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उन्नीसवीं शताब्दी

सूची उन्नीसवीं शताब्दी

उन्नीसवीं शताब्दी एक ईसवीं शताब्दी है। श्रेणी:शताब्दी.

36 संबंधों: झारखंड आंदोलन, डूगोंग, द गान, धातु संसूचक, निशान साहिब, पण्डित, पनडुब्बी, बिनसर, बंगाल के नवाब, बकिंघम नहर, भरतपुरा, महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण, मिस्र के पिरामिड, मैग्नीसियम, रामनगर, वाराणसी, लखपत, शेखावाटी, सेवरी किला, हुमायूँ का मकबरा, हॉलीवुड, वट्टकोट्टई फोर्ट, वाराणसी, वाराणसी का इतिहास, विद्यासागर सेतु, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत), वोल्टमीटर, ओजोन थेरेपी, कन्नड़ भाषा, काशी का इतिहास, कोलकाता, कोलकाता की संस्कृति, अधिमहाद्वीप, अपस्मार, अजंता गुफाएँ, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, 1896 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक

झारखंड आंदोलन

झारखंड का अर्थ है "वन क्षेत्र", झारखंड वनों से आच्छादित छोटानागपुर के पठार का हिस्सा है जो गंगा के मैदानी हिस्से के दक्षिण में स्थित है। झारखंड शब्द का प्रयोग कम से कम चार सौ साल पहले सोलहवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। अपने बृहत और मूल अर्थ में झारखंड क्षेत्र में पुराने बिहार के ज्यादतर दक्षिणी हिस्से और छत्तीसगढ, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के कुछ आदिवासी जिले शामिल है। देश की लगभग नब्बे प्रतिशत अनुसूचित जनजाति का यह निवास स्थल है। इस आबादी का बड़ा हिस्सा 'मुंडा', 'हो' और 'संथाल' आदि जनजातियों का है, लेकिन इनके अलावे भी बहुत सी दूसरी आदिवासी जातियां यहां मौजूद हैं जो इस झारखंड आंदोलन में काफी सक्रिय रही हैं। चूँकि झारखंड पठारी और वनों से आच्छादित क्षेत्र है इसलिये इसकी रक्षा करना तुलनात्मक रूप से आसान है। परिणामस्वरुप, पारंपरिक रूप से यह क्षेत्र सत्रहवीं शताब्दी के शुरुआत तक, जब तक मुगल शासक यहाँ नहीं पहुँचे, यह क्षेत्र स्वायत्त रहा है। मुगल प्रशासन ने धीरे धीरे इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना शुरु किया और फलस्वरुप यहाँ की स्वायत्त भूमि व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन हुआ, सारी व्यवस्था ज़मींदारी व्यवस्था में बदल गयी जबकि इससे पहले यहाँ भूमि सार्वजनिक संपत्ति के रूप में मानी जाती थी। यह ज़मींदारी प्रवृति ब्रिटिश शासन के दौरान और भी मज़बूत हुई और जमीने धीरे धीरे कुछ लोगों के हाथ में जाने लगीं जिससे यहाँ बँधुआ मज़दूर वर्ग का उदय होने लगा। ये मजदू‍र हमेशा कर्ज के बोझ तले दबे होते थे और परिणामस्वरुप बेगार करते थे। जब आदिवासियों के ब्रिटिश न्याय व्यवस्था से कोई उम्मीद किरण नहीं दिखी तो आदिवासी विद्रोह पर उतर आये। अठारहवीं शताब्दी में कोल्ह, भील और संथाल समुदायों द्वारा भीषण विद्रोह किया गया। अंग्रेजों ने बाद मेंउन्निसवीं शताब्दी और बीसवीं शताब्दी में कुछ सुधारवादी कानून बनाये। 1845 में पहली बार यहाँ ईसाई मिशनरियों के आगमन से इस क्षेत्र में एक बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन और उथल-पुथल शुरु हुआ। आदिवासी समुदाय का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा ईसाईयत की ओर आकृष्ट हुआ। क्षेत्र में ईसाई स्कूल और अस्पताल खुले। लेकिन ईसाई धर्म में बृहत धर्मांतरण के बावज़ूद आदिवासियों ने अपनी पारंपरिक धार्मिक आस्थाएँ भी कायम रखी और ये द्वंद कायम रहा। झारखंड के खनिज पदार्थों से संपन्न प्रदेश होने का खामियाजा भी इस क्षेत्र के आदिवासियों को चुकाते रहना पड़ा है। यह क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा खनिज क्षेत्र है जहाँ कोयला, लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और इसके अलावा बाक्साईट, ताँबा चूना-पत्थर इत्यादि जैसे खनिज भी बड़ी मात्रा में हैं। यहाँ कोयले की खुदाई पहली बार 1856 में शुरु हुआ और टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनीकी स्थापना 1907 में जमशेदपुर में की गई। इसके बावजूद कभी इस क्षेत्र की प्रगति पर ध्यान नहीं दिया गया। केंद्र में चाहे जिस पार्टी की सरकार रही हो, उसने हमेशा इस क्षेत्र के दोहन के विषय में ही सोचा था। .

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डूगोंग

डूगोंग (dugong) एक मध्यम आकार का समुद्री स्तनधारी प्राणी है जो विश्व के कई भागों में समुद्री तटीय क्षेत्रों के जल में पाया जाता है। यह साइरेनिया जीववैज्ञानिक गण का सदस्य है, जिसमें चार जीववैज्ञानिक जातियाँ पाई जाती हैं। डूगोंग इस गण के अधीन डूगोंगिडाए (Dugongidae) नामक कुल की इकलौती जीवित जाति है। इस कुल में स्टेलर समुद्री गाय (Steller's sea cow) नामक एक अन्य जाति भी थी लेकिन उसका इतना शिकार करा गया कि वह १८वीं शताब्दी में विलुप्त हो गई। साइरेनिया गण में डूगोंग के अलावा तीन मैनाटी की जातियाँ भी हैं। डूगोंग का हज़ारों वर्षों से तेल और माँस के लिये शिकार किया गया है। यह एक लम्बी आयु की जाति है - औसतन डूगोंग ७० वर्षों के लिये जीवित रहते हैं। इनके प्रजनन की गति धीमी है और इनकी संख्या धीरे-धीरे ही बढ़ती है। इन कारणों से इनका संरक्षण आवश्यक हो गया है और यह एक असुरक्षित जाति घोषित कर दी गई है। कई स्थानों पर इन्हें सुरक्षित रखने के लिये प्रयास करे जा रहे हैं, मसलन भारत की चिल्का झील में। .

