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रसबेर

सूची रसबेर

रसभरी की चार प्रजातियों के फल.दक्षिणावर्त शीर्ष बाएं से: बौल्डर रसभरी, कोरियाई रसभरी, ऑस्ट्रेलियाई देशी रसभरी, पश्चिम भारतीय रसभरी रूबस इडास और आर. स्ट्रिगोसस के बीच आमतौर पर रसभरी की खेती रूबस जाति में पौधे की प्रजातियों के एक समूह का खाने योग्य फल है रसभरी (raspberry), इनमें से अधिकांश उपजाति आइडिओबेटस (Idaeobatus) की हैं; यह नाम खुद भी इन पौधों के लिए प्रयुक्त होता है। रसभरी बारहमासी होती हैं। नाम मूलतः रूबस इडाइअस (Rubus idaeus) नामक यूरोपीय प्रजाति के लिए संदर्भित है (लाल फलों के साथ) और अब भी इसके मानक अंग्रेजी नाम के रूप में प्रयुक्त होता है।वनस्पतियों के एनडब्ल्यू (NW) यूरोप: रूबस इडेयस .

22 संबंधों: एलर्जी, ताम्र, दर्द, प्रतिऑक्सीकारक, फल, फलों की सूची, फुल्लन, फोलिक अम्ल, मैग्नेशियम, मैंगनीज़, मेवा, रसभरी, लोहा, संयुक्त राज्य, स्कॉट्लैण्ड, सेब, वरमॉण्ट, विटामिन सी, आहारीय रेशा, इल्ली, कर्कट रोग, कृषिजोपजाति

एलर्जी

अधिहृषता या एलर्जी या "प्रत्यूर्जता" रोग-प्रतिरोधी तन्त्र का एक व्याधि (Disorder) है जिसे एटोपी (atopy) भी कहते हैं अधिहृषता (एलर्जी) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वान पिरकेट ने बाह्य पदार्थ की प्रतिक्रिया करने की शक्ति में हुए परिवर्तन के लिए किया था। कुछ लेखक इस पारिभाषिक शब्द को हर प्रकार की अधिहृषता से संबंधित करते हैं, किंतु दूसरे लेखक इसका प्रयोग केवल संक्रामक रोगों से संबंधित अधिहृषता के लिए ही करते हैं। प्रत्येक अधिहृषता का मूलभूत आधार एक ही है; इसलिए अधिहृषता शब्द का प्रयोग विस्तृत क्षेत्र में ही करना चाहिए। .

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ताम्र

तांबा (ताम्र) एक भौतिक तत्त्व है। इसका संकेत Cu (अंग्रेज़ी - Copper) है। इसकी परमाणु संख्या 29 और परमाणु भार 63.5 है। यह एक तन्य धातु है जिसका प्रयोग विद्युत के चालक के रूप में प्रधानता से किया जाता है। मानव सभ्यता के इतिहास में तांबे का एक प्रमुख स्थान है क्योंकि प्राचीन काल में मानव द्वारा सबसे पहले प्रयुक्त धातुओं और मिश्रधातुओं में तांबा और कांसे (जो कि तांबे और टिन से मिलकर बनता है) का नाम आता है। .

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दर्द

दर्द या पीड़ा एक अप्रिय अनुभव होता है। इसका अनुभव कई बार किसी चोट, ठोकर लगने, किसी के मारने, किसी घाव में नमक या आयोडीन आदि लगने से होता है। अंतर्राष्ट्रीय पीड़ा अनुसंधान संघ द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार "एक अप्रिय संवेदी और भावनात्मक अनुभव जो वास्तविक या संभावित ऊतक-हानि से संबंधित होता है; या ऐसी हानि के सन्दर्भ से वर्णित किया जा सके- पीड़ा कहलाता है".

