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आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग

सूची आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग

पितृवंश समूह आर१ए का विस्तार आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोगों के फैलाव के साथ सम्बंधित माना जाता है आदिम-हिन्द-यूरोपीय यूरेशिया में बसने वाले उन प्राचीन लोगों को कहा जाता है जो आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा बोलते थे। इनके बारे में जानकारी भाषावैज्ञानिक तकनीकों से और कुछ हद तक पुरातत्व-विज्ञान (आर्कियोलोजी) से आई है। आधुनिक युग में अनुवांशिकी (जेनेटिक्स) के ज़रिये भी इनकी जातीयता के बारे में जानकारी मिल रही है। बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि यह लोग ४००० ईसापूर्व के काल में पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी क्षेत्र में बसा करते थे और २,००० ईसापूर्व तक अनातोलिया, पश्चिमी यूरोप, मध्य एशिया और दक्षिणी साइबेरिया तक विस्तृत हो चुके थे।, J. P. Mallory, Taylor & Francis, 1997, ISBN 978-1-884964-98-5 आनुवंशिकी नज़रिए से बहुत से विद्वान अब इन्हें पितृवंश समूह आर१ए का वंशज मानते हैं।, Carlos Quiles, Fernando López-Menchero, Indo-European Association, 2009, ISBN 978-1-4486-8206-5,...

11 संबंधों: पश्चिमी यूरोप, पितृवंश समूह आर१ए, पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी, भाषाविज्ञान, मध्य एशिया, यूरेशिया, साइबेरिया, हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार, आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा, आनातोलिया, आनुवंशिकी

पश्चिमी यूरोप

पश्चिम यूरोप क्षेत्र में यूरोप महाद्वीप के पश्चिमी राष्ट्र आते हैं। लगभग १९४५-१९९१ तक चले शीत युद्ध के समय में प्रचलित एक अन्य परिभाषा के अनुसार पश्चिम यूरोपीय संघ से संबद्ध राष्ट्रों के क्षेत्र को पश्चिम यूरोप कहते थे, जो अब यूरोपीय संघ का ही भाग है। पश्चिमी यूरोपीय संघ १९४८ के समय असाम्यवादी यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा संगठित एक सुरक्षात्मक संगठन था और ये ईस्टर्न ब्लॉक या वारसा संधि के विरुद्ध संगठित हुआ था। पशिमी यूरोप के राष्ट्र अत्यधिक आय वाले विकसित राष्ट्र हैं, जिनमें अधिकांश जनतांत्रिक सरकार द्वारा शासित हैं और मिश्रित अर्थ-व्यवस्था के संग नाटो एवं यूरोपीय संघ के भी सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकीय विभाग के अनुसार पश्चिमी यूरोप मात्र ९ राष्ट्रों का समूह है। .

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पितृवंश समूह आर१ए

पितृवंश समूह आर१ए का विस्तार पितृवंश समूह आर१ए या हैपलोग्रुप R1a मनुष्यों में वाए गुण सूत्र (Y-क्रोमोज़ोम) का एक वर्ग है, यानि की सभी पुरुष जिनमें इस वंश समूह के चिन्ह हैं एक ही ऐतिहासिक पुरुष की संतान हैं। अनुमान लगाया जाता है के यह पुरुष आज से १८,५०० साल पहले जीवित था। इस पितृवंश के पुरुष भारत, पाकिस्तान, मध्य एशिया, रूस, पूर्वी यूरोप और स्कैन्डिनेवियाई देशों में पाए जाते हैं। .