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द गान

द गान (The Ghan) ऑस्ट्रेलिया में एडिलेड, ऐलिस स्प्रिंग्स और डार्विन के बीच चलने वाली एक यात्री रेल सेवा है। यह ५४ घंटों में २,९७९ किलोमीटर का रास्ता तय करती है। इसका नाम १९वीं शताब्दी के अंत में ऑस्ट्रेलिया लाए गए कुछ अफ़्गान ऊंट-सवारों पर रखा गया है जिनकी मदद से ऑस्ट्रेलिया के भीतरी रेगिस्तानी भाग की खोज व जाँच करी गई थी। .

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धातु संसूचक

अमरीकी सैनिक ईराक में धातु संसूचक के प्रयोग से हथियार आदि ढूंढते हुए धातु संसूचक से जमीन पर खोज करते हुए धातु संसूचक (अंग्रेज़ी:मेटल डिटेक्टर) का प्रयोग धातु से जुड़े सामानों का पता लगाने में किया जाता है। इसके अलावा लैंड माइंस का पता लगाने, हथियारों, बम, विस्फोटक आदि का पता लगाने जैसे कई कामों में भी किया जाता है।। हिन्दुस्तान लाइव।१६ नवंबर, २००९ एक सरलतम धातु संसूचक में एक विद्युत दोलक होता है जो प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करता है। यह धारा एक तार की कुंडली में से प्रवाहित होकर अलग चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। इसमें एक कुंडली का प्रयोग चुंबकीय क्षेत्र को मापने के लिए किया जाता है। चुंबकीय पदार्थ के होने पर चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इसको मापा जाता है। इसमें लगे माइक्रोप्रोसेसर धातु की प्रकार का पता लगाते हैं। धातु संसूचक वैद्युत चुंबकत्व के सिद्धांत पर काम करते हैं। अलग-अलग कार्यो के प्रयोग के अनुसार धातु संसूचकों की संवेदनशीलता अलग होती है। उन्नीसवीं शताब्दी में वैज्ञानिक ऐसे यंत्र की खोज करने में लगे थे जिससे धातुओं को खोजा जा सके। आरंभ में धातुओं की खोज के लिए जो उपकरण बनाए गए, उनकी क्षमता सीमित थी और वह ऊर्जा का प्रयोग अधिक करते थे। ऐसे में वे हर जगह कारगर नहीं होते थे। १८८१ में ग्राहम बेल ने इस प्रकार के यंत्र की मूल खोज की थी।। समय लाइव। २ मार्च २००९। रमेश चंद्र १९३७ में जेरार्ड फिशर ने इस प्रकार की युक्ति का विकास कर धातु वेक्षक या संसूचक का अन्वेषण किया जिसमें यदि रेडियो किसी धातु को खोजने में खराब हो जाए तो उसे उसकी रेडियो आवृत्ति के आधार पर खोज सकने की क्षमता थी। वह सफल हुए और उन्होंने इसका पेटेंट करवा लिया। .

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निशान साहिब

निशान साहिब या निशान साहब सिखों का पवित्र त्रिकोणीय ध्वज है। यह पर्चम कपास या रेशम के कपड़े का बना होता है, इसके सिरे पर एक रेशम की लटकन होती है। इसे हर गुरुद्वारे के बाहर, एक ऊंचे ध्वजडंड पर फ़ैहराया जाता है। परंपरानुसार निशान साहब को फ़ैहरा रहे डंड में ध्वजकलश(ध्वजडंड का शिखर) के रूप में एक दोधारी खंडा (तलवार) होता है, एवं स्वयं ही डंड को पूरी तरह कपड़े से लिपेटा जाता है। झंडे के केंद्र में एक खंडा चिह्न (☬) होता है। निशान साहिब खालसा पंथ का पारंपरागक प्रतीक है। काफ़ी ऊंचाई पर फ़ैहराए जाने के कारण निशान साहिब को दूर से ही देखा जा सकता है। किसी भी जगह पर इसके फहरने का दृष्य, उस मौहल्ले में खालसा पंथ की मौजूदगी का प्रतीक माना जाता है। हर बैसाखी पर इसे नीचे उतार लिया जाता है और एक नए पर्चम से बदल दिया जाता है। .

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पण्डित

एक कर्मकाण्डी पण्डित (ब्राह्मण) का चित्र पण्डित (पंडित), या पण्डा (पंडा), अंग्रेजी में Pandit का अर्थ है एक विद्वान, एक अध्यापक, विशेषकर जो संस्कृत और हिंदू विधि, धर्म, संगीत या दर्शनशास्त्र में दक्ष हो। अपने मूल अर्थ में 'पण्डित' शब्द का तात्पर्य हमेशा उस हिन्दू ब्राह्मण से लिया जाता है जिसने वेदों का कोई एक मुख्य भाग उसके उच्चारण और गायन के लय व ताल सहित कण्ठस्थ कर लिया हो। .

