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आनतिमापी

सूची आनतिमापी

'''नतिमापी''' (इसमें दिक्सूचक भी है) दो अक्षों में आनति की माप करने वाला उपकरण डिजिटल आनतिमापी आनतिमापी (inclinometer या clinometer) एक उपकरण है जिसकी सहायता से गुरुत्व के सापेक्ष किसी वस्तु का झुकाव (नति) मापा जाता है। इसे 'टिल्ट मीटर', 'टिल्ट इंडिकेटर', 'स्लोप गेज', 'प्रवणता मापी' आदि भी कहते हैं। नतिमापी के द्वारा धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों नतियाँ मापी जा सकती हैं। .

5 संबंधों: चुम्बक, पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र, साहुल, गुरुत्वाकर्षण, इस्पात

चुम्बक

एक छड़ चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित हुई लौह-धुरि (iron-filings) एक परिनालिका (सॉलिनॉयड) द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय बल रेखाएँ फेराइट चुम्बक चुम्बक (मैग्नेट्) वह पदार्थ या वस्तु है जो चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। चुम्बकीय क्षेत्र अदृश्य होता है और चुम्बक का प्रमुख गुण - आस-पास की चुम्बकीय पदार्थों को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुम्बकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करने का गुण, इसी के कारण होता है। .

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पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र

पृथ्वी के भौगोलिक उत्तर-दक्षिण (नीली रेखा) तथा चुम्बकीय उत्तर-दक्षिण (गुलाबी रेखा) का योजनामूलक निरूपण पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को निरूपित करने के लिये प्रयुक्त सामान्य निर्देशांक प्रणाली भूचुंबकत्व (geomagnetism) पृथ्वी के चुम्बकत्व का विवेचन करनेवाली विज्ञान की शाखा है। पृथ्वी एक विशाल चुंबक है, जिसका अक्ष लगभग पृथ्वी के घूर्णन अक्ष पर पड़ता है। पृथ्वी के भूचंबकीय क्षेत्र का स्वरूप प्रधानत: द्विध्रुवी (Dipole) है और यह पृथ्वी के गहरे अंतरंग में उत्पन्न होता है। .

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साहुल

साहुल साहुल की सहायता से दीवार की उर्ध्वाधरता की जाँच साहुल तथा कोण-दर्शाने वाले पैमाने की सहायता से बना आनतिमापी (inclinometer) साहुल (plumb bob या plummet) एक हाथ औजार है जिसका उपयोग राजगीरी में उर्ध्वाधर रेखा पाने के लिये किया जाता है। इसमें एक धातु का भार होता है जिसका नीचे वाला सिरा नुकीला होता है। इस भार को एक धागे या पतली रस्सी से लटकाकर उर्ध्वाधर तल की उर्ध्वाधरता का पता लगाया जाता है। उदाहरण के लिये दीवार जोडते समय बार-बार देखना पड़ता है कि दीवार की जोड़ाई उर्ध्वाधर हो रही है या यह किसी तरफ झुक रहा है। झुकी दीवार के आसानी से गिरने का खतरा होता है। .

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गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण के कारण ही ग्रह, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाते हैं और यही उन्हें रोके रखती है। गुरुत्वाकर्षण (ग्रैविटेशन) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। .

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इस्पात

इस्पात (Steel), लोहा, कार्बन तथा कुछ अन्य तत्वों का मिश्रातु है। इसकी तन्य शक्ति (tensile strength) अधिक होती है जबकि प्रति टन मूल्य कम होने के कारण यह भवनों, अधोसंरचना, औजार, जलयान, वाहन, और मशीनों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। 'इस्पात' शब्द इतने विविध प्रकार के परस्पर अत्यधिक भिन्न गुणोंवाले पदार्थो के लिए प्रयुक्त होता है कि इस शब्द की ठीक-ठीक परिभाषा करना वस्तुत: असंभव है। परंतु व्यवहारत: इस्पात से लोहे तथा कार्बन (कार्बन) की मिश्र धातु ही समझी जाती है (दूसरे तत्व भी साथ में चाहे हों अथवा न हों)। इसमें कार्बन की मात्रा साधारणतया 0.002% से 2.14% तक होती है। किसी अन्य तत्व की अपेक्षा कार्बन, लोहे के गुणों को अधिक प्रभावित करता है; इससे अद्वितीय विस्तार में विभिन्न गुण प्राप्त होते हैं। वेसे तो कई अन्य साधारण तत्व भी मिलाए जाने पर लोहे तथा इस्पात के गुणों को बहुत बदल देते हैं, परंतु इनमें कार्बन ही प्रधान मिश्रधातुकारी तत्व है। यह लोहे की कठोरता तथा पुष्टता समानुपातिक मात्रा में बढ़ाता है, विशेषकर उचित उष्मा उपचार के उपरांत। इस्पात एक मिश्रण है जिसमें अधिकांश हिस्सा लोहा का होता है। इस्पात में 0.2 प्रतिशत से 2.14 प्रतिशत के बीच कार्बन होता है। लोहा के साथ कार्बन सबसे किफायत मिश्रक होता है, लेकिन जरूरत के अनुसार, इसमें मैंगनीज, क्रोमियम, वैंनेडियम और टंग्सटन भी मिलाए जाते हैं। कार्बन और दूसरे पदार्थ मिश्र-धातु को कठोरता प्रदान करते हैं। लौहे के साथ, उचित मात्रा में मिश्रक मिलाकर लोहे को आवश्यक कठोरता, तन्यता और सुघट्यता प्रदान किया जाता है। लौहे में जितना ज्यादा कार्बन मिलाते हैं इस्पात उतना ही कठोर बनता जाता है, कठोरता बढ़ने के साथ ही उसकी भंगुरता भी बढ़ती जाती है। 1149 डिग्री सेल्सियस पर लौहे में कार्बन की अधिकतम घुल्यता 2.14 प्रतिशत है। कम तापमान पर अगर लौहे में ज्यादा मात्रा में कार्बन हो तो इससे सिमेंटाइट का निर्माण होगा। लौहे में अगर इससे ज्यादा कार्बन हो तो यह कास्ट आयरन कहलाता है, क्योंकि इसका गलनाक कम हो जाता है। इस्पात, कास्ट आयरन से इसलिए भी अलग होता है क्योंकि इसमें दूसरे तत्वों की मात्रा अत्यंत कम होती है यानी 1 से तीन प्रतिशत के करीब.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

नतिमापी, नमनमापी

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