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आकूति

सूची आकूति

आकूति स्वयंभुव मनु और शतरूपा की तीन कन्याओं में से प्रथम कन्या थी। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ हुआ। आकूति के गर्भ से एक पुत्र तथा एक कन्या का जन्म हुआ। आकूति के पुत्र को स्वयंभुव मनु ने ले लिया। आकूति की कन्या का नाम दक्षिणा था। दक्षिणा के रूप में आकूति के गर्भ से स्वयं देवी लक्ष्मी अवतरित हुईं थीं। दक्षिणा के युवा होने पर उसका विवाह भगवान विष्णु से कर दिया गया। श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:हिन्दू धर्म.

6 संबंधों: दक्षिणा, रुचि प्रजापति, लक्ष्मी, शतरूपा, स्वयंभुव मनु, विष्णु

दक्षिणा

दक्षिणा, गुरु को सम्मानस्वरूप दी जानेवाली भेंट अथवा यज्ञ, श्राद्ध और धार्मिक कृत्यों के संबंध में दिए जानेवाले धन का बोधक है। .

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रुचि प्रजापति

रुचि प्रजापति को अन्य प्रजापतियों के समान ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र के रूप में रचा था। रुचि प्रजापति का विवाह स्वयंभुव मनु की प्रथम कन्या आकूति के साथ हुआ था। रुचि प्रजापति की पत्नी आकूति के गर्भ से एक पुत्र तथा एक कन्या का जन्म हुआ। रुचि प्रजापति के पुत्र को स्वयंभुव मनु ने ले लिया। रुचि प्रजापति की कन्या का नाम दक्षिणा था। दक्षिणा के रूप में आकूति के गर्भ से स्वयं देवी लक्ष्मी अवतरित हुईं थीं। दक्षिणा के युवा होने पर उसका विवाह भगवान विष्णु से कर दिया गया। श्रेणी:श्रीमद्भागवत.

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लक्ष्मी

लक्ष्मी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो भगवान विष्णु की पत्नी हैं और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता। स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है। यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी। पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। यों प्रचलन में तो 'लक्ष्मी' शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं। शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है। गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है। जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है। .

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शतरूपा

शतरूपा संसार की प्रथम स्त्री थी ऐसी हिंदू मान्यता है। इनका जन्म ब्रह्मा के वामांग से हुआ था (ब्रह्मांड. 2-1-57) तथा स्वायंभुव मनु की पत्नी थीं। सुखसागर के अनुसार सृष्टि की वृद्धि के लिये ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में बाँट लिया जिनके नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाये। इन्हें प्रियव्रत, उत्तानपाद आदि सात पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुईं। नरमानस पुत्रों के बाद ब्रह्मा ने अंगजा नाम की एक कन्या उत्पन्न की जिसके शतरूपा, सरस्वती आदि नाम भी थे। मत्स्य पुराण में लिखा है कि ब्रह्मा से इसे स्वायंभुव मनु, मारीच आदि सात पुत्र हुए (मत्स्य. 4-24-30)। हरिहरपुराण के अनुसार शतरूपा ने घोर तपस्या करके स्वायँभुव मनु को पति रूप में प्राप्त किया था और इनसे 'वीर' नामक एक पुत्र हुआ। मार्कण्डेयपुराण में शतरूपा के दो पुत्रों के अतिरिक्त ऋद्धि तथा प्रसूति नाम की दो कन्याओं का भी उल्लेख है। कहीं कहीं एक और तीसरी कन्या देवहूति का भी नाम मिलता है। शिव तथा वायुपुराणों में दो कन्याओं प्रसूति एवं आकूति का नाम है। वायुपुराण के अनुसार ब्रह्म शरीर के दो अंश हुए थे जिनमें से एक से शतरूपा हुई थीं। देवीभागवत आदि में शतरूपा की कथाएँ कुछ भिन्न दी हुई हैं। श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:हिन्दू धर्म.

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स्वयंभुव मनु

स्वयंभुव मनु संसार के प्रथम पुरुष थे ऐसी हिंदू मान्यता है। सुखसागर के अनुसार सृष्टि की वृद्धि के लिये ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में बाँट लिया जिनके नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाये। श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:हिन्दू धर्म.

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विष्णु

वैदिक समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं। हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है। न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। पुराणानुसार विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। कामदेव विष्णु जी का पुत्र था। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन शेषनाग के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित हैं। वह अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में पद्म (कमल), अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी),ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख (पाञ्चजन्य) और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं। शेष शय्या पर आसीन विष्णु, लक्ष्मी व ब्रह्मा के साथ, छंब पहाड़ी शैली के एक लघुचित्र में। .

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