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पेलैजिक क्षेत्र

सूची पेलैजिक क्षेत्र

पेलैजिक क्षेत्र (pelagic zone) किसी महासागर, सागर या झील के जल का वह भाग होता है जो न तो नीचे के फ़र्श के समीप हो और न ही उस जलसमूह के तट के समीप। इसे कभी-कभी खुला पानी (open water) भी कहा जाता है। पृथ्वी पर पेलैजिक क्षेत्र का कुल आयतन लगभग 13,300 लाख किमी3, औसत गहराई 3.68 किमी (2.29 मील) और अधिकतम गहराई 11 किमी (6.8 मील) है। पेलैजिक क्षेत्र में रहने वाली मछलियाँ पेलैजिक मछलियाँ कहलाती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल की तरह पेलैजिक क्षेत्र को भी परतों में बाँटा जा सकता है। इस क्षेत्र के किसी भाग में एक काल्पनिक पानी का स्तम्भ के बारे में सोचा जाए तो जैसे-जैसे उसमें नीचे की ओर जाया जाए वैसे-वैसे दबाव बढ़ता, तापमान घटता और प्रकाश घटता जाता है। बढ़ती गहराई के साथ पेलैजिक जीवन भी घटता जाता है। .

29 संबंधों: झील, तापमान, दाब, पारदर्शिता और पारभासकता, प्रकाश, प्रकाश-संश्लेषण, प्लवक, पृथ्वी का वायुमण्डल, महासागर, महासागरीय गर्त, मछली, रात, शूलचर्मी, समुद्रफेनी, सागर, सागरतह, सूंस, हाँगर, हिम, जलतापीय छिद्र, जाति (जीवविज्ञान), जेलीफ़िश, जीवदीप्ति, वनस्पति, विद्रूप (समुद्री जीव), ऑक्सीजन, आयतन, क्लोम, अतल मैदान

झील

एक अनूप झील बैकाल झील झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारो तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं। किसी अंतर्देशीय गर्त में पाई जानेवाली ऐसी प्रशांत जलराशि को झील कहते हैं जिसका समुद्र से किसी प्रकार का संबंध नहीं रहता। कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नदियों के चौड़े और विस्तृत भाग के लिए तथा उन समुद्र तटीय जलराशियों के लिए भी किया जाता है, जिनका समुद्र से अप्रत्यक्ष संबंध रहता है। इनके विस्तार में भिन्नता पाई जाती है; छोटे छोटे तालाबों और सरोवर से लेकर मीठे पानीवाली विशाल सुपीरियर झील और लवणजलीय कैस्पियन सागर तक के भी झील के ही संज्ञा दी गई है। अधिकांशत: झीलें समुद्र की सतह से ऊपर पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती हैं, जिनमें मृत सागर, (डेड सी) जो समुद्र की सतह से नीचे स्थित है, अपवाद है। मैदानी भागों में सामान्यत: झीलें उन नदियों के समीप पाई जाती हैं जिनकी ढाल कम हो गई हो। झीलें मीठे पानीवाली तथा खारे पानीवाली, दोनों होती हैं। झीलों में पाया जानेवाला जल मुख्यत: वर्ष से, हिम के पिघलने से अथवा झरनों तथा नदियों से प्राप्त होता है। झीले बनती हैं, विकसित होती हैं, धीरे-धीरे तलछट से भरकर दलदल में बदल जाती हैं तथा उत्थान होंने पर समीपी स्थल के बराबर हो जाती हैं। ऐसी आशंका है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की बृहत झीलें ४५,००० वर्षों में समाप्त हो जाएंगी। भू-तल पर अधिकांश झीलें उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं। फिनलैंड में तो इतनी अधिक झीलें हैं कि इसे झीलों का देश ही कहा जाता है। यहाँ पर १,८७,८८८ झीलें हैं जिसमें से ६०,००० झीलें बेहद बड़ी हैं। पृथ्वी पर अनेक झीलें कृत्रिम हैं जिन्हें मानव ने विद्युत उत्पादन के लिए, कृषि-कार्यों के लिए या अपने आमोद-प्रमोद के लिए बनाया है। झीलें उपयोगी भी होती हैं। स्थानीय जलवायु को वे सुहावना बना देती हैं। ये विपुल जलराशि को रोक लेती हैं, जिससे बाढ़ की संभावना घट जाती है। झीलों से मछलियाँ भी प्राप्त होती हैं। .

