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उदयसिंह द्वितीय

सूची उदयसिंह द्वितीय

उदयसिंह द्वितीय (जन्म ०४ अगस्त १५२२ – २८ फरवरी १५७२,चित्तौड़गढ़ दुर्ग, राजस्थान, भारत) एक मेवाड़के महाराणा थे और उदयपुर शहर के स्थापक थे जो वर्तमान में राजस्थान राज्य है। ये मेवाड़ साम्राज्य के ५३वें शासक थे उदयसिंह मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) के चौथे पुत्र थेTod, James (1829, reprint 2002).

15 संबंधों: चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी (१५६७–१५६८), पन्ना धाय, पिछोला झील, भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप, महाराणा प्रताप, महारानी जयवंताबाई, राजस्थान की झीलें, शक्ति सिंह, सिटी पैलेस, उदयपुर, सिसोदिया (राजपूत), जगमाल सिंह, कुम्भलगढ़ दुर्ग, अमर सिंह प्रथम, उदयपुर का इतिहास, उदयसागर झील

चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी (१५६७–१५६८)

चित्तोड़गढ़ की घेराबंदी (20 अक्टूबर 1567 – 23 फ़रवरी 1568) वर्ष 1567 में मेवाड़ राज्य पर मुगल साम्राज्य द्वारा किया गया सैनिक अभियान था। इसमें अकबर की सेना ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में जयमल के नेतृत्व वाले 8000 राजपूतों और 40,000 किसानों की घेराबन्दी कर ली। .

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पन्ना धाय

पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ में हुआ था। राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना 'धाय माँ' कहलाई थी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था। पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था। पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की। पन्ना चित्तौड़ के कुम्भा महल में रहती थी। .

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पिछोला झील

पिछोला झील उदयपुर के पश्चिम में पिछोली गांव के निकट इस झील का निर्माण राणा लखा के काल (१४वीं शताब्दी के अंत) में किसी बनजारे ने करवाया था। महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने इस शहर की खोज के बाद इस झील का विस्तार कराया था। झील में दो द्वीप हैं और दोनों पर महल बने हुए हैं। एक है जग निवास, जो अब लेक पैलेस होटल बन चुका है और दूसरा है जग मंदिर, उदयपुर। दोनों ही महल राजस्थानी शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण हैं,इन्हें नाव द्वारा जाकर इन्हें देखा जा सकता है। इस झील पर चार द्वीप है.

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भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप

भारत का वीर पुत्र - महाराणा प्रताप एक सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाला एक धारावाहिक है। यह २७ मई २०१३ से १० दिसम्बर २०१५ तक प्रसारित हो रहा था। इसे अभिमन्यु राज सिंह ने निर्देशित किया है। यह धारावाहिक १६वीं शताब्दी के मेवाड़ के राजपूत शासक, महाराणा प्रताप के जीवन पर आधारित एक भारतीय ऐतिहासिक नाटक है। यह ऐतिहासिक धारावाहिक १० दिसम्बर २०१५ को रात १० बजे अंतिम बार चला अर्थात अब यह पूरा हो चूका है इसके अंत में महाराणा प्रताप की बीमारी की वजह से मृत्यु हो जाती है। .

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महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदानुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ। .

