5 संबंधों: द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस - १८५७, भगवा आतंकवाद, मदनलाल ढींगरा, मक्का मस्जिद विस्फ़ोट, 2007, विनायक दामोदर सावरकर।
द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस - १८५७
द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस - १८५७ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर द्वारा लिखित एक पुस्तक है, जिसमें उन्होंने सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। अधिकांश इतिहासकारों ने १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक सिपाही विद्रोह या अधिकतम भारतीय विद्रोह कहा था। दूसरी ओर भारतीय विश्लेषकों ने भी इसे तब तक एक योजनाबद्ध राजनीतिक एवं सैन्य आक्रमण कहा था, जो भारत में ब्रिटिष साम्राज्य के ऊपर किया गया था। सावरकर ने १८५७ की घटनाओं को भारतीय दृष्टिकोण से देखा। स्वयं एक तेजस्वी नेता व क्रांतिकारी होते हुए, वे १८५७ के शूरवीरों के साहस, वीरता, ज्वलंत उत्साह व दुर्भाग्य की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने इस पूरी घटना को उस समय उपलब्ध साक्ष्यों व पाठ सहित पुनरव्याख्यित करने का निश्चय किया। उन्होंने कई महीने इण्डिया ऑफिस पुस्तकालय में इस विषय पर अध्ययन में बिताये। सावरकर ने पूरी पुस्तक मूलतः मराठी में लिखी व १९०८ में पूर्ण की। क्योंकि उस समय इसका भारत में मुद्रण असंभव था, इसकी मूल प्रति इन्हें लौटा दी गई। इसका मुद्रण इंग्लैंड व जर्मनी में भी असफाल रहा। इंडिया हाउस में रह रहेक छ छात्रों ने इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद किया। और अन्ततः यह पुस्तक १९०९ में हॉलैंड में मुद्रित हुयी। इसका शीर्षक था द इण्डियन वार ऑफ इंडिपेन्डेंस – १८५७। इसप स्तक का द्वितीय संस्करण लाला हरदयाल द्वारा गदर पार्टी की ओर से अमरीका में निकला और तृतीय संस्करण सरदार भगत सिंह द्वारा निकाला गया। इसका चतुर्थ संस्करण नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा सुदूर-पूर्व में निकाला गया। फिर इस पुस्तक का अनुवाद उर्दु, हिंदी, पंजाबी व तमिल में किया गया। इसके बाद एक संस्करण गुप्त रूप से भारत में भी द्वितीय विश्व यु्द्ध के समाप्त होने के बाद मुद्रित हुआ। इसकी मूल पांडु-लिपि मैडम भीकाजी कामा के पास पैरिस में सुरक्षित रखी थी। यह प्रति अभिनव भारत के डॉ॰क्यूतिन्हो को प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पैरिसम संकट आने के दौरान सौंपी गई। डॉ॰क्युतिन्हो ने इसे किसी पवित्र धार्मिक ग्रंथ की भांति ४० वर्षों तक सुरक्षित रखा। भारतीय स्वतंत्रता उपरांत उन्होंने इसे रामलाल वाजपेयी और डॉ॰मूंजे को दे दिया, जिन्होंने इसे सावरकर को लौटा दिया। इस पुस्तक पर लगा निषेध अन्ततः मई, १९४६ में बंबई सरकार द्वारा हटा लिया गया। .
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भगवा आतंकवाद
इस लेख को भगवा आतंकवाद या इस लेख के किसी भी अनुक्रम से संबंधित चित्रों से भर कर पूरा करें। जिन हिंसात्मक अंजामों को हिन्दू राष्ट्रवाद द्वारा प्रेरित बताया जाता है, उन अंजामों को भगवा आतंकवाद कहते हैं। यह शब्द हिन्दू धर्म को संबोधित करने वाले केसरी रंग के पया॔यवाची से अाया है। .
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मदनलाल ढींगरा
मदनलाल धींगड़ा (१८ सितम्बर १८८३ - १७ अगस्त १९०९) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी थे। वे इंग्लैण्ड में अध्ययन कर रहे थे जहाँ उन्होने विलियम हट कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की कुछेक प्रथम घटनाओं में से एक है। .
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मक्का मस्जिद विस्फ़ोट, 2007
मक्का मस्जिद - फ़ाइल चित्र मक्का मस्जिद विस्फ़ोट 18 मई, 2007 को इस्लामी पूजा नमाज़ के वक़्त पुराने हैदराबाद, भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश की राजधानी में हुआ एक बम धमाका था। विस्फ़ोट मक्का मस्जिद के अन्दर हुआ, जो चारमीनार के पास स्थित है। विस्फ़ोट एक मोबाइल फ़ोन-विलोचित क्रूड बम के कारण था।1 16 अप्रिल 2018 को एन.ई.ये (NIA) के न्यायलय ने अपना निर्णय सुनाया और तथाकथित दोषियों को निर्दोष पाया.
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विनायक दामोदर सावरकर
विनायक दामोदर सावरकर (जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फ़रवरी १९६६) भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः स्वातंत्र्यवीर, वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे। उन्होंने परिवर्तित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं आंदोलन चलाये। सावरकर ने भारत के एक सार के रूप में एक सामूहिक "हिंदू" पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा । उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। सावरकर एक नास्तिक और एक कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे । .