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आकाश

सूची आकाश

ऊँचाई से वायुयान द्वारा आकाश का दृष्य किसी भी खगोलीय पिण्ड (जैसे धरती) के वाह्य अन्तरिक्ष का वह भाग जो उस पिण्ड के सतह से दिखाई देता है, वही आकाश (sky) है। अनेक कारणों से इसे परिभाषित करना कठिन है। दिन के प्रकाश में पृथ्वी का आकाश गहरे-नीले रंग के सतह जैसा प्रतीत होता है जो हवा के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन के परिणामस्वरूप घटित होता है। जबकि रात्रि में हमे धरती का आकाश तारों से भरा हुआ काले रंग का सतह जैसा जान पड़ता है। .

46 संबंधों: टार्डीग्रेड, झारखण्ड के आदिवासी त्योहार, नाक्षत्र समय, निर्वात, नक्षत्र, नूह, नीला, पदार्थ (भारतीय दर्शन), पहला विश्व युद्ध, पक्षी, प्राकृतिक दृश्य, प्रकाशिक संचार, पृथ्वी, फैरो, बलराज साहनी, बाथौ, ब्रह्म पुराण, बृहस्पति (ज्योतिष), भूकेंद्रीय कक्षा, मन्दाकिनी, महाभूत, लियोनिड मिटियर शावर, सारस (पक्षी), संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, स्थिति कोण, सेना, हिन्दू देवी देवताओं की सूची, होली की कहानियाँ, वायु, खाटूश्यामजी, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, गगन, ग्रोट रेबर, आइएसओ ३१, इन्द्रधनुष, क्षितिज, कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद, कृत्तिका, कैम्ब्रिज के ड्यूक राजकुमार विलियम तथा कैथरीन मिडलटन का विवाह, अयन (खगोलविज्ञान), उल्का, ऋषि, छांदोग्य उपनिषद, ॐ नमः शिवाय, २०११, ५ अक्टूबर

टार्डीग्रेड

टार्डीग्रेड (Tardigrade) एक जल में रहने वाला आठ-टाँगों वाला सूक्ष्मप्राणी है। इन्हें सन् 1773 में योहन गेट्ज़ा नामक जीववैज्ञानिक ने पाया था। टार्डीग्रेड पृथ्वी पर पर्वतों से लेकर गहरे महासागरों तक और वर्षावनों से लेकर अंटार्कटिका तक लगभग हर जगह रहते हैं। टार्डीग्रेड पृथ्वी का सबसे प्रत्यास्थी (तरह-तरह की परिस्थितियाँ झेल सकने वाला) प्राणी है। यह 1 केल्विन (−272 °सेंटीग्रेड) से लेकर 420 केल्विन (150 °सेंटीग्रेड) का तापमान और महासागरों की सबसे गहरी गर्तो में मौजूद दबाव से छह गुना अधिक दबाव झेल सकते हैं। मानवों की तुलना में यह सैंकड़ों गुना अधिक विकिरण (रेडियेशन) में जीवित रह सकते हैं और अंतरिक्ष के व्योम में भी कुछ काल तक ज़िन्दा रहते हैं। यह 30 वर्षों से अधिक बिना कुछ खाए-पिए रह सकते हैं और धीरे-धीरे लगभग पूरी शारीरिक क्रियाएँ रोक लेते हैं और उनमें सूखकर केवल 3% जल की मात्रा रह जाती है। इसके बाद जल व आहार प्राप्त होने पर यह फिर क्रियशील हो जाते हैं और शिशु जन सकते हैं। फिर भी औपचारिक रूप से इन्हें चरमपसंदी नहीं माना जाता क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में यह जितनी अधिक देर रहें इनकी मृत्यु होने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है जबकि सच्चे चरमपसंदी जीव अलग-अलग उन चरम-परिस्थितियों में पनपते हैं जिनके लिए वे क्रमविकास (एवोल्यूशन) की दृष्टि से अनुकूल हों। .

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झारखण्ड के आदिवासी त्योहार

झारखंड में कुल ३२ जनजातिया मिलकर रह्ती है। एक विशाल सांस्कृतिक प्रभाव होने के साथ साथ, झारखंड यहाँ के मनाये जाने वाले त्योहारों की मेजबानी के लिए जाना जाता है। इसके उत्सव प्रकृति के कारण यह भारत की ज्वलंत आध्यात्मिक कैनवास पर भी कुछ अधिक रंग डालता है। यह राज्य प्राचीन काल के संदर्भ में बहुत मायने रखता है। झारखंड में पूरे मज़ा और उल्लास के साथ सभी त्योहारो को मनाया जाता है। देशभर में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों को भी झारखंड में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस राज्य में मनाये जाने वाले त्योहारों से झारखंड का भारत में सांस्कृतिक विरासत के अद्भुत उपस्थिति का पता चलता है। हालाकि झारखंड के मुख्य आकर्षण आदिवासी त्योहारों के उत्सव में होता है। यहाँ की सबसे प्रमुख, उल्लास के साथ मनायी जाने वाली त्योहारो में से एक है सरहुल। .

