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अतिशयोक्ति अलंकार

सूची अतिशयोक्ति अलंकार

अलंकार चन्द्रोदय के अनुसार हिन्दी कविता में प्रयुक्त एक अलंकार श्रेणी:हिन्दी साहित्य श्रेणी:चित्र जोड़ें.

6 संबंधों: न्यूनोक्‍ति, महाराजा ईश्वरीसिंह, मिलियन, वक्रोक्ति सिद्धान्त, आईन-ए-अकबरी, अलंकार (साहित्य)

न्यूनोक्‍ति

राजनयिक क्षेत्र में ऐसे कथनों का प्रयोग किया जाता है जिनके फलस्वरूप कटु वातावरण में सरसता आ सके और उत्तेजनात्मक बात भी नम्रता का रूप धारण कर सके। ऐसे कथनों को न्यूनोक्ति (न्यून + उक्ति; understatement) कहते हैं। .

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महाराजा ईश्वरीसिंह

इनकी असामयिक मृत्यु मात्र ३० साल की उम्र में दिनांक 12.12.

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मिलियन

एक मिलियन (1,000,000) या एक हजार हजार, 999,999 के बाद और 1,000,001 से पहले की प्राकृत संख्या है। यह नाम इतालवी से व्युत्पन्न हुआ है, जहां 1,000 के लिए माइले (mille) और 1,000,000 के लिए मिलियोन (milione), "एक बड़ा हजार" का इस्तेमाल होता है। वैज्ञानिक संकेतन में इसे या सिर्फ 106 के रूप में लिखा जाता है। SI इकाइयों का व्यवहार करते समय SI उपसर्ग मेगा का इस्तेमाल करके भी भौतिक राशियों को व्यक्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, 1 मेगावाट 1,000,000 वाट के बराबर होता है। "मिलियन" शब्द छोटे पैमाने और लंबे पैमाने की संख्या पद्धति में सामान्य है, जो बड़ी संख्याओं से भिन्न होते हैं और दोनों पद्धतियों में इसके अलग-अलग नाम होते हैं। मिलियन का इस्तेमाल कभी-कभी अंग्रेजी भाषा में किसी बहुत बड़ी संख्या की उपमा के रूप में होता है, जैसे "नेवर इन ए मिलियन इयर्स" (लाखों वर्षों में कभी नहीं) और "यू'आर वन इन ए मिलियन" (तुम लाखों में एक हो), या एक अतिशयोक्ति के रूप में, जैसे "आई'हैव वॉक्ड ए मिलियन माइल्स" (मैं लाखों मील चल चुका हूं).

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वक्रोक्ति सिद्धान्त

वक्रोक्ति दो शब्दों 'वक्र' और 'उक्ति' की संधि से निर्मित शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ है- ऐसी उक्ति जो सामान्य से अलग हो। भामह ने वक्रोक्ति को एक अलंकार माना था। उनके परवर्ती कुंतक ने वक्रोक्ति को एक संपूर्ण सिद्धांत के रूप में विकसित कर काव्य के समस्त अंगों को इसमें समाविष्ट कर लिया। इसलिए कुंतक को वक्रोक्ति संप्रदाय का प्रवर्तक आचार्य माना जाता है। .

