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आंत

सूची आंत

मानव शरीर रचना विज्ञान में, आंत (या अंतड़ी) आहार नली का हिस्सा होती है जो पेट से गुदा तक फैली होती है, तथा मनुष्य और अन्य स्तनधारियों में, यह दो भागों में, छोटी आंत और बड़ी आंत के रूप में होती है। मनुष्यों में, छोटी आंत को आगे फिर पाचनांत्र, मध्यांत्र और क्षुद्रांत्र में विभाजित किया गया है, जबकि बड़ी आंत को अंधात्र और बृहदान्त्र में विभाजित किया गया है। .

15 संबंधों: एस्कारियासिस, एक्यूपंक्चर, पिनकृमि, पीठ दर्द, बीटा वल्गैरिस, महाबृहदांत्र, रक्ताल्पता, रोमंथक, सामान्य चिकित्सा में प्रयुक्त उपकरण, सिस्टायटिस, व्रण, आंततंतु, क्षोभी आंत्र विकार, अवकाशिका (जीवविज्ञान), अंग प्रत्यारोपण

एस्कारियासिस

एस्कारियासिस गोल कृमिएस्कारिस लम्ब्रीकॉइड्स परजीवी के कारण होने वाली बीमारी है। 85% से अधिक मामलों में संक्रमण के कोई लक्षण नहीं होते हैं, विशेष रूप से यदि कृमि का आकार छोटा हो। कृमियों की संख्या के साथ ही लक्षण भी बढ़ जाते हैं और बीमारी की शुरुआत में सांस की तकलीफ तथा बुखार हो सकता है। इनके पश्चात पेट की सूजन, पेट दर्द तथा डायरिया के लक्षण प्रकट हो सकते हैं। बच्चे इनसे सर्वाधिक प्रभावित हो जाते हैं, तथा इस आयुवर्ग में संक्रमण के कारण उचित रूप से वज़न न बढ़ना, कुपोषण तथा सीखने की क्षमता में कमी आ जाती है। संक्रमण ‘'एस्केरिस'’ के 'अंडे', जो मल द्वारा आते हैं, से दूषित भोजन या पेय खाने से होता है। अण्डों से कृमि आँतों में निकलते हैं, पेट की दीवार के माध्यम से छिद्र करके निकलते हैं, तथा रक्त के माध्यम से फेफड़ों की और बढ़ जाते हैं। वहाँ वे ऐल्वेली में प्रविष्ट हो कर ट्रेकीआ की और बढ़ जाते हैं, जहाँ से खांसने के कारण वे मुंह में आकर पुनः निगल लिए जाते हैं। इसके पश्चात लार्वा पेट से होते हुए पुनः आँतों में पहुँच जाते हैं, जहाँ वे वयस्क कृमि बन जाते हैं। रोकथाम के लिए स्वच्छता के स्तर को बढ़ाना आवश्यक है, जिसमें शौचालयों की संख्या तथा उन तक पहुँच को बढ़ाना तथा मल का उचित निस्तारण शामिल है। साबुन से हाथ धोना भी सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे क्षेत्रों में जहाँ 20% से अधिक जनसँख्या प्रभावित है, प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित अवधि पर उपचारित करने की संस्तुति की जाती है। संक्रमण की पुनरावृत्ति सामान्य है। इसके लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाई गयी दवाएं हैं एल्बेन्डोज़ोल, मीबेंडाज़ोल, लेवामीसोल अथवा पाईरैन्टेल पैमोट.

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एक्यूपंक्चर

हुआ शउ से एक्यूपंक्चर चार्ट (fl. 1340 दशक, मिंग राजवंश). शि सी जिंग फ़ा हुई की छवि (चौदह मेरिडियन की अभिव्यक्ति). (टोक्यो: सुहाराया हेइसुके कंको, क्योहो गन 1716). एक्यूपंक्चर (Accupuncture) दर्द से राहत दिलाने या चिकित्सा प्रयोजनों के लिए शरीर के विभिन्न बिंदुओं में सुई चुभाने और हस्तकौशल की प्रक्रिया है।एक्यूपंक्चर: दर्द से राहत दिलाने, शल्यक बेहोशी और उपचारात्मक उद्देश्यों के लिए परिसरीय नसों के समानांतर शरीर के विशिष्ट भागों में बारीक सुईयां चुभाने का चीना अभ्यास.

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पिनकृमि

स्केल के पास दो मादा पिनकृमि; स्केल पर निशान मिमी में बने हैं। पिनकृमि (pinworm) एक परजीवी है जो मानव (अधिकतर बच्चों की आंतों में) के आंतों में पाया जाता है। .

