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अयस्क

सूची अयस्क

लोहे का एक अयस्क उन शैलों को अयस्क (ore) कहते हैं जिनमें वे खनिज हों जिनमें कोई धातु आदि महत्वपूर्ण तत्व हों। अयस्कों को खनन करके बाहर लाया जाता है; फिर इनका शुद्धीकरण करके महत्वपूर्ण तत्व प्राप्त किये जाते हैं। .

42 संबंधों: चुम्बक, टिन, थर्मल प्रदूषण, थैलियम, थोरियम, धातु, धातुकर्म, निष्कर्षण धातुकर्मिकी, पारा, प्रगलन, बॉक्साइट, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारत के खनन घोटाले, भारतीय रसायन का इतिहास, मृदा प्रदूषण, मोबाइल फ़ोन, मोलिब्डेनम, यूरेनियम, यूरेनियम खनन, रुबिडियम, लौह धातुकर्म का इतिहास, लौह अयस्क, लोहा, सायनाइड विधि, जल संसाधन, ज़र्कोनियम, घंटा धातु, वात्या भट्ठी, विद्युत अपघटन, खनन, खनि भौमिकी, खनिज प्रसाधन, गंधराल, आर्सेनिक, इल्मेनाइट, इस्पात निर्माण, कुदरेमुख, क्षार धातु, के आई ओ सी एल लिमिटेड, अवसादी शैल, अकार्बनिक रसायन, 2007-2009 का वित्तीय संकट

चुम्बक

एक छड़ चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित हुई लौह-धुरि (iron-filings) एक परिनालिका (सॉलिनॉयड) द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय बल रेखाएँ फेराइट चुम्बक चुम्बक (मैग्नेट्) वह पदार्थ या वस्तु है जो चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। चुम्बकीय क्षेत्र अदृश्य होता है और चुम्बक का प्रमुख गुण - आस-पास की चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुम्बकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने का गुण, इसी के कारण होता है। .

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टिन

वंग या रांगा या टिन (Tin) एक रासायनिक तत्त्व है। लैटिन में इसका नाम स्टैन्नम (Stannum) है जिससे इसका रासायनिक प्रतीक Sn लिया गया है। यह आवर्त सारणी के चतुर्थ मुख्य समूह (main group) की एक धातु है। वंग के दस स्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ११२, ११४, ११५, ११६, ११७, ११८, ११९, १२०, १२२ तथा १२४) प्राप्त हैं। इनके अतिरिक्त चार अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या ११३, १२१, १२३ और १२५) भी निर्मित हुए हैं। .

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थर्मल प्रदूषण

पोत्रेरो जेनेरेटिंग स्टेशन सेन फ्रांसिस्को खाड़ी में गर्म पानी निस्सरण करते हुए. सेलना, रॉबर्ट (2009). "पावर प्लांट का मछली मारने से रोकने की कोई योजना नहीं है।" सेन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल, 2 जनवरी 2009. थर्मल प्रदूषण किसी भी प्रकार के प्रदूषण की प्रक्रिया को कहा जायेगा जिससे व्यापक रूप में पानी के प्राकृतिक तापमान में बदलाव होता हो। थर्मल प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण बिजली संयंत्रों तथा औद्योगिक विनिर्माताओं द्वारा शीतलक पानी का प्रयोग करने से होता है। जब शीतलक हेतु प्रयोग किया गया पानी पुनः प्राकृतिक पर्यावरण में आता है तो उसका तापमान अधिक होता है, तापमान में बदलाव के कारण (क.) ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है (ख.) पारिस्थिथिकी तंत्र पर भी प्रभाव पड़ता है। नगरीय जल बहाव-- सड़कों और गाड़ियों को रखने के स्थानों से बहे पानी, ये सभी तापमान के बढ़ने के कारण हो सकते हैं। जब एक बिजली संयंत्र मरम्मत अथवा अन्य कारणों से खुलता और बंद होता है, तो इसकी वजह से मछलियां और अन्य तरह के जीवाणु जो की एक विशेष प्रकार के तापमान के आदि होते हैं, अचानक तापमान में हुई बढ़ोतरी से मर जाते हैं, इसे 'थर्मल झटका' कहा जाता है। थर्मल प्रदूषण का एक और कारण जलाशय तालाब/टंकी द्वारा बहुत ही ज्यादा ठन्डे पानी को उष्ण नदियों में बहाने से होता है। .

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थैलियम

थैलियम (Thallium) एक रासायनिक तत्त्व है। यह आवर्त सारणी के तृतीय मुख्य समूह का अंतिम तत्व है। इसके दो स्थिर समस्थानिक प्राप्त हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ २०३ एवं २०५ हैं। इसके अतिरिक्त इसके नौ अस्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं। इनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९९, २००, २०२, २०४, २०६, २०७, २०८, २०९ और २१० हैं। इनमें कुछ रेडियधर्मी अयस्कों में मिलते हैं और कुछ कृत्रिम साधनों द्वारा उपलब्ध हैं। इस तत्व की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक विलियम क्रुक्स ने १८६१ ईo में एक विशेष सेलेनियम युक्त पायराइट (seleniferous pyrite) में वर्णक्रममापी (spectroscopic) उपकरण द्वारा की। उन्होंने भूर्जित (roasted) अयस्क की धूल के वर्णक्रममापी निरीक्षण में एक हल्के हरे रंग की रेखा देखी, जिसके कारण इस तत्व का नाम थैलियम रखा। इस तत्व को लैमी (Lamy) ने सर्वप्रथम पृथक् कर इसके गुणधर्म का निरीक्षण किया। अनेक पायराइट अयस्कों में थैलियम न्यून मात्रा में वर्तमान रहता है। केवल क्रुसाइट (Crookesite) नामक अयस्क में यह १७% मात्रा में उपस्थित रहता है। सामान्यत: यह कुछ अयस्कों की चिमनी (flue) धूल, या सल्फ्यूरिक अम्ल बनते समय प्रकोष्ठ कीच (chamber mud), से निकाला जाता है। कीच को उबलते जल से उपचारित करने पर थैलियम सल्फेट का विलयन बन जाता है, जिसे छानकर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा क्लोराइड में परिवर्तित करते हैं। क्लोराइड को फिर सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा सल्फेट में परिणत करने से अन्य अपद्रव्य दूर हो जाते हैं। उबलते जल की क्रिया से केवल थैलियम सल्फेट ही घुलता है। विलयन के विद्युद्विश्लेषण अथवा यशद धातु की प्रक्रिया द्वारा थैलियम धातु मिलती है। .

