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अम्ल

सूची अम्ल

अम्ल एक रासायनिक यौगिक है, जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन (H+) देता है। इसका pH मान 7.0 से कम होता है। जोहान्स निकोलस ब्रोंसटेड और मार्टिन लॉरी द्वारा दी गई आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करता है। जैसे- एसीटिक अम्ल (सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल (बैटरी में).

62 संबंधों: चरमपसंदी, चर्मशोधन, ट्राइऐसिक-जुरैसिक विलुप्ति घटना, टेफ्लान, एमाइड, एल्ब्यूमिन, एस्टर, निक्षारण, पाकशास्त्र, पुनर्भरणीय विद्युत्कोष, प्रतिकारक, पीएच मापक, बेसेमर प्रक्रिया, बेकमान पुनर्विन्यास, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारतीय सिनेमा, मट्ठा प्रोटीन, रसायन विज्ञान की समयरेखा, रासायनिक यौगिक, रिओ तिन्तो (नदी), लिवोफ़्लॉक्सासिन, लघु परिपथ, लवण, लक्ष्मी (पीड़िता), सरलता से उपलब्ध रसायनों की सूची, सिट्रिक अम्ल, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, सौर सेल, हाला, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, जल, जल (अणु), जल का विद्युत अपघटन, जामुन, ज्वालामुखीय झील, जोकर (चित्रकथा), विद्युत अपघट्य, विद्युत्-रसायन, वियोजन, व्यावहारिक गणित, खनिज अम्ल, खीरा, गारामुखी, गिल्बर्ट न्यूटन ल्यूइस, ऑक्सैलिक अम्ल, ओस्टवाल्ड तनुता नियम, आमाशयार्ति, कार्ल विल्हेल्म शीले, कंक्रीट, ..., क्षार, क्षारीय बैटरी, केसीन, कोशिकीय श्वसन, कीटोएसिडता, अदह, अनानास, अम्ल-क्षार अभिक्रिया, अम्लीय वर्षा, उदासीनीकरण अभिक्रिया, उपधातु, PH सूचकांक विस्तार (12 अधिक) »

चरमपसंदी

स्पेन की रिओ तिन्तो (नदी) जिसके तेज़ाब-युक्त पानी को उसमें रह रहे चरमपसंदी जीवाणु एक पीला-नारंगी सा रंग दे देते हैं चरमपसंदी ऐसे जीव को कहा जाता है, जो ऐसे चरम वातावरण में फलता-फूलता हो जहाँ पृथ्वी पर रहने वाले साधारण जीव बहुत कठिनाई से जीवित रह पाते हो या बिलकुल ही रह न सके। ऐसे चरम वातावरणों में ज्वालामुखी चश्मों का खौलता-उबलता हुऐ पानी, तेज़ाब से भरपूर वातावरण और आरसॅनिक जैसे ज़हरीले पदार्थों से युक्त वातावरण शामिल हैं। .

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चर्मशोधन

गाय के अशोधित चर्म के एक भाग का अनुप्रस्थ काट चर्मशोधन (Tanning) वह प्रक्रिया है जो एक पूयकारी या सड़ने वाली जानवर की खाल को एक टिकाऊ सामग्री यानि चमड़े में बदल देती है। इस प्रक्रिया में टैनिन नाम के एक अम्लीय रसायनिक यौगिक का प्रयोग किया जाता रहा है जिसके नाम पर इस प्रक्रिया का नाम 'टैनिंग' पड़ा। इसको 'चमड़ा कमाना' भी कहते हैं। कमाने की प्रक्रिया के दौरान ही चमड़े को रंगा भी जा सकता है। कमाने से खाल की प्रोटीन संरचना पूरी तरह बदल जाती है और वो फिर कभी वापस अपनी मूल अवस्था यानि कच्ची खाल नहीं बन सकती। चर्मशोधन के कार्य का प्राथमिक चरण है- मृत पशु की खाल प्राप्त करना। इसके पश्चात् ही चर्मशोधन की परम्परागत प्रक्रिया प्रारंभ होती है। सद्द (ताजा) प्राप्त खाल को तीन से चार दिन तक धूप में सूखने के लिए लटका दिया जाता है। उसके बाद पानी से खाल की धुलाई की जाती है। पानी से अच्छी तरह धोने के बाद खाल को चूना मिले हुए पानी में डाल दिया जाता है। चूने को पानी में डालने के लिए सीमेंट की टंकी बनाकर उसमें १:५ अनुपात में चूना और पानी का विलयन बनाया जाता है। तीन चार घंटे तक प्रतिदिन इस विलयन में डालकर चमड़े को अच्छी प्रकार से पानी से भिगोया जाता है। मोरोक्को के एक चर्मशोधक कारखाने का दृष्य .

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ट्राइऐसिक-जुरैसिक विलुप्ति घटना

ट्राइऐसिक-जुरैसिक विलुप्ति घटना (Triassic–Jurassic extinction event) पृथ्वी के ट्राइऐसिक युग को जुरैसिक कल्प से अलग करती है और यह आज से लगभग २०.१३ करोड़ वर्ष पूर्व घटी। अनुमान लगाया जाता है कि इस विलुप्ति घटना में उस समय पृथ्वी पर रह रही जातियों में से ५०% या उस से भी अधिक हमेशा के लिये विलुप्त हो गई। अनुमान लगाया जाता है कि यह विलुप्ति घटना बहुत तेज़ी से घटी और १०,००० वर्षों के काल में यह जातियाँ विलुप्त हो चुकी थीं। यह माना जाता है कि इन विलुप्तियों से धरती पर कई पारिस्थितिक स्थान खुल गये जिसके कारण डायनासोरों को उभरकर विस्तृत होने का मौक़ा मिल गया। .

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टेफ्लान

टेफ्लॉन की पट्टी, फीता(टेप) आदि टेफ्लान का अणु टेफ्लॉन की परत चढ़ाया हुआ बरतन (पैन) टेफ्लान या पॉलीटेट्राफ्लूरोएथिलीन (Polytetrafluoroethylene (PTFE)) एक संश्लेषित फ्लूरोबहुलक है। यह अनेकों कार्यों के लिये उपयोगी है। 'टेफ्लोन' (Teflon) डूपॉण्ट (DuPont Co) द्वारा विकसित पीटीएफई का ब्राण्ड-नाम है। पीटीएफई बहुत ही कठोर पदार्थ है। इस पर ऊष्मा, अम्ल तथा क्षार का प्रभान नहीं पड़ता है। यह विद्युत धारा का कुचालक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एमाइड

एमाइड क्रियात्मक समूह ऐमाइड (Amide) अमोनिया के हाइड्रोजन को वसीय या सौरभिक अम्ल मूलक द्वारा प्रतिस्थापित यौगिक है। इसमें अम्ल से कार्बोक्सिल मूलक का हाइड्रॉक्सिल मूलक ऐमिडोमूलक NH2 जैसे (R.CO.NH2)। ये तीन वर्ग के हैं: प्राथमिक R.CO...N H2, द्वितीयक (R.CO)2 तथा त्रितीयक (RCO)3 N* इनमें से केवल प्राथमिक ऐमाइड ही प्रमुख हैं। इन्हें 'ऐसिड ऐमाइड' भी कहते हैं। इनके नाम अम्ल के अंग्रेजी नाम से "-इक ऐसिड" निकालकर उसके बदले "ऐमाइड" लगा देने से प्राप्त होते हैं, जैसे फ़ॉर्मिक ऐसिड से फॉर्मऐमाइड (H.CO NH2), ऐसीटिक एसिड से ऐसीटेमाइड CH3। CO.NH2 इत्यादि। ऐमिनो मूलक के हाइड्रोजन के प्रतिस्थापित यौगिक को नाम के पहले एन (N) लिखकर व्यक्त करते हैं, जैसे एन-मेथिल ऐसीटैमाइड। प्रकृति में ये प्रोटीन में पेप्टाइड बंधन के रूप में पाए जाते हैं। .

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एल्ब्यूमिन

अल्ब्यूमिन (लैटिन: ऐल्बस, श्वेत), या एल्ब्यूमेन एक प्रकार का प्रोटीन है। यह सांद्र लवण घोलों (कन्सन्ट्रेटेड सॉल्ट सॉल्यूशन) में धीमे-धीमे घुलता है और फिर उष्ण कोएगुलेशन होने लगता है। एल्ब्यूमिन वाले पदार्थ, जैसे अंडे की सफ़ेदी, आदि को एल्ब्यूमिनॉएड्स कहते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। १ जून २०१० प्रकृति में विभिन्न तरह के एल्बुमिन पाए जाते हैं। अंडे और मनुष्य के रक्त में पाए जाने वाले एल्बुमिन को सबसे अधिक पहचाने मिली है। यह मानव शरीर में कई महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। यह विभिन्न प्रकार के पौधों और जंतुओं का रचनात्मक अवयव हैं। अंडे की सफेदी में अल्ब्यूमिन होता है। ---- एल्बुमिन वास्तव में एक गोलाकार प्रोटीन होता है। इसकी संरचना खुरदरी और गोल होती है। इसके अणु जल के संग एक घोल तैयार करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थ होते हैं। मांसपेशियों में पाए जाने वाले प्रोटीन रेशेदार होते हैं। इनकी संरचना अलग तरह की होती है और ये पानी में नहीं घुलते हैं। एल्बुमिन मनुष्य के शरीर में जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण घटक होते हैं। ये वसामय ऊतकों से शरीर में महत्वपूर्ण अम्लों का निर्माण करते हैं। ये शारीरिक क्रिया को नियंत्रित कर रक्त में हार्मोन और अन्य पदार्थो के परिसंचालन में सहयोग देते हैं। शरीर में इनका अभाव होने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। रोगियों के शरीर में इसकी अपेक्षित कमी के लक्षण होने पर चिकित्सक कई बार एल्बुमिन के परीक्षण का परामर्श भी देते हैं। अंडे के सफेद हिस्से में पाए जाने वाले एल्बुमिन को ओवल्बुमिन कहते हैं। गर्म करने पर एल्बुमिन और प्रोटीन जम जाते हैं। इस गुण के कारण ये पकाने में अच्छे होते हैं। इसी कारण से अंडा जल्दी उबलता है। इसमें पाया जाने वाला एल्बुमिन दूसरे तत्वों को शुद्ध करने के लिए भी काम लाया जाता है। इसे सूप बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। पकाए जाने पर प्रोटीन फैल जाते हैं और इनकी संरचना में बदलाव आता है। ओवल्बुमिन इस स्थिति में आंशिक रूप से फैलते हैं, जिससे इन पर एक सतह बन जाती है। इसे अधिक गर्म करने पर उसकी वास्तविक संरचना नष्ट हो जाती है। .

