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भारतीय नाट्यशालाएँ

सूची भारतीय नाट्यशालाएँ

भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र के द्वितीय अध्याय में तीन प्रकार के प्रेक्षागृहों का विधान किया है - (1) विकृष्ट (लंबा आयताकार), (2) चतुरस्त्र (वर्गाकार) और (3) त्र्यस्त्र (तिकोना)। ये तीनों भी परिणाम के अनुसार तीन प्रकार के होते हैं - (1) ज्येष्ठ, (2) मध्यम और (3) अवर (कनीयस या कनिष्ठ)। इनमें से ज्येष्ठ (विकृष्ठ, चतुरस्त्र तथा त्र्यस्त्र) 108 हाथ लंबा होता है और कनिष्ठ (विकृष्ट, चतुरस्त्र तथा त्र्यस्त्र) 32 हाथ लंबा होता है। इनमें से ज्येष्ठ देवताओं का, मध्यम राजाओं का और कनीयस या छोटा साधारण लोगों का होता है। भरत ने इन तीनों प्रकार के प्रेक्षागृहों में मध्यम (विकृष्ट, चतुरस्त्र तथा त्र्यस्त्र) को ही प्रशस्त माना है क्योंकि उसमें पाठ्य और गेय सब कुछ अत्यंत सुविधा के साथ स्पष्ट सुनाई पड़ता है। हाथ की नाप का क्रम यह है - 8 अणु का रज, 8 रज का बाल, 8 बल का लिक्षा, 8 लिक्षा का यूक, 8 यूक का यव, 8 यव का अंगुल, 24 अंगुल का हाथ (लगभग डेढ़ फुट) और चार हाथ का दंड होता है। इस नाप के अनुसार तीनों प्रकार के प्रेक्षागृह इस प्रकार होंगे: विकृष्ट ज्येष्ठ प्रेक्षागृह 108व् 54 हाथ विकृष्ट मध्यम प्रेक्षागृह 64व् 32 हाथ विकृष्ट कनिष्ठ प्रेक्षागृह 32व् 16 हाथ चतुरस्त्र ज्येष्ठ प्रेक्षागृह 108व् 108 हाथ चतुरस्त्र मध्यम प्रेक्षागृह 64व् 64 हाथ चतुरस्त्र कनिष्ठ प्रेक्षागृह 32व् 32 हाथ त्र्यस्त्र ज्येष्ठ प्रेक्षागृह बीच से 108 हाथ लंबा त्र्यस्त्र मध्यम प्रेक्षागृह बीच से 64 हाथ लंबा त्र्यस्त्र कनिष्ठ प्रेक्षागृह बीच से 32 हाथ लंबा भरत के अनुसार 64 हाथ (96 फुट) लंबा और 32 हाथ (48 फुट) चौड़ा विकृष्ट मध्यम प्रेक्षागृह ही बनाना चाहिए। .

5 संबंधों: नाट्य शास्त्र, भरत मुनि, मदनमोहन मालवीय, यूरोपीय नाट्यशालाएँ, विलियम शेक्सपीयर

नाट्य शास्त्र

250px नाटकों के संबंध में शास्त्रीय जानकारी को नाट्य शास्त्र कहते हैं। इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रंथ भी नाट्यशास्त्र के नाम से जाना जाता है जिसके रचयिता भरत मुनि थे। भरत मुनि का काल ४०० ई के निकट माना जाता है। संगीत, नाटक और अभिनय के संपूर्ण ग्रंथ के रूप में भारतमुनि के नाट्य शास्त्र का आज भी बहुत सम्मान है। उनका मानना है कि नाट्य शास्त्र में केवल नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता बल्कि अभिनेता रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है। 37 अध्यायों में भरतमुनि ने रंगमंच अभिनेता अभिनय नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से संबंधित सभी तथ्यों का विवेचन किया है। भरत के नाट्य शास्त्र के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि नाटक की सफलता केवल लेखक की प्रतिभा पर आधारित नहीं होती बल्कि विभिन्न कलाओं और कलाकारों के सम्यक के सहयोग से ही होती है। .

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भरत मुनि

भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र लिखा। इनका समय विवादास्पद हैं। इन्हें 400 ई॰पू॰ 100 ई॰ सन् के बीच किसी समय का माना जाता है। भरत बड़े प्रतिभाशाली थे। इतना स्पष्ट है कि भरतमुनि रचित नाट्यशास्त्र से परिचय था। इनका 'नाट्यशास्त्र' भारतीय नाट्य और काव्यशास्त्र का आदिग्रन्थ है।इसमें सर्वप्रथम रस सिद्धांत की चर्चा तथा इसके प्रसिद्द सूत्र -'विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:" की स्थापना की गयी है| इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छंदशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है। 'भारतीय नाट्यशास्त्र' अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। आचार्य भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियो को काव्य शास्त्र का उपदेश दिया। विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफ़ी क्षेपक बताते हैं श्रेणी:संस्कृत आचार्य.

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मदनमोहन मालवीय

महामना मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 - 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे। कर्म ही उनका जीवन था। अनेक संस्थाओं के जनक एवं सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारु सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नहीं किया। भारत सरकार ने २४ दिसम्बर २०१४ को उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया। .

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यूरोपीय नाट्यशालाएँ

यूरोप में नाट्यशाला का इतिहास प्राय: 3,200 ई.पू.

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विलियम शेक्सपीयर

विलियम शेक्सपीयर विलियम शेक्सपीयर (William Shakespeare; 23 अप्रैल 1564 (बपतिस्मा हुआ) – 23 अप्रैल 1616) अंग्रेजी के कवि, काव्यात्मकता के विद्वान नाटककार तथा अभिनेता थे। उनके नाटकों का लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है। शेक्सपियर में अत्यंत उच्च कोटि की सर्जनात्मक प्रतिभा थी और साथ ही उन्हें कला के नियमों का सहज ज्ञान भी था। प्रकृति से उन्हें मानो वरदान मिला था अत: उन्होंने जो कुछ छू दिया वह सोना हो गया। उनकी रचनाएँ न केवल अंग्रेज जाति के लिए गौरव की वस्तु हैं वरन् विश्ववांमय की भी अमर विभूति हैं। शेक्सपियर की कल्पना जितनी प्रखर थी उतना ही गंभीर उनके जीवन का अनुभव भी था। अत: जहाँ एक ओर उनके नाटकों तथा उनकी कविताओं से आनंद की उपलब्धि होती है वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं से हमको गंभीर जीवनदर्शन भी प्राप्त होता है। विश्वसाहित्य के इतिहास में शेक्सपियर के समकक्ष रखे जानेवाले विरले ही कवि मिलते हैं। .

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