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अर्धायु काल

सूची अर्धायु काल

अर्धायु काल, क्षय होते हुए किसी तत्त्व का वो काल होता है; जिसमें वो तत्त्व मूल मात्रा से आधा हो जाये। ये नाम पहले अस्थिर परमाणुओं (रेडियोधर्मी क्षय) के लिए प्रयोग किया जाता था, किन्तु अब इसे किसी भी निश्चित क्षय वाले तत्त्व के लिए प्रयोग किया जाता है। यह मूल शब्द १९०७ में अर्धायु काल के नाम से प्रयुक्त हुआ था, जिसे बाद में १९५० में घटा कर अर्धायु कर दिया गया। .

18 संबंधों: चरघातांकी क्षय, डार्मस्टाडियम, धूम्र संसूचक, पारऐक्टिनाइड, प्रोटॉन, प्लूटोनियम, प्लूटोनियम के समस्थानिक, प्लूटोनियम-२३८, प्लूटोनियम-२३९, प्लूटोनियम-२४२, प्लूटोनियम-२४४, बोरियम, यूरेनियम, रेन्टजेनियम, लिवरमोरियम, कोपरनिसियम, कोबाल्ट-६०, अर्धायु काल

चरघातांकी क्षय

चरघातांकी क्षय से गुजरने वाली एक राशी। क्षय नियतांक का मान जितना अधिक होगा राशी का मान उतना ही तेजी से कम होगा। उपरोक्त ग्राफ में x को 0 से 5 तक परिवर्तित करने पर समबंधित क्षय नियतांक (λ) के 25, 5, 1, 1/5 और 1/25 के क्षय जो दिखाया गया है। एक राशी को चरघातांकी क्षय के रूप में अध्ययन किया जायेगा यदि राशी अपनी वर्तमान मान के अनुक्रमानुपाती कम हो रही है अर्थात इसके मान की कम होने की दर इसके वर्तमान मान के अनुक्रमानुपाती है। गणितीय रूप में उपरोक्त कथन को निम्न अवकल समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है, जहाँ N मात्रा है और λ (लैम्डा) एक धनात्मक संख्या है जिसे क्षय नियतांक कहते हैं: उपरोक्त समीकरण का हल निम्न है: चरघातांकी परिवर्तन की दर यहाँ N(t) समय t पर मात्रा है और N0 .

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डार्मस्टाडियम

डार्मस्टाडियम (अंग्रेज़ी:Darmstadtium) एक रासायनिक तत्व है। इसे Ds से प्रदर्शित किया जाता है। इसका परमाणु क्रमांक 110 है। यह एक अति रेडियोधर्मी पदार्थ है। इसका अर्धायु काल लगभग 10 सेकंड का होता है। इस पदार्थ का खोज वर्ष 1994 में डर्मस्टाद्ट, जर्मनी में रहने कुछ वैज्ञानिकों ने किया। .

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धूम्र संसूचक

स्मोक डिटेक्टर (धुएं का पता लगाने वाला यंत्र) एक उपकरण है जो ख़ास तौर पर आग के सूचक के रूप में धुएं का पता लगाता है। व्यावसायिक, औद्योगिक और बड़े पैमाने पर उपयोग होने वाले आवासीय उपकरण आग लगने की चेतावनी देने वाली एक प्रणाली को संकेत देते हैं, जबकि घरेलू डिटेक्टर, जिन्हें स्मोक अलार्म (धुएं की चेतावनी देने वाला उपकरण कहा जाता है), आम तौर पर डिटेक्टर से ही स्थानीय रूप से सुनाई और/या दिखाई देने वाली चेतावनी देते हैं। स्मोक डिटेक्टर को ख़ास तौर पर डिस्क के आकार वाले प्लास्टिक के एक घेरे में रखा जाता है जिसका व्यास लगभग एवं मोटाई लगभग होती है। अधिकांश स्मोक डिटेक्टर या तो प्रकाशीय (ऑप्टिकल) पहचान (विद्युतप्रकाशीय) या भौतिक प्रक्रिया (आयनीकरण) के द्वारा काम करते हैं, जबकि अन्य डिटेक्टर धुएं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए पहचान की दोनों विधियों का उपयोग करते हैं। संवेदनशील अलार्म का उपयोग शौचालयों एवं विद्यालयों जैसे धूम्रपान प्रतिबंधित क्षेत्रों में इसका पता लगाने और इस प्रकार उसे रोकने में किया जा सकता है। बड़े व्यावसायिक, औद्योगिक और आवासीय इमारतों में आमतौर पर स्मोक डिटेक्टरों को एक आग की चेतावनी देने वाली एक केंद्रीय प्रणाली से ऊर्जा मिलती है, जिसे बैटरी बैकअप वाली इमारत की बिजली से ऊर्जा प्राप्त होती है। हालांकि, कई एकाकी परिवार और छोटे एकाधिक परिवार वाले आवासों में, स्मोक (धुंआ) अलार्म को अक्सर केवल एक बार प्रयोग किये जाने योग्य एकल बैटरी द्वारा संचालित किया जाता है। .

