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आयुर्विज्ञान

सूची आयुर्विज्ञान

आधुनिक गहन चिकित्सा कक्ष (ICU) आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका संबंध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।आयुर्विज्ञान विज्ञान की वह शाखा है, जिसका संबंध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका निदान करने तथा आयु बढ़ाने से है। भारत आयुर्विज्ञान का जन्मदाता है। अपने प्रारम्भिक समय में आयुर्विज्ञान का अध्ययन जीव विज्ञान की एक शाखा के समान ही किया गया था। बाद में 'शरीर रचना' तथा 'शरीर क्रिया विज्ञान' आदि को इसका आधार बनाया गया। .

205 संबंधों: चतुर्थांश जीवन संकट, ऊष्मायित्र, चितरंजन सिंह राणावत, चिंतामन गोविंद पंडित, चिकित्सा, चिकित्सा जीवविज्ञान, चिकित्साशास्त्र, चिकित्सक, चिकित्सकीय परीक्षण, चिकित्सीय विशेषज्ञता, ऍलोपैथी, ऍक्स किरण, एम बी एम अभियान्त्रिकी महाविद्यालय, एम गोविंद कुमार मेनन, एलिजाबेथ ब्लैकबर्न, एस अइयर पद्मावती, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, तरलोचन सिंह कलेर, तंत्रिका विज्ञान, तुलसिदास, त्रिदेवनाथ बैनर्जी, दन्तचिकित्सा, दाराब जहांगीर जुस्सवालिया, दुखन राम, नटेसन रंगभाष्यम, नरेश कुमार त्रेहन, नरेंद्रनाथ बेरी, नाड़ी, नागपुर विश्वविद्यालय, नेत्र सूजन, नेत्रविज्ञान, नेब्युलाइज़र (कणित्र या तरल पदार्थ को सूक्ष्म कणों में बदलने वाला यंत्र) (Nebulizer), नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची, नोआम चाम्सकी, पनागिपल्ली वेणुगोपाल, परिचर्या, परिश्रवण, पुनर्जागरण, पुरुषोत्तम लाल, पुलियुर कृष्णस्वामी दुरई, पुष्पमित्र भार्गव, प्रताप चंद्र रेड्डी, प्रतिऑक्सीकारक, प्रतूरी तिरुमला राव, प्रदाहक आन्त्र रोग, प्रफुल्ल बी रघुभाई देसाई, प्रफुल्ल कुमार सेन, प्रसूति विज्ञान, प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, प्रकाश नारायण टंडन, ..., प्रेमचंद ढांढा, पृथीपाल सिंह मैनी, पेरुगु शिवा रेड्डी, पी. सी. शर्मा, फरोख ड्राच उद्वाडिया, फुल्लन, बदरीनाथ टंडन, बलदेव सिंह, बानू जहाँगीर कोयाजी, बालचिकित्सा, बालसुब्रह्मण्यम रामामूर्ति, बालकइष्ण गोयल, बिजौय नंदन शाही, बृजेम्द्र कुमार राव, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, भालचंद्र नीलकांत पुरंदरे, भालचंद्र साबाजी दीक्षित, भ्रूणविज्ञान, भेषज-अभिज्ञान, मदन मोहन सिंह, मनु-पशु विज्ञान, मनोविज्ञान, मलीगली रामकॄष्ण गिरिनाथ, महेश प्रसाद मैहरे, मानसिक चिकित्सालय, मानवीकरण, मापन, मार्तंड वर्मा शंकरन वलियानाथन, मुत्तु कृष्ण मणि, मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी, मुरुगप्पा चेन्नवीरप्पा मोदी, मुहम्मद खलीलुल्लाह, मुहम्मद अब्दुल हाय, मृदु संगणन, मूत्ररोग विज्ञान, मोहनलाल सोनी, युसुफ ख्वाजा हमीद, यूयू तु, येल्लप्रगड सुब्बाराव, रफीउद्दीन अहमद, रमन विश्वनाथन, रमेश कुमार, रसायन विज्ञान, राम कुमार कारोली, राष्ट्रीय भारतीय आयुर्विज्ञान संपदा संस्थान, राजनीति विज्ञान, रघुनाथ शरन, रविंद्र नाथ चौधरी, रुदाल्फ हरमन लात्से, रुस्तम जाल वकील, रुस्तमजी बोम्मनजी बिल्लीमोरिया, रुआल आमुन्सन, रेडियोजैविकी, रोग, लक्खुमल हीरानंद हीरानंदानी, लेसर विज्ञान, शरीरक्रिया विज्ञान, शारीरिकी, शांतिलाल सी सेठ, शांतिलाल जमनादास मेहता, शिव शर्मा मलिक, शिव कुमार सरीन, शिवानन्द गोस्वामी, शंट (चिकित्सा), सत्यनारायण शास्त्री, सहचिकित्सा, सामान्य चिकित्सा में प्रयुक्त उपकरण, साहित्य में नोबेल पुरस्कार, सघन देख-भाल चिकित्सा, संतोष कुमार मुखर्जी, संतोष कुमार सेन, संस्कृत साहित्य, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, संगीत चिकित्सा, सुदांशु शोभन मैत्रा, सुजय भूषण रॉय, स्टेंट, स्त्री-रोग विज्ञान, स्मृति (मनोविज्ञान), स्वामी शिवानन्द सरस्वती, स्वास्थ्य, सेंगमेदु श्रीनिवास बद्रीनाथ, सी कोटियथ लक्षमणन, हरबंस सिंह वज़ीर, हरि मोहन, हर्षवर्धन (राजनेता), हकीम सैयद मुहम्मद शर्फ़ुद्दीन कादरी, हैंस श्पेमान, हेच -1बी वीज़ा, हेनरी मरे, हेमोडायलिसिस, जठरांत्ररोगविज्ञान, जयवीर अग्रवाल, जल मिनोचर मेहता, जसबीर सिंह बजाज, जापान का इतिहास, जाल रतनजी पटेल, जगजीत सिंह चोपड़ा, ज्योतिष चंद्र राय, जैकब चाँडी, जोगेशचंद्र बैनर्जी, जीव विज्ञान, वर्षावन, वल्लभ्दास श्रीविट्ठलदास शाह, विट्ठल नागेश शिरोडकर, विलियम बाउमैन, विलियम जेम्स, विष्णुपद मुखोपादध्याय, विकिरण विज्ञान, वुलिमिरि रामालिंगेस्वामी, व्यावसायिक आयुर्विज्ञान, वैद्य देवेंद्र त्रिगुण, वैद्य श्रीराम शर्मा, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, वैज्ञानिक लेखन, वी शांता, खालिद हमीद, खुश्वंत लाल विग, गवाशॉ पेमास्टर, गुरुकुमार बालचंद्र पारुलकर, आत्म प्रकाश, आधुनिक मनोविज्ञान, आयुर्विज्ञान पारजैविकी, आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, आयुर्विज्ञान शिक्षा, आयुर्विज्ञान का इतिहास, आयुर्वेद, आर्थर कॉनन डॉयल, आर्नी श्रीनिवासन रामकृष्णन, इस्लाम, इस्लामी स्वर्ण युग, कमल जयसिंह रणदिवे, कर्नल महाकाली सीताराम राव, कर्नल रामस्वामी दुरइस्वामी अय्यर, कलन, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, क्रम-विकास से परिचय, कृत्रिम अंग, कृष्णस्वामी श्रीनिवास संजीवी, केशवराव कृष्णराव दांते, केवल कृष्ण तलवार, केआईआईटी विश्वविद्यालय, कोलुथर गोपालन, कोल्ली श्रीनाथ रेड्डी, अनिल कोहली, अपस्मार, अरविंदर सिंह सोइन, अर्चना शर्मा, अर्बुदविज्ञान, अल-राज़ी, अल-किंदी, अंतःस्राविकी, अंजू शर्मा, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ सूचकांक विस्तार (155 अधिक) »

चतुर्थांश जीवन संकट

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ऊष्मायित्र

ऊष्मायित्र या डिंबौपक (Incubator) एक प्रकार का उपकरण है, जिसके द्वारा कृत्रिम विधि से अंडों को सेआ जाता है और उनसे बच्चे उत्पन्न कराए जाते हैं। इस उपकरण का उपयोग रोगविज्ञान तथा जीवाणुविज्ञान में अथवा कृत्रिम धात्री (foster-mother) के लिये भी किया जाता है। जीवविज्ञान एवं आयुर्विज्ञान में.

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चितरंजन सिंह राणावत

चितरंजन सिंह राणावत को सन २००१ में भारत सरकार ने चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये संयुक्त राज्य अमेरिका से हैं। श्रेणी:२००१ पद्म भूषण.

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चिंतामन गोविंद पंडित

चिंतामन गोविंद पंडित को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६४ में भारत सरकार द्वारा, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:१९६४ पद्म भूषण.

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चिकित्सा

संकीर्ण अर्थ में, रोगों से आक्रांत होने पर रोगों से मुक्त होने के लिये जो उपचार किया जाता है वह चिकित्सा (Therapy) कहलाता है। पर व्यापक अर्थ में वे सभी उपचार 'चिकित्सा' के अंतर्गत आ जाते हैं जिनसे स्वास्थ्य की रक्षा और रोगों का निवारण होता है। .

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चिकित्सा जीवविज्ञान

चिकित्सा जीवविज्ञान (Biomedicine या Medical biology) आयुर्विज्ञान की वह शाखा है जो चिकित्सकीय कार्य के लिये जीवविज्ञान एवं अन्य प्राकृतिक विज्ञानों का उपयोग करता है। यह शाखा मुख्यतः जीवविज्ञान और शरीरक्रियाविज्ञान से जुड़ी हुई है। श्रेणी:जीव विज्ञान.

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चिकित्साशास्त्र

चिकित्साशास्त्र आयुर्विज्ञान का एक क्षेत्र है। यह क्षेत्र अस्वस्थ्य मनुष्य को स्वस्थ्य बनाने से सम्बन्धित है। इस शास्त्र में अस्वस्थ्य मनुष्य का ब्याधि वा रोग का अध्ययन किया जाता है, उसके बाद उस ब्याधि को डायगनोज और उस का निवारण किया जाता है। यह क्षेत्र मानव और रोग का ज्ञान और उस का प्रयोजन दोनों से सम्बन्धित है। .

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चिकित्सक

चिकित्सक वो व्यक्ति हैं जो दवाओं, रोग तथा आयुर्विज्ञान का ज्ञान रखतें हैं। श्रेणी:व्यवसाय.

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चिकित्सकीय परीक्षण

विल्हेल्म रोएन्टजन द्वारा लिया गया अल्बर्ट फॉन कोल्लिकर के हाथ का एक्स-रे आयुर्विज्ञान में मानव शरीर का स्वास्थ्य और उपचार मुख्यतः देखा जाता है। इसके लिये शरीर के कई परीक्षण किये जाते हैं। इन्हें चिकित्सकीय परीक्षण (Medical test) कहा जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं.

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चिकित्सीय विशेषज्ञता

आयुर्विज्ञान की किसी शाखा (क्षेत्र विशेष) को विशेषज्ञता (speciality) कहते हैं। चिकित्सा महाविद्यालयों से उत्तिर्ण होने के बाद फिजिशियन या शल्यचिकित्सक इस तरह की विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिये कुछ वर्षों का विशिष्त क्षेत्र में चिकित्सा पाठ्यक्रम का अध्ययन करते हैं। इसके उपरान्त वे उस क्षेत्र के विशेषज्ञ कहे जाते हैं।; कुछ चिकित्सीय विशेषज्ञताएँ.

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ऍलोपैथी

आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान को एलोपैथी (Allopathy) या एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति (Allopathic medicine) कहते हैं। यह नाम होम्योपैथी के जन्मदाता सैमुएल हैनीमेन ने दिया था जिनका यह नाम देने का आशय यह था कि प्रचलित चिकित्सा-पद्धति (अर्थात एलोपैथी) रोग के लक्षण के बजाय अन्य चीज की दवा करता है। (Allo .

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ऍक्स किरण

200px ''Hand mit Ringen'': रोएन्टजन की पहली 'मेडिकल' एक्स-किरण का प्रिन्ट - उनकी पत्नी का हाथ का प्रिन्ट जो २२ दिसम्बर सन् १८९५ को लिया गया था जल से शीतलित एक्स-किरण नलिका (सरलीकृत/कालातीत हो चुकी है।) एक्स-किरण या एक्स रे (X-Ray) एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण है जिसकी तरंगदैर्घ्य 10 से 0.01 नैनोमीटर होती है। यह चिकित्सा में निदान (diagnostics) के लिये सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। यह एक प्रकार का आयनकारी विकिरण है, इसलिए खतरनाक भी है। कई भाषाओं में इसे रॉण्टजन विकिरण भी कहते हैं, जो कि इसके अन्वेषक विल्हेल्म कॉनरॅड रॉण्टजन के नाम पर आधारित है। रॉण्टजन ईक्वेलेंट मानव (Röntgen equivalent man / REM) इसकी शास्त्रीय मापक इकाई है। .

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एम बी एम अभियान्त्रिकी महाविद्यालय

एम॰बी॰एम॰ अभियांत्रिकी महाविद्यालय (MBM Engineering College; मगनीराम बांगड़ मैमोरियल इंजीनियरिंग कॉलेज; एमबीएम), जोधपुर भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित अभियान्त्रिकी महाविद्यालयों में से एक है। इस कॉलेज की स्थापना राजस्थान सरकार द्वारा 15 अगस्त 1951 को की गई थी। यह महाविद्यालय अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अपने उच्च शैक्षिक स्तर के कारण न केवल राजस्थान राज्य में ही, बल्कि पूरे देश में अग्रणी तकनीकी संस्थान के रूप में प्रतिष्ठित है। इस महाविद्यालय में अनेक तकनीकी विषयों में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्रदान की जाती है। शोधार्थी यहाँ स्नातकोत्तर शिक्षा के बाद पी.एचडी. डिग्री तथा स्नातकोत्तर डिप्लोमा के लिए भी अध्ययन करते हैं। सम्प्रति यह महाविद्यालय जुलाई 1962 से जोधपुर, राजस्थान के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के अंतर्गत अभियांत्रिकी तथा स्थापत्यकला संकाय के रूप में मान्यता प्राप्त है। .

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एम गोविंद कुमार मेनन

एम गोविंद कुमार मेनन को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:१९६८ पद्म भूषण श्रेणी:1928 में जन्मे लोग श्रेणी:२०१६ में निधन श्रेणी:पद्मश्री प्राप्तकर्ता श्रेणी:पद्म भूषण सम्मान प्राप्तकर्ता.

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एलिजाबेथ ब्लैकबर्न

ऑस्ट्रेलियाई मूल की एलिजाबेथ ब्लैकबर्न नोबेल पुरस्कार प्राप्त जीव वैज्ञानिक हैं जिनको कोशिका विभाजन के दौरान गुणसूत्रों की प्रतिकृति तथा इस दौरान उसमें विकृति से होने वाले स्वत: बचाव की प्रक्रिया पर शोध के लिए यह प्राप्त हुआ। .

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एस अइयर पद्मावती

एस अइयर पद्मावती को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:१९६७ पद्म भूषण.

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डॉ॰ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान

डॉ॰ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान (DrRMLIMS) उत्तर प्रदेश मे एक आयुर्विज्ञान संस्थान/ मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल है। यह लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसकी स्थापना 2006 में हुई थी। .

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तरलोचन सिंह कलेर

तरलोचन सिंह कलेर को भारत सरकार द्वारा सन २००५ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:२००५ पद्म भूषण.

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तंत्रिका विज्ञान

तंत्रिका विज्ञान (Neuroscience) तन्त्रिका तन्त्र के वैज्ञानिक अध्ययन को कहते हैं। पारम्परिक रूप से यह जीवविज्ञान की शाखा माना जाता था लेकिन अब रसायन शास्त्र, संज्ञान शास्त्र, कम्प्यूटर विज्ञान, अभियान्त्रिकी, भाषाविज्ञान, गणित, आयुर्विज्ञान, आनुवंशिकी और अन्य सम्बन्धित विषयों (जैसे कि दर्शनशास्त्र, भौतिकी और मनोविज्ञान) के अंतर्विषयक सहयोग द्वारा परिभाषित है। तंत्रिका जीवविज्ञान (neurobiology) और तंत्रिका विज्ञान (neuroscience) को अक्सर एक ही अर्थ वाला माना जाता है हालाँकि यह सम्भव है कि भविष्य में जीवों से बाहर भी तंत्रिका व्यवस्था बनाई जा सके और उस सन्दर्भ में इन दोनों नामों में अंतर होगा। .

