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आवृत्ति

सूची आवृत्ति

विभिन्न आवृतियों की तरंगें कोई आवृत घटना (बार-बार दोहराई जाने वाली घटना), इकाई समय में जितनी बार घटित होती है उसे उस घटना की आवृत्ति (frequency) कहते हैं। आवृति को किसी साइनाकार (sinusoidal) तरंग के कला (phase) परिवर्तन की दर के रूप में भी समझ सकते हैं। आवृति की इकाई हर्त्ज (साकल्स प्रति सेकण्ड) होती है। एक कम्पन पूरा करने में जितना समय लगता है उसे आवर्त काल (Time Period) कहते हैं। आवर्त काल .

79 संबंधों: चर आवृत्ति ड्राइव, ऊर्जा, ट्राँसफार्मर, टैरा हर्ट्ज़ विकिरण, टेट्रोड, एनटीएससी, एफ एम प्रसारण, एसी/एसी परिवर्तक, ड्रम, डॉप्लर प्रभाव, तरंग, तरंग-कण द्वैतता, तरंगदैर्घ्य, तारत्व, तंतु कम्पन, तीन फेज विद्युत शक्ति, ध्वनि, ध्वनिकी, परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र, पराश्रव्य, प्रत्यावर्ती धारा, प्रत्यक्ष वर्णक्रम, प्राकृतिक आवृत्‍ति, प्रवर्धक, प्रेरक, फलन का प्रभावक्षेत्र, फिल्टर (संकेत प्रसंस्करण), फुरिअर विश्लेषण, ब्रॉडबैंड इंटरनेट अभिगम, बोडे आरेख, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, भौतिक गुण, भौतिकी की शब्दावली, भूधाराएँ, भूसमकालिक कक्षा, भूकम्पीय तरंग, मापन एवं जाँच के एलेक्ट्रानिक उपकरण, माइक्रोफोन, मोटर-जनित्र, रेडियो आवृत्ति, लोलक, शक्ति प्रणाली का संरक्षण, श्रव्य प्रवर्धक, सप्तक, सरल आवर्त गति, साइक्लोकन्वर्टर, संगीत तथा गणित, स्पेक्ट्रोस्कोपी, स्विच मोड पॉवर सप्लाई, सैकेन्डी लोलक, ..., सी॰डी॰एम॰ए, हाइनरिख़ हर्ट्ज़, जीसैट-1, घड़ीयंत्र नियंत्रण, वर्णक्रमीय रेखा, वर्ग माध्य मूल, विद्युत धारा, विद्युत शक्ति अनुकूलन, विद्युत ग्रिड का स्थायित्व, विमीय विश्लेषण, विस्पन्द, वैद्युत तथा एलेक्ट्रानिक मापक यंत्र, वैद्युत प्रतिघात, गुरुत्वीय तरंग, ओजोन ह्रास, आवृत्ति परिवर्तक, आवृत्ति अनुक्रिया, इन्वर्टर (शक्ति एलेक्ट्रानिकी), कला (तरंग), कुंट की नली, अतिसूक्ष्म तरंग, अनुनाद, अनुप्रास, अनुरणन, अपश्रव्य, अभिवृद्धि चक्र, अंत्य संशोधन, उद्दीप्त उत्सर्जन, उपयोगिता अनुपात सूचकांक विस्तार (29 अधिक) »

चर आवृत्ति ड्राइव

छोटे-बड़े आकार के तरह-तरह के चर-आवृत्ति-ड्राइव VFD का कार्ड (HitachiJ100A) चर आवृत्ति ड्राइव (Variable Frequency Drive / VFD / VSD) एक प्रकार का परिवर्तनशील चाल ड्राइव है जो एसी मशीनों की चाल बदलने के लिये आजकल बहुतायत में प्रयोग की जाती है। चाल बदलने के लिये यह ड्राइव, मोटर को दी जाने वाली विद्युत-शक्ति का वोल्टता और आवृत्ति दोनो को साथ-साथ बदलता है (केवल वोल्टेज को नहीं)। प्राय: वोल्टता और आवृत्ति के अनुपात को नियत रखा जाता है। (constant v/f).

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ऊर्जा

दीप्तिमान (प्रकाश) ऊर्जा छोड़ता हैं। भौतिकी में, ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो अन्य वस्तुओं को स्थानांतरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपांतरित किया जा सकता हैं। किसी भी कार्यकर्ता के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा (Energy) कहते हैं। ऊँचाई से गिरते हुए जल में ऊर्जा है क्योंकि उससे एक पहिये को घुमाया जा सकता है जिससे बिजली पैदा की जा सकती है। ऊर्जा की सरल परिभाषा देना कठिन है। ऊर्जा वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती। .

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ट्राँसफार्मर

---- एक छोटे ट्रांसफॉर्मर का स्वरूप ट्रान्सफार्मर या परिणामित्र एक वैद्युत मशीन है जिसमें कोई चलने या घूमने वाला अवयव नहीं होता। विद्युत उपकरणों में सम्भवतः ट्रान्सफार्मर सर्वाधिक व्यापक रूप से प्रयुक्त विद्युत साषित्र (अप्लाएन्स) है। यह किसी एक विद्युत परिपथ (circuit) से अन्य परिपथ में विद्युत प्रेरण द्वारा परस्पर जुडे हुए चालकों के माध्यम से विद्युत उर्जा स्थान्तरित करता है। ट्रांसफार्मर केवल प्रत्यावर्ती धारा या विभवान्तर के साथ कार्य कर सकता है, एकदिश (direct) के साथ नहीं। ट्रांसफॉर्मर एक-फेजी, तीन-फेजी या बहु-फेजी हो सकते है। यह सभी विद्युत मशीनों में सर्वाधिक दक्ष (एफिसिएंट) मशीन है। आधुनिक युग में परिणामित्र वैद्युत् तथा इलेक्ट्रॉनी उद्योगों का अभिन्न अंग बन गया है। किसी ट्रान्सफार्मर में एक, दो या अधिक वाइन्डिंग हो सकती हैं। दो वाइंडिंग वाले ट्रान्सफार्मर के प्राथमिक (प्राइमरी) एवं द्वितियक (सेकेण्डरी) वाइण्डिंग के फेरों (टर्न्स) की संख्या एवं उनके विभवान्तरों में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है: \frac .

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टैरा हर्ट्ज़ विकिरण

विद्युतचुंबकीय तरंगें जिनकी आवृत्ति टैरा हर्ट्ज़ (१० पर १२ घात) के कोटि (order) की होती हैं, उन्हें टेरा हर्ट्ज़ विकिरण या टी तरंगें, टैरा हर्ट्ज़ तरंग या प्रकाश, टी-प्रकाश, टी-लक्स आदि कहा जाता है। इनकी आवृत्ति 300 gigahertz (3x1011 हर्ट्ज़) से 3 टैरा हर्ट्ज़ (3x1012 Hz), के मध्य होती है; तदनुसार इनकी तरंग दैर्घ्य 1 मिलिमीटर (सूक्ष्म तरंग पट्टी का उच्चावृत्ति सिरा) एवं 100 माइक्रोमीटर (सुदूर अधोरक्त प्रकाश का तरंग दैर्घ्य सिरा) के बीच होता है। Plot of the zenith atmospheric transmission on the summit of Mauna Kea throughout the range of 1 to 3 THz of the electromagnetic spectrum at a precipitable water vapor level of 0.001 mm. (simulated) .

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टेट्रोड

टेट्रोड का एलेक्ट्रॉनिक प्रतीक टेट्रोड (tetrode) या चतुराग्र एक निर्वात नली है जिसमें चार सक्रिय एलेक्ट्रोड होते हैं। प्रायः दो कंट्रोल ग्रिडों वाले निर्वात नलियों को ही 'टेट्रोड' कहते हैं।। इसमें ट्रायोड (त्रिअग्र) में मौजूद तीन एलेक्ट्रोड तो होते ही हैं, इनके अतिरिक्त एक 'स्क्रीन ग्रिड' (आवरण ग्रिड) भी होती है जिसके कारण इसके गुण टेट्रोड से काफी अलग होते हैं। .

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एनटीएससी

राष्ट्र की टेलीविज़न इनकोडिंग सिस्टम्स; NTSC सिस्टम का उपयोग करने वाले देशों को हरे रंग से दर्शाया गया है। NTSC, अर्थात् नैशनल टेलीविज़न सिस्टम कमिटी अधिकांशतः उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, बर्मा और प्रशांत द्वीप के कुछ प्रदेशों और राष्ट्रों (नक्शा देखें) में प्रयोग किया जाने वाला एनालॉग टेलीविजन सिस्टम है। अमेरिका की उस मानकीकरण संस्था का भी नाम है जिसने प्रसारण मानक का विकास किया है।नैशनल टेलीवीज़न सिस्टम कमिटी (1951–1953), (रिपोर्ट और पैनेल नंबर 11, 11-A, 12-19, के रिपोर्ट और साथ में रिपोर्टों में उद्धृत कुछ अनुपूरक सन्दर्भ और फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन से पहले कलर टेलीविज़न के ट्रांसमिशन मानकों के ग्रहण की याचिका, n.p., 1953, 17 दृश्य, दृष्टान्त, रेखाचित्र, तालिका, 28 सेमी. LC नियंत्रण नंबर: 54021386 पहला NTSC मानक 1941 में विकसित किया गया था और उसमे रंगीन टीवी के लिए कोई प्रावधान नहीं था। 1953 में NTSC मानक के एक दूसरें संशोधित संस्करण को स्वीकृत किया गया था, जिसमें काले और सफेद रिसीवर्स के मौजूदा स्टॉक के साथ अनुकूल रंगीन प्रसारण की अनुमति थी। NTSC व्यापक रूप से स्वीकृत की जाने वाली पहली प्रसारित रंग प्रणाली थी। उपयोग करने के कम से कम आधी शताब्दी के बाद,12 जून 2009 को संयुक्त राज्य अमेरिका में बहुत सारी संख्या में ओवर- द - एअर NTSC प्रसारण को ATSC से परिवर्तित कर दिया गया था और 31 अगस्त 2011, तक कनाडा में भी परिवर्तित हो जाएगा. .

