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महात्मा गांधी

सूची महात्मा गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। .

532 संबंधों: चन्द्रशेखर आजाद, चम्पारण सत्याग्रह, चार्ल्स ब्रेडलॉफ, चित्तरंजन दास, चंपारण, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, चौधरी चरण सिंह, चौधरी ब्रह्म प्रकाश, चौधरी मुख्तार सिंह, चौरी चौरा, चौरी चौरा कांड, चीनी दर्शन, एनी बेसेन्ट, एम॰ एस॰ सुब्बुलक्ष्मी, एल के झा, एस पी महादेवन, एकनाथ रानडे, एकी आन्दोलन, झण्डा गीत, झारखण्ड, डेविड अर्नाल्ड, डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर (फ़िल्म), तय्यब जी अब्बास, ताज कोरोमंडल, तिब्बिया कॉलेज, तिरुवनन्तपुरम, तिलक महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, त्रिपुरा विश्वविद्यालय, त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती, तेज बहादुर सप्रू, तीनकठिया खेती, द इम्पीरियल, नई दिल्ली, दण्डपाणि जयकान्तन, दयाल चंद्र सोनी, दरभंगा राज, दर्शनशास्त्र, दलित, दाण्डी आन्दोलन, दादरा और नगर हवेली, दादा धर्माधिकारी, दामोदर स्वरूप 'विद्रोही', दांडी, नवसारी, दिल्ली, दिल्ली के दर्शनीय स्थल, दिल्ली की संस्कृति, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, दुधवा लाइव, द्वितीय गोलमेज सम्मेलन, दौलत सिंह कोठारी, देवदास गांधी, ..., देवनागरी, देवर्षि रमानाथ शास्त्री, दीनानाथ गोपाल तेंदुलकर, धौला कुआँ, धोंडो केशव कर्वे, नथुराम विनायक गोडसे, नरहरि 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चन्द्रशेखर आजाद

पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' (२३ जुलाई १९०६ - २७ फ़रवरी १९३१) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् १९२२ में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् १९२७ में 'बिस्मिल' के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया। .

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चम्पारण सत्याग्रह

गांधीजी १९१७ मेंगांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् १९१७-१८ में एक सत्याग्रह हुआ। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। .

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चार्ल्स ब्रेडलॉफ

चार्ल्स ब्रेडलॉफ (26 सितम्बर 1833 - 30 जनवरी 1891) एक राजनैतिक कार्यकर्ता एवं उन्नीसवीं शताब्दी इंग्लैंड के एक बहुचर्चित नास्तिक थे। उन्होंने 1866 में नेशनल सेक्युलर सोसाइटी की स्थापना की.

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चित्तरंजन दास

देशबंधु चित्तरंजन दास देशबंधु चित्तरंजनदास (1870-1925 ई.) सुप्रसिद्ध भारतीय नेता, राजनीतिज्ञ, वकील, कवि तथा पत्रकार थे। उनके पिता का नाम श्री भुवनमोहन दास था, जो सॉलीसिटर थे और बँगला में कविता भी करते थे। सन्‌ 1890 ई. में बी.ए. पास करने के बाद चितरंजन दास आइ.सी.एस्‌.

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चंपारण

चंपारण बिहार प्रान्त का एक जिला था। अब पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण नाम के दो जिले हैं। भारत और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। महात्मा गाँधी ने अपनी मशाल यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से जलायी थी। बेतियापश्चिमी चंपारण का जिला मुख्यालय है और मोतिहारी पूर्वी चम्पारण का। चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है प्राचीन ऐतिहासिक स्थल केसरिया। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। .

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चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (तमिल: சக்ரவர்தி ராஜகோபாலாச்சாரி) (दिसम्बर १०, १८७८ - दिसम्बर २५, १९७२), राजाजी नाम से भी जाने जाते हैं। वे वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे स्वतन्त्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। १० अप्रैल १९५२ से १३ अप्रैल १९५४ तक वे मद्रास प्रांत के मुख्यमंत्री रहे। वे दक्षिण भारत के कांग्रेस के प्रमुख नेता थे, किन्तु बाद में वे कांग्रेस के प्रखर विरोधी बन गए तथा स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की। वे गांधीजी के समधी थे। (राजाजी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था।) उन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य किया। .

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चौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह (२३ दिसम्बर १९०२ - २९ मई १९८७) भारत के पांचवें प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने यह पद २८ जुलाई १९७९ से १४ जनवरी १९८० तक सम्भाला। चौधरी चरण सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा में जिया। .

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चौधरी ब्रह्म प्रकाश

चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव (1918–1993) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री थे। वे लोकसभा के सदस्य भी रहे। १९४० में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन में उन्होने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में 'भूमिगत नेताओं' में वे भी थे। स्वतंत्रता संग्राम के समय वे कई बार जेल गये। चौधरी भ्रह्म प्रकाश पश्चिमोत्तर दिल्ली के शकूरपुर से थे। 'शेर–ए-दिल्ली' एवं 'मुगले आज़म' के नाम से मशहूर चौधरी ब्रह्म प्रकश 1952 से 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। वह केवल 33 साल की उम्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने और उस समय के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। उन्हें भारत के प्रथम निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने का भी गौरव प्राप्त है।बाद में वे सांसद बने तथा केन्द्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में उल्लेखनीय कार्य किये। 1977 में उन्होंने पिछड़ी, अनुसूचित जातियों व अल्पसंख्यकों का एक राष्ट्रीय संघ बनाया। राष्ट्र के प्रति उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उनके सम्मान में 11 अगस्त 2001 स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। .

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चौधरी मुख्तार सिंह

चौधरी मुख्तार सिंह भारत के एक देशभक्त हिन्दीसेवी एवं शिक्षाविद थे। 1946 में वायसराय कौंसल के सदस्य चौधरी मुख्तार सिंह ने जापान और जर्मनी की यात्रा के बाद यह अनुभव किया था कि यदि भारत को कम समय में आर्थिक दृष्टि से उन्नत होना है तो जन भाषा में जन वैज्ञानिक बनाने होगे। उन्होने मेरठ के पास एक छोटे से कस्बे में "विज्ञान कला भवन" नामक संस्था की स्थापना की। हिन्दी मिडिल पास छात्रों को उसमें प्रवेश दिया। और हिन्दी के माध्यम से मात्र पांच वर्षों में उन्हें एमएससी के कोर्स पूरे कराकर "विज्ञान विशारद" की उपाधि से विभूषित किया। इस प्रकार के प्रयोग से वे देश की सरकार को दिशा देना चाहते थे कि जापान की भांति भारत का हर घर लघु उद्योग केन्द्र हो सकता है। दुर्भग्यवश दो स्नातकटोलियों के निकलने के बाद ही चोधरी साहब की मृत्यु हो गई और प्रदेश सरकार ने "विज्ञान कलाभवन" को इंटर कॉलेज बना दिया। वहां तैयार किए गए ग्रन्थों के प्रति भी कोई मोह सरकार का नहीं था। पर इस प्रयोग ने यह भी सिद्ध तो किया ही (अगर यह सिद्ध करने की जरूरत थी तो) कि जनभाषा ही आर्थिक उन्नति का रहस्य है। जनविज्ञान, विकास की आत्मा है। जनभाषा ही जनतंत्र की मूल आत्मा को प्रतिबिनि्बत कर सकती है, यह बात गांधी जी ही नहीं और नेता भी जानते थे। तभी तो राजाजी कहते थे, 'हिन्दी का प्रश्न आजादी के प्रश्न के जुड़ा है'। और तभी तो आजाद हिन्द फौज की भाषा हिन्दी थी। तभी तो युवको को अंग्रेजी स्कूलों से हटा कर उनके अभिभावको ने हिन्दी एवं राष्ट्रीय विद्यालयों में भेजा था। लाल बहादुर शास्त्री आदि देशरत्न ऐसे ही विद्यालयों की उपज थे। हिन्दी परिवर्तन की भाषा थी, क्रान्ति का उद्बोधन थी उन दिनों। .

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चौरी चौरा

चौरी चौरा उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने बिट्रिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप गांधीजी ने कहा था कि हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था। चौरी चौरा की इस घटना से महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन को आघात पहुँचा, जिसके कारण उन्हें असहयोग आन्दोलन को स्थागित करना पड़ा, जो बारदोली, गुजरात से शुरू किया जाने वाला था। .

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चौरी चौरा कांड

चौरी-चौरा का शहीद स्मारक चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है जहाँ 5 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप गांधीजी ने कहा था कि हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था। चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुक़दमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और उन्हें बचा ले जाना उनकी एक बड़ी सफलता थी। .

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चीनी दर्शन

Yin Yang symbol and ''Ba gua'' paved in a clearing outside of Nanning City, Guangxi province, China's. चीनी भाषा में लिखे हुए पारम्परिक चीनी विचार को चीनी दर्शन कहा जाता है। इसका इतिहास कई हजार वर्षों पुराना है। .

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एनी बेसेन्ट

डॉ एनी बेसेन्ट (१ अक्टूबर १८४७ - २० सितम्बर १९३३) अग्रणी आध्यात्मिक, थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला थीं। सन १९१७ में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा भी बनीं। .

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एम॰ एस॰ सुब्बुलक्ष्मी

श्रीमती मदुरै षण्मुखवडिवु सुब्बुलक्ष्मी (16 सितंबर, 1916-2004) कर्णाटक संगीत की मशहूर संगीतकार थीं। आप शास्तीय संगीत की दुनिया में एम.

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एल के झा

लक्ष्मी कांत झा (22 नवम्बर 1913-16 जनवरी 1988) (जन्म: दरभंगा,बिहार ) जिन्हें एल के झा के नाम से जाना जाता था, 1 जुलाई 1967 से लेकर 3 मई 1970 तक भारतीय रिज़र्व बैंक के आठवें गवर्नर थे। भारतीय सिविल सेवा के 1937 बैच के सदस्य झा ने आपूर्ति विभाग ने उप सचिव का पद हासिल किया। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में उनकी नियुक्ति पहले उन्होंने प्रधानमंत्री के सचिव के रूप में सेवा की। उनके कार्यकाल में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में 2 अक्टूबर 1969 को 2, 5, 10 और 100 के मूल्यवर्ग के भारतीय नोट, जारी किये गए थे। इन नोटों पर उनके हस्ताक्षर हैं, जबकि इसके बाद वाली नोटों की श्रृंखला पर बी एन आदरकार के हस्ताक्षर हैं। .

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एस पी महादेवन

जनरल एसपी महादेवन अति विशिष्ट सेवा पदक प्राप्त,को सेना के अति प्रभावी अधिकारी के रूप में जाना जाता था जिन्होंने अगस्त १९४६ में कलकत्ता दंगों के दौरान महात्मा गांधी की रक्षा की थी और बाद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन ने तमिलनाडु सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया था। मेजर जनरल एस पी महादेवन का दिनाक ६ अप्रैल २०१८ को निधन हो गया। वे ९२ वर्ष के थे। महादेवन को १९४६ में तत्कालीन बेंगलुरु स्थित अधिकारियों प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए) से भारतीय सेना में नियुक्त किया गया था। .

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एकनाथ रानडे

एकनाथ रानाडे एकनाथ रानडे (१९ नवम्बर १९१४ - २२ अगस्त १९८०) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक समर्पित कार्यकर्ता थे जिन्होने सन् १९२६ से ही संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वाह किया। कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द स्मारक शिला के निर्माण के लिये आन्दोलन करने एवं सफलतापूर्वक इस स्मारक का निर्माण करने के कारण प्रसिद्ध हैं। .

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एकी आन्दोलन

1917 ई. में भीलों व गरासियों ने मिलकर दमनकारी नीति व बेगार के विरुद्ध महाराणा को पत्र लिखा। इसका कोई परिणाम नहीं निकालता देखकर 1921 में बिजौलिया के किसान आन्दोलन से प्रभावित होकर भीलों ने पुनः महाराणा को शिकायत की। इन सभी अहिंसात्मक प्रयासों को जब कोई परिणाम नहीं निकला तो भोमट के खालसा क्षेत्र के भीलों ने लगाने व बेगार चुकाने से इनकार कर दिया। 1921 ई में मोतीलाल तेजावत ने इस आन्दोलन को नेतृतव प्रदान किया। इस आन्दोलन को जनजातियों में राजनितिक जागरण का प्रतिक माना जाता है। यह आन्दोलन भोमट क्षेत्र के अतिरिक्त सिरोही व गुजरात राज्यों में भी फैला।.

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झण्डा गीत

भारत के झण्डा गीत की रचना श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' ने की थी। 7 पद वाले इस मूल गीत से बाद में कांग्रेस नें तीन पद (पद संख्या 1, 6 व 7) को संशोधित करके ‘झण्डागीत’ के रूप में मान्यता दी। यह गीत न केवल राष्ट्रीय गीत घोषित हुआ बल्कि अनेक नौजवानों और नवयुवतियों के लिये देश पर मर मिटने हेतु प्रेरणा का स्रोत भी बना। .

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झारखण्ड

झारखण्ड यानी 'झार' या 'झाड़' जो स्थानीय रूप में वन का पर्याय है और 'खण्ड' यानी टुकड़े से मिलकर बना है। अपने नाम के अनुरुप यह मूलतः एक वन प्रदेश है जो झारखंड आंदोलन के फलस्वरूप सृजित हुआ। प्रचुर मात्रा में खनिज की उपलबध्ता के कारण इसे भारत का 'रूर' भी कहा जाता है जो जर्मनी में खनिज-प्रदेश के नाम से विख्यात है। 1930 के आसपास गठित आदिवासी महासभा ने जयपाल सिंह मुंडा की अगुआई में अलग ‘झारखंड’ का सपना देखा.

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डेविड अर्नाल्ड

डेविड अर्नाल्ड एक इतिहासकार है और वर्ष २००६ के बाद से वारविक विश्वविद्यालय में एशियाई और विश्व के इतिहास के प्राध्यापक रहे है। इसके पहले लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएण्टल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ में दक्षिण एशियाई इतिहास के प्राध्यापक थे। यहाँ अर्नाल्ड ने कई वर्षों तक महात्मा गांधी और गांधीवाद पर एक स्नातक पाठ्यक्रम पढ़ाया। १९७० के दशक में सबाल्टर्न अध्ययन समूह के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वर्ष १९९३ में रंजीत गुहा ने उन्हे "ऍन अस्सोर्टमेंट ऑफ़ मार्जिनलाइस्ड अकॅडेमिक्स " कहकर याद किया। वर्ष १९९४ में डेविड हार्डीमैन के साथ एक प्रकाशन के लिये कुल ७ लेखो का योगदान देते हुए आठवें विस्तार-क्षेत्र को सह संपादित किया। उपनिवेशी दवा के क्षेत्र में भी पूर्व योगदानकर्ताओं मे एक है। "कोलोनाइज़िग द बॉडी " इनकी एक प्रभावशाली रचना है। .

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डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर (फ़िल्म)

डॉ.

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तय्यब जी अब्बास

तय्यब जी अब्बास बंबई के प्रसिद्ध तय्यब जी खानदान में पैदा हुए थे। पहले बड़ौदा में जज रहे, फिर रिटायर होने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। सन् १९२१ ई० में दाढ़वार फायरिग को जाँच के लिये कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा नियुक्त कमेटी के आप अध्यक्ष थे। अप्रैल, १९३० ई० में जो मशहूर डांडीमार्च गांधी जी ने किया था ओर नमक का कानून तोड़ा था, उसमें अब्बास तय्यब जी भी उनके साथ थे और यह तय हुआ कि गाँधी जी की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस की बागडोर आप सँभालेंगें। आपका समूचा परिवार भारतीय राष्ट्र का सेवक रहा है। भारत के राष्ट्रीय मुस्लिम घरानों में तय्यब जी का घराना अग्रणी रहा है। श्रेणी:भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस श्रेणी:भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम.

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ताज कोरोमंडल

ताज कोरोमंडल चेन्नई, तमिल नाडु, भारत मे स्थित एक पाँच सितारा होटेल है। कोरोमंडल तट के नाम पर बना हुआ ऑर हाकाप तथा आई.

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तिब्बिया कॉलेज

तिब्बिया कॉलेज, जिसे आयुर्वेदिक एवं यूनानी तिब्बिया कॉलेज के नाम से भी जाना जाता है, एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है जो भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है। 19 वी सदी में स्थापित यह कॉलेज आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धति के अध्ययन की सुविधा प्रदान करता है। इस कॉलेज का उद्घाटन महात्मा गाँधी ने सन 1921 में किया था। यह कॉलेज आयुर्वेदिक आयुर्विज्ञान और शल्य चिकित्सा और यूनानी आयुर्विज्ञान और शल्य चिकित्सा में स्नातक उपाधि प्रदान करता है। 15 फ़रवरी 2008 को एक 60 बिस्तर वाला जच्चा-बच्चा खंड कॉलेज में शुरु किया गया है, साथ ही दिल्ली सरकार नें कॉलेज के आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा में योगदान के देखते हुए इसे एक विश्वविद्यालय के रूप में विकसित करने की घोषणा की है। .

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तिरुवनन्तपुरम

തിരുവനന്തപുരം --> तिरुवनन्तपुरम (मलयालम - തിരുവനന്തപുരം) या त्रिवेन्द्रम केरल प्रान्त की राजधानी है। यह नगर तिरुवनन्तपुरम जिले का मुख्यालय भी है। केरल की राजनीति के अलावा शैक्षणिक व्यवस्था का केन्द्र भी यही है। कई शैक्षणिक संस्थानों में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र कुछ प्रसिद्ध नामों में से हैं। भारत की मुख्य भूमि के सुदूर दक्षिणी पश्चिमी तट पर बसे इस नगर को महात्मा गांधी ने भारत का सदाबहार नगर की संज्ञा दी थी। .

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तिलक महाराष्ट्र विश्वविद्यालय

तिलक महाराष्ट्र विश्वविद्यालय (टिळक महाराष्ट्र विद्यापीठ) पुणे में स्थित एक मानित विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना १९२१ में महात्मा गांधी के सलाह पर की गयी थी और इसका नामकरण महान स्वतन्त्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के नाम पर की गयी थी। .

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त्रिपुरा विश्वविद्यालय

त्रिपुरा विश्वविद्यालय (Tripura University) भारत के त्रिपुरा राज्य में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना २ अक्टूबर १९८७ को हुई थी। यह अगरतला से १० कि॰मी॰ दक्षिण में सूर्यमणिनगर में है। विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य तेजी से हुआ तथा राज्य विधानसभा ने सन १९८७ में त्रिपुरा विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया। २ अक्टूबर महात्मा गांधी की जन्म पुण्यतिथि पर त्रिपुरा विश्वविद्यालय औपचारिक रूप से स्थापित हुआ। २००६ के संसद अधिनियम द्वारा २ जुलाई २००७ को विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय में परिवर्तित कर दिया गया। वर्तमान में त्रिपुरा विश्वविद्यालय ३२ विषयों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराता है। इसके अंतर्गत विभिन्न विभाग, निदेशालय और केन्द्र हैं जो जिनमें ३८ स्नातक पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाते हैं। राज्य में सभी २४ सामान्य और तकनीकी कॉलेज त्रिपुरा विश्वविद्यालय से संबद्ध है जो अब राज्य में उच्च शिक्षा के मुख्य केन्द्र हैं तथा सभी क्षेत्रों में इसे उच्च स्थान प्राप्त है। .

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त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती

त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती (1888 - 1 अगस्त 1970) भारत के क्रान्तिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत को स्वतंत्र कराने के लिए उन्होने अपने जीवन के श्रेष्ठतम तीस वर्ष जेल की काल कोठरियों में बिताये। उनका संघर्षशील व्यक्तित्व, अन्याय, अनीति से जीवनपर्यन्त जूझने की प्रेरक कहानी है। त्रैलोक्य चक्रवर्ती को 'ढाका षडयंत्र केस' तथा 'बारीसाल षडयंत्र केस' का अभियुक्त बनाया गया था। आप 'महाराज' के नाम से प्रसिद्ध थे। .

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तेज बहादुर सप्रू

तेज बहादुर सप्रू मोटे अक्षरसर तेज बहादुर सप्रू (8 दिसम्बर 1875 – 20 जनवरी 1949) प्रसिद्ध वकील, राजनेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले की उदारवादी नीतियों को आगे बढ़ाया और आजाद हिन्द फौज के सेनानियों का मुकदमा लड़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। .

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तीनकठिया खेती

तीनकठिया खेती अंग्रेज मालिकों द्वारा बिहार के चंपारण जिले के रैयतों (किसानों) पर नील की खेती के लिए जबरन लागू तीन तरीकों मे एक था। खेती का अन्य दो तरीका 'कुरतौली' और 'कुश्की' कहलाता था। तीनकठिया खेती में प्रति बीघा (२० कट्ठा) तीन कट्ठा जोत पर नील की खेती करना अनिवार्य बनाया गया था। 1860 के आसपास नीलहे फैक्ट्री मालिक द्वारा नील की खेती के लिए ५ कट्ठा खेत तय किया गया था जो 1867 तक तीन कट्ठा या तीनकठिया तरीके में बदल गया। इस प्रकार फसल के पूर्व में दिए गए रकम के बदले फैक्ट्री मालिक रैयतों के जमीन के अनुपात में खेती कराने को बाध्य करते थे। अप्रैल १९१७ में राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर महात्मा गाँधी के आगमन और अंग्रेज अधिकारियों के साथ लगातार बातचीत और विरोध के बाद यह तरीका खत्म हुआ। भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में गाँधीजी के सत्याग्रह का यह पहला प्रयोग था।.

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द इम्पीरियल, नई दिल्ली

दि इम्पीरियल, नयी दिल्ली में बना हुआ एक विलासिता वाला होटल है। यह क्वीन्सवे में पड़ता है जिसे कि आज कल जनपथ कहा जाने लगा है तथा यह दिल्ली में कनाट प्लेस के निकट ही पड़ता है। तथ्यों की मानें तो यह नयी दिल्ली का पहला ग्रैंड विलासिता वाला होटल है। इस होटल में एक बेजोड़ स्वतंत्र कलाकृतियों का संग्रह भी है। .

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दण्डपाणि जयकान्तन

दण्डपाणि जयकान्तन (जन्म: २४ अप्रैल १९३४, कड्डलूर, तमिलनाडु) एक बहुमुखी तमिल लेखक हैं -- केवल लघु-कथाकार और उपन्यासकार ही नहीं (जिनके कारण उन्हें आज के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में माना जाता है) परन्तु निबन्धकार, पत्रकार, निर्देशक और आलोचक भी हैं। विचित्र बात यह है कि उनकी स्कूल की पढ़ाई कुछ पाँच साल ही रही! घर से भाग कर १२ साल के जयकान्तन अपने चाचा के यहाँ पहुँचे जिनसे उन्होंने कम्युनिज़्म (मार्कसीय समाजवाद) के बारे में सीखा। बाद में चेन्नई (जिसका नाम उस समय मद्रास था) आकर जयकान्तन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की पत्रिका जनशक्ति में काम करने लगे। दिन में प्रेस में काम करते और शाम को सड़कों पर पत्रिका बेचते। १९५० के दशक की शुरुआत से ही वह लिखते आ रहे हैं और जल्दी ही तमिल के जाने-माने लेखकों में गिने जाने लगे। हालाँकि उनका नज़रिया वाम पक्षीय ही रहा। वह खुद पार्टी के सदस्य न रहे और काँग्रेस पार्टी में भर्ती हो गए। ४० उपन्यासों के अलावा उन्होंने कई-कई लघुकथाएँ, आत्मकथा (दो खंडों में) और रोमेन रोलांड द्वारा फ़्रेन्च में रची गयी गांधी जी की जीवनी का तमिल अनुवाद भी किया है। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास शिल नेरंगळिल शिल मणितर्कळ के लिये उन्हें सन् १९७२ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया। "जटिल मानव स्वभाव के गहरे और संवेदनशील समझ" के हेतु, उनकी कृतियों को "तमिल साहित्य की उच्च परम्पराओं की अभिवृद्दि" के लिए २००२ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दयाल चंद्र सोनी

दयाल चंद्र सोनी (1919-2008) वरिष्ठ सर्वोदयी, गांधीवादी एवं बुनियादी शिक्षा के मूल विचारक थे। इनका मानना था कि शिक्षा का प्रारंभ मातृभाषा में होना चाहिये। इन्होंने स्थानीय मेवाड़ी बोली में भी काफ़ी काम किया था और गीता का भी गंभीर मंथन किया था। गांधी जी की विचारधारा पर आधारित बुनियादी शिक्षा प्रदान करने के लिये विद्याभवन के संस्थापक मोहनसिंह मेहता द्वारा स्थापित विद्याभवन बेसिक स्कूल के सोनी प्रथम प्रधानाध्यापक नियुक्त होकर सन् 1941 से 1955 तक कार्यरत रहे। सोनी ने बुनियादी शिक्षा के क्षैत्र में आधारभूत कार्य किया। प्रौढ शिक्षा क्षेत्र में इनके उल्लेखनीय कार्य को देश भर में सराहा गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें 1992 में मदन मोहन मालवीय पुरस्कार व भारतीय प्रौढ शिक्षा संघ नई दिली ने सन 2002 में टैगोर पुरस्कार से सम्मानित किया। इनकी 30 से अधिक पुस्तकें व 300 से अधिक लेख विभिन्न पत्रों में प्रकाशित हुई। इनकी स्मृति में उदयपुर में ‘श्री दयाल चंद्र सोनी स्मृति ट्रस्ट’ स्थापित है। .

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दरभंगा राज

दरभंगा राज बिहार के मिथिला क्षेत्र में लगभग 6,200 किलोमीटर के दायरे में था। इसका मुख्यालय दरभंगा शहर था। इस राज की स्थापना मैथिल ब्राह्मण जमींदारों ने 16वीं सदी की शुरुआत में की थी। ब्रिटिश राज के दौरान तत्कालीन बंगाल के 18 सर्किल के 4,495 गांव दरभंगा नरेश के शासन में थे। राज के शासन-प्रशासन को देखने के लिए लगभग 7,500 अधिकारी बहाल थे। भारत के रजवाड़ों में दरभंगा राज का अपना खास ही स्थान रहा है। दरभंगा-महाराज खण्डवाल कुल के थे जिसके शासन-संस्थापक महेश ठाकुर थे। उनकी अपनी विद्वता, उनके शिष्य रघुनन्दन की विद्वता तथा महाराजा मानसिंह के सहयोग से अकबर द्वारा उन्हें राज्य की प्राप्ति हुई थी। दरभंगा दुर्ग का प्रवेश-द्वार 1.महेश ठाकुर - 1556-1569 ई. तक। इनकी राजधानी वर्तमान मधुबनी जिले के भउर (भौर) ग्राम में थी, जो मधुबनी से करीब 10 मील पूरब लोहट चीनी मिल के पास है। 2.गोपाल ठाकुर - 1569-1581 तक। इनके काशी-वास ले लेने के कारण इनके अनुज परमानन्द ठाकुर गद्दी पर बैठे। 3.परमानन्द ठाकुर - (इनके पश्चात इनके सौतेले भाई शुभंकर ठाकुर सिंहासन पर बैठे।) 4.शुभंकर ठाकुर - (इन्होंने अपने नाम पर दरभंगा के निकट शुभंकरपुर नामक ग्राम बसाया।) इन्होंने अपनी राजधानी को मधुबनी के निकट भउआरा (भौआरा) में स्थानान्तरित किया। 5.पुरुषोत्तम ठाकुर - (शुभंकर ठाकुर के पुत्र) - 1617-1641 तक। 6.सुन्दर ठाकुर (शुभंकर ठाकुर के सातवें पुत्र) - 1641-1668 तक। 7.महिनाथ ठाकुर - 1668-1690 तक। ये पराक्रमी योद्धा थे। इन्होंने मिथिला की प्राचीन राजधानी सिमराओं परगने के अधीश्वर सुगाओं-नरेश गजसिंह पर आक्रमण कर हराया था। 8.नरपति ठाकुर (महिनाथ ठाकुर के भाई) - 1690-1700 तक। 9.राजा राघव सिंह - 1700-1739 तक। (इन्होंने 'सिंह' की उपाधि धारण की।) इन्होंने अपने प्रिय खवास वीरू कुर्मी को कोशी अंचल की व्यवस्था सौंप दी थी। शासन-मद में उसने अपने इस महाराज के प्रति ही विद्रोह कर दिया। महाराज ने वीरतापूर्वक विद्रोह का शमन किया तथा नेपाल तराई के पँचमहाल परगने के उपद्रवी राजा भूपसिंह को भी रण में मार डाला। इनके ही कुल के एक कुमार एकनाथ ठाकुर के द्वेषवश उभाड़ने से बंगाल-बिहार के नवाब अलीवर्दी खाँ इन्हें सपरिवार बन्दी बनाकर पटना ले गया तथा बाद में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को कर निर्धारित कर मुक्त कर दिया। माना गया है कि इसी कारण मिथिला में यह तिथि पर्व-तिथि बन गयी और इस तिथि को कलंकित होने के बावजूद चन्द्रमा की पूजा होने लगी। मिथिला के अतिरिक्त भारत में अन्यत्र कहीं चौठ-चन्द्र नहीं मनाया जाता है। यदि कहीं है तो मिथिलावासी ही वहाँ रहने के कारण मनाते हैं। 10.राजा विसुन(विष्णु) सिंह - 1739-1743 तक। 11.राजा नरेन्द्र सिंह (राघव सिंह के द्वितीय पुत्र) - 1743-1770 तक। इनके द्वारा निश्चित समय पर राजस्व नहीं चुकाने के कारण अलीवर्दी खाँ ने पहले पटना के सूबेदार रामनारायण से आक्रमण करवाया। यह युद्ध रामपट्टी से चलकर गंगदुआर घाट होते हुए झंझारपुर के पास कंदर्पी घाट के पास हुआ था। बाद में नवाब की सेना ने भी आक्रमण किया। तब नरहण राज्य के द्रोणवार ब्राह्मण-वंशज राजा अजित नारायण ने महाराजा का साथ दिया था तथा लोमहर्षक युद्ध किया था। इन युद्धों में महाराज विजयी हुए पर आक्रमण फिर हुए। 12.रानी पद्मावती - 1770-1778 तक। 13.राजा प्रताप सिंह (नरेन्द्र सिंह का दत्तक पुत्र) - 1778-1785 तक। इन्होंने अपनी राजधानी को भौआरा से झंझारपुर में स्थानान्तरित किया। 14.राजा माधव सिंह (प्रताप सिंह का विमाता-पुत्र) - 1785-1807 तक। इन्होंने अपनी राजधानी झंझारपुर से हटाकर दरभंगा में स्थापित की। लार्ड कार्नवालिस ने इनके शासनकाल में जमीन की दमामी बन्दोबस्ती करवायी थी। 15.महाराजा छत्र सिंह - 1807-1839 तक। इन्होंने 1814-15 के नेपाल-युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी। हेस्टिंग्स ने इन्हें 'महाराजा' की उपाधि दी थी। 16.महाराजा रुद्र सिंह - 1839-1850 तक। 17.महाराजा महेश्वर सिंह - 1850-1860 तक। इनकी मृत्यु के पश्चात् कुमार लक्ष्मीश्वर सिंह के अवयस्क होने के कारण दरभंगा राज को कोर्ट ऑफ वार्ड्स के तहत ले लिया गया। जब कुमार लक्ष्मीश्वर सिंह बालिग हुए तब अपने पैतृक सिंहासन पर आसीन हुए। कोलकाता के डलहौजी चौक पर '''लक्ष्मीश्वर सिंह''' की प्रतिमा 18.महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह - 1880-1898 तक। ये काफी उदार, लोक-हितैषी, विद्या एवं कलाओं के प्रेमी एवं प्रश्रय दाता थे। रमेश्वर सिंह इनके अनुज थे। 19.महाराजाधिराज रमेश्वर सिंह - 1898-1929 तक। इन्हें ब्रिटिश सरकार की ओर से 'महाराजाधिराज' का विरुद दिया गया तथा और भी अनेक उपाधियाँ मिलीं। अपने अग्रज की भाँति ये भी विद्वानों के संरक्षक, कलाओं के पोषक एवं निर्माण-प्रिय अति उदार नरेन्द्र थे। इन्होंने भारत के अनेक नगरों में अपने भवन बनवाये तथा अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया। वर्तमान मधुबनी जिले के राजनगर में इन्होंने विशाल एवं भव्य राजप्रासाद तथा अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया था। यहाँ का सबसे भव्य भवन (नौलखा) 1926 ई. में बनकर तैयार हुआ था, जिसके आर्चिटेक डाॅ.

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दर्शनशास्त्र

दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, अर्थात प्रकृति तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है किन्तु फिलॉसफ़ी (Philosophy) के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। .

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दलित

दलित का मतलब पहले पिडीत, शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदाहुआ, विनष्ट हुआ करता था, लेकिन अब अनुसूचित जाति को दलित बताया जाता है, अब दलित शब्द पूर्णता जाति विशेष को बोला जाने लगा हजारों वर्षों तक अस्‍पृश्‍य या अछूत समझी जाने वाली उन तमाम शोषित जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयुक्‍त होता है जो हिंदू धर्म शास्त्रों द्वारा हिंदू समाज व्‍यवस्‍था में सबसे निचले (चौथे) पायदान पर स्थित है। और बौद्ध ग्रन्थ में पाँचवे पायदान पर (चांडाल) है संवैधानिक भाषा में इन्‍हें ही अनुसूचित जाति कहां गया है। भारतीय जनगनणा 2011 के अनुसार भारत की जनसंख्‍या में लगभग 16.6 प्रतिशत या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है।http://m.timesofindia.com/india/Half-of-Indias-dalit-population-lives-in-4-states/articleshow/19827757.cms आज अधिकांश हिंदू दलित बौद्ध धर्म के तरफ आकर्षित हुए हैं और हो रहे हैं, क्योंकी बौद्ध बनने से हिंदू दलितों का विकास हुआ हैं।http://www.bbc.com/hindi/india/2016/04/160414_dalit_vote_politician_rd "दलित" शब्द की व्याखा, अर्थ तुलनात्मक दृष्टी से देखे तो इसका विरुद्ध विषलेशण इस प्रकार है। "दलित" -: पिडीत, शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदाहुआ, विनष्ट "फलित" -: पिडामुक्त, उच्च, प्रसन्न, खुशहाल, अखंड, अखंडित, जोडना, समानता, एकरुप, पूर्णरूप, संपूर्ण .

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दाण्डी आन्दोलन

असहयोग आंदोलन समाप्त होने के कई वर्ष बाद तक महात्मा गाँधी ने अपने को समाज सुधार कार्यो पर केंद्रित रखा। 1928 में उन्होंने पुन:राजनीति में प्रवेश करने की सोची। उस वर्ष सभी श्वेत सदस्यों वाले साईमन कमीशन, जो कि उपनिवेश की स्थितियों की जाँच-पड़ताल के लिए इंग्लैंड से भेजा गया था, के विरुद्ध अखिल भारतीय अभियान चलाया जा रहा था। गाँधी जी ने स्वयं इस आंदोलन में भाग नहीं लिया था पर उन्होंने इस आंदोलन को अपना आशीर्वाद दिया था तथा इसी वर्ष बारदोली में होने वाले एक किसान सत्याग्रह के साथ भी उन्होंने ऐसा किया था। 1929 में दिसंबर के अंत में कांग्रेस ने अपना वार्षिक अधिवेशन लाहौर शहर में किया। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्वपूर्ण था: जवाहरलाल नेहरू का अध्यक्ष के रूप में चुनाव जो युवा पीढ़ी को नेतृत्व की छड़ी सौंपने का प्रतीक था और ‘पूर्ण स्वराज’ अथवा पूर्ण स्वतंत्रता की उद्घोषणा। अब राजनीति की गति एक बार फ़िर बढ़ गई थी | 26 JAN 1930 को विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फ़हराकर और देशभक्ति के गीत गाकर ‘स्वतंत्रता दिवस’ मनाया गया। गाँधी जी ने स्वयं सुस्पष्ट निर्देश देकर बताया कि इस दिन को कैसे मनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि;स्वतंत्रता की उद्घोषणा सभी गाँवों और सभी शहरों यहाँ तक कि— अच्छा होगा। अगर सभी जगहों पर एक ही समय में संगोष्ठियाँ हों तो अच्छा होगा। गाँधी जी ने सुझाव दिया कि नगाड़े पीटकर पारंपरिक तीरके से संगोष्ठी के समय की घोषणा की जाए। राष्ट्रीय ध्वज को फ़हराए जाने से समारोहों की शुरुआत होगी। दिन का बाकी हिस्सा किसी रचनात्मक कार्य में चाहे वह सूत कताई हो अथवा ‘अछूतों’ की सेवा अथवा हिंदुओं व मुसलमानों का पुनर्मिलन अथवा निषिद्ध कार्य अथवा ये सभी एक साथ करने में व्यतीत होगा और यह असंभव नहीं है। इसमें भाग लेने वाले लोग दृढ़तापूर्वक यह प्रतिज्ञा लेंगे कि अन्य लोगों की तरह भारतीय लोगों को भी स्वतंत्रता और अपने कठिन परिश्रम के फ़ल का आनंद लेने का अहरणीय अधिकार है और यह कि यदि कोई भी सरकार लोगों को इन अधिकरों से वंचित रखती है या उनका दमन करती है तो लोगों को इन्हें बदलने अथवा समाप्त करने का भी अधिकार है। .

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दादरा और नगर हवेली

दादरा और नगर हवेली (દાદરા અને નગર હવેલી, दादरा आणि नगर हवेली, Dadrá e Nagar Aveli) भारत का एक केंद्रशासित प्रदेश हैं। यह दक्षिणी भारत में महाराष्ट्र और गुजरात के बीच स्तिथ है, हालाँकि दादरा, जो कि इस प्रदेश कि एक तालुका है, कुछ किलोमीटर दूर गुजरात में स्तिथ एक विदेशी अन्तः क्षेत्र है। सिलवासा इस प्रदेश की राजधानी है। यह क्षेत्र दमन से १० से ३० किलोमीटर दूर है। http://www.dnh.nic.in, "Dadra and Nagar Haveli government website" इस प्रदेश पर १७७९ तक '''मराठाओं''' का और फिर १९५४ तक पुर्तगाली साम्राज्य का साशन था। इस संघ को भारत में ११ अगस्त १९६१ में शामिल किया गया।http://bharat.gov.in/knowindia/state_uts.php?id.

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दादा धर्माधिकारी

शंकर त्रिम्बक धर्माधिकारी (१८ जून, १८९९ - १ दिसम्बर १९८५) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, गाँधीवादी चिन्तक और प्रसिद्ध लेखक थे। वे 'दादा धर्माधिकारी' के नाम से अधिक जाने जाते हैं। .

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दामोदर स्वरूप 'विद्रोही'

दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' (जन्म:2 अक्टूबर 1928 - मृत्यु: 11 मई 2008) अमर शहीदों की धरती के लिये विख्यात शाहजहाँपुर जनपद के चहेते कवियों में थे। यहाँ के बच्चे-बच्चे की जुबान पर विद्रोही जी का नाम आज भी उतना ही है जितना कि तब था जब वे जीवित थे। विद्रोही की अग्निधर्मा कविताओं ने उन्हें कवि सम्मेलन के अखिल भारतीय मंचों पर स्थापित ही नहीं किया अपितु अपार लोकप्रियता भी प्रदान की। उनका एक मुक्तक तो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ: सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में उनकी पहचान वीर रस के सिद्धहस्त कवि के रूप में भले ही हुई हो परन्तु यह भी एक सच्चाई है कि उनके हृदय में एक सुमधुर गीतकार भी छुपा हुआ था। गीत, गजल, मुक्तक और छन्द के विधान पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। भ्रष्टाचार, शोषण, अत्याचार, छल और प्रवचन के समूल नाश के लिये वे ओजस्वी कविताओं का निरन्तर शंखनाद करते रहे। उन्होंने चीन व पाकिस्तान युद्ध और आपातकाल के दिनों में अपनी आग्नेय कविताओं की मेघ गर्जना से देशवासियों में अदम्य साहस का संचार किया। हिन्दी साहित्य के आकाश में स्वयं को सूर्य-पुत्र घोषित करने वाले यशस्वी वाणी के धनी विद्रोही जी भौतिक रूप से भले ही इस नश्वर संसार को छोड़ गये हों परन्तु अपनी कालजयी कविताओं के लिये उन्हें सदैव याद किया जायेगा। .

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दांडी, नवसारी

दांडी जलालपुर तालुका, गुजरात, नवसारी जिला, भारत में एक गांव है। यह नवसारी शहर के पास अरब सागर के तट पर स्थित है। 1 9 30 में महात्मा गांधी ने नमक मार्च के लिए यह स्थान चुनने के बाद  दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने साबरमती (अहमदाबाद) से दांडी  अपने कुछ अनुयायियों के साथ नमक पर कर लगाने के विरोध में अभियान चलाया। अहमदाबाद से दांडी तक 24 दिनों के लिए पैदल यात्रा मे हजारों लोगों ने भाग लिया भारत सरकार ने साबरमती-दांडी खंड को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना शुरू की। सरकार ने भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नमक मार्च के उपलक्ष्य में एक स्मारक के निर्माण के लिए प्रस्ताव किया। .

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दिल्ली

दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ी: National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैं: हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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दिल्ली के दर्शनीय स्थल

दिल्ली भारत की राजधानी ही नहीं पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र भी है। राजधानी होने के कारण भारतीय सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं प्राचीन नगर होने का कारण इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से कुतुबमीनार और लौह स्तंभ जैसे विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केंद्र समझे जाते हैं। एक ओर हुमायूँ का मकबरा जैसा मुगल शैली की ऐतिहासिक राजसिक इमारत यहाँ है तो दूसरी ओर निज़ामुद्दीन औलिया की पारलौकिक दरगाह। लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं विरला मंदिर, बंगला साहब का गुरुद्वारा, बहाई मंदिर और देश पर जान देने वालों का स्मारक भी राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। भारत के प्रधान मंत्रियों की समाधियाँ हैं, जंतर मंतर है, लाल किला है साथ ही अनेक प्रकार के संग्रहालय और बाज़ार हैं जो दिल्ली घूमने आने वालों का दिल लूट लेते हैं। .

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दिल्ली की संस्कृति

दिल्ली हाट में प्रदर्शित परंपरागत पॉटरी उत्पाद। दिल्ली की संस्कृति यहां के लंबे इतिहास और भारत की राजधानी रूप में ऐतिहासिक स्थिति से पूर्ण प्रभावित रहा है। यह शहर में बने कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों से विदित है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने दिल्ली शहर में लगभग १२०० धरोहर स्थल घोषित किए हैं, जो कि विश्व में किसी भी शहर से कहीं अधिक है। और इनमें से १७५ स्थल राष्ट्रीय धरोहर स्थल घोषित किए हैं। पुराना शहर वह स्थान है, जहां मुगलों और तुर्क शासकों ने कई स्थापत्य के नमूने खडए किए हैं, जैसे जामा मस्जिद (भारत की सबसे बड़ी मस्जिद) और लाल किला। दिल्ली में फिल्हाल तीन विश्व धरोहर स्थल हैं – लाल किला, कुतुब मीनार और हुमायुं का मकबरा। अन्य स्मारकों में इंडिया गेट, जंतर मंतर (१८वीं सदी की खगोलशास्त्रीय वेधशाला), पुराना किला (१६वीं सदी का किला).

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दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा एक प्रमुख हिन्दीसेवी संस्था है जो भारत के दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में भारत के स्वतंत्रत होने के के काफी पहले से हिन्दी के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है।;संगठन दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा का मुख्यालय टी नगर चेन्नै में है। इसके चार विभाग हैं जो दक्षिण के चार राज्यों स्थित में हैं। चार क्षेत्रीय मुख्यालय ये हैं-.

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दुधवा लाइव

कोई विवरण नहीं।

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द्वितीय गोलमेज सम्मेलन

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर,1931 को शुरू हुआ था,जिसमें कांग्रेस ने भी भाग लिया था और 1 दिसम्बर 1931 को समाप्त हुआ था। यह सम्मेलन भी लन्दन में ही था। यह सम्मेलन साम्प्रदायिक समस्या पर विवाद के कार असफल रहा। लन्दन से वापस आकर गाँधीजी ने पुनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया। .

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दौलत सिंह कोठारी

भारत के महान रक्षावैज्ञानिक '''श्री दौलत सिंह कोठारी''' दौलत सिंह कोठारी (1905–1993) भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की विज्ञान नीति में जो लोग शामिल थे उनमें डॉ॰ कोठारी, होमी भाभा, डॉ॰ मेघनाथ साहा और सी.वी.

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देवदास गांधी

देवदास गांधी (१९०० - १९५७) महात्मा गांधी के चौथे एवं सबसे छोटे पुत्र थे। श्री गांधी का जन्म दक्षिण अफ्रीका में हुआ था एवं वे अपने परिवार के साथ एक युवा के रूप में भारत वापस आए। अपने पिता द्वारा किए जानेवाले कार्यों में उनकी सक्रिय भागीदारी थी एव उन्हें अंग्रेजी सरकार द्वारा कई बार कारावास की सजा भी हुई। श्री गांधी एक प्रमुख पत्रकार के रूप में जाने जाते थे एवं वे भारत से निकलने वाली अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाईम्स के संपादक पद पर भी कई वर्षों तक रहे। श्री गांधी का प्रेम विवाह १९३३ में गांधी जी के सहयोगी एवं प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी राजाजी (चक्रवर्ती राजगोपालाचारी) की सुपुत्री लक्षमी से हुआ। उनकी चार संताने (तीन पुत्र एवं एक पुत्री) हुईं - राजमोहन, गोपालकृष्ण, रामचंद्र एवं तारा। श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता सेनानी श्रेणी:1900 में जन्मे लोग.

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देवनागरी

'''देवनागरी''' में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरिरेखा' कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली उपभाषाएँ), तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि .

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देवर्षि रमानाथ शास्त्री

देवर्षि रमानाथ शास्त्री (1878 – 1943) संस्कृत भाषा के कवि तथा श्रीमद्वल्लभाचार्य द्वारा प्रणीत पुष्टिमार्ग एवं शुद्धाद्वैत दर्शन के विद्वान् थे। उन्होने हिन्दी, ब्रजभाषा तथा संस्कृत में प्रचुर लेखन किया है। वे बाल्यावस्था से ही संस्कृत में कविता करने लग गए थे और उसी दौरान प्रसिद्ध मासिक पत्र ‘संस्कृत रत्नाकर’ में उनकी प्रारंभिक कविता ‘दुःखिनीबाला’ छपी थी। उनका जन्म आन्ध्र से जयपुर आये कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अध्येता वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के देवर्षि परिवार की विद्वत् परम्परा में सन् 1878 (विक्रम संवत् 1936, श्रावण शुक्ल पंचमी) को जयपुर में हुआ। उनके पिता का नाम श्री द्वारकानाथ तथा माता का नाम श्रीमती जानकी देवी था। इनके एकमात्र पुत्र पंडित ब्रजनाथ शास्त्री (1901-1954) थे, जो स्वयं शुद्धाद्वैत के मर्मज्ञ थे। वे संस्कृत के उद्भट विद्वान् व युगपुरुष कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के अग्रज थे। .

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दीनानाथ गोपाल तेंदुलकर

दीनानाथ गोपाल तेंदुलकर (1909–1971) एक भारतीय लेखक और वृत्तचित्र निर्माता थे। उन्हें मुख्यतः महात्मा: लाइफ़ ऑफ़ मोहनदास कर्मचन्द गाँधी (अंग्रेज़ी में) नाम से महात्मा गाँधी की आठ खण्डों में लिखी जीवनी के लिए जाना जाता है। .

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धौला कुआँ

धौला कुआँ दक्षिण पश्चिम दिल्ली का महात्मा गाँधी मार्ग पर स्थित एक चौराहे, तथा उससे लगे रिहायशी क्षेत्र का नाम है। पहले यहाँ एक गोल-चक्कर था, जिसे हटाकर दिल्ली सरकार द्वारा पुलों की एक निर्बाध श्रंखला से इसे एक नया रूप दिया गया। यहीं से राष्ट्रीय राजमार्ग ८ प्रारम्भ होता है, जो जयपुर की तरफ जाता हैं। मेट्रो कि एयरपोर्ट लाइन से भी इसे जोड़ दिया गया हैं। यहाँ एक अनाधिकारिक बस अड्डा भी है, जहाँ से हरियाणा तथा राजस्थान के कुछ नगरों तक के लिए बीएस सेवा का संचालन होता है। .

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धोंडो केशव कर्वे

महर्षि डॉ॰ धोंडो केशव कर्वे (अप्रेल १८, १८५८ - नवंबर ९, १९६२) प्रसिद्ध समाज सुधारक थे। उन्होने महिला शिक्षा और विधवा विवाह मे महत्त्वपूर्ण योगदान किया। उन्होने अपना जीवन महिला उत्थान को समर्पित कर दिया। उनके द्वारा मुम्बई में स्थापित एस एन डी टी महिला विश्वविघालय भारत का प्रथम महिला विश्वविघालय है। वे वर्ष १८९१ से वर्ष १९१४ तक पुणे के फरगुस्सन कालेज में गणित के अध्यापक थे। उन्हे वर्ष १९५८ में भारत रत्न से सम्मनित किया गया। .

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नथुराम विनायक गोडसे

नथुराम विनायक गोडसे, या नथुराम गोडसे(१९ मई १९१० - १५ नवंबर १९४९) एक कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी समर्थक थे, जिसने ३० जनवरी १९४८ को नई दिल्ली में गोली मारकर मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या कर दी थी। गोडसे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुणे से पूर्व सदस्य थे। गोडसे का मानना था कि भारत विभाजन के समय गांधी ने भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों के पक्ष का समर्थन किया था। जबकि हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आंखें मूंद ली थी। गोडसे ने नारायण आप्टे और ६ लोगों के साथ मिल कर इस हत्याकाण्ड की योजना बनाई थी। एक वर्ष से अधिक चले मुकद्दमे के बाद ८ नवम्बर १९४९ को उन्हें मृत्युदंड प्रदान किया गया। हालाँकि गांधी के पुत्र, मणिलाल गांधी और रामदास गांधी द्वारा विनिमय की दलीलें पेश की गई थीं, परंतु उन दलीलों को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, महाराज्यपाल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी एवं उपप्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल, तीनों द्वारा ठुकरा दिया गया था। १५ नवम्बर १९४९ को गोडसे को अम्बाला जेल में फाँसी दे दी गई। .

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नरहरि परीख

नरहरि द्वारकादास परीख (નરહરિ દ્રારકાદાસ પરીખ) भारत के एक लेखक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाजसुधारक थे। गांधीजी के कार्यों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होने अपना सारा जीवन गांधीजी से जुड़े संस्थानों के साथ बिताया। .

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नरेश दाधीच (राजनीतिशास्त्री)

डॉ॰ नरेश दाधीच (जन्म: ३ जनवरी १९५७) वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के उपकुलप्ति हैं। इसके पूर्व वे राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक थे। वे गांधीवाद एवं शान्ति अध्ययन के प्रसिद्ध विद्वान हैं। उनके पीएचडी का विषय था - 'गाँधी और अस्तित्ववाद का तुलनात्मक अध्ययन'। यह गाँधीजी के ऊपर किए गये आरम्भिक तुलनात्मक अध्यनों में से एक है। .

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नानालाल

सुप्रसिद्ध कवीश्वर दलपतराय के पुत्र नानालाल (१८७७-१९४६ ई.) आधुनिक गुजराती साहित्य में सांस्कृतिक चेतना और भावसमृद्धि की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। जब तक उनका नाम रहेगा उनके द्वारा प्रवर्तित अपद्यागद्य या 'डोलनशैली' की सत्ता भी बनी रहेगी। गुजराती काव्य के क्षेत्र में उन्होंने अपने पिता से भी अधिक ख्याति प्राप्त की। पिता पुत्र का ऐसा यशस्वी कवियुग्म साहित्य के इतिहास में प्राय: दुर्लभ है। उन्होंने देश-विदेश के बहुसंख्यक नाटकों और महाकाव्यों का अनुशीलन करके अपने काव्य को गौरवान्वित किया। अपनी भाषा के अतिरिक्त वे संस्कृत, फारसी और अंगरेजी पर भी विशेष अधिकार रखते थे। .

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नानाजी देशमुख

नानाजी देशमुख (जन्म: ११ अक्टूबर १९१६, चंडिकादास अमृतराव देशमुख - मृत्यु: २७ फ़रवरी २०१०) एक भारतीय समाजसेवी थे। वे पूर्व में भारतीय जनसंघ के नेता थे। १९७७ में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तो उन्हें मोरारजी-मन्त्रिमण्डल में शामिल किया गया परन्तु उन्होंने यह कहकर कि ६० वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाज सेवा का कार्य करें, मन्त्री-पद ठुकरा दिया। वे जीवन पर्यन्त दीनदयाल शोध संस्थान के अन्तर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार हेतु कार्य करते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। अटलजी के कार्यकाल में ही भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये पद्म विभूषण भी प्रदान किया। .

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नारायण देसाई

नारायण देसाई (24 दिसम्बर 1924 - 15 मार्च 2015) एक प्रख्यात गाँधीवादी थे। वे गाँधीजी के निजी सचिव और उनके जीवनीकार महादेव देसाई के पुत्र थे। नारायण देसाई भूदान आंदोलन और सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन से जुड़े रहे थे और उन्हें "गाँधी कथा" के लिये जाना जाता है जो उन्होंने 2004 में शुरू की थी। .

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नारायण गुरु

नारायण गुरु नारायण गुरु भारत के महान संत एवं समाजसुधारक थे। कन्याकुमारी जिले में मारुतवन पहाड़ों की एक गुफा में उन्होंने तपस्या की थी। गौतम बुद्ध को गया में पीपल के पेड़ के नीचे बोधि की प्राप्ति हुई थी। नारायण गुरु को उस परम की प्राप्ति गुफा में हुई। .

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नालापत बालमणि अम्मा

नालापत बालमणि अम्मा (मलयालम: എൻ. ബാലാമണിയമ്മ; 19 जुलाई 1909 – 29 सितम्बर 2004) भारत से मलयालम भाषा की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है। उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है। अम्मा के साहित्य और जीवन पर गांधी जी के विचारों और आदर्शों का स्पष्ट प्रभाव रहा। उनकी प्रमुख कृतियों में अम्मा, मुथास्सी, मज़्हुवींट कथाआदि हैं। उन्होंने मलयालम कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल संस्कृत में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत के कोमल शब्दों को चुनकर मलयालम का जामा पहनाया। उनकी कविताओं का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। वे प्रतिभावान कवयित्री के साथ-साथ बाल कथा लेखिका और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। अपने पति वी॰एम॰ नायर के साथ मिलकर उन्होने अपनी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया। अम्मा मलयालम भाषा के प्रखर लेखक एन॰ नारायण मेनन की भांजी थी। उनसे प्राप्त शिक्षा-दीक्षा और उनकी लिखी पुस्तकों का अम्मा पर गहरा प्रभाव पड़ा था। अपने मामा से प्राप्त प्रेरणा ने उन्हें एक कुशल कवयित्री बनने में मदद की। नालापत हाउस की आलमारियों से प्राप्त पुस्तक चयन के क्रम में उन्हें मलयालम भाषा के महान कवि वी॰ नारायण मेनन की पुस्तकों से परिचित होने का अवसर मिला। उनकी शैली और सृजनधर्मिता से वे इस तरह प्रभावित हुई कि देखते ही देखते वे अम्मा के प्रिय कवि बन गए। अँग्रेजी भाषा की भारतीय लेखिका कमला दास उनकी सुपुत्री थीं, जिनके लेखन पर उनका खासा असर पड़ा था। अम्मा को मलयालम साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय मलयालम महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और 'एज्हुथाचन पुरस्कार' सहित कई उल्लेखनीय पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1987 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। वर्ष 2009, उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया। .

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नागराज नागप्पा

320x 207 px।प्रसिद्ध हिंदीसेवी नागराज नागप्पा। https://commons.wikimedia.org/wiki/ नागराज नागप्पा (१९१२ - 02 जुलाई २००९) भारत के प्रसिद्ध हिन्दीसेवी थे। गाँधीजी के आह्वान पर उन्होने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आकर हिन्दी सीखी और दक्षिण भारत में इसका प्रचार-प्रसार किया। उन्हें 'हिन्दी नागप्पा' के नाम से जाना जाता है। उनकी सेवाओं के लिये केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने उन्हें १९८९ में 'सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार' से सम्मानित किया। .

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निचिदात्सू फुजी

निचिदात्सू फुजी (१८८५-१९८५) एक जापानी बौद्ध भिक्षु और बौद्ध धर्म के निप्पोंज़न-म्योहोजी संप्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं। फ़ूजी ने १९३१ में महात्मा गांधी के साथ हुई मुलाकात से प्रेरित होकर अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया। १९४७ में उन्होंने विश्व शांति के तीर्थ के रूप में शांति मंदिर (पीस पगोडा) का निर्माण प्रारंभ किया। शांति के एक प्रतीक के रूप में पहला शांति पगोडा जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी की बनाया, जहां द्वितीय विश्व युद्घ के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा गिराए गए परमाणु बम की वजह से १,५०,००० निर्दोष नागरिकों की जान गई थी। २००० तक यूरोप, एशिया और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया भर में ८० शांति पगोडा का निर्माण किया जा चुका था। श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन.

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निर्मला देशपांडे

निर्मला देशपांडे (१९ अक्टूबर १९२९ - १ मई २००८) गांधीवादी विचारधारा से जुड़ी हुईं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होंने अपना जीवन साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं, आदिवासियों और अवसर से वंचित लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया। उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। निर्मला का जन्म नागपुर में विमला और पुरुषोत्तम यशवंत देशपांडे के घर १९ अक्टूबर १९२९ को हुआ था। इनके पिता को मराठी साहित्य (अनामिकाची चिंतनिका) में उत्कृष्ट काम के लिए 1962 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। .

