की विधा को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ लोग तो उसे अंग्रेजी उपन्यास के संस्थापकों में से एक मानते हैं। वह एक बहुसर्जक और बहुमुखी प्रतिभा का धनी लेखक था; उसने राजनीति, अपराध, धर्म, विवाह, मनोविज्ञान और परालौकिक सहित विभिन्न विषयों पर पाँच सौ से अधिक किताबें, लघुलेख और जर्नल लिखे थे। उसे आर्थिक मामलों की पत्रकारिता का अग्रदूत भी माना जाता है। डैनियल डिफो का मूल कुलनाम फो था, जो बाद में उसने डिफो कर लिया। उसका जन्म क्रिपलगेट में शायद १६६० ई० में हुआ था। मेरी टफले से उसका विवाह १६८४ ई० में हुआ। डिफो के माता पिता में परस्पर विशेष प्रेम नहीं था। उसकी शिक्षा दीक्षा बहुत कम हो पाई और बचपन से ही उसे जीवनसंघर्ष में जुट जाना पड़ा। उपन्यास आदि लिखना तो ६० वर्ष की उम्र में उसने शुरू किया। उससे पहले उसे पत्रकार के नाते बहुत कलमघिसाई करनी पड़ी। उसे राजनीति में बहुत रुचि थी। १७०१ ई० में उसने 'दि ट्रूबार्न इंग्लिशमैन' नामक एक कविता लिखी जो विलियम ऑव आरेंज के सिंहासन पर आने के संबंध में थी। इसमें उन लोगों पर व्यंग किया गया था जो राजा को विदेशी मानते थे। सन् १७०२ ई० में उसने 'दि शार्टेस्ट वे विथ डिस्सेंटर्स' में इंग्लैंड के चर्च पर शाब्दिक हमला किया। तब डिफो का खासा मजाक उड़ाया गया, उसे बंदी भी बनाया गया; परंतु वह सरकार का गुप्तचर बन गया। उसके बाद उसने कई लोगों के लिए छिपकर काम किए; और ऐसा भी कहा जाता है कि उसने दोनों पक्षों के लिए परस्पर विरोधी काम एक ही समय किए। १७०४ ई० से १७११ तक डिफो ने 'दि रिव्यू' नामक पत्र का संपादन किया जिसे बाद में ऐडिसन और स्टील ने चलाया। यद्यपि ६० वर्ष की आयु तक डिफो ने कई प्रकार का लेखन किया, तथापि उसकी मुख्य ख्याति उन प्रचार पुस्तिकाओं जैसे लेखन के कारण नहीं है। १७१९ में डिफो का एक उपन्यास 'राबिन्सन क्रूसो' प्रकाशित हुआ। यह अलैक्जैंडर सेलकर्क नामक व्यक्ति के जुआन फेर्नांदेज द्वीप पर १७०४ से १७०९ तक निर्वासन ओर एकांतवास की सत्य कथा पर आधारित उपन्यास था। इसमें एक ऐसे व्यक्ति की जीवनी है जो जहाज टूटने से अकेला एक अनजान द्वीप पर जा पहुँचता है, कुछ औज़ारों के सहारे अपनी झोपड़ी खुद बनाता है। फ्राइडे नामक सेवक एकमात्र उसका मित्र है। वहाँ उसे कैसे अद्भुत अनुभव प्राप्त होते हैं, इसका सब प्रामाणिक, ब्यौरेवार वर्णन डिफो ने प्रस्तुत किया है। यह उपन्यास छपते ही खूब बिका और अब तो विश्वसाहित्य में वह एक है। पुस्तक की सारी घटनाएँ और विवरण ऐसे सजीव हैं और मनुष्यस्वभाव का ऐसा मार्मिक वर्णन सहज प्रवाहमयी भाषा में किया गया है कि उस समय के नए नए साक्षर पाठकों के विशाल समुदाय ने पूरी कहानी को सच मान लिया। डिफो एक के बाद एक ऐसे कई औपन्यासिक वृत्त लिखने लगा। १७२० में साहसपूर्ण समुद्री डकैती पर आधारित कहानी कैप्टन सिंगलटन छपी। दो साल बाद मौल फ्लैंडर्स नामक चंचला स्त्री की जीवनी छपी, जो क्रमश: धनी और दरिद्र होते होते बुढ़ापे में जाकर अपनी प्रणयलीलाओं पर पछताती है। १७२२ ई० में छपा 'महामारी के वर्ष की दैनिकी' (जर्नल ऑव दि प्लेग ईयर) १६६५ ई० में लंदन में जो भयानक महामारी फैली थी उसका जीता जागता, आँखों देखा वर्णन डिफो ने कल्पना की आँखों से प्रस्तुत किया। कई आलोचक इसे डिफो की सर्वश्रेष्ठ कृति मानते हैं। १७२४ ई० में 'रुखसाना अथवा भाग्यवान प्रमिका' पुस्तक में फिर मौल फ्लैंडर्स जैसी चंचला स्त्री की कहानी है जो अपने सौंदर्य का जाल बिछाकर खूब संपत्ति कमाती रहती है। इन सब कथाकृतियों में क्रूसो का स्थान सर्वोपरि है। उसकी महत्ता आज भी अक्षुण्ण है। बच्चों के साहित्य में इस साहसकथा का सानी दूसरा नहीं। २५० कृतियाँ लिखकर भी डिफो की शैली प्रसन्न और स्वाभाविक प्रवाहमयी रही। डिफो भी सभी कथाओं का अंत नैतिक उपदेश के ढंग पर सत्य और न्याय की विजय और पाप की हार होता है। परन्तु कहानी के दौरान में वह पापी वेश्याओं, गुंडों, अपराधियों, समुद्री डाकुओं, साहसी नाविकों का चित्रण ऐसी यथार्थता के साथ करता जाता है कि उस समय के मध्यवर्गीय अंग्रेज पाठकों को उसकी कृतियों से बहुत आनन्द मिलता था। साहित्यगुणों में विशिष्ट या बहुत ऊँची न होने पर भी उसकी रचनाएँ अत्यधिक लोकप्रिय बनीं। इसका एक कारण यह था कि वह अपने पात्र और घटनाएँ प्रत्यक्ष जीवन की वास्तव पार्श्वभूमि से लेता था और उनमें आवश्यक मात्रा में कल्पना की मिलावट करता था। डिफो की मृत्यु मूरगेट में २६ अप्रैल, १७३१ ई० को हुई। .

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डू ऍन्ड्रॉइड्स ड्रीम ऑफ़ इलॅक्ट्रिक शीप?

डू ऍन्ड्रॉइड्स ड्रीम ऑफ़ इलॅक्ट्रिक शीप? एक विज्ञान गल्प उपन्यास है। इसे अमरीकी लेखक फिलिप के. डिक ने लिखा तथा 1968 में सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ। इसकी मुख्य पटकथा रिक डेकार्ट पर आधारित है, जो ऍन्ड्रॉइडों (एक प्रकार के रोबोट जो हू-ब-हू मनुष्य से मिलते जुलते हैं) का एक व्यावसायिक शिकारी (bounty hunter) है। इसकी द्वितीयक पटकथा जॉन इसिडोर पर आधारित है, जो कम औसत बुद्धि का व्यक्ति है और जो कि कुछ ऍन्ड्रॉइडों को मित्र भी बना लेता है। यह उपन्यास महाविनाश (कयामत) के बाद का काल दिखाता है। इस समय पृथ्वी व इसकी जनसंख्या नाभिकीय युद्ध से बुरी तरह प्रभावित हो चुकी है (तृतीय विश्व युद्ध या वर्ल्ड वॉर टर्मिनस के कारण)। अधिकांश जानवर अत्यधिक विकिरण विषाक्तता के कारण या तो संकटापन्न हो गये हैं या विलुप्त! पशु का मालिक होना प्रतिष्ठा का चिह्न माना जाता है और इसमें भी मनुष्य उनके प्रति जो भावनाएँ रखते हैं उनपर ज्यादा जोर दिया जाता है। डेकार्ड का, "रिटायर होते हुए" छः नेक्सस-6 मॉडल के एन्ड्रॉइडों से सामना होता है, जो नवीनतम व सबसे उन्नत मॉडल है। इसके कारण यह उपन्यास इस विषय का भी अन्वेषण करता है कि मनुष्य होना क्या है। मनुष्यों से भिन्न, एन्ड्रॉइडों के पास परदुःखकातरता (सहानुभूति) नहीं होती है। साररूप में, डेकार्ड इस बात का अन्वेषण करता है, कि मनुष्य को परिभाषित करने वाले गुण क्या हैं, जो कि मनुष्य को एन्ड्रॉइडों (यन्त्र-मानवों) से अलग करते हैं। इस पुस्तक की पटकथा 1982 की फ़िल्म ब्लेड रनर का मुख्य आधार बनी। .

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डी. नवीन

डी.

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डी. सेल्वराज

डी.

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ढाई घर

ढाई घर हिन्दी के विख्यात साहित्यकार गिरिराज किशोर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तट्टकम

तट्टकम मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार कोविलन (वी. वी. अय्यप्पन) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1998 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तणकट

तणकट मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार राजन गवस द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तत्त्वमसि (गुजराती उपन्यास)

तत्त्वमसि गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार धु्रव प्रबोधराय भट्ट द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तपोभूमि

तपोभूमि जैनेंद्र कुमार और ऋषभचरण जैन द्वारा 1932 में लिखा गया एक उपन्यास है।.

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तमस (उपन्यास)

तमस भीष्म साहनी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। वे इस उपन्यास से साहित्य जगत में बहुत लोकप्रिय हुए थे। तमस को १९७५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। इस पर १९८६ में गोविंद निहलानी ने दूरदर्शन धारावाहिक तथा एक फ़िल्म भी बनाई थी। 'तमस' की कथा परिधि में अप्रैल १९४७ के समय में पंजाब के जिले को परिवेश के रूप में लिया गया है। 'तमस' कुल पांच दिनों की कहानी को लेकर बुना गया उपन्यास है। परंतु कथा में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं, उससे यह पांच दिवस की कथा न होकर बीसवीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षो की कथा हो जाती है। यों संपूर्ण कथावस्तु दो खंडों में विभाजित है। पहले खंड में कुल तेरह प्रकरण हैं। दूसरा खंड गांव पर केंद्रित है। 'तमस' उपन्यास का रचनात्मक संगठन कलात्मक संधान की दृष्टि से प्रशंसनीय है। इसमें प्रयुक्त संवाद और नाटकीय तत्व प्रभावकारी हैं। भाषा हिन्दी, उर्दू, पंजाबी एवं अंग्रेजी के मिश्रित रूप वाली है। भाषायी अनुशासन कथ्य के प्रभाव को गहराता है। साथ ही कथ्य के अनुरूप वर्णनात्मक, मनोविशेषणात्मक एवं विशेषणात्मक शैली का प्रयोग सर्जक के शिल्प कौशल को उजागर करता है। आजादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरग चित्रण भीष्म साहनी ने इस उपन्यास में किया है। काल-विस्तार की दृष्टि से यह केवल पाँच दिनों की कहानी होने के बावजूद इसे लेखक ने इस खूबी के साथ चुना है कि सांप्रदायिकता का हर पहलू तार-तार उदघाटित हो जाता है और पाठक सारा उपन्यास एक साँस में पढ़ जाने के लिए विवश हो जाता है। भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या एक युग पुरानी है और इसके दानवी पंजों से अभी तक इस देश की मुक्ति नहीं हुई है। आजादी से पहले विदेशी शासकों ने यहाँ की जमीन पर अपने पाँव मजबूत करने के लिए इस समस्या को हथकंडा बनाया था और आजादी के बाद हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल इसका घृणित उपयोग कर रहे हैं। और इस सारी प्रक्रिया में जो तबाही हुई है उसका शिकार बनते रहे हैं वे निर्दोष और गरीब लोग जो न हिन्दू हैं, न मुसलमान बल्कि सिर्फ इन्सान हैं और हैं भारतीय नागरिक। भीष्म साहनी ने आजादी से पहले हुए साम्प्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण किया है और उन मनोवृत्तियों को उघाड़कर सामने रखा है जो अपनी विकृतियों का परिणाम जनसाधारण को भोगने के लिए विवश करती हैं। .

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तसलीमा नसरीन

तसलीमा नसरीन (जन्म: २५ अगस्त १९६२) बांग्ला लेखिका एवं भूतपूर्व चिकित्सक हैं जो १९९४ से बांग्लादेश से निर्वासित हैं। १९७० के दशक में एक कवि के रूप में उभरीं तसलीमा १९९० के दशक के आरम्भ में अत्यन्त प्रसिद्ध हो गयीं। वे अपने नारीवादी विचारों से युक्त लेखों तथा उपन्यासों एवं इस्लाम एवं अन्य नारीद्वेषी मजहबों की आलोचना के लिये जानी जाती हैं। बांग्लादेश में उनपर जारी फ़तवे के कारण आजकल वे कोलकाता में निर्वासित जीवन जी रही हैं। हालांकि कोलकाता में मुसलमानों के विरोध के बाद उन्हें कुछ समय के लिये दिल्ली और उसके बाद फिर स्वीडन में भी समय बिताना पड़ा लेकिन इसके बाद जनवरी २०१० में वे भारत लौट आईं। उन्होंने भारत में स्थाई नागरिकता के लिये आवेदन किया है लेकिन भारत सरकार की ओर से उस पर अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। यूरोप और अमेरिका में एक दशक से भी अधिक समय रहने के बाद, तस्लीमा 2005 में भारत चले गए, लेकिन 2008 में देश से हटा दिया गया, हालांकि वह दिल्ली में रह रही है, भारत में एक आवासीय परमिट के लिए दीर्घावधि, बहु- 2004 के बाद से प्रवेश या 'एक्स' वीज़ा। उसे स्वीडन की नागरिकता मिली है। स्त्री के स्वाभिमान और अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए तसलीमा नसरीन ने बहुत कुछ खोया। अपना भरापूरा परिवार, दाम्पत्य, नौकरी सब दांव पर लगा दिया। उसकी पराकाष्ठा थी देश निकाला। नसरीन को रियलिटी शो बिग बॉस 8 में भाग लेने के लिए कलर्स (टीवी चैनल) की तरफ से प्रस्ताव दिया गया है। तसलीमा ने इस शो में भाग लेने से मना कर दिया है। .

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ताम्रपट

ताम्रपट मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार रंगनाथ पठारे द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1999 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तारा मीरचंदाणी

तारा मीरचंदाणी सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास हठयोगी के लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ताराशंकर बंद्योपाध्याय

ताराशंकर बंद्योपाध्याय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आरोग्य निकेतन के लिये उन्हें सन् 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ताराशंकर बंधोपाध्याय

ताराशंकर बंधोपाध्याय एक बांग्ला साहित्यकार हैं। इन्हें गणदेवता के लिए १९६६ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ताराशंकर बंधोपाध्याय को साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६९ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल से हैं। .

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तिस्ता पारेर वृत्तांत

तिस्ता पारेर वृत्तांत बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार देवेश राय द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तकजि शिवशंकर पिल्लै

तकाजी शिवशंकरा पिल्लै (मलयालम: तकऴि शिवशंकरप्पिळ्ळ) मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास चेम्मीन के लिये उन्हें सन् १९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १९८४ में उन्हे ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।.

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त्रिपुरसुंदरी लक्ष्मी

त्रिपुरसुंदरी लक्ष्मी तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ओरु कावेरियइ पोला के लिये उन्हें सन् 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तौशाली दी हंसो

तौशाली दी हंसो पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार जसवंत सिंह कँवल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1997 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तृकोट्टूर नोवल्लकळ

तृकोट्टूर नोवल्लकळ मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार यू.ए. खादर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2009 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तेरु

तेरु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार राघवेन्द्र पाटील द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2005 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तेलुगू साहित्य

तेलुगु का साहित्य (तेलुगु: తెలుగు సాహిత్యం / तेलुगु साहित्यम्) अत्यन्त समृद्ध एवं प्राचीन है। इसमें काव्य, उपन्यास, नाटक, लघुकथाएँ, तथा पुराण आते हैं। तेलुगु साहित्य की परम्परा ११वीं शताब्दी के आरम्भिक काल से शुरू होती है जब महाभारत का संस्कृत से नन्नय्य द्वारा तेलुगु में अनुवाद किया गया। विजयनगर साम्राज्य के समय यह पल्लवित-पुष्पित हुई। .

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तेजपाल सिंह धामा

तेजपाल सिंह धामा (जन्म: 2 जनवरी 1971) हिन्दी के पत्रकार, लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। हमारी विरासत (शोध-ग्रंथ) उनकी प्रसिद्ध रचना है। इन्हें अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। इन्होंने हैदराबाद से प्रकाशित स्वतंत्र वार्ता एवं दिल्ली से प्रकाशित दैनिक विराट वैभव एवं वीर अर्जुन के संपादक विभागों में दशकों तक कार्य किया। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के खेकड़ा शहर में जन्मे तेजपाल सिंह धामा मुख्यत: इतिहास पर लिखने वाले साहित्यकार हैं जिनकी इतिहास से सम्बन्धित अनेकों पुस्तकें छप चुकी हैं। शहीदों पर लिखने के कारण इन्हें 2017 में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार ने संस्कृति मनीषी पुरस्कार से सम्मानित किया है, जिसमें डेढ लाख रुपए नगद एवं प्रशस्ति दी जाती है। .

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तोप्पिल मोहम्मद मीरान

तोप्पिल मोहम्मद मीरान तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास चायुव नारकालि के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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तोल

तोल तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार डी. सेल्वराज द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2012 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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थरोशंबी

थरोशंबी मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ए. चित्रेश्वर शर्मा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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थॉमस हार्डी

---- थॉमस हार्डी (2 जून 1840 -- 11 जनवरी 1928) प्रकृतिवादी आंदोलन के अंग्रेजी उपन्यासकार और कवि थे।अपने जीवनकाल में वह अपने उपन्यासों के लिए अधिक प्रसिद्ध थे जबकि उन्होंने स्वंय को मुख्य रूप से कवि माना है। हार्डी की अंग्रेजी साहित्य को महत्वपूर्ण देन है। उन्होंने एक छोटे से क्षेत्र का विशेष अध्ययन किया और क्षेत्रीय साहित्य की सृष्टि की। हिन्दी में इस प्रकार के साहित्य को आंचलिक साहित्य कह रहे हैं। उन्होंने मानव जीवन के संबंध में अपने साहित्य में आधारभूत प्रश्न उठाए तथा जो मर्यादा पूर्वकाल में महाकाव्य और दु:खांत नाटक को प्राप्त थी, वह उपन्यास को प्रदान की। वे अनेक पात्रों के स्रष्टा और अद्भुत्‌ कहानीकार थे किंतु इनके पात्रों में सबसे अधिक सशक्त बेसेक्स है। इस पात्र ने काल का प्रवाह उदासीनताभरे नेत्रों से देखा है, जिनमें न्याय और उचित अनुचित की कोई अपेक्षा नहीं। टॉमस हार्डी का जन्म वेसेक्स प्रदेश में हुआ। यह प्रदेश प्राचीन काल में इंग्लैंड के नक्शे पर था, किंतु अब नहीं है। उनका सभी साहित्य वेसेक्स से संबंधित है। उनके उपन्यास 'वेसेक्स के उपन्यास' कहलाते हैं और उनकी कविता 'वेसेक्स की कविता'। .

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द ट्रॉटरनामा

द ट्रॉटरनामा अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार आई. ऍलन सीली द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1991 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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द मैमरीज़ ऑफ़ द वेलफेयर स्टेट

द मैमरीज़ ऑफ़ द वेलफेयर स्टेट अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार उपमन्यु चटर्जी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2004 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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द लास्ट लेबिरिंथ

द लास्ट लेबिरिंथ अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार अरुण जोशी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1982 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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द शैडो लाइन्स

द शैडो लाइन्स अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार अमिताव घोष द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1989 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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द सर्पेण्ट एंड द रोप

द सर्पेण्ट एंड द रोप अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार राजा राव द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1963 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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द साड़ी शॉप

द साड़ी शॉप अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार रूपा बाजवा द्वारा रचित एक उपन्यास है। ये लेखिका बाजवा का प्रथम उपन्यास जो २००४ मे प्रकाशीत हुआ। इनके लिये उन्हें सन् २००६ में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दण्डपाणि जयकान्तन

दण्डपाणि जयकान्तन (जन्म: २४ अप्रैल १९३४, कड्डलूर, तमिलनाडु) एक बहुमुखी तमिल लेखक हैं -- केवल लघु-कथाकार और उपन्यासकार ही नहीं (जिनके कारण उन्हें आज के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में माना जाता है) परन्तु निबन्धकार, पत्रकार, निर्देशक और आलोचक भी हैं। विचित्र बात यह है कि उनकी स्कूल की पढ़ाई कुछ पाँच साल ही रही! घर से भाग कर १२ साल के जयकान्तन अपने चाचा के यहाँ पहुँचे जिनसे उन्होंने कम्युनिज़्म (मार्कसीय समाजवाद) के बारे में सीखा। बाद में चेन्नई (जिसका नाम उस समय मद्रास था) आकर जयकान्तन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की पत्रिका जनशक्ति में काम करने लगे। दिन में प्रेस में काम करते और शाम को सड़कों पर पत्रिका बेचते। १९५० के दशक की शुरुआत से ही वह लिखते आ रहे हैं और जल्दी ही तमिल के जाने-माने लेखकों में गिने जाने लगे। हालाँकि उनका नज़रिया वाम पक्षीय ही रहा। वह खुद पार्टी के सदस्य न रहे और काँग्रेस पार्टी में भर्ती हो गए। ४० उपन्यासों के अलावा उन्होंने कई-कई लघुकथाएँ, आत्मकथा (दो खंडों में) और रोमेन रोलांड द्वारा फ़्रेन्च में रची गयी गांधी जी की जीवनी का तमिल अनुवाद भी किया है। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शिल नेरंगळिल शिल मणितर्कळ के लिये उन्हें सन् १९७२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। "जटिल मानव स्वभाव के गहरे और संवेदनशील समझ" के हेतु, उनकी कृतियों को "तमिल साहित्य की उच्च परम्पराओं की अभिवृद्दि" के लिए २००२ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दाटु

दाटु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार एस. एल. भैरप्प द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1975 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दामोदर माऊज़ो

दामोदर माऊज़ो (जन्म: १ अगस्त १९४४) गोवा के उपन्यासकार, कथाकार, आलोचक और निबन्धकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कार्मेलिन के लिये उन्हें सन् १९८३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कोंकणी) से सम्मानित किया गया। .

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दाइनि?

दाइनि? बोडो भाषा के विख्यात साहित्यकार *मनोरंजन लाहारी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2009 में बोडो भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दिव्येन्दु पालित

दिव्येन्दु पालित बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अनुभव के लिये उन्हें सन् 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दिका

दिका कोंकणी भाषा के विख्यात साहित्यकार देविदास रा. कदम द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में कोंकणी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दु पत्र

दु पत्र मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार उपेन्द्रनाथ झा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1969 में मैथिली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दुर्गाप्रसाद खत्री

दुर्गाप्रसाद खत्री दुर्गाप्रसाद खत्री (1895 - 1974) हिंदी के प्रख्यात उपन्यासकार। ये देवकीनंदन खत्री के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनका जन्म 1895 में काशी में हुआ था। 1912 ई. में विज्ञान और गणित में विशेष योग्यता के साथ स्कूल लीविंग परीक्षा पास की। तदनंतर उन्होंने लिखना आरंभ किया और डेढ़ दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। .

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दुर्गास्तमान

दुर्गास्तमान कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार टी. आर. सुब्बाराव (ता. रा. सु.) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1985 में कन्नड़ भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दुर्गेशनन्दिनी

दुर्गेशनन्दिनी (शाब्दिक अर्थ: दुर्ग के स्वामी की बेटी) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित प्रथम बांग्ला उपन्यास था। सन १८६५ के मार्च मास में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ। दुर्गेशनन्दिनी बंकिमचन्द्र की चौबीस से लेकर २६ वर्ष के आयु में लिखित उपन्यास है। इस उपन्यास के प्रकाशित होने के बाद बांग्ला कथासाहित्य की धारा एक नये युग में प्रवेश कर गयी। १६वीं शताब्दी के उड़ीसा को केन्द्र में रखकर मुगलों और पठानों के आपसी संघर्ष की पृष्टभूमि में यह उपन्यास रचित है। फिर भी इसे सम्पूर्ण रूप से एक ऐतिहासिक उपन्यास नहीं माना जाता। .

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द्रोह

द्रोह नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार भीम दाहाल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2006 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दैट लांग साइलेन्स

दैट लांग साइलेन्स अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार शशि देशपांडे द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दैवत्तिण्टे विकृतिकळ

दैवत्तिण्टे विकृतिकळ मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार एम. मुकुंदन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दैवत्तिण्टे कण्णु

दैवत्तिण्टे कण्णु मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार एन. पी. मुहम्मद द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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देशबंधु डोगरा नूतन

देशबंधु डोगरा नूतन डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास क़ैदी के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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देवदास (उपन्यास)

देवदास बांग्ला के प्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास है। श्रेणी:बांग्ला साहित्य.

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देवरानी जेठानी की कहानी

देवरानी जेठानी की कहानी हिन्दी का उपन्यास है। इसके रचयिता हिन्दी व देवनागरी के महान सेवक पंडित गौरीदत्त हैं। न केवल अपने प्रकाशन वर्ष (1870), बल्कि अपनी निर्मिति के लिहाज से भी पं॰ गौरीदत्त की कृति 'देवरानी-जेठानी की कहानी' को हिन्दी का पहला उपन्यास होने का श्रेय जाता है। किंचित लड़खड़ाहट के बावजूद हिन्दी उपन्यास-यात्रा का यह पहला कदम ही आश्वस्ति पैदा करता है। अन्तर्वस्तु इतनी सामाजिक कि तत्कालीन पूरा समाज ही ध्वनित होता है, मसलन, बाल विवाह, विवाह में फिजूलखर्ची, स्त्रियों की आभूषणप्रियता, बंटवारा, वृद्धों, बहुओं की समस्या, शिक्षा, स्त्री-शिक्षा, - अपनी अनगढ़ ईमानदारी में उपन्यास कहीं भी चूकता नहीं। लोकस्वर संपृक्त भाषा इतनी जीवन्त है कि आज के साहित्यकारों को भी दिशा-निर्देशित करती है। दृष्टि का यह हाल है कि इस उपन्यास के माध्यम से हिन्दी पट्टी में नवजागरण की पहली आहट तक को सुना जा सकता है। कृति का उद्देश्य बारम्बार मुखर होकर आता है किन्तु वैशिष्टक यह कि यह कहीं भी आरोपित नहीं लगता। डेढ़ सौ साल पूर्व संक्रमणकालीन भारत की संस्कृति को जानने के लिए 'देवरानी जेठानी की कहानी' (उपन्यास) से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं हो सकता। .

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देविदास रा. कदम

देविदास रा.

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देवकीनन्दन खत्री

देवकीनन्दन खत्री देवकीनन्दन खत्री बाबू देवकीनन्दन खत्री (29 जून 1861 - 1 अगस्त 1913) हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोंडा, कटोरा भर, भूतनाथ जैसी रचनाएं की। 'भूतनाथ' को उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने पूरा किया। हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में उनके उपन्यास चंद्रकांता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया। इस किताब का रसास्वादन के लिए कई गैर-हिंदीभाषियों ने हिंदी सीखी। बाबू देवकीनंदन खत्री ने 'तिलिस्म', 'ऐय्यार' और 'ऐय्यारी' जैसे शब्दों को हिंदीभाषियों के बीच लोकप्रिय बनाया। जितने हिन्दी पाठक उन्होंने (बाबू देवकीनन्दन खत्री ने) उत्पन्न किये उतने किसी और ग्रंथकार ने नहीं। .

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देवुडु नरसिंह शास्त्री

देवुडु नरसिंह शास्त्री कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास महाक्षत्रिय के लिये उन्हें सन् 1962 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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देवेन्द्रनाथ आचार्य

देवेन्द्रनाथ आचार्य असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास जंगम के लिये उन्हें सन् 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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देवेश राय

देवेश राय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास तिस्ता पारेर वृत्तांत के लिये उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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देओ लाङ्खुइ

देओ लांखुइ असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार रीता चौधुरी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दो गज़ ज़मीन

दो गज़ ज़मीन उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार अब्दुस्समद द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में उर्दू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दीर्घतपा

दीर्घतपा एक उपन्यास है जिसके रचायिता फणीश्वर नाथ रेणु हैं। श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:फणीश्वर नाथ रेणु.

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धु्रव प्रबोधराय भट्ट

धु्रव प्रबोधराय भट्ट गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास तत्त्वमसि के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ध्रुव ज्योति बोरा

ध्रुव ज्योति बोरा असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कथा रत्नामकर के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ध्रुवपुत्र

ध्रुवपुत्र बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार अमर मित्र द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2006 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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धूँधभरी खींण

धूँधभरी खींण गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार वीनेश अंताणी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2000 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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धीरूबेन पटेल

धीरूबेन पटेल गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आगंतुक के लिये उन्हें सन् 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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धीरेन्द्र महेता

धीरेन्द्र महेता गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास छावणी के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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न हन्यते

न हन्यते बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार मैत्रेयी देवी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1976 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नरसिंह देव जम्वाल

नरसिंह देव जम्वाल डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सांझी धरती बखले मानु के लिये उन्हें सन् 1978 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नरेन्द्र कोहली

डॉ॰ नरेन्द्र कोहली (जन्म ६ जनवरी १९४०) प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार हैं। कोहली जी ने साहित्य के सभी प्रमुख विधाओं (यथा उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी) एवं गौण विधाओं (यथा संस्मरण, निबंध, पत्र आदि) और आलोचनात्मक साहित्य में अपनी लेखनी चलाई है। उन्होंने शताधिक श्रेष्ठ ग्रंथों का सृजन किया है। हिन्दी साहित्य में 'महाकाव्यात्मक उपन्यास' की विधा को प्रारंभ करने का श्रेय नरेंद्र कोहली को ही जाता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक सामाज की समस्याओं एवं उनके समाधान को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना कोहली की अन्यतम विशेषता है। कोहलीजी सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साहित्यकार हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय जीवन-शैली एवं दर्शन का सम्यक् परिचय करवाया है। जनवरी, २०१७ में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। .

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नरेन्द्रपाल सिंह

नरेन्द्रपाल सिंह पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बा मुलाहज़ा होशिआर के लिये उन्हें सन् 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ना. पार्थसारथी

ना.

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नानक सिंह

नानक सिंह (4 जुलाई, 1897 - 28 दिसम्बर, 1971) पंजाबी भाषा के कवि, गीतकार एवं उपन्यासकार थे। उनका मूल नाम हंस राज था। भारत की स्वतन्त्रता के पक्ष में लिखने के कारण अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। उन्होने कई उपन्यासों की रचना की। .

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नामदेव कांबळे

नामदेव कांबळे मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास राघववेळ के लिये उन्हें सन् 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नित्यांनद महापात्र

नित्यांनद महापात्र ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास घरडीह के लिये उन्हें सन् 1987 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नियति

नियति नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार इंद्र सुंदास द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1983 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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निरंजन सिंह तसनीम

निरंजन सिंह तसनीम पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास गवाचे अरथ के लिये उन्हें सन् 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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निरुपमा बरगोहाइँ

निरुपमा बरगोहाइँ असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अभिजात्री के लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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निर्मला (उपन्यास)

निर्मला, मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका 'चाँद' में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ। महिला-केन्द्रित साहित्य के इतिहास में इस उपन्यास का विशेष स्थान है। इस उपन्यास की कथा का केन्द्र और मुख्य पात्र 'निर्मला' नाम की १५ वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। उसकी पति परायणता काम नहीं आती। उस पर सन्देह किया जाता है, उसे परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुई मृत्यु को प्राप्त करती है। निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज़ प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यृ इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भालचन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग द्वारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है। निर्मला के चारों ओर कथा-भवन का निर्माण करते हुए असम्बद्ध प्रसंगों का पूर्णतः बहिष्कार किया गया है। इससे यह उपन्यास सेवासदन से भी अधिक सुग्रंथित एवं सुसंगठित बन गया है। इसे प्रेमचन्द का प्रथम ‘यथार्थवादी’ तथा हिन्दी का प्रथम ‘मनोवैज्ञानिक उपन्यास’ कहा जा सकता है। निर्मला का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि इसमें ‘प्रचारक प्रेमचन्द’ के लोप ने इसे ने केवल कलात्मक बना दिया है, बल्कि प्रेमचन्द के शिल्प का एक विकास-चिन्ह भी बन गया है। .

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निशात (फिल्म निर्देशिका)

अपनी पहली फिल्म वुमेन विदआउट मैन से ही चर्चित होने वाली ईरान की फिल्म निर्देशिका जिन्हें इस फिल्म के लिए इस साल विंसी फिल्म महोत्सव में प्रतिष्ठित सिल्वर पुरस्कार प्रदान किया गया। शहरमुश पर्सीपुर के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में निशात ने अपने देश ईरान की राजनीति को फिल्म का विषय बनाया है। यह फिल्म 1953 की ईरान की उन राजनीतिक स्थितियों को प्रदर्शित करती है, जिन्हें ब्रिटेन और अमेरिका ने अपने फायदे के लिए सृजित किया था और जिनकी वजह से ईरान की लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार का स्थान राजशाही ने ले लिया था। इस फिल्म ने निशात को गंभीर विषय पर सशक्त फिल्में बनाने वाले निर्देशकों की श्रेणी में शामिल कर दिया है। .

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निशि–कुटुंब

निशि–कुटुंब बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार मनोज बसु द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1966 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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निकोल किडमैन

निकोल मेरी किडमैन, ए.सी.

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निकोलाई गोगोल

निकोलाई गोगोल (पूरा नाम- निकोलाई वसील्येविच गोगोल, अन्य उच्चारण- निकोलाय गोगल, निकोलाई वसीलिविच गोगल; २० मार्च, १८०९- २१ फरवरी, १८५२ ई०) यूक्रेन मूल के रूसी साहित्यकार थे जिन्होंने कहानी, लघु उपन्यास एवं नाटक आदि विधाओं में युगीन आवश्यकताओं के अनुरूप प्रभूत लेखन किया है। गोगोल रूसी साहित्य में प्रगतिशील विचारधारा के आरंभिक प्रयोगकर्ताओं में प्रमुख थे व उनकी साहित्यिक प्राथमिकता जनोन्मुखता का पर्याय थी। आरंभिक लेखन में प्रेम-प्रसंग तत्त्व के आधिक्य होने पर भी बहुत जल्दी गोगोल सामाजिक जीवन का व्यापकता तथा गहराई से बहुआयामी चित्रण की ओर केंद्रित होते गये। मीरगोरोद में संकलित कहानियाँ इस तथ्य का जीवंत साक्ष्य हैं। पीटर्सबर्ग की कहानियाँ में संकलित रचनाओं में भी विसंगतियों एवं विडंबनाओं का मार्मिक चित्रण हास्य एवं सूक्ष्म व्यंग्य के माध्यम से अद्भुत है; और इनकी बड़ी विशेषता सामान्य जन के साथ-साथ साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित करना भी है। कहानियों के साथ-साथ नाटकों के माध्यम से गोगोल का मुख्य प्रकार्य युगीन आवश्यकताओं को इस प्रकार साहित्य में ढालना रहा है जिससे जन-सामान्य की स्थिति में परिवर्तनकारी भूमिका निभाने के साथ-साथ वस्तुतः साहित्य की 'साहित्यिकता' भी सुरक्षित रहे, और इसमें आलोचकों ने उसे सफल माना है। .

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नज़ीर अहमद देहलवी

नज़ीर अहमद देहलवी (१८३०-१९१२), जिन्हें औमतौर पर डिप्टी नज़ीर अहमद (उर्दू) बुलाया जाता था, १९वीं सदी के एक विख्यात भारतीय उर्दू-लेखक, विद्वान और सामाजिक व धार्मिक सुधारक थे। उनकी लिखी कुछ उपन्यास-शैली की किताबें, जैसे कि 'मिरात-उल-उरूस' और 'बिनात-उल-नाश' और बच्चों के लिए लिखी पुस्तकें, जैसे कि 'क़िस्से-कहानियाँ' और 'ज़ालिम भेड़िया', आज तक उत्तर भारत व पाकिस्तान में पढ़ी जाती हैं। .

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नजीब महफ़ूज़

नजीब महफूज़ (अरबी: نجيب محفوظ, अंग्रेज़ी: Naguib Mahfouz) एक मिस्री लेखक व साहित्यकार थे जिन्होंने सन् १९८८ में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीता। तौफ़ीक़ अल-हकीम के साथ, उन्हें २०वी शताब्दी के दूसरे भाग में उभरने वाले समकालीन अस्तित्ववादी अरबी लेखकों के सर्वप्रथम गुट में माना जाता है। अपने ७० साल के लेखन में उन्होंने ३४ उपन्यास, ३५० लघुकथाएँ, दर्ज़नों फ़िल्मों की पटकथाएँ और पाँच नाटक लिखे। उनकी कई कृतियों को मिस्री व विदेशी फ़िल्मों में ढाला जा चुका है। .

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नवारुण भट्टाचार्य

नवारुण भट्टाचार्य बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास हरबर्ट के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नव्योत्तर काल

हिन्दी साहित्य के नव्योत्तर काल (पोस्ट-माडर्न) की कई धाराएं हैं -.

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नगेंद्रनाथ वसु

नगेन्द्रनाथ बसु (6 जुलाई 1866-1938) बांग्ला भाषा के ज्ञानकोशकार थे। उनके द्वारा संपादित बंगला विश्वकोश ही भारतीय भाषाओं से प्रणीत प्रथम आधुनिक विश्वकोश है। यह सन् 1911 में 22 खंडों में प्रकाशित हुआ। Nagendranath Basu Plate नगेंद्रनाथ वसु ने ही अनेक हिंदी विद्वानों के सहयोग से बंगला विश्वकोश का हिन्दी रूपान्तर 'हिंदी विश्वकोश' की रचना की जो सन् 1916 से 1932 के मध्य 25 खंडों में प्रकाशित हुआ। नगेन्द्रनाथ बसु पुरातत्वविद, इतिहासकार तथा लेखक थे। उनका जन्म कोलकाता में हुआ था। कम आयु में ही उन्होने कविता एवं उपन्यास लिखना शुरू कर दिया था किन्तु शीघ्र वे सम्पादन कार्य में लग गए। 'तपस्विनी' तथा 'भारत' नामक दो मासिक पत्रिकाओं का उन्होने सम्पादन किया। .