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एफ एम प्रसारण

एफ एम प्रसारण एक प्रकार का रेडियो प्रसारण है, जिसमें कैरियर की आवृत्ति को प्रसारण ध्वनि के अनुसार मॉड्यूलेट किया जाता है। इस प्रक्रिया को आवृत्ति माड्यूलेशन या आवृत्ति मॉड्यूलन कहते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा मॉड्यूलन कर जब रेडियो प्रसारण होता है, उसे एफ़ एम प्रसारण कहते हैं। डीमॉड्यूलेटेड एफ़-एम संकेत वर्णक्रम एवं उप-कैरियर .

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एसी/एसी परिवर्तक

प्रेरण मोटरों को अलग-अलग वेग से चलाने के लिए इसी तरह के विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें परिवर्ती आवृत्ति ड्राइव खते हैं। तीसरे तरह के एसी/एसी परिवर्तक, जो साइक्लो-कन्वर्टर कहलाते हैं, किसी आवृत्ति की एसी को लेकर उससे '''कम''' आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा देते हैं। उदाहरण के लिए, ५० हर्ट्ज की ए.सी. लेकर उससे १६.६६७ हर्ट्ज की एसी पैदा करने वाले विद्युत-परिवर्तकों का उपयोग कहीं-कहीं विद्युत कर्षण में होता है। साइक्लोकन्वर्टर के लिए कई तरह के परिपथ (टोपोलोजी) प्रयोग की जाती है, जैसे परम्परागत मैट्रिक्स कन्वर्टर, स्पार्स मैट्रिक्स कन्वर्टर आदि। .

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ड्रम

ड्रम, संगीत वाद्ययंत्रों के एक ऐसे तालवाद्य (परकशन) समूह का एक सदस्य है जिन्हें तकनीकी दृष्टि से झिल्लीयुक्त वाद्ययंत्र के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ड्रम में कम से कम एक झिल्ली होती है जिसे ड्रम का सिर या ड्रम की त्वचा या खाल कहते हैं जो एक खोल पर फैला हुआ होता है और ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इस पर या तो सीधे बजाने वाले के हाथों से या ड्रम बजाने की छड़ी से प्रहार किया जाता है। ड्रम के नीचे की तरफ आम तौर पर एक "प्रतिध्वनि सिर" होता है। ड्रम से ध्वनि उत्पन्न करने के लिए अन्य तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है जैसे थम्ब रोल (अंगूठे को घुमाना).

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डॉप्लर प्रभाव

जब किसी ध्वनि स्रोत और श्रोता के बीच आपेक्षिक गति होती है तो श्रोता को जो ध्वनि सुनाई पड़ती है उसकी आवृत्ति मूल आवृति से कम या अधिक होती है। इसी को डॉप्लर प्रभाव (Doppler effect) कहते हैं। श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली श्रेणी:तरंग यान्त्रिकी.

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तरंग

---- तरंग (Wave) का अर्थ होता है - 'लहर'। भौतिकी में तरंग का अभिप्राय अधिक व्यापक होता है जहां यह कई प्रकार के कंपन या दोलन को व्यक्त करता है। इसके अन्तर्गत यांत्रिक, विद्युतचुम्बकीय, ऊष्मीय इत्यादि कई प्रकार की तरंग-गति का अध्ययन किया जाता है। .

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तरंग-कण द्वैतता

तरंग-कण द्वैतता अथवा तरंग-कण द्विरूप सिद्धान्त के अनुसार सभी पदार्थों में कण और तरंग (लहर) दोनों के ही लक्षण होते हैं। आधुनिक भौतिकी के क्वाण्टम यान्त्रिकी क्षेत्र का यह एक आधारभूत सिद्धान्त है। जिस स्तर पर मनुष्यों की इन्द्रियाँ दुनिया को भाँपती हैं, उस स्तर पर कोई भी वस्तु या तो कण होती है या तरंग होती है, लेकिन एक साथ दोनों नहीं होते। परमाणुओं के बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर ऐसा नहीं होता और यहाँ भौतिकी समझने के लिए पाया गया कि वस्तुएँ और प्रकाश कभी तो कण की प्रकृति दिखाती हैं और कभी तरंग की। इस समय स्थिति बड़ी विलक्षण है। कुछ घटनाओं से तो प्रकाश तरंगमय प्रतीत होता है और कुछ से कणिकामय। संभवत: सत्य द्वैतमय है। रूपए के दोनों पृष्ठों की तरह, प्रकाश के भी दो विभिन्न रूप हैं। किंतु हैं दोनों ही सत्य। ऐसा ही द्वैत द्रव्य के संबंध में भी पाया गया है। वह भी कभी तरंगमय दिखाई देता है और कभी कणिकामय। न तो प्रकाश के ओर न द्रव्य के दोनों रूप एक ही समय में एक ही साथ दिखाई दे सकते हैं। वे परस्पर विरोधी, किंतु पूरक रूप हैं। .

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तरंगदैर्घ्य

साइन-आकारीय अनुप्रस्थ तरंग का तरंगदैर्घ्य, '''λ''' भौतिकी में, कोई साइन-आकार की तरंग, जितनी दूरी के बाद अपने आप को पुनरावृत (repeat) करती है, उस दूरी को उस तरंग का तरंगदैर्घ्य (wavelength) कहते हैं। 'दीर्घ' (.

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तारत्व

तारत्व (Pitch), ध्वनि का एक गुण है जिसका उपयोग ध्वनि को आवृत्ति के अनुसार क्रमबद्ध करने में होता है। श्रेणी:ध्वनि श्रेणी:संगीत.

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तंतु कम्पन

तंतु कम्पन (string vibration) किसी तंतु में होने वाले कम्पन को कहते हैं, जो एक तरंग होती है। अनुनाद के कारण तंतु से स्थाई आवृत्ति (फ़्रीक्वेन्सी) वाली ध्वनि उत्पन्न होती है। अगर तंतु की लम्बाई और तनाव को सही रखा जाए तो इस कम्पन से संगीत स्वर उत्पन्न होता है। .

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तीन फेज विद्युत शक्ति

सामान आवृत्ति तथा सामान आयाम वाले तीन प्रत्यावर्ती वोल्टताओं का समय के साथ परिवर्तन का आरेख एक सरल तीन-फेजी जनित्र का व्यवस्था चित्र तीन फेजी विद्युत शक्ति (Three-phase electric power) वर्तमान समय में प्रत्यावर्ती धारा के उत्पादन, संचारण तथा वितरण एवं उपयोग की सबसे लोकप्रिय विधि है। यह एक प्रकार की बहुफेजी प्रणाली (polyphase system) है। तीन फेजी शक्ति के अनेक लाभ हैं। इसका प्रचलन और पैटेन्ट सर्वप्रथम निकोला टेसला द्वारा सन १८८७-१८८८ में किया गया था। .

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ध्वनि

ड्रम की झिल्ली में कंपन पैदा होता होता जो जो हवा के सम्पर्क में आकर ध्वनि तरंगें पैदा करती है मानव एवं अन्य जन्तु ध्वनि को कैसे सुनते हैं? -- ('''नीला''': ध्वनि तरंग, '''लाल''': कान का पर्दा, '''पीला''': कान की वह मेकेनिज्म जो ध्वनि को संकेतों में बदल देती है। '''हरा''': श्रवण तंत्रिकाएँ, '''नीललोहित''' (पर्पल): ध्वनि संकेत का आवृति स्पेक्ट्रम, '''नारंगी''': तंत्रिका में गया संकेत) ध्वनि (Sound) एक प्रकार का कम्पन या विक्षोभ है जो किसी ठोस, द्रव या गैस से होकर संचारित होती है। किन्तु मुख्य रूप से उन कम्पनों को ही ध्वनि कहते हैं जो मानव के कान (Ear) से सुनायी पडती हैं। .

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ध्वनिकी

सिरिया में बसरा स्थित रोमकालीन नाट्यशाला: ध्वनिकी के सिद्धान्तों का प्राचीन काल से ही उपयोग होता आ रहा है। ध्वनिकी (Acoustics) भौतिकी की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत ध्वनि तरंगो, अपश्रव्य तरंगों एवं पराश्रव्य तरंगों सहित ठोस, द्रव एवं गैसों में संचारित होने वाली सभी प्रकार की यांत्रिक तरंगों का अध्ययन किया जाता है। ध्वनि की उत्पत्ति द्रव्यपिंडों के दोलन द्वारा होती है। इस दोलन से वायु की दाब एवं घनत्व में प्रत्यावर्ती (alternating) परिर्वतन होने लगते हैं, जो अपने स्रोत से एक विशेष वेग के साथ आगे बढ़ते हैं। इनको ही ध्वनि की तरंग कहा जाता है। जब ये तरंगें कान के परदे से टकराती हैं, तब ध्वनि-संवेदन होता है। इन तरंगों की विशेषता यह है कि इनमें परावर्तन, अपवर्तन (refraction) तथा विवर्तन (diffraction) हो सकता है। प्रति सेकंड दोलन संख्या को आवृति (frequency) कहते हैं। मनुष्य का कान एक सीमित परास की आवृतियों को ही सुन सकता है, किंतु आजकल ऐसी तरंगें भी उत्पन्न की जा सकती है जिसका कान के परदे पर कोई असर नहीं होता। कान की सीमा से अधिक परास की आवृतियों की ध्वनि को पराश्रव्य तरंगें कहते हैं। बहुत से जानवर, जैसे चमगादड़, पराश्रव्य ध्वनि सुन सकते हैं। आधुनिक समय में श्रव्य तथा पराश्रव्य दोनों प्रकार की ध्वनियों की आवृतियों को एक बड़ी सीमा के भीतर उत्पन्न किया, पहचाना और मापा जा सकता है। .

