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रक्ताधान

सूची रक्ताधान

रक्ताधान रक्त या रक्त-आधारित उत्पादों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के परिसंचरण तंत्र में स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है। कुछ स्थितियों में, जैसे कि चोट लगने के कारण अत्यधिक रक्तस्राव होने पर, रक्ताधान जीवन-रक्षी हो सकता है, या शल्य-चिकित्सा के दौरान होने वाले रक्त की हानि की आपूर्ति करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। रक्ताधान का उपयोग रक्त संबंधी बीमारी के द्वारा उत्पन्न गंभीर रक्तहीनता या बिम्बाणु-अल्पता (रक्त में प्लेटलेटों की संख्या में कमी) का उपचार करने के लिए भी किया जा सकता है। अधिरक्तस्राव (हीमोफ़ीलिया) या अर्द्धचन्द्राकार लाल रक्तकोशिका संबंधी बीमारी से प्रभावित व्यक्ति के लिए बहुधा रक्ताधान की आवश्यकता हो सकती है। प्रारंभिक रक्ताधानों में संपूर्ण रक्त का उपयोग होता था, लेकिन आधुनिक चिकित्सा प्रणाली आम तौर पर केवल रक्त के अवयवों का उपयोग करती हैं। .

7 संबंधों: रक्त समूह, रक्त के प्रकार, रक्तस्राव, रक्ताल्पता, शिराकर्तन, कृत्रिम रक्त, अन्तःशिरा चिकित्सा

रक्त समूह

रक्त प्रकार (या रक्त समूह) भाग में, निर्धारित होता है, ABO रक्त समूह प्रतिजानो से जो लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद होता है। रक्त समूह या रक्त प्रकार, रक्त का एक वर्गीकरण है जो रक्त की लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर पर पाये जाने वाले पदार्थ मे वंशानुगत प्रतिजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर आधारित होता है। रक्त प्रणाली के अनुसार यह प्रतिजन प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोप्रोटीन, या ग्लाइकोलिपिड हो सकते हैं और इनमे से कुछ प्रतिजन अन्य प्रकारों जैसे कि ऊतकों और कोशिकाओं की सतह पर भी उपस्थित हो सकते हैं। अनेक लाल रक्त कोशिका सतह प्रतिजन, जो कि एक ही एलील या बहुत नजदीकी रूप से जुड़े जीन से उत्पन्न हुए हैं, सामूहिक रूप से रक्त समूह प्रणाली की रचना करते हैं। रक्त प्रकार वंशानुगत रूप से प्राप्त होते हैं और माता व पिता दोनों के योगदान का प्रतिनिधित्व करते हैं। अंतरराष्ट्रीय रक्ताधान संस्था(ISBT).

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रक्त के प्रकार

रक्त प्रकार (जो रक्त समूह भी कहलाता है), लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) की सतह पर उपस्थित आनुवंशिक प्रतिजनी पदार्थों की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर आधारित रक्त का वर्गीकरण है। ये प्रतिजन रक्त समूह तंत्र के आधार पर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोप्रोटीन, या ग्लाइकोलिपिड होते हैं और कुछ प्रतिजन अन्य प्रकार के ऊतक की कोशिकाओं पर भी मौजूद हो सकते हैं इनमें से अनेक लाल रक्त कोशिकाओं की सतह के प्रतिजन, जो एक एलील (या बहुत नजदीकी से जुड़े हुआ जीन) से व्युत्पन्न होते हैं, सामूहिक रूप से एक रक्त समूह तंत्र बनाते हैं। रक्त के प्रकार वंशागत रूप से प्राप्त होते हैं और माता व पिता दोनों के योगदान का प्रतिनिधित्व करते हैं।अंतर्राष्ट्रीय रक्ताधन सोसाइटी (ISBT) के द्वारा अब कुल 30 मानव रक्त समूह तंत्रों की पहचान की जा चुकी है। बहुत गर्भवती महिलाओं में उपस्थित भ्रूण का रक्त समूह उनके अपने रक्त समूह से अलग होता है और मां भ्रूणीय लाल रक्त कोशिकाओं के विरुद्ध प्रतिरक्षियों का निर्माण कर सकती है। कभी कभी यह मातृ प्रतिरक्षी IgG होते हैं। यह एक छोटा इम्यूनोग्लोब्युलिन है, जो अपरा (प्लासेन्टा) को पार करके भ्रूण में चला जाता है और भ्रूणीय लाल रक्त कोशिकाओं के रक्त विघटन (हीमोलाइसिस) का कारण बन सकता है। जिसके कारण नवजात शिशु को रक्त अपघटन रोग हो जाता है, यहभ्रूणीय रक्ताल्पता की एक बीमारी है जो सौम्य से गंभीर हो सकती है। .