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पारऐक्टिनाइड

पारऐक्टिनाइड (Transactinide, ट्रान्सऐक्टिनाइड), जिन्हें महा-भारी तत्व (super-heavy elements, सूपर-हेवी तत्व) भी कहते हैं, रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) में ऐक्टिनाइड शृंखला के तुरंत बाद आने वाले तत्व होते हैं। इनके परमाणु क्रमांक (ऐटोमिक नम्बर) १०४ से ११८ होते हैं। कोई भी पारऐक्टिनाइड तत्व प्रकृति में नहीं मिलता और सभी केवल प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से बनाए गए हैं। सभी रेडियोधर्मी हैं और इस अस्थिरता के कारण इन्हें बनाते ही इनके परमाणु टूटने लगते हैं। इनमें से सबसे स्थाई १०४ के परमाणु क्रमांक वाला रदरफोर्डियम (Rf) है, जिसका अर्धायु काल (हाफ़-लाइफ़) केवल ११ मिनट है। .

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प्रोटॉन

प्राणु संरचना प्राणु (प्रोटॉन) एक धनात्मक विध्युत आवेशयुक्त मूलभूत कण है, जो परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता हैं। इसे p प्रतिक चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है। इस पर 1 दो अप-क्वार्क और एक डाउन-क्वार्क से मिलकर बना होता है। स्वतंत्र रूप से यह उदजन आयन H+ के रूप में पाया जाता है। .

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प्लूटोनियम

प्लूटोनियम एक दुर्लभ ट्रांसयूरेनिक रेडियोधर्मी तत्त्व है। इसका रासायनिक प्रतीक Pu और परमाणु भार ९४ होता है। प्लूटोनियम के छः अपरूप होते हैं। यह एक ऐक्टिनाइड तत्त्व है जो दिखने में रुपहले श्वेत (सिल्वर व्हाइट) रंग का होता है। प्लूटोनियम-२३८ का अर्धायु काल ८७.७४ वर्ष होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। १० दिसम्बर २००९ प्लूटोनियम-२३९, प्लूटोनियम का एक महत्वपूर्ण समस्थानिक है जिसकी अर्धायु काल २४,१०० वर्ष होता है। प्लूटोनियम-२४४, प्लूटोनियम का सर्वाधिक स्थाई समस्थानिक होता है। इसका अर्धायु काल ८ करोड़ वर्ष होता है। .

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प्लूटोनियम के समस्थानिक

मोटे अक्षर प्लूटोनियम के कोई भी स्थिर समस्थानिक उपलब्ध नहीं हैं। अतः कोई मानक परमाणु भार देना संभव नहीं है। .

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प्लूटोनियम-२३८

प्लूटोनियम अपनी ऊष्मा से प्रज्ज्वलित प्लूटोनियम-२३८, प्लूटोनियम का एक रेडियोधर्मी समस्थानिक होता है। इसकी अर्धायु ८७.७ वर्ष होती है। श्रेणी:रसायन शास्त्र श्रेणी:एक्टिनाइड श्रेणी:प्लूटोनियम के समस्थानिक श्रेणी:रेडियोधर्मी ईंधन.