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परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र

स्थलाकृतिक प्रतिबिंब परमाण्विक बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (atomic force microscope, AFM), जिसे क्रमवीक्षण बल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (scanning force microscope, SFM) भी कहा जाता है, एक अति-विभेदनशील यंत्र है, जो नैनोमीटर के अंशों से भी सूक्ष्म स्तर तक दिखा सकता है, जो कि प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शीओं की तुलना में १००० गुना बेहतर हैं। प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी उनकी विवर्तन सीमा से सीमित हो जाते हैं। इन्हे अगुआ किया गर्ड बिन्निग और हैन्रिक रोह्रर के बनाये अवलोकन टनलिंग सूक्ष्मदर्शी यंत्र (STM) नें, जिसके लिये उन्हे १९८६ में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बिन्निग, कैल्विन केट और क्रिस्टॉफ गर्बर नें १९८६ में पहले AFM का विकास किया। आज नैनो स्तर पर प्रतिबिंबन, मापन और दक्षप्रयोग में यह यंत्र महत्वपूर्ण भुमिका निभा रहा है। इस यंत्र को सूक्ष्मदर्शी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यह यंत्र एक यांत्रिक अन्वेषिका के प्रयोग से सतह को छूकर प्रतिबिंब बनाता है। पैजोविद्युत तत्वों के प्रयोग से बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर नियंत्रण हो पाता है। .

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पराश्रव्य

अल्ट्रासाउन्ड द्वारा गर्भवती स्त्री के गर्भस्थ शिशु की जाँच १२ सप्ताह के गर्भस्थ शिशु का पराश्रव्य द्वारा लिया गया फोटो पराश्रव्य (ultrasound) शब्द उन ध्वनि तरंगों के लिए उपयोग में लाया जाता है जिसकी आवृत्ति इतनी अधिक होती है कि वह मनुष्य के कानों को सुनाई नहीं देती। साधारणतया मानव श्रवणशक्ति का परास २० से लेकर २०,००० कंपन प्रति सेकंड तक होता है। इसलिए २०,००० से अधिक आवृत्तिवाली ध्वनि को पराश्रव्य कहते हैं। क्योंकि मोटे तौर पर ध्वनि का वेग गैस में ३३० मीटर प्रति सें., द्रव में १,२०० मी.

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प्रत्यावर्ती धारा

प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जो किसी विद्युत परिपथ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। इसके विपरीत दिष्ट धारा समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति ५० हर्ट्स होती हैं अर्थात यह एक सेकेण्ड में पचास बार अपनी दिशा बदलती है। वेस्टिंगहाउस का आरम्भिक दिनों का प्रत्यावर्ती धारा निकाय प्रत्यावर्ती धारा या पत्यावर्ती विभव का परिमाण (मैग्निट्यूड) समय के साथ बदलता रहता है और वह शून्य पर पहुंचकर विपरीत चिन्ह का (धनात्मक से ऋणात्मक या इसके उल्टा) भी हो जाता है। विभव या धारा के परिमाण में समय के साथ यह परिवर्तन कई तरह से सम्भव है। उदाहरण के लिये यह साइन-आकार (साइनस्वायडल) हो सकता है, त्रिभुजाकार हो सकता है, वर्गाकार हो सकता है, आदि। इनमें साइन-आकार का विभव या धारा का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आजकल दुनिया के लगभग सभी देशों में बिजली का उत्पादन एवं वितरण प्रायः प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है, न कि दिष्ट-धारा (डीसी) के रूप में। इसका प्रमुख कारण है कि एसी का उत्पादन आसान है; इसके परिमाण को बिना कठिनाई के ट्रान्सफार्मर की सहायता से कम या अधिक किया जा सकता है; तरह-तरह की त्रि-फेजी मोटरों की सहायता से इसको यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इसके अलावा श्रव्य आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति, दृश्य आवृत्ति आदि भी प्रत्यावर्ती धारा के ही रूप हैं। .

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प्रत्यक्ष वर्णक्रम

प्रत्यक्ष वर्णक्रम या दृष्य वर्णक्रम विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम का एक भाग है, जो मानवीय चक्षुओं को दिखाई देता है। इस श्रेणी की विद्युत चुम्बकीय तरंगों को प्रकाश कहते हैं। एक आदर्श मानवी चक्षु वायु में देखती है 380 नैनोमीटर से 750 नैनोमीटर तरंगदर्घ्य की प्रकाश को देख सकती है।। इसके अनुसार जल में और अन्य माध्यमों में यह उस माध्यम के अपवर्तन गुणांक (refractive index) के गुणक में दृश्यता घट जाती है। आवृत्ति के अनुसार, यह 400-790 टैरा हर्ट्ज के बराबर की पट्टी में पङता है। आँख द्वारा देखे गए प्रकाश की अधिकतम संवेदनशीलता 555 nm (540 THz) होती है (वर्णक्रम के हरे क्षेत्र में)। वैसे वर्णक्रम में वे सभी रंग नहीं होते जो कि मानवी आँख या मस्तिष्क देख या पहचान सकता है जैसे भूरा, गुलाबी या रानी अनुपस्थित हैं। यह इसलिए क्योंकि ये मिश्रित तरंग दैर्घ्य से बनते हैं, खासकर लाल के छाया। प्रत्यक्ष प्रकाश के वर्णक्रम का sRGB अनुवाद .

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प्राकृतिक आवृत्‍ति

किसी बाहरी चलाने वाले बल या डैम्प करने वाले बल की अनुपस्थिति में कोई निकाय जिस आवृत्ति पर कम्पन करता है उसे उस निकाय की प्राकृतिक आवृत्ति (Natural frequency) कहते हैं। किसी भी प्रत्यास्थ वस्तु का स्वतंत्र कम्पन उसकी प्राकृतिक आवृत्ति पर ही होता है। स्वतंत्र कम्पन और प्रणोदित कंपन (forced vibration) से भिन्न है। प्रणोदित कम्पन की आवृत्ति लगाये गये वाह्य बल की आवृत्ति के बराबर होती है (प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर नहीं)। किन्तु यदि लगाये गये वाह्य बल की आवृत्ति निकाय के प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर (या बहुत पास) हो तो दोलन का आयाम कई गुना बढ़ जाता है। इसी को अनुनाद कहते हैं। .

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प्रवर्धक

एक सामान्य प्रवर्धक बक्सा जिसमें इनपुट और आउटपुट के लिए बाहर पिन दिए होते हैं। प्रवर्धक और रिपीटर जो संकेत की शक्ति को बढ़ाकर उन्हें 'उपयोग के लायक' बनाते हैं। प्रवर्धक या एम्प्लिफायर (amplifier) ऐसी युक्ति है जो किसी विद्युत संकेत का मान (अम्प्लीच्यूड) बदल दे (प्रायः संकेत का मान बड़ा करने की आवश्यकता अधिक पड़ती है।) विद्युत संकेत विभवान्तर (वोल्टेज) या धारा (करेंट) के रूप में हो सकते है। आजकल सामान्य प्रचलन में प्रवर्धक से आशय किसी 'इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक' से ही होता है। .

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प्रेरक

प्रेरकत्व का प्रतीक कुछ छोटे आकार-प्रकार के प्रेरकत्व अपेक्षाकृत बड़ा प्रेरकत्व जो पावर सप्लाइयों में प्रयुक्त होते हैं। प्रेरक या इंडक्टर (inductor) एक वैद्युत अवयव है जिसमें कोई विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में उर्जा का भंडारण करता है। प्रेरक द्वारा चुम्बकीय उर्जा के भंडारण की क्षमता को इसका प्रेरकत्व (inductance) कहा जाता है और इसे मापने की इकाई हेनरी है। प्रेरक को साधारण भाषा में 'चोक' (choke) और 'कुण्डली' (coil) भी कहते हैं। .

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फलन का प्रभावक्षेत्र

बीजगणित में फलन का प्रभावक्षेत्र (domain of a function) किसी फलन (फ़न्क्शन) में प्रयोग होने वाले कोणांकों (argument) के वह मान होने हैं जिनके लिए फलन परिभाषित हो, यानि आर्थपूर्ण हो। .

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फिल्टर (संकेत प्रसंस्करण)

आवृत्ति रिस्पॉन्स के अनुसार विभिन्न प्रकार के फिटर संकेत प्रसंस्करण के सन्दर्भ में, उस युक्ति या प्रक्रिया को फिल्टर (filter) कहते हैं जो संकेत (सिगनल) से कुछ अवांछित अवयवों या विशेषताओं को निकाल देता है। उदाहरण के लिये 'लो पास फिल्टर' किसी सिगनल के उन अवयवों को तो आउटपुट में जाने देता है जो कम आवृत्ति के हों किन्तु यह फिल्टर उस संकेत के अधिक आवृत्ति वाले भागों को आउटपुट में जाने से रोक देता है या कम कर देता है। .

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फुरिअर विश्लेषण

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में किसी फलन (फंक्शन) को छोटे-छोटे सरल फलनों के योग के रूप में व्यक्त करने को विश्लेषण कहा जाता है एवं इसकी उल्टी प्रक्रिया को संश्लेषण कहते हैं। हमें ज्ञात है कि फुरिअर श्रेणी के प्रयोग से किसी भी आवर्ती फलन को उचित आयाम, आवृत्ति एवं कला की साइन तरंगो (sine waves) के योग के रूप मे व्यक्त करना सम्भव है। इसके सामान्यीकरण के रूप में यह भी कह सकते हैं किं किसी भी समय के साथ परिवर्तनशील संकेत को उचित आयाम, आवृत्ति एवं कला की साइन तरंगो (sine waves) के योग के रूप में व्यक्त करना सम्भव है। फुरिअर विश्लेषण (Fourier analysis) वह तकनीक है जिसका प्रयोग करके बताया जा सकता है कि कोई संकेत (सिग्नल) किन साइन तरंगों से मिलकर बना हुआ है। फलनों (या अन्य वस्तुओं) को सरल टुकड़ों में तोडकर समझने का प्रयास फुरिअर विश्लेषण का सार है। आजकल फुरिअर विश्लेषण का विस्तार होकर यह एक अधिक सामान्य हार्मोनिक विश्लेषण के अंग के रूप में जाना जाने लगा है। .