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नंद भारद्वाज

नंद भारद्वाज राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सांम्ही खुलतौ मारग के लिये उन्हें सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नंगा रुख

नंगा रुख डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार ओ. पी. शर्मा ‘सारथी’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1979 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नैका बनिजारा

नैका बनिजारा मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार ब्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1973 में मैथिली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नील पद्मनाभन

नील पद्मनाभन तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास इलै उदीर कालम के लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नील शैल

नील शैल ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार सुरेन्द्र मोहांती द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1969 में ओड़िया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नीला चाँद

नीला चाँद हिन्दी के विख्यात साहित्यकार शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नीहाररंजन गुप्त

डॉ नीहाररंजन गुप्त (6 जून 1911 - 20 फ़रवरी 1986) भारत के चर्मरोगविज्ञानी तथा लोकप्रिय बंगाली उपन्यासकार थे। उन्होने 'किरीटि राय' नामक एक काल्पनिक जासूसी चरित्र का सृजन किया। .

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पटकथा

पटकथा किसी फ़िल्म या दूरदर्शन कार्यक्रम के लिए पटकथा लेखक द्वारा लिखा गया कच्चा चिट्ठा होता है। यह मूल रूप से भी लिखा जा सकता है और किसी उपन्यास या कहानी के लिए भी तैयार किया जा सकता है। इसमें संवाद और संवादों के बीच होने वाली घटनाओं व दृश्यों का विस्तृत ब्योरा होता है। इसे अंग्रेजी में स्र्कीनप्ले कहा जाता है। जबतक साहित्य कहानी के विधा में होती है तब तक पटकथा की जरूरत नहीं होती क्योंकि तब वह केवल पठनीय मात्र होती है । किंतु उसे जैसे ही पर्दे पर लाने की कोशिश की जाती है तब इस कहानी में दर्र्श्यात्मक तथ्यों को वास्तविक रूप में दिखाने के लिए पटकथा की जरूरत पडती है। श्रेणी:फ़िल्म श्रेणी:फ़िल्म निर्माण.

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पद्मराजन

पी.

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पद्मा सचदेव

पद्मा सचदेव (जन्म: 17 अप्रैल 1940) एक भारतीय कवयित्री और उपन्यासकार हैं। वे डोगरी भाषा की पहली आधुनिक कवयित्री है।वे हिन्दी में भी लिखती हैं। उनके कतिपय कविता संग्रह प्रकाशित है, किन्तु "मेरी कविता मेरे गीत" के लिए उन्हें 1971 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।उन्हें वर्ष 2001 में पद्म श्री और वर्ष 2007-08 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कबीर सम्मान प्रदान किया गया। .

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परती परिकथा

परती परिकथा एक उपन्यास है जिसके रचायिता फणीश्वर नाथ रेणु हैं। मैला आँचल के बाद यह रेणु का दूसरा आंचलिक उपन्यास है। इस उपन्यास के साथ ही हिंदी साहित्य जगत दो भागों में विभक्त हो गया: पहला वर्ग तो इसको मैला आँचल से भी बेहतर उपन्यास मानता था, वहीँ, दूसरा वर्ग इसे उपन्यास ही नहीं मानता था। सच में अगर उपन्यास के पारंपरिक मानकों से देखा जाये तो परती परिकथा में काफी अलगाव दिखेगा। यह मैला आँचल जैसा भी एकरेखीय धारा में नहीं चलता, वरन यह तो देश-काल का अतिक्रमण कर एक ही समय में सारे काल को प्रस्तुत और अप्रस्तूत दोनों करता है। यह जितना दिखाता है उससे भी ज्यादा छिपाता है। कभी यह पाठकों की परीक्षा लेता है तो कभी यह उसे बिलकुल भौचक ही कर देता है। जिस प्रकार मैला आँचल में पूरा का पूरा अंचल ही नायक था उसी प्रकार यहाँ भी नायकत्व किसी खाश पात्र की बजाय अंचल को ही मन जायेगा किन्तु यहाँ पर कुछ पात्र जिसे की जीतेन्द्र मिश्र को नायकत्व के करीब मन जा सकता है। या यूँ कहे की आंचलिकता की धारण करते हुए भी इस कहानी में मिसर परिवार ही केंद्रीय तत्त्व है। श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:फणीश्वर नाथ रेणु.

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परिणीता (2005 फ़िल्म)

परिनीता 2005 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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परीक्षा गुरू (हिन्दी का प्रथम उपन्यास)

परीक्षा गुरू हिन्दी का प्रथम उपन्यास था जिसकी रचना भारतेन्दु युग के प्रसिद्ध नाटककार लाला श्रीनिवास दास ने 25 नवम्बर,1882 को की थी। .

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परीक्षागुरु

यह लाला श्रिनिवास दास द्वारा लिखा गया उपन्यास है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में यह पश्चिमी ढंग पर लिखा गया हिंदी का पहला मौलिक उपन्यास है। इसमें दिल्ली के बिगड़ैल रईस मदनमोहन के उद्धार की कथा है। इस उपन्यास का नायक मदनमोहन कुछ स्वार्थी, अर्थ लोलुप तथा चाटुकार लोगों की संगति में पड़कर लगभग बर्बाद हो जाता है। इस स्थिति से वह अपनी पत्नी और सच्चे मित्र ब्रजेश्वर की सहायता से बाहर आता है। इसकी कथावस्तु नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली है। श्रेणी:हिन्दी उपन्यास.

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पलटू बाबू रोड

पलटू बाबू रोड एक उपन्यास है जिसके रचायिता फणीश्वर नाथ रेणु हैं। श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:फणीश्वर नाथ रेणु.

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पश्चिमी संस्कृति

पश्चिमी संस्कृति (जिसे कभी-कभी पश्चिमी सभ्यता या यूरोपीय सभ्यता के समान माना जाता है), यूरोपीय मूल की संस्कृतियों को सन्दर्भित करती है। यूनानियों के साथ शुरू होने वाली पश्चिमी संस्कृति का विस्तार और सुदृढ़ीकरण रोमनों द्वारा हुआ, पंद्रहवी सदी के पुनर्जागरण एवं सुधार के माध्यम से इसका सुधार और इसका आधुनिकीकरण हुआ और सोलहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी तक जीवन और शिक्षा के यूरोपीय तरीकों का प्रसार करने वाले उत्तरोत्तर यूरोपीय साम्राज्यों द्वारा इसका वैश्वीकरण हुआ। दर्शन, मध्ययुगीन मतवाद एवं रहस्यवाद, ईसाई एवं धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद की एक जटिल श्रृंखला के साथ यूरोपीय संस्कृति का विकास हुआ। ज्ञानोदय, प्रकृतिवाद, स्वच्छंदतावाद (रोमेन्टिसिज्म), विज्ञान, लोकतंत्र और समाजवाद के प्रयोगों के साथ परिवर्तन एवं निर्माण के एक लंबे युग के माध्यम से तर्कसंगत विचारधारा विकसित हुई.

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पहला गिरमिटिया

https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/4/4f/Phela_girmitiya.jpg पहला गिरमिटिया, गिरिराज किशोर द्वारा रचित एक हिन्दी उपन्यास है जो महात्मा गांधी पर आधारित है। इसके नायक "मोहनदास" हैं अर्थात गांधीजी का आरम्भिक रूप। .

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पाचा मेहताई

पाचा मेहताई मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग के लिये उन्हें सन् 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पाटकाईर ईपारे मोर देश

पाटकाईर ईपारे मोर देश असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार चन्दना गोस्वामी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2012 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पाताल भैरवी (असमिया उपन्यास)

पाताल भैरवी असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार लक्ष्मीनंदन बोरा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पात्र (कलाशास्त्र)

पात्र (कभी-कभी फ़िक्शनल पात्र, कपोलकल्पित पात्र या काल्पनिक पात्र के रूप में प्रसिद्ध) किसी कहानी (जैसे कि उपन्यास, नाटक, टेलीविजन शृंखला, फ़िल्म, या वीडियो गेम) में कोई व्यक्ति या कोई अन्य जीव होता हैं। पात्र पूरी तरह कपोलकल्पित हो सकता है या वास्तविक जीवन के किसी व्यक्ति पर आधारित हो सकता है, जिस मामले में "कपोलकल्पित" बनाम "वास्तविक" पात्र का भेद किया जा सकता हैं। .

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पारसमणि दङ्गाल

पारसमणि दंगाल सिक्किम के युवा पत्रकार और साहित्यकार है। इनका जन्म पूर्वी सिक्किम के पाण्डाम गाँव में 5 जुलाई 1982 में हुआ। पारसमणि दंगालले कलेज जीवन में ही पत्रकारिता शुरु की थी। वे सिक्किम लोकप्रिय नेपाली दैनिक समय दैनिक का सम्पादक रह चुके हैं। नेपाली साहित्य में उपन्यासकार, कहानीकार एवं समालोचक के रूप में प्रसिद्ध दंगाल के कृतियों में आर्तव (2003) खण्डकाव्य, लक्ष्यतिर (2006) उपन्यास, भाषा साहित्य (2008) साहित्य सिद्धान्त आदि पुस्तकें प्रकाशित हैं। अनेक सामाजिक, साहित्यिक संगठनों से जुड़े हुए दंगाल के सम्पादन किए हुए पत्रिकाएँ और पुस्तकें भी है। श्रेणी:नेपाली साहित्यकार.

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पिता–पुत्र (असमिया उपन्यास)

पिता–पुत्र (असमिया उपन्यास) असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार होमेन बरगोहाइँ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पंडित परमेश्वर शास्त्री वीलुनामा

पंडित परमेश्वर शास्त्री वीलुनामा तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार टी. गोपीचंद द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1963 में तेलुगू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पंकज बिष्ट

पंकज बिष्ट हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित पत्रकार, कहानीकार, उपन्यासकार व समालोचक है। वर्तमान में वे दिल्ली से प्रकाशित समयांतर नामक हिन्दी साहित्य की मासिक पत्रिका का सम्पादन व संचालन कर रहे हैं। .

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पुदिय दरिशनंगळ

पुदिय दरिशनंगळ तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार पोन्नीलन (कंदेश्वर भक्तवत्सलम्) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1994 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पुनत्तिल कुंञ्जब्दुल्ला

पुनत्तिल कुंंजब्दुल्ला मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास स्मारक सिलाकल के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पुन्सीगी मरुद्यान

पुन्सीगी मरुद्यान मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार अरांबम बीरेन सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पुन–ते–पाप

पुन–ते–पाप कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार गुलाम नबी गौहर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पुरवी बरमुदै

पुरवी बरमुदै असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शान्तनुकुलनन्दन के लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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प्यार जी प्यास

प्यार जी प्यास सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार गोविन्द माल्ही द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1973 में सिन्धी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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प्यारीचाँद मित्र

अंगूठाकार प्यारीचाँद मित्र (24 जुलाई 1814 – 23 नवम्बर 1883) लेखक, पत्रकार, सांस्कृतिक कार्यकर्ता तथा उद्यमी थे। वे बांग्ला साहित्य के प्रथम उपन्यासकार थे। उनका छद्मनाम 'टेकचाँद ठाकुर' था। वे 'युवा बंगाल समूह' के एक सदस्य थे जिसने सरल बांगला गद्य में लिखकर बंगाल के पुनर्जागरण में अग्रगण्य भूमिका निभायी। उनका 'आलालेर घरे दुलाल' (१८५८) बहुत प्रसिद्ध हुआ। इसी परम्परा का निर्वहन बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय एवं अन्य लेखकों ने किया। श्रेणी:बांग्ला साहित्यकार.

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प्रपंचन

प्रपंचन तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास वानम वसप्पडुम के लिये उन्हें सन् 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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प्रफुल्ल राय

प्रफुल्ल राय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास क्रान्तिकाल के लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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प्रभाकर माचवे

डॉ प्रभाकर माचवे (1917 - 1991) हिन्दी के साहित्यकार थे। उनका जन्म ग्वालियर में हुआ एवं शिक्षा इंदौर में हुई। .

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प्राण किशोर कौल

प्राण किशोर कौल रंगमंच व्यक्तित्व के रूप में प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। उन्होंने विभिन्न नाटकों के लेखन एवं निर्देशन का कार्य किया है। उन्हें उनके उपन्यास शीन तू वटु पोड के लिए साहित्य नाटक अकादमी ने पुरस्कृत किया। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शीन ते वतपोद के लिये उन्हें सन् १९८९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कश्मीरी) से सम्मानित किया गया। .

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प्रकाश परिमल

प्रकाश परिमल (जन्म- २८ नवम्बर १९३६, बीकानेर) एक हिन्दी-राजस्थानी लेखक, कला-समीक्षक, चित्रकार और अनुवादक हैं। इनके साहित्य, दर्शन, वैदिक-ज्ञान, कला विषयक कई ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। .

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प्रेम प्रधान

प्रेम प्रधान नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास उदासीन रूखहरू के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

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प्रेमचंद साहित्य संस्थान

राजकीय दीक्षा विद्यालय, गोरखपुर वह विद्यालय है जहाँ उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने अपनी पहली नौकरी की थी। यह विद्यालय उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित है। यहाँ उन्होंने १९ अगस्त १९१६ से २६ फ़रवरी १९२१ तक सहायक अध्यापक के पद पर कार्य किया। वे इस विद्यालय के छात्रावास अधीक्षक भी थे और विद्यालय परिसर में ही बने एक मकान में रहते थे। प्रेमचंद को सम्मानित करते हुए इस विद्यालय के उनके कमरे को प्रेमचंद साहित्य संस्थान में परिवर्तित कर दिया है। प्रेमचंद ने महात्मा गांधी की स्वतंत्रता आंदोलन की पुकार पर इस नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। श्रेणी:प्रेमचंद.

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प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएँ

प्रेमचंद हिंदी के युग प्रवर्तक रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। वे सर्वप्रथम उपन्यासकार थे जिन्होंने उपन्यास साहित्य को तिलस्मी और ऐयारी से बाहर निकाल कर उसे वास्तविक भूमि पर ला खड़ा किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियाँ भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियाँ हैं। प्रेमचंद की रचनाओं को देश में ही नहीं विदेशों में भी आदर प्राप्त हैं। प्रेमचंद और उनकी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय महत्व है। आज उन पर और उनके साहित्य पर विश्व के उस विशाल जन समूह को गर्व है जो साम्राज्यवाद, पूँजीवाद और सामंतवाद के साथ संघर्ष में जुटा हुआ है। .

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प्रेमचंद की रचनाएँ

मुंशी प्रेमचंद की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की। .

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प्रेयोक्ति

एक प्रेयोक्ति का अर्थ होता है, सुननेवाले को रुष्ट करने वाली या कोई अप्रिय अर्थ देने वाली अभिव्यक्ति को एक रुचिकर या कम अपमानजनक अभिव्यक्ति के साथ प्रतिस्थापित करना, या कहने वाले के लिए उसे कम कष्टकर बनाना, जैसा की द्विअर्थी के मामले में होता है। प्रेयोक्ति का परिनियोजन राजनीतिक विशुद्धता के सार्वजनिक उपयोग में केंद्रीय पहलू है। यह किसी वस्तु या किसी व्यक्ति के वर्णन को भी प्रतिस्थापित कर सकता है ताकि गोपनीय, पवित्र, या धार्मिक नामों को अयोग्य के समक्ष ज़ाहिर करने से बचा जा सके, या किसी वार्ता के विषय की पहचान को किसी संभावित प्रच्छ्न्न श्रोता से गुप्त रखा जा सके.

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प्रीति सिंह

प्रीति सिंह (जन्म: २६ अक्टूबर १९७१) चंडीगढ़ में स्थित एक लेखिका, उपन्यासकार हैं। प्रीति पिछले १५ सालो से एक पेशेवर लेखक के रूप में काम कर रही है। २०१२ में महावीर पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित इनका पहला उपन्यास "फ्लर्टिंग विथ फेट" बेस्ट सेलिंग उपन्यास रहा और वे अपनी दूसरी किताब "क्रॉसरोड्स" के साथ एक अवॉर्ड विजेता लेखिका बन चुकी हैं। १७ दिसंबर, २०१५ साहित्यकार प्रीति सिंह को अनुपमा फाउंडेशन द्वारा स्वयंसिद्धा सम्मान से पुरस्कृत किया गया। साल २०१६ में इनकी तीसरी पुस्तक वॉच्ड, जो एक क्राइम थ्रिलर उपन्यास हैं, का प्रकाशन ओमजी पब्लिशिंग हाउस द्वारा किया गया। .

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पोन्नीलन (कंदेश्वर भक्तवत्सलम्)

पोन्नीलन (कंदेश्वर भक्तवत्सलम्) तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास पुदिय दरिशनंगळ के लिये उन्हें सन् 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पी. सी. कुट्टिकृष्णन उरूब

पी.

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पी. केशवदेव

पी.

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पी॰ वी॰ अकिलानंदम

पी.

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फ़ायर एरिया

फ़ायर एरिया उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार इलयास अहमद गद्दी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में उर्दू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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फ़ायर ऑन द माउंटेन

फ़ायर ऑन द माउंटेन अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार अनीता देसाई द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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फ़ाउन्डेशन शृंखला

फ़ाउन्डेशन शृंखला में "सूरज और अंतरिक्ष यान" का निशान आकाशगंगीय साम्राज्य का राजचिह्न था फ़ाउन्डेशन शृंखला या बुनियाद शृंखला (अंग्रेज़ी: Foundation series, फ़ाउन्डेशन सीरीज़) प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक आईज़ैक असिमोव द्वारा रचित सात उपन्यासों में विस्तृत एक विज्ञान कथा है। इस शृंखला की पृष्ठभूमि सूदूर भविष्य में है, जिसमें मनुष्य क्षीरमार्ग (हमारी आकाशगंगा) में फैल गए हैं और उनकी जनसँख्या एक लाख खरब तक पहुँच चुकी है। पूरे क्षीरमार्ग में एक आकाशगंगीय साम्राज्य फैला हुआ है। इस दौर में हैरी सॅल्डन (Hari Seldon) नामक एक वैज्ञानिक और गणितिज्ञ एक नए विज्ञान का आविष्कार करता है, जिसका नाम मनोवैज्ञानिक-इतिहास (psychohistory, साइकोहिस्ट्री) है। उसके अनुसार जब मनुष्यों की तादाद इतनी अधिक हो जाए तो गणित के ज़रिये यह भविष्यवानियाँ की जा सकती हैं कि आने वाले इतिहास में कौन सी बड़ी घटनाएँ घटेंगी। वह यह भविष्यवाणी करता है कि आकाशगंगीय साम्राज्य का अंत निश्चित है और उसके बाद तीस हज़ार साल का एक अन्धकारमय युग चलेगा जिसमें मानवों की बहुत दुर्दशा होगी। लेकिन वह यह भी भविष्यवाणी करता है कि यदि कुछ क़दम उठाये गए तो इस अन्धकार काल को केवल एक हज़ार साल तक सीमित रखा जा सकता है, जिसके बाद एक दूसरा साम्राज्य उठेगा और सुव्यवस्था लाएगा। इसके लिए वह आकाशगंगा के "दो छोरों" पर दो अलग संसथाने बनता है। पहली संस्था (First Foundation, फ़र्स्ट फ़ाउन्डेशन) का काम है कि वह तरह-तरह की समस्याओं और मुश्किलों से जूझकर दूसरे साम्राज्य को अस्तित्व में लाने में सहायक हो। लेकिन इस कार्य में इतिहास के अगले पन्नों में क्या होना है, यह उस से छुपा रखा जाएगा। सन् १९६६ में इसने "सर्वश्रेष्ठ विज्ञान कथा शृंखला" के लिए ह्यूगो पुरस्कार जीता। .

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फिलीपींस का इतिहास

यह ताम्रलिपि, फिलीपीन्स से प्राप्त पहला दस्तावेज है जो सिद्ध करता है कि १६वीं शताब्दी में यूरोपियों के यहाँ आने के पहले हिन्दू सभ्यता का इस पर सीधा प्रभाव था। फिलीपींस में कोई ६७ हजार वर्ष पहले मानव ने पदार्पण किया। १४वीं शताब्दी में फिलीपींस का भारत, इण्डोनेशिया, चीन और जापान के साथ व्यापक स्तर पर व्यापार होने लगा था। इसी शताब्दी में इण्डोनेशिया से आये अरब व्यापारियों ने यहाँ इस्लाम धर्म फैलाया। पश्चिमी देशों से किसी व्यक्ति के फिलीपींस आने का लिखित उल्लेख फर्डिनाण्ड मैगलेन के रूप में मिलता है जो समर द्वीप पर १६ मार्च १५२१ को पहुँचा था। १५४२ में स्पेनी सैनिक पार्टी इन द्वीपों पर स्पेन का 'अधिकार' घोषित करते हुए स्पेन के राजकुमार फिलिप के नाम पर इसका नाम 'फिलीपींस' रख दिया। इस प्रकार फिलीपींस, स्पेन साम्राज्य के अधीन हो गया। १८८६ में होसे रिसाल नामक क्रांतिकारी लेखक ने 'Noli Me Tangere' (The Lost Eden) नामक स्पेन-विरोधी उपन्यास रचा और स्वतंत्रता की भावना को जगाया। १८९६ में रिसाल को मृत्युदण्ड दे दिया गया। १८९९ में पेरिस समझौते के द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका और स्पेन के बीच युद्ध समाप्त हुआ और फिलीपींसा अमेरिका के अधिकार में आ गया। इसी वर्ष फिलिपिनो लोगों ने अपने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और एमिलो अगुनाल्डो (Emilio Aguinaldo) के नेतृत्व में अमेरिका के विरुद्ध छापामार युद्ध आरम्भ किया। १९४१ में जापान ने फिलीपींस पर आक्रमण किया। ४ जुलाई १९४६ को अमेरिका ने फिलीपींस के स्वतंत्रता की घोषणा की। १९६५ में फर्डिनाण्ड मार्कोस राष्ट्रपति नियुक्त हुए। १९७२ में मार्कोस ने सैन्य शासन की घोषणा की। १९८६ में मार्कोस को पदच्युत करके कोराजन एक्विनो (Corazon Aguino) राष्ट्रपति बनीं। १९९२ में एक्विनो के रक्षा मंत्री फिडेल रामोस राष्त्रपरि का चुनाव जीते। अमेरिका ने सुबिक खाड़ी का नौसैनिक अड्डा बन्द किया। १९९८ - पूर्व फिल्म स्टार जोसेफ एस्ट्राडा (Joseph Estrada) राष्ट्रपति निर्वाचित २००१ जोसेफ एस्ट्राडा पदच्युत किये गये। जेल की सजा। माफी। २०१० जून: बेनिग्नो नोयनोय एक्विनो (Benigno "Noynoy" Aquino) राष्ट्रपति बने। .

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फकीर मोहन सेनापति

ओड़िआ साहित्य में फकीरमोहन सेनापति (१८४३- १९१८) ‘कथा-सम्राट्‍’ के रूप में प्रसिद्ध हैं। ओड़िआ कहानी एवं उपन्यास रचना में उनकी बिशिष्ट पहचान रही है। .

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फुल्ल बिना डाली

फुल्ल बिना डाली डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार श्रीवत्स विकल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में डोगरी भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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फ्रांको मोरेत्ति

फ्रांकॉ मोरेत्ति (जन्म १९५०, सोन्द्रियो) इटली के साहित्यिक विशेषज्ञ थे। वे मार्क्सवादी थे और उनकी रचनायें उपन्यास के इतिहास को "प्लानेटरी फार्म" के दृष्टिकोण से परखने का प्रयास करते हैं। इनकी कुल छः पुस्तके हैं। ये हैं - सैन्स टॅकएन फर वंडर्स (१९८३), द वे ऑफ दि वर्ल्ड (१९८७), मोडर्न एपिक (१९९५), एट्लस ऑफ दि युरोपियन नवल - १८००-१९०० (१९९८), ग्राफ्स, म्याप्स, ट्रीस:एब्स्ट्राक्ट मोडेल्स फर ए लिटररी हिस्टरी (२००५), डिस्टेंट रीडिंग (२०१३)। इनकी हाल ही में लिखी हुई रचना, विवाद सहित, पारंपरिक ह्युमानिटीस के परिमाणात्मक मान्यताओं को सामाजिक विज्ञान संबंधी विशयो से आयात करने के बारे में चर्चा करती हैं। आज तक इनकी किताबें १५ भाषाओं में अनुवादित हुए हैं। .

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फ्रैंकनस्टाइन

फ्रैंकनस्टाइन; ऑर, द मॉडर्न प्रोमिथियस, जो साधारणतः फ्रैंकनस्टाइन नाम से विख्यात है, मेरी शेली द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है। शेली ने अट्ठारह साल की उम्र में इसे लिखना शुरू किया था और उपन्यास के प्रकाशन के समय वह बीस वर्ष की थीं। इसका पहला संस्करण 1818 में लंदन में अज्ञात रूप से प्रकाशित किया गया। शेली का नाम फ्रांस में प्रकाशित दूसरे संस्करण में अंकित था। उपन्यास का शीर्षक का संबंध एक वैज्ञानिक विक्टर फ्रैंकनस्टाइन से है, जो जीवन को उत्पन्न करने का तरीका सीख जाता है और मानव की तरह दिखने वाले एक प्राणी का सृजन करता है, जो औसत से कहीं ज़्यादा विशालकाय और शक्तिशाली होता है। लोकप्रिय संस्कृति में, "फ्रैंकनस्टाइन" को एक दैत्य समझा जाता है, जो गलत है। फ्रैंकनस्टाइन में गॉथिक उपन्यासों और रूमानी आंदोलन के कुछ पहलुओं का समावेश है। यह औद्योगिक क्रांति में आधुनिक मानव के विस्तार के खिलाफ भी एक चेतावनी देता है, जिसका संकेत उपन्यास के उपशीर्षक, द मॉर्डन प्रोमिथियस में मिलता है। इस उपन्यास का साहित्य और लोकप्रिय संस्कृति पर काफ़ी प्रभाव रहा है और यह कई डरावनी कहानियों और फिल्मों का आधार भी बना है। .

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फैनी बर्नी

फैनी बर्नी फैनी बर्नी (Fanny Burney / 13 जून 1752 – 6 जनवरी 1840) अंग्रेजी उपन्यासकार तथा नाटककार थीं। वे 'फ्रांसेज बर्नी' (Frances Burney) के नाम से भी जानी जाती हैं। विवाह के बाद वे मेडम डाब्ले (Madame d’Arblay) के नाम से भी जानी जाती थीं। उनकी पैनी दृष्टि मनुष्यों की त्रुटियों तथा हास्यापद विचित्रताओं को सहज ही लक्ष्य कर लेती थी और उनकी लेखनी कुशल चित्रकार की तूलिका के समान उनका समन्वय करके मनोरंजक चित्रों का सर्जन करती थी। इस तरह के व्यंग्यात्मक चित्र उनके उपन्यासों में भरे पड़े हैं। मैडम डाब्ले के उपन्यासों का महत्व ऐतिहासिक है क्योंकि उनमें स्त्रियों के स्वतंत्र दृष्टिकोण का समावेश है और घरेलू जीवन ही उनका केंद्रबिंदु है। उन्होंने उस परंपरा का श्रीगणेश किया जिसकी पराकष्ठा जेन आस्टिन की परिपक्व कृतियों मे पाई जाती है। .

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बच्चन सिंह

बच्चन सिंह (जन्म: 2 जुलाई 1919 जौनपुर, मृत्यु: 5 अप्रैल 2008 वाराणसी) एक हिन्दी साहित्यकार, आलोचक एवं इतिहासकार थे। हिन्दी साहित्य में बच्चन सिंह की ख्याति सैद्धान्तिक लेखन के क्षेत्र में असंदिग्ध है। .

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बदुकु

बदुकु कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार गीता नागभूषण द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2004 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बर्नार्ड मलामड

बर्नार्ड मलामड अमेरिका के राष्ट्रिय पुस्तक पुरस्कार विजेता लेखक थे, इन्होने ये पुरस्कार सन १९५९ में अपनी किताब दे मेजिक बरल और सन १९६७ में दे फिक्सर के लिये जीता। वे २०वि सदी में अमेरिका के कुछ महान यहूदी लेखको में से थे। उनका उपन्यास दे नैचुरल सन १९८४ की फिल्म जिसमे की रॉबर्ट रेडफोर्ड ने काम किया था का विषय बना.

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बलवंत सिंह (लेखक)

बलवंत सिंह हिन्दी: (जन्म:जून 1921ई. - 27 मई 1986ई.) बीसवीं सदी की उर्दू और हिन्दी  के मशहूर नाटककार, उपन्यासकार और गल्पकार और पत्रकार हैं जिन्होंने जगा, पहला पत्थर, तारोपुद, हिंदुस्तान हमारा जैसे कहानी संग्रह और कॉल कोस, रात, चोर और चाँद, चक पीरान का जस्सा  जैसे लजवाल उपन्यास सृजन किए और अपनी रचनात्मक गुणों से उर्दू गल्प को विश्वीय पहचान देने मैं #अहम भूमिका अदा की। .

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बा मुलाहज़ा होशिआर

बा मुलाहज़ा होशिआर पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार नरेन्द्रपाल सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1976 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बाणभट्ट की आत्‍मकथा

बाणभट्ट की आत्मकथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी रचित एक ऐतिहासिक हिन्दी उपन्यास है। इसमें तीन प्रमुख पात्र हैं- बाणभट्ट, भट्टिनी तथा निपुणिका। इस पुस्तक का प्रथम प्रकाशन वर्ष 1946 में राजकमल प्रकाशन ने किया था। इसका नवीन प्रकाशन 1 सितम्बर 2010 को किया गया था। यह उपन्यास आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की विपुल रचना-सामर्थ्य का रहस्य उनके विशद शास्त्रीय ज्ञान में नहीं, बल्कि उस पारदर्शी जीवन-दृष्टि में निहित है, जो युग का नहीं युग-युग का सत्य देखती है। उनकी प्रतिभा ने इतिहास का उपयोग ‘तीसरी आँख’ के रूप में किया है और अतीतकालीन चेतना-प्रवाह को वर्तमान जीवनधारा से जोड़ पाने में वह आश्चर्यजनक रूप से सफल हुई है। बाणभट्ट की आत्मकथा अपनी समस्त औपन्यासिक संरचना और भंगिमा में कथा-कृति होते हुए भी महाकाव्यत्व की गरिमा से पूर्ण है। इस उपन्यास में द्विवेदी जी ने प्राचीन कवि बाणभट्ट के बिखरे जीवन-सूत्रों को बड़ी कलात्मकता से गूँथकर एक ऐसी कथाभूमि निर्मित की है जो जीवन-सत्यों से रसमय साक्षात्कार कराती है। इसका कथानायक कोरा भावुक कवि नहीं वरन कर्मनिरत और संघर्षशील जीवन-योद्धा है। उसके लिए ‘शरीर केवल भार नहीं, मिट्टी का ढेला नहीं’, बल्कि ‘उससे बड़ा’ है और उसके मन में आर्यावर्त्त के उद्धार का निमित्त बनने की तीव्र बेचैनी है। ‘अपने को निःशेष भाव से दे देने’ में जीवन की सार्थकता देखने वाली निउनिया और ‘सबकुछ भूल जाने की साधना’ में लीन महादेवी भट्टिनी के प्रति उसका प्रेम जब उच्चता का वरण कर लेता है तो यही गूँज अंत में रह जाती है- 'बाणभट्ट की आत्मकथा' हर्षकालीन सभ्यता एवं संस्कृति का जीवन्त दस्तावेज है। ऐतिहासिक उपन्यासकार को अतीत में भी प्रवेश करना पड़ता है। अतीत में प्रविष्ट हो कर ही इतिहास को वर्तमान संदर्भो के साथ जोड़ पाता है। इसी जुड़ाव के माध्यम से ऐतिहासिक उपन्यासकार अतीत को चित्रित करता है। .

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बाणी बसु

बाणी बसु बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास खना मिहिरेर ढिपि के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बारोमास

बारोमास मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार सदानंद नामदेवराव देशमुख द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2004 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बिद्यासागर नार्जारी

बिद्यासागर नार्जारी बोडो भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बिरगोस्रिनि थुंग्रि के लिये उन्हें सन् 2008 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बिन्दु भट्ट

बिन्दु भट्ट गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अखेपातर के लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बिन्द्या सुब्बा

बिन्द्या सुब्बा नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अथाह के लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बिपन्न समय

बिपन्न समय असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार मेदिनी शर्मा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1999 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बिमल कर

बिमल कर बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास असमय के लिये उन्हें सन् 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बिरगोस्रिनि थुंग्रि

बिरगोस्रिनि थुंग्रि बोडो भाषा के विख्यात साहित्यकार बिद्यासागर नार्जारी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में बोडो भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बखरे–बखरे सच्च

बखरे–बखरे सच्च डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार शिवदेव सिंह सुशील द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1997 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बंडाय

बंडाय कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार व्यासराय बल्लाल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1986 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

'''वन्दे मातरम्''' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (बंगाली: বঙ্কিমচন্দ্র চট্টোপাধ্যায়) (२७ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बंगाली के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है। आधुनिक युग में बंगला साहित्य का उत्थान उन्नीसवीं सदी के मध्य से शुरु हुआ। इसमें राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, प्यारीचाँद मित्र, माइकल मधुसुदन दत्त, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अग्रणी भूमिका निभायी। इसके पहले बंगाल के साहित्यकार बंगला की जगह संस्कृत या अंग्रेजी में लिखना पसन्द करते थे। बंगला साहित्य में जनमानस तक पैठ बनाने वालों मे शायद बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय पहले साहित्यकार थे। .

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बुक ऑफ़ रैचल

बुक ऑफ़ रैचल अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार एस्थर डेविड द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ब्रह्मपुत्रका छेउ–छाउ

ब्रह्मपुत्रका छेउ–छाउ नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार लील बहादुर क्षेत्री द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ब्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म

ब्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास नैका बनिजारा के लिये उन्हें सन् 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बोलवार मोहम्मद कुन्ही

बोलवार मोहम्मद कुन्ही कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास स्‍वतंत्रायदा ओटा के लिये उन्हें सन् २०१६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बी. एम. माइस्नाम्बा

बी.

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बी. पुट्टस्वामय्या

बी.

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बीट पीढ़ी

बीट पीढ़ी (Beat Generation, अन्य नाम- बीटनिक) मूलतः अमेरिका के एक साहित्य-आन्दोलन का नाम है। लेखकों के एक समूह को, जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत अमेरिकी समाज एवं संस्कृति के प्रति अपने भिन्न दृष्टिकोण एवं धक्कामार लेखन-शैली से युगान्तरकारी प्रभाव उत्पन्न करने वाला सिद्ध हुआ, ' बीट पीढी ' कहा गया और इनके द्वारा रचित साहित्य को बीट साहित्य के नाम से भी जाना गया। १९५०-६० ई० के आस-पास इस पीढ़ी का अधिकतम साहित्य प्रकाशित हुआ व जन-सामान्य में प्रचलित हुआ। उनके लेखन का प्रमुख केन्द्र प्रचलित सामाजिक धारणाओं की अस्वीकृति, आध्यात्मिक तलाश, भौतिकवाद का असमर्थन, अमरिकी व पूर्वी धर्मों का अध्ययन व यौन संबन्धों और नशीले पदार्थों के सेवन की स्वतंत्रता जैसे घटक थे। "बीट साहित्य" की सर्वाधिक प्रचलित कृतियाँ हैं एलेन गिन्सबर्ग की "हाउल" (१९५६), विलियम बरोज.

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बीरासन

बीरासन बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार सुब्रत मुखोपाध्याय द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2012 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भट्ट मथुरानाथ शास्त्री

कवि शिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री (23 मार्च 1889 - 4 जून 1964) बीसवीं सदी पूर्वार्द्ध के प्रख्यात संस्कृत कवि, मूर्धन्य विद्वान, संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक और युगपुरुष थे। उनका जन्म 23 मार्च 1889 (विक्रम संवत 1946 की आषाढ़ कृष्ण सप्तमी) को आंध्र के कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अनुयायी वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के प्रसिद्ध देवर्षि परिवार में हुआ, जिन्हें सवाई जयसिंह द्वितीय ने ‘गुलाबी नगर’ जयपुर शहर की स्थापना के समय यहीं बसने के लिए आमंत्रित किया था। आपके पिता का नाम देवर्षि द्वारकानाथ, माता का नाम जानकी देवी, अग्रज का नाम देवर्षि रमानाथ शास्त्री और पितामह का नाम देवर्षि लक्ष्मीनाथ था। श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट आदि प्रकाण्ड विद्वानों की इसी वंश परम्परा में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने विपुल साहित्य सर्जन की आभा से संस्कृत जगत् को प्रकाशमान किया। हिन्दी में जिस तरह भारतेन्दु हरिश्चंद्र युग, जयशंकर प्रसाद युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग हैं, आधुनिक संस्कृत साहित्य के विकास के भी तीन युग - अप्पा शास्त्री राशिवडेकर युग (1890-1930), भट्ट मथुरानाथ शास्त्री युग (1930-1960) और वेंकट राघवन युग (1960-1980) माने जाते हैं। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य एवं रचनात्मक संस्कृत लेखन इतना विपुल है कि इसका समुचित आकलन भी नहीं हो पाया है। अनुमानतः यह एक लाख पृष्ठों से भी अधिक है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली जैसे कई संस्थानों द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन किया गया है तथा कई अनुपलब्ध ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी हुआ है। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री का देहावसान 75 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण 4 जून 1964 को जयपुर में हुआ। .

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भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी

हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के साम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं। किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है। .

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भारतेन्दु युग

जिस समय खड़ी बोली गद्य अपने प्रारिम्भक रूप में थी, उस समय हिन्दी के सौभाग्य से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया। उन्होंने राजा शिवप्रसाद तथा राजा लक्ष्मण सिंह की आपस में विरोधी शैलियों में समन्वय स्थापित किया और मध्यम मार्ग अपनाया। इस काल में हिन्दी के प्रचार में जिन पत्र-पत्रिकाओं ने विशेष योग दिया, उनमें उदन्त मार्तण्ड, कवि वचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगजीन अग्रणी हैं। इस समय हिन्दी गद्य की सर्वांगीण प्रगति हुई और उसमें उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध, आलोचना, जीवनी आदि विधाओं में अनूदित तथा मौलिक रचनाएं लिखी गयीं। .

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भारतीय महाकाव्य

भारत में संस्कृत तथा अन्य भाषाओं में अनेक महाकाव्यों की रचना हुई है। भारत के महाकाव्यों में वाल्मीकि रामायण, व्यास द्वैपायन रचित महाभारत, तुलसीदासरचित रामचरितमानस, आदि ग्रन्थ परमुख हैं। .

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भालचंद्र नेमाडे

भालचंद्र नेमाडे (जन्म-१९३८) भारतीय मराठी लेखक, उपन्यासकार, कवि, समीक्षक तथा शिक्षाविद हैं। १९६३ में केवल २५ वर्ष की आयु में प्रकाशित 'कोसला' नामक उपन्यास से उन्हें अपार सफलता मिली। सन १९९१ में उनकी टीकास्वयंवर इस कृति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष २०१४ का प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा।श्री नेमाडे की प्रमुख कृतियों में 'कोसला' और 'हिन्‍दू' उपन्‍यास शामिल हैं। उनके साहित्य में 'देशीवाद' (स्वदेशीकरण) पर बल दिया गया है। वह 60के दशक के लघु पत्रिका आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे। प्राध्यापक भालचंद्र नेमाडे मराठी के प्रसिध्द लेखक वी.स. खांडेकर, वि.वा.