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पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी

कृष्ण-कैस्पियाई स्तेपी (पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी) दरमियानी हरे-ख़ाकी रंग में है कृष्ण-कैस्पियाई स्तेपी या पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी (Pontic-Caspian steppe) कृष्ण सागर के उत्तर से कैस्पियन सागर के पूर्व के क्षेत्रों तक विस्तृत विशाल स्तेपी मैदानी क्षेत्र को कहते हैं। आधुनिक युग में यह पश्चिमी युक्रेन से रूस के दक्षिणी संघीय क्षेत्र और फिर रूस ही के वोल्गा संघीय क्षेत्र से होता हुआ पश्चिमी काज़ाख़स्तान तक फैला हुआ इलाक़ा है। प्राचीन काल में यह स्किथी लोगों और सरमती लोगों का क्षेत्र हुआ करता था। इस क्षेत्र में सदियों से बहुत से घुड़सवार ख़ानाबदोश क़बीले रहते चले आए हैं जिन्होनें समय-समय पर यूरोप, पश्चिमी एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण कर के क़ब्ज़ा जमाकर जातियों और देशों के इतिहास बदल दिए हैं। बहुत इतिहासकार मानते हैं कि यह विश्व का पहला इलाक़ा था जहाँ घोड़ों को पालतू बनाया गया।, Ralph D. Sawyer, Basic Books, 2011, ISBN 978-0-465-02145-1,...

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भाषाविज्ञान

भाषाविज्ञान भाषा के अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भाषा की उत्पत्ति, स्वरूप, विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। भाषा विज्ञान के अध्ययेता 'भाषाविज्ञानी' कहलाते हैं। भाषाविज्ञान, व्याकरण से भिन्न है। व्याकरण में किसी भाषा का कार्यात्मक अध्ययन (functional description) किया जाता है जबकि भाषाविज्ञानी इसके आगे जाकर भाषा का अत्यन्त व्यापक अध्ययन करता है। अध्ययन के अनेक विषयों में से आजकल भाषा-विज्ञान को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। .

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मध्य एशिया

मध्य एशिया एशिया के महाद्वीप का मध्य भाग है। यह पूर्व में चीन से पश्चिम में कैस्पियन सागर तक और उत्तर में रूस से दक्षिण में अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तृत है। भूवैज्ञानिकों द्वारा मध्य एशिया की हर परिभाषा में भूतपूर्व सोवियत संघ के पाँच देश हमेशा गिने जाते हैं - काज़ाख़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़बेकिस्तान। इसके अलावा मंगोलिया, अफ़ग़ानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, भारत के लद्दाख़ प्रदेश, चीन के शिनजियांग और तिब्बत क्षेत्रों और रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग को भी अक्सर मध्य एशिया का हिस्सा समझा जाता है। इतिहास में मध्य एशिया रेशम मार्ग के व्यापारिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। चीन, भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच लोग, माल, सेनाएँ और विचार मध्य एशिया से गुज़रकर ही आते-जाते थे। इस इलाक़े का बड़ा भाग एक स्तेपी वाला घास से ढका मैदान है हालाँकि तियान शान जैसी पर्वत शृंखलाएँ, काराकुम जैसे रेगिस्तान और अरल सागर जैसी बड़ी झीलें भी इस भूभाग में आती हैं। ऐतिहासिक रूप मध्य एशिया में ख़ानाबदोश जातियों का ज़ोर रहा है। पहले इसपर पूर्वी ईरानी भाषाएँ बोलने वाली स्किथी, बैक्ट्रियाई और सोग़दाई लोगों का बोलबाला था लेकिन समय के साथ-साथ काज़ाख़, उज़बेक, किरगिज़ और उईग़ुर जैसी तुर्की जातियाँ अधिक शक्तिशाली बन गई।Encyclopædia Iranica, "CENTRAL ASIA: The Islamic period up to the Mongols", C. Edmund Bosworth: "In early Islamic times Persians tended to identify all the lands to the northeast of Khorasan and lying beyond the Oxus with the region of Turan, which in the Shahnama of Ferdowsi is regarded as the land allotted to Fereydun's son Tur.

