लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

उत्तरायण सूर्य

सूची उत्तरायण सूर्य

सूर्य के उच्चतम बिंदु का उत्तर व दक्षिण में जाना उत्तरायण सूर्य, सूर्य की एक दशा है।'उत्तरायण' (.

12 संबंधों: दक्षिण अयनांत, पंचांग पद्धति, बैकुंठनाथ पटनायक, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारत २०१०, भीष्म का प्राण त्याग, मई दिवस, मकर संक्रान्ति, हिन्दी पुस्तकों की सूची/अ, इच्छा-मृत्यु, अयनांत, उत्तरायणी मेला, बागेश्वर

दक्षिण अयनांत

उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण अयनांत दक्षिण अयनांत, वह समय है जब सूर्य आकाश में अपने दक्षिणतम बिंदु पर होता है (दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे उत्तरी बिंदु) और दोपहर में क्षितिज के ऊपर अपने निम्नतम उन्नयन पर नजर आता है।आमतौर पर दक्षिण अयनांत, उत्तरी गोलार्ध में प्रत्येक वर्ष 21 से 22 दिसम्बर के बीच घटित होता है, तथा दक्षिणी गोलार्ध यह घटना और 20 से 21 जून को घटित होती है। .

नई!!: उत्तरायण सूर्य और दक्षिण अयनांत · और देखें »

पंचांग पद्धति

"पंचांग" शीर्षक लेख में बतलाया गया है कि "वर्ष" नामक कालमान का हेतु वसंतादि ऋतु बतलाने का है, इससे वर्षमान सायन लेना चाहिए। इसके और भी कारण हैं। हमारे बहुत से सामाजिक उत्सव और धार्मिक कृत्य ऋतुओं के ऊपर निर्भर हैं, जैसे शरत्पूर्णिम, वसंतपंचमी, शीतलजलयुक्त घटदान, शरद् के श्राद्ध का पायस भोजन, वसंत का निंबभक्षण, शरद् का नवान्नभक्षण इत्यादि। ये सब चांद्र मास के ऊपर निर्भर हैं, चांद्रमास अधिक मास पर निर्भर हैं, अधिक मास सौर संक्रांति के ऊपर निर्भर हैं और सौर संक्रांति वर्षमान के ऊपर निर्भर है। यदि हमारा वर्षमान सायन न हो, तो हमारे सब उत्सव और व्रत गलत ऋतुओं में चले जायेंगें। अंतिम 1.500 वर्षों में, अर्थात् आर्यभट से लेकर आज तक तक की अवधि में हमारा, वर्षमान सायन रहने के कारण हमारे व्रतों और उत्सवों में लगभग 23 दिनों का अंतर पड़ गया है। इस अंतर को हम "अयनांश" कहते हैं। यदि यही स्थिति भविष्य में भी बनी रही तो हमारी शरत्पूर्णिमा वसंत ऋतु में और हमारी वसंतपंचमी शरद्ऋतु में आ जायगी। इस असंगति को दूर करने का एक ही उपाय है और वह है सायन वर्षमान का अनुसरण। यह अनुसरण हम दो प्रकार से कर सकते हैं: (1) "शुद्ध सायन" और (2) "विशिष्ट सायन"। 1.

नई!!: उत्तरायण सूर्य और पंचांग पद्धति · और देखें »

बैकुंठनाथ पटनायक

बैकुंठनाथ पटनायक ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह उत्तरायण के लिये उन्हें सन् 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

नई!!: उत्तरायण सूर्य और बैकुंठनाथ पटनायक · और देखें »

भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

नई!!: उत्तरायण सूर्य और भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी · और देखें »

भारत २०१०

इन्हें भी देखें 2014 भारत 2014 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2014 साहित्य संगीत कला 2014 खेल जगत 2014 .

नई!!: उत्तरायण सूर्य और भारत २०१० · और देखें »