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भाग्यवती उपन्यास

भाग्यवती पण्डित श्रद्धाराम फिल्लौरी द्वारा रचित हिन्दी उपन्यास है। इसकी रचना सन् १८८७ में हुई थी। इसे हिन्दी का प्रथम् उपन्यास होने का गौरव प्राप्त है। इसकी रचना मुख्यत: अमृतसर में हुई थी और सन् १८८८ में यह प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास की पहली समीक्षा अप्रैल 1887 में हिन्दी की मासिक पत्रिका प्रदीप में प्रकाशित हुई थी। इसे पंजाब सहित देश के कई राज्यो के स्कूलों में कई सालों तक पढाया जाता रहा। इस उपन्यास में उन्होंने काशी के एक पंडित उमादत्त की बेटी भगवती के किरदार के माध्यम से बाल विवाह पर ज़बर्दस्त चोट की। इसी इस उपन्यास में उन्होंने भारतीय स्त्री की दशा और उसके अधिकारों को लेकर क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए। यह उपन्यास स्त्रियों में जागृति लाने के उद्देश्य से लिखा गया था। इस उपन्यास की मुख्य पात्र एक स्त्री है। इसमें स्त्रियों के प्रगतिशील रूप का चित्रण है एवं उनके अधिकारों एवं स्थिति की बात की गयी है। उस जमाने में इस उपन्यास में विधवा विवाह का पक्ष लिया गया है; बालविवाह की निन्दा की गयी है; बच्चा और बच्ची के समानता की बात की गयी है। यह पुस्तक उस समय विवाह में लड़कियों को दहेज के रूप में दी जाती थी। पं.

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भवानी भट्टाचार्य

भवानी भट्टाचार्य अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शैडो फ्रॉम लद्दाख़ के लिये उन्हें सन् 1967 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भगवती कुमार शर्मा

भगवती कुमार शर्मा गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास असूर्यलोक के लिये उन्हें सन् 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भूदेव मुखोपाध्याय

भूदेव मुखोपाध्याय (१८२७ – १८९४) १९वीं शताब्दी के बंगाल के लेखक और बुद्धिजीवी थे। बंगाल के नवजागरण काल में उनकी रचनाओं में राष्ट्रवाद और दर्शन का सुन्दर रूप देखने को मिलता है। 'अङ्गुरिया बिनिमय' (१८५७) नामक उनका उपन्यास बंगाल का पहला ऐतिहासिक उपन्यास था। श्रेणी:बांग्ला साहित्यकार.

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भूले बिसरे चित्र

भूले बिसरे चित्र हिन्दी के विख्यात साहित्यकार भगवतीचरण वर्मा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भोगदंड

भोगदंड कोंकणी भाषा के विख्यात साहित्यकार हेमा नायक द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में कोंकणी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भीम दाहाल

भीम दाहाल नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास द्रोह के लिये उन्हें सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भीष्म साहनी

रावलपिंडी पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी (८ अगस्त १९१५- ११ जुलाई २००३) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। १९३७ में लाहौर गवर्नमेन्ट कॉलेज, लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम ए करने के बाद साहनी ने १९५८ में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। भारत पाकिस्तान विभाजन के पूर्व अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ ये व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर समाचारपत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जा मिले। इसके पश्चात अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। १९५७ से १९६३ तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह (फॉरेन लॅग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस) में अनुवादक के काम में कार्यरत रहे। यहां उन्होंने करीब दो दर्जन रूसी किताबें जैसे टालस्टॉय आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया। १९६५ से १९६७ तक दो सालों में उन्होंने नयी कहानियां नामक पात्रिका का सम्पादन किया। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अफ्रो-एशियायी लेखक संघ (एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन) से भी जुड़े रहे। १९९३ से ९७ तक वे साहित्य अकादमी के कार्यकारी समीति के सदस्य रहे। भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। वे मानवीय मूल्यों के लिए हिमायती रहे और उन्होंने विचारधारा को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। वामपंथी विचारधारा के साथ जुड़े होने के साथ-साथ वे मानवीय मूल्यों को कभी आंखो से ओझल नहीं करते थे। आपाधापी और उठापटक के युग में भीष्म साहनी का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग था। उन्हें उनके लेखन के लिए तो स्मरण किया ही जाएगा लेकिन अपनी सहृदयता के लिए वे चिरस्मरणीय रहेंगे। भीष्म साहनी हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। उन्हें १९७५ में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९७५ में शिरोमणि लेखक अवार्ड (पंजाब सरकार), १९८० में एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन का लोटस अवार्ड, १९८३ में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड तथा १९९८ में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके उपन्यास तमस पर १९८६ में एक फिल्म का निर्माण भी किया गया था। .

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मणिपुरी साहित्य

बांग्ला लिपि में लिखी जाने वाली मणिपुरी को विष्णुप्रिया मणिपुरी भी कहा जाता है। मणिपुरी भाषा का साहित्य भी समृद्ध है। १९७३ से आज तक ३९ मणिपुरी साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। मणिपुरी साहित्य में वैष्णव भक्ति तथा मणिपुर की कला / संस्कृति झलकती है। कहानी, उपन्यास, काव्य, प्रवास वर्णन, नाटक आदि सभी विधाओं में मणिपुरी साहित्य ने अपनी पहचान बनाई है। मखोनमनी मोंड्साबा, जोड़ छी सनसम, क्षेत्री वीर, एम्नव किशोर सिंह आदि मणिपुरी के प्रसिद्ध लेखक हैं। मणिपुरी साहित्य की यात्रा १९२५ में फाल्गुनी सिंह द्वारा मीताई तथा बिष्णुप्रिया मणिपुरी भाषा की द्बिभाषिक सामयिकी ”जागरन” के प्रकाशन के रूप में आरम्भ हुआ। इसी समय और भी कई द्बिभाषिक पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं। इनमें ”मेखली”(१९३३), ”मणिपुरी” (१९३८), क्षत्रियज्योति (१९४४) इत्यदि अन्यतम हैं। .

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मति नंदी

मति नंदी बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सादा खाम के लिये उन्हें सन् 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मत्स्येन्द्र प्रधान

मत्स्येन्द्र प्रधान नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास नीलकंठ के लिये उन्हें सन् 1985 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मथओ कनवा डि एन ए

मथओ कनवा डि एन ए मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार जोध छी. सनसम द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2012 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मधु कांकरिया

मधु कांकरिया हिन्दी साहित्य की प्रतिष्ठित लेखिका, कथाकार तथा उपन्यासकार हैं। उन्होंने बहुत सुन्दर यात्रा-वृत्तांत भी लिखे हैं। उनकी रचनाओं में विचार और संवेदना की नवीनता तथा समाज में व्याप्त अनेक ज्वलंत समस्याएें जैसे संस्कृति, महानगर की घुटन और असुरक्षा के बीच युवाओं में बढ़ती नशे की आदत, लालबत्ती इलाकों की पीड़ा नारी अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं के विषय रहे हैं। .

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मनुभाई पाँचोली

मनुभाई पाँचोली सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार हैं। ये अपने उपनाम दर्शक़ से भी जाने जाते है। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास साक्रेटीज़ के लिये उन्हें सन् १९७५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (गुजराती) से सम्मानित किया गया। .

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मनोरंजन लाहारी

मनोरंजन लाहारी बोडो भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास दाइनि? के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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मनोज बसु

मनोज बसु बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास निशि–कुटुंब के लिये उन्हें सन् 1966 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ममता कालिया

ममता कालिया (02 नवम्बर,1940) एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। लगभग आधी सदी के काल खण्ड में उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है। वर्तमान में वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका "हिन्दी" की संपादिका हैं। .

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महाभोज

महाभोज मन्नू भंडारी द्वारा लिखा गया एक हिंदी उपन्यास है। उन्यास में अपराध और राजनीति के गठजोड़ का यथार्थवादी चित्रण किया गया है। .

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महारथी

महारथी असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार चंद्रप्रसाद सइकीया द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1995 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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महाकाव्य (एपिक)

वृहद् आकार की तथा किसी महान कार्य का वर्णन करने वाली काव्यरचना को महाकाव्य (epic) कहते हैं। .

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महाक्षत्रिय

महाक्षत्रिय कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार देवुडु नरसिंह शास्त्री द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1962 में कन्नड़ भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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महिमा बरा

महिमा बरा असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास एधानी माहीर हाँहि के लिये उन्हें सन् 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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महीप सिंह

डॉ महीप सिंह (15 अगस्त, 1930 - 24 नवम्बर, 2015) हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक, स्तंभकार और पत्रकार थे। उन्हें २००९ का भारत भारती सम्मान प्रदान किया गया था। वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में राष्ट्रीय मसलों पर लेख भी लिखते थे। उन्होंने करीब 125 कहानियां और कई उपन्यास भी लिखे थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक रहे। .

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माँ (उपन्यास)

माँ क्रांतिकारी कारखाने के कर्मचारियों के बारे में 1906 में मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखित एक उपन्यास है। इस काम कई भाषाओं में अनुवाद किया गया था, और फिल्मों की संख्या में बनाया गया था। जर्मन नाटककार बर्टोल्ट ब्रेख्त और उसके सहयोगियों को उनकी 1932 में इस उपन्यास पर माँ ड्रामा आधारित है। .

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मानस का हंस

मानस का हंस अमृत लाल नागर द्वारा रचित प्रसिद्ध उपन्यास है। यह उपन्यास रामचरितमानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर लिखा गया है। इस उपन्यास में तुलसीदास का जो स्वरूप चित्रित किया गया है, वह एक सहज मानव का रूप है। यही कारण है कि ‘मानस का हंस’ हिन्दी उपन्यासों में ‘क्लासिक’ का सम्मान पा चुका है और हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि माना जाता है। नागरजी ने इसे गहरे अध्ययन और मंथन के पश्चात अपने विशिष्ट लखनवी शैली में लिखा है। बृहद् होने पर भी यह उपन्यास अपनी रोचकता में अप्रतिम है। .

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मानव बलि

एचिलिस के कब्र पर नीओप्टोलेमस के हाथ से पॉलीजिना मर गया" (एक प्राचीन कैमिया के बाद 1900 सदी का चित्र) किसी धार्मिक अनुष्ठान के भाग (अनुष्ठान हत्या) के रूप में किसी मानव की हत्या करने को मानव बलि कहते हैं। इसके अनेक प्रकार पशुओं को धार्मिक रीतियों में काटा जाना (पशु बलि) तथा आम धार्मिक बलियों जैसे ही थे। इतिहास में विभिन्न संस्कृतियों में मानव बलि की प्रथा रही है। इसके शिकार व्यक्ति को रीति-रिवाजों के अनुसार ऐसे मारा जाता था जिससे कि देवता प्रसन्न अथवा संतुष्ट हों, उदाहरण के तौर पर मृत व्यक्ति की आत्मा को देवता को संतुष्ट करने के लिए भेंट किया जाता था अथवा राजा के अनुचरों की बलि दी जाती थी ताकि वे अगले जन्म में भी अपने स्वामी की सेवा करते रह सकें.

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मानव जमीन

मानव जमीन बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1989 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मानविकी

सिलानिओं द्वारा दार्शनिक प्लेटो का चित्र मानविकी वे शैक्षणिक विषय हैं जिनमें प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के मुख्यतः अनुभवजन्य दृष्टिकोणों के विपरीत, मुख्य रूप से विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक या काल्पनिक विधियों का इस्तेमाल कर मानवीय स्थिति का अध्ययन किया जाता है। प्राचीन और आधुनिक भाषाएं, साहित्य, कानून, इतिहास, दर्शन, धर्म और दृश्य एवं अभिनय कला (संगीत सहित) मानविकी संबंधी विषयों के उदाहरण हैं। मानविकी में कभी-कभी शामिल किये जाने वाले अतिरिक्त विषय हैं प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी), मानव-शास्त्र (एन्थ्रोपोलॉजी), क्षेत्र अध्ययन (एरिया स्टडीज), संचार अध्ययन (कम्युनिकेशन स्टडीज), सांस्कृतिक अध्ययन (कल्चरल स्टडीज) और भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स), हालांकि इन्हें अक्सर सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) के रूप में माना जाता है। मानविकी पर काम कर रहे विद्वानों का उल्लेख कभी-कभी "मानवतावादी (ह्यूमनिस्ट)" के रूप में भी किया जाता है। हालांकि यह शब्द मानवतावाद की दार्शनिक स्थिति का भी वर्णन करता है जिसे मानविकी के कुछ "मानवतावाद विरोधी" विद्वान अस्वीकार करते हैं। .

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मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन उपन्यास

मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन उपन्यास असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार इन्दिरा गोस्वामी (मामनी रायसम गोस्वामी) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1982 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मायानंद मिश्र

मायानंद मिश्र मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मंत्रपुत्र के लिये उन्हें सन् 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मार्ताण्ड वर्मा (उपन्यास)

मार्ताण्ड वर्मा, केरल का साहित्यकार सी॰ वी॰ रामन् पिल्लै का १९८१ में प्रकाशित हुआ एक मलयालम उपन्यास है। राजा रामा वर्मा के अंतिम शासनकाल से मार्ताण्ड वर्मा का राज्याभिषेक तक वेणाट (तिरुवितान्कूर) का इतिहास आख्यान करना एक अतिशयोक्तिपूर्ण कथा | url .

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मार्निंग फ़ेस

मार्निंग फ़ेस अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार मुल्कराज आनंद द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1971 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मार्कण्डेय

कथाकार मार्कण्डेय मार्कण्डेय (2 मई 1930 - 18 मार्च 2010) हिन्दी के जाने-माने कहानीकार थे। वे 'नयी कहानी' के दौर के प्रमुख हस्ताक्षर थे। वे 'नयी कहानी' के सिद्धान्तकारों में से एक थे।अपने लेखन में वे सदैव आधुनिक और प्रगतिशील मूल्यों के हामीदार रहे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के बराईं गाँव में हुआ था। इनकी कहानियाँ आज के गाँव के पृष्ठभूमि तथा समस्यायों के विश्लेषण की कहानियाँ हैं। इनकी भाषा में उत्तर प्रदेश के गाँवों की बोलियों की अधिकता होती है, जिससे कहानी में यथार्थ पृष्ठभूमि का निरुपण होता है। अब तक इनके कई कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके 'अग्निबीज','सेमल के फूल' उपन्यास तथा 'पानफूल','हंसा जाई अकेला','महुए का पेड़','भूदान','माही','सहज और शुभ','बीच के लोग','हलयोग' कहानी-संग्रह प्रसिद्ध हैं।इसके अलावा 'पत्थर और परछाइयां'(एकांकी-संग्रह),'यह पृथ्वी तुम्हें देता हूँ','सपने तुम्हारे थे'(कविता-संग्रह),'हिन्दी कहानी:यथार्थवादी नजरिया','कहानी की बात','प्रगतिशील साहित्य की जिम्मेदारी'(आलोचना),'चक्रधर की साहित्यधारा'(साहित्य-संवाद)प्रकाशित।अनियतकालीन पत्रिका 'कथा' की 1969ई.में स्थापना।उनके सम्पादन में निकले 'कथा' के 14 अंक हिन्दी भाषा की साहित्यिक पत्रकारिता में मील के पत्थर हैं।साथ ही मित्र प्रकाशन की पत्रिका 'माया' के दो विशेषांक 1965ई.

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मालती चंदूर

मालती चंदूर तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास हृदयनेत्री के लिये उन्हें सन् 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मालती राव

मालती राव अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास डिसऑर्डरली वुमेन के लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मित्र सैन मीत

मित्र सैन मीत पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सुधार घर के लिये उन्हें सन् 2008 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मिरात-उल-उरूस

दुल्हन का आइना मिरात उल-उरूस (अर्थ: दुल्हन का आइना) नज़ीर अहमद देहलवी द्वारा लिखा गया और सन् १८६९ में प्रकाशित हुआ एक उर्दू उपन्यास है। यह उपन्यास भारतीय और मुस्लिम समाज में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने वाले कुछ तत्वों के लिए प्रसिद्ध है और इससे प्रेरित होकर हिन्दी, पंजाबी, कश्मीरी और भारतीय उपमहाद्वीप की अन्य भाषाओं में भी इस विषय पर आधारित उपन्यास लिखे गए।, Meenakshi Mukherjee, Sahitya Akademi, 2002, ISBN 978-81-260-1342-5,...

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मंत्रपुत्र

मंत्रपुत्र मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार मायानंद मिश्र द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में मैथिली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मु. वरदराजन

मु.

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मुझे चाँद चाहिए

मुझे चाँद चाहिए हिन्दी के विख्यात साहित्यकार सुरेन्द्र वर्मा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मुक्तिबोध (उपन्यास)

मुक्तिबोध हिन्दी के विख्यात साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1966 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मौन होंठ मुखर हृदय

मौन होंठ मुखर हृदय असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार येसे दरजे थोंगछी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2005 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मृणाल पाण्डे

मृणाल पाण्डे (जन्म: 26 फरवरी 1946) भारत की एक पत्रकार, लेखक एवं भारतीय टेलीविजन की जानी-मानी हस्ती हैं। सम्प्रति वे प्रसार भारती की अध्यक्षा हैं। अगस्त २००९ तक वे हिन्दी दैनिक "हिन्दुस्तान" की सम्पादिका थीं। हिन्दुस्तान भारत में सबसे ज्यादा पढे जाने वाले अखबारों में से एक हैं। वे हिन्दुस्तान टाइम्स के हिन्दी प्रकाशन समूह की सदस्या भी हैं। इसके अलावा वो लोकसभा चैनल के साप्ताहिक साक्षात्कार कार्यक्रम (बातों बातों में) का संचालन भी करती हैं। .

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मृदुला गर्ग

मृदुला गर्ग (जन्म:२५ अक्टूबर, १९३८) कोलकाता में जन्मी, हिंदी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक हैं। उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर उन्होंने २० से अधिक पुस्तकों की रचना की है। १९६० में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद उन्होंने ३ साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया है। उनके उपन्यासों को अपने कथानक की विविधता और नयेपन के कारण समालोचकों की बड़ी स्वीकृति और सराहना मिली। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक हिंदी भाषाओं तथा जर्मन, चेक, जापानी और अँग्रेजी में अनुवाद हुआ है। वे स्तंभकार रही हैं, पर्यावरण के प्रति सजगता प्रकट करती रही हैं तथा महिलाओं तथा बच्चों के हित में समाज सेवा के काम करती रही हैं। उनका उपन्यास 'चितकोबरा' नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था। उन्होंने इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में २००३ से २०१० तक 'कटाक्ष' नामक स्तंभ लिखा है जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा। उनके आठ उपन्यास- उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, 'मैं और मैं', कठगुलाब, 'मिलजुल मन' और 'वसु का कुटुम'। ग्यारह कहानी संग्रह- 'कितनी कैदें', 'टुकड़ा टुकड़ा आदमी', 'डैफ़ोडिल जल रहे हैं', 'ग्लेशियर से', 'उर्फ सैम', 'शहर के नाम', 'चर्चित कहानियाँ', समागम, 'मेरे देश की मिट्टी अहा', 'संगति विसंगति', 'जूते का जोड़ गोभी का तोड़', चार नाटक- 'एक और अजनबी', 'जादू का कालीन', 'तीन कैदें' और 'सामदाम दंड भेद', तीन निबंध संग्रह- 'रंग ढंग','चुकते नहीं सवाल' तथा 'कृति और कृतिकार', एक यात्रा संस्मरण- 'कुछ अटके कुछ भटके' तथा दो व्यंग्य संग्रह- 'कर लेंगे सब हज़म' तथा 'खेद नहीं है' प्रकाशित हुए हैं। .

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मैत्रेयी देवी

मैत्रेयी देवी बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास न हन्यते के लिये उन्हें सन् 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मैथिली साहित्य

मैथिली मुख्यतः भारत के उत्तर-पूर्व बिहार एवम् नेपाल के तराई क्षेत्र की भाषा है।Yadava, Y. P. (2013).

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मैला आँचल

भारत छोड़ो आंदोलन का चित्र मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। सन् १९५४ में प्रकाशित इस उपन्यास की कथावस्तु बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के मेरीगंज की ग्रामीण जिंदगी से संबद्ध है। यह स्वतंत्र होते और उसके तुरंत बाद के भारत के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य का ग्रामीण संस्करण है। रेणु के अनुसार इसमें फूल भी है, शूल भी है, धूल भी है, गुलाब भी है और कीचड़ भी है। मैं किसी से दामन बचाकर निकल नहीं पाया। इसमें गरीबी, रोग, भुखमरी, जहालत, धर्म की आड़ में हो रहे व्यभिचार, शोषण, बाह्याडंबरों, अंधविश्वासों आदि का चित्रण है। शिल्प की दृष्टि से इसमें फिल्म की तरह घटनाएं एक के बाद एक घटकर विलीन हो जाती है। और दूसरी प्रारंभ हो जाती है। इसमें घटनाप्रधानता है किंतु कोई केन्द्रीय चरित्र या कथा नहीं है। इसमें नाटकीयता और किस्सागोई शैली का प्रयोग किया गया है। इसे हिन्दी में आँचलिक उपन्यासों के प्रवर्तन का श्रेय भी प्राप्त है। कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की इस युगान्तकारी औपन्यासिक कृति में कथाशिल्प के साथ-साथ भाषाशिल्प और शैलीशिल्प का विलक्षण सामंजस्य है जो जितना सहज-स्वाभाविक है, उतना ही प्रभावकारी और मोहक भी। .

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मैं बोरिशाइल्ला

महुआ माझी का उपन्यास मैं बोरिशाइल्ला बांग्लादेश की मुक्ति-गाथा पर केंद्रित है। यह उपन्यास बहुत ही कम समय में खासा चर्चित हुआ है और इस कृति को सम्मानित भी किया गया है। इस उपन्यास के असामान्य शीर्षक के बारे में स्पष्टीकरण देती हुई वे, उपन्यास के प्राक्कथन में कहती हैं - “...जिस तरह बिहार के लोगों को बिहारी तथा भारत के लोगों को भारतीय कहा जाता है, उसी प्रकार बोरिशाल के लोगों को यहाँ की आंचलिक भाषा में बोरिशाइल्ला कहा जाता है। उपन्यास का मुख्य पात्र केष्टो, बोरिशाल का है। इसीलिए वह कह सकता है - मैं बोरिशाइल्ला।” इस उपन्यास में १९४८ से १९७१ तक के बांग्ला देश के ऐतिहासिक तथ्यों, पाकिस्तानी हुकूमत द्वारा बांग्लादेशी जनता पर किए अत्याचारों की घटनाओं तथा मुक्तिवाहिनी के संघर्ष गाथाओं को कथा सूत्र में पिरोया गया है। इस उपन्यास की रचना प्रक्रिया के विषय में वे कहती हैं कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को अपने पहले ही उपन्यास का विषय बनाने का कारण था कि मैं नई पीढ़ी के लिए उसे एक दृष्टांत के रूप में पेश करना चाहती थी कि आज बेशक पूरी दुनिया में सारी लड़ाइयाँ धर्म के नाम पर ही लड़ी जा रही हैं, लेकिन सच तो ये हैं कि सारा खेल सत्ता का है। ये लड़ाइयाँ अब बंद होनी चाहिये। भाषा और शैली की दृष्टि से इस उपन्यास के अति साधारण व नीरस होने बात कही जाती है। आलोचकों का मानना है कि उपन्यास की भाषा अत्यंत साधारण है और समूचे उपन्यास में कहीं भी कोई भाषाई शिल्प दिखाई नहीं देता। कथन में प्रवाह नहीं है और उपन्यास घटना-प्रधान होते हुए भी आमतौर पर बोझिल-सा बना रहता है। जिसके कारण इसके कई खण्ड घोर अपठनीय ही बने रहते हैं। लेखिका ने शायद पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा मुक्तिवाहिनी के कार्यों के बहुत प्रामाणिक विवरण देने के लोभ में उपन्यास को बिखरा सा दिया है। घटना प्रधान कथानक में रहस्य का सर्वथा अभाव भी आगे पढ़ने की जिज्ञासा बनाए रखने में सहायक नहीं होता। .

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मेदिनी शर्मा

मेदिनी शर्मा असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बिपन्न समय के लिये उन्हें सन् 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मेमोरीज़ ऑफ़ रेन

मेमोरीज़ ऑफ़ रेन अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार सुनेत्रा गुप्त द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मेरी तेरी उसकी बात

मेरी तेरी उसकी बात हिन्दी के विख्यात साहित्यकार यशपाल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मेरी तेरी उसकी बात हिंदी उपन्यासकार यशपाल द्वारा लिखा गया उपन्यास है। इसकी पृष्ठभूमि अगस्त १९४२ का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का विस्फोट है। यह दो पीड़ियों से क्रान्ति की वेदना को अदम्य बनाते वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक और साम्रप्रदायिक विषमताओं की कहानी कहता है। इसमें जीवन में जीर्ण रूढ़ियों की सड़ांध से उत्पन्न व्याधियों और सभी प्रकार की असह्य बातों का विरोध भी मिलता है। .

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मेवै रा रूंख

मेवै रा रूंख राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार अन्नाराम ‘सुदामा’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मॉन्टेस्क्यू

250px मॉन्टेस्क्यू (फ्रेंच: de La Brède et de Montesquieu) (जनवरी १८, १६८९ - फरवरी १०, १७५५) फ्रांस के एक राजनैतिक विचारक, न्यायविद तथा उपन्यासकार थे। उन्होने शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त दिया। वे फ्रांस में ज्ञानोदय के प्रभावी और प्रख्यात प्रतिनिधि माने जाते हैं। .

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मोना सिम्पसन

मोना एलिजाबेथ सिम्प्सन (Mona Elizabeth Simpson; जून 14, 1957) एक अमेरिकी उपन्यासकार हैं। वे लॉस एंजिल्स की कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की अंग्रेजी की प्राध्यापिका हैं। उन्होने ६ उपन्यास लिखे हैं। .

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मोइराङ्थेम बरकन्या

मोइरांथेम बरकन्या मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास लौक्ङला के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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याद हिक प्यार जी

याद हिक प्यार जी सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार कृशिन खटवाणी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में सिन्धी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद

यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास द्रौपदी के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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युद्ध और शान्ति

युद्ध और शान्ति (वार एण्ड पीस; सुधार-पूर्व रूसी में: Война и миръ / Voyna i mir) रूस के प्रसिद्ध लेखक लेव तोलस्तोय द्वारा रचित उपन्यास है। यह पहली बार १८६९ में प्रकाशित हुआ था। यह एक विशाल रचना है और विश्व साहित्य की महानतम रचनाओं में इसकी गणना होती है। .

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यू.ए. खादर

यू.ए. खादर मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास तृकोट्टूर नोवल्लकळ के लिये उन्हें सन् 2009 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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येसे दरजे थोंगछी

येसे दरजे थोंगछी असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मौन होंठ मुखर हृदय के लिये उन्हें सन् 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रणजीत देसाई

रणजीत रामचंद्र देसाई (जन्म- 8 अप्रैल 1928 ई०, निधन- 6 मार्च 1998 ई०) मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके हिन्दी में अनूदित उपन्यास भी काफी लोकप्रिय रहे हैं। .

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रथचक्र

रथचक्र मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार एस. एन. पेंडसे द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1963 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। .

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रश्मी बंसल

रश्मी बंसल का जन्म ८ मार्च १९८५ में मुम्बई शहर में हुआ था। उनके पिता खगोल भौतिकी के वैज्ञानिक थे। उन्हिने सेंट जोसेफ़ उच्च विद्यालय और आर सी चर्च से अपनी प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। बाद में सोफ़िया कॉलेज से अर्थशास्त्र में पदवी हासिल कर आई.आई.एम-ए एम.बी.ए. की पदवी प्राप्त की। .

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राधाचरण गोस्‍वामी

राधाचरण गोस्‍वामी (२५ फरवरी १८५९ - १२ दिसम्बर १९२५) हिन्दी के भारतेन्दु मण्डल के साहित्यकार जिन्होने ब्रजभाषा-समर्थक कवि, निबन्धकार, नाटकरकार, पत्रकार, समाजसुधारक, देशप्रेमी आदि भूमिकाओं में भाषा, समाज और देश को अपना महत्वपूर्ण अवदान दिया। आपने अच्छे प्रहसन लिखे हैं। .

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राधाकृष्ण

बिहार में जन्में राधाकृष्ण हिन्दी के यशस्वी कहानीकार हैं। आपकी कहानियों में देश एवं समाज की कुरीतियों पर गहरा व्यंग्य रहता है। भाषा सरल, सीधी किन्तु हृदयग्राही है। आपके अब तक कई उपन्यास तथा कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें रूपान्तर एवं सजला को हिन्दी-साहित्य में समुचित आदर मिला है। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.

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राधाकृष्ण दास

राधाकृष्ण दास (१८६५- २ अप्रैल १९०७) हिन्दी के प्रमुख सेवक तथा साहित्यकार थे। वे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के फुफेरे भाई थे। शारीरिक कारणों से औपचारिक शिक्षा कम होते हुए भी स्वाध्याय से इन्होने हिन्दी, बंगला, गुजराती, उर्दू, आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। वे प्रसिद्ध सरस्वती पत्रिका के सम्पादक मडल में रहे। वे नागरी प्रचारिणी सभा के प्रथम अध्यक्ष भी थे। इनके पिता का नाम कल्याणदास तथा माता का नाम गंगाबीबी था, जो भारतेंदु हरिश्चंद्र की बूआ थीं। शरीर से प्रकृत्या अस्वस्थ तथा अशक्त होने के कारण इनकी शिक्षा साधारण ही रही पर विद्याध्ययन की ओर रुचि होने से इन्होंने हिंदी, बँगला, उर्दू आदि में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। पंद्रह वर्ष की अवस्था में ही 'दुःखिनी बाला' नामक छोटा रूपक लिखा। इसके एक ही वर्ष बाद 'निस्सहाय हिंदू' नामक सामाजिक उपन्यास लिखा। इसी के अनंतर 'स्वर्णजता' आदि पुस्तकों का बँगला से हिंदी में अनुवाद किया। भारतीय इतिहास की ओर रुचि हो जाने से इसी काल में 'आर्यचरितामृत' रूप में बाप्पा रावल की जीवनी तथा 'महारानी पद्मावती' रूपक भी लिखा। समाजसुधार पर भी इन्होंने कई लेख लिखे। यह अत्यन्त कृष्णभक्त थे। 'धर्मालाप' रचना में अनेक धर्मों का वार्तालाप कराकर हरिभक्ति को ही अंत में प्रधानता दी है। इन्होंने तीर्थयात्रा कर अनेक कृष्णलीला-भूमियों का दर्शन किया और उनका जो विवरण लिया है वह बड़ा हृदयग्राही है। काशी नागरीप्रचारिणी सभा, हरिश्चन्द्र विद्यालय आदि अनेक सभा संथाओं के उन्नयन में इन्होंने सहयोग दिया। सरस्वती पत्रिका का प्रकाशनारम्भ इन्हीं के सम्पादकत्व में हुआ और अदालतों में नागरी के प्रचार के लिए भी इन्होंने प्रयत्न किया। सभा के हिन्दी पुस्तकों के खोज विभाग के कार्य का शुभारम्भ इन्हीं के द्वारा हुआ। स्वास्थ्य ठीक न रहने से रोगाक्रान्त होकर यह बहत्तर वर्ष की अवस्था में १ अप्रैल, सन् १९०७ ई. को गोलोक सिधारे। इनकी अन्य रचनाएँ नागरीदास का जीवन चरित, हिंदी भाषा के पत्रों का सामयिक इतिहास, राजस्थान केसरी वा महाराणा प्रताप सिंह नाटक, भारतेन्दु जी की जीवनी, रहिमन विलास आदि हैं। 'दुःखिनी बाला', 'पद्मावती' तथा 'महाराणा प्रताप' नामक उनके नाटक बहुत प्रसिद्ध हुए। १८८९ में लिखित उपन्यास 'निस्सहाय हिन्दू' में हिन्दुओं की निस्सहायता और मुसलमानों की धार्मिक कट्टरता का चित्रण है। भारतेन्दु विरचित अपूर्ण हिन्दी नाटक 'सती प्रताप' को इन्होने इस योग्यता से पूर्ण किया है कि पाठकों को दोनों की शैलियों में कोई अन्तर ही नहीं प्रतीत होता। .

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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रामचन्द्र शुक्ल

आचार्य रामचंद्र शुक्ल (४ अक्टूबर, १८८४- २ फरवरी, १९४१) हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक है हिन्दी साहित्य का इतिहास, जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है। हिंदी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्वपूर्ण योगदान है। भाव, मनोविकार संबंधित मनोविश्लेषणात्मक निबंध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं। शुक्ल जी ने इतिहास लेखन में रचनाकार के जीवन और पाठ को समान महत्व दिया। उन्होंने प्रासंगिकता के दृष्टिकोण से साहित्यिक प्रत्ययों एवं रस आदि की पुनर्व्याख्या की। .

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रामदरश मिश्र

डॉ॰ रामदरश मिश्र (जन्म: १५ अगस्त, १९२४) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। ये जितने समर्थ कवि हैं उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी। इनकी लंबी साहित्य-यात्रा समय के कई मोड़ों से गुजरी है और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई है। ये किसी वाद के कृत्रिम दबाव में नहीं आये बल्कि उन्होंने अपनी वस्तु और शिल्प दोनों को सहज ही परिवर्तित होने दिया। अपने परिवेशगत अनुभवों एवं सोच को सृजन में उतारते हुए, उन्होंने गाँव की मिट्टी, सादगी और मूल्यधर्मिता अपनी रचनाओं में व्याप्त होने दिया जो उनके व्यक्तित्व की पहचान भी है। गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता यानी कि कविता की कई शैलियों में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ गजल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है। .

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रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962) हिन्दी भाषा के 'पूर्व छायावाद युग' के कवि थे। कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना। वह गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यंत प्रभावित थे। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम 'लरिकाई को प्रेम' है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। 'बा और बापू' उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है। ‘स्वप्न’ पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। .

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रामवृक्ष बेनीपुरी

रामवृक्ष बेनीपुरी (२३ दिसंबर, 1900 - ९ सितंबर, १९६८) भारत के एक महान विचारक, चिन्तक, मनन करने वाले क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक थे।वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। .

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राजन गवस

राजन गवस मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास तणकट के लिये उन्हें सन् 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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राजनगर

राजनगर बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार अमियभूषण मजूमदार द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1986 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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राजम कृष्णन्

राजम कृष्णन् तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास वेरुक्कु नीर के लिये उन्हें सन् 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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राजिंदर सिंह बेदी

राजिंदर सिंह बेदी एक हिन्दी और उर्दू उपन्यासकार, निर्देशक, पटकथा लेखक, नाटककार थे। इनका जन्म 1 सितम्बर 1915 को सियालकोट, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था। यह पहले अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के उर्दू लेखक थे। जो बाद में हिन्दी फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, संवाद लेखक बन गए। यह पटकथा और संवाद में ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म अभिमान, अनुपमा और सत्यकाम; और बिमल रॉय की मधुमती के कारण जाने जाते हैं। यह निर्देशक के रूप में दस्तक (1970) की फ़िल्म जिसमें संजीव कुमार और रेहना सुल्तान थे, के कारण जानते जाते हैं। .

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राघववेळ

राघववेळ मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार नामदेव कांबळे द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1995 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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राघवेन्द्र पाटील

राघवेन्द्र पाटील कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास तेरु के लिये उन्हें सन् 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रागदरबारी

रागदरबारी विख्यात हिन्दी साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की प्रसिद्ध व्यंग्य रचना है जिसके लिये उन्हें सन् 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह ऐसा उपन्यास है जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से अन्त तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है। ‘राग दरबारी’ का लेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ और अपने अन्तिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ। 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर श्रीलाल शुक्ल को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई। राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसमें श्रीलाल शुक्ल जी ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत-दर-परत उघाड़ कर रख दिया है। राग दरबारी की कथा भूमि एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे गाँव शिवपालगंज की है जहाँ की जिन्दगी प्रगति और विकास के समस्त नारों के बावजूद, निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के आघातों के सामने घिसट रही है। शिवपालगंज की पंचायत, कॉलेज की प्रबन्ध समिति और कोआपरेटिव सोसाइटी के सूत्रधार वैद्यजी साक्षात वह राजनीतिक संस्कृति हैं जो प्रजातन्त्र और लोकहित के नाम पर हमारे चारों ओर फल फूल रही हैं। .

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रांगेय राघव

रांगेय राघव (१७ जनवरी, १९२३ - १२ सितंबर, १९६२) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभावाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए।आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी। .

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रिच लाइक अस

रिच लाइक अस अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार नयनतारा सहगल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1986 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रजनी पनिक्कर

रजनी पनिक्कर (११ सितंबर १९२४- १८ नवम्बर १९७४) का जन्म लाहौर में हुआ था। वहीं से उन्होंने अंग्रेजी और हिंदी में एम० ए० किया। बचपन से ही उनकी रूचि लेखने में थी। उन्होंने बंबई में प्रकाशित होने वाली कहानी की एक पत्रिका का संपादन किया। भारत विभाजन के बाद वे पंजाब सरकार के सूचना विभाग के पाक्षिक हिंदी पत्र 'प्रदीप' की संपादिका बनीं और आकाशवाणी के लखनऊ, कलकत्ता, दिल्ली, जयपुर आदि विभिन्न केंद्रों पर अनेक वर्ष तक अधिकारी के रूप में रहीं। उन्होंने दिल्ली स्थित महत्त्वपूर्ण सस्था लेखिका संघ की स्थापना की तथा उसकी प्रथम अध्यक्षा भी रहीं। विवाह पूर्व उनका नाम रजनी नैयर था। फौजी अफसर ट्रावनकोर के श्रीधर पनिक्कर से विवाह हो जाने के बाद वे नैयर से रजनी पनिक्कर बन गईं। वे अपने निर्भीक और ओजपूर्ण लेखन के कारण जानी जाती हैं। उन्होंने उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। उन्होंने लगभग एक दर्जन उपन्यासों की रचना की है, जो हिंदी संसार में बहुचर्चित रहे। (१९४९) में 'ठोकर' नाम से अपना पहला उपन्यास रजनी नैयर नाम से ही लिखा था। इसमें शिक्षित मध्यमवर्गीय परिवार की स्वछंदता का सफल चित्रण देखा जा सकता है। उनके उपन्यास 'पानी की दीवार' (१९५४) की कथा प्रेम के स्वस्थ और शालीन दृष्टिकोण को उभारती है। यह उपन्यास मनोवैज्ञानिक पर आधारित है। 'मोम के मोती' (१९५४) में रजनी पनिक्कर ने पुरूषों की उद्दंड कामुकता और इससे उत्पन्न सामाजिक वातावरण में नौकरीपेशा नारी की समस्याओं को उजागर किया है। 'प्यासे बादल' (१९५५) में उन्होंने सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार का महत्व प्रदर्शित किया है और बताया है कि इससे समाज का कोढ़ समझा जानेवाला आदमी भी सुधर सकता है। 'जाड़े की धूप' (१९५८) नौकरीपेशा नारी और उसके बदलते प्रेम संबंधों की कहानी है जिसमें दांपत्य से विचलन और निस्सरता की बात की गई है। 'काली लड़की' (१९५८) साँवली सूरत वाली लड़की की सामाजिक कठिनाइयों की कहानी है। 'महानगर की मीता' (१९५६) में मीता अपनी शर्त पर जीवन जीने की चाह रखती है और जीकर दिखाती है। इसके अतिरिक्त रजनी पनिक्कर के 'एक लड़कीः दो रूप', 'दूरियाँ', 'अपने-अपने दायरे', 'सिगरेट के टुकड़े' (१९५६), 'सोनाली दी', 'प्रेम चुनरिया बहुरंगी' आदि उपन्यास भी महत्वपूर्ण हैं। उनकी कई रचनाएं उत्तरप्रदेश सरकार, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत हुई हैं। पचास वर्ष की छोटी सी जीवन अवधि में ही उन्होंने हिंदी कथा लेखन में अपने अनुभवों को जो विस्तार दिया वह हिन्दी साहित्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। श्रेणी:हिन्दी उपन्यासकार श्रेणी:हिन्दी कथाकार श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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रघुवीर चौधरी

रघुवीर चौधरी रघुवीर चौधरी (पटेल) गुजराती के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि एवं आलोचक हैं। वे अनेक समाचारपत्रों में स्तम्भलेखक भी रहे हैं। उन्होने गुजरात विश्वविद्यालय में अध्यापन किया और वहाँ से १९९८ में सेवानिवृत्त हुए। गुजराती के अलावा उन्होने हिन्दी में भी लेखन कार्य किया है। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास उपरवास कथात्रयी के लिये उन्हें सन् १९७७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (गुजराती) से सम्मानित किया गया। .