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नाक्षत्र समय

नक्षत्र समय (Sidereal time) समयमापन की एक विधि है जिसका उपयोग खगोलविज्ञानी (astronomers) किसी नक्षत्र विशेष को रात्रि में अपने दूरदर्शी की सहायता से देखने के लिये करते हैं। इससे उन्हें पता लगता है कि दूरदर्शी का मुख किस समय किस दिशा में रखने से वह नक्षत्र दिखाई देगा। प्रेक्षण के किसी एक स्थान से आकाश में जिस स्थान पर कोई तारा दिखाई पडता है, अगली रात उसी नक्षत्र-समय पर लगभग उसी दिशा में मिलेगा। जिस प्रकार सूर्य और चंद्रमा पूर्व में उगते हुए तथा पश्चिम में अस्त होते हुए मालूम पड़ते हैं, उसी तरह अन्य नक्षत्र भी। 'सौर समय' और 'नक्षत्र समय' दोनो ही पृथ्वी की अपनी ध्रुवीय अक्ष पर घूर्णन गति की नियमितता (regularity) पर आधारित हैं। .

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निर्वात

निर्वात को प्रदर्शित करने हेतु एक पम्प जब आकाश (स्पेस) के किसी आयतन में कोई पदार्थ नहीं होता तो कहा जाता है कि वह आयतन निर्वात (वैक्युम्) है। निर्वात की स्थिति में गैसीय दाब, वायुमण्डलीय दाब की तुलना में बहुत कम होता है। किन्तु स्पेस का कोई भी आयतन पूर्णतः निर्वात हो ही नहीं सकता। .

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नक्षत्र

आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुड़े हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र सूची अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध के वेदांग ज्योतिष में मिलती है। भागवत पुराण के अनुसार ये नक्षत्रों की अधिष्ठात्री देवियाँ प्रचेतापुत्र दक्ष की पुत्रियाँ तथा चन्द्रमा की पत्नियाँ हैं। .

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नूह

नूह (इस्लाम में) या नोआ (Noah) इब्राहीम में श्रद्धा रखने वाले धर्मों (ईसाईयत, यहूदी और इस्लाम) के एक प्रमुख संदेशवाहक और पूर्वज थे। इनको जलप्रलय के समय न्यायोचित प्राणियों को बचाने के लिए जाना जाता है। जिस नाव पर सवार होकर सब प्राणी बचे उसको नोआ की नाव (Ark of Noah, कश्ती नूह) नाम से जाना जाता है। .

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नीला

नीला रंग वह है, जिसे प्रकाश के प्रत्यक्ष वर्णक्रम की 440–490 nm की तरंगदैर्घ्य द्वारा दृश्य किया जाता है। यह एक संयोजी प्राथमिक रंग है। इसका सम्पूरक रंग पीला है, यदि HSL एवं HSV वर्ण चक्र पर देखें तो। परंपरागत वर्णचक्र पर इसका सम्पूरक रंग है नारंगी। भारत का राष्ट्रीय क्रीडा़ रंग भी नीला ही है। यह धर्म-निर्पेक्षता दिखलाता है। .

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पदार्थ (भारतीय दर्शन)

मनुष्य सर्वदा से ही विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वस्तुओं द्वारा चारों तरफ से घिरा हुआ है। सृष्टि के आविर्भाव से ही वह स्वयं की अन्त:प्रेरणा से परिवर्तनों का अध्ययन करता रहा है- परिवर्तन जो गुण व्यवहार की रीति इत्यादि में आये हैं- जो प्राकृतिक विज्ञान के विकास का कारक बना। सम्भवत: इसी अन्त: प्रेरणा के कारण महर्षि कणाद ने 'वैशेषिक दर्शन' का आविर्भाव किया। महर्षि कणाद ने भौतिक राशियों (अमूर्त) को द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय के रूप में नामांकित किया है। यहाँ 'द्रव्य' के अन्तर्गत ठोस (पृथ्वी), द्रव (अप्), ऊर्जा (तेजस्), गैस (वायु), प्लाज्मा (आकाश), समय (काल) एवं मुख्यतया सदिश लम्बाई के सन्दर्भ में दिक्, 'आत्मा' और 'मन' सम्मिलित हैं। प्रकृत प्रसंग में वैशेषिक दर्शन का अधिकारपूर्वक कथन है कि उपर्युक्त द्रव्यों में प्रथम चार सृष्टि के प्रत्यक्ष कारक हैं, और आकाश, दिक् और काल, सनातन और सर्वव्याप्त हैं। वैशेषिक दर्शन 'आत्मा' और 'मन' को क्रमश: इन्द्रिय ज्ञान और अनुभव का कारक मानता है, अर्थात् 'आत्मा' प्रेक्षक है और 'मन' अनुभव प्राप्त करने का उसका उपकरण। इस हेतु पदार्थमय संसार की भौतिक राशियों की सीमा से बहिष्कृत रहने पर भी, वैशेषिक दर्शन द्वारा 'आत्मा' और 'मन' को भौतिक राशियों में सम्मिलित करना न्याय संगत प्रतीत होता है, क्योंकि ये तत्व प्रेक्षण और अनुभव के लिये नितान्त आवश्यक हैं। तथापि आधुनिक भौतिकी के अनुसार 'आत्मा' और 'मन' के व्यतिरिक्त, प्रस्तुत प्रबन्ध में 'पृथ्वी' से 'दिक्' पर्यन्त वैशेषिकों के प्रथम सात द्रव्यों की विवेचना करते हुए भौतिकी में उल्लिखित उनके प्रतिरूपों के साथ तुलनात्मक अघ्ययन किया जायेगा। .