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तापमान

आदर्श गैस के तापमान का सैद्धान्तिक आधार अणुगति सिद्धान्त से मिलता है। तापमान किसी वस्तु की उष्णता की माप है। अर्थात्, तापमान से यह पता चलता है कि कोई वस्तु ठंढी है या गर्म। उदाहरणार्थ, यदि किसी एक वस्तु का तापमान 20 डिग्री है और एक दूसरी वस्तु का 40 डिग्री, तो यह कहा जा सकता है कि दूसरी वस्तु प्रथम वस्तु की अपेक्षा गर्म है। एक अन्य उदाहरण - यदि बंगलौर में, 4 अगस्त 2006 का औसत तापमान 29 डिग्री था और 5 अगस्त का तापमान 32 डिग्री; तो बंगलौर, 5 अगस्त 2006 को, 4 अगस्त 2006 की अपेक्षा अधिक गर्म था। गैसों के अणुगति सिद्धान्त के विकास के आधार पर यह माना जाता है कि किसी वस्तु का ताप उसके सूक्ष्म कणों (इलेक्ट्रॉन, परमाणु तथा अणु) के यादृच्छ गति (रैण्डम मोशन) में निहित औसत गतिज ऊर्जा के समानुपाती होता है। तापमान अत्यन्त महत्वपूर्ण भौतिक राशि है। प्राकृतिक विज्ञान के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों (भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, जीवविज्ञान, भूविज्ञान आदि) में इसका महत्व दृष्टिगोचर होता है। इसके अलावा दैनिक जीवन के सभी पहलुओं पर तापमान का महत्व है। .

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दाब

दाब का मान प्रदर्शित करने के लिये पारा स्तंभ किसी सतह के इकाई क्षेत्रफल पर लगने वाले अभिलम्ब बल को दाब (Pressure) कहते हैं। इसकी इकाई 'न्यूटन प्रति वर्ग मीटर' होती है। दाब की और भी कई प्रचलित इकाइयाँ हैं। p .

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पारदर्शिता और पारभासकता

प्रकाशिकी (ओप्टिकस) के क्षेत्र में, पारदर्शिता (transparency) किसी पदार्थ का वह गुण होता है जिसमें वह प्रकाश की किरणों को अपने भीतर से बिना बिखेरे आने-जाने दे। पारभासकता (translucency) किसी चीज़ का वह गुण होता है जो प्रकाश को अपने से आर-पार गुज़रने तो दे लेकिन संभवतः उसमें ज़रा-बहुत रुकावट या बिखराव डालनें से क्षीण कर दे। .

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प्रकाश

सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित एक मेघ प्रकाश एक विद्युतचुम्बकीय विकिरण है, जिसकी तरंगदैर्ध्य दृश्य सीमा के भीतर होती है। तकनीकी या वैज्ञानिक संदर्भ में किसी भी तरंगदैर्घ्य के विकिरण को प्रकाश कहते हैं। प्रकाश का मूल कण फ़ोटान होता है। प्रकाश की तीन प्रमुख विमायें निम्नवत है।.

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प्रकाश-संश्लेषण

हरी पत्तियाँ, प्रकाश संश्लेषण के लिये प्रधान अंग हैं। सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधों की हरी पत्तियों की कोंशिकाओं के अन्दर कार्बन डाइआक्साइड और पानी के संयोग से पहले साधारण कार्बोहाइड्रेट और बाद में जटिल काबोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च (मंड) आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। जल, कार्बनडाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल (पर्णहरित) को प्रकाश संश्लेषण का अवयव कहते हैं। इसमें से जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण का कच्चा माल कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं। प्रकाश संश्वेषण करने वाले सजीवों को स्वपोषी कहते हैं। .