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निर्मला श्रीवास्तव

निर्मला श्रीवास्तव (21 मार्च 1923 – 23 फ़रवरी 2011), (विवाह पूर्व: निर्मला साल्वे), जिन्हें अधिकतर लोग श्री माताजी निर्मला देवी के नाम से जानते हैं, सहज योग, नामक एक नये धार्मिक आंदोलन की संस्थापक थीं। उनके स्वयं के बारे में दिये गये इस वकतव्य कि वो, आदि शक्ति का पूर्ण अवतार थीं, को 140 देशों में बसे उनके अनुयायी, मान्यता प्रदान करते हैं। .

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नई दिल्ली का पुरनिवेश

दिसंबर १९११ में इंग्लैंड के राजा, पंचम जार्ज के स्वागत में शाहजहाँनाबाद (अर्थात् पुरानी दिल्ली) के उत्तर की ओर एक विशाल राज्यारोहण दरबार लगा। अनेक राजनीतिक कारणों से यह निश्चय किया जा चुका था कि भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली लाई जाए। दरबार में ही इसकी घोषणा भी कर दी गई और तभी नई राजधानी का शिलान्यास भी हो गया। .

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नवलगढ

नवलगढ (राजस्थानी: नौलगढ) राजस्थान में झुन्झुनू जिले की तहसील है। यह मुकुंदगढ़ के दक्षिण में और डुण्डलोद से दूर पड़ता है। नवलगढ के सीमावर्ती गाँव उत्तर में मोहब्बतसर,चेलासी,चेलासी ढ़हर,नवलड़ी,पूर्व में सैनीनगर,बिरोल दक्षिण में झाझड़,बेरीऔर पश्चिम में बिडो़दी बड़ी हैं तथा कस्बा उत्तर में डुण्डलोद, है। नवलगढ़ यह एक रेलवे-स्टेशन भी है। .

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नवजीवन ट्रस्ट

'लोकमान्य का स्वर्गवास' शीर्षक से नवजीवन का मुख्य समाचार नवजीवन ट्रस्ट भारत के अहमदाबाद (गुजरात) स्थित पुस्तकों के प्रकाशक हैं। इसकी स्थापना सन १९२९ में महात्मा गांधी ने की थी। नवजीवन ने अब तक हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में कोई ८०० पुस्तकें प्रकाशित की है। अभी हाल में ही (दिसम्बर २००८) इन पुस्तकों से नवजीवन ट्रस्ट का कॉपीराइट समाप्त हुआ है। .

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नैदानिक परीक्षण

अनुसन्धान के माध्यम से विकसित नई चिकित्सा पद्धतियों के सामान्य प्रयोग से पूर्व इनके प्रभाव व कुप्रभावों का अध्ययन करने के लिये किया गया शोध नैदानिक परीक्षण (क्लिनिकल ट्रायल) कहलाता है। चिकित्सा पद्धतियों के अन्तर्गत टीका, दवा, आहार संबंधी विकल्प, आहार की खुराक, चिकित्सीय उपकरण, जैव चिकित्सा आदि आते हैं। नैदानिक परीक्षण, नई पद्धतियों की सुरक्षा व दक्षता के संबंध में बेहतर आंकड़े प्रदान करता है। प्रत्येक अध्ययन वैज्ञानिक प्रश्नों का जवाब देता है और बीमारी को रोकने के, इसके परीक्षण के लिए, निदान, या उपचार के लिए बेहतर तरीके खोजने का प्रयास करता है। क्लीनिकल ट्रायल नए उपचार की पहले से उपलब्ध उपचार के साथ तुलना भी कर सकता है। हर क्लीनिकल ट्रायल में परीक्षण करने के लिए एक नियम (कार्य योजना) होती है। योजना बताती है कि अध्ययन में क्या-क्या किया जायेगा, यह कैसे पूरा होगा, और अध्ययन का प्रत्येक भाग आवश्यक क्यों है। प्रत्येक अध्ययन में हिस्सा लेने वाले लोगों के लिए इसके अपने नियम होते हैं। कुछ अध्ययनों के लिए किसी बीमारी से ग्रस्त स्वयंसेवकों की जरुरत होती है। कुछ के लिए स्वस्थ लोगों की आवश्यकता होती है। अन्य के लिए केवल पुरुष या केवल महिलाओं की जरुरत होती है। किसी देश या क्षेत्र विशेष में नैदानिक परीक्षण के लिये स्वास्थ्य एजेंसियों तथा अन्य सक्षम एजेंसियों की अनुमति लेना आवश्यक है। ये एजेंसियाँ परीक्षण के जोखिम/लाभ अनुपात का अध्ययन करने के लिये उत्तरदायी होती हैं। चिकित्सीय उत्पाद या पद्धति के प्रकार और उसके विकास के स्तर के अनुरूप ये एजेंसियाँ प्रारंभ में स्वयंप्रस्तुत व्यक्तियों (वालंटियर) या रोगियों के छोटे-छोटे समूहों पर पायलट प्रयोग के रूप में अध्ययन की अनुमति देती हैं और आगे उत्तरोत्तर बड़े पैमाने पर तुलनात्मक अध्ययन की अनुमति देती हैं। यूएसए में संस्थागत समीक्षा बोर्ड (आई.आर.बी.) कई क्लीनिकल ट्रायलों की समीक्षा, निरीक्षण करता है और उन्हें स्वीकार करता है। यह चिकित्सकों, सांख्यिकीविदों, और समुदाय के सदस्यों की एक स्वतंत्र समिति है। इसकी निम्न भूमिकाएं हैं-.

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नूर इनायत ख़ान

नूर-उन-निसा इनायत ख़ान (प्रचलित: नूर इनायत ख़ान; उर्दू: نور عنایت خان, अँग्रेजी: Noor Inayat Khan; 1 जनवरी 1914 – 13 सितम्बर 1944) भारतीय मूल की ब्रिटिश गुप्तचर थीं, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र देशों के लिए जासूसी की। ब्रिटेन के स्पेशल ऑपरेशंस एक्जीक्यूटिव के रूप में प्रशिक्षित नूर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांस के नाज़ी अधिकार क्षेत्र में जाने वाली पहली महिला वायरलेस ऑपरेटर थीं। जर्मनी द्वारा गिरफ़्तार कर यातनायें दिए जाने और गोली मारकर उनकी हत्या किए जाने से पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वे फ्रांस में एक गुप्त अभियान के अंतर्गत नर्स का काम करती थीं। फ्रांस में उनके इस कार्यकाल तथा उसके बाद आगामी 10 महीनों तक उन्हें यातनायें दी गईं और पूछताछ की गयी, किन्तु पूछताछ करने वाली नाज़ी जर्मनी की ख़ुफिया पुलिस गेस्टापो द्वारा उनसे कोई राज़ नहीं उगलवाया जा सका। उनके बलिदान और साहस की गाथा युनाइटेड किंगडम और फ्रांस में प्रचलित है। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें युनाइटेड किंगडम एवं अन्य राष्ट्रमंडल देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मान जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया गया। उनकी स्मृति में लंदन के गॉर्डन स्क्वेयर में स्मारक बनाया गया है, जो इंग्लैण्ड में किसी मुसलमान को समर्पित और किसी एशियाई महिला के सम्मान में इस तरह का पहला स्मारक है। .

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नेल्सन मंडेला

नेल्सन रोलीह्लला मंडेला (ख़ोसा: Nelson Rolihlahla Mandela; 18 जुलाई 1918 – 5 दिसम्बर 2013) दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत भूतपूर्व राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे दक्षिण अफ्रीका में सदियों से चल रहे रंगभेद का विरोध करने वाले अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और इसके सशस्त्र गुट उमखोंतो वे सिजवे के अध्यक्ष रहे। रंगभेद विरोधी संघर्ष के कारण उन्होंने 27 वर्ष रॉबेन द्वीप के कारागार में बिताये जहाँ उन्हें कोयला खनिक का काम करना पड़ा था। 1990 में श्वेत सरकार से हुए एक समझौते के बाद उन्होंने नये दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। वे दक्षिण अफ्रीका एवं समूचे विश्व में रंगभेद का विरोध करने के प्रतीक बन गये। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने उनके जन्म दिन को नेल्सन मंडेला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। .

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नेहरू–गांधी परिवार

नेहरू परिवार का सन् 1927 का चित्र खड़े हुए (बायें से दायें) जवाहरलाल नेहरू, विजयलक्ष्मी पण्डित, कृष्णा हठीसिंह, इंदिरा गांधी और रंजीत पण्डित; बैठे हुए: स्वरूप रानी, मोतीलाल नेहरू और कमला नेहरू नेहरू–गांधी परिवार भारत का एक प्रमुख राजनीतिक परिवार है, जिसका देश की स्वतन्त्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर करीब-करीब वर्चस्व रहा है। नेहरू परिवार के साथ गान्धी नाम फिरोज गान्धी से लिया गया है, जो इन्दिरा गान्धी के पति थे। गान्धी नेहरू परिवार में गान्धी शब्द महात्मा गान्धी से जुड़ा हुआ नहीं है। इस परिवार के तीन सदस्य - पण्डित जवाहर लाल नेहरू, इंन्दिरा गान्धी और राजीव गान्धी देश के प्रधानमन्त्री रह चुके थे, जिनमें से दो - इन्दिरा गान्धी और राजीव गान्धी की हत्या कर दी गयी। नेहरू–गांधी परिवार के चौथे सदस्य राजीव गान्धी के पुत्र राहुल गान्धी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। राहुल गान्धी ने 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीता। राजीव गान्धी के छोटे भाई संजय गांधी की विधवा पत्नी मेनका गान्धी व उनके पुत्र वरुण गांधी को परिवार की सम्पत्ति में कोई हिस्सा न मिलने के कारण वे माँ-बेटे भारतीय जनता पार्टी में चले गये जो देश का कांग्रेस के बाद एक प्रमुख राजनीतिक दल है। .

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नील विद्रोह

बंगाल में नील के एक कारखाने का दृष्य (१८६७) नील विद्रोह किसानों द्वारा किया गया एक आन्दोलन था जो बंगाल के किसानों द्वारा सन् १८५९ में किया गया था। किन्तु इस विद्रोह की जड़ें आधी शताब्दी पुरानी थीं, अर्थात् नील कृषि अधिनियम (indigo plantation act) का पारित होना। इस विद्रोह के आरम्भ में नदिया जिले के किसानों ने 1859 के फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया। यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनो ने बराबर का हिस्सा लिया। सन् १८६० तक बंगाल में नील की खेती लगभग ठप पड़ गई। सन् १८६० में इसके लिए एक आयोग गठित किया गया। .

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पटना

पटना (पटनम्) या पाटलिपुत्र भारत के बिहार राज्य की राजधानी एवं सबसे बड़ा नगर है। पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। अपने आप में इस शहर का ऐतिहासिक महत्व है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था। उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था। पटना बिहार राज्य की राजधानी है और गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है। जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। सोलह लाख (2011 की जनगणना के अनुसार 1,683,200) से भी अधिक आबादी वाला यह शहर, लगभग 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं। पटना सिक्खों के लिये एक अत्यंत ही पवित्र स्थल है। सिक्खों के १०वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हीं हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमंदिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं। एतिहासिक और प्रशासनिक महत्व के अतिरिक्त, पटना शिक्षा और चिकित्सा का भी एक प्रमुख केंद्र है। दीवालों से घिरा नगर का पुराना क्षेत्र, जिसे पटना सिटी के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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पटना के पर्यटन स्थल

वर्तमान बिहार राज्य की राजधानी पटना को ३००० वर्ष से लेकर अबतक भारत का गौरवशाली शहर होने का दर्जा प्राप्त है। यह प्राचीन नगर पवित्र गंगानदी के किनारे सोन और गंडक के संगम पर लंबी पट्टी के रूप में बसा हुआ है। इस शहर को ऐतिहासिक इमारतों के लिए भी जाना जाता है। पटना का इतिहास पाटलीपुत्र के नाम से छठी सदी ईसापूर्व में शुरू होता है। तीसरी सदी ईसापूर्व में पटना शक्तिशाली मगध राज्य की राजधानी बना। अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त यहाँ के महान शासक हुए। सम्राट अशोक के शासनकाल को भारत के इतिहास में अद्वितीय स्‍थान प्राप्‍त है। पटना एक ओर जहाँ शक्तिशाली राजवंशों के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर ज्ञान और अध्‍यात्‍म के कारण भी यह काफी लोकप्रिय रहा है। यह शहर कई प्रबुद्ध यात्रियों जैसे मेगास्थनिज, फाह्यान, ह्वेनसांग के आगमन का भी साक्षी है। महानतम कूटनीतिज्ञ कौटिल्‍यने अर्थशास्‍त्र तथा विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र की यहीं पर रचना की थी। वाणिज्यिक रूप से भी यह मौर्य-गुप्तकाल, मुगलों तथा अंग्रेजों के समय बिहार का एक प्रमुख शहर रहा है। बंगाल विभाजन के बाद 1912 में पटना संयुक्त बिहार-उड़ीसा तथा आजादी मिलने के बाद बिहार राज्‍य की राजधानी बना। शहर का बसाव को ऐतिहासिक क्रम के अनुसार तीन खंडों में बाँटा जा सकता है- मध्य-पूर्व भाग में कुम्रहार के आसपास मौर्य-गुप्त सम्राटाँ का महल, पूर्वी भाग में पटना सिटी के आसपास शेरशाह तथा मुगलों के काल का नगरक्षेत्र तथा बाँकीपुर और उसके पश्चिम में ब्रतानी हुकूमत के दौरान बसायी गयी नई राजधानी। पटना का भारतीय पर्यटन मानचित्र पर प्रमुख स्‍थान है। महात्‍मा गाँधी सेतु पटना को उत्तर बिहार तथा नेपाल के अन्‍य पर्यटन स्‍थल को सड़क माध्‍यम से जोड़ता है। पटना से चूँकि वैशाली, राजगीर, नालंदा, बोधगया, पावापुरी और वाराणसी के लिए मार्ग जाता है, इसलिए यह शहर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मावलंबियों के लिए पर्यटन गेटवे' के रूप में भी जाना जाता है। ईसाई धर्मावलंबियों के लिए भी पटना अतिमहत्वपूर्ण है। पटना सिटी में हरमंदिर, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, जलान म्यूजियम, अगमकुँआ, पटनदेवी; मध्यभाग में कुम्‍हरार परिसर, पत्थर की मस्जिद, गोलघर, पटना संग्रहालय तथा पश्चिमी भाग में जैविक उद्यान, सदाकत आश्रम आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्‍थल हैं। मुख्य पर्यटन स्थलों इस प्रकार हैं: .

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पट्टाभि सीतारमैया

पट्टाभि सीतारमैया (24 नवम्बर सन् 1880 - 1959) भारतीय कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष, गांधीबाद के प्रख्यात आचार्य एवं व्याख्याता, उच्च कोटि के लेखक तथा मध्य प्रदेश के प्रथम राज्यपाल थे। डाक्टर पट्टाभि सीतारमैया का नाम आधुनिक भारत के इतिहास में उल्लेखनीय है। .

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पराप्राकृतिक शिमला

पराप्राकृतिक शिमला या “सिमला क्रीड” शिमला का एक विचित्र रूप है, अन्य रूप हैं ब्रितानी राज की “ग्रीष्म राजघानी” तथा मूल निवासियों की “छोटी विलायत”। सिमला या शिमला का पराप्राकृतिक रूप अंग्रेजी राज में बसते शहर के जन मानस को उजागर करता है जिसमें बाहरी लोगों के साथ आई पराप्राकृतिक सत्ताएं तथा उनसे जुड़ी आस्थाएं और अधिष्ठान इस वन आच्छादित भू-भाग पर नए पराप्राकृतिक क्षेत्र बनाते गए। सिमला की सबसे ऊँची चोटी जाखू पर पहले से ही एक हनुमान मंदिर, तथा तीन अन्य पहाड़ियों पर काली या देवियों के मंदिर थे। जैसे-जैसे यूरोप से आने वाले भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के लोग इन पहाड़ियों पर बसते गए, नए व पुराने पराप्राकृतिक तत्वों से जुड़े कथानकों ने “सिमला क्रीड” को जन्म दिया। कोटगढ़ की “लिस्पेथ” का इसाई जगत से वापस स्थानीय देवी की शरण लेना; अलान अक्तावियन ह्यूम का पराप्राकृतिक तत्वों में रुझान; धर्मविज्ञान की राजनीति में पैठ से एनी बेसेन्ट और महात्मा गाँधी के बीच मतभेद, पराप्राकृतिक तत्वों के जन-मानस पर प्रभावों के कुछ उदाहरण हैं। इतिहासकारों का मानना है कि 1857 के ग़दर से पहले इन पराप्राकृतिक तत्वों के समूहों या क्षेत्रों में मेल-जोल होने लगा था, ग़दर के बाद इन में खाई पड़ गयी। और, परमानसिक अनुसंधान से मानवीय अनुभवों और वैज्ञानिकों के बीच आपसी सहायता बढ़ाना, विलिअम जेम्स का सपना था। .

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पश्चिमी चंपारण

चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी। .

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पहला गिरमिटिया

https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/4/4f/Phela_girmitiya.jpg पहला गिरमिटिया, गिरिराज किशोर द्वारा रचित एक हिन्दी उपन्यास है जो महात्मा गांधी पर आधारित है। इसके नायक "मोहनदास" हैं अर्थात गांधीजी का आरम्भिक रूप। .

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पांडुरंग महादेव बापट

पांडुरंग महादेव बापट (12 नवम्बर 1880 – 28 नवम्बर 1967), भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे। वे 'सेनापति बापट' के नाम से अधिक मशहूर हैं। इनके विषय में साने गुरू जी ने कहा था - 'सेनापति में मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज, समर्थ गुरू रामदास तथा सन्त तुकाराम की त्रिमूर्ति दिखायी पड़ती है। साने गुरू जी बापट को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी तथा वीर सावरकर का अपूर्व व मधुर मिश्रण भी कहते थे। बापट को भक्ति, ज्ञान व सेवा की निर्मल गायत्री की संज्ञा देते थे-साने गुरू जी। .

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पिंगली वेंकैया

पिंगली वैंकैया पिंगली वैंकैया (तेलुगु: పింగళి వెంకయ్య) भारत के राष्ट्रीय ध्वज के अभिकल्पक हैं। वे भारत के सच्चे देशभक्त एवं कृषि वैज्ञानिक भी थे। .

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पंचायत

भारत की पंचायती राज प्रणाली में गाँव या छोटे कस्बे के स्तर पर ग्राम पंचायत या ग्राम सभा होती है जो भारत के स्थानीय स्वशासन का प्रमुख अवयव है। सरपंच, ग्राम सभा का चुना हुआ सर्वोच्च प्रतिनिधि होता है। प्राचीन काल से ही भारतवर्ष के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में पंचायत का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सार्वजनिक जीवन का प्रत्येक पहलू इसी के द्वारा संचालित होता था। .

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पंजाब (भारत)

पंजाब (पंजाबी: ਪੰਜਾਬ) उत्तर-पश्चिम भारत का एक राज्य है जो वृहद्तर पंजाब क्षेत्र का एक भाग है। इसका दूसरा भाग पाकिस्तान में है। पंजाब क्षेत्र के अन्य भाग (भारत के) हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों में हैं। इसके पश्चिम में पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर में जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्व में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान राज्य हैं। राज्य की कुल जनसंख्या २,४२,८९,२९६ है एंव कुल क्षेत्रफल ५०,३६२ वर्ग किलोमीटर है। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है जोकि हरियाणा राज्य की भी राजधानी है। पंजाब के प्रमुख नगरों में अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, पटियाला और बठिंडा हैं। 1947 भारत का विभाजन के बाद बर्तानवी भारत के पंजाब सूबे को भारत और पाकिस्तान दरमियान विभाजन दिया गया था। 1966 में भारतीय पंजाब का विभाजन फिर से हो गया और नतीजे के तौर पर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश वजूद में आए और पंजाब का मौजूदा राज बना। यह भारत का अकेला सूबा है जहाँ सिख बहुमत में हैं। युनानी लोग पंजाब को पैंटापोटाम्या नाम के साथ जानते थे जो कि पाँच इकठ्ठा होते दरियाओं का अंदरूनी डेल्टा है। पारसियों के पवित्र ग्रंथ अवैस्टा में पंजाब क्षेत्र को पुरातन हपता हेंदू या सप्त-सिंधु (सात दरियाओं की धरती) के साथ जोड़ा जाता है। बर्तानवी लोग इस को "हमारा प्रशिया" कह कर बुलाते थे। ऐतिहासिक तौर पर पंजाब युनानियों, मध्य एशियाईओं, अफ़ग़ानियों और ईरानियों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप का प्रवेश-द्वार रहा है। कृषि पंजाब का सब से बड़ा उद्योग है; यह भारत का सब से बड़ा गेहूँ उत्पादक है। यहाँ के प्रमुख उद्योग हैं: वैज्ञानिक साज़ों सामान, कृषि, खेल और बिजली सम्बन्धित माल, सिलाई मशीनें, मशीन यंत्रों, स्टार्च, साइकिलों, खादों आदि का निर्माण, वित्तीय रोज़गार, सैर-सपाटा और देवदार के तेल और खंड का उत्पादन। पंजाब में भारत में से सब से अधिक इस्पात के लुढ़का हुआ मीलों के कारख़ाने हैं जो कि फ़तहगढ़ साहब की इस्पात नगरी मंडी गोबिन्दगढ़ में हैं। .

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पुणे समझौता

पूना पैक्ट अथवा पूना समझौता महात्मा गांधी एंव डॉ भीमराव अम्बेडकर के मध्य पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल २६ सितम्बर, १९३२ को हुआ था और अंग्रेज सरकार ने इस समझौते को सांप्रदायिक अधिनिर्णय (कॉम्युनल एवार्ड) में संशोधन के रूप में अनुमति प्रदान की। समझौते में दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचक मंडल को त्याग दिया गया लेकिन दलित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 और केन्द्रीय विधायिका में कुल सीटों की 18% कर दीं गयीं। गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श के फल स्वरूप कम्युनल अवार्ड की घोषणा की गई। जिसके तहत बाबा साहेब द्वारा उठाई गयी राजनैतिक प्रतिनिधित्व की माँग को मानते हुए दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार मिला। एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुनेंगे तथा दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनेंगे। इस प्रकार दलित प्रतिनिधि केवल दलितों की ही वोट से चुना जाना था। दूसरे शब्दों में उम्मीदवार भी दलित वर्ग का तथा मतदाता भी केवल दलित वर्ग के ही। दलित प्रतिनिधि को चुनने में गैर दलित वर्ग अर्थात सामान्य वर्ग का कोई दखल ना रहा। परन्तु दूसरो ओर दलित वर्ग अपनी दूसरी वोट के माध्यम से सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि को चुनने से अपनी भूमिका निभा सकता था। गाँधी इस समय पूना की यरवदा जेल में थे। कम्युनल एवार्ड की घोषणा होते ही पहले तो उन्होंने प्रधानमत्री को पत्र लिखकर इसे बदलवाने का प्रयास किया, परंतु जब उन्होंने देखा के यह निर्णय बदला नहीं जा रहा, तो उन्होंने मरण व्रत रखने की घोषणा कर दी। डॉ.

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पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.

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पुलिन बिहारी दास

महान क्रांतिकारी पुलिनबिहारी दास पुलिनबिहारी दास (24 जनवरी 1877 - 17 अगस्त 1949) भारत के महान स्वतंत्रता प्रेमी व क्रांतिकारी थे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए "ढाका अनुशीलन समिति" नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की व अनेक क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। .

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पुष्पलता दास

पुष्पलता दास (1915-2003) उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्य असम एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, गांधीवादी और विधायक थी। वह 1951 से 1961 तक एक राज्य सभा सदस्य, असम विधान सभा की सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्य समिति की सदस्य थी। उसने कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट और खादी और ग्रामोद्योग आयोग के असम के अध्यायों के अध्यक्ष के रूप में सेवा की।  समाज के लिए उसके योगदान के लिए भारत सरकार ने 1999 में उसे तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया। .

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प्रणामी संप्रदाय

प्रणामी सम्प्रदाय एक हिन्दू सम्प्रदाय है जिसमे सर्वेसर्वा इश्वर "राज जी" (सदचित्त आनन्द) को मानने वाले अनुयायी शामिल है। यह संप्रदाय अन्य धर्मों की तरह बहुईश्वर में विश्वास नहीं रखता। यह ४००-वर्ष प्राचीन संप्रदाय है। इसकी स्थापना देवचंद्र महाराज द्वारा हुई तथा इसका प्रचार प्राणनाथ स्वामी व उनके शिष्य महाराज छत्रसाल ने किया। जामनगर में नवतनपुरी धाम प्रणामी धर्म का मुख्य तीर्थ स्थल है। इसे श्री कृष्ण प्रणामी धर्म या निजानंद सम्प्रदाय या परनामी संप्रदाय भी कहते हैं। परब्रह्म परमात्मा श्री राज जी एवं उनकी सह-संगिनी श्री श्यामा महारानी जी इस ब्रह्माण्ड के पालनहार एवं रचयिता है। इस संप्रदाय में जो तारतम ग्रन्थ है, वो स्वयं परमात्मा की स्वरुप सखी इंद्रावती ने प्राणनाथ के मनुष्य रूप में जन्म लेकर लिखा। वाणी का अवतरण हुआ और कुरान, बाइबल, भगवत आदि ग्रंथो के भेद खुले। प्रणामियो को ईश्वर ने ब्रह्म आत्मा घोषित किया है। अर्थात ब्रह्मात्मा के अंदर स्वयं परमात्मा का वास होता है। ये ब्रह्मात्माएँ परमधाम में श्री राज जी एवं श्यामा महारानी जी के संग गोपियों के रूप में रहती है। सबसे पहले परमात्मा का अवतरण अल्लाह के रूप में, दूसरी बार कृष्ण (केवल 11 वर्ष 52 दिन तक के गोपी कृष्ण के रूप में, बाकी जीवन में कृष्ण विष्णु अवतार थे। कृष्ण ने गीता भी परमात्मा अवतार - अक्षरातीत अवतार में ही कही है।) और सोहलवीं शताब्दी में श्री प्राणनाथ के रूप में ईश्वर के रूप में जन्म लिया। इस सम्प्रदाय में 11 साल और 52 दिन की आयु वाले बाल कृष्ण को पूजा जाता है। क्योकि इस आयु तक कृष्ण रासलीला किया करते थे। पाठक गलत न समझे कि कृष्ण अलग अलग है। कृष्ण तो केवल एक मनुष्य रूप का नाम है कोई ईश्वर का नही। बाल्यकाल में कृष्ण परमात्मा के अवतार थे और बाकी जीवन में विष्णु अवतार। .

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प्रताप (पत्र)

प्रताप हिन्दी का समाचार-पत्र था जिसेने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभायी। प्रताप के जरिये जहाँ न जाने कितने क्रान्तिकारी स्वाधीनता आन्दोलन से रूबरू हुए, वहीं समय-समय पर यह अखबार क्रान्तिकारियों हेतु सुरक्षा की ढाल भी बना। इसे गणेश शंकर 'विद्यार्थी' ने सन् १९१३ से कानपुर से निकालना आरम्भ किया। .

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प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

प्रतापगढ़ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है, इसे लोग बेल्हा भी कहते हैं, क्योंकि यहां बेल्हा देवी मंदिर है जो कि सई नदी के किनारे बना है। इस जिले को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जाता है। यहां के विधानसभा क्षेत्र पट्टी से ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं॰ जवाहर लाल नेहरू ने पदयात्रा के माध्यम से अपना राजनैतिक करियर शुरू किया था। इस धरती को रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि आचार्य भिखारीदास और राष्ट्रीय कवि हरिवंश राय बच्चन की जन्मस्थली के नाम से भी जाना जाता है। यह जिला धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी कि जन्मभूमि और महात्मा बुद्ध की तपोस्थली है। .

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प्रफुल्ल चन्द्र राय

डाक्टर प्रफुल्लचंद्र राय (2 अगस्त 1861 -- 16 जून 1944) भारत के महान रसायनज्ञ, उद्यमी तथा महान शिक्षक थे। आचार्य राय केवल आधुनिक रसायन शास्त्र के प्रथम भारतीय प्रवक्ता (प्रोफेसर) ही नहीं थे बल्कि उन्होंने ही इस देश में रसायन उद्योग की नींव भी डाली थी। 'सादा जीवन उच्च विचार' वाले उनके बहुआयामी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने कहा था, "शुद्ध भारतीय परिधान में आवेष्टित इस सरल व्यक्ति को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि वह एक महान वैज्ञानिक हो सकता है।" आचार्य राय की प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि उनकी आत्मकथा "लाइफ एण्ड एक्सपीरियेंसेस ऑफ बंगाली केमिस्ट" (एक बंगाली रसायनज्ञ का जीवन एवं अनुभव) के प्रकाशित होने पर अतिप्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका "नेचर" ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए लिखा था कि "लिपिबद्ध करने के लिए संभवत: प्रफुल्ल चंद्र राय से अधिक विशिष्ट जीवन चरित्र किसी और का हो ही नहीं सकता।" आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय भारत में केवल रसायन शास्त्र ही नहीं, आधुनिक विज्ञान के भी प्रस्तोता थे। वे भारतवासियों के लिए सदैव वंदनीय रहेंगे। .

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प्रार्थना

ढाका में शक्तिपूजक हिन्दू प्रार्थना की मुद्रा में प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है जो ब्रह्माण्ड के किसी 'महान शक्ति' से सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत हो सकती है और सामूहिक भी। इसमें शब्दों (मंत्र, गीत आदि) का प्रयोग हो सकता है या प्रार्थना मौन भी हो सकती है।.

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प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास

प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना स्वयं प्रकृति। यह चिकित्सा विज्ञान आज की सभी चिकित्सा प्राणालियों से पुराना है। अथवा यह भी कहा जा सकता है कि यह दूसरी चिकित्सा पद्धतियों कि जननी है। इसका वर्णन पौराणिक ग्रन्थों एवं वेदों में मिलता है, अर्थात वैदिक काल के बाद पौराणिक काल में भी यह पद्धति प्रचलित थी। आधुनिक युग में डॉ॰ ईसाक जेनिग्स (Dr. Isaac Jennings) ने अमेरिका में 1788 में प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग आरम्भ कर दिया था। जोहन बेस्पले ने भी ठण्डे पानी के स्नान एवं पानी पीने की विधियों से उपचार देना प्रारम्भ किया था। महाबग्ग नामक बोध ग्रन्थ में वर्णन आता है कि एक दिन भगवान बुद्ध के एक शिष्य को सांप ने काट लिया तो उस समय विष के नाश के लिए भगवान बुद्ध ने चिकनी मिट्टी, गोबर, मूत्र आदि को प्रयोग करवाया था और दूसरे भिक्षु के बीमार पड़ने पर भाप स्नान व उष्ण गर्म व ठण्डे जल के स्नान द्वारा निरोग किये जाने का वर्णन 2500 वर्ष पुरानी उपरोक्त घटना से सिद्ध होता है। प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-2 योग एवं आसानों का प्रयोग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सुधारों के लिये 5000 हजारों वर्षों से प्रचलन में आया है। पतंजलि का योगसूत्र इसका एक प्रामाणिक ग्रन्थ है इसका प्रचलन केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी है। प्राकृतिक चिकित्सा का विकास (अपने पुराने इतिहास के साथ) प्रायः लुप्त जैसा हो गया था। आधुनिक चिकित्सा प्राणालियों के आगमन के फलस्वरूप इस प्रणाली को भूलना स्वाभाविक भी था। इस प्राकृतिक चिकित्सा को दोबारा प्रतिष्ठित करने की मांग उठाने वाले मुख्य चिकित्सकों में बड़े नाम पाश्चातय देशों के एलोपैथिक चिकित्सकों का है। ये वो प्रभावशाली व्यक्ति थे जो औषधि विज्ञान का प्रयोग करते-2 थक चुके थे और स्वयं रोगी होने के बाद निरोग होने में असहाय होते जा रहे थे। उन्होने स्वयं पर प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग करते हुए स्वयं को स्वस्थ किया और अपने शेष जीवन में इसी चिकित्सा पद्धति द्वारा अनेकों असाध्य रोगियों को उपचार करते हुए इस चिकित्सा पद्धति को दुबारा स्थापित करने की शुरूआत की। इन्होने जीवन यापन तथा रोग उपचार को अधिक तर्कसंगत विधियों द्वारा किये जाने का शुभारम्भ किया। प्राकृतिक चिकित्सा संसार मे प्रचलित सभी चिकित्सा प्रणाली से पुरानी है आदिकाल के ग्रंथों मे जल चिकित्सा व उपवास चिकित्सा का उल्लेख मिलता है पुराण काल मे (उपवास)को लोग अचूक चिकित्सा माना करते थे .

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प्रवासी भारतीय दिवस

प्रवासी भारतीय दिवस भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष ९ जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापस आये थे। इस दिवस को मनाने की शुरुवात सन २००३ से हुई थी। प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की संकल्पना स्वर्गीय लक्ष्मीमल सिंघवी के दिमाग की उपज थी। प्रवासी भारतीय दिवस ८-९ जनवरी २००८ को नयी दिल्ली में आयोजित हुआ" इस साल २०११ में यह सम्मलेन जयपुर में आयोजित किया जा रहा है जयपुर में होटलों में बुकींग हो चुकी है और करीब १५०० प्रवासी जयपुर पधारेंगे। इस सम्मेलन ·क लिए कई बड़े-बड़े उद्योगपति और कई राज्यों क मुख्यमंत्री भी जयपुर पहुंच चुक हैं। शनिवार को माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आ चुके हैं। इस अवसर पर प्रायः तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले भारतवंशियों का सम्मान किया जाता है तथा उन्हे प्रवासी भारतीय सम्मान प्रदान किया जाता है। यह आयोजन भारतवंशियों से सम्बन्धित विषयों और उनकी समस्यायों के चर्चा का मंच भी है। .

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प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण

'''कमल का फूल जिसकी पत्तियां पानी में रह कर भी नहीं भीगती''' '''कमल की पत्तियों पर पानी नहीं चिपकता, इसके आधार पर एक नये तरह का पेंट तैयार किया गया है जो पानी से खराब नहीं होता''' प्रकृति अभिप्रेरित निर्माण (Biomimicry) विज्ञान की एक ऐसी नवीन विधा है, जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक रचनाओं द्वारा प्रेरित होती है। इसे एक नवीन विधा कहने के बजाए एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहना अधिक उचित होगा। अभियांत्रिकी, आधुनिक प्रौद्योगिकी और दैनिक जीवन में इस अवधारणा का व्यापक उपयोग होता है। .

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प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

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प्रेमचंद साहित्य संस्थान

राजकीय दीक्षा विद्यालय, गोरखपुर वह विद्यालय है जहाँ उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने अपनी पहली नौकरी की थी। यह विद्यालय उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित है। यहाँ उन्होंने १९ अगस्त १९१६ से २६ फ़रवरी १९२१ तक सहायक अध्यापक के पद पर कार्य किया। वे इस विद्यालय के छात्रावास अधीक्षक भी थे और विद्यालय परिसर में ही बने एक मकान में रहते थे। प्रेमचंद को सम्मानित करते हुए इस विद्यालय के उनके कमरे को प्रेमचंद साहित्य संस्थान में परिवर्तित कर दिया है। प्रेमचंद ने महात्मा गांधी की स्वतंत्रता आंदोलन की पुकार पर इस नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। श्रेणी:प्रेमचंद.

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पूर्वी चंपारण

पूर्वी चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। चंपारण को विभाजित कर 1971 में बनाए गए पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। पूर्वी चम्‍पारण के उत्‍तर में एक ओर जहाँ नेपाल तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर स्थित है, वहीं दूसरी ओर इसके पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी तथा पश्चिम में पश्चिमी चम्‍पारण जिला है। .

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पोट्टि श्रीरामुलु

पोट्टि श्रीरामुलु पोट्टि श्रीरामुलु (तेलुगु: పొట్టి శ్రీరాములు; 16 मार्च 1901 – 16 दिसम्बर 1952) भारत के एक क्रांतिकारी थे। मद्रास राज्य से अलग आंध्र प्रदेश राज्य के निर्माण की मांग को लेकर उन्होने आमरण अनशन किया जिसके कारण अन्ततः उनकी मृत्यु हो गयी। भारत में भाषा के आधार पर राज्यों के निर्माण के निर्णय के पीछे उनकी असामयिक मृत्यु बहुत बड़ा कारण सिद्ध हुई। वे महात्मा गांधी के परम भक्त थे। उन्होने जीवन पर्यन्त सत्य, अहिंसा, देशभक्ति और हरिजन उत्थान के लिये कार्य किया। श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता सेनानी श्रेणी:तेलुगु श्रेणी:आन्ध्र प्रदेश श्रेणी:1901 में जन्मे लोग.

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पोरबन्दर

पोरबन्दर गुजरात का एक शहर है। पोरबन्दर बहुत ही पुराना बंदरगाह हुआ करता था। पोरबन्दर में गुजरात का सबसे आछा समुंद्र किनारा है। पोरबंदर गुजरात राज्य के दक्षिण छोर पर अरब सागर से घिरा हुआ है। पोरबंदर का निर्माण जूनागढ़ से हुआ था। पोरबंदर महात्मा गाँधीजी का जन्म स्थान है इसलिए स्वाभाविक रूप से पोरबंदर में उनके जीवन से जुड़े कई स्थान हैं जो आज दर्शनीय स्थलों में बदल चुके हैं। 10वीं शताब्दी में पोरबंदर को पौरावेलाकुल कहा जाता था और बाद में इसे सुदामापुरी भी कहा गया। .

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फ़िरंगी महल

फ़िरंगी महल लखनऊ में विक्टोरिया रोड और चौक के बीच स्थित है। इस भव्य स्मारक का नाम फ़िरंगी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसके प्रथम मालिक यूरोप से संबंध रखते थे। यह एक स्त्य है कि मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल में अन्य फ्रांसीसी व्यापारियों के साथ यहाँ रहने वाले नील (Niel) नामक एक फ्रांसीसी इमारत का पहला मालिक था। यह एक शानदार निवास था, परन्तु यह एक विदेशी स्वामित्व में था और इसी कारण से एक शाही फ़रमान के तहत सरकार द्वारा इसे ज़ब्त किया गया था। इस इमारत की क़ुरक़ी के बाद इस्लामी मामलों पर औरंगज़ेब के सलाहकार मुल्ला असद बन क़ुतुब शहीद और उनके भाई मुल्ला असद बन क़ुतुबुद्दीन शहीद के क़ब्ज़े में दे दी गई थी। इन दो भाइयों ने इस आवासीय केंद्र को एक भव्य इस्लामी संस्था में बदल दिया था जिसकी तुलना आम तौर से इंग्लैंड के कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से की जाती थी। महात्मा गांधी ने भी फिरंगी महल में कुछ दिन बिताए और वह कमरा जहाँ वे रुके थे उनकी याद में समर्पित किया गया है। फ़िरंगी महल इस्लामी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण और वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। .

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फिरंगी

फिरंगी (अंग्रेजी: विदेशी) एक 2017 भारतीय हिंदी अवधि की एक्शन-कॉमेडी नाटक फिल्म है जिसे राजीव ढींगरा ने निर्देशित किया है। यह कपिल शर्मा, जो निर्माता भी हैं, इशिता दत्ता और मोनिका गिल के साथ हैं। यह फिल्म पंजाब और राजस्थान में मुख्य रूप से बनाई गयी है और 1 दिसंबर 2017 को पूरी दुनिया में रिलीज हुई थी। .

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फिजी आर्य प्रतिनिधि सभा

फिजी की आर्य प्रतिनिधि सभा वहाँ के आर्यसमाजियों की प्रतिनिधि संस्था है। इसकी स्थापना १९१२ में मणिलाल डॉक्टर द्वारा की गयी थी। इसका पंजीयन एक धार्मिक संस्था के रूप में किया गया था। महात्मा गांधी ने फिजी में रह रहे भारतीयों को कानूनी सहायता देने मणिलाल डॉक्टर को फिजी भेजा था। वे १९१२ से १९२० तक वहाँ रहे थे। फिजी आर्य प्रतिनिधि सभा से प्रथम अध्यक्ष स्वामी मनोहरानन्द सरस्वती थे जो १९१३ में भारत से फिजी पहुँचे थे। यह सभा नयी दिल्ली स्थित सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा का अंग है। श्रेणी:आर्य समाज श्रेणी:फिजी में हिन्दू धर्म.

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बनारसीदास चतुर्वेदी

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी (२४ दिसम्बर, १८९२ -- २ मई, १९८५) प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार थे। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे। उनके सम्पादकत्व में हिन्दी में कोलकाता से 'विशाल भारत' नामक हिन्दी मासिक निकला। पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे सुधी चिंतक ने ही साक्षात्कार की विधा को पुष्पित एवं पल्लवित करने के लिए सर्वप्रथम सार्थक कदम बढ़ाया था। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। वे अपने समय का अग्रगण्य संपादक थे तथा अपनी विशिष्ट और स्वतंत्र वृत्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके जैसा शहीदों की स्मृति का पुरस्कर्ता (सामने लाने वाला) और छायावाद का विरोधी समूचे हिंदी साहित्य में कोई और नहीं हुआ। उनकी स्मृति में बनारसीदास चतुर्वेदी सम्मान दिया जाता है। कहते हैं कि वे किसी भी नई सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या राष्ट्रीय मुहिम से जुड़ने, नए काम में हाथ डालने या नई रचना में प्रवृत्त होने से पहले स्वयं से एक ही प्रश्न पूछते थे कि उससे देश, समाज, उसकी भाषाओं और साहित्यों, विशेषकर हिंदी का कुछ भला होगा या मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्चतर मूल्यों की प्रतिष्ठा होगी या नहीं? .

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बनिया

बनिया एक भारतीय जाति हैं,इनमे विशेषतः गुप्ता, साहू आदि सम्मिलित है..

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बप्पा रावल

बप्पा रावल (713-810) मेवाड़ राज्य के संस्थापक राजा थे। .

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बसंती देवी

बसंती देवी (२३ मार्च १८८० - १९७४) भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता थी। वह अन्य कार्यकर्ता चित्तरंजन दास की पत्नी थीं। १९२१ में दास की गिरफ्तारी और १९२५ में मृत्यु के बाद, उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई और स्वतंत्रता के बाद सामाजिक कार्य जारी रखा। १९७३ में उन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया। .

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बाबा राघवदास

बाबा राघवदास (१२ दिसम्बर १८९६ - १५ जनवरी १९५८), भारत के एक सन्त तथा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी थे। उन्हें 'पूर्वांचल का गांधी' कहा जाता है। .

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बाबा आमटे

डॉ॰ मुरलीधर देवीदास आमटे (26 दिसंबर, 1914 - 9 फरवरी, 2008), जो कि बाबा आमटे के नाम से ख्यात हैं, भारत के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवी थे। समाज से परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिये उन्होंने अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की। इनमें चन्द्रपुर, महाराष्ट्र स्थित आनंदवन का नाम प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त आमटे ने अनेक अन्य सामाजिक कार्यों, जिनमें वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख हैं, के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। 9 फ़रवरी 2008 को बाबा का 94 साल की आयु में चन्द्रपुर जिले के वड़ोरा स्थित अपने निवास में निधन हो गया। .

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बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक (अथवा लोकमान्य तिलक,; २३ जुलाई १८५६ - १ अगस्त १९२०), जन्म से केशव गंगाधर तिलक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुएँ; ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें "भारतीय अशान्ति के पिता" कहते थे। उन्हें, "लोकमान्य" का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत (उनके नायक के रूप में)। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। तिलक ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे, तथा भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा "स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच" (स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं से एक क़रीबी सन्धि बनाई, जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष, वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै और मुहम्मद अली जिन्नाह शामिल थे। .

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बालकृष्ण भगवन्त बोरकर

बालकृष्ण भगवन्त बोरकर (कोंकणी: बाळकृष्ण भगवन्त शेणय बोरकार) (1910–1984) भारत के गोवा राज्य के एक कवि थे। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह ससया के लिये उन्हें सन् १९८१ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कोंकणी) से सम्मानित किया गया। उन्हें 'बा-कि-बाब' नाम से भी जाना जाता है। बा भा बोरकर ने कम आयु से ही कविताएँ लिखना आरम्भ कर दिया था। वी सा खाण्डेकर, बोरकर की कविताओं के एक प्रारम्भिक समर्थक थे। बोरकर ने 1950 के दशक में गोवा के स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़े और पूना चले गए जहाँ उन्होंने रेडियों सेवा में काम किया। उनका अधिकांश साहित्य मराठी में लिखा हुआ है लेकिन कोंकणी भाषा में भी उन्होंने बहुत साहित्य लिखा था। उन्होंने कहा कि साथ ही एक गद्य लेखक के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। वे गद्य लेखक के रूप में भी उत्कृष्ट लेख रहे थे। उनके द्वारा लिखी गई कविताएँ महात्मायन (गाँधी जी को समर्पित एक अधूरी कविता) और तमहस्तोत्र (मधुमेह और बुढ़ापे के कारण अन्धेपन की सम्भावना पर) प्रसिद्ध हैं। .

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बालकृष्ण शर्मा नवीन

बालकृष्ण शर्मा नवीन (१८९७ - १९६० ई०) हिन्दी कवि थे। वे परम्परा और समकालीनता के कवि हैं। उनकी कविता में स्वच्छन्दतावादी धारा के प्रतिनिधि स्वर के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना, गांधी दर्शन और संवेदनाओं की झंकृतियां समान ऊर्जा और उठान के साथ सुनी जा सकती हैं। आधुनिक हिन्दी कविता के विकास में उनका स्थान अविस्मरणीय है। वे जीवनभर पत्रकारिता और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे। नवीन जी द्विवेदी युग के कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति-भावना, राष्ट्र-प्रेम तथा विद्रोह का स्वर प्रमुखता से आया है। आपने ब्रजभाषा के प्रभाव से युक्त खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की। उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। .

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बाळकृष्ण शिवराम मुंजे

डॉ बालकृष्ण शिवराम मुंजे (१२ दिसम्बर १८७२ - ३ मार्च १९४८) भारत के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के सदस्य थे। वे सन १९२७-२८ में अखिल भारत हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बनवाने में इनका बहुत योगदान था। संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के वे राजनितिक गुरु थे। डॉ॰ मुंजे भारत में सैनिक-शिक्षा के पुरोधा थे। .

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बागेश्वर

बागेश्वर उत्तराखण्ड राज्य में सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ है। यह बागेश्वर जनपद का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यहाँ बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है, जिसे स्थानीय जनता "बागनाथ" या "बाघनाथ" के नाम से जानती है। मकर संक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा मेला लगता है। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का बड़ा योगदान है। कुली-बेगार प्रथा के रजिस्टरों को सरयू की धारा में बहाकर यहाँ के लोगों ने अपने अंचल में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन शुरवात सन १९२० ई. में की। सरयू एवं गोमती नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर मूलतः एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है। परगना दानपुर के 473, खरही के 66, कमस्यार के 166, पुँगराऊ के 87 गाँवों का समेकन केन्द्र होने के कारण यह प्रशासनिक केन्द्र बन गया। मकर संक्रान्ति के दौरान लगभग महीने भर चलने वाले उत्तरायणी मेले की व्यापारिक गतिविधियों, स्थानीय लकड़ी के उत्पाद, चटाइयाँ एवं शौका तथा भोटिया व्यापारियों द्वारा तिब्बती ऊन, सुहागा, खाल तथा अन्यान्य उत्पादों के विनिमय ने इसको एक बड़ी मण्डी के रूप में प्रतिष्ठापित किया। 1950-60 के दशक तक लाल इमली तथा धारीवाल जैसी प्रतिष्ठित वस्त्र कम्पनियों द्वारा बागेश्वर मण्डी से कच्चा ऊन क्रय किया जाता था। .

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बागेश्वर का इतिहास

पुरा कथाओं में भगवान शिव के बाघ रूप धारण करने वाले इस स्थान को व्याघ्रेश्वर तथा बागीश्वर से कालान्तर में बागेश्वर के रूप में जाना जाता है। शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा के अनुसार बसाया था। स्कन्द पुराण के अन्तर्गत बागेश्वर माहात्म्य में सरयू के तट पर स्वयंभू शिव की इस भूमि को उत्तर में सूर्यकुण्ड, दक्षिण में अग्निकुण्ड के मध्य (नदी विशर्प जनित प्राकृतिक कुण्ड से) सीमांकित कर पापनाशक तपस्थली तथा मोक्षदा तीर्थ के रूप में धार्मिक मान्यता प्राप्त है। ऐतिहासिक रूप से कत्यूरी राजवंश काल से (७वीं सदी से ११वीं सदी तक) सम्बन्धित भूदेव का शिलालेख इस मन्दिर तथा बस्ती के अस्तित्व का प्राचीनतम गवाह है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सन् १६०२ में राजा लक्ष्मी चन्द ने बागनाथ के वर्तमान मुख्य मन्दिर एवं मन्दिर समूह का पुनर्निर्माण कर इसके वर्तमान रूप को अक्षुण्ण रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने बागेश्वर से पिण्डारी तक लगभग ४५ मील (७० किमी.) लम्बे अश्व मार्ग के निर्माण द्वारा दानपुर के सुदूर ग्राम्यांचल को पहुँच देने का प्रयास भी किया। स्वतंत्रता के १०० वर्ष पूर्व सन् १८४७ में इ. मडेन द्वारा बाह्य जगत को हिमालयी हिमनदों की जानकारी मिलने के बाद पिण्डारी ग्लेशियर को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली और बागेश्वर विदेशी पर्यटकों एवं पर्वतारोहियों का विश्रामस्थल भी बना। १९वीं सदी के प्रारम्भ में बागेश्वर आठ-दस घरों की एक छोटी सी बस्ती थी। सन् १८६० के आसपास यह स्थान २००-३०० दुकानों एवं घरों वाले एक कस्बे का रूप धारण कर चुका था। मुख्य बस्ती मन्दिर से संलग्न थी। सरयू नदी के पार दुग बाजार और सरकारी डाक बंगले का विवरण मिलता है। एटकिन्सन के हिमालय गजेटियर में वर्ष १८८६ में इस स्थान की स्थायी आबादी ५०० बतायी गई है। सरयू और गोमती नदी में दो बडे़ और मजबूत लकड़ी के पुलों द्वारा नदियों के आरपार विस्तृत ग्राम्यांचल के मध्य आवागमन सुलभ था। अंग्रेज लेखक ओस्लो लिखते है कि १८७१ में आयी सरयू की बाढ़ ने नदी किनारे बसी बस्ती को ही प्रभावित नहीं किया, वरन् दोनों नदियांे के पुराने पुल भी बहा दिये। फलस्वरूप १९१३ में वर्तमान पैदल झूला पुल बना। इसमें सरयू पर बना झूला पुल आज भी प्रयोग में है। गोमती नदी का पुल ७० के दशक में जीर्ण-क्षीर्ण होने के कारण गिरा दिया गया और उसके स्थान पर नया मोटर पुल बन गया। प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व, सन् १९०५ में अंग्रेजी शासकों द्वारा टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन का सर्वेक्षण किया गया, जिसके साक्ष्य आज भी यत्र-तत्र बिखरे मिलते हैं। विश्व युद्ध के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई और बाद के योजनाकारों द्वारा पूरी तरह विस्मृत कर दी गयी। १९८० के दशक में श्रीमती इंदिरा गांधी के बागेश्वर आगमन पर उन्हें इस रेलवे लाईन की याद दिलाई गई। अब जाकर, क्षेत्रीय जनता द्वारा किये गये लम्बे संघर्ष के उपरान्त आखिरकार टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन के सर्वेंक्षण को राष्ट्रीय रेल परियोजना के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। वर्ष १९२१ के उत्तरायणी मेले के अवसर पर कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पाण्डेय, हरगोविंद पंत, श्याम लाल साह, विक्टर मोहन जोशी, राम लाल साह, मोहन सिह मेहता, ईश्वरी लाल साह आदि के नेतृत्व में सैकड़ों आन्दोलनकारियों ने कुली बेगार के रजिस्टर बहा कर इस कलंकपूर्ण प्रथा को समाप्त करने की कसम इसी सरयू तट पर ली थी। पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों का राष्ट्रीय आन्दोलन में यह योगदान था, जिससे प्रभावित हो कर सन् १९२९ में महात्मा गांधी स्वयं बागेश्वर पहुँचे। तभी विक्टर मोहन जोशी द्वारा उनके कर कमलों से स्वराज मंदिर का शिलान्यास भी करवाया गया। बींसवी सदी के प्रारम्भ में यहाँ औषधालय(१९०६) तथा डाकघर(१९०९) की तो यहाँ स्थापना हो गयी, तथापि शिक्षा का प्रसार यहाँ विलम्बित रहा। १९२६ में एक सरकारी स्कूल प्रारम्भ हुआ, जो १९३३ में जूनियर हाईस्कूल बना। आजादी के बाद १९४९ में स्थानीय निवासियों के प्रयास से विक्टर मोहन जोशी की स्मृति में एक प्राइवेट हाइस्कूल खुला, जो कि १९६७ में जा कर इण्टर कालेज बन सका। महिलाओं के लिए पृथक प्राथमिक पाठशाला ५० के दशक में खुली और पृथक महिला सरकारी हाईस्कूल १९७५ में। १९७४ में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा द्वारा राजकीय डिग्री कालेज का उद्घाटन किया गया। बालीघाट में स्थापित २५ किलोवाट क्षमता वाले जल विद्युत संयंत्र से उत्पादित बिजली से १९५१ में बागेश्वर पहली बार जगमगाया। वर्षा काल में नदियों में नदियों के गंदले पानी से निजात पाने के लिए टाउन एरिया गठन के उपरान्त राजकीय अनुदान तथा स्थानीय लोगों के श्रमदान से नगर में शुद्ध सार्वजनिक पेयजल प्रणाली का शुभारम्भ हुआ। १९५२ में अल्मोडा से वाया गरुड़ मोटर रोड बागेश्वर पहुँची। क्षेत्रीय निवासियों के श्रमदान से निर्मित बागेश्वर-कपकोट मोटर मार्ग में बस सेवा का संचालन १९५५-५६ के बाद प्रारम्भ हो पाया। १९६२ में चीन युद्ध के बाद सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बागेश्वर-पिथौरागढ़ सड़क १९६५ में बनकर तैयार हो गई। सत्तर के दशक में बागेश्वर से अल्मोड़ा के लिये वाया ताकुला एक वैकल्पिक रोड बनी तो अस्सी के दशक में बागेश्वर- चैंरा- दोफाड़ रोड पर आवागमन शुरू हुआ। तहसील मुख्यालय बनने के बाद तो आसपास गाँवों के लिये अनेक मोटर मार्गो का निर्माण प्रारम्भ हुआ। जनपद मुख्यालय बनने के उपरान्त तो नगर के समीपवर्ती भागों में स्थापित कार्यालयों, न्यायालय आदि के लिए भी सम्पर्क मार्ग बनने लगे। .

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बांसपार

बांसपार उत्तर प्रदेश के जनपद महाराजगंज में तहसील सदर, ब्लॉक के अंतर्गत एक बड़ी एवं प्रसिद्ध ग्रामसभा है। .

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बिड़ला परिवार

बिरला-परिवार-वृक्ष बिड़ला परिवार भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक एवं औद्योगिक परिवारों में से एक है। इस परिवार के अधीन वस्त्र उद्योग, आटोमोबाइल्स, सूचना प्रौद्योगिकी आदि हैं। बिड़ला परिवार भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नैतिक एवं आर्थिक रूप से समर्थन किया। इस परिवार की गांधीजी के साथ घनिष्ट मित्रता थी। बिड़ला समूह के संस्थापक बलदेवदास बिड़ला थे जो राजस्थान के सफल मारवाड़ी समुदाय के सदस्य थे। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में वे अपना पारिवारिक व्यवसाय आरम्भ करने के लिये कोलकाता चले आये और उस समय चल रहे भारत के स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के साथ निकट से जुड़ गये। .

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बिली अर्जन सिंह

कुँवर बिली अर्जन सिंह (१५ अगस्त १९१७ – १ जनवरी २०१०) विश्वप्रसिद्ध बाघ सरंक्षक एंव पर्यावरणविद् थे। दुधवा नेशनल पार्क के संस्थापक, बाघ एंव तेन्दुओं के पुनर्वासन कार्यक्रम के जनक बिली जीवन पर्यन्त खीरी जनपद के जंगलों के सरंक्षण व सवंर्धन में संघर्षरत रहे। ब्रिटिश-इंडिया में उत्तर-खीरी वन-प्रभाग के समीप सुहेली नदी पर निवास बनाकर वन्य जीवों की सुरक्षा में शिकारियों एंव भ्रष्ट सरकारी तन्त्र से लड़ाइया लड़ते रहे। वन्य जीवन के क्षेत्र में पूरी दुनिया में इनके प्रयोगों की चर्चा रही और आज के बाघ सरंक्षक इनके कार्यों से प्रेरणा लेते आ रहे हैं। .

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बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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बजरंग बहादुर सिंह

राजा बजरंग बहादुर सिंह (१९०५-१९७३) राजनीतिज्ञ एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। वे हिमाचल प्रदेश के उपराज्यपाल व अवध की तालुकदारी रियासत भदरी (वर्तमान में, प्रतापगढ़ जिला में) के राजा थे। वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रहे। .