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एस्टर

कार्बोजाइलेट एस्टर (carboxylate ester); R तथा R' कोई एल्किल (alkyl) या एरिल (aryl) समूह हो सकता है। एस्टर (esters) वे रासायनिक यौगिक हैं जो अम्लों (कार्बनिक अथवा अकार्बनिक) से व्युत्पन्न होते हैं और उनमें कम से कम एक -OH (हाइड्रॉक्सिल / hydroxyl) समूह -O-alkyl (alkoxy) समूह से प्रतिस्थापित होता है। प्रायः एस्टर कार्बोजिलिक अम्ल और अल्कोहल से की क्रिया से बनाये जाते हैं। श्रेणी:एस्टर श्रेणी:प्रकार्यात्मक समूह श्रेणी:कार्बनिक रसायन.

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निक्षारण

सैनिक और उसकी पत्नी.डैनियल हूफर की एचिंग, जिनके बारे में माना जाता है कि मुद्रण में इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे धातु में बनी आकृति में एक डिजाइन तैयार करने के लिए किसी धातु की सतह के अरक्षित हिस्सों की कटाई के लिए तीव्र एसिड या मॉरडेंट का इस्तेमाल करने की प्रक्रिया को निक्षारण (etching/एचिंग) कहते हैं (यह मूल प्रक्रिया थी; आधुनिक निर्माण प्रक्रिया में अन्य प्रकार की सामग्रियों पर अन्य रसायनों का इस्तेमाल किया जा सकता है).

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पाकशास्त्र

खाना बनाते दो रसोइये कच्चे भोज्य पदार्थों को खाने योग्य बनाने की कला को पाकक्रिया (cooking) कहते हैं। बहुत सी वस्तुएँ कच्ची खाई जा सकती हैं और वे इसी रूप में खाने पर विशेष लाभप्रद भी होती हैं, परंतु बहुत सी वस्तुएँ ऐसी हैं जो कच्ची नहीं खाई जा सकती। कुस्वाद एवं हानिकारक होना दोनों ही इसके कारण हैं। कच्चा आलू, जमीकंद, केला आदि, कुस्वाद होते हैं। समस्त अनाज कच्चा खाने पर हानि पहुँचाते हैं। श्वेतसार से युक्त वस्तुएँ पकाकर खाने पर ही लाभप्रद होती हैं। उनका श्वेतसार पककर ही सुपाच्य होता है। ऐसे कच्चे भोज्य पदार्थ दो प्रकार से खाने योग्य बनाए जा सकते हैं, एक तो पकाकर, दूसरे सुरक्षित करके। .

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पुनर्भरणीय विद्युत्कोष

तरह-तरह की पुनर्भरणीय बैटरियाँ जिन बैटरियों को पुन: आवेशित करके पुनः विद्युत ऊर्जा ली जा सकती है उन्हें पुनर्भरणीय बैटरी (rechargeable battery) कहते हैं। इन्हें द्वितीयक सेल भी कहते हैं। इनमें होने वाली विद्युतरासायनिक अभिक्रियाएँ विद्युतीय रूप से उत्क्रमणीय (electrically reversible) होती हैं। पुनर्भरणीय बैटरियाँ विभिन्न आकार-प्रकार की होतीं है - बटन सेल से लेकर मेगावाट शक्ति प्रदान करने वाली प्रणालियाँ (विद्युत वितरण को स्थायित्व प्रदान करने के लिये) .

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प्रतिकारक

'प्रतिकारक (Antidotes) वे पदार्थ हैं जिनका व्यवहार विषों के अपकारी प्रभाव (हानिकारक प्रभाव) को रोकने के लिये होता है। .

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पीएच मापक

एक पीएच मापक यंत्र पीएच मापक द्रव्यों की अम्लीयता और क्षारीयता यानि पीएच का स्तर मापन करने हेतु उपकरण होता है। इसके द्वारा जांचे गए द्रव्य में अम्लीयता और क्षारीयता का स्तर बराबर रहता है, तो वह द्रव्य उदासीन होता है। कई अर्ध-तरल पदार्थों की जांच हेतु विशेष प्रोब्स का प्रयोग भी किया जाता है। एक पीएच मापक यंत्र में एक मापक प्रोब (कांच की इलेक्ट्रोड) एक इलेक्ट्रॉनिक मीटर से जुड़ी रहती है, व पीएच का स्तर मीटर पर दिख जाता है। पहला वाणिज्यिक पीएच-मापक १९३६ में ब्रिटेन के डॉ॰ आर्नल्ड ओरविले बैकमैन ने बनाया था। कैलिफॉर्निया इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर बैकमैन को एक ऐसी युक्ति बनाने को कहा गया, जो नींबू के रस की अम्लीयता जल्दी और सही माप सके। .

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बेसेमर प्रक्रिया

बेसेमर प्रक्रिया, पिघले हुए ढलवां लोहे (पिग आयरन) से बड़े पैमाने पर स्टील के उत्पादन के लिए पहली सस्ती औद्योगिक प्रक्रिया थी। इस प्रक्रिया का नाम इसके अविष्कारक हेनरी बेसेमर के नाम पर रखा गया जिन्होंने 1855 में इस प्रक्रिया का पेटेंट करवाया.

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बेकमान पुनर्विन्यास

अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में किसी आक्सिम‎ का विन्यास बदलकर एमाइड हो जाता है, जिसे बेकमान पुनर्विन्यास (Beckmann rearrangement) कहते हैं। यह नाम जर्मनी के रसायनशास्त्री अर्नस्ट आटो बेकमान (Ernst Otto Beckmann 1853–1923) के नाम पर हुआ है। चक्रीय आक्जाइम का पुनर्विन्यास होने पर लैक्टाम (lactam) बनते हैं।.

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भारतीय सिनेमा

भारतीय सिनेमा के अन्तर्गत भारत के विभिन्न भागों और भाषाओं में बनने वाली फिल्में आती हैं जिनमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और बॉलीवुड शामिल हैं। भारतीय सिनेमा ने २०वीं सदी की शुरुआत से ही विश्व के चलचित्र जगत पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।। भारतीय फिल्मों का अनुकरण पूरे दक्षिणी एशिया, ग्रेटर मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व सोवियत संघ में भी होता है। भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से अब संयुक्त राज्य अमरीका और यूनाइटेड किंगडम भी भारतीय फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार बन गए हैं। एक माध्यम(परिवर्तन) के रूप में सिनेमा ने देश में अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की और सिनेमा की लोकप्रियता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सभी भाषाओं में मिलाकर प्रति वर्ष 1,600 तक फिल्में बनी हैं। दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के जनक के रूप में जाना जाते हैं। दादा साहब फाल्के के भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के प्रतीक स्वरुप और 1969 में दादा साहब के जन्म शताब्दी वर्ष में भारत सरकार द्वारा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना उनके सम्मान में की गयी। आज यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित और वांछित पुरस्कार हो गया है। २०वीं सदी में भारतीय सिनेमा, संयुक्त राज्य अमरीका का सिनेमा हॉलीवुड तथा चीनी फिल्म उद्योग के साथ एक वैश्विक उद्योग बन गया।Khanna, 155 2013 में भारत वार्षिक फिल्म निर्माण में पहले स्थान पर था इसके बाद नाइजीरिया सिनेमा, हॉलीवुड और चीन के सिनेमा का स्थान आता है। वर्ष 2012 में भारत में 1602 फ़िल्मों का निर्माण हुआ जिसमें तमिल सिनेमा अग्रणी रहा जिसके बाद तेलुगु और बॉलीवुड का स्थान आता है। भारतीय फ़िल्म उद्योग की वर्ष 2011 में कुल आय $1.86 अरब (₹ 93 अरब) की रही। जिसके वर्ष 2016 तक $3 अरब (₹ 150 अरब) तक पहुँचने का अनुमान है। बढ़ती हुई तकनीक और ग्लोबल प्रभाव ने भारतीय सिनेमा का चेहरा बदला है। अब सुपर हीरो तथा विज्ञानं कल्प जैसी फ़िल्में न केवल बन रही हैं बल्कि ऐसी कई फिल्में एंथीरन, रा.वन, ईगा और कृष 3 ब्लॉकबस्टर फिल्मों के रूप में सफल हुई है। भारतीय सिनेमा ने 90 से ज़्यादा देशों में बाजार पाया है जहाँ भारतीय फिल्मे प्रदर्शित होती हैं। Khanna, 158 सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, अडूर गोपालकृष्णन, बुद्धदेव दासगुप्ता, जी अरविंदन, अपर्णा सेन, शाजी एन करुण, और गिरीश कासरावल्ली जैसे निर्देशकों ने समानांतर सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और वैश्विक प्रशंसा जीती है। शेखर कपूर, मीरा नायर और दीपा मेहता सरीखे फिल्म निर्माताओं ने विदेशों में भी सफलता पाई है। 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रावधान से 20वीं सेंचुरी फॉक्स, सोनी पिक्चर्स, वॉल्ट डिज्नी पिक्चर्स और वार्नर ब्रदर्स आदि विदेशी उद्यमों के लिए भारतीय फिल्म बाजार को आकर्षक बना दिया है। Khanna, 156 एवीएम प्रोडक्शंस, प्रसाद समूह, सन पिक्चर्स, पीवीपी सिनेमा,जी, यूटीवी, सुरेश प्रोडक्शंस, इरोज फिल्म्स, अयनगर्न इंटरनेशनल, पिरामिड साइमिरा, आस्कार फिल्म्स पीवीआर सिनेमा यशराज फिल्म्स धर्मा प्रोडक्शन्स और एडलैब्स आदि भारतीय उद्यमों ने भी फिल्म उत्पादन और वितरण में सफलता पाई। मल्टीप्लेक्स के लिए कर में छूट से भारत में मल्टीप्लेक्सों की संख्या बढ़ी है और फिल्म दर्शकों के लिए सुविधा भी। 2003 तक फिल्म निर्माण / वितरण / प्रदर्शन से सम्बंधित 30 से ज़्यादा कम्पनियां भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध की गयी थी जो फिल्म माध्यम के बढ़ते वाणिज्यिक प्रभाव और व्यसायिकरण का सबूत हैं। दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग दक्षिण भारत की चार फिल्म संस्कृतियों को एक इकाई के रूप में परिभाषित करता है। ये कन्नड़ सिनेमा, मलयालम सिनेमा, तेलुगू सिनेमा और तमिल सिनेमा हैं। हालाँकि ये स्वतंत्र रूप से विकसित हुए हैं लेकिन इनमे फिल्म कलाकारों और तकनीशियनों के आदान-प्रदान और वैष्वीकरण ने इस नई पहचान के जन्म में मदद की। भारत से बाहर निवास कर रहे प्रवासी भारतीय जिनकी संख्या आज लाखों में हैं, उनके लिए भारतीय फिल्में डीवीडी या व्यावसायिक रूप से संभव जगहों में स्क्रीनिंग के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं। Potts, 74 इस विदेशी बाजार का भारतीय फिल्मों की आय में 12% तक का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसके अलावा भारतीय सिनेमा में संगीत भी राजस्व का एक साधन है। फिल्मों के संगीत अधिकार एक फिल्म की 4 -5 % शुद्ध आय का साधन हो सकते हैं। .