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प्रतिऑक्सीकारक

एक एंटीऑक्सीडेंट- मेटाबोलाइट ग्लूटाथायोन का प्रतिरूप। पीले गोले रेडॉक्स-सक्रिय गंधक अणु हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट क्रिया उपलब्ध कराते हैं और लाल, नीले व गहरे सलेटी गोले क्रमशः ऑक्सीजन, नाईट्रोजन, हाईड्रोजन एवं कार्बन परमाणु हैं। प्रतिऑक्सीकारक (Antioxidants) या प्रतिउपचायक वे यौगिक हैं जिनको अल्प मात्रा में दूसरे पदार्थो में मिला देने से वायुमडल के ऑक्सीजन के साथ उनकी अभिक्रिया का निरोध हो जाता है। इन यौगिकों को ऑक्सीकरण निरोधक (OXidation inhibitor) तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं। अर्थात प्रति-आक्सीकारक वे अणु हैं, जो अन्य अणुओं को ऑक्सीकरण से बचाते हैं या अन्य अणुओं की आक्सीकरण प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। ऑक्सीकरण एक प्रकार की रासायनिक क्रिया है जिसके द्वारा किसी पदार्थ से इलेक्ट्रॉन या हाइड्रोजन ऑक्सीकारक एजेंट को स्थानांतरित हो जाते हैं। प्रतिआक्सीकारकों का उपयोग चिकित्साविज्ञान तथा उद्योगों में होता है। पेट्रोल में प्रतिआक्सीकारक मिलाए जाते हैं। ये प्रतिआक्सीकारक चिपचिपाहट पैदा करने वाले पदार्थ नहीं बनने देते जो अन्तर्दहन इंजन के लिए हानिकारक हैं। प्रायः प्रतिस्थापित फिनोल (Substituted phenols) एवं फेनिलेनेडिआमाइन के व्युत्पन्न (derivatives of phenylenediamine) इस काम के लिए प्रयुक्त होते हैं। .

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फल

फल और सब्ज़ियाँ निषेचित, परिवर्तित एवं परिपक्व अंडाशय को फल कहते हैं। साधारणतः फल का निर्माण फूल के द्वारा होता है। फूल का स्त्री जननकोष अंडाशय निषेचन की प्रक्रिया द्वारा रूपान्तरित होकर फल का निर्माण करता है। कई पादप प्रजातियों में, फल के अंतर्गत पक्व अंडाशय के अतिरिक्त आसपास के ऊतक भी आते है। फल वह माध्यम है जिसके द्वारा पुष्पीय पादप अपने बीजों का प्रसार करते हैं, हालांकि सभी बीज फलों से नहीं आते। किसी एक परिभाषा द्वारा पादपों के फलों के बीच में पायी जाने वाली भारी विविधता की व्याख्या नहीं की जा सकती है। छद्मफल (झूठा फल, सहायक फल) जैसा शब्द, अंजीर जैसे फलों या उन पादप संरचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है जो फल जैसे दिखते तो है पर मूलत: उनकी उत्पप्ति किसी पुष्प या पुष्पों से नहीं होती। कुछ अनावृतबीजी, जैसे कि यूउ के मांसल बीजचोल फल सदृश होते है जबकि कुछ जुनिपरों के मांसल शंकु बेरी जैसे दिखते है। फल शब्द गलत रूप से कई शंकुधारी वृक्षों के बीज-युक्त मादा शंकुओं के लिए भी होता है। .

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फलों की सूची

* अंगूर.

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फुल्लन

अंगुली में सूजन (अन्तर देखिये) शरीर के किसी भाग का अस्थायी रूप से (transient) बढ़ जाना आयुर्विज्ञान में फुल्लन (स्वेलिंग) कहा जाता है। हिन्दी में इसे उत्सेध, फूलना और सूजन भी कहते हैं। ट्यूमर भी इसमें सम्मिलित है। सूजन, प्रदाह के पाँच लक्षणों में से एक है। (प्रदाह के अन्य लक्षण हैं - दर्द, गर्मी, लालिमा, कार्य का ह्रास) यह पूरे शरीर में हो सकती है, या एक विशिष्ट भाग या अंग प्रभावित हो सकता है| एक शरीर का अंग चोट, संक्रमण, या रोग के जवाब में और साथ ही एक अंतर्निहित गांठ की वजह से, प्रफुल्लित हो सकता है| .

