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चिकित्सा पद्धतियां

सूची चिकित्सा पद्धतियां

आधुनिक युग में मुख्य चिकित्सा पद्धति ऐलोपैथिक चिकित्सा को ही माना जाता है। इसके अलावा बहुत सी पद्धतियां प्रचलित हैं, जिन्हें वैकल्पिक की संज्ञा दी गयी है। निम्न सूची इन्हीं वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को गिनाती है.

9 संबंधों: ऊर्जा चिकित्सा, चुंबक चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, मूत्र चिकित्सा, यूनानी चिकित्सा पद्धति, रस चिकित्‍सा, रेकी चिकित्सा, सुगंध चिकित्सा, होम्योपैथी

ऊर्जा चिकित्सा

ब्रह्मांड के सकारात्मक चिकित्सकीय ऊर्जा किरणों को साधना/एकाग्रता के द्वारा प्राप्त करना और उसका अपने जरूरत के अनुसार उपयोग करना ही ऊर्जा चिकित्सा का सीधा और सरल सा अर्थ है। ऊर्जा चिकित्सा के बारे में सर्वप्रथम जानकारी किसे, कब, कहाँ किन परिस्थितियों में मिली, यह अब तक विवादित पहलू है। प्रत्येक देश, धर्म ऊर्जा चिकित्सा की जन्मस्थली होने का दावा करते हैं। जिस प्रकार यह ब्रह्मांड किसी एक देश, जाति, धर्म का नहीं है, उसी तरह ऊर्जा चिकित्सा भी किसी एक की धरोहर नहीं है। यह ऊर्जा किसी एक नियम के अधीन नहीं है। .

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चुंबक चिकित्सा

चुम्बक चिकित्सा एक चिकित्सा पद्धति है। इसकी दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं- सार्वदैहिक अर्थात हथेलियों व तलवों पर लगाने से तथा स्थानिक अर्थात्‌ रोगग्रस्त भाग पर लगाने से। .

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प्राकृतिक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी / naturopathy) एक चिकित्सा-दर्शन है। इसके अन्तर्गत रोगों का उपचार व स्वास्थ्य-लाभ का आधार है - 'रोगाणुओं से लड़ने की शरीर की स्वाभाविक शक्ति'। प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत अनेक पद्धतियां हैं जैसे - जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मृदा चिकित्सा आदि। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलन में विश्व की कई चिकित्सा पद्धतियों का योगदान है; जैसे भारत का आयुर्वेद तथा यूरोप का 'नेचर क्योर'। प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक संपूर्ण क्रांति है। इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन, विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हलकी पकी सब्जियाँ विभिन्न बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों एवं गरीब देशों के लिये विशेष रूप से वरदान है। .

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मूत्र चिकित्सा

मूत्र चिकित्सा एक ऐसी वैकल्पिक चिकित्सा जिसमें कई रोगों के निदान के लिए मानव मूत्र को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। मूत्र थेरेपी को यूरोथेरेपी या यूरिनोथेरेपी अथवा यूरोपैथी के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। मूत्र को औषधि के रूप में विभिन्न तरीकों से इस्तेमाल किया जाता है मसलन इस इलाज में स्वयं के मूत्र का सेवन किया जाता है या शारीरिक सुन्दरता बढ़ाने या त्वचा सम्बन्धी विकारों को दूर करने हेतु अपनी त्वचा पर अपने मूत्र की मालिश की जाती है। हालांकि मूत्र चिकित्सा विभिन्न रोगों के उपचार के लिए बहुत हीं कारगर माना जाता है फिर भी चिकित्सीय उपयोग के लिए इसे वैज्ञानिक रूप में पुष्टि नहीं हुई है। मूत्र में पानी की 95%, यूरिया की 2.5% मात्रा होती हैं और शेष 2.5%, खनिज लवण, हार्मोन और एंजाइम का मिश्रण होता है। केवल यूरिया, जो मूत्र का नाम है, जहरीला हो सकता है जो रक्त में उपस्थित हो। http://www.universal-tao.com/article/urine_therapy.html.