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ब्रॉडबैंड इंटरनेट अभिगम

2005 में ब्रॉडबैंड सदस्यता ब्रॉडबैंड इंटरनेट अभिगम, जिसे संक्षिप्त रूप से अक्सर ब्रॉडबैंड कहा जाता है, एक उच्च डेटा दर इंटरनेट अभिगम है- जिसकी तुलना आम तौर पर 56K मॉडेम का उपयोग करने वाले डायल-अप अभिगम से की जाती है। डायल-अप मॉडेम, 56 kbit/s (किलोबिट्स प्रति सेकंड) से कम के बिटरेट तक सीमित होते हैं और इन्हें पूरे टेलीफोन लाइन के उपयोग की आवश्यकता होती है - जबकि ब्रॉडबैंड प्रौद्योगिकियां, टेलीफोन के उपयोग को प्रायः बिना बाधित किए हुए इस दर से दुगुना प्रदान करती हैं। हालांकि ब्रॉडबैंड की परिभाषा में विभिन्न न्यूनतम बैंडविड्थ का इस्तेमाल किया गया है, जिसकी सीमा 64kbit/s से लेकर 2.0Mbit/s तक है, 2006 OECD की रिपोर्ट ब्रॉडबैंड को विशिष्ट रूप से परिभाषित करती है कि इसमें डाउनलोड का डेटा अंतरण दर 256 kbit/s के बराबर या तेज़ होता है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका (US) का संघीय संचार आयोग (FCC) यथा 2009, "बेसिक ब्रॉडबैंड" को परिभाषित करता है कि 768 किलोबिट्स प्रति सेकंड (Kbps) से अधिक, या 768,000 बिट्स प्रति सेकंड की डेटा संचरण गति, कम से कम एक दिशा में: नीचे की ओर (इंटरनेट से उपयोगकर्ता के कंप्यूटर की तरफ) या ऊपर की ओर (उपयोगकर्ता के कंप्यूटर से इंटरनेट की तरफ)। प्रवृत्ति यह है कि जैसे-जैसे बाज़ार, तेज़ सेवाएं प्रदान कर रहा है वैसे-वैसे ब्रॉडबैंड की परिभाषा की सीमा को बढ़ाना.

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बोडे आरेख

प्रथम आर्डर के बटरवर्थ फिल्टर का बोडी आलेख किसी रैखिक काल-अपरिवर्तित प्रणाली के अन्तरण प्रकार्य की आवृत्ति के सापेक्ष आलेख बोडे आलेख या 'बोडे प्लॉट' (Bode plot) कहलाता है। इसमें आवृत्ति-अक्ष लघुगणकीय-पैमाने (log-scale) में होती है। बोडे प्लॉट वस्तुतः किसी प्रणाली का आवृत्ति अनुक्रिया (फ्रेक्वेंसी रिस्पांस) को निरूपित करती है। बोडी प्लॉट प्रायः दो आलेख होते हैं -.

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बीबीसी वर्ल्ड सर्विस

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस दुनिया का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय प्रसारक है,जो सादृश और अंकीय लघु तरंगों (एनालॉग एंड डिजिटल शार्टवेव), इंटरनेट स्ट्रीमिंग और पॉडकास्टिंग, उपग्रह, एफएम और एमडब्ल्यू प्रसारणों के जरिये दुनिया के कई हिस्सों में 32 भाषाओं में प्रसारण करता है। यह राजनीतिक रूप से स्वतंत्र, (बीबीसी के घोषणपत्र में उल्लिखित विषयों का ब्यौरा उपलब्ध कराने के समझौते के आदेश द्वारा) गैर-लाभकारी और वाणिज्यिक विज्ञापनों से मुक्त है। अंग्रेजी भाषा की सेवा हर दिन 24 घंटे प्रसारित होती है। जून 2009 में बीबीसी की रिपोर्ट है कि विश्व सेवा के साप्ताहिक श्रोताओं का औसत 188 मिलियन लोगों तक पहुंच गया। वर्ल्ड सर्विस के लिए ब्रिटिश सरकार विदेशी और राष्ट्रमंडल कार्यालय द्वारा अनुदान सहायता के माध्यम से वित्तपोषित करती है। 2014 से यह अनिवार्य बीबीसी लाइसेंस शुल्क से वित्तपोषित होगा, जो ब्रिटेन में टेलीविजन पर प्रसा‍रित कार्यक्रमों को देखने वाले हर घर पर लगाया जायेगा.

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भौतिक गुण

किसी भौतिक प्रणाली के किसी भी मापने योग्य गुण को भौतिक गुण (physical property) कहते हैं जो उस प्रणाली की बहुतिक अवस्था का सूचक है। इसके विपरीत वे गुण जो यह बताते हैं कि कोई वस्तु किसी रासायनिक अभिक्रिया में कैसा व्यवहार करती है, उसका रासायनिक गुण कहलाती है। .

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भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

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भूधाराएँ

भूपर्पटी में प्रवाहित विद्युत धाराओं को भू-धाराएँ (Earth Currents) कहते हैं। यह वह धारा है जो भूमि के अन्दर से या समुद्र से होकर बहती है। ये बहुत ही कम आवृत्ति की विद्युत-धाराएँ हैं जो धरती के तल या उसके आसपास बहुत बड़े क्षेत्रफल में प्रवाहित होतीं हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण प्राकृतिक भी है और मानवीय क्रियाकलाप भी। भू-धाराओं को भूभौतिकीविद् स्थलमंडलीय धाराएँ (telluric currents) कहते हैं और हाल ही में पेट्रोलियम खोजने के क्षेत्र में इससे बहुत लाभ उठाया गया है। पेट्रोलियम तैलाशय की उच्च प्रतिरोधकता चट्टानों में इन धारानिकायों से उत्पन्न विभव प्रवणता के अध्ययन से, भूभौतिकीय अन्वेषण के लिये अत्यंत उपयोगी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। अनुमानत: इसका प्रेरण उपरली धारा पद्धति (overhead current system) से होता है। सर्वप्रथम 1847 ई0 में इंग्लैंड में, सुविकसित तार प्रणाली (telegraphy) की सहायता से पर्पटी में परिवर्तनशील विद्युद्धाराओं का प्रेक्षण किया गया था। इससे अनेक अनुसंधानकर्ताओं को भू-धाराओं के अध्ययन की प्रेरणा मिली। .

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भूसमकालिक कक्षा

इस एनिमेशन में किसी भूस्थिर कक्षा में चक्कर काट रहे उपग्रह की गति दर्शायी गयी है। भूसमकालिक कक्षा (geosynchronous orbit या GSO) धरती के चारों ओर स्थित वह दीर्घवृत्ताकार कक्षा है जिसमें घूमने वाले पिण्ड (जैसे, कृत्रिम उपग्रह) का आवर्तकाल १ दिन (धरती के घूर्णन काल के बराबर .

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भूकम्पीय तरंग

भूकम्पीय तरंगें (seismic waves) पृथ्वी की आतंरिक परतों व सतह पर चलने वाली ऊर्जा की तरंगें होती हैं, जो भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, बड़े भूस्खलन, पृथ्वी के अंदर मैग्मा की हिलावट और कम-आवृत्ति (फ़्रीक्वेन्सी) की ध्वनि-ऊर्जा वाले मानवकृत विस्फोटों से उत्पन्न होती हैं। .

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मापन एवं जाँच के एलेक्ट्रानिक उपकरण

एक डिजिटल ऑसिलोस्कोप विद्युत एवं एलेक्ट्रानिक कार्य के लिये बहुत से उपकरण लगते हैं जो मापन, जाँच, सिगनल पैदा करने (संकेत-जनक), सिगनल का स्वरूप देखने आदि के काम आते हैं। .

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माइक्रोफोन

एक माइक्रोफोन (जिसे बोलचाल की भाषा में Mic या Mike कहा जाता है) एक ध्वनिक-से-वैद्युत ट्रांसड्यूसर (en:Transducer) या संवेदक होता है, जो ध्वनि को विद्युतीय संकेत में रूपांतरित करता है। 1876 में, एमिली बर्लिनर (en:Emile Berliner) ने पहले माइक्रोफोन का आविष्कार किया, जिसका प्रयोग टेलीफोन स्वर ट्रांसमीटर के रूप में किया गया। माइक्रोफोनों का प्रयोग अनेक अनुप्रयोगों, जैसे टेलीफोन, टेप रिकार्डर, कराओके प्रणालियों, श्रवण-सहायता यंत्रों, चलचित्रों के निर्माण, सजीव तथा रिकार्ड की गई श्राव्य इंजीनियरिंग, FRS रेडियो, मेगाफोन, रेडियो व टेलीविजन प्रसारण और कम्प्यूटरों में आवाज़ रिकार्ड करने, स्वर की पहचान करने, VoIP तथा कुछ गैर-ध्वनिक उद्देश्यों, जैसे अल्ट्रासॉनिक परीक्षण या दस्तक संवेदकों के रूप में किया जाता है। शॉक माउंट वाला एक न्यूमन U87 कंडेंसर माइक्रोफोन वर्तमान में प्रयोग किये जाने वाले अधिकांश माइक्रोफोन यांत्रिक कंपन से एक विद्युतीय आवेश संकेत उत्पन्न करने के लिये एक विद्युतचुंबकीय प्रवर्तन (गतिज माइक्रोफोन), धारिता परिवर्तन (दाहिनी ओर चित्रित संघनित्र माइक्रोफोन), पाइज़ोविद्युतीय निर्माण (Piezoelectric Generation) या प्रकाश अधिमिश्रण का प्रयोग करते हैं। .