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पीठ दर्द

पीठ दर्द ("डोर्सलाजिया " के नाम से भी जाना जाता है) पीठ में होनेवाला वह दर्द है, जो आम तौर पर मांसपेशियों, तंत्रिका, हड्डियों, जोड़ों या रीढ़ की अन्य संरचनाओं में महसूस किया जाता है। इस दर्द को अक्सर गर्दन दर्द, पीठ के उपरी हिस्से के दर्द,पीठ के निचले हिस्से के दर्द या टेलबोन के दर्द(रीढ़ के आखिरी छोर की हड्डी में) में विभाजित कर सकते हैं। यह अचानक होनेवाला दर्द या स्थाई दर्द भी हो सकता है; यह लगातार या कुछ अन्तराल पर भी हो सकता है, यह दर्द किसी एक ही जगह पर हो सकता है या अन्य हिस्सों में फ़ैल भी सकता है यह एक हल्का या तेज दर्द हो सकता है या इसमें छेदने या जलन की अनुभूति हो सकती है। यह दर्द भुजा और हाथ में, पीठ के उपरी या निचले हिस्से में फ़ैल सकता है, (और पंजे या पैर में फ़ैल सकता है) और दर्द के अलावा इसमें कमजोरी, सुन्न हो जाना या झुनझुनी जैसे लक्षण भी शामिल हो सकते हैं। पीठ का दर्द लोगों को अक्सर होने वाली शिकायतों में से एक है। अमेरिका में पीठ के निचले भाग में तेज दर्द (लूम्बेगो भी कहा जाता है) चिकित्सक के पास जाने के सबसे आम कारणों में पांचवें स्थान पर है। दस में से नौ वयस्कों को अपने जीवन के किसी न किसी बिंदु पर पीठ दर्द का अनुभव होता है और काम करने वाले दस में से पांच वयस्कों को हर साल पीठ दर्द होता है।ए.टी.

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बीटा वल्गैरिस

बीटा वल्गैरिस, जिसे साधारण भाषा में चुकंदर कहते हैं, अमारैन्थ परिवार का एक पादप सदस्य है। इसे कई रूपों में, जिनमें अधिकतर लाल रंग की जड़ से प्राप्त सब्जी रूप में प्रयोगनीय उत्पाद के लिये उगाया जाता है। इसके अलावा अन्य उत्पादों में इसके पत्तों को शाक रूप में प्रयोग करते हैं, व इसे शर्करा-स्रोत रूप में भी प्रयोग किया जाता है। पशु-आहार के लिये भी कहीं-कहीं प्रयोग किया जाता है। इसकी अधिकतर प्रचलित Beta vulgaris उपजाति vulgaris में आती है। जबकि Beta vulgaris उपजाति:maritima, जो ई-बीट नाम से प्रचलित है, इसी का जंगली पूर्वज है और भूमध्य सागरीय क्षेत्र, यूरोप की अंध-महासागर तटरेखा एवं भारत में उगती है। एक अन्य जंगली प्रजाति Beta vulgaris उपजाति:adanensis, यूनान से सीरिया पर्यन्त पायी जाती है। ''Beta vulgaris'', नाम से प्रचलित चुकंदर, शाक विक्रेता के यहां चुकंदर में अच्छी मात्रा में लौह, विटामिन और खनिज होते हैं जो रक्तवर्धन और शोधन के काम में सहायक होते हैं। इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट तत्व शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं। यह प्राकृतिक शर्करा का स्रोत होता है। इसमें सोडियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन और अन्य महत्वपूर्ण विटामिन पाए जाते हैं। चुकंदर में गुर्दे और पित्ताशय को साफ करने के प्राकृतिक गुण हैं। इसमें उपस्थित पोटेशियम शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है तो वहीं क्लोरीन गुर्दों के शोधन में मदद करता है। यह पाचन संबंधी समस्याओं जैसे वमन, दस्त, चक्कर आदि में लाभदायक होता है। चुकंदर का रस पीने से रक्ताल्पता दूर हो जाती है क्योंकि इसमें लौह भी प्रचुर मात्र में पाया जाता है।। याहू जागरण चुकंदर का रस हाइपरटेंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है। विशेषतया महिलाओं के लिए बहुत लाभकारी है। चुकंदर में बेटेन नामक तत्व पाया जाता है जिसकी आंत व पेट को साफ करने के लिए शरीर को आवश्यकता होती है और चुकंदर में उपस्थित यह तत्व उसकी आपूर्ति करता है। कई शोधों के अनुसार चुकंदर कैंसर में भी लाभदायक होता है। चुकंदर और उसके पत्ते फोलेट का अच्छा स्रोत होते हैं, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं। चुकंदर की भारत में प्रचलित किस्म .