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प्लवक

कुछ प्लवक वे सभी प्राणी या वनस्पति, जो जल में जलतरंगों या जलधारा द्वारा प्रवाहित होते रहते हैं, प्लवक (प्लवक .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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महासागर

महासागर जलमंडल का प्रमुख भाग है। यह खारे पानी का विशाल क्षेत्र है। यह पृथ्वी का ७१% भाग अपने आप से ढांके रहता है (लगभग ३६.१ करोड वर्ग b किलोमीटर)| जिसका आधा भाग ३००० मीटर गहरा है। प्रमुख महासागर निम्नलिखित हैं: १ प्रशान्त महासागर (en:Pacific Ocean) २ अन्ध महासागर (en:Atlantic Ocean) ३ उत्तरध्रुवीय महासागर (en:Arctic Ocean) ४ हिन्द महासागर (en:Indian Ocean) ५ दक्षिणध्रुवीय महासागर(en:Antarctic Ocean) महासागर श्रेणी:जलसमूह.

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महासागरीय गर्त

ये महासागरीय बेसिन के सबसे नीचे भाग हैं और इनकी तली औसत महासागरीय नितल के काफी नीचे मिलती हैं। इनकी स्थिति सर्वत्र न मिलकर यत्र-तत्र बिखरे हुए रूप में मिलती हैं। वास्तव में ये महासागरीय नितल पर स्थित तीव्र ढाल वाले लम्बे, पतले तथा गहरे अवनमन के क्षेत्र हैं। इनकी उतपत्ति महासागरीय तली में प्रथ्वी के क्रस्ट के वलन एवं भ्रंशन के परिणामस्वरूप मानी जाती हैं। अर्थात इनकी उतपत्ति विवर्तनिक क्रियाओं से हुई हैं। .

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मछली

अमरीकी प्रान्त जॉर्जिया के मछलीघर में एक विशालकाय ग्रूपर अन्य मछलियों के साथ तिरती हुई। मछली शल्कों वाला एक जलचर है जो कि कम से कम एक जोडा़ पंखों से युक्त होती है। मछलियाँ मीठे पानी के स्त्रोतों और समुद्र में बहुतायत में पाई जाती हैं। समुद्र तट के आसपास के इलाकों में मछलियाँ खाने और पोषण का एक प्रमुख स्रोत हैं। कई सभ्यताओं के साहित्य, इतिहास एवं उनकी संस्कृति में मछलियों का विशेष स्थान है। इस दुनिया में मछलियों की कम से कम 28,500 प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें अलग अलग स्थानों पर कोई 2,18,000 भिन्न नामों से जाना जाता है। इसकी परिभाषा कई मछलियों को अन्य जलीय प्रणी से अलग करती है, यथा ह्वेल एक मछली नहीं है। परिभाषा के मुताबिक़, मछली एक ऐसी जलीय प्राणी है जिसकी रीढ़ की हड्डी होती है (कशेरुकी जन्तु), तथा आजीवन गलफड़े (गिल्स) से युक्त होती हैं तथा अगर कोई डालीनुमा अंग होते हैं (लिंब) तो वे फ़िन के रूप में होते हैं। alt.

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रात

रात्रि अथवा रात का समय अथवा रात सूर्यास्त और सूर्योदय के मध्य का समय होता है जब सूर्य क्षितिज से नीचे की ओर होता है। इसका अन्य शब्दों में अर्थ उस समयकाल से होता है जब दिन नहीं होता। .