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मोटर-जनित्र

मोटर-जनित्र (motor-generator या M-G set या dynamotor .

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रेडियो आवृत्ति

3 किलोहर्ट्ज से 300 गीगा हर्ट्ज़ की आवृत्ति वाली तरंगों को रेडियो आवृत्ति (RF) कहते हैं। रेडियो तरंगें, रेडियो आवृत्ति की तरंगे ही होतीं हैं। रेडियो आवृत्ति के कम्पन - यांत्रिक कम्पन और वैद्युत कम्पन दोनों हो सकते हैं किन्तु प्रायः रेडियो आवृत्ति से आशय विद्युत कम्पन से ही होता है न कि यांत्रिक कम्पन से। .

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लोलक

"सरल गुरुत्वीय लोलक" शून्य वायु-घर्षण एवं प्रतिरोध मानकर किसी खूंटी से लटके ऐसे भार को लोलक (pendulum) कहते हैं जो स्वतंत्रतापूर्वक आगे-पीछे झूल सकता हो। झूला इसका एक व्यावहारिक उदाहरण है। .

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शक्ति प्रणाली का संरक्षण

जर्मनी के एक शक्ति संयंत्र का नियंत्रण-कक्ष एक आधुनिक संरक्षा रिले; यह वितरण प्रणाली में प्रयुक्त अनेकों कार्य करने वाली एक अंकीय रिले है। यह अकेले ही कई विद्युत-यांत्रिक रिले का काम कर सकती है। इसके अलावा इसमें स्व-परीक्षण की सुविधा तथा सूचना को दूर तक पहुँचने/लेने की भी सुविधा है। शक्ति तंत्र का संरक्षण (Power system protection) विद्युत शक्ति प्रणाली की शाखा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न वैद्युत दोषों (फाल्ट्स) की स्थिति में विद्युत उपकरणों की सुरक्षा एवं विद्युत प्रदाय का सातत्य (कांटिन्युइटी) सुनिश्चित करने से समब्धित विषय आते हैं। रक्षी प्रणाली का उद्देश्य यह होता है कि दोष की स्थिति में, कम से कम समय में, केवल उन अवयवों को शेष नेटवर्क से अलग किया जाय जिनमें दोष उत्पन्न हुआ है। इससे नेटवर्क का 'स्वस्थ' भाग नेटवर्क में बना रहता है और अपना काम करता रहता है। जो युक्तियाँ विद्युत प्रणाली को दोषों से रक्षा करने के उद्देश्य से लगायी जातीं हैं उन्हें रक्षी युक्तियाँ' (प्रोटेक्टिव डिवाइसेस) कहते हैं। .

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श्रव्य प्रवर्धक

एकीकृत परिपथ (आईसी) से बना एक श्रव्य शक्ति प्रवर्धक आईसी के रूप में एक श्रव्य-आवृत्ति प्रवर्धक (Lm3886tf) ऐसे एलेक्ट्रानिक प्रवर्धक को श्रव्य प्रवर्धक या आडियो एम्प्लिफायर (audio amplifier) कहते हैं जो कम शक्ति के श्रव्य संकेतों का प्रवर्धन कर सकें। श्रव्य-आवृत्‍ति शक्ति प्रवर्धक (audio power amplifier) वह एलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक है जो कम शक्ति के श्रव्य आवृत्ति वाले विद्युत संकेतों को प्रवर्धित करके उनको इतना शक्तिशाली बना दे कि वे लाउडस्पीकर को चला सकें। उन संकेतों को श्रव्य संकेत (आडियो सिगनल) कहते हैं जिनकी आवृत्ति २० हर्ट्ज से लेकर २० हजार हर्ट्ज के बीच होती है। इस सीमा के भीतर की आवृत्तियों वाले संकेत ही मानव कर्ण को सुनाई पड़ते हैं, इससे कम या अधिक के नहीं। श्रव्य प्रवर्धकों का निवेश संकेत (इनपुट सिगनल) कुछ सौ माइक्रोवाट के स्तर का होता है जबकि आउटपुट दस, सौ या हजार वाट के स्तर का हो सकता है। श्रव्य प्रवर्धक, रेडियो, टीवी, टेलीफोन, सेलफोन आदि के आवश्यक अंग है। .

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सप्तक

में संगीत, एक सप्तक (आठवें) या सही सप्तक है के अंतराल के बीच एक संगीत पिच और एक अन्य आधे के साथ या इसकी आवृत्तिहै । यह द्वारा परिभाषित किया गया है एएनएसआई की इकाई के रूप में आवृत्ति के स्तर जब लघुगणक का आधार दो है । सप्तक संबंध एक प्राकृतिक घटना है कि किया गया है के रूप में भेजा "साधारण चमत्कार के संगीत", का उपयोग है जो "आम में सबसे संगीत सिस्टम".

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सरल आवर्त गति

घर्षणरहित फर्श पर स्प्रिंग से जुड़े द्रव्यमान की गति 'सरल आवर्त गति' है। भौतिकी में सरल आवर्त गति (simple harmonic motion / SHM) उस गति को कहते हैं जिसमें वस्तु जिस बल के अन्तर्गत गति करती है उसकी दिशा सदा विस्थापन के विपरीत एवं परिमाण विस्थापन के समानुपाती होता है। उदाहरण - किसी स्प्रिंग से लटके द्रव्यमान की गति, किसी सरल लोलक की गति, किसी घर्षणरहित क्षैतिज तल पर किसी स्प्रिंग से बंधे द्रव्यमान की गति आदि। .

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साइक्लोकन्वर्टर

ब्लॉकिंग मोड साइक्लोकन्वर्टर की संरचना साइक्लोकन्वर्टर (cycloconverter (CCV)) या साइक्लोइन्वर्टर वह युक्ति है जो किसी आवृत्ति की प्रत्यावर्ती विद्युत को (सीधे, बिना डी.सी. में बदले) कम आवृत्ति की प्रत्यावर्ती विद्युत शक्ति में बदलता है। उदाहरण के लिए, ५० हर्ट्ज की विद्युत से १६.६६७ हर्ट्ज की विद्युत पैदा करने वाला साइक्लोकन्वर्टर कहीं-कहीं विद्युत कर्षण में प्रयोग किया जाता है। .

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संगीत तथा गणित

थोड़े भिन्न आवृत्ति वाली दो ध्वनि तरंगो के व्यतिकरण द्वारा उत्पन्न विस्पन्द (beat) संगीत के सिद्धान्तकार इसे समझने के लिए कभी-कभी गणित का प्रयोग करते हैं। यद्यपि संगीत का कोई ठीक-ठीक गणितीय सिद्धान्त नहीं है किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि संगीत, ध्वनि से बनी है तथा ध्वनि का गणितीय आधार अब सर्वविदित है। विज्ञान व गणित का चोली दामन सा साथ है। संगीत के सिद्धान्तों को समझाने के लिए, प्राचीन समय से ही हमारे आचार्य व पण्डित, गणित का ही सहारा लेते आ रहे हैं। आधुनिक विज्ञान भी पूर्ण रूप से गणित आधारित है। समय के साथ साथ विज्ञान का विकास हुआ है और विज्ञान के साथ गणित का भी उतना ही विकास हुआ है। .

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स्पेक्ट्रोस्कोपी

स्पेक्ट्रमिकी का सबसे सरल उदाहरण: श्वेत प्रकाश को प्रिज्म होकर ले जाने पर वह सात रंगों में बंट जाती है। स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं। मूलत: विकिरण एवं पदार्थ के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से दृष्य प्रकाश का किसी प्रिज्म से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग रास्ते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था। बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है: E .

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स्विच मोड पॉवर सप्लाई

एक '''एस एम पी एस''' के अन्दर का दृष्य स्विच मोड पॉवर सप्लाई (Switch-mode power supply) या एसएमपीएस उन शक्ति-परिवर्तकों (पावर कन्वर्टर्स) को कहते हैं जिनमें पॉवर-कन्वर्शन के लिये किसी स्विच (जैसे आईजीबीटी) को उच्च आवृत्ति पर चालू-बन्द (ON/OFF) किया जाता है। इनकी दक्षता उन कन्वर्टरों से बहुत अधिक होती है जिन्हें रेखीय शक्ति आपूर्ति (लिनियर पॉवर सप्लाईज) कहते हैं जिनमें किसी शक्ति को नियंत्रित करने वाली युक्ति न तो पूरी तरह चालू होती है न पूरी तरह बन्द (अर्थात वह युक्ति ऐक्टिव रीजन में काम करती है)। आजकल उच्च गुणवत्ता वाली स्विचों की उपलब्धता के कारण अधिकांश शक्ति आपूर्तियाँ एसएमपीएस प्रकार की ही निर्मित की जा रही हैं। उच्च दक्षता के अतिरिक्त इनका आकार (साइज) भी समान क्षमता के लिनियर पॉवर सप्लाई से छोटा होता है। .

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सैकेन्डी लोलक

सैकेण्डी लोलक सैकेन्डी लोलक (seconds pendulum) वह लोलक है जिसका आवर्तकाल ठीक-ठीक २ सेकेण्ड होता है। अतः इसकी आवृत्ति १/२ हर्ट्ज होती है। .