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थोरियम

'''मोनाजाइट''' नामक खनिज थोरियम का प्रमुख स्रोत है। यह एक विरल मृदा एवं थोरियम फॉस्फेट है। थोरियम (Thorium) आवर्त सारणी के ऐक्टिनाइड श्रेणी (actinide series) का प्रथम तत्व है। पहले यह चतुर्थ अंतर्वर्ती समूह (fourth transition group) का अंतिम तत्व माना जाता था, परंतु अब यह ज्ञात है कि जिस प्रकार लैथेनम (La) तत्व के पश्चात् 14 तत्वों की लैथेनाइड शृंखला (lanthanide series) प्रांरभ होती है, उसी प्रकार ऐक्टिनियम (Ac) के पश्चात् 14 तत्वों की दूसरी शृंखला आरंभ होती है, जिसे एक्टिनाइड शृंखला कहते हैं। थोरियम के अयस्क में केवल एक समस्थानिक(द्रव्यमान संख्या 232) पाया जाता है, जो इसका सबसे स्थिर समस्थानिक (अर्ध जीवन अवधि 1.4 x 1010 वर्ष) है। परंतु यूरेनियम, रेडियम तथा ऐक्टिनियम अयस्कों में इसके कुछ समस्थानिक सदैव वर्तमान रहते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 227, 228, 230, 231 तथा 234 हैं। इनके अतिरिक्त 224, 225, 226, 229 एवं 233 द्रव्यमान वाले समस्थानिक कृत्रिम उपायों द्वारा निर्मित हुए हैं। थोरियम धातु की खोज 1828 ई में बर्ज़ीलियस ने थोराइट अयस्क में की थी। यद्यपि इसके अनेक अयस्क ज्ञात हैं, परंतु मोनेज़ाइट (monazite) इसका सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जिसमें थोरियम तथा अन्य विरल मृदाओं के फॉस्फेट रहते हैं। संसार में मोनेज़ाइट का सबसे बड़ा भंडार भारत के केरल राज्य में हैं। बिहार प्रदेश में भी थोरियम अयस्क की उपस्थिति ज्ञात हुई है। इनके अतिरिक्त मोनेज़ाइट अमरीका, आस्ट्रलिया, ब्राज़िल और मलाया में भी प्राप्त है। मौनेज़ाइट को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की प्रक्रिया कर आंशिक क्षारीय विलयन मिलाने से थोरियम फॉस्फेट का अवक्षेप बनता है। इसको सल्फ्यूरिक या हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में घुला कर फिर फॉस्फेट अवक्षिप्त करते हैं। इस क्रिया को दोहराने पर थोरियम का शुद्ध फॉस्फेट मिलता है। थोरियम क्लोराइड को सोडियम के साथ निर्वात में गरम करने से थोरियम धातु मिलती है। थोरियम आयोडाइड (Th I4) के वाष्प को गरम टंग्स्टन तंतु (filament) पर प्रवाहित करने से, या थोरियम ऑक्साइड (ThO2) पर कैल्सियम की प्रक्रिया द्वारा भी, थोरियम धातु प्राप्त हो सकती है। थोरियम का निष्कर्षण .

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धातु

'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .

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धातुकर्म

धातुनिर्माता कारखाने में इस्पात का निर्माण दिल्ली का लौह-स्तम्भ भारतीय धातुकर्म के गौरव का साक्षी है। धातुकर्म पदार्थ विज्ञान और पदार्थ अभियांत्रिकी का एक क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत धातुओं, उनसे बनी मिश्रधातुओं और अंतर्धात्विक यौगिकों के भौतिक और रासायनिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। .

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निष्कर्षण धातुकर्मिकी

निष्कर्षण धातुकर्मिकी या निष्कर्षण धातुकर्म (Extractive metallurgy) के अन्तर्गत किसी अयस्क से धातु प्राप्त करना, उसको शुद्ध करना एवं उसकी पुनर्चक्रण (री-साइक्लिंग) करने की प्रक्रियाओं एवं उससे सम्बन्धित विषयों का अध्ययन किया जाता है। .

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पारा

साधारण ताप पर पारा द्रव रूप में होता है। पारे का अयस्क पारा या पारद (संकेत: Hg) आवर्त सारिणी के डी-ब्लॉक का अंतिम तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक ८० है। इसके सात स्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९६, १९८, १९९, २००, २०१, २०२ और २०४ हैं। इनके अतिरिक्त तीन अस्थिर समस्थानिक, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९५, १९७ तथा २०५ हैं, कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। रासायनिक जगत् में केवल यही धातु साधारण ताप और दाब पर द्रव रूप होती है। .

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प्रगलन

फॉस्फेट प्रगलन के लिये प्रयुक्त विद्युत भट्ठी (टीवीए केमिकल प्लाण्ट, १९४२) प्रगलन (Smelting) एक प्रकार की निष्कर्षण धातुकर्मिकी है। अयस्क से धातु बनाने के लिये मुख्यतः इसका उपयोग किया जाता है। चाँदी, लोहा, ताँबा आदि इस विधि से निर्मित होते हैं। प्रगलन की तकनीक आज से कोई आठ हजार वर्ष पूर्व से उपयोग में लायी जा रही है। फिर भी प्रगलन को एक उच्च तकनीकी उपलब्धि माना जाता है। प्रगलन की प्रक्रिया में भूनना (रोस्टिंग), अपचयन तथा गन्दगी को फ्लक्स के रूप में धातु से अलग करना शामिल है। अयस्क के प्रगलन के फलस्वरूप धातु प्राप्त होती है वह तत्त्व के रूप में होती है या धातु के सरल यौगिक के रूप में। प्रायः अयस्क को किसी आक्सीकारक (जैसे वायु) या किसी अपचयक (जैसे कोक) की उपस्थिति में गलनांक से अधिक ताप तक गरम किया जाता है। अनुमान किया जाता है कि सबसे पहले ताँबे का प्रगलन ५००० ईसापूर्व किया गया था। उसके बाद टिन, सीसा और चाँदी का प्रगलन हुआ। चूँकि प्रगलन के लिये उच्च ताप (गलनांक से अधिक ताप) की आवश्यकता होती है, इसके लिये भट्टियों में तेज वायु का झोंका (प्रवात/draught) भेजा जाता है। ईँधन एके रूप में चारकोल का उपयोग किया जाता था जो १८वीं शताब्दी में कोक के आने तक जारी था। आज वात्या भट्ठी (ब्लास्ट फरनेस) इस काम को अत्यन्त दक्षतापूर्वक करती है। अलग-अलग धातुओं के लिये प्रगलन की प्रक्रिया में बहुत कुछ भिन्नता होती है। श्रेणी:धातुकर्म.

