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अल्गोरिद्म

सूची अल्गोरिद्म

महत्तम समापवर्तक (HCF) निकालने के लिए यूक्लिड के अल्गोरिद्म का फ्लोचार्ट गणित, संगणन तथा अन्य विधाओं में किसी कार्य को करने के लिये आवश्यक चरणों के समूह को कलन विधि (अल्गोरिद्म) कहते है। कलन विधि को किसी स्पष्ट रूप से पारिभाषित गणनात्मक समस्या का समाधान करने के औजार (tool) के रूप में भी समझा जा सकता है। उस समस्या का इनपुट और आउटपुट सामान्य भाषा में वर्णित किये गये रहते हैं; इसके समाधान के रूप में कलन विधि, क्रमवार ढंग से बताता है कि यह इन्पुट/आउटपुट सम्बन्ध किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। कुछ उदाहरण: १) कुछ संख्यायें बिना किसी क्रम के दी हुई हैं; इन्हें आरोही क्रम (ascending order) में कैसे सजायेंगे? २) दो पूर्णांक संख्याएं दी हुई हैं; उनका महत्तम समापवर्तक (Highest Common Factor) कैसे निकालेंगे ? .

65 संबंधों: ऍल्गोरिथम, एडा लवलेस, ए॰ के॰ ऐस॰ नंबर अभाज्यता टेस्ट, डिज़ाइन पैटर्न (कंप्यूटर विज्ञान), डिजक्स्ट्रा का अल्गोरिद्म, त्वरित फुरिअर रूपान्तर, दैवी कलनविधि, पाटीगणित, पासवर्ड (पारण शब्द), पुनरावृत्ति, प्रतिवर्तन, प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, प्रॉब्लम (कंप्यूटर विज्ञान), प्रोग्रामिंग भाषा, फिल्टर, फ्लो चार्ट, बड़ा ओ संकेतन, बीज-लेखन, भारतीय गणित, मान्टे-कार्लो सिमुलेशन, मिल्लर रैबिन नंबर अभाज्यता टेस्ट, मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी, मैटलैब, मूल निकालने की विधियाँ, यादृच्छिकता, यूनिकोड समानुक्रमण अल्गोरिद्म, रुदाल्फ एमिल कालमान, रेग्युलर ऍक्सप्रैशन, रॉर्शोक परीक्षण, लॉजिक गेट, शाटन की कलनविधि, शोर का अल्गोरिद्म, सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद, साउण्डेक्स, संबद्ध विपणन, संख्या सिद्धान्त, संख्यात्मक समाकलन, संख्यात्मक विश्लेषण, संगणन हार्डवेयर का इतिहास, संगणक अभियान्त्रिकी, स्पेस वेक्टर मॉडुलन, हॉल्टिंग प्रॉब्लम, ज्यामिति का इतिहास, वितत भिन्न, विलोपन सिद्धान्त, विकासात्मक कलनविधि, वैदिक गणित (पुस्तक), गणित का इतिहास, गणितज्ञ, ग्रोवर की कलनविधि, ..., गूगल खोज, आंकड़ा संरचना, कटपयादि, कम्प्यूटर विज्ञान, कलन-विधियों की सूची, कलनविधियों का विश्लेषण, कारमारकर का अल्गोरिद्म, कुट्टक, क्रमानुदेशन, अनिर्णनीय प्रॉब्लम, अभिकलनात्मक गणित, अंकीय रक्षी रिले, अंकीय संकेत प्रक्रमण, उत्थापक कलनविधि, उपपत्ति सूचकांक विस्तार (15 अधिक) »

ऍल्गोरिथम

किसी गणितीय समस्या अथवा डाटा को कदम-ब-कदम इस प्रकार विश्लेषित करना जिससे कि वह कम्प्यूटर के लिये ग्राह्य बन सके और कम्प्यूटर उपलब्ध डाटा को प्रोग्राम मे लेकरगणितीय समस्या का उचित हल प्रस्तुत कर सके; एल्गोरिथ्म कहलाता है। वस्तुत: डाटा से वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये कम्प्यूटर उसे संसाधित रूप मे ही ग्रहण कर सकता है। हम अपने जीवन मे जब भी किसी कार्य को करने की योजना बनाते है तो उसकी रूपरेखा अपने मस्तिष्क मे नियोजित कर लेते है। इसी रूपरेखा को विशिष्ट कार्यो के लिये विभिन्न चरणो को कागजो पर भी तैयार किया जाता है कि कार्य कैसे शुरू होगा, कब और कहां शुरू होगा, कैसे सम्पन्न होगा और कैसे पूर्ण होगा। इसी प्रकार कम्प्यूटर पर करने के लिये कोइ कार्य दिया जाता है तो प्रोग्रामर को उसकी पूर्ण रूपरेखा तैयार करनी होती है तथा कम्प्यूटर से बिना गलती कार्य करवाने के लिये किस क्रम से निर्देश दिये जाएंगे, यह तय करना होता है। अर्थात किसी कार्य को पूर्ण करने के लिये विभिन्न चरणो से गुजरना पडता है। जब समस्या के समाधान हेतु विभिन्न चरणो से क्रमबध्द करके लिखा जाये तो यह एल्गोरिथम कहलाता है।एल्गोरिथम के लिये इनपुट डाटा का होना आवश्यक नही है जबकि इससे किसी एक परिणाम पर पहुचने की उम्मीद की जाती है। इसमे दिये गए निर्देश समझने योग्य होने चाहिये। कम्प्यूटर से कोइ कार्य करवाने मे हमे बहुत सतर्क रहना पडता है। क्योंकि मनुष्य जब कोइ कार्य करता है तो उसके पास पूर्व अनुभव, सोचकर निर्णय लेने की क्षमता व स्वविवेक होता है जबकि कम्प्यूटर के पास यह सब नही होता, यह तो सब प्राप्त सूचनाओ के आधार पर ही कार्य करता है। अत: किसी कार्य को करने के लिये कम्प्यूटर को आवश्यक एवं सत्य तथ्य ही उपलब्ध कराये जाए। जब एल्गोरिथम को संकेतो द्वारा आरेखित किया जाता है तो आरेख क्रम निर्देशक या प्रवाह तालिका कहलाता है। इसी क्रम निर्देशक या प्रवाह तालिका के आधार पर प्रोग्राम तैयार होता है। ध्यान रखे: १-एल्गोरिथम मे दिये गए समस्त निर्देश सही एवं स्पष्ट अर्थ के होने चाहिये। २-प्रत्येक निर्देश एसा होना चाहिये कि जिसका अनुपालन एक निश्चित समय मे किया जा सके। ३-कोइ एक अथवा कै निर्देश ऎसे ना हो जो अन्त तक दोहराये जाते रहे। यह सुनिश्चित करे कि एल्गोरिथम का अन्तत: समापन हो। ४-सभी निर्देशो के अनुपालन के पश्चात, एल्गोरिथम के समापन पर वाछित परिणाम अवश्य प्राप्त होने चाहिये। ५-किसी भी निर्देश का क्रम बदलने अथवा किसी निर्देश के पीछे छूटने पर एक्गोरिथम के समापन पर वांछित परिणाम प्राप्त नही होंगे। उदाहरण: मान लिजिये आपको १ से ५० के मध्य की सभी संख्याओ का योग ज्ञात करने के लिये एल्गोरिथम बनाने के लिये दिया गया है। यह निम्न प्रकार बनेगा:-- step 1:A.