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सी॰डी॰एम॰ए

कोड डिविजन मल्टिपल एक्सेस (CDMA) एक चैनल का उपयोग (एक्सेस) करने की विधि है जिसका उपयोग भिन्न रेडियो संचार प्रौद्योगिकियों में किया जाता है। इसको लेकर मोबाइल फोन मानकों के विषय में भ्रमित नहीं होना चाहिए, जो cdmaOne और CDMA2000 कहलाते हैं (जिन्हें अक्सर साधारण रूप से "CDMA") कहा जाता है, जो CDMA का उपयोग एक अन्तर्निहित चैनल एक्सेस विधि के रूप में करते हैं। डेटा संचार में एक मूल अवधारणा है, भिन्न ट्रांसमीटर्स को एक साथ एक ही संचार चैनल पर जानकारी भेजने की अनुमति देने का विचार.

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हाइनरिख़ हर्ट्ज़

कार्ल्सरूह प्रौद्योगिकी संस्थान में हाइनरिख़ हर्ट्ज़ का स्मारक हाइनरिख़ रूडॉल्फ़ हर्ट्ज़ (जर्मन: Heinrich Rudolf Hertz, जन्म: २२ फ़रवरी १८५७, देहांत: १ जनवरी १८९४) एक जर्मन भौतिक विज्ञानी थे जिन्होंने जेम्स क्लर्क माक्सवेल द्वारा खोजे गए प्रकाश के मूल विद्युतचुम्बकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) की तरंगों के सिद्धांत को और आगे विकसित किया। वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने प्रयोगशाला में रेडियो की तरंगों को प्रसारित करने और पकड़ने के यंत्र बनाये। उनके इस महत्वपूर्ण काम के लिए रडियो की आवृत्ति (फ़्रीक्वॅन्सी) के माप का नाम "हर्ट्ज़" (Hertz) रखा गया जिसे छोटे रूप में "Hz" लिखा जाता है। .

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जीसैट-1

जीसैट-१ जीएसएलवी रॉकेट की पहली उडान द्वारा प्रक्षेपित एक प्रयोगधर्मी संचार उपग्रह था। यह अंतरिक्ष यान एस बैंड आवृति और सीबैंड के तीन प्रेषानुकरों (ट्रांसपौंडरों) द्वारा छोडे जा रहे स्पदंन स्वर परिवर्तन (पल्स कोड मॉड्युलेशन) नापने वाले उपकरणों से सुसज्जित था। इस उपग्रह पर सुधारित प्रतिक्रिया नियंत्रण थ्रस्टर, त्वरित पुनःप्राप्ति तारा संवेदक और ऊष्मा प्रवाहिका रेडियेटर पैनल जैसे कई नए अंतरिक्ष यान अवयवों का परीक्षण भी किया गया। जीसैट-1 का उपयोग डिजीटल ऑडियो प्रसारण, इंटरनेट सेवाएँ और संपीडित डिजीटल टी.वी.

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घड़ीयंत्र नियंत्रण

पृथ्वी के घूर्णन के कारण समस्त आकाशीय पिंड पूर्व से पश्चिम की ओर गमन करते हुए प्रतीत होते हैं। इस कारण यदि किसी आकाशीय पिंड का फोटो लेते समय कैमरे को लक्ष्यपिंड की ओर निर्दिष्ट करके छोड़ दिया जाय, तो उक्त पिंड के आभासी स्थानांतरण के कारण उसका फोटो चित्र स्पष्ट नहीं प्राप्त होगा, वरन्‌ वह बिंदु सदृश पिंड एक छोटी और मोटी रेखा के रूप में फोटो पट्टिका पर दृष्ट होगा और इस रेखा की विमितियाँ भी स्पष्ट अथवा तीक्ष्ण नहीं होंगी। इस कठिनाई को दूर करने के लिये ऐसी व्यवस्था की गई है कि खगोलीय पिंडों का फोटो लेनेवाला कैमरा एक विद्युतचालित घड़ीयंत्रनियंत्रण-व्यवस्था (Clockwork regulation mechanism) द्वारा तारों की आभासी गति की ही दिशा में तथा उनके आभासी कोणीय वेग के समान वेग से घुमाया जा सके, ताकि लक्ष्य पिंड का बिंब फोटो पट्टिका के एक ही स्थान पर 'जमा', अर्थात्‌ 'स्थित', रहे। .

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वर्णक्रमीय रेखा

वर्णक्रमीय रेखा (spectral line) किसी सतत वर्णक्रम में उपस्थित हलकी या गाढ़ी रेखा को कहते हैं। यह एक विशेष आवृत्ति (फ़्रीक्वेन्सी) के प्रकाश के उत्सर्जन (emission) या अवशोषण (absorption) के कारण बनती हैं। वर्णक्रमीय रेखाओं के द्वारा अक्सर परमाणुओं और अणुओं की पहचान की जाती है। हमसे लाखों प्रकाशवर्ष दूर स्थित तारों व ग्रहों की रासायनिक संरचना का अनुमान उनसे आने वाले प्राकश में उपस्थित वर्णक्रमीय रेखाओं से लगाया जा सकता है, जो कि इनके बिना असम्भव होता। .

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वर्ग माध्य मूल

गणित में वर्ग माध्य मूल (root mean square / RMS or rms), किसी चर राशि के परिमाण (magnitude) को व्यक्त करने का एक प्रकार का सांख्यिकीय तरीका है। इसे द्विघाती माध्य (quadratic mean) भी कहते हैं। यह उस स्थिति में विशेष रूप से उपयोगी है जब चर राशि धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों मान ग्रहण कर रही हो। जैसे ज्यावक्रीय (sinusoids) का आरएमएस एक उपयोगी राशि है। 'वर्ग माध्य मूल' का शाब्दिक अर्थ है - दिये हुए आंकड़ों के "वर्गों के माध्य का वर्गमूल (root)".

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विद्युत धारा

आवेशों के प्रवाह की दिशा से धारा की दिशा निर्धारित होती है। विद्युत आवेश के गति या प्रवाह में होने पर उसे विद्युत धारा (इलेक्ट्रिक करेण्ट) कहते हैं। इसकी SI इकाई एम्पीयर है। एक कूलांम प्रति सेकेण्ड की दर से प्रवाहित विद्युत आवेश को एक एम्पीयर धारा कहेंगे। .

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विद्युत शक्ति अनुकूलन

विद्युत उपभोक्ताओं को दिये जाने वाली वुद्युत शक्ति की गुणवत्ता (quality) सुनिश्चित करने वाले उपकरणों को शक्ति अनुकूलक (power conditioner) कहते हैं तथा इस प्रक्रिया को शक्ति अनुकूलन (Power conditioning) कहते हैं। विद्युत शक्ति में गुणवत्ता संबन्धी अनेक प्रकार की समस्याएँ हो सकती हैं; जैसे वोल्टेज निर्धारित सीमा से भी कम या अधिक हो; आवृत्ति ५० हर्ट्ज के बजाय ४७ हर्ट्ज हो; कुछ देर (जैसे आधा सेकेण्ड) के लिये विद्युत शक्ति शून्य हो आदि। ज्ञातव्य है कि विद्युत-शक्ति यदि निर्धारित मापडण्दों के अनुकूल नहीं होगी तो उससे विद्युत के उपकरण खराब हो सकते हैं; या वे ठीक से कार्य न करें आदि समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। वोल्टेज रेगुलेटर एक शक्ति-अनुकूलक उपकरण है। इसी तरह यूपीएस भी एक शक्ति अनुकूलक उपकरण है। सर्ज-सप्रेसर भी एक ऐसा ही उपकरण है। प्राय: एक ही उपकरण में शक्ति-गुणवत्ता की सभी समस्याओं को ठीक करने की क्षमता नहीं होती है। किन्तु अधिकांश उपकरण एक से अधिक समस्याओं के निवारण में सक्षम होते हैं। .

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विद्युत ग्रिड का स्थायित्व

किसी विद्युत शक्ति तन्त्र (power system) के वोल्टता और आवृत्ति को एक निश्चित मान के आसपास बनाये रखने के लिये लगातार कुछ कर्म करना पड़ता है। वास्तव में शक्ति तन्त्र (पॉवर सिस्टम) एक गतिक निकाय है जिसका स्थायित्व बनाये रखना एक महत्वपूर्ण कार्य है। श्रेणी:शक्ति तन्त्र.

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विमीय विश्लेषण

विमीय विश्लेषण (Dimensional analysis) एक संकाल्पनिक औजार (कांसेप्चुअल टूल) है जो भौतिकी, रसायन, प्रौद्योगिकी, गणित एवं सांख्यिकी में प्रयुक्त होता है। यह वहाँ उपयोगी होता है जहाँ कई तरह की भौतिक राशियाँ किसी घटना के परिणाम के लिये जिम्मेदार हों। भौतिकविद अक्सर इसका उपयोग किसी समीकरण आदि कि वैधता (plausibility) की जाँच के लिये करते रहते हैं। दूसरी तरफ इसका उपयोग जटिल भौतिक स्थितियों से सम्बंधित चरों को आपस में समीकरण द्वारा जोड़ने के लिये किया जाता है। विमीय विश्लेषण की विधि से प्राप्त इन सम्भावित समीकरणों को प्रयोग द्वारा जाँचा जाता है, या अन्य सिद्धान्तों के प्रकाश में देखा जाता है। बकिंघम का पाई प्रमेय (Buckingham π theorem), विमीय विश्लेषण का आधार है। .

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विस्पन्द

सबसे नीचे वाली तरंग ऊपर वाली दो तरंगों के अध्यारोपण (सुपरपोजिशन) से बनी है। जब 'लगभग' बराबर आवृत्ति वाली दो ध्वनि तरंगे एक साथ उत्पन्न की जाती हैं, तो माध्यम में उनके अध्यारोपण से प्राप्त ध्वनि की तीव्रता बारी-बारी से घटती और बढती रहती है। ध्वनि की तीव्रता में होने वाले इस चढाव व उतराव को 'विस्पन्द' (beat) कहते हैं। .