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रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ

रबीन्द्रनाथ ठाकुर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सृष्टिकर्म काव्य, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, प्रबन्ध, चित्रकला और संगीत आदि अनेकानेक क्षेत्रों फैला हुआ है। .

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रंगनाथ पठारे

रंगनाथ पठारे मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ताम्रपट के लिये उन्हें सन् 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रक्षक राम

यह उपन्यास रामायण को एक नए अवतार में पेश करती है। जहाँ श्री राम एक साधारण मनुष्य की तरह संघर्ष करते हुए एक महान इंसान बनते है.

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रुडयार्ड किपलिंग

रुडयार्ड किपलिंग (30 दिसम्बर 1865 - 18 जनवरी 1936) एक ब्रिटिश लेखक और कवि थे। ब्रिटिश भारत में बंबई में जन्मे, किपलिंग को मुख्य रूप से उनकी पुस्तक द जंगल बुक(1894) (कहानियों का संग्रह जिसमें रिक्की-टिक्की-टावी भी शामिल है), किम 1901 (साहस की कहानी), द मैन हु वुड बी किंग (1888) और उनकी कविताएं जिसमें मंडालय (1890), गंगा दीन (1890) और इफ- (1910) शामिल हैं, के लिए जाने जाते हैं। उन्हें "लघु कहानी की कला में एक प्रमुख अन्वेषक" माना जाता हैरूदरफोर्ड, एंड्रयू (1987).

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रेहन पर रग्घू

रेहन पर रग्घू हिन्दी के विख्यात साहित्यकार काशीनाथ सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रेगिस्तान (उपन्यास)

रेगिस्तान कमलेश्वर का एक उपन्यास है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:कमलेश्वर श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:गद्य.

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रॉबर्ट पैटिनसन

रॉबर्ट पैटिनसन (जन्म - 13 मई 1986), एक अंग्रेज अभिनेता, मॉडल और संगीतकार हैं। उन्हें स्टेफनी मेयर के उपन्यास ट्वाइलाईट के फ़िल्मी रूपांतरण में एडवर्ड कलन की भूमिका और फिल्म हैरी पॉटर एंड द गौब्लेट ऑफ फायर में सेड्रिक डिगरी की भूमिका के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। .

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रोबिंसन क्रूसो

रोबिंसन क्रुसो, डैनियल डेफॉ द्वारा रचित एक उपन्यास है। यह पहली बार 1719 में प्रकाशित हुआ था और कभी कभी इसे अंग्रेजी का पहला उपन्यास माना जाता है। यह पुस्तक रोबिंसन क्रुसो नामक एक अंग्रेज चरित्र, की काल्पनिक आत्मकथा है, जो वेनेजुएला के निकट एक दूरदराज के उष्णकटिबंधीय द्वीप पर 28 साल तक फंसा रहा.

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रोमुलो गालेगास

रोमुलो गालेगास रोमुलो गालेगास (Rómulo Ángel del Monte Carmelo Gallegos Freire; 2 अगस्त 1884 – 7 अप्रैल 1969) वेनेजुएला के उपन्यासकार एवं राजनेता थे। १९४८ में ९ माह की अल्पावधि के लिये वे वेनेजुएला के प्रथम राष्ट्रपति थे जिसे बिना भ्रष्टाचार के चुना गया था। .

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ललितांबिका अंतर्जनम्

ललितांबिका अंतर्जनम् मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अग्निसाक्षी के लिये उन्हें सन् 1977 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लहू के फूल

लहू के फूल उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार हयातुल्लाह अंसारी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1970 में उर्दू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लारेंस स्टर्न

लारेंस स्टर्न लारेंस स्टर्न (Laurence Sterne; १७१३-१७६८) अंग्रेजी-आयरी उपन्यासकार था। .

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लाल पुष्प

लाल पुष्प सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास हुनजे आतम जो मौत के लिये उन्हें सन् 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लाला श्रीनिवास दास

लाला श्रीनिवास दास (1850-1907) को हिंदी का पहला उपन्यास लिखने का गौरव प्राप्त है। इस उपन्यास का नाम परीक्षा गुरू (हिन्दी का प्रथम उपन्यास) है जो 25 नवम्बर 1882 को प्रकाशित हुआ। लाला श्रीनिवास दास भारतेंदु युग के प्रसिद्ध नाटकार भी थे। नाटक लेखन में वे भारतेंदु के समकक्ष माने जाते हैं। वे मथुरा के निवासी थे और हिंदी, उर्दू, संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता थे। उनके नाटकों में शामिल हैं, प्रह्लाद चरित्र, तप्ता संवरण, रणधीर और प्रेम मोहिनी और संयोगिता स्वयंवर। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.

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लिली रे

लिली रे मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मरीचिका के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लज्जा (पुस्तक)

लज्जा तसलीमा नसरीन द्वारा रचित एक बंगला उपन्यास है। यह उपन्यास पहली बार १९९३ में प्रकाशित हुआ था और कट्टरपन्थी मुसलमानों के विरोध के कारण बांगलादेश में लगभग छः महीने के बाद ही इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस अवधि में इसकी लगभग पचास हजार प्रतियाँ बिक गयीं। .

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लक्ष्मीनंदन बोरा

लक्ष्मीनंदन बोरा (जन्म १ मार्च १९३२) असमिया भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। भारत के असम राज्य में स्थित नौगाँव जिले के कुजिदह गाँव में जन्में लक्ष्मीनंदन बोरा जोरहाट के असम कृषि विश्वविद्यालय में कृषि एवं मौसम विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। उनकी कृति पाताल भैरवी को १९८८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। उन्हें बिरला फाउंडेशन द्वारा २००८ के सरस्वती सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें २००२ में प्रकाशित उपन्यास कायाकल्प के लिए दिया गया। वे अब तक ५६ पुस्तकें लिख चुके हैं, जिसमें उपन्यास, कहानी संग्रह, एकांकी, यात्रा वृत्तांत और जीवनी शामिल है। सरस्वती सम्मान से अलंकृत होने वाले वे पहले असमिया साहित्यकार हैं। .

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लौटे हुए मुसाफ़िर

लौटे हुए मुसाफ़िर कमलेश्वर का एक उपन्यास है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:कमलेश्वर श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:गद्य.

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लौक्ङला

लौक्ङला मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार मोइरांथेम बरकन्या द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लेव तोलस्तोय

लेव तोलस्तोय (रूसी:Лев Никола́евич Толсто́й, 9 सितम्बर 1828 - 20 नवंबर 1910) उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है। धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तोलस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवम्बर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। .

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लीलावती (बहुविकल्पी)

'लीलावती' से निम्नलिखित का बोध होता है.

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शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय

शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय (१५ सितंबर, १८७६ - १६ जनवरी, १९३८) बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंट्रेंस पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने "बासा" (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। शरतचन्द्र ललित कला के छात्र थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह इस विषय की पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार के तलाश में शरतचन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। कुछ समय बर्मा रहकर कलकत्ता लौटने के बाद उन्होंने गंभीरता के साथ लेखन शुरू कर दिया। बर्मा से लौटने के बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ जो था तो बड़ा विद्वान पर शराबी और उछृंखल था। यहीं से चरित्रहीन का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है। जब वह एक बार बर्मा से कलकत्ता आए तो अपनी कुछ रचनाएँ कलकत्ते में एक मित्र के पास छोड़ गए। शरत को बिना बताए उनमें से एक रचना "बड़ी दीदी" का १९०७ में धारावाहिक प्रकाशन शुरु हो गया। दो एक किश्त निकलते ही लोगों में सनसनी फैल गई और वे कहने लगे कि शायद रवींद्रनाथ नाम बदलकर लिख रहे हैं। शरत को इसकी खबर साढ़े पाँच साल बाद मिली। कुछ भी हो ख्याति तो हो ही गई, फिर भी "चरित्रहीन" के छपने में बड़ी दिक्कत हुई। भारतवर्ष के संपादक कविवर द्विजेंद्रलाल राय ने इसे यह कहकर छापने से मना कर दिया किया कि यह सदाचार के विरुद्ध है। विष्णु प्रभाकर द्वारा आवारा मसीहा शीर्षक रचित से उनका प्रामाणिक जीवन परिचय बहुत प्रसिद्ध है। .

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शशांक

६२५ ई में भारतीय उपमहाद्वीप शशांक, बंगाल का हिंदू राजा था जिसने सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में बंगाल पर शासन किया। वह बंगाल का पहला महान् राजा था। उसने गौड़ राज्य की स्थापना की। मालवा के राजा देवगुप्त से दुरभिसंधि करके हर्षवर्धन की वहन राज्यश्री के पति कन्नौज के मौखरी राजा ग्रहवर्मन को मारा। तदनंतर राज्यवर्धन को धोखे से मारकर अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयत्न किया। पर जब राज्यवर्धन के कनिष्ठ भ्राता ने उसका पीछा किया तो वह बंगाल भाग गया। अंतिम गुप्त सम्राटों की दुर्बलता के कारण जो स्वतंत्र राज्य हुए उनमें गौड़ या उत्तरी बंगाल भी था। जब महासेन गुप्त सम्राट् हुआ तो उसकी दुर्बलता से लाभ उठाकर शशांक ने गौड़ में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। उस समय शशांक महासेन गुप्त का सेनापिति था। उसने कर्णसुवर्ण को अनी राजधानी बनाई। आजकल कर्णसुवर्ण के अवशेष मुर्शिदाबाद जिले के गंगाभाटी नामक स्थान में पाए गए हैं। शशांक के जीवन के विषय में निश्चित रूप से इतना ही कहा जा सकता है कि वह महासेन गुप्त का सेनापति नरेंद्रगुप्त था- महासामंत और शशांक उसकी उपाधियाँ हैं। उसने समस्त बंगाल और बिहार को जीत लिया तथा समस्त उत्तरी भारत पर विजय करने की योजना बनाई। शशांक हिन्दू धर्म को मानता था और बौद्ध धर्म का कट्टर शत्रु था। इसकी प्रतिक्रिया यह हुई कि शशांक के बाद बंगाल और बिहार में पाल वंशीय राजाओं ने प्रजा की सम्मति से नया राज्य स्थापित किया और बौद्ध धर्म को एक बार फिर आश्रय मिला। 'शशांक' पर प्रसिद्ध इतिहावेत्ता राखालदास बंद्योपाध्याय ने एक बड़ा ऐतिहासिक उपन्यास लिखा है। .

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शशि देशपांडे

शशि देशपांडे (जन्म 1938 धारवाड़, कर्नाटक, भारत में), एक पुरस्कार विजेता भारतीय उपन्यासकार है। वह मशहूर कन्नड़ नाटककार और लेखक सरीरंगा की दूसरी बेटी है। वह कर्नाटक में पैदा हुई थी और बॉम्बे (अब मुंबई) और बंगलौर में शिक्षित थीं। देशपांडे की अर्थशास्त्र और कानून में डिग्री है। मुंबई में, उन्होंने भारतीय विद्या भवन में पत्रकारिता का अध्ययन किया और पत्रिका 'ऑनलुक्र' के एक पत्रकार के रूप में कुछ महीने काम किया। उस ने 1978 में लघु कथाओं का पहला संग्रह प्रकाशित किया, और 1980 में उस का पहला उपन्यास "द डार्क होल्ड्स नो टेरर" प्रकाशित किया। उस ने 1990 में दैट लोंग सिलेन्स के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2009 में पद्म श्री पुरस्कार जीता।.

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शान्तनुकुलनन्दन

शान्तनुकुलनन्दन असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार पुरवी बरमुदै द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शान्तिनाथ कुबेरप्पा देसाई

शान्तिनाथ कुबेरप्पा देसाई कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ओम् णमो के लिये उन्हें सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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शाहजादा दाराशुकोह

शाहजादा दाराशुकोह बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार श्यामल गंगोपाध्याय द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शांताराम (उपन्यास)

शांताराम, ग्रेगोरी डेविड रॉबर्टस द्वारा लिखा गया उपन्यास है। इसका प्रकाशन 2003 में हुआ। यह उपन्यास लेखक के अपने जीवन से प्रेरित एक किरदार के बारे में है, जो आस्ट्रेलिया का एक अपराधी और नशीले पदार्थो का आदी है। ऑस्ट्रेलिया के जेल से भागकर वह न्यूजीलैंड के रास्ते नकली पासपोर्ट के साथ 1980 के दशक में वह बंबई (भारत) पहुँचता है, जहाँ वह लगभग 10 साल तक रहता है। .

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शांति भारद्वाज राकेश

शांति भारद्वाज राकेश राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास उड जा रे सुआ के लिये उन्हें सन् 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शांब

शांब बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार समरेश बसु ‘कालकूट’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शिल नेरंगळिल शिल मणितर्कळ

शिल नेरंगळिल शिल मणितर्कळ तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार डी. जयकांतन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शिल्प (साहित्य)

'शिल्प' का शाब्दिक अर्थ है निर्माण अथवा गढ़न के तत्व। किसी साहित्यिक कृति के संदर्भ में 'शिल्प' की दृष्टि से मूल्यांकन का बड़ा महत्व है। शिल्प के अंतर्गत निम्न छः बिन्दुओं की चर्चा की जाती है: .

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शिवदेव सिंह सुशील

शिवदेव सिंह सुशील डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बखरे–बखरे सच्च के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शिवपूजन सहाय

शिवपूजन सहाय (जन्म- 9 अगस्त 1893, शाहाबाद, बिहार; मृत्यु- 21 जनवरी 1963, पटना)| प्रारम्भिक शिक्षा आरा (बिहार) में | फिर १९२१ से कलकत्ता में पत्रकारिता |1924 में लखनऊ में प्रेमचंद के साथ 'माधुरी' का सम्पादन| 1926 से 1933 तक काशी में प्रवास और पत्रकारिता तथा लेखन | 1934 से 1939 तक पुस्तक भंडार, लहेरिया सराय में सम्पादन-कार्य | 1939 से 1949 तक राजेंद्र कॉलेज, छपरा में हिंदी के प्राध्यापक | 1950 से 1959 तक पटना में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् के निदेशक | तत्पश्चात पटना में | हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में ख्याति । उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय द्वारा दी.

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शिवराम महादेव परांजपे

शिवराम महादेव परांजपे (1864-1929 ई.) मराठी के प्रतिभाशाली साहित्यकार, वक्ता, पत्रकार और ध्येयनिष्ठ राजनीतिज्ञ थे। उन्होने 'काल' नामक साप्ताहिक द्वारा महाराष्ट्र में ब्रितानी शासन के विरुद्ध जनचेतना के निर्माण में सफलता पायी। .

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शिवानी

शिवानी हिन्दी की एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। इनका वास्तविक नाम गौरा पन्त था किन्तु ये शिवानी नाम से लेखन करती थीं। इनका जन्म १७ अक्टूबर १९२३ को विजयदशमी के दिन राजकोट, गुजरात मे हुआ था। इनकी शिक्षा शन्तिनिकेतन में हुई! साठ और सत्तर के दशक में, इनकी लिखी कहानियां और उपन्यास हिन्दी पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुए और आज भी लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं। शिवानी का निधन 2003 ई० मे हुआ। उनकी लिखी कृतियों मे कृष्णकली, भैरवी,आमादेर शन्तिनिकेतन,विषकन्या चौदह फेरे आदि प्रमुख हैं। हिंदी साहित्य जगत में शिवानी एक ऐसी श्ख्सियत रहीं जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड रही और जो अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर 21 मार्च 2003 को उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बडे दिलचस्प अंदाज में किया कहानी के क्षेत्र में पाठकों और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी को जाता है।वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उसे पढने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था। उनकी कृतियों से यह झलकता है कि उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की।शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है। वह चरित्र को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोकर पेश करती थीं जैसे पाठकों की आंखों के सामने राजारवि वर्मा का कोई खूबसूरत चित्र तैर जाए। उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी का इस्तेमाल किया। जब शिवानी का उपन्यास कृष्णकली में प्रकाशित हो रहा था तो हर जगह इसकी चर्चा होती थी। मैंने उनके जैसी भाषा शैली और किसी की लेखनी में नहीं देखी। उनके उपन्यास ऐसे हैं जिन्हें पढकर यह एहसास होता था कि वे खत्म ही न हों। उपन्यास का कोई भी अंश उसकी कहानी में पूरी तरह डुबो देता था। भारतवर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास का बहुत प्यारा पन्ना थीं। अपने समकालीन साहित्यकारों की तुलना में वह काफी सहज और सादगी से भरी थीं। उनका साहित्य के क्षेत्र में योगदान बडा है परिचय जन्म: 17 अक्टूबर 1923, राजकोट (गुजरात) भाषा: हिंदी विधाएँ: उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, आत्मकथा मुख्य कृतियाँ उपन्यास: कृष्णकली, कालिंदी, अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरों घर आपने, श्मशान चंपा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप, आकाश कहानी संग्रह: शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ, शिवानी की मशहूर कहानियाँ, झरोखा, मृण्माला की हँसी संस्मरण: अमादेर शांति निकेतन, समृति कलश, वातायन, जालक यात्रा वृतांत: चरैवैति, यात्रिक आत्मकथा: सुनहुँ तात यह अमर कहानी .

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शंकर मोकाशी पुणेकर

शंकर मोकाशी पुणेकर कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अवधेश्वरी के लिये उन्हें सन् 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शंकर शेष

शंकर शेष (1933-1981) हिन्दी की साठोत्तरी पीढ़ी के सुप्रसिद्ध नाटककार थे। समकालीन जीवन की ज्वलंत समस्याओं से जूझते व्यक्ति की त्रासदी शंकर शेष के बहुसंख्यक नाटकों के केंद्र में रहती है। वे मोहन राकेश के बाद की पीढ़ी के महत्वपूर्ण नाटककार के रूप में मान्य हैं। फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित डॉ० शेष ने फिल्मों के लिए कहानियाँ भी लिखी हैं। .

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श्याम मनोहर

श्याम मनोहर मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास उत्सुकतेने मी झोपलो के लिये उन्हें सन् 2008 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्यामल गंगोपाध्याय

श्यामल गंगोपाध्याय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शाहजादा दाराशुकोह के लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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श्रीधर व्यंकटेश केतकर

डॉ॰ श्रीधर व्यंकटेश केतकर (०२ फ़रवरी १८८४ - १० अप्रैल १९३७) मराठी भाषा के प्रथम ज्ञानकोश (महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश) के सुविख्यात जनक-संपादक, समाजशास्त्रज्ञ, कादंबरीकार, इतिहास-संशोधक व विचारक थे। मराठी ज्ञानकोश के महनीय कार्य के कारण उन्हें 'ज्ञानकोशकार केतकर' नाम से जाना जाता है। .

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श्रीनिवास बी. वैद्य

श्रीनिवास बी.

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श्रीवत्स विकल

श्रीवत्स विकल डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास फुल्ल बिना डाली के लिये उन्हें सन् 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित(मरणोपरांत) किया गया। .

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शृंगारिक साहित्य

शृंगारिक साहित्य (Erotic literature) वह है जो पाठक में कामोत्तेजना पैदा करे या पैदा करने के निमित्त लिखी गयी हो। ऐसा साहित्य उपन्यास, लघुकथा, काव्य, सत्यकथा, या 'सेक्स-मैनुअल' के रूप में हो सकते हैं। इसमें कल्पना का सहारा लिया जा सकता है या वास्तविक घटनाओ का। काफी पुरुष एवं महिलाएं इसका प्रयोग हस्त-मैथुन के लिए उत्तेजना बढ़ने हेतु भी करते हैं। .

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शैडो फ्रॉम लद्दाख़

शैडो फ्रॉम लद्दाख़ अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार भवानी भट्टाचार्य द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1967 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शैलेश मटियानी

शैलेश मटियानी (१४ अक्टूबर १९३१ - २४ अप्रैल २००१) आधुनिक हिन्दी साहित्य-जगत् में नयी कहानी आन्दोलन के दौर के कहानीकार एवं प्रसिद्ध गद्यकार थे। उन्होंने 'बोरीवली से बोरीबन्दर' तथा 'मुठभेड़', जैसे उपन्यास, चील, अर्धांगिनी जैसी कहानियों के साथ ही अनेक निबंध तथा प्रेरणादायक संस्मरण भी लिखे हैं। उनके हिन्दी साहित्य के प्रति प्रेरणादायक समर्पण व उत्कृष्ट रचनाओं के फलस्वरूप आज भी उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उत्तराखण्ड राज्य में पुरस्कार का वितरण होता है। .

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शेम (उपन्यास)

शेम (Shame) अंग्रेजी साहित्यकार सलमान रश्दी द्वारा मिडनाइट्स चिल्ड्रेन के बाद लिखा गया तीसरा उपन्यास है। १९८३ में प्रकाशित यह उपन्यास उनकी अधिकांश रचनाओं की तरह ही जादुई यथार्थवाद की शैली में लिखा गया है। का प्रयोग किया गया है। इस में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो (इस्कंदर हड़प्पा) और जनरल मुहम्मद ज़िया-उल-हक़ (जनरल रज़ा हैदर) के जीवन और उनके संबंधों का चित्रण किया गया है। उपन्यास की केंद्रीय विषयवस्तु बताती है कि शरम से ही हिंसा पैदा हुई है। सभी चरित्रों के जरिए शर्म और बेशर्मी की सोच की पड़ताल मिलती है किंतु दृष्टि के केंद्र में सूफिया ज़िनोबिया और ऊमर खैय्याम हैं। इसका हिंदी अनुवाद ललित कार्तिकेय ने शरम नाम से किया है। .

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शेरलॉक होम्स

शेरलॉक होम्स उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध का एक काल्पनिक चरित्र है, जो पहली बार 1887 में प्रकाशन में उभरा। वह ब्रिटिश लेखक और चिकित्सक सर आर्थर कॉनन डॉयल की उपज है। लंदन का एक प्रतिभावान 'परामर्शदाता जासूस ", होम्स अपनी बौद्धिक कुशलता के लिए मशहूर है और मुश्किल मामलों को सुलझाने के लिए अपने चतुर अवलोकन, अनुमिति तर्क और निष्कर्ष के कुशल उपयोग के लिए प्रसिद्ध है। कोनन डॉयल ने चार उपन्यास और छप्पन लघु कथाएं लिखी हैं जिसमें होम्स को चित्रित किया गया है। पहली दो कथाएं (लघु उपन्यास) क्रमशः 1887 में बीटन्स क्रिसमस ऐनुअल में और 1890 में लिपिनकॉट्स मंथली मैग्जीन में आईं.

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शेष नमस्कार

शेष नमस्कार बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार संतोष कुमार घोष द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शीन ते वतपोद

शीन ते वतपोद कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार प्राण किशोर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1989 में कश्मीरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय

शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मानव जमीन के लिये उन्हें सन् 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सच्चिदानंद राउतराय

सच्चिदानंद राउतराय एक उड़िया साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह कविता–1962 के लिये उन्हें सन् १९६३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (ओड़िया) से सम्मानित किया गया। इन्हें १९८६ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। स्वाधीनता-संग्राम सहित अनेक आन्दोलनों में भाग लेने के कारण कई बार जेल-यात्रा। स्नातक करने के उपरान्त बीस वर्ष कोलकाता में नौकरी और फिर कटक-वास। .

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सत्तांतर

सत्तांतर मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार व्यंकटेश माडगूळकर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1983 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सदानंद नामदेवराव देशमुख

सदानंद नामदेवराव देशमुख मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बारोमास के लिये उन्हें सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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समरेश बसु कालकूट

समरेश बसु कालकूट बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शांब के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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समरेश मजूमदार

समरेश मजूमदार बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कालबेला के लिये उन्हें सन् 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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समुदाय वीधि

समुदाय वीधि तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार ना. पार्थसारथी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1971 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सरस्वती सम्मान

Saraswathi samman 1.jpg सरस्वती सम्मान के.

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सरस्वतीचन्द्र (उपन्यास)

सरस्वतीचन्द्र गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध गुजराती उपन्यास है। जो 19 वीं सदी की पृष्ठभूमि में लिखा गया है। ये उपन्यास गुजरात में अत्यंत लोकप्रिय है। ये उपन्यास 15 साल की अवधि में लिखा गया था और १९८७ से १९०२ तक चार भाग में प्रसिद्ध हुआ था। 1968 में जारी हिंदी फिल्म सरस्वतीचंद्र ये उपन्यास पर आधारित थी। उपन्यास की कहानी दो गुजराती ब्राह्मण परिवारों पर आधारित है। लक्ष्मीनंदन का परिवार बंबई में बसा है, उनका भरा पूरा व्यापार है और वे बहुत अमीर है। सरस्वतीचंद्र लक्ष्मीनंदन और चंद्रलक्ष्मी के पुत्र हैं। वह अत्यंत विद्वान हैं जो योग्यता से एक बैरिस्टर है और संस्कृत और अंग्रेज़ी साहित्य के ज्ञाता हैं। वे अपने पिता के व्यवसाय में सफलतापूर्वक योगदान दे रहे हैं। उनका भविष्य उज्ज्वल है। दूसरा परिवार, विद्याचतुर का है, जो रत्नानगरी के (काल्पनिक) साम्राज्य के राजा मणिराज की अदालत के विद्वान प्रधान मंत्री हैं। उन्हें और उनकी गुणवती पत्नी गुणसुंदरी की दो बेटियां हैं, कुमुदसंदरी (बड़ी) और कुसुमसुंदरी। सरस्वतीचंद्र की मां का देहावसान होता है, और लक्ष्मीनंदन दुबारा विवाह करते हैं। सौतेली माँ गुमान अत्यंत धूर्त महिला है और वह अपने सौतेले पुत्र को नापसंद करती हैं तथा संदेह की दृष्टि से देखती हैं। इस बीच, सरस्वतीचंद्र और कुमुदुसुरी शादी की तैयारियां चल रही हैं, जिसके कारण वे एक-दूसरे को देखे बिना ही पत्र व्यवहार करते हैं तथा उनमें प्रेम पनप उठता है। सरस्वती चन्द्र कुमुद सुंदरी के ज्ञान और गुणों की ओर आकर्षित हो जाते हैं। इन्हीं घटनाओं के मध्य सरस्वतीचंद्र के घर का वातावरण बिगड़ता हैं, जब उसे पता लगता है कि उनके पिता को भी उस पर संदेह है कि वह उनकी संपत्ति पर कुदृष्टि रखता है और वह अपने घर छोड़ने का फैसला करता है। उनका सबसे अच्छा मित्र, चंद्रकांत, उसे रोकने की पूरी कोशिश करता है, लेकिन सरस्वतीचंद्र उसकी बात नहीं मानता और अपना घर छोड़ देता है। इस प्रकार वह न केवल घर और धन का त्याग करता है, बल्कि कुमुद को भी छोड़ देता है। वह समुद्र के रास्ते से (काल्पनिक) सुवर्णपुर के लिए निकल पड़ता है जब तक वह वहां पहुंचता है, तब तक कुमुद पहले से ही बुद्धिधन के उन्मत्त पुत्र प्रमदधन से ब्याही जा चुकी हैं, और बुद्धिधन सुवर्णपुर के प्रधान मंत्री बनने की तैयारी में है। .

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सरोजिनी साहू

सरोजिनी साहू (ओड़िया: ସରୋଜିନୀ ସାହୁ) ओड़िया भाषा की एक प्रमुख साहित्यकार हैं। वे स्त्री विमर्श से जुड़ी कृतियों के लिए विशेष रूप से चर्चित रही हैं। सरोजिनी चेन्नई स्थित अंग्रेजी पत्रिका इंडियन एज ('Indian AGE) की सहयोगी संपादक हैं। कोलकाता की अंग्रेजी पत्रिका “किंडल” ने उन्हे भारत की 25 असाधारण महिलाओं में शुमार किया है। .

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सा. कंदासामी

सा.

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सात पगलां आकाशमां

सात पगलां आकाशमां गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार कुंदनिका कापडीआ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1985 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सातकड़ी होता

सातकड़ी होता ओड़िया के सामाजिक चेतना के वरिष्ठ कथाकार हैं। १६ उपन्यास, १६ कहानी संग्रह और एक कविता संग्रह प्रकाशित। उड़ीसा साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत, आर्य रोदन फिल्म के श्रेष्ठ कथा-लेखन के लिए क्षेत्रीय पुरस्कार। श्री होता अनेक साहित्यिक सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी संस्थाओं के पदाधिकारी अथवा सदस्य रहे हैं। वे साहित्य अकादेमी दिल्ली के ओड़िया परामर्श मंडल के सदस्य रहे हैं। सम्प्रति दक्षिण पूर्व रेलवे के जनरल मैनेजर के पद से सेवा निवृत होने के बाद प्रसिद्ध ओड़िया दैनिक समय के संपादक हैं। .

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सादा खाम

सादा खाम बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार मति नंदी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1991 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सानमोखांआरि लामाजों

सानमोखांआरि लामाजों बोडो भाषा के विख्यात साहित्यकार कातिन्द्र सोरगियारि द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2006 में बोडो भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सारा जोसेफ़

सारा जोसेफ़ मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आल्हायुडे पेन्नमाक्कल के लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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साहित्य

किसी भाषा के वाचिक और लिखित (शास्त्रसमूह) को साहित्य कह सकते हैं। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है। .

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सांझी धरती बखले मानु

सांझी धरती बखले मानु डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार नरसिंह देव जम्वाल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सांम्ही खुलतौ मारग

सांम्ही खुलतौ मारग राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार नंद भारद्वाज द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2004 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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साक्रेटीज़

साक्रेटीज़ गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार मनुभाई पंचोली दर्शक़ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1975 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सिद्धार्थ (उपन्यास)

सिद्धार्थ हरमन हेस द्वारा रचित उपन्यास है, जिसमें बुद्ध काल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के सिद्धार्थ नाम के एक लड़के की आध्यात्मिक यात्रा का वर्णन किया गया है। यह पुस्तक हेस का नौवां उपन्यास है, इसे जर्मन भाषा में लिखा गया था। यह सरल लेकिन प्रभावपूर्ण और काव्यात्मक शैली में है। इसे 1951 में अमेरिका में प्रकाशित किया गया था और यह 1960 के दशक में प्रभावी बन गया.

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संतोष कुमार घोष

संतोष कुमार घोष बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शेष नमस्कार के लिये उन्हें सन् 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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संदीपन चट्टोपाध्याय

संदीपन चट्टोपाध्याय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आमि ओ बनबिहारी के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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संजीव

संजीव (6 जुलाई, 1947 से वर्तमान) हिन्दी साहित्य की जनवादी धारा के प्रमुख कथाकारों में से एक हैं। कहानी एवं उपन्यास दोनों विधाओं में समान रूप से रचनाशील। प्रायः समाज की मुख्यधारा से कटे विषयों, क्षेत्रों एवं वर्गों को लेकर गहन शोधपरक कथालेखक के रूप में मान्य। .

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सु. वेंकटेशन

सु.

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सुतंतिर दाकम

सुतंतिर दाकम तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार सी. एस. चेल्लप्पा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में तमिल भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुधार घर

सुधार घर पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार मित्र सैन मीत द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुधांशु शेखर चौधुरी

सुधांशु शेखर चौधुरी मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ई बतहा संसार के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुनेत्रा गुप्त

सुनेत्रा गुप्त अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मेमोरीज़ ऑफ़ रेन के लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुबह...दोपहर...शाम

सुबह...दोपहर...शाम कमलेश्वर का एक उपन्यास है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:कमलेश्वर श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:गद्य.

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सुबिमल बसाक

सुबिमल बसाक (१५ दिसम्बर १९३९) (সুবিমল বসাক)बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार है। 'भूखी पीढ़ी आन्दोलन' शुरु करनेवाले साहित्यिकों मे उनका प्रधान योगदान रहा है। उन्होने कहानीलेखन की एक नयी भाषा को जन्म दिया जो बिहार के रहनेवाले बांग्लाभाषी बोला करते हैं। सुबिमल बसाक ने हिन्दी से बहुत सारे उपन्यास अनुवाद किया। वर्ष २००८ में उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सन्मानित किया गया। .

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सुब्रत मुखोपाध्याय

सुब्रत मुखोपाध्याय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बीरासन के लिये उन्हें सन् 2012 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुरेन्द्र मोहंती

सुरेन्द्र मोहंती ओड़िया के ऐसे कथाकारों में से हैं जो भारत की स्वतंत्रता के बाद तेज़ी से प्रकाश में आए। अलंकारिक शैली के इस कथाकार की कहानियों के विषयों का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। उनका जन्म 1920 में हुआ तथा देहांत 1992 में। अनेक साहित्यिक पुरस्कारों के विजेता सुरेंद्र मोहंती ने कहानियों के अतिरिक्त उपन्यास, यात्रा विवरण, आलोचना, रुपक और जीवनियों की ५० से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। महानगरीर रात्रि (महानगर की रात्रि), मालारेर मृत्यु (हंस की मृत्यु), अंध दिगंत (अंधेरा क्षितिज) और महानिबान (महानिर्वाण) उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। उनकी कृति नीलशिला से उन्हें बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हुई। उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं यदुबंश ओउ अन्य गल्प (यदुवंश तथा अन्य कहानियाँ), राजधानी ओउ अन्य गल्प (राजधानी तथा अन्य कहानियाँ), कृष्न चूड (मयूरपंख) और रूटी ओऊ चंद्र। ४ अक्टूबर १९८४ में विजयदशमी के दिन स्थापित संबाद नामक उड़िया के सबसे लोकप्रय समाचरपत्र के पहले संपादक सुरेन्द्र मोहंती ही थे। बाद मे वे उसके प्रमुख संपादक भी बने। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास नील शैल के लिये उन्हें सन् १९६९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (ओड़िया) से सम्मानित किया गया। .

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सुरेन्द्र वर्मा

सुरेन्द्र वर्मा (जन्म: १९४१) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मुझे चाँद चाहिए के लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुखबीर (पंजाबी उपन्यासकार)

सुखबीर, (पंजाबी: ਸੁਖਬੀਰ) (9 जुलाई 1925 - 22 फ़रवरी 2012), उर्फ़ बलबीर सिंह पंजाबी उपन्यासकार, कहानीकार, कवि और निबन्धकार थे। उनका जन्म 9 जुलाई 1925 को सरदार मंशा सिंह और श्रीमती शिव कौर के घर मुम्बई में हुआ था। ह्रदय रोग से 22 फ़रवरी 2012 को उनका निधन हुआ।http://www.countercurrents.org/date050312.htm .

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सुंदरिकालुम सुंदरनमारुम

सुंदरिकालुम सुंदरनमारुम मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार पी. सी. कुट्टिकृष्णन उरूब द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1960 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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स्पंदमापिनिकले नंदि

स्पंदमापिनिकले नंदि मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार सी. राधाकृष्णन् द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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स्पेलिंग बी

स्पेलिंग बी शब्दों की एक प्रतियोगिता है जहां प्रतियोगियों, आमतौर पर बच्चों से, अंग्रेजी शब्दों की वर्तनी पूछी जाती है। यह मानी जाती है की इस अवधारणा की उत्पत्ति संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई.

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स्मारक सिलाकल

स्मारक सिलाकल मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार पुनत्तिल कुंंजब्दुल्ला द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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स्वदेश भारती

स्वदेश भारती हिन्दी के कवि एवं साहित्यकार हैं। उन्हें प्रेमचन्द पुरस्कर एवं साहित्यभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वे कोलकाता में रहते हैं और रूपाम्बर नामक द्विभाषी त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक हैं। .

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स्वप्न सारस्वत

स्वप्न सारस्वत कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार गोपालकृष्ण पै द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सैयद मुस्तफ़ा सिराज

सैयद मुस्तफ़ा सिराज बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अलीक मानुष के लिये उन्हें सन् 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सैयद सलीम

सैयद सलीम तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कालुतुन्ना पूलातोटा के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सूनाखारी

सूनाखारी नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार ओकिम ग्विन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सूरज प्रकाश

सूरज प्रकाश (जन्म १४ मार्च, १९५२; देहरादून) हिंदी और गुजराती के लेखक और कथाकार हैं। .

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है। .

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सेई समय

सेई समय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1985 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सोलारिस (उपन्यास)

कथा में सोलारिस समुद्र से पूरा ढका दो सूर्यों वाला एक ग्रह था (एक सूर्य लाल था और दूसरे का रंग नीला) सोलारिस (अंग्रेज़ी: Solaris) सन् 1961 में पोलिश विज्ञान कथा लेखक स्तानिस्लाव लॅम द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है, जिसमें मनुष्यों और एक अमानुष जीव के बीच सम्पर्क और प्रकारांतर से इस सम्पर्क की निष्फलता को दिखाया गया है। इस काल्पनिक कथा में मनुष्य 'सोलारिस' नामक एक ग्रह का अध्ययन कर रहे हैं। वे ग्रह के इर्द-गिर्द कक्षा में परिक्रमा करते एक बड़े अंतरिक्ष यान को अड्डा बनाकर उसमें रह रहे हैं। उस ग्रह पर एक समुद्र फैला हुआ है जिसमें अजीब-अजीब सी चीज़ें होती रहतीं हैं, जैसे कभी विचित्र आकार के तैरते हुए द्वीप बन जाते हैं। धीरे-धीरे इस बात का खुलासा होता है कि पूरा ग्रह ही एक जीवित 'प्राणी' है। जिस तरह से मनुष्य उस पर शोध कर रहे हैं, वैसे ही वह मनुष्यों पर शोध आरम्भ कर देता है। उसमें मनुष्यों के विचारों को पढ़ने और उनके डरों और आशाओं को भांपने की क्षमता है। एक-एक कर के वह यान के सभी वैज्ञानिकों के विचारों से खिलवाड़ करता रहता है। मुख्य पात्र (क्रिस कॅल्विन) की एक प्रेमिका थी जिसकी मृत्यु हो चुकी थी। सोलारिस उसी रूप की एक स्त्री को यान पर प्रकट कर देता है, जिस से उस नायक को गहरे असमंजस से गुज़रना पड़ता है। .