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तुलसिदास

तुलसिदास को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पंजाब राज्य से हैं। श्रेणी:१९६७ पद्म भूषण.

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त्रिदेवनाथ बैनर्जी

त्रिदेवनाथ बैनर्जी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल से हैं। श्रेणी:१९६१ पद्म भूषण.

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दन्तचिकित्सा

दंतचिकित्सक दंतचिकित्सा (Dentistry) स्वास्थ्यसेवा की वह शाखा है, जिसका संबंध मुख के भीतरी भाग और दाँत आदि की आकृति, कार्यकरण, रक्षा तथा सुधार और इन अंगों तथा शरीर के अंत:संबंध से है। इसके अंतर्गत शरीर के रोगों के मुख संबंधी लक्षण, मुख के भीतर के रोग, घाव, विकृतियाँ, त्रुटियाँ, रोग अथवा दुर्घटनाओं से क्षतिग्रस्त दाँतों की मरम्मत और टूटे दाँतों के बदले कृत्रिम दाँत लगाना, ये सभी बातें आती हैं। इस प्रकार दंतचिकित्सा का क्षेत्र लगभग उतना ही बड़ा है, जितना नेत्र या त्वचाचिकित्सा का। इसका सामाजिक महत्व तथा सेवा करने का अवसर भी अधिक है। दंतचिकित्सक का व्यवसाय स्वतंत्र संगठित है और यह स्वास्थ्यसेवाओं का महत्वपूर्ण विभाग है। दंतचिकित्सा की कला और विज्ञान के लिये मुख की संरचना, दाँतों की उत्पत्ति विकास तथा कार्यकरण और इनके भीतर के अन्य अंगों और ऊतकों तथा उनके औषधीय, शल्य तथा यांत्रिक उपचार का समुचित ज्ञान आवश्यक है। .

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दाराब जहांगीर जुस्सवालिया

दाराब जहांगीर जुस्सवालिया को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७५ मे पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:१९७५ पद्म भूषण.

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दुखन राम

दुखन राम को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये बिहार राज्य से हैं। दुखन राम को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये बिहार राज्य से हैं। श्रेणी:१९६७ पद्म भूषण श्रेणी:१९६२ पद्म भूषण.

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नटेसन रंगभाष्यम

नटेसन रंगभाष्यम को सन २००२ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु से हैं। श्रेणी:पद्म भूषण.

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नरेश कुमार त्रेहन

नरेश कुमार त्रेहन को सन २००१ में भारत सरकार ने चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली से हैं। श्रेणी:२००१ पद्म भूषण.

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नरेंद्रनाथ बेरी

नरेंद्रनाथ बेरी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६३ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पंजाब राज्य से हैं। श्रेणी:१९६३ पद्म भूषण.

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नाड़ी

अंगूठाकार चिकित्सा विज्ञान में हृदय की धड़कन के कारण धमनियों में होने वाली हलचल को नाड़ी या नब्ज़ (Pulse) कहते हैं। नाड़ी की धड़कन को शरीर के कई स्थानों पर अनुभव किया जा सकता है। किसी धमनी को उसके पास की हड्डी पर दबाकर नाड़ी की धड़कन को महसूस किया जा सकता है। गर्दन पर, कलाइयों पर, घुटने के पीछे, कोहनी के भीतरी भाग पर तथा ऐसे ही कई स्थानों पर नाड़ी-दर्शन किया जा सकता है। .

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नागपुर विश्वविद्यालय

राष्ट्रसन्त तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय (RTMNU), महाराष्ट्र के नागपुर में स्थित एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है जिसका नाम पहले 'नागपुर विश्वविद्यालय' था। इसकी स्थापना ४ अगस्त, १९२३ को हुई थी। यह भारत के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। इसका नाम तुकडोजी महाराज के नाम पर रखा गया है। इस विश्वविद्यालय का मुख्य लक्ष्य संस्कृत, मराठी, हिन्दी, उर्दू आदि भाषाओं तथा आयुर्विज्ञान, विज्ञान, मानविकी, वाणिज्य एवं इंजीनियरी आदि की शिक्षा देना है। सन १९४७ से ही यह विश्वविद्यालय मेडिकल की डिग्री प्रदान कर रहा है। १ मई १९८३ को इस विश्वविद्यालय को विभाजित करके इसके कुछ संसाधनों द्वारा अमरावती विश्वविद्यालय बनाया गया था। श्रेणी:नागपुर श्रेणी:महाराष्ट्र के विश्वविद्यालय.

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नेत्र सूजन

ओकुलर ऑन्कोलॉजी चिकित्‍सा की वह शाखा है जो आंख संबंधित ट्यूमर और उसके संयुक्तांश से जुडी है। आँख आयुर्विज्ञान नेत्र आँख कैंसर आंखों के सभी भागों को प्रभावित कर सकता है। .

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नेत्रविज्ञान

नेत्र परीक्षण नेत्रविज्ञान (Ophthalmology), चिकित्साविज्ञान का वह अंग है जो आँख की रचना, कार्यप्रणाली, उसकी बीमारियों तथा चिकित्सा से संबधित है। नेत्रचिकित्सा, चिकित्सा व्यवसाय का एक प्रधान महत्वपूर्ण अंग समझा जाना चाहिए। नेत्र जीवन के लिए अनिवार्य तो नहीं, किंतु इसके बिना मानव शरीर के अस्तित्व का मूल्य कुछ नहीं रहता। ऐसे अंग की जीवन पर्यंत रक्षा का प्रबंध रखना रोगी, उसके परिचायक एवं चिकित्सक का पुनीत कर्तव्य होना चाहिए। यह बहुत ही पुराना विज्ञान है, जिसका वर्णन अथर्ववेद में भी मिलता है। सुश्रुतसंहिता, संस्कृत भाषा की अनुपम कृति है, जिसमें आँख की बीमारियों तथा उनी चिकित्सा का सबसे प्रारंभिक विवरण मिलता है। सुश्रुत, आयुर्वेद शास्त्र के प्रथम शल्यचिकित्सक थे, जिन्होंने विवरणपूर्वक और पूर्णत: आँख की उत्पत्ति, रचना, कार्यप्रणाली, बीमारियों तथा उनकी चिकित्सा के विषय में लिखा है, यह नेत्रविज्ञान के लेख "सुश्रुतसंहिता" के "उत्तरातांत्रा" के 1-19 तक अध्याय में सम्मिलित है। इसमें पलकें कजंक्टाइवा, स्वलेरा, कॉर्निया लेंस और कालापानी इत्यादि का विवरण मिलता है। मोतियाबिंद का सबसे पहले आपरेशन करने का श्रेय शल्य चिकित्सक सुश्रुत को प्राप्त है। .

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नेब्युलाइज़र (कणित्र या तरल पदार्थ को सूक्ष्म कणों में बदलने वाला यंत्र) (Nebulizer)

चिकित्सा उद्योग में, नेब्युलाइज़र (ब्रिटिश अंग्रेजी में इसकी वर्तनी nebuliser है) एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग दवा को फेफड़ों में एक धूम के रूप में पहुंचाने के लिए किया जाता है। एक कम्प्रेसर से जुड़ा हुआ एक जेट नेब्युलाइज़र. नेब्युलाइज़र का उपयोग आमतौर पर सिस्टिक फाइब्रोसिस, अस्थमा, सीओपीडी और अन्य सांस के रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। ज्वलनशील धूम्रपान उपकरण (Combustible smoking devices) (जैसे अस्थमा सिगरेट (asthma cigarettes) या केनाबीस जोइंट्स (cannabis joints)), एक वेपोराइज़र, शुष्क पाउडर इन्हेलर, या एक दबाव युक्त मापी गयी खुराक के इन्हेलर का उपयोग भी दवा को सांस के ज़रिये अन्दर लेने के लिए किया जा सकता है। आजकल ज्वलनशील धूम्रपान उपकरणों और वेपोराइज़र का उपयोग दवा को सांस के ज़रिये अन्दर लेने (इन्हेल करने) के लिए नहीं किया जाता है, क्योंकि आधुनिक इन्हेलर और नेब्युलाइज़र अधिक प्रभावी हैं। सभी नेब्युलाइज़र्स के लिए सामान्य तकनीकी सिद्धांत एक ही है, जिसके अनुसार ऑक्सीजन, संपीडित वायु या अल्ट्रासॉनिक शक्ति का उपयोग दवा के विलयन निलंबन को छोटे एरोसोल बूंदों में मिलाने के लिए किया जाता है ताकि उपकरण के मुख से सीधे इस विलयन को इन्हेल किया जा सके.

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नोबेल पुरस्कार विजेताओं की सूची

क्रोना (लगभग यूएस $ 1.2 मिलयन, INR 7.6 करोड़), डिप्लोमा और एक स्वर्ण पदक प्रदान किया जाता है। नोबेल पुरस्कार हर वर्ष रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस, द स्वीडिश एकेडमी, द कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट, एवं द नॉर्वेजियन नोबेल कमिटी द्वारा उन लोगों और संस्थाओं को प्रदान की जाती है जिन्होंने रसायनशास्त्र, भौतिकीशास्त्र, साहित्य, शांति, एवं औषधीविज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया हो। नोबेल पुरस्कारों की स्थापना अल्फ्रेड नोबेल के वसीयतनामे के अनुसार १८९५ में हुई। वसीयतनामे के मुताबकि नोबेल पुरस्कारों का प्रशासकीय कार्य नोबेल फाउंडेशन देखेगा। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत १९६८ में स्वीडन की केंद्रीय बैंक स्वेरिंज रिक्सबैंक द्वारा हुई। यह पुरस्कार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य करने वाले लोगों और संस्थाओं को हर वर्ष दिया जाता है। प्रत्येक पुरस्कार एक अलग समिति द्वारा प्रदान किया जाता है। द रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस भौतिकी, अर्थशास्त्र और रसायनशास्त्र में, कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट औषधी के क्षेत्र में, नॉर्वेजियन नोबेल समिति शांति के क्षेत्र में पुरस्कार प्रदान करती है। प्रत्येक पुरस्कार विजेता को एक मेडल, एक डिप्लोमा, एक मोनेटरी एवार्ड प्रदान की जाती है। .

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नोआम चाम्सकी

एवरम नोम चोम्स्की (हीब्रू: אברם נועם חומסקי) (जन्म 7 दिसंबर, 1928) एक प्रमुख भाषावैज्ञानिक, दार्शनिक, by Zoltán Gendler Szabó, in Dictionary of Modern American Philosophers, 1860–1960, ed.

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पनागिपल्ली वेणुगोपाल

पनागिपल्ली वेणुगोपाल को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९९८ में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। १९९८ पद्म भूषण श्रेणी:१९९८ पद्म भूषण stub.

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परिचर्या

रोगियों की देखभाल कर रही एक उपचारिका (नर्स) रोगी की सेवा-शुश्रूषा को परिचर्या या नर्सिंग (Nursing) कहते हैं। अंग्रेजी के नर्स शब्द का अर्थ है 'पोषण'। नर्स वह स्त्री होती है जो शिशु का पोषण करती है; माँ भी एक प्रकार से नर्स है, वह पुरुष भी नर्स है जो शिशुओं की अथवा रोगी की देखभाल करता है। परिचर्या शब्द से क्रियाशीलता झलकती है। यह उपकार का काम है और ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जो स्वयं उसे अपने लिए नहीं कर सकता। यों तो परिचर्या एक व्यवसाय है, परंतु इसमें ऐसी चरित्रवान् स्त्रियों की आवश्यकता रहती है जो ईश्वरीय नियमों में दृढ़ निष्ठा रखती हों और जो सत्य सिद्धांतों पर अटल रहें तथा परिणाम की चिंता किए बिना, कैसे भी परिस्थिति क्यों न हो, वही करें जो उचित हो। .

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परिश्रवण

रोगी के पेट का परिश्रवण करता हुआ एक चिकित्सक शरीर के अंदर निरंतर होनेवाली ध्वनियों के सुनने की क्रिया को परिश्रवण (Auscultation) कहते हैं। इस शब्द का प्रयोग चिकित्सा विज्ञान में किया जाता है। रोगनिदान में इस क्रिया से बहुत सहायता मिलती है। शरीर के अन्दर की ध्वनियों को सुनने के लिए प्रायः आला (stethoscope) का उपयोग किया जाता है। इस कला के बढ़ते हुए प्रयोग का श्रेय लेनेक (Laenec) को मिलना चाहिए, जिन्होंने सन् १८१९ में परिश्रवण यंत्र का आविष्कार किया। इस यंत्र के आविष्कार के पहले ये ध्वनियाँ कान से सुनी जाती थीं। आधुनिक परिश्रवण यंत्र ध्वनि के भौतिक गुणों पर आधृत है। इसमें कानों में लगनेवाला भाग धातु का होता है और लगभग १० इंच लंबी रबर की नलियों द्वारा वक्षगोलक (chestpiece) से जुड़ा रहता है। चिकित्सक इस यंत्र द्वारा हृदय, श्वास और अँतड़ियों की ध्वनि सुनते हैं। सामान्यत: हृदय जब सिकुड़ता है तो लब्ब ध्वनि होती है और फिर जब वह फैलता है तो डब ध्वनि होती है, जिन्हें क्रमश: प्रथम और द्वितीय हृदयध्वनि कहते हैं। बीमारी में अन्य प्रकार की ध्वनियाँ और 'मर मर' ध्वनि सुनाई देती है। हवा फेफड़े में जाते और निकलते समय ध्वनि करती है, जिसे श्वासध्वनि कहते हैं। फेफड़े की बीमारियों में इस ध्वनि में परिवर्तन हो जाता है और दूसरे ढंग की ध्वनि भी सुनाई देने लगती है, जिसे रोंकाई या क्रेपिटेशन (crepitation) कहते हैं। अँतड़ियों की ध्वनि की 'बारबोरिज्म' कहते हैं। यदि यह न सुनाई दे तो अँतड़ियों का अवरोध या पेरिटोनियम की सुजन का निदान समझना चाहिए। परिश्रवण यंत्र की सहायता से भ्रूणहृदय की ध्वनि तथा धमनियों की 'मरमर' ध्वनि भी सुनी जा सकती है। इसकी सहायता से ही 'रक्तचाप' की माप की जाती है। .

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पुनर्जागरण

फ्लोरेंस पुनर्जागरण का केन्द्र था पुनर्जागरण या रिनैंसा यूरोप में मध्यकाल में आये एक संस्कृतिक आन्दोलन को कहते हैं। यह आन्दोलन इटली से आरम्भ होकर पूरे यूरोप फैल गया। इस आन्दोलन का समय चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है।.

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पुरुषोत्तम लाल

पुरुषोत्तम लाल को सन २००३ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये उत्तर प्रदेश राज्य से हैं। श्रेणी:२००३ पद्म भूषण.

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पुलियुर कृष्णस्वामी दुरई

पुलियुर कृष्णस्वामी दुरई को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६६ में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। श्रेणी:१९६६ पद्म भूषण.

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पुष्पमित्र भार्गव

पुष्पमित्र भार्गव को भारत सरकार ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९८६ में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये आंध्र प्रदेश से हैं। श्रेणी:पद्म भूषण.

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प्रताप चंद्र रेड्डी

प्रताप चंद्र रेड्डी को भारत सरकार द्वारा सन १९९१ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये तमिलनाडु से हैं। श्रेणी:१९९१ पद्म भूषण.

