19 संबंधों: डर हमारी जेबों में, तबादला, तेजेंद्र शर्मा, दफ़न और अन्य कहानियाँ, दारोश तथा अन्य कहानियाँ, बारामासी, भगवानदास मोरवाल, मैं बोरिशाइल्ला, रेत (कथा), शहर कोतवाल की कविता, शापग्रस्त, हृषीकेश सुलभ, जंगल जहाँ शुरू होता है, आवां, कथा यू.के., कुइयाँजान, कैसी आगी लगाई, अनुगूँज, उस रात की गंध।
डर हमारी जेबों में
श्रेणी:उपन्यास.
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तबादला
श्रेणी:उपन्यास.
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तेजेंद्र शर्मा
तेजेंद्र शर्मा (जन्म २१ अक्टूबर १९५२) ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि लेखक एवं नाटककार है। इनका जन्म 21 अक्टूबर 1952 में पंजाब के जगरांव शहर में हुआ। तेजेन्द्र शर्मा की स्कूली पढ़ाई दिल्ली के अंधा मुग़ल क्षेत्र के सरकारी स्कूल में हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए. तथा कम्प्यूटर में डिप्लोमा करने वाले तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू तथा गुजराती भाषाओं का ज्ञान रखते हैं। उनके द्वारा लिखा गया धारावाहिक 'शांति' दूरदर्शन से १९९४ में अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है। अन्नू कपूर निर्देशित फ़िल्म 'अमय' में नाना पाटेकर के साथ उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई है। वे इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट के संस्थापक तथा हिंदी साहित्य के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मान इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान प्रदान करनेवाली संस्था 'कथा यू॰के॰' के सचिव हैं। .
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दफ़न और अन्य कहानियाँ
श्रेणी:कहानी संग्रह श्रेणी:यू के कथा सम्मान.
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दारोश तथा अन्य कहानियाँ
श्रेणी:कहानी संग्रह.
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बारामासी
श्रेणी:उपन्यास.
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भगवानदास मोरवाल
भगवानदास मोरवाल (जन्म २३ जनवरी १९६०) नगीना, मेवात में जन्मे भारत के सुप्रसिद्ध कहानी व उपन्यास लेखक हैं। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल की। उन्हें पत्रकारिता में डिप्लोमा भी हासिल है। मोरवाल के अन्य प्रकाशित उपन्यास हैं काला पहाड़ (१९९९) एवं बाबल तेरा देस में (२००४)। इसके अलावा उनके चार कहानी संग्रह, एक कविता संग्रह और कई संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। दिल्ली हिन्दी अकादमी के सम्मानों के अतिरिक्त मोरवाल को बहुत से अन्य सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उनके लेखन में मेवात क्षेत्र की ग्रामीण समस्याएं उभर कर सामने आती हैं। उनके पात्र हिन्दू-मुस्लिम सभ्यता के गंगा जमुनी किरदार होते हैं। कंजरों की जीवन शैली पर आधारित उपन्यास रेत को लेकर उन्हें मेवात में कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, किंतु इसके लिए उन्हें २००९ में यू के कथा सम्मान द्वारा सम्मानित भी किया गया है। .