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सोहणसिंह शीतल

सोहणसिंह शीतल पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास जुग बदल गिआ के लिये उन्हें सन् 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सी. एस. चेल्लप्पा

सी.

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सी. राधाकृष्णन्

सी.

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हठयोगी

हठयोगी सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार तारा मीरचंदाणी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में सिन्धी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हयातुल्लाह अंसारी

हयातुल्लाह अंसारी उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास लहू के फूल के लिये उन्हें सन् 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हरचरण सिंह

हरचरण सिंह पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कल अज ते भलक के लिये उन्हें सन् 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हरबर्ट

हरबर्ट बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार नवारुण भट्टाचार्य द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1997 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हरि नारायण आपटे

हरि नारायण आपटे हरि नारायण आपटे (१८६४-१९१९ ई.) मराठी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि, नाटककार थे। .

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हरि मोटवाणी

हरि मोटवाणी सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आझो के लिये उन्हें सन् 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हरिसिंह गौर

सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक '''डॉ हरिसिंह गौर''' डॉ॰ हरिसिंह गौर, (२६ नवम्बर १८७० - २५ दिसम्बर १९४९) सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, शिक्षाशास्त्री, ख्यति प्राप्त विधिवेत्ता, न्यायविद्, समाज सुधारक, साहित्यकार (कवि, उपन्यासकार) तथा महान दानी एवं देशभक्त थे। वह बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय तथा नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वे भारतीय संविधान सभा के उपसभापति, साइमन कमीशन के सदस्य तथा रायल सोसायटी फार लिटरेचर के फेल्लो भी रहे थे।उन्होने कानून शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार, संस्कृति, राष्ट्रीय आंदोलन, संविधान निर्माण आदि में भी योगदान दिया। उन्होने अपनी गाढ़ी कमाई से 20 लाख रुपये की धनराशि से 18 जुलाई 1946 को अपनी जन्मभूमि सागर में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा वसीयत द्वारा अपनी पैतृक सपत्ति से 2 करोड़ रुपये दान भी दिया था। इस विश्वविद्यालय के संस्थापक, उपकुलपति तो थे ही वे अपने जीवन के आखिरी समय (२५ दिसम्बर १९४९) तक इसके विकास व सहेजने के प्रति संकल्पित रहे। उनका स्वप्न था कि सागर विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज तथा ऑक्सफोर्ड जैसी मान्यता हासिल करे। उन्होंने ढाई वर्ष तक इसका लालन-पालन भी किया। डॉ॰ सर हरीसिंह गौर एक ऐसा विश्वस्तरीय अनूठा विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना एक शिक्षाविद् के द्वारा दान द्वारा की गई थी। .

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हर्ता म्यूलर

रोमानिया में १७ अगस्त १९५३ को जन्मीं हर्ता म्यूलर जर्मन उपन्यासकार, कवियित्री और निबंधकार हैं और वे साम्यवादी रोमानिया में निकोलाइ चाउसेस्कु के दमनकारी शासन के दौरान जीवन की कठोर परिस्थितियों का सजीव चित्रण करने के लिए जानी जाती हैं। ८ अक्टूबर २००९, को की गयी एक घोषणा के अनुसार वो वर्ष २००९ की साहित्य के नोबेल पुरस्कार की विजेता हैं। .

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हरोशियो वालपोल

हरोशियो वालपोल (Horatio Walpole, 4th Earl of Orford; १७१७ - १७९७ ई.) आंग्ल राजनीतिज्ञ, कला इतिहासकार, एवं साहित्यकार थे। इन्हें 'होरेस वालपोल' (Horace Walpole) भी कहा जाता है। वालपोल का जन्म २४ सितंबर, १७१७ को लन्दन में हुआ। इनकी शिक्षा ईटल और किंग्स कालेज, केंब्रिज में हुई। यहाँ पर इनकी मित्रता भावी साहित्यकार टामस ग्रे, रिचार्ड वेस्ट, टामस स्टर्न हेनरी, सैमूर कांन के और जार्ज आगस्टस सिलविन से हुई। ये मई, १७४१ में संसद् सदस्य निर्वाचित हुए, किंतु राजनीतिक जीवन की सफलता संतोषजनक न होने से इन्होंने संसद् से अवकाश ग्रहण कर लिया। अपने पिता के प्रभाव से इन्हें सरकारी नौकरी गई, जहाँ पर इन्होंने १७४५ से १७८४ तक कार्य किया। १७४७ में इन्होंने टामस नदी के किनारे 'विला ऑव स्टेवैरी हिल' क्रय किया, और यहाँ पर एक मुद्रणालय स्थापित किया, जिसका नाम अफीसीना आरब्बटीयना रखा। इस मुद्रणालय से इनकी बहुत सी रचनाओं के प्रथम संस्करण प्रकाशित हुए। यह आजीवन गठिया के रोग से पीड़ित रहे। २ मार्च, १७९७ को अविवाहित ही इनका देहान्त हो गया। .

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हळ्ळा बन्तु हळ्ळा

हळ्ळा बन्तु हळ्ळा कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार श्रीनिवास बी. वैद्य द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हाफ गर्लफ्रेंड

हाफ गर्लफ्रेंड (Half Girlfriend) चेतन भगत द्वारा रचित अंग्रेज़ी उपन्यास है। 'हाफ गर्लफ्रैन्ड' भारत की उस नयी पीढी का उपन्यास हैं जो नये मूल्यों को अंगीकार कर वर्जनाओं को जीने में आनंद का अनुभव कर रही है। इसी पीढी में बिहार के डुमरिया के ठेठ गंवई वातावरण से आया हुआ माधव दिल्ली जैसे महानगर की देहरी पर आकर कान्वेन्ट एजुकेटेड लडकी रिया से टकरा जाता है।....इस बार इस टकराहट का परिणाम वही परंपरागत सदियों पुराना नहीं होता जिसमें लडकी सबकुछ छोडकर हमेशा हमेशा के लिये लडके के साथ रहने चली जाती है। नयी पीढी की जीवन चर्या और उसकी सोच में आया बदलाव इसमें परिलक्षित होता है जब माधव के अश्लील अल्टीमेटम के बाद रिया उसके साथ इस शर्त के साथ संबंध बनाने देती है कि वह इस बात के लिये फिर कभी नहीं कहेगा। समय बीतता है और रिया अपने बचपन के मित्र रोहन की पत्नी बनकर लंदन चली जाती है और महानगर से हारा हुआ बिहारी माधव भी लौटकर अपने प्रदेश चला जाता है। दिल्ली से अधूरे सपनों की कसक लिये गांव लौट आया माधव अब महानगर की चमक के साथ बिहार को गड्डमगड्ड करते हुये फिर कुछ नये सपने देखने लगता है जिसके केन्द्र में इस बार उसकी मां के द्वारा चलाया जा रहा स्कूल होता है। इसकी दशा सुधारने के लिये माधव स्थानीय एम एल ए ओझा जी से मिलता है लेकिन इस बार भी उसे ठोकर ही मिलती है। इसी बीच पता चलता है कि बिल गेट्स का दौरा बिहार में होने वाला है तो माधव नये सिरे से सारी उर्जा समेटता है और साठ सत्तर के दशक की पुरानी फिल्मी कहानियों की तरह संयोग से बिल गेट्स के कार्यक्रम के दौरान रिया पुनः माधव के संपर्क में आ जाती है और उसी नाटकीयता के साथ घोषणा भी करती है कि वह फेफडों के कैंसर से पीडित है और बस तीन महीने की मेहमान है। पुनः गायिका बनने के लिये रिया का न्यूयार्क जाना और संगीत के कार्यक्रम करना तेजी से बदलते किसी फिल्म के दृष्य अधिक लगते हैं। इसी शीघ्रता से बदलते कथानक में माधव एक साल बाद न्यूयार्क जाकर देखता है कि रिया तो जीवित है और उसी टाइम्स स्क्वायर पर जाकर संगीत का कार्यक्रम कर रही है जहां हाल ही जाकर हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अमेरिका में बसे भारतीयों को संबोधित किया है। समूची कहानी को पढकर सीधा सादा अर्थ निकाला जा सकता है कि यह उपन्यास चेतन भतन ने किसी फिल्मी प्लाट को मष्तिष्क में रखकर ही लिखा है।। इसके अक्टूबर २०१४ में प्रकाशित होने की सम्भावना है। .

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हिन्दी पत्रिकाएँ

हिन्दी पत्रिकाएँ सामाजिक व्‍यवस्‍था के लिए चतुर्थ स्‍तम्‍भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सूथरा वातावरण तैयार करने में सदैव अमोघ अस्‍त्र का कार्य करती है। हिन्दी के विविध आन्‍दोलन और साहित्‍यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्‍य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में हिन्दी पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है।; प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएँ- .

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हिन्दी प्रदीप

हिन्दी प्रदीप, हिन्दी का प्रसिद्ध समाचार पत्र था। इसके सम्पादक बालकृष्ण भट्ट थे। हिंदी प्रदीप में नाटक, उपन्यास, समाचार और निबंध सभी छपते थे। हिंदी प्रदीप के मुखपृष्ठ पर लिखा था- प्रदीप से कई लेखकों का अभ्युदय हुआ। इनमें राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, आगम शरण, पंडित माधव शुक्ल, मदन मोहन शुक्ल, परसन और श्रीधर पाठक आदि थे। इनके अतिरिक्त बाबू रतन चंद्र, सावित्री देवी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, जगदंबा प्रसाद उनके प्रभाव में थे। पुरुषोत्तम दास टंडन की प्रदीप में 12 रचनाएं प्रकाशित हुई। जो उन्होंने 1899 से लेकर 1905 के बीच लिखी थी। हिंदी प्रदीप में बहुत ही खरी बातें प्रकाशित होती थी। 1909 अप्रैल के चौथे अंक में माधव शुक्ल ने 'बम क्या है' नामक कविता लिखी जो अंग्रेज सरकार को नागवार लगी और उन्होंने पत्रिका पर तीन हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया। उस समय भट्ट जी के पास भोजन तक के पैसे नहीं थे, जमानत कहां से भरते। विवश होकर उन्हें पत्रिका बंद करनी पड़ी। .

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हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम

यहाँ पर हिन्दी से सम्बन्धित सबसे पहले साहित्यकारों, पुस्तकों, स्थानों आदि के नाम दिये गये हैं।.

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हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकायें

हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाएँ, हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के विकास और संवर्द्धन में उल्लेखनीय भूमिका निभाती रहीं हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, आलोचना, यात्रावृत्तांत, जीवनी, आत्मकथा तथा शोध से संबंधित आलेखों का नियमित तौर पर प्रकाशन इनका मूल उद्देश्य है। अधिकांश पत्रिकाओं का संपादन कार्य अवैतनिक होता है। भाषा, साहित्य तथा संस्कृति अध्ययन के क्षेत्र में साहित्यिक पत्रिकाओं का उल्लेखनीय योगदान रहा है। वर्तमान में प्रकाशित कुछ प्रमुख पत्रिकाओं की सूची निम्नवत है: .

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हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें

चित्र:|350px|हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें जयप्रकाश भारती की रचना है। इसमें सौ श्रेष्ठ हिन्दी पुस्तकों का प्रत्येक के लिये तीन-चार पृष्ठों में सकारात्मक परिचय दिया गया है। किताब में विवेचित अधिकतर पुस्तकें पुरस्कृत हैं और अपने विषय और प्रस्तुति में अनूठी हैं। इसमें स्वाधीनता से पहले की चौबीस और बाद की चौहत्तर पुस्तकों की चर्चा है। इस पुस्तक में हिन्दी के बाइस काव्यों और पच्चीस उपन्यासों पर चर्चा है। पुस्तक में रचनाओं का परिचय देते हुए लेखक की शब्द-संपदा, शैली और भाषा प्रवाह की झलक के लिए जहां-तहां उनकी कुछ पंक्तियां उद्धृत की हैं। हर पुस्तक का प्रथम प्रकाशन-वर्ष भी दिया है और पुस्तक को प्राप्त प्रमुख पुरस्कार-सम्मान का उल्लेख भी है। कृति-विशेष का परिचय देने के बाद लेखक की कुछ अन्य पुस्तकों का उल्लेख भी अंत में किया गया है। .

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हिन्दी उपन्यास

हिंदी उपन्यास का आरम्भ श्रीनिवासदास के "परीक्षागुरु' (१८४३ ई.) से माना जाता है। हिंदी के आरम्भिक उपन्यास अधिकतर ऐयारी और तिलस्मी किस्म के थे। अनूदित उपन्यासों में पहला सामाजिक उपन्यास भारतेंदु हरिश्चंद्र का "पूर्णप्रकाश' और चंद्रप्रभा नामक मराठी उपन्यास का अनुवाद था। आरम्भ में हिंदी में कई उपन्यास बँगला, मराठी आदि से अनुवादित किए गए। हिंदी में सामाजिक उपन्यासों का आधुनिक अर्थ में सूत्रपात प्रेमचंद (१८८०-१९३६) से हुआ। प्रेमचंद पहले उर्दू में लिखते थे, बाद में हिंदी की ओर मुड़े। आपके "सेवासदन', "रंगभूमि', "कायाकल्प', "गबन', "निर्मला', "गोदान', आदि प्रसिद्ध उपन्यास हैं, जिनमें ग्रामीण वातावरण का उत्तम चित्रण है। चरित्रचित्रण में प्रेमचंद गांधी जी के "हृदयपरिवर्तन' के सिद्धांत को मानते थे। बाद में उनकी रुझान समाजवाद की ओर भी हुई, ऐसा जान पड़ता है। कुल मिलाकर उनके उपन्यास हिंदी में आधुनिक सामाजिक सुधारवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। जयशंकर प्रसाद के "कंकाल' और "तितली' उपन्यासों में भिन्न प्रकार के समाजों का चित्रण है, परंतु शैली अधिक काव्यात्मक है। प्रेमचंद की ही शैली में, उनके अनुकरण से विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक, सुदर्शन, प्रतापनारायण श्रीवास्तव, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि अनेक लेखकों ने सामाजिक उपन्यास लिखे, जिनमें एक प्रकार का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद अधिक था। परंतु पांडेय बेचन शर्मा "उग्र', ऋषभचरण जैन, चतुरसेन शास्त्री आदि ने फरांसीसी ढंग का यथार्थवाद और प्रकृतवाद (नैचुरॉलिज़्म) अपनाया और समाज की बुराइयों का दंभस्फोट किया। इस शेली के उपन्यासकारों में सबसे सफल रहे "चित्रलेखा' के लेखक भगवतीचरण वर्मा, जिनके "टेढ़े मेढ़े रास्ते' और "भूले बिसरे चित्र' बहुत प्रसिद्ध हैं। उपेन्द्रनाथ अश्क की "गिरती दीवारें' का भी इस समाज की बुराइयों के चित्रणवाली रचनाओं में महत्वपूर्ण स्थान है। अमृतलाल नागर की "बूँद और समुद्र' इसी यथार्थवादी शैली में आगे बढ़कर आंचलिकता मिलानेवाला एक श्रेष्ठ उपन्यास है। सियारामशरण गुप्त की नारी' की अपनी अलग विशेषता है। मनोवैज्ञानिक उपन्यास जैनेंद्रकुमार से शुरू हुए। "परख', "सुनीता', "कल्याणी' आदि से भी अधिक आप के "त्यागपत्र' ने हिंदी में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया। जैनेंद्र जी दार्शनिक शब्दावली में अधिक उलझ गए। मनोविश्लेषण में स. ही.

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हिमांशु श्रीवास्तव

हिमांशु श्रीवास्तव हिमांशु श्रीवास्तव (जन्म: ११ मार्च १९३४: हराजी, सारण जिला, बिहार; मृत्यू: २६ मई १९९६) एक साहित्यकार, उपन्यासकार थे, जिनकी लगभग ५० उपन्यास और कहानी संग्रह प्रकाशित हुई हैं। .

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हिमांशु जोशी

जन्म – 4 मई 1935 (उत्तराँचल).

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हजारी प्रसाद द्विवेदी

हजारी प्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी के मौलिक निबन्धकार, उत्कृष्ट समालोचक एवं सांस्कृतिक विचारधारा के प्रमुख उपन्यासकार थे। .

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हुनजे आतम जो मौत

हुनजे आतम जो मौत सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार लाल पुष्प द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1974 में सिन्धी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हृदयनेत्री

हृदयनेत्री तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार मालती चंदूर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में तेलुगू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हैरी मुलिश

हैरी मुलिश (सन् २०१० में) हैरी कुर्त विक्तर मुलिश (Harry Kurt Victor Mulisch) (29 जुलाई 1927 – 30 अक्टूबर 2010) डच लेखक एवं साहित्यकार थे। उन्होने ३० से अधिक उपन्यास, नाटक, निबन्ध, कविताएँ एवं दार्शनिक लेख लिखे। इनकी कृतियों का बीसों भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। विश्वयुद्धोत्तर डच लेखन में ड्ब्ल्यू एफ हर्मन्स, गेराल्ड रिव एवं मुलिश को सम्मिलित रूप से 'महान तिकड़ी' कहा जाता है। .

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हेमा नायक

हेमा नायक कोंकणी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास भोगदंड के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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होमेन बरगोहाइँ

होमेन बरगोहाइँ असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास पिता–पुत्र (असमिया उपन्यास) के लिये उन्हें सन् 1978 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जयन्त विष्णु नार्लीकर

जयन्त विष्णु नार्लीकर जयन्त विष्णु नार्लीकर (मराठी: जयन्त विष्णु नारळीकर; जन्म 19 जुलाई 1938) प्रसिद्ध भारतीय भौतिकीय वैज्ञानिक हैं जिन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए अंग्रेजी, हिन्दी और मराठी में अनेक पुस्तकें लिखी हैं। ये ब्रह्माण्ड के स्थिर अवस्था सिद्धान्त के विशेषज्ञ हैं और फ्रेड हॉयल के साथ भौतिकी के हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं। .

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जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937)अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं०-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई०,पृ०-2(तिथि एवं संवत् के लिए)।(क)हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-10, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-1971ई०, पृ०-145(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख)www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।, हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र नारायण, शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की। उन्हें 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवन में कभी साहित्य को अर्जन का माध्यम नहीं बनाया, अपितु वे साधना समझकर ही साहित्य की रचना करते रहे। कुल मिलाकर ऐसी बहुआयामी प्रतिभा का साहित्यकार हिंदी में कम ही मिलेगा जिसने साहित्य के सभी अंगों को अपनी कृतियों से न केवल समृद्ध किया हो, बल्कि उन सभी विधाओं में काफी ऊँचा स्थान भी रखता हो। .

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जसवंत सिंह कँवल

जसवंत सिंह कँवल पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास तौशाली दी हंसो के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ज़िन्दगीनामा - ज़िन्दा रुख़

ज़िन्दगीनामा - ज़िन्दा रुख़ हिन्दी के विख्यात साहित्यकार कृष्णा सोबती द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जगमोहन सिंह

भारतेन्दुयुगीन हिन्दी साहित्यकार '''ठाकुर जगमोहन सिंह''' ठाकुर जगमोहन सिंह (४ अगस्त १८५७ -) हिन्दी के भारतेन्दुयुगीन कवि, आलोचक और उपन्यासकार थे। उन्होंने सन् 1880 से 1882 तक धमतरी में और सन् 1882 से 1887 तक शिवरीनारायण में तहसीलदार और मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य किया। छत्तीसगढ़ के बिखरे साहित्यकारों को जगन्मोहन मंडल बनाकर एक सूत्र में पिरोया और उन्हें लेखन की सही दिशा भी दी। जगन्मोहन मंडल काशी के भारतेन्दु मंडल की तर्ज में बनी एक साहित्यिक संस्था थी। हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य की उन्हें अच्छी जानकारी थी। ठाकुर साहब मूलत: कवि ही थे। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा नई और पुरानी दोनों प्रकार की काव्यप्रवृत्तियों का पोषण किया। .

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जंगम

जंगम असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार देवेन्द्रनाथ आचार्य द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1984 में असमिया भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जुग बदल गिआ

जुग बदल गिआ पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार सोहणसिंह शीतल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1974 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ज्ञान सिंह शातिर

ज्ञान सिंह शातिर उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ज्ञान सिंह शातिर के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जैनेन्द्र कुमार

प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों में जैनेंद्रकुमार (२ जनवरी, १९०५- २४ दिसंबर, १९८८) का विशिष्ट स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों में घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर विकास को प्राप्त होते हैं। .

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जूण–जातरा

जूण–जातरा राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार अतुल कनक द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जूलूस

जूलूस एक जनसमूह या भीड़ को कहते हैं जिसका उद्येश्य प्रायः प्रदर्शन करना होता है। जूलूस नाम का एक उपन्यास भी है जिसके रचायिता फणीश्वर नाथ रेणु हैं - जूलूस (उपन्यास)। श्रेणी:चलना श्रेणी:समारोह.

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जेन आस्टिन

जेन ऑस्टिन जेन आस्टिन (Jane Austen; 16 दिसम्बर 1775 – 18 जुलाई 1817) एक अंग्रेजी उपन्यासकार थीं। .

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जॉर्ज इलियट

मैरी अन्न एवांस (Mary Anne Evans; 22 नवम्बर 1819 – 22 दिसम्बर 1880) एक अंग्रेजी लेखिका, पत्रकार और अनुवादक थीं। वे अपने उपनाम जॉर्ज इलियट से जानी जाती हैं। वे विक्टोरिया काल की प्रमुख अंग्रेज लेखिका थीं। उनकी गणना अंग्रेजी के महान् उपन्यासकारों में की जाती है। आपका पालन पोषण तो एक कट्टर मेथोडिस्ट परिवार में हुआ किंतु २२ वर्ष की आयु में ब्रे और हेनेल के प्रभाव ने आपके दृष्टिकोण में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया। धार्मिक प्रश्नों में तर्कपूर्ण एवं निष्पक्ष वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनानेवालों में आपका स्थान अपने युग में सर्वप्रथम है। परंतु आपकी सभी रचनाओं में एक दृढ नैतिक भावना विद्यमान है जिसके कारण आपने कर्तव्यपालन और कर्मफल के सिद्धांतों को सर्वोपरि स्थान दिया है। आपका प्रथम साहित्यिक प्रयास स्ट्रॉस की 'लाइफ़ ऑव जीसस' का अनुवाद (१८४८) था। १८५१ में आप 'वेस्टमिन्स्टर रिव्यू' की सहायक संपादिका नियुक्त हुई जिससे आपको फ्राउड, मिल, कार्लाइल, हरबर्ट स्पेंसर तथा 'द लीडर' के संपादक जी.एच.

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जो लरे दीन के हेत

जो लरे दीन के हेत भारत के प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार और लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का अगस्त 2014 में हार्पर कॉलिंसप्रकाशन द्वारा छापा गया उपन्यास है। वर्गीकरण की दृष्टि से यह रहस्य-रोमांच की श्रेणी में आनेवाला उपन्यास है। पहली बार किसी हिंदी उपन्यास की प्री-पब्लिशिंग बुकिंग का तमगा इस उपन्यास के नाम दर्ज हो चुका है। यह पाठक के विमल सीरीज का 42वाँ उपन्यास है जिसकी कहानी दिल्ली और मुम्बई के परिवेश में सेट है। .

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जोध छी. सनसम

जोध छी.

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जोसेफ़ मेकवान

जोसेफ़ मेकवान गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आंगळियात के लिये उन्हें सन् 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जी. तिलकवती

जी.

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जीवन गोरेटोमा

जीवन गोरेटोमा नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार कृष्णसिंह मोक्तान द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2005 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ई बतहा संसार

ई बतहा संसार मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार सुधांशु शेखर चौधुरी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में मैथिली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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घणाघाय नियतीचे

घणाघाय नियतीचे कोंकणी भाषा के विख्यात साहित्यकार अशोक एस. कामत द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में कोंकणी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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घरडीह

घरडीह ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार नित्यांनद महापात्र द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में ओड़िया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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घराणो

घराणो राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार अब्दुल वहीद ‘कमल’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वन्दे मातरम्

'''वन्दे मातरम्''' के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय वन्दे मातरम् (बाँग्ला: বন্দে মাতরম) अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया भारतमाता का चित्र बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। सन् २००३ में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था और बी०बी०सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था। .

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वर्षा एम. अडालजा

वर्षा एम.

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वही बात

मुखपृष्ठ वही बात कमलेश्वर का एक उपन्यास है। श्रेणी:साहित्य श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:कमलेश्वर श्रेणी:हिन्दी श्रेणी:गद्य.

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वानम वसप्पडुम

वानम वसप्पडुम तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार प्रपंचन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1995 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वाल्टर स्काट

वाल्टर स्कॉट सर वाल्टर स्काट (Sir Walter Scott, 1st Baronet, FRSE; १७७१ - १८३२ ई.) अंग्रेजी के प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार, नाटककार तथा कवि थे। स्कॉट अंग्रेजी भाषा के प्रथम साहित्यकार थे जिन्हें अपने जीवनकाल में ही अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो गयी थी। .

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विधा

विधा (फ्रेंच: जीनर / genre) का साधारण अर्थ प्रकार, किस्म, वर्ग या श्रेणी है। यह शब्द विविध प्रकार की रचनाओं को वर्ग या श्रेणी में बांटने से उस विधा के गुणधर्मो को समझने में सुविधा होती है। यह वैसे ही है जैसे जीवविज्ञान में जीवों का वर्गीकरण किया जाता है। साहित्य एवं भाषण में विधा शब्द का प्रयोग एक वर्गकारक (CATEGORIZER) के रूप में किया जाता है। किन्तु सामान्य रूप से यह किसी भी कला के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है। विधाओं की उपविधाएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिये हम कहते हैं कि निबन्ध, गद्य की एक विधा है।. विधाएँ अस्पष्ट (vague) श्रेणीयाँ हैं और इनकी कोई निश्चित सीमा-रेखा नहीं होती। ये समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर इनकिइ पहचान निर्मित हो जाती है। .

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विन्सेंट जॉन पीटर सल्दान्हा

विन्सेंट जॉन पीटर सल्दान्हा (Vincent John Peter Saldanha; कन्नड: ವಿನ್ಸೆಂಟ್ ಜಾನ್ ಪೀಟರ್ ಸಲ್ದಂಹ; 9 जून् 1925 – 22 फरवरी 2000)) कोंकणी भाषा के साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार और कवि थे। उन्होने कोंकणी साहित्य के प्रति अन्य महत्त्वपूर्ण योगदान दिए हैं। सल्दान्हा ने अपने हर लेखन रचना में अपने कैथलिक पहचान को अच्छे तरह से बनाया रखा था। वह अक्सर अपने ही जात के लोगों के बारे मे लिखते थे। वह 'खदप' या 'रॉक' नाम से लोकप्रीय थे। श्रेणी:कोंकणी साहित्यकार.

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विलहेम राब

जर्मन उपन्यासकार '''विलहेम राब''' विलहेम राब (Wilhelm Raabe, १८३१ - १९१०), जर्मन उपन्यासकार और कवि था। उसकी आरम्भिक कृतियाँ 'जेकब कार्विनस' (Jakob Corvinus) उपनाम से प्रकाशित हुईं थी। .

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विलासिनी (एम. के. मेनन)

विलासिनी (एम. के. मेनन) मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अवकासिकाळ के लिये उन्हें सन् 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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विलियम जेम्स

विलियम जेम्स (William James; 11 जनवरी, 1842 – 26 अगस्त, 1910) अमेरिकी दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक थे जिन्होने चिकित्सक के रूप में भी प्रशिक्षण पाया था। इन्होंने मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से पृथक किया था, इसलिए इन्हें मनोविज्ञान का जनक भी मन जाता है। विलियम जेम्स ने मनोविज्ञान के अध्ययन हेतु एक पुस्तक लिखी जिसका नाम "प्रिंसिपल्स ऑफ़ साइकोलॉजी" है। इसका भाई हेनरी जेम्स प्रख्यात उपन्यासकार था। आकर्षक लेखनशैली और अभिव्यक्ति की कुशलता के लिये जेम्स विख्यात हैं। विलियम जेम्स का जन्म ११ जनवरी १८४२ को न्यूयार्क में हुआ। जेम्स ने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया और वहीं १८७२ से १९०७ तक क्रमश: शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान और दर्शन का प्राध्यापक रहा। १८९९ से १९०१ तक एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में प्राकृतिक धर्म पर और १९०८ में ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन पर व्याख्यान दिए। २६ अगस्त, १९१० को उसकी मृत्यु हो गई। १८९० में उसकी पुस्तक प्रिंसिपिल्स ऑव् साइकॉलाजी प्रकाशित हुई, जिसने मनोविज्ञान के क्षेत्र में क्रांति सी मचा दी, और जेम्स को उसी एक पुस्तक से जागतिक ख्याति मिल गई। अपनी अन्य रचनाओं में उसने दर्शन तथा धर्म की समस्याओं को सुलझाने में अपनी मनोवैज्ञानिक मान्यताओं का उपयोग किया और उनका समाधान उसने अपने फलानुमेयप्रामाणवाद (Pragmatism) और आधारभूत अनुभववाद (Radical Empiricism) में पाया। फलानुमेयप्रामाणवादी जेम्स ने 'ज्ञान' को बृहत्तर व्यावहारिक स्थिति का, जिससे व्यक्ति स्वयं को संसार में प्रतिष्ठित करता है, भाग मानते हुए 'ज्ञाता' और 'ज्ञेय' को जीवी (Organism) और परिवेश (Environment) के रूप में स्थापित किया है। इस प्रकार सत्य कोई पूर्ववृत्त वास्तविकता (Antecedent Reality) नहीं है, अपितु वह प्रत्यय की व्यावहारिक सफलता के अंशों पर आधारित है। सभी बौद्धिक क्रियाओं का महत्व उनकी व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति की क्षमता में निहित है। आधारभूत अनुभववाद जेम्स ने पहले मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। जॉन लॉक और जार्ज बर्कली के मतों से भिन्न उसकी मान्यता थी कि चेतना की परिवर्तनशील स्थितियाँ परस्पर संबंधित रहती हैं; तदनुसार समग्र अनुभव की स्थितियों में संबंध स्थापित हो जाता है; मस्तिष्क आदि कोई बाह्य शक्ति उसमें सहायक नहीं होती। मस्तिष्क प्रत्यक्ष अनुभव की समग्रता में भेद करता है। फलानुमेय प्रामाण्यवाद और आधारभूत अनुभववाद पर ही जेम्स की धार्मिक मान्यताएँ आधृत हैं। फलानुमेय प्रामाण्यवाद सत्य की अपेक्षा धार्मिक विश्वासों की व्याख्या में अधिक सहायक था; क्योंकि विश्वास प्राय: व्यावहारिक होते हैं यहाँ तक कि तर्कों के प्रमाण के अभाव में भी मान्य होते हैं; किंतु परिणामवादीदृष्टिकोण से सत्य की, परिभाषा स्थिर करना संदिग्ध है। 'द विल टु बिलीव' में जेम्स ने अंतःकरण के या संवेगजन्य प्रमाणों पर बल दिया है और सिद्ध किया है कि उद्देश्य (Purpose) और संकल्प (Will) ही व्यक्ति के दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं। 'द वेराइटीज़ ऑव रिलीजस एक्सपीरियेंस' में जेम्स ने व्यक्ति को निष्क्रिय और शक्तिहीन दिखलाया है तथा यह भी प्रदर्शित किया है कि उसकी रक्षा कोई बाह्य शक्ति करती है। जेम्स के अनुभववाद से धार्मिक अनुभूति की व्याख्या इसलिये असंभव है कि इन अनुभूतियों का व्यक्ति के अवचेनत से सीधा संबंध होता है। जेम्स के धर्मदर्शन में तीन बातें मुख्य हैं-.

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विश्वनारायण शास्त्री

विश्वनारायण शास्त्री संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अविनाशि के लिये उन्हें सन् 1987 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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विष्णु प्रभाकर

विष्णु प्रभाकर (२१ जून १९१२- ११ अप्रैल २००९) हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक थे जिन्होने अनेकों लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक तथा यात्रा संस्मरण लिखे। उनकी कृतियों में देशप्रेम, राष्ट्रवाद, तथा सामाजिक विकास मुख्य भाव हैं। .

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विष्णु सखाराम खांडेकर

विष्णु सखाराम खांडेकर मराठी साहित्यकार हैं। इन्हें 1974 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। उन्होंने उपन्यासों और कहानियों के अलावा नाटक, निबंध और आलोचनात्मक निंबंध भी लिखे। खांडेकर के ललित निबंध उनकी भाषा शैली के कारण काफी पसंद किए जाते हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ययाति के लिये उन्हें सन् १९६० में साहित्य अकादमी पुरस्कार (मराठी) से सम्मानित किया गया। .

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विसारणै कमीशन

विसारणै कमीशन तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार सा. कंदासामी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1998 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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विजय तेंडुलकर

विजय तेंडुलकर विजय तेंडुलकर (६ जनवरी १९२८ - १९ मई २००८) प्रसिद्ध मराठी नाटककार, लेखक, निबंधकार, फिल्म व टीवी पठकथालेखक, राजनैतिक पत्रकार और सामाजिक टीपकार थे। भारतीय नाट्य व साहित्य जगत में उनका उच्च स्थान रहा है। वे सिनेमा और टेलीविजन की दुनिया में पटकथा लेखक के रूप में भी पहचाने जाते हैं। .

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विजय सिंह पथिक

विजय सिंह पथिक उर्फ़ भूप सिंह गुर्जर (अंग्रेजी:Vijay Singh Pathik, जन्म: 27 फ़रवरी 1882, निधन: 28 मई 1954) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें राष्ट्रीय पथिक के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म बुलन्दशहर जिले के ग्राम गुठावली कलाँ के एक गुर्जर परिवार में हुआ था। उनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्दशहर स्थित मालागढ़ रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) थे जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी। पथिक जी के पिता हमीर सिंह गुर्जर को भी क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में सरकार ने गिरफ्तार किया था। पथिक जी पर उनकी माँ कमल कुमारी और परिवार की क्रान्तिकारी व देशभक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का बहुत गहरा असर पड़ा। युवावस्था में ही उनका सम्पर्क रास बिहारी बोस और शचीन्द्र नाथ सान्याल आदि क्रान्तिकारियों से हो गया था। 1915 के लाहौर षड्यन्त्र के बाद उन्होंने अपना असली नाम भूपसिंह गुर्जर से बदल कर विजयसिंह पथिक रख लिया था। मृत्यु पर्यन्त उन्हें इसी नाम से लोग जानते रहे। मोहनदास करमचंद गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन से बहुत पहले उन्होंने बिजौलिया किसान आंदोलन के नाम से किसानों में स्वतंत्रता के प्रति अलख जगाने का काम किया था। .

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विज्ञान कथा साहित्य

विज्ञान कथा, काल्पनिक साहित्य की ही वह विधा है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संभावित परिवर्तनों को लेकर उपजी मानवीय प्रतिक्रिया को कथात्मक अभिव्यक्ति देती है। मेरी शेली की 'द फ्रन्केनस्टआईन' पहली विज्ञान कथात्मक कृति मानी जाती है। अमेरिका और ब्रिटेन में विगत सदी में बेह्तरीन विज्ञान कथाएं लिखी गयी है- आइजक आजीमोव, आर्थर सी क्लार्क, रोबर्ट हेनलीन प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक रहे हैं। अब तीनों दिवंगत हैं। .

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वंगइन मैंधन

वंगइन मैंधन तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार अखिलन (पी. वी. अकिलंदम) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1963 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वुमेन विदआउट मैन

शहरमुश पर्सीपुर के उपन्यास पर आधारित फिल्म ‘वुमेन विदआउट मैन’ ईरान की फिल्म निर्देशिका निशात द्वारा निर्देशित की गई पहली फिल्म है। इसमें उन्होंने अपने देश ईरान की राजनीति को फिल्म का विषय बनाया है। यह फिल्म 1953 की ईरान की उन राजनीतिक स्थितियों को प्रदर्शित करती है, जिन्हें ब्रिटेन और अमेरिका ने अपने फायदे के लिए सृजित किया था और जिनकी वजह से ईरान की लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार का स्थान राजशाही ने ले लिया था। इसके लिए निशात को इस साल विंसी फिल्म महोत्सव में प्रतिष्ठित सिल्वर पुरस्कार प्रदान किया गया। इस फिल्म पर ईरान में प्रतिबंध लगा दिया गया है। .

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व्यासराय बल्लाल

व्यासराय बल्लाल कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बंडाय के लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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व्यंकटेश माडगूळकर

व्यंकटेश माडगूळकर मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सत्तांतर के लिये उन्हें सन् 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वृंदावनलाल वर्मा

वृन्दावनलाल वर्मा (०९ जनवरी, १८८९ - २३ फरवरी, १९६९) हिन्दी नाटककार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने एक तरफ प्रेमचंद की सामाजिक परंपरा को आगे बढ़ाया है तो दूसरी तरफ हिन्दी में ऐतिहासिक उपन्यास की धारा को उत्कर्ष तक पहुँचाया है। इतिहास, कला, पुरातत्व, मनोविज्ञान, मूर्तिकला और चित्रकला में भी इनकी विशेष रुचि रही। 'अपनी कहानी' में आपने अपने संघर्षमय जीवन की गाथा कही है। .

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वैरामुत्तु

वैरामुत्तु (வைரமுத்து) (जन्म: 13 1953 जुलाई) एक पुरस्कार विजेता तमिल कवि और गीतकार हैं। निड़लगल (1980) फिल्म से शुरूआत करते हुए तथा 'पोनमलई पोड़ुडु' के लिए बोल लिखते हुए, यथा जनवरी 2009 अब उनके नाम 5800 गीतों का श्रेय है।.