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वैद्युत तथा एलेक्ट्रानिक मापक यंत्र

नीचे वैद्युत तथा एलेक्ट्रॉनिक मापक यंत्रों की सूची दी गयी है: श्रेणी:मापन उपकरण श्रेणी:विद्युत उपकरण श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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वैद्युत प्रतिघात

विद्युत प्रणालियों तथा इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों में, किसी अवयव द्वारा धारा अथवा वोल्टता के परिवर्तन के विरोध को उस अवयव का प्रतिघात (रिएक्टैंस) कहते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र, धारा के परिवर्तन का विरोध करता है जबकि विद्युत क्षेत्र, वोल्टता के परिवर्तन का। वैद्युत प्रतिघात की संकल्पना कई अर्थों में वैद्युत प्रतिरोध के समान है, किन्तु कुछ अर्थों में भिन्न भी है। .

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गुरुत्वीय तरंग

thumb लेजर व्यतिकरणमापी का योजनामूलक चित्र भौतिकी में दिक्काल के वक्रता की उर्मिकाओं को गुरुत्वीय तरंग (gravitational waves) कहते हैं। ये उर्मिकाएँ तरंग की तरह स्रोत से बाहर की तरफ गमन करतीं हैं। अलबर्ट आइंस्टाइन ने वर्ष १९१६ में अपने सामान्य आपेक्षिकता सिद्धान्त के आधार पर इनके अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी। ११ फरवरी २०१६ को अमेरिका में वाशिंगटन, जर्मनी में हनोवर और कुछ अन्य देशों के शहरों में एक साथ यह घोषणा की गई कि ब्रह्मांड में गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व का सीधा प्रमाण मिल गया है। खगोलविदों का मानना है कि गुरुत्वीय तरंगों की पुष्टि हो जाने के बाद अब ब्रह्मांड की उत्पत्ति के कुछ और रहस्यों पर से पर्दा उठ सकता है। गुरुत्वीय तरंगों का संसूचन (detection) आसान नहीं है क्योंकि जब वे पृथ्वी पर पहुँचती हैं तब उनका आयाम बहुत कम होता है और विकृति की मात्रा लगभग 10−21 होती है जो मापन की दृष्टि से बहुत ही कम है। इसलिये इस काम के लिये अत्यन्त सुग्राही (sensitive) संसूचक चाहिये। अन्य स्रोतों से मिलने वाले संकेत (रव / noise) इस कार्य में बहुत बाधक होते हैं। अनुमानतः गुरुत्वीय तरंगों की आवृत्ति 10−16 Hz से 104 Hz होती है। .

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ओजोन ह्रास

वैश्विक मासिक औसत कुल ओजोन राशि ओजोन ह्रास या ओजोन अवक्षय (ओजोन डिप्लीशन) दो अलग लेकिन सम्बंधित प्रेक्षणों का वर्णन करता है; 1970 के दशक के बाद से पृथ्वी के समतापमंडल (stratosphere) में ओजोन की कुल मात्रा में प्रति दशक लगभग चार प्रतिशत की धीमी लेकिन स्थिर कमी आ रही है;और समान अवधि के दौरान पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों के ऊपर समतापमंडल की ओजोन में अधिक लेकिन मौसमी कमी आ रही है। बाद वाली घटना को सामान्यतः ओजोन छिद्र के रूप में जाना जाता है। इस जाने माने संताप मंडलीय ओजोन (stratospheric ozone) रिक्तीकरण के अलावा, क्षोभ मंडलीय ओजोन रिक्तीकरण की घटनाएँ (tropospheric ozone depletion events) भी पाई गई हैं, जो बसंत ऋतु के दौरान ध्रुवीय क्षेत्रों की सतह के पास होता है। विस्तृत क्रियाविधि जिसके द्वारा ध्रुवीय ओजोन छेद, मध्य अक्षांश रिक्तीकरण से भिन्नता रखता है, लेकिन दोनों प्रवृतियों में सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है परमाणु क्लोरीन और ब्रोमीन द्वारा ओजोन का अपघटनी (catalytic) विनाश.

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आवृत्ति परिवर्तक

ऐसी किसी भी युक्ति को आवृत्ति परिवर्तक (frequency change या frequency converter) कहते हैं जो किसी नियत आवृत्ति की विद्युत को किसी अन्य आवृत्ति की विद्युत शक्ति में बदलती है। ये युक्तियाँ इलेक्ट्रॉनिक और विद्युतयांत्रिक (electromechanical) दोनों ही प्रकार की सम्भव हैं। ऐसा हो सकता है कि आवृत्ति परिवर्तक, आवृत्ति को बदलने के साथ-साथ प्रत्यावर्ती धारा का आयाम भी बदल रहा हो। .

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आवृत्ति अनुक्रिया

किसी लो-पास, प्रथम ऑर्डर, की आवृत्ति अनुक्रिया किसी तंत्र (सिस्टम) के इनपुट की आवृत्ति बदलने पर उसके आउटपुट का परिमाण (मैग्निट्यूड) एवं फेज के परिवर्तन को उस तंत्र की आवृत्ति अनुक्रिया (फ्रेक्वेन्सी रिस्पान्स) कहते हैं। आवृत्ति अनुक्रिया उस तंत्र की गतिक विशेषता बताती है। इसका नियन्त्रण तंत्र के डिजाइन में बहुत उपयोग होता है। दूसरे शब्दों में, किसी सिस्टम के इनपुट में एक नियत परिमाण की साइन तरंग लगाते हैं और इस साइन तरंग की आवृत्ति को f1, f2, f3,...

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इन्वर्टर (शक्ति एलेक्ट्रानिकी)

सोलर पैनेल से प्राप्त डीसी को एसी में बदलने के लिए प्रयुक्त एक इन्वएटर के परिपथ का अन्तरिक दृष्य शक्ति प्रतीपक या पॉवर इन्वर्टर एक ऐसी पॉवर सप्लाई को कहते हैं जो डीसी (DC) को एसी (AC) में परिवर्तित करता है। इससे प्राप्त ए.सी.

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कला (तरंग)

दो तरंगों के बीच कलान्तर किसी तरंग के सन्दर्भ में, कला (फेज) वह समयावधि या दूरी है जो उस तरंग के किसी सन्दर्भ बिन्दु के सापेक्ष अभिव्यक्त की गयी हो। किसी बिन्दु की कला से पता चलता है कि वह बिन्दु उस तरंग के ग्राफ में कहाँ स्थित होगी। प्रायः कला को उस तरंग के आवर्तकाल के अनुपात (अनुपात) के रूप में व्यक्त किया जाता है और प्रायः उस तरंग का वह बिन्दु सन्दर्भ के रूप में लिया जाता है जिस पर विस्थापन (या विद्युत क्षेत्र, या चुम्बकीय क्षेत्र या दाब) शून्य हो। तरंग के एक आवर्तकाल को ३६० डिग्री के तुल्य मानते हुए कला को प्रायः अंशों (डिग्री) में भी व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिये तरंग के किसी बिन्दु की कला ३० डिग्री होने का अर्थ है कि वह बिन्दु सन्दर्भ बिन्दु से ३०/३६० .

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कुंट की नली

सन् १८६६ में कुंट द्वारा प्रकाशित मूल पेपर में कुंत की नली का विवरण (fig.6 & 7, उपर) तथा इसके द्वारा निर्मित पाउडर का पैटर्न (fig.1, 2, 3, 4) कुंट की नली, ताप, घनत्व, आर्द्रता आदि की नियंत्रित अवस्थाओं में गैसों में ध्वनि के वेग मापने का उपकरण है। इसका आविष्कार जर्मन भौतिकविद् आगस्ट ए. इ. ई. कुंट ने सन्‌ 1866 में किया था। कुंट की नली में गैस एक काँच की नलिका में भरी जाती है जिसके एक सिरे पर पिस्टन होता है जो आगे पीछे खिसकाया जा सकता है और दूसरे सिरे पर ध्वनि स्रोत। यह ध्वनि स्रोत, एक धातु या काँच की छड़ होती है जिसके सिरे पर भी एक पिस्टन लगा होता है। अनुनाद की स्थिति का पता चलाने के लिए नलिका के भीतर हलका चूर्ण, जैसे लाइकोपोडियम बिखेर दिया जाता है। छड़ में अनुदैर्घ्य अप्रगामी कंपन उत्पन्न किए जाते हैं जिनकी आवृत्ति मालूम कर ली जाती है। छड़ के सिरे का पिस्टन नलिका की गैस में उसी आवृत्ति की तरंगें उत्पन्न करता है। दूसरी ओर के पिस्टन को आगे पीछे खिसकाकर अननुाद की अवस्था प्राप्त की जाती है। इस अवस्था में नलिका में अप्रगामी तरंगें बन जाती हैं और उसके निस्पंदों पर चूर्ण की छोटी छोटी ढेरियाँ बन जाती हैं जिनके बीच आधे तरंगदैर्घ्य का अंतराल होता है। इस मापने से गैस में ध्वनि का तरंगदैर्घ्य मालूम हो जाता है। तरंगदैर्घ्य और आवृत्ति के गुणाक की गणना करके ध्वनि का वेग मालूम हो जाता है। श्रेणी:ध्वनि श्रेणी:मापन.

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अतिसूक्ष्म तरंग

विद्युत चुम्बकीय तरंगें जिनकी तरंग दैर्घ्य एक मीटर से छोट्ट तथा एक मिलिमीटर से बङी होती है, या आवृत्ति 300 मैगा हर्ट्ज़ से 300 गीगा हर्ट्ज़ के बीच होती है, उन्हें अतिसूक्ष्म तरंग कहते हैं। .