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पनडुब्बी

सन् १९७८ में ''एल्विन'' प्रथम विश्व युद्ध में प्रयुक्त जर्मनी की यूसी-१ श्रेणी की पनडुब्बी पनडुब्बी(अंग्रेज़ी:सबमैरीन) एक प्रकार का जलयान (वॉटरक्राफ़्ट) है जो पानी के अन्दर रहकर काम कर सकता है। यह एक बहुत बड़ा, मानव-सहित, आत्मनिर्भर डिब्बा होता है। पनडुब्बियों के उपयोग ने विश्व का राजनैतिक मानचित्र बदलने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। पनडुब्बियों का सर्वाधिक उपयोग सेना में किया जाता रहा है और ये किसी भी देश की नौसेना का विशिष्ट हथियार बन गई हैं। यद्यपि पनडुब्बियाँ पहले भी बनायी गयीं थीं, किन्तु ये उन्नीसवीं शताब्दी में लोकप्रिय हुईं तथा सबसे पहले प्रथम विश्व युद्ध में इनका जमकर प्रयोग हुआ। विश्व की पहली पनडुब्बी एक डच वैज्ञानिक द्वारा सन १६०२ में और पहली सैनिक पनडुब्बी टर्टल १७७५ में बनाई गई। यह पानी के भीतर रहते हुए समस्त सैनिक कार्य करने में सक्षम थी और इसलिए इसके बनने के १ वर्ष बाद ही इसे अमेरिकी क्रान्ति में प्रयोग में लाया गया था। सन १६२० से लेकर अब तक पनडुब्बियों की तकनीक और निर्माण में आमूलचूल बदलाव आया। १९५० में परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बियों ने डीज़ल चलित पनडुब्बियों का स्थान ले लिया। इसके बाद समुद्री जल से आक्सीजन ग्रहण करने वाली पनडुब्बियों का भी निर्माण कर लिया गया। इन दो महत्वपूर्ण आविष्कारों से पनडुब्बी निर्माण क्षेत्र में क्रांति सी आ गई। आधुनिक पनडुब्बियाँ कई सप्ताह या महिनों तक पानी के भीतर रहने में सक्षम हो गई है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी पनडुब्बियों का उपयोग परिवहन के लिये सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए किया जाता था। आजकल इनका प्रयोग पर्यटन के लिये भी किया जाने लगा है। कालपनिक साहित्य संसार और फंतासी चलचित्रों के लिये पनडुब्बियों का कच्चे माल के रूप मे प्रयोग किया गया है। पनडुब्बियों पर कई लेखकों ने पुस्तकें भी लिखी हैं। इन पर कई उपन्यास भी लिखे जा चुके हैं। पनडुब्बियों की दुनिया को छोटे परदे पर कई धारावाहिको में दिखाया गया है। हॉलीवुड के कुछ चलचित्रों जैसे आक्टोपस १, आक्टोपस २, द कोर में समुद्री दुनिया के मिथकों को दिखाने के लिये भी पनडुब्बियो को दिखाया गया है। .

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बिनसर

बिनसर उत्तरांचल में अल्मोड़ा से लगभग ३४ किलोमीटर दूर है। यह समुद्र तल से लगभग २४१२ मीटर की उंचाई पर बसा है। लगभग ११वीं से १८वीं शताब्दी तक ये चन्द राजाओं की राजधानी रहा था। अब इसे वन्य जीव अभयारण्य बना दिया गया है। बिनसर झांडी ढार नाम की पहाडी पर है। यहां की पहाड़ियां झांदी धार के रूप में जानी जाती हैं। बिनसर गढ़वाली बोली का एक शब्द है -जिसका अर्थ नव प्रभात है। यहां से अल्मोड़ा शहर का उत्कृष्ट दृश्य, कुमाऊं की पहाडियां और ग्रेटर हिमालय भी दिखाई देते हैं। घने देवदार के जंगलों से निकलते हुए शिखर की ओर रास्ता जाता है, जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का अकाट्य दृश्‍य और चारों ओर की घाटी देखी जा सकती है। बिनसर से हिमालय की केदारनाथ, चौखंबा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचोली चोटियों की ३०० किलोमीटर लंबी शृंखला दिखाई देती है, जो अपने आप में अद्भुत है और ये बिनसर का सबसे बड़ा आकर्षण भी हैं। .

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बंगाल के नवाब

यह सूची बंगाल के नवाबओं की है:- .

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बकिंघम नहर

कोरोमंडल तट का मानचित्र, जिसमें बकिंघम नहर दर्शित है बकिंघम नहर दक्षिण भारत के कोरोमंडल तट के समानांतर ४२० कि॰मी॰ लंबी खारे पानी की नौवहन नहर है। यह आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा शहर से तमिल नाडु के विल्लुपुरम जिला तक जाती है। यह नहर अधिकांश बैक वाटर्स को चेन्नई बंदरगाह से जोड़ती है। इसका निर्माण ब्रिटिश काल में अंतिम १९वीं शताब्दी और आरंभिक बीसवीं शताब्दी में हुआ था। श्रेणी:चेन्नई.

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भरतपुरा

भरतपुरा गांव में प्रवेश करते ही दूर-दूर तक हरे-भरे खेत दिखाई देते है और उन्हीं के बीच एक ऊंचे टीले पर सरकारी सुरक्षा गार्डो से घिरी लाइब्रेरी की इमारत नजर आती है। लाइब्रेरीके साथ-साथ भरतपुरा का ऐतिहासिक महत्व है। लाइब्रेरी के संस्थापक गोपाल नारायण सिंह के पूर्वज राजा कान्हचन्द अपने वक्त के बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति थे।राजा गुलालचन्द राजा कांचन के दत्तक पुत्र थें। उनका परिवार महाराष्ट्र से चलकर बिहार में आकर बस गया था। यह मुगल बादशाह शाहजहां का वक्त था। बादशाह के यहां उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। बाद में मुगल बादशाह फारूखशियर और शाह आलम ने फरमान के जरिए राजा गुलालचन्द को राजा साहब का खिताब दिया। उन्हीं के पुत्र राजा भरत सिंह ने रामपुर मोहकम में एक किला बनवाया जो कालान्तर में भरतपुरा गढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पुस्तकालय की नींव 19वी सदी के उत्तरार्ध में राजा गुलाल नारायण सिंह ने रखी। बाद में 12 दिसंबर 1912 को उनके पुत्र बाबू गोपाल नारायण सिंह ने इसकी विधिवत स्थापना की। यह गुलामी के दिन थे। शिक्षा का घोर अभाव था। ऐसे समय में इस पुस्तकालय की स्थापना एक बड़ी घटना थी। पुस्तकालय का उदघाटन तत्कालीन जिलाधीश डब्लू.डी.आर.