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महाबृहदांत्र

महाबृहदांत्र (मेगाकोलोंन) - बृहदान्त्र (बड़ी आँत का एक हिस्से) का असामान्य फैलाव है। अक्सर, फैलाव के साथ आंत्र के क्रमिक वृत्तों में सिकुड़नेवाले (क्रम-संकोचिक) लेहेरों का पक्षाघात भी होता है। अधिक चरम मामलों में, मल बृहदान्त्र के अंदर, कठोर पुंज की तरह जम जाता है, जिस को 'फेकलओमा' कहा जाता है (शाब्दिक रूप से, मल का ट्यूमर या गाँठ).

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रक्ताल्पता

रक्ताल्पता (रक्त+अल्पता), का साधारण मतलब रक्त (खून) की कमी है। यह लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाले एक पदार्थ (कण) रूधिर वर्णिका यानि हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होती है। हीमोग्लोबिन के अणु में अनचाहे परिवर्तन आने से भी रक्ताल्पता के लक्षण प्रकट होते हैं। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर मे ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है और इसकी संख्या मे कमी आने से शरीर मे ऑक्सीजन की आपूर्ति मे भी कमी आती है जिसके कारण व्यक्ति थकान और कमजोरी महसूस कर सकता है। .

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रोमंथक

कड़ी.

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सामान्य चिकित्सा में प्रयुक्त उपकरण

सामान्य चिकित्सा और क्लिनिकों (अर्थात् आंतरिक चिकित्सा और बाल रोग) में प्रयुक्त उपकरण इस प्रकार हैं: .

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सिस्टायटिस

मूत्राशय सूजन को सिस्टायटिस कहते हैं। यह अलग संलक्षण या सिंड्रोम के किसी एक का परिणाम है। यह ज्यादातर जीवाणु संक्रमण होता है और इससे एक मूत्र पथ के संक्रमण के रूप में जाना जाता है। यह मूत्र पथ के संक्रमण है एक सबसे सामान्य कारण बैक्टीरिया द्वारा एक संक्रमण के रूप में संदर्भित किया जाता है जो मामले में यह है। .

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व्रण

एक बच्चे के पैर में अल्सर व्रण या अल्सर (Ulcer) शरीरपृष्ठ (body surface) पर संक्रमण द्वारा उत्पन्न होता है। इस संक्रमण के जीवविष (toxins) स्थानिक उपकला (epithelium) को नष्ट कर देते हैं। नष्ट हुई उपकला के ऊपर मृत कोशिकाएँ एवं पूय (pus) संचित हो जाता है। मृत कोशिकाओं तथा पूय के हट जाने पर नष्ट हुई उपकला के स्थान पर धीरे धीरे कणिकामय ऊतक (granular tissues) आने लगते हैं। इस प्रकार की विक्षति को व्रण कहते हैं। दूसरे शब्दों में संक्रमणोपरांत उपकला ऊतक की कोशिकीय मृत्यु को व्रण कहते है। किसी भी पृष्ठ के ऊपर, अथवा पार्श्व में, यदि कोई शोधयुक्त परिगलित (necrosed) भाग हो गया है, तो वहाँ व्रण उत्पन्न हो जाएगा। शीघ्र भर जानेवाले व्रण को सुदम्य व्रण कहते हैं। कभी-कभी कोई व्रण शीघ्र नहीं भरता। ऐसा व्रण दुदम्य हो जाता है, इसका कारण यह है कि उसमें या तो जीवाणुओं (bacteria) द्वारा संक्रमण होता रहता है, या व्रणवाले भाग में रक्त परिसंचरण (circulation of blood) उचित रूप से नहीं हो पाता। व्रण, पृष्ठ पर की एक कोशिका के बाद दूसरी कोशिका के नष्ट होने पर, बनता है। .

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आंततंतु

आंततंतु, जिसे अक्सर कैटगट (catgut) भी कहते है, ऐसे प्राकृतिक रेशे होते हैं जो प्राणियों की आँतों मे मिलने वाले रेशों से बनते हैं। इन्हें अक्सर भेड़ों व बकरियों की आँतों से बनाया जाता है, हालांकि सूअरों, घोड़ों, गधों व खच्चरों की आँतों का प्रयोग भी पाया जाता है। .