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प्लूटोनियम-२३९

प्लूटोनियम-२३९ प्लूटोनियम का एक समस्थानिक होता है। इसका अर्धायु काल २४,११० वर्ष होता है। श्रेणी:एक्टिनाइड श्रेणी:प्लूटोनियम के समस्थानिक.

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प्लूटोनियम-२४२

प्लूटोनियम-२४२ प्लूटोनियम का एक समस्थानिक होता है। इसका अर्धायु काल २४,११० वर्ष होता है। श्रेणी:एक्टिनाइड श्रेणी:प्लूटोनियम के समस्थानिक.

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प्लूटोनियम-२४४

प्लूटोनियम-२४४ प्लूटोनियम का एक समस्थानिक होता है। इसका अर्धायु काल ८ करोड़ वर्ष होता है। श्रेणी:एक्टिनाइड श्रेणी:प्लूटोनियम के समस्थानिक.

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बोरियम

बोरियम एक रासायनिक तत्व है, जिसे Bh के चिह्न से दिखाया जाता है और इसका परमाणु क्रमांक 107 है। इस तत्व को प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है, लेकिन प्रकृति में कहीं नहीं मिलता है। इसका सबसे स्थायी समस्थानिक 270Bh है। इसकी अर्ध-आयु लगभग 61 सेकंड की होती है। अप्रमाणित 278Bh की अर्ध-आयु 690 सेकंड की होती है, जो पहले वाले से काफी अधिक समय है। .

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यूरेनियम

यूरेनियम आवर्त सारणी की एक अंतर्वर्ती श्रेणी, ऐक्टिनाइड श्रेणी (actinide series), का तृतीय तत्व है। इस श्रेणी में आंतरिक इलेक्ट्रॉनीय परिकक्षा (5 परिकक्षा) के इलेक्ट्रॉन स्थान लेते हैं। प्रकृति में पाए गए तत्वों में यह सबसे भारी तत्व है। कुछ समय पहले तक इस तत्व को छठे अंतर्वर्ती समूह का अंतिम तत्व माना जाता था। .

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रेन्टजेनियम

रेन्टजेनियम (Roentgenium), जिसका रासायनिक प्रतीक Rg है, एक रासायनिक तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक (एटोमिक नम्बर) १११ है। कोपरनिसियम प्रकृति में नहीं पाया जाता और यह केवल प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से निर्मित किया गया है। इसका नाभिक (न्यूक्लीयस) बहुत अस्थाई है जिसके कारणवश यह अत्यंत रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) है और इसके सबसे स्थाई रूप - रेन्टजेनियम-२८१ (roentgenium-281) - का अर्धायु काल (हाफ़ लाइफ़) केवल २६ सैकिंड है। यह सबसे पहले १९९४ में बनाया गया था। यह यह आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) के डी (d) खण्ड में आता है और एक पारऐक्टिनाइड तत्व है। .

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लिवरमोरियम

लिवरमोरियम एक अति भारी तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक 116 है। यह एक रेडियोसक्रियता वाला तत्व है, जिसे केवल प्रयोगशाला में ही बनाया जाता है और प्रकृति में इसकी कोई उपस्थिति नहीं होती है। इसके नाम को आईयूपीएसी ने 30 मई 2012 को अपनाया था। इसका द्रव्यमान संख्या 290 और 293 के मध्य होता है। इसका अर्धायु काल 60 मिलीसेकंड (0.001 सेकंड) का होता है। .

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कोपरनिसियम

कोपरनिसियम (Copernicium), जिसका रासायनिक प्रतीक Cn है, एक रासायनिक तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक (एटोमिक नम्बर) ११२ है। कोपरनिसियम प्रकृति में नहीं पाया जाता और यह केवल प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से निर्मित किया गया है। इसका नाभिक (न्यूक्लीयस) बहुत अस्थाई है जिसके कारणवश यह अत्यंत रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) है और इसकी अर्धायु काल (हाफ़ लाइफ़) केवल २९ सैकिंड है। यह सबसे पहले १९९६ में बनाया गया था और कुल मिलाकर सन् २०१५ तक कोपरनिसियम के केवल ७५ परमाणु देखे गये थे। यह यह आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) के डी (d) खण्ड में आता है और एक पारऐक्टिनाइड तत्व है। .