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पहला विश्व युद्ध

पहला विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक मुख्य तौर पर यूरोप में व्याप्त महायुद्ध को कहते हैं। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ़्रीका तीन महाद्वीपों और समुंदर, धरती और आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध कहते हैं। पहला विश्व युद्ध लगभग 52 माह तक चला और उस समय की पीढ़ी के लिए यह जीवन की दृष्टि बदल देने वाला अनुभव था। क़रीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अंदाज़न एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गए। इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे। विश्व युद्ध ख़त्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी (हैप्सबर्ग) और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुई और अमेरिका निश्चित तौर पर एक 'महाशक्ति ' बन कर उभरा। .

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पक्षी

pages.

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प्राकृतिक दृश्य

स्विस आल्प्स की ऐशिना झील, एक अत्यंत विविधतापूर्ण प्राकृतिक दृश्य का एक उदाहरण. तोलिमा कोलम्बिया की प्राकृतिक दृश्य संबंधी तस्वीर बर्न में आरे नदी प्राकृतिक दृश्य भूमि के किसी एक हिस्से की सुस्पष्ट विशेषताएं हैं, जिनमें इसके प्राकृतिक स्वरूपों के भौतिक तत्त्व, जल निकाय जैसे कि नदियाँ, झीलें एवं समुद्र, प्राकृतिक रूप से उगनेवाली वनस्पतियों सहित धरती पर रहने वाले जीव-जंतु, मिट्टी से बनी उपयोगी मानव निर्मित वस्तुओं सहित भवन एवं संरचनाएं और अस्थायी तत्त्व जैसे कि विद्युत व्यवस्था एवं मौसम संबंधी परिस्थितियाँ शामिल हैं | मानवीय संस्कृति की छवि, जो बनने में सहस्राब्दियाँ लग जाती हैं, दोनों मिलकर दृश्य किसी भी स्थल के लोग तथा वह स्थल दोनों की स्थानीय तथा राष्ट्रीय पहचान को प्रतिबिंबित करते हैं। प्राकृतिक दृश्य, इनकी विशेषता और गुणवत्ता, किसी क्षेत्र की आत्म छवि और, उस स्थान की भावनात्मक अनुभूतियाँ, जो इसे दूसरे क्षेत्रों से अलग करती है, को परिभाषित करने में मदद करती है। यह लोगों के जीवन की गतिशील पृष्ठभूमि है। पृथ्वी पर प्राकृतिक दृश्यों का एक व्यापक विस्तार है जिसमें ध्रुवीय क्षेत्रों के बर्फीले प्राकृतिक दृश्य, पहाड़ी प्राकृतिक दृश्य, विस्तृत मरुस्थलीय प्राकृतिक दृश्य, द्वीपों और समुद्रतटों केप्राकृतिक दृश्य, घने जंगलों या पेड़ों के प्राकृतिक दृश्यों सहित पुराने उदीच्य वन एवं उष्णकटिबंधीय वर्षावन और शीतोष्ण एवं उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के कृषि योग्य प्राकृतिक दृश्य शामिल हैं। प्राकृतिक दृश्यों की समीक्षा आगे 2 श्रेणी:प्राकृतिक दृश्य (लैंडस्केप) श्रेणी:सांस्कृतिक भूगोल श्रेणी:भूदृश्य ar:منظر طبيعى bg:Пейзаж ca:Paisatge (geografia) cs:Krajina da:Landskab de:Landschaft en:Landscape eo:Pejzaĝo es:Paisaje et:Maastik fi:Maisema fr:Paysage hr:Krajolik id:Lanskap it:Paesaggio ja:ランドスケープ lt:Kraštovaizdis lv:Ainava mwl:Paisage nds:Landschap nl:Landschap nn:Landskap pl:Kraina geograficzna pt:Paisagem ro:Peisaj ru:Ландшафт sk:Geografická krajina sr:Пејзаж sv:Landskap (terräng) uk:Ландшафт yi:לאנדשאפט zh:风景.

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प्रकाशिक संचार

प्रकाशिक संचार (Optical communication) प्रकाश द्वारा सूचना के संचार व प्रसारण को कहते हैं। यह व्योम, वायु, द्रव या ठोस में प्रकाश के खुले प्रसार द्वारा या इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के प्रयोग के साथ प्रकाश के प्रसार के साथ किया जाता है। ISBN 978-0-86341-327-8 Communications: an international history of the formative years R. W. Burns, 2004 Vol 10, Encyclopaedia Britannica, 6th Edition, 1824 pp.

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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फैरो