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क्षोभी आंत्र विकार

क्षोभी आंत्र विकार या इरीटेबल बाउल सिंड्रोम आँतों का रोग है जिसमें पेट में दर्द, बेचैनी व मल-निकास में परेशानी आदि होते हैं। इसे स्पैस्टिक कोलन, इरिटेबल कोलन, म्यूकस कोइलटिस जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह आंतों को खराब तो नहीं करता लेकिन उसके संकेत देने लगता है। पुरुषों की तुलना में महिलाएं इस बीमारी से अधिक प्रभावित होती हैं। इस रोग का कारण ज्ञात नहीं है। कब्ज या अतिसार (दस्त) की शिकायत हो सकती है या कब्ज के बाद अतिसार और उसके बाद कब्ज जैसी स्थिति भी देखने को मिलती है। इसकी कोई चिकित्सा भी नहीं है। किन्तु कुछ उपचार अवश्य हैं जिनके द्वारा लक्षणों से छुटकारा दिलाने की कोशिश की जाती है, जैसे भोजन में परिवर्तन, दवा तथा मनोवैज्ञानिक सलाह आदि। .

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अवकाशिका (जीवविज्ञान)

एक धमनी की शारीरिकी। अवकाशिका सबसे ऊपर वाला स्थान है।आंत की अनुप्रस्थ काट। अवकाशिका बीच का स्थान है।जीवविज्ञान के संदर्भ में अवकाशिका या ल्यूमेन (लैटिन:Lumen) किसी नलिकामय संरचना के आंतरिक स्थान को कहते हैं। वनस्पति विज्ञान में यह स्थान पुटी कहलाता है। उदाहरण के लिए किसी धमनी या आंत जैसी एक नलिकामय संरचना के अंदर की जगह जिसमें से क्रमश: रक्त और भोजन का प्रवाह होता है। ल्यूमेन किसी कोशिकीय संरचना के आंतरिक स्थान को भी कहते हैं जैसे कि एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम (अंतःप्रद्रव्य जालिका)। उदाहरणः -.

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अंग प्रत्यारोपण

अंग प्रत्यारोपण से अभिप्राय किसी शरीर से एक स्वस्थ और कार्यशील अंग निकाल कर उसे किसी दूसरे शरीर के क्षतिग्रस्त या विफल अंग की जगह प्रत्यारोपित करने से है, (किसी रोगी के एक अंग को उसी रोगी के किसी दूसरे अंग में प्रत्यारोपित करना भी अंग प्रत्यारोपण की श्रेणी में आता है)। अंग दाता जीवित या मृत दोनो हो सकता है। जो अंग प्रत्यारोपित हो सकते हैं उनमे हृदय, गुर्दे, यकृत, फेफड़े, अग्न्याशय, शिश्न, आँखें और आंत शामिल हैं। ऊतक जो प्रत्यारोपित हो सकते हैं उनमे अस्थियाँ, कंडर (टेंडन), कॉर्निया, हृदय वाल्व, नसें, बाहु और त्वचा शामिल हैं। प्रत्यारोपण औषधि, आधुनिक चिकित्सा क्षेत्र के सबसे चुनौतीपूर्ण और जटिल क्षेत्रों में से एक है। चिकित्सा प्रबंधन क्षेत्र की कुछ सबसे बड़ी समस्याओं में किसी शरीर द्वारा प्रत्यारोपित अंग को अस्वीकार कर देना है- जहां शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र प्रत्यारोपित अंग के विरुद्ध प्रतिक्रिया कर उसे नकार देता है और इसके कारण प्रत्यारोपण विफल हो जाता है और अब इस प्रत्यारोपित अंग को उस शरीर में ही कार्यशील बनाए रखना प्रत्यारोपण औषधि के लिए एक बड़ी चुनौती होती है। यह एक बहुत ही समय संवेदनशील प्रक्रिया है। अधिकांश देशों में प्रत्यारोपण के लिए उपयुक्त अंगों की कमी है। अधिकांश देशों में अस्वीकृति के जोखिम को कम करने और आवंटन का प्रबंधन करने के लिए एक औपचारिक प्रणाली है। कुछ देश यूरोट्रांसप्लांट जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से जुड़े हैं ताकि दाता अंगों की आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सके। प्रत्यारोपण कुछ जैव नैतिक मुद्दे भी उठाता है जैसे मृत्यु की परिभाषा, कब और कैसे एक अंग के लिए सहमति दी जानी चाहिए और प्रत्यारोपण में प्रयुक्त अंग के लिए भुगतान करना आदि। श्रेणी:चिकित्सा पद्धति श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

आँत, आँतों, आंत्र

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