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प्रतिऑक्सीकारक

एक एंटीऑक्सीडेंट- मेटाबोलाइट ग्लूटाथायोन का प्रतिरूप। पीले गोले रेडॉक्स-सक्रिय गंधक अणु हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट क्रिया उपलब्ध कराते हैं और लाल, नीले व गहरे सलेटी गोले क्रमशः ऑक्सीजन, नाईट्रोजन, हाईड्रोजन एवं कार्बन परमाणु हैं। प्रतिऑक्सीकारक (Antioxidants) या प्रतिउपचायक वे यौगिक हैं जिनको अल्प मात्रा में दूसरे पदार्थो में मिला देने से वायुमडल के ऑक्सीजन के साथ उनकी अभिक्रिया का निरोध हो जाता है। इन यौगिकों को ऑक्सीकरण निरोधक (OXidation inhibitor) तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं। अर्थात प्रति-आक्सीकारक वे अणु हैं, जो अन्य अणुओं को ऑक्सीकरण से बचाते हैं या अन्य अणुओं की आक्सीकरण प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। ऑक्सीकरण एक प्रकार की रासायनिक क्रिया है जिसके द्वारा किसी पदार्थ से इलेक्ट्रॉन या हाइड्रोजन ऑक्सीकारक एजेंट को स्थानांतरित हो जाते हैं। प्रतिआक्सीकारकों का उपयोग चिकित्साविज्ञान तथा उद्योगों में होता है। पेट्रोल में प्रतिआक्सीकारक मिलाए जाते हैं। ये प्रतिआक्सीकारक चिपचिपाहट पैदा करने वाले पदार्थ नहीं बनने देते जो अन्तर्दहन इंजन के लिए हानिकारक हैं। प्रायः प्रतिस्थापित फिनोल (Substituted phenols) एवं फेनिलेनेडिआमाइन के व्युत्पन्न (derivatives of phenylenediamine) इस काम के लिए प्रयुक्त होते हैं। .

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प्रतूरी तिरुमला राव

प्रतूरी तिरुमला राव को सन १९८८ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये आंध्र प्रदेश राज्य से हैं। श्रेणी:१९८८ पद्म भूषण.

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प्रदाहक आन्त्र रोग

चिकित्सा शास्त्र में, प्रदाहक आन्त्र रोग (आईबीडी (IBD)) बृहदान्त्र और छोटी आंत की प्रदाहक दशाओं का एक समूह है। आईबीडी (IBD) के प्रमुख प्रकार हैं क्रोहन रोग और व्रणमय बृहदांत्रशोथ.

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प्रफुल्ल बी रघुभाई देसाई

प्रफिल्ल बी रघुभाई देसाई को भारत सरकार द्वारा १९८१ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:पद्म भूषण.

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प्रफुल्ल कुमार सेन

प्रफुल्ल कुमार सेन को चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६९ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:पद्म भूषण.

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प्रसूति विज्ञान

प्रसूति विज्ञान (Obstetrics) एक शल्यक विशेषज्ञता है जिसके अंतर्गत एक महिला और उसकी संतान की गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोपरांत काल (प्युरपेरियम) (जन्म के ठीक बाद की अवधि), के दौरान की जाने वाली देखभाल आती है। एक दाई द्वारा कराया गया प्रसव भी इसका एक गैर चिकित्सीय रूप है। आजकल लगभग सभी प्रसूति विशेषज्ञ, स्त्री-रोग विशेषज्ञ भी होते है। .

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प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी

प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये पुरातत्व और प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पडता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधतासम्पन्न है। इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, व्याकरण आदि के अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, सैन्य विज्ञान आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्राचीन भारत के कुछ योगदान निम्नलिखित हैं-.

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प्रकाश नारायण टंडन

प्रकाश नारायण टंडन को सन १९८९ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र मंं पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। श्रेणी:१९८९ पद्म भूषण.

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प्रेमचंद ढांढा

प्रेमचंद ढांढा को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पंजाब राज्य से हैं। श्रेणी:१९६२ पद्म भूषण.

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पृथीपाल सिंह मैनी

प्तोतपाल सिंह मैनी को सन २००७ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। .

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पेरुगु शिवा रेड्डी

पेरुगु शिवा रेड्डी को सन १९७७ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये आंध्र प्रदेश से हैं। .

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पी. सी. शर्मा

डॉ० प्रकाश चन्द शर्मा (जन्म: १ जुलाई, १९६२) एक प्रशासनिक अधिकारी, लेखक एवं चिकित्सक हैं। वें स्वास्थ्य मंत्रालय के आयुष विभाग के डिप्टी डायरेक्टर हैं। आयुर्विज्ञान पर इनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। सन २००८ में धन्वंतरि सम्मान और सन २०१६ में सिंहस्थ सेवा सम्मान द्वारा सम्मानित हैं। .

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फरोख ड्राच उद्वाडिया

फरोख ड्राच उद्वाडिया को १९८६ में भारत सरकार ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:१९८६ पद्म भूषण.

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फुल्लन

अंगुली में सूजन (अन्तर देखिये) शरीर के किसी भाग का अस्थायी रूप से (transient) बढ़ जाना आयुर्विज्ञान में फुल्लन (स्वेलिंग) कहा जाता है। हिन्दी में इसे उत्सेध, फूलना और सूजन भी कहते हैं। ट्यूमर भी इसमें सम्मिलित है। सूजन, प्रदाह के पाँच लक्षणों में से एक है। (प्रदाह के अन्य लक्षण हैं - दर्द, गर्मी, लालिमा, कार्य का ह्रास) यह पूरे शरीर में हो सकती है, या एक विशिष्ट भाग या अंग प्रभावित हो सकता है| एक शरीर का अंग चोट, संक्रमण, या रोग के जवाब में और साथ ही एक अंतर्निहित गांठ की वजह से, प्रफुल्लित हो सकता है| .

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बदरीनाथ टंडन

बदरीनाथ टंडन को भारत सरकार ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९८६ में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली से हैं। श्रेणी:पद्म भूषण.

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बलदेव सिंह

बलदेव सिंह को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से थे। श्रेणी:१९७२ पद्म भूषण.

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बानू जहाँगीर कोयाजी

बानू जहाँगीर कोयाजी (22 अगस्त 1918 – 15 जुलाई 2004) भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिक थीं। इन्होंने परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। वह किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल, पुणे की निर्देशिका थीं। उन्होंने समुदाय के स्वास्थकर्मियों के माध्यम से महाराष्ट्र के देही इलाक़ों के लिये कई कार्यक्रम प्रारंभ किये थे। वह अपनी कार्यकुशलता की वजह से केन्द्र सरकार की स्वास्थ सलाकार बन गईं थीं और विश्वस्तर पर अपने कार्यक्षेत्र में प्रसिद्ध थीं। कोयाजी को कई पुरस्कार प्राप्त हुए थे जिनमें १९८९ में पद्मभूषण और सार्वजनिक सेवा के लिये १९९३ में रेमन मैगसेसे पुरस्कार मुख्य रूप से शामिल हैं। .

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बालचिकित्सा

बाल बहुनिद्रांकन (Pediatric polysomnography) बालचिकित्सा (Pediatrics) या बालरोग विज्ञान चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है जो शिशुओं, बालों एवं किशोरों के रोगों एवं उनकी चिकत्सा से सम्बन्धित है। आयु की दृष्टि से इस श्रेणी में नवजात शिशु से लेकर १२ से २१ वर्ष के किशोर तक आ जाते हैँ। इस श्रेणी के उम्र की उपरी सीमा एक देश से दूसरे देश में अलग-अलग है। .

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बालसुब्रह्मण्यम रामामूर्ति

बालसुब्रह्मण्यम रामामूर्ति को सन १९७७ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु से हैं। उसका पत्नी इंदिरा राममूर्ती प्रसिद्ध आब्सेट्रीसियन और गैनकालजिस्ट थे। .

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बालकइष्ण गोयल

बालकइष्ण गोयल को भारत सरकार द्वारा सन १९९० में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:१९९० पद्म भूषण श्रेणी:महाराष्ट्र के लोग.

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बिजौय नंदन शाही

बिजौय नंदन शाही को भारत सरकार द्वारा सन २००४ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। .

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बृजेम्द्र कुमार राव

बृजेम्द्र कुमार राव को सन २००९ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। .

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर), नई दिल्ली, भारत में जैव-चिकित्सा अनुसंधान हेतु निर्माण, समन्वय और प्रोत्साहन के लिए शीर्ष संस्था है। यह विश्व के सबसे पुराने आयुर्विज्ञान संस्थानों में से एक हैं। इस परिषद को भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। .

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भालचंद्र नीलकांत पुरंदरे

भालचंद्र नीलकांत पुरंदरे को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:१९७२ पद्म भूषण.

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भालचंद्र साबाजी दीक्षित

भालचंद्र साबाजी दीक्षित को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६५ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:१९६५ पद्म भूषण.

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भ्रूणविज्ञान

६ सप्ताह का मानव भ्रूण भ्रूणविज्ञान (Embroyology) के अंतर्गत अंडाणु के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक जीव के उद्भव एवं विकास का वर्णन होता है। अपने पूर्वजों के समान किसी व्यक्ति के निर्माण में कोशिकाओं और ऊतकों की पारस्परिक क्रिया का अध्ययन एक अत्यंत रुचि का विषय है। स्त्री के अंडाणु का पुरुष के शुक्राणु के द्वारा निषेचन होने के पश्चात जो क्रमबद्ध परिवर्तन भ्रूण से पूर्ण शिशु होने तक होते हैं, वे सब इसके अंतर्गत आते हैं, तथापि भ्रूणविज्ञान के अंतर्गत प्रसव के पूर्व के परिवर्तन एवं वृद्धि का ही अध्ययन होता है।:ऍस्तुदिअ एल देसर्रोल्लो प्रेनतल्। ऍच्ह पोर ंअर्तिन् .

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भेषज-अभिज्ञान

भेषज-अभिज्ञान या भेषजज्ञान (Pharmacognosy) में पादप एवं अन्य प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त औषधियों का अध्ययन किया जाता है। .

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मदन मोहन सिंह

मदन मोहन सिंह को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:१९७१ पद्म भूषण.

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मनु-पशु विज्ञान

मनु-पशु विज्ञान (Anthrozoology) लोक जीवविज्ञान की एक शाखा है जिसमें मानवों और पशुओं के बीच के सम्बन्ध का अध्ययन करा जाता है। यह एक अंतर्विषयक विद्या है जिसमें मानवशास्त्र, प्राणी व्यवहार, आयुर्विज्ञान, मनोविज्ञान, पशु चिकित्सा विज्ञान और प्राणी विज्ञान के मिश्रित तत्व शामिल हैं। मनु-पशु विज्ञान में विशेष रूप से मानवों और पशुओं में पारस्परिक क्रियाओं के प्रभावों का मापन करा जाता है। .

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मनोविज्ञान

मनोविज्ञान (Psychology) वह शैक्षिक व अनुप्रयोगात्मक विद्या है जो प्राणी (मनुष्य, पशु आदि) के मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes), अनुभवों तथा व्यक्त व अव्यक्त दाेनाें प्रकार के व्यवहाराें का एक क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक अध्ययन करती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो क्रमबद्ध रूप से (systematically) प्रेक्षणीय व्यवहार (observable behaviour) का अध्ययन करता है तथा प्राणी के भीतर के मानसिक एवं दैहिक प्रक्रियाओं जैसे - चिन्तन, भाव आदि तथा वातावरण की घटनाओं के साथ उनका संबंध जोड़कर अध्ययन करता है। इस परिप्रेक्ष्य में मनोविज्ञान को व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है। 'व्यवहार' में मानव व्यवहार तथा पशु व्यवहार दोनों ही सम्मिलित होते हैं। मानसिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत संवेदन (Sensation), अवधान (attention), प्रत्यक्षण (Perception), सीखना (अधिगम), स्मृति, चिन्तन आदि आते हैं। मनोविज्ञान अनुभव का विज्ञान है, इसका उद्देश्य चेतनावस्था की प्रक्रिया के तत्त्वों का विश्लेषण, उनके परस्पर संबंधों का स्वरूप तथा उन्हें निर्धारित करनेवाले नियमों का पता लगाना है। .

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मलीगली रामकॄष्ण गिरिनाथ

मलीगली रामकॄष्ण गिरिनाथ को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९९८ में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु से हैं। १९९८ पद्म भूषण श्रेणी:१९९८ पद्म भूषण stub.

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महेश प्रसाद मैहरे

महेश प्रसाद मैहरे को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये उत्तर प्रदेश राज्य से हैं। श्रेणी:१९७० पद्म भूषण.

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मानसिक चिकित्सालय

मानसिक चिकित्सालय (Psychiatric hospitals या mental hospitals) उन चिकित्सालयों को कहते हैं जहाँ गम्भीर मनोविकारों (जैसे द्विध्रुवी विकार, मनोविदालिता आदि) की चिकित्सा होती है। श्रेणी:चिकित्सा.

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मानवीकरण

मानवीकरण मनुष्य की गंभीर आवश्यकता है जिसमें व्यक्ति गैर-मानव वस्तु, घटना या संकल्पना को मानवीय गुण, विशेषता या आशय से रंग देता है। मानवीकरण या मानवत्वरोपण दैनिक जीवन के क्रिया-कलापों का महत्वपूर्ण भाग है। यह एक ऐसी मानसिक तथा सामाजिक प्रक्रिया है जो मनोविज्ञान, मानवशास्त्र, साहित्य, इतिहास और आध्यात्म के खोजकर्ताओं को मन की गहराईयों में ले जाती है। मानवीकरण से भाषा, कला और संस्कृति समृद्ध होती है। व्यक्ति के जीवन काल या समाज के सांस्कृतिक विकास के साथ मानवीकृत तत्वों या कारकों में नए कथानक जुड़ते जाते हैं। कुछ अवस्थाओं में यह मानवीकृत तत्व दो तरह के मानसिक परिवर्तन लाने में सक्षम पाए गए। एक श्रेणी तंत्रिका तंत्र के विघटन द्वारा अर्धचेतन अवस्था में देवता, भूत-प्रेत, या अन्य लोकातीत अनुभव, तथा दूसरी श्रेणी उपचार और स्वास्थ्य लाभ से संबंधित है, जैसे, पराप्राकृतिक संवाद। धार्मिक अनुष्ठान तथा नैतिकता द्वारा मानवीकरण गैर-बंधुओं में आपसी मेल-जोल बनाये रखता है। वैज्ञानिक खोज, विशेषकर जंतुओं के व्यवहार, में मानवीकरण वर्जित है, पर इसने दो नए क्षेत्रों को जन्म दिया, “थ्योरी ऑफ माइंड” और “दर्पण तंत्रिका तंत्र”। .

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मापन

मापन के चार उपकरण किसी भौतिक राशि का परिमाण संख्याओं में व्यक्त करने को मापन कहा जाता है। मापन मूलतः तुलना करने की एक प्रक्रिया है। इसमें किसी भौतिक राशि की मात्रा की तुलना एक पूर्वनिर्धारित मात्रा से की जाती है। इस पूर्वनिर्धारित मात्रा को उस राशि-विशेष के लिये मात्रक कहा जाता है। उदाहरण के लिये जब हम कहते हैं कि किसी पेड़ की उँचाई १० मीटर है तो हम उस पेड़ की उचाई की तुलना एक मीटर से कर रहे होते हैं। यहाँ मीटर एक मानक मात्रक है जो भौतिक राशि लम्बाई या दूरी के लिये प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार समय का मात्रक सेकण्ड, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम आदि हैं। .

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मार्तंड वर्मा शंकरन वलियानाथन

मार्तंड वर्मा शंकरन वलियानाथन को भारत सरकार द्वारा सन १९९० में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये केरल से हैं। श्रेणी:१९९० पद्म भूषण श्रेणी:केरल के लोग.

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मुत्तु कृष्ण मणि

मुत्तु कृष्ण मणि को भारत सरकार द्वारा सन १९९१ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये तमिलनाडु से हैं। श्रेणी:१९९१ पद्म भूषण.

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मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी

मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में १९५६ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु राज्य से हैं। श्रेणी:१९५६ पद्म भूषण.

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मुरुगप्पा चेन्नवीरप्पा मोदी

मुरुगप्पा चेन्नवीरप्पा मोदी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये कर्नाटक राज्य से हैं। श्रेणी:१९६८ पद्म भूषण श्रेणी:1916 में जन्मे लोग.

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मुहम्मद खलीलुल्लाह

मुहम्मद खलीलुल्लाह को भारत सरकार द्वारा सन १९९० में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। श्रेणी:१९९० पद्म भूषण श्रेणी:दिल्ली के लोग.

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मुहम्मद अब्दुल हाय

मुहम्मद अब्दुल हाय को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६४ में भारत सरकार द्वारा, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। ये बिहार राज्य से हैं। श्रेणी:१९६४ पद्म भूषण.