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बॉक्साइट

बॉक्साइट (Bauxite) अल्युमिनियम का एक अयस्क है। यही विश्व में अलुमिनियम का मुख्य स्रोत है। इसमें गिब्साइट Al(OH)3, बोमाइट (boehmite γ-AlO(OH) तथा डायास्पोर (diaspore α-AlO(OH), तथा दो लोहे के आक्साइड गोथाइट (goethite) एवं हेमाटाइट और एनातेज (anatase TiO2) की अल्प मात्रा मिशिर्त होती है। .

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भारत के खनन घोटाले

भारत में खनन से सम्बन्धित अनेक घोटाले सामने आये जो प्रायः अयस्क-समृद्ध प्रान्तों में हुए हैं। इन घोटालों के अन्तर्गत वन-क्षेत्रों के अतिक्रमण से लेकर, सरकारी रायल्टी न चुकता करना, जनजातियों के साथ भूमि-अधिकारों को लेकर विवाद आदि शामिल हैं। .

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भारतीय रसायन का इतिहास

भारतीय धातुकर्म का एक नमूना है। भारत में रसायन शास्त्र की अति प्राचीन परंपरा रही है। पुरातन ग्रंथों में धातुओं, अयस्कों, उनकी खदानों, यौगिकों तथा मिश्र धातुओं की अद्भुत जानकारी उपलब्ध है। इन्हीं में रासायनिक क्रियाओं में प्रयुक्त होने वाले सैकड़ों उपकरणों के भी विवरण मिलते हैं। वस्तुत: किसी भी देश में किसी ज्ञान विशेष की परंपरा के उद्भव और विकास के अध्ययन के लिए विद्वानों को तीन प्रकार के प्रमाणों पर निर्भर करना पड़ता है-.

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मृदा प्रदूषण

मृदा प्रदूषण मृदा प्रदूषण मृदा में होने वाले प्रदूषण को कहते हैं। यह मुख्यतः कृषि में अत्यधिक कीटनाशक का उपयोग करने या ऐसे पदार्थ जिसे मृदा में नहीं होना चाहिए, उसके मिलने पर होता है। जिससे मृदा की उपज क्षमता में भी बहुत प्रभाव पड़ता है। इसी के साथ उससे जल प्रदूषण भी हो जाता है। .

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मोबाइल फ़ोन

अनु-फ्लिप मोबाइल फोन के कई उदाहरण. मोबाइल फ़ोन या मोबाइल (इसे सेलफोन और हाथफोन भी बुलाया जाता है, या सेल फोन, सेलुलर फोन, सेल, वायरलेस फोन, सेलुलर टेलीफोन, मोबाइल टेलीफोन या सेल टेलीफोन) एक लंबी दूरी का इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसे विशेष बेस स्टेशनों के एक नेटवर्क के आधार पर मोबाइल आवाज या डेटा संचार के लिए उपयोग करते हैं इन्हें सेल साइटों के रूप में जाना जाता है। मोबाइल फोन, टेलीफोन, के मानक आवाज कार्य के अलावा वर्तमान मोबाइल फोन कई अतिरिक्त सेवाओं और उपसाधन का समर्थन कर सकते हैं, जैसे की पाठ संदेश के लिए SMS, ईमेल, इंटरनेट के उपयोग के लिए पैकेट स्विचिंग, गेमिंग, ब्लूटूथ, इन्फ़रा रेड, वीडियो रिकॉर्डर के साथ कैमरे और तस्वीरें और वीडियो भेजने और प्राप्त करने के लिए MMS, MP3 प्लेयर, रेडियो और GPS.

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मोलिब्डेनम

मोलिब्डेनम (Molybdenum) एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक Mo एवं परमाणु क्रमांक ४२ है। इसके खनिज तो बहुत समय से ज्ञात हैं किन्तु तत्व के रूप में इसकी पहचान १७७८ में शीले ने की। मोलिब्डेनम के सात स्थिर समस्थानिक पाए जाते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या ९२, ९४, ९५, ९६, ९७, ९८ और १०० है। इनके अतिरिक्त द्रव्यमान संख्या ९३, ९९, १०१ और १०५ के अस्थिर समस्थानिक कृत्रिम विधि से निर्मित हुए हैं। इसके अयस्क मोलिब्डेनाइट को बहुत काल तक भूल से ग्रेफाइट समझा गया। सन् १७७८ में शीले ने इस अयस्क से मोलिब्डिक अम्ल बनाया। सन् १७८२ में येल्म (Hyelm) ने मोलिब्डेनम ऑक्साइड का कार्बन द्वारा अपचयन कर मोलिब्डेनम घातु तैयार की। मोलिब्डेनम स्वतंत्र अवस्था में नहीं मिलता। मोलिब्डेनाइट MnS2 एवं बुल्फेनाइट (PbMoO4) इसके मुख्य अयस्क हैं। संयुक्त राज्य अमरीका इसका मुख्य स्रोत है। चिली, दक्षिणी अमरीका और नार्वे में भी इसके अयस्क प्राप्य हैं। .

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यूरेनियम

यूरेनियम आवर्त सारणी की एक अंतर्वर्ती श्रेणी, ऐक्टिनाइड श्रेणी (actinide series), का तृतीय तत्व है। इस श्रेणी में आंतरिक इलेक्ट्रॉनीय परिकक्षा (5 परिकक्षा) के इलेक्ट्रॉन स्थान लेते हैं। प्रकृति में पाए गए तत्वों में यह सबसे भारी तत्व है। कुछ समय पहले तक इस तत्व को छठे अंतर्वर्ती समूह का अंतिम तत्व माना जाता था। .