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वेद प्रकाश शर्मा

वेद प्रकाश शर्मा (Ved Prakash Sharma) (जन्म: १० जून १९५५ – १७ फ़रवरी २०१७) हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार थे। इन्होंने सस्ते और लोकप्रिय उपन्यासों की रचना की है। इनके 176 उपन्यास प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त इन्होंने खिलाडी श्रृंखला की फिल्मों की पटकथाएं भी लिखी। वर्दी वाला गुंडा वेद प्रकाश शर्मा का सफलतम थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की आजतक लगभग 8 करोड़ प्रतियाँ बिक चुकी हैं। भारत में जनसाधारण में लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में यह उपन्यास "क्लासिक" का दर्जा रखता है। १० जून, 1955 को मेरठ में जन्मे वेद प्रकाश शर्मा के पिता पं॰ मिश्रीलाल शर्मा मूलत: मुजफ्फरनगर जिले के बिहरा गांव के रहने वाले थे। वेद प्रकाश एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी प्राकृतिक-अप्राकृतिक मौत हो गई। 1962 में बड़े भाई की मौत हुई और उसी साल इतनी बारिश हुई कि किराए का मकान टूट-टाट गया। फिर गैंगरीन की वजह से पिता की एक टांग काटनी पड़ी। घर में कोई कमाने वाला नहीं था, सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई। जीवन और समाज को करीब से देखने वाले वेद प्रकाश की तीन बेटियां (करिश्मा, गरिमा और खुशबू) और उपन्यासकार बेटा शगुन शादीशुदा हैं। तुलसी पॉकेट बुक्स नामक प्रकाशन संस्थान भी इन्होंने शुरू किया था। .

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वेरुक्कु नीर

वेरुक्कु नीर तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार राजम कृष्णन् द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1973 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वॉल स्ट्रीट

न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज, जैसा कि वॉल स्ट्रीट से दिखता है वॉल स्ट्रीट का वर्तमान मानचित्र वॉल स्ट्रीट एक मार्ग है जो लोवर मैनहट्टन, न्यूयॉर्क सिटी, न्यूयॉर्क, USA में है। यह मार्ग ब्रॉडवे से पूर्व दिशा में ईस्ट नदी की ओर इस आर्थिक जिले के ऐतिहासिक केन्द्र से होते हुए साउथ स्ट्रीट तक जाता है। यह न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज का पहला स्थायी स्थल है; कुछ समय बाद वॉल स्ट्रीट, आसपास के भौगोलिक स्थल का नाम बन गया। वॉल स्ट्रीट, अमेरिकी वित्तीय उद्योग के "प्रभावशाली वित्तीय हितों" के लिए संक्षेपीकरण भी है (या एक लक्षणालंकार), जो न्यूयॉर्क शहर क्षेत्र में केंद्रित है। वॉल स्ट्रीट द्वारा बल प्रदत्त, न्यूयॉर्क सिटी दुनिया की वित्तीय राजधानी बनने के लिए लंदन के साथ होड़ लेती है और यह न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज, का गृह है, जो अपनी सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार पूंजीकरण के आधार पर दुनिया का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। कई प्रमुख अमेरिकी स्टॉक और अन्य केन्द्रों का मुख्यालय वॉल स्ट्रीट और आर्थिक जिले में है, जिसमें शामिल हैं NYSE, NASDAQ, AMEX, NYMEX और NYBOT.

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वोल्टेयर

वोल्टेयर वोल्टेयर (21 नवम्बर 1694 30 मई 1778) फ्रांस का बौद्धिक जागरण (Enlightenment) के युग का महान लेखक, नाटककार एवं दार्शनिक था। उसका वास्तविक नाम "फ़्रांस्वा-मैरी आहुए" (François-Marie Arouet) था। वह अपनी प्रत्युत्पन्नमति (wit), दार्शनिक भावना तथा नागरिक स्वतंत्रता (धर्म की स्वतंत्रता एवं मुक्त व्यापार) के समर्थन के लिये भी विख्यात है वोल्टेयर ने साहित्य की लगभग हर विधा में लेखन किया। उसने नाटक, कविता, उपन्यास, निबन्ध, ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक लेखन और बीस हजार से अधिक पत्र और पत्रक (pamphlet) लिखे। यद्यपि उसके समय में फ्रांस में अभिव्यक्ति पर तरह-तरह की बंदिशे थीं फिर भी वह सामाजिक सुधारों के पक्ष में खुलकर बोलता था। अपनी रचनाओं के माध्यम से वह रोमन कैथोलिक चर्च के कठमुल्लापन एवं अन्य फ्रांसीसी संस्थाओं की खुलकर खिल्ली उड़ाता था। बौद्धिक जागरण युग के अन्य हस्तियों (मांटेस्क्यू, जॉन लॉक, थॉमस हॉब्स, रूसो आदि) के साथ-साथ वोल्टेयर के कृतियों एवं विचारों का अमेरिकी क्रान्ति तथा फ्रांसीसी क्रान्ति के प्रमुख विचारकों पर गहरा असर पड़ा था। .

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वीनेश अंताणी

वीनेश अंताणी गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास धूँधभरी खींण के लिये उन्हें सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वीर टीकेन्द्रजित रोड

वीर टीकेन्द्रजित रोड मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार एच. गुनो सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1985 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य

वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य (१ अप्रैल, १९२४ - ६ अगस्त, १९९७) असमिया साहित्यकार थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास इयारुइंगम के लिये उन्हें सन् १९६१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया) से सम्मानित किया गया। इन्हें १९७९ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। समाजवादी विचारों से प्रेरित श्री भट्टाचार्य कहानीकार, कवि, निबंधकार और पत्रकार थे। वे साहित्य अकादमी, दिल्ली और असम साहित्य सभा के अध्यक्ष रहे। उन्होंने १९५० में संपादित असमी पत्रिका रामधेनु का संपादन कर असमिया साहित्य को नया मोड़ दिया। इनके चर्चित उपन्यासों इयारूंगम, मृत्युंजय, राजपथे, रिंगियाई, आई, प्रितपद, शतघ्नी, कालर हुमुनियाहहैं। इनके दो कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए, कलंग आजियो बोइ और सातसरी। .

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खना मिहिरेर ढिपि

खना मिहिरेर ढिपि बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार बाणी बसु द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ग़बन (उपन्यास)

---- गबन प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। ‘निर्मला’ के बाद ‘गबन’ प्रेमचंद का दूसरा यथार्थवादी उपन्यास है। कहना चाहिए कि यह उसके विकास की अगली कड़ी है। ग़बन का मूल विषय है - 'महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव'। ग़बन प्रेमचन्द के एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। इन्होंने समझौतापरस्त और महत्वाकांक्षा से पूर्ण मनोवृत्ति तथा पुलिस के चरित्र को बेबाकी से प्रस्तुत करते हुए कहानी को जीवंत बना दिया गया है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने पहली नारी समस्या को व्यापक भारतीय परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा है और उसे तत्कालीन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से जोड़कर देखा है। सामाजिक जीवन और कथा-साहित्य के लिए यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है। यह उपन्यास जीवन की असलियत की छानबीन अधिक गहराई से करता है, भ्रम को तोड़ता है। नए रास्ते तलाशने के लिए पाठक को नई प्रेरणा देता है। .

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गाब्रिएल दाँनुतस्यो

300px गाब्रिएल दाँनुतस्यो (Gabriele D'Annunzio; इतालवी उच्चारण:; 12 मार्च, 1863 – 01 मार्च 1938) इटली का लेखक, कवि, पत्रकार, नाटककार, तथा प्रथम विश्वयुद्ध का योद्धा त्था। १८८९ से १९१० तक इतालवी साहित्य में तथा १९१४ से १०२४ तक इटली के राजनीतिक जीवन में उसका प्रमुख स्थान था। उसको प्रायः इल वाटे (Il Vate .

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गाइड (उपन्यास)

गाइड अंग्रेजी भाषा के महान भारतीय उपन्यासकार आर के नारायण का उपन्यास है। यह आर के नारायण का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसे देश और विदेशों में जबरदस्त सराहना मिली है। उनकी अधिकतर रचनाओं की तरह गाइड भी मालगुडी पर आधारित है। मालगुडी एक काल्पनिक स्थान है। प्रायः इसे दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे।" इस उपन्यास में राजू नामक एक सामान्य पथप्रदर्शक (टूर गाइड) के आध्यात्मिक गुरू बनने की कहानी है। .

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गजानन त्र्यंबक माडखोलकर

गजानन त्र्यंबक माडखोलकर (28 दिसम्बर, 1900 - 27 नवम्बर, 1976)), मराठी उपन्यासकार, आलोचक तथा पत्रकार थे। .

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गजेन्द्र कुमार मित्र

गजेन्द्र कुमार मित्र बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कोलकातार काछेई के लिये उन्हें सन् 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गवाचे अरथ

गवाचे अरथ पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार निरंजन सिंह तसनीम द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1999 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता हिंदी उपन्यासकार धर्मवीर भारती के शुरुआती दौर के और सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक है। यह सबसे पहले १९५९ में प्रकाशित हुई थी। इसमें प्रेम के अव्यक्त और अलौकिक रूप का अन्यतम चित्रण है। सजिल्द और अजिल्द को मिलाकर इस उपन्यास के एक सौ से ज्यादा संस्करण छप चुके हैं। पात्रों के चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। .

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गुन्नर गुन्नर्सन

गुन्नर गुन्नर्सन (18 मई 1889 – 21 नवम्बर 1975) डेनिश भाषा के उपन्यासकार, नाटककार, कवि तथा कहानी लेखक थे। इनका जन्म आइसलैंड में १८८९ ई. में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। १८ वर्ष की आयु में लेखक बनने की बलवती इच्छा लेकर डेनमार्क गए और कठिन संघर्ष के बाद डेनिश भाषा के अच्छे लेखक के रूप में स्थान बनाने में सफल हुए। १९३९ ई. में आइसलैंड लौट आए। इनकी रचनाओं में आइसलैंड की सामान्य जनता के दु:ख सुख का बड़ा ही सुंदर चित्रण हुआ है। इनमें अपने देश के प्रति अनुराग है और वहां के रहनेवालों के प्रति संमान का भाव। चरित्रों के आंतरिक भावों का बड़ा सूक्ष्म अध्ययन इनकी रचनाओं में मिलता है। इनकी मुख्य रचनाएँ हैं- ‘द स्टोरी ऑव द बॉर्ग फेमिली’ (Borgslaegtens Historie) (1912-14); ‘स्वोर्न ब्रदर्स’ (Edbrodre) (१९१८); ‘सेवेन डेज़ डार्कनेस’ (Salige de enfoldige) (१९२०); ‘द चर्च ऑन द माउंटेन’ (Kirket par Bjerget) (१९२३-२८)। श्रेणी:डेनिश साहित्यकार.

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गुरसागरम्

गुरसागरम् मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार ओ. वी. विजयन् द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गुलाम नबी गौहर

गुलाम नबी गौहर कश्मीरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास पुन–ते–पाप के लिये उन्हें सन् 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गुलिवर्स ट्रेवल्स

गुलिवर्स ट्रेवल्स अधिकारिक रूप से ट्रेवल्स इनटू सेवरल रिमोट नेशन्स ऑफ़ द वर्ल्ड, इन फॉर पार्ट्स. लेम्यूल गुलिवर के द्वारा, जो पहले एक सर्जन था, बाद में कई जहाज़ों का कप्तान बन गया।' (1726, 1735 में संशोधित), एक एंग्लो-आयरिश लेखक और पादरी जोनाथन स्विफ्ट के द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है। यह मानव के स्वभाव पर तो व्यंग्य करता ही है, साथ ही अपने आप में "यात्रियों की कहानियों" की एक उप-साहित्यिक शैली की पैरोडी भी है। ये स्विफ्ट का जाना माना, काफी लंबा कार्य है और अंग्रेजी साहित्य का एक क्लासिक उपन्यास है। यह किताब प्रकाशित किये जाने के तुरंत बाद काफी लोकप्रिय हो गयी, (जॉन गे ने 1726 में स्विफ्ट को लिखे एक पत्र में कहा कि "इसे सार्वभौमिक रूप से केबिनेट काउन्सिल से लेकर नर्सरी तक हर कोई पढ़ रहा है"); तब से, इसकी छपाई का काम कभी भी नहीं रुका.

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गुस्ताव फ्लोवेर

युवावस्था में गुस्ताव फ्लोवेर गुस्ताव फ्लोवेर (Gustave Flaubert; फ्रांसीसी उच्चारण:; 12 दिसम्बर 1821 – 8 मई 1880)) फ्रेंच उपन्यासकार थे। .

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ग्रेट एक्स्पेक्टैशन

ग्रेट एक्स्पेक्टैशन चार्ल्स डिकेंस का एक उपन्यास है। इसे सबसे पहले 1 दिसम्बर 1860 से 3 अगस्त 1861 तक ऑल द इयर राउंड प्रकाशन की एक श्रृंखला के रूप में प्रकाशित किया गया। इसे 250 से अधिक बार स्टेज और स्क्रीन के लिए चुना गया है। ग्रेट एक्स्पेक्टैशन बिल्दुंग्सरोमन (bildungsroman) की शैली में लिखा गया है, जो अपनी परिपक्वता की खोज में किसी पुरुष या महिला की कहानी का अनुसरण करती है, आम तौर पर यह बचपन से शुरू होती है और अंततः मुख्य पात्र की वयस्कता में समाप्त होती है। ग्रेट एक्स्पेक्टैशन एक अनाथ पिप की कहानी है, जो उसके जीवन के बारे में लिखी गयी है, जो एक जेंटलमेन बनने का प्रयास कर रहा है। उपन्यास को डिकेंस की अर्द्ध-आत्मकथा भी माना जा सकता है, उनके अधिकांश काम की तरह वे इस उपन्यास में भी जीवन और लोगों के अनुभव का चित्रण कर रहे हैं। ग्रेट एक्स्पेक्टैशन का मुख्य कथानक 1812 के क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू होता है, जब नायक लगभग सात साल का है (जो डिकेंस के जन्म का साल भी है) और यह 1840 की सर्दियों तक जाता है। .

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गौरीदत्त

पंडित गौरीदत्त (1836 - 8 फ़रवरी 1906), देवनागरी के प्रथम प्रचारक व अनन्य भक्त थे। बच्चों को नागरी लिपि सिखाने के अलावा आप गली-गली में घूमकर उर्दू, फारसी और अंग्रेजी की जगह हिंदी और देवनागरी लिपि के प्रयोग की प्रेरणा दिया करते थे। कुछ दिन बाद आपने मेरठ में ‘नागरी प्रचारिणी सभा‘ की स्थापना भी की और सन् 1894 में उसकी ओर से सरकार को इस आशय का एक ज्ञापन दिया कि अदालतों में नागरी-लिपि को स्थान मिलना चाहिए। हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में पंडित गौरीदत्त जी ने जो उल्लेखनीय कार्य किया था उससे उनकी ध्येयनिष्ठा और कार्य-कुशलता का परिचय मिलता है। नागरी लिपि परिषद ने उनके सम्मान में उनके नाम पर 'गौरीदत्त नागरी सेवी सम्मान' आरम्भ किया है। .

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गोदान (प्रेमचंद का उपन्यास)

गोदान, प्रेमचन्द का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। कुछ लोग इसे उनकी सर्वोत्तम कृति भी मानते हैं। इसका प्रकाशन १९३६ ई० में हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई द्वारा किया गया था। इसमें भारतीय ग्राम समाज एवं परिवेश का सजीव चित्रण है। गोदान ग्राम्य जीवन और कृषि संस्कृति का महाकाव्य है। इसमें प्रगतिवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद (साम्यवाद) का पूर्ण परिप्रेक्ष्य में चित्रण हुआ है। गोदान हिंदी के उपन्यास-साहित्य के विकास का उज्वलतम प्रकाशस्तंभ है। गोदान के नायक और नायिका होरी और धनिया के परिवार के रूप में हम भारत की एक विशेष संस्कृति को सजीव और साकार पाते हैं, ऐसी संस्कृति जो अब समाप्त हो रही है या हो जाने को है, फिर भी जिसमें भारत की मिट्टी की सोंधी सुबास भरी है। प्रेमचंद ने इसे अमर बना दिया है। .

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गोदान (बहुविकल्पी)

* गोदान प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है।.

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गोपल्लपुरत्त मक्कळ्

गोपल्लपुरत्त मक्कळ् तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार कि. राजनारायणन् द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1991 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गोपाल राम गहमरी

गोपाल राम गहमरी (1866-1946) हिंदी के महान सेवक, उपन्यासकार तथा पत्रकार थे। वे 38 वर्षों तक बिना किसी सहयोग के 'जासूस' नामक पत्रिका निकालते रहे, २०० से अधिक उपन्यास लिखे, सैकड़ों कहानियों के अनुवाद किए, यहां तक कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 'चित्रागंदा' काव्य का भी (पहली बार हिंदी अनुवाद गहमरीजी द्वारा किया गया) अनुवाद किए। वह ऐसे लेखक थे, जिन्होंने हिंदी की अहर्निश सेवा की, लोगों को हिंदी पढऩे को उत्साहित किया, ऐसी रचनाओं का सृजन करते रहे कि लोगों ने हिंदी सीखी। यदि देवकीनंदन खत्री के बाद किसी दूसरे लेखक की कृतियों को पढ़ने के लिए गैरहिंदी भाषियों ने हिंदी सीखी तो वे गोपालराम गहमरी ही थे। गहमरी ने प्रारंभ में नाटकों का अनुवाद किया, फिर उपन्यासों का अनुवाद करने लगे। बंगला से हिन्दी में किया गया इनका अनुवाद तब बहुत प्रामाणिक माना गया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी गोपालराम गहमरी ने कविताएं, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध और साहित्य की विविध विधाओं में लेखन किया, लेकिन प्रसिद्धि मिली जासूसी उपन्यासों के क्षेत्र में। 'जासूस' नामक एक मासिक पत्रिका निकाली। इसके लिए इन्हें प्रायः एक उपन्यास हर महीने लिखना पड़ा। 200 से ज्यादा जासूसी उपन्यास गहमरीजी ने लिखे। 'अदभुत लाश', 'बेकसूर की फांसी', 'सरकती लाश', 'डबल जासूस', 'भयंकर चोरी', 'खूनी की खोज' तथा 'गुप्तभेद' इनके प्रमुख उपन्यास हैं। जासूसी उपन्यास-लेखन की जिस परंपरा को गहमरी ने जन्म दिया, उसका हिन्दी में विकास ही न हो सका। .

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गोपालकृष्ण पै

गोपालकृष्ण पै कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास स्वप्न सारस्वत के लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गोपीनाथ मोहंती

गोपीनाथ मोहंती एक ओड़िया साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अमृतरसंतान के लिये उन्हें सन् १९५५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (ओड़िया) से सम्मानित किया गया। इन्हें १९७३ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इन्हें भारत सरकार द्वारा १९८१ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये उड़ीसा से हैं। .

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गोवरघंटे यात्राकळ्

गोवरघंटे यात्राकळ् मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार आनंद (पी. सच्चिदानंदन) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1997 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गोविन्द माल्ही

गोविन्द माल्ही सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास प्यार जी प्यास के लिये उन्हें सन् 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गोविन्द मिश्र

गोविन्द मिश्र (जन्म- १ अगस्त १९३९) हिन्दी के जाने-माने कवि और लेखक हैं। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, भारतीय भाषा परिषद कलकत्ता, साहित्य अकादमी दिल्ली तथा व्यास सम्मान द्वारा गोविन्द मिश्र को उनकी साहित्य सेवाओं के लिए सम्मानित किया जा चुका है। अभी तक उनके १० उपन्यास और १२ कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त यात्रा-वृत्तांत, बाल साहित्य, साहित्यिक निबंध और कविता-संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। अनेक विश्वविद्यालयों में उनकी रचनाओं पर शोध हुए हैं। वे पाठ्यक्रम की पुस्तकों में शामिल किए गए हैं, रंगमंच पर उनकी रचनाओं का मंचन किया गया है और टीवी धारावाहिकों में भी उनकी रचनाओं पर चलचित्र प्रस्तुत किए गए हैं। .

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गीता नागभूषण

गीता नागभूषण कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास बदुकु के लिये उन्हें सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ऑल ब्राइट प्लेसेस

ऑल ब्राइट प्लेसेस (All Bright Places), जेनिफर निवेन का एक युवा वयस्क उपन्यास है। यह उपन्यास पहली बार 6 जनवरी 2015 को क्नोप प्रकाशन समूह के माध्यम से प्रकाशित हुआ था और निवेन की पहली युवा वयस्क कृति है। इसी पर आधारित एक फिल्म निर्मित हो रही है जिसमें एले फैनिंग ने अभिनय किया है। यह फिल्म 2018 में रिलीज होगी। .

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ओ. पी. शर्मा सारथी

ओ. पी.

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ओ. वी. विजयन्

ओ. वी.

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ओमप्रकाश कश्‍यप

ओमप्रकाश कश्‍यप (जन्म: १९५९) हिन्‍दी के प्रतिष्‍ठित बालसाहित्‍यकार हैं। बच्‍चों के लिए उनके कई कहानी-संग्रह और उपन्यास प्रकाशित हैं। .

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ओम् णमो

ओम् णमो कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार शान्तिनाथ कुबेरप्पा देसाई द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2000 में कन्नड़ भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ओय्यारत्तु चंतु मेनोन

ओय्यारत्तु चंतु मेनोन (१८४६-१८९९) मलयालम के उपन्यासकार थे। उनका जन्म मालाबार में हुआ था। तत्कालीन मद्रास प्रदेश में न्यायाधीश का काम करते थे। उनका 'इदुंलेखा' उपन्यास अब भी मलयालम के उच्चतम उपन्यासों में से एक है। यह एक सामाजिक सुखांत उपन्यास है जिसमें वह उन मूढ़ एवं तुच्छ रीति रिवाजों और व्यवहारों का वर्णन करता है जो आदर्श के रूप में नंबूदिरियों और उच्च वर्ग के नायरों में प्रचलित थे। नायक एवं नायिका माधवन और इंदुलेखा प्रबुद्ध नवीन पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो जीवन के मानवीय मूल्यों का समर्थन करते हैं। सामाजिक पृष्ठभूमि और पात्रों का चित्रण ओज, मर्मज्ञता एवं शुद्धता से किया गया है। चंतुमेनोन ने 'शारदा' नाम का दूसरा उपन्यास लिखना प्रारंभ किया था किंतु अभाग्यवश इसे पूरा करने के पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गई। इसमें विश्व के न्यायालयों का सजीव चित्रण किया गया है और उसमे अनेक स्मरणीय पात्र मिलते हैं। श्रेणी:मलयालम साहित्यकार.

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ओरु देशतिण्टे तथा

ओरु देशतिण्टे तथा मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार एस. के. पोट्टेक्काट द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ओरु कावेरियइ पोला

ओरु कावेरियइ पोला तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार त्रिपुरसुंदरी ‘लक्ष्मी’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1984 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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ओकिम ग्विन

ओकिम ग्विन नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सूनाखारी के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आझो

आझो सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हरि मोटवाणी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1995 में सिन्धी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आदर्शोन्मुख यथार्थवाद

इस तस्वीर का प्रतिनिधित्व के बजाय वास्तविकता को स्वीकार आदर्श बनने की कोशिश कर समय बर्बाद नहीं है और एक यथार्थवादी होना आदर्शोन्मुख यथार्थवाद (Idealistic Realism) आदर्शवाद तथा यथार्थवाद का समन्वय करने वाली विचारधारा है। आदर्शवाद और यथार्थवाद बीसवीं शती के साहित्य की दो प्रमुख विचार धाराएँ थीं। आदर्शवाद में सत्य की अवहेलना या उस पर विजय प्राप्त कर के आदर्शवाद की स्थापना की जाती थी। जबकि यथार्थवाद में आदर्श का पालन नहीं किया जाता था, या उसका ध्यान नहीं रखा जाता था। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद में यथार्थ का चित्रण करते हुए भी आदर्श की स्थापना पर बल दिया जाता था। इस प्रवृत्ति की ओर प्रथम महत्त्वपूर्ण संकेत प्रेमचन्द का है। उन्होंने कथा साहित्य को यथार्थवादी रखते हुए भी आदर्शोन्मुख बनाने की प्रेरणा दी और स्वतः अपने उपन्यासों ऑर कहनियों में इस प्रवृत्ति को जीवन्त रूप में अंकित किया। उनका उपन्यास प्रेमाश्रम इसी प्रकार की कृति है। पर प्रेमचन्द के बाद इस साहित्यिक विचारधारा का आगे विकास प्रायः नहीं हुआ। इस चिंतन पद्धति को कदचित कलात्मक स्तर पर कृत्रिम समझकर छोड दिया गया। प्रेमचन्द कला के क्षेत्र में यथार्थवादी होते हुए भी सन्देश की दृष्टि से आदर्शवादी हँ। आदर्श प्रतिष्ठा करना उनके सभी उपन्यासों का लक्ष्य हॅ। ऐसा करने में चाहे चरित्र की स्वाभाविकता नष्ट हो जाय, किन्तु वह अपने सभी पात्रों को आदर्श तक पहुँचाते अवश्य है। प्रेमचन्द की कला का चर्मोत्कर्ष उनके अन्तिम उपन्यास गोदान में दिखाई पडता हॅ। "गोदान" लिखने से पहले प्रेमचन्द आदर्शोन्मुख यथार्थवादी थे, परन्तु "गोदान" में उनका आदर्शोन्मुख यथार्थवाद जवाब दे गया है। प्रेमचंद इस विचारधारा के प्रमुख लेखक थे। .

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आनन्द मठ

आनन्द मठ के रचनाकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय। आनन्द मठ बांग्ला भाषा का एक उपन्यास है जिसकी रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने १८८२ में की थी। इस कृति का भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और स्वतन्त्रता के क्रान्तिकारियों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। भारत का राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् इसी उपन्यास से लिया गया है। आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है। .

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आनंद (पी. सच्चिदानंदन)

आनंद (पी. सच्चिदानंदन) मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास गोवरघंटे यात्राकळ् के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आनंद रतन यादव

आनंद रतन यादव मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास झोंबी के लिये उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आमि ओ बनबिहारी

आमि ओ बनबिहारी बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार संदीपन चट्टोपाध्याय द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आम्रपाली (नृत्यांगना)

आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली के वृज्जिसंघ की इतिहास प्रसिद्ध लिच्छवि राजनृत्यांगना थी। इनका एक नाम 'अम्बपाली' या 'अम्बपालिका' भी है। आम्रपाली अत्यन्त सुन्दर थी और कहते हैं जो भी उसे एक बार देख लेता वह उसपर मुग्ध हो जाता था। अजातशत्रु उसके प्रेमियों में था और उस समय के उपलब्ध सहित्य में अजातशत्रु के पिता बिंबसार को भी गुप्त रूप से उसका प्रणयार्थी बताया गया है। आम्रपाली को लेकर भारतीय भाषाओं में बहुत से काव्य, नाटक और उपन्यास लिखे गए हैं। अंबपाली बुद्ध के प्रभाव से उनकी शिष्या हुई और उसने अनेक प्रकार के दान से बौद्ध संघ का महत् उपकार किया। उस युग में राजनर्तकी का पद बड़ा गौरवपूर्ण और सम्मानित माना जाता था। साधारण जन तो उस तक पहुँच भी नहीं सकते थे। समाज के उच्च वर्ग के लोग भी उसके कृपाकटाक्ष के लिए लालायित रहते थे। कहते हैं, भगवान तथागत ने भी उसे "आर्या अंबा" कहकर संबोधित किया था तथा उसका आतिथ्य ग्रहण किया था। धम्मसंघ में पहले भिक्षुणियाँ नहीं ली जाती थीं, यशोधरा को भी बुद्ध ने भिक्षुणी बनाने से मना कर दिया था, किंतु आम्रपाली की श्रद्धा, भक्ति और मन की विरक्ति से प्रभावित होकर नारियों को भी उन्होंने संघ में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया। .

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आर के नारायण

आर के नारायण (अक्टूबर 10, 1906- मई 13, 2001) का पूरा नाम रासीपुरम कृष्णस्वामी अय्यर नारायणस्वामी था। नारायण अंग्रेजी साहित्य के भारतीय लेखकों में तीन सबसे महान् उपन्यासकारों में गिने जाते हैं। मुल्कराज आनंद तथा राजा राव के साथ उनका नाम भारतीय अंग्रेजी लेखन के आरंभिक समय में 'बृहत्त्रयी' के रूप में प्रसिद्ध है। मुख्यतः उपन्यास तथा कहानी विधा को अपनाते हुए उन्होंने विभिन्न स्तरों तथा रूपों में मानवीय उत्थान-पतन की गाथा को अभिव्यक्त करते हुए अपने गंभीर यथार्थवाद के माध्यम से रचनात्मक कीर्तिमान स्थापित किया है। .

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आरसी–आ–आडो

आरसी–आ–आडो सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार कला प्रकाश द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1994 में सिन्धी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आर्थर कॉनन डॉयल

सर आर्थर इग्नाशियस कॉनन डॉयल, डीएल (22 मई 1859 - जुलाई 7, 1930) एक स्कॉटिश चिकित्सक और लेखक थे जिन्हें अधिकतर जासूस शरलॉक होम्स की उनकी कहानियों (इन कहानियों को आम तौर पर काल्पनिक अपराध कथा के क्षेत्र में एक प्रमुख नवप्रवर्तन के तौर पर देखा जाता है) और प्रोफ़ेसर चैलेंजर के साहसिक कारनामों के लिए जाना जाता है। वह विज्ञान कल्पना कथाएँ, ऐतिहासिक उपन्यासों, नाटकों और रोमांस, कविता और विभिन्न कल्पना साहित्य के एक विपुल लेखक थे। वे एक सफल लेखक थे जिनकी अन्य रचनाओं में काल्पनिक विज्ञान कथाएं, ऐतिहासिक उपन्यास, नाटक एवं रोमांस, कविता और गैर-काल्पनिक कहानियां शामिल हैं। .

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आरोग्य निकेतन

आरोग्य निकेतन बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार ताराशंकर बंद्योपाध्याय द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1956 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आल्हायुडे पेन्नमाक्कल

आल्हायुडे पेन्नमाक्कल मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार सारा जोसेफ़ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आलै–ओसै

आलै–ओसै तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार आर. कृष्णमूर्ति ‘कल्कि’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1956 में तमिल भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आशा बगे

आशा बगे मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास भूमि के लिये उन्हें सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आशापूर्णा देवी

आशापूर्णा देवी (बांग्ला: আশাপূর্ণা দেবী, 8 जनवरी 1909-13 जुलाई 1995) भारत से बांग्ला भाषा की कवयित्री और उपन्यासकार थीं, जिन्होंने 13 वर्ष की अवस्था से लेखन प्रारम्भ किया और आजीवन साहित्य रचना से जुड़ीं रहीं। गृहस्थ जीवन के सारे दायित्व को निभाते हुए उन्होंने लगभग दो सौ कृतियाँ लिखीं, जिनमें से अनेक कृतियों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके सृजन में नारी जीवन के विभिन्न पक्ष, पारिवारिक जीवन की समस्यायें, समाज की कुंठा और लिप्सा अत्यंत पैनेपन के साथ उजागर हुई हैं। उनकी कृतियों में नारी का वयक्ति-स्वातन्त्र्य और उसकी महिमा नई दीप्ति के साथ मुखरित हुई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं स्वर्णलता, प्रथम प्रतिश्रुति, प्रेम और प्रयोजन, बकुलकथा, गाछे पाता नील, जल, आगुन आदि। उन्हें 1976 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली वे पहली महिला हैं। .

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आशीर्वादर रंग

आशीर्वादर रंग असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार अरुण शर्मा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1998 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आस्ट्रियाई साहित्य