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मृदु संगणन

संगणक विज्ञान के सन्दर्भ में मृदु संगणन (Soft computing) का अर्थ संगणन की दृष्टि से कठिन एवं जटिल समस्याओं का ऐसा हल देना जो पूर्णतः ठीक नहीं हो किन्तु सरल हो। मृदु संगणन का प्रादर्श (मॉडल) मानव मस्तिष्क के कार्य करने के ढंग से मिलता-जुलता है। .

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मूत्ररोग विज्ञान

पुरुष जननांग मूत्र रोग विज्ञान (Urology) आयुर्विज्ञान की वह शाखा है, जो दोनों लिंगों में मूत्रतंत्र तथा पुरूषों के जननांग के रोगों का ज्ञान कराती है। आजकल भ्रूणवैज्ञानिक, लाक्षणिक तथा नैदानिक कारणों से अधिवृक्क (adrenals) के रोगों को भी इसमें सम्मिलित किया जाने लगा है। .

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मोहनलाल सोनी

मोहनलाल सोनी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६३ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:१९६३ पद्म भूषण.

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युसुफ ख्वाजा हमीद

युसुफ ख्वाजा हमीद को भारत सरकार द्वारा सन २००५ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:२००५ पद्म भूषण.

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यूयू तु

यूयू तु (जन्म 30 दिसम्बर 1930) एक चीनी चिकित्सा वैज्ञानिक, औषधि रसायनज्ञ और शिक्षक हैं। उन्हें मुख्यतः आर्टिमीसिनिन और डाईहाइड्रोआर्टमिसिनीन (जिसे मलेरिया के इलाज के काम में लिया जाता है) की खोज के लिए जाना जाता है। यह चाइना एकेडेमी ऑफ़ ट्रेडिशनल चाइनीज़ मेडिसिन में प्रोफेसर हैं। इन्हें वर्ष २०१५ का चिकित्सा नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ है।,http://timesofindia.indiatimes.com/world/europe/Nobel-Prize-for-medicine-awarded-to-three-scientists-for-discoveries-that-helped-doctors-fight-malaria-and-infections-caused-by-parasites/articleshow/49227973.cms? .

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येल्लप्रगड सुब्बाराव

येल्लप्रगड सुब्बाराव (యెల్లప్రగడ సుబ్బారావు) (12 जनवरी 1895–9 अगस्त 1948) एक भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अपने कैरियर का अधिकतर भाग इन्होने अमेरिका में बिताया था लेकिन इसके बावजूद भी ये वहाँ एक विदेशी ही बने रहे और ग्रीन कार्ड नहीं लिया, हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के कुछ सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा अनुसंधानों का इन्होने नेतृत्व किया था। एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट (ए.टी.पी.) के अलगाव के बावजूद इन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक पद नहीं दिया गया।.

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रफीउद्दीन अहमद

रफीउद्दीन अहमद को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६४ में भारत सरकार द्वारा, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। ये पश्चिम बंगाल राज्य से हैं। श्रेणी:१९६४ पद्म भूषण.

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रमन विश्वनाथन

रमन विश्वनाथन को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७४ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु से हैं। श्रेणी:१९७४ पद्म भूषण.

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रमेश कुमार

रमेश कुमार को सन २००३ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:२००३ पद्म भूषण.

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रसायन विज्ञान

300pxरसायनशास्त्र विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पदार्थों के संघटन, संरचना, गुणों और रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान इनमें हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। इसका शाब्दिक विन्यास रस+अयन है जिसका शाब्दिक अर्थ रसों (द्रवों) का अध्ययन है। यह एक भौतिक विज्ञान है जिसमें पदार्थों के परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टलों (रवों) और रासायनिक प्रक्रिया के दौरान मुक्त हुए या प्रयुक्त हुए ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है। संक्षेप में रसायन विज्ञान रासायनिक पदार्थों का वैज्ञानिक अध्ययन है। पदार्थों का संघटन परमाणु या उप-परमाण्विक कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से हुआ है। रसायन विज्ञान को केंद्रीय विज्ञान या आधारभूत विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि यह दूसरे विज्ञानों जैसे, खगोलविज्ञान, भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, जीवविज्ञान और भूविज्ञान को जोड़ता है। .

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राम कुमार कारोली

राम कुमार कारोली को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७४ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये उत्तर प्रदेश से हैं। श्रेणी:१९७४ पद्म भूषण.

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राष्ट्रीय भारतीय आयुर्विज्ञान संपदा संस्थान

राष्ट्रीय भारतीय आयुर्विज्ञान संपदा संस्थान (National Institute of Indian Medical Heritage) भारत का एक संस्थान है जो आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, होमियोपैथी, सोवा रिग्पा (आयुष) एवं आधुनिक चिकित्सा के ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन एवं प्रलेखन में रुचि रखने वाले इतिहासकारों, वैज्ञानिकों एवं अन्य लोगों के लिए सामग्री उपलब्ध कराता है। यह संस्थान केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसन्धान परिषद् (के.आ.वि.अनु.प.), आयुष विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय, भारत सरकार के प्रशासकीय नियन्त्रण के अधीन कार्य कर रहा है। दक्षिण-पूर्वी एशिया का अपनी तरह का एक मात्र यह संस्थान गड्डिअन्नारम्, दिलसुखनगर, हैदराबाद में नवीन भवन में स्थित है। .

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राजनीति विज्ञान

राजनीति विज्ञान एक सामाजिक विज्ञान है जो सरकार और राजनीति के अध्ययन से सम्बन्धित है। राजनीति विज्ञान अध्ययन का एक विस्तृत विषय या क्षेत्र है। राजनीति विज्ञान में ये तमाम बातें शामिल हैं: राजनीतिक चिंतन, राजनीतिक सिद्धान्त, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचारधारा, संस्थागत या संरचनागत ढांचा, तुलनात्मक राजनीति, लोक प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संगठन आदि। .

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रघुनाथ शरन

रघुनाथ शरन को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये बिहार राज्य से हैं। श्रेणी:१९६२ पद्म भूषण.

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रविंद्र नाथ चौधरी

रविंद्र नाथ चौधरी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल राज्य से थे। श्रेणी:१९६० पद्म भूषण.

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रुदाल्फ हरमन लात्से

रुदाल्फ हरमन लात्से (Rudolf Hermann Lotze; १८१७-१८८१ ई.) जर्मनी का सुप्रसिद्ध दार्शनिक एवं तर्कशास्त्री था। उसने चिकित्सा विज्ञान में भी डिग्री प्राप्त की थी तथा जीवविज्ञान में अत्यन्त पारंगत था। हेगल के बाद जर्मनी के दार्शनिकों में हरमन लात्से का नाम बहुत प्रसिद्ध है। उसके चिकित्सकीय अध्ययन वैज्ञानिक मनोविज्ञान के क्षेत्र में अग्रगण्य थे। .

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रुस्तम जाल वकील

रुस्तम जाल वकील को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९५८ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:१९५८ पद्म भूषण.

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रुस्तमजी बोम्मनजी बिल्लीमोरिया

रुस्तमजी बोम्मनजी बिल्लीमोरिया को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:१९६१ पद्म भूषण.

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रुआल आमुन्सन

रुआल आमुन्सन (Roald Amundsen / १८७२-१९२८) नार्वे का एक साहसी अन्वेषक था जिसने ध्रुवीय क्षेत्रों की साहसिक यात्राएँ की। उसने 1910-12 में दक्षिणी ध्रुव की खोजयात्रा का नेतृत्व किया जिससे सन् १९११ में उसकी खोज हुई। सन् १९२६ में उत्तरी ध्रुव पर पहुँचने वाला वह प्रथम निर्विवाद खोजयात्री था। उसने ही सबसे पहले 1903–06 में उत्तर-पश्चिम मार्ग (Northwest Passage) की यात्रा की। .

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रेडियोजैविकी

रेडियोजैविकी (Radiobiology) आयुर्विज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीवों के ऊपर आयनकारी विकिरण (रेडियेशन) के प्रभाव का अध्ययन करा जाता है। आयनकारी विकिरण जीवों की कोशिकाओं और ऊतकों पर बहुत हानिकारक या जानलेवा प्रभाव रखती हैं लेकिन कुछ सन्दर्भों में उनकी सीमित मात्रा से चिकित्सा भी करी जाती है, मसलन कर्क रोग (कैंसर) के कुछ उपचारों में यह भी शामिल है। अधिक मात्रा में आयनकारी विकिरण प्राप्त होने के भयंकर दुषपरिणाम होते हैं, जिनमें ऊतकों का जल जाना और वर्षों बाद तक कर्करोग का हो जाना सम्मिलित हैं। शरीर के अंदर का दृष्य देखने के लिए हल्की मात्रा में ऍक्स किरणों से भी आयनकारी विकिरण प्राप्त होता है। .

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रोग

पहले मोटापा को 'बड़प्पन' का सूचक माना जाता था। आजकल प्राय: इसे रोग माना जाता है। रोग अर्थात अस्वस्थ होना। यह चिकित्साविज्ञान का मूलभूत संकल्पना है। प्रायः शरीर के पूर्णरूपेण कार्य करने में में किसी प्रकार की कमी होना 'रोग' कहलाता है। किन्तु रोग की परिभाषा करना उतना ही कठिन है जितना 'स्वास्थ्य' को परिभाषित करना। .

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लक्खुमल हीरानंद हीरानंदानी

लक्खुमल हीरानंद हीरानंदानी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:१९७२ पद्म भूषण.

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लेसर विज्ञान

लेसर विज्ञान U.S. Air Force)). लेजर (विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन) एक ऐसा यंत्र है जो प्रेरित उत्‍सर्जन (stimulated emission) एक प्रक्रिया के माध्‍यम से प्रकाश (light) (चुंबकीय विकिरण) उत्‍सर्जित करता है। लेजर शब्द प्रकाश प्रवर्धन का प्रेरित उत्सर्जन के द्वारा विकीरण का संक्षिप्‍त (acronym) शब्‍द है। लेजर प्रकाश आमतौर पर आकाशिक रूप से सशक्त (coherent), होते हैं, जिसका अर्थ है कि प्रकाश या तो एक संकरे, निम्‍न प्रवाहित किरण (low-divergence beam) के रूप में निकलेगी, या उसे देखने वाले यंत्रों जैसे लैंस (lens) लैंसों की मदद से एक कर दिया जाएगा। आमतौर पर, लेजर का अर्थ संकरे तरंगदैर्ध्य (wavelength) प्रकाशपुंज से निकलने वाले प्रकाश (मोनोक्रोमेटिक प्रकाश) से लगाया जाता है। यह अर्थ सभी लेजरों के लिए सही नहीं है, हालांकि कुछ लेजर व्‍यापक प्रकाशपुंज की तरह प्रकाश उत्‍सर्जित करते हैं, जबकि कुछ कई प्रकार के विशिष्‍ट तरंगदैर्घ्य पर साथ साथ प्रकाश उत्‍सर्जित करते हैं। पारंपिरक लेसर के उत्‍सर्जन में विशिष्‍ट सामन्‍जस्‍य होता है। प्रकाश के अधिकतर अन्‍य स्रोत असंगत प्रकाश उत्‍सर्जित करते हैं जिनमें विभिन्‍न चरण (phase) होते हैं और जो समय और स्‍थान के साथ निरंतर बदलता रहता है। .

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शरीरक्रिया विज्ञान

शरीरक्रियाविज्ञान या कार्यिकी (Physiology/फ़िज़ियॉलोजी) के अंतर्गत प्राणियों से संबंधित प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन और उनका वर्गीकरण किया जाता है, साथ ही घटनाओं का अनुक्रम और सापेक्षिक महत्व के साथ प्रत्येक कार्य के उपयुक्त अंगनिर्धारण और उन अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे प्रत्येक क्रिया निर्धारित होती है। शरीरक्रियाविज्ञान चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है जिसमें शरीर में सम्पन्न होने वाली क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत मनुष्य या किसी अन्य प्राणी/पादप के शरीर में मौजूद भिन्न-भिन्न अंगों एवं तन्त्रों (Systems) के कार्यों और उन कार्यों के होने के कारणों के साथ-साथ उनसे सम्बन्धित चिकित्सा विज्ञान के नियमों का भी ज्ञान दिया जाता है। उदाहरण के लिए कान सुनने का कार्य करते है और आंखें देखने का कार्य करती हैं लेकिन शरीर-क्रिया विज्ञान सुनने और देखने के सम्बन्ध में यह ज्ञान कराती है कि ध्वनि कान के पर्दे पर किस प्रकार पहुँचती है और प्रकाश की किरणें आंखों के लेंसों पर पड़ते हुए किस प्रकार वस्तु की छवि मस्तिष्क तक पहुँचती है। इसी प्रकार, मनुष्य जो भोजन करता है, उसका पाचन किस प्रकार होता है, पाचन के अन्त में उसका आंतों की भित्तियों से अवशोषण किस प्रकार होता है, आदि। .

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शारीरिकी

अंगूठाकार शारीरिकी, शारीर या शरीररचना-विज्ञान (अंग्रेजी:Anatomy), जीव विज्ञान और आयुर्विज्ञान की एक शाखा है जिसके अंतर्गत किसी जीवित (चल या अचल) वस्तु का विच्छेदन कर, उसके अंग प्रत्यंग की रचना का अध्ययन किया जाता है। अचल में वनस्पतिजगत तथा चल में प्राणीजगत का समावेश होता है और वनस्पति और प्राणी के संदर्भ में इसे क्रमश: पादप शारीरिकी और जीव शारीरिकी कहा जाता है। जब किसी विशेष प्राणी अथवा वनस्पति की शरीररचना का अध्ययन किया जाता है, तब इसे विशेष शारीरिकी (अंग्रेजी:Special Anatomy) अध्ययन कहते हैं। जब किसी प्राणी या वनस्पति की शरीररचना की तुलना किसी दूसरे प्राणी अथवा वनस्पति की शरीररचना से की जाती है उस स्थिति में यह अध्ययन तुलनात्मक शारीरिकी (अंग्रेजी:Comparative Anatomy) कहलाता है। जब किसी प्राणी के अंगों की रचना का अध्ययन किया जाता है, तब यह आंगिक शारीरिकी (अंग्रेजी:Regional Anatomy) कहलाती है। .

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शांतिलाल सी सेठ

शांतिलाल सी सेठ को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:१९७२ पद्म भूषण.

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शांतिलाल जमनादास मेहता

शांतिलाल जमनादास मेहता को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:१९७१ पद्म भूषण.

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शिव शर्मा मलिक

शिव शर्मा मलिक को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६५ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये उत्तर प्रदेश राज्य से हैं। श्रेणी:१९६५ पद्म भूषण.

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शिव कुमार सरीन

शिव कुमार सरीन को सन २००७ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। .

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शिवानन्द गोस्वामी

शिवानन्द गोस्वामी | शिरोमणि भट्ट (अनुमानित काल: संवत् १७१०-१७९७) तंत्र-मंत्र, साहित्य, काव्यशास्त्र, आयुर्वेद, सम्प्रदाय-ज्ञान, वेद-वेदांग, कर्मकांड, धर्मशास्त्र, खगोलशास्त्र-ज्योतिष, होरा शास्त्र, व्याकरण आदि अनेक विषयों के जाने-माने विद्वान थे। इनके पूर्वज मूलतः तेलंगाना के तेलगूभाषी उच्चकुलीन पंचद्रविड़ वेल्लनाडू ब्राह्मण थे, जो उत्तर भारतीय राजा-महाराजाओं के आग्रह और निमंत्रण पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों में आ कर कुलगुरु, राजगुरु, धर्मपीठ निर्देशक, आदि पदों पर आसीन हुए| शिवानन्द गोस्वामी त्रिपुर-सुन्दरी के अनन्य साधक और शक्ति-उपासक थे। एक चमत्कारिक मान्त्रिक और तांत्रिक के रूप में उनकी साधना और सिद्धियों की अनेक घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। श्रीमद्भागवत के बाद सबसे विपुल ग्रन्थ सिंह-सिद्धांत-सिन्धु लिखने का श्रेय शिवानंद गोस्वामी को है।" .

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शंट (चिकित्सा)

आयुर्विज्ञान के सन्दर्भ में, शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में किसी तरल को ले जाने के लिए बने पतले छेद या पार्श्वपथ को शंट (shunt) कहते हैं। .