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मट्ठा प्रोटीन

एक स्वास्थ्य-आहार की दुकान पर बेचे जा रहे मट्ठा प्रोटीन के डिब्बे. मट्ठा प्रोटीन, मट्ठा से पृथक गोलाकार प्रोटीन का एक मिश्रण, पनीर उत्पादन के उपोत्पादन के रूप में तैयार तरल पदार्थ है। कृन्तकों के कुछ पूर्व-नैदानिक अध्ययनों ने सुझाया है कि मट्ठा प्रोटीन, ग्लूटाथिऑन के उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं और यह शोथरोधी या कैंसररोधी गुणों से युक्त हो सकते हैं; लेकिन, मानव आंकडे उपलब्ध नहीं है। मानव स्वास्थ्य पर मट्ठा प्रोटीन का प्रभाव काफ़ी दिलचस्प हैं और रोगों के जोखिम को घटाने, या कई रोगों के पूरक उपचार के तौर पर, इस प्रोटीन मिश्रण की जांच की जा रही है। मट्ठा प्रोटीन का सामान्यतः आहार अनुपूरक के रूप में विपणन और अंतर्ग्रहण किया जाता है और वैकल्पिक चिकित्सा समुदाय में इसको विभिन्न स्वास्थ्य दावों का श्रेय दिया जाता है। हालांकि कुछ दुग्ध एलर्जी के लिए मट्ठा प्रोटीन जिम्मेदार है, पर दूध में प्रमुख प्रत्यूर्जक कैसीन रहे हैं। .

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रसायन विज्ञान की समयरेखा

जॉन डाल्टन के "अ न्यू सिस्टम ऑफ केमिकल फिलॉसफी" ले लिया गया चित्र - यह परमाणु सिद्धान्त की प्रथम आधुनिक व्याख्या थी इस समयरेखा में उन महत्वपूर्ण कृतियों, खोजों, विचारों एवं प्रयोगों को सूचीबद्ध किया गया है जिनके कारण पदार्थों की संरचना एवं उनके परस्पर क्रियाओं से सम्बन्धित मानव के ज्ञान में पर्याप्त वृद्धि हुई तथा जिसे आधुनिक विज्ञान में "रसायन विज्ञान" के नाम से जाना जाता है। यद्यपि रसायन विज्ञान की जड़ें ज्ञात इतिहास के आरम्भ काल तक पहुँची हुई हैं तथापि प्राय: आधुनिक रसायन के इतिहास का आरम्भ आयरलैण्ड के रसायनशास्त्री रॉबर्ट बॉयल से माना जाता है। .

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रासायनिक यौगिक

दो या अधिक तत्व जब भार के अनुसार एक निश्चित अनुपात में रासायनिक बन्ध द्वारा जुड़कर जो पदार्थ बनाते हैं उसे रासायनिक यौगिक (chemical compound) कहते हैं। उदाहरण के लिये जल, साधारण नमक, गंधक का अम्ल आदि रासायनिक यौगिक हैं। .

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रिओ तिन्तो (नदी)

रिओ तिन्तो का पानी लाल रंग का और तेज़ाबीय है रिओ तिन्तो (स्पैनिश: Rio Tinto, "लाल नदी") दक्षिण-पश्चिमी स्पेन की एक नदी है जो अन्दलूसीया क्षेत्र में स्थित सिएर्रा मोरेना पहाड़ शृंखला से आरम्भ होकर कादीज़ की खाड़ी पहुंचकर अन्ध महासागर में जा मिलती है। यह नदी अपने लाल-नारंगी पानी के लिए दुनिया भर में मशहूर है। .

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लिवोफ़्लॉक्सासिन

लिवोफ़्लॉक्सासिन फ़्लोरोक्विनोलोन दवा वर्ग का एक कृत्रिम रसायनोपचार एंटीबायोटिक है और गंभीर या प्राणघातक जीवाणु संक्रमण या अन्य प्रतिजैविकी वर्गों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाने में विफल जीवाणु संक्रमणों के इलाज के लिए प्रयुक्त होता है। यह विभिन्न ब्रांड नाम के तहत बेचा जाता है, जैसे सबसे सामान्य लेवाक्विन और तावानिक.

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लघु परिपथ

तूफान के दौरान पेड़ की शाखाओं द्वारा हुआ शॉर्ट सर्किट का दृष्य वैद्युत परिपथ में लघु परिपथ (शॉर्ट सर्किट) (कभी-कभी संक्षेप में शॉर्ट भी कहते है) उसे कहते हैं जो विद्युत्प्रवाह को उस मार्ग से जाने की अनुमति देता है जिसमे प्रतिबाधा शून्य या बहुत कम होती है। "खुला सर्किट" (ओपन सर्किट), लघु परिपथ का वैद्युतिक विलोम है जिसमें विद्युत परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओं के बीच प्रतिबाधा का मान अनन्त होता है। .

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लवण

लवण (Salt) वह यौगिक है जो किसी अम्ल के एक, या अधिक हाइड्रोजन परमाणु को किसी क्षारक के एक, या अधिक धनायन से प्रतिस्थापित करने पर बनता है। खानेवाला नमक एक प्रमुख लवण है। रसायनत: यह नमक सोडियम और क्लोरीन का सोडियम क्लोराइड नामक यौगिक है। पोटैशियम नाइट्रेट एक दूसरा लवण है, जो नाइट्रिक अम्ल के हाइड्रोजन आयन को पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के पोटैशियम आयन (धनायन) द्वारा प्रतिस्थापित करने से बनता है। नाइट्रिक अम्ल के अणु में केवल एक हाइड्रोजन होता है, जो पोटैशियम से प्रतिस्थापित होता है। सल्फ्यूरिक अम्ल में प्रतिस्थापनीय हाइड्रोजन की संख्या दो है। अत: सोडियम द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल के दोनों हाइड्रोजन के प्रतिस्थापित होने पर सोडियम सल्फेट नामक लवण प्राप्त होता है। दोनों ही यौगिक लवण कहलाते हैं। पहला नॉर्मल (normal) लवण और दूसरा अम्लीय लवण कहलाता है। विविध अम्लों और विविध क्षारों के सहयोग से अनेक लवण बने हैं। .

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लक्ष्मी (पीड़िता)

लक्ष्मी तेज़ाब हमले की पीड़िता और ऐसे हमलों के खिलाफ आवाज उठाने वाली एक भारतीय महिला हैं, जिन्हें अमेरिका ने 'इंटरनेशनल विमिन ऑफ करेज अवॉर्ड' से सम्मानित किया। .

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सरलता से उपलब्ध रसायनों की सूची

नीचे दी गयी सूची में नवसिखुआ रसायनज्ञों (amateur chemists.) के लिये 'लगभग शुद्ध' रसायनों के सरल स्रोत बताये गये हैं। इनमें प्रमुख हैं-.

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सिट्रिक अम्ल

सिट्रिक अम्ल (Citric acid) एक दुर्बल कार्बनिक अम्ल है। नींबू, संतरे और अनेक खट्टे फलों में सिट्रिक अम्ल और इसके लवण पाए जाते हैं। जांतव पदार्थों में भी बड़ी अल्प मात्रा में यह पाया जाता है। नींबू के रस से यह तैयार होता है। नींबू के रस में ६ से ७ प्रतिशत तक सिट्रिक अम्ल रहता है। नींबू के रस को चूने के दूध से उपचारित करने से कैल्सियम सिट्रेट का अवक्षेप प्राप्त होता है। अवक्षेप को हल्के सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ उपचारित करने से सिट्रिक अम्ल उन्मुक्त होता है। विलयन के उद्वाष्पन से अम्ल के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं जिनमें जल का एक अणु रहता है। शर्करा के किण्वन से भी सिट्रिक अम्ल प्राप्त होता है। रसायनशाला में सिट्रिक अम्ल का संश्लेषण भी हुआ है। यह वस्तुत: २-हाइड्रोक्सि-प्रोपेन १: २: ३ ट्राइकार्बोसिलिक अम्ल है। 300px 300px .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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सौर सेल