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आईन-ए-अकबरी

आईन-ए-अकबरी (अकबर के विधान; समाप्तिकाल 1598 ई.) अबुलफ़ज्ल-ए-अल्लामी द्वारा फारसी भाषा में प्रणीत, बृहत् इतिहासपुस्तक अकबरनामा का तृतीय तथा अधिक प्रसिद्ध भाग है। यह एक बृहत्, पृथक् तथा स्वतंत्र पुस्तक है। सम्राट अकबर की प्रेरणा, प्रोत्साहन तथा आज्ञा से, असाधारण परिश्रम के फलस्वरूप पाँच बार शुद्ध कर इस ग्रंथ की रचना हुई थी। यद्यपि अबुलफ़ज्ल ने अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं, किंतु उसे स्थायी और विश्वव्यापी कीर्ति आईन-ए-अकबरी के आधार पर ही उपलब्ध हो सकी। स्वयं अबुलफ़ज्ल के कथानानुसार उसका ध्येय महान सम्राट् की स्मृति को सुरक्षित रखना तथा जिज्ञासु का पथप्रदर्शन करना था। मुगल काल के इस्लामी जगत् में इसका यथेष्ट आदर हुआ; किंतु पाश्चात्य विद्धानों को और उनके द्वारा भारतीयों को, इस अमूल्य निधि की चेतना तब हुई जब सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स के काल में ग्लैडविन ने इसका आँशिक अनुवाद किया; तत्पश्चात् ब्लाकमैन (1873) और जैरेट (1891,1894) ने इसका संपूर्ण अनुवाद किया। ग्रंथ पाँच भागों में विभाजित है तथा सात वर्षो में समाप्त हुआ था। प्रथम भाग में सम्राट् की प्रशस्ति तथा महली और दरबारी विवरण है। दूसरे भाग में राज्यकर्मचारी, सैनिक तथा नागरिक (सिविल) पद, वैवाहिक तथा शिक्षा संबंधी नियम, विविध मनोविनोद तथा राजदरबार के आश्रित प्रमुख साहित्यकार और संगीतज्ञ वर्णित हैं। तीसरे भाग में न्याय तथा प्रबंधक (एक्ज़ोक्यूटिव) विभागों के कानून, कृषिशासन संबंधी विवरण तथा बारह सूबों की ज्ञातव्य सूचनाएँ और आँकड़े संकलित हैं। चौथे विभाग में हिंदुओं की सामाजिक दशा और उनके धर्म, दर्शन, साहित्य और विज्ञान का (संस्कृत से अनभिज्ञ होने के कारण इनका संकलन अबुलफ़ज्ल ने पंडितों के मौखिक कथनों का अनुवाद कराकर किया था), विदेशी आक्रमणकारियों और प्रमुख यात्रियों का तथा प्रसिद्ध मुस्लिम संतों का वर्णन है और पाँचवें भाग में अकबर के सुभाष्य संकलित हैं एवं लेखक का उपसंहार है। अंत में लेखक ने स्वयं अपना जिक्र किया है। इस प्रकार सम्राट्, साम्राज्यशासन तथा शासित वर्ग का आईन-ए-अकबरी में अत्यंत सूक्ष्म दिग्दर्शन है। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि युद्धों, षड्यंत्रों तथा वंशपरिवर्तनों के पचड़ों को प्राधान्य देने की अपेक्षा शासित वर्ग को समुचित स्थान प्रदान किया गया है। एक प्रकार से यह आधुनिक भारत का प्रथम गज़ेटियर है। इसकी सर्वाधिक महत्ता यह है कि कट्टरता और धर्मोन्माद के विरोध में हिंदू समाज, धर्म और दर्शन को विशद् गुणग्राही स्थान देकर प्रगतिशील और उदात्त दृष्टिकोण की स्थापना की गई है। अबुलफ़ज्ल ऐसे प्रकांड विद्वान् अन्य काल में भी संभव था, किंतु आईन-ए-अकबरी जैसा ग्रंथ अकबर के काल में ही संभव था, क्योंकि असाधारण विद्वान् (इसलिए वह अल्लामी के विभूषण से प्रतिष्ठित हुआ) और असाधारण सम्राट् का बौद्धिक स्तर पर उदात्त भावनाओं की प्रेरणा से पूर्ण समन्वय संभव हो सका था। आईन-ए-अकबरी पर सम्राट् की प्रशस्ति में मुख्यत: अतिशयोक्ति का दोष लगाया जाता है, किंतु ब्लाकमैन के कथनानुसार "...

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अलंकार (साहित्य)

अलंकार अलंकृति; अलंकार: अलम् अर्थात् भूषण। जो भूषित करे वह अलंकार है। अलंकार, कविता-कामिनी के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। जिस प्रकार आभूषण से नारी का लावण्य बढ़ जाता है, उसी प्रकार अलंकार से कविता की शोभा बढ़ जाती है। कहा गया है - 'अलंकरोति इति अलंकारः' (जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।) भारतीय साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, अनन्वय, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति आदि प्रमुख अलंकार हैं। इस कारण व्युत्पत्ति से उपमा आदि अलंकार कहलाते हैं। उपमा आदि के लिए अलंकार शब्द का संकुचित अर्थ में प्रयोग किया गया है। व्यापक रूप में सौंदर्य मात्र को अलंकार कहते हैं और उसी से काव्य ग्रहण किया जाता है। (काव्यं ग्राह्ममलंकारात्। सौंदर्यमलंकार: - वामन)। चारुत्व को भी अलंकार कहते हैं। (टीका, व्यक्तिविवेक)। भामह के विचार से वक्रार्थविजा एक शब्दोक्ति अथवा शब्दार्थवैचित्र्य का नाम अलंकार है। (वक्राभिधेतशब्दोक्तिरिष्टा वाचामलं-कृति:।) रुद्रट अभिधानप्रकारविशेष को ही अलंकार कहते हैं। (अभिधानप्रकाशविशेषा एव चालंकारा)। दंडी के लिए अलंकार काव्य के शोभाकर धर्म हैं (काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते)। सौंदर्य, चारुत्व, काव्यशोभाकर धर्म इन तीन रूपों में अलंकार शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ है और शेष में शब्द तथा अर्थ के अनुप्रासोपमादि अलंकारों के संकुचित अर्थ में। एक में अलंकार काव्य के प्राणभूत तत्व के रूप में ग्रहीत हैं और दूसरे में सुसज्जितकर्ता के रूप में। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

अतिशयोक्ति, अतिकथन

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