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सत्यनारायण शास्त्री

सत्यनारायण शास्त्री (1887 -- 23 सितंबर 1969) आधुनिक आयुर्वेदजगत्‌ के प्रख्यात पंडित और चिकित्साशास्त्री थे। आयुर्वेद की धवल परंपरा को सजीव बनाए रखने के लिए आपने जीवन भर कार्य किया। उन्हें चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में पद्म भूषण से १९५४ में सम्मानित किया गया। .

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सहचिकित्सा

रोग के निदान और इलाज में अर्द्ध-चिकित्सा विज्ञान या सहचिकित्सा (Paramedicine) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रोग निदान से संबंधित औजार जैसे कि सूक्ष्मदर्शी यंत्र, एक्स-रे, अल्ट्रासाउण्ड, इंडोस्कोप, सीटी स्कैन, एमआर, गामा कैमरा तथा अन्य इन्वेसिव या नॉन-इन्वेसिव पद्धतियाँ और तकनीकी प्रकार की थेरेपियां जैसे कि पिफजियोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, श्वासक्रिया थेरेपी, स्पीच थेरेपी आदि अर्ध-चिकित्सा प्रणाली का हिस्सा हैं। आयुर्विज्ञान और संश्लिष्ट चिकित्सा उपकरणों के विकास के साथ-साथ प्रशिक्षित और सुयोग्य अर्ध-चिकित्सकीय मानवशक्ति की मांग भी बढ़ रही है। .

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सामान्य चिकित्सा में प्रयुक्त उपकरण

सामान्य चिकित्सा और क्लिनिकों (अर्थात् आंतरिक चिकित्सा और बाल रोग) में प्रयुक्त उपकरण इस प्रकार हैं: .

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साहित्य में नोबेल पुरस्कार

1901 में सुली प्रुधोम (1839-1907), एक फ्रांसीसी कवि और निबंधकार, साहित्य में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। 1901 से, साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार (Nobelpriset i litteratur) वार्षिक रूप से किसी भी देश के उस लेखक को दिया जाता है जिसने, सर अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार, "साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो" (मूल स्वीडिश den som inom litteraturen har producerat det utmärktaste i idealisk riktning)। यद्यपि व्यक्ति का काम कभी कभी विशेष रूप से उल्लेखनीय नहीं होता, यहां पर काम से तात्पर्य पूरी तरह से लेखक के काम से है। इस बात का निर्णय स्वीडिश अकादमी ही लेती है कि किस वर्ष में यह पुरस्कार किसे दिया जाये.

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सघन देख-भाल चिकित्सा

सघन देख-रेख चिकित्सा (Intensive care medicine या critical care medicine) आयुर्विज्ञान की वह शाखा है जो जीवनघाती दशाओं के निदान और प्रबन्धन से सम्बन्ध रखती है। श्रेणी:सघन देख-रेख चिकित्सा en:Intensive care medicine.

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संतोष कुमार मुखर्जी

संतोष कुमार मुखर्जी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये मध्य प्रदेश राज्य से हैं। श्रेणी:१९७१ पद्म भूषण.

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संतोष कुमार सेन

संतोष कुमार सेन को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल राज्य से हैं। श्रेणी:१९६२ पद्म भूषण.

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संस्कृत साहित्य

बिहार या नेपाल से प्राप्त देवीमाहात्म्य की यह पाण्डुलिपि संस्कृत की सबसे प्राचीन सुरक्षित बची पाण्डुलिपि है। (११वीं शताब्दी की) ऋग्वेदकाल से लेकर आज तक संस्कृत भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। भारतीय संस्कृति और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी (ह्यूमैनिटी) आदि प्राय: समस्त प्रकार के वाङ्मय की रचना हुई। संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। संस्कृत साहित्य इतना विशाल और scientific है तो भारत से संस्कृत भाषा विलुप्तप्राय कैसे हो गया? .

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संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान

संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGIMS) भारत का एक उत्कृष्ट आयुर्विज्ञान संस्थान है। यह लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसकी स्थापना १९८३ में हुई थी। यह संस्थान रायबरेली मार्ग पर मुख्य शहर से १५ किमी की दूरी पर स्थित है। यह संस्थान तथा इसका आवासीय प्रांगण ५५० एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यह संस्थान तृतियक चिकित्सा सुविधा प्रदान करता है तथा अति-विशेषज्ञता शिक्षण, प्रशिशण और अनुसंधान सुविधा प्रदान करता है। यह DM, MCh, MD, Ph.D., पोस्टडॉक्टोरल फेलोशिप (PDF) तथा पोस्टडॉक्टोरल सर्टिफिकेट कोर्स (PDCC) और सीनियर रेजिडेंसी प्रदान करता है। .

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संगीत चिकित्सा

संगीत चिकित्सा सहबद्ध स्वास्थ्य व्यवसाय और वैज्ञानिक शोध का क्षेत्र है जो नैदानिक चिकित्सा और जैव-संगीत शास्त्र, संगीत ध्वनिकी, संगीत सिद्धांत, मनो-ध्वनिकी और तुलनात्मक संगीत शास्त्र की प्रक्रिया के बीच पारस्परिक संबंध का अध्ययन करता है। यह एक अंतर्वैयक्तिक प्रक्रिया है जिसमें एक प्रशिक्षित संगीत चिकित्सक, अपने मरीज़ों के स्वास्थ्य में सुधार या उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद के लिए संगीत और उसके - यथा शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक, सामाजिक, सौन्दर्यात्मक और आध्यात्मिक - सभी पहलुओं का उपयोग करता है। संगीत चिकित्सक परिमेय उपचार लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संगीतानुभव (जैसे कि गायन, गीत-लेखन, संगीत श्रवण और संगीत चर्चा, संगीत संचालन) के उपयोग द्वारा, मुख्य रूप से मरीज़ों की क्रियाशीलता और विविध क्षेत्रों (उदा. संज्ञानात्मक कार्य, संचालन कौशल, भावनात्मक और प्रभावी विकास, व्यवहार और सामाजिक कौशल) में जीवन की स्व-वर्णित गुणवत्ता को सुस्पष्ट स्तर तक विकसित करने में मदद करते हैं। संगीत चिकित्सा सेवाओं के लिए उपचार करने वाले चिकित्सक या चिकित्सकों, मनोविज्ञानियों, भौतिक चिकित्सकों और पेशेवर चिकित्सकों जैसे चिकित्सकों से युक्त अंतर्विभागीय दल द्वारा संगीत से संबद्ध सेवाएं निर्दिष्ट की जानी चाहिए.

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सुदांशु शोभन मैत्रा

सुदांशु शोभन मैत्रा को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल राज्य से हैं। श्रेणी:१९६२ पद्म भूषण.

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सुजय भूषण रॉय

सुजय भूषण रॉय को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल से हैं। श्रेणी:१९७२ पद्म भूषण.

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स्टेंट

धमनी व शिराओं में लगाया जाने वाला स्टेंट ग्रास नली के कैंसर में इस्तेमाल किया जाने वाले स्वविस्तारशील धातु स्टेंट का एक अतिविस्तृत चित्र स्टेंट (अंग्रेजी: Stent) आयुर्विज्ञान में एक कृत्रिम उपकरण को कहा जाता है जो शरीर के प्राकृतिक मार्ग/नाली में रोगग्रस्त प्रवाह अथवा आकुंचन को रोकने के लिये या प्रतिक्रिया देने के लिये प्रयुक्त होता है। इस शब्द का सन्दर्भ अस्थायी रूप से उपयोग की जाने वाली नलिका के रूप में भी दिया जा सकता है। उदाहरण के लिये शल्य क्रिया (सर्जरी) में अभिगमन की अनुमति देने के लिये एक कृत्रिम वाहिका अथवा नाली। चिकित्सा क्षेत्र में स्टेंट शब्द का यही तात्पर्य है। जैसा की यहाँ पर दिये गये कुछ चित्रों से स्पष्ट होता है, स्टेंट्स धमनी, शिरा, ग्रासनली व मूत्रनली आदि के इलाज में प्रयोग किये जाते हैं। .

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स्त्री-रोग विज्ञान

स्त्रीरोगविज्ञान (Gynaccology), चिकित्साविज्ञान की वह शाखा है जो केवल स्त्रियों से संबंधित विशेष रोगों, अर्थात् उनके विशेष रचना अंगों से संबंधित रोगों एवं उनकी चिकित्सा विषय का समावेश करती है। स्त्री-रोग विज्ञान, एक महिला की प्रजनन प्रणाली (गर्भाशय, योनि और अंडाशय) के स्वास्थ्य हेतु अर्जित की गयी शल्यक (सर्जिकल) विशेषज्ञता को संदर्भित करता है। मूलतः यह 'महिलाओं की विज्ञान' का है। आजकल लगभग सभी आधुनिक स्त्री-रोग विशेषज्ञ, प्रसूति विशेषज्ञ भी होते हैं। .

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स्मृति (मनोविज्ञान)

चूहों की स्थान-सम्बन्धी स्मृति को जांचने का प्रयोग '''स्मृति का पैटर्न कुछ इस तरह का होता है''' हमारी यादें हमारे व्यक्तित्व का एक प्रमुख अंग हैं। हम क्या याद रखते हैं और क्या भूल जाते है यह सब बहुत सारी चीजों पर निर्भर करता है। भाषा, दृष्टि, श्रवण, प्रत्यक्षीकरण, अधिगम तथा ध्यान की तरह स्मृति (मेमोरी) भी मस्तिष्क की एक प्रमुख बौद्धिक क्षमता है। हमारे मस्तिष्क में जो कुछ भी अनुभव, सूचना और ज्ञान के रूप में संग्रहीत है वह सभी स्मृति के ही विविध रूपों में व्यवस्थित रहता है। मानव मस्तिष्क की इस क्षमता का अध्ययन एक काफी व्यापक विषय वस्तु है। मुख्यतः इसका अध्ययन मनोविज्ञान, तंत्रिकाविज्ञान एवं आयुर्विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। प्रस्तुत आलेख में स्मृति के विविध रूपों, इसके जैविक आधार, स्मृति संबंधी प्रमुख रोग तथा कुछ प्रमुख स्मृति युक्तियों पर प्रकाश डाला जाएगा। .

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स्वामी शिवानन्द सरस्वती

स्वामी कृष्णानन्द एवं स्वामी शिवानन्द (दाएँ) स्वामी शिवानन्द सरस्वती (१८८७-१९६३) वेदान्त के महान आचार्य और सनातन धर्म के विख्यात नेता थे। उनका जन्म तमिल नाडु में हुआ पर संन्यास के पश्चात उन्होंने जीवन ऋषिकेश में व्यतीत किया। स्वामी शिवानन्द का जन्म अप्यायार दीक्षित वंश में 8 सितम्वर 1887 को हुआ था। उन्होने बचपन में ही वेदान्त की अध्ययन और अभ्यास किया। इसके वाद उन्होने चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया। तत्पश्चात उन्होने मलाया में डाक्टर के रूप में लोगों की सेवा की। सन् 1924 में चिकित्सा सेवा का त्याग करने के पश्चात ऋषिकेष में बस गये और कठिन आध्यात्मिक साधना की। सन् 1932 में उन्होने शिवानन्दाश्रम और 1936 में दिव्य जीवन संघ की स्थापना की। अध्यात्म, दर्शन और योग पर उन्होने लगभग 300 पुस्तकों की रचना की। 14 जुलाई 1963 को वे महासमाधि लाभ किये। .

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स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) ने सन् १९४८ में स्वास्थ्य या आरोग्य की निम्नलिखित परिभाषा दी: स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में अवश्य जानकारी होनी चाहिए। स्वास्थ्य का अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग होता है। लेकिन अगर हम एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण की बात करें तो अपने आपको स्वस्थ कहने का यह अर्थ होता है कि हम अपने जीवन में आनेवाली सभी सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का प्रबंधन करने में सफलतापूर्वक सक्षम हों। वैसे तो अपने आपको स्वस्थ रखने के ढेर सारी आधुनिक तकनीक मौजूद हैं, लेकिन ये सारी उतनी अधिक कारगर नहीं हैं। .

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सेंगमेदु श्रीनिवास बद्रीनाथ

सेंगमेदु श्रीनिवास बद्रीनाथ को सन १९९९ में भारत सरकार ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये तमिलनाडु राज्य से हैं। श्रेणी:१९९९ पद्म भूषण.

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सी कोटियथ लक्षमणन

सी कोटियथ लक्षमणन को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु राज्य से हैं। श्रेणी:१९६७ पद्म भूषण.

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हरबंस सिंह वज़ीर

हरबंस सिंह वज़ीर को सन २००० में भारत सरकार ने चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये हरियाणा राज्य से हैं। .

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हरि मोहन

हरि मोहन को भारत सरकार द्वारा सन २००५ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:२००५ पद्म भूषण.

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हर्षवर्धन (राजनेता)

डॉ॰ हर्षवर्धन भारतीय राजनेता हैं जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य हैं। ये कृष्णा नगर विधानसभा क्षेत्र से दिल्ली विधानसभा के सदस्य रहे हैं। डॉ.

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हकीम सैयद मुहम्मद शर्फ़ुद्दीन कादरी

हकीम सैयद मुहम्मद शर्फ़ुद्दीन कादरी को सन २००७ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल से हैं। .

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हैंस श्पेमान

हैंस श्पेमान (१९३५ में) हैंस श्पेमान (Hans Spemann; सन् १८६९ - १९४१), जर्मनी के भ्रूणविज्ञानी थे जिन्हें १९३५ में चिकित्साविज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होने जिस प्रभाव का अध्ययन किया था उसे आजकल 'भ्रूण प्रेरण' (embryonic induction) कहा जाता है। .

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हेच -1बी वीज़ा

एच-1बी इमीग्रेशन एण्ड नैशनॅलिटी ऐक्ट (Immigration and Nationality Act) की धारा 101 (ए)(15)(एच) के अंतर्गत संयुक्त राज्य अमरीका में एक गैर-आप्रवासी वीज़ा है। यह अमरीकी नियोक्ताओं को विशेषतापूर्ण व्यवसायों में अस्थायी तौर पर विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है। यदि एच-1बी दर्जे वाला कोई विदेशी कर्मचारी नौकरी छोड़ देता है या उसे उसके प्रायोजक नियोक्ता द्वारा निलंबित कर दिया जाता है, तो कर्मचारी को या तो किसी अन्य गैर-आप्रवासी दर्जे में परिवर्तन के लिये आवेदन करना चाहिये व इसकी अनुमति प्राप्त करनी चाहिये, किसी अन्य नियोक्ता को ढूंढना चाहिये (दर्जे तथा/या वीज़ा के परिवर्तन के समायोजन के आवेदन के आधार पर), अथवा संयुक्त राज्य अमरीका से बाहर चले जाना चाहिये.

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हेनरी मरे

हेनरी मरे हैनरी मरे (Henry Alexander Murray; (13 मई 1893 – 23 जून 1988) अमेरिका के मनोवैज्ञानिक थे। उन्होने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ३० वर्ष से भी अधिक समय तक अध्यापन किया। .

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हेमोडायलिसिस

विकास के तहत हेमोडायलिसिस हेमोडायलिसिस की मशीन हेमोडायलिसिस एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत गंदे पदार्थों जैसे कि क्रियेटिनिन और यूरिया के साथ-साथ मुक्त जल को रक्त से तब निकाला जाता है, जब गुर्दे, वृक्क विफलता में होते हैं। यह चिकित्सा में प्रचलित है। हेमोडायलिसिस तीन वृक्क प्रतिस्थापन उपचारों में से एक है (अन्य दो हैं वृक्क प्रत्यारोपण; उदरावरणीय अपोहन) हेमोडायलिसिस, एक आउटपेशेंट (अस्पताल के बाहर) या इनपेशेंट (अस्पताल के अन्दर) उपचार हो सकता है। नियमित हेमोडायलिसिस को एक डायलिसिस आउटपेशेंट सुविधा में आयोजित किया जाता है, यह या तो अस्पताल का इसी उद्देश्य के लिए निर्मित एक कमरा होता है या एक समर्पित स्वतन्त्र क्लिनिक होती है। हेमोडायलिसिस को घर पर कम ही किया जाता है। एक क्लीनिक में डायलिसिस उपचार को नर्सों और तकनीशियनों से निर्मित विशेष स्टाफ द्वारा शुरू और प्रबंधित किया जाता है; घर पर डायलिसिस उपचार को स्वयं आरंभ और प्रबंधित किया जा सकता है या किसी प्रशिक्षित सहायक की मदद से संयुक्त रूप से किया जा सकता है जो आमतौर पर परिवार का एक सदस्य होता है। .