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यूरेनियम खनन

विश्व में यूरेनियम भंडार यूरेनियम खनन जमीन से यूरेनियम अयस्क की निकासी की प्रक्रिया है। 2015 में दुनिया भर में यूरेनियम का उत्पादन 60,496 टन हुआ था। पूरे दुनिया में 70 फीसदी उत्पादन मात्र तीन देशों कजाकिस्तान, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में होता है। इन तीन देशों के अलावा एक हजार टन उत्पादन करने वाले देशों में निगेर, रूस, नामीबिया, उज्बेकिस्तान, चीन, संयुक्त राष्ट्र और यूक्रेन हैं। खनन से प्राप्त यूरेनियम का लगभग पूरी तरह से परमाणु संयंत्रों में ईंधन के रूप में प्रयोग होता है। यूरेनियम अयस्क प्राप्त करने हेतु अयस्क सामग्री को पिसा जाता है, जिससे सभी कण समान आकार के हो और उसके पश्चात रासायनिक अभिक्रिया द्वारा यूरेनियम को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा एक पीले रंग का शुष्क चूर्ण प्राप्त होता है। इसे यूरेनियम के बाजार में U3O8 के रूप में बेच दिया जाता है। .

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रुबिडियम

रूबिडियम (Rubidium) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी के प्रथम मुख्य समूह का चौथा तत्व है। इसमें धातुगुण वर्तमान हैं। इसके तीन स्थिर समस्थानिक प्राप्त हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ क्रमश: ८५, ८६, ८७ हैं। इस तत्व की खोज बुंसन तथा किर्खहॉफ़ ने १८६० ई. में स्पेक्ट्रमदर्शी (spectroscope) द्वारा की थी। स्पेक्ट्रमदर्शी द्वारा प्रयोगों में दो नई लाल रेखाएँ मिलीं, जिनके कारण इसका नाम 'रूबिडियम' रखा गया। लेपिडोलाइट अयस्क में रूबिडियम की मात्रा लगभग १ प्रतिशत रहती है। इसके अतिरिक्त अभ्रक तथा कार्टेलाइड में भी यह न्यून मात्रा में मिलता है। पोटैशियम तथा रूबिडियम के प्लैटिनिक क्लोराइडों की विलेयता भिन्न भिन्न है, जिसके कारण इन दोनों को पृथक् किया जा सकता है। .

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लौह धातुकर्म का इतिहास

दिल्ली का लौह स्तम्भदिल्ली का लोह स्तम्भ भारत के लोहे तथा इस्पात की कई विशेषतायें थी। वह पू्र्णतया ज़ंग मुक्त थे। इस का प्रत्यक्षप्रमाण पच्चीस फुट ऊंचा कुतुब मीनार के स्मीप दिल्ली स्थित लोह स्तम्भ है जो लग भग 1600 वर्ष पूर्व गुप्त वँश के सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल का है और धातु ज्ञान का आश्चर्य जनक कीर्तिमान है। इस लोह स्तम्भ का व्यास 16.4 इन्च है तथा वज़न साढे छः टन है। 16 शताब्दियों तक मौसम के उतार चढाव झेलने के पश्चात भी इसे आज तक ज़ंग नहीं लगा। कुछ प्रमाणों के अनुसार यह स्तम्भ पहले विष्णु मन्दिर का गरूड़ स्तम्भ था। मुस्लिमशासकों ने मन्दिर को लूट कर ध्वस्त कर दिया था और स्तम्भ को उखाड कर उसे विजय चिन्ह स्वरूप ‘कुव्वतुल-इसलाम मसजिद’ के समीप दिल्ली में गाड़ दिया था। हाल ही में ईन्डियन इन्टीच्यूट ऑफ टेकनोलोजीकानपुर के विशेषज्ंयों नें स्तम्भ का निरीक्षण कर के अपना मत प्रगट किया है कि स्तम्भ को जंग से सुरक्षितरखने के लिये उस पर मिसाविट नाम के रसायन की ऐक पतली सी परतचढाई गयी थी जो लोह, आक्सीजन तथा हाईड्रोजन के मिश्रण से तैय्यार की गयी थी। यही परिक्रिया आजकल अणुशक्ति के प्रयाग में लाये जाने वाले पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिये डिब्बे बनाने में प्रयोग की जाती है। सुरक्षा परत को बनाने में उच्च कोटि का पदार्थ प्रयोग किया गया था जिस में फासफोरस की मात्रा लोहे की तुलना में एक प्रतिशतके लगभग थी। आज कल यह अनुपात आधे प्रतिशत तक भी नहीं होता। फासफोरस का अधिक प्रयोग प्राचीन भारतीय धातु ज्ञान तथा तकनीक का प्रमाण है जो धातु वैज्ंयिानिकों को आश्चर्य चकित कर रही है। आजकल विकसित देश टेक्नोलोजी ट्राँसफर को हथियार बना कर अविकसित देशों पर आर्थिक दबाव बढाते हैं। जो लोग पाश्चात्य तकनीक की नकल करने की वकालत करते हैं उन्हें स्वदेशी तकनीक पर शोध करना चाहिये ताकि हम आत्म निर्भर हो सकें लौह धातुकर्म (Ferrous Metallurgy) का आरम्भ प्रागैतिहासिक काल में ही हो गया था। इस्पात निर्माण (steelmaking) का ज्ञान भी प्रागैतिहासिक काल से ही है। .

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लौह अयस्क

हैमेताईट: ब्राजील की खानों में मुख्य लौह अयस्क लौह अयस्क के छर्रों के इस ढेर का उपयोग इस्पात के उत्पादन में किया जाएगा। लौह अयस्क (Iron ores) वे चट्टानें और खनिज हैं जिनसे धात्विक लौह (iron) का आर्थिक निष्कर्षण किया जा सकता है। इन अयस्कों में आमतौर पर आयरन (लौह या iron) ऑक्साइडों की बहुत अधिक मात्रा होती है और इनका रंग गहरे धूसर से लेकर, चमकीला पीला, गहरा बैंगनी और जंग जैसा लाल तक हो सकता है। लौह आमतौर पर मेग्नेटाईट (magnetite), हैमेटाईट (hematite), जोईथाईट (goethite), लिमोनाईट (limonite), या सिडेराईट (siderite), के रूप में पाया जाता है। हैमेटाईट को "प्राकृतिक अयस्क" भी कहा जाता है। यह नाम खनन के प्रारम्भिक वर्षों से सम्बंधित है, जब हैमेटाईट के विशिष्ट अयस्कों में 66% लौह होता था और इन्हें सीधे लौह बनाने वाली ब्लास्ट फरनेंस (एक विशेष प्रकार की भट्टी जिसका उपयोग धातुओं के निष्कर्षण में किया जाता है) में डाल दिया जाता था। लौह अयस्क कच्चा माल है, जिसका उपयोग पिग आयरन (ढलवां लोहा) बनाने के लिए किया जाता है, जो इस्पात (स्टील) बनाने के लिए बनाने में काम आता है। वास्तव में, यह तर्क दिया गया है कि लौह अयस्क "संभवतया तेल को छोड़कर, किसी भी अन्य वस्तु की तुलना में वैश्विक अर्थव्यवस्था का अधिक अभिन्न अंग है।" .