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महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण

१८७० में निर्मित भारतीय उपमहाद्वीप का एक मानचित्र जिसमें त्रिभुज और ट्रान्सेक्ट (transects) दर्शाए गये हैं। महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण भारतीय सर्वेक्षण विभाग की एक परियोजना थ। यह १९वीं शताब्दी में चली थी। इसको आरंभिक दौर में विलियम लैम्बटन ने चलाया था और बाद में जॉर्ज एवरेस्ट ने संचालित किया था। इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत में मानचित्र बनाना, हिमालय क्षेत्रों की ऊंचाइयां नापना आदि आता था। श्रेणी:भारतीय सर्वेक्षण विभाग.

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मिस्र के पिरामिड

गीज़ा, मिस्र के एक पिरामिड समूह का दृश्य मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन फैरो (सम्राट) गणों के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं, जिनमें राजाओं के शवों को दफनाकर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ममी कहा जाता है। उनके शवों के साथ खाद्यान, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहनें, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था। भारत की तरह ही मिस्र की सभ्यता भी बहुत पुरानी है और प्राचीन सभ्यता के अवशेष वहाँ की गौरव गाथा कहते हैं। यों तो मिस्र में १३८ पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गीज़ा में तीन लेकिन सामान्य विश्वास के विपरीत सिर्फ गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शेष यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे काल प्रवाह भी खत्म नहीं कर सका। यह पिरामिड ४५० फुट ऊंचा है। ४३ सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा। १९वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा। इसका आधार १३ एकड़ में फैला है जो करीब १६ फुटबॉल मैदानों जितना है। यह २५ लाख चूनापत्थरों के खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन २ से ३० टनों के बीच है। ग्रेट पिरामिड को इतनी परिशुद्धता से बनाया गया है कि वर्तमान तकनीक ऐसी कृति को दोहरा नहीं सकती। कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमट्रीज) का पता नहीं लगा पाये थे, प्रतिरूप बनाने की तो बात ही दूर! प्रमाण बताते हैं कि इसका निर्माण करीब २५६० वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश द्वारा अपनी कब्र के तौर पर कराया गया था। इसे बनाने में करीब २३ साल लगे। म्रिस के इस महान पिरामिड को लेकर अक्सर सवाल उठाये जाते रहे हैं कि बिना मशीनों के, बिना आधुनिक औजारों के मिस्रवासियों ने कैसे विशाल पाषाणखंडों को ४५० फीट ऊंचे पहुंचाया और इस बृहत परियोजना को महज २३ वर्षों में पूरा किया? पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३६५ दिनों में हर दिन १० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा। क्या ऐसा संभव था? विशाल श्रमशक्ति के अलावा क्या प्राचीन मिस्रवासियों को सूक्ष्म गणितीय और खगोलीय ज्ञान रहा होगा? विशेषज्ञों के मुताबिक पिरामिड के बाहर पाषाण खंडों को इतनी कुशलता से तराशा और फिट किया गया है कि जोड़ों में एक ब्लेड भी नहीं घुसायी जा सकती। मिस्र के पिरामिडों के निर्माण में कई खगोलीय आधार भी पाये गये हैं, जैसे कि तीनों पिरामिड आ॓रियन राशि के तीन तारों की सीध में हैं। वर्षों से वैज्ञानिक इन पिरामिडों का रहस्य जानने के प्रयत्नों में लगे हैं किंतु अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। .

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मैग्नीसियम

मैग्नेशियम एक रासायनिक तत्त्व है, जिसका चिह्न है Mg, परमाणु संख्या १२ एवं सामान्य ऑक्सीडेशन संख्या +२ है। है। यह कैल्शियम और बेरियम की तरह एक एल्केलाइन अर्थ धातु है एवं पृथ्वी पर आठवाँ बहुल उपलब्ध तत्त्व है तथा भार के अनुपात में २% है, और पूरे ब्रह्माण्ड में नौंवा बहुल तत्त्व है। इसके बाहुल्य का संबंध ये तथ्य है, कि ये सुपरनोवा तारों में तीन हीलियम नाभिकों के कार्बन में शृंखलागत तरीके से जुड़ने पर मैग्नेशियम का निर्माण होता है। मैग्नेशियम आयन की जल में उच्च घुलनशीलता इसे सागर के जल में तीसरा बहुल घुला तत्त्व बनाती है। मैग्नीशियम सभी जीव जंतुओं के साथ मनुष्य के लिए भी उपयोगी तत्त्व है। यह प्रकाश का स्नोत है और जलने पर श्वेत प्रकाश उत्सर्जित करता है। यह मानव शरीर में पाए जाने वाले पांच प्रमुख रासायनिक तत्वों में से एक है। मानव शरीर में उपस्थित ५०% मैग्नीशियम अस्थियों और हड्डियों में होता है जबकि शेष भाग शरीर में हाने वाली जैविक कियाओं में सहयोगी रहता है। left एक स्वस्थ आहार में इसकी पर्याप्त मात्रा होनी चाहिये। इसकी अधिकता से अतिसार और न्यूनता से न्यूरोमस्कुलर समस्याएं हो सकती है। मैग्नीशियम हरी पत्तेदार सब्जियों में पाया जाता है।|हिन्दुस्तान लाईव। २४ मई २०१० इसकी खोज सर हंफ्री डेवी ने १८०८ में की थी। असल में डेवी ने वास्तव में धातु के एक ऑक्साइड को खोजा था, जो बाद में एक तत्व निकला। एक अन्य मान्यता अनुसार कि मैग्नीशियम की खोज १८वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी। वैसे इसके एक यौगिक एप्सम लवण की खोज १७वीं शताब्दी में हो चुकी थी और वह आज भी प्रयोग में आता है। इसका एक अन्य यौगिक मिल्क ऑफ मैग्नीशिया कहलाता है। मैग्नीशियम अन्य तत्वों के साथ सरलता से अभिक्रिया कर यौगिक बना लेता है, जिस कारण यह प्रकृति में सदा यौगिकों के रूप में उपस्थित होता है। सागर का जल मैग्नीशियम का एक बड़ा स्रोत है, अतः कई धातु-शोधक कंपनियां इसे सागर से शोधित कर इसका औद्योगिक प्रयोग करती हैं। विलयन पर यह चांदी जैसा सफेद और भार में अपेक्षाकृत हल्का हो जाता है। धातु रूप में यह विषैला (टॉक्सिक) नहीं होता, किन्तु जलाने पर यह विषैला प्रभाव छोड़ता है। इसीलिए गर्म मैग्नीशियम का प्रयोग करते समय नाक को सावधानी से बचाकर काम करना चाहिए। मैग्नीशियम हल्का तत्व होने पर भी काफी मजबूत होता है। इस कारण ही इसे मिश्र धातुओं और अंतरिक्ष उद्योग के लिए उपयोगी माना जाता है। कुछ उच्च क्षमता वाले स्वचालित यंत्रों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। .