मोनोक्रिस्टलाइन सिलिकॉन वैफ़र से बना सौर सेल सौर बैटरी या सौर सेल फोटोवोल्टाइक प्रभाव के द्वारा सूर्य या प्रकाश के किसी अन्य स्रोत से ऊर्जा प्राप्त करता है। अधिकांश उपकरणों के साथ सौर बैटरी इस तरह से जोड़ी जाती है कि वह उस उपकरण का हिस्सा ही बन जाती जाती है और उससे अलग नहीं की जा सकती। सूर्य की रोशनी से एक या दो घंटे में यह पूरी तरह चार्ज हो जाती है। सौर बैटरी में लगे सेल प्रकाश को समाहित कर अर्धचालकों के इलेक्ट्रॉन को उस धातु के साथ क्रिया करने को प्रेरित करता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ३१ मार्च २०१० एक बार यह क्रिया होने के बाद इलेक्ट्रॉन में उपस्थित ऊर्जा या तो बैटरी में भंडार हो जाती है या फिर सीधे प्रयोग में आती है। ऊर्जा के भंडारण होने के बाद सौर बैटरी अपने निश्चित समय पर डिस्चार्ज होती है। ये उपकरण में लगे हुए स्वचालित तरीके से पुनः चालू होती है, या उसे कोई व्यक्ति ऑन करता है। सौर सेल का चिह्न एक परिकलक में लगे सौर सेल अधिकांशतः जस्ता-अम्लीय (लेड एसिड) और निकल कैडमियम सौर बैटरियां प्रयोग होती हैं। लेड एसिड बैटरियों की कुछ सीमाएं होती हैं, जैसे कि वह पूरी तरह चार्ज नहीं हो पातीं, जबकि इसके विपरीत निकल कैडिमयम बैटरियों में यह कमी नहीं होती, लेकिन ये अपेक्षाकृत भी होती हैं। सौर बैटरियों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में भी प्रयोग करने हेतु भी गौर किया जा रहा है। अभी तक, इन्हें केवल छोटे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयोगनीय समझा जा रहा है। पूरे घर को सौर बैटरी से चलाना चाहे संभव हो, लेकिन इसके लिए कई सौर बैटरियों की आवश्यकता होगी। इसकी विधियां तो उपलब्ध हैं, लेकिन यह अधिकांश लोगों के लिए अत्यधिक महंगा पड़ेगा। बहुत से सौर सेलों को मिलाकर (आवश्यकतानुसार श्रेणीक्रम या समानान्तरक्रम में जोड़कर) सौर पैनल, सौर मॉड्यूल, एवं सौर अर्रे बनाये जाते हैं। सौर सेलों द्वारा जनित उर्जा, सौर उर्जा का एक उदाहरण है। .

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हाला

हाला या द्राक्षिरा या वाइन (Wine) अंगूर के रस को किण्वित (फ़र्मेन्ट) करने से बनने वाला एक मादक पेय है। इसमें अंगूरों का किण्वन बिना किसी शर्करा, अम्ल, प्रकिण्व (एन्ज़ाइम), जल या अन्य किसी पोषक तत्व को डाले होता है। खमीर (यीस्ट) अंगूर रस में उपस्थित शर्करा को किण्वित कर के इथेनॉल व कार्बन डाईऑक्साइड में परिवर्तित कर देते हैं। अंगूर और खमीर की अलग-अलग नस्लों से अलग-अलग स्वाद, गंध व रंगों वाली हाला बनती है। हाला पर अंगूरों के उगाए जाने के स्थान, वर्षा, सूरज व अंगूरों को तोड़ने के समय का भी असर पड़ता है। अंगूरों के अलावा अन्य फलों की भी हाला बनाई जाती है हालांकि उसकी मात्रा व लोकप्रियता अंगूरों की हाला की तुलना में बहुत कम है। शहतूत, अनार, सेब, नाशपाती, आलू बुख़ारा, आलूबालू (चेरी) और अन्य फलों की हाला बनती है। हाला बनाने की प्रथा अति-प्राचीन है और कॉकस क्षेत्र में जॉर्जिया में ८,००० वर्ष पुराने हाला की सुराहियाँ मिली हैं। .

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हाइड्रोजन पेरॉक्साइड

'हाइड्रोजन परॉक्साइड (H2O2) एक बहुत हल्का नीला, पानी से जरा सा अधिक गाढ़ा द्रव है जो पतले घोल में रंगहीन दिखता है। इसमें आक्सीकरण के प्रबल गुण होते हैं और यह एक शक्तिशाली विरंजक है। इसका इस्तेमाल एक विसंक्रामक, रोगाणुरोधक, आक्सीकारक और रॉकेट्री में प्रणोदक के रूप में किया जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड की आक्सीकरण क्षमता इतनी प्रबल होती है कि इसे आक्सीजन की उच्च प्रतिक्रिया वाली जाति समझा जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड जीवों में आक्सीकरण चयापचय के उपोत्पाद के रूप में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है। लगभग सभी जीवित वस्तुओं (विशेषकर, सभी आब्लिगेटिव और फेकल्टेटिव वातापेक्षी जीव) में परॉक्सिडेज नामक एन्ज़ाइम होते हैं जो बिना हानि पहुंचाए और उत्प्रेरण द्वारा उदजन परूजारक की छोटी मात्राओं को पानी और आक्सीजन में विघटित करते हैं। .

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हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

३०% सान्द्रता वाला हाइड्रोक्लोरिक अम्ल हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक प्रमुख अकार्बनिक अम्ल है। वस्तुतः हाइड्रोजन क्लोराइड गैस के जलीय विलयन को ही हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कहते हैं। इस अम्ल का उल्लेख ग्लौबर ने १६४८ ई. में पहले पहल किया था। जोसेफ़ प्रीस्टली ने १७७२ में पहले पहल तैयार किया और सर हंफ्री डेवी ने १८१० ई. में सिद्ध किया कि हाइड्रोजन और क्लोरीन का यौगिक है। इससे पहले लोगों की गलत धारणा थी कि इसमें ऑक्सीजन भी रहता है। तब इसका नाम 'म्यूरिएटिक अम्ल' पड़ा या जो आज भी कहीं कहीं प्रयोग में आता है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ज्वालामुखी गैसों में पाया जाता है। मानव जठर में इसकी अल्प मात्रा रहती है और आहार पाचन में सहायक होती है। .

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जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

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जल (अणु)

जल पृथ्वी की सतह पर सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला अणु है, जो इस ग्रह की सतह के 70% का गठन करता है। प्रकृति में यह तरल, ठोस और गैसीय अवस्था में मौजूद है। मानक दबावों और तापमान पर यह तरल और गैस अवस्थाओं के बीच गतिशील संतुलन में रहता है। घरेलू तापमान पर, यह तरल रूप में हल्की नीली छटा वाला बेरंग, बेस्वाद और बिना गंध का होता है। कई पदार्थ, जल में घुल जाते हैं और इसे सामान्यतः सार्वभौमिक विलायक के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। इस वजह से, प्रकृति में मौजूद जल और प्रयोग में आने वाला जल शायद ही कभी शुद्ध होता है और उसके कुछ गुण, शुद्ध पदार्थ से थोड़ा भिन्न हो सकते हैं। हालांकि, ऐसे कई यौगिक हैं जो कि अनिवार्य रूप से, अगर पूरी तरह नहीं, जल में अघुलनशील है। जल ही ऐसी एकमात्र चीज़ है जो पदार्थ की सामान्य तीन अवस्थाओं में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है - अन्य चीज़ों के लिए रासायनिक गुण देखें. पृथ्वी पर जीवन के लिए जल आवश्यक है। जल आम तौर पर, मानव शरीर के 55% से लेकर 78% तक का निर्माण करता है। .

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जल का विद्युत अपघटन

जब जल से होकर विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो जल के अणुओं का विघटन हो जाता है और हाइड्रोजन एवं आक्सीजन प्राप्त होतीं हैं। इसे ही जल का विद्युत अपघटन (Electrolysis of water) कहते हैं। चूंकि शुद्ध जल विद्युत का कुचालक है इसलिये आसानी से कम वोल्टता लगाकर ही धारा प्रवाहित करने के लिये शुद्ध जल में बहुत कम मात्रा में अम्ल मिला दिया जाता है। thumb .

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जामुन

जामुन का पेड़ जामुन (वैज्ञानिक नाम: Syzygium cumini) एक सदाबहार वृक्ष है जिसके फल बैंगनी रंग के होते हैं (लगभग एक से दो सेमी. व्यास के) | यह वृक्ष भारत एवं दक्षिण एशिया के अन्य देशों एवं इण्डोनेशिया आदि में पाया जाता है। इसे विभिन्न घरेलू नामों जैसे जामुन, राजमन, काला जामुन, जमाली, ब्लैकबेरी आदि के नाम से जाना जाता है। प्रकृति में यह अम्लीय और कसैला होता है और स्वाद में मीठा होता है। अम्लीय प्रकृति के कारण सामान्यत: इसे नमक के साथ खाया जता है। जामुन का फल 70 प्रतिशत खाने योग्य होता है। इसमें ग्लूकोज और फ्रक्टोज दो मुख्य स्रोत होते हैं। फल में खनिजों की संख्या अधिक होती है। अन्य फलों की तुलना में यह कम कैलोरी प्रदान करता है। एक मध्यम आकार का जामुन 3-4 कैलोरी देता है। इस फल के बीज में काबोहाइट्ररेट, प्रोटीन और कैल्शियम की अधिकता होती है। यह लोहा का बड़ा स्रोत है। प्रति 100 ग्राम में एक से दो मिग्रा आयरन होता है। इसमें विटामिन बी, कैरोटिन, मैग्नीशियम और फाइबर होते हैं। .

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ज्वालामुखीय झील

क्रेटर लेक अमेरिका में स्थित एक ज्वालामुखीय झील है। यह उसका अंतरिक्ष से देखा गया एक दृश्य है। ज्वालामुखीय झील ऐसी झील को कहा जाता है जो किसी ज्वालामुखी के मुख में पानी भर जाने से बन जाती हो। ज्वालामुखीय झीलें जीवित या मृत ज्वालामुखी दोनों में बन सकती हैं। आम तौर से इनमे पानी वर्षा या हिमपात से भर जाता है। यदि किसी जीवित ज्वालामुखी में झील बनी हो और वह ज्वालामुखी फटना शुरू हो जाये, तो ऐसी झीलें तेज़ी से उबल कर ख़ाली हो जातीं हैं। इण्डोनेशिया में स्थित तोबा झील विश्व की सबसे बड़ी ज्वालामुखीय झील है। .