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एडा लवलेस

आगस्ता एडा किंग-नोएल, लवलेस की काउन्टेस (10 दिसम्बर 1815 – 27 नवम्बर 1852) एक अंग्रेज गणितज्ञ तथा लेखिका थीं। उन्होने चार्ल्स बैबेज द्वारा प्रस्तावित यांत्रिक जनरल-परपज कम्प्यूटर (एनालिटिकल इंजन) पर कार्य किया और सबसे पहले यह समझा कि यह मशीन 'शुद्ध गणना' के साथ साथ बहुत कुछ और भी कर सकती है। उन्होने इस प्रकार की मशीन पर चलने वाली प्रथम कलनविधि (अल्गोरिद्म) का भी निर्माण किया। इसी कारण माना जाता है कि एडा ही पहली व्यक्ति थीं जिसने 'कम्प्यूटिंग मशीन' की पूरी क्षमता को समझा। और ये भी माना जाता है कि वे दुनिया की एक पहली प्रोग्रामर थी। एडा लवलेस लार्ड बायरन की एकलौती वैध्य बेटी थी और उनके माता का नाम Anne Isabella Milbanke की थी। लार्ड बायरन ने अपने पत्नी को एडा लवलेस के जन्म के एक महीने बाद अलग कर दिया। और 4 महीने बाद उन्होंने इंग्लैंड को हमेशा के लिए छोड़ दिया। बाद में उन्होंने अपने थोड़े से जीवन को स्वतंत्रता के लिए लड़ी जा रही ग्रीक युद्ध में भाग लेकर अपने को इस दुनिया से 36 साल की उम्र में सन 1824 में परलोक को सिधार गए। उनके माँ को लार्ड बायरन की स्वाभाव की ओर ध्यान गया और उन्होंने एडा लवलेस को गणित और लॉजिकल में उनका मन लगाने की कोशिश की, जिस पागलपन उन्होंने अपने पापा के आँखों में देखा था। जिसे उन्होंने मरते दम तक बनाये रखा। एडा का प्रारंभिक जीवन बीमारियों में बिता और उन्होंने सन 1835 में विलियम किंग से शादी कर ली। राजा ने सन 1838 में अंततः वहां की बेगम बन गई। श्रेणी:अंग्रेज गणितज्ञ.

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ए॰ के॰ ऐस॰ नंबर अभाज्यता टेस्ट

ए॰ के॰ ऐस॰ नंबर अभाज्यता टेस्ट पहला पोलीनोमिअल टाइम है अल्गोरिद्म (कंप्यूटर विज्ञान में पोलीनोमिअल टाइम अल्गोरिद्मों को तेज माना जाता है) जो बताता है कि कोई नंबर अभाज्य है या नहीं। इसका आविष्कार 2002 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के तीन कंप्यूटर वैज्ञानिकों – मणीन्द्र अग्रवाल, नीरज कयाल और नितिन सक्सेना ने किया था। किसी भी अल्गोरिद्म के लिए चार आवश्यकताएँ होती है: 1) वो हर इनपुट के लिए आउटपुट देता हो, 2) वो जल्दी उत्तर देता हो (more precisely: वो पोलीनोमिअल टाइम में उत्तर देता हो), 3) वो कभी गलत उत्तर न देता हो और 4) वो किसी अप्रमाणित परिकल्पना पर निर्भर न करता हो। नंबर की अभाज्यता जांचने के लिए इस से पहले के सभी अल्गोरिद्म इन चार में से अधिक से अधिक तीन आवश्यकताओं को पूर्ण करते थे। ये पहला अल्गोरिद्म है जो इन चारों आवश्यकताओं को पूर्ण करता है।.

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डिज़ाइन पैटर्न (कंप्यूटर विज्ञान)

सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में, डिज़ाइन पैटर्न आम तौर पर सॉफ्टवेयर डिज़ाइन में होने वाली समस्या के लिए एक सामान्य पुन: प्रयोज्य समाधान है। एक डिज़ाइन पैटर्न एक पूर्ण डिज़ाइन नहीं है जिसे सीधे कोड में बदला जा सके। समस्या का कैसे निदान किया जाए, इसका यह एक विवरण या खाका है जिसे कई विभिन्न स्थितियों में इस्तेमाल किया जा सकता है। ऑब्जेक्ट-उन्मुख डिज़ाइन पैटर्न, इसमें शामिल अंतिम अनुप्रयोग वर्गों या ऑब्जेक्ट को निर्दिष्ट किए बिना, आम तौर पर वर्गों या ऑब्जेक्ट के बीच संबंधों और पारस्परिक क्रिया को दर्शाते हैं। डिज़ाइन पैटर्न, मॉड्यूल और इंटरकनेक्शन के प्रभाव क्षेत्र में रहते हैं। उच्च स्तर पर, ऐसे वास्तुकला पैटर्न मौजूद होते हैं, जिनका विस्तार अपेक्षाकृत बड़ा होता हैं, जो आम तौर पर एक पूरी प्रणाली द्वारा अनुसरण किए जाने वाले एक समग्र पैटर्न का वर्णन करते हैं। सभी सॉफ्टवेयर पैटर्न, डिज़ाइन पैटर्न नहीं होते.

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डिजक्स्ट्रा का अल्गोरिद्म

डिजक्स्ट्रा का अल्गोरिद्म किसी नक्शे के दो स्थानों के बीच सबसे छोटा रास्ता ढूंढने के लिए एक अल्गोरिद्म है। श्रेणी:अल्गोरिद्म श्रेणी:कम्प्यूटर विज्ञान.

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त्वरित फुरिअर रूपान्तर

त्वरित फुरिअर रूपान्तर सम्पादन का सबसे जरूरी ऑपरेशन तितली है। त्वरित फुरिअर रूपान्तर या फास्ट फुरिअर ट्रान्सफार्म (FFT), डिस्क्रीट फुरिअर ट्रान्सफार्म (DFT) एवं उसके व्युत्क्रम रूपान्तर (inverse transform) की गणना की एक दक्ष (efficient) कलन विधि (अल्गोरिद्म) है। त्वरित ढंग से डिस्क्रीट फुरिअर रूपान्तर निकालने की विधि सबसे पहले कूली और टर्की ने सन १९६५ में प्रस्तुत की जिनके नाम पर इस विधि को कूली-टर्की कलन-विधि के नाम से जाना जाता है। इस समय त्वरित फुरिअर रुपान्तर निकालने के अनेकों अन्य तरीके भी ज्ञात है। प्रचलित तरीके से एफ् एफ् टी (FFT) की गणना के अल्गोरिद्म का ऑर्डर N*N है जबकि एफएफटी से वही काम करने का ऑर्डर N*log(N) होता है; जहाँ N सैम्पुल्स की संख्या है। ज्ञातव्य है कि अधिकांश व्यावहारिक समस्याओं में सामान्यतः N का मान दस लाख से अधिक होता है। इस प्रकार देखा जा सकता है कि डीएफटी की तुलना में एफ् एफ् टी वही काम हजारों गुना तेज गति से कर देता है। कम समय में डीएफटी की गणना से इसकी उपयोगिता और बढ जाती है। इसके अतिरिक्त डीएफटी की तुलना में एफएफटी की विधि से गणना में बहुत कम स्मृति (मेमोरी) की जरूरत पड़ती है। आजकल एफएफटी निकालने की बहुत सी विधियाँ ज्ञात हैं। किन्तु कुली और तुकी की विधि सर्वाधिक प्रचलित है। एफएफटी की ज्ञात विधियों में कुछ में N का मान २ का कोई घातांक के बराबर (जैसे १०२४, ४०९६ आदि) होना चाहिये किन्तु कुछ विधियाँ N के किसी भी मान के लिये भी दक्षतापूर्वक काम करती हैं। .

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दैवी कलनविधि

दैवी कलनविधि (God's algorithm) ऐसी कलनविधियों को कहते हैं जो ऐसा हल प्रस्तुत करता हो जिसमें चालों की कुल संख्या न्यूनतम हो। दैवी कलनविधि की अवधारणा रुबिक की घन पहेली (Rubik's Cube puzzle) का हल निकालते समय आती है किन्तु अन्य कम्बिनेशनल पहेलियों एवं गणितीय खेलों के हल में प्रयुक्त कलनविधियों को भी 'दैवी कलनविधि' कहा जा सकता है। यह नाम इस कारण सार्थक है क्योंकि 'सर्वज्ञानी' को ही इष्टतम (optimal) कदम की जानकारी होती है। श्रेणी:कलनविधि.

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पाटीगणित

पाटीगणित श्रीधराचार्य द्वारा संस्कृत में रचित गणित ग्रन्थ है। 'पाटी' से तात्पर्य गणना-विधि (procedure or algorithm) से है। .