जर्मन साहित्य से मूल का नाता होते हुए भी आस्ट्रियन साहित्य की निजी जातिगत विशेषताएँ हैं; जिनके निरूपण में आस्ट्रिया की भौगोलिक तथा ऐतिहासिक परिस्थितियों के अतिरिक्त काउंटर रिफ़ार्मेशन (16वीं शताब्दी के प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के सुधारवादी आंदोलन के विरुद्ध यूरोप में ईसाई धर्म के कैथॉलिक संप्रदाय के पुररुत्थान के लिए हुआ आंदोलन) और पड़ासी देशों से घनिष्ठ, किंतु विद्वेषपूर्ण संबंधों का भी हाथ रहा। इसके साथ-साथ आस्ट्रिया पर इतालीय तथा स्पेनी संस्कृतियों का भी गहरा प्रभाव पड़ा। फलस्वरूप यह देश एक अति अलंकृत साहित्य एवं संस्कृति का केंद्र बन गया। काउंटर रिफ़र्मेशन काल में वीनीज़ जनता का राष्ट्रीय स्वभाव एवं मनोवृत्तियाँ सजग होकर निखर आई थीं। इस चेतना ने आस्ट्रियाई साहित्य के जर्मन चोले को उतार फेंका। भावुक, हास्यप्रिय एवं सौंदर्यप्रेमी वोनीज़ जनता प्रकृतिस, संगीत तथा सभी प्रकार की दर्शनीय भव्यता की पुजारी है। उसकी कलादृष्टि बहुत पैनी है। जीवन की दु:खदायी परिस्थितियों से वह दूर भागती है। उसके आकर्षण और तन्मयता के केंद्र हैं जीवन के सुखद राग रंग। आत्मा परमात्मा, जीवन मरण, लोक परलोक के गंभीर दार्शनिक विवेचन में वह विरक्त है। फिर भी वह अतिशयोक्ति से दूर रहकर समन्वय और संतुलन में आस्था रखती है। प्रथम महायुद्ध के पूर्व और उपरांत जीवन के प्रति यह घोर आसक्ति आस्ट्रिया के साहित्य में प्रवाहित थी, किंतु द्वितीय महायुद्ध ने उसे बहुत कुछ चकित और कुंठित कर दिया है। फिर भी आस्ट्रियाई साहित्य आज तक भी उदारमना और मानवतावादी है। मध्ययुग में आस्ट्रिया के कैरिंथिया और स्टायर प्रदेशों में भजन और वीरकाव्य साहित्य में प्रमुख रहे। वीरकाव्य को विएना के राजदरबार में प्रश्रय मिला। किंतु काव्य दरबारी नहीं हुआ। मध्यकालीन राष्ट्रीय महाकाव्यों के निर्माण में आस्ट्रिया प्रमुख के साथ-साथ स्टायर तथा टीरोल प्रदेशों ने भी विशेष योग दिया। वाल्तेयर फ्ऱॉन डेयर फ़ोगलवीड और नीथार्ट इस युग के महारथी महाकाव्यकार हुए। मध्ययुगीन महाकाव्य के काल को सम्राट् माक्सीमिलियन प्रथम (मृत्यु सन्‌ 1519 ई.) ने अनावश्यक रूप से विलंबित किया, यद्यपि साहित्य में मानवतावाद की चेतना जगाने का श्रेय भी उसी को है। मध्ययुग का अंत होते न होते आस्ट्रियाई साहित्य पर यथार्थवाद और व्यंग्य का भी रंग चढ़ने लगा था। निरंतर धार्मिक संघर्षों, आंतरिक तथा विदेशी राजनीतिक कठिनाइयों के कारण आस्ट्रियाई साहित्य में निष्क्रियता के एक दीर्घयुग का सूत्रपात हुआ। तत्पश्चात्‌ अलंकृत शैली के युग ने जन्म लिया जो दक्षिण जर्मनी की देन थी और जो साहित्य, स्थापत्य, मूर्ति, चित्र, संगीत आदि सभी ललित कलाओं पर छा गई। धार्मिक क्षेत्र में यह जेसुइट्स की प्रभुता का युग था और राजनीतिक क्षेत्र में सम्राटों के कट्टर स्वेच्छाचारी शासन का काल। यह स्थिति स्पेन के प्रभाव के परिणामस्वरूप हुई। नाटक पर इतालीय प्रभाव पड़ा जो 19 वीं शताब्दी तक रहा। इसी प्रभाव के कारण आस्ट्रियाई नाटक प्रथम बार अपने साहित्यिक रूप में उभरकर आया। 18वीं शताब्दी के मध्य में आफ़क्लेयरुंग (ज्ञानोदय) आंदोलन आस्ट्रिया में प्रविष्ट हुआ, जिसने उत्तरी और दक्षिणी जर्मनी के काउंटर रिफ़र्मेंशन से चले आए साहित्यिक मतभेदों को कम किया। इस समन्वयवादी प्रवृत्ति का ऐतिहासिक प्रतिनिधि ज़ोननफैल्स (सन्‌ 1733-1817 ई.) है, जिसके साहित्य में स्थायी तत्व का अभाव होते हुए भी उसकी सदाशयता महत्वपूर्ण है। इस आंदोलन का एक अन्य महत्वपूर्ण परिणाम सन्‌ 1776 ई. में 'बुर्ग थियेटर' की स्थापना है जिसका प्रसिद्ध नाटककार कॉलिन हुआ। आस्ट्रियाई साहित्य का स्वर्ण युग 'फ़ारम्येर्ज़' (रोमानी) आंदोलन से प्रारंभ हुआ जिसके प्रवर्तक श्लेगेल बंधु हैं। यह रोमानी आंदोलन अंगेजी तथा अन्यान्य यूरोपीय साहित्यों में बाद को शुरू हुआ। बानर्नफ़ेल्ड, रैमंड, नैस्ट्राय, ग्रुइन, लेनाफ़, स्टल्ज़हामर आदि इस युग के अन्य मान्य लेखक हैं। स्टिफ़लर (सन्‌ 1868 ई.) और विश्वविद्यालय ग्रिलपार्ज़र (सन्‌ 1872 ई.) रोमानी युग तथा आनेवाले स्वाभाविक उदारतावादी युग को मिलानेवाली कड़ी थे। आस्ट्रिया में प्रवसित जर्मन हैबल, लाउबे, बिलब्रांड तथा आस्ट्रियाई क्विन व्यर्गर, शीडलर, हामरलिंग, एबनेयर, ऐशिनबाख़, सार, रोज़ेग्येर, आज़िनग्रूबर आदि स्वाभाविक उदारतावादी प्रवृत्ति के प्रमुख लेखक हुए। आधुनिक आस्ट्रियाई साहित्य का प्रादुर्भाव नवरोमानी प्रवृत्ति को लेकर सन्‌ 1880 ई. में हुआ। इस नवीन प्रवृत्ति का प्राबल्य सन्‌ 1900 ई. तक ही रहा, किंतु इस युग ने सर्वतोमुखी प्रतिभासंपन्न महान्‌ लेखक हेयरमान ब्हार को जन्म दिया। सन्‌ 1900 से 1919 ई. तक यथार्थवाद तथा रोमांसवाद के समन्वय का युग रहा। सन्‌ 1919 ई. में अभिव्यक्तिवाद का प्रादुर्भाव हुआ। पूर्वोक्त तीनों प्रवृत्तियाँ समकालीन जर्मन साहित्य से प्रभावित थीं। किंतु आस्ट्रियाई यथार्थवाद सहज और सौम्य था, जर्मन यथार्थवादी होल्ज़ तथा श्लाफ़ के साहित्य की भांति उग्र नहीं है। आस्टिट्रयाई गीतिकाव्य के 'प्रौढ़ आधुनिक' कवियों में ह्यूगो हाफ़मांसठाल सर्वश्रेष्ठ गीतिकार हुए। यह राइनलैंडर स्टीफ़न ग्यार्ग (सन्‌ 1809-1902 ई.) प्रणीत उग्र यथार्थवाद के विरोधी स्कूल के प्रमुख कवि थे। आंग्ल कवि स्विनबर्न से इनकी तुलना की जा सकती है। दिन-प्रति-दिन के जीवन के प्रति आभिजात्यसुलभ उदासीनता, जटिल असामान्य आध्यात्मिक तत्वज्ञान की प्राप्ति के लिए व्याकुल अधीरता और सूक्ष्म सौंदर्य की खोज इनके काव्य की विशेषताएँ हैं। यह भव्य कल्पना एवं संपन्न भाषा के धनी थे। अपनी शैली के यह राजा थे। सम्यक्‌ दृष्टि से इनकी तुलना हिंदी के महान्‌ कवि श्री सुमित्रानंदन पंत से की जा सकती है। इनसे प्रभावित गीतिकारों में स्टीफ़ेन ज्विग, ब्लाडीमीर, हार्टलीब, हांस फ्लूलर, अल्फ्रडे गुडवाल्ड, ओटोहांसर, फ़ेलिक्स ब्राउन, पाउल व्यर्टहाइमर, मार्क्स मैल और भावोन्मादी कवि आंटोन वील्डगांस सुप्रसिद्ध हैं। अभिव्यक्तिवादी वर्ग के अल्बर्ट ऐहरेंस्टीन, फ्रांज व्यर्फ़ल, ग्योर्ग, ट्राक्ल कार्ल शासलाइटनर, फ्रेड्रिख श्वेफ़ोग्ल आदि कवियों ने जहां छंदों के बंधनों और तर्क की कारा को तोड़ा, वहां समस्त विश्व और मानवता के प्रति अपने काव्य में असीम प्रेम को अभिव्यक्त किया, वाल्ट ह्विटमैन तथा फ्रांसीसी सर्वस्वीकृतिवादियों की भांति प्रबल व्यंग्यकार कवि कार्ल क्राउस, चित्रकार कवि यूरिल बिर्नबाउम, श्रमिक कवि आलफ़ोन्ज़ पैट्शील्ड और पीटर आल्टेनब्यर्ग (जिसके लघु 'गीतगद्य' अनिर्वचनीय सौंदर्य तथा बालसुलभ बुद्धिमत्ता से ओतप्रोत हैं और जो अपने जीवन और कला में अत्यंत मौलिक भी हैं-'युगवाणी' के गीतगद्यकार पंत जी के समान ही) के काव्य वस्तुचिंतन में पूर्वोक्त कविसमूह से बहुत समानता मिलती है। पूर्वोक्त वादों से स्वतंत्र अस्तित्व रखनेवाले, किंतु पुराने रोमांसवादियों के अनुयायी कवियों में रिचर्ड क्रालिक, कार्ल फ़ान गिंज़के, रिचर्ड शाकल, धार्मिक कवयित्री ऐनरिका, हांडिल माज़ेटी, श्रीमती ऐरिका स्पान राइनिश और टिरोलीज़ कवि आर्थर वालपाख़, कार्ल डोलागो तथा हाइनरिश शूलर्न महत्वपूर्ण हैं। स्वाभाविकतावादी उपन्यासकारों में आर्थर श्नित्ज़लर (सन्‌ 1862-1931 ई.) तथा जैकब वासनमान (सन्‌ 1873-1934 ई.) अद्वितीय और अमर हैं। महानगरों का आधुनिक जीवन ही उनकी कथावस्तु है। किंतु जहां श्नित्ज़लर मात्र व्यक्तिगत समस्याओं का कलाकार था, वहां वासनमान सामाजिक प्रश्नों का भी चितेरा है। आस्ट्रियाई उपन्यास का दूसरा सन्‌ 1908 ई. श्नित्ज़लर के विरोध में 'केलयार्ड' आंदोलन के रूप में उठा। इस वर्ग के उपन्यासकारों ने नगरों से अपनी दृष्टि हटाकर कस्बों और ग्रामों में रहनेवाले जनसाधारण पर केंद्रित की। स्टायर प्रांत का निवासी रोडाल्फ़ हांस बार्ट्‌श इस नवीन दल का महान्‌ उपन्यासकार हुआ। कविश्रेष्ठ हाफ़मांसठाल के समान ही बार्ट्‌श भी प्रचुर कल्पना और भव्य शैली का स्वामी था, प्राकृतिक दृश्यों के शब्दचित्रांकन में तो यह उपन्यासकार आस्ट्रियाई साहित्य में अनुपम है। घोर स्वाभाविकतावादियों के कारण आस्ट्रिया में ऐतिहासिक उपन्यास अनाथ रहा। परंतु प्रथम महायुद्ध से किंचित्‌ पहले दार्शनिक लेखकद्वय, ईविन कोलबनहेयर तथा ऐमिल लूका ने इस विषय पर अपनी लेखनी उठाई। विचारों की गहराई, जगमगाती, चित्रात्मक शैली और कथावस्तु की कुशल संयोजना ने इनके ऐतिहासिक उपन्यासों को महान्‌ साहित्य की कोटि में ला रखा है। जर्मन 'गाईस्ट' (राष्ट्रीय आत्मा) के ऐतिहासिक विकास पर एक सफल उपन्यासमाला हालबाउम ने लिखी। प्रथम महायुद्ध तथा परवर्ती उपन्यासकार जीवन के प्रति क्लांत उदासीनता, उत्तेजक नकारात्मकता अथवा प्राणशक्ति की प्रबल स्वीकारोक्ति आदि विविध परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों के पोषक हैं। धार्मिक, आध्यात्मिक तथा रहस्यवादी विषय पुन: उपन्यास की कथावस्तु बन गए। आतंक तथा वेल्सवाद (प्रसिद्ध आंग्ल उपन्यासकार एच.जी. वेल्स की समस्त दु:खदोषों से मुक्त अति आदर्श मानव समाज की परिकल्पना) से पूर्ण उपन्यास भी रचे जाने लगे। ओट्टो सोयका, फ्ऱाज, स्पुंडा, पाउल सूसोन आदि उपन्यासकार इसी वर्ग के हैं। किंतु युग में रूडोल्फ क्रेउत्ज़ भी हुआ जिसने युद्ध के नितांत विनाश तथा शांति का प्रतिपादन किया। इस दृष्टि से हम क्रेउत्ज़ को लियो ताल्स्ताय की परंपरा का अति आधुनिक उपन्यासकार कह सकते हैं। आस्ट्रियाई नाटक साहित्य में दो दल स्पष्ट रहे। प्रथम तो स्वाभाविकतावादी श्नित्ज़लर का था, जिसके प्रधान उपकरण नवरोमांसवाद अथवा हॉफ़मांसठाल की नवालंकृत शैली थे और जो उच्च तथा उच्च मध्यमवर्गीय समाज की श्रृंगारिक समस्याओं पर सुखद मनोरंजक नाटक रचते थे। ब्हार, साल्टिन, मलर, वर्टहाइमर, साइगफ्राइड, ट्रेबित्श और कुर्त फ्राइब्यर्गर इसी दल के प्रतिष्ठित नाटककार हुए। दूसरा दल आदिम शक्तिमत्ता में आस्था रखता था और अति यथार्थवादी नाटकों की रचना करता था। इसके नेता कार्ल शूनहेयर हुए। हाफ़मासठाल के नाटक 'प्रत्येक व्यक्ति' (सन्‌ 1912 ई.) प्रभावित होकर नाटककार म्यल और ग्योर्ग ने मध्ययुगीन 'नैतिकतावादी' नाटक को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न किया। क्रूर स्वाभावकितावाद के विरोधी वाइल्डगांस के नाटक आनंदित अभिव्यक्तिवाद के जनक थे और यद्यपि युद्धपूर्वकाल में प्रारंभ हुए थे, तथापि आस्ट्रियन साम्राज्यवादी व्यवस्था का ह्रास होने के बाद भी युद्धोत्तरकाल में लोकप्रिय रहे। रचनाकार के अहं को उच्चासीन करके वाइल्डगांस ने आस्ट्रियाई नाटक को रूप-वस्तु-विषयक रूढ़ियों की श्रृंखला से मुक्त कर दिया। जिस 'बीन बुर्गथियेटर' ने जर्मन नाटकसाहित्य तथा मंच कला का नेतृत्व किया, उसका प्रबल प्रतिद्वंद्वी 'डेयर जोसफ़स्टाड' स्थित माक्स राइनहार्ड का थियेटर सिद्ध हुआ। राइनहार्ड के ही प्रयत्नों के फलस्वरूप आज साल्ज़बुर्ग में वार्षिक नाटकोत्सव होता है जो आस्ट्रियाई साहित्य तथा संस्कृत का गौरव है। .

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आई. ऍलन सीली

आई.

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आगामी अतीत

मुखपृष्ठ आगामी अतीत कमलेश्वर का एक उपन्यास है।.

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आगंतुक

आगंतुक गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार धीरूबेन पटेल द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आंगळियात

आंगळियात गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार जोसेफ़ मेकवान द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1989 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इनसाइड द हवेली

इनसाइड द हवेली अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार रमा मेहता द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1979 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इन्दिरा दाँगी

इन्दिरा दाँगी (अंग्रेजी:Indira Dangi (जन्म १३ फरबरी १९८०)) हिंदी भाषा की लेखिका हैं। वे साहित्य अकादमी द्वारा सन् २०१५ के युवा पुरस्कार से सम्मानित हैं। .

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इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान

यू॰के॰कथा सम्मान का प्रतीक चिह्नयू के कथा सम्मान इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा दिया जाने वाला साहित्य सम्मान है। यह सम्मान १९९५ से प्रतिवर्ष कहानी संग्रह या उपन्यास की एक उत्कृष्ट कृति को दिया जाता है। उत्कृष्ट कृति का निर्णय एक निर्णायक मंडल करता है। इस सम्मान के निर्णय की प्रक्रिया में संस्था के भारतीय प्रतिनिधि सूरज प्रकाश करीब २५० साहित्य प्रेमियों, संपादकों एवं लेखकों को पत्र लिख कर उनसे संस्तुतियाँ मँगवाते हैं, एक सर्वसामान्य सूची बनती है, पुस्तकें ख़रीदी जाती हैं, उनकी छटनी होती है और अंत में १० से १२ किताबें रह जाती हैं जो निर्णायक मंडल को पढ़ने के लिये भेजी जाती हैं। निर्णायक मंडल के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते हैं। इस पुरस्कार के अंतर्गत दिल्ली - लंदन - दिल्ली आने जाने का हवाई टिकट (एअर इंडिया द्वारा प्रायोजित) इंगलैंड के लिये वीसा शुल्क, एक स्मृति चिह्न, लंदन में एक सप्ताह तक रहने की सुविधा तथा लंदन के प्रमुख दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होता है। यह पुरस्कार साहित्यकार को लंदन में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया जाता है। .

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इन्द्र विद्यावाचस्पति

इन्द्र विद्यावाचस्पति (1889-1960), कुशल पत्रकार, गंभीर विचारक एवं इतिहासवेत्ता थे। वे स्वामी श्रद्धानन्द के पुत्र थे। .

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इन्हीं हथियारों से

इन्हीं हथियारों से हिन्दी के विख्यात साहित्यकार अमरकान्त द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इमासि नुराबी

इमासि नुराबी मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार बी. एम. माइस्नाम्बा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इयारुइंगम

इयारुइंगम असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार बीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1961 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इलयास अहमद गद्दी

इलयास अहमद गद्दी उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास फ़ायर एरिया के लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इलै उदीर कालम

इलै उदीर कालम तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार नील पद्मनाभन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इस्मत चुग़ताई

इस्मत चुग़ताई (عصمت چغتائی) (जन्म: 15 अगस्त 1915-निधन: 24 अक्टूबर 1991) भारत से उर्दू की एक लेखिका थीं। उन्हें ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता है। वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया। उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबक़ें की दबी-कुचली सकुचाई और कुम्हलाई लेकिन जवान होती लड़कियों की मनोदशा को उर्दू कहानियों व उपन्यासों में पूरी सच्चाई से बयान किया है। .

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इंदिरा रायसम गोस्वामी

इंदिरा गोस्वामी (१४ नवम्बर १९४२ - नवम्बर, २०१०) असमिया साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर थीं। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्रीमती गोस्वामी असम की चरमपंथी संगठन उल्फा यानि युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम और भारत सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की राजनैतिक पहल करने में अहम भूमिका निभाई। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास मामरे धरा तरोवाल अरु दुखन उपन्यास के लिये उन्हें सन् १९८२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (असमिया) से सम्मानित किया गया। .

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इंद्र सुंदास

इंद्र सुंदास नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास नियति के लिये उन्हें सन् 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग

इंफ़ाल अमासुङ मागी नुङशित्की फिबम इशिंग मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार पाचा मेहताई द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1973 में मणिपुरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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इक मिआन दो तलवारां

इक मिआन दो तलवारां पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार नानक सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1961 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कथा यू.के.

कथा यू॰के॰ संयुक्त राजशाही स्थित एक संस्था है। .

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कथा रत्नामकर

कथा रत्नामकर असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार ध्रुव ज्योति बोरा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2009 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कथानक

कथांतर्गत "कार्यव्यापार की योजना" को कथानक (Plot) कहते हैं। "कथानक" और "कथा" दोनों ही शब्द संस्कृत "कथ" धातु से उत्पन्न हैं। संस्कृत साहित्यशास्त्र में "कथा' शब्द का प्रयोग एक निश्चित काव्यरूप के अर्थ में किया जाता रहा है किंतु कथा शब्द का सामान्य अर्थ है-"वह जो कहा जाए'। यहाँ कहनेवाले के साथ-साथ सुननेवाले की उपस्थिति भी अंतर्भुक्त है कयोंकि "कहना' शब्द तभी सार्थक होता है जब उसे सुननेवाला भी कोई हो। श्रोता के अभाव में केवल "बोलने' या "बड़बड़ाने' की कल्पना की जा सकती है, "कहने' की नहीं। इसके साथ ही, वह सभी कुछ "जो कहा जाए' कथा की परिसीमाओं में नहीं सिमट पाता। अत: कथा का तात्पर्य किसी ऐसी "कथित घटना' के कहने या वर्णन करने से होता है जिसका एक निश्चित क्रम एवं परिणाम हो। ई.एम.

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कन्नदासन

कन्नदासन (கண்ணதாசன்; 24 जून1927-17 अक्टूबर 1981) तमिल कवि और गीतकार थे, जिन्हें तमिल भाषा के आधुनिक युग के सबसे महान और सबसे महत्वपूर्ण प्रारम्भिक लेखक के रूप में मान्यता प्राप्त है।वे प्रायः 'कविअरासु' (कविराज) नाम से प्रसिद्ध अधिक प्रसिद्ध थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास चेरमान कादली के लिये उन्हें सन् १९८० में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। कन्नदासन तमिल फिल्मों में अपने गीतों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय थे। इन्होने ५००० से अधिक गीतों के अलावा, ६००० कविताओं और महाकाव्य, नाटकों, निबंध, उपन्यास, सहित लगभग २३२ से अधिक पुस्तकों की रचना की, जिसमें से दस भागों में अर्थमुल्ल इन्धुमथम (सार्थक हिन्दू धर्म) शीर्षक से हिंदू धर्म पर आधारित उनके सबसे लोकप्रिय (10) धार्मिक निबंध हैं। उन्हें वर्ष 1980 में अपने उपन्यास चेरमन कदली के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। 1969 में, कुज्हंथैक्कागा फिल्म में सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने वाले पहले गीतकार थे। .

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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

कन्हैयालाल मुंशी कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (२९ दिसंबर, १८८७ - ८ फरवरी, १९७१) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, गुजराती एवं हिन्दी के ख्यातिनाम साहित्यकार तथा शिक्षाविद थे। उन्होने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। .

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कपालकुण्डला

कपालकुंडला (बंगला: কপালকুণ্ডলা) बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित बंगाली भाषा का एक प्रेम उपन्यास है। इसकी रचना १८६६ में हुई थी। इसमें 'कपालकुण्डला' नामक एक वनवासी कन्या की कहानी है जो सप्तग्राम के नवकुमार नामक एक लड़के से प्यार करने लगती है और फिर उससे विवाह कर लेती है। उपन्यास में दिखाया गया है कि वह वनवासी कन्या नगर के जीवन से तालमेल नहीं बैठा पाती है। .

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कपोलकल्पना

कपोलकल्पना या काल्पनिक साहित्य (fiction; हिन्दी में फ़िक्शन) एक कहानी या अभिविन्यास हैं जो कल्पना से व्युत्पन्न होती हैं ― अन्य शब्दों में, जो इतिहास या तथ्यों पर सख्ती से आधारित न हो।William Harmon and C. Hugh Holman A Handbook to Literature (7th edition).

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कबीरुद्दीन कलीम

कबीरुद्दीन कलीम (1870-1952) भोपाल (भारत) के उर्दू के प्रसिद्ध शायर, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। वे मशहूर शायर ज़किरुद्दीन जकी के छोटे भाई थे। उनकी मृत्यु 1952 में भोपाल में हुई। .

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कमल दास

कमल दास बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अमृतस्य पुत्री के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कमला सुरय्या

कमला सुरय्या पूर्व नाम कमला दास (अँग्रेजी: Kamala Surayya, मलयालम: കമല സുറയ്യ, 31 मार्च 1934- 31 मई 2009) अँग्रेजी वो मलयालम भाषा की भारतीय लेखिका थीं। वे मलयालम भाषा में माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं। उन्हें उनकी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ से अत्यधिक प्रसिद्धि मिली। .

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कमलेश्वर

कमलेश्वर (६ जनवरी१९३२-२७ जनवरी २००७) हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक समझे जाते हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। कमलेश्वर का लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। उनका उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म 'आंधी' हो, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है। उन्होंने मुंबई में जो टीवी पत्रकारिता की, वो बेहद मायने रखती है। 'कामगार विश्व’ नाम के कार्यक्रम में उन्होंने ग़रीबों, मज़दूरों की पीड़ा-उनकी दुनिया को अपनी आवाज़ दी। कमलेश्वर का जन्म ६ जनवरी १९३२ को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ। उन्होंने १९५४ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। उन्होंने फिल्मों के लिए पटकथाएँ तो लिखी ही, उनके उपन्यासों पर फिल्में भी बनी। `आंधी', 'मौसम (फिल्म)', 'सारा आकाश', 'रजनीगंधा', 'छोटी सी बात', 'मिस्टर नटवरलाल', 'सौतन', 'लैला', 'रामबलराम' की पटकथाएँ उनकी कलम से ही लिखी गईं थीं। लोकप्रिय टीवी सीरियल 'चन्द्रकांता' के अलावा 'दर्पण' और 'एक कहानी' जैसे धारावाहिकों की पटकथा लिखने वाले भी कमलेश्वर ही थे। उन्होंने कई वृतचित्रों और कार्यक्रमों का निर्देशन भी किया। १९९५ में कमलेश्वर को 'पद्मभूषण' से नवाज़ा गया और २००३ में उन्हें 'कितने पाकिस्तान'(उपन्यास) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे 'सारिका' 'धर्मयुग', 'जागरण' और 'दैनिक भास्कर' जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। उन्होंने दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक जैसा महत्वपूर्ण दायित्व भी निभाया। कमलेश्वर ने अपने ७५ साल के जीवन में १२ उपन्यास, १७ कहानी संग्रह और क़रीब १०० फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखीं। कमलेश्वर की अंतिम अधूरी रचना अंतिम सफर उपन्यास है, जिसे कमलेश्वर की पत्नी गायत्री कमलेश्वर के अनुरोध पर तेजपाल सिंह धामा ने पूरा किया और हिन्द पाकेट बुक्स ने उसे प्रकाशित किया और बेस्ट सेलर रहा। २७ जनवरी २००७ को उनका निधन हो गया। .

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कर्मभूमि

कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ। आज कई प्रकाशकों द्वारा इसके कई संस्करण निकल चुके हैं। इस उपन्यास में विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को कुछ परिवारों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। ये परिवार यद्यपि अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं तथापि तत्कालीन राजनीतिक आन्दोलन में भाग ले रहे हैं। .

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करेल चपेक

करेल चपेक करेल चपेक (Capek karel) (१८९०-१९३८) चेक लेखक एवं पत्रकार थे। उनका चेक साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान है। उनकी सभी प्रमुख कृतियों के असंख्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद किए गए थे। चपेक की लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि उनकी लेखकीय प्रतिभा उद्भुत, अनोखी तथा अत्यंत गंभीर है। चपेक का मानवतापूर्ण दृष्टिकोण सभी रचनाओं में स्पष्टता से विद्यमान है। वे नाटक, उपन्यास, कहानियाँ, निबंध आदि लिखते थे। चपेक ने बहुत भ्रमण किया। उनके 'इंग्लैंड से पत्र', 'हॉलैंड से पत्र', आदि संग्रह अति प्रिय हैं। 'माँ' नामक नाटक अनेक भाषाओं में अनूदित हो चुका है। भारतीय भाषाओं में बँगला और मराठी में भी यह नाटक अनुवाद के रूप में मिलता है। 'माँ' नाटक में लेखक नाज़ी सत्ता के विरुद्ध लड़ाई करने को प्रोत्साहन देता है। उनकी बालोपयोगी पुस्तकें उनके भाई योसेफ चपेक के चित्रों से सुसज्जित हैं। अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ: 'इसे कैसे करता हूँ' (निबंध), 'क्रकतित' (उपन्यास), 'र.उ.र.' (नाटक), 'एक जेल की कहानियाँ', 'दूसरी जेल की कहानियाँ', 'माली का वर्ष' (निबंध), 'कीटाणू जीवन' (नाटक)। श्रेणी:चेक साहित्यकार.

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कल अज ते भलक

कल अज ते भलक पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार हरचरण सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1973 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कलमरम

कलमरम तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार जी. तिलकवती द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2005 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कला प्रकाश

कला प्रकाश सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आरसी–आ–आडो के लिये उन्हें सन् 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कलानाथ शास्त्री

कलानाथ शास्त्री (जन्म: 15 जुलाई 1936) संस्कृत के जाने माने विद्वान,भाषाविद्, एवं बहुप्रकाशित लेखक हैं। आप राष्ट्रपति द्वारा वैदुष्य के लिए अलंकृत, केन्द्रीय साहित्य अकादमी, संस्कृत अकादमी आदि से पुरस्कृत, अनेक उपाधियों से सम्मानित व कई भाषाओँ में ग्रंथों के रचयिता हैं। वे विश्वविख्यात साहित्यकार तथा संस्कृत के युगांतरकारी कवि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के ज्येष्ठ पुत्र हैं। .

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कलि–कथा : वाया बाइपास

कलि–कथा: वाया बाइपास हिन्दी के विख्यात साहित्यकार अलका सरावगी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कल्पना कुमारी देवी

कल्पना कुमारी देवी ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास अचिन बासभूमि के लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कल्कि कृष्णमूर्ति

कल्कि (तमिल: கல்கி), आर कृष्णमूर्ति (९ सितम्बर १८९९ – ५ दिसम्बर १९५४) का उपनाम था जो एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, सामाज सुधारक, उपन्यासकार, लघुकथाकार,, पत्रकार, हास्यकार, व्यंग्यकार, पटकथालेखक तथा कवि थे। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आलै–ओसै के लिये उन्हें सन १९५६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। .

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कहानी

कथाकार (एक प्राचीन कलाकृति)कहानी हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं। प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। 'गुणढ्य' की "वृहत्कथा" को, जिसमें 'उदयन', 'वासवदत्ता', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव 'दण्डी' के "दशकुमार चरित", 'बाणभट्ट' की "कादम्बरी", 'सुबन्धु' की "वासवदत्ता", 'धनपाल' की "तिलकमंजरी", 'सोमदेव' के "यशस्तिलक" तथा "मालतीमाधव", "अभिज्ञान शाकुन्तलम्", "मालविकाग्निमित्र", "विक्रमोर्वशीय", "रत्नावली", "मृच्छकटिकम्" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है। इसके पश्‍चात् छोटे आकार वाली "पंचतंत्र", "हितोपदेश", "बेताल पच्चीसी", "सिंहासन बत्तीसी", "शुक सप्तति", "कथा सरित्सागर", "भोजप्रबन्ध" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं। .

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क़ैदी

क़ैदी डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार देशबंधु डोगरा ‘नूतन’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1982 में डोगरी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कातिन्द्र सोरगियारि

कातिन्द्र सोरगियारि बोडो भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सानमोखांआरि लामाजों के लिये उन्हें सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कादम्बरी

वाणभट्ट का उपन्यास- कादम्बरी कादम्बरी संस्कृत साहित्य का महान उपन्यास है। इसके रचनाकार वाणभट्ट हैं। यह विश्व का प्रथम उपन्यास कहलाने का अधिकारी है। इसकी कथा सम्भवतः गुणाढ्य द्वारा रचित बड्डकहा (वृहद्कथा) के राजा सुमानस की कथा से ली गयी है। यह ग्रन्थ बाणभट्ट के जीवनकाल में पूरा नहीं हो सका। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र भूषणभट्ट (या पुलिन्दभट्ट) ने इसे पूरा किया और पिता द्वारा लिखित भाग का नाम 'पूर्वभाग' एवं स्वयं द्वारा लिखित भाग का नाम 'उत्तरभाग' रखा। जहाँ हर्षचरितम् आख्यायिका के लिए आदर्शरूप है वहाँ गद्यकाव्य कादम्बरी कथा के रूप में। बाण के ही शब्दों में इस कथा ने पूर्ववर्ती दो कथाओं का अतिक्रमण किया है। अलब्धवैदग्ध्यविलासमुग्धया धिया निबद्धेय-मतिद्वयी कथा-कदम्बरी। सम्भवतः ये कथाएँ गुणाढ्य की बृहत्कथा एवं सुबन्धु की वासवदत्ता थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि बाण इस कृति को सम्पूर्ण किए बिना ही दिवंगत हुए जैसा कि उनके पुत्र ने कहा है: पुलिन्द अथवा भूषणभट्ट ने इस कथा को सम्पूर्ण किया। .

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कादुगळ्

कादुगळ् तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार एम. वी. वेंकटराम द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कान्हूचरण मोहांती

कान्हूचरण मोहांती ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास का के लिये उन्हें सन् 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कायाकल्प (लक्ष्मीनंदन बोरा)

कायाकल्प एक लक्ष्मीनंदन बोरा द्वारा रचित असमिया उपन्यास है। इसको बिड़ला फाउंडेशन द्वारा २००८ के सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया था। श्रेणी:सरस्वती सम्मान से सम्मानित कृति श्रेणी:असमिया साहित्य श्रेणी:उपन्यास.

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कार्मेलिन

कार्मेलिन कोंकणी भाषा के विख्यात साहित्यकार दामोदर मावज़ो द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1983 में कोंकणी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कार्ल गुत्स्‌को

कार्ल गुत्स्‌को कार्ल गुत्स्‌को (Karl Ferdinand Gutzkow; १७ मार्च १८११ - १६ दिसम्बर्१८७८) उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य के तरुण जर्मन आन्दोलन के उल्लेखनीय जर्मन साहित्यकार थे। इनका जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ था। लेकिन उनमें प्रतिभा और महत्वाकांक्षा थी। साहित्यजगत में सफलता प्राप्त करने का उन्होंने निश्चय कर लिया था। जर्मनी के प्रगतिशील विचारोंवाले युवक लेखकों के ये नेता हो गए। 1835 ई. में उनका उपन्यास ‘वैली दि डाउटर’ छपा जिसके माध्यम से इन्होंने बड़े साहस के साथ जीवन की भैतिक आवश्यकताओं पर बल दिया। इस पुस्तक की तीव्र आलोचना हुई और अनैतिकता के दोष का तर्क देकर तत्कालीन शासन ने इसपर प्रतिबंध लगा दिया। गुत्स्‌कों को भी जेल की सजा हुई। एक दूसरा उपन्यास 'नेबेनियांद ईरा' (Nebeneind era) में उन्होंने जर्मनी के तत्कालीन सामाजिक जीवन का बड़ा व्यापक चित्र प्रस्तुत किया है। इन्होंने नाटक भी लिखे। ‘वील ए कोस्ता’ (Weil a Costa) में इन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता की आवाज उठाई है। इनका एक उपन्यास ‘द नाइटस ऑव द स्पिरिट’ है जिसमें राजनीतिक शक्ति के प्रश्न का विवेचन है। .

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कालबेला

कालबेला बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार समरेश मजूमदार द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1984 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कालम

कालम मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार एम.टी. वासुदेवन् नायर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1970 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कालरेखलु

कालरेखलु तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार डी. नवीन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2004 में तेलुगू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कालुतुन्ना पूलातोटा

कालुतुन्ना पूलातोटा तेलुगू भाषा के विख्यात साहित्यकार सैयद सलीम द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में तेलुगू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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काजल ओझा वैद्य

काजल ओझा वैद्य गुजराती साहित्यकार है, जिन्होंने मीडिया, थिएटर और टेलीविजन पर विविध भूमिकाएँ निभाई हैं। उन्होंने सात लोकप्रिय नाटक तथा तेरह उपन्यास भी लिखे हैं। ‘संबंध...

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कावल कोत्तम

कावल कोत्तम तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार सु. वेंकटेशन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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काका देउतार हार

काका देउतार हार असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार नवकांत बरुआ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1975 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कि. राजनारायणन्

कि.

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कितने चौराहे

कितने चौराहे एक उपन्यास है जिसके रचायिता फणीश्वर नाथ रेणु हैं। इस उपन्यास में आजादी के ठीक पहले तथा उसके अन्त में आजादी के तुरत बाद के ग्रामीण भारत में हो रही गतिविधियों को चित्रित किया गया है। उपन्यास का परिवेश, रेणु के अन्य उपन्यासों की तरह, उत्तरी बिहार का कोशी क्षेत्र है। रेणु इस उपन्यास को एक युवा बलिदानी को समर्पित करते हैं: किशोर शहीद ध्रुव कुण्डु को- उन्होंने कहा - आगे मत बढ़ो, लौट जाओ। तुमने कहा - झंडा फहराकर ही लौटूँगा। उन्होंने कहा - गोली मार दूँगा। तुमने छाती तान दी। झंडा तुमने फहराया उन्होंने गोली दाग दी, गोली दाग दी !...

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कितने पाकिस्तान

कितने पाकिस्तान हिन्दी के विख्यात साहित्यकार कमलेश्वर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह उपन्यास भारत-पाकिस्तान के बँटवारे और हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर आधारित है।। यह उनके मन के भीतर चलने वाले अंतर्द्वंद्व का परिणाम माना जाता हे। .

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किशोरीलाल गोस्वामी

किशोरीलाल गोस्वामी (१८६५ - १९३२) हिन्दी के उपन्यासकार थे। किशोरीलाल गोस्वामी का जन्म काशी में हुआ था। यहीं प्रारंभिक शिक्षा हुई। वे मुख्यतः उपन्यासकार थे। 'उपन्यास' नामक मासिक पत्र का प्रकाशन भी 1898 में प्रारंभ किया। 'त्रिवेणी', 'प्रणयिनी परिणय', 'लवंग लता' व 'आदर्श बाला', 'रजिया बेगम' या 'रंग महल में हलाहल', 'मालती माधव' वा 'मदनमोहिनी' और 'गुलबहार' सरीखे, इनके 60 से अधिक उपन्यास हैं। उनके उपन्यासों में कल्पनातत्त्व को प्रमुखता दी गयी है। गोस्वामी जी अपनी रचनाओं में भारत के गौरव के प्रति भी सचेत थे। श्रेणी:हिन्दी उपन्यासकार.

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कुट्रालकुरिञ्जी

कुट्रालकुरिंजी तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार कोवि. मणिशेखरन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुँवर वियोगी

कुँवर वियोगी डोगरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास घर के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुरुति पुनल

कुरुति पुनल तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार इंदिरा पार्थसारथी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1977 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुसुमबाले

कुसुमबाले कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार देवनूर महादेव द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुं. वीरभद्रप्पा

कुं.

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कुंदनिका कापडीआ

कुंदनिका कापडीआ गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सात पगलां आकाशमां के लिये उन्हें सन् 1985 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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क्याप

क्याप हिन्दी के विख्यात साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। क्याप प्रख्यात हिन्दी लेखक मनोहरश्याम जोशी द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है। क्याप कुमाउँनी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है- कुछ अजीब-सा, जो समझा न गया हो या अनबूझा सा; उल्लेखनीय है कि मनोहर श्याम जोशी मूल रूप से कुमायूँ से थे। यह उपन्यास २००६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुआ। उपन्यास के अन्त में कथा-प्रवाह की विचित्रता देखी जाती है। और शायद इसी कारण स्वयं जोशी इस उपन्यास की अन्तिम पंक्ति के रूप में लिखते हैं- .

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क्रान्तिकाल

क्रान्तिकाल बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार प्रफुल्ल राय द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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क्रान्ति–कल्याण

क्रान्ति–कल्याण कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार बी. पुट्टस्वामय्या द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1964 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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क्रिस्टीन वेस्टन

क्रिस्टीन गौटियर (1904 -1989), भारत में जन्मीं फ्रेेंच मूल की अमेरिकी उपन्यासकार तथा लघुकथा लेखिका थीं। इनका जन्म 31 अगस्त 1904,बुधवार को उन्नाव नगर, संयुक्त प्रांत (यूनाइटेड प्रोविंसेस),अब उत्तर प्रदेश में हुआ था। क्रिस्टीन फ्रांसीसी मूल के एक ब्रिटिश विधिवक्ता (बैरिस्टर) जॉर्ज गौटियर की बेटी थीं, जो कि फ्रांसीसी इंडिगो प्लांटर्स (नील उत्पादकों) के वंशज थे, जो खुद भी भारत में पैदा हुए थे। इनकी माँ एलिसिया विंटल एक लेखिका थीं। 1923 में क्रिस्टीन ने अमेरिकी व्यवसायी रॉबर्ट वेस्टन से शादी कर ली और संयुक्त राज्य अमेरिका चली गईं, जहां उन्होंने अपना लेखन कैरियर शुरू किया। वेस्टन का दूसरा उपन्यास 'द डेविल्स फूट' (1942), डॉन पॉवेल द्वारा "हेनरी जेम्स की निपुणता और सूक्ष्मता के साथ एक अमेरिकी कहानी" के रूप में वर्णित किया गया। क्रिस्टीन को भारत से बहुुुत प्रेम था। उन्होंने भारत के संबंध में कहा था - "जिस देेेश में आपका बचपन बीतता है वह प्रमुख रूप से आपकी यादों में बस जाता है; भारत एक खूबसूरत, सज्जन और उदार देश है, और उष्णकटिबंध में जीवन के सभी खतरों के बावजूद, यह किसी भी बच्चे के बढ़ने में, उसके बचपन को जीने के लिए एक उत्कृष्ट देश है।" भारत की पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास 'इंडिगो '(1943), आम तौर पर उनका सबसे अच्छा काम माना जाता है जिसने एक मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार ' के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाया। 'द डार्क वुड ' (1946) को भी अच्छी समीक्षा मिली और इसके अधिकार 'ट्वेंटीथ - सेंचुरी फॉक्स के द्वारा खरीदे गए। इस पर आधारित फिल्म 1946 में बनी जिसमें मुख्य भूमिकाओं में मॉरीन ओ'हारा और टायरन पावर थे, और 'ओटो प्रीमिंगर' ने इसका निर्देशन किया, लेकिन इसका प्रदर्शन कभी नहीं हुआ। क्रिस्टीन ने 1940 में एक 'गुुुुगेनईम फेलोशिप जीता। वेस्टन ने द वर्ल्ड इज़ अ ब्रिज ' (1950),और सिलोन और अफ़ग़ानिस्तान के बारे में दो गैर-कल्पित(नॉन-फिक्शन) किताबें भी लिखीं। कुल मिलाकर उन्होंने 10 उपन्यास, 30 से अधिक लघु कथाएं (ज्यादातर न्यूयॉर्क सिटी पत्रिकाओं के लिए), 2 गैर-फिक्शन किताबें, और भीमसा द डांसिंग बियर (1945), न्यूबेरी ऑनर चिल्ड्रंस बुक (1946) का निर्माण किया। 1950 के शुरुआती दशक में क्रिस्टीन के पहले पति का निधन हो गया, बाद में उन्होंने 'रॉजर ग्रिसवॉल्ड' से दूसरा विवाह किया पर 1951 में तलाक दे दिया और 1960 में रॉजर ग्रिसवॉल्ड से पुनर्विवाह किया। तलाक के समय क्रिस्टीन व उनके पति अमेरिका के कैस्टिन कस्बे (मेन प्रांत) में रह रहे थे। बाद के कुछ उपन्यास (फिक्शन) उन्होंने "न्यू इंग्लैंड" के बारे में लिखे। क्रिस्टीन के दूसरे पति रॉजर का निधन 1973 में हो गया।  क्रिस्टीन ने अपने जीवनकाल के आख़िरी हिस्से अमेरिका के बांगोर नगर (मेन प्रांत) में बिताए। 3 मई 1989,बुुुधवार को 85 वर्ष की आयु में अमेरिका के बांगोर नगर(मेन प्रांत) में स्थित इनके अपार्टमेंट में इनकी मृत्यु हो गई। सन्दर्भ: https://en.m.wikipedia.org/wiki/Christine_Goutiere_Weston https://www.nytimes.com/1989/05/06/obituaries/christine-weston-85-author-of-novels-and-stories.html http://enacademic.com/dic.nsf/enwiki/10137431 https://www.abebooks.co.uk/book-search/author/weston-christine-goutiere/ https://www.goodreads.com/author/show/370531.Christine_Weston https://wikivisually.com/wiki/Christine_Goutiere_Weston https://books.google.co.in/books/about/Afghanistan.html?id.

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कृशिन खटवाणी

कृशिन खटवाणी सिन्धी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास याद हिक प्यार जी के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कृष्ण बलदेव वैद

हिन्दी के आधुनिक गद्य-साहित्य में सब से महत्वपूर्ण लेखकों में गिने जाने वाले कृष्ण बलदेव वैद ने डायरी लेखन, कहानी और उपन्यास विधाओं के अलावा नाटक और अनुवाद के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान दिया है। अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये हैं जो पाठक को 'चमत्कृत' करने के अलावा हिन्दी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं। .

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कृष्णसिंह मोक्तान

कृष्णसिंह मोक्तान नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास जीवन गोरेटोमा के लिये उन्हें सन् 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कृष्णा अग्निहोत्री

कृष्णा अग्निहोत्री हिंदी की लेखिका हैं। .