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फोलिक अम्ल

फोलिक अम्ल को विटामिन बी-9 या फोलासीन और फोलेट के नाम से भी जाना जाता है। ये विटामिन बी-9 के जल-घुल्य रूप हैं। फोलिक एसीड शरीर के विभिन्न कार्यों के संपादन के लिए आवश्यक हैं। ये न्युक्लिटाइड के संश्लेषण से लेकर हिमोसाइटिन के रिमिथाइलेशन के लिए जरूरी है। यह कोशिका निर्माण और कोशिका वृद्धि के दौरान काफी उपयोगी माना जाता है। स्वस्थ रक्त कोशिका के निर्माण के लिए बच्चों और व्यस्कों में फोलिक एसीड समान रूप से जरूरी है। ये रक्तहीनता को रोकता है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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मैग्नेशियम

कोई विवरण नहीं।

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मैंगनीज़

मैंगनीज़ एक रासायनिक तत्व है जो रासायनिक नज़रिये से संक्रमण धातु समूह का सदस्य है। प्रकृति में यह शुद्ध रूप में नहीं मिलता बल्कि अन्य तत्वों के साथ बने यौगिकों में मिलता है, जिनमें अक्सर लोहे के यौगिक शामिल होते हैं। शुद्ध करने के बाद इसका रंग सलेटी होता है और अगर इसे इस्पात में मिलाया जाये तो इस्पात ज़ंग नहीं खाता है। ओक्सीजन के साथ मिलकर इसके जो आयन होते हैं वह परमैंगनेट (permanganate, MnO4−) कहलाते हैं, और जब यह पोटैशियम जैसी क्षार धातुओं या क्षारीय पार्थिव धातुओं के साथ यौगिक बनाते हैं तो वह बहुत ही ओक्सीकारक (oxidizing) होते हैं (मसलन पोटैशियम परमैंगनेट)। मनुष्यों व अन्य जीवों को थोड़ी मात्रा में मैंगनीज़ अपने आहार में ज़रूरी होता है लेकिन उस से अधिक मात्रा में यह विषैला साबित होता है। .

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मेवा

दुकान पर प्रदर्शित मेवाएं मेवा या ख़ुश्क मेवा एक खाद्य श्रेणी है जिसमे सूखे हुए फल और फलों की गिरियां आती हैं। जहां सूखे हुए फलों, जैसे कि किशमिश, खजूर आदि को प्राकृतिक रूप से या मशीनों जैसे कि खाद्य निर्जलीकारक द्वारा सुखाकर तैयार किया जाता है, वहीं गिरियां फलों का तैलीय बीज होती है। मेवाओं को सदा से सेहत के लिए लाभदायक माना गया है।|हिन्दुस्तान लाइव अधिकांशतः लोगों की धारणा होती है कि मेवों में वसा की मात्रा अधिक होती है अतः इनका सेवन हानिकारक होता है। किन्तु इनमें वसा अधिक होने पर भी ये हानिकारक कतई नहीं होते हैं। वास्तव में मेवों में पॉली असंतृप्त वसा होती है जो बुरे कोलेस्ट्रॉल को कम करती है। हाल में हुए वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि मेवों में हृदय तथा अन्य असाध्य रोगों से सुरक्षा प्रदान करने की शक्ति होती है। मेवों को तलने या भूनने से उनके गुण नष्ट हो जाते हैं अतएव इनका प्रयोग बिना तले करना चाहिये। इसके अलावा इनमें नमक मिलाकर प्रयोग करने से इनकी कैलोरी की मात्रा बढ़ती है। यदि एक बार आप मेवों का प्रयोग कर लें तो फिर पूरे दिन अतिरिक्त कैलोरी लेने की जरूरत नहीं पड़ती। मेवों को मूड बनाने वाले खाद्य भी कहा जाता है अतः जब भी अवसाद से घिरा महसूस करें मेवों का प्रयोग कर तरोताजा हो सकते हैं। .