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लोहा

एलेक्ट्रोलाइटिक लोहा तथा उसका एक घन सेमी का टुकड़ा लोहा या लोह (Iron) आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर यह सर्वाधिक प्राप्य तत्व है (भार के अनुसार)। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। इसके चार स्थायी समस्थानिक मिलते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या 54, 56, 57 और 58 है। लोह के चार रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 52, 53, 55 और 59) भी ज्ञात हैं, जो कृत्रिम रीति से बनाए गए हैं। लोहे का लैटिन नाम:- फेरस .

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सायनाइड विधि

सायनाइड विधि (Cyanide process) निम्न श्रेणी के स्वर्ण अयस्कों से सोना निकालने की एक धातुकार्मिक तकनीक (metallurgical technique) है। इसका आविष्कार १८८७ ई. में हुआ था। इससे कम सोने वाले खनिजों से सोना निकालने में बड़ी सहायता मिली है। इससे पहले पारदन (amalgamation) विधि के खनिजों से केवल ६० प्रतिशत के लगभग सोना निकाला जा सकता था। पारदन विधि से सोना के अधिकांश सूक्ष्म कण निकल नहीं पाते थे। सायनाइड विधि के आविष्कारक मैक्‌आर्थर (J.S. Mac Arthur) और फॉरेस्ट (R.W. & W. Forrest) थे। आविष्कार के समय इस विधि का उपहास किया जाता था क्योंकि इसका अभिकर्मक सायनाइड घातक विष और तब सरलता से प्राप्य नहीं था। पर शीघ्र ही इस विधि का उपयोग १८८९ ई. में न्यूजीलैंड में, १८९० ई में दक्षिण अफ्रीका में हुआ और १९२५ ई. तक तो यह विधि सामान्य रूप से व्यवहार में आने लगी। इस विधि में सोने के चूर्णित खनिज को पोटैशियम सायनाइड या सोडियम सायनाइड के तनु विलयन से उपचारित करते हैं, जिससे सोना और चाँदी तो घुलकर खनिज से पृथक्‌ हो जाते हैं और स्वच्छ विलयन को जस्ते के छीलन (shavings) या चूर्ण के साथ उपचार से सोने और चाँदी जस्ते के छीलन या चूर्ण के तल पर काले अवर्पक (slime) के रूप में अवक्षिप्त हो जाते हैं। इनमें कुछ जस्ता भी घुला रहता है। काले अवर्पंक को पिघलाकर सोने और चाँदी को छड़ के रूप में प्राप्त करते हैं। यहाँ जो रासायनिक अभिक्रियाएँ होती हैं वे जटिल हैं। यहाँ सोना पोटैशियम सायनाइड में घुलकर स्वर्ण और पोटैशियम का युग्म सायनाइड बनता है। इस क्रिया में वायु के ऑक्सीजन का भी हाथ रहता है, जैसा निम्नलिखित समीकरण से स्पष्ट हो जाता है। वायु के अभाव में अभिक्रिया रुक जाती है। 4 Au + 8 KCN + 2 H_2O + O_2 \rightarrow 4 K + 4 KOH.

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जल संसाधन

जल संसाधन पानी के वह स्रोत हैं जो मानव के लिए उपयोगी हों या जिनके उपयोग की संभावना हो। पानी के उपयोगों में शामिल हैं कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु और पर्यावरणीय गतिविधियों में। वस्तुतः इन सभी मानवीय उपयोगों में से ज्यादातर में ताजे जल की आवश्यकता होती है। पृथ्वी पर पानी की कुल उपलब्ध मात्रा अथवा भण्डार को जलमण्डल कहते हैं। पृथ्वी के इस जलमण्डल का ९७.५% भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल २.५% ही मीठा पानी है, उसका भी दो तिहाई हिस्सा हिमनद और ध्रुवीय क्षेत्रों में हिम चादरों और हिम टोपियों के रूप में जमा है। शेष पिघला हुआ मीठा पानी मुख्यतः जल के रूप में पाया जाता है, जिस का केवल एक छोटा सा भाग भूमि के ऊपर धरातलीय जल के रूप में या हवा में वायुमण्डलीय जल के रूप में है। मीठा पानी एक नवीकरणीय संसाधन है क्योंकि जल चक्र में प्राकृतिक रूप से इसका शुद्धीकरण होता रहता है, फिर भी विश्व के स्वच्छ पानी की पर्याप्तता लगातार गिर रही है दुनिया के कई हिस्सों में पानी की मांग पहले से ही आपूर्ति से अधिक है और जैसे-जैसे विश्व में जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही हैं, निकट भविष्य मैं इस असंतुलन का अनुभव बढ़ने की उम्मीद है। पानी के प्रयोक्ताओं के लिए जल संसाधनों के आवंटन के लिए फ्रेमवर्क (जहाँ इस तरह की एक फ्रेमवर्क मौजूद है) जल अधिकार के रूप में जाना जाता है। आज जल संसाधन की कमी, इसके अवनयन और इससे संबंधित तनाव और संघर्ष विश्वराजनीति और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। जल विवाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। .

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ज़र्कोनियम

जरकोनियम (Zirconium) एक रासायनिक तत्व है जो आवर्त सारणी के चतुर्थ अंतवर्ती समूह (transition group) का तत्व है। इस तत्व के पाँच स्थिर समस्थानिक पाये जाते हैं, जिनका परमाणु भार 90, 91, 92, 94, 96 है। कुछ अन्य रेडियधर्मी समस्थानिक जैसे परमाणु भार 89 भी कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। इस तत्व की खोज ज़रकान अयस्क में, क्लोंप्रोट नामक वैज्ञानिक ने सन् 1789 में की थी। सन् 1824 में स्विडन के प्रसिद्ध रसायनज्ञ बर्ज़ीलियस ने ज़रकोनियम धातु तैयार की। ज़रकोनियम की गणना विरल तत्वों में की जाती है यद्यपि पृथ्वी की सतह पर इसकी मात्रा अनेक सामान्य तत्वों से अधिक है। तत्वों की प्राप्ति सारणी में इसका स्थान बीसवाँ है। ऐसा अनुमान है कि ज़रकोनियम की मात्रा ताम्र, यशद एवं सीस तीनों की संयुक्त मात्रा से अधिक है। .