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बुनियादी शिक्षा

भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के समय गांधीजी ने सबसे पहले बुनियादी शिक्षा की कल्पना की थी। आज जिसे विश्वविद्यालय स्तर पर "फाउंडेशन कोर्स" कहा जाता है, उसकी पृष्ठभूमि में गांधी की बुनियादी यानी बेसिक शिक्षा ही तो थी। इस बुनियादी प्रशिक्षण और प्राथमिक स्तर की शिक्षा के दो स्तर थे- स्कूली बच्चे कक्षा-एक से ही तकली से सूत कातते थे; रूई से पौनी बनाते थे और सूत की गुड़िया बनाकर या तो खादी भंडारों को देते थे या बैठने के आसन, रुमाल, चादर आदि बनाते थे। शिक्षा के बारे में गांधीजी का दृष्टिकोण वस्तुत: व्यावसायपरक था। उनका मत था कि भारत जैसे गरीब देश में शिक्षार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ कुछ धनोपार्जन भी कर लेना चाहिए जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने ‘वर्धा शिक्षा योजना’ बनायी थी। शिक्षा को लाभदायक एवं अल्पव्ययी करने की दृष्टि से सन् १९३६ ई. में उन्होंने ‘भारतीय तालीम संघ’ की स्थापना की। .

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ब्रह्म दास लक्ष्मण

ब्रह्म दास लक्ष्मण (1900-1981), भारतीय मूल के एक फ़िजीयन राजनीतिज्ञ, मजदूर संघ नेता और व्यापारी थे जिनका फ़िजी के चीनी उद्योग पर काफी प्रभाव था। .

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बैरेटा (छोटी पिस्तौल)

बैरेटा (छोटी पिस्तौल) मूल रूप से यूएसए में बनी 20 कैलिबर की सबसे छोटी पिस्तौल थी जिसका अमेरिका के मेरीलैण्ड राज्य (उपनिवेश) के ऐकोकीक शहर में सन् 1985 तक उत्पादन हुआ। क्योंकि 1984 से इटली की बैरेटा कम्पनी ने इसके उन्नत मॉडल बैरेटा 21 A बॉबकैट (अं: Beretta 21 A Bobcat) के नाम से उत्पादन शुरू कर दिया था इसलिये अमरीका की यह सबसे छोटी पिस्तौल अब दुर्लभ शस्त्र की श्रेणी में आ गयी। आसानी से मनुष्य की हथेली में आ जाने वाली यह पिस्तौल जेब में भी आराम से रखी जा सकती थी। नाथूराम गोडसे ने इसी मॉडल की पिस्तौल से महात्मा गान्धी की हत्या की थी। मुकदमे के दौरान न्यायालय में नाथूराम गोडसे द्वारा दिये गये बयान के अनुसार इस प्रकार की पिस्तौल उसने नई दिल्ली में एक शरणार्थी से खरीदी थी। .

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बेतिया

बेतिया बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले का एक शहर है। यह पश्चिमी चंपारण जिला का मुख्यालय भी है। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। इसके पश्चिम में उत्तर प्रदेश का कुशीनगर जिला पड़ता है। 'बेतिया' शब्द 'बेंत' (cane) से व्युत्पन्न है जो कभी यहाँ बड़े पैमाने पर उत्पन्न होता था (अब नहीं)। अंग्रेजी काल में बेतिया राज दूसरी सबसे बड़ी जमींदारी थी जिसका क्षेत्रफल १८०० वर्ग मील थी। इससे उस समय २० लाख रूपये लगान मिलता था। इसका उत्तरी भाग ऊबड़-खाबड़ तथा दक्षिणी भाग समतल तथा उर्वर है। यह हरहा नदी की प्राचीन तलहटी में स्थित प्रमुख नगर है। यह मुजफ्फरपुर से १२४ किमी दूर है तथा पहले बेतिया जमींदारी की राजधानी था। यहाँ के महाराजा का महल दर्शनीय है। महात्मा गांधी ने बेतिया के हजारी मल धर्मशाला में रहकर सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी। १९७४ के संपूर्ण क्रांति में भी बेतिया की अहम भुमिका थी। यहां के अमवा मझार गांव के रहने वाले श्यामाकांत तिवारी ने जयप्रकाश नारायण के कहने पर पूरे जिले में आंदोलन को फैलाया। यह एक कृषि प्रधान क्षेत्र है जहाँ गन्ना, धान और गेहूँ सभी उगते हैं। यह गाँधी की कर्मभूमि और ध्रुपद गायिकी के लिए प्रसिध है। बेतिया से मुंबई फ़िल्म उद्योग का सफ़र तय कर चुके मशहूर फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा ने इस क्षेत्र के लोगों की सरकारी नौकरी की तलाश पर 'कथा माधोपुर' की रचना की। .

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बी एन आदरकार

बी एन आदरकार 4 मई 1970 में से 15 जून 1970 तक भारतीय रिज़र्व बैंक के नौवें गवर्नर थे। उनका कार्यकाल केवल 42 दिनों का रहा, जो की अमिताभ घोष (20 दिन) के बाद दूसरा सबसे छोटा था। उनका कार्यकाल इतना छोटा इसलिए था क्यूंकि वह एस जगन्नाथन के पदभार सँभालने के पहले केवल अंतरिम रूप से इस पद को भर रहे थे। अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत, जो की भारतीय सिविल सेवा से थे, आदरकार एक अर्थशास्त्री थे और भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार के कार्यालय में काम किया। इससे पहले वह वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों का कार्यभार संभाल चुके थे। अंतरिम गवर्नर बनने के पूर्व वह रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर थे। उनके कार्यकाल में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में 24 अगस्त 1970 को 2, 5, 10 और 100 के मूल्यवर्ग के भारतीय नोट, फिर से जारी किये गए थे। इन नोटों पर उनके हस्ताक्षर हैं, जबकि इसके पहले जारी की गयी नोट श्रृंखला पर एल के झा के हस्ताक्षर हैं। .

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बीसवीं शताब्दी

ग्रेगरी पंचांग (कलेंडर) के अनुसार ईसा की बीसवीं शताब्दी 1 जनवरी 1901 से 31 दिसम्बर 2000 तक मानी जाती है। कुछ इतिहासवेत्ता 1914 से 1992 तक को संक्षिप्त बीसवीं शती का नाम भी देते हैं। (उन्नीसवी शताब्दी - बीसवी शताब्दी - इक्कीसवी शताब्दी - और शताब्दियाँ) दशक: १९०० का दशक १९१० का दशक १९२० का दशक १९३० का दशक १९४० का दशक १९५० का दशक १९६० का दशक १९७० का दशक १९८० का दशक १९९० का दशक ---- समय के गुज़रने को रेकोर्ड करने के हिसाब से देखा जाये तो बीसवी शताब्दी वह शताब्दी थी जो १९०१ - २००० तक चली थी। मनुष्य जाति के जीवन का लगभग हर पहलू बीसवी शताब्दी में बदल गया।.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारत माता मन्दिर

भारत माता मंदिर में संगमरमर पर उकेरी गया अविभाजित भारत का त्रिआयामी भौगोलिक मानचित्र भारत माता मन्दिर महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (वाराणसी) के प्रांगण में है। इसका निर्माण डाक्टर शिवप्रसाद गुप्त ने कराया और उदघाटन सन 1936 में गांधीजी द्वारा किया गया। इस मन्दिर में किसी देवी-देवता का कोई चित्र या प्रतिमा नहीं है बल्कि संगमरमर पर उकेरी गई अविभाजित भारत का त्रिआयामी भौगोलिक मानचित्र है। इस मानचित्र में पर्वत, पठार, नदियाँ और सागर सभी को बखुबी दर्शाया गया है। .

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भारत में दर्शनशास्त्र

भारत में दर्शनशास्त्र के दशा और दिशा के अध्ययन को हम दो भागों में विभक्त करके कर सकते हैं -.

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भारत में भ्रष्टाचार

सन २०१५ में विश्व के विभिन्न भागों में भ्रष्टाचार का आकलन भारत में भ्रष्टाचार चर्चा और आन्दोलनों का एक प्रमुख विषय रहा है। आजादी के एक दशक बाद से ही भारत भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा नजर आने लगा था और उस समय संसद में इस बात पर बहस भी होती थी। 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया था वह आज भी प्रासंगिक है। उस वक्त डॉ लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है। भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था और प्रत्येक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भारत में राजनीतिक एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत ही व्यापक है। इसके अलावा न्यायपालिका, मीडिया, सेना, पुलिस आदि में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। .

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भारत में मधुमक्खी पालन

भारत में मधुमक्खी पालन का प्राचीन वेद और बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख किया गया हैं। मध्य प्रदेश में मध्यपाषाण काल की शिला चित्रकारी में मधु संग्रह गतिविधियों को दर्शाया गया हैं। हालांकि भारत में मधुमक्खी पालन की वैज्ञानिक पद्धतियां १९वीं सदी के अंत में ही शुरू हुईं, पर मधुमक्खियों को पालना और उनके युद्ध में इस्तेमाल करने के अभिलेख १९वीं शताब्दी की शुरुआत से देखे गए हैं। भारतीय स्वतंत्रता के बाद, विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के माध्यम से मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित किया गया। मधुमक्खी की पाँच प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं जो कि प्राकृतिक शहद और मोम उत्पादन के लिए व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। .

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भारत में हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म भारत का सबसे बड़ा और मूल धार्मिक समूह है और भारत की 79.8% जनसंख्या (96.8 करोड़) इस धर्म की अनुयाई है। भारत में वैदिक संस्कृति का उद्गम २००० से १५०० ईसा पूर्व में हुआ था। जिसके फलस्वरूप हिन्दू धर्म को, वैदिक धर्म का क्रमानुयायी माना जाता है, जिसका भारतीय इतिहास पर गहन प्रभाव रहा है। स्वयं इण्डिया नाम भी यूनानी के Ἰνδία (इण्डस) से निकला है, जो स्वयं भी प्राचीन फ़ारसी शब्द हिन्दू से निकला, जो संस्कृत से सिन्धु से निकला, जो इस क्षेत्र में बहने वाली सिन्धु नदी के लिए प्रयुक्त किया गया था। भारत का एक अन्य प्रचलित नाम हिन्दुस्तान है, अर्थात "हिन्दुओं की भूमि"। .

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भारत सरकार अधिनियम, १९१९

भारत सरकार अधिनियम, १९१९ (Government of India Act, 1919) युनाइटेड किंगडम के संसद द्वारा पारित एक विधान था जिसे 'मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार' के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस अधिनियम के पारित होने के समय मांटेग्यू भारत सचिव तथा चेम्सफोर्ड वायसराय थे। सरकार का दावा था कि उस अधिनियम की विशेषता 'उत्तरदायी शासन की प्रगति' है। इस अधिनियम पर राजा ने २३ दिसम्बर १९१९ को हस्ताक्षर किया। .

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भारत सारावली

भुवन में भारत भारतीय गणतंत्र दक्षिण एशिया में स्थित स्वतंत्र राष्ट्र है। यह विश्व का सातवाँ सबसे बड़ देश है। भारत की संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति एवं सभ्यताओं में से है।भारत, चार विश्व धर्मों-हिंदू धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म के जन्मस्थान है और प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का घर है। मध्य २० शताब्दी तक भारत अंग्रेजों के प्रशासन के अधीन एक औपनिवेशिक राज्य था। अहिंसा के माध्यम से महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने भारत देश को १९४७ में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया। भारत, १२० करोड़ लोगों के साथ दुनिया का दूसरे सबसे अधिक आबादी वाला देश और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। .

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भारत का ध्वज

भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग के एक चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है। इसकी अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी।। भास्‍कर डॉट कॉम। १५ अगस्त २००९ इसे १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व २२ जुलाई, १९४७ को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था।। भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात ३:२ है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें २४ आरे होते हैं। इस चक्र का व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है व रूप सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ के शेर के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले की तरह होता है। भारतीय राष्ट्रध्वज अपने आप मै ही भारत की निति को दर्शाता हुआ दिखाई देता है। आत्मरक्षा, शांति, समृद्धि और सदैव विकास की ओर अग्रसर। राष्ट्रीय झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार झंडा खादीमें ही बनना चाहिए। यह एक विशेष प्रकार से हाथ से काते गए कपड़े से बनता है जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था। इन सभी विशिष्टताओं को व्यापक रूप से भारत में सम्मान दिया जाता हैं भारतीय ध्वज संहिता के द्वारा इसके प्रदर्शन और प्रयोग पर विशेष नियंत्रण है। ध्वज का हेराल्डिक वर्णन इस प्रकार से होता है: .

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भारत का विभाजन

माउण्टबैटन योजना * पाकिस्तान का विभाजन * कश्मीर समस्या .

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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भारत के 500 और 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण

भारत के 500 और 1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण, जिसे मीडिया में छोटे रूप में नोटबंदी कहा गया, की घोषणा 8 नवम्बर 2016 को रात आठ बजे (आईएसटी) भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक राष्ट्र को किये गए संबोधन के द्वारा की गयी। यह संबोधन टीवी के द्वारा किया गया। इस घोषणा में 8 नवम्बर की आधी रात से देश में 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियंत्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था। - नवभारत टाइम्स - 9 नवम्बर 2016 .

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भारत के ध्वजों की सूची

यह सूची भारत में प्रयोग हुए सभी ध्वजों की है.

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भारत के लिए बराक ओबामा की यात्रा

राष्ट्रपति ओबामा भारत नवम्बर 6, 2010 पर पहुंचे। उन्होने 6 नवम्बर 2010 को मुंबई में भारत-अमेरिका व्यापार और उद्यमिता के शिखर सम्मेलन को संबोधित किया, जिसके बाद उन्होने  2008 के मुंबई हमलों के शिकार लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की।राष्ट्रपति ओबामा ने अपनी मुंबई यात्रा के दौरान  मणि भवन, महात्मा गाँधी के घर का दौरा किया। सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज, मुंबई की यात्रा पर एक छात्र के  प्रश्न का जवाब देते हुए ओबामा ने  कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका देश के भीतर एक कैंसर पर विचार को समाप्त करने के लिए पाकिस्तानी सरकार के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध है| उन्होने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने से खारिज कर दिया और कहा कि यह अपने संबंध सुधारने के लिए  दो पड़ोसियों पर निर्भर है। उन्होने आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में धीमी गति से चलने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की। दिल्ली में अपने प्रवास के दौरान उन्होने मुगल सम्राट हुमायूं के मकबरे का दौरा किया और राज घाट पर मोहनदास करमचंद गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की। फिर ओबामा परिवार का   नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में एक औपचारिक स्वागत किया गया। .

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भारत के वैदेशिक सम्बन्ध

किसी भी देश की विदेश नीति इतिहास से गहरा सम्बन्ध रखती है। भारत की विदेश नीति भी इतिहास और स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्ध रखती है। ऐतिहासिक विरासत के रूप में भारत की विदेश नीति आज उन अनेक तथ्यों को समेटे हुए है जो कभी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से उपजे थे। शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व व विश्वशान्ति का विचार हजारों वर्ष पुराने उस चिन्तन का परिणाम है जिसे महात्मा बुद्ध व महात्मा गांधी जैसे विचारकों ने प्रस्तुत किया था। इसी तरह भारत की विदेश नीति में उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद व रंगभेद की नीति का विरोध महान राष्ट्रीय आन्दोलन की उपज है। भारत के अधिकतर देशों के साथ औपचारिक राजनयिक सम्बन्ध हैं। जनसंख्या की दृष्टि से यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाला देश भी है और इसकी अर्थव्यवस्था विश्व की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ रूसी राष्ट्रपति, 34वाँ जी-8 शिखर सम्मेलन प्राचीन काल में भी भारत के समस्त विश्व से व्यापारिक, सांस्कृतिक व धार्मिक सम्बन्ध रहे हैं। समय के साथ साथ भारत के कई भागों में कई अलग अलग राजा रहे, भारत का स्वरूप भी बदलता रहा किंतु वैश्विक तौर पर भारत के सम्बन्ध सदा बने रहे। सामरिक सम्बन्धों की बात की जाए तो भारत की विशेषता यही है कि वह कभी भी आक्रामक नहीं रहा। 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने अधिकांश देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है। वैश्विक मंचों पर भारत सदा सक्रिय रहा है। 1990 के बाद आर्थिक तौर पर भी भारत ने विश्व को प्रभावित किया है। सामरिक तौर पर भारत ने अपनी शक्ति को बनाए रखा है और विश्व शान्ति में यथासंभव योगदान करता रहा है। पाकिस्तान व चीन के साथ भारत के संबंध कुछ तनावपूर्ण अवश्य हैं किन्तु रूस के साथ सामरिक संबंधों के अलावा, भारत का इजरायल और फ्रांस के साथ विस्तृत रक्षा संबंध है। भारत की विदेश नीति के निर्माण की अवस्था को निम्न प्रकार से समझा जा सकता हैः- .

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भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी

हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में १४ सितम्बर सन् १९४९ को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद ३४३ से ३५१ तक राजभाषा के साम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये १४ सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। धारा ३४३(१) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं। किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है। .

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भारत की संस्कृति

कृष्णा के रूप में नृत्य करते है भारत उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय सांस्कृतिक सीमाओं और क्षेत्रों की स्थिरता और ऐतिहासिक स्थायित्व को प्रदर्शित करता हुआ मानचित्र भारत की संस्कृति बहुआयामी है जिसमें भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई, बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली अपनी खुद की प्राचीन विरासत शामिल हैं। इसके साथ ही पड़ोसी देशों के रिवाज़, परम्पराओं और विचारों का भी इसमें समावेश है। पिछली पाँच सहस्राब्दियों से अधिक समय से भारत के रीति-रिवाज़, भाषाएँ, प्रथाएँ और परंपराएँ इसके एक-दूसरे से परस्पर संबंधों में महान विविधताओं का एक अद्वितीय उदाहरण देती हैं। भारत कई धार्मिक प्रणालियों, जैसे कि हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे धर्मों का जनक है। इस मिश्रण से भारत में उत्पन्न हुए विभिन्न धर्म और परम्पराओं ने विश्व के अलग-अलग हिस्सों को भी बहुत प्रभावित किया है। .

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भारत छोड़ो आन्दोलन

बंगलुरू के बसवानगुडी में दीनबन्धु सी एफ् अन्ड्रूज का भाषण भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ८ अगस्त १९४२ को आरम्भ किया गया था|यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद ९ अगस्त सन १९४२ को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय काँगेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। हालांकि गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधि गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रतिसरकार की स्थापना कर दी गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया। .

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भारतमाता

'''भारतमाता की कांस्य मूर्ति''' भारत को मातृदेवी के रूप में चित्रित करके भारतमाता या 'भारतम्बा' कहा जाता है। भारतमाता को प्राय: केसरिया या नारंगी रंग की साड़ी पहने, हाथ में भगवा ध्वज लिये हुए चित्रित किया जाता है तथा साथ में सिंह होता है। भारत में भारतमाता के बहुत से मन्दिर हैं। काशी का भारतमाता मन्दिर अत्यन्त प्रसिद्ध है जिसका उद्घाटन सन् १९३६ में स्वयं महात्मा गांधी ने किया था। हरिद्वार का भारतमाता मन्दिर भी बहुत प्रसिद्ध है। .

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भारतीय 1000 रूपया नोट

भारतीय रुपया 1000-नोट (1000 ₹) भारतीय मुद्रा के एक संप्रदाय था। यह पहली बार 1954 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पेश किया गया था जनवरी 1978, सभी उच्च संप्रदाय पैसों (₹ 1000, ₹ 5000, और ₹ 10,000) बेहिसाब पैसा अंकुश लगाने के लिए रद्द किए थे। आदेश में मुद्रास्फीति नोट नवंबर 8 मार्च, 2016 को 2000 में फिर से शुरू किया गया था की वजह संचलन में पैसों की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा की 1000 की मुद्दे को बंद किआ जाये जिससे वह भष्ट्राचार को रोख सखे। .

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भारतीय भाषा आन्दोलन

भारतीय भाषा आन्दोलन भारत में हिन्दी और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलाने के चलाया गया एक आन्दोलन है। यह १६ अगस्त १९८८ को आरम्भ हुआ था। इनका आरोप है कि भारत को अब भी अंग्रेजीदां ही चला रहे हैं। आन्दोलनकारियों की मांग है कि 1968 के भाषाई संसदीय संकल्प को लागू करने के लिए एक सर्वदलीय संसदीय समिति का गठन किया जाये जो देश की सभी क्षेत्रीय भाषाओ के प्रतिनिधिओं के पक्षों को सुनकर अपना निर्णय करे। इस आन्दोलन का उदेश्य प्रत्येक स्तर से अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त करके भारतीय भाषाओ को लागू करवाना है – यह भावना 1968 के भाषाई संसदीय संकल्प में पहले से निहित है, यह अब ही उपजी कोई नयी मांग नहीं है। .

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भारतीय महापुरुषों के समाधिस्थलों की सूची

यह भारत के विख्यात लोगों के समाधिस्थलों की सूची है। यह एक मुक्त सूची है जिसे बढ़ाया जा सकता है। .

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भारतीय मीडिया

भारत के संचार माध्यम (मीडिया) के अन्तर्गत टेलीविजन, रेडियो, सिनेमा, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, तथा अन्तरजालीय पृष्ट आदि हैं। अधिकांश मीडिया निजी हाथों में है और बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा नियंत्रित है। भारत में 70,000 से अधिक समाचार पत्र हैं, 690 उपग्रह चैनेल हैं (जिनमें से 80 समाचार चैनेल हैं)। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा समाचार पत्र का बाजार है। प्रतिदिन १० करोड़ प्रतियाँ बिकतीं हैं। .

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अधिकतर कांग्रेस के नाम से प्रख्यात, भारत के दो प्रमुख राजनैतिक दलों में से एक हैं, जिन में अन्य भारतीय जनता पार्टी हैं। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में २८ दिसंबर १८८५ में हुई थी; इसके संस्थापकों में ए ओ ह्यूम (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे। १९वी सदी के आखिर में और शुरूआती से लेकर मध्य २०वी सदी में, कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में, अपने १.५ करोड़ से अधिक सदस्यों और ७ करोड़ से अधिक प्रतिभागियों के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में एक केन्द्रीय भागीदार बनी। १९४७ में आजादी के बाद, कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। आज़ादी से लेकर २०१६ तक, १६ आम चुनावों में से, कांग्रेस ने ६ में पूर्ण बहुमत जीता हैं और ४ में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया; अतः, कुल ४९ वर्षों तक वह केन्द्र सरकार का हिस्सा रही। भारत में, कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके हैं; पहले जवाहरलाल नेहरू (१९४७-१९६५) थे और हाल ही में मनमोहन सिंह (२००४-२०१४) थे। २०१४ के आम चुनाव में, कांग्रेस ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब आम चुनावी प्रदर्शन किया और ५४३ सदस्यीय लोक सभा में केवल ४४ सीट जीती। तब से लेकर अब तक कोंग्रेस कई विवादों में घिरी हुई है, कोंग्रेस द्वारा भारतीय आर्मी का मनोबल गिराने का देश में विरोध किया जा रहा है । http://www.allianceofdemocrats.org/index.php?option.

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्षों की सूची

१९३८ के हरिपुरा सम्मेलन में (बाएं से दाएं) महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, सुभाष चन्द्र बोस और वल्लभ भाई पटेल। गले में फीता पहने बोस इस सम्मेलन के अध्यक्ष थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस स्वतंत्र भारत का प्रमुख राजनीतिक दल है और इस की स्थापना स्वतंत्रता से पूर्व १८८५ में हुई थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष दल के चुने हुए प्रमुख होते है जो आम जनता के साथ दल के रिश्ते को प्रबंधित करने के लिए जिम्मेदार होते है। .

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भारतीय शिक्षा का इतिहास

शिक्षा का केन्द्र: तक्षशिला का बौद्ध मठ भारतीय शिक्षा का इतिहास भारतीय सभ्यता का भी इतिहास है। भारतीय समाज के विकास और उसमें होने वाले परिवर्तनों की रूपरेखा में शिक्षा की जगह और उसकी भूमिका को भी निरंतर विकासशील पाते हैं। सूत्रकाल तथा लोकायत के बीच शिक्षा की सार्वजनिक प्रणाली के पश्चात हम बौद्धकालीन शिक्षा को निरंतर भौतिक तथा सामाजिक प्रतिबद्धता से परिपूर्ण होते देखते हैं। बौद्धकाल में स्त्रियों और शूद्रों को भी शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित किया गया। प्राचीन भारत में जिस शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया गया था वह समकालीन विश्व की शिक्षा व्यवस्था से समुन्नत व उत्कृष्ट थी लेकिन कालान्तर में भारतीय शिक्षा का व्यवस्था ह्रास हुआ। विदेशियों ने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था को उस अनुपात में विकसित नहीं किया, जिस अनुपात में होना चाहिये था। अपने संक्रमण काल में भारतीय शिक्षा को कई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा। आज भी ये चुनौतियाँ व समस्याएँ हमारे सामने हैं जिनसे दो-दो हाथ करना है। १८५० तक भारत में गुरुकुल की प्रथा चलती आ रही थी परन्तु मकोले द्वारा अंग्रेजी शिक्षा के संक्रमण के कारण भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का अंत हुआ और भारत में कई गुरुकुल तोड़े गए और उनके स्थान पर कान्वेंट और पब्लिक स्कूल खोले गए। .

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भारतीय शिक्षाशास्त्रियों के विचार

शिक्षा आद्य शंकराचार्य (७८८-८२० ई.), स्वामी दयानन्द (१८२४-१८८३), स्वामी विवेकानन्द (१८७३-१९०२), श्रीमती एनी बेसेण्ट (१८४७-१९३३), गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर (१८६१-१९४१), महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय (१८६१-१९४५), महात्मा गाँधी (१८६९-१९४८) और महर्षि अरविन्द (१८७२-१९५०) आदि विचारक आधुनिक भारत के महान शिक्षा-शास्त्री माने जाते हैं। वे अन्य विचारकों द्वारा ग्रहण की हुई भारतीय शिक्षा से सम्बन्धित विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहाँ भारतीय शिक्षा-शास्त्रियों की मुख्य विचारधारा का अवलोकन किया जायगा और यह भी बतलाने का प्रयत्न किया जायगा कि भारतीय विचारकों के शिक्षा-सम्बन्धी विचारों में मुख्य पाश्चात्य शिक्षा-दर्शन की छाप कहाँ तक पायी जाती है। .

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भारतीय समाजसुधारक

भारतीय समाज सुधारक, जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव स्थापित करने में मदद की है एक समृद्ध इतिहास के कुछ मामलों में, राजनीतिक कार्रवाई और दार्शनिक शिक्षाओं के माध्यम से दुनिया भर में अपने प्रभाव से प्रभावित किया है, यह एक साथ समाज सुधारकों जो उम्र के माध्यम से रहता है की एक विस्तृत सूची डाल करने के लिए लगभग असंभव है। नीचे उनमें से कुछ कर रहे हैं।.

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भारतीय समाजवाद

भारतवर्ष में आधुनिक काल के प्रथम प्रमुख समाजवादी महात्मा गांधी हैं, परंतु उनका समाजवाद एक विशेष प्रकार का है। गांधी जी के विचारों पर हिंदू, जैन, ईसाई आदि धर्म और रस्किन, टाल्सटाय और थोरो जैसे दार्शनिकों का प्रभाव स्पष्ट है। वे औद्योगीकरण के विरोधी थे क्योंकि वे उसको आर्थिक समानता, शोषण, बेकारी, राजनीतिक तानाशाही आदि का कारण समझते थे। मोक्षप्राप्ति के इच्छुक महात्मा गांधी इंद्रियों और इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर त्याग द्वारा एक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता और समानता स्थापित करना चाहते थे। प्राचीन भारत के स्वतंत्र और स्वपर्याप्त ग्रामीण गणराज्य गांधी जी के आदर्श थे। नि:स्वार्थ सेवा, त्याग और आध्यात्मिक प्रवृत्ति - इनमें शोषक और शोषित के लिए कोई स्थान नहीं। यदि किसी के पास कोई संपत्ति है तो वह समाज की धरोहर मात्र है। ध्येय की प्राप्ति के लिए गांधी जी नैतिक साधनों - सत्य, अंहिसा, सत्याग्रह - पर जोर देते हैं हिंसात्मक क्रांति पर नहीं। गाँधी जी प्रेम द्वारा शत्रु का हृदयपरिवर्तन करना चाहते थे, हिंसा और द्वेष द्वारा उसका विनाश नहीं। गांधीवाद धार्मिक अराजकतावाद है। इस समय विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण गांधीवाद की व्याख्या और उसका प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने श्रम, भू, ग्राम, संपत्ति आदि के दान द्वारा अहिंसात्मक ढंग से समाजवादी व्यवस्था की स्थापना का प्रयत्न किया है। भारतवर्ष में दूसरी प्रमुख समाजवादी विचारधारा मार्क्सवादी है। निरंकुश शासन बहुधा राज्यविरोधी, अराजकतावादी और क्रांतिकारी विचारों के पोषक होते हैं। भारतवर्ष में मार्क्सवाद के प्रमुख प्रचारक मानवेंद्रनाथ राय थे। बोल्शेविक क्रांति के बाद तुरंत ही आप साम्यवादी अंतरराष्ट्रीय के संपर्क में आए और उसकी ओर से विदेश से ही भारत में साम्यवादी आंदोलन का निर्देशन करने लगे। साम्यवादी आंदोलन पूँजीवाद और उसकी उच्च्तम अवस्था साम्राज्यवाद को अपना प्रमुख शत्रु समझता है और उपनिवेशों के स्वाधीनता संग्रामों को प्रोत्साहित करके उसको कमजोर करना चाहता है। औपनिवेशिक स्वाधीनता आंदोलन के संबंध में मानवेंद्रनाथ राय के अपने विचार थे। उनका मत था कि भावी समाजवादी क्रांति में औपनिवेशिक क्रांतियों का प्रमुख स्थान होगा। चीनी साम्यवादियों का भी आज यही मत है, परंतु सोवियत विचारकों ने इसको कभी स्वीकार नहीं किया। राय की यह भी धारणा थी कि औपनिवेशिक पूँजीवाद ने साम्राज्यशाही से गठबंधन कर लिया है अत: वह प्रतिक्रियावादी है और क्रांतिकारी दल उसके साथ संयुक्त मोर्चा नहीं बना सकते। यद्यपि साम्यवादी अंतरराष्ट्रीय ने इस विचार को भी स्वीकार नहीं किया, तथापि भारतीय साम्यवादियों ने अधिकांशत: इस नीति का अनुसरण किया और बहुधा राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग रहे। बोल्शेविक क्रांति के बाद शीघ्र ही भारत के बड़े नगरों में साम्यवादियों के स्वतंत्र संगठन बने, एक किसान मजदूर पार्टी की स्थापना हुई और सन् 1924 तक एक अखिल भारतीय साम्यवादी दल का संगठन भी हुआ, परंतु यह दल शीघ्र ही अवैध घोषित कर दिया गया। इसके बाद सन् 1936 से इसकी शक्ति बढ़ी और इस समय यह भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों में से है। दूसरा समाजवादी दल कांग्रेस समाजवादी पार्टी थी। इसकी स्थापना सन् 1934 में हुई। भारतीय समाजवादी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, आदि नेता प्रथम महायुद्ध के बाद से ही समाजवाद का प्रचार कर रहे थे। परंतु भद्र अवज्ञा आंदोलन (1930-33) की असफलता और सन् 1929 के आर्थिक संकट के समय पूँजीवादी देशों की दुर्गति तथा इन देशों में फासिजम की विजय और दूसरी ओर सोवियत देश की आर्थिक संकट से मुक्ति तथा उसकी सफलता, इन सब कारणों से अनेक राष्ट्रभक्त समाजवाद की ओर आकर्षित हुए। इनमें जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्रदेव, मीनू मसानी, डॉ॰ राममनोहर लोहिया, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, यूसुफ मेहर अली, अच्युत पटवर्धन और अशोक मेहता उल्लेखनीय हैं। इनका उद्देश्य कांग्रेसी मंच द्वारा समाजवादी ढंग से स्वराज्यप्राप्ति और उसके बाद समाजवाद की स्थापना था। स्वतंत्रता मिलने के बाद कांग्रेस राष्ट्रीय शक्तियों का संयुक्त मोर्चा न रहकर एक राजनीतिक दल बन गई, अत: अन्य स्वायत्त और संगठित दलों को कांग्रेस से निकलना पड़ा। इनमें कांग्रेस समाजवादी दल भी था। उसने कांग्रेस शब्द को अपने नाम से हटा दिया। बाद में आचार्य कृपालानी द्वारा संगठित कृषक मजदूर प्रजापार्टी इसमें मिल गई और इसका नाम प्रजा सोशलिस्ट पार्टी हो गया, परंतु डाक्टर राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में समाजवादी दल का एक अंग इससे अलग हो गया और उसने एक समाजवादी पार्टी बना ली। इस समय प्रजा सोशलिस्ट और सोशलिस्ट पार्टी ने मिलकर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनाई। किंतु संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के वाराणसी अधिवेशन (1965) में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने अलग होकर पुन: अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम कर लिया। उसी समय अशोक मेहता के नेतृत्व में कुछ प्रजा सोशलिस्ट कार्यकर्ता कांग्रेस में शमिल हो गए हैं। द्वितीय महायुद्ध के बाद वह समाजवादी विचारधारा सोवियत तानाशाही का विरोध करती है तथा अपने को पाश्चात्य देशों के लोकतंत्रात्मक और विकासवादी समाजवाद के निकट पाती है। समय समय पर समाजवादी विचारों को स्वीकार करनेवाले कई और दल भी भारत में रहे हैं। साम्यवादी अंतरराष्ट्रीय से संबंध विच्छेद के बाद एम.

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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन

* भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। इस आन्दोलन की शुरुआत १८५७ में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९३० कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी। .

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भारतीय स्वतंत्रता का क्रांतिकारी आन्दोलन

महान क्रान्तिकारी '''यतीन्द्रनाथ मुखर्जी'' भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1757 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत (यतीन्द्रनाथ मुखर्जी)की धरती के जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, आज उसका नितांत अभाव हो गया है। क्रांतिकारी आंदोलन का समय सामान्यतः लोगों ने सन् 1857 से 1942 तक माना है। श्रीकृष्ण सरल का मत है कि इसका समय सन् 1757 अर्थात् प्लासी के युद्ध से सन् 1961 अर्थात् गोवा मुक्ति तक मानना चाहिए। सन् 1961 में गोवा मुक्ति के साथ ही भारतवर्ष पूर्ण रूप से स्वाधीन हो सका है। जिस प्रकार एक विशाल नदी अपने उद्गम स्थान से निकलकर अपने गंतव्य अर्थात् सागर मिलन तक अबाध रूप से बहती जाती है और बीच-बीच में उसमें अन्य छोटी-छोटी धाराएँ भी मिलती रहती हैं, उसी प्रकार हमारी मुक्ति गंगा का प्रवाह भी सन् 1757 से सन् 1961 तक अजस्र रहा है और उसमें मुक्ति यत्न की अन्य धाराएँ भी मिलती रही हैं। भारतीय स्वतंत्रता के सशस्त्र संग्राम की विशेषता यह रही है कि क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास कभी शिथिल नहीं हुए। भारत की स्वतंत्रता के बाद आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को प्रायः दबाते हुए उसे इतिहास में कम महत्व दिया गया और कई स्थानों पर उसे विकृत भी किया गया। स्वराज्य उपरांत यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई कि हमें स्वतंत्रता केवल कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है। इस नये विकृत इतिहास में स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों, अमर हुतात्माओं की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई। .

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भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की)

भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry / FICCI) भारत के व्यापारिक संगठनों का संघ है। इसकी स्थापना १९२७ में महात्मा गांधी की सलाह पर घनश्याम दास बिड़ला एवं पुरुषोत्तम ठक्कर द्वारा की गयी थी। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है। दिसंबर २०१६ से पंकज पटेल अध्यक्ष हैं। .

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भारतीय विद्या भवन

भारतीय विद्या भवन भारत का एक शैक्षिक न्यास (ट्रस्ट) है। इसकी स्थापना कन्हैयालाल मुंशी जी ने 7 नवम्बर 1938 को महात्मा गांधी की प्रेरणा से की थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा राजगोपालाचारी जैसी महान विभूतियों के सक्रिय योगदान से विद्या भवन गांधी के आदर्शों पर चलते हुए आगे बढ़ता रहा। संस्था ने भारत की संस्कृति का बाहर के देशों में भी प्रचार किया है। सम्प्रति इसके 117 केन्द्र भारत में और 7 विदेशों में हैं। इसके द्वारा 355 संस्थाएँ संचालित हैं। भारतीय विद्या भवन को सन् २००२ में भारत सरकार द्वारा गाँधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। .

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भारतीय व्यापारी मण्डल

भारतीय व्यापारी मंडल का प्रतीक-चिह्न भारतीय व्यापारी मण्डल (Indian Merchants' Chamber) भारत के व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग के हित के लिए कार्य करने वाला संगठन है। इसकी स्थापना १९०७ में मुम्बई में हुई थी। भारतीय व्यापारी मण्डल ने भारतीय व्यापारिक हितों की रक्षा करने एवं भारत की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने ही तरीके से यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी बना रहा। इसी ध्येयनिष्ठा का परिणाम था कि गांधीजी इसके संरक्षक (पैट्रोन बने और १९३१ में इसके सम्माननीय सदस्य बने। श्रेणी:भारतीय वाणिज्य मण्डल.

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भारतीय व्यक्तित्व

यहाँ पर भारत के विभिन्न भागों एवं विभिन्न कालों में हुए प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची दी गयी है। .

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भारतीय इतिहास तिथिक्रम

भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं तिथिक्रम में।;भारत के इतिहास के कुछ कालखण्ड.

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भारतीय इतिहास की समयरेखा

पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं भारत एक साझा इतिहास के भागीदार हैं इसलिए भारतीय इतिहास की इस समय रेखा में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की झलक है। .

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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) (Communist Party of India) भारत का एक साम्यवादी दल है। इस दल की स्थापना 26 दिसम्बर 1925 को कानपुर नगर में हुई थी। भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की स्थापना एम एन राय ने की। 1928 ई. में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल ने ही भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की कार्य प्रणाली निश्चित की। इस दल के महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी है। यह भारत की सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी है। चुनाव आयोग द्वारा इसे राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह दल 'न्यू एज' (New Age) का प्रकाशन करता है। इस दल का युवा संगठन 'आल इंडिया यूथ फेडरेशन' है। २००४ के संसदीय चुनाव में इस दल को ५ ४३४ ७३८ मत (१.४%, १० सीटें) मिले। २००९ के संसदीय चुनाव में इस दल को मात्र ४ सीटें मिली। 2014 के संसदीय चुनाव में दल को मात्र 1 सीटें मिली .

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भारतीय अधिराज्य

भारत अधिराज्य, मौजूदा भारत(अर्थात् भारत गणराज्य) की संक्रमणकालीन अवस्था थी। यह ३ साल तक; १९४७ से १९५० में संविधान के प्रवर्तन तक, अस्तित्व में रही थी। रह मूल रूप से भारत में ब्रिटिश-उपनिवैषिक शासिन अवस्था से स्वतंत्र, स्वायत्त, लोकतांत्रिक, भारतिय गणराज्य के बीच की अस्थाई शासन अथ्वा राज्य थी। इसे आधिकारिक रूप से हिंदी में भारत अधिराज्य एवं अंग्रेज़ी में डोमीनियन ऑफ़ इंडिया(Dominion of India) कहा जाता था। सन १९४७ में ब्रितानियाई संसद में भारतिय स्वतंत्रता अधीनियम पारित होने के बाद, अधिकारिक तौर पर, यूनाईटेड किंगडम की सरकार ने भारत पर अपनी प्रभुता त्याग दी और भारत में स्वशासन अथवा स्वराज लागू कर दिया। इसके साथ ही ब्रिटिश भारत(ब्रिटिश-भारतिय उपनिवेष) का अंत हो गया और भारत कैनडा और ऑस्ट्रेलिया की हि तरह एक स्वायत्त्योपनिवेष(डोमीनियन) बन गय, (अर्थात ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वायत्त्य इकाई)। ब्रिटिश संसद के भारत-संबंधित सारे विधानाधिकारों को (1945 में गठित) भारत की संविधान सभा के अधिकार में सौंप दिया गया, भारत, ब्रिटिश-राष्ट्रमंडल प्रदेश का सहपद सदस्य भी बन गया साथ ही ब्रिटेन के राजा ने भारत के सम्राट का शाही ख़िताब त्याग दिया। ब्रिटिश स्वयत्तयोपनिवेष एवं रष्ट्रमंडल प्रदेश का हिस्सा होने के नाते इंगलैंड के राजा ज्यौर्ज (षष्ठम) को भारत का राष्ट्राध्यक्ष बनाया गया एवं आन्य राष्ट्रमंडल देशों की तरह ही भारतिय लैहज़े में उन्हें भारत के राजा की उपादी से नवाज़ा गया(यह पद केवल नाम-मात्र एवं शिश्टाचार के लिये था), भारत में उनका प्रतिनिधित्व भारत के महाराज्यपाल(गवरनर-जनरल) के द्वारा होता था। 1950 में संविधान के लागू होने के साथ ही भारत एक पूर्णतः स्वतंत्र गणराज्य बन गया और साथ ही भारत के राजा के पद को हमेशा के लिये स्थगित कर दिया गया, और भारत के संवंधान द्वरा स्थापित लोकतांत्रिक प्रकृया द्वारा चुने गए भारत के महामहिं राष्ट्रपति के पद से बदल दिया गया। इस बीच भारत में दो महाराज्यपालों को नियुक्त किया गया, महामहिं महाराज्यपाल लाॅर्ड माउण्टबैटन और महामहिं महाराज्यपाल चक्रवर्ती राजागोपालाचारी। .

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भारतीय १० रुपये का नोट

भारतीय १० रुपये का नोट (₹१०) भारतीय रुपये का एक सामान्य मूल्यवर्ग है। ₹१० का नोट महात्मा गाँधी श्रेणी का के सबसे पहले नोटों में से एक है, जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा जारी किया गया था। यह नोट वर्तमान में चलन में है। औपनिवेशिक काल में जारी व प्रचलित १० रुपये का नोट का १९२३ से ही लगातार मुद्रण हो रहा है, जब भारतीय रिज़र्व बैंक ने नोटों के मुद्रण का पदभार सम्भाला। .

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भारतीय २००० हजार का नोट

भारतीय 2000 रुपये का नोट (₹ 2000) भारतीय रुपये का मूल्य है। इसे 8 नवंबर 2016 को ₹ 500 और ₹ 1000 बैंकनोटों की बंदी के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी किया गया था और 10 नवंबर 2016 से परिसंचरण में रहा है। यह पूरी तरह से नए डिजाइन के साथ बैंकनोट्स की महात्मा गांधी नई श्रृंखला का हिस्सा है। भारतीय ₹ 2000 रुपये का नोट आरबीआई द्वारा मुद्रित उच्चतम मुद्रा नोट है जो सक्रिय परिसंचरण में है, इस नोट को नवंबर 2016 में 1,000 रुपये के नोट का विमुद्रीकरण के वाद लागू किया गया था।.

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भारतीय ५०० रुपये का नोट

भारतीय 500 रुपये का नोट (₹500) भारतीय रुपये का मूल्य है। मौजूदा ₹500 बैंकनोट, 10 नवंबर 2016 से परिसंचरण में, महात्मा गांधी नई श्रृंखला का हिस्सा है। महात्मा गांधी पुरानी सीरीज़ के पिछले ₹500 बैंकनोट्स,नवम्बर 2016 के विमुद्रीकरण के दौरान बंद कर दिए थे जिसकी स्थान पर नया बैंकनोट जारी किया था। .

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भारतीयकरण

भारतीयकरण' का अर्थ है- जीवन के विविध क्षेत्रों में भारतीयता का पुनःप्रतिष्ठा। ‘भारतीयता’ शब्द ‘भारतीय’ विशेषण में ‘ता’ प्रत्यय लगाकर बनाया गया है जो संज्ञा (भाववाचक संज्ञा) रूप में परिणत हो जाता है। भारतीय का अर्थ है - भारत से संबंधित। भारतीयता से तात्पर्य उस विचार या भाव से है जिसमें भारत से जुड़ने का बोध होता हो या भारतीय तत्वों की झलक हो या जो भारतीय संस्कृति से संबंधित हो। भारतीयता का प्रयोग राष्ट्रीयता को व्यक्त करने के लिए भी होता है। भारतीयता के अनिवार्य तत्व हैं - भारतीय भूमि, जन, संप्रभुता, भाषा एवं संस्कृति। इसके अतिरिक्त अंतःकरण की शुचिता (आंतरिक व बाह्य शुचिता) तथा सतत सात्विकता पूर्ण आनन्दमयता भी भारतीयता के अनिवार्य तत्व हैं। भारतीय जीवन मूल्यों से निष्ठापूर्वक जीना तथा उनकी सतत रक्षा ही सच्ची भारतीयता की कसौटी है। संयम, अनाक्रमण, सहिष्णुता, त्याग, औदार्य (उदारता), रचनात्मकता, सह-अस्तित्व, बंधुत्व आदि प्रमुख भारतीय जीवन मूल्य हैं। .

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भारतीव विद्या भवन

भारतीय विद्या भवन (Bharatiya Vidya Bhavan) एक शैक्षणिक न्यास (ट्रस्ट) है। इस न्यास द्वारा सैकड़ों प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय संचालित हो रहे हैं। इन विद्यालयों को भारतीय विद्या मन्दिर के नाम से जाना जाता है। ये विद्यालय इस मामले में अन्य विद्यालयों से भिन्न है कि इनमें छात्रों को आधुनिक एवं वैश्विक शिक्षा एवं संस्कार प्रदान करने के साथ-साथ भारत की जड़ों से जुडे रहने वाली शिक्षा भी दी जाती है। सन १९३८ में इसकी स्थापना गांधीजी की प्रेरणा से श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने की थी। इस समय इस न्यास का काम इसके भारत स्थित ११७ केन्द्रों, ७ विदेश स्थित केन्द्रों एवं ३३५ संस्थाओं के माध्यम से चल रहा है। इस समय भारत में इसके लगभग अस्सी तथा विदेशों में लगभग २५ उच्च-माध्यमिक विद्यालय संचालित हैं .

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भाई परमानन्द

भाई परमानन्द का एक दुर्लभ चित्र भाई परमानन्द (जन्म: ४ नवम्बर १८७६ - मृत्यु: ८ दिसम्बर १९४७) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। भाई जी बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे जहाँ आर्यसमाज और वैदिक धर्म के अनन्य प्रचारक थे, वहीं इतिहासकार, साहित्यमनीषी और शिक्षाविद् के रूप में भी उन्होंने ख्याति अर्जित की थी। सरदार भगत सिंह, सुखदेव, पं॰ राम प्रसाद 'बिस्मिल', करतार सिंह सराबा जैसे असंख्य राष्ट्रभक्त युवक उनसे प्रेरणा प्राप्त कर बलि-पथ के राही बने थे। देशभक्ति, राजनीतिक दृढ़ता तथा स्वतन्त्र विचारक के रूप में भाई जी का नाम सदैव स्मरणीय रहेगा। आपने कठिन तथा संकटपूर्ण स्थितियों का डटकर सामना किया और कभी विचलित नहीं हुए। आपने हिंदी में भारत का इतिहास लिखा है। इतिहास-लेखन में आप राजाओं, युद्धों तथा महापुरुषों के जीवनवृत्तों को ही प्रधानता देने के पक्ष में न थे। आपका स्पष्ट मत था कि इतिहास में जाति की भावनाओं, इच्छाओं, आकांक्षाओं, संस्कृति एवं सभ्यता को भी महत्व दिया जाना चाहिए। आपने अपने जीवन के संस्मरण भी लिखे हैं जो युवकों के लिये आज भी प्रेरणा देने में सक्षम हैं। .

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भाई प्रताप दयालदास

भाई प्रताप दयालदास एक भारतीय उद्यमी, और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे आदिपुर शहर के संस्थापक थे। स्वतंत्रता संघर्ष के दिनों के बाद से भाई प्रताप सिंह का पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे बड़े हस्तियों के साथ करीबी संबंध थे। इनका जन्म हैदराबाद, सिंध में 14 अप्रैल 1908 को हुआ था। भाई प्रताप अपनी समृद्धि के लिए जाने जाते थे और एक रईस परिवार से थे। .

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भागवत भगत

भागवत भगत नमक सत्याग्रह के अग्रदूत थे। महात्मा गांधी की सभा तब शुरू होती थी जब भागवत भगत अपनी खजड़ी बजाकर लोगों को अपना गीत सुनाते थे। भागवत भगत ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान गांवों में खजड़ी बजाकर लोगों को जागरूक किया। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के भाटपाररानी के पास छठियांव के गरीब किसान के घर पैदा हुये भागवत भगत ने वह कार्य कर दिखाया जिसे बहुत बड़े अमीर लोग भी नहीं कर सके। श्रेणी:भारतीय स्वतंत्रता सेनानी.

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भवानी प्रसाद मिश्र

भवानी प्रसाद मिश्र (जन्म: २९ मार्च १९१४ - मृत्यु: २० फ़रवरी १९८५) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वे दूसरे तार-सप्तक के एक प्रमुख कवि हैं। गाँधीवाद की स्वच्छता, पावनता और नैतिकता का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह 'गीत-फ़रोश' अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुए थे। प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे। उन्होंने स्वयं को कभी भी कभी निराशा के गर्त में डूबने नहीं दिया। जैसे सात-सात बार मौत से वे लड़े वैसे ही आजादी के पहले गुलामी से लड़े और आजादी के बाद तानाशाही से भी लड़े। आपातकाल के दौरान नियम पूर्वक सुबह दोपहर शाम तीनों बेलाओं में उन्होंने कवितायें लिखी थीं जो बाद में त्रिकाल सन्ध्या नामक पुस्तक में प्रकाशित भी हुईं।http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/4488/3/52 भवानी भाई को १९७२ में उनकी कृति बुनी हुई रस्सी के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। १९८१-८२ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा १९८३ में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया। .

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भगत सिंह

भगत सिंह (जन्म: २८ सितम्बर या १९ अक्टूबर, १९०७, मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। भगत सिंह को समाजवादी,वामपंथी और मार्क्सवादी विचारधारा में रुचि थी। सुखदेव, राजगुरु तथा भगत सिंह के लटकाये जाने की ख़बर - लाहौर से प्रकाशित ''द ट्रिब्युन'' के मुख्य पृष्ठ --> .

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भगवती चरण वोहरा

महान क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा भगवती चरण वोहरा (4 जुलाई 1904 - 28 मई 1930)) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी थे। वे हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य और भगत सिंह के साथ ही एक प्रमुख सिद्धांतकार होते हुए भी गिरफ्तार नहीं किए जा सके और न ही वे फांसी पर चढ़े। उनकी मृत्यु बम परिक्षण के दौरान दुर्घटना में हुई। .

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भक्ति यादव

डॉक्टर भक्ति यादव (3 अप्रैल, १९२६ - १४ अगस्त, १९१७) भारत की एक् समाजसेवी चिकित्सक थीं। वे निर्धन लोगों की निःशुल्क चिकित्सा करतीं थीं। उन्हें वर्ष २०१७ मे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। अधिक उम्र होने की वजह से डॉक्टर उस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकी थीं अतः नियमानुसार इंदौर कलेक्टर ने उन्हें उनके घर पर जा कर पुरुस्कार प्रदान किया। वर्ष 1952 में भक्ति यादव इंदौर की पहली महिला एमबीबीएस डॉक्टर बनीं थीं।Parag Natu (Jan 25, 2017) Dainik Bhaskar, Indore .

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भुपेन हजारिका

भुपेन हजारिका (ভূপেন হাজৰিকা भूपेन हाजोरिका) (8 सितंबर, 1926- ५ नवम्बर २०११) भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम से एक बहुमुखी प्रतिभा के गीतकार, संगीतकार और गायक थे। इसके अलावा वे असमिया भाषा के कवि, फिल्म निर्माता, लेखक और असम की संस्कृति और संगीत के अच्छे जानकार भी रहे थे। वे भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे। उन्हें दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम जीवित सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायन, फिल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया। भूपेन हजारिका के गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। हजारिका की असरदार आवाज में जिस किसी ने उनके गीत "दिल हूम हूम करे" और "ओ गंगा तू बहती है क्यों" सुना वह इससे इंकार नहीं कर सकता कि उसके दिल पर भूपेन दा का जादू नहीं चला। अपनी मूल भाषा असमिया के अलावा भूपेन हजारिका हिंदी, बंगला समेत कई अन्य भारतीय भाषाओं में गाना गाते रहे थे। उनहोने फिल्म "गांधी टू हिटलर" में महात्मा गांधी का पसंदीदा भजन "वैष्णव जन" गाया था। उन्हें पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। .

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भूलाभाई देसाई

'''भूलाभाई देसाई''', साथ में हैं डॉ राजेन्द्र प्रसाद एवं जवाहरलाल नेहरू भूलाभाई देसाई भारत के प्रख्यात विधिवेत्ता, प्रमुख संसदीय नेता तथा महात्मा गांधी के विश्वस्त सहयोगी। आजाद हिंद फौज के सेनापति श्री शहनवाज, ढिल्लन तथा सहगल पर राजद्रोह के मुकदमें में सैनिकों का पक्षसमर्थन आपने जिस कुशलता तथा योग्यता से किया, उससे आपकी कीर्ति देश में ही नहीं, विदेश में भी फैल गई। .

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भूख हड़ताल

भूख हड़ताल एक अहिंसक प्रतिरोध या दबाव की एक विधि है जिसमें प्रतिभागियों उपवास कर विरोध करते हैं। मूलतः यह विरोध राजनीतिक होते हैं या दूसरों में अपराध की भावना को भड़काने के लिए किये जाते हैं। आमतौर पर नीति परिवर्तन के रूप में एक विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य के साथ किये जाते हैं। अधिकांश भूख हड़ताली तरल पदार्थ ग्रहण करते हैं लेकिन ठोस पदार्थों का सेवन नहीं किया जाता। आमतौर पर राज्य या वह इकाई जिसके खिलाफ यह भूख हड़ताल की जाती है भूख हड़ताली की हिरासत प्राप्त करने में सक्षम रहते हैं और अक्सर भूख हड़ताल बल के प्रयोग के माध्यम से संस्था द्वारा इच्छा के विरुद्ध खाना खिला कर ख़तम होती है। .

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भीमराव आम्बेडकर

भीमराव रामजी आम्बेडकर (१४ अप्रैल, १८९१ – ६ दिसंबर, १९५६) बाबासाहब आम्बेडकर के नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) के खिलाफ सामाजिक भेद भाव के विरुद्ध अभियान चलाया। श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री, भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की। जीवन के प्रारम्भिक करियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवम वकालत की। बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में बीता; वह भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रचार और बातचीत में शामिल हो गए, पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत और भारत की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। आम्बेडकर की विरासत में लोकप्रिय संस्कृति में कई स्मारक और चित्रण शामिल हैं। .

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मऊ, उत्तर प्रदेश

---- मऊ उत्तर प्रदेश के मऊ जिले का मुख्यालय है। इसका पूर्व नाम 'मऊनाथ भंजन' था। यह जिला लखनऊ के दक्षिण-पूर्व से 282 किलोमीटर और आजमगढ़ के पूर्व से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह शहर तमसा नदी के किनारे बसा है। तमसा नदी शहर के बीच से निकलती/गुजरती है। तथा उत्तरी सीमा से घाघरा नदी बहती है। मऊ जिला का बहुत ही गर्वशाली इतिहास रहा है।पांडवो के वनवास के समय वो मऊ जिले में भी आये थे,आज वो स्थान खुरहत के नाम से जाना जाता है। तथा उत्तरी सीमा पर बसे छोटा सा शहर दोहरीघाट जहा पर राम और परशुराम जी मीले थे। तथा दोहरीघाट से दस किलोमीटर पूर्व सूरजपुर नामक गाँव है,जहां पर श्रवण की समाधिस्थल है,जहाँ दशरथ ने श्रवण को मारा था। । सामान्यत: यह माना जाता है कि 'मऊ' शब्द तुर्किश शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ गढ़, पांडव और छावनी होता है। वस्तुत: इस जगह के इतिहास के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। माना जाता है प्रसिद्ध शासक शेर शाह सूरी के शासनकाल में इस क्षेत्र में कई आर्थिक विकास करवाए गए। वहीं मिलिटरी बेस और शाही मस्जिद के निर्माण में काफी संख्या में श्रमिक और कारीगर मुगल सैनिकों के साथ यहां आए थे। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में भी मऊ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 3 अक्टूबर 1939 ई. को महात्मा गांधी इस जगह पर आए थे। श्रेणी:मऊ जिले के शहर.

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मणि भवन

मणि भवन मणि भवन भारत के मुंबई में स्थित एक ऐतिहासिक महत्व का भवन जहाँ गांधीजी ने काफी समय तक निवास किया और भारत की स्वतंत्रता का आंदोलन चलाया। वर्ष 1917 से 1934 गांधीजी का यह निवास था। यह भवन मुम्बई के गामदेवी क्षेत्र के १९ लेबर्नम मार्ग पर स्थित है। यह भवन रेवाशंकर जगजीवन झावेरी का था जो गांधीजी के मित्र थे। यह काल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण था जब असहयोग आंदोलन, दाण्डी यात्रा, सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे आम लोगों से जुड़े आंदोलन चले। इस दौरान इस घर में कई बैठकें हुईं जिसमें देश के बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया। जब गर्मी होती थी, तो बैठकों का दौर छत पर चलता था। .

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मणिलाल गांधी

मणिलाल मोहनदास गाँधी (28 अक्तूबर1892 – 4 अप्रैल 1956) महात्मा गाँधी और कस्तूरबा गाँधी का चार में से दूसरा पुत्र था। वे इंग्लिश और गुजराती में छपने वाले इंडियन ओपिनयन के संपादक थे। वे 1917 में दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे पर वापस लौट गए। उनकी शादी सुशीला मशरुवाला से 1927 में हुई। उनकी दो पुत्रियां सीता (1928) और इला (1940) और एक पुत्र अरुण (1934) है। .