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रसभरी

रसभरी रसभरी (वानस्पतिक नाम: Physalis peruviana; physalis .

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लोहा

एलेक्ट्रोलाइटिक लोहा तथा उसका एक घन सेमी का टुकड़ा लोहा या लोह (Iron) आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर यह सर्वाधिक प्राप्य तत्व है (भार के अनुसार)। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। इसके चार स्थायी समस्थानिक मिलते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या 54, 56, 57 और 58 है। लोह के चार रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 52, 53, 55 और 59) भी ज्ञात हैं, जो कृत्रिम रीति से बनाए गए हैं। लोहे का लैटिन नाम:- फेरस .

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संयुक्त राज्य

संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) (यू एस ए), जिसे सामान्यतः संयुक्त राज्य (United States) (यू एस) या अमेरिका कहा जाता हैं, एक देश हैं, जिसमें राज्य, एक फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, पाँच प्रमुख स्व-शासनीय क्षेत्र, और विभिन्न अधिनस्थ क्षेत्र सम्मिलित हैं। 48 संस्पर्शी राज्य और फ़ेडरल डिस्ट्रिक्ट, कनाडा और मेक्सिको के मध्य, केन्द्रीय उत्तर अमेरिका में हैं। अलास्का राज्य, उत्तर अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है, जिसके पूर्व में कनाडा की सीमा एवं पश्चिम मे बेरिंग जलसन्धि रूस से घिरा हुआ है। वहीं हवाई राज्य, मध्य-प्रशान्त में स्थित हैं। अमेरिकी स्व-शासित क्षेत्र प्रशान्त महासागर और कॅरीबीयन सागर में बिखरें हुएँ हैं। 38 लाख वर्ग मील (98 लाख किमी2)"", U.S. Census Bureau, database as of August 2010, excluding the U.S. Minor Outlying Islands.

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स्कॉट्लैण्ड

स्काटलैंड यूनाइटेड किंगडम का एक देश है। यह ग्रेट ब्रिटेन का उत्तरी भाग है। यह पहाड़ी देश है जिसका क्षेत्रफल ७८,८५० वर्ग किमी है। यह इंगलैंड के उत्तर में स्थित है। यहां की राजधानी एडिनबरा है। ग्लासगो यहाँ का सबसे बड़ा शहर है। स्कॉटलैण्ड की सीमा दक्षिण में इंग्लैंड से सटी है। इसके पूरब में उत्तरी सागर तथा दक्षिण-पश्चिम में नॉर्थ चैनेल और आयरिश सागर हैं। मुख्य भूमि के अलावा स्कॉटलैण्ड के अन्तर्गत ७९० से भी अधिक द्वीप हैं। यूँ तो स्कॉटलैंड यूनाइटेड किंगडम के अधीन एक राज्य है लेकिन यहाँ का अपना मंत्रिमंडल है। यहाँ की मुद्रा का रंग और उस पर बने चित्र भी लंदन के पौंड से कुछ अलग है। लेकिन उनकी मान्यता और मूल्य दोनों ही पौंड के समान है। यहाँ घूमने और लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहाँ के लोग इंग्लैंड सरकार से थोड़े से खफा रहते हैं। .

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सेब

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वरमॉण्ट

अंगूठाकार वर्मांट (अंग्रेज़ी:Vermont) संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रान्त है जो इसके पूर्वोत्तर भाग में, न्यू इंग्लैण क्षेत्र में, स्थित है। वरमोंट संयुक्त राज्य के 50 राज्यों में क्षेत्रफल के अनुसार छठवाँ और दूसरा सबसे कम आबादी वाला राज्य है। यह न्यू इंग्लैण क्षेत्र का इकलौता ऐसा राज्य है जिसकी सीमा अटलांटिक महासागर से नहीं छूती। झील शाम्प्लें इस राज्य की लगभग आधी पश्चिमी सीमा बनाती है जो न्यूयॉर्क के राज्य के साथ साझा है। ग्रीन पर्वत राज्य के भीतर हैं। वरमोंट की सीमायें दक्षिण में मैसाचुसेट्स, पूरब में कनेक्टिकट नदी नदी के सहारे न्यू हैम्पशायर, पश्चिम में न्यूयॉर्क और उत्तर की ओर कनाडाई प्रान्त क्यूबेक के साथ बनती हैं। .