तृतीय वंश के द्जोज़र के बाद से, फैरो गणों को सामान्यतः नेमिस शिरोऽलंकरण, एक नकली दाढ़ी तथा एक अलंकृत घेरदार निचला वस्त्र पहने हुए दिखाया जाता था। फैरो प्राचीन मिस्र के शासकों के लिए आधुनिक चर्चाओं एवं इतिहास में प्रयोग किया जाने वाला शब्द है। पुरालेखों में यह उपाधि उन शासकों के लिए प्रयोग की जाती थी, जो धार्मिक और राजनैतिक दोनों ही तरह के नेता थे। यह वहाँ के नए राज्य के लिए, खासकर अट्ठारहवें वंश के लिए था। आधुनिक युग में इतिहासवेत्ताओं ने सरलीकरण के लिए इसे सभी कालों के शासकों के लिए प्रयोग करना शुरु कर दिया। इस शब्द का मूल भाषा में अर्थ था राजा का महल, किंतु मिस्री इतिहास में इसका अर्थ मिस्री शब्द न्स्व्त का पर्याय बन गया, जिसका अर्थ था शासक। हालाँकि शासक अधिकतर पुरुष ही थे, इन्हें न्स्व्त कहा जाता था, किंतु फैरो शब्द स्त्री शासकों के लिए भी प्रयोग हुआ है। आरंभ में शासक वर्ग को एक गौ देवी (बैट का पुत्र माना जाता था, जिसे बाद में हैथर भी कहा गया। समझा जाता था, कि इन्होंने गौमाता की गद्दी लेकर शासन संभाला है और ये देश पर शासन और धार्मिक कृत्य करेंगें। इस बात के भी साक्ष्य हैं, जब कुछ अंतराल पर कर्मकाण्डों के दौरान शासकों का बलिदान दिया गया। किंतु जल्दी ही एक चुने हुए सांड से उसकी पूर्ति कर दी गई। बाद की संस्कृति में शासकों को होरस का अवतार माना जाता था। होरस आकाश का देवता था। और मृत्यु होने पर ओसिरिस का अवतार माना जाता था। एक बार जब इसिज़ और ओसिरिज़ का मत चल निकला, तो फैरोगणों को भगवान ओसिरिज़ और मानव के बीच का सेतु माना जाने लगा और मृत्यु के बाद यह मान्यता हुई कि फैरो ओसोरिज़ में मिल जाते हैं। शाही वंश मातृवंशी था और किसी शाही स्त्री से जन्म या विवाह द्वारा रिश्ता ही शासक का पद दिला सकता था। शाही स्त्रियों की धार्मिक अनुष्ठानों तथा देश के शासन में प्रमुख भूमिका थी, जो कि कई बार फ़ैरो की सहयोगिनी भी बनीं। .

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बलराज साहनी

बलराज साहनी (जन्म: 1 मई, 1913 निधन: 13 अप्रैल, 1973), बचपन का नाम "युधिष्ठिर साहनी" था। हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे। वे ख्यात लेखक भीष्म साहनी के बड़े भाई व चरित्र अभिनेता परीक्षत साहनी के पिता हैं। एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म और मंच अभिनेता थे, जो धरती के लाल (1946), दो बीघा ज़मीन (1953), काबूलीवाला (1961) और गरम हवा के लिए जाने जाते हैं। वह भेरा जो अब पंजाब, पाकिस्तान में है, से आए थे, और हिंदी लेखक, नाटककार और अभिनेता भीष्म साहनी के भाई थे। .

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बाथौ

बड़ो लोगों जिस धर्म का पालन करते हैं उसका नाम बाथौ है। 'बाथौ' शब्द का अर्थ है, 'पाँच सिद्धान्त' । ये पाँच सिद्धान्त ये हैं- 'बार' (वायु), 'सान' (सूर्य), 'हा' (पृथ्वी), 'दै' (जल) तथा 'अख्रां' (गगन)। वर्तमान काल में बोड़ो समाज अपने प्राचीन धर्म, दर्शन और परम्परा को मानते हुये अपनी संस्कृति को जीवित किये रखा है। 'बाथौ' या 'बाथौबोराइ' इनके प्रधान देवता हैं। कुछ अन्य देवता भी हैं किन्तु बाथौ को परमेश्वर माना जाता है। बाथौ धर्म के अन्तर्गत कई प्रकार के उत्सवों का आयोजन किया जाता है जिसमें से एक खेराई उत्सव है। खेराई उत्सव हो या अन्य उत्सव वेसारे कृषि से ही सम्बन्धित होते है। खेराई उत्सव बोड़ो ध्रर्म के अन्तर्गत मनाया जाने वाला एक विस्तृत एवं खर्चीला पूजा विधान है। खेराई उत्सव में नर्तकी, ओझा या पुरोहित, वाद्य यन्त्र, औजार आदि काफी चीजों की आवश्यकता होती है। उत्सव के आयोजन के दौरान उक्त सभी वस्तुयें अपनी भूमिका का निर्धारित करता है। खेराई एक बलि विधान से सम्बन्धित उत्सव है इसमें कई सारे जीव-जन्तुओं की देवताओं को प्रसन्न करने के फलस्वरुप उनकी बलि दी जाती है। ओझा (पुरोहित) इस उत्सव के समय दैवधुनि को विशेष प्रकार से प्रयोग में लाते है कि क्योकि ऐसी धारणा है कि दैवधुनि के माध्यम से वह (पुरोहित) देव-देवियों के साथ सम्वाद स्थापित करता है ताकि उन्हें धरती पर आवाहन कर समस्त मानव जाति में शांति और प्रसन्नता के वातावरण को प्रवाहित किया जा सके। यह उत्सव एक प्रकार से प्रकृति के साथ विशेष रुप से जुड़ा हुआ है। इस उत्सव के माध्यम से जिन-जिन देवताओं की पूजा की उनमें से प्रायः प्रकृति की शक्ति के रुप ग्रहण किया जा सकता है। .