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महारानी जयवंताबाई

महारानी जयवंताबाई महाराणा उदय सिंह की पहली पत्नी थी, और इनके पुत्र का नाम महाराणा प्रताप था। यह राजस्थान के जालौर की एक रियासत के अखे राज सोंगरा चौहान की बेटी थी। उनका शादी से पहले जीवंत कंवर नाम था जो शादी के बाद बदल दिया गया। जयवंता बाई उदय सिंह को राजनीतिक मामलों में सलाहें देती थी। 1572 में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद, जगमल अपने पिता की इच्छा के अनुसार सिंहासन पर चढ़ गए। प्रवेश समारोह शुरू होने से पहले, महाराणा प्रतापसिंह के अनुयायियों ने भौमिक रूप से जगमल को एक और सीट पर ले लिया और महाराणा प्रतापसिंह सिंहासन पर चढ़ गए। जयवंता बाई एक बहादुर, सीधी राजपूत रानी थी। वह भगवान कृष्ण की एक प्रफुल्लित भक्त थी और कभी उनके सिद्धांतों और आदर्शवादी विश्वासों से समझौता नहीं करती थी। उन्होंने प्रताप को अपने पोषित सिद्धांतों और धार्मिकता को पारित कर दिया, जो उनके द्वारा बहुत प्रेरित थे। बाद में उनके जीवन में, प्रताप ने उसी आदर्शवादी और सिद्धांतों का पालन किया जो जयवंता बाई ने किया। प्रताप एक महान राणा (राजा) बन गए। उन्होंने प्रताप को नैतिकता दी और उन्होंने इसका पालन किया और जिसके कारण उन्होंने महान लोगों की सूची में अपना नाम लिखा। उन्होंने प्रताप के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। .

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राजस्थान की झीलें

प्राचीन काल से ही राजस्थान में अनेक प्राकृतिक झीलें विद्यमान है। मध्य काल तथा आधुनिक काल में रियासतों के राजाओं ने भी अनेक झीलों का निर्माण करवाया। राजस्थान में मीठे और खारे पानी की झीलें हैं जिनमें सर्वाधिक झीलें मीठे पानी की है। .

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शक्ति सिंह

शक्ति सिंह सिसोदिया, जिन्हें शक्ति तथा सगत नामों से भी जाना जाता था, राणा उदय सिंह द्वितीय तथा रानी सज्जा बाई सोलंकिनी के पुत्र तथा महाराणा प्रताप के छोटे भाई थे। अपने पिता से शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों के कारण उन्होंने मुग़ल शासक अकबर के पाले में चले गये तथा बाद में उन्हें "मीर" की उपाधि प्रदान की गयी। १५६७ ईस्वी में धौलपुर से भाग गये जब अकबर ने वहाँ पड़ाव डाला था। उन्होंने अकबर की चित्तौड़ पर आधिपत्य जमाने की योजना अपने पिता को बता दी जिससे अकबर बहुत नाराज हो गया। हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान वे अपने भाई महाराणा प्रताप के पक्ष में आ गये। उनके वंशज शक्तवत नाम से जाने जाते हैं। .

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सिटी पैलेस, उदयपुर

सिटी पैलेस की स्थापना १६वीं शताब्दी में आरम्भ हुई। इसे स्थापित करने का विचार एक संत ने राजा उदयसिंह द्वितीय को दिया था। इस प्रकार यह परिसर ४०० वर्षों में बने भवनों का समूह है। यह एक भव्य परिसर है। इसे बनाने में २२ राजाओं का योगदान था। इस परिसर में प्रवेश के लिए टिकट लगता है। बादी पॉल से टिकट लेकर आप इस परिसर में प्रवेश कर सकते हैं। परिसर में प्रवेश करते ही आपको भव्य त्रिपोलिया गेट' दिखेगा। इसमें सात आर्क हैं। ये आर्क उन सात स्मवरणोत्सैवों का प्रतीक हैं जब राजा को सोने और चांदी से तौला गया था तथा उनके वजन के बराबर सोना-चांदी को गरीबों में बांट दिया गया था। इसके सामने की दीवार 'अगद' कहलाती है। यहां पर हाथियों की लड़ाई का खेल होता था। इस परिसर में एक जगदीश मंदिर भी है। इसी परिसर का एक भाग सिटी पैलेस संग्रहालय है। इसे अब सरकारी संग्रहालय घोषित कर दिया गया है। वर्तमान में शम्भूक निवास राजपरिवार का निवास स्थानन है। इससे आगे दक्षिण दिशा में 'फतह प्रकाश भ्‍ावन' तथा 'शिव निवास भवन' है। वर्तमान में दोनों को होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। .