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पासवर्ड (पारण शब्द)

पासवर्ड एक गुप्त शब्द है या संकेताक्षरों की लड़ी है जिसका प्रयोग किसी संसाधन तक पहुंच के लिए या पहचान साबित करने के लिए बतौर प्रमाणीकरण किया जाता है (उदाहरण: कोई प्रवेश या एक्सेस कोड पासवर्ड का एक प्रकार है)। पासवर्ड को उनसे गुप्त रखा जाना चाहिए जिन्हें उसके उपयोग की अनुमति नहीं है। पासवर्ड के उपयोग को प्राचीन माना जाता है। किसी क्षेत्र विशेष में प्रवेश करने के इच्छुक व्यक्तियों या उसके करीब आने वालों को संतरी चुनौती देते हुए उनसे पासवर्ड या वाचवर्ड की मांग किया करते थे। संतरी सिर्फ उसी व्यक्ति या समूह को अनुमति देते हैं, जिन्हें पासवर्ड मालूम होता है। आधुनिक काल में, लोगों द्वारा उपयोगकर्ता के नाम और पासवर्ड का उपयोग आम तौर पर संरक्षित कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम में लॉगिन प्रक्रिया के दौरान, मोबाइल फोन, केबल टीवी डिकोडर्स (decoders), ऑटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएमों (ATMs)) आदि में नियंत्रित प्रवेश पाने के लिए किया जाता है। एक आम कंप्यूटर उपयोगकर्ता को अनेक कामों के लिए पासवर्ड की जरूरत पड़ सकती है: कंप्यूटर विवरणी में प्रवेश के लिए, सर्वर से ई-मेल वापस पाने के लिए, कार्यक्रमों तक पहुंच बनाने के लिए, आंकडा संचय, नेटवर्क, वेब साईट और यहां तक कि सुबह का अखबार ऑनलाइन पढने के लिए। नाम के बावजूद, पासवर्ड के लिए वास्तविक शब्द होने की कोई जरूरत नहीं है; दरअसल वास्तविक शब्द नहीं होते, उनका अनुमान लगाना कठिन हो सकता है, यह एक काम्य सामग्री हो सकती है। कुछ पासवर्ड का गठन अनेक शब्दों से होता है और इसे सटीक रूप से पासफ्रेज (कूटशब्द) नहीं कहा जा सकता.

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पुनरावृत्ति

किसी प्रक्रिया को बारबार दोहराना पुनरावृत्ति (Iteration) कहलाता है। यह कार्य किसी लक्ष्य/परिणाम की प्राप्ति के लिए हो सकता है। पुनरावृत्ति का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में होता है। .

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प्रतिवर्तन

प्रकृति में प्रतिवर्तन प्रतिवर्तन (Recursion) का सामान्य अर्थ है - किसी वस्तु या कार्य का बार-बार उसी रूप में दोहराया जाना। अनेकों विधाओं में इस शब्द का प्रयोग होता है और उनमें इसके भिन्न-भिन्न अर्थ और परिभाषाएँ हैं। उदाहरण के लिए, गणित एवं कम्प्यूटर विज्ञान में जब किसी फलन की परिभाषा में उसी फलन का उपयोग हो तो इसे प्रतिवर्तन कहा जाता है। प्रतिवर्तन का सर्वाधिक उपयोग गणित में ही होता है। गणित तथा तथा संगणक विज्ञान के अतिरिक्त भाषाविज्ञान, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, जीवविज्ञान, तथा कला में भी विविध रूपों में प्रतिवर्तन देखा जा सकता है।; प्रतिवर्तन के कुछ सामान्य उदाहरण.

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प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी

प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये पुरातत्व और प्राचीन साहित्य का सहारा लेना पडता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधतासम्पन्न है। इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, व्याकरण आदि के अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, सैन्य विज्ञान आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्राचीन भारत के कुछ योगदान निम्नलिखित हैं-.

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प्रॉब्लम (कंप्यूटर विज्ञान)

"क्या पूर्णांक n एक अभाज्य पूर्णांक है?".

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प्रोग्रामिंग भाषा

पाइथन (Python) नामक प्रोग्रामन भाषा में लिखित प्रोग्राम का अंश प्रोग्रामिंग भाषा (programming language) एक कृत्रिम भाषा होती है, जिसकी डिजाइन इस प्रकार की जाती है कि वह किसी काम के लिये आवश्यक विभिन्न संगणनाओ (computations) को अभिव्यक्त कर सके। प्रोग्रामिंग भाषाओं का प्रयोग विशेषतः संगणकों के साथ किया जाता है (किन्तु अन्य मशीनों पर भी प्रोग्रामिंग भाषाओं का उपयोग होता है)। प्रोग्रामिंग भाषाओं का प्रयोग हम प्रोग्राम लिखने के लिये, कलन विधियों को सही रूप व्यक्त करने के लिए, या मानव संचार के एक साधन के रूप में भी कर सकते हैं। इस समय लगभग 2,500 प्रोग्रामिंग भाषाएं मौजूद हैं। पास्कल, बेसिक, फोर्ट्रान, सी, सी++, जावा, जावास्क्रिप्ट आदि कुछ प्रोग्रामिंग भाषाएं हैं। .

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फिल्टर

अलग-अलग क्षेत्रों में छनित्र या फिल्टर (Filter) के विभिन्न अर्थ होते हैं - .

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फ्लो चार्ट

क्रमदर्शी आरेख या प्रवाह तालिका (फ्लो चार्ट) वस्तुत: कलन विधि का चित्रात्मक प्रदर्शन है। इसमें विभिन्न रेखाओ एवं आकृतियो का प्रयोग किया जाता है जो कि विभिन्न प्रकार के निर्देशो के लिये प्रयोग की जाती है। देवनागरी में लिखे किसी शब्द-समूह में मात्राओं की संख्या की गणना करने ले एक जावास्क्रिप्ट प्रोग्राम का फ्लोचार्ट जिस प्रकार यातायात के निर्देश विशेष चिन्हो द्वारा प्रदर्शित करने से सूक्ष्म एवं सरल हो जाते है उसी प्रकार प्रवाह तालिका मे विभिन्न चिन्हो एवं आकृतियो के माध्यम से निर्देशो का प्रदर्शन सूक्ष्म एवं सरल हो जाता है और प्रोग्रामर की समझ मे सरलता से आ जाता है। सामान्यत: सर्वप्रथम एक एल्गोरिथम को प्रवाह तालिका के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है और फिर प्रवाह तालिका के आधार पर उचित कम्प्यूटर भाषा मे प्रोग्राम को तैयार किया जाता है। एल्गोरिद्म को अभिव्यक्त करने के अन्य तरीके.

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बड़ा ओ संकेतन

बड़ा ओ संकेतन (अंग्रेज़ी:Big O notation) का उपयोग अंग्रेज़ी के बड़े ओ 'O' को दर्शाकर किया जाता है। .

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बीज-लेखन

द्वितीय विश्व युद्ध में सेना के उच्च स्तरीय जनरल स्टाफ के संदेशों को कूटबद्ध करने के लिए या उन्हें गुप्त भाषा में लिखने के लिए प्रयोग की गई। Lorenz cipher) क्रिप्टोग्राफ़ी या क्रिप्टोलोजी यानि कूट-लेखन यूनानी शब्द κρυπτός,, क्रिपटोस औरγράφω ग्राफ़ो या -λογία,लोजिया (-logia), से लिया गया है। इनके अर्थ हैं क्रमशः छुपा हुआ रहस्य और मैं लिखता हूँ। यह किसी छुपी हुई जानकारी (information) का अध्ययन करने की प्रक्रिया है। आधुनिक समय में, क्रिप्टोग्राफ़ी या कूट-लेखन को गणित और कंप्यूटर विज्ञान (computer science) दोनों की एक शाखा माना जाता है और सूचना सिद्धांत (information theory), कंप्यूटर सुरक्षा (computer security) और इंजीनियरिंग से काफ़ी ज्यादा जुड़ा हुआ है। तकनीकी रूप से उन्नत समाज में कूटलेखन के अनुप्रयोग कई रूपों में मौजूद हैं। उदाहरण के लिये - एटीएम कार्ड (ATM cards), कंप्यूटर पासवर्ड (computer passwords) और इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य (electronic commerce)- ये सभी कूटलेखन पर निर्भर करते हैं। .

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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मान्टे-कार्लो सिमुलेशन

पाई (π) का मान प्राप्त करने के लिये यहाँ मान्टे-कार्लो प्रयोग किया जा रहा है। 30,000 यादृच्छ बिन्दु रखने के बाद π का अनुमानित मान इसके वास्तविक मान के 0.07% के अन्दर आ जाता है। मॉन्टे-कार्लो विधियाँ (Monte Carlo methods या Monte Carlo experiments) कम्प्यूटर-कलन विधियों के उस समूह को कहते हैं जो किसी समस्या के संख्यात्मक परिणाम प्राप्त करने के लिये यादृच्छिक प्रतिचयन (random sampling) का उपयोग करता है। इस विधि का मूल मंत्र यह है कि यादृच्छता (randomness) का उपयोग करते हुए उन समस्याओं क भी ह्ल निकाल सकते हैं जो सिद्धान्ततः सुनिर्धार्य (deterministic) हैं। मान्टे कार्लो विधियाँ प्रायः ही भौतिक एवं गणितीय समस्याओं के हल के लिये उपयोग में लायीं जातीं हैं। ये उस समय सर्वाधिक उपयोगी होतीं हैं जब अन्य विधियों का उपयोग नहीं किया जा सके। ये विधियाँ मुख्यतः तीन प्रकार की समस्याओं के हल के लिये प्रयुक्त होतीं हैं- इष्टतमीकरण (optimization), संख्यात्मक समाकलन (numerical integration), तथा प्रायिकता वितरण दिये होने पर ड्रा निकालना। श्रेणी:संख्यात्मक विश्लेषण.