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रक्तस्राव

अंगुली से रक्तस्राव रक्तस्राव (Bleeding या Haemorrhage) शब्द का अर्थ है रुधिरवाहिकाओं से रक्त का बाहर निकलना। जब तक रुधिरवाहिकाओं में दरार, या छिद्र न हो, तब तक रक्तस्राव का होना संभव नहीं है। चोट या रोग के कारण ही रुधिरवाहिकाओं में दरार या छिद्र होते हैं। चोट लगने पर तत्काल रक्तस्राव होना प्राथमिक रक्तस्राव कहलाता है और चोट लगने के कुछ काल पश्चात् रक्तस्राव होना गौण रक्तस्राव कहलाता है। यदि रक्त धमनी से बाहर निकलता है, तो यह धमनीय रक्तस्राव कहलाता है। इस रक्तस्राव का रंग चमकीला लाल होता है और यह हृदय के स्पंदन के समकालिक होता है। शिरा से बाहर निकलनेवाले रक्त का रंग कालिमा लिए लाल होता है और घाव से बहता है। केशिका (कैपिलरीज) से स्रावित होनेवाले रक्तस्राव का रंग उपर्युक्त दोनों स्रावों के रंग के बीच का होता है और त्वचा पर केवल छोटा सा लाल धब्बा पड़ जाता है। वमन, मूत्र तथा थूक में मिला हुआ रक्त निकल सकता है, या नाक से नक्सीर फूटने के कारण रक्तस्राव होता है। आमाशय या पक्वाशय में व्रण हो जाने पर रक्तस्राव होने लगता है। स्वयं रुधिरवाहिकाओं के रुग्ण होने पर एवं उच्च रक्तचाप के कारण धमनियों में दरार पड़ जाती है और रक्तस्राव होने लगता है। मस्तिष्क के ऊतकों से रक्तस्राव होने पर रक्तमूर्च्छा (apoplexy) हो जाती है। .

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रक्ताल्पता

रक्ताल्पता (रक्त+अल्पता), का साधारण मतलब रक्त (खून) की कमी है। यह लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाले एक पदार्थ (कण) रूधिर वर्णिका यानि हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होती है। हीमोग्लोबिन के अणु में अनचाहे परिवर्तन आने से भी रक्ताल्पता के लक्षण प्रकट होते हैं। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर मे ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है और इसकी संख्या मे कमी आने से शरीर मे ऑक्सीजन की आपूर्ति मे भी कमी आती है जिसके कारण व्यक्ति थकान और कमजोरी महसूस कर सकता है। .

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शिराकर्तन

शिराकर्तन (.

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कृत्रिम रक्त

कृत्रिम रक्त (artificial blood) या रक्त स्थापन्न (blood substitute) उन पदार्थों को कहते हैं जो रक्त के कुछ कार्यों को पूरा करते हैं। कृत्रिम रक्त का उपयोग रक्ताधान में किया जाता है। श्रेणी:रक्त.

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अन्तःशिरा चिकित्सा

अन्तःशिरा विधि द्वारा चिकित्सा अन्तःशिरा चिकित्सा (Intravenous therapy) का अर्थ है, द्रव पदार्थों को सीधे शिराओं में प्रविष्ट कराकर चिकित्सा करना। इन्ट्रावेनस (IV) का अर्थ है- शिरा के भीतर। इसे सामान्यतः 'ड्रिप' भी कहते हैं। इसका महत्व इसलिये हैं कि किसी तरल या औषधि को शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाने के लिये उसे शिराओं में डाल देना सबसे तेज और कारगर रास्ता है। उदाहरण के लिये अन्तःशिरा चिकित्सा का उपयोग निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) होने पर शरीर में शीघातिशीघ्र तरल भेजने के लिये, शरीर में विद्युत-अपघट्य की कमी को पूरा करने के लिये, दवाएँ देने के लिये और रक्ताधान के लिये किया जाता है। .

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