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जोकर (चित्रकथा)

जोकर एक काल्पनिक पात्र है, डीसी (DC) कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित एक चित्रकथा पुस्तक का प्रमुख खलनायक.

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विद्युत अपघट्य

एल्युमिनियम के एलेक्ट्रोरोलाइटिक कैपेसिटर रसायन विज्ञान में उन पदार्थों को विद्युत अपघट्य (electrolyte) कहते हैं जिनमें मुक्त एलेक्ट्रॉन होते हैं जो उस पदार्थ को विद्युत चालक बनाते हैं। किसी आयनिक यौगिक का जल में विलयन सबसे साधारण (आम) विद्युत अपघट्य है। इसके अलावा पिघले हुए आयनिक यौगिक तथा ठोस विद्युत अपघट्य भी होते हैं। सामान्यत: विद्युत अपघट्य अम्लों, क्षारों एवं लवणों के विलयन के रूप में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त उच्च ताप एवं कम दाब पर कुछ गैसें भी विद्युत अपघट्य जैसा गुण प्रदर्शित करतीं हैं। कुछ जैविक (जैसे डीएनए, पॉलीपेप्टाइड्स आदि) एवं संश्लेषित बहुलकों (जैसे पॉलीस्टरीन सल्फोनेट) के विलयन भी विद्युत अपघटनीय होते हैं। श्रेणी:भौतिक रसायन श्रेणी:विद्युत चालक.

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विद्युत्-रसायन

जॉन डेनियल और माइकल फैराडे (दायें तरफ), जिन्हे विद्युतरसायन का जनक माना जाता है विद्युतरसायन (eletro-chemistry), भौतिक रसायन की वह शाखा है जिसमें उन रासायनिक अभिक्रियों का अध्ययन किया जाता है जो किसी विलयन (सलूशन्) के अन्दर एक एलेक्ट्रान चालक और एक ऑयनिक चालक (विद्युत अपघट्य) के मिलन-तल (इन्टरफेस) पर होती है। इसमें इलेक्ट्रान चालक कोई धातु या अर्धचालक हो सकता है। यदि रासायनिक अभिक्रिया किसी बाहर से आरोपित विभवान्तर (वोल्टेज्) के कारण घटित होती है (जैसे विद्युत अपघटन में); या रासायनिकभिक्रिया के परिणामस्वरूप विभवान्तर पैदा होता है (जैसे बैटरी में) तो ऐसी रासायनिक अभिक्रियों को विद्युत्त्-रासायनिक अभिक्रिया (electrochemical reaction) कहते हैं। सामान्य रूप से देखें तो पाते हैं कि विद्युत रासायनिक अभिक्रियाओं में ऑक्सीकरण एवं अपचयन क्रियाएं निहित होती हैं जो समय या स्थान (स्पेस और टाइम) में अलग होती हैं और किसी बाहरी परिपथ से जुड़ी होती हैं। .

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वियोजन

आयनिक लवण को जल में घोलने पर वह वियोजित हो जाता है रसायन विज्ञान एवं जैवरसायन में वियोजन (Dissociation) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें अणु (या आयनिक यौगिक, जैसे लवण आदि) टूटकर छोटे कणों (जैसे परमाणु, आयन या मूलक के रूप में) के रूप में बदल जाते हैं। यह क्रिया प्रायः उत्क्रमणीय होती है। उदाहरण के लिये जब अम्ल को जल में घोलते हैं तो हाइड्रोजन परमाणु एवं विद्युतऋणात्मक परमाणु के बीच स्थित सहसंयोजी बन्ध टूत जाता है जिससे प्रोटॉन (H+) एवं ऋणात्मक आयन बनता है। वियोजन, पुनर्योजन (recombination) की उल्टी प्रक्रिया है। श्रेणी:रसायन विज्ञान.

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व्यावहारिक गणित

वाहन को शहर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर कम से कम समय में ले जाने के लिए गणित का उपयोग करना पड़ सकता है। इसके लिए सांयोगिक इष्टतमीकरण (combinatorial optimization) तथा पूर्णांक प्रोग्रामन (integer programming) का उपयोग करना पड़ सकता है। व्यावहारिक गणित (अनुप्रयुक्त गणित या प्रायोगिक गणित), गणित की वह शाखा है जो ज्ञान की अन्य विधाओं की समस्याओं को गणित के जुगाड़ों (तकनीकों) के प्रयोग से हल करने से सम्बन्ध रखती है। ऐतिहास दृष्टि से देखें तो भौतिक विज्ञानों (physical sciences) की आवश्यकताओं ने गणित की विभिन्न शाखाओं के विकास में महती भूमिका निभायी। उदाहरण के लिये तरल यांत्रिकी में गणित का उपयोग करने से एक हल्का एवं कम ऊर्जा से की खपत करने वाला वायुयान की डिजाइन की जा सकती है। बहुत पुरातन काल से ही विषयों में गणित सर्वाधिक उपयोगी रहा है। यूनानी लोग गणित को न केवल संख्याओं और दिक् (स्पेस) का बल्कि खगोलविज्ञान और संगीत का भी अध्ययन मानते थे। गणितसारसंग्रह के 'संज्ञाधिकार' में मंगलाचरण के पश्चात महान प्राचीन भारतीय गणितज्ञ महावीराचार्य ने बड़े ही मार्मिक ढंग से गणित की प्रशंशा की है और गणित के अनेकानेक उपयोगों को गिनाया है- आज के 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएँ गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी में बाढ़ आएगी। अंकगणित का प्रयोग व्यापार में रुपयों-पैसों और वस्तुओं के विनिमय या हिसाब-किताब रखने के लिए किया जाता था। ज्यामिति का इस्तेमाल खेतों के चारों तरफ की सीमाओं के निर्धारण तथा पिरामिड जैसे स्मारकों के निर्माण में होता था। अपने दैनिक जीवन में रोजाना ही हम गणित का इस्तेमाल करते हैं-उस वक्त जब समय जानने के लिए हम घड़ी देखते हैं, अपने खरीदे गए सामान या खरीदारी के बाद बचने वाली रेजगारी का हिसाब जोड़ते हैं या फिर फुटबाल टेनिस या क्रिकेट खेलते समय बनने वाले स्कोर का लेखा-जोखा रखते हैं। व्यवसाय और उद्योगों से जुड़ी लेखा संबंधी संक्रियाएं गणित पर ही आधारित हैं। बीमा (इंश्योरेंस) संबंधी गणनाएं तो अधिकांशतया ब्याज की चक्रवृद्धि दर पर ही निर्भर है। जलयान या विमान का चालक मार्ग के दिशा-निर्धारण के लिए ज्यामिति का प्रयोग करता है। सर्वेक्षण का तो अधिकांश कार्य ही त्रिकोणमिति पर आधारित होता है। यहां तक कि किसी चित्रकार के आरेखण कार्य में भी गणित मददगार होता है, जैसे कि संदर्भ (पर्सपेक्टिव) में जिसमें कि चित्रकार को त्रिविमीय दुनिया में जिस तरह से इंसान और वस्तुएं असल में दिखाई पड़ते हैं, उन्हीं का तदनुरूप चित्रण वह समतल धरातल पर करता है। संगीत में स्वरग्राम तथा संनादी (हार्मोनी) और प्रतिबिंदु (काउंटरपाइंट) के सिद्धांत गणित पर ही आश्रित होते हैं। गणित का विज्ञान में इतना महत्व है तथा विज्ञान की इतनी शाखाओं में इसकी उपयोगिता है कि गणितज्ञ एरिक टेम्पल बेल ने इसे ‘विज्ञान की साम्राज्ञी और सेविका’ की संज्ञा दी है। किसी भौतिकविज्ञानी के लिए अनुमापन तथा गणित का विभिन्न तरीकों का बड़ा महत्व होता है। रसायनविज्ञानी किसी वस्तु की अम्लीयता को सूचित करने वाले पी एच (pH) मान के आकलन के लिए लघुगणक का इस्तेमाल करते हैं। कोणों और क्षेत्रफलों के अनुमापन द्वारा ही खगोलविज्ञानी सूर्य, तारों, चंद्र और ग्रहों आदि की गति की गणना करते हैं। प्राणीविज्ञान में कुछ जीव-जन्तुओं के वृद्धि-पैटर्नों के विश्लेषण के लिए विमीय विश्लेषण की मदद ली जाती है। जैसे-जैसे खगोलीय तथा काल मापन संबंधी गणनाओं की प्रामाणिकता में वृद्धि होती गई, वैसे-वैसे नौसंचालन भी आसान होता गया तथा क्रिस्टोफर कोलम्बस और उसके परवर्ती काल से मानव सुदूरगामी नए प्रदेशों की खोज में घर से निकल पड़ा। साथ ही, आगे के मार्ग का नक्शा भी वह बनाता गया। गणित का उपयोग बेहतर किस्म के समुद्री जहाज, रेल के इंजन, मोटर कारों से लेकर हवाई जहाजों के निर्माण तक में हुआ है। राडार प्रणालियों की अभिकल्पना तथा चांद और ग्रहों आदि तक अन्तरिक्ष यान भेजने में भी गणित से काम लिया गया है। .

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खनिज अम्ल

किसी एक या एक से अधिक अकार्बनिक यौगिकों से उत्पादित अम्लों को खनिज अम्ल (mineral acid) या 'अकार्बनिक अम्ल' (inorganic acid) कहते हैं। खनिज अम्लों को जब जल में घोला जाता है तो सभी अम्ल हाइड्रोजन ऑयन और संयुग्मी क्षार आयन बनाते है। .