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जठरांत्ररोगविज्ञान

जठरांत्ररोगविज्ञान (Gastroenterology) चिकित्सा शास्त्र का वह विभाग है जो पाचन तंत्र तथा उससे सम्बन्धित रोगों पर केंद्रित है। इस शब्द की उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक शब्द gastros (उदर), enteron (आँत) एवं logos (शास्त्र) से हुई है। जठरांत्ररोगविज्ञान पोषण नाल (alimentary canal) से सम्बन्धित मुख से गुदाद्वार तक के सारे अंगों और उनके रोगों पर केन्द्रित है। इससे सम्बन्धित चिकित्सक जठरांत्ररोगविज्ञानी (gastroenterologists) कहलाते हैं। .

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जयवीर अग्रवाल

जयवीर अग्रवाल को भारत सरकार द्वारा सन २००६ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु से हैं। .

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जल मिनोचर मेहता

जल मिनोचर मेहता को भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:१९८२ पद्म भूषण.

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जसबीर सिंह बजाज

जसबीर सिंह बजाज को भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। श्रेणी:१९८२ पद्म भूषण.

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जापान का इतिहास

जापान के प्राचीन इतिहास के संबंध में कोई निश्चयात्मक जानकारी नहीं प्राप्त है। जापानी लोककथाओं के अनुसार विश्व के निर्माता ने सूर्य देवी तथा चन्द्र देवी को भी रचा। फिर उसका पोता क्यूशू द्वीप पर आया और बाद में उनकी संतान होंशू द्वीप पर फैल गए। हँलांकि यह लोककथा है पर इसमें कुछ सच्चाई भी नजर आती है। पौराणिक मतानुसार जिम्मू नामक एक सम्राट् ९६० ई. पू.

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जाल रतनजी पटेल

जाल रतनजी पटेल को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:१९६२ पद्म भूषण.

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जगजीत सिंह चोपड़ा

जगजीत सिंह चोपड़ा को सन २००८ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये चंडीगढ़ से हैं। २००८ पद्म भूषण श्रेणी:२००८ पद्म भूषण stub.

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ज्योतिष चंद्र राय

ज्योतिष चंद्र राय को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये पश्चिम बंगाल राज्य से हैं। श्रेणी:१९६८ पद्म भूषण.

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जैकब चाँडी

जैकब चाँडी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६४ में भारत सरकार द्वारा, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। ये केरल राज्य से हैं। श्रेणी:१९६४ पद्म भूषण.

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जोगेशचंद्र बैनर्जी

जोगेशचंद्र बैनर्जी को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६५ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल राज्य से हैं। श्रेणी:१९६५ पद्म भूषण.

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जीव विज्ञान

जीवविज्ञान भांति-भांति के जीवों का अध्ययन करता है। जीवविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं। आधुनिक जीव विज्ञान एक बहुत विस्तृत विज्ञान है, जिसकी कई शाखाएँ हैं। 'बायलोजी' (जीवविज्ञान) शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस नाम के वैज्ञानिको ने १८०२ ई० में किया। जिन वस्तुओं की उत्पत्ति किसी विशेष अकृत्रिम जातीय प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है, जीव कहलाती हैं। इनका एक परिमित जीवनचक्र होता है। हम सभी जीव हैं। जीवों में कुछ मौलिक प्रक्रियाऐं होती हैं.

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वर्षावन

ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में डैनट्री वर्षावन. क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया में केर्न्स के पास डैनट्री वर्षावन. न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में इल्लावारा ब्रश के भाग। वर्षावन वे जंगल हैं, जिनमें प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है अर्थात जहां न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा 1750-2000 मि॰मी॰ (68-78 इंच) के बीच है। मानसूनी कम दबाव का क्षेत्र जिसे वैकल्पिक रूप से अंतर-उष्णकटिबंधीय संसृति क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, की पृथ्वी पर वर्षावनों के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका है। विश्व के पशु-पौधों की सभी प्रजातियों का कुल 40 से 75% इन्हीं वर्षावनों का मूल प्रवासी है। यह अनुमान लगाया गया है कि पौधों, कीटों और सूक्ष्मजीवों की कई लाख प्रजातियां अभी तक खोजी नहीं गई हैं। उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को पृथ्वी के आभूषण और संसार की सबसे बड़ी औषधशाला कहा गया है, क्योंकि एक चौथाई प्राकृतिक औषधियों की खोज यहीं हुई है। विश्व के कुल ऑक्सीजन प्राप्ति का 28% वर्षावनों से ही मिलता है, इसे अक्सर कार्बन डाई ऑक्साइड से प्रकाश संष्लेषण के द्वारा प्रसंस्करण कर जैविक अधिग्रहण के माध्यम से कार्बन के रूप में भंडारण करने वाले ऑक्सीजन उत्पादन के रूप में गलत समझ लिया जाता है। भूमि स्तर पर सूर्य का प्रकाश न पहुंच पाने के कारण वर्षावनों के कई क्षेत्रों में बड़े वृक्षों के नीचे छोटे पौधे और झाड़ियां बहुत कम उग पाती हैं। इस से जंगल में चल पाना संभव हो जाता है। यदि पत्तों के वितानावरण को काट दिया जाए या हलका कर दिया जाए, तो नीचे की जमीन जल्दी ही घनी उलझी हुई बेलों, झाड़ियों और छोटे-छोटे पेड़ों से भर जाएगी, जिसे जंगल कहा जाता है। दो प्रकार के वर्षावन होते हैं, उष्णकटिबंधीय वर्षावन तथा समशीतोष्ण वर्षावन। .

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वल्लभ्दास श्रीविट्ठलदास शाह

वल्लभ्दास श्रीविट्ठलदास शाह को चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६९ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:पद्म भूषण.

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विट्ठल नागेश शिरोडकर

विट्ठल नागेश शिरोडकर (२७ अप्रैलए, १८९९ -- १९७१) भारत के विश्वप्रसिद्ध स्त्रीरोगविशेषज्ञ तथा शल्यचिकित्सक थे। उन्हें चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। विठ्ठल नागेश शिरोडकर का जन्म गोवा के शिरोडे गाव में हुआ था। उसके बाद वैद्यकीय क्षेत्र की ओर बढ़ने के बाद उन्होंने सन् १९२७ वर्ष में एम.डी.

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विलियम बाउमैन

विलियम बाउमैन (सन् १७८५ - १८५३) अमरीकी सेना में शरीरक्रिया वैज्ञानिक थे जो 'जठर क्रियाविज्ञान के जनक' (Father of Gastric Physiology) कहे जाते हैं।, National Library of Medicine इनहोने मानव के पाचनतंत्र पर बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया था। इनका जन्म कृषक परिवार में हुआ था। यह कुशाग्रबुद्धि बालक आगे चलकर प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुआ। चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा इन्होंने वैयक्तिक रूप से एक चिकित्सक से पाई और वरमांट राज्य की तृतीय मेडिकल सोसायिटी से चिकित्सावृत्ति का लाइसेंस प्राप्त किया। बाद में ये अमरीकी सेना में सर्जन के पद पर नियुक्त हो गए। शरीररचना और उसके कार्य से संबंधित अनेक बातें उन दिनों अज्ञात थीं। बाउमैंन ने अनुसन्धान किया और बताया कि आमाशय के पाचक रस क्या कार्य करते हैं और कब तक किन अवस्थाओं में यह रस नहीं बनता। बाउमैन ने पाचन के रासायनिक रूप की सूत्रमाण स्थापना की। इन कार्यों की उनके शोधप्रबंध एक्सपेरिमेंट्स ऐंड आब्ज़रवेशंस में विस्तार से चर्चा है। शरीर क्रिया विज्ञान में बाउमैन का अनुदान महत्त्वपूर्ण है। इन्होंने प्रयोग और अवलोकन को नई दिशा प्रदान की। .

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विलियम जेम्स

विलियम जेम्स (William James; 11 जनवरी, 1842 – 26 अगस्त, 1910) अमेरिकी दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक थे जिन्होने चिकित्सक के रूप में भी प्रशिक्षण पाया था। इन्होंने मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से पृथक किया था, इसलिए इन्हें मनोविज्ञान का जनक भी मन जाता है। विलियम जेम्स ने मनोविज्ञान के अध्ययन हेतु एक पुस्तक लिखी जिसका नाम "प्रिंसिपल्स ऑफ़ साइकोलॉजी" है। इसका भाई हेनरी जेम्स प्रख्यात उपन्यासकार था। आकर्षक लेखनशैली और अभिव्यक्ति की कुशलता के लिये जेम्स विख्यात हैं। विलियम जेम्स का जन्म ११ जनवरी १८४२ को न्यूयार्क में हुआ। जेम्स ने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया और वहीं १८७२ से १९०७ तक क्रमश: शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान और दर्शन का प्राध्यापक रहा। १८९९ से १९०१ तक एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में प्राकृतिक धर्म पर और १९०८ में ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन पर व्याख्यान दिए। २६ अगस्त, १९१० को उसकी मृत्यु हो गई। १८९० में उसकी पुस्तक प्रिंसिपिल्स ऑव् साइकॉलाजी प्रकाशित हुई, जिसने मनोविज्ञान के क्षेत्र में क्रांति सी मचा दी, और जेम्स को उसी एक पुस्तक से जागतिक ख्याति मिल गई। अपनी अन्य रचनाओं में उसने दर्शन तथा धर्म की समस्याओं को सुलझाने में अपनी मनोवैज्ञानिक मान्यताओं का उपयोग किया और उनका समाधान उसने अपने फलानुमेयप्रामाणवाद (Pragmatism) और आधारभूत अनुभववाद (Radical Empiricism) में पाया। फलानुमेयप्रामाणवादी जेम्स ने 'ज्ञान' को बृहत्तर व्यावहारिक स्थिति का, जिससे व्यक्ति स्वयं को संसार में प्रतिष्ठित करता है, भाग मानते हुए 'ज्ञाता' और 'ज्ञेय' को जीवी (Organism) और परिवेश (Environment) के रूप में स्थापित किया है। इस प्रकार सत्य कोई पूर्ववृत्त वास्तविकता (Antecedent Reality) नहीं है, अपितु वह प्रत्यय की व्यावहारिक सफलता के अंशों पर आधारित है। सभी बौद्धिक क्रियाओं का महत्व उनकी व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति की क्षमता में निहित है। आधारभूत अनुभववाद जेम्स ने पहले मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। जॉन लॉक और जार्ज बर्कली के मतों से भिन्न उसकी मान्यता थी कि चेतना की परिवर्तनशील स्थितियाँ परस्पर संबंधित रहती हैं; तदनुसार समग्र अनुभव की स्थितियों में संबंध स्थापित हो जाता है; मस्तिष्क आदि कोई बाह्य शक्ति उसमें सहायक नहीं होती। मस्तिष्क प्रत्यक्ष अनुभव की समग्रता में भेद करता है। फलानुमेय प्रामाण्यवाद और आधारभूत अनुभववाद पर ही जेम्स की धार्मिक मान्यताएँ आधृत हैं। फलानुमेय प्रामाण्यवाद सत्य की अपेक्षा धार्मिक विश्वासों की व्याख्या में अधिक सहायक था; क्योंकि विश्वास प्राय: व्यावहारिक होते हैं यहाँ तक कि तर्कों के प्रमाण के अभाव में भी मान्य होते हैं; किंतु परिणामवादीदृष्टिकोण से सत्य की, परिभाषा स्थिर करना संदिग्ध है। 'द विल टु बिलीव' में जेम्स ने अंतःकरण के या संवेगजन्य प्रमाणों पर बल दिया है और सिद्ध किया है कि उद्देश्य (Purpose) और संकल्प (Will) ही व्यक्ति के दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं। 'द वेराइटीज़ ऑव रिलीजस एक्सपीरियेंस' में जेम्स ने व्यक्ति को निष्क्रिय और शक्तिहीन दिखलाया है तथा यह भी प्रदर्शित किया है कि उसकी रक्षा कोई बाह्य शक्ति करती है। जेम्स के अनुभववाद से धार्मिक अनुभूति की व्याख्या इसलिये असंभव है कि इन अनुभूतियों का व्यक्ति के अवचेनत से सीधा संबंध होता है। जेम्स के धर्मदर्शन में तीन बातें मुख्य हैं-.

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विष्णुपद मुखोपादध्याय

विष्णुपद मुखोपादध्याय को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये बिहार राज्य से हैं। श्रेणी:१९७१ पद्म भूषण.

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विकिरण विज्ञान

विकिरण चिकित्सा के लिये वह लेख देखें। ---- विकिरण विज्ञान (रेडियोलोजी / Radiology) चिकित्सा विज्ञान का वह विशेषज्ञता-क्षेत्र है जिसमें एक्स-किरण एवं अन्य विकिरणों से सम्बन्धित छबिकरण तकनीकों (इमेजिंग टेक्निक्स) एवं उनके चिकित्सकीय निदान एवं उपचार में अनुप्रयोग का अध्ययन किया जाता है। आधुनिक विज्ञान की यह शाखा इस बात का विचार और विवेचन होता है कि अनेक पदार्थों में से किरणें कैसे निकलती है और उनके क्या-क्या उपयोग, प्रकार या स्वरूप होते हैं। .

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वुलिमिरि रामालिंगेस्वामी

वुलिमिरि रामालिंगेस्वामी (८ अगस्त १९२१ – २८ मई २००१) को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन १९७१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु राज्य से थे। .

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व्यावसायिक आयुर्विज्ञान

व्यावसायिक आयुर्विज्ञान (Occupational medicine) नैदानिक आयुर्विज्ञान (clinical medicine) की वह शाखा है जो व्यावसायिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित है। इसके विशेषज्ञ प्रत्यन करते हैं कि व्यावसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य के उच्चतम मानदण्ड प्राप्त किये जा सके। इसका संबंध उद्योग के स्थलों में अंतर्व्याप्त परिस्थितियों के अध्ययन तथा नियंत्रण से है। बहुत पहले से ही स्वास्थ्यवेत्ता यह मानते आ रहे हैं कि काम करने वालों के स्वास्थ्य और कल्याण करने की परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता है, जैसा बरडर्डाइन रमज़्ज़ने (Berdardine Ramazzne (७०० ई.)) की इस टिप्पणी से प्रत्यक्ष हो जाता है- .

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वैद्य देवेंद्र त्रिगुण

वैद्य देवेंद्र त्रिगुण को सन २००९ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। .

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वैद्य श्रीराम शर्मा

वैद्य श्रीराम शर्मा को सन २००७ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। .

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वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग

वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (सीएसटीटी) हिन्दी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दों को परिभाषित एवं नए शब्दों का विकास करता है। भारत की स्वतंत्रता के बाद वैज्ञानिक-तकनीकी शब्दावली के लिए शिक्षा मंत्रालय ने सन् १९५० में बोर्ड की स्थापना की। सन् १९५२ में बोर्ड के तत्त्वावधान में शब्दावली निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। अन्तत: १९६० में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय और 1961 ई. में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना हुई। इस प्रकार विभिन्न अवसरों पर तैयार शब्दावली को 'पारिभाषिक शब्द संग्रह' शीर्षक से प्रकाशित किया गया, जिसका उद्देश्य एक ओर वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के समन्वय कार्य के लिए आधार प्रदान करना था और दूसरी ओर अन्तरिम अवधि में लेखकों को नई संकल्पनाओं के लिए सर्वसम्मत पारिभाषिक शब्द प्रदान करना था। स्वतंत्रता के बाद भारत के संविधान के निर्माताओं का ध्यान देश की सभी प्रमुख भाषाओं के विकास की ओर गया। संविधान में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई और केंद्रीय सरकार को यह दायित्व सौंपा गया कि वह हिंदी का विकास-प्रसार करें एवं उसे समृद्ध करे। तदनुसार भारत सरकार के केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 351 के अधीन हिंदी का विकास एवं समृद्धि की अनेक योजनाएँ आरंभ कीं। इन योजनाओं में हिंदी में तकनीकी शब्दावली के निर्माण का कार्यक्रम भी शामिल किया गया ताकी ज्ञान-विज्ञान की सभी शाखाओं में हिंदी के माध्यम से अध्ययन एवं अध्यापन हो सके। शब्दावली निर्माण कार्यक्रम को सही दिशा देने के लिए 1950 में शिक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में वैज्ञानिक शब्दावली बोर्ड की स्थापना की गई। पहले यह कार्य शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत हिंदी एकक द्वारा किया जाता था किन्तु बाद में विभिनन विषयों की हिंदी शब्दावली का निर्माण करने के दौरान यह ज्ञात हुआ कि यह काम बहुत ही अधिक विशाल, गहन और बहुआयामी है। इसके पूरे होने में बहुत सकय लगेगा और इस कार्य के लिए सभी विषयों के विशेषज्ञों एवं भाषाविदों की आवश्यकता होगी। अतः भारत सरकार ने 1 अक्तूबर, 1961 को प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ॰ डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की ताकि शब्दावली निर्माण का कार्य सही एवं व्यापक परिप्रेक्ष्य में कार्यान्वित किया जा सके। .