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ब्रह्म पुराण

ब्रह्म पुराण हिंदू धर्म के 18 पुराणों में से एक प्रमुख पुराण है। इसे पुराणों में महापुराण भी कहा जाता है। पुराणों की दी गयी सूची में इस पुराण को प्रथम स्थान पर रखा जाता है। कुछ लोग इसे पहला पुराण भी मानते हैं। इसमें विस्तार से सृष्टि जन्म, जल की उत्पत्ति, ब्रह्म का आविर्भाव तथा देव-दानव जन्मों के विषय में बताया गया है। इसमें सूर्य और चन्द्र वंशों के विषय में भी वर्णन किया गया है। इसमें ययाति या पुरु के वंश–वर्णन से मानव-विकास के विषय में बताकर राम-कृष्ण-कथा भी वर्णित है। इसमें राम और कृष्ण के कथा के माध्यम से अवतार के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए अवतारवाद की प्रतिष्ठा की गई है। इस पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति, पृथु का पावन चरित्र, सूर्य एवं चन्द्रवंश का वर्णन, श्रीकृष्ण-चरित्र, कल्पान्तजीवी मार्कण्डेय मुनि का चरित्र, तीर्थों का माहात्म्य एवं अनेक भक्तिपरक आख्यानों की सुन्दर चर्चा की गयी है। भगवान् श्रीकृष्ण की ब्रह्मरूप में विस्तृत व्याख्या होने के कारण यह ब्रह्मपुराण के नाम से प्रसिद्ध है। इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। इसमें 'ब्रह्म' को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए इस पुराण को प्रथम स्थान दिया गया है। पुराणों की परम्परा के अनुसार 'ब्रह्म पुराण' में सृष्टि के समस्त लोकों और भारतवर्ष का भी वर्णन किया गया है। कलियुग का वर्णन भी इस पुराण में विस्तार से उपलब्ध है। ब्रह्म के आदि होने के कारण इस पुराण को 'आदिपुरण' भी कहा जाता है। व्यास मुनि ने इसे सर्वप्रथम लिखा है। इसमें दस सहस्र श्लोक हैं। प्राचीन पवित्र भूमि नैमिष अरण्य में व्यास शिष्य सूत मुनि ने यह पुराण समाहित ऋषि वृन्द में सुनाया था। इसमें सृष्टि, मनुवंश, देव देवता, प्राणि, पुथ्वी, भूगोल, नरक, स्वर्ग, मंदिर, तीर्थ आदि का निरूपण है। शिव-पार्वती विवाह, कृष्ण लीला, विष्णु अवतार, विष्णु पूजन, वर्णाश्रम, श्राद्धकर्म, आदि का विचार है। .

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बृहस्पति (ज्योतिष)

बृहस्पति, जिन्हें "प्रार्थना या भक्ति का स्वामी" माना गया है, और ब्राह्मनस्पति तथा देवगुरु (देवताओं के गुरु) भी कहलाते हैं, एक हिन्दू देवता एवं वैदिक आराध्य हैं। इन्हें शील और धर्म का अवतार माना जाता है और ये देवताओं के लिये प्रार्थना और बलि या हवि के प्रमुख प्रदाता हैं। इस प्रकार ये मनुष्यों और देवताओं के बीच मध्यस्थता करते हैं। बृहस्पति हिन्दू देवताओं के गुरु हैं और दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कट्टर विरोधी रहे हैं। ये नवग्रहों के समूह के नायक भी माने जाते हैं तभी इन्हें गणपति भी कहा जाता है। ये ज्ञान और वाग्मिता के देवता माने जाते हैं। इन्होंने ही बार्हस्पत्य सूत्र की रचना की थी। इनका वर्ण सुवर्ण या पीला माना जाता है और इनके पास दण्ड, कमल और जपमाला रहती है। ये सप्तवार में बृहस्पतिवार के स्वामी माने जाते हैं। ज्योतिष में इन्हें बृहस्पति (ग्रह) का स्वामी माना जाता है। .

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भूकेंद्रीय कक्षा

भूकेंद्रीय कक्षा या पृथ्वी कक्षा का सम्बन्ध किसी भी वस्तु जैसे चंद्रमा या कृत्रिम उपग्रहों के रूप में पृथ्वी की परिक्रमा करने से है। 1997 में नासा के अनुमान के अनुसार लगभग 2465 कृत्रिम उपग्रह पेलोड पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे और 6,216 अंतरिक्ष मलबे के टुकड़े गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर द्वारा ट्रैक किये गए थे। 16,291 से अधिक पहले लांच किये गए ऑब्जेक्ट पृथ्वी के वायुमंडल में डीकेय हो चुके हैं। .

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मन्दाकिनी

समान नाम के अन्य लेखों के लिए देखें मन्दाकिनी (बहुविकल्पी) जहाँ तक ज्ञात है, गैलेक्सी ब्रह्माण्ड की सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं। एनजीसी ४४१४ एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष व्यास की गैलेक्सी है मन्दाकिनी या गैलेक्सी, असंख्य तारों का समूह है जो स्वच्छ और अँधेरी रात में, आकाश के बीच से जाते हुए अर्धचक्र के रूप में और झिलमिलाती सी मेखला के समान दिखाई पड़ता है। यह मेखला वस्तुत: एक पूर्ण चक्र का अंग हैं जिसका क्षितिज के नीचे का भाग नहीं दिखाई पड़ता। भारत में इसे मंदाकिनी, स्वर्णगंगा, स्वर्नदी, सुरनदी, आकाशनदी, देवनदी, नागवीथी, हरिताली आदि भी कहते हैं। हमारी पृथ्वी और सूर्य जिस गैलेक्सी में अवस्थित हैं, रात्रि में हम नंगी आँख से उसी गैलेक्सी के ताराओं को देख पाते हैं। अब तक ब्रह्मांड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग ऐसी ही १९ अरब गैलेक्सीएँ होने का अनुमान है। ब्रह्मांड के विस्फोट सिद्धांत (बिग बंग थ्योरी ऑफ युनिवर्स) के अनुसार सभी गैलेक्सीएँ एक दूसरे से बड़ी तेजी से दूर हटती जा रही हैं। ब्रह्माण्ड में सौ अरब गैलेक्सी अस्तित्व में है। जो बड़ी मात्रा में तारे, गैस और खगोलीय धूल को समेटे हुए है। गैलेक्सियों ने अपना जीवन लाखो वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया और धीरे धीरे अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया। प्रत्येक गैलेक्सियाँ अरबों तारों को को समेटे हुए है। गुरुत्वाकर्षण तारों को एक साथ बाँध कर रखता है और इसी तरह अनेक गैलेक्सी एक साथ मिलकर तारा गुच्छ में रहती है। प्रारंभ में खगोलशास्त्रियों की धारणा थी कि ब्रह्मांड में नई गैलेक्सियों और क्वासरों का जन्म संभवत: पुरानी गैलेक्सियों के विस्फोट के फलस्वरूप होता है। लेकिन यार्क विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्रियों-डॉ॰सी.आर.