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मदनलाल पाहवा

गान्धी वध के अभियुक्तों का एक समूह चित्र'' खड़े हुए '': शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे. ''बैठे हुए'': नारायण आप्टे, वीर सावरकर, नाथूराम गोडसे, विष्णु करकरे मदनलाल पाहवा (अंग्रेजी: Madan Lal Pahwa, पंजाबी: ਮਦਨ ਲਾਲ ਪਾਹਵਾ, तमिल: மதன்லால் பக்வா) हिन्दू महासभा के एक कार्यकर्ता थे जिन्होंने नई दिल्ली स्थित बिरला हाउस में गान्धी-वध की तिथि से दस दिन पूर्व २० जनवरी १९४८ को उनकी प्रार्थना सभा में हथगोला फेंका था। उपस्थित जन समुदाय ने उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया था। उस घटना के ठीक १० दिन बाद जब नाथूराम गोडसे ने ३० जनवरी १९४८ को गोली मारकर गान्धी को मौत की नींद सुला दिया तो भारत सरकार ने फटाफट मुकद्दमा चलाकर गोडसे को फाँसी के साथ मदनलाल को भी गान्धी-वध के षड्यन्त्र में शामिल होने व हत्या के प्रयास के आरोप में आजीवन कारावास का दण्ड देकर मामला रफादफा कर दिया। .

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मदर इण्डिया

मदर इण्डिया (Mother India, مدر انڈیا) १९५७ में बनी भारतीय फ़िल्म है जिसे महबूब ख़ान द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया है। फ़िल्म में नर्गिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राज कुमार मुख्य भूमिका में हैं। फ़िल्म महबूब ख़ान द्वारा निर्मित औरत (१९४०) का रीमेक है। यह गरीबी से पीड़ित गाँव में रहने वाली औरत राधा की कहानी है जो कई मुश्किलों का सामना करते हुए अपने बच्चों का पालन पोषण करने और बुरे जागीरदार से बचने की मेहनत करती है। उसकी मेहनत और लगन के बावजूद वह एक देवी-स्वरूप उदाहरण पेश करती है व भारतीय नारी की परिभाषा स्थापित करती है और फिर भी अंत में भले के लिए अपने गुण्डे बेटे को स्वयं मार देती है। वह आज़ादी के बाद के भारत को सबके सामने रखती है। यह फ़िल्म अबतक बनी सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट भारतीय फ़िल्मों में गिनी जाती है और अब तक की भारत की सबसे बढ़िया फ़िल्म गिनी जाती है। इसे १९५८ में तीसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया था। मदर इण्डिया क़िस्मत (१९४३), मुग़ल-ए-आज़म (१९६०) और शोले (१९७५) के साथ उन चुनिन्दा फ़िल्मों में आती है जिन्हें आज भी लोग देखना पसंद करते हैं और यह हिन्दी सांस्कृतिक फ़िल्मों की श्रेणी में विराजमान है। यह फ़िल्म भारत की ओर से पहली बार अकादमी पुरस्कारों के लिए भेजी गई फ़िल्म थी। .

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मदुरई

मदुरै या मदुरई (மதுரை एवं), दक्षिण भारत के तमिल नाडु राज्य के मदुरई जिले का मुख्यालय नगर है। यह भारतीय प्रायद्वीप के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक है।फ्रॉमर्स इण्डिया, द्वारा: पिप्पा देब्र्यून, कीथ बैन, नीलोफर वेंकटरमन, शोनार जोशी इस शहर को अपने प्राचीन मंदिरों के लिये जाना जाता है। इस शहर को कई अन्य नामों से बुलाते हैं, जैसे कूडल मानगर, तुंगानगर (कभी ना सोने वाली नगरी), मल्लिगई मानगर (मोगरे की नगरी) था पूर्व का एथेंस। यह वैगई नदी के किनारे स्थित है। लगभग २५०० वर्ष पुराना यह स्थान तमिल नाडु राज्य का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और व्यावसायिक केंद्र है। यहां का मुख्य आकर्षण मीनाक्षी मंदिर है जिसके ऊंचे गोपुरम और दुर्लभ मूर्तिशिल्प श्रद्धालुओं और सैलानियों को आकर्षित करते हैं। इस कारणं इसे मंदिरों का शहर भी कहते हैं। मदुरै एक समय में तमिल शिक्षा का मुख्य केंद्र था और आज भी यहां शुद्ध तमिल बोली जाती है। यहाँ शिक्षा का प्रबंध उत्तम है। यह नगर जिले का व्यापारिक, औद्योगिक तथा धार्मिक केंद्र है। उद्योगों में सूत कातने, रँगने, मलमल बुनने, लकड़ी पर खुदाई का काम तथा पीतल का काम होता है। यहाँ की जनसंख्या ११ लाख ८ हजार ७५५ (२००४ अनुमानित) है। आधुनिक युग में यह प्रगति के पथ पर अग्रसर है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पाने में प्रयासरत है, किंतु अपनी समृद्ध परंपरा और संस्कृति को भी संरक्षित किए हुए है। इस शहर के प्राचीन यूनान एवं रोम की सभ्यताओं से ५५० ई.पू.

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मधुबनी

मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन १९७२ में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। .

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मधुशाला

मधुशाला हिंदी के बहुत प्रसिद्ध कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) का अनुपम काव्य है। इसमें एक सौ पैंतीस रूबाइयां (यानी चार पंक्तियों वाली कविताएं) हैं। मधुशाला बीसवीं सदी की शुरुआत के हिन्दी साहित्य की अत्यंत महत्वपूर्ण रचना है, जिसमें सूफीवाद का दर्शन होता है। .

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मन्ना डे

मन्ना डे (1 मई 1919 - 24 अक्टूबर 2013), जिन्हें प्यार से मन्ना दा के नाम से भी जाना जाता है, फिल्म जगत के एक सुप्रसिद्ध भारतीय पार्श्व गायक थे। उनका वास्तविक नाम प्रबोध चन्द्र डे था। मन्ना दा ने सन् 1942 में फ़िल्म तमन्ना से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की और 1942 से 2013 तक लगभग 3000 से अधिक गानों को अपनी आवाज दी। मुख्यतः हिन्दी एवं बंगाली फिल्मी गानों के अलावा उन्होंने अन्य भारतीय भाषाओं में भी अपने कुछ गीत रिकॉर्ड करवाये। भारत सरकार ने उन्हें 1971 में पद्म श्री, 2005 में पद्म भूषण एवं 2007 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया। .

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मलयपुरम सिंगरावेलु चेट्टियार

मलयपुरम सिंगरावेलु चेट्टियार (18 फरवरी 1860 – 11 फरवरी 1946) Chennai: Poornimaa Publication, जिन्हें एम॰ सिंगरावेलु या सिंगरावेलुर के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय व्यक्तित्व थे जो एकाधिक क्षेत्रों में अग्रणी नेतृत्वकर्ता रहे। सिंगरावेलु भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सक्रिय भागीदार थे जिन्होंने पहले गांधी के नेतृत्व में योगदान किया और बाद में कम्युनिस्ट लोगों के साथ मिलकर। उन्होंने जीवन के आरंभिक काल में ही बौद्ध मत स्वीकार कर लिया था और उन्होंने मद्रास में अस्पृश्यता के खिलाफ आन्दोलन में भाग लिया। विचारों से वे नास्तिक और भौतिकवादी थे। उन्होंने 1918 में भारत में पहले ट्रेड यूनियन की स्थापना की। भारत में मई दिवस की शुरूआत करने वाले वे प्रथम नेता थे, जब उन्होंने 1 मई 1923 में मद्रास में इसे आयोजित किया। 1924 में कानपुर षड्यंत्र में शामिल थे और इसके बाद 1925 में कानपुर में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही और उन्होंने इसके स्थापना सम्मलेन की अध्यक्षता की थी। .

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महराजगंज जिला

महराजगंज भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय महाराजगंज है। यह भारत-नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इसका जिला मुख्यालय महाराजगंज शहर स्थित है। पहले इस जगह को 'कारापथ' के नाम से जाना जाता था। यह जिला नेपाल के उत्तर, गोरखपुर जिले के दक्षिण, कुशीनगर जिले के पूर्व और सिद्धार्थ नगर व सन्त कबीर नगर जिले के पश्चिम में स्थित है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण स्थल है। .

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महर्षि अरविन्द का शिक्षा दर्शन

श्री अरविन्द ने भारतीय शिक्षा चिन्तन में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने सर्वप्रथम घोषणा की कि मानव सांसारिक जीवन में भी दैवी शक्ति प्राप्त कर सकता है। वे मानते थे कि मानव भौतिक जीवन व्यतीत करते हुए तथा अन्य मानवों की सेवा करते हुए अपने मानस को `अति मानस' (supermind) तथा स्वयं को `अति मानव' (Superman) में परिवर्तित कर सकता है। शिक्षा द्वारा यह संभव है। आज की परिस्थितियों में जब हम अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति एवं परम्परा को भूल कर भौतिकवादी सभ्यता का अंधानुकरण कर रहे हैं, अरविन्द का शिक्षा दर्शन हमें सही दिशा का निर्देश करता हैं। आज धार्मिक एवं अध्यात्मिक जागृति की नितान्त आवश्यकता है। श्री वी आर तनेजा के शब्दों में- .

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महात्मा गाँधी सेतु

महात्मा गाँधी सेतु। महात्मा गांधी सेतु पटना से हाजीपुर को जोड़ने को लिये गंगा नदी पर उत्तर-दक्षिण की दिशा में बना एक पुल है। यह दुनिया का सबसे लम्बा, एक ही नदी पर बना सड़क पुल है। इसकी लम्बाई 5,750 मीटर है। भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इसका उद्घाटन मई 1982 में किया था। इसका निर्माण गैमोन इंडिया लिमिटेड ने किया था। वर्तमान में यह राष्ट्रीय राजमार्ग 19 का हिस्सा है। .

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महात्मा गाँधी जिला

महात्मा गाँधी जिला (Mahatma Gandhi District) टॅक्सस राज्य के ह्युस्टन शहर में जातीय अंत:क्षेत्र है। जगह को अपना यह नाम भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पर मिला है। यहाँ मुख्य रूप से कई भारतीय और पाकिस्तानी रेस्तरां और दुकानें हैं तथा बड़ी भारतीय व पाकिस्तानी आबादी निवास करती है। यह क्षेत्र समान्यतः हिलक्रोफ्ट एवेन्यू के कारण हिलक्रोफ्ट के नाम से जाना जाता है। हिलक्रोफ्ट एवेन्यू वो मुख्य मार्ग है जहाँ पर महात्मा गाँधी जिले का अधिकतर हिस्सा आता है। .

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महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ

महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी में स्थित एक विश्वविद्यालय है। पहले इसे केवल काशी विद्यापीठ के नाम से ही जाना जाता था किन्तु बाद में इसे भारत के महान नेता महात्मा गाँधी को पुनः समर्पित किया गया और उनका नाम इसके साथ जोड़ दिया गया (११ जुलाई १९९५)। इस विश्वविद्यालय में स्नातक, परास्नातक एवं अनुसंधान स्तर की शिक्षा उपलब्ध है। विश्वविद्यालय ने देश के प्रतिष्ठित पत्रिका इंडिया टुडे के सर्वे में देश भर में 13वां स्थान अर्जित किया। .

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महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय

महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय भारत का एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है जो बिहार के मोतिहारी में स्थित है। मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यायल की स्थापना होने से सिर्फ चंपारण बल्कि आसपास के जिलों का शैक्षणिक विकास होगा। मोतिहारी सहित गोपालगंज, बेतिया, शिवहर, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी आदि जिलों के युवा उच्च शिक्षा के लिए दूसरे प्रदेश का रूख करते थे। .

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महात्मा गान्धी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय भारत का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय की स्थापना भारत सरकार ने सन् १९९६ में संसद द्वारा पारित एक अधिनियम द्वारा की थी। इस अधिनियम को भारत के राजपत्र में ८ जनवरी सन् १९९७ को प्रकाशित किया गया। यह विश्वविद्यालय महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित है। गान्धी जी, हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं के प्रबल पक्षधर थे। इसलिये इस विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखना सर्वथा सार्थक है। वर्धा भारत के केन्द्र में स्थित होने के कारण इस विश्वविद्यालय के लिये यह स्थान भी सर्वथा उपयुक्त है। प्रारम्भ में इसके 8 विद्यापीठ अधिकल्पित किये गये जिनके नाम तथा विभाग इस प्रकार हैं: .

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महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय

महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय (MGCGV) मध्य प्रदेश के सतना जिले में मन्दाकिनी नदी के किनारे चित्रकूट में स्थित है। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य महात्मा गांधी के ग्रामीण विकास के स्वप्न को साकार कर ग्राम स्वराज्य की स्थापना है। अत: सम्यक तकनीक की शिक्षा और इसका प्रसार करना इसका प्रमुख लक्ष्य है। इसकी स्थापना १२ फ़रवरी सन् १९९१ को महाशिवरात्रि के दिन मध्यप्रदेश सरकार के अधिनियम (९, १९९१) के द्वारा हुई। .

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महात्मा गांधी सम्मान

महात्मा गांधी सम्मान, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 125वें जन्म वर्ष की पावन स्मृति में गांधी विचार दर्शन के अनुरूप समाज में रचनात्मक पहल, साम्प्रदायिक सद्भाव एवं सामाजिक समरसता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश शासन ने वर्ष 1995 में स्थापित किया है। गांधी सम्मान का मूल प्रयोजन गांधी जी की विचारधारा के अनुसार अहिंसक उपायों द्वारा सामाजिक और आथिर्क क्रांति के क्षेत्र में संस्थागत साधना को सम्मानित और प्रोत्साहित करना है। .

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महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान

महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान (एमगिरि) वर्धा में स्थित है। यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के अधीन एक राष्ट्रीय संस्थान है। .

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महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक मत्वपूर्ण योगदान होता है। अतः गांधीजी का शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष योगदान रहा है। उनका मूलमंत्र था - 'शोषण-विहीन समाज की स्थापना करना'। उसके लिए सभी को शिक्षित होना चाहिए। क्योंकि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है। अतः गांधीजी ने जो शिक्षा के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों की व्याख्या की तथा प्रारंभिक शिक्षा योजना उनके शिक्षादर्शन का मूर्त रूप है। अतएव उनका शिक्षादर्शन उनको एक शिक्षाशास्त्री के रूप में भी समाज के सामने प्रस्तुत करता है। उनका शिक्षा के प्रति जो योगदान था वह अद्वितीय था। उनका मानना था कि मेरे प्रिय भारत में बच्चों को 3H की शिक्षा अर्थात् head hand heart की शिक्षा दी जावे। शिक्षा उन्हें स्वावलंबी बनाये और वे देश को मतबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। .

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महात्मा गांधी के अनुयायियों की सूची

वैसे तो महात्मा गांधी के अनुयायियों एवं शिष्यों की संख्या अनगिनत है। महत्वपूर्ण नेता और राजनीतिक गतिविधियाँ गाँधीजी से प्रभावित थीं। यहाँ उनके प्रमुख अनुयायियों की सूची दी जा रही है।.

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महात्मा गांधी की हत्या

मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 की शाम को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में गोली मारकर की गयी थी। वे रोज शाम को प्रार्थना किया करते थे। 30 जनवरी 1948 की शाम को जब वे संध्याकालीन प्रार्थना के लिए जा रहे थे तभी नाथूराम गोडसे नाम के व्यक्ति ने पहले उनके पैर छुए और फिर सामने से उन पर बैरेटा पिस्तौल से तीन गोलियाँ दाग दीं। उस समय गान्धी अपने अनुचरों से घिरे हुए थे। इस मुकदमे में नाथूराम गोडसे सहित आठ लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बनाया गया था। इन आठ लोगों में से तीन आरोपियों शंकर किस्तैया, दिगम्बर बड़गे, वीर सावरकर, में से दिगम्बर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय में अपील करने पर माफ कर दिया गया। वीर सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिलने की वजह से अदालत ने जुर्म से मुक्त कर दिया। बाद में सावरकर के निधन पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।सावरकर पर सरकार द्वारा जारी डाक टिकट और अन्त में बचे पाँच अभियुक्तों में से तीन - गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास हुआ तथा दो- नाथूराम गोडसे व नारायण आप्टे को फाँसी दे दी गयी। .

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महादेव देसाईं

महादेव देसाईं (गुजराती: મહાદેવ દેસાઈ) (१ जनवरी १८९२ - १५ अगस्त १९४२) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी एवं राष्ट्रवादी लेखक थे। किन्तु उनकी प्रसिद्धि इस कारण से ज्यादा है कि वे लम्बे समय (लगभग २५ वर्ष) तक गांधीजी के निज सचिव रहे। .

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महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा (२६ मार्च १९०७ — ११ सितंबर १९८७) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया। उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। वर्ष २००७ उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया।२७ अप्रैल १९८२ को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया था। गूगल ने इस दिवस की याद में वर्ष २०१८ में गूगल डूडल के माध्यम से मनाया । .

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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

---- महीयसी-महादेवी आजकल के मुखपृष्ठ से महादेवी वर्मा (26 मार्च, 1907 — 11 सितंबर, 1987) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं। उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा गया है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर बनी रहीं। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। Mahadevi varma and subhadra kumari chohan bachapan ki friend's thi .

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महानतम भारतीय (सर्वेक्षण)

सबसे महान भारतीय या महानतम भारतीय (अंग्रेजी:The Greatest Indian) एक सर्वेक्षण जो रिलायंस मोबाइल द्वारा प्रायोजित है और सीएनएन आईबीएन और हिस्ट्री चैनल के साथ साझेदारी में, आउटलुक पत्रिका द्वारा आयोजित किया गया था। आधुनिक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपुर्ण योगदान और भारतीयों के जीवन में अद्वितीय असाधारन बदलाव लाने वाला महानतम शख्सियत खोजने के लिए भारत में दि ग्रेटेस्ट इंडियन या सबसे महानतम भारतीय इस कार्यक्रम का जनमत सर्वेक्षण जून 2012 से अगस्त 2012 दौरान आयोजित किया गया था, इसके विजेता, डॉ॰ भीमराव आंबेडकर हैं, 11 अगस्त को इसकी घोषणा हुई थी। इस सर्वेक्षण में करीब 2 करोड़ वोटिंग डॉ॰ आंबेडकर को हुई थी। इस सर्वेक्षण में पहले भारत के विभिन्न छेत्रों (जैसे, कला, राजनिती, अर्थशास्त्र, समाज सेवा, खेल, उद्योग, संगीत आदी) के 100 महान हस्तियों में से ज्यूरी के जरीये उनमें से 50 महान भारतीयों को चूना गया। बाद में 50 नामों में से वोटिंग के जरीये जवाहरलाल नेहरू से ए.पी.जे. अब्दुल कलाम तक के 10 नाम रखे गये और एक बार फिर सभी नागरिकों द्वारा की गई अंतरराष्ट्रीय ऑनलाईन वोटिंग ओपन की गई, इसमें सर्वाधिक मतदान या मतदान डॉ॰ भीमराव आंबेडकर को मिले, वे दस में नंबर वन पर ही चुने गयें। भारत की स्वतंत्रता के बाद सबसे महान या महानतम भारतीय डॉ॰ भीमराव आंबेडकर हैं। वे स्वतंत्र्यता पूर्व के भी महानतम भारतीय है। महानतम ब्रिटेन स्पिन (Greatest Britons spin-offs) नापसंद के अन्य संस्करणों के विपरीत, महानतम भारतीय इतिहास के सभी समय अवधि से लोगों को शामिल नहीं किया था। दो कारणों से इस चुनाव के लिए दिए गए थे। इसमें महात्मा गांधी को नहीं लिया गया, उन्हें बिना सर्वेक्षण के महान बना दिया, नहीं तो विशेष रूप से डॉ.

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महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे

मराठीभाषी प्रदेश में राष्ट्रभाषा का प्रचार करने के हेतु गांधी जी की प्रेरणा से पूना में महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा की स्थापना हुई। आचार्य काकासाहब कालेलकर की अध्यक्षता में 22 मई 1937 को पूना में महाराष्ट्र के रचनात्मक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक और सांस्कृतिक नेताओं आदि का सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें महाराष्ट्र हिंदी प्रचार समिति के नाम से एक संगठन बनाया गया। आठ साल तक यह समिति, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा से संबद्ध रही। भाषा विषयक सिद्धांत के मतभेद के कारण इस संगठन ने सम्मेलन तथा वर्धा समिति से संबंध तोड़ दिया। 12 अक्टूबर 1945 को महाराष्ट्र के प्रमुख कार्यकर्ताओं की एक बैठक हुई, जिसमें स्वतंत्र रूप से कार्य करने का निश्चय किया गया। संस्था अब "महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा" के नाम से काम करने लगी। .

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महाराष्ट्र राजभाषा सभा, पूना

मराठी भाषी प्रदेश में राष्ट्रभाषा का प्रचार करने के हेतु गांधी जी की प्रेरणा से महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा की स्थापना हुई। आचार्य काकासाहब कालेलकर की अध्यक्षता में तादृ 22 मई 1937 को पूना में महाराष्ट्र के रचनात्मक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक और सांस्कृतिक नेताओं आदि का सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें 'महाराष्ट्र हिंदी प्रचार समिति' के नाम से एक संगठन बनाया गया। आठ साल तक यह समिति राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा से संबद्ध रही। भाषा विषयक सिद्धांत के मतभेद के कारण इस संगठन ने संमेलन तथा वर्धा समिति से संबंध तोड़ दिया। 12 अक्टूबर 1945 को महाराष्ट्र के प्रमुख कार्यकर्ताओं की एक बैठक हुई, जिसमें स्वतंत्र रूप से कार्य करने का निश्चय किया गया। संस्था अब महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के नाम से काम करने लगी। .

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मातंगिनी हाजरा

मातंगिनी हाजरा (19 अक्टूबर 1870) भारत की क्रान्तिकारी थीं। उन्हें 'गाँधी बुढ़ी' के नाम से जाना जाता था। मातंगिनी हाजरा का जन्म पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) मिदनापुर जिले के होगला ग्राम में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। गरीबी के कारण 12 वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया। इस पर भी दुर्भाग्य उनके पीछे पड़ा रहा। छह वर्ष बाद वह निःसन्तान ही विधवा हो गयीं। पति की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र उससे बहुत घृणा करता था। अतः मातंगिनी एक अलग झोपड़ी में रहकर मजदूरी से जीवनयापन करने लगीं। गाँव वालों के दुःख-सुख में सदा सहभागी रहने के कारण वे पूरे गाँव में माँ के समान पूज्य हो गयीं। 1932 में गान्धी जी के नेतृत्व में देश भर में स्वाधीनता आन्दोलन चला। वन्देमातरम् का घोष करते हुए जुलूस प्रतिदिन निकलते थे। जब ऐसा एक जुलूस मातंगिनी के घर के पास से निकला, तो उसने बंगाली परम्परा के अनुसार शंख ध्वनि से उसका स्वागत किया और जुलूस के साथ चल दी। तामलुक के कृष्णगंज बाजार में पहुँचकर एक सभा हुई। वहाँ मातंगिनी ने सबके साथ स्वाधीनता संग्राम में तन, मन, धन से संघर्ष करने की शपथ ली। मातंगिनी को अफीम की लत थी; पर अब इसके बदले उनके सिर पर स्वाधीनता का नशा सवार हो गया। 17 जनवरी, 1933 को ‘करबन्दी आन्दोलन’ को दबाने के लिए बंगाल के तत्कालीन गर्वनर एण्डरसन तामलुक आये, तो उनके विरोध में प्रदर्शन हुआ। वीरांगना मातंगिनी हाजरा सबसे आगे काला झण्डा लिये डटी थीं। वह ब्रिटिश शासन के विरोध में नारे लगाते हुई दरबार तक पहुँच गयीं। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और छह माह का सश्रम कारावास देकर मुर्शिदाबाद जेल में बन्द कर दिया। 1935 में तामलुक क्षेत्र भीषण बाढ़ के कारण हैजा और चेचक की चपेट में आ गया। मातंगिनी अपनी जान की चिन्ता किये बिना राहत कार्य में जुट गयीं। 1942 में जब ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ ने जोर पकड़ा, तो मातंगिनी उसमें कूद पड़ीं। आठ सितम्बर को तामलुक में हुए एक प्रदर्शन में पुलिस की गोली से तीन स्वाधीनता सेनानी मारे गये। लोगों ने इसके विरोध में 29 सितम्बर को और भी बड़ी रैली निकालने का निश्चय किया। इसके लिये मातंगिनी ने गाँव-गाँव में घूमकर रैली के लिए 5,000 लोगों को तैयार किया। सब दोपहर में सरकारी डाक बंगले पर पहुँच गये। तभी पुलिस की बन्दूकें गरज उठीं। मातंगिनी एक चबूतरे पर खड़ी होकर नारे लगवा रही थीं। एक गोली उनके बायें हाथ में लगी। उन्होंने तिरंगे झण्डे को गिरने से पहले ही दूसरे हाथ में ले लिया। तभी दूसरी गोली उनके दाहिने हाथ में और तीसरी उनके माथे पर लगी। मातंगिनी की मृत देह वहीं लुढ़क गयी। इस बलिदान से पूरे क्षेत्र में इतना जोश उमड़ा कि दस दिन के अन्दर ही लोगों ने अंग्रेजों को खदेड़कर वहाँ स्वाधीन सरकार स्थापित कर दी, जिसने 21 महीने तक काम किया। दिसम्बर, 1974 में भारत की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गान्धी ने अपने प्रवास के समय तामलुक में मांतगिनी हाजरा की मूर्ति का अनावरण कर उन्हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। .

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मातृभाषा

अजबैजान में मातृभाषा का स्मारक (अना दिलि) जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। .

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मानववाद

मानववाद या मनुष्यवाद (ह्यूमनिज़्म / humanism) दर्शनशास्त्र में उस विचारधारा को कहते हैं जो मनुष्यों के मूल्यों और उन से सम्बंधित मसलों पर ध्यान देती है। अक्सर मानववाद में धार्मिक दृष्टिकोणों और अलौकिक विचार-पद्धतियों को हीन समझा जाता है और तर्कशक्ति, न्यायिक सिद्धांतों और आचारनीति (ऍथ़िक्स) पर ज़ोर होता है। मानववाद की एक "धार्मिक मानववाद" नाम की शाखा भी है जो धार्मिक विचारों को मानववाद में जगह देने का प्रयत्न करती है। .

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मायाराम सुरजन

मायाराम सुरजन (29 मार्च 1923 - ३१ दिसम्बर १९९४) भारत के एक पत्रकार थे। वे `नवभारत' के प्रथम सम्पादक थे। उन्होंने 'देशबन्धु' नामक समाचार पत्र आरम्भ किया।। पत्रकारिता जगत के मध्यप्रदेश राज्य के मार्गदर्शक के रूप में ख्यात श्री मायाराम सुरजन सही मायनों में स्वप्नदृष्टा और कर्मनिष्ठ तथा अपने बलबूते सिद्ध एक आदर्श पुरुष थे। वे बहुपठित और जनप्रिय राजनैतिक टिप्पणीकार थे और अनेक कृतियों के लेखक भी। उन्हें पूरे साठ वर्ष (१९४४-१९९४) की पत्रकारिता का अनुभव रहा। वे अनेक सामाजिक और साहित्यिक संस्थाओं के साथ-साथ मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन से भी वे जुड़े रहे, जिसके वे १८ वर्ष तक अध्यक्ष रहे। .

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मार्टिन लूथर किंग

मार्टिन लूथर से भ्रमित न हों। यह लेख डॉ॰ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर के बारे में है जो अलग है right डॉ॰ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर (15 जनवरी 1929 – 4 अप्रैल 1968) अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऐक्टिविस्ट) एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे। उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है। उनके प्रयत्नों से अमेरिका में नागरिक अधिकारों के क्षेत्र में प्रगति हुई; इसलिये उन्हें आज मानव अधिकारों के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। दो चर्चों ने उनको सन्त के रूप में भी मान्यता प्रदान की है।d.r martin ka americy rashtra me bahut bada yogdaan raha hai .

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मारीशस के हिन्दी विद्वान

मारीशस में २ नवंबर १८३४ में एटलस नामक जहाज़ में बिहार के छोटा नागपुर इलाके से पहली बार विधिवत गिरमिटियों को लाया गया था। १९२० तक मारीशस में साढ़े चार लाख भारतीय गिरमिटिए लाए गए, जिनमें अधिकतर भोजपुरी बोलने वाले थे। उन्नीसवीं सदी के अंत तक बोलचाल की भाषा के रूप में यहाँ भोजपुरी का विकास हो चुका था। १९०१ में बैरिस्टर मोहनदास करमचन्द गांधी यहाँ आकर रहे और भारतीयों की दशा और कठिनाइयों को समझा। उन्हें कानूनी सलाह उपलब्ध कराने और सहायता करने के लिए उन्होंने १९०९ में एक योग्य बैरिस्टर मगनलाल मणिलाल को मारीशस भेजा। बैरिस्टर मगनलाल मणिलाल ने १५ मार्च १९०९ में एक साप्ताहिक पत्र का आरंभ किया जिसकी भाषा अँग्रेजी और गुजराती थी। बाद में गुजराती के स्थान पर यह पत्र हिंदी में प्रकाशित होने लगा क्यों कि आमतौर पर सभी भारतीय लोगों को हिंदी आसानी से समझ में आती थी। इसके बाद ही मारीशस में हिंदी का विकास हुआ। इस दृष्टि से वे मारीशस के पहले हिंदी विद्वान माने जाते हैं। इसके बाद अनेक लोगों ने अध्यापन, पत्रकारिता और लेखन द्वारा मारीशस में हिंदी का विकास किया। इन लोगों में प्रमुख नाम हैं- मुकेश्वर चुन्नी, पं. आत्माराम विश्वनाथ, पं. लक्ष्मीनारायण चतुर्वेदी रसपुंज, पं. रामावध शर्मा, पं. काशीनाथ किष्टो, पं. नरसिंहदास, श्री जयनारायण राय, प्रो॰ वासुदेव विष्णुदयाल, डॉ॰ सर शिवसागर रामगुलाम, प्रो॰ राम प्रकाश, बैरिस्टर सोमदत्त बखोरी, पं.मोहनलाल मोहित, आर्य रत्न, डॉ॰ ब्रज भारत, श्री सूर्यमंजर भगत, सर खेर जगतसिंह, स्वामी कृष्णानंद सरस्वती, श्री दुखी गंगा, श्री रामनाथ जीता, पं. रामदत्त महावीर, रामरेखा रति, पं. श्रीनिवास जगदत्त, पं. उमाशंकर जगदत्ता, पं. दौलत शर्मा, श्री दयानंदलाल वसंतराय, अभिमन्यु अनत आदि। .

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माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है। .

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मुनि जिनविजय

मुनि जिनविजय (१८८८-१९७६) ने अपने जीवनकाल में अनेक अमूल्य ग्रंथों का अध्ययन, संपादन तथा प्रकाशन किया। पुरातत्वचार्य मुनि जिनविजय ने साहित्य तथा संस्कृति के प्रोत्साहन हेतु कई शोध संस्थानों का संस्थापन तथा संचालन किया। भारत सरकार ने आपको पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया। .

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मुनीश्वर दत्त उपाध्याय

पंडित मुनीश्वर दत्त उपाध्याय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता,शिक्षकविद थे। वे भारत के प्रथम एवं द्वितीय लोकसभा में सांसद थे। .

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मुम्बई

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित मुंंबई (पूर्व नाम बम्बई), भारतीय राज्य महाराष्ट्र की राजधानी है। इसकी अनुमानित जनसंख्या ३ करोड़ २९ लाख है जो देश की पहली सर्वाधिक आबादी वाली नगरी है। इसका गठन लावा निर्मित सात छोटे-छोटे द्वीपों द्वारा हुआ है एवं यह पुल द्वारा प्रमुख भू-खंड के साथ जुड़ा हुआ है। मुम्बई बन्दरगाह भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ सामुद्रिक बन्दरगाह है। मुम्बई का तट कटा-फटा है जिसके कारण इसका पोताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है। यूरोप, अमेरिका, अफ़्रीका आदि पश्चिमी देशों से जलमार्ग या वायुमार्ग से आनेवाले जहाज यात्री एवं पर्यटक सर्वप्रथम मुम्बई ही आते हैं इसलिए मुम्बई को भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है। मुम्बई भारत का सर्ववृहत्तम वाणिज्यिक केन्द्र है। जिसकी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 5% की भागीदारी है। यह सम्पूर्ण भारत के औद्योगिक उत्पाद का 25%, नौवहन व्यापार का 40%, एवं भारतीय अर्थ व्यवस्था के पूंजी लेनदेन का 70% भागीदार है। मुंबई विश्व के सर्वोच्च दस वाणिज्यिक केन्द्रों में से एक है। भारत के अधिकांश बैंक एवं सौदागरी कार्यालयों के प्रमुख कार्यालय एवं कई महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थान जैसे भारतीय रिज़र्व बैंक, बम्बई स्टॉक एक्स्चेंज, नेशनल स्टऑक एक्स्चेंज एवं अनेक भारतीय कम्पनियों के निगमित मुख्यालय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुम्बई में अवस्थित हैं। इसलिए इसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहते हैं। नगर में भारत का हिन्दी चलचित्र एवं दूरदर्शन उद्योग भी है, जो बॉलीवुड नाम से प्रसिद्ध है। मुंबई की व्यवसायिक अपॊर्ट्युनिटी, व उच्च जीवन स्तर पूरे भारतवर्ष भर के लोगों को आकर्षित करती है, जिसके कारण यह नगर विभिन्न समाजों व संस्कृतियों का मिश्रण बन गया है। मुंबई पत्तन भारत के लगभग आधे समुद्री माल की आवाजाही करता है। .

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मुजफ्फरपुर

मुज़फ्फरपुर उत्तरी बिहार राज्य के तिरहुत प्रमंडल का मुख्यालय तथा मुज़फ्फरपुर ज़िले का प्रमुख शहर एवं मुख्यालय है। अपने सूती वस्त्र उद्योग, लोहे की चूड़ियों, शहद तथा आम और लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिये यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है, खासकर यहाँ की शाही लीची का कोई जोड़ नहीं है। यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी यहाँ से लीची भेजी जाती है। 2017 मे मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी के लिये चयनित हुआ है। अपने उर्वरक भूमि और स्वादिष्ट फलों के स्वाद के लिये मुजफ्फरपुर देश विदेश मे "स्वीटसिटी" के नाम से जाना जाता है। मुजफ्फरपुर थर्मल पावर प्लांट देशभर के सबसे महत्वपूर्ण बिजली उत्पादन केंद्रो मे से एक है। .

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मुंबई समाचार

मुंबई समाचार (Gujarati:મુંબઈ સમાચાર) भारत में प्रकाशित होने वाला गुजराती भाषा का एशिया के सब से पुराने वर्तमानपत्रों में से एक और गुजराती का प्रथम समाचार पत्र (अखबार) है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। इस्वीसन १८२२ में इसके प्रकाशन की शरुआत हुई थी। अहमदाबाद, वड़ोदरा, बंगलौर और नयी दिल्ली में इसकी शाखाएँ हैं। ये भारत सरकार के समाचारपत्रों के पंजीयक कार्यालय द्वारा आरएनआई क्रमांक से पंजीकृत है। .

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मुंबई का इतिहास

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मृदु शक्ति

जोसेफ निये द्वारा लिखित पुस्तक: सॉफ्ट पॉवर अंतरराष्ट्रीय संबन्धों के सन्दर्भ में, सहयोग तथा किसी प्रकार के आकर्षण के द्वारा वांछित परिणाम प्राप्त करने की क्षमता सौम्य शक्ति या मृदु शक्ति (Soft power) कहलाती है। इसके विपरीत 'कठोर शक्ति' (hard power) उस क्षमता को कहते हैं जो बल (सैन्य बल) द्वारा या धन देकर इच्छित परिणाम प्राप्त करती है। मृदु शक्ति की अवधारणा हारवर्ड विश्वविद्यालय के जोसेफ निये (Joseph Nye) द्वारा विकसित की गयी। उन्होने 'सॉफ्ट पॉवर' शब्द का प्रयोग सबसे पहले १९९० में लिखित अपनी पुस्तक 'बाउण्ड टू लीड: द चेंजिंग नेचर ऑफ अमेरिकन पॉवर' में किया। उन्होने इसको 'सॉफ्ट पॉवर: द मीन्स तू सक्सेस इन वर्ल्द पॉलिटिक्स' नामक अपनी अगली पुस्तक में और विकसित किया। आजकल इस शब्द का प्रयोग अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के सन्दर्भ में बहुत अधिक प्रयुक्त होता है। सन २०१३ के मोनोकिल सॉफ्ट पॉवर सर्वे के अनुसार जर्मनी सर्वाधिक सौम्य शक्ति (सॉफ्ट पॉवर) वाला देश है। .

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मैडम तुसाद संग्रहालय

मैडम तुसाद संग्रहालय लन्दन में स्थापित मोम की मूर्तियों का संग्रहालय हैं। इसकी अन्य साखाएँ विश्व के प्रमुख शहरों मे मे हैं। इसकी स्थापना 1835 में मोम शिल्पकार मेरी तुसाद ने की थी। .

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मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली साबित हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो 'पंचवटी' से लेकर जयद्रथ वध, यशोधरा और साकेत तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। साकेत उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। .

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मॉरिशियाई रुपया

मॉरिशियाई रुपया (चिह्न: ₨; आईएसओ 4217 कोड: MUR) मॉरीशस का मुद्रा है। कई अन्य मुद्राओं को भी रुपया कहा जाता है। .

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मोटूरि सत्यनारायण

200pxमोटूरि सत्‍यनारायण (२ फ़रवरी १९०२ - ६ मार्च १९९५) दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार आन्दोलन के संगठक, हिन्दी के प्रचार-प्रसार-विकास के युग-पुरुष, महात्मा गांधी से प्रभावित एवं गाँधी-दर्शन एवं जीवन मूल्यों के प्रतीक, हिन्दी को राजभाषा घोषित कराने तथा हिन्दी के राजभाषा के स्वरूप का निर्धारण कराने वाले सदस्यों में दक्षिण भारत के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक थे। वे दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा तथा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निर्माता भी हैं। .

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मोपला विद्रोह

केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा १९२1में स्थानीय जमीदारो एवं ब्रितानियों के विरुद्ध किया गया विद्रोह मोपला विद्रोह कहलाता है। यह विद्रोह मालाबार के एरनद और वल्लुवानद तालुका में खिलाफत आन्दोलन के विरुद्ध अंग्रेजों द्वारा की गयी दमनात्मक कार्यवाही के विरुद्ध आरम्भ हुआ था। इसमें काफी संख्या में हिन्दुओं का कत्ल और अत्याचार हुआ। इसी को आधार बनाकर विनायक दामोदर सावरकर ने 'मोपला' नामक उपन्यास की रचना की है। केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपलाओं द्वारा 1922ई.

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मीराबेन

मीराबेन (२२ नवम्बर १८९२ - २० जुलाई १९८२) का मूल नाम 'मैडलिन स्‍लेड' (Madeleine Slade) था। वे एक ब्रिटिश सैन्‍य अधिकारी की बेटी थीं। गाँधीजी के व्‍यक्तित्‍व के जादू में बँधी सात समंदर पार काले लोगों के देश हिंदुस्‍तान चली आई और फिर यहीं की होकर रह गईं। गाँधी ने उन्‍हें नाम दिया था - 'मीरा बेन'। मीरा बेन सादी धोती पहनती, सूत कातती, गाँव-गाँव घूमती। वह गोरी नस्‍ल की अँग्रेज थीं, लेकिन हिंदुस्‍तान की आजादी के पक्ष में थी। उन्‍होंने जरूर भारत की धरती पर जन्‍म नहीं लिया था, लेकिन वह सही मायनों में हिंदुस्‍तानी थीं। गाँधी का अपनी इस विदेशी पुत्री पर विशेष अनुराग था। .

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यशपाल

---- यशपाल (३ दिसम्बर १९०३ - २६ दिसम्बर १९७६) का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन १९७० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। .

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यंग इण्डिया

यंग इंडिया यंग इंडिया (Young India) एक साप्ताहिक पत्रिका थी जिसे गांधीजी प्रकाशित करते थे। पत्रिका अग्रेजी में निकलती थी। गांधीजी ने अपने विचार एवं दर्शन को प्रसारित करने लिये आरम्भ किया था। इसके लेखों में अनेक सूक्तियाँ होती थीं जो लोगों के लिये महान प्रेरणा का कार्य करती थीं। श्रेणी:महात्मा गांधी.

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युगल किशोर सिंह

ठाकुर युगल किशोर सिंह (1908–1983) एक भारतीय राजनीतिज्ञ, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी व सहकारिता क्रांति के जनक थे। वे बिहार में मुजफ्फरपुर उत्तर पश्चिम संसदीय निर्वाचन क्षेत्र (वर्तमान में शिवहर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। उन्होने महात्मा गांधी की अगुआई में भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लिया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रखर कार्यकर्ता रहे हैं। केरल की पूर्व राज्यपाल राम दुलारी सिन्हा उनकी पत्नी थीं। उनके नाम पर उनके पुत्र मधुरेन्द्र कुमार सिंह के द्वारा सीतामढ़ी में 'ठाकुर युगल किशोर सिंह महाविद्यालय' की स्थापना की गई है। .

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यूनियन बैंक ऑफ इंडिया

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (Union Bank of India) भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की एक इकाई है, जिसकी 55.43% अंश पूंजी भारत सरकार के पास है। बैंक 20 अगस्त 2002 को आरंभिक पब्लिक ऑफर (आई पी ओ) और फरवरी 2006 में फ्लो-ऑन पब्लिक ऑफर के साथ पूँजी बाजार में आया। वर्तमान में, बैंक की 44.57% अंश पूंजी संस्थाओं, व्यक्तियों एवं अन्यों के पास हैं। विगत वर्षो में, बैंक ने एक टेक्नो-सेवी बैंक होने की ख्याति अर्जित की है और आधुनिक बैंकिंग विचारधारा वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में एक अग्रणी बैंक है। यह 2002 में कोर बैंकिंग सॉल्यूशन आरंभ करने वाला एक अग्रणी बैंक है। इस सॉल्यूशन के अंतर्गत बैंक की सभी शाखाएं और 1135 एटीएम, सभी कोर बैकिंग ग्राहकों चाहे वे व्यक्ति हों या कार्पोरेट, ऑन-लाइन टेलीबैंकिंग सुविधा के साथ जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, हमारी बहुपयोगी इंटरनेट बैंकिंग सेवा ग्राहकों को उनके खातों से संबंधित व्यापक सूचनाएं एवं बैंकिंग के विभिन्न पहलुओं की जानकारी प्रदान करती है। हमारी नियमित बैंकिंग सेवाओं के अतिरिक्त, नकदी प्रबंधन सेवाएं, बीमा, म्युचुअल फंडों और डीमैट जैसी अन्य मूल्य-वर्धित सेवाएं भी ग्राहक प्राप्त कर सकते हैं। .

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यूनेस्को मदनजीत सिंह पुरस्कार

संयुक्त राष्ट्र का प्रतिष्ठित पुरस्कार जिसकी स्थापना शांति दूत महात्मा गांधी के जीवन से प्रेरित होकर की गई थी। महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर वर्ष 1995 में शुरु किए गए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की स्थापना में भारतीय राजनयिक तथा यूनेस्को के सदभावना राजदूत मदनजीत सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। सहिष्णुता और अहिंसा को प्रोत्साहित करने के लिए हर दो वर्ष पर यह पुरस्कार व्यक्तियों या संस्थानों को प्रदान किया जाता है। इसमें पुरस्कार स्वरूप दस हजार डॉलर की राशि दी जाती है। यह पुरस्कार 16 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस पर दिया जाता है। .

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येल्लप्रगड सुब्बाराव

येल्लप्रगड सुब्बाराव (యెల్లప్రగడ సుబ్బారావు) (12 जनवरी 1895–9 अगस्त 1948) एक भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अपने कैरियर का अधिकतर भाग इन्होने अमेरिका में बिताया था लेकिन इसके बावजूद भी ये वहाँ एक विदेशी ही बने रहे और ग्रीन कार्ड नहीं लिया, हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के कुछ सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा अनुसंधानों का इन्होने नेतृत्व किया था। एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट (ए.टी.पी.) के अलगाव के बावजूद इन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक पद नहीं दिया गया।.

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योगेश्वर

योगेश्वरजी (१५ अगस्त १९२१ - १८ मार्च १९८४) बीसवीं सदी में गुजरात में उत्पन्न संत, योगी, दार्शनिक और साहित्यकार थे। हिमालय में जाकर कड़ी तपस्या करने के बाद समाज को आध्यात्म के मार्ग पर चलने के लिए उन्होंने मार्गदर्शन दिया। .

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रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के एकमात्र नोबल पुरस्कार विजेता हैं। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बाँग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं। .

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रमेश चन्द्र झा

रमेशचन्द्र झा (8 मई 1928 - 7 अप्रैल 1994) भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय क्रांतिकारी थे जिन्होंने बाद में साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। वे बिहार के एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ हिन्दी के कवि, उपन्यासकार और पत्रकार भी थे। बिहार राज्य के चम्पारण जिले का फुलवरिया गाँव उनकी जन्मस्थली है। उनकी कविताओं, कहानियों और ग़ज़लों में जहाँ एक तरफ़ देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर है, वहीं दुसरी तरफ़ मानव मूल्यों और जीवन के संघर्षों की भी अभिव्यक्ति है। आम लोगों के जीवन का संघर्ष, उनके सपने और उनकी उम्मीदें रमेश चन्द्र झा कविताओं का मुख्य स्वर है। "अपने और सपने: चम्पारन की साहित्य यात्रा" नाम के एक शोध-परक पुस्तक में उन्होंने चम्पारण की समृद्ध साहित्यिक विरासत को भी बखूबी सहेजा है। यह पुस्तक न केवल पूर्वजों के साहित्यिक कार्यों को उजागर करता है बल्कि आने वाले संभावी साहित्यिक पीढ़ी की भी चर्चा करती है। .

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रानी गाइदिन्ल्यू

रानी गिडालू रानी गिडालू या रानी गाइदिन्ल्यू (Gaidinliu; 1915–1993) भारत की नागा आध्यात्मिक एवं राजनीतिक नेत्री थीं जिन्होने भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया। उनको भारत सरकार द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में सन १९८२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। http://pib.nic.in/newsite/hindifeature.aspx?relid.

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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राम सुतार

राम सुतार (अंग्रेजी: Ram Vanji Sutar, जन्म: 19 फ़रवरी 1925) भारत के एक सुप्रसिद्ध मूर्तिकार हैं। महाराष्ट्र में जन्मे इस शिल्पकार का पूरा नाम राम वनजी सुतार है। आपने कई महापुरुषों की बहुत विशाल मूर्तियाँ बनायीं और उनके माध्यम से प्रचुर मात्रा में नाम और नामा दोनों कमाया। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमन्त्रित्व काल में भारत सरकार ने आपकी कलात्मक शिल्प साधना को सम्मानित करते हुए 1999 में पद्मश्री से अलंकृत किया। .

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रामदेवी चौधरी

रामदेवी चौधरी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थीं। उड़ीसा के लोगों उन्हें माँ कहते थे। वह गोपाल बल्लाव दास की बेटी थीं और १५ वर्ष की आयु में, उनकी गोपाबन्धु चौधरी से शादी हुई।.

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रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962) हिन्दी भाषा के 'पूर्व छायावाद युग' के कवि थे। कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना। वह गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यंत प्रभावित थे। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम 'लरिकाई को प्रेम' है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। 'बा और बापू' उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है। ‘स्वप्न’ पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। .

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राममनोहर लोहिया

डॉ॰ राममनोहर लोहिया डॉ॰ राममनोहर लोहिया (जन्म - मार्च २३, इ.स. १९१० - मृत्यु - १२ अक्टूबर, इ.स. १९६७) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे। .

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रामराज्य

हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्थ शासन रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रूपक (प्रतीक) के रूम में किया जाता है। रामराज्य, लोकतन्त्र का परिमार्जित रूप माना जा सकता है। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधीजी की चाह थी। गांधीजी ने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद ग्राम स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी। .

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राष्ट्रपिता

राष्ट्रपिता दो शब्दों "राष्ट्र" अर्थात - देश या वतन और "पिता" अर्थात जनक शब्दों को समन्वय है, जिसका अंग्रेजी अनुवाद 'father of the nation' है। विश्व के कुछ देशों के राष्ट्रपिता हैं.

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राष्ट्रीय दिवस

ब्राजील की स्वतन्त्रता मनाने के लिये ''आजादी या मौत'' नामक प्रसिद्ध पेंटिंग राष्ट्रीय दिवस किसी देश द्वारा घोषित वह दिन या तिथि होती है जिस दिन कोई भूभाग राष्ट्र के रूप में उदित हुआ। प्रायः इस दिन सार्वजनिक छुट्टी होती है। .

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राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान, पुणे

राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान (एन.आई.एन), ऐतिहासिक वर्तमान इमारत "बापू भवन", ताड़ीवाला रोड, पुणे 411001 में स्थित है। "बापू भवन" राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के नाम पर है, जिन्होंने 1934 से इस संस्थान को अपना घर बनाया था। इससे पहले यह संस्थान "नैचर क्योर क्लिनिक एवं सॅनिटोरियम" के नाम से जाना जाता था, जिसे डॉ॰ दिनशा मेहता चलाया करते थे। इस संस्थान में "ऑल इंडिया नैचर क्योर फांऊडेशन ट्रस्ट" की स्थापना की गयी और गांधीजी आजीवन इस ट्रस्ट के चैयरमैन बने। गांधीजी ने यहाँ से बहुत सी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों में हिस्सा लिया। राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान, पुणे 22 दिसंबर 1986 को अस्तित्व में आया। इस संस्थान की शासकीय निकाय समिति है, जिसके प्रमुख केन्द्रीय मंत्री, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय है। .

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

यह लेख भारत के एक सांस्कृतिक संगठन आर एस एस के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु आर एस एस देखें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का एक दक्षिणपंथी, हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक, स्वयंसेवक संगठन हैं, जो व्यापक रूप से भारत के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी का पैतृक संगठन माना जाता हैं। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर.एस.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। .

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रासीसर

रासीसर ग्राम बीकानेर जिले का एक विकसित ग्राम है जो महात्मा गांधीके ग्राम स्वराज को साकार करता है.

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राजमोहन गांधी

नयी दिल्ली भारत में १९३५ में जन्मे श्री राजमोहन गांधी महात्मा गांधी के पौत्र एवं भारत के एक प्रमुख शिक्षाविद, राजनैतिक कार्यकर्ता, एवं जीवनी लेखक हैं। श्री गांधी की शिक्षा का आरंभ मॉडर्न स्कूल में हुआ था। श्री गांधी इस समय दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज में रिसर्च प्रोफेसर हैं। श्री गांधी इस समय अमरीका के इलिनॉय विश्वविद्यालय अर्बाना-शैंपेन में विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं। .

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राजस्थानी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेताओं की सूची

साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और राजस्थानी भाषा इन में से एक भाषा हैं। इस भाषा में १९७४ से पुरस्कार देना शुरु हुआ। .

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राजा अवधेश सिंह

राजा अवधेश सिंह कालाकांकर रियासत के राजा थे। कुंवर सुरेश सिंह इनके छोटे भाई थेे। .

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राजघाट समाधि परिसर

राज घाट में समाधिस्थल दिल्ली में यमुना नदी के पश्चिमी किनारे पर महात्मा गांधी की समाधि स्थित है। काले संगमरमर से बनी इस समाधि पर उनके अंतिम शब्द 'हे राम' उद्धृत हैं। अब यह एक सुन्दर उद्यान का रूप ले चुका है। यहां पर सुन्दर फव्वारे और अनेक प्रकार के पेड़ लगे हुए हैं। यहां पास ही शांति वन में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की समाधि भी है। भारत आने वाले विदेशी उच्चाधिकारी महात्मा गांधी को श्रद्धांजली देने के लिए राजघाट अवश्य आते हैं। .

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राजकुमार शुक्ल

राजकुमार शुक्ल (१८७५ -) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बिहार के चंपारण के निवासी और स्वतंत्रता सेनानी थे। दिसंबर 1916 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में बिहार के किसानों के प्रतिनिधि बनकर वह लखनऊ गए और चंपारण के किसानों की दुर्दशा को शीर्ष नेताओं के समक्ष रखा। नील की खेती करनेवाले रैयत राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर महात्मा गाँधी चंपारण आने को तैयार हुए। राजकुमार शुक्ल के साथ बापू १० अप्रैल १९१७ को कोलकाता से पटना और मुजफ्फरपुर होते हुए मोतिहारी गए। नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध में गाँधीजी ने चंपारण में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया। अंग्रेजों की तत्कालीन तीन कठिया व्यवस्था के तहत हर बीघे में 3 कट्ठे जमीन पर नील की खेती करने की किसानों के लिए विवशता उत्पन्न करने का विरोध करते हुए पंडित राजकुमार शुक्ल ने वहां किसान आंदोलन की शुरुआत की, जिसके एवज में दंड स्वरूप उन्हें कई बार अंग्रेजों के कोड़े और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। क्षेत्र के किसानों की बदहाल स्थिति को देखते हुए पंडित शुक्ल ने महात्मा गांधी को बार-बार वहां आने का आग्रह किया तो गांधीजी इनकार नहीं कर सके। वे चंपारण पहुंचे और फिर वहां के किसानों के आंदोलन को जो धार मिली, उन्होंने देश को आजादी के मुकाम तक पहुंचा दिया। दरअसल, चंपारण किसान आंदोलन ही देश की आजादी का असली संवाहक बने था। वहां के किसानों के त्याग, बलिदान और संघर्ष की वजह से आज हम आजाद भारत में सांसें लेने के लिए स्वतंत्र हैं। .

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राजकुमारी अमृत कौर

राजकुमारी अमृत कौर (२ फ़रवरी १८८९ - २ अक्टूबर १९६४) स्वतंत्र भारत की दस वर्षों तक स्वास्थ्य मंत्री थीं। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वे महात्मा गांधी की अनुयायी तथा १६ वर्ष तक उनकी सचिव रहीं। .

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राजकोट

राजकोट(Rajkot) भारत के गुजरात प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। राजकोट नगर गुजरात राज्य, भारत में स्थित है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की क्रीड़ास्थली राजकोट, कभी सौराष्ट्र की राजधानी रहा था। महात्मा गाँधी के पिता करमचंद गाँधी सौराष्ट्र के दीवान थे। यहीं से गाँधी जी ने अपना बचपन संवारा तथा अपनी जिन्दगी के प्रारम्भिक दिन राजकोट की गलियों में ही व्यतीत किये। गाँधी जी ने यहीं से हिन्दुस्तानियों व अंग्रेज़ों के रहन-सहन के अंतर को क़रीब से देखा। मोहनदास करमचंद गाँधी ने उच्च स्कूल तत्कालीन अलफ्रंट हाई स्कूल में अपनी शिक्षा ग्रहण की थी। गाँधीजी की इस नगरी में पर्यटकों के लिए काबा गाँधीना देलो (गाँधी जी का निवास स्थान) जिसमें आज बाल मन्दिर स्कूल चल रहा है, राजकुमारी उद्यान, जबूली उद्यान, वारसन संग्रहालय, रामकृष्ण आश्रम, लालपरी झील, अजी डेम, रंजीत विलास पैलेस, सरकारी दुग्ध डेरी आदि दर्शनीय स्थल हैं। राजकोट में मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय पतंग मेला बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है। .

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राज्य पुनर्गठन आयोग

वर्ष १९५१ में भारत के प्रशासनिक प्रभाग भारत के स्वतंत्र होने के बाद भारत सरकार ने अंग्रेजी राज के दिनों के 'राज्यों' को भाषायी आधार पर पुनर्गठित करने के लिये राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission) की स्थापना की। 1950 के दशक में बने पहले राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश में राज्यों के बंटवारे का आधार भाषाई था। इसके पीछे तर्क दिया गया कि स्वतंत्रता आंदोलन में यह बात उठी थी कि जनतंत्र में प्रशासन को आम लोगों की भाषा में काम करना चाहिए, ताकि प्रशासन लोगों के नजदीक आ सके। .

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राजेन्द्र प्रसाद

राजेन्द्र प्रसाद (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963) भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परिणति २६ जनवरी १९५० को भारत के एक गणतंत्र के रूप में हुई थी। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने स्वाधीन भारत में केन्द्रीय मन्त्री के रूप में भी कुछ समय के लिए काम किया था। पूरे देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। .

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राजेश कुमार

राजेश कुमार - जनवादी नाटककार। जन्म -११ जनवरी १९५८ पटना, बिहार। राजेश कुमार नुक्कड़ नाटक आंदोलन के शुरुआती दौर १९७६ से सक्रिय है। अब तक दर्जनों नाटक एवं नुक्कड़ नाट्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आरा की नाट्य संस्था युवानीति, भागलपुर की दिशा और शाहजहाँपुर की नाट्य संस्था अभिव्यक्ति के संस्थापक सदस्य। पेशे से ईन्जीनियर है। इन दिनो लखनऊ में कार्यरत। .

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राजीव दीक्षित

राजीव दीक्षित (30 नवम्बर 1967 - 30 नवम्बर 2010) एक भारतीय वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओ आन्दोलन के संस्थापक थे।.