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कूवो

कूवो गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार अशोकपुरी गोस्वामी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1997 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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के पी सक्सेना

के पी सक्सेना (जन्म: 1934 बरेली- मृत्यु: 31 अक्टूबर 2013 लखनऊ) भारत के एक हिन्दी व्यंग्य और फिल्म पटकथा लेखक थे। साहित्य जगत में उन्हें केपी के नाम से अधिक लोग जानते थे। उनकी गिनती वर्तमान समय के प्रमुख व्यंग्यकारों में होती है। हरिशंकर परसाई और शरद जोशी के बाद वे हिन्दी में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले व्यंग्यकार थे। उन्होंने लखनऊ के मध्यवर्गीय जीवन को लेकर अपनी रचनायें लिखीं। उनके लेखन की शुरुआत उर्दू में उपन्यास लेखन के साथ हुई थी लेकिन बाद में अपने गुरु अमृत लाल नागर की सलाह से हिन्दी व्यंग्य के क्षेत्र में आ गये। उनकी लोकप्रियता इस बात से ही आँकी जा सकती है कि आज उनकी लगभग पन्द्रह हजार प्रकाशित फुटकर व्यंग्य रचनायें हैं जो स्वयं में एक कीर्तिमान है। उनकी पाँच से अधिक फुटकर व्यंग्य की पुस्तकों के अलावा कुछ व्यंग्य उपन्यास भी छप चुके हैं। भारतीय रेलवे में नौकरी करने के अलावा हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के लिये व्यंग्य लिखा करते थे। उन्होंने हिन्दी फिल्म लगान, हलचल और स्वदेश की पटकथायें भी लिखी थी। उन्हें 2000 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वे कैंसर से पीड़ित थे। उनका निधन 31 अक्टूबर 2013 को लखनऊ में हुआ। .

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के. पी. पूर्णचंद्र तेजस्वी

के.

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कॅकॅल्ड

कॅकॅल्ड अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार किरण नगरकर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2000 में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कोलकातार काछेई

कोलकातार काछेई बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार गजेन्द्र कुमार मित्र द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1959 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कोहरे में कैद रंग

कोहरे में कैद रंग हिन्दी के विख्यात साहित्यकार गोविन्द मिश्र द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। समकालीन साहित्य में अपनी अलग पहचान बनाने वाले विख्यात कथाकार गोविन्द मिश्र का उपन्यास है 'कोहरे में कैद रंग'। 'कोहरे में कैद रंग' - जीवन के विविध रंग! रंग ही रंग हर व्यक्ति का अपना अलग रंग...

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कोवि. मणिशेखरन

कोवि.

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कोविलन (वी. वी. अय्यप्पन)

कोविलन (वी. वी. अय्यप्पन) मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास तट्टकम के लिये उन्हें सन् 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अचिन बासभूमि

अचिन बासभूमि ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार कल्पना कुमारी देवी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में ओड़िया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अडयाळंगळ

अडयाळंगळ मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार ए. सेतुमाधवन (सेतु) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अणसार

अणसार गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार वर्षा एम. अडालजा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1995 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अतुल कनक

अतुल कनक राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास जूण–जातरा के लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अथाह

अथाह नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार बिन्द्या सुब्बा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अधचानणी रात

अधचानणी रात पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार गुरदयाल सिंह द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1975 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अनन्त गोपाल शेवड़े

अनन्त गोपाल शेवड़े (१९११ - १९७९) हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार एवं लघुकथाकार थे। वे मराठी भाषी थे किंतु हिंदी में उन्होंने स्तरीय साहित्य सृजन किया। उनके उपन्यास 'ज्वालामुखी' का भारत की 14 भाषाओं में अनुवाद कराया गया। उनके एक अन्य उपन्यास 'मंगला' को ब्रेल लिपि में भी प्रकाशित किया गया था। अनंत गोपाल शेवड़े के प्रयासों से 1976 में नागपुर में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित हुआ था। उनके 'मृगजाल' नामक उपन्यास पर उन्हें मध्य प्रदेश हिन्दी परिषद का सम्मान प्रदान किया गया। .

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अनातोले फ्रांस

अनातोले फ्रांस अनातोल फ्रांस (Anatole France; 16 अप्रैल 1844 – 12 अक्टूबर 1924) फ्रांसीसी कवि, पत्रकार तथा उपन्यासकार थे। वे अकादमी फ्रंसेज (Académie française) के सदस्य तथा १९२१ के साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता थे। .

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अन्जेल्स एंड डेमन्स (देवदूत और शैतान)

अन्ज्लेस एंड डेमोंस 2000सबसे ज्यादा बिकने वाला एक रहस्यमय रोमांचकारी उपन्यास है; जो अमेरिकी लेखक डैन ब्राउन द्वारा लिखा गया है और पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है। यह काल्पनिक हार्वर्ड यूंनिवेर्सिटी (विश्वविद्यालय) के सिम्बोलोजिस्ट रोबेर्ट लैंगडन की ilumi(illuminati) नामक गुप्त समाज के रहस्यों को उजागर करने और विनाशकारी इलुमिनटी एंटीमीटर का प्रयोग करके वेटिकन सिटी का विनाश करने वाली साजिश का पर्दाफाश करने की इच्छा के चारों और घूमता हैl यह उपन्यास विशेष रूप से धर्म और विज्ञान के बीच ऐतिहासिक संघर्ष को प्रकट करता हैl यह सघर्ष इलुमीनटी और रोमन कैथोलिक चर्च के बीच मे हैl यह उपन्यास राबर्ट लैंगडन (रोबेर्ट लैंगडन) नामक पात्र का परिचय देता हैl रॉबर्ट लैंगडन (Robert langdan) ब्राउन के बाद में आने वाले उपन्यास 2003 काविन्ची कोड और 2009 का उपन्यास लोस्ट सिम्बल के नायकभी हैl इसमें बहुत सारे शेलीगत तत्व हैं - जैसे गुप्त समाज की साजिशें, एक दिन की समय सीमा और केथोलिक चर्च प्राचीन इतिहास, वास्तुकला और प्रतीकों का भी भारी प्रयोग इस पुस्तक में हैंl एक फिल्म अनुकूलन 15 मई 2009 को जारी किया गया था; हालांकि यह दा विंची कोड (The Vinci Code) फिल्म की घटनाओं के बाद किया गया था;जो 2006 मैं दिखाई गयी थीl .

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अब्दुल वहीद कमल

अब्दुल वहीद कमल राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास घराणो के लिये उन्हें सन् 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अब्दुस्समद

अब्दुस्समद उर्दू भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास दो गज़ ज़मीन के लिये उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अभिजात्री

अभिजात्री असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार निरुपमा बरगोहाइँ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अमर मित्र

अमर मित्र बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ध्रुवपुत्र के लिये उन्हें सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अमित चौधुरी

अमित चौधुरी अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास ए न्यू वर्ल्ड के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अमिताव घोष

अमिताव घोष अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास द शैडो लाइन्स के लिये उन्हें सन् 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अमियभूषण मजूमदार

अमियभूषण मजूमदार बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास राजनगर के लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अमृत राय

अमृतराय आधुनिक कहानीकार हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। अमृतराय प्रसिद्ध लेखक प्रेमचन्द के सुपुत्र हँ। ये प्रगतिशील साहित्यकारों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। कहानी तथा ललित निबन्ध के लेखन में भारत विख्यात इस लेखक को कलम का सिपाही नामक पुस्तक पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिल चुका है। इनका उपन्यास बीज तथा कहानी-संग्रह तिरंगा कफन बहु-चर्चित है। श्रेणी:हिन्दी गद्यकार श्रेणी:साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा के साहित्यकार श्रेणी:चित्र जोड़ें श्रेणी:1921 में जन्मे लोग.

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अमृत और विष

अमृत और विष हिन्दी के विख्यात साहित्यकार अमृतलाल नागर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1967 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अमृतर संतान

अमृतरसंतान ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार गोपीनाथ मोहांती द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1955 में ओड़िया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अमृतस्य पुत्री

अमृतस्य पुत्री बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार कमल दास द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1982 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अमृता प्रीतम

अमृता प्रीतम (१९१९-२००५) पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब (भारत) के गुजराँवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग १०० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था। अमृता प्रीतम का जन्म १९१९ में गुजरांवाला पंजाब (भारत) में हुआ। बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। किशोरावस्था से लिखना शुरू किया: कविता, कहानी और निबंध। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएं अनेक देशी विदेशी भाषाओं में अनूदित। १९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९५८ में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत, १९८८ में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार;(अन्तर्राष्ट्रीय) और १९८२ में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी। .

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अमेरिकी साहित्य

आधुनिक काल के अमेरिकी साहित्य ने विश्व साहित्य पर अपनी छाप डाल दी है। विशेषतः शैली और प्रयोग पर यहाँ से नए विचार निकल पूरे विश्व के साहित्य में अपनाए गए। 'अमरीका' से यहाँ तात्पर्य संयुक्त राज्य अमरीका से है जहाँ की भाषा अंग्रेजी है। अमरीका की तरह उसका साहित्य भी नया है। .

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अमेरिकीकरण

चीन के एक सुपरमार्केट में कोका कोला संयुक्त राज्य अमेरिका से इतर देशों में अमेरिकीकरण (Americanization) का मतलब अमेरिकी संस्कृति का अन्य देशों की संस्कृति पर प्रभाव से है। यह शब्द कम से कम १९०७ से प्रयोग किया जा रहा है। 'अमेरिकीकरण' के विचार का प्रचलित अर्थ अमेरिकी मीडिया कम्पनियों के विश्व-प्रभुत्व की आलोचना की देन है। मोटे तौर पर इसे संस्कृति-उद्योग और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के पर्याय की तरह भी देखा जाता है। लेकिन ऐसे भी कुछ पहलू हैं जो अमेरिकीकरण को इन दोनों से अलग करते हैं। इनमें प्रमुख है अमेरिकीकरण की अभिव्यक्ति का युरोपीय संस्कृतियों द्वारा प्रयोग। पश्चिमी युरोप के अमीर देश वैसे तो राजनीति, अर्थनीति और समरनीति में अमेरिका के अभिन्न सहयोगी हैं, पर संस्कृति के संदर्भ में वे इसके द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका की संस्कृति के प्रसारवादी चरित्र पर आपत्ति करते हैं। इस दृष्टि से अमेरिकीकरण पूँजीवादी सांस्कृतिक शिविर के अंतर्विरोधों का परिचायक भी है। फ़्रांस, जर्मनी और इटली जैसे जी-सात देशों की मान्यता है कि टेलिविज़न कार्यक्रमों, हॉलीवुड की फ़िल्मों, पॉप म्यूज़िक और खान-पान के माध्यम से अमेरिकी विचारधारा, जीवन-शैली और प्रवृत्तियाँ उनके अपने सांस्कृतिक मूल्यों और परम्पराओं को पृष्ठभूमि में धकेले दे रही हैं। उदाहरण के लिये इटली के आलोचक यह देख कर चिंतित हैं कि उनकी जनता पास्ता की जगह हैमबर्गर तथा ऑपेरा की जगह माइकल जैक्सन सरीखी संगीत-नृत्य परम्परा को उत्तरोत्तर अपनाती जा रही है। इसी तरह अपनी भाषा को सबसे श्रेष्ठ मानने की खुराक पर पले फ़्रांसीसियों और जर्मनों को यह देखकर सांस्कृतिक डर सताने लगे हैं कि अमेरिकी रुतबे के कारण अंग्रेजी का बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रभाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिकीकरण का यही अर्थ धीरे-धीरे एशियाई संस्कृतियों के पैरोकारों द्वारा भी भूमण्डलीकरण की आलोचना के एक अहम मुहावरे की तरह अपनाया जाने लगा है। भूमण्डलीकरण के आलोचकों के बीच 'कोकाकोलाइज़ेशन' या 'मैकडनलाइज़ेशन' जैसे मुहावरों का अक्सर इस्तेमाल होता है। अमेरिकी संस्कृति के संक्रामक चरित्र के प्रति भय भूमण्डलीकरण की विश्वव्यापी प्रक्रिया शुरू होने के काफी पहले से व्यक्त किये जा रहे हैं। मजदूर वर्ग की संस्कृति के दृष्टिकोण से ब्रिटिश समाजशास्त्री और 'बरमिंघम सेंटर फ़ॉर द कल्चरल स्टडीज़' के संस्थापक रिचर्ड होगार्ट की 1957 में प्रकाशित रचना 'द यूज़िज़ ऑफ़ लिटरेसी' ने अमेरिकीकरण की विस्तृत आलोचना पेश की थी। होगार्ट ने अमेरिकी और ब्रिटिश लोकप्रिय उपन्यासों की तुलना करते हुए आरोप लगाया था कि अमेरिकी उपन्यासों में सेक्स और हिंसा का संदर्भच्युत इस्तेमाल किया जाता है। पचास के दशक के ब्रिटिश ‘मिल्क बारों’ के विश्लेषण के ज़रिये होगार्ट ने अंग्रेज युवकों पर अमेरिका के असर की शिनाख्त करते हुए दिखाया कि उनके बीच अमेरिकी शैली में ‘मॉडर्न’ और ‘कूल’ होना किस तरह तरह प्रचलित होता चला गया। होगार्ट को इस बात में कोई संदेह नहीं था कि अमेरिका से आ रही ये सांस्कृतिक हवाएँ ‘जीवन-विरोधी’ हैं। यह एक रोचक तथ्य है कि अमेरिकीकरण की जिस प्रक्रिया पर युरोपीय देश आज आपत्ति कर रहे हैं, उसने अपना आधार द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद और शीत युद्ध के दौरान प्राप्त किया था। एक तरह से यह अमेरिकीकरण विश्वयुद्ध से जर्जर हो चुके युरोप की आवश्यकता था। यही वह दौर था जब अमेरिकी बिजनेस मॉडल ने युरो के स्थानीय व्यापारिक प्रारूपों को अपनी सफलता के कारण पीछे धकेल दिया। व्यवसाय प्रबंधन के लिए एमबीए की डिग्री मुख्यतःपहले केवल अमेरिका में दी जाती थी, लेकिन आज यह डिग्री युरोप समेत दुनिया भर में कुशल व्यवसाय-प्रबंधन का पर्याय मानी जाती है। अमेरिका द्वारा प्रवर्तित ‘दक्षता आंदोलन’ युरोपीय देशों की आर्थिक और बौद्धिक संस्कृति (जिसमें उद्योगपति, सामाजिक जनवादी, इंजीनियर, वास्तुशिल्पी, शिक्षाविद्, अकादमीशियन, मध्यवर्ग, नारीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हैं) द्वारा कम से कम साठ-सत्तर साल पहले ही आत्मसात कर लिया गया था। इस आंदोलन के तहत हुए सुसंगतीकरण के दौरान युरोप में न केवल मशीनों और कारख़ानों के माध्यम से बढ़ी हुई उत्पादकता हासिल की गयी, बल्कि इससे मध्यवर्गीय और श्रमिकवर्गीय जनता के जीवन-स्तर में भी काफ़ी सुधार आया। इस आंदोलन को जर्मनी में नाज़ियों और युरोप के अन्य हिस्सों में कम्युनिस्टों द्वारा आक्रमण का निशाना बनाया गया, लेकिन उसकी सामाजिक स्वीकृति एक असंदिग्ध तथ्य बन चुकी है। अमेरिका से व्यापारिक संस्कृति का प्रवाह किस तरह एकतरफ़ा रहा है, यह निवेश के आँकड़ों से स्पष्ट हो सकता है। 1950 से 1965 के बीच युरोप में अमेरिकी निवेश आठ सौ प्रतिशत बढ़ा, जबकि इसी दौरान युरोप का अमेरिका में निवेश केवल 15 से 28 फ़ीसदी तक ही बढ़ सका। अमेरिकी निवेश में हुई ज़बरदस्त वृद्धि के पीछे अमेरिकी प्रौद्योगिकीय श्रेष्ठता की भूमिका भी रही है। शीत-युद्ध की समाप्ति के बाद अब पश्चिमी युरोप को सोवियत खेमे की तरफ से किसी प्रकार का सैनिक खतरा नहीं रह गया है। अर्थात् अपने रक्षक के रूप में अब उसे अमेरिका की जरूरत पहले की तरह नहीं है। युरोपीय संघ की रचना भी हो चुकी है, और युरोप एकीकृत आर्थिक संरचना के रूप में अमेरिका से होड़ कर रहा है। इस नयी स्थिति के परिणामस्वरूप आज अमेरिकी निवेश, अमेरिकी विज्ञापनों, व्यापारिक तौर-तरीकों, कर्मचारी संबंधी नीतियों और अमेरिकी कम्पनियों द्वारा अंग्रेजी भाषा के इस्तेमाल पर आपत्तियाँ होने लगी हैं। इसकी शुुरुआत फ़्रांस से हुई थी जिसका प्रसार अब सारे गैर-अंग्रेजी भाषी युरोप में हो चुका है। युरोपीय आलोचकों को यह देख-सुन कर काफी उलझन होती है कि अमेरिका ख़ुद को युरोपीय समाजों के राजनीतिक अभिजनवाद के मुकाबले कहीं अधिक लोकतांत्रिक, वर्गेतर और आधुनिक संस्कृति के रूप में पेश करता है। इसके जवाब में इन आलोचकों का दावा है कि अमेरिकी प्रभाव राजनीतिक और सांस्कृतिक दायरों में युरोपीय समाजों की अभिरुचियों को भ्रष्ट कर रहा है। लेकिन, अमेरिकीकरण का मतलब हमेशा से ही नकारात्मक नहीं था। इसके सकारात्मक पहलुओं की पहचान बीसवीं सदी के पहले दशक से की जा सकती है। 1907 से ही अमेरिका के भीतर इसका हवाला दुनिया की दूसरी संस्कृतियों से वहाँ रहने आये समुदायों द्वारा अमेरिकी रीति-रिवाज़ों और प्रवृत्तियों को अपनाने की प्रक्रिया के रूप में दिया जाता रहा है। इस सिलसिले को ‘मेल्टिंग पॉट’ (melting pot) की परिघटना के तौर पर भी देखा जाता है। 1893 में इतिहासकार फ़्रेड्रिक जैक्सन टर्नर ने एक लेख के द्वारा पहली बार इस अवधारणा का प्रयोग यह दिखाने के लिए किया कि अमेरिकी संस्कृति और अन्य संस्थाएँ केवल एंग्लो-सेक्सन लोगों की देन नहीं हैं। उन्हें रचने में युरोप से अमेरिका में बसने आयी तरह-तरह की संस्कृतियों का योगदान है। इसके बाद धीरे-धीरे मेल्टिंग पॉट का मुहावरा सांस्कृतिक आत्मसातीकरण के पर्याय के तौर पर लोकप्रिय होता चला गया। यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि बौद्धिक क्षेत्रों में भी अमेरिकी संस्कृति के प्रभावों को सभी पक्षों द्वारा नकारात्मक दृष्टि से नहीं देखा जाता। संस्कृति-अध्ययन के क्षेत्र में सक्रिय कुछ विद्वानों का मत है कि बाजारू संस्कृति को नीची निगाह से देखने के बजाय साधारण जनों द्वारा उसे आत्मसात करने के यथार्थ की सकारात्मक समीक्षा की जानी चाहिए। इनका दावा है कि अमेरिकी सांस्कृतिक उत्पादों से जन-मानस की मुठभेड़ एकांगी नहीं बल्कि विभेदीकृत और विविधतामूलक है। हेबडिगी ने अपनी 1979 में प्रकाशित रचना में दिखाया है कि किस प्रकार ब्रिटिश श्रमिकवर्गीय युवकों ने अमेरिकी फ़ैशन और म्यूजिक की मदद से अपनी अपेक्षाकृत शक्तिहीन और अधीनस्थ वर्गीय हैसियत में प्रतिरोध का समावेश किया है। अमेरिका ब्रिटिश युवकों के लिए एक आधुनिक, उन्मुक्त और रोमानी संस्कृति का आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करता है। संस्कृति-अध्ययन से निकले इस तरह के विद्वानों ने ‘डलास’ और ‘डायनेस्टी’ जैसे अमेरिकी टीवी सीरियलों का विश्लेषण करके पाया कि उन्हें देखते हुए लोग जिन निष्कर्षों पर पहुँचते हैं, उन पर स्थानीय परिवेश का गहरा असर होता है। उदाहरणार्थ, ‘डलास’ देखने वाला अरब दर्शक उसे पश्चिमी पतनशीलता के उदाहरण के रूप में ग्रहण करता है, जबकि एक रूसी यहूदी उसे पूँजीवाद की आत्मालोचना मान कर चलता है। इन विद्वानों के अनुसार अमेरिका को एक प्रभुत्वशाली शक्ति मानने का मतलब यह नहीं है कि उसे दुनिया की सांस्कृतिक अस्मिता के ऊपर अपना अंतिम निर्णय थोपने वाली ताकत भी मान लिया जाए। ये लोग सांस्कृतिक प्रवाहों को एकतरफा नहीं मानते, बल्कि अमेरिकी हवाओं के मुकाबले भारत के बॉलीवुडीय मनोरंजन, लातीनी अमेरिका के ‘टेलिनॉवेल’ और जापानी टीवी उत्पादों का जिक्र करते हैं। इन विद्वानों ने यह तर्क भी दिया है कि सेटेलाइट लाइसेंसों के सस्ती दर पर उपलब्ध होने से टीवी कार्यक्रम बनाने की अंतर्निहित राजनीति में काफी विविधता आयी है। पहले खाड़ी युद्ध के समय मीडिया जगत में ‘गल्फ़ वार टीवी प्रोजेक्ट’ ने सफलतापूर्वक युद्धविरोधी झंडा बुलंद किया था। .

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अयलक्कार

अयलक्कार मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार पी. केशवदेव द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1964 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरण्येर अधिकार

अरण्येर अधिकार बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार महाश्वेता देवी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1979 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरमने

अरमने कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार कुं. वीरभद्रप्पा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरांबम बीरेन सिंह

अरांबम बीरेन सिंह मणिपुरी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास पुन्सीगी मरुद्यान के लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अरविन्द अडिग

अरविन्द अडिग (कन्नड़: ಅರವಿಂದ ಅಡಿಗ, जन्म 23 अक्टूबर 1974) अंग्रेजी में लिखने वाले भारतीय लेखक हैं, जिन्हें अपने पहले उपन्यास द व्हाइट टाइगर (श्वेत बाघ) के लिए मैन बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। .

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अरुण शर्मा (असमिया साहित्यकार)

अरुण शर्मा (३ नवम्बर, १९३१) असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास आशीर्वादर रंग के लिये उन्हें सन् 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। असमिया साहित्य में उनके योगदान की मान्यता में उन्हें 2010 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। .

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अरुण जोशी

अरुण जोशी अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास द लास्ट लेबिरिंथ के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अर्द्धनारीश्वर

अर्द्धनारीश्वर हिन्दी के विख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अल्पना मिश्र

अल्पना मिश्र हिंदी कथा साहित्य की प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनकी पहली कहानी 'ऐ अहिल्या ' 'हंस' पत्रिका के अक्तूबर १९९६ अंक में प्रकाशित हुई थी। उनकी भाषा की ताज़गी, विलक्षणता और साथ ही लोक रंग की उपस्थिति उनकी भाषा को सबसे अलग पहचान देती है। विशिष्ट शिल्प प्रयोगों तथा गहरे सामाजिक सरोकारों के कारण अल्पना मिश्र ने हिंदी कथा जगत को नई ऊँचाई दी है। उन्हें हिंदी का ' अनकन्वेंशनल राईटर' माना जाता है। उनकी प्रसिद्द कहानियों में 'उपस्थिति',' 'मुक्ति प्रसंग', ' मिड डे मील', 'कथा के गैर जरूरी प्रदेश में', 'बेदखल',' इस जहाँ में हम','स्याही में सुरखाब के पंख' 'गैर हाजिरी में हाज़िर' आदि हैं। उनकी लिखी 'छावनी में बेघर' कहानी हिंदी कथा जगत में सैन्य जीवन पर लिखी लगभग अकेली कहानी है जो बेहतरीन तरीके से सैनिक जीवन का परिचय कराती है। गया है। उनके कहानी संग्रह: भीतर का वक्त्त,छावनी में बेघर, कब्र भी कैद औ जंजीरे भी,' स्याही में सुरखाब के पंख', के साथ ही उपन्यास:'अन्हियारे तलछट में चमका' पाठकों के बीच में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुके हैं। वह हिंदी की महान लेखकों में से एक है और उन्होंने हिन्दी के कला क्षेत्र को और खूबसूरत बनाने में अपना अच्छा योगदान दिया हैं। उनकी कहानियो का अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओँ में अनुवाद हो चुका है। उन्हें अनेक सम्मानों से भी सम्मानित किआ गया। .

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अल्हड़

अल्हड़ का अर्थ है उन्मुक्त, बाधारहित नियंत्रण विहीन नवप्राप्य। .

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अलेक्सान्द्र अब्रामोविच कबकोव

अलेक्सान्द्र अब्रामोविच कबकोव अलेक्सान्द्र कबकोव (रूसी: Кабаков, Александр Абрамович) - रूसी लेखक और पत्रकार हैं। उनका जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान १९४३ में नोवोसिबीर्स्क में हुआ, जहाँ सरकार ने उनकी माँ को युद्ध से बचाकर प्रसूति के लिए भेज दिया था। कबाकोव ने उक्राइना के द्नेप्रोपेत्रोव्स्क विश्वविद्यालय की मैकेनिकल-मैथमैटिक्स फ़ैकल्टी से एम.एससी.

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अलेक्सांदर कुप्रिन

रूसी कहानीकार अलेक्सांदर कुप्रिन अलेक्सांद्र इवानोविच कुप्रिन (रूसी: Алекса́ндр Ива́нович Купри́н; 7 सितम्बर 1870 – 25 अगस्त 1938) प्रसिद्ध रूसी कहानी लेखक, विमान-चालक, अवेषक तथा साहसपूर्ण यात्री थे। .

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अलीक मानुष

अलीक मानुष बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार सैयद मुस्तफ़ा सिराज द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1994 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अशोक एस. कामत

अशोक एस.

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अशोक आत्रेय

अशोक आत्रेय बहुमुखी प्रतिभा के संस्कृतिकर्मी सातवें दशक के जाने माने वरिष्ठ हिन्दी-कथाकार और (सेवानिवृत्त) पत्रकार हैं | मूलतः कहानीकार होने के अलावा यह कवि, चित्रकार, कला-समीक्षक, रंगकर्मी-निर्देशक, नाटककार, फिल्म-निर्माता, उपन्यासकार और स्तम्भ-लेखक भी हें| .

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अशोकपुरी गोस्वामी

अशोकपुरी गोस्वामी गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास कूवो के लिये उन्हें सन् 1997 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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असमय

असमय बंगाली भाषा के विख्यात साहित्यकार बिमल कर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1975 में बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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असूर्यलोक

असूर्यलोक गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार भगवती कुमार शर्मा द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अजय नवारिया

अजय नवारिया (एक लेखक एवं शिक्षक) का जन्म १९७२ दिल्ली में हुआ। नवारिया दो लघुकथा, पटकथा और अन्य कहानियां (2006) और यस सर (2012) एवं एक उपन्यास, उधर के लोग (2008) के लेखक हैं। वह प्रमुख हिंदी साहित्यिक हंस पत्रिका के साथ भी जुड़े हुए हैं। नवारिया, दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शिक्षक है। उन्हें समीक्षकों द्वारा प्रशंसित भी किया गया है उनकी छोटी कहानी संग्रह, अटैचमेंट टेरेन (2013) के अंग्रेजी में अनुवाद के लिए। .

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अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी.

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अघरी आत्मार काहिनी

अघरी आत्मार काहिनी असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार सैयद अब्दुल मलिक द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1972 में असमिया भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अवधेश्वरी

अवधेश्वरी कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार शंकर मोकाशी पुणेकर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में कन्नड़ भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अवसर

रामकथा पर आधारित 'अवसर' नरेन्द्र कोहली का प्रसिद्ध उपन्यास है जो सन १९७६ में प्रकाशित हुआ। सन् १९७५ में उनके रामकथा पर आधारित उपन्यास 'दीक्षा' के प्रकाशन से हिंदी साहित्य में 'सांस्कृतिक पुनरुत्थान का युग' प्रारंभ हुआ जिसे हिन्दी साहित्य में 'नरेन्द्र कोहली युग' का नाम देने का प्रस्ताव भी जोर पकड़ता जा रहा है। "अवसर" इसी उपन्यास-श्रंखला की दूसरी कडी है। तात्कालिक अन्धकार, निराशा, भ्रष्टाचार एवं मूल्यहीनता के युग में नरेन्द्र कोहली ने ऐसा कालजयी पात्र चुना जो भारतीय मनीषा के रोम-रोम में स्पंदित था। युगों युगों के अन्धकार को चीरकर उन्होंने भगवान राम को भक्तिकाल की भावुकता से निकाल कर आधुनिक यथार्थ की जमीन पर खड़ा कर दिया। पाठक वर्ग चमत्कृत ही नहीं, अभिभूत हो गया! किस प्रकार एक उपेक्षित और निर्वासित राजकुमार अपने आत्मबल से शोषित, पीड़ित एवं त्रस्त जनता में नए प्राण फूँक देता है, 'अभ्युदय' में यह देखना किसी चमत्कार से कम नहीं था। युग-युगांतर से रूढ़ हो चुकी रामकथा जब आधुनिक पाठक के रुचि-संस्कार के अनुसार बिलकुल नए कलेवर में ढलकर जब सामने आयी, तो यह देखकर मन रीझे बिना नहीं रहता कि उसमें रामकथा की गरिमा एवं रामायण के जीवन-मूल्यों का लेखक ने सम्यक् निर्वाह किया है। आश्चर्य नहीं कि तत्कालीन सभी दिग्गज साहित्यकारों से युवा नरेन्द्र कोहली को भरपूर आर्शीवाद भी मिला और बड़ाई भी.

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अविनाशि

अविनाशि विख्यात संस्कृत साहित्यकार विश्वनारायण शास्त्री द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अवकासिकाळ

अवकासिकाळ मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार विलासिनी (एम. के. मेनन) द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1981 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अखेपातर

अखेपातर गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार बिन्दु भट्ट द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अगल विळक्कु

अगल विळक्कु तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार मु. वरदराजन द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1961 में तमिल भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अग्निसाक्षी

अग्निसाक्षी मलयालम भाषा के विख्यात साहित्यकार ललितांबिका अंतर्जनम् द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1977 में मलयालम भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अग्निगर्भा

यह अमृतलाल नागर द्वारा लिखित स्त्री समस्या केंद्रित उपन्यास है। महादेवी वर्मा को समर्पित किए गए इस उपन्यास में सुशिक्षित होकर भी निरंतर अवहेलना झेलती हुई सीता पांडे की कहानी है। सीता पांडे को प्रतिष्ठा मिलती है तो रामेश्वर रूपी एक ऐसे पुरुष के सहयोग के कारण जो अपने सहयोग के बदले सीता का सर्वस्व हथिया लेता है और बदले में उसे कुछ भी नहीं देना चाहता है। सीता के बहाने यह उस नारी की कहानी बन गई है जिसे आदमी की कामुक स्वार्थी और घिनौनी इच्छाएं अग्निगर्भा बना डालती हैं। और जो जीवनपर्यन्त धर्यशीला वसुंधरा की तरह अपने भीतर बिखरने वाली ज्वालाओं को निरंतर समेटती रहती है। वह जीवन भर अपनी अक्षय संपदा लुटाकर भी आदमी की तृषा को नहीं बुझा पाती। और रक्त की अंतिम बूंद चूसकर भी वह प्यासा बना रहता है। दहेज के लिए भारतीय नारी का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शोषण आदमी की क्रूरतम मनो वृत्तति का एक घिनौना रूप है। नागर जी ने अपने इस उपन्यास में अपनी चिर-परिचित सहज-सरल रोचक और चुटीली भाषा में इस ज्वलंत समस्या पर अपनी लेखनी का प्रहार किया है। श्रेणी:अमृतलाल नागर श्रेणी:हिन्दी उपन्यास श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अंतरभाषिक अनुवाद

अंतरभाषिक अनुवाद माध्यम आधारित अनुवाद का एक प्रकार है जिसमें एक भाषा की प्रतीक व्यवस्था का रूपांतरण किसी दूसरी भाषा की प्रतीक व्यवस्था में किया जाता है। उदाहरण के लिए प्रेमचंद के हिंदी उपन्यास गोदान का अंग्रेज़ी में गिफ्ट ऑफ काउ नाम से हुआ अनुवाद। .

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अंग्रेजी साहित्य

अंग्रेजी साहित्य के प्राचीन एवं अर्वाचीन काल कई आयामों में विभक्त किए जा सकते हैं। यह विभाजन केवल अध्ययन की सुविधा के लिए किया जाता है; इससे अंग्रेजी साहित्य प्रवाह को अक्षुण्णता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। प्राचीन युग के अंग्रेजी साहित्य के तीन स्पष्ट आयाम है: ऐंग्लो-सैक्सन; नार्मन विजय से चॉसर तक; चॉसर से अंग्रेजी पुनर्जागरण काल तक। .

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अंग्रेजी कहानी

कहानी की जड़ें हजारों वर्ष पूर्व धार्मिक गाथाओं और प्राचीन दंत कथाओं तक जाती है, किंतु आज के अर्थ में कहानी का आरंभ कुछ ही समय पूर्व हुआ। अंग्रेजी साहित्य में चॉसर की कहानियाँ अथवा जुलाहों के जीवन से संबंधित डेलानी की कहानियाँ पहले भी मिलती हैं, किंतु वास्तव में कहानी की लोकप्रियता 19वीं शताब्दी में बढ़ी। पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना और आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ के साथ कहानी का विकास हुआ। 18वीं शताब्दी में निबंध के साथ हमें कहानी के तत्व लिपटे हुए मिलते हैं। इस प्रकार की रचनाओं में सर रॉजर डि कवर्ली से संबद्ध स्केच उल्लेखनीय है। 19वीं शताब्दी में हमें पूर्णत: विकसित कहानी मिलती है। कहानी जीवन की एक झाँकी मात्र हमें देती है। उपन्यास से सर्वथा अलग इसका रूप है। कहानी की सबसे सफल परिभाषा जीवन का एक अंश है। स्कॉट और डिकेन्स ने कहानियाँ लिखी थीं। डिकेन्स ने अपना साहित्यिक जीवन ही ‘स्केचेज बाइ बौज़’नाम की रचना से शु डिग्री किया था, यद्यपि इनकी वास्तविक देन उपन्यास के क्षेत्र में है। ट्रोलोप और मिसेज़ गैस्केल ने भी कहानियाँ लिखी थीं, किंतु कहानी के सर्वप्रथम बड़े लेखक वाशिंगटन अरविग, हॉर्थार्न, ब्रेट हार्ट और पो अमरीका में हमें मिलते हैं। अरविंग (1783-1859) की ‘स्केच बुक’अपूर्व कहानियों का भांडार है। इनमें सबसे सफल ‘रिप वान विंकिल’है। हाथार्न (1804-64) की कहानियाँ हमें परीलोक के स्वप्न दिखाती हैं। ब्रेट हार्ट (1839-1902) की कहानियों में अमरीका की पश्चिम की बस्तियों के अव्यवस्थित जीवन का दिग्दर्शन है। पो (1809-1849) विश्व के सर्वश्रेष्ठ कहानी लेखक कहे जाते हैं। उनकी कहानियाँ भय, आतंक और आश्चर्य से पाठक को अभिभूत कर डालती है। इंग्लैंड में स्टीवेन्सन (1850-1894) ने कहानी की प्रौढ़ता प्रदान की। उनकी ‘मार्खेइम’, ‘विल ओ दि मिल’और ‘दि बाटल इम्प’आदि कहानियाँ सुप्रसिद्ध हैं। हेनरी जेम्स (1843-1916) उपन्यासों के अतिरिक्त कहानी लिखने में भी बहुत कुशल थे। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में उनकी सफलता अपूर्व थी। ऐंब्रोज़ बीअर्स (1842-1913) कोमल और संश्लिष्ट भावनाओं को व्यक्त करने में अत्यंत कुशल थे। कैथरीन मैन्सफ़ील्ड (1889-1923) सुकुमार क्षणों का चित्रण वुरुश के हल्के आघातों के समान करती है। 20वीं शताब्दी के सभी बड़े उपन्यासकारों ने कहानी को अपनाया। यह 19वीं सदी की परंपरा में ही एक आगे बढ़ा हुआ कदम था। टॉमस हार्डी की ‘वेसेक्स टेल्स’के समान एच.जी.

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अकबर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .

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उड जा रे सुआ

उड जा रे सुआ राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार शांति भारद्वाज ‘राकेश’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1998 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति

उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति (२१ दिसम्बर १९३२ - २२ अगस्त २०१४) समकालीन कन्नड़ साहित्यकार, आलोचक और शिक्षाविद् हैं। इन्हें कन्नड़ साहित्य के नव्या आंदोलन का प्रणेता माना जाता है। इनकी सबसे प्रसिद्ध रचना संस्कार है। ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले आठ कन्नड़ साहित्यकारों में वे छठे हैं। उन्होंने महात्मा गांधी विश्वविद्यालय तिरुअनन्तपुरम् और केंद्रीय विश्वविद्यालय गुलबर्गा के कुलपति के रूप में भी काम किया था। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सन १९९८ में भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। २०१३ के मैन बुकर पुरस्कार पाने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची में इन्हें भी चुना गया था। २२ अगस्त २०१४ को ८१ वर्ष की अवस्था में बंगलूर (कर्नाटक) में इनका निधन हो गया। <ref>मशहूर साहित्यकार अनंतमूर्ति का निधन - BBC Hindi - भारत http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/08/140822_ananthamurthy_obituary_du.shtml </ref> .

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उत्सुकतेने मी झोपलो

उत्सुकतेने मी झोपलो मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार श्याम मनोहर द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में मराठी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उदासीन रूखहरू

उदासीन रूखहरू नेपाली भाषा के विख्यात साहित्यकार प्रेम प्रधान द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में नेपाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उपन्यासकार

उपन्यास के लेखक को उपन्यासकार कहते हैं। यह साहित्य की एक गद्य विधा है जिसमें किसी कहानी को विस्तृत रूप से कहा जाता है।। यह साहित्य की अत्यंत प्रचिलित विधा है इसलिये उपन्यासकार भी बहुत से मिलते हैं। उनमे से कुछ प्रमुख इस प्रकार से हैं - प्रेमचन्द नरेन्द्र कोहली शिवानी आचार्य चतुरसेन चार्ल्स डिकेंस आचार्य गणपतिचंद्र गुप्त ने उपन्यासों के वैज्ञानिक वर्गीकरण की चर्चा करते हुए निम्न वर्गीकरण किया है। श्रेणी:साहित्यकार.

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उपमन्यु चटर्जी

उपमन्यु चटर्जी अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास द मैमरीज़ ऑफ़ द वेलफेयर स्टेट के लिये उन्हें सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उपरवास कथात्रयी

उपरवास कथात्रयी गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार रघुवीर चौधुरी द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1977 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उपेन्द्रनाथ झा

उपेन्द्रनाथ झा मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास दु पत्र के लिये उन्हें सन् 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्र नाथ अश्क (१९१०- १९ जनवरी १९९६) उर्दू एवं हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार तथा उपन्यासकार थे। ये अपनी पुस्तक स्वयं ही प्रकाशित करते थे। .

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छावणी

छावणी गुजराती भाषा के विख्यात साहित्यकार धीरेन्द्र महेता द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में गुजराती भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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छंदोबद्ध उपन्यास

छंदोबद्ध उपन्यास एक प्रकार की कथात्मक कविता है जिसमें एक उपन्यास जैसे लम्बाई की कथा गद्य के बजाए कविता के माध्यम से की जाती है। .

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