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खीरा

खीरे की लता, पुष्प एवं फल खीरा (cucumber; वैज्ञानिक नाम: Cucumis sativus) ज़ायद की एक प्रमुख फसल है। सलाद के रूप में सम्पूर्ण विश्व में खीरा का विशेष महत्त्व है। खीरा को सलाद के अतिरिक्त उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा विभिन्न प्राकर की मिठाइयाँ भी तैयार की जाती है। पेट की गड़बडी तथा कब्ज में भी खीरा को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। खीरा कब्ज़ दूर करता है। पीलिया, प्यास, ज्वर, शरीर की जलन, गर्मी के सारे दोष, चर्म रोग में लाभदायक है। खीरे का रस पथरी में लाभदायक है। पेशाब में जलन, रुकावट और मधुमेह में भी लाभदायक है। घुटनों में दर्द को दूर करने के लिये भोजन में खीरा अधिक खायें। .

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गारामुखी

अज़रबैजान के गोबुस्तान क्षेत्र में गारामुखियों की एक शृंखला गारामुखी (mud volcano, मड वॉल्केनो) या पंकमुखी या पंक ज्वालामुखी एक ऐसी प्राकृतिक रचना को कहते हैं जिसमें ज़मीन के नीचे से उभरते हुए गरम द्रवों और गैसों से एक टीला बन जाए जिसके ऊपर स्थित मुख से गीली मिट्टी और मलबा (यानि 'गारा') उगलता हो। एक तरह से यह ज्वालामुखी की तरह ही होता है हालांकि गारामुखी से लावा नहीं निकलता और इनका तापमान ज्वालामुखियों से बहुत कम होता है। पूरे विश्व में लगभग ७०० गारामुखी ज्ञात हैं और सबसे बड़ा वाला ७०० मीटर ऊँचा है और १० किमी का व्यास (डायामीटर) रखता है। गारामुखियों से निकलने वाली गैस का लगभग ८५% मीथेन होता है और इसके अतिरिक्त इसमें कार्बन डायोक्साइड और नाइट्रोजन भी होती हैं। इनमें से निकलने वाला द्रव अधिकतर गरम पानी होता है जिसमें महीन धुल और पत्तर के कण मिले होते हैं, हालांकि कुछ मात्रा हाइड्रोकार्बन द्रवों की भी होती है। अक्सर यह द्रव (लिक्विड) अम्लीय (एसिडिक) और नमकीन होता है। कुछ खगोलशास्त्रियों को मंगल ग्रह पर भी गारामुखियों के मौजूद होने का शक है।, BBC, Accessed 2009-03-27 .

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गिल्बर्ट न्यूटन ल्यूइस

गिल्बर्ट ल्युइस गिल्बर्ट न्यूटन ल्यूइस (Gilbert Newton Lewis; सन् १८७५-१९४६) अमेरिका के रसायनज्ञ थे जो सहसंयोजक बंध की खोज एवं इलेक्ट्रान-युग्म के काँसेप्ट देने के लिए प्रसिद्ध हैं। ल्युइस ने ऊष्मागतिकी, प्रकाशरसायन, तथा समस्थानिक विलगन (आइसोटोप सेपरेशन) पर भी काम किया तथा अम्ल और क्षार का कांसेप्ट भी दिया। ल्युइस का जन्म मैसाचुसेट्स प्रदेश के बोस्टन नगर के पास हुआ था। आप हारवार्ड विश्वविद्यालय के स्नातक थे और यहीं से सन् १८९९ में आपने पी-एच.

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ऑक्सैलिक अम्ल

आक्सैलिक अम्ल की संरचना आक्सैलिक अम्ल (Oxalic acid) पोटैसियम और कैल्सियम लवण के रूप में बहुत से पौधों में पाया जाता है। लकड़ी के बुरादे से क्षार के साथ २४०° से २५०° सें.

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ओस्टवाल्ड तनुता नियम

विल्हेल्म ओस्टवाल्ड की तनुता का नियम (Ostwald’s dilution law) किसी दुर्बल विद्युत अपघट्य (जैसे अम्ल, क्षार आदि) के आयनिक स्थिरांक (dissociation constant) तथा आयनन की मात्रा (degree of dissociation) के बीच एक सम्बन्ध बताने वाला नियम है। जहाँ.

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आमाशयार्ति

आमाशयार्ति की अवस्था में लिया गया माइक्रोग्राम आमाशयार्ति (गैस्ट्राइटिज़ / Gastritis) में आमाशय की श्लेष्मिक कला का उग्र या जीर्ण शोथ हो जाता है। उग्र आमाशयार्ति किसी क्षोभक पदार्थ, जैसे अम्ल या क्षार या विष अथवा अपच्य भोजन पदार्थो के आमाशय में पहुँचने से उत्पन्न हो जाती है। अत्यधिक मात्रा में मद्य पीने से भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है। आंत्रनाल के उग्र शोथ में आमाशय के विस्तृत होने से भी रोग उत्पन्न हो सकता है। रोग के लक्षण अकस्मात्‌ आरंभ हो जाते हैं। रोगी के उपरिजठर प्रदेश (एपिगैस्ट्रियम) में पीड़ा होती है, जिसके पश्चात्‌ वमन होते हैं, जिनमें रक्त मिला रहता है। अधिकतर रोगियों में कारण दूर कर देने पर रोग शीघ्र ही शांत हो जाता है। जीर्ण रोग के बहुत से कारण हो सकते हैं। मद्य का अतिमात्रा में बहुत समय तक सेवन रोग का सबसे मुख्य कारण है। अधिक मात्रा में भोजन करना, गाढ़ी चाय (जिसमें टैनिन अधिक होती है) अधिक पीना, मिर्च, तथा अन्य मसालों का अति मात्रा में प्रयोग, अति ठंडी वस्तुएँ, जैसे बर्फ, आइसक्रीम, आदि खाना, अधिक धूम्रपान तथा बिना चबाया हुआ भोजन, ये सब कारण रोग उत्पन्न कर सकते हैं। जीर्ण आमाशयार्ति उग्र आमाशयार्ति का परिणाम हो सकती है और आमाशय में अर्बुद बन जाने पर, शिराओं की रक्ताधिक्यता (कॉनजेस्चन) में, जैसे हृदरोग में अथवा यकृत के कड़ा हो जाने (सिरौसिस) में, दुष्ट रक्तक्षीणता अथवा ल्यूकीमिया के समान रक्तरोगों में तथा कैंसर या राजयक्ष्या में भी यही दशा पाई जाती है। इस रोग में विशेष विकृति यह होती है कि आमाशय में श्लेष्मिक कला से श्लेष्मा का अधिक मात्रा में स्राव होने लगता है, जो आमाशय में एकत्र होकर समय समय पर वमन के रूप में निकला करता है। आगे चलकर श्लेष्मिक कला की अपुष्टता (ऐटोफ़ी) होने लगती है। रोगी प्राय: प्रौढ़ अवस्था का होता है, जिसका मुख्य कष्ट अजीर्ण होता है। भूख न लगना, मुँह का स्वाद खराब होना, अम्लपित्त, बार-बार हवा खुलना, प्यास की अधिकता, खट्टी डकार आना या वमन, जिसमें श्लेष्मा और आमाशय का तरल पदार्थ निकलता है, विशेष लक्षण होते हैं। अधिजठर प्रांत में प्रसृत्त वेदना (टेंडरनेस) के सिवाय और कोई लक्षण नहीं होता। खाद्य की आंशिक जाँच (फ़ैक्शनल मील टेस्ट) से श्लेष्मा की अत्यधिक मात्रा का पता लगता है। मुक्त अम्ल (फ्ऱी ऐसिड) की मात्रा कम अथवा बिलकुल नहीं होती। जठरनिर्गम (पाइलोरस) के पास के भाग में रोग होने से पक्वाशय के व्रण (डुओडेनल अलसर) के समान लक्षण हो सकते हैं। आहार के नियंत्रण से तथा श्लेष्मा को घोलने के लिए क्षार के प्रयोग से रोगी की व्यथा कम होती है। .

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कार्ल विल्हेल्म शीले

कपिंग में शीले की मूर्ति कार्ल विल्हेल्म शीले (Karl Wilhelm Scheele, सन् १७४२ - १७८६), स्वीडेन के रसायनज्ञ थे। .

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कंक्रीट

वाणिज्यिक भवन के लिये कंक्रीट बिछायी जा रही है। कंक्रीट (Concrete) एक निर्माण सामग्री है जो सीमेंट एवं कुछ अन्य पदार्थों का मिश्रण होती है। कंक्रीट की यह विशेषता है कि यह पानी मिलाकर छोड़ देने के बाद धीरे-धीरे ठोस एवं कठोर बन जाता है। इस प्रक्रिया को जलीकरण (Hydration) कहते है। इस रासायनिक क्रिया में पानी, सिमेन्ट के साथ क्रिया करके पत्थर जैसा कठोर पदार्थ बनाती है जिसमें अन्य चीजें बंध जातीं हैं। कंक्रीट का प्रयोग सड़क बनाने, पाइप निर्माण, भवन निर्माण, नींव बनाने, पुल आदि बनाने में होता है। कंक्रीट का उपयोग 2000 ई.पू.