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मिल्लर रैबिन नंबर अभाज्यता टेस्ट

मिल्लर रैबिन टेस्ट एक रैंडमाईज़ड अल्गोरिद्म है जो पोलीनोमिअल टाइम में बताता है कि कोई नंबर अभाज्य है या नहीं (कंप्यूटर विज्ञान में पोलीनोमिअल टाइम में उत्तर देने वाले अल्गोरिद्मों को तेज माना जाता है)। .

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मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी

अबू अब्दल्लाह मुहम्मद इब्न मूसा अल-ख़्वारिज़्मी (अरबी:, अंग्रेज़ी: Muḥammad ibn Mūsā al-Khwārizmī; जन्म: लगभग ७८० ई; देहांत: लगभग ८५० ई), जिन्हें पश्चिमी देशों में ग़लती से अल्गोरित्मी (Algoritmi) और अलगौरिज़िन​ (Algaurizin) भी कहा जाता था, एक ईरानी-मूल के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और भूगोलवेत्ता थे।, Cristopher Moore, Stephan Mertens, pp.

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मैटलैब

मैटलैब (MATLAB; matrix laboratory का लघुरूप) आंकिक गणना का सॉफ्टवेयर है। यह चतुर्थ पीढ़ी की प्रोग्रामन भाषा भी है जो अर्रे को मूल मानकर बनायी गयी है। यह मैथवर्क्स (MathWorks) द्वारा निर्मित है। इसके प्रयोग से मैट्रिक्स से संबन्धित गणनाएँ, फलनों एवं आंकड़ों की प्लॉटिंग, किसी अल्गोरिद्म का लागू करना, प्रयोक्ता-इंटरफेस का निर्माण आदि किये जा सकते हैं। यह C, C++ और फोर्ट्रान (Fortran) आदि अन्य प्रोग्रामन भाषाओं में लिखे कोड को भी चला सकती है। .

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मूल निकालने की विधियाँ

मूल मूल निकालने की विधियाँ (Root-finding algorithm) वे आंकिक विधियाँ (अर्थात एल्गोरिद्म) हैं जिनकी सहायता से किसी समीकरण f(x) .

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यादृच्छिकता

यादृच्छिकता (रैण्डमनेस) के अनेक अर्थ हैं। सामान्यतया, इसका अर्थ है बेतरतीब होना। किसी घटना के होने अथवा ना होने की यदि कोई दिशा निर्धारित नहीं है तथा वह अनजाने कारणों से किसी नयी स्थिति की ओर बढ़ी चली जा रही है तो ऐसी क्रिया को यादृच्छिक कहते हैं। यह एक गैर-संयोजित तरीके के साथ बढ़ता हुआ क्रियाओं का क्रम है जिसका कोई प्रयोजन नहीं होता। उदाहरण के तौर पर एक साधारण चौसर का पासा किस दिशा में गिरेगा तथा उसके मुख-पृष्ठ पर कौन सा अंक ऊपर आएगा, इसका निर्धारण करना असंभव है जब तक पासों के साथ छेड़खानी ना की गयी हो। उसी तरह एक सामान्य सिक्के के उछलने पर यह पूरे विश्वास से कह पाना असंभव है कि चिट् आएगा या पट। गणित एवं सांख्यिकी की भाषा में ऐसी घटनाओं के होना अथवा ना होने को प्रायिकता के आधार पर आँका जाता है जिसका मान शून्य और एक के बीच में रहता है। यादृच्छिकता अक्सर आँकड़ों में प्रयोग की जाती है। यह अच्छी तरह से परिभाषित सांख्यिकीय गुणों, जैसे पूर्वाग्रह या सहसंबंध की कमी को दर्शाता है। कम्प्यूटेशनल विज्ञान में किसी क्रमरहित या यादृच्छिक संख्या प्राप्त करने के लिए कुछ जाने माने एल्गोरिद्म प्रयोग किये जाते हैं। *.

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यूनिकोड समानुक्रमण अल्गोरिद्म

यूनिकोड समानुक्रमण अल्गोरिद्म (Unicode collation algorithm (UCA)) एक कलन विधि है जो किसी भी दो टेक्स्ट स्ट्रिंग (शब्दों) की तुलना करने के लिए है। सकती है। इस कलन विधि को अपनी आवश्यकतानुसार ढाला जा सकता है (customizable)। यह यूनिकोड तकनीकी रिपोर्ट #10 में पारिभाषित की गई है। दो शब्दों या स्ट्रिग्स की तुलना करके उन्हें समानुक्रमित (collate or sort) किया जा सकता है। यह उन सभी लिपियों के लिए सत्य है जो यूनिकोडित हो चुकी हैं। यूनिकोड तकनीकी रिपोर्ट #10 में डिफाल्ट यूनिकोड समानुक्रमण तत्त्व सूची (Default Unicode Collation Element Table (DUCET)) भी पारिभाषित की गयी है। यह डिफाल्ट क्रम का निर्धारण करती है, अर्थात् यदि इसे अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तित नहीं किया गया तो इसमें पारिभाषित क्रम के अनुसार ही अनुक्रमण (सॉर्टिंग) होगी। .

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रुदाल्फ एमिल कालमान

रुदाल्फ एमिल कालमान (Rudolf Emil Kálmán) (जन्म: 19 मई, 1930) हंगरी में जन्मे अमेरिकी विद्युत अभियन्ता, गणितज्ञ एवं शोधकर्ता हैं। वे कालमान फिल्टर के सह-अनुसंधान एवं विकास के लिये प्रसिद्ध हैं। कालमान फिल्टर एक कलन विधि (अल्गोरिद्म) है जिसका उपयोग संकेत प्रसंस्करण, नियंत्रण तंत्र आदि में होता है। उनके कार्य के लिये, अक्टूबर २००९ में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें राष्त्रीय विज्ञान मेडल प्रदान किया।()। .

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रेग्युलर ऍक्सप्रैशन

नियमित व्यंजक या रेग्युलर ऍक्सप्रैशन कम्प्यूटिंग में स्ट्रिंग्स की खोज (find) या खोजो-और-बदलो (find and replace) के लिए संक्षिप्त, लचीला और सुविधाजनक तरीका है। उदाहरण के लिये कम खोजने पर यह कमल को भी खोजेगा और कमर को भी। रेग्युलर ऍक्सप्रैशन को regex या regexp के रूप में संक्षेपित किया जाता है। ye do prakar ke hote h.zero strings ko null strings bhi khte h रेग्युलर ऍक्सप्रैशन का प्रयोग कई प्रोग्रामन भाषाओं में करना सम्भव है (जैसे जावास्क्रिप्ट में) इसके प्रयोग से एक ही लाइन में बहुत बड़ी बात कही या लिखी जा सकती है जिससे प्रोग्राम छोटा और सुवाच्य (वाचने में सरल) हो जाता है। जो प्रोग्रामर नहीं हैं उनके लिये यह 'फाइण्ड ऐण्ड रिप्लेस' के रूप में इसका बहुत उपयोग है। निम्नलिखित उदाहरण कुछ ऐसी विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं, जिन्हें रेग्युलर ऍक्सप्रैशन में अभिव्यक्त किया जा सके.

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रॉर्शोक परीक्षण

रॉर्शोक परीक्षण (अंग्रेजी: Rorschach test, जर्मन उच्चारण), जिसे रॉर्शोक स्याही का धब्बा परीक्षण, रॉर्शोक तकनीक, या सिर्फ स्याही का धब्बा परीक्षण के नाम से भी जाना जाता है, एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण है जिसमें किसी विषय (व्यक्ति) की विभिन्न स्याही का धब्बों से संबंधित धारणाओं को दर्ज कर मनोवैज्ञानिक व्याख्याओं या वैज्ञानिक रूप से व्युत्पन्न जटिल एल्गोरिदम या फिर दोनों का उपयोग कर विश्लेषण किया जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिक इस परीक्षण का प्रयोग कर किसी व्यक्ति की व्यक्तित्व विशेषताओं और भावनात्मक कार्यविधि की जांच करते हैं। इसका प्रयोग किसी अंतर्निहित सोच संबंधी विकार का पता लगाने के किया जाता है, विशेषकर उन मामलों में, जहां रोगी खुले तौर पर अपनी सोच का वर्णन करने में अनिच्छुक होते हैं। इस परीक्षण का नाम इसके सर्जक, स्विस मनोवैज्ञानिक हरमन रॉर्शोक के नाम पर रखा गया है। .