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यूरेशिया

यूरेशिया (en:Eurasia) एक भौगोलिक भूखंड है जो यूरोप और एशिया महाद्वीप को मिलाकर नामित है। यूरेशिया मुख्यतः उत्तरी तथा पूर्वी गोलार्ध में स्थित है। इसके पश्चिम में अटलांटिक महासागर, पूरब में प्रशान्त महासागर, उत्तर में और दक्षीन में अफ्रीका महाद्वीप, भूमध्य सागर तथा हिन्द महासागर स्थित हैं। यूरोप और एशिया को दो अलग-अलग महाद्वीप कहना एक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विभाजन है जबकि दोनों के बीच में कोई स्पष्ट भौतिक विभाजक है ही नहीं। इसी कारण विश्व के कुछ देशों में यूरेशिया को ही पाँच या छः महाद्वीपों में सबसे बड़ा माना जाता है। .

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साइबेरिया

साइबेरिया का नक़्शा (गाढ़े लाल रंग में साइबेरिया नाम का संघी राज्य है, लेकिन लाल और नारंगी रंग वाले सारे इलाक़े साइबेरिया का हिस्सा माने जाते हैं गर्मी के मौसम में दक्षिणी साइबेरिया में जगह-जगह पर झीलें और हरियाली नज़र आती है याकुत्स्क शहर में 17वी शताब्दी में बना एक रूसी सैनिक-गृह साइबेरिया (रूसी: Сибирь, सिबिर) एक विशाल और विस्तृत भूक्षेत्र है जिसमें लगभग समूचा उत्तर एशिया समाया हुआ है। यह रूस का मध्य और पूर्वी भाग है। सन् 1991 तक यह सोवियत संघ का भाग हुआ करता था। साइबेरिया का क्षेत्रफल 131 लाख वर्ग किमी है। तुलना के लिए पूरे भारत का क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है, यानि साइबेरिया भारत से क़रीब चार गुना है। फिर भी साइबेरिया का मौसम और भूस्थिति इतनी सख़्त है के यहाँ केवल 4 करोड़ लोग रहते हैं, जो 2011 में केवल उड़ीसा राज्य की आबादी थी। यूरेशिया का अधिकतर स्टॅप (मैदानी घासवाला) इलाक़ा साइबेरिया में आता है। साइबेरिया पश्चिम में यूराल पहाड़ों से शुरू होकर पूर्व में प्रशांत महासागर तक और उत्तर में उत्तरध्रुवीय महासागर (आर्कटिक महासागर) तक फैला हुआ है। दक्षिण में इसकी सीमाएँ क़ाज़ाक़स्तान, मंगोलिया और चीन से लगती हैं। .

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हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार

हिन्द - यूरोपीय भाषाओं देश बोल रही हूँ. गाढ़े हरे रंग के देश में जो बहुमत भाषा हिन्द - यूरोपीय परिवार हैं, लाइट ग्रीन एक देश वह जिसका आधिकारिक भाषा हिंद- यूरोपीय है, लेकिन अल्पसंख्यकों में है। हिन्द-यूरोपीय (या भारोपीय) भाषा-परिवार संसार का सबसे बड़ा भाषा परिवार (यानी कि सम्बंधित भाषाओं का समूह) हैं। हिन्द-यूरोपीय (या भारोपीय) भाषा परिवार में विश्व की सैंकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ सम्मिलित हैं। आधुनिक हिन्द यूरोपीय भाषाओं में से कुछ हैं: हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, फ़्रांसिसी, जर्मन, पुर्तगाली, स्पैनिश, डच, फ़ारसी, बांग्ला, पंजाबी, रूसी, इत्यादि। ये सभी भाषाएँ एक ही आदिम भाषा से निकली है, उसे आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा का नाम दे सकता है। यह संस्कृत से बहुत मिलती-जुलती थी, जैसे कि वह सांस्कृत का ही आदिम रूप हो। .