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शूलचर्मी

तारामीन लिली शूलचर्मा या 'एकिनोडर्म' (Echinoderm) पूर्णतया समुद्री प्राणी हैं। जंतुजगत्‌ के इस बड़े संघ में तारामीन (starfish), ओफियोराइड (Ophiaroids) तथा होलोथूरिया (Holothuria) आदि भी सम्मिलित हैं। अंग्रेजी शब्द एकाइनोडर्माटा का अर्थ है, 'काँटेदार चमड़ेवाले प्राणी'। शूलचर्मों का अध्ययन अनेक प्राणिविज्ञानियों ने किया है। इस संघ में 4,000 प्रकार के प्राणी हैं, जो संसार के सभी सागरों और विभिन्न गहराइयों में पाए जाते हैं। .

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समुद्रफेनी

समुद्रफेनी (Cuttlefish) सेपाइडा जीववैज्ञानिक गण के समुद्री प्राणी होते हैं। ओक्टोपस, स्क्विड और नौटिलस के साथ समुद्रफेनियाँ शीर्षपाद (सेफ़ैलोपोड) जीववैज्ञानिक वर्ग के सदस्य हैं। समुद्रफेनियों की यह विषेशता है कि उनका शंख उनके शरीर के बाहर होने कि बजाये उनके शरीर के अंदर होता है। ऐरागोनाइट से बना यह भीतरी शंख खोखला होता है और समुद्रफेनी के शरीर को ढांचा प्रदान करने के साथ-साथ इसमें गैस भरकर समुद्रफेनी सहजता से समुद्र में ऊपर-नीचे की गहराईयों में जाने में सक्षम है। .

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सागर

कोई विवरण नहीं।

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सागरतह

सागरतह (seabed) या सागर फ़र्श (seafloor) किसी सागर या महासागर के नीचे के फ़र्श को कहते हैं। यह तरह-तरह के क्षेत्रों व स्थलाकृतियों में विभाजित है, जिसमें महाद्वीपीय ताक, अतल मैदान और मध्य-महासागर पर्वतमालाएँ शामिल हैं। .

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सूंस

सूंस। सूंस (डॉल्फिन) समुद्री स्तनधारी जीव हैं और तिमि तथा शिंशुमार के निकट संबंधी हैं। इनके १७ वंश और ४० प्रजातियां हैं। इनका आकार १.२ मी (४ फीट) एवं ४०० कि.ग्रा (माउई सूंस) से लेकर ९.५ मी (३० फीट) १० टन (ऑर्का या किलर व्हेल) तक हो सकता है। ये विश्व भर में पाई जाती हैं, खास तौर पर महाद्वीपीय जलसीमा के उथले सागरीय क्षेत्रों में। ये मांसाहारी होती हैं और छोटी मछलियों और विद्रूपों को खाती हैं। सीटेसियन गण में डेल्फिनिडि सबसे बड़ा और अपेक्षाकृत नवीन कुल है। सूंसो का प्रादुर्भाव पृथ्वी पर लगभग १ करोड़ वर्ष पहले मियोसीन काल के दौरान हुआ था। सूंस पृथ्वी के कुछ सबसे अधिक बुद्धिमान जीवों में से एक है और उनके अक्सर दोस्ताना व्यवहार और हमेशा खुश रहने की आदत ने उन्हें मानवो के बीच खासा लोकप्रिय बना दिया है। गंगा नदी में पायी जाने वाली सूंस को भारत सरकार ने भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है। .

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हाँगर

हाँगर या शार्क एक पृष्ठवंशी समुद्री जल में रहने वाला प्राणी है। इसका शरीर बहुत लम्बा होता है जो शल्कों से ढका रहता है। इन शल्कों को प्लेक्वायड कहते हैं। त्वचा चिकनी होती है। त्वचा के नीचे वसा (चर्बी) की मोटी परत होती है। इसके शरीर में हड्डी की जगह उपास्थि (कार्टिलेज) पाई जाती है। शरीर नौकाकार होता है। इसका निचला जबड़ा ऊपरी जबड़े से छोटा होता है। अतः इसका मुँह सामने न होकर नीचे की ओर होता है जिसमें तेज दाँत होते हैं। यह एक माँसाहारी प्राणी है। शार्क के शरीर में देखने के लिए एक जोड़ी आँखें, तैरने के लिए पाँच जोड़े पखने और श्वांस लेने के लिए पाँच जोड़े क्लोम होते हैं। श्रेणी:जलचर श्रेणी:विद्युतभानी प्राणी.