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रिचर्ड स्टॉलमैन

रिचर्ड मैथ्यू स्टॉलमैन (जन्म १९५३), जिन्हें अक्सर rms भी कहा जाता हैं, दुनिया के जाने माने मुक्त सॉफ्टवेयर कार्यकर्ता एवं कंप्यूटर प्रोग्रामर हैं। वे जीएनयू (GNU) के संस्थापक है, इसके अलावा उन्होंने मुक्त सॉफ्टवेयर फाउंडेशन की भी बनाया। डॉ॰स्टॉलमैन ने जीएनयू कम्पाइलर कलेक्शन (GCC) और GNU EMACS भी विकसित किये हैं। डॉ॰ स्टॉलमैन, जीएनयू पब्लिक लाइसेंस के जनक माने जाते है। १९८३ में, डॉ स्टॉलमैन ने जीएनयू परियोजना (GNU Project) की सुरुवात की थी। जीएनयू परियोजना का लक्ष्य, यूनिक्स समान प्रचालन तंत्र बनाना था जो पूरी तरह से मुक्त स्रोत से बना हो। इसी के साथ उन्होंने मुक्त सॉफ्टवेयर आंदोलन (Free Software Movement) की भी सुरुवात की। स्टॉलमैन, जीएनयू परियोजना के एक मुख्य निर्माता और संयोजक रहे हैं और इन्होने जीएनयू सॉफ्टवेयर के कई हिस्से विकसित किये हैं जैसे- जीएनयू कम्पाइलर कलेक्शन (GCC), जीएनयू डीबगर (GNU Debugger) और जीएनयू ईमैक्स टेक्स्ट एडिटर। उन्होने १९८५ में मुक्त सॉफ्टवेयर फाउंडेशन की स्थापना की थी। ९० के दसक के मध्य से स्टॉलमैन अपना ज़्यादातर समय फ्री सॉफ्टवेयर की वकालत करने एवं सॉफ्टवेयर पेटेंट्स, डिजिटल राइट्स और दूसरे टेक्निकल लीगल सिस्टम्स जो यूजर से उनकी आज़ादी छीनते हैं, उनके विरुद्ध आंदोलन करने में व्यतीत करते हैं। इनमे सॉफ्टवेयर लाइसेंस एग्रीमेंट्स, नॉन डिस्क्लोज़र एग्रीमेंट, एक्टिवेशन कीस, डोंगल्स, कॉपी रेस्ट्रिक्शन, प्रोप्रिएटरी फोर्मट्स और बिना सोर्स कोड के बाइनरी एक्सेक्यूटेबल्स भी शामिल हैं। डॉ स्टॉलमैन ने ही कॉपीलेफ्ट के विचार को लोगो के सामने रखा था, जो कॉपीराइट के ही सिद्धांतो को इस्तेमाल कर यूजर को सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करने की, उसके सोर्स कोड को मॉडिफाई करने की और उस सॉफ्टवेयर एवं उसके सोर्स कोड को वितरित करने की आज़ादी देता हैं। २०१२ तक इन्हे १४ आनरेरी डॉक्टरेट और प्रोफेस्सोर्शिप्स मिले हैं। .

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रजनीश

आचार्य रजनीश (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता था, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलोचक रहे। उन्होंने मानव कामुकता के प्रति एक ज्यादा खुले रवैया की वकालत की, जिसके कारण वे भारत तथा पश्चिमी देशों में भी आलोचना के पात्र रहे, हालाँकि बाद में उनका यह दृष्टिकोण अधिक स्वीकार्य हो गया। चन्द्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। ओशो शब्द की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई धारणायें हैं। एक मान्यता के अनुसार, खुद ओशो कहते है कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता 'ओशनिक एक्सपीरियंस' के शब्द 'ओशनिक' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'सागर में विलीन हो जाना। शब्द 'ओशनिक' अनुभव का वर्णन करता है, वे कहते हैं, लेकिन अनुभवकर्ता के बारे में क्या? इसके लिए हम 'ओशो' शब्द का प्रयोग करते हैं। अर्थात, ओशो मतलब- 'सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला'। १९६० के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से एवं १९७० -८० के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और १९८९ के समय से ओशो के नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये। रजनीश ने अपने विचारों का प्रचार करना मुम्बई में शुरू किया, जिसके बाद, उन्होंने पुणे में अपना एक आश्रम स्थापित किया, जिसमें वे विभिन्न प्रकार के उपचारविधान पेश किये जाते थे.

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रघुपति राघव राजाराम

रघुपति राघव राजा राम (कुछ समय के लिए राम धुन) के नाम से भी जाना जाता था। यह एक भारतीय प्रसिद्ध भजन है,तथा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सबसे पसंदिता भजन था। इसके गीत के शब्द श्री नम: रामायणम् से लिए गए हैं जो लक्ष्माचर्या ने लिखी थी। गीत: .

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रविशङ्कर महाराज

रविशङ्कर महाराज गुजरात राज्य के खेडा जिले के समाजसेवी थे। उन्होंने वात्रक नदी के आसपास के गाँवो में लोगों का जीवन सुधारने का, डाकुओं को पुनः मुख्यधारा में लाने का, अन्धश्रद्धा निवारण आदि कार्य किये थे। रविशङ्कर महाराज ने भारत के स्वतन्त्रता सङ्ग्राम मे भाग लिया था। वे आर्य समाज से प्रभावित हुए थे। वो सन १९१५ मे महात्मा गांधी से मिले थे। .

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रंगा

१९२५ में जन्मे कार्टूनिस्ट रंगा का नाम पूरा नाम एन के रंगनाथन था। भारत के कुछ प्रथम कार्टूनिस्टों में से एक रंगा ने अपने कार्यकाल में इंडियन एक्सप्रेस, द स्टेट्समेन और ट्रिब्यून जैसे प्रतिष्ठीत समाचारपत्रों के लिए कार्टूनिस्ट के रूप में कार्य किया। कैरीकेचर बनने में दक्ष रंगा को उनके द्वारा बनाये कैरीकेचर्स के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। रंगा द्वारा चंद रेखाओं के माध्यम से बनाए गए महात्मा गाँधी के कैरीकेचर्स काफ़ी प्रसिद्ध हैं। जुलाई २००२ में दिल्ली में रंगा का देहांत हो गया। श्रेणी:भारतीय कार्टूनिस्ट.

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रैंकोजी मन्दिर

रैंकोजी मन्दिर (जा: 蓮光寺 (杉並区), अं: Renkōji Temple) जापान के टोकियो में स्थित एक बौद्ध मन्दिर है। 1594 में स्थापित यह मन्दिर बौद्ध स्थापत्य कला का दर्शनीय स्थल है। एक मान्यता के अनुसार भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रिम सेनानी सुभाष चन्द्र बोस की अस्थियाँ यहाँ आज भी सुरक्षित रखी हुई हैं। दरअसल 18 सितम्बर 1945 को उनकी अस्थियाँ इस मन्दिर में रखी गयीं थीं। परन्तु प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार नेताजी की मृत्यु एक माह पूर्व 18 अगस्त 1945 को ही ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हो गयी थी। जापान के लोग यहाँ प्रति वर्ष 18 अगस्त को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का बलिदान दिवस मनाते हैं। .

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रेडियो

कुछ पुराने रेडियो (रिसिवर) 24 दिसम्बर 1906 की शाम कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने जब अपना वॉयलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी। इससे पहले जगदीश चन्द्र बसु ने भारत में तथा गुल्येल्मो मार्कोनी ने सन 1900 में इंग्लैंड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर दी थी, पर एक से अधिक व्यक्तियों को एक साथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में फेसेंडेन के साथ हुई। ली द फोरेस्ट और चार्ल्स हेरॉल्ड जैसे लोगों ने इसके बाद रेडियो प्रसारण के प्रयोग करने शुरु किए। तब तक रेडियो का प्रयोग सिर्फ नौसेना तक ही सीमित था। 1917 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद किसी भी गैर फौज़ी के लिये रेडियो का प्रयोग निषिद्ध कर दिया गया। .

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रोमां रोलां

सन् १९१५ में रोमां रोलां रोमां रोलां (Romain Rolland; 1866 ई. - 1944 ई.) नोबेल पुरस्कार से सम्मानित फ्रांसीसी लेखक और नाटककार थे। उनका जन्म मध्य फ्रांस के एक गांव में हुआ था। उन्होंने पेरिस और रोम में शिक्षा पाई थी। वे सूरबन विश्वविद्यालय पेरिस में प्रोफेसर नियुक्त हुए। उन्होंने लिओ तालस्तोय, महात्मा गांधी, माइकल एंजेलो, आदि महत्वपूर्ण सख्सियतों की जीवनियाँ भी लिखी। वे समाजवाद के समर्थक थे। उन्हें 1915 ई. में साहित्य का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रोशन सिंह

रोशन सिंह (जन्म:१८९२-मृत्यु:१९२७) ठाकुर रोशन सिंह (१८९२ - १९२७) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के एक क्रान्तिकारी थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में हुए गोली-काण्ड में सजा काटकर जैसे ही शान्तिपूर्ण जीवन बिताने घर वापस आये कि हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन में शामिल हो गये। यद्यपि ठाकुर साहब ने काकोरी काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था फिर भी आपके आकर्षक व रौबीले व्यक्तित्व को देखकर काकोरी काण्ड के सूत्रधार पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व उनके सहकारी अशफाक उल्ला खाँ के साथ १९ दिसम्बर १९२७ को फाँसी दे दी गयी। ये तीनों ही क्रान्तिकारी उत्तर प्रदेश के शहीदगढ़ कहे जाने वाले जनपद शाहजहाँपुर के रहने वाले थे। इनमें ठाकुर साहब आयु के लिहाज से सबसे बडे, अनुभवी, दक्ष व अचूक निशानेबाज थे। .

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लाल कुर्ती आन्दोलन

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान (बायीं ओर) महात्मा गांधी (दायीं ओर) के साथ (1940 का चित्र) लाल कुर्ती आन्दोलन भारत में पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त में ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थन में खुदाई ख़िदमतगार के नाम से चलाया गया एक ऐतिहासिक आन्दोलन था। खुदाई खिदमतगार एक फारसी शब्द है जिसका हिन्दी में अर्थ होता है ईश्वर की बनायी हुई दुनिया के सेवक। .

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लालबहादुर शास्त्री

लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय - मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द), भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया। जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया। उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी। ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया। .

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लाला हरदयाल

लाला हरदयाल (१४ अक्टूबर १८८४, दिल्ली -४ मार्च १९३९) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित किया। इसके लिये उन्होंने अमरीका में जाकर गदर पार्टी की स्थापना की। वहाँ उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना जागृत की। काकोरी काण्ड का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद मई, सन् १९२७ में लाला हरदयाल को भारत लाने का प्रयास किया गया किन्तु ब्रिटिश सरकार ने अनुमति नहीं दी। इसके बाद सन् १९३८ में पुन: प्रयास करने पर अनुमति भी मिली परन्तु भारत लौटते हुए रास्ते में ही ४ मार्च १९३९ को अमेरिका के महानगर फिलाडेल्फिया में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गयी। उनके सरल जीवन और बौद्धिक कौशल ने प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए कनाडा और अमेरिका में रहने वाले कई प्रवासी भारतीयों को प्रेरित किया। .

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लाला जगत नारायण

लाला जगत नारायण (31 मई 1899 − 9 सितम्बर 1981) भारत के प्रसिद्ध पत्रकार तथा हिन्द समाचार समूह के संस्थापक थे। अस्सी के दशक में जब पूरा पंजाब आतंकी माहौल से सुलग रहा था, उस दौर में भी कलम के सिपाही एवं देश भावना से प्रेरित लाला जी ने अपने बिंदास लेखन से आतंकियों के मंसूबों को उजागर किया और राज्य में शांति कायम करने के भरसक प्रयास किए परन्तु 9 सितम्बर सन् 1981 को इन्हीं आतंकियों ने सच्चे देशभक्त एवं निडर पत्रकार लाला जी की हत्या कर दी। .

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लखनऊ समझौता

लखनऊ समझौता (لکھنؤ کا معاہده —) दिसंबर 1916 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा किया गया समझौता है, जो 29 दिसम्बर 1916 को लखनऊ अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस द्वारा और 31 दिसम्बर 1916 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा पारित किया गया। .

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लक्ष्मण नारायण गर्दे

लक्ष्मण नारायण गर्दे (1889-1960) प्रख्यात संपादक तथा साहित्यकार थे। हिंदी पत्रकारिता को आधुनिक उच्चस्तर तथा उन्नत स्वरूप तक पहुँचाने का श्रेय जिन आद्य संपादकाचार्यों को है, उनमें गर्दे जी का नाम प्रमुख है। 50 वर्षों तक आपने भारतीय साहित्य और संस्कृति का पत्रकारिता के माध्यम से जो संवर्धन किया है, वह सदा स्मरणीय रहेगा। हिंदी पत्रकारिता के विकासकाल में आपने उसे ऐसे साँचे में ढालने का सफल कार्य किया, जो राष्ट्रीयता से तो ओतप्रोत था ही, आध्यात्मिकता, नैतिकता और सांस्कृतिक भावना से भी युक्त था। .

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लक्ष्मी नारायण मंदिर, दिल्ली

लक्ष्मी नारायण मंदिर बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1938 में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है। .

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लक्ष्मी सहगल

लक्ष्मी सहगल लक्ष्मी सहगल (जन्म: 24 अक्टूबर 1914 - मृत्यु: 23 जुलाई 2012) भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी हैं। वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं। वे व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं। वे आजाद हिन्द फौज की 'रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट' की कमाण्डर थीं। .

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लेव तोलस्तोय

लेव तोलस्तोय (रूसी:Лев Никола́евич Толсто́й, 9 सितम्बर 1828 - 20 नवंबर 1910) उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है। धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तोलस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवम्बर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। .

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लेंटिना ओ ठक्कर

लेंटिना ओ ठक्कर नागालैण्ड की एक समाजसेविका हैं जिन्हें भारत सरकार ने २०१८ में उनके सामाजिक सेवा के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया। वे दशकों से पहाड़ियों में गांधी की विचारधारा का प्रसार कर रहीं हैं। वे नागालैण्ड में 'गांधीवादी दादी' के नाम से प्रसिद्ध हैं। 86 साल की लेंटिना ओ ठक्कर का चेहरा उनके संघर्ष की दास्तां बताने के लिए काफी है। नागा हिल्स जिले में मोकोकचुंग जिले के मरेंकोंग गांव में जन्मी लेंटिना शुरुआत से ही समाज से आगे रहीं। इसके साथ ही वह अपने गांव में सातवीं कक्षा तक पहुंचने वाली पहली लड़की थी। ये अपना गांव (चुचुइमलांग) की पहली महिला हैं, जिन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। लेंटीना ए ठक्कर अभी 86 साल की है आैर ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नटवर ठक्कर की पत्नी है। वे एेसी पहली महिला है, जिन्होंने गांधीवादी विचारों से प्रभावित होकर 1950 में असम की राजधानी गुवाहाटी स्थित कस्तूरबा गांधी आश्रम से शिक्षा ली है। लेंटिना ने ना सिर्फ राज्य में गांधीवादी विचारधारा को जीवित रखने का काम किया है बल्कि समाज में महिलाओं और बच्चों के उत्थान के लिए भी काम किया है। उनके द्वारा निर्मित आश्रम में महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें पढाई और तकनीकी का भी ज्ञान प्रदान किया जाता है। टाटा समाज विज्ञान संस्थान (टीआईएसएस) ने लेंटिना द्वारा निर्मित आश्रम में शिक्षा केंद्र का स्थापित किया है जिसका उद्घाटन सन्स 2015 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने किया था। यह संस्थान लोगों को सामाजिक उद्यमिता और मानव विकास में मास्टर डिग्री प्रदान करता है। श्रेणी:२०१८ में पद्मश्री से सम्मानित.

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लॉर्ड इर्विन

लॉर्ड इर्विन (16 अप्रैल, 1881 - 23 दिसम्बर 1959) भारत में १९२६-१९३१ ई. तक गवर्नर जनरल तथा सम्राट् के प्रतिनिधि के रूप में वायसराय थे। भारत में बढ़ रही स्वराज्य तथा संवैधानिक सुधारों की माँग के संबंध में इनकी संस्तुति से १९२७ ई. में लार्ड साइमन की अध्यक्षता में ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन की नियुक्ति की, जिसमें सभी सदस्य अंग्रेज थे। फलस्वरूप सारे देश में कमीशन का बाहिष्कार हुआ, 'साइमन, वापस जाओ' के नारे लगाए गए, ओर काले झंडों के प्रदर्शन के साथ आंदोलन हुआ। सांडर्स के नेतृत्व में पुलिस की लाठियों की चोट से लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गई। भगत सिंह के दल ने एक वर्ष के भीतर ही बदले के लिए सांडर्स की भी हत्या कर दी। प्रारंभ में भारत औपानिवेशिक स्वराज्य की ही माँग करता रहा, किंतु २६ जनवरी, १९२९ को अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 'पूर्ण स्वराज्य' की घोषणा की गई तथा शपथ ली गई कि प्रत्येक वर्ष २६ जनवरी गणतंत्र के रूप में मनाई जाएगी। साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार १९३० ई. में लार्ड इरविन की संस्तुति से संवैधानिक सुधारों की समस्या के समाधान के लिए लंदन में एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका गांधी जी ने विरोध किया। साथ ही गांधी जी ने सरकार पर दबाव डालने के लिए ६ अप्रैल, १९३० से नमक सत्याग्रह छेड़ दिया। सारे देश में नमक कानून तोड़ा गया। गांधी जी के साथ हजारों व्यक्ति गिरफ्तार हुए। सर तेजबहादुर सप्रु की मध्यस्थता से गांधी-इरविन-समझौता हुआ। यह समझौता भारतीय इतिहास का एक प्रमुख मोड़ है। इसमें २१ धाराएँ थीं जिनके अनुसार गोलमेज कानफ्ररेंस में भाग लेने के लिए गांधी जी तैयार हुए तथा यह तय हुआ कि कानून तोड़ने की कार्रवाई बंद होगी, ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार बंद होगा, पुलिस के कारनामों की जाँच नहीं होगी, आंदोलन के समय बने अध्यादेश वापस होंगे, सभी राजनीतिक कैदी छोड़ दिए जाएँगे, जुर्माने वसूल नहीं होंगे, जब्त अचल संपत्ति वापस हो जाएगी, अन्यायपूर्ण वसूली की क्षतिपूर्ति होगी, असहयोग करनेवाले सरकारी कर्मचारियों के साथ उदारता बरती जाएगी, नमक कानून में ढील दी जाएगी, इत्यादि। इस समझौते के फलस्वरूप १९३१ ई. की द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी ने मदनमोहन मालवीय एवं श्रीमती सरोजनी नायडू के साथ भाग लिया। यद्यपि लार्ड इरविन ने एक साम्राज्यवादी शासक के रूप में स्वदेशी आंदोलन का पूरा दमन किया, तथापि वैयक्तिक मनुष्य के रूप में वे उदार विचारों के थे। यही कारण है कि राष्ट्रवादी नेताओं को इन्होंने काफी महत्व प्रदान किया। इनके जीवित स्मारक के रूप में नई दिल्ली में विशाल 'इरविन अस्पताल' का निर्माण कराया गया। श्रेणी:भारत के गवर्नर जनरल.

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लोक संगीत

लोक संगीत। वैदिक ॠचाओं की तरह लोक संगीत या लोकगीत अत्यंत प्राचीन एवं मानवीय संवेदनाओं के सहजतम उद्गार हैं। ये लेखनी द्वारा नहीं बल्कि लोक-जिह्वा का सहारा लेकर जन-मानस से निःसृत होकर आज तक जीवित रहे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, फसलें गाती हैं। उत्सव, मेले और अन्य अवसरों पर मधुर कंठों में लोक समूह लोकगीत गाते हैं। स्व० रामनरेश त्रिपाठी के शब्दों में जैसे कोई नदी किसी घोर अंधकारमयी गुफ़ा में से बहकर आती हो और किसी को उसके उद्गम का पता न हो, ठीक यही दशा लोकगीतों के बारे में विद्वान मनीषियों ने स्वीकारी है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस प्रभाव को स्वीकृति देते हुए कहते हैं जब-जब शिष्टों का काव्य पंडितों द्वारा बंधकर निश्चेष्ट और संकुचित होगा तब-तब उसे सजीव और चेतन प्रसार देश के सामान्य जनता के बीच स्वच्छंद बहती हुई प्राकृतिक भाव धारा से जीवन तत्व ग्रहण करने से ही प्राप्त होगा। लोकगीत तो प्रकृति के उद्गार हैं। साहित्य की छंदबद्धता एवं अलंकारों से मुक्त रहकर ये मानवीय संवेदनाओं के संवाहक के रूप में माधुर्य प्रवाहित कर हमें तन्मयता के लोक में पहुंचा देते हैं। लोकगीतों के विषय, सामान्य मानव की सहज संवेदना से जुडे हुए हैं। इन गीतों में प्राकृतिक सौंदर्य, सुख-दुःख और विभिन्न संस्कारों और जन्म-मृत्यु को बड़े ही हृदयस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। संगीतमयी प्रकृति जब गुनगुना उठती है लोकगीतों का स्फुरण हो उठना स्वाभाविक ही है। विभिन्न ॠतुओं के सहजतम प्रभाव से अनुप्राणित ये लोकगीत प्रकृति रस में लीन हो उठते हैं। बारह मासा, छैमासा तथा चौमासा गीत इस सत्यता को रेखांकित करने वाले सिद्ध होते हैं। पावसी संवेदनाओं ने तो इन गीतों में जादुई प्रभाव भर दिया है। पावस ॠतु में गाए जाने वाले कजरी, झूला, हिंडोला, आल्हा आदि इसके प्रमाण हैं। सामाजिकता को जिंदा रखने के लिए लोकगीतों/लोकसंस्कृतियों का सहेजा जाना बहुत जरूरी है। कहा जाता है कि जिस समाज में लोकगीत नहीं होते, वहां पागलों की संख्या अधिक होती है। सदियों से दबे-कुचले समाज ने, खास कर महिलाओं ने सामाजिक दंश/अपमान/घर-परिवार के तानों/जीवन संघषों से जुड़ी आपा-धापी को अभिव्यक्ति देने के लिए लोकगीतों का सहारा लिया। लोकगीत किसी काल विशेष या कवि विशेष की रचनाएं नहीं हैं। अधिकांश लोकगीतों के रचइताओं के नाम अज्ञात हैं। दरअसल एक ही गीत तमाम कंठों से गुजर कर पूर्ण हुई है। महिलाओं ने लोकगीतों को ज़िन्दा रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज वैश्वीकरण की आंधी में हमने अपनी कलाओं को तहस-नहस कर दिया है। अपनी संस्कृतियां अनुपयोगी/बेकार की जान पड़ने लगी हैं। ऐसे समय में जोगिया, फाजिलनगर, कुशीनगर जनपद की संस्था-`लोकरंग सांस्कृतिक समिति´ ने लोकगीतों को सहेजने का काम शुरू किया है। संस्था ने तमाम लोकगीतों को बटोरा है और अपने प्रकाशनों में छापा भी है। संस्था महत्वपूर्ण लोक कलाकारों के अन्वेषण में भी लगी हुई है और उसने रसूल जैसे महत्वपूर्ण लोक कलाकार की खोज की है जो भिखारी ठाकुर के समकालीन एवं उन जैसे जरूरी कलाकार थे। .

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लीला नाग

लीला नाग (जन्म: 2 अक्टूबर, 1900, मृत्यु:11 जून, 1970)সংসদ বাঙালি চরিতাভিধান, সম্পাদনাঃ সুবোধচন্দ্র সেনগুপ্ত এবং অঞ্জলি বসু, ১ম খণ্ড, সংশোধিত পঞ্চম সংস্করণ, সাহিত্য সংসদ, ২০১০, কলকাতা (शादी के बाद, नाम है लीला रॉय), एक बंगाली पत्रकार, ghitis और राजनीतिक आंदोलन में सक्रिय व्यक्ति था। उन्होंने कहा, ढाका विश्वविद्यालय में पहली बार छात्र था। লীলা নাগ, সোনিয়া আমিন, বাংলাপিডিয়া, সংস্করণ 2.0.0 (সিডি সংস্করণ), কর্তৃক প্রকাশিত। वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सहायक था। .

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शम्भूनाथ शुक्ल

शम्भूनाथ शुक्ल (18 दिसंबर 1903), भारत के एक राजनेता, स्वतन्त्रतासंग्राम सेनानी तथा विंध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री थे। वे भारतीय संविधान सभा के भी सदस्य थे। उनका जन्म 18 दिसंबर 1903 को हुआ था। शिक्षा इलाहाबाद में हुई। प्रयाग विश्वद्यिालय इलाहाबाद से 1926 में बीए और सन 1928 में एलएलबी की डिग्री हासिल कर ली। एलएलबी में भी गोल्ड मेडल मिला था। 1930 में मुंसिफ मजिस्ट्रेट बुढ़ार में वकालत शुरू की थी। वे महात्मा गांधी के 1920 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेकर जेल भी पहुंचे थे। 1945 में रीवा महाराजा के कानूनी सलाहकार नियुक्त हुए। 1952 में विंध्यप्रदेश विधान सभा अमरपुर से सदस्य निर्वाचित हुए और विन्धप्रदेश के निर्विरोध मुखय्मन्त्री बने। .

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शहीद दिवस (भारत)

भारत में कई तिथियाँ शहीद दिवस (सर्वोदय दिवस) के रूप में मनायी जातीं हैं, जिनमें मुख्य हैं- ३० जनवरी, २३ मार्च, २१ अक्टूबर, १७ नवम्बर तथा १९ नवम्बर। ३० जनवरी १९४८ को महात्मा गांधी की हत्या हुई थी। 23 मार्च 1931 के दिन अंग्रेजों ने शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया था। भगत सिंह (28 सितम्बर 1907 - 23 मार्च 1931) एक जाट सिख परिवार से थे। १९ नवम्बर रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिन है। .

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शांति सेना

शांति सेना भारत का गांधीजी के अनुयायियों का एक संगठन है। इस संस्था के अहिंसा के सिद्धान्तों को विश्व के अनेक संगठनों ने अपनाया है। श्रेणी:महात्मा गाँधी.

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शिशुशिक्षा

"शिशु" शब्द का अर्थ बहुत व्यापक होता है। कोई जन्म से लेकर ढाई तीन वर्षों तक, कोई पाँच वर्ष तक और कोई छह या सात वर्ष तक के बच्चे को शिशु कहता है। परंतु शिशुशिक्षा के अर्थ "दो से ग्यारह या बारह वर्ष तक की शिक्षा" माना जाता है। इस पर्याप्त लंबी अवधि को प्राय दो भागों में बाँटा जाता है। दो वर्ष से छह वर्ष की शिक्षा को शिशुशिक्षा (इनफंट या नर्सरी एजुकेशन) कहते हैं, जो प्राय: शिशुशालाओं (नर्सरी स्कूलों) में दी जाती है। छह वर्ष के पश्चात् ग्यारह या बारह वर्ष की शिक्षा को बालशिक्षा (चाइल्ड एजुकेशन) या प्रारंभिक शिक्षा (एलीमेंटरी एजुकेशन) कहते हैं। संसार के सभी प्रगतिशील देशों में प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य है। अत: कहीं छह वर्ष के पश्चात् और कहीं सात वर्ष से प्रारंभिक विद्यालयों में शिक्षा आरंभ की जाती है जो प्राय: पाँच वर्षों तक चलती है। तत्पश्चात् बच्चे माध्यमिक शिक्षा में प्रविष्ट होते हैं। शिशु मनुष्य का पूर्वरूप है। मनुष्य की संपूर्ण शक्तियाँ और संभावनाएँ शिशु में संनिहित रहती हैं। उसके समुचित पालन पोषण एवं शिक्षादीक्षा पर ही भावी मनुष्य का विकास निर्भर रहता है। अत: मनुष्य की शिक्षा को पूर्ण बनाने की नींव शैशवावस्था में ही पड़ जानी चाहिए। इसी से आज के युग में शिशुशिक्षा को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है। .

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शिव प्रसाद गुप्त

बाबू शिव प्रसाद गुप्ता (28 जून 1883 – 24 अप्रैल 1944) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, परोपकारी, राष्ट्रवादी कार्यकर्ता तथा महान द्रष्टा थे। उन्होने काशी विद्यापीठ की स्थापना की। शिव प्रसाद ने 'आज' नाम से एक राष्ट्रवादी दैनिक पत्र निकाला। उन्होंने बनारस में 'भारत माता मन्दिर' का भी निर्माण करवाया। .

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शिवराम महादेव परांजपे

शिवराम महादेव परांजपे (1864-1929 ई.) मराठी के प्रतिभाशाली साहित्यकार, वक्ता, पत्रकार और ध्येयनिष्ठ राजनीतिज्ञ थे। उन्होने 'काल' नामक साप्ताहिक द्वारा महाराष्ट्र में ब्रितानी शासन के विरुद्ध जनचेतना के निर्माण में सफलता पायी। .

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शिक्षण विधियाँ

जिस ढंग से शिक्षक शिक्षार्थी को ज्ञान प्रदान करता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं। "शिक्षण विधि" पद का प्रयोग बड़े व्यापक अर्थ में होता है। एक ओर तो इसके अंतर्गत अनेक प्रणालियाँ एवं योजनाएँ सम्मिलित की जाती हैं, दूसरी ओर शिक्षण की बहुत सी प्रक्रियाएँ भी सम्मिलित कर ली जाती हैं। कभी-कभी लोग युक्तियों को भी विधि मान लेते हैं; परंतु ऐसा करना भूल है। युक्तियाँ किसी विधि का अंग हो सकती हैं, संपूर्ण विधि नहीं। एक ही युक्ति अनेक विधियों में प्रयुक्त हो सकती है। .

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शिक्षा

अफगानिस्तान के एक विद्यालय में वृक्ष के नीचे पढ़ते बच्चे शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। शिक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर अनेक परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है। शिक्षा एक गतिशील प्रकिया है निखिल .

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शंकर किस्तैया

गान्धी-वध के अभियुक्तों का एक समूह चित्र। '' खड़े हुए '': शंकर किस्तैया, गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे. ''बैठे हुए'': नारायण आप्टे, विनायक दामोदर सावरकर, नाथूराम गोडसे, विष्णु रामकृष्ण करकरे शंकर किस्तैया हिन्दू महासभा के एक क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा गांधी का वध करने के मामले में आजीवन कारावास की सजा मिली थी। बाद में उच्च न्यायालय ने अपील करने पर छोड़ने का निर्णय दिया। अदालत में जब गान्धी-वध का अभियोग चला तो मदनलाल पाहवा ने उसमें स्वीकार किया कि जो भी लोग इस षड्यन्त्र में शामिल थे पूर्व योजनानुसार उसे केवल बम फोडकर सभा में गडबडी फैलाने का काम करना था, शेष कार्य अन्य लोगों के जिम्मे था। जब उसे छोटूराम ने जाने से रोका तो उसने जैसे भी उससे बन पाया अपना काम कर दिया। उस दिन की योजना भले ही असफल हो गयी हो परन्तु इस बात की जानकारी तो सरकार को हो ही गयी थी कि गान्धी की हत्या कभी भी कोई कर सकता है। आखिर २० जनवरी १९४८ की पाहवा द्वारा गान्धीजी की प्रार्थना-सभा में बम-विस्फोट के ठीक १० दिन बाद उसी प्रार्थना सभा में उसी समूह के एक सदस्य नाथूराम गोडसे ने गान्धी के सीने में ३ गोलियाँ उतार कर उन्हें सदा सदा के लिये समाप्त कर दिया। .

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शंकर कुमार सान्याल

'''महामहिम राष्ट्रपति से हरिजन सेवक संघ के प्रतिनिधियों की भेंट करवाते शंकर कुमार सान्याल''' शंकर कुमार सान्याल (English: Sankar Kumar Sanyal) वरिष्ठ गाँधीवादी विचारक हैं | सम्प्रति वे महात्मा गाँधी द्वारा सन् 1932 में स्थापित ऐतिहासिक संगठन हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष हैं | युवाओं के मध्य अहिंसा, शान्ति तथा मैत्री के प्रचार के लिए वे विश्व भर के कई विश्वविद्यालयों सहित महत्वपूर्ण अकादमिक संस्थाओं को सम्बोधित कर चुके हैं | .

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श्यामाप्रसाद मुखर्जी

डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी (जन्म: 6 जुलाई 1901 - मृत्यु: 23 जून 1953) शिक्षाविद्, चिन्तक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। .

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श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर

श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति इन्दौर, हिन्दी के प्रचार, प्रसार और विकास के लिये कार्यरत देश की प्राचीनतम सन्स्थाओ में से एक है। समिति की स्थापना सन् १९१० में महात्मा गांधी की प्रेरणा से हुई थी। सन १९१८ में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने समिति के इन्दौर स्थित परिसर से ही सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आव्हान किया था। यहाँ हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन के दौरान ही पूज्य बापु ने अहिन्दी भाषी प्रदेशो में हिन्दी के प्रचार के लिये अपने पुत्र देवदत्त गांधी सहित पान्च लोगो को हिन्दी दूत बनाकर तत्कालीन मद्रास प्रान्त में भेजा था। इसी अधिवेशन में तत्कालीन मद्रास प्रान्त में "हिन्दी प्रचार सभा" की स्थापना का संकल्प लेकर इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु धन संग्रह किया गया था। वर्धा स्थित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना में भी हिन्दी साहित्य समिति की ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। इस तरह देश के अहिन्दी भाषी राज्यो में हिन्दी के प्रचार के पहले प्रयास में श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति की भूमिका अत्यन्त उल्लेखनीय और प्रभावशाली रही है। सन १९३५ में समिति में पुनः हिन्दी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता भी गांधीजी ने की। समिति द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका "वीणा" देश की एकमात्र पत्रिका है जो सन १९२७ से निरन्तर प्रकाशित हो रही है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारीलाल द्विवेदी, 'निराला','दिनकर' सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, प्रेमचन्द, जयशन्कर प्रसाद, व्रन्दावन लाल वर्मा, अम्रतलाल नागर तथा माखनलाल चतुर्वेदी सहित देश के लगभग सभी शीर्षस्थ लेखक, कवि, निबन्धकार, कहानीकार और आलोचक नियमित रूप से "वीणा" में लिखते रहे हैं। यही कारण है कि विख्यात कवियत्री महादेवी वर्मा अक्सर ये कहा करती थी कि "हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास समिति और वीणा के जिक्र के बिना सदैव अपूर्ण रहेगा".

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श्रीमद राजचन्द्र

श्रीमद राजचन्द्र, जन्म रायचन्दभाई रावजीभाई मेहता, एक जैन कवि, दार्शनिक और विद्वान थे। उन्हें मुख्यतः उनके जैनधर्म शिक्षण और महात्मा गांधी के आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में जाना जाता है। .

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श्रीमद्भगवद्गीता

कुरु क्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है- तं धर्मं भगवता यथोपदिष्ट वेदव्यास: सर्वज्ञोभगवान् गीताख्यै: सप्तभि: श्लोकशतैरु पनिबंध। ज्ञात होता है कि लगभग ८वीं सदी के अंत में शंकराचार्य (७८८-८२०) के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है। १०वीं सदी के लगभग भीष्मपर्व का जावा की भाषा में एक अनुवाद हुआ था। उसमें अनेक मूलश्लोक भी सुरक्षित हैं। श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर के अनुसार जावा के इस प्राचीन संस्करण में गीता के केवल साढ़े इक्यासी श्लोक मूल संस्कृत के हैं। उनसे भी वर्तमान पाठ का समर्थन होता है। गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी संमिलित हैं। अतएव भारतीय परंपरा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और ब्रह्मसूत्रों का है। गीता के माहात्म्य में उपनिषदों को गौ और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है। गीता में 'ब्रह्मविद्या' का आशय निवृत्तिपरक ज्ञानमार्ग से है। इसे सांख्यमत कहा जाता है जिसके साथ निवृत्तिमार्गी जीवनपद्धति जुड़ी हुई है। लेकिन गीता उपनिषदों के मोड़ से आगे बढ़कर उस युग की देन है, जब एक नया दर्शन जन्म ले रहा था जो गृहस्थों के प्रवृत्ति धर्म को निवृत्ति मार्ग के समकक्ष और उतना ही फलदायक मानता था। इसी का संकेत देनेवाला गीता की पुष्पिका में ‘योगशास्त्रे’ शब्द है। यहाँ ‘योगशास्त्रे’ का अभिप्राय नि:संदेह कर्मयोग से ही है। गीता में योग की दो परिभाषाएँ पाई जाती हैं। एक निवृत्ति मार्ग की दृष्टि से जिसमें ‘समत्वं योग उच्यते’ कहा गया है अर्थात् गुणों के वैषम्य में साम्यभाव रखना ही योग है। सांख्य की स्थिति यही है। योग की दूसरी परिभाषा है ‘योग: कर्मसु कौशलम’ अर्थात् कर्मों में लगे रहने पर भी ऐसे उपाय से कर्म करना कि वह बंधन का कारण न हो और कर्म करनेवाला उसी असंग या निर्लेप स्थिति में अपने को रख सके जो ज्ञानमार्गियों को मिलती है। इसी युक्ति का नाम बुद्धियोग है और यही गीता के योग का सार है। गीता के दूसरे अध्याय में जो ‘तस्य प्रज्ञाप्रतिष्ठिता’ की धुन पाई जाती है, उसका अभिप्राय निर्लेप कर्म की क्षमतावली बुद्धि से ही है। यह कर्म के संन्यास द्वारा वैराग्य प्राप्त करने की स्थिति न थी बल्कि कर्म करते हुए पदे पदे मन को वैराग्यवाली स्थिति में ढालने की युक्ति थी। यही गीता का कर्मयोग है। जैसे महाभारत के अनेक स्थलों में, वैसे ही गीता में भी सांख्य के निवृत्ति मार्ग और कर्म के प्रवृत्तिमार्ग की व्याख्या और प्रशंसा पाई जाती है। एक की निंदा और दूसरे की प्रशंसा गीता का अभिमत नहीं, दोनों मार्ग दो प्रकार की रु चि रखनेवाले मनुष्यों के लिए हितकर हो सकते हैं और हैं। संभवत: संसार का दूसरा कोई भी ग्रंथ कर्म के शास्त्र का प्रतिपादन इस सुंदरता, इस सूक्ष्मता और निष्पक्षता से नहीं करता। इस दृष्टि से गीता अद्भुत मानवीय शास्त्र है। इसकी दृष्टि एकांगी नहीं, सर्वांगपूर्ण है। गीता में दर्शन का प्रतिपादन करते हुए भी जो साहित्य का आनंद है वह इसकी अतिरिक्त विशेषता है। तत्वज्ञान का सुसंस्कृत काव्यशैली के द्वारा वर्णन गीता का निजी सौरभ है जो किसी भी सहृदय को मुग्ध किए बिना नहीं रहता। इसीलिए इसका नाम भगवद्गीता पड़ा, भगवान् का गाया हुआ ज्ञान। .

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श्रीलंका का जातीय संघर्ष

मृत विद्रोहियों के शरीर कचरे में फेंक दिए गए है, 1989 श्रीलंका के कई अल्पसंख्यक तमिलों को गृहयुद्ध के अंत में बहुत काम शांति मिली है। .

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शैक्षिक मनोविज्ञान

गिनतारा, अमूर्त वस्तुओं वस्तुओं को मूर्त बनाकर गणित की मूलभूत बातें सिखाने की युक्ति है। शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology), मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता कैसे है तथा शैक्षणिक क्रियाकलाप अधिक प्रभावी कैसे बनाये जा सकते हैं। 'शिक्षा मनोविज्ञान' दो शब्दों के योग से बना है - ‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’। अतः इसका शाब्दिक अर्थ है - शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। शिक्षा के सभी पहलुओं जैसे शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन, अनुशासन आदि को मनोविज्ञान ने प्रभावित किया है। बिना मनोविज्ञान की सहायता के शिक्षा प्रक्रिया सुचारू रूप से नहीं चल सकती। शिक्षा मनोविज्ञान से तात्पर्य शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने से है। शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के व्यवहार, मानसिक प्रक्रियाओं एवं अनुभवों का अध्ययन शैक्षिक परिस्थितियों में किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका ध्येय शिक्षण की प्रभावशाली तकनीकों को विकसित करना तथा अधिगमकर्ता की योग्यताओं एवं अभिरूचियों का आंकलन करना है। यह व्यवहारिक मनोविज्ञान की शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने में प्रयासरत है। .

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सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग, महात्मा गांधी की आत्मकथा है। यह आत्मकथा उन्होने गुजराती में लिखी थी। .

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सत्याग्रह

सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य के लिये आग्रह करना होता है। सत्याग्रह, उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून भंग शुरु करने तक संसार" नि:शस्त्र पतिकार' अथवा निष्क्रिय प्रतिरोध (पैंसिव रेजिस्टेन्स) की युद्धनीति से ही परिचित था। यदि प्रतिपक्षी की शक्ति हमसे अधिक है तो सशस्त्र विरोध का कोई अर्थ नहीं रह जाता। सबल प्रतिपक्षी से बचने के लिए "नि:शस्त्र प्रतिकार' की युद्धनीति का अवलंबन किया जाता था। इंग्लैंड में स्त्रियों ने मताधिकार प्राप्त करने के लिए इसी "निष्क्रिय प्रतिरोध' का मार्ग अपनाया था। इस प्रकार प्रतिकार में प्रतिपक्षी पर शस्त्र से आक्रमण करने की बात छोड़कर उसे दूसरे हर प्रकार से तंग करना, छल कपट से उसे हानि पहुँचाना, अथवा उसके शत्रु से संधि करके उसे नीचा दिखाना आदि उचित समझा जाता था। गांधी जी को इस प्रकार की दुर्नीति पसंद नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका में उनके आंदोलन की कार्यपद्धति बिल्कुल भिन्न थी उनका सारा दर्शन ही भिन्न था अत: अपनी युद्धनीति के लिए उनको नए शब्द की आवश्यकता महसूस हुई। सही शब्द प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक प्रतियोगिता की जिसमें स्वर्गीय मगनलाल गांधी ने एक शब्द सुझाया "सदाग्रह' जिसमें थोड़ा परिवर्तन करके गांधी जी ने "सत्याग्रह' शब्द स्वीकार किया। अमरीका के दार्शनिक थोरो ने जिस सिविल डिसओबिडियेन्स (सविनय अवज्ञा) की टेकनिक का वर्णन किया है, "सत्याग्रह' शब्द उस प्रक्रिया से मिलता जुलता था। "सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना। अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।' "सत्याग्रह' में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वहीं दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्टसहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, "विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।' महात्मा गांधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद "प्रेम' अध्याहत है। सत्याग्रह मध्यमपदलोपी समास है। सत्याग्रह यानी सत्य के लिए प्रेम द्वारा आग्रह (सत्य + प्रेम + आग्रह .

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सत्याग्रह सदन

सत्याग्रह सदन, या सत्याग्रह हाउस, जिसे आमतौर पर गांधी हाउस के रूप में जाना जाता है, जोहान्सबर्ग में स्थित संग्रहालय और अतिथि गृह है। घर महात्मा गांधी का था: उन का यह 1908 से 1909 के बीच निवास स्थान व कार्यस्थल था। यह जोहान्सबर्ग की ऐतिहासिक विरासत के हिस्से के रूप में पंजीकृत है। सत्याग्रह का अर्थ सच्चाई का आग्रह करना होता है। घर गांधी और खुद के लिए वास्तुकार हर्मन कैलनबाक द्वारा डिज़ाइन किया गया था। .

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समाज कार्य

वियतनाम में सामाजिक कार्यकर्ता दाँत एवं मसूड़ों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हुए समाज-कार्य (social work) या समाजसेवा एक शैक्षिक एवं व्यावसायिक विधा है जो सामुदायिक सगठन एवं अन्य विधियों द्वारा लोगों एवं समूहों के जीवन-स्तर को उन्नत बनाने का प्रयत्न करता है। सामाजिक कार्य का अर्थ है सकारात्मक, और सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से लोगों और उनके सामाजिक माहौल के बीच अन्तःक्रिया प्रोत्साहित करके व्यक्तियों की क्षमताओं को बेहतर करना ताकि वे अपनी ज़िंदगी की ज़रूरतें पूरी करते हुए अपनी तकलीफ़ों को कम कर सकें। इस प्रक्रिया में समाज-कार्य लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने और उन्हें अपने ही मूल्यों की कसौटी पर खरे उतरने में सहायक होता है। 'समाजसेवा'वैयक्तिक आधार पर, समूह अथवा समुदाय में व्यक्तियों की सहायता करने की एक प्रक्रिया है, जिससे व्यक्ति अपनी सहायता स्वयं कर सके। इसके माध्यम से सेवार्थी वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में उत्पन्न अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने में सक्षम होता है। समाजसेवा अन्य सभी व्यवसायों से सर्वथा भिन्न होती है, क्योंकि समाज सेवा उन सभी सामाजिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक कारकों का निरूपण कर उसके परिप्रेक्ष्य में क्रियान्वित होती है, जो व्यक्ति एवं उसके पर्यावरण-परिवार, समुदाय तथा समाज को प्रभावित करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता पर्यावरण की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक शक्तियों के बाद व्यक्तिगत जैविकीय, भावात्मक तथा मनोवैज्ञानिक तत्वों को गतिशील अंत:क्रिया को दृष्टिगत कर ही सेवार्थी की सेवा प्रदान करता है। वह सेवार्थी के जीवन के प्रत्येक पहलू तथा उसके पर्यावरण में क्रियाशील, प्रत्येक सामाजिक स्थिति से अवगत रहता है क्योंकि सेवा प्रदान करने की योजना बताते समय वह इनकी उपेक्षा नहीं कर सकता। समाज-कार्य का अधिकांश ज्ञान समाजशास्त्रीय सिद्धांतों से लिया गया है, लेकिन समाजशास्त्र जहाँ मानव-समाज और मानव-संबंधों के सैद्धांतिक पक्ष का अध्ययन करता है, वहीं समाज-कार्य इन संबंधों में आने वाले अंतरों एवं सामाजिक परिवर्तन के कारणों की खोज क्षेत्रीय स्तर पर करने के साथ-साथ व्यक्ति के मनोसामाजिक पक्ष का भी अध्ययन करता है। समाज-कार्य करने वाले कर्त्ता का आचरण विद्वान की तरह न होकर समस्याओं में हस्तक्षेप के ज़रिये व्यक्तियों, परिवारों, छोटे समूहों या समुदायों के साथ संबंध स्थापित करने की तरफ़ उन्मुख होता है। इसके लिए समाज-कार्य का अनुशासन पूर्ण रूप से प्रशिक्षित और पेशेवर कार्यकर्ताओं पर भरोसा करता है। .

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समाजवाद

समाजवाद (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी प्रतिज्ञा यह भी है कि सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज या राज्य के हाथों में होना चाहिए। राजनीति के आधुनिक अर्थों में समाजवाद को पूँजीवाद या मुक्त बाजार के सिद्धांत के विपरीत देखा जाता है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में समाजवाद युरोप में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में उभरे उद्योगीकरण की अन्योन्यक्रिया में विकसित हुआ है। ब्रिटिश राजनीतिक विज्ञानी हैरॉल्ड लॉस्की ने कभी समाजवाद को एक ऐसी टोपी कहा था जिसे कोई भी अपने अनुसार पहन लेता है। समाजवाद की विभिन्न किस्में लॉस्की के इस चित्रण को काफी सीमा तक रूपायित करती है। समाजवाद की एक किस्म विघटित हो चुके सोवियत संघ के सर्वसत्तावादी नियंत्रण में चरितार्थ होती है जिसमें मानवीय जीवन के हर सम्भव पहलू को राज्य के नियंत्रण में लाने का आग्रह किया गया था। उसकी दूसरी किस्म राज्य को अर्थव्यवस्था के नियमन द्वारा कल्याणकारी भूमिका निभाने का मंत्र देती है। भारत में समाजवाद की एक अलग किस्म के सूत्रीकरण की कोशिश की गयी है। राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और नरेन्द्र देव के राजनीतिक चिंतन और व्यवहार से निकलने वाले प्रत्यय को 'गाँधीवादी समाजवाद' की संज्ञा दी जाती है। समाजवाद अंग्रेजी और फ्रांसीसी शब्द 'सोशलिज्म' का हिंदी रूपांतर है। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में इस शब्द का प्रयोग व्यक्तिवाद के विरोध में और उन विचारों के समर्थन में किया जाता था जिनका लक्ष्य समाज के आर्थिक और नैतिक आधार को बदलना था और जो जीवन में व्यक्तिगत नियंत्रण की जगह सामाजिक नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे। समाजवाद शब्द का प्रयोग अनेक और कभी कभी परस्पर विरोधी प्रसंगों में किया जाता है; जैसे समूहवाद अराजकतावाद, आदिकालीन कबायली साम्यवाद, सैन्य साम्यवाद, ईसाई समाजवाद, सहकारितावाद, आदि - यहाँ तक कि नात्सी दल का भी पूरा नाम 'राष्ट्रीय समाजवादी दल' था। समाजवाद की परिभाषा करना कठिन है। यह सिद्धांत तथा आंदोलन, दोनों ही है और यह विभिन्न ऐतिहासिक और स्थानीय परिस्थितियों में विभिन्न रूप धारण करता है। मूलत: यह वह आंदोलन है जो उत्पादन के मुख्य साधनों के समाजीकरण पर आधारित वर्गविहीन समाज स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील है और जो मजदूर वर्ग को इसका मुख्य आधार बनाता है, क्योंकि वह इस वर्ग को शोषित वर्ग मानता है जिसका ऐतिहासिक कार्य वर्गव्यवस्था का अंत करना है। .

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सरला बेन

सरला बेन (जन्म कैथरीन मैरी हेइलमैन; 5 अप्रैल 1901 8 जुलाई 1982) एक अंग्रेजी गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता थी उत्तराखंड, भारत के कुमाऊं क्षेत्र के जिसके काम नेराज्य के हिमालयी जंगलों में पर्यावरणीय विनाश के बारे में जागरुकता पैदा करने में मदद की। उन्होंने चिप्को आंदोलन के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत में कई गांधीवादी पर्यावरणविदों को प्रभावित किया, जिसमें चंडी प्रसाद भट्ट, बिमला बेन और सुंदरलाल बहुगुणा शामिल थे। मिराबेन के साथ, वह महात्मा गांधी की दो अंग्रेज बेटियों में से एक के रूप में जानी जाती है। दो महिलाओं का काम ने क्रमशः गढ़वाल और कुमाओं में स्वतंत्र भारत में पर्यावरणीय क्षरण और संरक्षण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।.

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सर्व सेवा संघ

सर्व सेवा संघ महात्मा गाँधी द्वारा या उनकी प्रेरणा से स्थापित रचनात्मक संस्थाओं तथा संघों का मिलाजुला संगठन है, जो उनके बलिदान के बाद आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन में अप्रैल 1948 में गठित किया गया। संशोधित नियमों के सन्दर्भ में यह देशभर में फैले हुए "लोकसेवकों का एक संयोजक संघ" भी बन गया है। इसे अखिल भारत सर्वोदय मण्डल के नाम से भी जाना जाता है। सर्व सेवा संघ का प्रधान कार्यालय महादेव भाई भवन, सेवाग्राम, वर्धा (महाराष्ट्र) में तथा प्रकाशन कार्यालय राजघाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में है। वर्ष 1954 में आचार्य धीरेन्द्र मजूमदार संघ के प्रथम अध्यक्ष बने। .

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सर्वोदय

सर्वोदय, अंग्रेज लेखक रस्किन की एक पुस्तक अनटू दिस लास्ट का गांधी जी द्वारा गुजराती में अनूदित एक पुस्तक है। 'अन्टू द लास्ट' का अर्थ है - इस अंतवाले को भी। सर्वोदय का अर्थ है - सबका उदय, सबका विकास। सर्वोदय भारत का पुराना आदर्श है। हमारे ऋषियों ने गाया है-"सर्वेपि सुखिन: संतु"। सर्वोदय शब्द भी नया नहीं है। जैन मुनि समंतभद्र कहते हैं - सर्वापदामंतकरं निरंतं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव। "सर्व खल्विदं ब्रह्म", "वसुधैव कुटुंबकं", अथवा "सोऽहम्" और "तत्त्वमसि" के हमारे पुरातन आदर्शों में "सर्वोदय" के सिद्धांत अंतर्निहित हैं। सर्वोदय समाज गांधी के कल्पनाओ का समाज था, जिसके केन्द्र मे भारतीय ग्राम व्यवस्था थी। विनोबा जी ने कहा है, सर्वोदय का अर्थ है - सर्वसेवा के माध्यम से समस्त प्राणियो की उन्नति। सर्वोदय के व्यवहारिक स्वरुप को हम बहुत ह्द तक विनोबा जी के भूदान आन्दोलन मे देख सकते है। सुबहवाले को जितना, शामवाले को भी उतना ही-प्रथम व्यक्ति को जितना, अंतिम व्यक्ति को भी उतना ही, इसमें समानता और अद्वैत का वह तत्व समाया है, जिसपर सर्वोदय का विशाल प्रासाद खड़ा है। (दादा धर्माधिकारी - "सर्वोदय दर्शन") .

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सर्वोदय आश्रम, कुर्सेला

सर्वोदय आश्रम, कुर्सेला बिहार राज्य के कटिहार जिलान्तर्गत कुर्सेला प्रखण्ड के तीनघरिया ग्राम में स्थित है। इस आश्रम की स्थापना सन् 1948 में सौराष्ट्र के गाँधीवादी कार्यकर्त्ता भगवन्न स्वामी द्वारा की गई थी। इसी वर्ष, महात्मा गाँधी के बलिदान के पश्चात् बिहार के अग्रणी सर्वोदय नेता बैद्यनाथ प्रसाद चौधरी के नेतृत्व में स्थानीय कार्यकर्त्ताओं ने "बापू" के पार्थिव अंश को गंगा-कोसी के संगम में विसर्जित किया था। उसी समय से, आश्रम में "पुण्यस्मृति पर्व" मनाया जाता है। आश्रम के अध्यक्ष नरेश यादव को स्मृतिचिह्न भेंट करती पर्यटन विभाग, बिहार की प्रधान सचिव हरजोत कौर बम्हारा यह आश्रम केन्द्रीय गाँधी स्मारक निधि, दिल्ली द्वारा "गाँधीघर" के रूप में नामित किया गया था तथा बीस हजार रूपये की आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करायी गई थी। बाद में, आश्रम स्थानीय सहयोग से ही संचालित होने लगा। यह आश्रम राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-31 से 1 किलोमीटर, कुर्सेला रेलवे स्टेशन से 500 मीटर और गंगा-कोसी संगम से 250 मीटर की दूरी पर स्थित है। सन् 1934 में बिहार में आए प्रलयंकारी भूकम्प के पीड़ितों के सहायतार्थ महात्मा गाँधी 11 मार्च 1934 को बिहार आये। इस बिहार यात्रा के अन्तिम दिन 10 अप्रैल 1934 को रूपसी (असम) जाने के क्रम में वे टिकापट्टी (पूर्णिया) होते हुए कुर्सेला पधारे थे, उस समय कुर्सेला भी पूर्णिया जिले का भाग था। महात्मा गाँधी ने विद्यालयी छात्रों के विशेष अनुरोध पर उन्हें सम्बोधित किया था। वर्तमान में, नरेश यादव, पूर्व सांसद (राज्यसभा) की अध्यक्षता में गठित कार्यकारिणी-समिति आश्रम का संचालन करती है। नरेश यादव महात्मा गाँधी द्वारा सन् 1932 में स्थापित हरिजन सेवक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। बिहार सरकार ने आश्रम को "गाँधी सर्किट" में जोड़ने तथा महात्मा गाँधी की बिहार-यात्रा से जुड़े संग्रहालय के रूप में विकसित करने की सहमति प्रकट की है। भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित "गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति" ने आश्रम का "गाँधी व्याख्या केन्द्र" के रूप में चयन किया है। .

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सरोजिनी नायडू

महात्मा गांधी के साथ सरोजिनी नायडू सरोजिनी नायडू (१३ फरवरी १८७९ - २ मार्च १९४९) का जन्म भारत के हैदराबाद नगर में हुआ था। इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक नामी विद्वान तथा माँ कवयित्री थीं और बांग्ला में लिखती थीं। बचपन से ही कुशाग्र-बुद्धि होने के कारण उन्होंने १२ वर्ष की अल्पायु में ही १२हवीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की और १३ वर्ष की आयु में लेडी ऑफ दी लेक नामक कविता रची। वे १८९५ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड गईं और पढ़ाई के साथ-साथ कविताएँ भी लिखती रहीं। गोल्डन थ्रैशोल्ड उनका पहला कविता संग्रह था। उनके दूसरे तथा तीसरे कविता संग्रह बर्ड ऑफ टाइम तथा ब्रोकन विंग ने उन्हें एक सुप्रसिद्ध कवयित्री बना दिया। १८९८ में सरोजिनी नायडू, डॉ॰ गोविंदराजुलू नायडू की जीवन-संगिनी बनीं। १९१४ में इंग्लैंड में वे पहली बार गाँधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गयीं। एक कुशल सेनापति की भाँति उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय हर क्षेत्र (सत्याग्रह हो या संगठन की बात) में दिया। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गयीं। संकटों से न घबराते हुए वे एक धीर वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर ये देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती रहीं। उनके वक्तव्य जनता के हृदय को झकझोर देते थे और देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए प्रेरित कर देते थे। वे बहुभाषाविद थी और क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेजी, हिंदी, बंगला या गुजराती में देती थीं। लंदन की सभा में अंग्रेजी में बोलकर इन्होंने वहाँ उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण १९२५ में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की वे अध्यक्षा बनीं और १९३२ में भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गईं। भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद वे उत्तरप्रदेश की पहली राज्यपाल बनीं। श्रीमती एनी बेसेन्ट की प्रिय मित्र और गाँधीजी की इस प्रिय शिष्या ने अपना सारा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया। २ मार्च १९४९ को उनका देहांत हुआ। १३ फरवरी १९६४ को भारत सरकार ने उनकी जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में १५ नए पैसे का एक डाकटिकट भी जारी किया। .