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वैज्ञानिक लेखन

वैज्ञानिक लेखन (Scientific writing) से अभिप्राय 'विज्ञान के लिये लिखना' है। विज्ञान लेखन का अर्थ है, विज्ञान, आयुर्विज्ञान, प्रौद्योगिकी के बारे में सामान्य जनता के पढ़ने के लिये लिखना। वैज्ञानिक लेखन पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, लोकप्रिय पुस्तकों, संग्रहालय की दीवारों, टीवी और रेडियो कार्यक्रमों तथा इन्टरनेट आदि माध्यमों पर प्रकाशित हो सकता है। .

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वी शांता

वी शांता को भारत सरकार द्वारा सन २००६ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु से हैं। .

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खालिद हमीद

खालिद हमीद को सन २००९ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये प्रवासी भारतीय हैं। .

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खुश्वंत लाल विग

खुश्वंत लाल विग को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६४ में भारत सरकार द्वारा, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। ये पंजाब राज्य से हैं। श्रेणी:१९६४ पद्म भूषण.

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गवाशॉ पेमास्टर

गवाशॉ पेमास्टर को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९५९ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र राज्य से हैं। श्रेणी:१९५९ पद्म भूषण.

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गुरुकुमार बालचंद्र पारुलकर

गुरुकुमार बालचंद्र पारुलकर को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९९८ में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। १९९८ पद्म भूषण श्रेणी:१९९८ पद्म भूषण stub.

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आत्म प्रकाश

आत्म प्रकाश को भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली से हैं। श्रेणी:१९८२ पद्म भूषण.

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आधुनिक मनोविज्ञान

मनोविज्ञान आधुनिक युग की नवीनतम विद्या है। वैसे तो मनोविज्ञान की शुरूआत आज से 2,000 वर्ष पूर्व यूनान में हुई। प्लेटो ओर अरस्तू के लेखों में उसे हम देखते हैं। मध्यकाल में मनोविज्ञान चिंतन की योरप में कमी हो गई थी। आधुनिक युग में इसका प्रारंभ ईसा की अठारहवी शताब्दी में हुआ। परंतु उस समय मनोविज्ञान केवल दर्शनशास्त्रों का सहयोगी था। उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। मनोविज्ञान का स्वतंत्र अस्तित्व 19 वीं शताब्दी में हुआ, परंतु इस समय भी विद्वानों को मनुष्य के चेतन मन का ही ज्ञान था। उन्हें उसके अचेतन मन का ज्ञान नहीं था। जब अचेतन मन की खोज हुई तो पता चला कि जो ज्ञान मन के विषय में था वह उसके क्षुद्र भाग का ही था। आधुनिक मनोविज्ञान की खोज, चिकित्सा विज्ञान के कार्यकर्ताओं की देन हैं। इन खोजों की शुरुआत डॉ॰ फ्रायड ने की। उनके शिष्य अलफ्रेड एडलर चार्ल्स युगं विलियम स्टेकिल और फ्रेंकजी ने इसे आगे बढ़ाया। डॉ॰ फ्रायड स्वयं प्रारंभ में शारीरिक रोगों के चिकित्सक थे। उनके यहाँ कुछ ऐसे रोगी आए जिनकी सब प्रकार की शारीरिक चिकित्सा होते हुए भी रोग जाता नहीं था। ऐसे कुछ जटिल रोगियों का उपचार डॉ॰ ब्रूअर ने केवल प्रतिदिन बातचीत करके तथा रोगी की व्यथा को प्रति दिन सुनकर किया। डॉ॰ ब्रूअर के इस अनुभव से यह पता चला कि मनुष्य के बहुत से शारीरिक ओर मानसिक रोग ऐसे भी होते हैं, जो किसी प्रकार की प्रबल भावनाओं के दमित होने से उत्पन्न हो जाते हैं, ओर जब इन भावनाओं का धीरे-धीरे प्रकाशन हो जाता है तो ये समाप्त भी हो जाते हैं। डॉ॰ फ़्रायड की प्रमुख देन दमित भावनाओं की खोज की ही है। इनकी खोज करते हुए उन्हें पता चला कि मुनष्य के मन के कई भाग हैं। साधारणतया जिस भाग को वह जानता है, वह उसका चेतन मन ही है। इस मन के परे मन का वह भाग है जहाँ मनुष्य का वह ज्ञान संचित रहता है जिसे वह बड़े परिश्रम के साथ इकट्ठा करता है। इस भाग में ऐसी इच्छाएँ भी उपस्थित रहती हैं जो वर्तमान में कार्यन्वित नहीं हो रही होतीं, परंतु जिन्हें व्यक्ति ने बरबस दबा दिया है। मन का यह भाग अवचेतन मन कहा जाता है। इसके परे मनुष्य का अचेतन मन है। मन के इस भाग में मुनष्य की ऐसी इच्छाएँ, आकांक्षाएँ, स्मृतियाँ और संवेग रहते हैं, जिन्हें उसे बरबस दबाना और भूल जाना पड़ता है। ये दमित भाव तथा इच्छाएँ व्यक्ति के अचेतन मन में संगठित हो जाती हैं और फिर वे उसके व्यक्तित्व में खिंचाव और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर देती हैं। इस प्रकार के दमित भावों, इच्छाओं ओर स्मृतियों को मानसिक ग्रंथियाँ कहा जाता हैं। मानसिक रोगी के मन में ऐसी अने प्रबल ग्रंथियाँ रहती हैं इनका रोगी को स्वयं ज्ञान नहीं रहता और उनकी स्वीकृति भी वह करना नहीं चाहता। ऐसी ही दमित ग्रंथियाँ अनेक प्रकार के मानसिक तथा शारीरिक रोगों में व्याप्त होती हैं। हिस्टीरिया का रोग उन्हीं में से एक हैं। यह रोग कभी कभी शारीरिक रोग बनकर प्रगट होता है तब इसे रूपांतररित हिस्टीरिया कहा जाता है। मनुष्य के अचेतन मन में न केवल दमित अवांछनीय और अनैतिक भाव रहते हैं, वरन् उन्हें दमन करनेवाली नैतिक धारणाएँ भी रहती हैं। इन नैतिक धारणाओं का ज्ञान व्यक्ति के चेतन मन को न होने के कारण उनमें सरलता से परविर्तन नहीं किया जा सकता। मनुष्य के सुस्वत्व और उसके अचेतन मन में उपस्थित वासनात्मक, असामाजिक भावों और इच्छाओं का संघर्ष मुनष्य के अनजाने ही होता है। मुनष्य का सुस्वत्व उस कुत्ते के समान है जो मनुष्य के अचेतन मन में उपस्थित असामाजिक विचारों और इच्छाओं को चेतना के स्तर पर आकर प्रकाशित नहीं होने देता। फिर ये दमित भाव अपना रूप बदलकर मनुष्य की जाग्रत अवस्था में अथवा उसकी स्वप्नावस्था में, जबकि उसका सुस्वत्व कुछ ढीला हो जाता है, रूप बदलकर प्रकाशित होते हैं। यही भाव अनेक प्रकार के रूप बदलकर शारीरिक रोगों अथवा आचरण के दोषों में प्रकाशित होते हैं। डॉ॰ फ्रायड ने स्वप्न के लिए नया विज्ञान ही खड़ा कर दिया। उनके कथनानुसार स्वप्न अचेतन मन में उपस्थित दमित भावनाओं के कार्यों का परिणाम है। किसी व्यक्ति के स्वप्न को जानकर और उसका ठीक अर्थ लगाकर हम उसके दमित भावों को जान सकते हैं और उसके मानसिक विभाजन को समाप्त करने में उसकी सहायता कर सकते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान की खोज डॉ॰ फ़्रायड के उपर्श्युक्त खोजों के आगे भी गई हैं। उनके शिष्य डॉ॰ युंग ने बताया कि मनुष्य के सुस्वत्व की जड़ केवल उसके व्यक्तिगत अनुभव में नहीं है, वरन् यह संपूर्ण मानवसमाज के अनुभव में है। इसी कारण जब मनुष्य समाज की मान्यताओं के प्रतिकूल आचरण करता है तो उसके भीतरी मन में अकारण ही दंड का भय उत्पन्न हो जाता है। यह भय तब तक नहीं जाता जब तक मनुष्य अपनी नैतिकता संबंधी भूल स्वीकार नहीं कर लेता और उसका प्रायश्चित नहीं कर डालता। इस तरह की आत्मस्वीकृति और प्रायश्चित से मनुष्य के भोगवादी स्वत्व और सुस्वत्व अर्थात् समाजहितकारी उपस्थित स्वत्व में एकता स्थापित हो जाती है। मनुष्य को मानसिक शांति न तो भोगवादी स्वत्व की अवहेलना से मिलती है और न सुस्वत्व की अवहेलना से। दोनों के समन्वय से ही मानसिक स्वास्थ्य और प्रसन्नता का अनुभव होता है। इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ॰ विलियम ब्राउन मन के उपर्युक्त सभी स्तरों के परे मनुष्य के व्यक्तित्व में उपस्थित एक ऐसी सत्ता को भी बताते हैं, जो देश और काल की सीमा के परे है। इसकी अनुभूति मनुष्य को मानसिक और शारीरिक शिथिलीकरण की अवस्था में होती है। उनका कथन है कि जब मनुष्य अपने सभी प्रकार के चिंतन को समाप्त कर देता है और जब वह इस प्रकार शांत अवस्था में पड़ जाता है, तब वह अपने ही भीतर उपस्थित एक ऐसी सत्ता से एकत्व स्थापित कर लेता है जो अपार शक्ति का केंद्र है और जिससे थोड़े समय के लिए भी एकत्व स्थापित करने पर अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग शांत हो जाते हैं। इससे एकत्व स्थापित करने के बाद मनुष्य के विचार एक नया मोड़ ले लेते हैं। फिर ए विचार रोगमूलक न होकर स्वास्थ्यमूलक हो जाते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान अब भगवान बुद्ध और महर्षि पातंजलि की खोजों की ओर जा रहा है। मन के उपर्युक्त तीन भागों के परे एक ऐसी स्थिति भी है जिसे एक ओर शून्य रूप और दूसरी ओर अनंत ज्ञानमय कहा जा सकता है। इस अवस्था में द्रष्टा और दृश्य एक हो जाते हैं और त्रिपुटी जन्य ज्ञान की समाप्ति हो जाती है। श्रेणी:मनोविज्ञान.

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आयुर्विज्ञान पारजैविकी

आयुर्विज्ञान पारजैविकी परजीवी विज्ञान की प्राचीनतम श्रेणी है, जो आयुर्विज्ञान या चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित है। यह मानव को प्रभावित/संक्रमित करने वाले परजीवियों का अध्ययन होता है। इसमें निम्न क्षेत्र आते हैं:-.

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आयुर्विज्ञान महाविद्यालय

आयुर्विज्ञान महाविद्यालय (मेडिकल कॉलेज) वे महाविद्यालय हैं जिनमें आयुर्विज्ञान की उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है। .

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आयुर्विज्ञान शिक्षा

आयुर्विज्ञान शिक्षा (मेडिकल एजूकेशन) से तात्पर्य उस किसी भी शिक्षा से है जो चिकित्सा कार्य करने वालों के लिए आवश्यक है। इसमें आरम्भिक शिक्षा और उसके बाद ली जाने वाली अतिरिक्त शिक्षा और प्रशिक्षण भी सम्मिलित है। ऐब्रैहम फ्लेक्सनर का कथन है कि प्राचीन काल से आयुर्विज्ञान में अंधविश्वास, प्रयोग तथा उस प्रकार के निरीक्षण का, जिसके अंत में विज्ञान का निर्माण होता है, विचित्र मिश्रण रहा है। ये तीनों सिद्धांत आज भी कार्य कर रहे हैं, यद्यपि उनका अनुपात अब बदल गया है। .

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आयुर्विज्ञान का इतिहास

सूत्रबद्ध विचारव्यंजन के हेतु आयुर्विज्ञान (मेडिसिन) के क्रमिक विकास को लक्ष्य में रखते हुए इसके इतिहास के तीन भाग किए जा सकते हैं: (1) आदिम आयुर्विज्ञान (2) प्राचीन आयुर्विज्ञान (3) अर्वाचीन आयुर्विज्ञान .

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आयुर्वेद

आयुर्वेद के देवता '''भगवान धन्वन्तरि''' आयुर्वेद (आयुः + वेद .

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आर्थर कॉनन डॉयल

सर आर्थर इग्नाशियस कॉनन डॉयल, डीएल (22 मई 1859 - जुलाई 7, 1930) एक स्कॉटिश चिकित्सक और लेखक थे जिन्हें अधिकतर जासूस शरलॉक होम्स की उनकी कहानियों (इन कहानियों को आम तौर पर काल्पनिक अपराध कथा के क्षेत्र में एक प्रमुख नवप्रवर्तन के तौर पर देखा जाता है) और प्रोफ़ेसर चैलेंजर के साहसिक कारनामों के लिए जाना जाता है। वह विज्ञान कल्पना कथाएँ, ऐतिहासिक उपन्यासों, नाटकों और रोमांस, कविता और विभिन्न कल्पना साहित्य के एक विपुल लेखक थे। वे एक सफल लेखक थे जिनकी अन्य रचनाओं में काल्पनिक विज्ञान कथाएं, ऐतिहासिक उपन्यास, नाटक एवं रोमांस, कविता और गैर-काल्पनिक कहानियां शामिल हैं। .

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आर्नी श्रीनिवासन रामकृष्णन

आर्नी श्रीनिवासन रामकृष्णन को भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु से हैं। श्रेणी:१९८२ पद्म भूषण.

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इस्लाम

इस्लाम (अरबी: الإسلام) एक एकेश्वरवादी धर्म है, जो इसके अनुयायियों के अनुसार, अल्लाह के अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद द्वारा मनुष्यों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय पुस्तक क़ुरआन की शिक्षा पर आधारित है। कुरान अरबी भाषा में रची गई और इसी भाषा में विश्व की कुल जनसंख्या के 25% हिस्से, यानी लगभग 1.6 से 1.8 अरब लोगों, द्वारा पढ़ी जाती है; इनमें से (स्रोतों के अनुसार) लगभग 20 से 30 करोड़ लोगों की यह मातृभाषा है। हजरत मुहम्मद साहब के मुँह से कथित होकर लिखी जाने वाली पुस्तक और पुस्तक का पालन करने के निर्देश प्रदान करने वाली शरीयत ही दो ऐसे संसाधन हैं जो इस्लाम की जानकारी स्रोत को सही करार दिये जाते हैं। .

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इस्लामी स्वर्ण युग

इबन रशुद जिसने दर्शनशास्त्र में इबनरशुवाद को जन्म दिया। अब्बासियों के राज में इस्लाम का स्वर्ण युग शुरु हुआ। अब्बासी खलीफा ज्ञान को बहुत महत्त्व देते थे। मुस्लिम दुनिया बहुत तेज़ी से विशव का बौद्धिक केन्द्र बनने लगी। कई विद्वानों ने प्राचीन युनान, भारत, चीन और फ़ारसी सभय्ताओं की साहित्य, दर्शनशास्र, विज्ञान, गणित इत्यादी से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन किया और उनका अरबी में अनुवाद किया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस के कारण बहुत बड़ा ज्ञानकोश इतिहास के पन्नों में खोने से रह गया। मुस्लिम विद्वानों ने सिर्फ अनुवाद ही नहीं किया। उन्होंने इन सभी विषयों में अपनी छाप भी छोड़ी। चिकित्सा विज्ञान में शरीर रचना और रोगों से संबंधित कई नई खोजें हूईं जैसे कि खसरा और चेचक के बीच में जो फर्क है उसे समझा गया। इब्ने सीना (९८०-१०३७) ने चिकित्सा विज्ञान से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो कि आगे जा कर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का आधार बनीं। इस लिये इब्ने सीना को आधुनिक चिकित्सा का पिता भी कहा जाता है। इसी तरह से अल हैथाम को प्रकाशिकी विज्ञान का पिता और अबु मूसा जबीर को रसायन शास्त्र का पिता भी कहा जाता है।R.