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हिम

हिम क्रिस्टलीय जलीय बर्फ के रूप में हुआ एक प्रकार का वर्षण है, जिसमे एक बड़ी मात्रा में हिमकण शामिल होते है जो बादलों से गिरते हैं। चूंकि हिम बर्फ के महीन कणों से बनी होती है, इसलिए यह एक दानेदार पदार्थ है। इसकी संरचना खुली और इसलिए नरम होती है, जब तक कि कोई बाहरी दाब डाल कर इसे दबाया ना जाए। हिमपात हिमपातबर्फ के क्रिस्टल के रूपों को दर्शाता है जो वायुमंडल (आमतौर पर बादलों से) से निकलता है और पृथ्वी की सतह पर परिवर्तन से गुजरता है। यह अपने जीवन चक्र में जमे हुए क्रिस्टलीय पानी से संबंधित है, जब उचित परिस्थितियों में, वातावरण में बर्फ के क्रिस्टल का निर्माण होता है, मिलिमीटर का आकार बढ़ाता है, सतह पर तरक्की हो जाती है और सतह पर जमा होता है, फिर जगह में बदल जाता है, और अंततः पिघल, स्लाइड या दूर जाना जाता है । वायुमंडलीय नमी और ठंडी हवा के स्रोतों पर खिलाकर बर्फ के तूफान व्यवस्थित और विकसित होते हैं। स्नोफ्लेक्स सुपरकोलाइड पानी की बूंदों को आकर्षित करके वातावरण में कणों के चारों ओर घूमती है, जो हेक्सागोनल-आकार के क्रिस्टल में स्थिर होते हैं। स्नोफ्लेक विभिन्न आकारों पर लेते हैं, इनमें से मूल प्लेटलेट्स, सुई, स्तंभ और शिलाएं हैं। जैसा कि बर्फ एक बर्फ के टुकड़े में जमा हो जाता है, यह बहाव में उड़ सकता है समय के साथ, सिमेंटर, नीचीकरण और फ्रीज-पिघलना द्वारा, बर्फ का आकार संचित किया गया। जहां साल-दर-वर्ष संचय के लिए जलवायु ठंडा होती है, एक ग्लेशियर हो सकता है। अन्यथा, बर्फ आमतौर पर मौसम में पिघला देता है, जिससे नदियों और नदियों में जल प्रवाह और भूजल रिचार्ज होता है .

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जलतापीय छिद्र

जलतापीय छिद्र (hydrothermal vents) पृथ्वी या अन्य किसी ग्रह पर उपस्थित ऐसा विदर छिद्र होता है जिस से भूतापीय स्रोतों से गरम किया गया जल उगलता है। यह अक्सर सक्रीय ज्वालामुखीय क्षेत्रों, भौगोलिक तख़्तो के अलग होने वाले स्थानों और महासागर द्रोणियों जैसे स्थानों पर मिलते हैं। जलतापीय छिद्रों के अस्तित्व का मूल कारण पृथ्वी की भूवैज्ञानिक सक्रीयता और उसकी सतह व भीतरी भागों में पानी की भारी मात्रा में उपस्थिति है। जब जलतापीय छिद्र भूमि पर होते हैं तो उन्हें गरम चश्मों, फ़ूमारोलों और उष्णोत्सों के रूप में देखा जाता है। जब वे महासागरों के फ़र्श पर होते हैं तो उन्हें काले धुआँदारी (black smokers) और श्वेत धुआँदारी (white smokers) के रूप में पाया जाता है। गहरे समुद्र के बाक़ि क्षेत्र की तुलना में काले धुआँदारियों के आसपास अक्सर बैक्टीरिया और आर्किया जैसे सूक्ष्मजीवों की भरमार होती है। यह जीव इन छिद्रों में से निकल रहे रसायनों को खाकर ऊर्जा बनाते हैं और जीवित रहते हैं और फिर आगे ऐसे जीवों को ग्रास बनाने वाले अन्य जीवों के समूह भी यहाँ पनपते हैं। माना जाता है कि बृहस्पति ग्रह के यूरोपा चंद्रमा और शनि ग्रह के एनसेलेडस चंद्रमा पर भी सक्रीय जलतापीय छिद्र मौजूद हैं और अति-प्राचीनकाल में यह सम्भवतः मंगल ग्रह पर भी रहे हों। .