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विटामिन सी

विटामिन सी या एल-एस्कॉर्बिक अम्ल मानव एवं विभिन्न अन्य पशु प्रजातियों के लिये अत्यंत आवश्यक पोषक तत्त्व है। ये विटामिन रूप में कार्य करता है। कई प्रकार की उपापचयी अभिक्रियाओं हेतु एस्कॉर्बेट (एस्कॉर्बिक अम्ल का एक आयन) सभी पादपों व पशुओं में आवश्यक होता है। ये लगभग सभी जीवों द्वारा आंतरिक प्रणाली द्वारा निर्मित किया जाता है (सिवाय कुछ विशेष प्रजातियों के) जिनमें स्तनपायी समूह जैसे चमगादड़, एक या दो प्रधान प्राइमेट सबऑर्डर, ऐन्थ्रोपोएडिया (वानर, वनमानुष एवं मानव) आते हैं। इसका निर्माण गिनी शूकर एवं पक्षियों एवं मछलियों की कुछ प्रजातियों में नहीं होता है। जो भी प्रजातियां इसका निर्माण आंतरिक रूप से नहीं कर पातीं, उन्हें ये आहार रूप में वांछित होता है। इस विटामिन की कमी से मानवों में स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।। हिन्दुस्ताण लाइव। २८ मार्च २०१० इसे व्यापक रूप से खाद्य पूर्क रूप में प्रयोग किया जाता है। .

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आहारीय रेशा

लेग्यूम्स में आहारीय रेशा भरपूर मात्रा में उपस्थित होता है आहारीय रेशा, आहार में उपस्थित रेशे तत्त्व को कहते हैं। ये पौधों से मिलने वाले ऐसे तत्व हैं जो स्वयं तो अपाच्य होते हैं, किन्तु मूल रूप से पाचन क्रिया को सुचारू बनाने का अत्यावश्यक योगदान करते हैं। रेशे शरीर की कोशिकाओं की दीवार का निर्माण करते हैं। इनको एन्ज़ाइम भंग नहीं कर पाते हैं। अतः ये अपाच्य होते हैं।।। हेल्थ एण्ड थेराप्यूटिक। अभिगमन तिथि:११ अक्टूबर, २००९ कुछ समय पूर्व तक इन्हें आहार के संबंध में बेकार समझा जाता था, किन्तु बाद की शोधों से ज्ञात हुआ कि इनमें अनेक यांत्रिक एवं अन्य विशेषतायें होती हैं, जैसे ये शरीर में जल को रोक कर रखते हैं, जिससे अवशिष्ट (मल) में पानी की कमी नहीं हो पाती है और कब्ज की स्थिति से बचे रहते हैं। रेशे वाले भोजन स्रोतों को प्रायः उनके घुलनशीलता के आधार पर भी बांटा जाता है। ये रेशे घुलनशील और अघुलनशील होते हैं। ये दोनों तत्व पौधों से मिलने वाले रेशों में पाए जाते हैं। सब्जियां, गेहू और अधिकतर अनाजों में घुलनशील रेशे की अपेक्षा अघुलनशील रेशा होता है। स्वास्थ्य में योगदान की दृष्टि से दोनों तरह के रेशे अपने-अपने ढंग से काम करते हैं। जहां घुलनशील रेशे से संपूर्ण स्वास्थय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वहीं अघुलनशील रेशे से मोटापा संबंधी समस्या भी बढ़ सकती है। अघुलनशील रेशे पाचन में मदद करते है और कब्ज कम करते है। घुलनशील रेशे सीरम कोलेस्ट्राल कम करते है और अच्छे कोलेस्ट्राल (एच.डी.एल) का अनुपात बढाते है। भोजन में उच्च रेशे वाले आहार से वजन नियंत्रित होता है। ऐसे भोजन को अधिक चबाना पड़ता है एवं अधिक ऊर्जा व्यय होती है। इसके साथ ही रेशा इन्सुलिन के स्तर कोप भी गिराता है, जिससे भूख पर नियंत्रण रहता है, तथा उच्च रेशा आहार पेट में अधिक समय तक रहते हैं, जिससे पेट भरे होने का अहसास भी रहता है। रेशा मल निर्माण को भी प्रभावित करता है और इसे अधिक भारी बनाता है। मल जितना भारी होगा, आंतों से निकलने में उसे उतना ही समय लगेगा। गेहू की चोकर उच्च रेशे से परिपूर्ण होने के कारण मल का भार बढाने में मदद करती है। उसी मात्रा के गाजर या बन्दगोभी के रेशे से दूगनी प्रभावशील है। हिप्पोक्रेटज के अनुसार सम्पूर्ण अनाज की डबल रोटी आंत को साफ़ कर देती है। आहारीय रेशे सभी पौधों में पाए जाते हैं। जिन पौधों में रेशा अधिक मात्र में पाया जाता है, अधिकतर उनसे ही इन्हें प्राप्त किया जाता है। अधिक मात्र वाले फाइबर पौधों को सीधे तौर पर भी आहार में ग्रहण किया जा सकता है या इन्हें उचित विधि से पकाकर भोजन के तौर पर भी खाया जा सकता है। घुलनशील रेशे कई पौधों में पाए जाते हैं जिनसे मिलने वाले खाद्य पदार्थो में जौ, केला, सेब, मूली, आलू, प्याज आदि प्रमुख हैं। अघुलनशील रेशे मक्का, आलू के छिलके, मूंगफली, गोभी और टमाटर में से प्राप्त होते हैं। रसभरी जैसे फल में भी रेशा होता है। घुलनशील रेशे से शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है, जबकि अघुलनशील रेशे से शरीर को ऊर्जा प्राप्त नहीं करनी चाहिए। यह भी ध्यान योग्य है कि दोनों तरीके से शरीर में प्रति ग्राम फाइबर से चार कैलोरी भी जाती है। .