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मैं बोरिशाइल्ला
महुआ माझी का उपन्यास मैं बोरिशाइल्ला बांग्लादेश की मुक्ति-गाथा पर केंद्रित है। यह उपन्यास बहुत ही कम समय में खासा चर्चित हुआ है और इस कृति को सम्मानित भी किया गया है। इस उपन्यास के असामान्य शीर्षक के बारे में स्पष्टीकरण देती हुई वे, उपन्यास के प्राक्कथन में कहती हैं - “...जिस तरह बिहार के लोगों को बिहारी तथा भारत के लोगों को भारतीय कहा जाता है, उसी प्रकार बोरिशाल के लोगों को यहाँ की आंचलिक भाषा में बोरिशाइल्ला कहा जाता है। उपन्यास का मुख्य पात्र केष्टो, बोरिशाल का है। इसीलिए वह कह सकता है - मैं बोरिशाइल्ला।” इस उपन्यास में १९४८ से १९७१ तक के बांग्ला देश के ऐतिहासिक तथ्यों, पाकिस्तानी हुकूमत द्वारा बांग्लादेशी जनता पर किए अत्याचारों की घटनाओं तथा मुक्तिवाहिनी के संघर्ष गाथाओं को कथा सूत्र में पिरोया गया है। इस उपन्यास की रचना प्रक्रिया के विषय में वे कहती हैं कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को अपने पहले ही उपन्यास का विषय बनाने का कारण था कि मैं नई पीढ़ी के लिए उसे एक दृष्टांत के रूप में पेश करना चाहती थी कि आज बेशक पूरी दुनिया में सारी लड़ाइयाँ धर्म के नाम पर ही लड़ी जा रही हैं, लेकिन सच तो ये हैं कि सारा खेल सत्ता का है। ये लड़ाइयाँ अब बंद होनी चाहिये। भाषा और शैली की दृष्टि से इस उपन्यास के अति साधारण व नीरस होने बात कही जाती है। आलोचकों का मानना है कि उपन्यास की भाषा अत्यंत साधारण है और समूचे उपन्यास में कहीं भी कोई भाषाई शिल्प दिखाई नहीं देता। कथन में प्रवाह नहीं है और उपन्यास घटना-प्रधान होते हुए भी आमतौर पर बोझिल-सा बना रहता है। जिसके कारण इसके कई खण्ड घोर अपठनीय ही बने रहते हैं। लेखिका ने शायद पाकिस्तानी सैनिकों तथा उर्दूभाषी नागरिकों द्वारा बांग्लाभाषियों पर किए गए अत्याचारों तथा मुक्तिवाहिनी के कार्यों के बहुत प्रामाणिक विवरण देने के लोभ में उपन्यास को बिखरा सा दिया है। घटना प्रधान कथानक में रहस्य का सर्वथा अभाव भी आगे पढ़ने की जिज्ञासा बनाए रखने में सहायक नहीं होता। .
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रेत (कथा)
हिन्दी कथा में अपनी अलग और देशज छवि बनाए और बचाए रखने वाले चर्चित लेखक भगवानदास मोरवाल के इस नये उपन्यास के केन्द्र में है - माना गुरु और माँ नलिन्या की संतान कंजर और उसका जीवन। कंजर यानी काननचर अर्थात् जंगल में घूमने वाला। अपने लोक-विश्वासों व लोकाचारों की धुरी पर अपनी अस्मिता और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती एक विमुक्त जनजाति। राजकमल से प्रकाशित इस उपन्यास में कहानी है कंजरों की - एक ऐसी घुमंतू जाति जो समूचे दक्षिण-पश्चिमी एशिया में कमोबेश फैली हुई है। कहानी घूमती है कमला सदन नाम के एक मकान के इर्द-गिर्द, जो परिवार की मुखिया कमला बुआ के नाम पर रखा गया है और जहां रुक्मिणी, संतो, पिंकी आदि तमाम महिलाओं का जमघट है। ये सभी पारंपरिक यौनकर्मी हैं और जिस कंजर समाज से वे आती हैं, वहां इस पेशे को लंबे समय से मान्यता मिली हुई है। समूचे परिदृश्य में सिर्फ एक पुरुष पात्र है जिसे सभी बैदजी कह कर पुकारते हैं। यह पात्र वैसे तो दूसरी जाति का है, लेकिन घर-परिवार के मामलों में इसे सलाहकार और हितैषी की भूमिका में दिखाया गया है। यहीं से शुरू होती है स्त्री विमर्श के निम्नवर्गीय प्रसंगों की दास्तान - जहां स्त्री की देह को पुरुष समाज के खिलाफ लेखक ने एक औजार और हथियार के रूप में स्थापित किया है। गाजूकी और कमला सदन के बहाने यह कथा ऐसे दुर्दम्य समाज की कथा है जिसमें एक तरफ़ कमला बुआ, सुशीला, माया, रुक्मिनी, वंदना, पूनम हैं; तो दूसरी तरफ़ हैं संतो और अनिता भाभी। 