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रामनगर, वाराणसी

रामनगर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिला का एक तहसील है। रामनगर में एक किला है जिसे रामनगर किला कहते हैं और ये यहां के राजा काशी नरेश का आधिकारिक और पैतृक आवास है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। रामनगर किला में यहां के राजाओं का एक संग्रहालय भी है। ये राजाओं का १८वीं शताब्दी से आवास है। .

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लखपत

लखपत कोरी क्रीक के मुहाने पर स्थित गुजरात राज्य के कच्छ जिले में एक कम आबादी वाला शहर और उप जिला है। शहर 7 कि.मी.

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शेखावाटी

शेखावाटी उत्तर-पूर्वी राजस्थान का एक अर्ध-शुष्क ऐतिहासिक क्षेत्र है। राजस्थान के वर्तमान सीकर और झुंझुनू जिले शेखावाटी के नाम से जाने जाते हैं इस क्षेत्र पर आजादी से पहले शेखावत क्षत्रियों का शासन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम शेखावाटी प्रचलन में आया। देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा, खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ, सुरजगढ, नवलगढ़,मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, * कंकङेऊ कलां खाचरियाबास, अलसीसर,यासर,मलसीसर,लक्ष्मणगढ,बीदसर आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे। वर्तमान शेखावाटी क्षेत्र पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व मानचित्र में तेजी से उभर रहा है, यहाँ पिलानी और लक्ष्मणगढ के भारत प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र है। वही नवलगढ़, फतेहपुर, गंगियासर,अलसीसर, मलसीसर, लक्ष्मणगढ, मंडावा आदि जगहों पर बनी प्राचीन बड़ी-बड़ी हवेलियाँ अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है जिन्हें देखने देशी-विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है। पहाडों में सुरम्य जगहों बने जीण माता मंदिर, शाकम्बरीदेवी का मन्दिर, लोहार्ल्गल के अलावा खाटू में बाबा खाटूश्यामजी का (बर्बरीक) का मन्दिर,सालासर में हनुमान जी का मन्दिर * कंकङेऊ कलां में बाबा माननाथ की मेङी आदि स्थान धार्मिक आस्था के ऐसे केंद्र है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं। इस शेखावाटी प्रदेश ने जहाँ देश के लिए अपने प्राणों को बलिदान करने वाले देशप्रेमी दिए वहीँ उद्योगों व व्यापार को बढ़ाने वाले सैकडो उद्योगपति व व्यापारी दिए जिन्होंने अपने उद्योगों से लाखों लोगों को रोजगार देकर देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दिया। भारतीय सेना को सबसे ज्यादा सैनिक देने वाला झुंझुनू जिला शेखावाटी का ही भाग है। .

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सेवरी किला

सिवरी दुर्ग (सेवरी किला) ब्रिटिश द्वारा मुम्बई के सिवरी में बनवाया गया था। इस दुर्ग का निर्माण १६८० में एक उत्खनित पहाड़ी पर मुंबई बंदरगाह पर दृष्टि बनाये रखने हेतु एक पहरे की मीनार के रूप में किया गया था। .

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हुमायूँ का मकबरा

हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन (१२६८-१२८७) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह समूह विश्व धरोहर घोषित है- अभिव्यक्ति। १७ अप्रैल २०१०।, एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार १५६२ में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बनी। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था। १९९३ में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है। हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं। देल्ही थ्रु एजेज़। एस.आर.बख्शी। प्रकाशक:अनमोल प्रकाशन प्रा.लि.। १९९५।ISBN 81-7488-138-7। पृष्ठ:२९-३५ इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा, जिसका प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे। ऐसे उद्यान भारत में इससे पूर्व कभी नहीं दिखे थे और इसके बाद अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। ये मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी। हिस्ट‘ओरिक गार्डन रिव्यु नंबर १३, लंदन:हिस्टॉरिक गार्डन फ़ाउडेशन, २००३ अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज़्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित ये इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बना। ये स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा। .