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लॉजिक गेट

74 शृंखला के एक NAND गेट आईसी का व्यवस्था आरेख (उपर) तथा वास्तविक फोटो (नीचे) तर्कद्वार या लॉजिक गेट (logic gate) वह युक्ति है जिसका आउटपुट उसके इनपुट पर उपस्थित वर्तमान संकेतों या पूर्व संकेतों का कोई लॉजिकल फलन (Boolean function) हो। यह भौतिक युक्ति हो सकती है या कोई आदर्शीकृत युक्ति। आजकल अधिकतर अर्धचालक लॉजिक गेट प्रयोग किये जाते हैं किन्तु सिद्धान्ततः ये विद्युतचुम्बकीय रिले, तरल लॉजिक, दाब लॉजिक, प्रकाशिक लॉजिक, अणुओं आदि से भी बनाये जा सकते हैं। बूलीय लॉजिक से जिन अल्गोरिथ्म का वर्णन किया जा सकता है उन्हें इन भौतिक गेटों से उन अल्गोरिद्मों को साकार रूप भी दिया जा सकता है (बनाया भी जा सकता है)। जिस प्रकार एक दरवाजा (द्वार) दो अवस्थाओं - 'खुला या बन्द' में हो सकता है, उसी तरह लॉजिक गेट का आउटपुट भी 'हाई या लो' (High/Low) हो सकता है। लॉजिक गेट, ऐण्ड (AND) और ऑर (OR) जैसे सरल भी हो सकते हैं और एक कम्प्युटर जितना जटिल भी। डायोड का उपयोग करके बनाया गया लॉजिक गेट सबसे सरल लॉजिक गेट है। किन्तु इसके केवल AND तथा OR गेट ही बनाये जा सकते हैं, 'इन्वर्टर' नहीं बनाया जा सकता। अतः इसे एक 'अपूर्ण लॉजिक परिवार' कह सकते हैं। इन्वर सहित सभी लॉजिक गेट बनाने में सक्षम होने के लिये किसी प्रकार के प्रवर्धक की जरूरत होगी। इसलिये 'सम्पूर्ण लॉजिक परिवार' बनाने के लिये रिले, निर्वात नलिका या ट्रांजिस्टर का प्रयोग अपरिहार्य है। बाइपोलर ट्रांजिस्टरों का प्रयोग करके बना लॉजिक परिवार रेजिस्टर-ट्रांजिस्टर लॉजिक (RTL) कहलाता है। आरम्भिक एकीकृत परिपथों में इसी का उपयोग किया गया था। इसके बाद विभिन्न दृष्टियों से सुधार करते हुए डायोड-ट्रांजिस्टर लॉजिक (DTL) और ट्रांजिस्टर-ट्रांजिस्टर लॉजिक (TTL) आये। अब लगभग सब जगह ट्रांजिस्टर का स्थान मॉसफेट (MOSFETs) ने ले लिया है जिससे आईसी कम स्थान घेरती है और काम करने के लिये कम उर्जा क्षय होती है। वर्तमान में प्रयुक्त लॉजिक परिवार का नाम कम्प्लिमेन्टरी मेटल-आक्साइड-सेमिकंडक्टर (CMOS) है। .

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शाटन की कलनविधि

कम्प्यूटर विज्ञान में उन कलनविधियों को अनुक्रमण कलनविधि (sorting algorithm) कहते हैं जो किसी सूची के अवयवों का मूल क्रम बदलकर किसी अन्य क्रमविशेष में व्यवस्थित करने के काम आतीं हैं। जैसे २, ७, ४, ५, ६ को अनुक्रमित करने पर २, ४, ५, ६, ७ मिलते हैं। दो प्रकार के क्रम सबसे अधिक प्रयुक्त होते हैं - संक्यात्मक क्रम (numerical order) तथा कोशक्रम (lexicographical order)। कम्प्यूटर प्रोग्रामों में अनुक्रमण का सम्भवतः सबसे अधिक उपयोग होता है। इसलिए दक्षतापूर्वक अनुक्रमण करने वाले अल्गोरिद्म बहुत महत्व रखते हैं। कुछ अन्य कलनविधियाँ तभी कार्य कर सकती हैं जब पहले आंक। दों को किसी क्रम में व्यवस्थित किया गया हो। उदाहरण के लिए खोजने (search algorithms) और विलय करने वाले (merge algorithms) अल्गोरिद्म (search and merge algorithms) ठीक से तभी काम करेंगे जब उनका उपयोग किसी अनुक्रमित सूची पर किया जाय। कम्प्यूटरी के आरम्भ से ही अनुक्रमण के प्रश्न पर बहुत अधिक अनुसंधान होता आया है। यद्यपि अनुक्रमण का कार्य बहुत ही सरल कार्य है किन्तु जब किसी वृहद सूची को दक्षतापूर्वक अनुक्रमित करना हो तब यह एक जटिल समस्या बन जाती है। .

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शोर का अल्गोरिद्म

शोर का अल्गोरिद्म पूर्णांकों के गुणनखण्ड के लिए एक क्वांटम अल्गोरिद्म (क्वांटम कंप्यूटर पर चलने वाला अल्गोरिद्म) है जो पोलीनोमिअल टाइम में उत्तर दे देता है (कंप्यूटर विज्ञान में पोलीनोमिअल टाइम में उत्तर देने वाले अल्गोरिद्मों को तेज माना जाता है)। इसके विपरीत, गैर-क्वांटम कंप्यूटर पर पोलीनोमिअल टाइम में पूर्णांकों का गुणनखण्ड करने के लिए कोई भी अल्गोरिद्म ज्ञात नहीं है। .

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सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद

सांख्यिकीय मशीनी अनुवाद (Statistical machine translation (SMT)) मशीनी अनुवाद का ऐसा अल्गोरिद्म है जो दोनो भाषाओं के द्विभाषी शब्दराशि (टेक्स्ट कॉर्पस) के अध्ययन से निर्मित सांख्यिकीय मॉडल पर निर्भर करता है। यह विधि नियम पर आधारित मशीनी अनुवाद (rule-based machine translation) तथा उदाहरण पर आधारित मशीनी अनुवाद (example-based machine translation) से बिलकुल अलग है। विश्व प्रसिद्ध गूगल अनुवादक इसी सिद्धान्त के प्रयोग से अनुवाद करता है। .

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साउण्डेक्स

साउण्डेक्स (Soundex) एक ध्वन्यात्मक कलन विधि है जिसका उपयोग नामों को उनकी अंग्रेजी ध्वनि के अनुसार व्यवस्थित किए जाने में किया जाता है। इसका उद्देश्य यह है कि समान रूप से उच्चारित (homophones) नामों को समान प्रकार से कोडित किया जाय यद्यपि उनके वर्तनियों में मामूली अन्तर क्यों न हो। यह अल्गोरिद्म मुख्यतः व्यंजनों की कोडिंग करता है; स्वर की कोडिंग नहीं की जाती यदि वह शब्द के आरम्भ में न आया हो। सभी फोनेटिक अल्गोरिद्मों में साउण्डेक्स सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसकी प्रसिद्धि का एक कारण यह भी है कि यह PostgreSQL, MySQL, MS SQL Server and Oracle) आदि लोकप्रिय डेटाबेस सॉफ्टवेयरों में शामिल कर लिया गया है। .

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संबद्ध विपणन

संबद्ध विपणन एक ऐसा विपणन (मार्केटिंग) तरीका है जिसमें व्यापार द्वारा, एक या एकाधिक संबद्ध सहयोगियों के विपणन प्रयासों के परिणाम स्वरुप आये आंगतुक या ग्राहक हेतु उसे पुरस्कृत किया जाता है। इसके उदाहरण में पुरस्कार स्थान या क्षेत्र शामिल है, जहाँ किसी प्रस्ताव की समाप्ति पर या क्षेत्र में अन्य व्यक्तियों को भेजने हेतु प्रयोक्ताओं को नकद या उपहार द्वारा पुरस्कृत किया जाता है। इस उद्योग में चार प्रमुख खिलाड़ी होते हैं: व्यापारी (जिसे 'रीटेलर' या "ब्रांड" के नाम से भी जाना जाता है), नेटवर्क, प्रकाशक (जिसे 'संबद्ध' के नाम से भी जाना जाता है), एवं ग्राहक.