भीष्म का प्राण त्याग

अपने वंश के नाश से दुखी पाण्डव अपने समस्त बन्धु-बान्धवों तथा भगवान श्रीकृष्ण को साथ ले कर कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह के पास गये। भीष्म जी शरशैया पर पड़े हुये अपने अन्त समय की प्रतीक्षा कर रहे थे। भरतवंश शिरोमणि भीष्म जी के दर्शन के लिये उस समय नारद, धौम्य, पर्वतमुनि, वेदव्यास, वृहदस्व, भारद्वाज, वशिष्ठ, त्रित, इन्द्रमद, परशुराम, गृत्समद, असित, गौतम, अत्रि, सुदर्शन, काक्षीवान्, विश्वामित्र, शुकदेव, कश्यप, अंगिरा आदि सभी ब्रह्मर्षि, देवर्षि तथा राजर्षि अपने शिष्यों के साथ उपस्थित हुये। भीष्म पितामह ने भी उन सभी ब्रह्मर्षियों, देवर्षियों तथा राजर्षियों का धर्म, देश व काल के अनुसार यथेष्ठ सम्मान किया। सारे पाण्डव विनम्र भाव से भीष्म पितामह के पास जाकर बैठे। उन्हें देख कर भीष्म के नेत्रों से प्रेमाश्रु छलक उठे। उन्होंने कहा, "हे धर्मावतारों! अत्यन्त दुःख का विषय है कि आप लोगों को धर्म का आश्रय लेते हुये और भगवान श्रीकृष्ण की शरण में रहते हुये भी महान कष्ट सहने पड़े। बचपन में ही आपके पिता स्वर्गवासी हो गये, रानी कुन्ती ने बड़े कष्टों से आप लोगों को पाला। युवा होने पर दुर्योधन ने महान कष्ट दिया। परन्तु ये सारी घटनायें इन्हीं भगवान श्रीकृष्ण, जो अपने भक्तों को कष्ट में डाल कर उन्हें अपनी भक्ति देते हैं, की लीलाओं के कारण से ही हुये। जहाँ पर धर्मराज युधिष्ठिर, पवन पुत्र भीमसेन, गाण्डीवधारी अर्जुन और रक्षक के रूप में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हों फिर वहाँ विपत्तियाँ कैसे आ सकती हैं? किन्तु इन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को बड़े बड़े ब्रह्मज्ञानी भी नहीं जान सकते। विश्व की सम्पूर्ण घटनायें ईश्वाराधीन हैं! अतः शोक और वेदना को त्याग कर निरीह प्रजा का पालन करो और सदा भगवान श्रीकृष्ण की शरण में रहो। ये श्रीकृष्णचन्द्र सर्वशक्तिमान साक्षात् ईश्वर हैं, अपनी माया से हम सब को मोहित करके यदुवंश में अवतीर्ण हुये हैं। इस गूढ़ तत्व को भगवान शंकर, देवर्षि नारद और भगवान कपिल ही जानते हैं। तुम लोग तो इन्हें मामा का पुत्र, अपना भाई और हितू ही मानते हो। तुमने इन्हें प्रेमपाश में बाँध कर अपना दूत, मन्त्री और यहाँ तक कि सारथी बना लिया है। इनसे अपने अतिथियों के चरण भी धुलवाये हैं। हे धर्मराज! ये समदर्शी होने पर भी अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं तभी यह मेरे अन्त समय में मुझे दर्शन देने कि लिये यहाँ पधारे हैं। जो भक्तजन भक्तिभाव से इनका स्मरण, कीर्तन करते हुये शरीर त्याग करते हैं, वे सम्पूर्ण कर्म बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं। मेरी यही कामना है कि इन्हीं के दर्शन करते हुये मैं अपना शरीर त्याग कर दूँ। धर्मराज युधिष्ठिर ने शरशैया पर पड़े हुये भीष्म जी से सम्पूर्ण ब्रह्मर्षियों तथा देवर्षियों के सम्मुख धर्म के विषय में अनेक प्रश्न पूछे। तत्वज्ञानी एवं धर्मेवेत्ता भीष्म जी ने वर्णाश्रम, राग-वैराग्य, निवृति-प्रवृति आदि के सम्बंध में अनेक रहस्यमय भेद समझाये तथा दानधर्म, राजधर्म, मोक्षधर्म, स्त्रीधर्म, भगवत्धर्म, द्विविध धर्म आदि के विषय में विस्तार से चर्चा की। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के साधनों का भी उत्तम विधि से वर्णन किया। उसी काल में उत्तरायण सूर्य आ गये। अपनी मृत्यु का उत्तम समय जान कर भीष्म जी ने अपनी वाणी को संयम में कर के मन को सम्पूर्ण रागादि से हटा कर सच्चिदान्द भगवान श्रीकृष्ण में लगा दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना चतुर्भुज रूप धारण कर के दर्शन दिये। भीष्म जी ने श्रीकृष्ण की मोहिनी छवि पर अपने नेत्र एकटक लगा दिये और अपनी इन्द्रियों को रो कर भगवान की इस प्रकार स्तुति करने लगे - "मै अपने इस शुद्ध मन को देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में अर्पण करता हूँ। जो भगवान अकर्मा होते हुये भी अपनी लीला विलास के लिये योगमाया द्वारा इस संसार की श्रृष्टि रच कर लीला करते हैं, जिनका श्यामवर्ण है, जिनका तेज करोड़ों सूर्यों के समान है, जो पीताम्बरधारी हैं तथा चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म कण्ठ में कौस्तुभ मणि और वक्षस्थल पर वनमाला धारण किये हुये हैं, ऐसे भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में मेरा मन समर्पित हो। इस तरह से भीष्म पितामह ने मन, वचन एवं कर्म से भगवान के आत्मरूप का ध्यान किया और उसी में अपने आप को लीन कर दिया। देवताओं ने आकाश से पुष्पवर्षा की और दुंदुभी बजाये। युधिष्ठिर ने उनके शव की अन्त्येष्टि क्रिया की। .