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महाभूत

महाभूत वह तत्त्व है जिससे यथार्थ (reality) बना हुआ है। पांच महाभूत हैं: जब ये पांच महाभूतों ने तामस अहंकार में विकार उत्पन्न किया तो शब्द, फिर शब्द में इन्ही पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके आकाश, आकाश में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके वायु, वायु में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके तेज, तेज में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके जल और क्रमशः जल में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके पृथिवी या मिट्टी इन तत्वों का निर्माण किया। इन्ही पांच तत्वों को आकाश, वायु, तेज, जल, पृथिवी या पंच तत्व कहते हैं। पांच तत्व हैं: .

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लियोनिड मिटियर शावर

प्रत्येक वर्ष 17 - 18 नवंबर को पृथ्वी के आकाश में होने वाली खगोलीए घटना जिसमें सैंकड़ों उल्कापिंड धरती की ओर गिरते हैं और उसके वायुमंडल में पहुँचकर जल उठते हैं तथा कुछ ही सेकेंडों में समाप्त हो जाते हैं। यह घटना आकाश में होने वाली दीवाली की आतिशबाजी सी प्रतीत होती है। .

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सारस (पक्षी)

सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को क्रौंच के नाम से भी जानते हैं। पूरे विश्व में भारतवर्ष में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इस पक्षी की कुछ अन्य विशेषताएं इसे विशेष महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यतः गंगा के मैदानी भागों और भारत के उत्तरी और उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है। विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं। अर्थात्, हे निषाद! तुझे निरंतर कभी शांति न मिले। तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के हत्या कर डाली। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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स्थिति कोण

स्थिति कोण (position angle) खगोलशास्त्र में आकाश में कोणों को मापने की सर्वसम्मत विधि है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की परिभाषा के अनुसार यह आकाश में किसी बिन्दु का उत्तरी खगोलीय ध्रुव से वामावर्त्त (काउंटरक्लॉकवाइज़) दिशा में मापा गया कोण है। .

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सेना

सन् १९०५ में कोहाट ज़िले, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा में भारतीय सिख सैनिक सेना पर खर्च सेना पर सर्वाधिक खर्च करने वाले दस देश (२००७) सशस्त्र सैनिकों की संख्या सेना या फ़ौज किसी देश या उसके नागरिकों या फिर किसी शासन-व्यवस्था और उस से सम्बन्धित लोगों के हितों व ध्येयों को बढ़ाने और उनकी रक्षा के लिये घातक बल-प्रयोग की क्षमता रखने वाला सशस्त्र संगठन होता है। सेना का काम देश व नागरिकों की रक्षा, उनके शत्रुओं पर प्रहार करना और शत्रुओं के प्रहारों को खदेड़ देना होता है। अलग-अलग व्यस्थाओं में सेना की ज़िम्मेदारियाँ भी भिन्न हो सकती हैं। कुछ स्थनों व कालों में सेना का इस्तेमाल विषेश राजनैतिक विचारधाराओं को बढ़ावा देने, व्यापारिक हितों और कम्पनियों को लाभ कराने, जनसंख्या-वृद्धि को रोकने, इमारतों व सड़कों का निर्माण करने, आपातकालीन बच-बचाव करने, सामाजिक रीतियों में भाग लेने और विषेश स्थनों पर पहरा देने के लिये भी किया जाता रहा है। व्यावसायिक रूप से सैनिक बनने की परम्परा लिखित इतिहास से पुरानी है। .

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हिन्दू देवी देवताओं की सूची

यह हिन्दू देवी देवताओं की सूची है। हिन्दू लेखों के अनुसार, धर्म में तैंतीस कोटि (कोटि के अर्थ-प्रकार और करोड़) देवी-देवता बताये गये हैं। इनमें स्थानीय व क्षेत्रीय देवी-देवता भी शामिल हैं)। वे सभी तो यहां सम्मिलित नहीं किये जा सकते हैं। फिर भी इस सूची में तीन सौ से अधिक संख्या सम्मिलित है। .

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होली की कहानियाँ

होली खेलते राधा और कृष्ण होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है। यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं है लेकिन इसके विषय में इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएँ मिलती है। इस कथाओं पर आधारित साहित्य और फ़िल्मों में अनेक दृष्टिकोणों से बहुत कुछ कहने के प्रयत्न किए गए हैं लेकिन हर कथा में एक समानता है कि असत्य पर सत्य की विजय और दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय को उत्सव मनाने की बात कही गई है। .