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संख्या सिद्धान्त

यह लेख संख्या पद्धति (number system) के बारे में नहीं है। ---- लेमर चलनी (A Lehmer sieve), जो 'आदिम कम्प्यूटर' कही जा सकती है। किसी समय इसी का उपयोग करके अभाज्य संख्याएँ प्राप्त की जातीं थीं तथा सरल डायोफैण्टीय समीकरण हल किए जाते थे। संख्या सिद्धांत (Number theory) सामान्यत: सभी प्रकार की संख्याओं के गुणधर्म का अध्ययन करता है किन्तु विशेषत: यह प्राकृतिक संख्याओं 1, 2, 3....के गुणधर्मों का अध्ययन करता है। पूर्णता के विचार से इन संख्याओं में हम ऋण संख्याओं तथा शून्य को भी सम्मिलित कर लेते हैं। जब तक निश्चित रूप से न कहा जाए, तब तक संख्या से कोई प्राकृतिक संख्या, धन, या ऋण पूर्ण संख्या या शून्य समझना चाहिए। संख्यासिद्धांत को गाउस (Gauss) 'गणित की रानी' कहता था। संख्या सिद्धान्त, शुद्ध गणित की शाखा है। 'संख्या सिद्धान्त' के लिये "अंकगणित" या "उच्च अंकगणित" शब्दों का भी प्रयोग किया जता है। ये शब्द अपेक्षाकृत पुराने हैं और अब बहुत कम प्रयोग किये जाते हैं। .

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संख्यात्मक समाकलन

संख्यात्मक समाकलन से आशय एक संख्यात्मक मान निकालने से है जो S के सन्निकट हो। संख्यात्मक विश्लेषण में किसी निश्चित समाकल का संख्यात्मक मान निकालने की कलनविधियाँ संख्यात्मक समाकलन (numerical integration) के अन्तर्गत आतीं हैं। इसके वितार के रूप में, कभी-कभी अवकलल समीकरणों के संख्यात्मक हल को भी 'संख्यात्मक समाकलन' का नाम दे दिया जाता है। संख्यात्मक समाकलन की मूल समस्या निम्नलिखित प्रकार के निश्चित समाकलों का सन्निकट संख्यात्मक हल निकालना है: संख्यात्मक समाकलन का उपयोग आरम्भिक मान वाले अवकल समीकरणों के लिए भी प्रयुक्त होता है, अर्थात् दिए होने पर y(b) का मान निकालना भी समाकल निकालने के जैसा ही है। यदि f(x) a, b के बीच किसी बिन्दु पर सिंगुलर न हो तथा समाकलन की सीमाएँ सीमित हों तो इसके संख्यात्मक समाकल का मान निकालने की बहुत सी विधियाँ मौजूद हैं। यदि समाकल की सीमाएँ सीमित न हों तो भी चर परिवर्तन (variable transformation) का उपयोग करके सीमाओं को सीमित किया जा सकता है और समाकल का संख्यात्मक मान निकाला जा सकता है। (नीचे देखें) .

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संख्यात्मक विश्लेषण

गणितीय समस्याओं का कम्प्यूटर की सहायता से हल निकालने से सम्बन्धित सैद्धान्तिक एवं संगणनात्मक अध्ययन संख्यात्मक विश्लेषण या आंकिक विश्लेषण (Numerical analysis) कहलाता है। सैद्धान्तिक तथा संगणनात्मक पक्षों पर जोर वस्तुतः कलन विधियों (अल्गोरिद्म) की समीक्षा की ओर ले जाती है। इस बात की जाँच-परख की जाती है कि विचाराधीन कलन विधि द्वारा दी गयी गणितीय समस्या का हल निकालने में -.

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संगणन हार्डवेयर का इतिहास

सूचना संसाधन (ब्लॉक आरेख) के लिए कंप्यूटिंग हार्डवेयर एक उचित स्थान है संगणन हार्डवेयर का इतिहास कंप्यूटर हार्डवेयर को तेज, किफायती और अधिक डेटा भंडारण में सक्षम बनाने के लिए चल रहे प्रयासों का एक रिकॉर्ड है। संगणन हार्डवेयर का विकास उन मशीनों से हुआ है जिसमें हर गणितीय ऑपरेशन के निष्पादन के लिए, पंच्ड कार्ड मशीनों के लिए और उसके बाद स्टोर्ड प्रोग्राम कम्प्यूटरों के लिए अलग मैनुअल कार्रवाई की आवश्यकता होती है। स्टोर्ड प्रोग्राम कंप्यूटरों के इतिहास का संबंध कंप्यूटर आर्किटेक्चर यानी इनपुट और आउटपुट को निष्पादित करने, डेटा संग्रह के लिए और एक एकीकृत यंत्रावली के रूप में यूनिट की व्यवस्था से होता है (दाएं ब्लॉक आरेख को देखें).

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संगणक अभियान्त्रिकी

एक एफपीजीए बोर्ड संगणक अभियांत्रिकी या कम्प्यूटर अभियान्त्रिकी अभियांत्रिकी कि वह शाखा है जिसमे संगणक के सभी हार्डवेयर, साफ्टवेयर एवं प्रचालन तंत्र की डिजाइन, रचना, निर्माण, परीक्षण, रखरखाव आदि का अध्ययन किया जाता है। पहले यह वैद्युत प्रौद्योगिकी की एक शाखा मात्र थी। .

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स्पेस वेक्टर मॉडुलन

स्पेस वेक्टर मॉडुलन (Space vector modulation (SVM)), पल्स विद मॉडुलेशन करने का एल्गोरिद्म है। इसका उपयोग प्रत्यावर्ती धारा (AC) बनाने में होता है जो मुख्यतः तीन फेजी मोटरों को परिवर्ती चाल से घुमाने के काम आता है। स्पेस वेक्टर मॉडुलन कई प्रकार से किया जा सकता है और इन विभिन्न प्रकार के स्पेस वेक्टर मॉडुलन के अलग-अलग गुणधर्म हैं (जैसे कितनी गणना करनी पड़ती है, कुल हार्मोनिक डिस्टॉर्शन कितना है, आदि)। .

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हॉल्टिंग प्रॉब्लम

सैद्धांतिक कंप्यूटर विज्ञान में हॉल्टिंग प्रॉब्लम (Halting problem) इस निर्णय प्रॉब्लम को कहते हैं कि क्या दिया गया कंप्यूटर प्रोग्राम दिए गए इनपुट के लिए कोई उत्तर देगा या हमेशा चलता ही रहेगा। हर कंप्यूटर प्रोग्राम एक इनपुट या निर्देश लेता है और एक आउटपुट देता है। पर, कुछ कंप्यूटर प्रोग्रम कोई ख़ास इनपुट मिलने पर आउटपुट की खोज करते रह जाते हैं, और कभी आउटपुट दे ही नहीं पाते हैं (कभी हॉल्ट (समाप्त) नहीं हो पाते हैं)। ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम ये ख़ास इनपुट मिलने पर कंप्यूटर को हैंग कर देते हैं। इसलिए इनकी पहचान करना बहुत जरुरी होता है, ताकि इन्हें ठुकराया जा सके। इन न रूकने वाले या ना हॉल्ट करने वाले कंप्यूटर प्रोग्रामों की पहचान करने की प्रॉब्लम को हॉल्टिंग प्रॉब्लम कहते हैं। हॉल्टिंग प्रॉब्लम की औपचारिक परिभाषा यह है: "ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम P बनाइए जो दो इनपुट लेता हो, पहला इनपुट एक कंप्यूटर प्रोग्राम Q और दूसरा Q का कोई इनपुट i; और P बताता हो कि क्या कंप्यूटर प्रोग्राम Q इनपुट i मिलने पर हॉल्ट होता है या नहीं"। एलेन ट्यूरिंग ने 1936 में ये साबित किया था कि हाल्टिंग प्रॉब्लम एक अनिर्णनीय प्रॉब्लम है। इसका मतलब है कि ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम बनाना असंभव है जो हर एक कंप्यूटर प्रोग्राम Q और इनपुट i पर सही से बताता हो कि क्या कंप्यूटर प्रोग्राम Q इनपुट i मिलने पर हॉल्ट होता है या नहीं। श्रेणी:कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग.