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कमल जयसिंह रणदिवे

डॉ कमल जयसिंह रणदिवे को भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। श्रेणी:१९८२ पद्म भूषण श्रेणी:भारतीय महिला चिकित्सक श्रेणी:भारतीय महिला.

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कर्नल महाकाली सीताराम राव

कर्नल महाकाली सीताराम राव को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये आंध्र प्रदेश राज्य से हैं। श्रेणी:१९६२ पद्म भूषण.

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कर्नल रामस्वामी दुरइस्वामी अय्यर

कर्नल रामस्वामी दुरइस्वामी अय्यर को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:१९६२ पद्म भूषण.

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कलन

कलन (Calculus) गणित का प्रमुख क्षेत्र है जिसमें राशियों के परिवर्तन का गणितीय अध्ययन किया जाता है। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं- अवकल गणित (डिफरेंशियल कैल्कुलस) तथा समाकलन गणित (इटीग्रल कैलकुलस)। कैलकुलस के ये दोनों शाखाएँ कलन के मूलभूत प्रमेय द्वारा परस्पर सम्बन्धित हैं। वर्तमान समय में विज्ञान, इंजीनियरी, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में कैल्कुलस का उपयोग किया जाता है। भारत में कैल्कुलस से सम्बन्धित कई कॉन्सेप्ट १४वीं शताब्दी में ही विकसित हो गये थे। किन्तु परम्परागत रूप से यही मान्यता है कि कैलकुलस का प्रयोग 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ तथा आइजक न्यूटन तथा लैब्नीज इसके जनक थे। .

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किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय(अंग्रेजी: King George's Medical University), लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित एक आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय है। यह किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज को विश्वविद्यालय में अपग्रेड कर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा १६ सितंबर, २००२ को स्थापित किया गया है। मूल महाविद्यालय की स्थापना १९११ में हुई थी। यह भारत एवं उत्तर प्रदेश के अन्य उत्कृष्ट आयुर्विज्ञान संस्थानों में से एक है। इसका परिसर शाहमीना मार्ग पर गोमती नदी के निकट चौक क्षेत्र में स्थित है। परिसर १००,०००वर्ग मीटर में फैला है एवं चारबाग रेलवे स्टेशन से ५ कि॰मी॰ दूर है। .

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क्रम-विकास से परिचय

क्रम-विकास किसी जैविक आबादी के आनुवंशिक लक्षणों के पीढ़ियों के साथ परिवर्तन को कहते हैं। जैविक आबादियों में जैनेटिक परिवर्तन के कारण अवलोकन योग्य लक्षणों में परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे जैनेटिक विविधता पीढ़ियों के साथ बदलती है, प्राकृतिक वरण से वो लक्षण ज्यादा सामान्य हो जाते हैं जो उत्तरजीवन और प्रजनन में ज्यादा सफलता प्रदान करते हैं। पृथ्वी की उम्र लगभग ४.५४ अरब वर्ष है। जीवन के सबसे पुराने निर्विवादित सबूत ३.५ अरब वर्ष पुराने हैं। ये सबूत पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ३.५ वर्ष पुराने बलुआ पत्थर में मिले माइक्रोबियल चटाई के जीवाश्म हैं। जीवन के इस से पुराने, पर विवादित सबूत ये हैं: १) ग्रीनलैंड में मिला ३.७ अरब वर्ष पुराना ग्रेफाइट, जो की एक बायोजेनिक पदार्थ है और २) २०१५ में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ४.१ अरब वर्ष पुराने पत्थरों में मिले "बायोटिक जीवन के अवशेष"। Early edition, published online before print. क्रम-विकास जीवन की उत्पत्ति को समझाने की कोशिश नहीं करता है (इसे अबायोजेनेसिस समझाता है)। पर क्रम-विकास यह समझाता है कि प्राचीन सरल जीवन से आज का जटिल जीवन कैसे विकसित हुआ है। आज की सभी जातियों के बीच समानता देख कर यह कहा जा सकता है कि पृथ्वी के सभी जीवों का एक साझा पूर्वज है। इसे अंतिम सार्वजानिक पूर्वज कहते हैं। आज की सभी जातियाँ क्रम-विकास की प्रक्रिया के द्वारा इस से उत्पन्न हुई हैं। सभी शख़्सों के पास जीन्स के रूप में आनुवांशिक पदार्थ होता है। सभी शख़्स इसे अपने माता-पिता से ग्रहण करते हैं और अपनी संतान को देते हैं। संतानों के जीन्स में थोड़ी भिन्नता होती है। इसका कारण उत्परिवर्तन (यादृच्छिक परिवर्तनों के माध्यम से नए जीन्स का प्रतिस्थापन) और लैंगिक जनन के दौरान मौजूदा जीन्स में फेरबदल है। इसके कारण संताने माता-पिता और एक दूसरे से थोड़ी भिन्न होती हैं। अगर वो भिन्नताएँ उपयोगी होती हैं तो संतान के जीवित रहने और प्रजनन करने की संभावना ज्यादा होती है। इसके कारण अगली पीढ़ी के विभिन्न शख्सों के जीवित रहने और प्रजनन करने की संभावना समान नहीं होती है। फलस्वरूप जो लक्षण जीवों को अपनी परिस्थितियों के ज्यादा अनुकूलित बनाते हैं, अगली पीढ़ियों में वो ज्यादा सामान्य हो जाते हैं। ये भिन्नताएँ धीरे-धीरे बढ़ती रहती हैं। आज देखी जाने वाली जीव विविधता के लिए यही प्रक्रिया जिम्मेदार है। अधिकांश जैनेटिक उत्परिवर्तन शख़्सों को न कोई सहायता प्रदान करते हैं, न उनकी दिखावट को बदलते हैं और न ही उन्हें कोई हानि पहुँचाते हैं। जैनेटिक ड्रिफ्ट के माध्यम से ये निष्पक्ष जैनेटिक उत्परिवर्तन केवल संयोग से आबादियों में स्थापित हो जाते हैं और बहुत पीढ़ियों तक जीवित रहते हैं। इसके विपरीत, प्राकृतिक वरण एक यादृच्छिक प्रक्रिया नहीं है क्योंकि यह उन लक्षणों को बचाती है जो जीवित रहने और प्रजनन करने के लिए जरुरी हैं। प्राकृतिक वरण और जैनेटिक ड्रिफ्ट जीवन के नित्य और गतिशील अंग हैं। अरबों वर्षों में इन प्रक्रियाओं ने जीवन के वंश वृक्ष की शाखाओं की रचना की है। क्रम-विकास की आधुनिक सोच १८५९ में प्रकाशित चार्ल्स डार्विन की किताब जीवजातियों का उद्भव से शुरू हुई। इसके साथ ग्रेगर मेंडल द्वारा पादपों पर किये गए अध्ययन ने अनुवांशिकी को समझने में मदद की। जीवाश्मों की खोज, जनसंख्या आनुवांशिकी में प्रगति और वैज्ञानिक अनुसंधान के वैश्विक नैटवर्क ने क्रम-विकास की क्रियाविधि की और अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान की है। वैज्ञानिकों को अब नयी जातियों के उद्गम (प्रजातीकरण) की ज्यादा समझ है और उन्होंने अब प्रजातीकरण की प्रक्रिया का अवलोकन प्रयोगशाला और प्रकृति में कर लिया है। क्रम-विकास वह मूल वैज्ञानिक सिद्धांत है जिसे जीववैज्ञानिक जीवन को समझने के लिए प्रयोग करते हैं। यह कई विषयों में प्रयोग होता है जैसे आयुर्विज्ञान, मानस शास्त्र, जैव संरक्षण, मानवशास्त्र, फॉरेंसिक विज्ञान, कृषि और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक विषय। .

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कृत्रिम अंग

चिकित्सा विज्ञान के सन्दर्भ में शरीर के किसी गायब या क्षत्रिग्रस्त अंग के स्थान पर लगायी गयी कृत्रिम व्यवस्था को कृत्रिम अंग (prosthesis) कहते हैं। श्रेणी:आयुर्विज्ञान.

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कृष्णस्वामी श्रीनिवास संजीवी

कृष्णस्वामी श्रीनिवास संजीवी को भारत सरकार द्वारा सन १९७६ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु से हैं। श्रेणी:१९७६ पद्म भूषण.

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केशवराव कृष्णराव दांते

केशवराव कृष्णराव दांते को चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९६९ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये महाराष्ट्र से हैं। दांते, केशवराव कृष्णराव.

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केवल कृष्ण तलवार

केवल कृष्ण तलवार को भारत सरकार द्वारा सन २००६ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये चंडीगढ़ से हैं। .

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केआईआईटी विश्वविद्यालय

केआईआईटी विश्वविद्यालय (कलिंग प्रौद्योगिकी संस्थान), भारतीय राज्य ओडिशा के भुवनेश्वर में  एक सह-शिक्षा, स्वायत्त विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग, जैव प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, प्रबंधन, कानून, कंप्यूटर अनुप्रयोग, ग्रामीण प्रबंधन, फैशन, फिल्म अध्ययन, पत्रकारिता और Sculpturing पाठ्यक्रमों में स्नातक और स्नातकोत्तर  प्रदान करता है।  किट विश्वविद्यालय को २००४ में विश्वविद्यालय  क दर्जा दिया गया था।  क्याम्पस ६ का द्वार केआईआईटी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग राष्ट्रीय स्तर में 5 वीं  स्थान दिया गया है। .

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कोलुथर गोपालन

कोलुथर गोपालन को सन २००३ में भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:२००३ पद्म भूषण.

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कोल्ली श्रीनाथ रेड्डी

कोल्ली श्रीनाथ रेड्डी को भारत सरकार द्वारा सन २००५ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:२००५ पद्म भूषण.

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अनिल कोहली

अनिल कोहली को भारत सरकार द्वारा सन २००५ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। ये दिल्ली राज्य से हैं। श्रेणी:२००५ पद्म भूषण श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अपस्मार

अपस्मार या मिर्गी (वैकल्पिक वर्तनी: मिरगी, अंग्रेजी: Epilepsy) एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है।, हिन्दुस्तान लाइव, १८ नवम्बर २००९ दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग आनुवांशिक होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है।, वेब दुनिया, डॉ॰ वोनोद गुप्ता। १७ नवम्बर को विश्व भर में विश्व मिरगी दिवस का आयोजन होता है। इस दिन तरह-तरह के जागरुकता अभियान और उपचार कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।।। द टाइम्स ऑफ इंडिया।, याहू जागरण, १७ नवम्बर २००९ .

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अरविंदर सिंह सोइन

अरविंदर सिंह सोइन (Arvinder Singh Soin) एक सर्जन और लीवर प्रत्यारोपण के क्षेत्र में अग्रणी है। वर्तमान में, वह लिवर प्रत्यारोपण और रीजनेटिव चिकित्सा संस्थान, मेदांता-द मेडिसिटी, गुड़गांव, भारत के अध्यक्ष हैं। 2010 में, डॉक्टरी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा अरविंदर सिंह को पद्म श्री से सम्मानित किया गया। .

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अर्चना शर्मा

डॉ॰ अर्चना शर्मा जिनेवा में दुनिया की सबसे बड़ी भूमिगत प्रयोगशाला सर्न में स्टाफ फिजिसिस्ट के रूप में कार्यरत हैं। डॉ॰ अर्चना शर्मा के अनुसार दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सर्न, जहाँ वह काम करती हैं, उसे विज्ञान का तीर्थ कहा जाता है। अपनी शोध परियोजना में कहा कि बड़े पार्टिकिल कोलाइडर एलएचसी की सुरंगनुमा ट्यूब में लगभग प्रकाश के वेग से चक्कर काट रहे प्रोटॉनों की आपस में टक्कर करवा दी गई। सर्न में मौजूद दुनिया के सबसे बड़े प्रयोग की सफलता से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य से पर्दा उठ सकता है। अर्चना शर्मा को भारत सरकार द्वारा सन १९८४ में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल राज्य से हैं। .

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अर्बुदविज्ञान

अर्बुदविज्ञान (Oncology) आयुर्विज्ञान की वह शाखा है जो कैंसर से संबंधित है। अर्बुदविज्ञान में -.

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अल-राज़ी

मुहम्मद इब्न जकारिया राजी (अरबी: أبو بكر محمد بن يحيى بن زكريا الرازي‎ अबू बक्र मोहम्मद बिन याहिया बिन जकारिया अल-राजी; फारसी: محمد زکریای رازی‎ मोहम्मद-ए-जकारिया-ए-राजी), फारस (इरान) के प्रसिद्ध हकीम थे (संभवत: सन् ८५०-९२३)। इनका जन्म तेहरान के पास राज नामक नगर में हुआ था। इनके जन्म तथा मृत्यु का यथार्थ समय अनिश्चित है। ये फारस की खाड़ी पर स्थित बसरा नगर में बस गए थे। अरबी में चिकित्साशास्त्र पर पुस्तक लिखनेवाले हकीमों में इन्हें अग्रगण्य समझा जाता है। इन्होंने लगभग २०० पुस्तकें लिखीं, जिनमें चिकित्साशास्त्र की अन्य पुस्तकों के सिवाय इस विषय का एक सार्वभौम कोश तथा गणित, ज्योतिष, धर्म और दर्शनशास्त्र पर भी पुस्तकें थीं। अपनी एक पुस्तक में इन्होंने सर्वप्रथम चेचक को मसूरिका से भिन्न रोग बताया। इनकी अरबी की पुस्तकों का अनुवाद लैटिन भाषा में किया गया और इस प्रकार इनके द्वारा संचित ज्ञान का यूरोप में प्रसार हुआ। .

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अल-किंदी

अल-किंदी(८०१ - ८७३)एक अरब मुस्लिम दार्शनिक थे | .

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अंतःस्राविकी

अंत:स्राव विद्या (एंडोक्राइनॉलोजी) आयुर्विज्ञान की वह शाखा है जिसमें शरीर में अंतःस्राव या हारमोन उत्पन्न करने वाली ग्रंथियों का अध्ययन किया जाता है। उत्पन्न होने वाले हारमोन का अध्ययन भी इसी विद्या का एक अंश है। हारमोन विशिष्ट रासायनिक वस्तुएँ हैं जो शरीर की कई ग्रंथियों में उत्पन्न होती हैं। ये हारमोन अपनी ग्रंथियों से निकलकर रक्त में या अन्य शारीरिक द्रवों में, जैसे लसीका आदि में, मिल जाते हैं और अंगों में पहुँचकर उनसे विशिष्ट क्रियाएँ करवाते हैं। हारमोन शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है। सबसे पहले सन् 1902 में बेलिस और स्टार्लिंग ने इस शब्द का प्रयोग किया था। सभी अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हारमोन उत्पन्न करती हैं। .

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अंजू शर्मा

डॉ० अंजू शर्मा (जन्म: ५ अगस्त, १९६०) एक जानीमानी भारतीय लेखिका, शिक्षिका एवं चिकित्सिका हैं। आयुर्विज्ञान पर अब तक इनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वह चिकित्सा सेवा सम्मान २००९ से पुरस्कृत व सम्मानित हैं। .

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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ का भवन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये कार्यरत प्रमुख संस्था है। यह उत्तर प्रदेश शासन के भाषा विभाग के अधीन है। अन्य कार्यक्रमों के अलावा हिन्दी के प्रचार प्रसार हेतु विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिये साहित्यकारों को यह कई पुरस्कार भी प्रदान करती है। प्रदेश का मुख्य मन्त्री इसका पदेन अध्यक्ष होता है। वही कार्यकारी अध्यक्ष व निदेशक की नियुक्ति करता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

नैदानिक आयुर्विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, चिकित्साविज्ञान, औषधिशास्त्र, औषधीविज्ञान

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