नई!!: उत्तरायण सूर्य और भीष्म का प्राण त्याग · और देखें »

मई दिवस

मई दिवस, 1 मई को होता है और कई सार्वजनिक अवकाशों को संदर्भित करता है। कई देशों में मई दिवस, अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस, या श्रम दिवस का पर्यायवाची है, तथा राजनीतिक प्रदर्शनों और यूनियनों व समाजवादी समूहों द्वारा आयोजित समारोह का एक दिन.

नई!!: उत्तरायण सूर्य और मई दिवस · और देखें »

मकर संक्रान्ति

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। एक दिन का अंतर लौंद वर्ष के ३६६ दिन का होने ही वजह से होता है | मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति गलत है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है । उत्तरायण का प्रारंभ २१ या २२ दिसम्बर को होता है | लगभग १८०० वर्ष पूर्व यह स्थिति उत्तरायण की स्थिति के साथ ही होती थी, संभव है की इसी वजह से इसको व उत्तरायण को कुछ स्थानों पर एक ही समझा जाता है | तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। .

नई!!: उत्तरायण सूर्य और मकर संक्रान्ति · और देखें »

हिन्दी पुस्तकों की सूची/अ

कोई विवरण नहीं।

नई!!: उत्तरायण सूर्य और हिन्दी पुस्तकों की सूची/अ · और देखें »

इच्छा-मृत्यु

इच्छा-मृत्यु अर्थात यूथनेशिया (Euthanasia) मूलतः ग्रीक (यूनानी) शब्द है। जिसका अर्थ Eu.

नई!!: उत्तरायण सूर्य और इच्छा-मृत्यु · और देखें »

अयनांत

उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर अयनांत अयनांत (अंग्रेज़ी:सोलस्टिस) एक खगोलीय घटना है जो वर्ष में दो बार घटित होती है जब सूर्य खगोलीय गोले में खगोलीय मध्य रेखा के सापेक्ष अपनी उच्चतम अथवा निम्नतम अवस्था में भ्रमण करता है। विषुव और अयनांत मिलकर एक ऋतु का निर्माण करते हैं। विभिन्न सभ्यताओं में अयनांत को ग्रीष्मकाल और शीतकाल की शुरुआत अथवा मध्य बिन्दु माना जाता है। 21 जून को दोपहर को जब सूर्य कर्क रेखा पर सिर के ठीक ऊपर रहता है, इसे उत्तर अयनांत या कर्क संक्रांति कहते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्ध में सर्वाधिक लम्बे दिन होते हैं और ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि दक्षिणी गोलार्ध में इसके विपरीत सर्वाधिक छोटे दिन होते हैं और शीत ऋतु का समय होता है। .

नई!!: उत्तरायण सूर्य और अयनांत · और देखें »

उत्तरायणी मेला, बागेश्वर

उत्तरायणी मेला उत्तरांचल राज्य के बागेश्वर शहर में आयोजित होता है। तहसील व जनपद बागेश्वर के अन्तर्गत सरयू गोमती व सुष्प्त भागीरथी नदियों के पावन सगंम पर उत्तरायणी मेला बागेश्वर का भव्य आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सगंम में स्नान करने से पाप कट जाते है बागेश्वर दो पर्वत शिखरों की उपत्यका में स्थित है इसके एक ओर नीलेश्वर तथा दूसरी ओर भीलेश्वर शिखर विद्यमान हैं बागेश्वर समुद्र तट से लगभग 960 मीटर की ऊचांई पर स्थित है। .

नई!!: उत्तरायण सूर्य और उत्तरायणी मेला, बागेश्वर · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

उत्तरायण

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »