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आनन्दपुर साहिब

सूची आनन्दपुर साहिब

आनन्दपुर साहिब भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्य पंजाब के रूपनगर ज़िले का एक इतिहासक नगर है। .

17 संबंधों: चालीस मुक्त, दसम ग्रंथ, पंज प्यारे, बपतिस्मा, बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश), बैसाखी, भारत में रेलवे स्टेशनों की सूची, माता जीतो, मृतकों की मण्डी, होला मोहल्ला, ज़फ़रनामा, जुझार सिंह, ख़ालसा, गुरु गोबिन्द सिंह, आनन्दपुर, आनंदपुर साहिब प्रस्ताव, अजीतगढ़

चालीस मुक्त

गुरू गोविन्द सिंह जी ने मुगलों के विरूद्ध 1705 ई. में आखिरी लड़ाई मुक्तसर में लडी थी। इस लड़ाई के दौरान गुरू जी के चालीस शिष्य शहीद हो गए थे। गुरू जी के इन चालीस शिष्यों को चालीस मुक्तों के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं के नाम पर उस जगह का नाम मुक्तसर रखा गया था। माना जाता है कि अपने चालीस शिष्यों के आग्रह पर ही गुरू जी ने आनंदपुर साहिब किले को छोड़ा था। कुछ समय बाद इस जगह को मुगल सैनिकों द्वारा घेर लिया गया था। गुरू जी ने अपने शिष्यों से कहा था कि अगर वह चाहे तो उन्हें छोड़कर जा सकते हैं लेकिन उन्हें यह बात लिख कर देनी होगी। उन्हें यह लिखना होगा कि वह अब गुरू के साथ रहना नहीं चाहते हैं और अब वह उनके शिष्य नहीं है। जब सभी शिष्य वापस लौट कर अपने-अपने घर में गए तो उनके परिवार के सदस्यों ने उनका स्वागत नहीं किया और कहा कि वह मुसीबत के समय में गुरू जी को अकेले छोड़कर आ गए है। शिष्यों को अपने ऊपर शर्म आने लगी और उनकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह दुबारा से गुरू गोविन्द सिंह का सामना कर सकें। कुछ समय बाद समय बाद मुगल सैनिकों ने गुरू जी को ढूंढ लिया। इस जगह के समीप ही एक तालाब था जिसे खिदराने दी ढाब कहा जाता था, गुरू जी के चालीस सिक्खों ने मुगल सैनिकों से यहीं पर युद्ध किया था और इस लड़ाई में वह सफल भी हुए थे। तभी से गुरू जी इन चालीस शिष्यों को चालीस मुक्तों के नाम से, मुक्ति का "सर" (सरोवर) जाना जाता है। गुरुद्वारों में रोज़ाना पढ़ी जाने वाली अरदास में जिन बलिदानियों को याद किया जाता है, उनमें इन चालीस मुक्तों का भी नाम है। श्रेणी:सिख योद्धा श्रेणी:सिख धर्म.

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दसम ग्रंथ

दसम ग्रन्थ, सिखों का धर्मग्रन्थ है जो सतगुर गोबिंद सिंह जी की पवित्र वाणी एवं रचनाओ का संग्रह है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवनकाल में अनेक रचनाएँ की जिनकी छोटी छोटी पोथियाँ बना दीं। उनके देह त्यागने के बाद उनकी धर्म पत्नी माता सुन्दरी की आज्ञा से भाई मणी सिंह खालसा और अन्य खालसा भाइयों ने गुरु गोबिंद सिंह जी की सारी रचनाओ को इकठा किया और एक जिल्द में चढ़ा दिया जिसे आज "दसम ग्रन्थ" कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो गुरु गोबिंद सिंह जी ने रचना की और खालसे ने सम्पादना की। दसम ग्रन्थ का सत्कार सारी सिख कौम करती है। दसम ग्रंथ की वानियाँ जैसे की जाप साहिब, तव परसाद सवैये और चोपाई साहिब सिखों के रोजाना सजदा, नितनेम, का हिस्सा है और यह वानियाँ खंडे बाटे की पहोल, जिस को आम भाषा में अमृत छकना कहते हैं, को बनाते वक्त पढ़ी जाती हैं। तखत हजूर साहिब, तखत पटना साहिब और निहंग सिंह के गुरुद्वारों में दसम ग्रन्थ का गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ परकाश होता हैं और रोज़ हुकाम्नामे भी लिया जाता है। दसम ग्रंथ साहिब के हुए सनातन टीकों और अर्थों के कारण कुछ सिख विदवान दसम ग्रंथ को सतगुर गोबिंद सिंह की रचना नहीं मानते और गुरु ग्रंथ साहिब के कुछ शब्दों को भी ग्रंथों में मिलावट की दृष्टि से देखते हैं। अकाल तख़्त ने ऐसे सब विदवानो को सिख समाज से बाहर निकाल दिया है, लेकिन उन का परचार इन्टरनेट पर जारी है। .