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अनुनाद

जैसे-जैसे आवृत्ति, अनुनाद आवृत्ति के पास पहुँचती है, आयाम बढता जाता है भौतिकी में बहुत से तंत्रों (सिस्टम्स्) की ऐसी प्रवृत्ति होती है कि वे कुछ आवृत्तियों पर बहुत अधिक आयाम के साथ दोलन करते हैं। इस स्थिति को अनुनाद (रिजोनेन्स) कहते हैं। जिस आवृत्ति पर सबसे अधिक आयाम वाले दोलन की प्रवृत्ति पायी जाती है, उस आवृत्ति को अनुनाद आवृत्ति (रेसोनेन्स फ्रिक्वेन्सी) कहते हैं। सभी प्रकार के कम्पनों या तरंगों के साथ अनुनाद की घटना जुड़ी हुई है। अर्थात यांत्रिक, ध्वनि, विद्युतचुम्बकीय अथवा क्वांटम तरंग फलनों के साथ अनुनाद हो सकती है। कोई छोटे आयाम का भी आवर्ती बल, जो अनुनाद आवृत्ति वाला या उसके लगभग बराबर आवृत्ति वाला हो, उस तंत्र में बहुत अधिक आयाम के दोलन पैदा कर सकता है। अनुनादी तंत्रों के बहुत से उपयोग हैं। इनका उपयोग किसी वांछित आवृत्ति पर कम्पन (दोलन) पैदा करने के लिया किया जा सकता है; अथवा किसी जटिल कम्पन (जिसमें बहुत सी आवृत्तियों का मिश्रण हो; जैसे रेडियो या टीवी सिगनल) में से किसी चुनी हुई आवृत्ति को छाटने (फिल्टर करने) के लिये किया जा सकता है।; अनुनाद होने के लिये तीन चींजें जरूरी हैं- १) एक वस्तु या तन्त्र - जिसकी कोई प्राकृतिक आवृत्ति हो; २) वाहक या कारक बल (ड्राइविंग फोर्स) - जिसकी आवृत्ति, तन्त्र की प्राकृतिक आवृत्ति के समान हो; ३) इस तंत्र में उर्जा नष्ट करने वाला अवयव कम से कम हो (कम डैम्पिंग हो)। (घर्षण, प्रतिरोध (रेजिस्टैन्स), श्यानता (विस्कासिटी) आदि किसी तन्त्र में उर्जा ह्रास के लिये जिम्मेदार होते हैं।) .

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अनुप्रास

जहां एक या अनेक वर्णों की क्रमानुसार आवृत्ति केवल एक बार हो अर्थात एक या अनेक वर्णों का प्रयोग केवल दो बार हो, वहां छेकानुप्रास होता है। छेकानुप्रास का एक उदाहरण द्रष्टव्य है— देखौ दुरौ वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटत राधिका पायन। मैन मनोहर बैन बजै सुसजै तन सोहत पीत पटा है। उपर्युक्त पहली पंक्ति में 'द' और 'क' का तथा दूसरी पंक्ति में 'म' और 'ब' का प्रयोग दो बार हुआ है। वर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास कहते हैं। उदाहरण - चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रहीं थीं जल-थल में। स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी, अवनि और अम्बरतल में॥ अनुप्रास के प्रकार छेकानुप्रासː जब वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है तो वह छेकानुप्रास कहलाता है। उदाहरण - मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥ वृत्यानुप्रासː जब एक ही वर्ण की आवृत्ति अनेक बार होती है तो वृत्यानुप्रास होता है। उदाहरण - काम कोह कलिमल करिगन के। लाटानुप्रासː जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति होती है तो लाटानुप्रास होता है। उदाहरण - वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिये मरे। अन्त्यानुप्रासː जब अन्त में तुक मिलता हो तो अन्त्यानुप्रास होता है। उदाहरण - मांगी नाव न केवटु आना। कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना॥ श्रुत्यानुप्रासː जब एक ही वर्ग के वर्णों की आवृत्ति होती है तो श्रुत्यानुप्रास होता है। उदाहरण - दिनान्त था थे दिननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे। (यहाँ पर त वर्ग के वर्णों अर्थात् त, थ, द, ध, न की आवृति हुई है।) श्रेणी:अलंकार श्रेणी:काव्य श्रेणी:हिन्दी साहित्य श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अनुरणन

विभिन्न परकार के अनुरणन: '''लाल''' - सीधे पहुँची ध्वनि, '''हरी''' - एक बार परावर्तित होने के बाद पहुँची ध्वनि, '''नीली''' - अनेकों बार परावर्तन के बाद पहुँची ध्वनि मनोध्वनिकी तथा ध्वनिकी में अनुरणन (Reverberation) का अर्थ है ध्वनि उत्पन्न होने के बाद उसका बहुत देर तक बने रहना। अनुरणन तब उत्पन्न होता है जब ध्वनि अनेकानेक बार परावर्तित होने के कारण जुड़ती चली जाती है। अनुरणन के बाद ध्वनि विभिन्न वस्तुओं (दीवार, कुर्सी, मेज, लोग आदि) से अवशोषित होकर क्रमशः क्षीण हो जाती है। अनुरणन की परिघटना को उस समय आसानी से अनुभव किया जाता है जब ध्वनि उत्पन्न करने वाला स्रोत (जैसे स्पीकर) बन्द हो जाने के बाद भी ध्वनि बहुत देर तक बनी रहे अर्थात् तुरन्त समाप्त होने के बजाय धीरे-धीरे क्षीण होते हुए भी बहुत देर तक बनी रहती है। अनुरणन की क्रिया आवृत्ति पर भी निर्भर करती है। विशेष कक्षों की डिजाइन करते समय वांक्षित अनुरणन-समय की प्राप्ति के लिये कुछ चीजों पर विशेष ध्यान देना पड़ सकता है। यदि अनुरणन की तुलना प्रतिध्वनि से करनी हो तो ध्यातव्य है कि प्रतिध्वनि को स्पष्ट रूप से सुनने के लिये कम से कम 50 मिलीसेकेण्ड से 100 मिलीसेकेण्ड का समयान्तराल होना आवश्यक है, किन्तु अनुरणन के लिये परावर्तित ध्वनि ५० मिलीसेकेण्ड के अन्दर ही पहुँच जानी चाहिये। अनुरणन केवल कमरों के अन्दर ही नहीं होता बल्कि वनों में भी और अन्य स्थानों पर भी सम्भव है। .

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अपश्रव्य

अपश्रव्य से आशय उन यांत्रिक तरंगों से है जिनकी आवृत्ति २० हर्ट्स से कम होती है। सामान्य मनुष्य लगभग २० हर्ट्स से लेकर २० हजार हर्ट्स की तरंगों को सुन सकता है, जिन्हें श्रव्य तरंगें कहते हैं। .

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अभिवृद्धि चक्र

खगोलशास्त्र में अभिवृद्धि चक्र (accretion disk) किसी बड़ी खगोलीय वस्तु के इर्द-गिर्द कक्षीय परिक्रमा कर रहे मलबे के चक्र को कहते हैं। ऐसा चक्र किसी तारे की परिक्रमा कर रहा हो तो उसे परितारकीय चक्र (circumstellar disk) कहा जाता है। जब मलबे के कण आपस में रगड़ते हैं और गुरुत्वाकर्षण से मलबे पर दबाव पड़ता है तो उसका तापमान बढ़ जाता है और उस से विद्युतचुंबकीय विकिरण उत्पन्न होता है। इस विकिरण की आवृत्ति (फ़्रीक्वेन्सी) केन्द्रीय वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करती है। नवजात तारों और आदितारों के अभिवृद्धि चक्र अवरक्त (इन्फ़्रारेड) विकिरण उत्पन्न करते हैं जबकि न्यूट्रॉन तारों और काले छिद्रों के अभिवृद्धि चक्रों से ऍक्स किरणों का उत्सर्जन होता है। .

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अंत्य संशोधन

ध्वनिकी के सन्दर्भ में, किसी पाइप से उत्पन्न आवृत्ति का शुद्ध मान प्राप्त करने के लिये उस पाइप की वास्तविक लम्बाई में एक छोटी सी लम्बाई जोड़नी पड़ती है, जिसे अन्त्य संशोधन (end correction) कहते हैं। इसका कारण यह है कि नोड (node), पाइप के खुले सिरे के ठीक ऊपर नहीम बनते बल्कि उससे कुछ दूर (ऊपर) बनते हैं। अन्त्य शोधन को \Delta L या e से निरूपित किया जाता है। अन्त्य संशोधन \Delta L का मान निम्नलिखित है-.

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उद्दीप्त उत्सर्जन

उद्दीप्त उत्सर्जन वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक उत्तेजित इलेक्ट्रॉन (अथवा उत्तेजित आण्विक अवस्था) किसी निश्चित आवृति की विद्युतचुम्बकीय तरंग से अन्योन्य क्रिया के पश्चात इस क्षेत्र की समकक्ष ऊर्जा के किसी निम्न स्तर में चला जाता है। इस अवस्था में उत्सर्जित फोटोन की कला, आवृत्ति, ध्रुवण और दिशा आपतित फोटोन के समान होंगे। अतः यह स्वतः उत्सर्जन से भिन्न है जो बिना किसी बाहरी विद्युत क्षेत्र पर निर्भर नहीं होता। तथापि प्रक्रिया आण्विक अवशोषण के रूप में समतुल्य है जिसमें एक अवशोषित फोटोन की ऊर्जा समतुल्य कार्य करती है लेकिन विपरित संक्रमण के साथ: निम्न ऊर्जा स्तर से उच्च ऊर्जा स्तर की ओर। .

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उपयोगिता अनुपात

कुल समय के जितने भाग के लिए कोई वस्तु या मशीन सक्रिय अवस्था में रहती है उसे उपयोगिता अनुपात (duty cycle या duty ratio या duty factor) कहते हैं। उदाहरण के लिए, २४ घण्टे में कोई मोटर ६ घण्टे चालू रहती है और शेष समय बन्द रहती है तो उसका उपयोगिता अनुपात ६/२४ .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

आवर्तकाल, आवृति

निवर्तमानआने वाली
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