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सस्ता साहित्य मण्डल

सस्ता साहित्य मण्डल, भारत का एक प्रमुख पुस्तक प्रकाशक संस्था है। इस संस्था की स्थापना सन् १९२५ में महात्मा गांधी की प्रेरणा से हुई जिसमें जमनालाल बजाज एवं घनश्यामदास बिड़ला की प्रमुख भूमिका थी। यह एक धर्मार्थ संस्था है जो बिना लाभ कमाए (no-profit) काम करती है। इसका मुख्य उद्देश्य कम मूल्य पर उच्चस्तरीय साहित्य का प्रकाशन करना है। मंडल ने अब तक लगभग २००० से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। आरम्भ में इसके कार्यों का केन्द्र अजमेर था किन्तु १९३४ में यह दिल्ली आ गया था। इस प्रकाशन ने जो सबसे पहली पुस्तक छापी वह गांधीजी द्वारा रचित "दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का इतिहास" थी। मंडल द्वारा प्रकाशित पुस्तकें अनेकानेक विषयों - इतिहास, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, महापुरुषों की जीवनियाँ आदि होती हैं। बहुत सी पुस्तकें गांधीजी एवं गांधी-साहित्य से सम्बन्धित होती हैं। इसके कई प्रकाशनों को भारत के केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारों से पुरस्कार भी मिल चुके हैं। सस्ता साहित्य मंडल कोई साधारण प्रकाशक नहीं है। इसकी स्थापना के पीछे वही तत्व सक्रिय थे जिन्होंने आगे चलकर आज़ादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। गांधीजी के अनन्य अनुयायी और उनके पांचवें पुत्र के नाम से विख्यात सेठ जमनालाल बजाज इसके मुख्य प्रेरक थे और घनश्यामदास बिड़ला, हरिभाऊ उपाध्याय, वियोगी हरि आदि इसके सक्रिय सहयोगी थे। .

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साबरमती नदी

साबरमती नदी भारत की एक प्रमुख नदी है। इस नदी का उद्गम राजस्थान के उदयपुर जिले में अरावली पर्वतमालाओं से होता है, और फिर राजस्थान और गुजरात में दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बहते हुए ३७१ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यह अरब सागर की खंभात की खाड़ी में गिर जाती है। नदी की लम्बाई राजस्थान में ४८ किलोमीटर, और गुजरात में ३२३ किलोमीटर है। साबरमती गुजरात की प्रमुख नदी है; इसके तट पर राज्य के अहमदाबाद और गांधीनगर जैसे प्रमुख नगर बसे हैं, और धरोई बाँध योजना द्वारा साबरमती नदी के जल का प्रयोग गुजरात में सिंचाई और विद्युत् उत्पादन के लिए होता है। .

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साबरमती आश्रम

साबरमती आश्रम साबरमती आश्रम भारत के गुजरात राज्य अहमदाबाद जिले के प्रशासनिक केंद्र अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के किनारे स्थित है। सत्याग्रह आश्रम की स्थापना सन् 1917 में अहमदाबाद के कोचरब नामक स्थान में महात्मा गांधी द्वारा हुई थी। सन् 1917 में यह आश्रम साबरमती नदी के किनारे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित हुआ और तब से साबरमती आश्रम कहलाने लगा। आश्रम के वर्तमान स्थान के संबंध में इतिहासकारों का मत है कि पौराणिक दधीचि ऋषि का आश्रम भी यही पर था। .

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साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल

साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल, या दे दी हमें आज़ादी हिन्दी फ़िल्म जागृति (1954) का, कवि प्रदीप द्वारा रचित एक गीत है। इसकी पहली पंक्ति इस प्रकार है: "दे दी आज़ादी बिना खड़ग बिना ढ़ाल, साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल"। यह एक देशभक्ति गीत है जो महात्मा गांधी और उनके अहिंसात्मक स्वभाव को समर्पित है .

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सामाजिक क्रांति

समाज मैं फेली धार्मिक/सांस्कृतिक दकियानूसी, रुढीवादी एवं अमानविय प्रथाओं को समाप्त करनें का प्रयास करना ही सामाजिक क्रांति कहलाती हैं। .

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सामाजिक उद्यमिता

सामाजिक उद्यमिता का कार्य करने वाले सामाजिक उद्यमी कहलाते हैं। सामाजिक उद्यमी अपनी पैनी नजर से समाज में व्याप्त किसी समस्या की पहचान करता है। उसके बाद सामाजिक उद्यमिता के सिद्धान्तों का सहारा लेते हुए वह सामाजिक परिवर्तन करके उस समस्या का समाधान निकालता है। जहां व्यापारिक उद्यमी अपना कार्य लाभ और हानि के रूप में मापते हैं, सामाजिक उद्यमी अपनी सफलता का मूल्यांकन समाज पर अपने कार्य द्वारा पडे प्रभाव के रूप में मापते हैं। अधिकांश सामाजिक उद्यमी बिना लाभ के काम करने वाली संस्थाओं अथवा नागरिक समूहों के रूप में कार्य करते हैं। जिस प्रकार व्यापारिक उद्यमिता में नवाचारी उत्पादों या नवाचारी सेवाओं का बहुत महत्व है, उसी तरह सामाजिक उद्यमी के कार्य में सामाजिक नवाचार का बहुत महत्व है। यद्यपि इस शब्द का प्रयोग १९८०/१९९० के दशक से शुरू हुआ, इतिहास में हर काल और हर देश में सामाजिक उद्यमी भरे पडे हैं। महात्मा गांधी, विनोबा भावे, फ्लोरेंस नाइटइंगेल, राबर्ट ओवेन आदि कुछ प्रमुख सामाजिक उद्यमी हैं। आज के समय मे यदि अधिक से अधिक लोग सामाजिक उद्यमिता के क्षेत्र मे आगे आते है तो कै ऐसे काम हो सकते है जिसके लिये सरकारी तन्त्र के आगे हाथ फैलना पडता है। .

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साहित्य अकादमी पुरस्कार बंगाली

साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और बंगाली भाषा इन में से एक भाषा हैं। .

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साहित्य अकादमी पुरस्कार कोंकणी

साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और कोंकणी भाषा इन में से एक भाषा हैं। अकादमी ने १९७७ से इस भाषा के लिए पुरस्कारों को पेश किया। .

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सांचा:विशेष तिथियाँ

श्रेणी:साहित्यकार श्रेणी:हिन्दी साहित्य.

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सांप्रदायिक अधिनिर्णय

16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडोनाल्ड द्वारा भारत में उच्च वर्ग, निम्न वर्ग, मुस्लिम, बौद्ध, सिख, भारतीय ईसाई, एंग्लो-इंडियन, पारसी और अछूत (दलित) आदि के लिए अलग-अलग चुनावक्षेत्र के लिए ये अवार्ड दिया। गांधीजी ने इसका विरोध किया था। इस 'पुरस्कार' के परिचय के पीछे कारण यह था कि रामसे मैकडोनाल्ड ने खुद को 'भारतीयों का दोस्त' माना था और इस तरह वे भारत के मुद्दों को हल करना चाहते थे। तीन गोलमेज सम्मेलन (भारत) के द्वितीय की विफलता के बाद 'सांप्रदायिक पुरस्कार' की घोषणा की थी। गांधी द्वारा विरोध किया गया, जो येरवाड़ा जेल में था और इसके विरोध में उपवास किया। गांधी को डर था कि यह हिंदू समाज बिखर जाएगा। हालांकि, अल्पसंख्यक समुदायों में से कई ने सांप्रदायिक पुरस्कार का समर्थन किया था, खासकर दलितों के नेता डॉ.

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सियारामशरण गुप्त

सियारामशरण गुप्त (४ सितंबर १८९५ - २९ मार्च १९६३) (भाद्र पूर्णिमा सम्वत १९५२ विक्रमी) हिन्दी के साहित्यकार थे। .

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संतसाहित्य

संतसाहित्य का इस लेख में अर्थ है- वह साहित्य जो निर्गुणिए भक्तों द्वारा रचा जाए। यह आवश्यक नहीं कि सन्त उसे ही कहा जाए जो निर्गुण ब्रह्म का उपासक हो। इसके अंतर्गत लोकमंगलविधायी सभी सत्पुरुष आ जाते हैं, किंतु आधुनिक कतिपय साहित्यकारों ने निर्गुणिए भक्तों को ही "संत" की अभिधा दे दी और अब यह शब्द उसी वर्ग में चल पड़ा है। "संत" शब्द संस्कृत "सत्" के प्रथमा का बहुवचनान्त रूप है, जिसका अर्थ होता है सज्जन और धार्मिक व्यक्ति। हिन्दी में साधु पुरुषों के लिए यह शब्द व्यवहार में आया। कबीर, सूरदास, गोस्वामी तुलसीदास आदि पुराने कवियों ने इस शब्द का व्यवहार साधु और परोपकारी, पुरुष के अर्थ में बहुलांश: किया है और उसके लक्षण भी दिए हैं। लोकोपकारी संत के लिए यह आवश्यक नहीं कि यह शास्त्रज्ञ तथा भाषाविद् हो। उसका लोकहितकर कार्य ही उसके संतत्व का मानदंड होता है। हिंदी साहित्यकारों में जो "निर्गुणिए संत" हुए उनमें अधिकांश अनपढ़ किंवा अल्पशिक्षित ही थे। शास्त्रीय ज्ञान का आधार न होने के कारण ऐसे लोग अपने अनुभव की ही बातें कहने को बाध्य थे। अत: इनके सीमित अनुभव में बहुत सी ऐसी बातें हो सकती हैं, जो शास्त्रों के प्रतिकूल ठहरें। अल्पशिक्षित होने के कारण इन संतों ने विषय को ही महत्व दिया है, भाषा को नहीं। इनकी भाषा प्राय: अनगढ़ और पंचरंगी हो गई है। काव्य में भावों की प्रधानता को यदि महत्व दिया जाए तो सच्ची और खरी अनुभूतियों की सहज एवं साधारणोकृत अभिव्यक्ति के कारण इन संतों में कइयों की बहुवेरी रचनाएँ उत्तम कोटि के काव्य में स्थान पाने की अधिकारिणी मानी जा सकती है। परंपरापोषित प्रत्येक दान का आँख मूँदकर वे समर्थन नहीं करते। इनके चिंतन का आकार सर्वमानववाद है। ये मानव मानव में किसी प्रकार का अंतर नहीं मानते। इनका कहना है कि कोई भी व्यक्ति अपने कुलविशेष के कारण किसी प्रकार वैशिष्ट्य लिए हुए उत्पन्न नहीं होता। इनकी दृष्टि में वैशिष्ट्य दो बातों को लेकर मानना चाहिए: अभिमानत्यागपूर्वक परोपकार या लोकसेवा तथा ईश्वरभक्ति। इस प्रकार स्वतंत्र चिंतन के क्षेत्र में इन संतों ने एक प्रकार की वैचारिक क्रांति को जन्म दिया। .

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संपूर्णानन्द

डॉ॰ संपूर्णानंद डॉ॰ संपूर्णानन्द (1 जनवरी 1890 - 10 जनवरी 1969) कुशल तथा निर्भीक राजनेता एवं सर्वतोमुखी प्रतिभावाले साहित्यकार एवं अध्यापक थे। वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। .

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संसदीय राजभाषा समिति

महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है। संविधान निर्माताओं ने संविधान के निर्माण के समय राजभाषा विषय पर विचार-विमर्श किया था और यह निर्णय लिया कि देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूंप में अंगीकृत किया जाए। इसी आधार पर संविधान के अनुच्छेद 343(1) में देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया। किन्तु, संविधान के निर्माण तथा अंगीकरण के समय यह परिकल्पना की गई थी कि संघ के कार्यकारी, न्यायिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए प्रारम्भिक 15 वर्षों तक अर्थात 1965 तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहे। तथापि यह प्रावधान किया गया था कि उक्त अवधि के दौरान भी राष्ट्रपति कतिपय विशिष्ट प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग का प्राधिकार दे सकते हैं। परिवर्तन के लिए 15 वर्ष की कालावधि पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद निर्धारित की गई थी ताकि उक्त अन्तराल के बाद निर्बाध भाषाई-परिवर्तन हेतु आवश्यक व्यवस्था तथा तैयारी की जा सके। संविधान के निर्माता इस बात के प्रति जागरूंक थे कि सभी क्षेत्रों में 1965 तक भाषाई परिवर्तन करना सम्भव न होगा। उन्हें यह भी आभास रहा होगा कि सुचारूं परिवर्तन के हित में 15 वर्ष की कालावधि के दौरान भी अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी के क्रमिक प्रयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 351 में भी संघ की राजभाषा के रूंप में हिंदी के विकास का संकेत दिया गया है। संविधान निर्माताओं ने इस भाषा के एक अखिल भारतीय रूंप की कल्पना की थी जो अन्य भारतीय भाषाओं की सहायता लेकर अहिंदी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा व्यापक रूंप से स्वीकार किए जाने की क्षमता प्राप्त कर सके। 1963 में राजभाषा अधिनियम अधिनियमित किया गया। अधिनियम में यह व्यवस्था भी थी कि केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों से पत्राचार में अंग्रेजी के प्रयोग को उसी स्थिति में समाप्त किया जाएगा जबकि सभी अहिंदी भाषी राज्यों के विधान मण्डल इसकी समाप्ति के लिए संकल्प पारित कर दें और उन संकल्पों पर विचार करके संसद के दोनों सदन उसी प्रकार के संकल्प पारित करें। अधिनियम में यह भी व्यवस्था थी कि अन्तराल की अवधि में कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाए और कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी दोनों का प्रयोग किया जाए। सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। उक्त अधिनियम में, अन्य बातों के साथ-साथ, यह भी प्रावधान था कि संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में हुई प्रगति का पुनर्विलोकन करने के लिए एक राजभाषा समिति गठित की जाए। राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा (3) के प्रख्यापन के दस वर्ष बाद इस समिति का गठन किया जाना था। समिति का गठन अधिनियम की धारा 4 के तहत वर्ष 1976 में किया गया। इस समिति में संसद के 30 सदस्य होने का प्रावधान है, 20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से। बाद में 1977, 1980, 1984, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों के पश्चात् समिति का पुनर्गठन हुआ है। समिति के कार्यकलाप और गतिविधियां मुख्यतः राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 में दी गई हैं। सुलभ संदर्भ के लिए राजभाषा अधिनियम की धारा 4 को नीचे उद्धृत किया गया है.

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संकल्प

संकल्प किसी विषय पर दृड़ निश्चय लेने को कहते हैं। मानव इतिहास में नेल्सन मंडेला, महात्मा गाँधी और अनेक व्यक्तियों ने दृड़तापूर्बक अन्यायपूर्ण व्यवस्था का विरीत परिस्थितियों में मुकाबला किया और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। .

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सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी (जन्म सुचेता मजूमदार) (२५ जून,१९०८ - १ दिसम्बर, १९७४) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनीतिज‘ज थीं। ये उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनीं और भारत की प्रथम महिला मुख्य मंत्री थीं। स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती सुचेता कृपलानी के योगदान को भी हमेशा याद किया जाएगा। १९०८ में जन्मी सुचेता जी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सजा हुई। १९४६ में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गई। १९५८ से १९६० तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थी। १९६३ से १९६७ तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 1 दिसम्बर १९७४ को उनका निधन हो गया। अपने शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि "सुचेता जी ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थीं, जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है।" सुचेता कृपलानी देश की पहली महिला मुख्य मंत्री थीं। ये बंटवारे की त्रासदी में महात्मा गांधी के बेहद करीब रहीं। सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने बापू के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गई। सुचेता दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुई, जब उनके रुख में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे। .

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सुदर्शन (साहित्यकार)

सुदर्शन (1895-1967) प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार हैं। इनका दृष्टिकोण सुधारवादी है। ये आदर्शोन्मुख यथार्थवादी हैं। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे हैं। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है। अपनी प्रायः सभी प्रसिद्ध कहानियों में इन्होंने समस्यायों का आदशर्वादी समाधान प्रस्तुत किया है। चौधरी छोटूराम जी ने कहानीकार सुदर्शन जी को जाट गजट का सपादक बनाया था। केवल इसलिये कि वह पक्के आर्यसमाजी थे और आर्य समाजी समाज सुधारर होते हैं। एक गोरे पादरी के साथ टक्कर लेने से गोरा शाही सुदर्शन जी से चिढ़ गई। चौ.

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सुन्दरलाल शर्मा

00chrm.jpg पंडित सुंदरलाल शर्मा (२१ दिसम्बर १८८१ - १९४०), छत्तीसगढ़ में जन जागरण तथा सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। वे कवि, सामाजिक कार्यकर्ता, समाजसेवक, इतिहासकार, स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्हें 'छत्तीसगढ़ का गांधी' कहा जाता है। उनके सम्मान में उनके नाम पर पण्डित सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ की स्थापना की गई है। .

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सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है। .

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सुभाष चन्द्र बोस

सुभाष चन्द्र बोस (बांग्ला: সুভাষ চন্দ্র বসু उच्चारण: शुभाष चॉन्द्रो बोशु, जन्म: 23 जनवरी 1897, मृत्यु: 18 अगस्त 1945) जो नेता जी के नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया था। नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए "दिल्ली चलो!" का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया। 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं। नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से सम्बंधित दस्तावेज़ अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किये? 16 जनवरी 2014 (गुरुवार) को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया। .

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सुरेंद्रनाथ बैनर्जी

सर सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी (10 नवम्बर 1848 - 6 अगस्त 1925) ब्रिटिश राज के दौरान प्रारंभिक दौर के भारतीय राजनीतिक नेताओं में से एक थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय समिति की स्थापना की, जो प्रारंभिक दौर के भारतीय राजनीतिक संगठनों में से एक था और बाद में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बन गए। वह राष्ट्रगुरू (राष्ट्र के शिक्षक) के नाम से भी जाने जाते थे, जो उन्हें उपाधि के रूप में दी गई थी। .

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सुजाता चौधरी

सुजाता चौधरी (English: Sujata Chaudhary) वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार, सम्पादक तथा लोकोपकारक हैं, इनका लेखन नाम सुजाता है | इनके द्वारा अधिकांश पुस्तकें महात्मा गाँधी के विचारों तथा कार्यों पर लिखी गयी हैं | .

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सुई धागा: मेड इन इंडिया

सुई धागा: मेड इन इंडिया एक आगामी बॉलीवुड फिल्म है जिसमें मेक इन इंडिया की प्रगति की पहल पर आधारित है। फिल्म महात्मा गांधी के खादी पहल से प्रेरित है। यह फिल्म शरत कटारिया द्वारा निर्देशित है और यशराज फिल्म्स द्वारा निर्मित है। फिल्म में वरुण धवन और अनुष्का शर्मा का किरदार निभा रहा है। ‘सुई धागा- मेड इन इंडिया' 2 अक्टूबर 2018 में गांधी जयंती पर सिनेमाघरों में रिलीज होगी। 'सुई-धागा मेड इन इंडिया' की शूटिंग के लिए मेरठ के सिटी और कैंट स्टेशन को चयनित किया गया है। .

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स्वच्छ भारत अभियान

स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा आरंभ किया गया राष्ट्रीय स्तर का अभियान है जिसका उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा करना है। यह अभियान महात्मा गाँधी के जन्मदिवस 02 अक्टूबर 2014 को आरंभ किया गया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने देश को गुलामी से मुक्त कराया, परन्तु 'स्वच्छ भारत' का उनका सपना पूरा नहीं हुआ। महात्मा गांधी ने अपने आसपास के लोगों को स्वच्छता बनाए रखने संबंधी शिक्षा प्रदान कर राष्ट्र को एक उत्कृष्ट संदेश दिया था। स्वच्छ भारत का उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को कम करना या समाप्त करना है। स्वच्छ भारत मिशन लैट्रिन उपयोग की निगरानी के जवाबदेह तंत्र को स्थापित करने की भी एक पहल करेगा। सरकार ने 2 अक्टूबर 2019, महात्मा गांधी के जन्म की 150 वीं वर्षगांठ तक ग्रामीण भारत में 1.96 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत (यूएस $ 30 बिलियन) के 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्माण करके खुले में शौंच मुक्त भारत (ओडीएफ) को हासिल करने का लक्ष्य रखा है। .

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स्वतन्त्रता के बाद भारत का संक्षिप्त इतिहास

कोई विवरण नहीं।

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स्वदेशी

स्वदेशी का अर्थ है- 'अपने देश का' अथवा 'अपने देश में निर्मित'। वृहद अर्थ में किसी भौगोलिक क्षेत्र में जन्मी, निर्मित या कल्पित वस्तुओं, नीतियों, विचारों को स्वदेशी कहते हैं। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला, यह 1911 तक चला और गाँधी जी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होंने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा। .

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स्वदेशी आन्दोलन

१९३० के दशक का पोस्टर जिसमें गाँधीजी को जेल के अन्दर चरखा कातते हुए दिखाया गया है, और लिखा है- ''चरखा और स्वदेशी पर ध्यान दो।'' स्वदेशी आन्दोलन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण आन्दोलन, सफल रणनीति व दर्शन था। स्वदेशी का अर्थ है - 'अपने देश का'। इस रणनीति के लक्ष्य ब्रिटेन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिकाधिक प्रयोग करके साम्राज्यवादी ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुँचाना व भारत के लोगों के लिये रोजगार सृजन करना था। यह ब्रितानी शासन को उखाड़ फेंकने और भारत की समग्र आर्थिक व्यवस्था के विकास के लिए अपनाया गया साधन था। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला। यह 1911 तक चला और गान्धीजी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा। .

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स्वराज

स्वराज का शाब्दिक अर्थ है - ‘स्वशासन’ या "अपना राज्य" ("self-governance" or "home-rule")। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय प्रचलित यह शब्द आत्म-निर्णय तथा स्वाधीनता की माँग पर बल देता था। प्रारंभिक राष्ट्रवादियों (उदारवादियों) ने स्वाधीनता को दूरगामी लक्ष्य मानते हुए ‘स्वशासन’ के स्थान पर ‘अच्छी सरकार’ (ब्रिटिश सरकार) के लक्ष्य को वरीयता दी। तत्पश्चात् उग्रवादी काल में यह शब्द लोकप्रिय हुआ, जब बाल गंगाधर तिलक ने यह उद्घोषणा की कि ‘‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।’’ गाँधी ने सर्वप्रथम 1920 में कहा कि ‘‘मेरा स्वराज भारत के लिए संसदीय शासन की मांग है, जो वयस्क मताधिकार पर आधारित होगा। गाँधी का मत था स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो।’’ वस्तुत: गांधीजी का स्वराज का विचार ब्रिटेन के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, ब्यूरोक्रैटिक, कानूनी, सैनिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं का बहिष्कार करने का आन्दोलन था। यद्यपि गांधीजी का स्वराज का सपना पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सका फिर भी उनके द्वारा स्थापित अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं ने इस दिशा में काफी प्रयास किये। .

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स्वराज पार्टी

चित्तरंजन दास मोतीलाल नेहरू स्वराज पार्टी पराधीन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बना एक राजनैतिक दल था। यह दल भारतीयों के लिये अधिक स्व-शासन तथा राजनीतिक स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिये कार्य कर रहा था। भारतीय भाषाओं में स्वराज का अर्थ है "अपना राज्य"। .

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स्वाभिमान

' अपनी जाति, राष्ट्र, धर्म आदि का सद् अभिमान। अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का अभिमान। आत्म-गौरव, आत्म बिश्वास। (सेल्फ़-रेस्पेक्ट),(सेल्फ स्टिम)। .

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स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्वामी दयानन्द सरस्वती महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। उनका बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। उन्होंने ने 1874 में एक महान आर्य सुधारक संगठन - आर्य समाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। स्वामीजी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले १८७६ में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वामी दयानन्द के विचारों से प्रभावित महापुरुषों की संख्या असंख्य है, इनमें प्रमुख नाम हैं- मादाम भिकाजी कामा, पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद 'बिस्मिल', महादेव गोविंद रानडे, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय इत्यादि। स्वामी दयानन्द के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने १८८६ में लाहौर में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानन्द ने १९०१ में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की। .

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स्वामी भवानी दयाल सन्यासी

स्वामी भवानी दयाल सन्यासी (10 सितम्बर 1892 ई. - 1950) दक्षिण अफ्रीका में हिंदी के संस्थापक और महात्मा गांधी के निकट सहयोगी थे। फिजी के भारतीयों की स्वतंत्रता के लिए उन्होने संघर्ष किया। उनके नाम पर फिजी की आर्य प्रतिनिधि सभा ने भवानी दयाल आर्य कॉलेज की स्थापना की है। .

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स्वामी श्रद्धानन्द

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती (२ फरवरी, १८५६ - २३ दिसम्बर, १९२६) भारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी थे जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार किया। वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त संन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय आदि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और हिन्दू समाज को संगठित करने तथा १९२० के दशक में शुद्धि आन्दोलन चलाने में महती भूमिका अदा की। .

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स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द(স্বামী বিবেকানন্দ) (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का पहले हाथ ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच की। विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया, सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है और इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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स्‍वतंत्रता दिवस (भारत)

भारत का स्वतंत्रता दिवस (अंग्रेज़ी: Independence Day of India, हिंदी:इंडिपेंडेंस डे ऑफ़ इंडिया) हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। 15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोगों ने काफी हद तक अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में हिस्सा लिया। स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया, जिसमें भारत और पाकिस्तान का उदय हुआ। विभाजन के बाद दोनों देशों में हिंसक दंगे भड़क गए और सांप्रदायिक हिंसा की अनेक घटनाएं हुईं। विभाजन के कारण मनुष्य जाति के इतिहास में इतनी ज्यादा संख्या में लोगों का विस्थापन कभी नहीं हुआ। यह संख्या तकरीबन 1.45 करोड़ थी। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए। इस दिन को झंडा फहराने के समारोह, परेड और सांस्कृतिक आयोजनों के साथ पूरे भारत में मनाया जाता है। भारतीय इस दिन अपनी पोशाक, सामान, घरों और वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित कर इस उत्सव को मनाते हैं और परिवार व दोस्तों के साथ देशभक्ति फिल्में देखते हैं, देशभक्ति के गीत सुनते हैं। - archive.india.gov.in .

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सेठ गोविंद दास

सेठ गोविंददास (1896 – 1974) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सांसद तथा हिन्दी के साहित्यकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६१ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी के वे प्रबल समर्थक थे। सेठ गोविंददास हिन्दी के अनन्य साधक, भारतीय संस्कृति में अटल विश्वास रखने वाले, कला-मर्मज्ञ एवं विपुल मात्रा में साहित्य-रचना करने वाले, हिन्दी के उत्कृष्ट नाट्यकार ही नहीं थे, अपितु सार्वजनिक जीवन में अत्यंत स्वच्छ, नीति-व्यवहार में सुलझे हुए, सेवाभावी राजनीतिज्ञ भी थे। सन् १९४७ से १९७४ तक वे जबलपुर से सांसद रहे। वे महात्मा गांधी के निकट सहयोगी थे। उनको दमोह में आठ माह का कारावास झेलना पड़ा था जहाँ उन्होने चार नाटक लिखे- "प्रकाश" (सामाजिक), "कर्तव्य" (पौराणिक), "नवरस" (दार्शनिक) तथा "स्पर्धा" (एकांकी)। .

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सेवाग्राम

सेवाग्राम आश्रम, सेवाग्राम 1920सेवाग्राम महाराष्ट्र के वर्धा जिले में एक गाँव का नाम है। यहाँ एक प्रसिद्ध आश्रम है जिसे गांधीजी ने स्थापित किया था। पहले इस गाँव का नाम शेगाँव था जिसे गांधीजी ने बदलकर नया नाम 'सेवाग्राम' रखा। .

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सोनाली कुलकर्णी (व्यापार-जगत से जुड़ी महिला)

सोनाली कुलकर्णी फ़नूक इंडिया की अध्यक्षा और मुख्य अधिकारी हैं। यह जापानी रोबॉट निर्माता की स्थानीय इकाई है। अपने इस रोल में वह सभी सामग्री जैसे कि सी०एन०सी, रोबॉट, रोबो-मशीन और प्रणालि-एकिकरण (System Integration) के विपनन और बिकरी से जुड़ी गतिविधियों को देखती हैं। कुलकर्णी को वर्ष 2014 की सबसे शक्तिशालि महिला खिताब दिया गया है। .

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सोहन लाल द्विवेदी

सोहन लाल द्विवेदी (22 फरवरी 1906 - 1 मार्च 1988) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित, द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं। 1969 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था। .

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सोहन सिंह भकना

बाबा सोहन सिंह भाकना बाबा सोहन सिंह भकना (जनवरी, १८७०, अमृतसर -- २० दिसम्बर, १९६८)) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। वे गदर पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष थे तथा सन् १९१५ के गदर आन्दोलन के प्रमुख सूत्रधार थे। लाहौर षडयंत्र केस में बाबा को आजीवन कारावास हुआ और सोलह वर्ष तक जेल में रहने के बाद सन् १९३० में रिहा हुए। बाद में वे भारतीय मजदूर आन्दोलन से जुड़े तथा किसान सभा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को अपना अधिकांश समय दिया। .

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सीता राम गोयल

सीता राम गोयल (१९२१ - २००३) भारत के बीसवीं शती के प्रमुख इतिहाकार, लेखक, उपन्यासकार और प्रकाशक थे। उन्होने हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में पुस्तकों का प्रकाशन किया। विख्यात ऋषि और दार्शनिक राम स्वरूप उनके गुरु और सहयोगी थे। १९४० के दशक में उनका झुकाव मार्क्सवाद की तरफ था किन्तु बाद में वे घोर साम्यवाद-विरोधी हो गये। बाद में वे इसाईयत, इस्लाम एवं भारतीय इतिहास एवं राजनीति के प्रमुख व्याख्याता (कमेंटेटर) बनकर उभरे। .

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हत्या की गई भारतीय राजनीतिज्ञों की सूची

निम्नलिखित हत्या की गई भारतीय राजनीतिज्ञों की सूची है। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कई राजनेताओं की हत्या कर दी गई है। .

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हरिसिंह गौर

सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक '''डॉ हरिसिंह गौर''' डॉ॰ हरिसिंह गौर, (२६ नवम्बर १८७० - २५ दिसम्बर १९४९) सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, शिक्षाशास्त्री, ख्यति प्राप्त विधिवेत्ता, न्यायविद्, समाज सुधारक, साहित्यकार (कवि, उपन्यासकार) तथा महान दानी एवं देशभक्त थे। वह बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय तथा नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वे भारतीय संविधान सभा के उपसभापति, साइमन कमीशन के सदस्य तथा रायल सोसायटी फार लिटरेचर के फेल्लो भी रहे थे।उन्होने कानून शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार, संस्कृति, राष्ट्रीय आंदोलन, संविधान निर्माण आदि में भी योगदान दिया। उन्होने अपनी गाढ़ी कमाई से 20 लाख रुपये की धनराशि से 18 जुलाई 1946 को अपनी जन्मभूमि सागर में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा वसीयत द्वारा अपनी पैतृक सपत्ति से 2 करोड़ रुपये दान भी दिया था। इस विश्वविद्यालय के संस्थापक, उपकुलपति तो थे ही वे अपने जीवन के आखिरी समय (२५ दिसम्बर १९४९) तक इसके विकास व सहेजने के प्रति संकल्पित रहे। उनका स्वप्न था कि सागर विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज तथा ऑक्सफोर्ड जैसी मान्यता हासिल करे। उन्होंने ढाई वर्ष तक इसका लालन-पालन भी किया। डॉ॰ सर हरीसिंह गौर एक ऐसा विश्वस्तरीय अनूठा विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना एक शिक्षाविद् के द्वारा दान द्वारा की गई थी। .

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हरिजन

''हरिजन'' समाचार-पत्र हरि का अर्थ है "ईश्वर या भगवान" और जन का अर्थ है "लोग" महात्मा गाँधी ने "हरिजन" शब्द का प्रयोग हिन्दू समाज के उन समुदायों के लिये करना शुरु किया था जो सामाजिक रूप से बहिष्कृत माने जाते थे। इनके साथ ऊँची जाति के लोग छुआछूत का व्यवहार करते थे अर्थात उन्हें अछूत समझा जाता था। सामाजिक पुर्ननिर्माण और इनके साथ भेदभाव समाप्त करने के लिये गाँधी ने उन्हें ये नाम दिया था और बाद में उन्होंने "हरिजन" नाम से एक समाचार-पत्र भी निकाला जिसमें इस सामाजिक बुराई के लिये वे नियमित लेख लिखते थे। लेकिन अब हरिजन शब्द को प्रतिबन्धित कर दिया गया है! हरिजन शब्द के स्थान पर अनुसूचित जाति का स्तेमाल करना अनिवार्य कर दिया गया है ! हरिजन शब्द पाकिस्तान के दलितों के लिये भी प्रयुक्त होता है जिन्हें हरी कहा जाता है और जो मिट्टी के झोपड़े बनाने के लिये जाने जाते हैं। .

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हरिजन सेवक संघ

हरिजन सेवक संघ हरिजन सेवक संघ की स्थापना 30 सितम्बर 1932 को एक अखिल भारतीय संगठन के रूप में हुई थी। पहले इस संगठन का नाम अस्पृश्यता निवारण संघ रखा गया था, जिसे 13 सितम्बर 1933 को हरिजन सेवक संघ नाम दिया गया| इसके प्रथम अध्यक्ष प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्यामदास बिड़ला तथा सचिव अमृतलाल विट्ठलदास ठक्कर हुए| संघ का मुख्यालय गाँधी आश्रम, किंग्सवे कैम्प, दिल्ली में है। इसकी शाखाएँ भारत में लगभग सभी राज्यों में हैं। वर्तमान में इसके अध्यक्ष शंकर कुमार सान्याल हैं। .

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हरिजन आन्दोलन

हिंदू समाज में जिन जातियों या वर्गों के साथ अस्पृश्यता का व्यवहार किया जाता था और आज भी कुछ हद तक वैसा ही विषम व्यवहार कहीं कहीं पर सुनने और देखने में आता है, उनको अस्पृश्य, अंत्यज या दलित नाम से पुकारते थे। यह देखकर कि ये सारे ही नाम अपमानजनक हैं, सन् 1932 के अंत में गुजरात के एक अंत्यज ने ही महात्मा गांधी को एक गुजराती भजन का हवाला देकर लिखा कि अंत्यजों को "हरिजन" जैसा सुंदर नाम क्यों न दिया जाए। उस भजन में हरिजन ऐसे व्यक्ति को कहा गया है, जिसका सहायक संसार में, सिवाय एक हरि के, कोई दूसरा नहीं है। गांधी जी ने यह नाम पसंद कर लिया और यह प्रचलित हो गया। .

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हरीलाल गान्धी

हरीलाल गान्धी का जन्म 1888 को महात्मा गान्धी के पहले पुत्र के रूप मे हुआ, हरिलाल उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे और वकालत करना चाहते थे, परन्तु बापू का मानना था की, पश्चिमी शिक्षा के द्वारा भारत में ब्रिटिश प्रशासन का विरोध करना सही नहीं होगा, विरोध स्वरुप हरिलाल ने 1911 में अपने पारिवारिक रिश्ते तोड़ दिए.

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हाजीपुर

हाजीपुर (Hajipur) भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के वैशाली जिला का मुख्यालय है। हाजीपुर भारत की संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत एक लोकसभा क्षेत्र भी है। 12 अक्टुबर 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बना। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावा आज यह शहर भारतीय रेल के पूर्व-मध्य रेलवे मुख्यालय है, इसकी स्थापना 8 सितम्बर 1996 को हुई थी।, राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। .

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हिन्द स्वराज

हिन्द स्वराज, गांधीजी द्वारा रचित एक पुस्तक का नाम है। मूल रचना सन १९०९ में गुजराती में थी। यह लगभग तीस हजार शब्दों की लघु पुस्तिका है जिसे गाँधीजी ने अपनी इंग्लैण्ड से दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के समय पानी के जहाज में लिखी। यह इण्डियन ओपिनिअन में सबसे पहले प्रकाशित हुई जिसे भारत में अंग्रेजों ने यह कहते हुए प्रतिबन्धित कर दिया कि इसमें राजद्रोह-घोषित सामग्री है। इस पर गांधीजी ने इसका अंग्रेजी अनुवाद भी निकाला ताकि बताया जा सके कि इसकी सामग्री राजद्रोहात्मक नहीं है। अन्ततः २१ दिसम्बर सन १९३८ को इससे प्रतिबन्ध हटा लिया गया। हिन्द स्वराज का हिंदी और संस्कृत सहित कई भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध है। संस्कृत अनुवाद डॉ प्रवीण पंड्या ने किया। हिंद स्वराज में गहरा सभ्यता विमर्श है। .

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हिन्दुस्तान (समाचार पत्र)

दैनिक हिन्दुस्तान हिन्दी का दैनिक समाचार पत्र है। यह १९३२ में शुरु हुआ था। इसका उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था। १९४२ का भारत छोड़ो आन्दोलन छिड़ने पर `हिन्दुस्तान' लगभग ६ माह तक बन्द रहा। यह सेंसरशिप के विरोध में था। एक अग्रलेख पर ६ हजार रुपये की जमानत माँगी गई। देश के स्वाधीन होने तक `हिन्दुस्तान का मुख्य राष्ट्रीय आन्दोलन को बढ़ावा देना था। इसे महात्मा गाँधी व काँग्रेस का अनुयायी पत्र माना जाता था। गाँधी-सुभाष पत्र व्यवहार को हिन्दुस्तान' से अविकल रूप से प्रकाशित किया। हिन्दुस्तान' में क्रांतिकारी यशपाल की कहानी कई सप्ताह तक रोचक दर से प्रकाशित हुई। राजस्थान में राजशाही के विरुद्ध आंदोलनों के समाचार इस पत्र में प्रमुखता से प्रकाशित होते रहे। हैदराबाद सत्याग्रह का पूर्ण `हिन्दुस्तान' ने समर्थन किया। देवदास गाँधी के मार्गदर्शन में इस पत्र ने उच्च आदर्शों को अपने साथ रखा और पत्रकारिता की स्वस्थ परम्पराएँ स्थापितकी। गाँधीजी के प्रार्थना प्रवचन पं जवाहरलाल नेहरू व सरदार वल्लभ भाई पटेल के भाषण अविकल रूप से `हिन्दुस्तान' में छपते रहे। दैनिक `हिन्दुस्तान' का पटना (बिहार) से भी संस्करण प्रकाशित हो रहा है। .

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हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन, जिसे संक्षेप में एच॰आर॰ए॰ भी कहा जाता था, भारत की स्वतंत्रता से पहले उत्तर भारत की एक प्रमुख क्रान्तिकारी पार्टी थी जिसका गठन हिन्दुस्तान को अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश तथा बंगाल के कुछ क्रान्तिकारियों द्वारा सन् १९२४ में कानपुर में किया गया था। इसकी स्थापना में लाला हरदयाल की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। काकोरी काण्ड के पश्चात् जब चार क्रान्तिकारियों को फाँसी दी गई और एच०आर०ए० के सोलह प्रमुख क्रान्तिकारियों को चार वर्ष से लेकर उम्रकैद की सज़ा दी गई तो यह संगठन छिन्न-भिन्न हो गया। बाद में इसे चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह के साथ मिलकर पुनर्जीवित किया और एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। सन् १९२४ से लेकर १९३१ तक लगभग आठ वर्ष इस संगठन का पूरे भारतवर्ष में दबदबा रहा जिसके परिणामस्वरूप न केवल ब्रिटिश सरकार अपितु अंग्रेजों की साँठ-गाँठ से १८८५ में स्थापित छियालिस साल पुरानी कांग्रेस पार्टी भी अपनी मूलभूत नीतियों में परिवर्तन करने पर विवश हो गयी। .

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हिन्दी दिवस

हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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हिन्दी दिवस का इतिहास

हिन्दी दिवस का इतिहास और इसे दिवस के रूप में मनाने का कारण बहुत पुराना है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा भी बनाने को कहा था। लेकिन आजादी के बाद ऐसा कुछ नहीं हो सका। सत्ता में आसीन लोगों और जाति-भाषा के नाम पर राजनीति करने वालों ने कभी हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने नहीं दिया। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/प

* पंच परमेश्वर - प्रेम चन्द्र.

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/श

संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/अ

कोई विवरण नहीं।

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हिन्दी भाषा का इतिहास

वस्तुत हमारी भाषा का नाम हिंदी ईरानियों की देन है। संस्कृत की स ध्वनि फ़ारसी में ह बोली जाती है; जैसे सप्ताह को हप्ताह सिंधु को हिन्दू। कालांतर में सिंधु नदी के पार का सम्पूर्ण भाग हिन्द कहा जाने लगा तथा हिन्द की भाषा हिंदी कहलायी।हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही 'पद्य' रचना प्रारम्भ हो गयी थी। हिन्दी भाषा व साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था 'अवहट्ट' से हिन्दी का उद्भव स्वीकार करते हैं। चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' ने इसी अवहट्ट को 'पुरानी हिन्दी' नाम दिया। साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, शृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने 'देसी भाषा' कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि 'हिन्दी' शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में 'हिन्दी' शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य 'भारतीय भाषा' का था। .

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हिन्दी विद्यापीठ, देवघर

हिंदी विद्यापीठ, देवघर हिंदी के प्रचार-प्रसार में कार्यरत एक प्रसिद्ध स्वयंसेवी संस्था है। यहाँ से उपाधि प्राप्त कर छात्रछात्राएँ अपने-अपने प्रांतों में जाकर हिंदी की सेवा करती हैं। इसके आदि कुलाधिपति देशरत्न डॉo राजेंद्र प्रसाद जी थे। यह संस्था उत्तर और दक्षिण के बीच सेतु के रूप में विद्यमान हिंदी के उत्थान का केंद्र है। यह अखिल भारतीय हिंदी संस्था संघ, नयी दिल्ली से संबद्ध है। यह विद्यापीठ झारखण्ड के देवघर में स्थित है। यह भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष की उपज है। १९२९ में इस संस्था का शुभारंभ हुआ। जब सम्पूर्ण देश के नर-नारी देश की स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के मार्गदर्शन में मरमिट रहे थे, उस समय उनकी प्रेरणा से लोग `हिंदी अपनाओ, अंग्रेजी का बहिष्कार करो' का नारा दे रहे थे। उस समय हिंदी विद्यापीठ, देवघर की नींव डाली जा रही थी। .

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हिन्दी विद्यापीठ, हरिद्वार

हिन्दी विद्यापीठ, हरिद्वार हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं अनुसंधान का एक अन्तरराष्ट्रीय संस्थान है। इसकी नींव सन् 1930 में महात्मा गाँधी के मार्गदर्शन मे स्वर्गिय श्री सुरजन सिंह के द्वारा रखी गई तथा मुख्य उद्देश्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना तय किया गया। हिन्दी विद्यापीठ का मुख्य उदेश्य हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना है। इसके कार्य हैं - एक अखिल भारतीय एवं वैश्विक भाषा के रूप में हिंदी का विकास और प्रचार (संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार) बहुस्तर पर हिंदी भाषा शिक्षण, भाषा एवं साहित्यपरक शोध, तुलनात्मक भाषा विज्ञान, शिक्षकों का शिक्षण, विभिन्न स्तर का पाठ्यक्रम निर्माण एवं विभिन्न स्तर की परीक्षाओं का आयोजन करना। इस विद्यापीठ को उच्च शिक्षा के एक अंतरराष्ट्रीय मंच के रूप में विकसित किया जा रहा है। हिंदी भाषा में भारतीय मूल्यों व परंपराओं के संवर्द्धन के साथ-साथ आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने तथा इसे इसी रूप में दुनिया के सामने स्थापित करने का अभियान विद्यापीठ द्वारा चलाया जा रहा है। विद्यापीठ की कार्य-संस्कृति, प्रशासन व कार्य-व्यवहार में गांधी जी के विचार मार्गदर्शन का कार्य करते हैं। .

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हिन्दी आन्दोलन

हिन्दी आन्दोलन भारत में हिन्दी एवं देवनागरी को विविध सामाजिक क्षेत्रों में आगे लाने के लिये विशेष प्रयत्न हैं। यह भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समय आरम्भ हुआ। इस आन्दोलन में साहित्यकारों, समाजसेवियों (नवीन चन्द्र राय, श्रद्धाराम फिल्लौरी, स्वामी दयानन्द सरस्वती, पंडित गौरीदत्त, पत्रकारों एवं स्वतंत्रतता संग्राम-सेनानियों (महात्मा गांधी, मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन आदि) का विशेष योगदान था। .

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हिन्दी–उर्दू विवाद

भारत में राजमार्ग चिह्नों में उर्दू और हिन्दी। हिन्दी–उर्दू विवाद भारतीय उपमहाद्वीप में १९वीं सदी में आरम्भ हुआ भाषाई विवाद है। इस विवाद के कुछ मूल प्रश्न ये थे- उत्तरी भारत तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत की भाषा का स्वरूप क्या हो, सरकारी कार्यों में किस भाषा/लिपि का प्रयोग हो, हिन्दी और उर्दू एक ही भाषा के दो रूप शैली हैं या अलग-अलग हैं (हिन्दुस्तानी देखें।) हिन्दी और उर्दू हिन्दी भाषा की खड़ी बोली की रूप को कहा जाता है और यह लगभग भारत की ४५% जनसंख्या की भाषा है जिसे विभिन्न हिन्दी, हिन्दुस्तानी और उर्दू के रूप में जाना जाता है। वास्तव में हिन्दी–उर्दू विवाद अंग्रेजी काल में शुरू हुआ था और ब्रितानी शासन ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस विवाद को बढ़ाने में मदद की। इसी क्रम में ब्रितानी शासन समाप्त होने के बाद उर्दू पाकिस्तान की राजभाषा घोषित की गयी (१९४६ में) और हिन्दी भारत की राजभाषा (१९५० में)। वर्तमान समय में कुछ मुस्लिमों के अनुसार हिन्दुओं ने उर्दू को परित्यक्त किया जबकि कुछ हिन्दुओं का विश्वास है कि मुस्लिम राज के दौरान उर्दू को कृत्रिम रूप से जनित किया गया। हिंदी और उर्दू हिंदी की खड़ी बोली के दो भिन्न साहित्यिक रूप हैं। खड़ी बोली का एक फ़ारसीकृत रूप, जो विभिन्नता से हिंदी, हिंदुस्तानी और उर्दू कहलाता था, दक्षिण एशिया के दिल्ली सल्तनत (1206-1526 AD) और मुगल सल्तनत (1526–1858 AD) के दौरान आकार लेने लगी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने आधुनिक भारत के हिंदी बोलने वाले उत्तरी प्रांतों में फ़ारसी भाषा की जगह उर्दू लिपि में लिखित उर्दू को सरकारी मानक भाषा का दर्रजा दे दिया, अंग्रेज़ी के साथ। उन्नीसवीं सदी के आखिरी कुछ दशकों में उत्तर पश्चिमी प्रांतों और अवध में हिंदी-उर्दू विवाद का प्रस्फुटन हुआ। हिंदी और उर्दू के समर्थक क्रमशः देवनागरी और फ़ारसी लिपि में लिखित हिंदुस्तानी का पक्ष लेने लगे थे। हिंदी के आंदोलन जो देवनागरी का विकास और आधिकारिक दर्जे को हिमायत दे रहे थे उत्तरी हिंद में स्थापित हुए। बाबू शिव प्रसाद और मदनमोहन मालवीय इस आंदोलन के आरंभ के उल्लेखनीय समर्थक थे। इस के नतीजे में उर्दू आंदोलनों का निर्माण हुआ, जिन्होंने उर्दू के आधिकारिक दर्जे को समर्थन दिया; सैयद अहमद ख़ान उनके एक प्रसिद्ध समर्थक थे। सन् 1900 में, सरकार ने हिन्दी और उर्दू दोनों को समान प्रतीकात्मक दर्जा प्रदान किया जिसका मुस्लिमों ने विरोध किया और हिन्दूओं ने खुशी व्यक्त की। हिन्दी और उर्दू का भाषायीं विवाद बढ़ता गया क्योंकि हिन्दी में फारसी-व्युत्पन्न शब्दों के तुल्य औपचारिक और शैक्षिक शब्दावली का मूल संस्कृत को लिया गया। इससे हिन्दू-मुस्लिम मतभेद बढ़ने लगे और महात्मा गांधी ने मानकों का पुनः शुद्धीकरण करके पारम्परिक शब्द हिन्दुस्तानी के अन्दर उर्दू अथवा देवनागरी लिपि काम में लेने का सुझाव दिया। इसका कांग्रेस के सदस्यों तथा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कुछ नेताओं ने समर्थन किया। इसके फलस्वरूप 1950 में भारतीय संविधान के लिए बनी संस्था ने अंग्रेज़ी के साथ उर्दू के स्थान पर हिन्दी को देवनागरी लिपि में राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। .

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हिप्पी

वुडस्टाक समारोह में हिप्पी, 1969 हिप्पी उप-संस्कृति मूल रूप से युवाओं का एक आंदोलन था जो 1960 के दशक के मध्य में संयुक्त राज्य अमेरिका में उभरा और बड़ी तेजी से दुनिया के अन्य देशों में फ़ैल गया। 'हिप्पी' शब्द की व्युत्पत्ति हिप्स्टर से हुई है, शुरुआत में इसका इस्तेमाल बीटनिकों (परंपराओं का विरोध करने वाले लोग) को सन्दर्भित करने के लिए किया जाता था जो न्यूयॉर्क शहर के ग्रीनविच विलेज और सैन फ्रांसिस्को के हाईट-ऐशबरी जिले में जाकर बस गए थे। हिप्पी की शुरुआती विचारधारा में बीट पीढ़ी के सांस्कृतिक विरोधी (काउंटरकल्चर) मूल्य शामिल थे। कुछ लोगों ने अपने स्वयं के सामाजिक समूहों और समुदायों का निर्माण किया जो मनोविकृतिकारी रॉक धुनों को सुनते थे, यौन क्रांति को अंगीकार करते थे और चेतना की वैकल्पिक अवस्थाओं को प्राप्त करने के लिए मारिजुआना एवं एलएसडी जैसी नशीली दवाओं का सेवन करते थे। जनवरी 1967 में सैन फ्रांसिस्को के गोल्डन गेट पार्क में ह्यूमन बी-इन ने हिप्पी संस्कृति को लोकप्रियता दिलाई जिसने आगे चलकर संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्ट कोस्ट के अति प्रसिद्ध समर ऑफ लव और ईस्ट कोस्ट में 1969 वुडस्टॉक फेस्टिवल को जन्म दिया। जिपिटेकस के नाम से जाने जानेवाले मेक्सिको के हिप्पियों ने ला ओंडा चिकाना का गठन किया और एवेंडारो में इकट्ठा हुए जबकि न्यूजीलैंड में खानाबदोश हाउसट्रकर्स ने वैकल्पिक जीवनशैली को अपनाया और नाम्बासा में चिरस्थायी ऊर्जा को बढ़ावा दिया। यूनाइटेड किंगडम में न्यू एज ट्रैवलर्स के घुमंतू "शांति रक्षकों" ने स्टोनहेंज के मुफ्त संगीत समारोहों के लिए गर्मियों के तीर्थ स्थानों का निर्माण किया। ऑस्ट्रेलिया में हिप्पी 1973 के एक्वेरियस फेस्टिवल और वार्षिक कैनाबिस लॉ रिफॉर्म रैली या मार्डीग्रास के लिए निम्बिन में एकत्र हुए.

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हिरनगाँव

हिरनगाँव उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिले की फिरोजाबाद तहसील का एक छोटा-सा गाँव है। किन्तु यह गाँव ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह जरौली खुर्द ग्राम पंचायत के अन्तर्गत आता है। घनी वसाबट वाली वस्ती से दूर बसे होने तथा खुले एवम् शांतिपूर्ण स्वछ हरियाली युक्त वातावरण व् ट्रैफिक की समस्या से दूर होने के कारण ब्राह्मणों का गाँव कहे जाने वाले इस गाँव में अनेक समुदाय के लोग निवास करते है। इनमे ब्राहम्ण, जाटव, नाई, कोरी, काछी, वाल्मीकि है ब्राह्म्णों में तिवारी, स्रोतीय, मुदगल, पाठक, जोशी, तेनुगुरिया, दीक्षित गौत्र के व्यक्ति है हिरन गाँव चार मौहल्लो में विभाजित है जिसमे "तिवारी मौहल्ला, स्रोतीय मौहल्ला, दीक्षित मौहल्ला, एवम जाटव मोहल्ला "सभी समुदाय के व्यक्ति मिलजुल कर घनिस्ट प्रेमता के साथ रहते है। फ़िरोज़ाबाद जिला मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर पूर्वी दिशा में स्थित है। यहाँ पर अधिकांश व्यक्ति सरकारी सेवा में कार्यरत थे परंतु वर्तमान में अधिकांश व्यक्ति कारख़ानों/फैक्ट्रीयो पर निर्भर है। वर्तमान में जो व्यक्ति सरकारी सेवा में कार्यरत है वो गाँव से बाहर शहर में निवास कर रहे हैं।हिरनगाँव का पिन कोड 283103 है यहाँ पत्रो के आने जाने हेतु भारत सरकार द्वारा स्थापित हिरनगाँव डाकखाना भी है एवम् प्रधान डाकखाना फ़िरोज़ाबाद में स्थित है। जो कि लगभग 8 किलो मीटर दूरी पर है। हिरनगाँव के चारों तरफ देवी देवताओं के मंदिर बने हुए हैं जो कि इस गांव की विपत्तियों से रक्षा करते हैं इस गांव में यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उस व्यक्ति कादा संस्कार उसको बैठा कर किया जाता है योग क्रिया की तरह जबकि अन्य गांव में इस तरह की प्रथा नहीं है अन्य गांव में किसी भी मृत व्यक्ति का दाह संस्कार लिटाकर किया जाता है इस प्रथा को इस गांव हिरनगाँव के व्यक्ति पूर्वज ऋषि मुनि की योगसाधना से जोड़ते हैं क्योंकि प्राचीन काल में ऋषि मुनि अपनी योग साधना ऋषि मुद्रा में लीन होकर करते थे हिरनगाँव के उत्तर मे नारखी तहसील, दक्षिण में फ़तेहाबाद, पश्चिम में टूण्डला तहसील और पूर्व में शिकोहाबाद तहसील है।आगरा मंडल 42 किलो मीटर दूरी पर है जिसमे कई मुगलकालीन ऐतहासिक इमारते सुशोभित है। .

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हिंदुस्तानी प्रचार सभा, मुंबई

हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, मुम्बई की स्थापना महात्मा गांधी ने सन् १९४२ में की थी। यह संस्था विगत वर्षों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगी हुई है। संस्था हिन्दी की परीक्षा संचालित करती है जिसमें अब तक लगभग ाढ़े तीन लाख परीक्षार्थी भाग ले चुके हैं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई, काका कालेलकर एवं अन्य कई गणमान्य व्यक्तियों ने इसमें अपना योगदान दिया है। संस्था ने मुम्बई के सात केन्द्रों पर सरल हिन्दी के पाठ्यक्रम आरम्भ किये हैं। यह संस्था महात्मा गांधी स्मृति अनुसंधान केन्द्र तथा महात्मा गांधी स्मृति पुस्तकालय का भी संचालन करती है। www.hindustanipracharsabha.com.

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हंस पत्रिका

हंस दिल्ली से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की एक कथा मासिक पत्रिका है जिसका सम्पादन राजेन्द्र यादव ने 1986 से 2013 तक पूरे 27 वर्ष किया। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा स्थापित और सम्पादित हंस अपने समय की अत्यन्त महत्वपूर्ण पत्रिका रही है। महात्मा गांधी और कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी भी दो वर्ष तक हंस के सम्पादक मण्डल में शामिल रहे। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु के बाद हंस का सम्पादन उनके पुत्र कथाकार अमृतराय ने किया। अनेक वर्षों तक हंस का प्रकाशन बन्द रहा। बाद में मुंशी प्रेमचंद की जन्मतिथि (31 जुलाई) को ही सन् 1986 से अक्षर प्रकाशन ने कथाकार राजेन्द्र यादव के सम्पादन में इस पत्रिका को एक कथा मासिक के रूप में फिर से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। वर्तमान में हंस एक सांस्कृतिक, साहित्यिक और विचारशील पत्रिका के रूप में जानी जाती है। .

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हेमचन्द जोशी

हेमचंद जोशी (२१ जून सन् १८९४ ई. -) हिंदी के प्रमुख भाषाशास्त्री तथा इतिहासज्ञ थे। इनका जन्म नैनीताल में २१ जून सन् १८९४ ई. को हुआ। शिक्षा दीक्षा अल्मोड़ा, प्रयाग तथा वाराणसी में हुई। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.

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हेमू कालाणी

हेमू कालाणी हेमू कालाणी (Hemu Kalani) भारत के एक क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी पर लटका दिया था। .

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होम रूल आन्दोलन

अखिल भारतीय होम रूल लीग का ध्वज होम रूल आन्दोलन अखिल भारतीय होम रूल लीग, एक राष्ट्रीय राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना 1916 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा भारत में स्वशासन के लिए राष्ट्रीय मांग का नेतृत्व करने के लिए "होम रूल" के नाम के साथ की गई थी। भारत को ब्रिटिश राज में एक डोमिनियन का दर्जा प्राप्त करने के लिए ऐसा किया गया था। उस समय ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और न्यूफ़ाउंडलैंड डोमिनियन के रूप में स्थापित थे। प्रथम विश्वयुद्ध की आरम्भ होने पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरमपंथियों ने ब्रिटेन की सहायता करने का निश्चय किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस निर्णय के पीछे संभवतः ये कारण था कि यदि भारत ब्रिटेन की सहायता करेगा तो युद्ध के पश्चात ब्रिटेन भारत को स्वतंत्र कर देगा। परन्तु शीघ्र ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को ये अनुमान हो गया कि ब्रिटेन ऐसा कदापि नहीं करेगा और इसलिए भारतीय नेता असंतुष्ट होकर कोई दूसरा मार्ग खोजने लगे। यही असंतुष्टता ही होम रूल आन्दोलन के जन्म का कारण बनी। 1915 ई. से 1916 ई. के मध्य दो होम रूल लीगों की स्थापना हुई। 'पुणे होम रूल लीग' की स्थापना बाल गंगाधर तिलक ने और 'मद्रास होम रूल लीग' की स्थापना एनी बेसेंट ने की। होम रूल लीग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सहायक संस्था की भांति कार्यरत हो गयी। इस आन्दोलन का उद्देश्य स्व-राज्य की प्राप्ति था परन्तु इस आन्दोलन में शस्त्रों के प्रयोग की अनुमति नहीं थी। होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने 1917 में एक ध्वज बनाया। इस ध्वज पर पांच लाल और चार हरी तिरक्षी पट्टियाँ बनीं थी। सात तारों को भी इस पर अंकित किया गया था, किन्तु यह ध्वज लोगों के बीच ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हुआ। 1920 में, अखिल भारतीय होम रूल लीग ने महात्मा गांधी को इसके अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया। एक वर्ष में ये संगठन एक संयुक्त भारतीय राजनीतिक मोर्चे के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय हो गया और इसका स्वयं का अस्तित्व खत्म हो गया। .