'बुआ' यानी कथित सभ्य समाज के बर-अक्स पूरे परिवार की सर्वेसर्वा, या कहिए पितृसत्तात्मक व्यवस्था में चुपके से सेंध लगाते मातृसत्तात्मक वर्चस्व का पर्याय और 'गंगा नहाने' का सुपात्र। जबकि 'भाभी' होने का मतलब है घरों की चारदीवारी में घुटने को विवश एक दोयम दर्जे का सदस्य। एक ऐसा सदस्य जो परिवार का होते हुए भी उसका नहीं है। रेत भारतीय समाज के उन अनकहे, अनसुलझे अंतर्विरोधों व वटों की कथा है, जो घनश्याम 'कृष्ण' उर्फ़ वैद्यजी की 'कुत्ते फेल' साइकिल के करियर पर बैठ गाजूकी नदी के बीहड़ों से होते हुए आगे बढ़ती है। यह सफलताओं के शिखर पर विराजती रुक्मिणी कंजर का ऐसा लोमहर्षक आख्यान है जो अभी तक इतिहास के पन्नों में रेत से अटा हुआ था। जरायम-पेशा और कथित सभ्य समाज के मध्य गड़ी यौन-शुचिताओं का अतिक्रमण करता, अपनी गहरी तरल संलग्नता, सूक्ष्म संवेदनात्मक रचना-कौशल तथा ग़ज़ब की क़िस्सागोई से लबरेज़ लेखक का यह नया शाहकार, हिन्दी में स्त्री-विमर्श के चौखटों व हदों को तोड़ता हुआ इस विमर्श के एक नये अध्याय की शुरुआत करता है। इस उपन्यास को २००९ में यू के कथा सम्मान द्वारा सम्मानित किया गया है। .
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शहर कोतवाल की कविता
श्रेणी:कहानी संग्रह श्रेणी:यू के कथा सम्मान.
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शापग्रस्त
श्रेणी:कहानी संग्रह श्रेणी:यू के कथा सम्मान.
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हृषीकेश सुलभ
हृषीकेश सुलभ (जन्म फ़रवरी १५, १९५५) हिन्दी के समकालीन शीर्ष लेखकों में हैं, जो कि कहानी और नाटक-लेखन की विधाओं के लिये जाने जाते हैं। आप ऑल इण्डिया रेडियो में कार्यरत भी हैं। .
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जंगल जहाँ शुरू होता है
श्रेणी:उपन्यास.
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आवां
सुपरिचित हिन्दी लेखिका चित्रा मुद्गल का बृहद उपन्यास 'आवां' स्त्री-विमर्श का बृहद आख्यान है। जिसका देश-काल तो उनके पहले उपन्यास 'एक ज़मीन अपनी' की तरह साठ के बाद का मुंबई ही है, लेकिन इसके सरोकार उससे कहीं ज़्यादा बड़े हैं, श्रमिकों के जीवन और श्रमिक राजनीति के ढेर सारे उजले-काले कारनामों तक फैले हुए, जिसकी ज़मीन भी मुंबई से लेकर हैदराबाद तक फैल गई है। उसमें दलित जीवन और दलित-विमर्श के भी कई कथानक अनायास ही आ गए हैं। 'आवां' का बीज चाहे मुंबई ने रोपा, लेकिन खाद-पानी उसे हैदराबाद से मिला और श्रमिकों के शहर कोलकाता में बैठकर वह लिखा गया तो दिल्ली ने आधार कैंप का काम किया। इस रूप में यह लगभग पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला हिन्दी उपन्यास है। सही अर्थों में एक बड़ा उपन्यास, जिसमें लेखिका की अकूत अनुभव-संपदा काम आई है। .