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घंटा धातु

घण्टा धातु से निर्मित तोप घण्टा धातु (Bell metal) एक कठोर मिश्रातु है जिससे घण्टे और घंटियाँ आदि बनतीं हैं। यह एक प्रकार का कांस्य (bronze) है। इसमें ताम्र और टिन का अनुपात लगभग 4:1 रहता है (जैसे 78% ताँबा, 22% टिन, द्रव्यमान के अनुसार)। घण्टा-धातु का अयस्क टिन, कॉपर और लोहा का सल्फाइड होता है जिसे स्टैनाइट (stannite) कहते हैं। .

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वात्या भट्ठी

Rahul Kushwahaसेस्टाओ, स्पेन में ब्लास्ट फर्नेस. वास्तविक भट्टी केन्द्रीय गिर्डरवर्क के अंदर है। वात्या भट्ठी या ब्लास्ट फर्नेस (Blast furnace) एक प्रकार की धातु-वैज्ञानिक भट्टी (मेटलर्जिकल फर्नेस) है जिसका इस्तेमाल आम तौर पर लोहे जैसी औद्योगिक धातुओं का निर्माण करने हेतु धातुओं को पिघलाने के लिए किया जाता है। वात्या भट्ठी में भट्ठी के ऊपर से लगातार ईंधन और अयस्क की आपूर्ति की जाती है जबकि चैंबर के निचले तल में हवा (कभी-कभी ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा वाली हवा) भरी जाती है ताकि पदार्थों के नीचे की तरफ आने के दौरान पूरे फर्नेस में रासायनिक प्रतिक्रिया हो सके। अंतिम उत्पाद के रूप में आम तौर पर नीचे की तरफ से पिघली हुई धातु और धातुमल तथा फर्नेस के ऊपर से धुआं युक्त गैसें निकलती हैं। वात्या भट्ठी को आम तौर पर चिमनी के निकास मार्ग में गर्म गैसों के संवहन के माध्यम से स्वाभाविक रूप से चूषण युक्त एयर फर्नेसों (जैसे रिवर्बरेटरी फर्नेस) के साथ निरूपित किया जाता है। इस व्यापक परिभाषा के अनुसार लोहे की ब्लूमरी, टिन के ब्लोइंग हाउस और सीसे को गलाने वाली मिलों को ब्लास्ट फर्नेस के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। हालांकि इस शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर उन्ही कारखानों तक सीमित है जहां लौह अयस्क को पिघलाकर कच्चे लोहे (पिग आयरन) का उत्पादन किया जाता है, जो वाणिज्यिक लौह एवं इस्पात के उत्पादन में इस्तेमाल की जाने वाली एक मध्यवर्ती सामग्री है। .

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विद्युत अपघटन

डेनियल सेल से मेल खाता हा एक विद्युतरासायनिक सेल रसायन विज्ञान एवं निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) मे विद्युत अपघटन (electrolysis) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा किसी रासायनिक यौगिक में विद्युत-धारा प्रवाहित करके उसके रासायनिक बन्धों को को तोड़ा जाता है। उदाहरण के लिये जल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर जल, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विघटित हो जाता है जिसे जल का विद्युत अपघटन कहते हैं। विद्युत अपघटन के बहुत से उपयोग हैं। अयस्कों को प्रसंस्कारित करके उनमें निहित रासायनिक तत्व को शुद्ध करना एवं उसे अलग करना इसका सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं व्यावसायिक उपयोग है। .

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खनन

सरलीकृत विश्व खनन मानचित्र पृथ्वी के गर्भ से धातुओं, अयस्कों, औद्योगिक तथा अन्य उपयोगी खनिजों को बाहर निकोलना खनिकर्म या खनन (mining) हैं। आधुनिक युग में खनिजों तथा धातुओं की खपत इतनी अधिक हो गई है कि प्रति वर्ष उनकी आवश्यकता करोड़ों टन की होती है। इस खपत की पूर्ति के लिए बड़ी-बड़ी खानों की आवश्यकता का उत्तरोत्तर अनुभव हुआ। फलस्वरूप खनिकर्म ने विस्तृत इंजीनियरों का रूप धारण कर लिया है। इसको खनन इंजीनियरी कहते हैं। संसार के अनेक देशों में, जिनमें भारत भी एक है, खनिकर्म बहुत प्राचीन समय से ही प्रचलित है। वास्तव में प्राचीन युग में धातुओं तथा अन्य खनिजों की खपत बहुत कम थी, इसलिए छोटी-छोटी खान ही पर्याप्त थी। उस समय ये खानें 100 फुट की गहराई से अधिक नहीं जाती थीं। जहाँ पानी निकल आया करता था वहाँ नीचे खनन करना असंभव हो जाता था; उस समय आधुनिक ढंग के पंप आदि यंत्र नहीं थे। .

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खनि भौमिकी

खनि भौमिकी (Mining Geology) भूविज्ञान का वह अंग है जो खनन के उन सभी पहलुओं का विशेष अध्ययन करता है जिनसे एक अयस्क, या खनिज निक्षेप, पूर्ण विकसित खान में परिवर्तित हो जाए। .

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खनिज प्रसाधन

खनिज को छोटे टुकड़ों में तोड़ना (क्रशिंग) अधिकांश खनिज जिनसे धातु निस्सारित की जाती है, रासायनिक यौगिक, जैसे आक्साइड, सल्फाइड, कारबोनैट, सल्फेट और सिलिकेट के रूप में होते हैं। खनिज में मिश्रित अनुपयोगी पदार्थ को "विधातु" (गैग) कहते हैं। उस खनिज को जिसमें धातु की मात्रा लाभदायक होती है "अयस्क" (ओर) कहते हैं। खनिज से धातुनिस्तार के पूर्व अनेक क्रियाएँ अनिवार्य होती है जिन्हें सामूहिक रूप से अयस्क प्रसाधन (ओर ड्रेसिंग) कहते हैं। इसके द्वारा अयस्क में धातु की मात्रा का समृद्धीकरण करते हैं। इसमें दलना, पीसना और सांद्रण की क्रियाएँ सम्मिलित हैं। अयस्क का समृद्धिकरण उसमें निहित धातुओं के भिन्न-भिन्न भौतिक गुणों, जैसे रंग और द्युति, आपेक्षिक घनत्व, तलऊर्जा (सर्फ़ेस एनर्जी), अतिबेध्यता (पर्मिएबिलिटी) और विद्युच्चालकता, की सहायता से किया जाता है। .