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हॉलीवुड

हॉलीवुड में एक पहाड़ी पर प्रसिद्ध चिह्न हॉलीवुड संयुक्त राज्य अमरीका के फ़िल्म उद्योग का नाम है। इसका नाम कैलिफ़ोर्निया में लॉस एंजेलेस के एक जिले पर रखा गया है जहाँ पर बहुत सारे फ़िल्म स्टूडियो स्थापित हैं। 19वीं सदी में थॉमस ऐल्वा ऐडिसन ने काइनेटोस्कोप ईजाद किया और इसके पेटेन्ट के सहारे फ़िल्म निर्माताओं से बहुत बड़ी-बड़ी फ़ीस माँगीं। इनसे बचने के लिए कई फ़िल्म कम्पनियाँ कैलिफ़ोर्निया के हॉलीवुड जिले में आकर स्थापित हो गईं। आजकल अधिकतर फ़िल्म उद्योग पास ही में बुर्बैंक और वेस्टसाइड में चला गया है, लेकिन बहुत से काम अब भी हॉलीवुड में ही होते हैं। हॉलीवुड के सबसे प्रसिद्ध पुरस्कार अकादमी पुरस्कार हैं, जिन्हें ऑस्कर पुरस्कार के नाम से भी जाना जाता है। .

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वट्टकोट्टई फोर्ट

वट्टकोट्टाई दुर्ग (या किला जिसे सर्कुलर फ़ोर्ट भी कहते हैं) भारत के दक्षिणतम राज्य तमिल नाडु राज्य के कन्याकुमारी शहर के उत्तर पूर्व में लगभग 6 किमी की दूरी पर है। इस किले का निर्माण १८वीं शताब्दी में किया गया था और त्रावणकोर राजाओं द्वारा बनवाये गए तटीय किलों में तह अन्तिम किला था। वट्टाकोट्टाई किले की दीवारों की ऊँचाई लगभग २५ फीट है और आगे की ओर मोटाई २९ फीट है। इस किले को डच जलसेना अधिकारी डी लेनॉय द्वारा बनाया गया था। यह किला पाषाण शिलाओं का बना है और इसमें आरामकक्ष, निगरानी मीनार और आयुधकक्ष स्थित है। किले के अन्दर की दीवारों पर मछलियों की आकृतियाँ बनी हैं जो पाण्ड्य राजाओं का राजचिह्न हुआ करता था। पुरातत्ववेत्ताओं की मान्यता अनुसार यह किला पूर्व में पाण्ड्य राजाओं के अधीन था। तब पद्मनाभपुरम पैलेस किले की चोटी से यह स्पष्ट दिखाई देता था। पूर्व में किले से पैलेस तक १.२ मीटर चौड़ी एक सुरंग थी, लेकिन अब यह बन्द हो गई है। किले के ऊपर स्थित परेड ग्राउन्ड से सागर का अवलोकन होता है। परेड ग्राउन्ड के एक ओर से बंगाल की खाड़ी दूसरी ओर से अरब सागर का शान्त जल दिखाइ देता है। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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वाराणसी का इतिहास

वाराणसी का मूल नगर काशी था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कंद पुराण, रामायण एवं महाभारत सहित प्राचीनतम ऋग्वेद सहित कई हिन्दू ग्रन्थों में नगर का उल्लेख आता है। सामान्यतः वाराणसी शहर को कम से कम ३००० वर्ष प्राचीन तो माना ही जाता है। नगर मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दाँत और शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र रहा है। गौतम बुद्ध (जन्म ५६७ ई.पू.) के काल में, वाराणसी काशी राज्य की राजधानी हुआ करता था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है और इसका विस्तार गंगा नदी के किनारे ५ कि॰मी॰ तक लिखा है। .

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विद्यासागर सेतु

विद्यासागर सेतु (प्रचलित नाम: दूसरा हावड़ा ब्रिज) हुगली नदी पर कोलकाता से हावड़ा को जोड़ता हुआ सेतु है। यह सेतु टोल ब्रिज है, किंतु साइकिलों के लिए निःशुल्क है। यह अपने प्रकार के सेतुओं में भारत में सबसे लंबा और एशिया के सबसे लंबे सेतुओं में से एक है। इस सेतु का नाम उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाली समाज-सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के नाम पर रखा गया है। इस सेतु के दोनों ओर ही नदी पर दो अन्य बड़े सेतु भी हैं.

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विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत)

आयोग की स्थापना के समय मौलाना आजाद एवं डॉ॰सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (अंग्रेज़ी:University Grants Commission, लघु:UGC) केन्द्रीय सरकार का एक उपक्रम है जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को अनुदान प्रदान करता है। यही आयोग विश्वविद्यालयों को मान्यता भी देता है। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है और इसके छः क्षेत्रीय कार्यालय पुणे, भोपाल, कोलकाता, हैदराबाद, गुवाहाटी एवं बंगलुरु में हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। २२ फ़रवरी २०१० .

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वोल्टमीटर

भौतिकी की कक्षा में प्रदर्शन के लिये रखा वोल्टमीटर वोल्टमीटर (अंग्रेज़ी:Voltmeter) एक मापन यंत्र है जो किसी परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर को मापने के लिये प्रयोग किया जाता है। १८१९ में हैंस ऑरेस्टड ने वोल्टमीटर का आविष्कार किया।।हिन्दुस्तान लाइव।१२ नवंबर,२००९ उन्होंने चुम्बकीय दिशासूचक की सुई के पास रखे तार में विद्युत धारा का प्रवाह किया तो उन्होंने देखा कि इसकी दिशा में परिवर्तन हो रहा है। ध्यान देने पर ज्ञात हुआ कि तार में जितनी अधिक एंपियर की धारा प्रवाहित की जाती है, सुई की दिशा में उतनी ही तीव्रता से परिवर्तन होता है। इसी कारण से उनका मापन एकदम सही नहीं आ रहा था। १९वीं शताब्दी में आर्सीन डी आर्सोनवल ने ऐसा यंत्र बनाया जो पहले बने यंत्रों की तुलना में बेहतर मापन कर सके। इसके लिए उन्होंने कंपास की सुई को छोटा किया और उसे चारों तरफ से चुंबक से घेर दिया। यह डी आर्सोनवल मूवमेंट के नाम से जाना जाता है और इसका प्रयोग आज के एनालॉग मीटर में होता है। व्यावहारिक तौर पर वोल्टमीटर अमीटर की तरह ही काम करते हैं, जो वोल्टेज को मापने के साथ, विद्युत धारा और प्रतिरोध को भी मापते हैं। .