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क्षार

क्षार एक ऐसा पदार्थ है, जिसको जल में मिलाने से जल का pHमान 7.0 से अधिक हो जाता है। ब्रंस्टेड और लोरी के अनुसार, क्षार एक ऐसा पदार्थ है जो अम्लीय पदार्थों को OH- दान करते हैं। क्षारक वास्तव में वे पदार्थ हैं जो अम्ल के साथ मिलकर लवण और जल बनाते हैं। उदाहरणत:, जिंक आॅक्साइड सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर ज़िंक सल्फेट और जल बनाता है। दाहक सोडा (कॉस्टिक सोडा), सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर सोडियम सल्फेट और जल बनाता है। धातुओं के आॅक्साइड सामान्यत: क्षारक हैं। पर इसके अपवाद भी हैं। क्षारकों में धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड हैं, पर सुविधा के लिए तत्वों के कुछ ऐसे समूह भी रखे गए हैं जो अम्लों के साथ मिलकर बिना जल बने ही लवण बनाते हैं। ऐसे क्षारकों में अमोनिया, हाइड्राॅक्सिलएमीन और फाॅस्फीन हैं। द्रव अमोनिया में घुल जाता है पर फिनोल्फथैलीन से कोई रंग नहीं देता। अत: कहाँ तक यह क्षारक कहा जा सकता है, यह बात संदिग्ध है। यद्यपि ऊपर की क्षारक की परिभाषा बड़ी असंतोषप्रद है, तथापि इससे अच्छी परिभाषा नहीं दी जा सकी है। क्षारक (बेस) और क्षार (ऐल्कैली) पर्यायवाची शब्द नहीं हैं। सब क्षार क्षारक हैं पर सब क्षारक क्षार नहीं हैं। क्षार-धातुओं के आॅक्साइड, जैसे सोडियम आॅक्साइड, जल में घुलकर हाइड्राॅक्साइड बनाते हैं। ये प्रबल क्षारकीय होते हैं। क्षारीय मृदाधातुओं के आक्साइड, जैसे कैल्सियम आॅक्साइड, जल में अल्प विलेय और अल्प क्षारीय होते हैं। अन्य धातुओं के आॅक्साइड जल में नहीं घुलते और उनके हाइड्राॅक्साइड परोक्ष रीतियों से ही बनाए जाते हैं। धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड क्षारक होते हैं। क्षार धातुओं के आॅक्साइड जल में शीघ्र घुल जाते हैं। कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में कम विलेय होते हैं और कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में ज़रा भी विलेय नहीं हैं। कुछ अधातुओं के हाइड्राइड, जैसे नाइट्रोजन और फाॅस्फोरस के हाइड्राइड (क्रमश: अमोनिया और फाॅस्फीन) भी भस्म होते हैं। .

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क्षारीय बैटरी

विभिन्न आकार-प्रकार की क्षारीय बैटरियाँ क्षारीय बैटरी (Alkaline batteries) वह प्राथमिक बैटरी है जो जस्ता और मैंगनीज आक्साइड (Zn/MnO2) की रासायनिक अभिक्रिया पर आधारित है। इस प्रकार की पुनर्भरणीय बैटरियाँ भी बनायी जाती हैं। इस प्रकार की बैटरी में विद्युत अपघट्य, अम्ल की जगह क्षार होता है। सर्वाधिक प्रचलित क्षारीय बैटरी एडिसन सेल (Edison) प्रकार की बैटरी है। यह बैटरी निकल-लोह क्षारीय प्रकार का सेल है। एक अन्य बैटरी निकल-कैडमिययम प्रकार की है। इस बैटरी का विद्युत्‌ अपघट्य, पोटैशियम और लीथियम ऑक्साइड का जलीय विलयन है। इस विद्युत्‌ अपघट्य से सक्रिय पदार्थ का किसी भी अवस्था में विघटन या विलयन नहीं होता। उच्च निकाल ऑक्साइड के इलेक्ट्रोड पर पोटैशियम और लीथियम हाइड्रॉक्साइड का अल्प परिमाण में अवशोषण होता है, लेकिन आवेशन तथा विसर्जन के संपर्क के दौरान विद्युत्‌ अपघट्य के संघटन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। अत: विद्युत्‌ अपघट्य का आपेक्षिक घनत्व एवं चालकता व्यवहारत: स्थिर रहती है। लीथियम हाइड्रॉक्साइड उच्च निकल ऑक्साइड के इलेक्ट्रोड में सक्रिय पदार्थों को अत्यधिक उपयोगी कर देता है। लीथियम हाइड्रॉक्साइड के कारण बैटरी की दक्षता और जीवन में वृद्धि हो जाती है। अत: यह विद्युत्‌ अपघट्य का अत्यावश्यक घटक है। पट्टिकाएँ बनाने के लिए छिद्रित निकल इस्पात की नलियों या खानों (pockets) में सक्रिय पदार्थ भर दिए जाते हैं। धन पट्टिकाएँ, जो एक दूसरे के बगल में रखी रहती है, अनेक ऊर्ध्वाधर नलियों के रूप में रहती हैं। धन पट्टिका में इसके वैद्युत गुण को बढ़ाने के लिए, निकल हाइड्रेट के साथ फ्लेक निकल (flake nickel) एकांतरित स्तरों में भरा रहता है। नलियाँ, जो बिना जोड़ के परिवेष्टित करनेवाले आठ वलयों से प्रबलित रहती है, ग्रिड पर समान अवकाश में आरोपित रहती हैं। ऋण पट्टिका धन पट्टिका के समान रहती है। अंतर केवल यह रहता है कि ऋण पट्टिका में नली के स्थान पर छिद्रित खाने में सूक्ष्म विभाजित लोह ऑक्साइड सक्रिय पदार्थ के रूप में भरा रहता है। ऋण एवं धन पट्टिकाएँ धन और ऋण समूहों में समायोजित रहती हैं। ऐसा ग्रिडों के सिरों के छोदों में से सयोजी दंड डालकर किया जाता है। इस्पात के छल्ले (washer) के उपयोग से उपयुक्त फासला प्राप्त किया जाता है। मध्य अंतरक पोलपीस (pole-piece) का आधार होता है। संयोजी दंड के प्रत्येक सिरे को लॉक वाशर (lock washer) तथा नट से कस देने पर पट्टिकाओं का समूह दृढ़ता से एक दूसरे के साथ बँध जाता है। सब बाशर, नट, संयोजी दंड तथा टरमिनल निकल इस्पात के बने होते हैं। पट्टिका समूहों को पूर्ण एलिमेंट (element) में संयोजित करते हैं। ऋण पट्टिकाओं के समूह में धन पट्टिकाओं के समूह की अपेक्षा एक अधिक एक अधिक पट्टिका होती है। ऊर्ध्वाधर कठोर रबर पिनों (pins) के द्वारा, जो पट्टिकाओं की लंबाई के बराबर होते हैं, प्रत्यावर्ती ऋण एव धन पट्टिकाएँ विद्युत्रोधी बनाई जाती है। रबर की पट्टियाँ ऋण पट्टिकाओं के बाह्य भागों को पात्र के प्रति विद्युत्रोधी बनाती है। कठोर रबर संरचना द्वारा पट्टिकाओं के सिरों तथा किनारों का विद्युत्रोधन होता है। यह संरचना ग्रिडों का पृथक्करण करती है और पट्टिकाओं के पंक्तिबंधन को ठीक रखती है। इस संरचना का अभिकल्प ऐसा होता है कि विद्युत्‌ अपघट्य का परिसंचरण निर्बाध होता है। निकल-लोह-क्षारीय सेल का पात्र निकल इस्पात का बनाया जाता है, क्योंकि इस्पात पर पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड (विद्युत्‌ अपघटय) की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है। सेल संधियाँ वेल्डित की रहती हैं। इस्पात के वलयों से प्रसारित और कठोर रबर के छल्लों या ग्लैंड कैपों (gland caps) से पोल पीस का विद्युत्रोधन उन स्थानों पर होता है जहाँ से पोल आच्छादन से बाहर निकलता है। संपूर्ण सेल को विद्युत्रोधी पेंट से रँग दिया जाता है। सेल के शीर्ष पर रोज़िन पेट्रोलियम जेली का फिल्म चढ़ा दिया जाता है। नट को कसने से संयोजक सुरक्षित हो जाते हैं। नट को ढीला करके जैक द्वारा हटाया जाता है। कठोर लकड़ी की ट्रे में निकल-लोह-क्षारीय सेल को बैटरी के रूप में समायोजित किया जाता है। यह समायोजन प्रत्येक सेल को अपने स्थान पर रखता है और ट्रे तथा संगत सेलों के प्रति सेल को विद्युत्रोधी बनाता है। संचायक सेल के सक्रिय पदार्थ विद्युत्‌ का संचय नहीं करते, पर विद्युत्‌ ऊर्जा के उपयोग से इन सक्रिय पदार्थों में इस प्रकार के भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन होते हैं जिनसे वे विद्युत्‌ ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम हो जाते हैं। बैटरी को आवेशित करने पर जो रासायनिक परिवर्तन होते हैं, उन्हें समीकरणों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। विद्युत्‌ अपघट्य, पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड KOH, K+ और OH- में आयनित हो जाता है। फेरस ऑक्साइड, और (Fe O), की बनी ऋण पट्टिका पर होनेवाली अभिक्रिया तथा निकल ऑक्साइड की बनी धन पट्टिका पर होनेवाली अभिक्रिया निम्नलिखित समीकरणों से क्रमश: व्यक्त की जा सकती है: 'एक्साइड' (Exide) छाप बैटरियाँ जो १९७२ और १९७५ के बीच निर्मित हुईं, उनका विकास मूलतः थॉमस अल्वा एडीसन ने १९०१ में किया था। जब सेल विसर्जित होता है, तब ऋण एवं धन पट्टिका पर निम्नलिखित रासायनिक परिवर्तन होता है: प्रत्येक सेल की, ५ घंटे में, सामान्य औसत विसर्जन दर लगभग १.२० वोल्ट होती है, जबकि लेड एसिड बैटरी की विसर्जन दर २ वोल्ट है। अत: एक ही वोल्ट की ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए लेड सेल की अपेक्षा ऐडिसन सेल की अधिक आवश्यकता पड़ती है। वैद्युत परीक्षण द्वारा बैटरी का आवेश निर्धारित किया जाता है। हाइड्रोमीटर के पाठ्यांक के द्वारा आवेश निर्धारित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि विद्युत्‌ अपघट्य में आपेक्षिक घनत्व आवेश की अवस्था के साथ साथ परिवर्तित नहीं होता। .

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केसीन

गरम करने के बाद दूध से केसीन का विकृतीकरण (Denaturation) एवं अवक्षेपण केसीन स्तनधारी प्राणियों के दूध में पाया जानेवाली फ़ास्फोप्रोटीन है जो कैल्सियम कै सीनेट के रूप में रहता है। इसके अलावा सोयाबीन में भी केसीन पर्याप्त मात्रा में होता है। इसमें लगभग १५ ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं। इसका रंग सफेद से लेकर पीला तक होता है। केसीन, तनु क्षारों और सांद्र अम्लों में विलेय और जल में अविलेय है। अम्ल से अवक्षेपित केसीन कागज पर विलेपन करने, सरेसों (फाइबर्स), पेटों, आसंजकों (Adhedives), वस्त्रोद्योग और खाद्य पदार्थों में काम आता है। श्रेणी:दूध.