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गंधराल

विभिन्न प्रकार के रोजिन गंधराल या रोज़िन (Rosin), रेजिन का एक ठोस रूप है। रोज़िन और रेज़िन एक पदार्थ नहीं हैं। ये दोनों भिन्न भिन्न पदार्थ है। चीड़ और कुछ अन्य वृक्षों से एक स्राव ओलियो रोज़िन (oleo-resin) प्राप्त होता है। इसमें रोज़िन के साथ साथ तारपीन का तेल रहता है। इसके आसवन से तारपीन का तेल आसुत हो निकल जाता है और असवनपात्र में जो अवशिष्ट अंश रह जाता है, वही गंधराल है। रोज़िन बड़े महत्व की व्यापारिक वस्तु है। कई प्रकार के रोज़िन बाजारों में बिकते हैं। उनके रंग, स्वच्छता, साबुनीकरण मान और मृदुभवन बिंदु एक से नहीं होते। रोजिन, अर्ध-पारदर्शी होता है। इसका रंग पीला से लेकर काला तक कुछ भी हो सकता है। सामान्य ताप पर यह भंगुर (ब्रिटल) है। रोजिन में मुख्यतः विभिन्न प्रकार के गंधराल अम्ल (विशेषतः अबीटिक अम्ल / abietic acid) होते हैं। .

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आर्सेनिक

आर्सेनिक, आवर्त सारणी के पंचम मुख्य समूह का एक रासायनिक तत्व है। इसकी स्थिति फास्फोरस के नीचे तथा एंटीमनी के ऊपर है। आर्सेनिक में अधातु के गुण अधिक और धातु के गुण कम विद्यमान हैं। इस धातु को उपधातु (मेटालॉयड) की श्रेणी में रखा जाता है। आर्सेनिक से नीचे एंटीमनी में धातुगुण अधिक हैं तथा उससे नीचे बिस्मथ पूर्णरूपेण धातु है। पंचम मुख्य समूह में नीचे उतरने पर धातुगुण में वृद्धि होती है। आर्सैनिक की कुछ विशेषताएं निम्नांकित हैं: .

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इल्मेनाइट

इल्मेनाइट (Ilmenite) एक खनिज है जो प्रधानतः लौह टाइटनेट है। यह टाइटेनियम-लौह आक्साइड खनिज है जिसका आदर्श सूत्र है। यह काला या ईस्पात-धूसर (steel-gray) रंग का ठोस है जो थोड़ा-थोड़ा चुम्बकीय गुण रखता है। वाणिज्यिक दृष्टि से इल्मेनाइट, टाइटेनियम का सबसे महत्वपूर्ण अयस्क है। अनेक उद्योगों में टाइटेनियम के उपयोग की वृद्धि होने के कारण इल्मेनाइट के खनन तथा उत्पादन की ओर विश्व के अनेक शक्तिशाली राष्ट्रों का ध्यान आकर्षित हुआ है। यद्यपि इल्मेनाइट आग्नेय एवं परिवर्तित शिलाओं का नितांत सामान्य भाग है, तथापि भारत में समुद्रतटीय बालू के निक्षेपों के अतिरिक्त कोई भी निक्षेप ऐसा नहीं है जहाँ आर्थिक एवं वाणिज्य की दृष्टि से खननकार्य लाभद्रप्रद हो। दक्षिण भारत में तटीय बालू के लगभग १०० मील लंबे भूखंड में, पश्चिमी तट पर क्विलन के उत्तर में नंदीकारिया से कन्याकुमारी तक तथा पूर्वी तट पर किनारे किनारे तिरूनेलवेली जिले में लिपुरूम तक, इल्मेनाइट अधिक मात्रा में पाया जाता है। इल्मेनाइट बालू के साहचर्य में रयूटाइल, ज़िरकन, सिलीमेनाइट तथा मोनाज़ाइट आदि खनिज के रूप में मिलता है। कुछ कम महत्व की इल्मेनाइटयुक्त तटीय बालू मालाबार, रामनाथपुरम्, तंजोर, विशाखपत्तनम्, रत्नगिरि तथा गंजाम जिलों में भी मिली है। केरल में इल्मेनाइटयुक्त तटीय बालू को खोदकर समीप के सांद्रण कारखानों को भेज दिया जाता है, जहाँ ९५ प्रतिशत शुद्धता का इल्मेनाइट प्राप्त किया जाता है। इल्मेनाइट का उपयोग आजकल 'टाइटेनियम श्वेत' नामक श्वेत तैल रंग के निर्माण में किया जाता है। टाइटेनियम श्वेत 'सफेदा' (लेड सल्फेट) से भी अधिक श्वेत होता है। इसका और इसके यौगिकों का उपयोग तैल रंगों के अतिरिक्त कागज, चर्म, सूती कपड़े, रबर, प्लैस्टिक आदि अनेक उद्योगों में होता है। धात्विक टाइटेनियम का उपयोग विशेष प्रकार के इस्पात के निर्माण में किया जाता है। उत्पादन-विश्व में इल्मेनाइट उत्पादन की दृष्टि से भारत का स्थान दूसरा है। .

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इस्पात निर्माण

लौह अयस्क से इस्पात बनाने की प्रक्रिया का दूसरा चरण इस्पात निर्माण (Steelmaking) है। कच्चे लोहे से इस्पात बनाने के लिये कच्चे लोहे में उपस्थित अतिरिक्त कार्बन तथा गंधक, फॉस्फोरस आदि अशुद्धियों को निकाला जाता है और मैगनीज, निकिल, क्रोमियम तथा वनाडियम (vanadium) आदि तत्व मिलाये जाते हैं ताकि वांछित प्रकार का इस्पात बनाया जा सके। .