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सिसोदिया (राजपूत)

सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी सिसोदिया या गेहलोत मांगलिया यासिसोदिया एक राजपूत राजवंश है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह सूर्यवंशी राजपूत थे। सिसोदिया राजवंश में कई वीर शासक हुए हैं। 'गुहिल' या 'गेहलोत' 'गुहिलपुत्र' शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। कुछ विद्वान उन्हें मूलत: ब्राह्मण मानते हैं, किंतु वे स्वयं अपने को सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते हैं जिसकी पुष्टि पृथ्वीराज विजय काव्य से होती है। मेवाड़ के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन अभिलेख मिले है। अत: वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों में उनकी विस्तार हुआ होगा। गुह के बाद भोज, महेंद्रनाथ, शील ओर अपराजित गद्दी पर बैठे। कई विद्वान शील या शीलादित्य को ही बप्पा मानते हैं। अपराजित के बाद महेंद्रभट और उसके बाद कालभोज राजा हुए। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कालभोज को चित्तौड़ दुर्ग का विजेता बप्पा माना है। किंतु यह निश्चित करना कठिन है कि वास्तव में बप्पा कौन था। कालभोज के पुत्र खोम्माण के समय अरब आक्रान्ता मेवाड़ तक पहुंचे। अरब आक्रांताओं को पीछे हटानेवाले इन राजा को देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने बप्पा मानने का सुझाव दिया है। कुछ समय तक चित्तौड़ प्रतिहारों के अधिकार में रहा और गुहिल उनके अधीन रहे। भर्तृ पट्ट द्वितीय के समय गुहिल फिर सशक्त हुए और उनके पुत्र अल्लट (विक्रम संवत् १०२४) ने राजा देवपाल को हराया जो डा.

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जगमाल सिंह

उदयसिंह द्वितीय एक भारतीय शासक था। .

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कुम्भलगढ़ दुर्ग

कुम्भलगढ़ दुर्ग का विशालकाय द्वार; इसे '''राम पोल''' कहा जाता है। कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ठ स्थान रखता है। उदयपुर से ७० किमी दूर समुद्र तल से १,०८७ मीटर ऊँचा और ३० किमी व्यास में फैला यह दुर्ग मेवाड़ के यशश्वी महाराणा कुम्भा की सूझबूझ व प्रतिभा का अनुपम स्मारक है। इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के द्वितीय पुत्र संप्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर १४४३ से शुरू होकर १५ वर्षों बाद १४५८ में पूरा हुआ था। दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है। बादल महल .

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अमर सिंह प्रथम

राणा अमर सिंह (1597 – 1620 ई०) मेवाड के शिशोदिया राजवंश के शासक थे। वे महाराणा प्रताप के पुत्र तथा महाराणा उदयसिंह के पौत्र थे। राणा अमर सिंह भी महाराणा प्रताप जैसे वीर थे। इन्होंने मुगलों से 18 बार युद्ध लड़ा। प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफल किये। अंत में खुर्रम ने मेवाड़ अधिकार कर लिया। हारकर बाद में इन्होनें अपमानजनक संधि की। वे मेवाड़ के अंतिम स्वतन्त्र शासक थे। राणा अमर सिंह प्रजा भक्त थे। इनको गुलामी में रहना अच्छा नहीं लगा, अतः इन्होंने आपना राज्य आपने पुत्र को दे कर ख़ुद एक कुटिया में रहने लग गए। .

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उदयपुर का इतिहास

उदयपुर जो कि भारत के राजस्थान राज्य का एक ज़िला है इसकी स्थापना सन १५५३ ईस्वी में महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने की थी उस समय उदयपुर को मेवाड़ साम्राज्य की राजधानी बनाई गयी थी। .

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उदयसागर झील

उदयसागर झील उदयपुर की पांच प्रमुख झीलों में से एक है। यह झील पूर्व उदयपुर से लगभग १३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।इसका निर्माण उदयसिंह द्वितीय ने १५६५ ईस्वी में करवाया था। जो कि लगभग ४ किलोमीटर चौड़ी और ९ मीटर गहरी है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

महाराणा उदय सिंह, महाराणा उदयसिंह, राणा उदय सिंह द्वितीय, राणा उदय सिंह २, उदयसिंह

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