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कोबाल्ट-६०

60Co का γ-किरण वर्णक्रम कोबाल्ट-६० (६०Co) कोबाल्ट का एक समस्थानिक है। ये सबसे अधिक प्रयोग में आने वाले रेडियोधर्मी समस्थानिकों में से है। प्राकृतिक रूप में पाया जाने वाला कोबाल्ट अपनी प्रकृति में स्थायी होता है, लेकिन ६०Co एक मानव-निर्मित रेडियो समस्थानिक है जिसे व्यापारिक प्रयोग के लिए ५९Co के न्यूट्रॉन सक्रियन द्वारा तैयार किया जाता है। इसका अर्धायु काल ५.२७ वर्ष का होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ५ मई २०१० ६०Co ऋणात्मक बीटा क्षय द्वारा स्थिर समस्थानिक निकल-६० (६०Ni) में बदल जाता है। सक्रिय निकल परमाणु १.१७ एवं १.३३ माइक्रोइलेक्ट्रॉनवोल्ट के दो गामा किरणें उत्सर्जित करता है। वैसे कोबाल्ट-६० परमाणु संयंत्रों की क्रिया से बनने वाला एक उपफल होता है। ये कई कामों में उपयोग होता है, जिनमें कैंसर के उपचार से लेकर औद्योगिक रेडियोग्राफी तक आते है। औद्योगिक रेडियोग्राफी में यह किसी भी इमारत के ढांचे में कमी का पता लगाता है। इसके अलावा चिकित्सा संबंधी उपकरणों की स्वच्छता, चिकित्सकीय रेडियोथेरेपी, प्रयोगशाला प्रयोग के रेडियोधर्मी स्रोत, स्मोक डिटेक्टर, रेडियोएक्टिव ट्रेसर्स, फूड और ब्लड इरेडिएशन जैसे कार्यो में भी प्रयोग किया जाता है।। अंतर्मंथन। ६ मई २०१० हालांकि प्रयोग में यह पदार्थ बहुआयामी होता हैं, किन्तु इसको नष्ट करने में कई तरह की समस्याएं आती हैं। भारत की ही तरह संसार भर में कई स्थानों पर इसे कचरे के रूप में बेचे जाने के बाद कई दुर्घटनाएं सामने आयी हैं, जिस कारण इसके संपर्क में आने वाले लोगों का स्वास्थ्य संबंधी कई घातक बीमारियों से साम्ना हुआ है। धातु के डिब्बों में बंद किए जाने के कारण यह अन्य कचरे के साथ मिलकर पुनर्चक्रण संयंत्रों में कई बार गलती से पहुंच जाता है। यदि इसे किसी संयंत्र में बिना पहचाने पिघला दिया जाए तो यह समूचे धातु को विषाक्त कर सकता है। कोबाल्ट-६० जीवित प्राणियों में काफी नुकसान पहुंचाता है। अप्रैल २०१० में दिल्ली में हुई एक दुर्घटना में भी कोबाल्ट-६० धात्विक कचरे में मिला है। इसकी चपेट में आए लोगों को स्वास्थ्य संबंधी गंभीर हानि हुई हैं। मानव शरीर में पहुंचने पर यह यकृत, गुर्दो और हड्डियों को हानि पहुंचाता है। इससे निकलने वाले गामा विकिरण के संपर्क में अधिक देर रहने के कारण कैंसर की आशंका भी बढ़ जाती है। .

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अर्धायु काल

अर्धायु काल, क्षय होते हुए किसी तत्त्व का वो काल होता है; जिसमें वो तत्त्व मूल मात्रा से आधा हो जाये। ये नाम पहले अस्थिर परमाणुओं (रेडियोधर्मी क्षय) के लिए प्रयोग किया जाता था, किन्तु अब इसे किसी भी निश्चित क्षय वाले तत्त्व के लिए प्रयोग किया जाता है। यह मूल शब्द १९०७ में अर्धायु काल के नाम से प्रयुक्त हुआ था, जिसे बाद में १९५० में घटा कर अर्धायु कर दिया गया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

अर्ध आयु, अर्ध आयु काल, अर्ध-आयु, अर्धायु

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