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ओजोन थेरेपी

एक चिकित्सकीय ओज़ोन जनरेटर।सौजन्य: http://www.medpolinar.com/eng_version/ozon.htm www.medpolinar.com ओजोन थेरेपी में ओजोन और ऑक्सीजन के मिश्रण को मनुष्य के शरीर के लाभ हेतु प्रयोग किया जाता है। ओजोन एंटीऑक्सीडेंट प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सक्षम है, इसलिए यह ऑक्सीडेटिव मानसिक तनाव को कम कर सकता है। ओजोन का यह एंटीऑक्सीडेंट प्रतिरोधक तंत्र विकिरण और कीमोथेरेपी के दौरान पैदा होने वाले रेडिकल्स को संतुलित करता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ९ मई २०१० चाहे शरीर में शीघ्र थकान होने की शिकायत हो, सुस्ती अनुभव होती हो, छाती में दर्द की समस्या हो या उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्राल वृद्धि, मधुमेह आदि की चिंता हो, या कैंसर से लेकर एचआईवी जैसे घातक रोगों में, ओजोन थेरेपी इन सभी में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में समान रूप से सहायक हो सकती है। यह अल्पजीवी गैस शरीर के अंदर जाकर ऑक्सीकरण प्रक्रिया को तेज करने के साथ-साथ ऑक्सीजन को फेफड़ों से लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक ले जाने की क्षमता बढ़ा देती है। इससे शरीर द्वारा बनाये गए अफल विषैले तत्वों को बाहर निकालने एवं क्षय हो रही ऊर्जा के पुनर्संचय में मदद मिलती है। .

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कन्नड़ भाषा

कन्नड़ (ಕನ್ನಡ) भारत के कर्नाटक राज्य में बोली जानेवाली भाषा तथा कर्नाटक की राजभाषा है। यह भारत की उन २२ भाषाओं में से एक है जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में साम्मिलित हैं। name.

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काशी का इतिहास

वाराणसी (बनारस), १९२२ ई गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। हजारों वर्ष पूर्व कुछ नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। कुछ समय उपरांत पश्चिम से आये ऊँचे कद के गोरे लोगों ने उनकी नगरी छीन ली। ये बड़े लड़ाकू थे, उनके घर-द्वार न थे, न ही अचल संपत्ति थी। वे अपने को आर्य यानि श्रेष्ठ व महान कहते थे। आर्यों की अपनी जातियाँ थीं, अपने कुल घराने थे। उनका एक राजघराना तब काशी में भी आ जमा। काशी के पास ही अयोध्या में भी तभी उनका राजकुल बसा। उसे राजा इक्ष्वाकु का कुल कहते थे, यानि सूर्यवंश। काशी में चन्द्र वंश की स्थापना हुई। सैकड़ों वर्ष काशी नगर पर भरत राजकुल के चन्द्रवंशी राजा राज करते रहे। काशी तब आर्यों के पूर्वी नगरों में से थी, पूर्व में उनके राज की सीमा। उससे परे पूर्व का देश अपवित्र माना जाता था।Chandravanshee .

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कोलकाता

बंगाल की खाड़ी के शीर्ष तट से १८० किलोमीटर दूर हुगली नदी के बायें किनारे पर स्थित कोलकाता (बंगाली: কলকাতা, पूर्व नाम: कलकत्ता) पश्चिम बंगाल की राजधानी है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। यहाँ की जनसंख्या २ करोड २९ लाख है। इस शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। शहर को जहाँ भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र बिन्दु के रूप में पहचान मिली है वहीं दूसरी ओर इसे भारत में साम्यवाद आंदोलन के गढ़ के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। महलों के इस शहर को 'सिटी ऑफ़ जॉय' के नाम से भी जाना जाता है। अपनी उत्तम अवस्थिति के कारण कोलकाता को 'पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार' भी कहा जाता है। यह रेलमार्गों, वायुमार्गों तथा सड़क मार्गों द्वारा देश के विभिन्न भागों से जुड़ा हुआ है। यह प्रमुख यातायात का केन्द्र, विस्तृत बाजार वितरण केन्द्र, शिक्षा केन्द्र, औद्योगिक केन्द्र तथा व्यापार का केन्द्र है। अजायबघर, चिड़ियाखाना, बिरला तारमंडल, हावड़ा पुल, कालीघाट, फोर्ट विलियम, विक्टोरिया मेमोरियल, विज्ञान नगरी आदि मुख्य दर्शनीय स्थान हैं। कोलकाता के निकट हुगली नदी के दोनों किनारों पर भारतवर्ष के प्रायः अधिकांश जूट के कारखाने अवस्थित हैं। इसके अलावा मोटरगाड़ी तैयार करने का कारखाना, सूती-वस्त्र उद्योग, कागज-उद्योग, विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग उद्योग, जूता तैयार करने का कारखाना, होजरी उद्योग एवं चाय विक्रय केन्द्र आदि अवस्थित हैं। पूर्वांचल एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र के रूप में कोलकाता का महत्त्व अधिक है। .

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कोलकाता की संस्कृति

श्रेणी:कोलकाता.