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होमी व्यारावाला

होमी व्यारावाला (9 दिसंबर 1913-15 जनवरी 2012) को भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार माना जाता है। होमी अपने लोकप्रिय उपनाम “डालडा 13” से मशहूर रही हैं। 1930 में बतौर छायाकार अपनी करियर शुरू करने के बाद होमी 1970 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो गईं। होमी को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए 2011 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। गूगल ने उनकी विरासत का सम्मान करते हुए उनके जन्म की 104वीं सालगिरह पर अपने ‘डूडल’ के साथ सम्मानित किया। गूगल ने भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार होमी व्यारावाला को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘लेंस के साथ पहली महिला’ के रूप में सम्मान दिया। इस डूडल का रेखांकन मुंबई के चित्रकार समीर कुलावूर द्वारा किया गया। .

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जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'

जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज' (१९०४ - ५ मई १९६४) हिन्दी कवि, कथाकार तथा शिक्षक थे। ये कहानी लेखकों की अगली पंक्ति में थे व इनकी गणना हिन्दी के छायावाद काल के भावुक कवियों में की जाती है। विद्यार्थी जीवन में ही इन्होंने कहानी और पद्यरचना आरंभ कर दी थी जब कि ये विद्यालय के एक आदर्श छात्र थे। स्वभाव में गंभीर, प्रकृत्या शांत, प्रत्युत्पन्नमति, हँसमुख व्यक्ति थे जिन्होंने सदा सरल जीवन ही जिया। ये प्रतिभाशाली विचारक, निर्भय आलोचक, एवं स्पष्ट वक्ता थे तथा उन्होंनें हिंदीहित को अपने जीवन में सर्वोपरि रखा। .

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जमनालाल बजाज

जमनालाल बजाज (४ नवम्बर १८८४ - ११ फ़रवरी १९४२) भारत के एक उद्योगपति, मानवशास्त्री एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे महात्मा गांधी के अनुयायी थे तथा उनके बहुत करीबी व्यक्ति थे। गांधीजी ने उन्हें अपने पुत्र की तरह माना। .

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जयप्रकाश नारायण

जयप्रकाश नारायण (11 अक्टूबर, 1902 - 8 अक्टूबर, 1979) (संक्षेप में जेपी) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। उन्हें 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। इन्दिरा गांधी को पदच्युत करने के लिये उन्होने 'सम्पूर्ण क्रांति' नामक आन्दोलन चलाया। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें 'लोकनायक' के नाम से भी जाना जाता है। 1999 में उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मनित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें समाजसेवा के लिए १९६५ में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था। पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है। दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल 'लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल' भी उनके नाम पर है। .

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जलसेना विद्रोह (मुम्बई)

विद्रोही नौसैनिक की मूर्ति (कोलाबा, मुम्बई) भारत की आजादी के ठीक पहले मुम्बई में रायल इण्डियन नेवी के सैनिकों द्वारा पहले एक पूर्ण हड़ताल की गयी और उसके बाद खुला विद्रोह भी हुआ। इसे ही जलसेना विद्रोह या मुम्बई विद्रोह (बॉम्बे म्युटिनी) के नाम से जाना जाता है। यह विद्रोह १८ फ़रवरी सन् १९४६ को हुआ जो कि जलयान में और समुद्र से बाहर स्थित जलसेना के ठिकानों पर भी हुआ। यद्यपि यह मुम्बई में आरम्भ हुआ किन्तु कराची से लेकर कोलकाता तक इसे पूरे ब्रिटिश भारत में इसे भरपूर समर्थन मिला। कुल मिलाकर ७८ जलयानों, २० स्थलीय ठिकानों एवं २०,००० नाविकों ने इसमें भाग लिया। किन्तु दुर्भाग्य से इस विद्रोह को भारतीय इतिहास मे समुचित महत्व नहीं मिल पाया है। .

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जसुबेन शिल्पी

जसुबेन शिल्पी अथवा जसु शिल्पी (१० दिसम्बर १९४८ – १४ जनवरी २०१३) एक भारतीय कास्य-मूर्तिकार थीं। उन्होंने अपने जीवन में ५२५ अर्धप्रतिमाएँ और २२५ बड़ी प्रतिमाओं का निर्माण किया। उन्होंने लोकप्रिय रूप से "भारत की कास्य महिला" के नाम से जाना जाता था। .

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जवाहरलाल नेहरू

जवाहरलाल नेहरू (नवंबर १४, १८८९ - मई २७, १९६४) भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने १९४७ में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर १९६४ तक अपने निधन तक, भारत का शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य – एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र - के वास्तुकार मानें जाते हैं। कश्मीरी पण्डित समुदाय के साथ उनके मूल की वजह से वे पण्डित नेहरू भी बुलाएँ जाते थे, जबकि भारतीय बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं। स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री का पद सँभालने के लिए कांग्रेस द्वारा नेहरू निर्वाचित हुएँ, यद्यपि नेतृत्व का प्रश्न बहुत पहले 1941 में ही सुलझ चुका था, जब गांधीजी ने नेहरू को उनके राजनीतिक वारिस और उत्तराधिकारी के रूप में अभिस्वीकार किया। प्रधानमन्त्री के रूप में, वे भारत के सपने को साकार करने के लिए चल पड़े। भारत का संविधान 1950 में अधिनियमित हुआ, जिसके बाद उन्होंने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के एक महत्त्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की। मुख्यतः, एक बहुवचनी, बहु-दलीय लोकतन्त्र को पोषित करते हुएँ, उन्होंने भारत के एक उपनिवेश से गणराज्य में परिवर्तन होने का पर्यवेक्षण किया। विदेश नीति में, भारत को दक्षिण एशिया में एक क्षेत्रीय नायक के रूप में प्रदर्शित करते हुएँ, उन्होंने गैर-निरपेक्ष आन्दोलन में एक अग्रणी भूमिका निभाई। नेहरू के नेतृत्व में, कांग्रेस राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय चुनावों में प्रभुत्व दिखाते हुएँ और 1951, 1957, और 1962 के लगातार चुनाव जीतते हुएँ, एक सर्व-ग्रहण पार्टी के रूप में उभरी। उनके अन्तिम वर्षों में राजनीतिक मुसीबतों और 1962 के चीनी-भारत युद्ध में उनके नेतृत्व की असफलता के बावजूद, वे भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय बने रहें। भारत में, उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। .

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जगजीवन राम

जगजीवन राम (5 अप्रैल 1908-6 जुलाई 1986) भारत के प्रथम दलित उप-प्रधानमंत्री एवं राजनेता थे। .

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जुथिका रॉय

जुथिका रॉय (बांग्ला: युथिका राय; २० अप्रैल १९२०: फर्स्टपोस्ट डॉट कॉम, अभिगमन तिथि: १२ फ़रवरी २०१४ – ५ फ़रवरी २०१४) भारतीय भजन (भक्ति संगीत) गायिका थीं। उन्होंने अपने चार दशक लम्बे करीयर में २०० से अधिक हिन्दी और १०० से अधिक बंगाली गानों को अपनी आवाज दी। उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों हेतु हिन्दी भक्ति संगीत भी रिकॉर्ड करवाये। उन्हें १९७२ में भारत के चतुर्थ सर्वोच्य नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से पुरस्कृत किया गया। .

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जे.सी. कुमारप्पा

गांधीवादी अर्थशास्त्री जेसी कुमारप्पा जे सी कुमारप्पा (४ जनवरी १८९२ - ३० जनवरी १९६०) भारत के एक अर्थशास्त्री थे। उनका मूल नाम 'जोसेफ चेल्लादुरई कॉर्नेलिअस' (Joseph Chelladurai Cornelius) था। वे महात्मा गांधी के निकट सहयोगी रहे। वे ग्राम-विकास सम्बन्धी आर्थिक सिद्धान्तों के अग्रदूत थे। उन्होने गांधीवाद पर आधारित आर्थिक सिद्धान्तों का विकास किया। जे सी कुमारप्पा को भारत में गाँधीवादी अर्थशास्त्र का प्रथम गुरु माना जाता है। अपने जीवनकाल में कुमारप्पा ने गाँधीवादी अर्थशास्त्र से जुड़े विषयों पर न केवल विशद लेखन किया बल्कि एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में भारत के दूरस्थ स्थानों में अनेक आर्थिक सर्वेक्षण करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कायाकल्प के लिए सार्थक कार्यनीति का प्रतिपादन भी किया। कुमारप्पा का अर्थशास्त्र स्वतंत्र भारत के हर व्यक्ति के लिए आर्थिक स्वायत्तता एवं सर्वांगीण विकास के अवसर देने के उसूल पर आधारित था। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इसके प्राकृतिक स्वरूप को उन्नत करने के हिमायती कुमारप्पा ऐसे बिरले अर्थशास्त्री थे जो पर्यावरण संरक्षण को औद्योगिक-वाणिज्यिक उन्नति से कहीं अधिक लाभप्रद मानते थे। गाँधी के आर्थिक दर्शन से कांग्रेस पार्टी में उनके अपने सहयोगी भी पूर्णतः सहमत नहीं थे। इसीलिए स्वतंत्र भारत की आर्थिक नीतियों और गाँधीवादी आर्थिक नीतियों के बीच कोई समानता नहीं रही। परिणास्वरूप स्वतंत्र भारत ने पाश्चात्य अर्थव्यस्था के नमूने के अंधानुकरण की होड़ में कुमारप्पा को जल्दी ही विस्मृत कर दिया। .

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जोज़फ़ गोस्लाव्सकी

Józef Gosławski जोज़फ़ गोस्लाव्सकी (24 अप्रैल 1908 जन्म ल्यूबेल्स्की पास Polanówka में, वॉरसॉ में 23 जनवरी 1963 मृत्यु हो गई) - पोलिश मूर्तिकार और medallic कलाकार.

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जीवनचरित

प्रसिद्ध इतिहासज्ञ और जीवनी-लेखक टामस कारलाइल ने अत्यंत सीधी सादी और संक्षिप्त परिभाषा में इसे "एक व्यक्ति का जीवन" कहा है। इस तरह किसी व्यक्ति के जीवन वृत्तांतों को सचेत और कलात्मक ढंग से लिख डालना जीवनचरित कहा जा सकता है। यद्यपि इतिहास कुछ हद तक, कुछ लोगों की राय में, महापुरुषों का जीवनवृत्त है तथापि जीवनचरित उससे एक अर्थ में भिन्न हो जाता है। जीवनचरित में किसी एक व्यक्ति के यथार्थ जीवन के इतिहास का आलेखन होता है, अनेक व्यक्तियों के जीवन का नहीं। फिर भी जीवनचरित का लेखक इतिहासकार और कलाकार के कर्त्तव्य के कुछ समीप आए बिना नहीं रह सकता। जीवनचरितकार एक ओर तो व्यक्ति के जीवन की घटनाओं की यथार्थता इतिहासकार की भाँति स्थापित करता है; दूसरी ओर वह साहित्यकार की प्रतिभा और रागात्मकता का तथ्यनिरूपण में उपयोग करता है। उसकी यह स्थिति संभवत: उसे उपन्यासकार के निकट भी ला देती है। जीवनचरित की सीमा का यदि विस्तार किया जाय तो उसके अंतर्गत आत्मकथा भी आ जायगी। यद्यपि दोनों के लेखक पारस्परिक रुचि और संबद्ध विषय की भिन्नता के कारण घटनाओं के यथार्थ आलेखन में सत्य का निर्वाह समान रूप से नहीं कर पाते। आत्मकथा के लेखक में सतर्कता के बावजूद वह आलोचनात्मक तर्कना चरित्र विश्लेषण और स्पष्टचारिता नहीं आ पाती जो जीवनचरित के लेखक विशिष्टता होती है। इस भिन्नता के लिये किसी को दोषी नहीं माना जा सकता। ऐसा होना पूर्णत: स्वाभाविक है। .

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घनश्यामदास बिड़ला

बिड़ला जी द्वारा दिल्ली में बनवाया बिरला मंदिर, दिल्ली श्री घनश्यामदास बिड़ला (जन्म-1894, पिलानी, राजस्थान, भारत, मृत्यु.- 1983, मुंबई) भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी.

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वर्धा

वर्धा जिला: यह भारत के महाराष्ट्र राज्य का जिला है। इस जिले का क्षेत्रफल 2,429 वर्ग मील है। हिंगणघाट तथा पुलगाँव में सूती वस्त्र की मिलें हैं। यह मराठी भाषाभाषी जिला है। वर्धा नगर: नागपुर से 50 मील दूर दक्षिण-पश्चिम में स्थित यह नगर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आश्रम के कारण प्रसिद्ध है। यह नगर वर्धा जिले का मुख्यालय है। वर्धा नदी - भारत में मध्य प्रदेश राज्य के मध्य सतपुड़ा पर्वतश्रेणी से नागपुर नगर से 70 मील उत्तर-पश्चिम से निकलती है। मुख्यत: दक्षिण-पूर्व दिशा में यह महाराष्ट्र राज्य से होकर महाराष्ट्र-आंध्र प्रदेश सीमा पर, चाँदा जिले (महाराष्ट्र राज्य) के सिवनी स्थान पर, वेनगंगा नदी से मिलती है। इन दोनों के संगम के बाद नदी का नाम प्राणहिता हो जाता है, जो गोदावरी नदी की सहायक नदी है। वर्धा नदी की मुख्य सहायक नदी पेनगंगा है। यह नदी एक कपास उत्पादक क्षेत्र के मध्य से बहती है। वर्धा नदी की कुल लंबाई 290 मील है। .

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वर्धा शिक्षा योजना

महात्मा गांधी की भारत को जो देन है उसमें बुनियादी शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण एवं बहुमूल्य है। इसे वर्धा योजना, नयी तालीम, 'बुनियादी तालीम' तथा 'बेसिक शिक्षा' के नामों से भी जाना जाता है। गांधीजी ने २३ अक्टूबर १९३७ को 'नयी तालीम' की योजना बनायी जिसे राष्ट्रव्यापी व्यावहारिक रूप दिया जाना था। उनके शैक्षिक विचार शिक्षाशास्त्रियों के तत्कालीन विचारों से मेल नहीं खाते, इसलिये प्रारम्भ में उनके विचारों का विरोध हुआ। गांधीजी ने कहा था कि नयी तालीम का विचार भारत के लिए उनका अन्तिम एवं सर्वश्रेष्ठ योगदान है। गांधीजी के जीनव-पर्यन्त चले सत्य के अन्वेषण एवं राष्ट्र के निर्माण हेतु सक्रिय प्रयोगों के माध्यम से लम्बे समय तक विचारों के गहन मंथन के परिणामस्वरूप नयी तालीम का दर्शन एवं प्रक्रिया का प्रादुर्भाव हुआ जो केवल भारतवर्ष ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण मानव समाज को एक नयी दिशा देने में सक्षम था। परन्तु दुर्भाग्यवश इस सर्वोत्तम कल्याणकारी शिक्षा-प्रणाली का राष्ट्रीय स्तर पर भी समुचित प्रयोग नहीं हो पाया जिसके फलस्वरूप आजतक यह देश गांधीजी के सपनों के अनुरूप सार्थक और सही स्वराज प्राप्त करने में असमर्थ रहा। बल्कि इसके विपरीत आज तो आलम यह है कि शैक्षणिक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से भारत पुनः पाश्चात्य साम्राज्यवाद के अधीन निरन्तर सरकता चला जा रहा है। आज भारत की अधिकांश शिक्षा-व्यवस्था राज्याश्रित अथवा पूंजीपतियों पर आश्रित है। अधिकांश राज्याश्रित शिक्षण-संस्थाएँ संसाधन एवं अनुशासन के अभाव में निष्क्रिय हैं। इसलिए गुणवत्ता से युक्त शिक्षा देने में असमर्थ हैं। इसी प्रकार पूजीपतियों पर आश्रित सभी शिक्षण-संस्थाएं व्यावसायिक रूप में सक्रिय हैं, जो गरीबों की पहुंच से बाहर हैं। उनमें सिर्फ सम्पन्न लोगों के बच्चे ही पढ़ सकते हैं। भारत की स्वाधीनता के ६० से अधिक वर्ष बीतने के पश्चात् भी ऐसे बच्चों की संख्या काफी अधिक है, जिन्होंने विद्यालय के द्वार तक नहीं देखे हैं। जो विद्यालय जाने का सामर्थ्य रखते हैं, उन्हें लॉर्ड मैकाले की परम्परा से चली आ रही अंग्रेजी शिक्षा के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं होता। कुल मिलाकर उनमें भारतीय मौलिक शिक्षा को ग्रहण करनेवाले शायद ही कोई मिले। यह बात नहीं कि भारतीय शिक्षा देनेवालों का अभाव है। परन्तु इसलिए कि सभी अभिभावकों में यह इच्छाशक्ति एवं साहस नहीं है कि अपने बच्चों को सरकारों अथवा पूंजीपतियों द्वारा निर्धारित अंग्रेजी शिक्षा को त्यागकर भारतीय शिक्षा दिलावें। जब तक जनसाधारण की इस कायरतापूर्ण मानसिकता में परिवर्तन न किया जायेगा, तबतक नयी तालीम सहित कोई भी भारतीय शिक्षण-प्रणाली इस देश में पनप नहीं सकती। .

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वल्लभ भाई पटेल

श्रेणी: सरदार वल्लभ भाई पटेल (સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ; 31 अक्टूबर, 1875 - 15 दिसंबर, 1950) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है। .

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वायकोम सत्याग्रह

वायकोम सत्याग्रह (1924–25), अस्पृश्यता की कुप्रथा के विरुद्ध त्रावणकोर (केरल) में चलाया गया था। इसका उद्देश्य निम्न जातीय एझवाओं एवं अछूतों द्वारा गाँधी जी के अहिंसावादी तरीके से त्रावणकोर के एक मंदिर के निकट की सड़कों के उपयोग के बारे में अपने-अपने अधिकारों को मनवाना था। सर्वप्रथम हिन्दू मंदिरों में प्रवेश तथा सार्वजनिक सड़कों पर हरिजनों के चलने को लेकर त्रावनकोर के ग्राम ‘वायकोम’ में आंदोलन शुरू हुआ। केरल में छूआछूत की जड़ें काफ़ी गहरी जमीं हुई थीं। यहाँ सवर्णों से अवर्णों को 16 से 32 फीट की दूरी बनाये रखनी होती थी। अवर्णों में में ‘एझवा’ और ‘पुलैया’ अछूत जातियाँ शामिल थीं। 19वीं सदी के अंत तक केरल में नारायण गुरु, एन. कुमारन, टी.

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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वाजिद खान

वाजिद खान (जन्म: १० मार्च १९८१, मंदसौर,मध्य प्रदेश, भारत) एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आयरन नेल आर्टिस्ट (कलाकार), चित्रकार, पेटेंट धारक, व अविष्कारक हैं। .

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विट्ठल भाई पटेल

विट्ठल भाई पटेल विट्ठल भाई पटेल (१८७१ - १९३३) भारत के प्रख्यात विधानवेत्ता, वक्तृत्वकला के आचार्य और भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के देश-विदेश में प्रचारक, प्रवर्तक थे। वे सरदार वल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई थे। .

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विनायक दामोदर सावरकर

विनायक दामोदर सावरकर (जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फ़रवरी १९६६) भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः स्वातंत्र्यवीर, वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे। उन्होंने परिवर्तित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं आंदोलन चलाये। सावरकर ने भारत के एक सार के रूप में एक सामूहिक "हिंदू" पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा । उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। सावरकर एक नास्तिक और एक कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे । .

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विनोबा भावे

आचार्य विनोबा भावे (11 सितम्बर 1895 - 15 नवम्बर 1982) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रसिद्ध गांधीवादी नेता थे। उनका मूल नाम विनायक नरहरी भावे था। उन्हे भारत का राष्ट्रीय आध्यापक और महात्मा गांधी का आध्यातमिक उत्तराधीकारी समझा जाता है। उन्होने अपने जीवन के आखरी वर्ष पोनार, महाराष्ट्र के आश्रम में गुजारे। उन्होंने भूदान आन्दोलन चलाया। इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल को 'अनुशासन पर्व' कहने के कारण वे विवाद में भी थे। .

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विपिनचंद्र पाल

बिपिन चंद्र पाल (बांग्ला:বিপিন চন্দ্র পাল) (७ नवंबर, १८५८ - २० मई १९३२) एक भारतीय क्रांतिकारी थे। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक विपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ शिक्षक, पत्रकार, लेखक व वक्ता भी थे और उन्हें भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी माना जाता है। लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल (लाल-बाल-पाल) की इस तिकड़ी ने १९०५ में बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन किया जिसे बड़े स्तर पर जनता का समर्थन मिला। 'गरम' विचारों के लिए प्रसिद्ध इन नेताओं ने अपनी बात तत्कालीन विदेशी शासक तक पहुँचाने के लिए कई ऐसे तरीके अपनाए जो एकदम नए थे। इन तरीकों में ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज, औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि शामिल हैं। उनके अनुसार विदेशी उत्पादों के कारण देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो रही थी और यहाँ के लोगों का काम भी छिन रहा था। उन्होंने अपने आंदोलन में इस विचार को भी सामने रखा। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गरम धड़े के अभ्युदय को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे आंदोलन को एक नई दिशा मिली और इससे लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जागरुकता पैदा करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उनका विश्वास था कि केवल प्रेयर पीटिशन से स्वराज नहीं मिलने वाला है। .

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विश्व के आश्चर्य

समय-समय पर विश्व के आश्चर्य सबसे शानदार मानव निर्मित निर्माण और दुनिया में प्राकृतिक धरोहर की सूची को सदियों से संकलित किया गया है। प्राचीन विश्व के सात आश्चर्य,प्राचीन पुरातनता के सबसे उल्लेखनीय मानव निर्मित कृतियों की पहली ज्ञात सूची है, और उनपर किताबें यूनानी दृष्टि-संत के बीच लोकप्रिय आधारित था और केवल भूमध्य के आसपास स्थित निर्माण शामिल है। जो सात की संख्या में चुना गया था क्योंकि यूनानियों ने इसे माना और बहुतो द्वारा इसे प्रतिनिधित्व किया गाया। इसी तरह के कई सूचियाँ मध्ययुगीन दुनिया और आधुनिक दुनिया के लिए बनायीं गयीं है .

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विश्वज्ञानकोश

विश्वज्ञानकोश, विश्वकोश या ज्ञानकोश (Encyclopedia) ऐसी पुस्तक को कहते हैं जिसमें विश्वभर की तरह तरह की जानने लायक बातों को समावेश होता है। विश्वकोश का अर्थ है विश्व के समस्त ज्ञान का भंडार। अत: विश्वकोश वह कृति है जिसमें ज्ञान की सभी शाखाओं का सन्निवेश होता है। इसमें वर्णानुक्रमिक रूप में व्यवस्थित अन्यान्य विषयों पर संक्षिप्त किंतु तथ्यपूर्ण निबंधों का संकलन रहता है। यह संसार के समस्त सिद्धांतों की पाठ्यसामग्री है। विश्वकोश अंग्रेजी शब्द "इनसाइक्लोपीडिया" का समानार्थी है, जो ग्रीक शब्द इनसाइक्लियॉस (एन .

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विष्णु दिगंबर पलुस्कर

विष्णु दिगंबर पलुस्कर विष्णु दिगम्बर पलुस्कर (१८ अगस्त १८७२ - २१ अगस्त १९३१) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे, जिन्होंने भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे भारतीय समाज में संगीत और संगीतकार की उच्च प्रतिष्ठा के पुनरुद्धारक, समर्थ संगीतगुरु, अप्रतिम कंठस्वर एवं गायनकौशल के घनी भक्तहृदय गायक। पलुस्कर ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में महात्मा गांधी की सभाओं सहित विभिन्न मंचों पर रामधुन गाकर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया। पलुस्कर ने लाहौर में गान्धर्व विद्यालय की स्थापना कर भारतीय संगीत को एक विशिष्ट स्थान दिया। इसके अलावा उन्होंने अपने समय की तमाम धुनों की स्वरलिपियों को संग्रहित कर आधुनिक पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। .

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विजय माल्या

subhash singh (जन्म 18 दिसम्बर, 1955) एक भारतीय व्यापारी और राज्य सभा से सांसद भी हैं। वे यूबी समूह और किंगफिशर एयरलाइंस के अध्यक्ष व उद्योगपति विट्ठल माल्या के बेटे हैं। वर्ष 2008 में लगभग ₹72 अरब रुपये के संपत्ति के साथ यह विश्व के 962वें सबसे धनी लोगों में शामिल हुए। इसी समय इनका भारत में सबसे धनी लोगों में 42वां स्थान था। विजय माल्या ने देश की बैंको से करीब 9000 करोड़ रुपये धोखाधड़ी से चुराए। आजकल भारत सरकार ने विभिन्न भारतीय बैंको के 9000 करोड हड़पकर भाग जाने के कारण विजय माल्या को भगोड़ा घोषित किया है। भगोड़ा विजय माल्या पैसे न लौटाने औऱ कार्यवाही से भयभीत होकर ब्रिटेन में जा छुपा है। .

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विजय सिंह पथिक

विजय सिंह पथिक उर्फ़ भूप सिंह गुर्जर (अंग्रेजी:Vijay Singh Pathik, जन्म: 27 फ़रवरी 1882, निधन: 28 मई 1954) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें राष्ट्रीय पथिक के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म बुलन्दशहर जिले के ग्राम गुठावली कलाँ के एक गुर्जर परिवार में हुआ था। उनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्दशहर स्थित मालागढ़ रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) थे जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी। पथिक जी के पिता हमीर सिंह गुर्जर को भी क्रान्ति में भाग लेने के आरोप में सरकार ने गिरफ्तार किया था। पथिक जी पर उनकी माँ कमल कुमारी और परिवार की क्रान्तिकारी व देशभक्ति से परिपूर्ण पृष्ठभूमि का बहुत गहरा असर पड़ा। युवावस्था में ही उनका सम्पर्क रास बिहारी बोस और शचीन्द्र नाथ सान्याल आदि क्रान्तिकारियों से हो गया था। 1915 के लाहौर षड्यन्त्र के बाद उन्होंने अपना असली नाम भूपसिंह गुर्जर से बदल कर विजयसिंह पथिक रख लिया था। मृत्यु पर्यन्त उन्हें इसी नाम से लोग जानते रहे। मोहनदास करमचंद गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन से बहुत पहले उन्होंने बिजौलिया किसान आंदोलन के नाम से किसानों में स्वतंत्रता के प्रति अलख जगाने का काम किया था। .

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विजयलक्ष्मी पंडित

विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया। .

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विकीर्णन (डायसपोरा)

विकीर्णन या डायस्पोरा (diaspora) से आशय है -किसी भौगोलिक क्षेत्र के मूल वासियों का किसी अन्य बहुगोलिक क्षेत्र में प्रवास करना (विकीर्ण होना)। किन्तु डायसपोरा का विशेष अर्थ ऐतिहासिक अनैच्छिक प्रकृति के बड़े पैमाने वाले विकीर्ण, जैसे जुडा से यहूदियों का निष्कासन। .

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वंशीधर शुक्ल

वंशीधर शुक्ल (जन्म: 1904; मृत्यु: 1980) एक हिंदी और अवधी भाषा के कवि और स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता थे। इनके पिता छेदीलाल शुक्ल भी एक कवि थे। वंशीधर शुक्ल जी महात्मा गाँधी के आन्दोलन से भी भाग लिए। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी विधान सभा से वें विधायक (१९५९-१९६२) भी रहे। “ कदम-कदम बढायें जा खुशी के गीत गाये जा, ये जिंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा ” जैसी कालजयी रचना का सृजन करने वाले वंशीधर शुक्ल हैं। ‘उठो सोने वालों सबेरा हुआ है’, ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ इनकी अवधी में लिखी हुई पुस्तके हैं। हुजूर केरी रचनावली भी उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ से प्रकाशित हो चुकी है। .

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व्यक्तिगत सत्याग्रह

व्यक्तिगत सत्याग्रह- ०३ सितम्बर सन् १९३९ को भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने यह घोषणा की कि भारत भी द्वतीय विश्व युद्ध में सम्मिलित है। इस घोषणा से पूर्व उसने किसी भी राजनैतिक दल से परामर्श नहीं किया। इससे कांग्रेस असंतुष्ट् हो गई। महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार की युद्धनीति का विरोध करने के लिए सन् १९४० में अहिंसात्मक व्यक्तिगत सत्याग्रह आरम्भ किया। इस सत्याग्रह में महात्मा गाँधी के द्वारा चुना हुआ सत्याग्रही पूर्व निर्धारित स्थान पर भाषण देकर गिरफ्तारी देता था। भाषण से पूर्व सत्याग्रही अपने सत्याग्रह की सूचना जिला मजिस्ट्रेट को भी देता था।.

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व्यौहार राजेन्द्र सिंह

व्यौहार राजेन्द्र सिंह व्यौहार राजेन्द्र सिंह (14 सितम्बर 1900 - 02 मार्च 1988 जबलपुर) हिन्दी साहित्यकार थे जिन्होने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि पर उनका अच्छा अधिकार था। व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए संर्घष किया। उनके 50 वें जन्मदिन के दिन ही, अर्थात 14 सितम्बर 1949 को, हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। व्यौहार राजेन्द्र सिंह का जन्म जबलपुर में हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर राजेन्द्र सिंह जी ने काफी प्रयास किए। इसके चलते उन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएं भी कीं। व्यौहार राजेन्द्र सिंह हिंदी साहित्य सम्मलेन के अध्यक्ष रहे। उन्होंने अमेरिका में आयोजित विश्व सर्वधर्म सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया जहां उन्होंने सर्वधर्म सभा में हिन्दी में ही भाषण दिया जिसकी जमकर तारीफ हुई। व्यौहार राजेन्द्र सिंह जी प्रादेशिक चित्रगुप्त महासभा के प्रांतीय अध्यक्ष तथा अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे। जबलपुर के साठिया कुआं क्षेत्र में स्थित उनकी बखरी (विशाल निवास स्थान) में महात्मा गाँधी जबलपुर यात्रा के समय ठहरे थे। उसका नामकरण 'गांधी मंदिर' कर दिया था। उनके निवास पर दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों और पत्रों आदि का अनमोल संग्रह था। अपपनी सादगी, अपनत्व व्यवहार के कारण उन्हें 'कक्का जू' का स्नेहपूर्ण संबोधन प्राप्त था। उनका निधन स्थानीय शासकीय विक्टोरिया जिला अस्पताल (अब सेठ गोविन्ददास जिला चिकित्सालय) में सामान्य जन की तरह हुआ। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में म. गाँधी पीठ की स्थापन हेतु उन्होंने अथक प्रयास किये थे। तत्कालीन साहित्यिक, राजनैतिक, सामाजिक जीवन में उनका अवदान तथा अपने समकालिक महत्वपूर्ण व्यक्तियों से उनके सम्बन्ध अपनी मिसाल आप थे। .

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वैशाली

वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। वज्जिका यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। अतिमहत्त्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिन्दू तीर्थ एवं पाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है। मशहूर राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली भी यहीं की थी| आज वैशाली पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय स्थान है। वैशाली में आज दूसरे देशों के कई मंदिर भी बने हुए हैं। .

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वैशाली जिला

वैशाली (Vaishali) बिहार प्रान्त के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली एक अलग जिला बना। वैशाली जिले का मुख्यालय हाजीपुर में है। बज्जिका तथा हिन्दी यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। वैशाली जिला भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए एक पवित्र नगरी है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ। भगवान बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावे आज यह जिला राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। .

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वेद प्रताप वैदिक

डॉ॰ वेद प्रताप वैदिक (जन्म: 30 दिसम्बर 1944, इंदौर, मध्य प्रदेश) भारतवर्ष के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, पटु वक्ता एवं हिन्दी प्रेमी हैं। हिन्दी को भारत और विश्व मंच पर स्थापित करने की दिशा में सदा प्रयत्नशील रहते हैं। भाषा के सवाल पर स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी और डॉ॰ राममनोहर लोहिया की परम्परा को आगे बढ़ाने वालों में डॉ॰ वैदिक का नाम अग्रणी है। वैदिक जी अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ रहे हैं। भारतीय विदेश नीति के चिन्तन और संचालन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने लगभग 80 देशों की यात्रायें की हैं। अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले हिन्दी में बेहतर पत्रकारिता का युग आरम्भ करने वालों में डॉ॰ वैदिक का नाम अग्रणी है। उन्होंने सन् 1958 से ही पत्रकारिता प्रारम्भ कर दी थी। नवभारत टाइम्स में पहले सह सम्पादक, बाद में विचार विभाग के सम्पादक भी रहे। उन्होंने हिन्दी समाचार एजेन्सी भाषा के संस्थापक सम्पादक के रूप में एक दशक तक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में काम किया। सम्प्रति भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष तथा नेटजाल डाट काम के सम्पादकीय निदेशक हैं। .

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वीरेन्द्र वीर

वीरेन्द्र वीर (15 जनवरी 1911- 31 दिसम्बर 1993) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, शिक्षाशास्त्री एवं पत्रकार थे। .

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वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै

'''वी ओ चिदम्बरम पिल्लै''' वल्लियप्पन उलगनाथन चिदम्बरम पिल्लै (1872–1936) तमिलनाडु के एक राजनेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे बालगंगाधर तिलक के शिष्य थे। वे 'वी.

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खड्गविलास प्रेस

खड्गविलास छापाखाना, पटना का प्रसिद्ध प्रेस था। उन्नीसवीं सदी के उतरार्ध में पटना का वह प्रेस बिहार का गौरव था। उस प्रेस और प्रकाशन संस्था पर शोध करके डाक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाले डॉ॰ धीरेंद्र नाथ सिंह लिखते हैं, ‘आधुनिक हिंदी साहित्य को उजागर करने में इस प्रेस के योगदान का ऐतिहासिक मूल्य है।’ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा विरचित नाटक सत्य हरिश्चन्द्र इसी प्रेस से छपा था। इसी नाटक को पढ़कर गांधीजी के जीवन में निर्णायक मोड़ आया था। अब वह प्रेस तो नहीं है, पर आधुनिक हिंदी को उस प्रेस का योगदान अद्भुत है। उत्तर प्रदेश के बलिया निवासी महाराजकुमार राम दीन सिंह ने सन् 1880 में पटना के बांकीपुर में खड्ग विलास प्रेस की स्थापना की थी। उन्होंने अपना जीवन शिक्षक के रूप में आरम्भ किया था तथा पाठ्य पुस्तकों और हिंदी पुस्तकों के अभाव ने उन्हें प्रकाशन व्यवसाय के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने स्वयं पाठ्य पुस्तकें तैयार कीं और अन्य लोगों से पुस्तकें लिखवाईं। इन कृतियों का प्रकाशन खड्ग विलास प्रेस ने किया। भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र और उनके युग के लेखक यदि आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता हैं तो निश्चय ही खड्ग विलास प्रेस और उसके संस्थापक को उनका एकमात्र प्रकाशक माना जाना उचित होगा। यदि महाराज कुमार राम दीन सिंह का सद्भाव और सहयोग न मिला होता तो भारतेंदु हरिश्चंद्र और उनके समकालीन साहित्यकारों को अपनी रचनाओं के व्यवस्थित प्रकाशन का इतना अच्छा सुयोग नहीं मिला होता।’ ‘इस प्रकाशन संस्थान ने भारतेंदु हरिश्चंद्र, पंडित प्रताप नारायण मिश्र, पंडित अम्बिका दत्त व्यास, पंडित शीतला प्रसाद त्रिपाठी, भारतीय सिविल सेवा में हिंदी के प्रतिष्ठापक फ्रेडरिक पिंकाट, आधुनिक हिंदी खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य प्रियप्रवास के प्रणेता पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔंध’, पंडित दामोदर शास्त्री सप्रे, लाल खड्ग बहादुर मल्ल, शिव नंदन सहाय प्रभृति साहित्यकारों को प्रकाशकीय संरक्षण प्रदान किया और उनकी कृतियों के प्रकाशन पर मुक्तहस्त से व्यय किया।’ ‘हिंदी भाषी प्रदेशों में सबसे पहले बिहार प्रदेश में सन् 1835 में हिंदी आंदोलन शुरू हुआ था। इस अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1875 में बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिंदी प्रतिष्ठित हुई, किंतु पाठ्य पुस्तकों का सर्वथा अभाव था। खड्ग विलास प्रेस ने विभिन्न विषयों में पाठ्य पुस्तकें तैयार करा कर इनका प्रकाशन किया। साहब प्रसाद सिंह, उमानाथ मिश्र, चण्डी प्रसाद सिंह, काली प्रसाद मिश्र, प्रेमन पांडेय प्रभृति लेखकों ने इस दिशा में सक्रिय रूप से सहयोग किया था। साहब प्रसाद सिंह की ‘भाषा सार’ नामक पुस्तक सन् 1884 से 1936 तक बिहार के स्कूलों और कालेजों में पढाई जाती रही। राम दीन सिंह का बचपन पटना जिले के तारणपुर गांव में बीता जहां उनके मामा का घर था। राम दीन सिंह के पुत्र सारंगधर सिंह भी एक बुद्धिजीवी राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे सन् 1937 में डॉ॰ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बने मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव थे। बाद में वे बिहार से संविधान सभा के सदस्य बने। उन्होंने 1952 से 1962 तक पटना को लोक सभा में प्रतिनिधित्व किया। .

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खादी

खादी या खद्दर भारत में हाँथ से बनने वाले वस्त्रों को कहते हैं। खादी वस्त्र सूती, रेशम, या ऊन हो सकते हैं। इनके लिये बनने वाला सूत चरखे की सहायता से बनाया जाता है। खादी वस्त्रों की विशेषता है कि ये शरीर को गर्मी में ठण्डे और सर्दी में गरम रखते हैं। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में खादी का बहुत महत्व रहा। गांधीजी ने १९२० के दशक में गावों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये खादी के प्रचार-प्रसार पर बहुत जोर दिया था। .

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खिलाफत आन्दोलन

खिलाफत आन्दोलन (1919-1922) भारत में मुख्यत: मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था। इस आन्दोलन का उद्देश्य (सुन्नी) इस्लाम के मुखिया माने जाने वाले तुर्की के खलीफा के पद की पुन:स्थापना कराने के लिये अंग्रेजों पर दबाव बनाना था। सन् १९२४ में मुस्तफ़ा कमाल के ख़लीफ़ा पद को समाप्त किये जाने के बाद यह अपने-आप समाप्त हो गया। लेकिन इसकी वजह से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आजकल की भारतीय राजनीति में एक बहस का मुद्दा छिड़ गया। इसके मुख्य प्रणेता उत्तर प्रदेश के अली बंधुओं को पाकिस्तान में बहुत आदर से देखा जाता है। .

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खेड़ा सत्याग्रह

गांधीजी खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह (आन्दोलन) था। यह महात्मा गांधी की प्रेरणा से वल्लभ भाई पटेल एवं अन्य नेताओं की अगुवाई में हुआ था। इस सत्याग्रह के फलस्वरूप गुजरात के जनजीवन में एक नया तेज और उत्साह उत्पन्न हुआ और आत्मविश्वास जागा। यह सत्याग्रह यद्यपि साधारण सा था तथापि भारतीय चेतना के इतिहास में इसका महत्व चंपारन के सत्याग्रह से कम नहीं है। .

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गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' (1883-1972) हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल के द्विवेदी युगीन साहित्यकार हैं। इन्होंने 'सनेही' उपनाम से कोमल भावनाओं की कविताएँ, 'त्रिशूल' उपनाम से राष्ट्रीय कविताएँ तथा 'तरंगी' एवं 'अलमस्त' उपनाम से हास्य-व्यंग्य की कविताएँ लिखीं। इनकी देशभक्ति तथा जन-जागरण से सम्बद्ध कविताएँ अत्यधिक प्रसिद्ध रही हैं। .

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गाँधी (फ़िल्म)

गाँधी १९८२ में बनी लोकप्रिय भारतीय हस्ती मोहनदास करमचंद गाँधी के वास्तविक जीवनी पर आधारित फ़िल्म है। फ़िल्म का निर्देशन रिचर्ड एटनबरो द्वारा किया गया है और इसमें बेन किंग्सले गाँधी की भूमिका में है। इस फ़िल्म के लिए दोनों को अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के अकादमी पुरस्कार के साथ आठ अन्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुए। यह भारतीय और संयुक्त राजशाही की फ़िल्म निर्माता कंपनियों द्वारा बनाई गई सांझा फ़िल्म थी। इसका प्रीमियर नई दिल्ली में ३० नवम्बर १९८२ को हुआ था। .

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गाँधी टोपी

गांधी टोपी अमूमन खादी से बनाई जाती है और आगे और पीछे से जुड़ीं हुई होती है, तथा उसका मध्य भाग फुला हुआ होता है। इस प्रकार की टोपी के साथ महात्मा गांधी का नाम जोड़कर इसे गांधी टोपी कहा जाता है। परंतु गाँधीजी ने इस टोपी का आविष्कार नहीं किया था। .

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गाँधी विद्या मंदिर सरदारशहर

गाँधी विद्या मंदिर राजस्थान के सरदारशहर में स्थित एक विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना सन् 1953 में राजस्थान के एक दानी और शिक्षाप्रेमी व्यक्ति श्री कन्हैयालाल दूगड़ ने की थी। इस संस्था की स्थापना की प्रेरणा उन्हें महात्मा गांधी के शिक्षा सम्बन्धी विचारों से मिली। महात्मा गांधी के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य था - 'बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा का उत्तमोत्तम विकास करना। इन्हीं विचारों के अनुरूप गांधी विद्या मन्दिर में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित चरित्रवान नागरिक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। इसी दृष्टि से यहां एक ओर शारीरिक विकास के लिए व्यायाम, श्रमदान, स्वास्थ्य शिक्षा, आदि की व्यवस्था है, दूसरी ओर पूर्व प्राथमिक से लेकर स्नातकोत्तर व शोध स्तर की शिक्षा प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त गांधीजी की प्रार्थना पद्धति के आधार पर सब धर्मों की मिश्रित प्रार्थनाओं को लेकर ईश्वर प्रार्थना व सत्संग का नियमित कार्यक्रम चलता है। यहां शिक्षा संस्था के भवनों तथा विद्यार्थियों और शिक्षकों के निवास स्थलों ने मिलकर एक छोटे नगर का रूप धारण कर लिया है। .

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गाँधीनगर

गाँधीनगर भारत के गुजरात प्रान्त की राजधानी है। यह भारत का दूसरा ऐसा शहर है जीसे पूरी तरह आयोजन से बसाया गया हे। इसे 'हरित नगर' (ग्रीन सीटी) कहा जाता है। सचिवालय और मंत्रियों के निवास भी यहाँ पर हैं। महात्मा गाँधी की याद में इस शहर का नाम 'गांधीनगर' रखा गया है। यहाँ के अधिकांश लोग सरकारी एवं प्राइवेट नौकरी करते हैं। यहाँ के लोग काफी शांत हैं। गांधीनगर अहमदाबाद शहर से 35 किलोमीटर पूर्वोत्तर में साबरमती नदी के दाएँ तट पर स्थित है। साबरमती नदी के पश्चिमी तट पर स्थित गुजरात की राजधानी गांधीनगर का नाम राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पर रखा गया है। 649 वर्ग किलोमीटर में फैले गांधीनगर को चंडीगढ़ के बाद भारत का दूसरा नियोजित शहर माना जाता है। चंडीगढ़ को डिज़ाइन करने वाले फ्रेंच वास्तुशिल्प ली कोरबुसियन ने इस शहर को भी डिज़ाइन किया था। .

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गाँधीजी के आर्थिक विचार

गांधीजी के आर्थिक विचार अहिंसात्मक मानवीय समाज की अवधारणा से ओत-प्रोत हैं। उनके आर्थिक विचार आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करने वाले एवं भौतिकवाद के विरोधी हैं। ' गांधीवादी अर्थशास्त्र ' (Gandhian economics) नामक यह शब्द सबसे पहले उनके प्रसिद्ध अनुयायी जे.सी. कुमारप्पा ने प्रयोग किया था। .

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गान्धी-फैज़ाम कॉलेज

महात्मा गांधीजी का भाव चित्र गान्धी-फैज़ाम कॉलेज (अंग्रेजी:Gandhi Faiz-E-Aam College) भारत में उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक जिला शाहजहाँपुर का एक उल्लेखनीय शिक्षा संस्थान है। गान्धी के नाम पर स्थापित यह महाविद्यालय शाहजहाँपुर नगर में ऑर्डिनेंस क्लोदिंग फैक्ट्री व रेलवे लाइन के बीच सिविल लाइन्स क्षेत्र में स्थित है। इस महाविद्यालय की स्थापना सन् 1947 में मौलाना फज़लुर्रहमान खाँ ने की थी। सामान्यत: आम जनता में इसे जी॰ एफ कॉलेज के संक्षिप्त नाम से ही जाना जाता है। इसमें स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा दी जाती है। यह महाविद्यालय रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली से सम्बद्ध है। कला, विज्ञान, वाणिज्य और शिक्षा संकाय के अलावा इस विद्यालय में कम्प्यूटर साइंस, लाइब्रेरी विज्ञान तथा सामाजिक कार्य की शिक्षा भी दी जाती है। राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद की टीम द्वारा महाविद्यालय के विभिन्न क्रियाकलापों की गुणवत्ता का निरीक्षण करने के उपरांत वर्ष २०१४ में ग्रेड "बी" प्रदान किया गया है। .

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गांधी दर्शन

महात्मा गांधी ने किसी नए दर्शन की रचना नहीं की है वरन् उनके विचारों का जो दार्शनिक आधार है, वही गांधी दर्शन है। ईश्वर की सत्ता में विश्वास करनेवाले भारतीय आस्तिक के ऊपर जिस प्रकार के दार्शनिक संस्कार अपनी छाप डालते हैं वैसी ही छाप गांधी जी के विचारों पर पड़ी हुई है। वे भारत के मूलभूत कुछ दार्शनिक तत्वों में अपनी आस्था प्रकट करके अग्रसर होते हैं और उसी से उनकी सारी विचारधारा प्रवाहित होती है। किसी गंभीर रहस्यवाद में न पड़कर वे यह मान लेते हैं कि शिवमय, सत्यमय और चिन्मय ईश्वर सृष्टि का मूल है और उसने सृष्टि की रचना किसी प्रयोजन से की है। वे ऐसे देश में पैदा हुए जिसने चैतन्य आत्मा की अक्षुण और अमर सत्ता स्वीकार की है। वे उस देश में पैदा हुए जिसमें जीवन, जगत सृष्टि और प्रकृति के मूल में एकमात्र अविनश्वर चेतन का दर्शन किया गया है और सारी सृष्टि की प्रक्रिया को भी सप्रयोजन स्वीकार किया गया है। उन्होंने यद्यपि इस प्रकार के दर्शन की कोई व्याख्या अथवा उसकी गूढ़ता के विषय में कहीं विशद और व्यवस्थित रूप से कुछ लिखा नहीं है, पर उनके विचारों का अध्ययन करने पर उनकी उपर्युक्त दृष्टि का आभास मिलता है। उनका वह प्रसिद्ध वाक्य है-- जिस प्रकार मैं किसी स्थूल पदार्थ को अपने सामने देखता हूँ उसी प्रकार मुझे जगत के मूल में राम के दर्शन होते हैं। एक बार उन्होंने कहा था, अंधकार में प्रकाश की और मृत्यु में जीवन की अक्षय सत्ता प्रतिष्ठित है। यहाँ उन्हें जीवन और जगत का प्रयोजन दिखाई देता है। वे कहते हैं कि जीवन का निर्माण और जगत की रचना शुभ और अशुभ जड़ और चेतन को लेकर हुई है। इस रचना का प्रयोजन यह है कि असत्य पर सत्य की और अशुभ पर शुभ की विजय हो। वे यह मानते हैं कि जगत का दिखाई देनेवाला भौतिक अंश जितना सत्य है उतना ही और उससे भी अधिक सत्य न दिखाई देनेवाला एक चेतन भावलोक है जिसकी व्यंजना जीवन है। फलत: वे यह वि·ाास करते हैं कि मनुष्य में जहाँ अशुभ वृत्तियाँ हैं वहीं उसके हृदय में शुभ का निवास है। यदि उसमें पशुता है तो देवत्व भी प्रतिष्ठित है। सृष्टि का प्रयोजन यह है कि उसमें देवत्व का प्रबोधन हो और पशुता प्रताड़ित हो, शुभांश जागृत हो और अशुभ का पराभव हो। उनकी दृष्टि में जो कुछ अशुभ है, असुंदर है, अशिव है, असत्य है, वह सब अनैतिक है। जो शुभ है, जो सत्य है, जो शुभ्र है वह नैतिक है। वही सत्य, वही शिव और सुंदर है। जो सुंदर है उसे शिवमय और सनमय होना चाहिए। उन्होंने यह माना है कि सदा से मनुष्य अपने शरीर को, अपने भोग को, अपने स्वार्थ को, अपने अहंकार को, अपने पेट को और अपने प्रजनन को प्रमुखता प्रदान करता रहा है। पर जहाँ ये प्रवृतियाँ मनुष्य में हैं, जिनसे वह प्रभावित होता रहता है, वहीं उसी मनुष्य के उत्सर्ग और त्याग, प्रेम और उदारता, नि:स्वार्थता तथा व्यष्टि को समष्टि में लय करके, अहंभाव का सर्वथा त्याग करके विराट में लय हो जाने की दैवी भावना भी वर्तमान है। इन भावों का उद्बोधन तथा उन्नयन दानव पर देव की विजय का साधन है। इसी में अनैतिकता का पराभव और अजेय नैतिकता की जीत है। इसी के प्रकाश में महात्मा गांधी ने सारी सृष्टि के विकास और मानव के इतिहास को देखा। उनका दर्शन एक प्रकार से जीवन, मानव समाज और जगत का नैतिक भाष्य है। इसी की गर्भ दृष्टि से उनकी अहिंसा का प्रादुर्भाव हुआ है। उनकी अहिंसा प्राचीन काल से संतों और महात्माओं की अहिंसा मात्र नहीं है। उनकी अहिंसा शब्दप्रतीक रूप में उच्चरित होती है जिसमें उनकी सारी दृष्टि भरी हुई है। वह मानते हैं कि जगत में जो कुछ अनैतिक है वह सब हिंसा है। स्वार्थ, दंभ, लोलुपता, अहंकार, भोग की प्रवृत्ति, तृप्ति के लिए किए गए शोषण, प्रभुता तथा अधिकार और अपने को ही सारे सुखों, संपदाओं और वैभव तथा ऐ·ार्य का दावेदार समझने की प्रवृत्ति उनकी दृष्टि में वे पशुभाव हैं जो मनुष्य को पशुता, अमानवता और अनैतिकता की ओर ले जाते हैं। उनकी अहिंसा केवल आदर्श तक ही परिमित नहीं है। वे उसे ही लक्ष्य की संसिद्धि के लिए शक्तिमय साधन के रूप में भी देखते हैं। अहिंसा को पशुता के विरु द्ध विद्रोह के रूप में प्रस्तुत करने और उसे अजेय तथा अमोघ शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करने में गांधी जी की प्रतिभा अपनी अभूतपूर्व अभिनवता प्रदर्शित करती है। उनकी अहिंसा केवल जीवहिंसा न करने तक ही परिमित नहीं है, प्रत्युत जहाँ कहीं हिंसा हो, अन्याय हो, पशुता हो, उसका मुकाबला करने के लिए परमाशक्ति के रूप में अग्रसर होती हैं। अन्याय और अनीति के संमुख मस्तक झुकाना पाप है। पशुता को प्रश्रय मत दो पशुता के सामने सिर न झुकाओ, अनीति और पशुता का सामना अनैतिकता और पशुता के द्वारा मत करो क्योंकि वह पशुता पर पशुता की विजय होगी। पशुता पर देवत्व की विजय तब होगी जब नैतिक और शुभ अस्त्रों से अनैतिक और दानव भाव की पराजय हो। शस्त्र से शस्त्र का, हिंसा से हिंसा का, क्रोध से क्रोध का पराभव नहीं किया जा सकता। उनकी अहिंसा निष्क्रिय नहीं सक्रिय है। वह कायर पलायनवादी अथवा शस्त्र से भयभीत होनेवाले के लिए निकल भागने का मार्ग प्रस्तुत करने के निमित्त नहीं आयोजित होती। वह वीरता, दृढ़ता, संकल्प और धैर्य को आधार बनाकर खड़ी होती है जो अन्याय और अनाचार को, जगत की सारी शस्त्रशक्ति को और द्वेष तथा दंभ से अधीर हुई शासनयत्ता की सारी दमनात्मक प्रवृत्ति को चुनौती देती है। उनकी इस चिंतनधारा से असहयोग और सत्यागह का जन्म हुआ। यही उनकी हिंसक क्रांति, रक्तहीन विप्लव और हिंसाहीन युद्ध का मूर्त रूप है। उनकी दृष्टि में अहिंसा अमोघ शक्ति है जिसका पराभव कभी हो नहीं सकता। सशस्त्र विद्रोह से कहीं अधिक शक्ति अहिंसक विद्रोह में है। शस्त्र का सहारा लेकर अहिंसक वीर की आत्मा का दलन करने में कोई सत्ता, साम्राज्य अथवा शक्ति समर्थ नहीं हो सकती। अहिंसा नैतिकता पर आश्रित है, अत: सत्य है और सत्य ही सदा विजयी होगा। इस प्रकार संसार के सामने अहिंसा के रूप में उन्होंने उज्वल, महान और नैतिक पथ निर्मित किया। जिसने मनुष्यसमाज और जगत को गतिशील होने की प्रेरणा प्रदान की। वे उन समस्त मान्यताओं, धारणाओं और दृष्टियों के प्रतिवाद हैं जिनका आधार भौतिकवाद है। वे प्रतीक हैं उन समस्त भावों के जो मनुष्य को पशुता की ओर नहीं, देवत्व की ओर बढ़ने की दिशा का संकेत करते हैं। इस अहिंसक पथ को प्रदर्शित करके वे कल्पना करते हैं एक ऐसे लक्ष्य तक पहुँचने की जहाँ अहिंसा के आधार पर ही मनुष्य के जीवन, उसके समाज और उसके जगत की व्यवस्था की रचना की जा सके। वे मानते हैं कि मनुष्य परिवर्तित किया जा सकता है और उसका विकास शुभ्रता की ओर हो सकता है। वे यह भी मानते हैं कि निसर्गत: मनुष्य भला है और भलाई की ओर ही उन्मुख है। वे समझते है कि व्यक्ति से समाज बनता है और व्यक्ति का परिवर्तन समाज को परिवर्तित कर देगा। वे यह भी मानते हैं कि परिवर्तित समाज व्यक्ति के लिए उन संस्कारों की रचना करेगा जिससे नूतन संस्कृति का आविर्भाव होगा। अहिंसा के आधार पर समाज की रचना किस प्रकार हो सकती है इसकी सारी कल्पना उनके चरखे में प्रतिष्ठित है। वे यह स्वीकार करते हैं कि आर्थिक व्यवस्था का व्यक्ति और समाज पर सबसे अधिक प्रभाव होता है और फिर उससे उत्पन्न हुई आर्थिक और सामाजिक मान्यताएँ राजनीतिक व्यवस्था को जन्म देती हैं। आज पदार्थों के उत्पादन की प्रणाली वैज्ञानिक यंत्रवाद के कारण केंद्रित हो गई है और वही आधुनिक विश्व की समस्त समस्याओं के मूल में बैठी हुई है। उत्पादन की केंद्रित प्रणाली केंद्रीभूत पूंजी को जन्म देती है जिसके फलस्वरूप समाज के थोड़े से व्यक्तियों के हाथों में आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था का सूत्र आता है। उसकी रक्षा के लिये शक्ति तथा अधिकार और प्रभूता को केंद्रीभूत करने के लिए महती और केंद्रीकृत शस्त्रशक्ति के आधार पर राजनीतिक सत्ता आसन जमाती है। फल होता है समाज के बहुत बड़े अंग का शोषण, दोहन और दलन। इस प्रकार अधिकारवंचित और शोषित जनसमाज आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से मूलत: पराधीन होता है यद्यपि देखने में स्वाधीन दिखाई देता है। तात्पर्य यह है कि शस्त्र और अनीति का सहारा लेकर जो व्यवस्था परिचालित होगी उसमें मानव द्वारा मानव का उत्पीड़न अवश्यभावी है। इस समस्या का हल अहिंसक समाज की रचना है और उस समाज की रचना विकेंद्रीकरण के आधार पर की जा सकती है। उत्पादन की प्रणाली विक्रेंद्रित हो, उत्पादन के साधन विकेंद्रित हो, पूंजी विकेंद्रित हो, समाज जीवन के लिए आवश्यक पदार्थों की उपलब्धि में स्वावलंबी हो। उसे कि सी का मुखपेक्षी न बनना पड़े। अपनी कमाई का भोग वह स्वयं कर सके और इस प्रकार विकेंद्रित उत्पादन ओर पूंजी के आधार पर बना हुआ समाज किसी वर्गविशेष के स्वार्थ का साधन न बन पाए। फिर जब पूंजी विकेंद्रित होगी और समाज की इकाइयाँ स्वावलंबी बनेंगी तब शस्त्रशक्ति से संपन्न किसी केंद्रीय राजनीतिक सत्ता की आवश्यकता न रहेगी और वह अवस्था होगी जब मानव मानव के दमन, दलन और दोहन से मुक्तहोकर सच्ची स्वतंत्रता का उपभोग करना। चरखा उसी दोहन से मुक्त होकर सच्ची स्वतंत्रता का उपभोग करेगा। चरखा उसी विकेंद्रीकरण के सिद्धांत का प्रतीक है। वह प्रतीक है अहिंसक समाज की रचना के साथ का। वह चुनौती देता है आधुनिक विश्व की सामाजिक व्यवस्थाओं, धारणाओं और मान्यताओं को। महात्मा गांधी साध्य से अधिक साधन पर ध्यान देना आवश्यक मानते थे। उनका कहना था कि यदि साध्य पवित्र और मानवीय है तो साधन भी वैसा ही शुद्ध, वैसा ही पुनीत और वैसा ही मानवीय होना चाहिए। हम देखते हैं कि साध्य और साधन की समाज पवित्रता पर बल देना और उसका आश्रय ग्रहण करना उनकी साधना रही है। उनके इन मौलिक विचारों ने मानव समाज के विकास के इतिहास में एक अत्यंत उज्वल ओर पवित्र अध्याय की रचना की है। गांधी जी में युग युग से मनुष्यता के विकास द्वारा प्रदर्शित आदर्शों का प्रादुर्भाव समवेत रूप में ही दिखाई देता है, उनमें भगवान राम की मर्यादा श्रीकृष्ण की अनासक्ति, बुद्ध की करुणा, ईसा का प्रेम एक साथ ही समाविष्ट दिखाई देते हैं। ऊँ चे ऊँचे आदर्शों पर, धर्म और नैतिकता पर, प्राणिमात्र के कल्याण की भावना पर जीवनोत्सर्ग करनेवाले महापुरु षों की समस्त उच्चता निहित दिखाई देती हैं। श्रेणी:दर्शन श्रेणी:महात्मा गांधी.