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आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा

हिन्द-यूरोपीय भाषाओँ का वर्गीकरण ''(अंग्रेजी में, देखने के लिए क्लिक करें)'' आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा (आ॰हि॰यू॰), जिसे प्रोटो-इंडो-यूरोपियन भाषा (अंग्रेजी: Proto-Indo-European) भी कहा जाता है, भाषावैज्ञानिकों द्वारा पूरे हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सभी भाषाओं की एकमात्र प्राचीन जननी भाषा मानी जाती है। माना जाता है के इसे प्राचीन काल में आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग बोला करते थे, लेकिन यह भाषा हज़ारों वर्ष पूर्व ही पूरी तरह से लुप्त हो चुकी थी। बहुत सी हिन्द-यूरोपीय भाषाओं के सजातीय शब्दों की एक-दुसरे से तुलना के बाद भाषावैज्ञानिकों ने इस लुप्त भाषा का पुनर्निर्माण किया है जिस से इस के शब्दों का अनुमान लगाया जा सकता है। भाषावैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं के आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा लगभग ३७०० ई॰पू॰ तक बोली जाती रही और फिर उसका विभिन्न भाषाओं में खंडन होने लगा। इस तिथि के बारे में विद्वानों में हज़ार वर्ष इधर-उधर तक का आपसी मतभेद है। इस बात पर भी कई अवधारणाएँ हैं के इस भाषा को बोलने वाले कहाँ रहते थे, लेकिन बहुत से पश्चिमी विद्वान् कुरगन अवधारणा में विश्वास रखते हैं। कुरगन अवधारणा के अनुसार इस भाषा को बोलने वाले आदिम-हिन्द-यूरोपीय लोग पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के कुछ हिस्सों में फैले हुए पोंटिक-कैस्पियाई स्तेपी के क्षेत्र में रहते थे। आधुनिक युग में विलियम जोन्स पहले विद्वान् थे जिन्होंने प्राचीन संस्कृत, प्राचीन यूनानी, प्राचीन फारसी और लातिन भाषाओं में समानताएँ देखकर यह दावा किया था के ये सारी एक ही आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा से उपजी भाषाएँ हैं। बीसवी शताब्दी की शुरुआत तक भाषावैज्ञानिकों के परिश्रम से आदिम-हिन्द-यूरोपीय (आ॰हि॰यू॰) भाषा का चित्रण काफ़ी हद तक किया जा चुका था, जिसमे छोटे-मोटे सुधार लगातार होते रहे हैं। .

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आनातोलिया

आनातोलिया का भूस्वरूप आनातोलिया (तुर्की: Anadolu, यूनानी: Ανατολία) आज के तुर्की, खासकर इसके मध्य भाग को कहते हैं। इसका पूर्वी भाग ऐतिहासिक रूप से अर्मेनिया तथा कुर्दिस्तान का अंग रहा है। यह ईलाका एशिया माइनर के नाम से भी जाना जाता हैं। सामान्य रूप से माना जाता है कि काला सागर के दक्षिण का भूभाग अनातोलिया है। .

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आनुवंशिकी

पैतृक गुणसूत्रों के पुनर्संयोजन के फलस्वरूप एक ही पीढी की संतानें भी भिन्न हो सकती हैं। आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत आनुवंशिकता (हेरेडिटी) तथा जीवों की विभिन्नताओं (वैरिएशन) का अध्ययन किया जाता है। आनुवंशिकता के अध्ययन में ग्रेगर जॉन मेंडेल की मूलभूत उपलब्धियों को आजकल आनुवंशिकी के अंतर्गत समाहित कर लिया गया है। प्रत्येक सजीव प्राणी का निर्माण मूल रूप से कोशिकाओं द्वारा ही हुआ होता है। इन कोशिकाओं में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं। इनकी संख्या प्रत्येक जाति (स्पीशीज) में निश्चित होती है। इन गुणसूत्रों के अंदर माला की मोतियों की भाँति कुछ डी एन ए की रासायनिक इकाइयाँ पाई जाती हैं जिन्हें जीन कहते हैं। ये जीन गुणसूत्र के लक्षणों अथवा गुणों के प्रकट होने, कार्य करने और अर्जित करने के लिए जिम्मेवार होते हैं। इस विज्ञान का मूल उद्देश्य आनुवंशिकता के ढंगों (पैटर्न) का अध्ययन करना है अर्थात्‌ संतति अपने जनकों से किस प्रकार मिलती जुलती अथवा भिन्न होती है। .

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