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यूनानी चिकित्सा पद्धति

यूनानी चिकित्सा पद्धति को केवल यूनानी या हिकमत के नाम से भी पुकारा जाता है। इसे " यूनानी-तिब " या केवल " यूनान " के नाम से भी जाना जाता है। यूनानी तिब में यूनानी शब्द मूलत: " लोनियन " का अरबी रूपांतरण है जिसका अर्थ ग्रीक या यूनान है। भारत में सौ से अधिक यूनानी चिकित्सा विश्वविद्यालयों में यूनानी चिकित्सा पद्धति सिखाया जाता है। यह प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के करीब है। इसे भारत में भी वैकल्पिक चिकित्सा माना गया है। यूनानी चिकित्सा पद्धति का इतिहास बड़ा शानदार था पर वर्तमान में एलोपैथी के सामने इसका टिकना बड़ा कठिन हो रहा है। .

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रस चिकित्‍सा

पारा और गंधक के साथ काष्‍ठादिक औषधियों के योग से बनने वाली दवाओं को रसौषधि कहते हैं। रसौषधियों से रोगों की चिकित्‍सा जब की जाती है तब इसे रस चिकित्‍सा कहते हैं। .

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रेकी चिकित्सा

100px रेकी चिकित्सा प्रगति पर 2-ch'i4 |j.

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सुगंध चिकित्सा

अरोमाथेरेपी पौधों की सामग्रियों और सुगंधित पौधों के तेलों का उपयोग करती है, जिसमें आवश्यक तेल, और मनोवैज्ञानिक या शारीरिक कल्याण में सुधार के लिए अन्य सुगंध यौगिक शामिल हैं। इसे एक पूरक चिकित्सा या वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में पेश किया जा सकता है। मानक उपचार के साथ पूरक चिकित्सा की पेशकश की जा सकती है, परंपरागत, सबूत-आधारित उपचारों की बजाय वैकल्पिक चिकित्सा की पेशकश की जाती है। अरोमाथेरेपिस्ट, जो अरोमाथेरेपी के अभ्यास में विशेषज्ञ हैं, चिकित्सीय आवश्यक तेलों के मिश्रणों का उपयोग करते हैं जिन्हें वांछित प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने के लिए सामयिक अनुप्रयोग, मालिश, इनहेलेशन या पानी विसर्जन के माध्यम से जारी किया जा सकता है। कोई अच्छा चिकित्सीय सबूत नहीं है कि अरोमाथेरेपी या तो किसी भी बीमारी को रोक या ठीक कर सकती है, लेकिन यह सामान्य कल्याण में सुधार करने में मदद कर सकती है। .

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होम्योपैथी

thumb होम्योपैथी, एक चिकित्सा पद्धति है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के जन्‍मदाता डॉ॰ क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान है। यह चिकित्सा के 'समरूपता के सिंद्धात' पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियाँ उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं। औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है। जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए। अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट और समाप्त उसी औषधि से हो सकता है जो मानव शरीर में, रोग के लक्षणों से प्रबल और लक्षणों से अत्यंत मिलते जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके। होमियोपैथी पद्धति में चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन-इतिहास एवं रोगलक्षणों को सुनकर उसी प्रकार के लक्षणों को उत्पन्न करनेवाली औषधि का चुनाव करना है। रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होगी रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है। चिकित्सक का अनुभव उसका सबसे बड़ा सहायक होता है। पुराने और कठिन रोग की चिकित्सा के लिए रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। कुछ होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति के समर्थकों का मत है कि रोग का कारण शरीर में शोराविष की वृद्धि है। होमियोपैथी चिकित्सकों की धारणा है कि प्रत्येक जीवित प्राणी हमें इंद्रियों के क्रियाशील आदर्श (Êfunctional norm) को बनाए रखने की प्रवृत्ति होती है औरे जब यह क्रियाशील आदर्श विकृत होता है, तब प्राणी में इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रतिक्रियाएँ होती हैं। प्राणी को औषधि द्वारा केवल उसके प्रयास में सहायता मिलती है। औषधि अल्प मात्रा में देनी चाहिए, क्योंकि बीमारी में रोगी अतिसंवेगी होता है। औषधि की अल्प मात्रा प्रभावकारी होती है जिससे केवल एक ही प्रभाव प्रकट होता है और कोई दुशपरिणाम नहीं होते। रुग्णावस्था में ऊतकों की रूपांतरित संग्राहकता के कारण यह एकावस्था (monophasic) प्रभाव स्वास्थ्य के पुन: स्थापन में विनियमित हो जाता है। विद्वान होम्योपैथी को छद्म विज्ञान मानते हैं। .

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