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वायु

वायु पंचमहाभूतों मे एक हैं| अन्य है पृथिवी, जल, अग्नि व आकाश वायु वस्तुत: गैसो का मिश्रण है, जिसमे अनेक प्रकार की गैस जैसे जारक, प्रांगार द्विजारेय, नाट्रोजन, उदजन ईत्यादि शामिल है।.

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खाटूश्यामजी

श्री खाटू श्याम जी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहाँ पर बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है। .

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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गगन

इसके अनेक अर्थ हो सकते हैं।.

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ग्रोट रेबर

ग्रोट रेबर (22 दिसम्बर 1911 - 20 दिसम्बर 2002) को रेडियो खगोलिकी का पितामह कहा जाता है। वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने रेडियो आवृत्तियों पर आकाश के मानचित्रण के लिए एक बड़ा डिश एन्टेना बनाया। उन्होंने अनेक विविक्त (डिक्रीट) रेडियो स्रोतों की खोज की तथा हमारी आकांश गंगा - 'मिल्की वे' से उत्सर्जित होने वाले विभिन्न रेडियो उत्सर्जनों पर आकाशगंगा का मानचित्रण किया। वे एक महान खगोलशास्त्रा तथा रेडियो खगोलिकी के कर्णधार थे। उन्होंने कार्ल जैंस्की के महान खगोलिकी कार्यों को आगे बढ़ाया तथा पहली बार रेडियो आवृत्तियों पर आकाश का सर्वेक्षण किया। .

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आइएसओ ३१

आइएसओ ३१ अन्तर्राष्ट्रीय मानक ISO 31 (भौतिक मात्रा और इकाइयाँ, अन्तर्राष्ट्रीय मानक संगठन, 1992) यह भौतिक इकाइयों के प्रयोग और मापन की इकाइयों की, एवं उनमें संलग्न सूत्रों की सर्वाधिक प्रशंसित शैली संदर्शिका है। यह वैज्ञानिक और शैक्षिक प्रलेखों में विश्वव्यापी प्रयुक्त होती है। अधिकतर देशों में गणित विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों एवं विश्वविद्यालयों में इसका पूर्ण पालन किया जाता है जो ISO 31 द्वारा मार्गदर्शित हैं। .

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इन्द्रधनुष

अर्धवृत्ताकार दोहरा-इन्द्रधनुष आकाश में संध्या समय पूर्व दिशा में तथा प्रात:काल पश्चिम दिशा में, वर्षा के पश्चात् लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला, तथा बैंगनी वर्णो का एक विशालकाय वृत्ताकार वक्र कभी-कभी दिखाई देता है। यह इंद्रधनुष कहलाता है। वर्षा अथवा बादल में पानी की सूक्ष्म बूँदों अथवा कणों पर पड़नेवाली सूर्य किरणों का विक्षेपण (डिस्पर्शन) ही इंद्रधनुष के सुंदर रंगों का कारण है। सूर्य की किरणें वर्षा की बूँदों से अपवर्तित तथा परावर्तित होने के कारण इन्द्रधनुष बनाती हैं। इंद्रधनुष सदा दर्शक की पीठ के पीछे सूर्य होने पर ही दिखाई पड़ता है। पानी के फुहारे पर दर्शक के पीछे से सूर्य किरणों के पड़ने पर भी इंद्रधनुष देखा जा सकता है। .

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क्षितिज

क्षितिज तीन प्रकार के क्षितिज उस आभासी रेखा को क्षितिज (horizon) कहते हैं जो बहुत दूरी पर आकाश और धरती को जोड़ती हुई नजर आती है। .

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कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद

कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद कौषीतकि उपनिषद का पूरा नाम है। यह एक ऋग्वेदीय उपनिषद है।कौषीतकि उपनिषद ॠग्वेद के कौषीतकि ब्राह्मण का अंश है। इसमें कुल चार अध्याय हैं। इस उपनिषद में जीवात्मा और ब्रह्मलोक, प्राणोपासना, अग्निहोत्र, विविध उपासनाएं, प्राणतत्व की महिमा तथा सूर्य, चन्द्र, विद्युत मेघ, आकाश, वायु, अग्नि, जल, दर्पण और प्रतिध्वनि में विद्यमान चैतन्य तत्व की उपासना पर प्रकाश डाला गया है। अन्त में 'आत्मतत्त्व' के स्वरूप और उसकी उपासना से प्राप्त फल पर विचार किया गया है। .

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कृत्तिका

कृत्तिका वा कयबचिया एक नक्षत्र है। इसका लैटिन/अंग्रेजी में नाम Pleiades है। पृथ्वी से देखने पर पास-पास दिखने वाले कई तारों का इस समूह को भारतीय खगोलशास्त्र और हिन्दू धर्म में सप्त ऋषि की पत्नियां भी कहा गया है। कृत्तिका एक तारापुंज है जो आकाश में वृष राशि के समीप दिखाई पड़ता है। कोरी आँख से प्रथम दृष्टि डालने पर इस पुंज के तारे अस्पष्ट और एक दूसरे से मिले हुए तथा किचपिच दिखाई पड़ते हैं जिसके कारण बोलचाल की भाषा में इसे किचपिचिया कहते हैं। ध्यान से देखने पर इसमें छह तारे पृथक पृथक दिखाई पड़ते हैं। दूरदर्शक से देखने पर इसमें सैकड़ों तारे दिखाई देते हैं, जिनके बीच में नीहारिका (Nebula) की हलकी धुंध भी दिखाई पड़ती है। इस तारापुंज में ३०० से ५०० तक तारे होंगे जो ५० प्रकाशवर्ष के गोले में बिखरे हुए हैं। केंद्र में तारों का घनत्व अधिक है। चमकीले तारे भी केंद्र के ही पास हैं। कृत्तिका तारापुंज पृथ्वी से लगभग ५०० प्रकाशवर्ष दूर है। .