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पंज प्यारे

पंच प्यारे पंज प्यारे अथवा पांच प्यारे (ਪੰਜ ਪਿਆਰੇ,, शाब्दिक अर्थ पाँच प्यारे लोग), सिख गुरु गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा १३ अप्रैल १६९९ को आनन्दपुर साहिब के ऐतिहासिक दिवा में पाँच लोगों भाई साहिब सिंह, भाई धरम सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई दया सिंह को दिया गया नाम है। उन्होंने ख़ालसा पंथ के केन्द्र की स्थापना की। .

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बपतिस्मा

ईसाईयत में, बपतिस्मा (ग्रीक शब्द βαπτίζω baptizo से: "डुबोना", "प्रक्षालन करना", अर्थात् "धार्मिक स्नान") जल के प्रयोग के साथ किया जाने वाला एक धार्मिक कृत्य है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को चर्च की सदस्यता प्रदान की जाती है। स्वयं ईसा मसीह का बपतिस्मा किया गया था। प्रारंभिक ईसाईयों में उम्मीदवार (अथवा "बपतिस्माधारी (Baptizand)") को पूरी तरह या आंशिक रूप से डुबोना बपतिस्मा का सामान्य रूप था। हालांकि बपतिस्मा-दाता जॉन (John the Baptist) द्वारा अपने बपतिस्मा के लिये एक गहरी नदी का प्रयोग निमज्जन का सुझाव दिया गया है, लेकिन ईसाई बपतिस्मा के संबंध में तीसरी शताब्दी और उसके बाद के चित्रात्मक तथा पुरातात्विक प्रमाण यह सूचित करते हैं कि सामान्य रूप से उम्मीदवार को पानी में खड़ा रखा जाता था और उसके शरीर के ऊपरी भाग पर जल छिड़का जाता था। बपतिस्मा के अब प्रयोग किये जाने वाले अन्य सामान्य रूपों में माथे पर तीन बार जल छिड़कना शामिल है। सोलहवीं सदी में हल्द्रिच ज़्विंगली (Huldrych Zwingli) द्वारा इसकी आवश्यकता को नकारे जाने तक बपतिस्मा को मोक्ष-प्राप्ति के लिये कुछ हद तक आवश्यक समझा जाता था। चर्च के प्रारंभिक इतिहास में शहादत को "खून से बपतिस्मा" के रूप में पहचाना जाता था, ताकि जिन शहीदों का बपतिस्मा जल के द्वारा न किया गया हो, उन्हें बचाया जा सके.

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बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश)

बिलासपुर भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश का एक जिला है। सतलुज नदी के दक्षिण पूर्वी हिस्‍से में स्थित बिलासपुर समुद्र तल से 670 मीटर की ऊंचाई पर है। यह नगर धार्मिक पर्यटन में रूचि रखने वाले लोगों को काफी रास आता है। न्‍यू‍ बिलासपुर टाउनशिप को देश का सबसे प्रथम नियोजित हिल टाउन के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। यहां के नैना देवी का मंदिर निकट और दूर दराज के लोगों के बीच आकर्षण का केन्‍द्र रहता है। यहां बना भांखडा बांध भी अपनी ग्रेविटी के लिए पूरे विश्‍व में जाना जाता है। बिलासपुर को प्राचीन किलों के लिए भी जाना जाता है। यहां आने वाले सैलानियों का अनुभव अन्‍य स्‍थानों से एकदम अलग होता है। कुछ अलग तरह के पर्यटन के शौकीन लोगों को यह स्‍थान काफी पसंद आता है। इसके उत्‍तर में मंडी और हमीरपुर जिले हैं, पश्चिम में ऊना और दक्षिण में सोलन जिले का नालागढ़ का क्षेत्र है। .

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बैसाखी

बैसाखी नाम वैशाख से बना है। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं। इसीलिए बैसाखी पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है। यह रबी की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है। इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें गुरु गोविंद सिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। सिख इस त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। .

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भारत में रेलवे स्टेशनों की सूची

शिकोहाबाद तहसील के ग्राम नगला भाट में श्री मुकुट सिंह यादव जो ग्राम पंचायत रूपसपुर से प्रधान भी रहे हैं उनके तीन पुत्र हैं गजेंद्र यादव नगेन्द्र यादव पुष्पेंद्र यादव प्रधान जी का जन्म सन १९५० में हुआ था उन्होंने अपना सारा जीवन ग़रीबों के लिए क़ुर्बान कर दिया था और वो ५ भाईओ में सबसे छोटे थे और अपने परिवार को बाँधे रखा ११ मार्च २०१५ को उनका देहावसान हो गया ! वो आज भी हमारे दिलों में ज़िंदा हैं इस लेख में भारत में रेलवे स्टेशनों की सूची है। भारत में रेलवे स्टेशनों की कुल संख्या 7,000 और 8,500 के बीच अनुमानित है। भारतीय रेलवे एक लाख से अधिक लोगों को रोजगार देने के साथ दुनिया में चौथा सबसे बड़ा नियोक्ता है। सूची तस्वीर गैलरी निम्नानुसार है। .