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इल्ली

पिरहारटिया इसाबेल्ला का लार्वा, जिसे सामान्यतः बैन्डेड वुली कैटरपिलर के रूप में जाना जाता है वेस्टर्न टेन्ट कैटरपिलर इल्ली या कैटरपिलर, लेपिडोप्टेरा प्रजाति (कीड़े की एक प्रजाति जिसमें तितलियां और मॉथ शामिल हैं) के एक सदस्य के लार्वा रूप हैं। आहार के मामले में वे अधिकांशतः शाकाहारी हैं, लेकिन कुछ प्रजातियां कीटभक्षी है। कैटरपिलर खाऊ होते हैं और इनमें से कई को कृषि में कीट माना जाता है। कई मॉथ प्रजातियों को, कृषि उत्पाद और फलों को नुकसान पहुंचाने के कारण उनकी कैटरपिलर अवस्था में ज्यादा जाना जाता है। इस अंग्रेज़ी शब्द की व्युत्पत्ति आरंभिक 16वीं सदी में हुई, मध्यकालीन अंग्रेज़ी catirpel (कैटिरपेल), catirpeller (कैटिरपेलर) से, जो प्राचीन उत्तरी फ्रांस के catepelose: cate, बिल्ली (लैटिन के cattus से) + pelose, रोएंदार (लैटिन के pilōsus से) का परिवर्तित रूप है। .

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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कृषिजोपजाति

किसी पौधे की कृषिजोपजाति (किस्म) मूल पौधे से भिन्न होते हुए भी उस पौधे की मूल विशेषताओं को अपने में समाहित रखती है। आमतौर पर किसी पौधे की किस्म उसे ज्यादा सुन्दर या लाभप्रद बनाने के लिए विकसित की जाती है और इसे एक अलग नाम भी दिया जाता है। श्रेणी:कृषि श्रेणी:वनस्पति विज्ञान श्रेणी:कृषि-वनस्पति विज्ञान.

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