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ज्यामिति का इतिहास

1728 साइक्लोपीडिया से ज्यामिति की तालिका. ज्यामिति (यूनानी भाषा γεωμετρία; जियो .

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वितत भिन्न

गणित में निम्नलिखित प्रकार के व्यंजक (expression) को वितत भिन्न (continued fraction) कहते हैं। यहाँ, a0 एक पूर्णांक है तथान्य सभी संख्याएँ ai (i ≠ 0) धनात्मक पूर्णांक हैं। यदि उपरोक्त वितत भिन्न में अंश एवं हर का मान कुछ भी होने की स्वतंत्रता दे दी जाय (जैसे फलन होने की छूट) तो इसे 'सामान्यीकृत वितत भिन्न' कह सकते हैं। .

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विलोपन सिद्धान्त

बीजगणित तथा बीजीय ज्यामिति में उन कलनविधियों को विलोपन सिद्धान्त (elimination theory) या केवल 'विलोपन' कहते हैं जो अनेकों चरों से युक्त समीकरणों में से एक या अधिक चरों को हटाने (विलुप्त करने) के लिए प्रयुक्त होती हैं। आजकल रैखिक युगपत समीकरणों से चरों के विलोपन के लिए प्रायः गाउस का विलोपन प्रयुक्त होता है। इसी के उपयोग से इन समीकरणों का हल निकाला जाता है न कि क्रैमर के नियम द्वारा। .

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विकासात्मक कलनविधि

विकासात्मक कलनविधियाँ (इवोलुशनरी एल्गोरिद्म्स) इष्टतमीकरण की कलनविधियाँ हैं जो विकासवाद तथा उससे सम्बन्धित अवधारणाओं (वंशागति, उत्परिवर्तन, चुनाव, तथा क्रासओवर आदि) तकनीकों के अनुसरण पर आधारित हैं। जेनेटिक एल्गोरिथ्म (GA) उनमें से एक है। .

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वैदिक गणित (पुस्तक)

जगद्गुरू स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ द्वारा विरचित वैदिक गणित अंकगणितीय गणना की वैकल्पिक एवं संक्षिप्त विधियों का समूह है। इसमें १६ मूल सूत्र दिये गये हैं। वैदिक गणित गणना की ऐसी पद्धति है, जिससे जटिल अंकगणितीय गणनाएं अत्यंत ही सरल, सहज व त्वरित संभव हैं। स्वामीजी ने इसका प्रणयन बीसवीं सदी के आरम्भिक दिनों में किया। स्वामीजी के कथन के अनुसार वे सूत्र, जिन पर ‘वैदिक गणित’ नामक उनकी कृति आधारित है, अथर्ववेद के परिशिष्ट में आते हैं। परंतु विद्वानों का कथन है कि ये सूत्र अभी तक के ज्ञात अथर्ववेद के किसी परिशिष्ट में नहीं मिलते। हो सकता है कि स्वामीजी ने ये सूत्र जिस परिशिष्ट में देखे हों वह दुर्लभ हो तथा केवल स्वामीजी के ही सज्ञान में हो। वस्तुतः आज की स्थिति में स्वामीजी की ‘वैदिक गणित’ नामक कृति स्वयं में एक नवीन वैदिक परिशिष्ट बन गई है। .

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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गणितज्ञ

लियोनार्ड यूलर को हमेशा से एक प्रसिद्ध गणितज्ञ माना गया है एक गणितज्ञ वह व्यक्ति होता है जिसके अध्ययन और अनुसंधान का प्राथमिक क्षेत्र गणित ही रहता है। .

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ग्रोवर की कलनविधि

ग्रोवर की कलनविधि (Grover's algorithm) एक क्वाण्टम कलनविधि है जो किसी ब्लैक बॉक्स फलन के लिए एक ऐसा इनपुट खोज निकालता है जो दिया हुआ ऑउटपुट पैदा करे। इस कार्य के लिए यह कलनविधि उस ब्लैक बॉक्स फलन के केवल O(\sqrt) मान निकालने के बाद उच्च प्रायिकता के साथ एक अद्वितीय इनपुट प्रदान करती है। यहाँ, N उस फलन के डोमेन का आकार है। इस कलनविधि का प्रतिपादन १९६६ में लव ग्रोवर ने की थी। श्रेणी:कलनविधि.

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गूगल खोज

गूगल खोज या गूगल वेब खोज वेब पर खोज का एक इंजन है, जिसका स्वामित्व गूगल इंक के पास है और यह वेब पर सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला खोज इंजन है। अपनी विभिन्न सेवाओं के जरिये गूगल प्रति दिन कई सौ लाख विभिन्न प्रश्न प्राप्त करता है। गूगल खोज का मुख्य उद्देश्य अन्य सामग्रियों, जैसे गूगल चित्र खोज के मुकाबले वेबपृष्ठों से सामग्री की खोज करना है। मूलतः गूगल खोज का विकास 1997 में लैरी पेज और सेर्गेई ब्रिन ने किया। गूगल खोज मूल शब्द खोज क्षमता से परे कम से कम 22 विशेष सुविधाएं प्रदान करता है। इनमें समानार्थी शब्द, मौसम पूर्वानुमान, समय क्षेत्र, स्टॉक उद्धरण, मानचित्र, भूकंप डेटा, मूवी शोटाइम, हवाई अड्डा, होम लिस्टिंग और खेल स्कोर शामिल है। (नीचे देखें: विशेष सुविधाएं).

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आंकड़ा संरचना

बाइनरी ट्री कम्प्यूटर विज्ञान में, किसी समस्या में उपयोग में आने वाले आँकड़ों को कई प्रकार से व्यवस्थित किया जा सकता है। आँकड़ों की इसी व्यवस्था या विन्यास को आंकड़ा संरचना (डेटा स्ट्रक्चर) कहते हैं। स्पष्टतः आँकड़ों को इस प्रकार विन्यस्त करना चाहिये कि प्रोग्राम द्वारा उन आंकड़ों का उपयोग दक्षतापूर्वक (efficiently) किया जा सकते। कुछ प्रमुख आंकड़ा संरचनाएँ ये हैं- लिस्ट, लिंक्ड लिस्ट, स्टैक, ट्री आदि। किसी समस्या के लिये कोई आंकड़ा संरचना उपयुक्त होती है तो किसी दूसरी समस्या के लिये कोई दूसरी आंकड़ा संरचना। कुछ आँकड़ा संरचनाएँ तो कुछ विशेष कामों के लिये ही प्रयुक्त होती हैं। उदाहरण के लिये, रिलेशनल डेटाबेस से आंकड़ों की पुनःप्राप्ति (retrieval) के लिये प्रायः बी-ट्री इन्डेक्सेस (B-tree indexes) का प्रयोग किया जाता है जबकि कम्पाइलर के निर्माण में आइडेन्टिफायरों (identifiers) को पहचानने के लिये प्रायः हैश टेबल (hash tables) का उपयोग किया जाता है। प्रायः दक्ष अल्गोरिद्म डिजाइन करने के लिये दक्ष आंकडा संरचना का होना बहुत जरूरी है। आंकड़ा संरचना का उपयोग मुख्य स्मृति एवं द्वितीयक स्मृति दोनों में आंकड़ों को भण्डारित करने एवं उन्हें प्राप्त करने के लिये किया जाता है। .

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कटपयादि

कटपयादि (.

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कम्प्यूटर विज्ञान

कम्प्यूटर विज्ञान संगणन और उसके उपयोग की ओर वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण है। यह जानकारी के पहुँच, सम्प्रेषण, संचय, प्रसंस्करण, प्रतिनिधित्व और अर्जन हेतु उपयोग में लाये जाने वाले व्यवस्थित प्रक्रियाओं (या कलन विधियों) के मशीनीकरण, अभिव्यक्ति, संरचना, और साध्यता का व्यवस्थित अध्ययन है। संगणक विज्ञान एक वैकल्पिक, संक्षिप्त परिभाषा के अनुसार यह मापने योग्य स्वचालित कलन विधियों का अध्ययन है। संगणक वैज्ञानिक संगणन के सिद्धांत और गणना योग्य प्रणालियों की योजना में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। कंप्यूटर विज्ञान (कम्प्यूटर विज्ञान) के अन्तर्गत सूचना तथा संगणन (computation) के सैद्धान्तिक आधारों अध्ययन किया जाता है और साथ में इन सिद्धान्तों को कंप्यूटर प्रणालियों में व्यवहार में लाने की विधियों का अध्ययन किया जाता है। कंप्यूटर विज्ञान को प्राय: कलन विधियों के विधिवत (systematic) अध्ययन के रूप में देखा जाता है और कंप्यूटर विज्ञान का मूल प्रश्न यही है - कौन सा काम (दक्षतापूर्वक) स्वत: किया जा सकता है? (What can be (efficiently) automated?) .

