काश्यप संहिता और कौमार भृत्य के बीच समानता
काश्यप संहिता और कौमार भृत्य आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): चरक संहिता, आयुर्वेद, अष्टाङ्गहृदयम्।
चरक संहिता
चरक संहिता आयुर्वेद का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह संस्कृत भाषा में है। इसके उपदेशक अत्रिपुत्र पुनर्वसु, ग्रंथकर्ता अग्निवेश और प्रतिसंस्कारक चरक हैं। प्राचीन वाङ्मय के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उन दिनों ग्रंथ या तंत्र की रचना शाखा के नाम से होती थी। जैसे कठ शाखा में कठोपनिषद् बनी। शाखाएँ या चरण उन दिनों के विद्यापीठ थे, जहाँ अनेक विषयों का अध्ययन होता था। अत: संभव है, चरकसंहिता का प्रतिसंस्कार चरक शाखा में हुआ हो। भारतीय चिकित्साविज्ञान के तीन बड़े नाम हैं - चरक, सुश्रुत और वाग्भट। चरक संहिता, सुश्रुतसंहिता तथा वाग्भट का अष्टांगसंग्रह आज भी भारतीय चिकित्सा विज्ञान (आयुर्वेद) के मानक ग्रन्थ हैं। चिकित्सा विज्ञान जब शैशवावस्था में ही था उस समय चरकसंहिता में प्रतिपादित आयुर्वेदीय सिद्धान्त अत्यन्त श्रेष्ठ तथा गंभीर थे। इसके दर्शन से अत्यन्त प्रभावित आधुनिक चिकित्साविज्ञान के आचार्य प्राध्यापक आसलर ने चरक के नाम से अमेरिका के न्यूयार्क नगर में १८९८ में 'चरक-क्लब्' संस्थापित किया जहाँ चरक का एक चित्र भी लगा है। आचार्य चरक और आयुर्वेद का इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक का स्मरण होने पर दूसरे का अपने आप स्मरण हो जाता है। आचार्य चरक केवल आयुर्वेद के ज्ञाता ही नहीं थे परन्तु सभी शास्त्रों के ज्ञाता थे। उनका दर्शन एवं विचार सांख्य दर्शन एवं वैशेषिक दर्शन का प्रतिनिधीत्व करता है। आचार्य चरक ने शरीर को वेदना, व्याधि का आश्रय माना है, और आयुर्वेक शास्त्र को मुक्तिदाता कहा है। आरोग्यता को महान् सुख की संज्ञा दी है, कहा है कि आरोग्यता से बल, आयु, सुख, अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। आचार्य चरक, संहिता निर्माण के साथ-साथ जंगल-जंगल स्थान-स्थान घुम-घुमकर रोगी व्यक्ति की, चिकित्सा सेवा किया करते थे तथा इसी कल्याणकारी कार्य तथा विचरण क्रिया के कारण उनका नाम 'चरक' प्रसिद्ध हुआ। उनकी कृति चरक संहिता चिकित्सा जगत का प्रमाणिक प्रौढ़ और महान् सैद्धान्तिक ग्रन्थ है।;चरकसंहिता का आयुर्वेद को मौलिक योगदान चरकसंहिता का आयुर्वेद के क्षेत्र में अनेक मौलिक योगदान हैं जिनमें से मुख्य हैं-.
काश्यप संहिता और चरक संहिता · कौमार भृत्य और चरक संहिता ·
आयुर्वेद
आयुर्वेद के देवता '''भगवान धन्वन्तरि''' आयुर्वेद (आयुः + वेद .
आयुर्वेद और काश्यप संहिता · आयुर्वेद और कौमार भृत्य ·
अष्टाङ्गहृदयम्
अष्टाङ्गहृदयम्, आयुर्वेद का प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसके रचयिता वाग्भट हैं। इसका रचनाकाल ५०० ईसापूर्व से लेकर २५० ईसापूर्व तक अनुमानित है। इस ग्रन्थ में ग्रन्थ औषधि (मेडिसिन) और शल्यचिकित्सा दोनो का समावेश है। चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता और अष्टाङ्गहृदयम् को सम्मिलित रूप से वृहत्त्रयी कहते हैं। अष्टांगहृदय में आयुर्वेद के सम्पूर्ण विषय- काय, शल्य, शालाक्य आदि आठों अंगों का वर्णन है। उन्होंने अपने ग्रन्थ के विषय में स्वयं ही कहा है कि, यह ग्रन्थ शरीर रूपी आयुर्वेद के हृदय के समान है। जैसे- शरीर में हृदय की प्रधानता है, उसी प्रकार आयुर्वेद वाङ्मय में अष्टांगहृदय, हृदय के समान है। अपनी विशेषताओं के कारण यह ग्रन्थ अत्यन्त लोकप्रिय हुआ। .
अष्टाङ्गहृदयम् और काश्यप संहिता · अष्टाङ्गहृदयम् और कौमार भृत्य ·
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संदर्भ
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