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अधिमहाद्वीप

भूविज्ञान में अधिमहाद्वीप (supercontinent) पृथ्वी के दो या दो से अधिक परिभाषित महाद्वीपों को मिलाकर बनने वाले भूभाग को कहते हैं। इनमें से कुछ तो वास्तव में ही १९वीं शताब्दी तक ज़मीनी पुलों से जुड़े हुए थे और कुछ प्रागैतिहासिक पृथ्वी में लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व जुड़े हुए थे। यूरोप और एशिया को मिलाकर यूरेशिया बनता है जो आज भी एक ही भूभाग के अंश हैं। उत्तर और दक्षिण अमेरिका पनामा नहर खुदने से पहले जुड़े हुए थे। अफ़्रीका और एशिया सुएज़ नहर खुदने से पहले जुड़े हुए थे। करोड़ों वर्ष पूर्व पैन्जीया नामक अधिमहाद्वीप में पृथ्वी के लगभग सभी महाद्वीपों का भूभाग एकत्रित था।Rogers, John J.W., and M. Santosh.

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अपस्मार

अपस्मार या मिर्गी (वैकल्पिक वर्तनी: मिरगी, अंग्रेजी: Epilepsy) एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है।, हिन्दुस्तान लाइव, १८ नवम्बर २००९ दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग आनुवांशिक होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है।, वेब दुनिया, डॉ॰ वोनोद गुप्ता। १७ नवम्बर को विश्व भर में विश्व मिरगी दिवस का आयोजन होता है। इस दिन तरह-तरह के जागरुकता अभियान और उपचार कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।।। द टाइम्स ऑफ इंडिया।, याहू जागरण, १७ नवम्बर २००९ .

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अजंता गुफाएँ

अजंता गुफाएँ महाराष्ट्र, भारत में स्थित तकरीबन २९ चट्टानों को काटकर बना बौद्ध स्मारक गुफाएँ जो द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰ के हैं। यहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्रण एवम् शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं। इनके साथ ही सजीव चित्रण भी मिलते हैं। यह गुफाएँ अजंता नामक गाँव के सन्निकट ही स्थित है, जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है। (निर्देशांक: 20° 30’ उ० 75° 40’ पू॰) अजंता गुफाएँ सन् 1983 से युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित है।" ‘’’नैशनल ज्यॉग्राफिक ‘’’ के अनुसार: आस्था का बहाव ऐसा था कि प्रतीत होता है, जैसे शताब्दियों तक अजंता समेत, लगभग सभी बौद्ध मंदिर, हिन्दू राजाओं के शासन और आश्रय के अधीन बनवाये गये हों। .

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छत्रपति शिवाजी टर्मिनस

छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (मराठी: छत्रपती शिवाजी महाराज टरमीनस), पूर्व में जिसे विक्टोरिया टर्मिनस कहा जाता था, एवं अपने लघु नाम वी.टी., या सी.एस.टी.

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1896 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक

1896 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक, जो आधिकारिक तौर पर पहले ओलम्पियाड खेल के रूप में जानी जाती है, एक बहु-खेल प्रतियोगिता थी जो यूनान की राजधानी एथेंस में 6 अप्रैल से 15 अप्रैल 1896 के बीच आयोजित हुई थी। यह आधुनिक युग में आयोजित होने वाली पहली अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक खेल प्रतियोगिता थी। चूँकि प्राचीन यूनान ओलम्पिक खेलों का जन्मस्थान था, अतएव एथेंस आधुनिक खेलों के उद्घाटन के लिए उपयुक्त विकल्प माना गया था। यह सर्वसम्मति से जून 23, 1894, को पियरे डे कोबेर्टिन, फ्रांसीसी शिक्षाशास्त्री और इतिहासकार, द्वारा पेरिस में आयोजित एक सम्मेलन (कांग्रेस) के दौरान मेज़बान शहर के रूप में चुना गया था। अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) भी इस सम्मेलन के दौरान स्थापित की गई थी। अनेक बाधाओं और असफलताओं के बावजूद, 1896 ओलम्पिक का आयोजन एक बड़ी सफलता मानी गई थी। यह उस समय तक के किसी भी खेल आयोजन की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी थी। 19वीं सदी में प्रयोग किया एकमात्र ओलम्पिक स्टेडियम, पानाथिनाइको स्टेडियम, किसी भी खेल प्रतिस्पर्धा को देखने के लिए आई सबसे बड़ी भीड़ से उमड़ गया था। यूनानियों के लिए सबसे मुख्य उनके देशवासी स्पिरिडिन लुई की मैराथन विजय थी। सबसे सफल प्रतियोगी जर्मन पहलवान और जिमनास्ट कार्ल शुमेन थे, जिन्होंने चार स्पर्धाओं में जीत अर्जित की थी। खेलों के पश्चात्, ग्रीस के राजा जॉर्ज और एथेंस में उपस्थित कुछ अमेरिकी प्रतिस्पर्धियों सहित कई प्रमुख व्यक्तित्वों द्वारा रिज़ कोबेर्टिन और आईओसी के समक्ष याचिका दायर की गई थी कि उत्तरगामी सभी खेल एथेंस में ही आयोजित किये जाएँ। परंतु, 1900 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक पेरिस के लिए पहले से ही योजनाबद्ध थे और 1906 इन्टरकेलेटिड खेलों को छोड़कर, ओलम्पिक 2004 के ग्रीष्मकालीन खेलों तक ग्रीस में वापस नहीं लौटे, कुछ 108 साल बाद। इन खेलों की प्रतिस्पर्धाओं और शख्सियतों के प्रतिवेश की कहानियों को 1984 एनबीसी लघु शृंखला (मिनीसीरीज़), द फ़र्स्ट ओलम्पिक: एथेंस, 1896, में इतिवृत्त किया गया था। इस लघु शृंखला में अभिनीत थे विलियम मिलीगन स्लोन के रूप में डेविड ऑग्डेन स्टायर्स और पियरे डे कोबेर्टिन के रूप में लुई जोर्डान। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

19 शताब्दी, 19वीं सदी, अठारहवीं शताब्दी, १८वीं शताब्दी, १९वीं शताब्दी, १९वीं शाताब्दी, १९वीं सदी

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