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कुदरेमुख

कुदरेमुख (ಕುದುರೆಮುಖ) जिसे कई बार कुदुरेमुख भी कहा जाता है, कर्नाटक राज्य के चिकमंगलूर जिला में एक पर्वतमाला है। यहीं निकटस्थ ही के एक कस्बे का नाम भि यही है। यह कर्कला से ४८ कि॰मी॰ दूर स्थित है। कुदरेमुख शब्द का मूल यहां के स्थानीय निवासियों द्वारा अश्व के मुख को कहा जाने से पड़ा है। इस पर्वत की चोटी का आकार कुछ इसी प्रकार का है। इसे ऐतिहासिक नाम समसेपर्वत से भी जाना जाता है, क्योंकि इसका रास्ता समसे ग्राम से होकर निकलता था। यह कस्बा मुख्यतः लौह अयस्क के खनन के कारण प्रसिद्ध है, जहां एक सरकारी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम कुदरेमुख आयरन ओर कंपनी लि. (KIOCL) स्थित है एवं अपने नाम के अनुसार इसी कार्य में संलग्न है। इसके साथ ही यह क्षेत्र नैसर्गिक संपदा के लिये भी मशहूर है। घने जंगल, वन्य जीवन यहां की सुंदरता को चार चांद लगाते हैं। यहां दक्षिण भारत की तीन नदियों का उद्गम है: तुंग, भद्रा एवं नेत्रवती। यहाम के प्रमुख आकर्षणों में एक भगवती दुर्गा का मंदिर एवं एक गुफ़ा में १.८ मीटर की वाराह मूर्ति हैं। Kudremukha Iron Ore Company logo .

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क्षार धातु

आवर्त सारणी के तत्त्व लिथियम (Li), सोडियम (Na), पोटैशियम (K), रुबिडियम (Rb), सीजियम (Cs) और फ्रांसियम (Fr) के समूह को क्षार धातुएँ (Alkali metals) कहते हैं। यह समूह आवर्त सारणी के एस-ब्लॉक में स्थित है। क्षार धातुएँ समान गुण वाली हैं। वे सभी मुलायम, चमकदार तथा मानक ताप तथा दाब पर उच्च अभिक्रियाशील होती हैं तथा कोमलता के कारण एक चाकू से आसानी से काटी जा सकती हैं। चूंकि ये शीघ्र अभिक्रिया करने वाले हैं, अत: वायु तथा इनके बीच की रासायनिक अभिक्रिया को रोकने हेतु इन्हें तेल आदि में संग्रहित रखना चाहिये। यह गैर मुक्त तत्व के रूप में प्राकृतिक रूप से लवण में पाए जाते हैं। सभी खोजे गये क्षार धातुएँ अपनी मात्रा के क्रम में प्रकृति में पाए जाते हैं जिनमें क्रमवार सोडियम जो सबसे आम हैं, तथा इसके बाद पोटैशियम, लिथियम, रुबिडियम, सिज़ियम तथा अंतिम फ्रांसियम, फ्रांसियम अपने उच्च रेडियोधर्मिता के कारण सबसे दुर्लभ है। .

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के आई ओ सी एल लिमिटेड

के आई ओ सी एल लिमिटेड (KIOCL Limited), भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय के अधीन मिनी रत्न श्रेणी की सर्वोत्तम कंपनी है जिसका गठन २ अप्रैल १९७६ में किया गया था। पहले इसका नाम 'कुद्रमुख लौह अयस्क कम्पनी' था। इसका का निगमित कार्यालय कोरमंगला, बेंगलुरु में और इसका पेलेटीकरण कॉम्प्लेक्स कर्नाटक के तटीय शहर मंगलुरु में स्थित है। यह लौह अयस्क खनन, निस्यंदन प्रौद्योगिकी एवं उच्च गुणवत्ता के पैलेटों के उत्पादन में विशेषज्ञता प्राप्त भारत की की प्रतिष्ठित निर्यातोन्मुखी कम्पनी है। केआईओसीएल आई एस ओ 9001:2008, आई एस ओ 14001:2004 एंड ओ एच एस ए एस 18001:2007 प्रमाणन से प्रतिष्ठित कंपनी है। .

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अवसादी शैल

अवसादी शैल जिसके स्तर स्पष्ट दृष्टिगोचर हैं अपक्षय एवं अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा मौलिक चट्टनों के विघटन, वियोजन और टूटने से परिवहन तथा किसी स्थान पर जमाव के परिणामस्वरुप उनके अवसादों से निर्मित शैल को अवसादी शैल (sedimentary rock) कहा जाता हैं। वायु, जल और हिम के चिरंतन आघातों से पूर्वस्थित शैलों का निरंतर अपक्षय एवं विदारण होता रहता है। इस प्रकार के अपक्षरण से उपलब्ध पदार्थ कंकड़, पत्थर, रेत, मिट्टी इत्यादि, जलधाराओं, वायु या हिमनदों द्वारा परिवाहित होकर प्राय: निचले प्रदेशों, सागर, झील अथवा नदी की घाटियों में एकत्र हो जाते हैं। कालांतर में संघनित होकर वे स्तरीभूत हो जाते हैं। इन स्तरीभूत शैलों को अवसाद शैल (सेडिमेंटरी रॉक्स) कहते हैं। .

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अकार्बनिक रसायन

प्रांगार को छोड़कर शेष सभी तत्वों और उनके योगिकों की मीमांसा करना अकार्बनिक रसायन (Inorganic chemistry) का क्षेत्र है। बोरॉन, सिलिकन, जर्मेनियम आदि तत्व भी लगभग उसी प्रकार के विविध यौगिक बनाते हैं, जैसे कार्बन। पर इस पार्थिव सृष्टि में उनका उतना महत्व नहीं है जितना कार्बन यौगिकों का, इसलिए कार्बनिक रसायन का अन्य तत्वों से पृथक्‌ रासायनिक क्षेत्र मान लिया गया है। मनुष्य एवं वनस्पतियों का जीवन कार्बन यौगिकों के चक्र पर निर्भर है, अत: कार्बनिक यौगिकों को एक अलग उपांग में रखना कुछ अनुचित नहीं है। यह कार्बन ही है जो पृथ्वी पर पाए जानेवाले सामान्य ताप (०° से ४०°) पर अनेक स्थायी समावयवी यौगिक दे सकता है। .

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2007-2009 का वित्तीय संकट

2007-वर्तमान वित्तीय संकट एक ऐसा वित्तीय संकट है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में चलनिधि की कमी से पैदा हुआ। यह बड़ी वित्तीय संस्थाओं के पतन, राष्ट्रीय सरकारों द्वारा बैंकों की "जमानत" और दुनिया भर में शेयर बाज़ार की गिरावट का कारक बना। कई क्षेत्रों में, आवास बाज़ार को भी नुकसान उठाना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप कई निष्कासन, प्रतिबंध और दीर्घकालिक रिक्तियां सामने आईं.

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