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जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

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जेलीफ़िश

जेलीफ़िश या जेली या समुद्री जेली या मेड्युसोज़ोआ, या गिजगिजिया नाइडेरिया संघ का मुक्त-तैराक़ सदस्य है। जेलीफ़िश के कई अलग रूप हैं जो स्काइफ़ोज़ोआ (200 से अधिक प्रजातियां), स्टॉरोज़ोआ (लगभग 50 प्रजातियां), क्यूबोज़ोआ (लगभग 20 प्रजातियां) और हाइड्रोज़ोआ (लगभग 1000-1500 प्रजातियाँ जिसमें जेलीफ़िश और कई अनेक शामिल हैं) सहित विभिन्न नाइडेरियाई वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन समूहों में जेलीफ़िश को, क्रमशः, स्काइफ़ोमेड्युसे, स्टॉरोमेड्युसे, क्यूबोमेड्युसे और हाइड्रोमेड्युसे भी कहा जाता है। सभी जेलीफ़िश उपसंघ मेड्युसोज़ोआ में सन्निहित हैं। मेड्युसा जेलीफ़िश के लिए एक और शब्द है और इसलिए जीवन-चक्र के वयस्क चरण के लिए विशेष रूप से प्रयुक्त होता है। जेलीफ़िश हर समुद्र में, सतह से समुद्र की गहराई तक पाए जाते हैं। कुछ हाइड्रोज़ोआई जेलीफ़िश, या हाइड्रोमेड्युसे ताज़ा पानी में भी पाए जाते हैं; मीठे पानी की प्रजातियां व्यास में एक इंच (25 मि.मी.), बेरंग होती हैं और डंक नहीं मारती हैं। ऑरेलिया जैसे कई सुविख्यात जेलीफ़िश, स्काइफ़ोमेड्युसे हैं। ये बड़े, अक्सर रंगीन जेलीफ़िश हैं, जो विश्व भर में सामान्यतः तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। अपने व्यापक अर्थ में, शब्द जेलीफ़िश आम तौर पर संघ टीनोफ़ोरा के सदस्यों को निर्दिष्ट करता है। हालांकि नाइडेरियन जेलीफ़िश से कोई निकट संबंध नहीं है, टीनोफ़ोर मुक्त-तैराक़ प्लैंक्टोनिक मांसभक्षी हैं, जो सामान्यतः पारदर्शी या पारभासी और विश्व के सभी महासागरों के उथले से गहरे भागों में मौजूद होते हैं। शेर अयाल जेलीफ़िश सर्वाधिक विख्यात जेलीफ़िश हैं और विवादास्पद तौर पर दुनिया का सबसे लंबा जानवर है। .

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जीवदीप्ति

एक प्रकाशोत्पादक जन्तु प्रकाश उत्पन्न करने के अनेक साधन हैं। कुछ प्राणी भी प्रकाश उत्पन्न करते हैं। प्राणी से उत्पन्न प्रकाश को जीवदीप्ति (Bio-luminescence), या 'शीतल प्रकाश', कहते हैं। साधारण प्रकाश में प्रकाश के साथ-साथ उष्मा भी रहती है, पर जीवदीप्ति में उष्मा नहीं रहती। .