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कलन-विधियों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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कलनविधियों का विश्लेषण

संगणक विज्ञान में, कलनविधियों के विश्लेषण (analysis of algorithms) से तात्पर्य किसी कलनविधि की गणनात्मक जटिलता निर्धारित करना है। दूसरे शब्दों में, किसी अल्गोरिद्म को चलाने पर वह काम पूरा करने में कितना समय लेगा, कितना भण्डारण (स्मृति) चाहिये, तथा अन्य संसाधन कितना खर्च करेगा। श्रेणी:कलनविधि.

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कारमारकर का अल्गोरिद्म

कारमारकर का अल्गोरिद्म 1984 में नरेंद्र कारमारकर द्वारा दिया गया एक अल्गोरिद्म है जो पोलीनोमिअल टाइम में रैखिक प्रोग्रामन प्रॉब्लम का हल करता है (कंप्यूटर विज्ञान में पोलीनोमिअल टाइम में उत्तर देने वाले अल्गोरिद्मों को तेज माना जाता है)। श्रेणी:कम्प्यूटर विज्ञान श्रेणी:अल्गोरिद्म.

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कुट्टक

कुट्टक रैखिक डायोफैंटीय समीकरणों के पूर्णांक हल निकालने की विधि (algorithm) हैं जो भारतीय गणित में बहुत प्रसिद्ध हैं। .

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क्रमानुदेशन

'बेसिक' नामक संगणक भाषा में लिखे किसी प्रोग्राम की कुछ पंक्तियाँ सामान्य जीवन मे जब हम किसी कार्य विशेष को करने का निर्णय करते हैं तो उस कार्य को करने से पूर्व उसकी रूपरेखा सुनिश्चित की जाती है। कार्य से संबंधित समस्त आवश्यक शर्तो का अनुपालन उचित प्रकार हो एवं कार्य मे आने वाली बाधाओ पर विचार कर उनको दूर करने की प्रक्रिया भी रूपरेखा तैयार करते समय महत्वपूर्ण विचारणीय विषय होते हैं। कार्य के प्रारम्भ होने से कार्य के सम्पन्न होने तक के एक एक चरण पर पुनर्विचार करके रूपरेखा को अंतिम रूप देकर उस कार्य विशेष को सम्पन्न किया जाता है। इसी प्रकार संगणक द्वारा, उसकी क्षमता के अनुसार, वाँछित कार्य कतिरछे अक्षरराये जा सकते हैं। इसके लिये आवश्यकता है संगणक को एक निश्चित तकनीक व क्रम मे निर्देश दिये जाने की, ताकि संगणक द्वारा इन निर्देशों का अनुपालन कराकर वांछित कार्य को समपन्न किया जा सके। सामान्य बोलचाल की भाषा मे इसे क्रमानुदेशन या प्रोग्रामन या क्रमानुदेशन कहते हैं। सभी निर्देशों के समूह (सम्पूर्ण निर्देशावली) को प्रोग्राम कहा जाता है। .

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अनिर्णनीय प्रॉब्लम

सैद्धांतिक कंप्यूटर विज्ञान में अनिर्णनीय प्रॉब्लम एक ऐसी निर्णय प्रॉब्लम को कहते हैं जिसका हल करने के लिए अल्गोरिद्म नहीं बन सकता है। सरल शब्दों में अनिर्णनीय प्रॉब्लम "हाँ या न" उत्तर वाले प्रश्नों के ऐसे समूह को कहते हैं जिसके लिए ऐसा अल्गोरिद्म बनाना असंभव है जो समूह के हर प्रश्न के लिए सही उत्तर देता हो। .

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अभिकलनात्मक गणित

अभिकलनात्मक गणित (Computational mathematics) ज्ञान के उन क्षेत्रों से संबन्धित है जहाँ अभिकलन की भूमिका बहुत महत्व की है। १९५० के दशक तक अभिकलनात्मक गणित, अनुप्रयुक्त गणित का अलग प्रभाग बन चुका था। इसमें अल्गोरिद्म, आंकिक विधियों (numerical methods) तथा प्रतीकात्मक विधियों (symbolic methods) का अध्ययन किया जाता है। सम्प्रति, अभिकलनात्मक गणित में निम्नांकित विषय शामिल हैं-.

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अंकीय रक्षी रिले

विद्युत शक्ति के संप्रेषण और वितरण के सन्दर्भ में, अंकीय रक्षी रिले (digital protective relay) उस तन्त्र को कहते हैं जो विद्युत दोषों (Faults) का पता करने के लिए सॉफ्टवेयर-आधारित कलन विधि (अल्गोरिद्म) तथा अंकीय तन्त्र (जैसे माइक्रोकन्ट्रोलर आदि) का उपयोग करता है। अतः इन्हें माइक्रोप्रोसेसर प्रकार के रक्षी रिले अथवा न्युमेरिकल रिले भी कहते हैं। ये विद्युत-चुम्बकीय रक्षी रिले के स्थान पर सीधे प्रयुक्त किये जाते हैं। इनकी विशेष बात यह है कि सॉफ्टवेयर आधारित होने के कारण एक ही अंकीय रक्षी रिले द्वारा अनेकों रक्षी-कार्य कराये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, इनका उपयोग मीटरिंग, संचार, स्व-परीक्षण आदि के लिए किया जा सकता है। .

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अंकीय संकेत प्रक्रमण

संकेत प्रक्रमण या संकेत प्रसंस्करण दो तरह से किया जाता है.

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उत्थापक कलनविधि

कम्प्यूटर के डिस्क के भुजा (आर्म) और सिर (हेड) की गति निर्धारण की कलनविधि का नाम उत्थापक कलनविधि (elevator algorithm या SCAN) है। डिस्क पर सूचना लिखने (राइट) या लिखी सूचना को पढ़ने (रीड) के लिए यह गति आवश्यक होती है। इस अल्गोरिद्म का नाम भवनों में लगने वाले 'उत्थापक' (एलिवेटर) के नाम पर रखा गया है। भवनों में लगे उत्थापक वर्तमान गति की दिशा (ऊपर या नीचे) में तब तक आगे बढ़ते रहते हैं जब तक खाली न हों जाँय। वे तभी रुकते हैं जब किसी को बीच में उतरना हो या उसी दिशा में जाने का इच्छुक रास्ते में (बाहर) प्रतीक्षारत हो। जहाँ तज इस कलनविधि को कार्यान्यवित करने का प्रश्न है, ड्राइव रीड/राइट के बाकी बचे निवेदनों की सूचना रखता है। इसके साथ यह भी जानकारी रखता है कि किस सिलिण्डर पर लिखना/पढ़ना है। सिलिण्डर-संख्या कम हो तो उसका अर्थ है कि सम्बन्धित सिलिण्डर के पास है जबकि अपेक्षाकृत बड़ी सिलिण्डर-संख्या बताती है कि सिलिण्डर स्प्लिण्डिल से दूर है। श्रेणी:कलनविधि.

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उपपत्ति

प्रकरण से प्रतिपादित अर्थ के साधन में जो युक्ति प्रस्तुत की जाती है उसे उपपत्ति कहते हैं- ज्ञान के साधन में उपपत्ति का महत्वपूर्ण स्थान है। आत्मज्ञान की प्राप्ति में जो तीन क्रमिक श्रेणियाँ उपनिषदों में बतलाई गई हैं उनमें मनन की सिद्धि उपपत्ति के ही द्वारा होती है। वेद के उपदेश को श्रुतिवाक्यों से प्रथमतः सुनना चाहिए (श्रवण) और तदनन्तर उनका मनन करना चाहिए (मनन)। युक्तियों के सहारे ही कोई तत्व दृढ़ और हृदयंगम बताया जा सकता है। बिना युक्ति के मनन निराधार रहता है और यह आत्मविश्वास नहीं उत्पन्न कर सकता। मनन की सिद्धि के अनंतर निदिध्यासन करने पर ही आत्मा की पूर्ण साधना निष्पन्न होती है। "मन्तव्यश्चोपपत्तिभिः" की व्याख्या में माथुरी उपपत्ति को हेतु का पर्याय मानती है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

एल्गोरिद्म, ऐल्गोरिदम, ऐल्गोरिद्म, कलन विधि, कलन-विधि, कलनविधि, अल्गोरिथ्म

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