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कैम्ब्रिज के ड्यूक राजकुमार विलियम तथा कैथरीन मिडलटन का विवाह

बकिंघम पैलेस की बालकनी में नवविवाहित ड्यूक और कैम्ब्रिज की डचेस.बाईं ओर जूनियर ब्राइड्ज़्मेड ग्रेस वान कटसेम और दायीं ओर जूनियर ब्राइड्ज़्मेड मार्गरीटा आर्मस्ट्रांग-जोन्स हैं। कैम्ब्रिज के ड्यूक राजकुमार विलियम तथा कैथरीन मिडलटन का विवाह 29 अप्रैल 2011 शुक्रवार को लंदन के वेस्टमिंस्टर एब्बी में संपन्न हुआ। रानी एलिजाबेथ द्वितीय के उत्तराधिकार की पंक्ति में दूसरे पुत्र, राजुमार विलियम 2001 में पहली बार कैथरीन मिडलटन से मिले थे, जब दोनों सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में पढाई कर रहे थे। 20 अक्टूबर 2010 को हुई उनकी सगाई की घोषणा 16 नवम्बर 2010 को की गयी थी। विवाह की तैयारी और स्वयं इस अवसर ने मीडिया का काफी ध्यान आकर्षित किया जिसमें सेवा का दुनिया भर में सीधा प्रसारण किया गया, साथ ही इसकी तुलना और समानता कई मायनों में विलियम के माता-पिता प्रिंस चार्ल्स और लेडी डायना स्पेंसर की 1981 में हुई शादी से की गयी। एक अनुमान के मुताबिक़ दुनिया भर में तीन बिलियन लोगों ने इस विवाह को देखा और 24.5 मिलियन लोगों ने ब्रिटेन में इस आयोजन को प्रत्यक्ष रूप से देखा.

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अयन (खगोलविज्ञान)

नाचता हुआ लट्टू पुरस्सरण भी करता है। घूर्णदर्शी (गाइरोस्कोप) का अयन भौतिकी में, किसी घूर्णन करने वाली वस्तु के अक्ष के घूर्णन को पुरस्सरण या अयन (precession) कहते हैं। पुरस्सरण दो तरह का होता है-.

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उल्का

आकाश के एक भाग में उल्का गिरने का दृष्य; यह दृष्य एक्स्ोजर समय कबढ़ाकर लिया गया है आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं। .

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ऋषि

ऋषि भारतीय परंपरा में श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने (यानि यथावत समझ पाने) वाले जनों को कहा जाता है। आधुनिक बातचीत में मुनि, योगी, सन्त अथवा कवि इनके पर्याय नाम हैं। ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' है जिसका अर्थ देखना होता है। ऋषि के प्रकाशित कृतियों को आर्ष कहते हैं जो इसी मूल से बना है, इसके अतिरिक्त दृष्टि (नज़र) जैसे शब्द भी इसी मूल से हैं। सप्तर्षि आकाश में हैं और हमारे कपाल में भी। ऋषि आकाश, अन्तरिक्ष और शरीर तीनों में होते हैं। .

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छांदोग्य उपनिषद

छांदोग्य उपनिषद् समवेदीय छान्दोग्य ब्राह्मण का औपनिषदिक भाग है जो प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। इसके आठ प्रपाठकों में प्रत्येक में एक अध्याय है। .

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ॐ नमः शिवाय

देवनागरी लिपि में "ॐ नमः शिवाय" मंत्र लैटिन लिपि) इस रूप में प्रकट हुआ है ॐ नमः शिवाय (IAST: Om Namaḥ Śivāya) यह सबसे लोकप्रिय हिंदू मंत्रों में से एक है और शैव सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण मंत्र है। नमः शिवाय का अर्थ "भगवान शिव को नमस्कार" या "उस मंगलकारी को प्रणाम!" है। इसे शिव पञ्चाक्षर मंत्र या पञ्चाक्षर मंत्र भी कहा जाता है, जिसका अर्थ "पांच-अक्षर" मंत्र (ॐ को छोड़ कर) है। यह भगवान शिव को समर्पित है। यह मंत्र श्री रुद्रम् चमकम् और रुद्राष्टाध्यायी में "न", "मः", "शि", "वा" और "य" के रूप में प्रकट हुआ है। श्री रुद्रम् चमकम्, कृष्ण यजुर्वेद का हिस्सा है और रुद्राष्टाध्यायी, शुक्ल यजुर्वेद का हिस्सा है। श्रेणी:ग़ैर हिन्दी भाषा पाठ वाले लेख पञ्चाक्षर के रूप में 'नमः शिवाय' मंत्र त्रिपुण्ड्र से सजा हुआ शिवलिंग  .

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२०११

वर्ष २०११ शनिवार से प्रारम्भ होने वाला वर्ष है। .

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५ अक्टूबर

5 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 278वॉ (लीप वर्ष में 279 वॉ) दिन है। साल में अभी और 87 दिन बाकी है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

नभ, नीलाम्बर, व्योम, गगन (आकाश), आसमान, अम्बर

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