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माता जीतो

माता जीतो (गुरमुखी: ਮਾਤਾ ਜੀਤੋ, शाहमुखी: ماتا جیتو) गोविन्द सिंह की तीन पत्नियों में प्रथम पत्नी थी। युगल का विवाह २१ जून १६७७ को हुआ और उनके तीन बच्चे थे: जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह। .

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मृतकों की मण्डी

मृतकों की मण्डी(Market Place of Dead) पंजाब आनंदपुर साहिब के निकट एक डेरा (शिविर) है। यह स्थान चंडीगढ़ से आनंदपुर साहिब जाती सड़क पर जाते हुए इतिहासक गुरदुआरे से कुछ पहले बाई तरफ मुडती लिंक सडक पर करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। .

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होला मोहल्ला

होला मोहल्ला सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनन्दपुर साहिब मे होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है। सिखों के लिये यह धर्मस्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए दशम गुरू गोविंद सिंह जी ने होली के लिए पुल्लिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया। गुरु जी इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग की प्रगति चाहते थे। होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ: दिन तक चलता है। इस अवसर पर, भांग की तरंग में मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। जुलूस तीन काले बकरों की बलि से प्रारंभ होता है। एक ही झटके से बकरे की गर्दन धड़ से अलग करके उसके मांस से 'महा प्रसाद' पका कर वितरित किया जाता है। पंज पियारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। कहते है गुरु गोबिन्द सिंह (सिक्खों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है। .

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ज़फ़रनामा

ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' गुरु गोविंद सिंह द्वारा मुग़ल शासक औरंगज़ेब को लिखा गया था। ज़फ़रनामा, दसम ग्रंथ का एक भाग है और इसकी भाषा फ़ारसी है। भारत के गौरवमयी इतिहास में दो पत्र विश्वविख्यात हुए। पहला पत्र छत्रपति शिवाजी द्वारा राजा जयसिंह को लिखा गया तथा दूसरा पत्र गुरु गोविन्द सिंह द्वारा शासक औरंगज़ेब को लिखा गया, जिसे ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' कहते हैं। नि:संदेह गुरु गोविंद सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे। .

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जुझार सिंह

साहिबजादा जुझार सिंह (14 मार्च, 1691 – 7 दिसम्बर 1705), गुरु गोविन्द सिंह के द्वितीय पुत्र थे। वे माता जीतो के गर्भ से आनन्दपुर साहिब में जनमे थे। नानकशाही पंचांग के अनुसार उनका जन्मदिन अब ९ अप्रैल को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। .

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ख़ालसा

खालसा सिख धर्म के विधिवत् दीक्षाप्राप्त अनुयायियों सामूहिक रूप है। खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिन्द सिंह जी ने १६९९ को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया तथा तत्पश्चात् उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। सतगुरु गोबिंद सिंह ने खालसा महिमा में खालसा को "काल पुरख की फ़ौज" पद से निवाजा है। तलवार और केश तो पहले ही सिखों के पास थे, गुरु गोबिंद सिंह ने "खंडे बाटे की पाहुल" तयार कर कछा, कड़ा और कंघा भी दिया। इसी दिन खालसे के नाम के पीछे "सिंह" लग गया। शारीरिक देख में खालसे की भिन्ता नजर आने लगी। पर खालसे ने आत्म ज्ञान नहीं छोड़ा, उस का प्रचार चलता रहा और आवश्यकता पड़ने पर तलवार भी चलती रही। .

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गुरु गोबिन्द सिंह

गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है। उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें 'सर्वस्वदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। .

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आनन्दपुर

* आनन्दपुर साहिब.

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आनंदपुर साहिब प्रस्ताव

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव वर्ष 1973 में आनंदपुर साहिब में पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में पंजाब को एक स्वायत्त राज्य के रूप में स्वीकारने तथा केंद्र को विदेश मामलों, मुद्रा, रक्षा और संचार सहित केवल पाँच दायित्व अपने पास रखते हुए बाकी के अधिकार राज्य को देने संबंधी बातें कही गईं थी। इस प्रस्ताव को ख़ालिस्तान आंदोलन की शुरुआत माना जाता है। .

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अजीतगढ़

अजीतगढ़ (ਮੋਹਾਲੀ, Mohali) चंडीगढ़ के पड़ोस में एक शहर है और भारत के राज्य पंजाब, का १८वाँ जिला है। इसका आधिकारिक नाम गुरु गोविंद सिंह के ज्येष्ठ पुत्र साहिबज़ादा अजीत सिंह की याद में (एस ए एस नगर) रखा गया है। अजीतगढ़, चंडीगढ़ और पंचकुला मिल कर चंडीगढ़ त्रिनगरी कहलाते हैं। यह पहले रूपनगर जिले का हिस्सा था, पर हाल के कुछ वर्षों में इसे अलग जिला बना दिया गया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

आनंदपुर साहिब, केसगढ़ साहिब

निवर्तमानआने वाली
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