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वनस्पति

पेड़-पौधों या वनस्पतिलोक का अर्थ है, किसी क्षेत्र का वनस्पति जीवन या भूमि पर मौजूद पेड़-पौधे और इसका संबंध किसी विशिष्ट जाति, जीवन के ऱूप, रचना, स्थानिक प्रसार, या अन्य वानस्पतिक या भौगोलिक गुणों से नहीं है। यह शब्द फ्लोरा शब्द से कहीं अधिक बड़ा है जो विशेष रूप से जाति की संरचना से संबधित होता है। शायद सबसे करीबी पर्याय ''वनस्पति'' समाज है, लेकिन पेड़-पौधे शब्द स्थानिक पैमानों की विस्तृत श्रेणी से संबध रख सकता है, जिनमें समस्त विश्व की वनस्पति-संपदा समाविष्ट है। प्राचीन लाल लकड़ी के वन, तटीय सदाबहार वन, दलदल में जमने वाली काई, रेगिस्तानी मिट्टी की पर्तें, सड़क के किनारे उगने वाली घास, गेहूं के खेत, बाग-बगीचे-ये सभी पेड़-पौधों की परिभाषा में शामिल हैं। .

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विद्रूप (समुद्री जीव)

विद्रूप या स्क्विड, टेउथिडा (Teuthida) गण के समुद्री शिरस्यपाद (cephalopods) जीव हैं, जिनकी लगभग 300 प्रजातियों पायी जाती हैं। अन्य सभी शिरस्यपादों की तरह विद्रूप का एक विशिष्ट सिर, द्विपक्षीय समरूपता, एक प्रावरण और बाहु होते हैं। विद्रूप के समुद्रीफेनी (cuttlefish) की तरह आठ बाहु और दो जोड़े स्पर्शक होते है। (केवल बड़े मीनपंख वाले विद्रूप समूह ही ज्ञात अपवाद हैं, जिनके दस बहुत लंबे लेकिन बराबर लंबाई के बाहु होते है।) .

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ऑक्सीजन

ऑक्सीजन या प्राणवायु या जारक (Oxygen) रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधरहित गैस है। इसकी खोज, प्राप्ति अथवा प्रारंभिक अध्ययन में जे.

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आयतन

सभी पदार्थ स्थान (त्रि-बीमीय स्थान) घेरते हैं। इसी त्रि-बीमीय स्थान की मात्रा की माप को आयतन कहते हैं। एक-बीमीय आकृतियाँ (जैसे रेखा) एवं द्वि-बीमीय आकृतियाँ (जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज, वर्ग आदि) का आयतन शून्य होता है। .

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क्लोम

क्लोम (gill) या गलफड़ा जलीय जीवों में पाया जाने वाला एक श्वसन अंग है। इसका प्रयोग कर जलचर पानी से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड का त्याग करते हैं। गलफड़े की सूक्ष्म संरचना बाहरी वातावरण के लिए एक बहुत बड़ा तल क्षेत्र प्रस्तुत करती है। श्रेणी:श्वसन श्रेणी:जलचर श्रेणी:प्राणी शारीरिकी.

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अतल मैदान

अतल मैदान (abyssal plain) महासागरों की गहराईयों में सागरतह का विस्तृत मैदानी क्षेत्र होता है, जिसकी गहराई आमतौर पर 3,000 मीटर (9,800 फ़ुट) और 6,000 मीटर (20,000 फ़ुट) के बीच होती है। यह महाद्वीपीय चढ़ाव और मध्य-महासागर पर्वतमाला के बीच का क्षेत्र होता है और ऐसे मैदान पृथ्वी के लगभग 50% क्षेत्र पर फैले हुए हैं। यह विश्व के सबसे चपटे और सबसे कम अध्ययन करे गए क्षेत्रों में से हैं। अतल मैदान महासागरीय द्रोणियों के महत्वपूर्ण भाग होते हैं और इन द्रोणियों में इन मैदानों के अलावा एक महासागरीय गर्त और निम्नस्खलन क्षेत्र भी होते है। .

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