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आलोचना (पत्रिका)

सूची आलोचना (पत्रिका)

आलोचना हिन्दी की एक गंभीर साहित्यिक पत्रिका है। इसके प्रधान संपादक है नामवर सिंह और संपादक हैं अरुण कमल। .

6 संबंधों: नलिन विलोचन शर्मा, परमानन्द श्रीवास्तव, बूँद और समुद्र, शिवदान सिंह चौहान, हिन्दी पत्रिकाएँ, विजयदेव नारायण साही

नलिन विलोचन शर्मा

नलिन विलोचन शर्मा (1916–1961) पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक, हिन्दी लेखक एवं आलोचक थे। वे हिन्दी में 'नकेनवाद' आन्दोलन के तीन पुरस्कर्ताओं में से एक थे। .

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परमानन्द श्रीवास्तव

परमानन्द श्रीवास्तव (जन्म: 10 फ़रवरी 1935 - मृत्यु: 5 नवम्बर 2013) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। उनकी गणना हिन्दी के शीर्ष आलोचकों में होती है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रेमचन्द पीठ की स्थापना में उनका विशेष योगदान रहा। कई पुस्तकों के लेखन के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी भाषा की साहित्यिक पत्रिका आलोचना का सम्पादन भी किया था। आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हें व्यास सम्मान और भारत भारती पुरस्कार प्रदान किया गया। लम्बी बीमारी के बाद उनका गोरखपुर में निधन हो गया। .

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बूँद और समुद्र

बूँद और समुद्र (1956) साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध हिन्दी उपन्यासकार अमृतलाल नागर का सर्वोत्कृष्ट उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में लखनऊ को केंद्र में रखकर अपने देश के मध्यवर्गीय नागरिक और उनके गुण-दोष भरे जीवन का कलात्मक चित्रण किया गया है। पात्रों का सजीव चरित्रांकन इस उपन्यास में विशेषतया दृष्टिगोचर होता है। .

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शिवदान सिंह चौहान

शिवदान सिंह चौहान (1918-2000) हिन्दी साहित्य के प्रथम मार्क्सवादी आलोचक के रूप में ख्यात हैं। लेखक होने के साथ-साथ वे सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे। .

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हिन्दी पत्रिकाएँ

हिन्दी पत्रिकाएँ सामाजिक व्‍यवस्‍था के लिए चतुर्थ स्‍तम्‍भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सूथरा वातावरण तैयार करने में सदैव अमोघ अस्‍त्र का कार्य करती है। हिन्दी के विविध आन्‍दोलन और साहित्‍यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्‍य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में हिन्दी पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है।; प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएँ- .

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विजयदेव नारायण साही

विजयदेव नारायण साही हिंदी साहित्य के नयी कविता दौर के प्रसिद्ध कवि, एवं आलोचक हैं। वे तीसरा सप्तक के कवियों में शामिल थे। जायसी पर केन्द्रित उनका व्यवस्थित अध्ययन एवं नयी कविता के अतिरिक्त विभिन्न साहित्यिक तथा समसामयिक मुद्दों पर केन्द्रित उनके आलेख उनकी प्रखर आलोचकीय क्षमता के परिचायक हैं। .

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