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कथा यू.के.
कथा यू॰के॰ संयुक्त राजशाही स्थित एक संस्था है। .
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कुइयाँजान
कुइयाँजान नासिरा शर्मा का एक प्रसिद्ध उपन्यास है। कुइयाँ अर्थात वह जलस्रोत जो मनुष्य की प्यास आदिम युग से ही बुझाता आया है। आमतौर पर हिंदी के लेखकों पर आरोप लगता रहा है कि वे जीवन की कड़वी सच्चाइयों और गंभीर विषयों की अनदेखी करते रहे हैं। हालांकि यदाकदा इसका अपवाद भी मिलता रहा है। लेकिन नासिरा शर्मा की नई पुस्तक कुइयाँजान इन आरोपों का जवाब देने की कोशिश के रूप में सामने आती है। पानी इस समय हमारे जीवन की एक बड़ी समस्या है और उससे बड़ी समस्या है हमारा पानी को लेकर अपने पारंपरिक ज्ञान को भूल जाना। फिर इस बीच सरकारों ने पानी को लेकर कई नए प्रयोग शुरू किए हैं जिसमें नदियों को जोड़ना प्रमुख है। बाढ़ की समस्या है और सूखे का राक्षस हर साल मुँह बाये खड़ा रहता है। इन सब समस्याओं को एक कथा में पिरोकर शायद पहली बार किसी लेखक ने गंभीर पुस्तक लिखने का प्रयास किया है। यह तकनीकी पुस्तक नहीं है, बाक़ायदा एक उपन्यास है लेकिन इसमें पानी और उसकी समस्या को लेकर एक गंभीर विमर्श चलता रहता है। श्रेणी:कहानी संग्रह श्रेणी:यू के कथा सम्मान श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:नासिरा शर्मा श्रेणी:यू के कथा सम्मान.
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कैसी आगी लगाई
श्रेणी:उपन्यास श्रेणी:यू के कथा सम्मान.
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अनुगूँज
अनुगूँज गीतांजलि श्री का पहला कहानी संग्रह है। इसमें संकलित दस कहानियों में जो संवेदना जो विद्रोह और प्रतिरोध है वह स्वयं को उजागर करते वक्त पात्रों की कमजोर होते स्वाभिमान अनदेखा नहीं करती, इशारों और बिम्बों के सहारे चित्रण करने वाला शिल्प और शिक्षित वर्ग की आधुनिक मानसिकता को दिखाती उनकी बोलचाल की भाषा, गीतांजलि श्री की विशेष लेखकीय पहचान बनाती है। यूँ तो इन कहानियों का केन्द्र लगभग हर बार-एक ‘दरार’ को छोड़कर- बनता है शिक्षित मध्यमवर्गीय नारियों से, पर इसमें वर्णित होते हैं हमारे आधुनिक नागरिक जीवन के विभिन्न पक्ष। जैसे वैवाहिक तथा विवाहेत्तर स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, पारिवारिक परिस्थितियाँ, सामाजिक रूढ़ियाँ, हिन्दू-मुस्लिम समस्या, स्त्रियों का पारस्परिक मैत्री इत्यादि। यहाँ सीधा, सपाट कुछ भी नहीं है। हर स्थिति, हर सम्बन्ध, हर संघर्ष में व्याप्त रहते हैं परस्पर विरोधी स्वर। यही विरोधी स्वर रचते हैं हर एक कहानी का एक अलग राग। श्रेणी:कहानी संग्रह श्रेणी:यू के कथा सम्मान.
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उस रात की गंध
श्रेणी:कहानी संग्रह श्रेणी:यू के कथा सम्मान.
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