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कोशिकीय श्वसन

सजीव कोशिकाओं में भोजन के आक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होने की क्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं। यह एक केटाबोलिक क्रिया है जो आक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों ही अवस्थाओं में सम्पन्न हो सकती है। इस क्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को एटीपी नामक जैव अणु में संग्रहित करके रख लिया जाता है जिसका उपयोग सजीव अपनी विभिन्न जैविक क्रियाओं में करते हैं। यह जैव-रासायनिक क्रिया पौधों एवं जन्तुओं दोनों की ही कोशिकाओं में दिन-रात हर समय होती रहती है। कोशिकाएँ भोज्य पदार्थ के रूप में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्ल का प्रयोग करती हैं जिनको आक्सीकृत करने के लिए आक्सीजन का परमाणु इलेक्ट्रान ग्रहण करने का कार्य करता है। कोशिकीय श्वसन एवं श्वास क्रिया में अभिन्न सम्बंध है एवं ये दोनों क्रियाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। श्वांस क्रिया सजीव के श्वसन अंगों एवं उनके वातावरण के बीच होती है। इसके दौरान सजीव एवं उनके वातावरण के बीच आक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है तथा इस क्रिया द्वारा आक्सीजन गैस वातावरण से सजीवों के श्वसन अंगों में पहुँचती है। आक्सीजन गैस श्वसन अंगों से विसरण द्वारा रक्त में प्रवेश कर जाती है। रक्त परिवहन का माध्यम है जो इस आक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों की कोशिकाओं में पहुँचा देता है। वहाँ इसका उपयोग कोशिकाएँ अपने कोशिकीय श्वसन में करती हैं। श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति-गृह (पावर हाउस) कहा जाता है। .

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कीटोएसिडता

कीटोएसिडता, कीटोन अम्लमयता या कीटोएसीडोसिस (Ketoacidosis) उस स्थिति को कहते हैं जिसमें शरीर में कीटोन की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है। मानव शरीर में बनने वाले दो प्रमुख कीटोन हैं - एसिटोएसिटिक अम्ल तथा बीटा-हाइड्रॉक्सीब्यूटीरेट। इनका निर्माण वसा अम्लों के टूटने से एवं अमिनो अम्लों के विऐमीनन (deamination) से होता है। उच्च डायबेटिक कीटोएसीडोसिस में रक्त के अंदर अम्ल बनने लगता है। लम्बे समय तक मधुमेह होने के कारण यह होता है। यह जानलेवा हो सकती है, लेकिन डाक्टरो की सलाह से इसका इलाज हो सकता है। .

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अदह

एस्बेस्टस की चादरों का से बनी छत अदह (ऐस्बेस्टस) कई प्रकार के खनिज सिलीकेटों के समूह को, जो रेशेदार तथा अदह्य होते हैं, कहते हैं। इसके रेशे चमकदार होते हैं। इकट्ठा रहने पर उनका रंग सफेद, हरा, भूरा या नीला दिखाई पड़ता है, परंतु प्रत्येक अलग रेशे का रंग चमकीला सफेद ही होता है। इस पदार्थ में अनेक गुण हैं, जैसे रेशेदार बनावट, आततन बल, कड़ापन, विद्युत के प्रति असीम रोधशक्ति, अम्ल में न घुलना और अदहता। इन गुणों के कारण यह बहुत से उद्योंगों में काम आता है। .

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अनानास

अनन्नास (अंग्रेज़ी:पाइनऍप्पल, वैज्ञा:Ananas comosus) एक खाद्य उष्णकटिबन्धीय पौधे एवं उसके फल का सामान्य नाम है हालांकि तकनीकी दृष्टि से देखें, तो ये अनेक फलों का समूह विलय हो कर निकलता है। यह मूलतः पैराग्वे एवं दक्षिणी ब्राज़ील का फल है। अनन्नास को ताजा काट कर भी खाया जाता है और शीरे में संरक्षित कर या रस निकाल कर भी सेवन किया जाता है। इसे खाने के उपरांत मीठे के रूप में सलाद के रूप में एवं फ्रूट-कॉकटेल में मांसाहार के विकल्प के रूप में प्रयोग भी किया जाता है।। याहू जागरण मिष्टान्न रूप में ये उच्च स्तर के अम्लीय स्वभाव (संभवतः मैलिक या साइट्रिक अम्ल) का होता है। अनन्नास कृषि किया गया ब्रोमेल्याकेऐ एकमात्र फल है। अनन्नास फल व अनुप्रस्थ काट अनन्नास के औषधीय गुण भी बहुत होते हैं। ये शरीर के भीतरी विषों को बाहर निकलता है। इसमें क्लोरीन की भरपूर मात्रा होती है। साथ ही पित्त विकारों में विशेष रूप से और पीलिया यानि पांडु रोगों में लाभकारी है। ये गले एवं मूत्र के रोगों में लाभदायक है। इसके अलावा ये हड्डियों को मजबूत बनाता है। अनन्नास में प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है। यह शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है। एक प्याला अनन्नास के रस-सेवन से दिन भर के लिए आवश्यक मैग्नीशियम के ७५% की पूर्ति होती है। साथ ही ये कई रोगों में उपयोगी होता है। इस फल में पाया जाने वाला ब्रोमिलेन सर्दी और खांसी, सूजन, गले में खराश और गठिया में लाभदायक होता है। यह पाचन में भी उपयोगी होता है। अनन्नास अपने गुणों के कारण नेत्र-ज्योति के लिए भी उपयोगी होता है। दिन में तीन बार इस फल को खाने से बढ़ती उम्र के साथ आंखों की रोशनी कम हो जाने का खतरा कम हो जाता है। आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों के शोधों के अनुसार यह कैंसर के खतरे को भी कम करता है। ये उच्च एंटीआक्सीडेंट का स्रोत है व इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और साधारण ठंड से भी सुरक्षा मिलती है। इससे सर्दी समेत कई अन्य संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। .

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अम्ल-क्षार अभिक्रिया

किसी अम्ल और किसी क्षार को आपस में मिलाने पर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया को अम्ल-क्षार अभिक्रिया (acid–base reaction) कहते हैं।; उदाहरण- सोडियम बाईकार्बोनेट और एसिटिक अम्ल के बीच होने वाली अभिक्रिया अम्ल-क्षार अभिक्रिया का एक उदाहरण है। इसमें सोडियम एसिटेट बनता है। .

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अम्लीय वर्षा

अम्लीय वर्षा अम्लीय वर्षा, प्राकॄतिक रूप से ही अम्लीय होती है। इसका कारण यह है कि पॄथ्वी के वायुमंडल में सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जल के साथ क्रिया करके नाइट्रिक अम्ल और गंधक का तेजाब बन जाता है। अम्लवर्षा में अम्ल दो प्रकार के वायु प्रदूषणों से आते हैं। So2 & No2, ये प्रदूषक प्रारंभिक रूप से कारखानों की चिमनियों, बसों व स्वचालित वाहनों के जलाने से उत्सर्जित होकर वायुमंडल में मिल जाते है। .

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उदासीनीकरण अभिक्रिया

जिन अभिक्रियाओं में अम्ल तथा क्षार क्रिया करके जल एवं लवण बनाते हैं उन क्रियाओं को रसायन विज्ञान में उदासीनीकरण अभिक्रिया (neutralization) कहते हैं। .

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उपधातु

वे तत्व जिनमें धातु तथा अधातु दोनों के गुण पाए जाते हैं उन्हें उपधातु (Metalloid) कहते हैं। बोरान, सिलिकॉन, जर्मेनियम, आर्सेनिक, एण्टीमनी और टेल्युरियम - ये छः प्रायः उपधातु कहे जाते हैं। कार्बन, अलुमिनियम, सेलेनियम, पोलोनियम और एस्टेटीन (astatine) को भी कुछ सीमा तक उपधातु कहा जाता है। .

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PH

पीएच या pH, किसी विलयन की अम्लता या क्षारकता का एक माप है। इसे द्रवीभूत हाइड्रोजन आयनों (H+) की गतिविधि के सह-लघुगणक (कॉलॉगरिदम) के रूप में परिभाषित किया जाता है। हाइड्रोजन आयन के गतिविधि गुणांक को प्रयोगात्मक रूप से नहीं मापा जा सकता है, इसलिए वे सैद्धांतिक गणना पर आधारित होते हैं। pH स्केल, कोई सुनिश्चित स्केल नहीं है; इसका संबंध मानक विलयन के एक सेट (समुच्चय) के साथ होता है जिसके pH का आकलन अंतर्राष्ट्रीय संविदा के द्वारा किया जाता है। pH की अवधारणा को सबसे पहले 1909 में कार्ल्सबर्ग लैबॉरेट्री के डेनिश रसायनशास्त्री, सॉरेन पेडर लॉरिट्ज़ सॉरेनसेन ने प्रस्तुत किया था। यह अभी भी अज्ञात है कि p की सटीक परिभाषा क्या है। कुछ संदर्भों से पता चलता है कि p, "पावर" (“Power”)कार्ल्सबर्ग ग्रूप कंपनी के इतिहास का पृष्ठ, http://www.carlsberggroup.com/Company/Research/Pages/pHValue.aspx का प्रतीक है और अन्य इसे जर्मन शब्द "पोटेंज़" (“Potenz”) (जर्मन में जिसका अर्थ, पावर या शक्ति होता है)वाटरलू विश्वविद्यालय - pH स्केल, http://www.science.uwaterloo.ca/~cchieh/cact/c123/ph.html के रूप में संदर्भित करते हैं और अभी भी अन्य इसे "पोटेंशियल" (“potential” या विभव) के रूप में संदर्भित करते हैं। जेंस नॉर्बी ने 2000 में एक पत्र प्रकाशित किया जिसमें उसने तर्क दिया कि p, एक स्थिरांक है और "ऋणात्मक लघुगणक"नॉर्बी, जेंस.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तेज़ाब, तेज़ाबीय, अम्लों, अम्लीय, अम्लीयता

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