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गांधी मैदान

गांधी मैदान बिहार की राजधानी पटना में स्थित एक प्रख्यात और एतिहासिक मैदान हैं। यहाँ पर महात्मा गांधी का विश्व भर में सबसे लम्बी प्रतिमा स्थापित हैं। .

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गांधी शांति पुरस्कार

भारत सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय गाँधी शांति पुरस्कार भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर दिया जाने वाला वार्षिक पुरस्कार है। गांधी जी के शांति सिद्धांतों को श्रद्धांजलि स्वरूप, भारत सरकार ने यह पुरस्कार १९९५ में उनके १२५वें जन्म-दिवस पर आरंभ किया था। यह वार्षिक पुरस्कार उन व्यक्तियों या संस्थाओं को दिया जाता है, जिन्होंने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक बदलावों को अहिंसा एवं अन्य गांधीवादी तरीकों द्वारा प्राप्त किया है। पुरस्कार में १ करोड़ रुपये की धनराशि, प्रशस्तिपत्र और एक उत्तरीय दी जाती है। यह सभी राष्ट्रों, जातियों, लिंग के लोगों के लिए खुला है। प्रथम गाँधी शांति पुरस्कार १९९५ में तंजानिया के प्रथम राष्ट्रपति के जूलियस नायरेरे को प्रदान किया गया था। २००९ में यह पुरस्कार द चिल्ड्रेन्स लीगल सेंटर को दुनिया भर में बाल मानवाधिकार को बढ़ावा देने के लिए दिया गया। .

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गांधी शांति प्रतिष्ठान

गांधी शान्ति प्रतिष्ठान (Gandhi Peace Foundation) एक अशासकीय संस्था (NGO) है। इसका लक्ष्य संसार में शान्ति एवं भाईचारा स्थापित करना है। इसके लिये संस्था बच्चों को शान्ति की संस्कृति से अवगत कराने की शिक्षा देती है; नवयुवकों को सम्मिलित किया जाता है; तथा गांधीजी द्वारा अपनाये गये जीवनमूल्यों को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयत्न किये जाते हैं। श्रेणी:महात्मा गांधी श्रेणी:अशासकीय संस्था.

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गांधी स्मारक निधि

१९४९ में आचार्य कृपलानी द्वारा हस्ताक्ष की हुई गांधी स्मारक निधी की रसीद गाँधी स्मारक निधि भारत सरकार द्वारा संचालित एक न्यास जो महात्मा गांधी के जीवन और कार्यों की स्मृति को बनाये रखने के उद्देश्य से कार्य करता है। .

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गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति

गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति का मूल उद्देश्य विभिन्न सामाजिक-शैक्षणिक कार्यक्रमों के माध्यम से महात्मा गांधी के जीवन ध्येय एवं विचारों का प्रचार प्रसार करना है। राजघाट पर स्थित गांधी दर्शन और तीस जनवरी मार्ग पर स्थित गांधी स्मृति का समायोजन करके सितम्बर, 1984 में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति का गठन एक स्वायत्त निकाय के रूप में किया गया जो भारत सरकार के संस्कृति विभाग, पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय के रचनात्मक परामर्श एवं वित्तिय समर्थन से कार्य कर रही है। भारत के प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और इसकीं गतिविधियों का मार्ग निर्देशन करने के लिए वरिष्ठ गांधीवादियों और विभिन्न सरकारी विभागों का एक निकाय है। .

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गांधी जयंती

भारत के राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी जिन्हें बापू या महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, के जन्म दिन २ अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। वस्तुतः गांधीजी विश्व भर में उनके अहिंसात्मक आंदोलन के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति वैश्विक स्तर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। .

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गांधी-इरविन समझौता

5 मार्च सन् 1931 को लंदन द्वितीय गोल मेज सम्मेलन के पूर्व महात्मा गांधी और तत्कालीन वाइसराय लार्ड इरविन के बीच एक राजनैतिक समझौता हुआ जिसे गांधी-इरविन समझौता (Gandhi–Irwin Pact) कहते हैं। ब्रिटिश सरकार प्रथम गोलमेज सम्मेलन से समझ गई कि बिना कांग्रेस के सहयोग के कोई फैसला संभव नहीं है। वायसराय लार्ड इरविन एवं महात्मा गांधी के बीच 5 मार्च 1931 को गाँधी-इरविन समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते में लार्ड इरविन ने स्वीकार किया कि -.

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गांधीवाद

गांधीवाद मोहनदास करमचंद गांधी (जिन्हे ज्यादातर महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है) के आदर्शों, विश्वासों एवं दर्शन से उदभूत विचारों के संग्रह को कहा जाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेताओं में से थे। यह ऐसे उन सभी विचारों का एक समेकित रूप है जो गांधीजी ने जीवन पर्यंत जिया एवं किया था। जब किसी व्यक्ति या संस्थान को गांधीवादी कहकर संबोधित करते हैं तो उसका तात्पर्य होता है गांधीजी द्वारा स्थापित मूल्यों एवं आदर्शों का अनुपालन करनेवाला होता है। .

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गिरमिटिया

सत्रहवीं सदी में आये अंगरेज़ों ने आम भारतीयों को एक-एक रोटी तक को मोहताज कर दिया। फिर उन्होंने गुलामी की शर्त पर लोगों को विदेश भेजना प्रारंभ किया। इन मज़दूरों को गिरमिटिया कहा गया। गिरमिट शब्द अंगरेजी के `एग्रीमेंट' शब्द का अपभ्रंश बताया जाता है। जिस कागज पर अंगूठे का निशान लगवाकर हर साल हज़ारों मज़दूर दक्षिण अफ्रीका या अन्य देशों को भेजे जाते थे, उसे मज़दूर और मालिक `गिरमिट' कहते थे। इस दस्तावेज के आधार पर मज़दूर गिरमिटिया कहलाते थे। हर साल १० से १५ हज़ार मज़दूर गिरमिटिया बनाकर फिजी, ब्रिटिश गुयाना, डच गुयाना, ट्रिनीडाड, टोबेगा, नेटाल (दक्षिण अफ्रीका) आदि को ले जाये जाते थे। यह सब सरकारी नियम के अंतर्गत था। इस तरह का कारोबार करनेवालों को सरकारी संरक्षण प्राप्त था। .

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गिरिजा प्रसाद कोइराला

गिरिजा प्रसाद कोइराला (२० फ़रवरी १९२५ – २० मार्च २०१० नेपाल के शीर्ष राजनेता एवं नेपाली कांग्रेस के पूर्वाध्यक्ष थे। वे चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री रहे। गिरिजा प्रसाद कोइराला का राजनीतिक सफर छह दशक से भी ज्यादा लंबा रहा। नेपाल को माओवादी संघर्ष से निजात दिलाने और उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में जोड़ने में कोइराला ने अहम भूमिका निभाई। उनके करिश्मे की वजह से ही माओवादियों और सात राजनीतिक दलों के बीच 12 सूत्री समझौते का खाका तैयार करना संभव हो सका और नेपाल में हिंसा के लंबे दौर की समाप्ति हुई। इस समझौते से ही नेपाल में राजतंत्र समाप्त हुआ और देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई। .

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गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भारत के उत्तराखण्ड राज्य के हरिद्वार शहर में स्थित है। इसकी स्थापना सन् १९०२ में स्वामी श्रद्धानन्द ने की थी। भारत में लार्ड मैकाले द्वारा प्रतिपादित अंग्रेजी माध्यम की पाश्चात्य शिक्षा नीति के स्थान पर राष्ट्रीय विकल्प के रूप में राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से भारतीय साहित्य, भारतीय दर्शन, भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के साथ-साथ आधुनिक विषयों की उच्च शिक्षा के अध्ययन-अध्यापन तथा अनुसंधान के लिए यह विश्वविद्यालय स्थापित किया गया था। इस विश्वविद्यालय का प्रमुख उद्देश्य जाति और छुआ-छूत के भेदभाव के बिना गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत् अध्यापकों एवं विद्यार्थियों के मध्य निरन्तर घनिष्ट सम्बन्ध स्थापित कर छात्र-छात्राओं को प्राचीन एवं आधुनिक विषयों की शिक्षा देकर उनका मानसिक और शारीरिक विकास कर चरित्रवान आदर्श नागरिक बनाना है। विश्वविद्यालय हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। जून 1962 में भारत सरकार ने इस शिक्षण संस्था के राष्ट्रीय स्वरूप तथा शिक्षा के क्षेत्र में इसके अप्रतिम् योगदान को दृष्टि में रखते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के एक्ट 1956 की धारा 3 के अन्तर्गत् समविश्वविद्यालय (डीम्ड यूनिवर्सिटी) की मान्यता प्रदान की और वैदिक साहित्य, संस्कृत साहित्य, दर्शन, हिन्दी साहित्य, अंग्रेजी, मनोविज्ञान, गणित तथा प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विषयों में स्नातकोत्तर अध्ययन की व्यवस्था की गई। उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त वर्तमान में विश्वविद्यालय में भौतिकी, रसायन विज्ञान, कम्प्यूटर विज्ञान, अभियांत्रिकी, आयुर्विज्ञान व प्रबन्धन के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्थापित स्वायत्तशासी संस्थान ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद्’ (NACC) द्वारा मई 2002 में विश्वविद्यालय को चार सितारों (****) से अलंकृत किया गया था। परिषद् के सदस्यों ने विश्वविद्यालय की संस्तुति यहां के परिवेश, शैक्षिक वातावरण, शुद्ध पर्यावरण, बृहत् पुस्तकालय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के संग्रहालय आदि से प्रभावित होकर की थी। विश्वविद्यालय की सभी उपाधियां भारत सरकार/विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्य हैं। यह विश्वविद्यालय भारतीय विश्वविद्यालय संघ (A.I.U.) तथा कामनवैल्थ विश्वविद्यालय संघ का सदस्य है। .

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गुलाब सिंह लोधी

गुलाब सिंह लोधी (1903 - 23 अगस्त, 1935) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे जिन्होने अपने प्राणों की बाजी अपनी भारत माँ को आजादी दिलाने के लिए लगा दी। लखनऊ के अमीनाबाद पार्क में झण्डा सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान झण्डा फहराने के दौरान अंग्रेजी पुलिस ने उन पर गोली चला दी और वे शहीद हो गये। गुलाब सिंह लोधी का जन्म एक किसान परिवार में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के ग्राम चन्दीकाखेड़ा (फतेहपुर चैरासी) के लोधी परिवार में सन् 1903 में श्रीराम रतनसिंह लोधी के यहां हुआ था। झण्डा सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने उन्नाव जिले के कई सत्याग्रही जत्थे गये थे, परन्तु सिपाहियों ने उन्हें खदेड दिया और ये जत्थे तिरंगा झंडा फहराने में कामयाब नहीं हो सके। इन्हीं सत्याग्रही जत्थों में शामिल वीर गुलाब सिंह लोधी किसी तरह फौजी सिपाहियों की टुकडि़यों के घेरे की नजर से बचकर अमीनाबाद पार्क में घुस गये और चुपचाप वहां खड़े एक पेड़ पर चढ़ने में सफल हो गये। क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी के हाथ में डंडा जैसा बैलों को हांकने वाला पैना था। उसी पैना में तिरंगा झंडा लगा लिया, जिसे उन्होंने अपने कपड़ों में छिपाकर रख लिया था। जैसे ही क्रांतिवीर गुलाब सिंह फहरा दिया और जोर-जोर से नारे लगाने लगे तिरंगे झंडे की जय महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय। अमीनाबाद पार्क के अन्दर पर तिरंगे झंडे को फहरते देखकर पार्क के चारों ओर एकत्र हजारों लोग एक साथ गरज उठे और तिरंगे झंडे की जय, महात्मा गांधी की जय, भारत माता की जय और इन गगनभेदी नारों से पार्क गूंज उठा। झंडा सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान भारत की हर गली और गांव शहर में सत्याग्रहियों के जत्थे आजादी का अलख जगाते धूम रहे थे। झंडा गीत गाकर, झंडा ऊंचा रहे हमारा, विजय विश्व तिरंगा प्यारा, इसकी शान न जाने पावे, चाहे जान भले ही जाये, देश के कोटि कोटि लोग तिरंगे झंडे की शान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए दीवाने हो उठे थे। समय का चक्र देखिए कि क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी के झंडा फहराते ही सिपाहियों की आंख फिरी और अंग्रेजी साहब का हुकुम हुआ, गोली चलाओ, कई बन्दूकें एक साथ ऊपर उठी और धांय-धांय कर फायर होने लगे, गोलियां क्रांतिवीर सत्याग्रही गुलाब सिंह लोधी को जा लगी। जिसके फलस्वरूप वह घायल होकर पेड़ से जमीन पर गिर पड़े। रक्त रंजित वह वीर धरती पर ऐसे पड़े थे, मानो वह भारत माता की गोद में सो गये हों। इस प्रकार वह आजादी की बलिवेदी पर अपने प्राणों को न्यौछावर कर 23 अगस्त 1935 को शहीद हो गये। क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी के तिरंगा फहराने की इस क्रांतिकारी घटना के बाद ही अमीनाबाद पार्क को लोग झंडा वाला पार्क के नाम से पुकारने लगे और वह आजादी के आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय नेताओं की सभाओं का प्रमुख केन्द्र बन गया, जो आज शहीद गुलाब सिंह लोधी के बलिदान के स्मारक के रूप में हमारे सामने है। मानो वह आजादी के आन्दोलन की रोमांचकारी कहानी कह रहा है। क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी ने जिस प्रकार अदम्य साहस का परिचय दिया और अंग्रेज सिपाहियों की आँख में धूल झोंककर बड़ी चतुराई तथा दूरदर्शिता के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। ऐसे उदाहरण इतिहास में बिरले ही मिलते है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अग्रणी भूमिका निभाने के लिए उनकी याद में केंद्र सरकार द्वारा जनपद उन्नाव जनपद में 23 दिसंबर 2013 को डाक टिकट जारी किया गया। .

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गुलाब खंडेलवाल

गुलाब खण्डेलवाल एक भारतीय कवि हैं। .

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गुजरात विद्यापीठ

गुजरात विद्यापीठ का प्रतीक चिह्न गुजरात विद्यापीठ की स्थापना महात्मा गांधी ने १८ अक्टूबर सन् १९२० में की थी। यह गुजरात के अहमदाबाद नगर में स्थित है। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारतीय युवकों को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराना था। गंधीजी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि मैकाले द्वारा रची गयी ब्रिटेन की औपनिवेशिक शिक्षा नीति का उद्देश्य दमनकारी ब्रिटिश साम्राज्य के लिये मानव संसाधन (क्लर्क?) तैयार करना है। उस शिक्षा नीति के विरुद्ध गांधीजी ने राष्ट्रीय पुनर्निर्माण व हिन्द स्वराज के लिये युवकों को तैयार करने के उद्देश्य से इस विद्यापीठ की स्थापना की। गांधीजी आजीवन इसके कुलाधिपति रहे। प्राध्यापक ए टी गिडवानी इसके प्रथम उपकुलपति रहे। गांधीजी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल, डा राजेन्द्र प्रसाद, मोरार जी देसाई आदि ने इसके कुलपति पद को सुशोभित किया। सन् १९६३ में भारत सरकार ने इसे मानद विश्वविद्यालय का दर्जा दिया। .

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गुजराती भाषा

गुजराती भारत की एक भाषा है जो गुजरात राज्य, दीव और मुंबई में बोली जाती है। गुजराती साहित्य भारतीय भाषाओं के सबसे अधिक समृद्ध साहित्य में से है। भारत की दूसरी भाषाओं की तरह गुजराती भाषा का जन्म संस्कृत भाषा से हुआ है। वहीं इसके कई शब्द ब्रजभाषा के हैं ऐसा भी माना जाता है की इसका जन्म ब्रजभाषा में से भी हुआ अर्थात संस्कृत और ब्रजभाषा के मिले जुले शब्दों से गुजरातीे भाषा का जन्म हुआ। दूसरे राज्य एवं विदेशों में भी गुजराती बोलने वाले लोग निवास करते हैं। जिन में पाकिस्तान, अमेरिका, यु.के., केन्या, सिंगापुर, अफ्रिका, ऑस्ट्रेलीया मुख्य है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की मातृभाषा गुजराती थी। गुजराती बोलने वाले भारत के दूसरे महानुभावों में पाकिस्तान के राष्ट्रपिता मुहम्मद अली जिन्ना, महर्षि दयानंद सरस्वती, मोरारजी देसाई, नरेन्द्र मोदी, धीरु भाई अंबानी भी सम्मिलित है। .

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गुजराती साहित्य

गुजराती भाषा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है और इसका विकास शौरसेनी प्राकृत के परवर्ती रूप 'नागर अपभ्रंश' से हुआ है। गुजराती भाषा का क्षेत्र गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ के अतिरिक्त महाराष्ट्र का सीमावर्ती प्रदेश तथा राजस्थान का दक्षिण पश्चिमी भाग भी है। सौराष्ट्री तथा कच्छी इसकी अन्य प्रमुख बोलियाँ हैं। हेमचंद्र सूरि ने अपने ग्रंथों में जिस अपभ्रंश का संकेत किया है, उसका परवर्ती रूप 'गुर्जर अपभ्रंश' के नाम से प्रसिद्ध है और इसमें अनेक साहित्यिक कृतियाँ मिलती हैं। इस अपभ्रंश का क्षेत्र मूलत: गुजरात और पश्चिमी राजस्थान था और इस दृष्टि से पश्चिमी राजस्थानी अथवा मारवाड़ी, गुजराती भाषा से घनिष्ठतया संबद्ध है। गुजराती साहित्य में दो युग माने जाते हैं-.

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गुजराती साहित्यकार

गुजराती भाषा के प्रथम व्याकरण ग्रंथ की रचना जैन मुनि हेमचंद्राचार्य ने की थी। गुजराती भाषा के प्रथम कवि नरसिंह महेता हैं तथा प्रथम लेखक नर्मद हैं। .

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गृह विज्ञान

'गृह अर्थशास्त्र' की एक कक्षा का दृष्य (टोरन्टो; सन् १९११) एक गृहिणी (कोलम्बिया) गृह विज्ञान (Home Sciences) शिक्षा की वह विधा है जिसके अन्तर्गत पाक शास्त्र, पोषण, गृह अर्थशास्त्र, उपभोक्ता विज्ञान, बच्चों की परवरिश, मानव विकास, आन्तरिक सज्जा, वस्त्र एवं परिधान, गृह-निर्माण आदि का अध्ययन किया जाता है। ऐतिहासिक रूप से जब बालकों को कृषि या 'शॉप' (लोहारी, बढ़ईगिरी, आटो की मरम्मत) आदि की शिक्षा दी जाने लगी तो बालिकाओं के लिये इस विषय के शिक्षण की आवश्यकता महसूस की गयी। .

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गोपाल कृष्ण गोखले

गोपाल कृष्ण गोखले गोपाल कृष्ण गोखले (9 मई 1866 - फरवरी 19, 1915) भारत एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का 'ग्लेडस्टोन' कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे। चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णत: सहमत होकर उन्होंने 1905 में सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। स्व-सरकार व्यक्ति की औसत चारित्रिक दृढ़ता और व्यक्तियों की क्षमता पर निर्भर करती है। महात्मा गांधी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। .

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गोरखपुर

300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .

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गोलमेज सम्मेलन (भारत)

यह लेख आंग्ल-भारतीय गोलमेज सम्मेलन के बारे में है। डच-इन्डोनेशियाई गोलमेज सम्मेलन के लिए, डच-इन्डोनेशियाई गोलमेज सम्मेलन देखिये। गोलमेज के अन्य उपयोगों के लिए, कृपया गोलमेज (स्पष्टीकरण) देखें। ---- पहला गोल मेज सम्मेलन नवम्बर 1930 में आयोजित किया गया जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को यह अहसास हुआ था कि अब उनका राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में हिस्सा देना पड़ेगा। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोल मेज सम्मेलनों का आयोजन शुरू किया। अंग्रेज़ सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1930-32 के बीच सम्मेलनों की एक श्रृंखला के तहत तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किये गए थे। ये सम्मलेन मई 1930 में साइमन आयोग द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट के आधार पर संचालित किये गए थे। भारत में स्वराज, या स्व-शासन की मांग तेजी से बढ़ रही थी। 1930 के दशक तक, कई ब्रिटिश राजनेताओं का मानना था कि भारत में अब स्व-शासन लागू होना चाहिए। हालांकि, भारतीय और ब्रिटिश राजनीतिक दलों के बीच काफी वैचारिक मतभेद थे, जिनका समाधान सम्मलेनों से नहीं हो सका। .

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गोविन्द बल्लभ पन्त

नैनीताल में गोविन्द वल्लभ पन्त की प्रतिमा पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त या जी॰बी॰ पन्त (जन्म १० सितम्बर १८८७ - ७ मार्च १९६१) प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और वरिष्ठ भारतीय राजनेता थे। वे उत्तर प्रदेश राज्य के प्रथम मुख्य मन्त्री और भारत के चौथे गृहमंत्री थे। सन 1957 में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया गया। गृहमंत्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत को भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना तथा हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना था। .

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गीतारहस्य

गीतारहस्य नामक पुस्तक की रचना लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने माण्डला जेल (बर्मा) में की थी। इसमें उन्होने श्रीमदभगवद्गीता के कर्मयोग की वृहद व्याख्या की। उन्होंने इस ग्रंथ के माध्यम से बताया कि गीता चिन्तन उन लोगों के लिए नहीं है जो स्वार्थपूर्ण सांसारिक जीवन बिताने के बाद अवकाश के समय खाली बैठ कर पुस्तक पढ़ने लगते हैं। गीता रहस्य में यह दार्शनिकता निहित है कि हमें मुक्ति की ओर दृष्टि रखते हुए सांसारिक कर्तव्य कैसे करने चाहिए। इस ग्रंथ में उन्होंने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है। तिलक ने गीतारहस्य लिखी ही इसलिए थी कि वह मान नहीं पा रहे थे कि गीता जैसा ग्रन्थ केवल मोक्ष की ओर ले जाता है। उसमें केवल संसार छोड़ देने की अपील है। वह तो कर्म को केंद्र में लाना चाहते थे। वही शायद उस समय की मांग थी। जब देश गुलाम हो, तब आप अपने लोगों से मोक्ष की बात नहीं कर सकते। उन्हें तो कर्म में लगाना होता है। वही तिलक ने किया। गांधीजी तो गीता के अत्यन्त प्रशंसक थे। उसे वह अपनी माता कहते थे। उन्होंने भी गीतारहस्य को पढ़ कर कहा था कि गीता पर तिलकजी की यह टीका ही उनका शाश्वत स्मारक है। एक तरफ गीतारहस्य लिखना और दूसरी ओर गणपति बप्पा के उत्सव को सार्वजनिक तौर पर मनाने की शुरुआत करना तिलक महाराज के मास्टरस्ट्रोक थे। .

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आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए?

आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए? (रूसी: Много ли человеку земли нужно?) लेव तालस्तोय की 1886 में लिखी कहानी है। 'इस में दो बातें बड़े पत्तों की कही गई हैं। पहली यह कि आदमी की इच्छाएँ, कभी पुरी नहीं होती। जैसे-जैसे आदमी उनका ग़ुलाम बनता जाता है, वह ओर बढ़ती जातीं हैं। दूसरे, आदमी आपाधापी करता है, भटकता है, लेकिन आख़िर में उससे कुछ भी नहीं जाता।' इस कहानी से महात्मा गांधी बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने इसका गुजराती में अनुवाद किया था। .

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आदिवासी (भारतीय)

उडी़सा के जनजातीय कुटिया कोंध समूह की एक महिलाआदिवासी शब्द दो शब्दों आदि और वासी से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। भारत की जनसंख्या का 8.6% (10 करोड़) जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका और वनवासी भी कहा गया है (संस्कृत ग्रंथों में)। संविधान में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजाति पद का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में,((धनुहार/धनवार)),संथाल, गोंड, मुंडा, खड़िया, हो, बोडो, भील, खासी, सहरिया, गरासिया, मीणा, उरांव, बिरहोर आदि हैं। महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कह कर पुकारा है। जिस पर वामपंथी मानविज्ञानियों ने सवाल उठाया है कि क्‍या मैदान में रहने वालों को मैदानी कहा जाता है? आदिवासी को दक्षिणपंथी लोग वनवासी या जंगली कहकर पुकारते हैं। इस तरह के नामों के पीछे बुनियादी रूप से यह धारणा काम कर रही होती है कि आदिवासी देश के मूल निवासी हैं या नहीं तथा आर्य यहीं के मूल निवासी हैं या बाहर से आए हैं? जबकि निश्चित रूप से आदिवासी ही भारत के मूलनिवासी हैं। आमतौर पर आदिवासियों को भारत में जनजातीय लोगों के रूप में जाना जाता है। आदिवासी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक है जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहुसंख्यक हैं, जैसे मिजोरम। भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में " अनुसूचित जनजातियों " के रूप में मान्यता दी है। अक्सर इन्हें अनुसूचित जातियों के साथ एक ही श्रेणी " अनुसूचित जातियों और जनजातियों " में रखा जाता है जो कुछ सकारात्मक कार्रवाई के उपायों के लिए पात्र है। आदिवासी नृत्य आदिवासियों का अपना धर्म है। ये प्रकृति पूजक हैं और जंगल, पहाड़, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। आधुनिक काल में जबरन बाह्य संपर्क में आने के फलस्वरूप इन्होंने हिंदू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म को भी अपनाया है। अंग्रेजी राज के दौरान बड़ी संख्या में ये ईसाई बने तो आजादी के बाद इनके हिूंदकरण का प्रयास तेजी से हुआ है। परंतु आज ये स्वयं की धार्मिक पहचान के लिए संगठित हो रहे हैं और भारत सरकार से जनगणना में अपने लिए अलग से धार्मिक कोड की मांग कर रहे हैं। भारत में 1871 से लेकर 1941 तक की जनगणना में आदिवासी को अन्‍य धमों से अलग धर्म में गिना गया है, जिसे Aborgines, Aborigional, Animist, Triabal Religion, Tribes आदि कहा गया है। आदिवासी की गणना अलग ग्रुप में की गई है, लेकीन 1951 की जनगणना से आदिवासी को Schedule Tribe बना कर अलग गिनती करना बन्‍द कर दिया गया है। माना जाता है कि हिंदुओं के देव भगवान शिव भी मूल रूप से एक आदिवासी देवता थे लेकिन आर्यों ने भी उन्हें देवता के रूप में स्वीकार कर लिया। भारत में आदिवासियों को दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति। बहुत से छोटे आदिवासी समूह आधुनिकीकरण के कारण हो रहे पारिस्थितिकी पतन के प्रति काफी संवेदनशील हैं। व्यवसायिक वानिकी और गहन कृषि दोनों ही उन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं जो कई शताब्दियों से आदिवासियों के जीवन यापन का स्रोत रहे थे। .

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आशा देवी आर्ययानाकम

आशा देवी आर्ययानाकम एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और गांधीवादी थी। वह महात्मा गांधी के सेवाग्राम और विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के साथ जुड़ी हुए थी। उनका जन्म १९०१ में लाहौर में हुआ था। उन्होंने लाहौर से ही अपनी शिक्षा पप्राप्त की और फिर संकाय के सदस्य के रूप में महिला कॉलेज, बनारस में काम करना शुरु कर दिया। भारत सरकार ने उन्हें १९५४ में सम्मानित किया, पद्म श्री के पुरस्कार के साथ, समाज में उनके योगदान के लिए चौथा उच्चतम भारतीय नागरिक पुरस्कार, उन्हें इस पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ताओं में शामिल किया गया। १९७२ में उनकी मृत्यु हो गई। .

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आज

आज हिन्दी भाषा का एक दैनिक समाचार पत्र है। इस समय `आज' वाराणसी, कानपुर, गोरखपुर, पटना, इलाहाबाद, तथा रांची से प्रकाशित हो रहा है। .

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आज़ाद हिन्द फ़ौज

आज़ाद हिन्द फौज़ का ध्वज आज़ाद हिन्द फ़ौज सबसे पहले राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में बनायी थी। मूलत: यह 'आजाद हिन्द सरकार' की सेना थी जो अंग्रेजों से लड़कर भारत को मुक्त कराने के लक्ष्य से ही बनायी गयी थी। किन्तु इस लेख में जिसे 'आजाद हिन्द फौज' कहा गया है उससे इस सेना का कोई सम्बन्ध नहीं है। हाँ, नाम और उद्देश्य दोनों के ही समान थे। रासबिहारी बोस ने जापानियों के प्रभाव और सहायता से दक्षिण-पूर्वी एशिया से जापान द्वारा एकत्रित क़रीब 40,000 भारतीय स्त्री-पुरुषों की प्रशिक्षित सेना का गठन शुरू किया था और उसे भी यही नाम दिया अर्थात् आज़ाद हिन्द फ़ौज। बाद में उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को आज़ाद हिन्द फौज़ का सर्वोच्च कमाण्डर नियुक्त करके उनके हाथों में इसकी कमान सौंप दी। .

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आगा खान पैलेस

आगा खान पैलेस पुणे के येरावाड़ा मे स्थित एक एतिहासिक भवन है। सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान द्वितीय ने १८९२ मे बनवाया था। इस भवन मे महात्मा गाँधी को उनके अन्य सहयोगीयो से साथ सन १९४० मे बंदी बना कर रखा गया था। कस्तूरबा गांधी का निधन इसी भवन मे हुआ था। उनकी समाधी भी यहॉ स्थित है। अब यह भवन एक संग्राहलय है। यह स्मारक ६.५ हेक्टेयर में फैला हुआ है। १८९२ में शाह आगा खां तृतीय ने इसे बनवाया था। १९५६ तक यह भवन उनका महल रहा। १९६९ में, आगा खां चतुर्थ ने इसे भारत सरकार को दान दे दिया था।। ट्रेन एंक्वायरी महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी और महात्मा जी के सचिव महादेवभाई देसाई 2 साल तक यहां रहे और इसी प्रवास के दौरान उनकी मृत्यु हुई थी। उनकी अस्थियां स्मारक के बागीचे में रखी गई हैं। गांधी जी के जीवन पर एक फोटो-प्रदर्शनी और उनकी व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुएं जैसे उनकी चप्पलें और चश्मे यहां रखे गए हैं। .

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इण्डियन ओपिनिअन

इण्डियन ओपिनियन (Indian Opinion) महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किया गया एक समाचार पत्र था। श्रेणी:महात्मा गाँधी श्रेणी:भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम.

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इन्दिरा गांधी

युवा इन्दिरा नेहरू औरमहात्मा गांधी एक अनशन के दौरान इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। .

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इराम हत्याकांड

इराम ओडिशा में एक छोटा सा गांव है, यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में  एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  यह रक्त तीर्थ इराम  या भारत के दूसरे जलियांवाला बाग के रूप में जाना जाता है। .

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इला रमेश भट्ट

इला रमेश भट्ट (जन्म - ७ सितंबर १९३३) भारत की एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने भारत की महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया। 1972 में सेल्फ-एम्पलॉयड वीमन एसोसिएशन (सेवा) नामक महिला व्यापार संघ की स्थापना की थी। 12 लाख से अधिक महिलाएं इसकी सदस्य हैं। इसी तरह उन्होंने 1974 में सेवा को-ऑपरेटिव बैंक की स्थापना की थी। उन्हें 13 मई २०१० को 2010 के निवानो शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्तमान में वे भारतीय रिज़र्व बैंक के केन्द्रीय बोर्ड की एक निदेशक भी हैं। भारत के पहले मज़दूर संगठन कपड़ा कामगार संघ के महिला प्रकोष्ठ के नेतृत्व से 1968 में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाली इला भट्ट ने अनौपचारिक क्षेत्र में श्रम करने वाली ग़रीब स्त्रियों को सम्पूर्ण रोज़गार दिलाने स्वयंसेवी का के किये गये संस्थानीकरण की कोशिशों में अनूठा स्थान है। सेल्फ़ इम्पलॉयड वुमॅन एसोसिएशन (सेवा) की शुरुआत इला भट्ट ने 1971 में केवल सात सदस्यों के साथ की थी। आज इसके साथ तेरह लाख से ज़्यादा स्त्रियाँ जुड़ी हैं। यह संगठन अनपढ़ कामगार महिलाओं का अपना बैंक चलाता है जिसके ज़रिये औरतों को स्वरोज़गार के लिए पूँजी मुहैया करायी जाती है। यह नारी आंदोलन, मज़दूर आंदोलन और सहकारिता आंदोलन का एक संगम है। .

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इस्लाम से हिंदू धर्म के धर्मान्तरण की सूची

इस्लाम से हिंदू धर्म के धर्मान्तरण की सूची उन व्यक्तियों को सूचीबद्ध किया गया हैं, जिन्होंने किसी कारण अपना हिन्दू धर्म त्याग कर इस्लाम धर्म अंगीकार किया और किसी कारण पुनः हिन्दूधर्म को स्वीकारा। इस सूची में उन लोगो को भी सम्मिलित किया गया है, जिन्होंने इस्लाम धर्म से हिन्दू धर्म में धर्माधन्तरण किया है। .

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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

कन्हैयालाल मुंशी कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (२९ दिसंबर, १८८७ - ८ फरवरी, १९७१) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, गुजराती एवं हिन्दी के ख्यातिनाम साहित्यकार तथा शिक्षाविद थे। उन्होने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। .

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करमचन्द गाँधी

करमचन्द गाँधी करमचन्द उत्तमचन्द गाँधी (१८२२-१८८५) भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पिता थे। वे पोरबन्दर रियासत में प्रधानमंत्री, राजस्थानिक कोर्ट के सभासद, राजकोट में दीवान और कुछ समय तक बीकानेर के दीवान के उच्च पद पर प्रतिष्ठित थे। ये कबा गाँधी के नाम से भी जाने जाते थे। महात्मा गाँधी की माता पुतलीबाई, करमचंद गाँधी चौथी पत्नी थी। इनके पिता का नाम उत्तमचन्द गाँधी और माँ का नाम लक्ष्मी गाँधी था। उन दिनों किसी रियासत की दीवानगिरी चैन की नौकरी नहीं थी। पोरबन्दर पश्चिमी भारत की तीन सौ रियासतों में से एक था, जिस पर उन राजाओं ने शासन किया जो मात्र राजकुल में जन्म लेने के कारण और अंग्रेजों की सहायता से सिंहासन पर विराजमान हुए। मनमानी करने वाले राजाओं, सर्वोच्च ब्रिटिश सत्ता के निरंकुश प्रतिनिधि 'पोलिटिकल एजेंटों' और युगों से दबीगकुचली प्रजा के बीच निरापद कर्त्तव्य निर्वाह करने के लिए काफी धैर्य, कूटनीतिक कौशल और व्यावहारिक बुद्धि की जरूरत होती थी। पिता उत्तमचन्द और करमचन्द, दोनों ही कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ सच्चे और प्रतिष्ठित व्यक्ति भी थे। वे स्वामिभक्त थे लेकिन अप्रिय और हितकर सलाह देने में भी नहीं हिचकते थे। अपने इस विश्वास पर साहस के साथ अडिग रहने के कारण उन्हें कष्ट झेलने पड़े। शासक की सेना ने उत्तमचन्द गांधी के घर को घेर लिया और उस पर गोले बरसाये। उन्हें रियासत से भागना पड़ा। उनके पुत्र करमचन्द ने भी अपने सिद्धान्तों पर अटल रह कर पोरबन्दर से हट जाना ही पसन्द किया। .

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कर्मभूमि

कर्मभूमि प्रेमचन्द का राजनीतिक उपन्यास है जो पहली बार १९३२ में प्रकाशित हुआ। आज कई प्रकाशकों द्वारा इसके कई संस्करण निकल चुके हैं। इस उपन्यास में विभिन्न राजनीतिक समस्याओं को कुछ परिवारों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। ये परिवार यद्यपि अपनी पारिवारिक समस्याओं से जूझ रहे हैं तथापि तत्कालीन राजनीतिक आन्दोलन में भाग ले रहे हैं। .

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कल्कि आर क्रिष्णमूर्ति

कल्कि (तमिल:கல்கி), आर.क्रिष्णमूर्ति (९ सितंबर १८९९- ५ दिसंबर १९५४) का उपनाम था, जो एक प्रसिद्ध तमिल स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, उपन्यासकार, कहानीकार,व्यंग्यकार, पत्रकार, ठिठोलिया, कथानक-लेखक, यात्रा लेखक, कवि, फिल्म और संगीत समीक्षकार अथवा तमिलनाडु का कला विशेषज्ञ थे। उनका उपनाम अपनी पत्नी (कल्याणि) और अपना (क्रिष्णमूर्ति) नामों का प्रत्ययों से लिया गया है- जिससे हमे 'कल्कि' नाम मिलता है, हिन्दु भगवान विष्णु का दसवें और अंतिम अवतार। उनका लेखन मे १२० से भी अधिक छोटी कहानियाँ, १० लघु उपन्यास, ५ उपन्यास, तीन ऐतिहासिक रोमान्स,अनेक संपादकीय और राजनीतिक लेखन तथा सैकड़ो फिल्म और संगीत समीक्षाऍ शामिल है। .

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कस्तूरबा गांधी

कस्तूरबा गांधी (1869-1944), महात्मा गांधी की पत्नी जो भारत में बा के नाम से विख्यात है। कस्तूरबा गाँधी का जन्म 11 अप्रैल सन 1869 ई. में महात्मा गाँधी की तरह काठियावाड़ के पोरबंदर नगर में हुआ था। इस प्रकार कस्तूरबा गाँधी आयु में गाँधी जी से 6 मास बड़ी थीं। कस्तूरबा गाँधी के पिता 'गोकुलदास मकनजी' साधारण स्थिति के व्यापारी थे। गोकुलदास मकनजी की कस्तूरबा तीसरी संतान थीं। उस जमाने में कोई लड़कियों को पढ़ाता तो था नहीं, विवाह भी अल्पवय में ही कर दिया जाता था। इसलिए कस्तूरबा भी बचपन में निरक्षर थीं और सात साल की अवस्था में 6 साल के मोहनदास के साथ उनकी सगाई कर दी गई। तेरह साल की आयु में उन दोनों का विवाह हो गया। बापू ने उन पर आरंभ से ही अंकुश रखने का प्रयास किया और चाहा कि कस्तूरबा बिना उनसे अनुमति लिए कहीं न जाएं, किंतु वे उन्हें जितना दबाते उतना ही वे आज़ादी लेती और जहाँ चाहतीं चली जातीं। .

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कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक न्यास

कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक न्यास (अंग्रेजी:KASTURBA GANDHI NATIONAL MEMORIAL TRUST) कस्तूरबा गांधी की स्मृति में स्थापित एक न्यास है। यह मध्य प्रदेश के इन्दौर में स्थित है। यही एकमात्र ऐसा न्यास है, जिसे महात्मा गांधी ने स्वयं स्थापित किया था। १९४४ में कस्तूरबा गांधी के निधन के पश्चात गांधीजी ने अपने जन्मदिवस पर सारे देश से एकत्रित एक करोड़ 75 लाख 30 हजार रुपए की राशि से इस न्यास की स्थापना की थी। इसके पहले अध्यक्ष स्वयं गांधीजी रहे। इस न्यास द्वारा देश भर में ग्रामीण विकास व महिलाओं से संबंधित कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कस्तूरबा ग्राम में अभी तक सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ॰ ज़ाकिर हुसैन से लेकर इंदिरा गांधी तक विभिन्न कार्यक्रमों में आ चुकी हैं। इन्दौर के हुकुमचंद सेठ ने इसके लिए 400 एकड़ जमीन दान दी थी। .

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कादम्बिनी गांगुली

कादम्बिनी गांगुली (जन्म- 18 जुलाई, 1861, भागलपुर, बिहार; मृत्यु- 3 अक्टूबर, 1923, कलकत्ता, ब्रिटिश भारत) भारत की पहली महिला स्नातक और पहली महिला फ़िजीशियन थीं। यही नहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में सबसे पहले भाषण देने वाली महिला का गौरव भी कादम्बिनी गांगुली को ही प्राप्त है। कादम्बिनी गांगुली पहली दक्षिण एशियाई महिला थीं, जिन्होंने यूरोपियन मेडिसिन में प्रशिक्षण लिया था। इन्होंने कोयला खदानों में काम करने वाली महिलाओं की लचर स्थिति पर भी काफ़ी कार्य किया। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की रचनाओं से कादम्बिनी बहुत प्रभावित थीं। उनमें देशभक्ति की भावना बंकिमचन्द्र की रचनाओं से ही जागृत हुई थी। .

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कालाकांकर (रियासत)

कालाकांकर अवध का एक रियासत था। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में स्थित हैं। .

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काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (आम तौर पर बी.एच.यू.) वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक १६, सन् १९१५) महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् १९१६ में वसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी। दस्तावेजों के अनुसार इस विधालय की स्थापना मे मदन मोहन मालवीय जी का योगदान सिर्फ सामान्य संस्थापक सदस्य के रूप मे था,महाराजा दरभंगा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय की स्थापना में आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था दान ले कर की ।इस विश्वविद्यालय के मूल में डॉ॰ एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज की प्रमुख भूमिका थी। विश्वविद्यालय को "राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान" का दर्ज़ा प्राप्त है। संप्रति इस विश्वविद्यालय के दो परिसर है। मुख्य परिसर (१३०० एकड़) वाराणसी में स्थित है जिसकी भूमि काशी नरेश ने दान की थी। मुख्य परिसर में ६ संस्थान्, १४ संकाय और लगभग १४० विभाग है। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर मिर्जापुर जनपद में बरकछा नामक जगह (२७०० एकड़) पर स्थित है। ७५ छात्रावासों के साथ यह एशिया का सबसे बड़ा रिहायशी विश्वविद्यालय है जिसमे ३०,००० से ज्यादा छात्र अध्यनरत हैं जिनमे लगभग ३४ देशों से आये हुए छात्र भी शामिल हैं। इसके प्रांगण में विश्वनाथ का एक विशाल मंदिर भी है। सर सुंदरलाल चिकित्सालय, गोशाला, प्रेस, बुक-डिपो एवं प्रकाशन, टाउन कमेटी (स्वास्थ्य), पी.डब्ल्यू.डी., स्टेट बैंक की शाखा, पर्वतारोहण केंद्र, एन.सी.सी.

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काका कालेलकर

काका कालेलकर (1885 - 21 अगस्त 1981) के नाम से विख्यात दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर भारत के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। काकासाहेब कालेलकर ने गुजराती और हिन्दी में साहित्यरचना की। उन्होने हिन्दी की महान सेवा की। उनके द्वारा रचित जीवन–व्यवस्था नामक निबन्ध–संग्रह के लिये उन्हें सन् 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे साबरमती आश्रम के सदस्य थे और अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। गांधी जी के निकटतम सहयोगी होने का कारण ही वे 'काका' के नाम से जाने गए। वे सर्वोदय पत्रिका के संपादक भी रहे। 1930 में पूना का यरवदा जेल में गांधी जी के साथ उन्होंने महत्वपूर्ण समय बिताया। .

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कविता कौमुदी

कविता कौमुदी हिन्दी के लोककवि रामनरेश त्रिपाठी की रचना है। यह उन 15 हजार से भी अधिक लोकगीतों का संग्रह है जिन्हें त्रिपाठी जी ने 1925 और 1930 के बीच अवध के गाँव-गाँव में घूम कर संग्रह किया था। सन 1928 के अंत में प्रकाशित इस पुस्तक की प्रथम प्रति महात्मा गाँधी को भेंट की गई थी और उन्होंने मुक्त कंठ से इस प्रयास की सराहना की थी। कविता कौमुदी पढ़कर विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उन्हें लिखा था – ‘कविता कौमुदी’ में लोककाव्य के विविध रूपों – सोहर, कजरी, बिरहा, होरी, मेला गीत, विवाह गीत, विदाई गीत आदि शामिल हैं। इसमें अहीर, कहार, तेली, गड़रिया, धोबी और चमारों के गीतों का भी अदभुत संग्रह है। लोकगीतों की तलाश में लोककवि ने बंगाल, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, साउथ और कश्मीर से लेकर नेपाल तक की यात्राएं की थीं। प्रांतीय भाषाओं के गीतों की झलक भी इस पुस्तक की अलग उपलब्धि है। .

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कुली-बेगार आन्दोलन

कुली-बेगार आन्दोलन 1921 में उत्तर भारत के बागेश्वर नगर में आम जनता द्वारा अहिंसक आन्दोलन था। इस आन्दोलन का नेतृत्व बद्री दत्त पाण्डे ने किया, तथा आंदोलन के सफल होने के बाद उन्हें 'कुमाऊं केसरी' की उपाधि दी गयी। इस आन्दोलन का उद्देश्य कुली बेगार प्रथा बन्द कराने के लिये अंग्रेजों पर दबाव बनाना था। आंदोलन से प्रभावित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसे 'रक्तहीन क्रांति' का नाम दिया। .

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कुंवर सुरेश सिंह

कुंवर सुरेश सिंह अवध की एक एक जाने माने कालाकांकर राजघराने से ताल्लुक रखते थे। कालाकांकर नरेश राजा अवधेश सिंह के छोटे भाई थे। वे एक साहित्य और कला प्रेमी भी थ। वे सुमित्रानंदन पंत और हरिवंश राय बच्चन जैसे बड़े कवियों के निकटस्थ रहे। इन्ही के आग्रह पर कवि सुमित्रानंदन पंत जी कालाकांकर आकर बस गए थे, जिसकी निशानी 'नक्षत्र' (सुमित्रानंदन पन्त की कुटी) आज भी कालाकांकर में मौजूद हैं। कुंवर सुरेश जी "पन्त जी और कालाकांकर" एवं "यादों के झरोखे" नामक पुस्तके भी लिखी हैं। सन्‌ १९३८ ई. में कविवर सुमित्रानंदन पंत ने कुंवर सुरेश सिंह के आर्थिक सहयोग से नए सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक स्पंदनों से युक्त 'रूपाभ' नामक पत्र के संपादन करने का निर्णय लिया था। कुंवर सुरेश सिंह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन भी भी अधिक सक्रीय थे। वे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के करीबियों में से एक थे। बल्कि बापू ने सुरेश जी को आन्दोलनों में मार्गदर्शन हेतु कई पत्र भी लिखे। उत्तराखंड स्थित "सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका" नामक संग्रहालय में कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह और हरिवंश राय बच्चन से किये गये उनके पत्र व्यवहार की प्रतिलिपियां यहां मौजूद हैं। .

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क्रान्तिकारी (घोषणा पत्र)

क्रान्तिकारी (घोषणा पत्र) हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन द्वारा ब्रिटिश राज में १ जनवरी १९२५ को मूलत: अंग्रेजी में दि रिवोल्यूशनरी के नाम से प्रकाशित किया गया था। भारत की क्रान्तिकारी पार्टी का यह घोषणा पत्र काकोरी काण्ड में एक दस्तावेज़ के रूप में ख़ुफ़िया पुलिस द्वारा अदालत में पेश किया गया था। इसकी भाषा इतनी खतरनाक थी कि इसे पढ़ते ही ब्रिटिश साम्राज्य का सिंहासन की चूलें लन्दन तक में हिल उठीं थीं। इसका अविकल हिन्दी काव्यानुवाद सन् २००६ में प्रकाशित हुआ था। क्रान्तिकारी के नाम से प्रकाशित ४ पृष्ठ के इस घोषणा पत्र पर शीर्षक के दोनों ओर इसके ध्येय वाक्य इस प्रकार लिखे हुए थे - "चाहें छोटा हो या बड़ा, गरीब हो या अमीर, प्रत्येक को मुफ्त न्याय और समान अवसर मिलेगा।" घोषणा पत्र के प्रारम्भ में ही लिखा गया था- "प्रत्येक सच्चे भारतीय को चाहिये कि वह इसे पूरा पढ़े और अपने आत्मीय व इष्ट-मित्रों तक पहुँचाये।" घोषणा पत्र के अन्त में भारतीय प्रजातन्त्र संघ (हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन) के अध्यक्ष के रूप में विजयकुमार के नाम से हस्ताक्षर किये गये थे। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन की ओर से १ जनवरी १९२५ को प्रकाशित चार पृष्ठ का यह घोषणा पत्र एक इश्तहार के रूप में जनवरी १९२५ के अन्तिम सप्ताह में हिन्दुस्तान के सभी प्रमुख स्थानों पर वितरित किया गया था। यह इश्तहार जानबूझ कर अंग्रेज़ी में दि रिवोल्यूशनरी के नाम से इसलिए छापा गया था ताकि सभी अंग्रेज़ इसका मतलब समझ सकें। इसमें विजय कुमार के छद्म नाम से रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने अपनी पार्टी की विचार-धारा का खुलासा करते हुए साफ़ शब्दों में बताया था कि क्रान्तिकारी इस देश की शासन व्यवस्था में किस प्रकार का बदलाव करना चाहते हैं और इसके लिये वे क्या-क्या कर सकते हैं। केवल इतना ही नहीं, इस पत्र में गान्धी जी की नीतियों का मजाक बनाते हुए यह प्रश्न भी उछाला गया था कि जो व्यक्ति स्वयं को आध्यात्मिक और महात्मा कहता है परन्तु अंग्रेज़ों से खुलकर बात करने में हमेशा ही डरता रहता है। आखिर इसका रहस्य क्या है?" घोषणा पत्र की ये पंक्तियाँ देखें- करने को वे आदर्शों का ढोंग खूब करते हैं। सत्य हमेशा कहने का खोखला दम्भ भरते हैं। पूर्ण स्वराज्य चाहिये यह सच साफ-साफ कहने में, पता नहीं क्यों वे इतना अंग्रेजों से डरते हैं? आदर्शों को जीने वाले दुःख ही दुःख सहते हैं। राष्ट्र तभी बनते हैं जब आदर्श उच्च रहते हैं। पूर्ण स्वराज्य माँगने से हरदम डरने वाले भी, जाने कैसे वे अपने को आध्यात्मिक कहते हैं? ऊपर से दिखते हों पर क्या वे सचमुच ऐसे हैं? जिसे 'महात्मा’ कहते हो क्या उसमें गुण वैसे हैं? समय आ गया है यह सच्चाई सबको बतला दो, ऊपर से जो दिखते हैं, वे अन्दर से कैसे हैं? घोषणा पत्र में हिन्दुस्तान के सभी नौजवानों को ऐसे छद्मवेषी महात्मा के बहकावे में न आने की सलाह भी दी गयी थी। इसके अतिरिक्त सभी नवयुवकों से इस गुप्त क्रान्तिकारी पार्टी में शामिल होकर अंग्रेज़ों से दो-दो हाथ करने का खुला आवाहन भी किया गया था। दि रिवोल्यूशनरी के नाम से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस घोषणा पत्र में क्रान्तिकारियों के वैचारिक चिन्तन को भली-भाँति समझा जा सकता है। .

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क्रांतिकारी

क्रांतिकारी, यह वो व्यक्ति है जो अत्याचार और उपनिवेशवाद के विरुद्ध क्रांति मे सक्रिय रूप में भाग लेता है या अत्याचार और उपनिवेशवाद के विरुद्ध क्रांति की वकालत करता है। .

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कृष्णकान्त मालवीय

कृष्णकान्त मालवीय (१८८३ ई० -- ३ जनवरी, १९४१ ई० दिल्ली) हिन्दी पत्रकार थे। वे महामना मदनमोहन मालवीय के बड़े भाई जयकृष्ण मालवीय के द्वितीय पुत्र थे। १९०४ ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी०ए० किया। १९१० ई० में 'अभ्युदय' के संपादक हुए और १९११ ई० में मासिक 'मर्यादा' का भी संपादन शुरू किया जिसमें साहित्यक, राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर विचारपूर्ण लेख प्रकाशित होते थे। सन १९१६-१८ वर्ष की अवधि मे अभ्युदय के संपादक पद से अलग रहे पर १९१८ से १९३० ई० तक फिर 'अभ्युदय' के संपादक रहे। मर्यादा का संपादन १९२२ तक किया। सत्याग्रह आंदोलनों के संबंध में तीन बार जेल गए। लगभग १२ वर्ष तक केंद्रीय एसेंबली के सदस्य रहे। आपके विचारों पर लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी का प्रभाव अधिक था। फलत: विधवा विवाह, अछूतोद्वार औरश् पैत्रिक संपति में लड़कियों को भी हिस्सा मिलने का समर्थन किया। पहले विश्व महायुद्ध के समय 'संसार संकट' स्तंभ के अंतर्गत अंतरराष्ट्रीय राजनीति का विश्लेषण हिंदी पत्रकारिता को आपकी विशेष देन थी। उर्दू शायरी के बड़े प्रेमी थे और स्वयं उर्दू कविता करते थे। भाषा सरल, स्पष्ट और उर्दू की पुट लिए रहती थी। लगभग आधे दर्जन बँगला और मराठी उपन्यासों के अनुवाद के अतिरिक्त चार मौलिक पुस्तकों की रचना की- श्रेणी:हिन्दी पत्रकार.

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कृष्णकुमार बिड़ला

कृष्णकुमार बिड़ला (१२ अक्टूबर, १९१८ - ३० अगस्त, २००८) भारत के प्रख्यात उद्योगपति और राज्यसभा के पूर्व राज्य सभा सदस्य थे। घनश्याम दास बिड़ला के पुत्र कृष्णकांत बिड़ला का जन्म १२ अक्टूबर, १९१८ को राजस्थान के पिलानी में हुआ था। उनके पिता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थकों और गांधी जी के निकटवर्तियों में शामिल थे। उनकी उच्च शिक्षा कोलकाता, दिल्ली और पंजाब विश्वविद्यालय से हुई।। दैट्स हिन्दी। शनिवार, अगस्त 30, 2008 ये १९८४ से २००० तक लगातार १८ वर्षों के लिये राज्यसभा के सदस्य भी रहे और इस दौरान संसद की कई समितियों की अध्यक्षता की। भारतीय चीनी उद्योग के वे संस्थापक सदस्यों में थे। बिड़ला के औद्योगिक साम्राज्य में चीनी, उर्वरक, रसायन, हैवी इंजीनियरिंग, वस्त्र, जहाजरानी और समाचार-पत्र जैसे मुख्य उद्योग शामिल हैं। कृष्ण कुमार एक उद्योगपति होने के अलावा एक सम्मानित सांसद, समाजसेवी और विद्वान व्यक्ति थे। १९६१ में वे कलकत्ता के शेरिफ चुने गए थे और १९९७ में उन्हें पांडिचेरी विश्वविद्यालय ने डॉक्टर ऑफ लेटर्स से सम्मानित किया था। उन्होंने भारतीय चीनी उद्योग एसोशिएसन, फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स (फिक्की) और इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) की भी अध्यक्षता की। उन्होंने केके बिड़ला फाउंडेशन की स्थापना की, जो भारतीय साहित्य, वैज्ञानिक अनुसंधान और भारतीय दर्शनशास्त्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा करता है। हिन्दुस्तान टाइम्स और बिड़ला समूह के अनेक उद्योगों के अध्यक्ष बिड़ला के परिवार में उनकी तीन पुत्रियाँ नंदिनी नुपानी, शोभना भारतीय और सरोज पोतदार हैं। शोभना भारतीय भारत के बड़े समाचारपत्र हिन्दुस्तान टाइम्स की संपादकीय सलाहकार हैं। उनकी पत्नी मनोरमा देवी बिड़ला का इनसे एक माह पूर्व जुलाई, २००८ में निधन हो गया था। .

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केयूर भूषण

केयूर भूषण (१९२८ -- २०१८) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी एवं छत्तीसगढ़ी साहित्यकार थे। भूषण का जन्म १ मार्च १९२८ को छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के जांता गांव में हुआ था। उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध १९४२ के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और गिरफ्तार हुए। उस समय वह रायपुर केन्द्रीय जेल में सबसे कम उम्र के राजनीतिक बंदी थे। भूषण ने वर्ष 1980 से 1990 तक सांसद के रूप में लोकसभा में रायपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। छत्तीसगढ़ सरकार ने वर्ष 2001 में राज्योत्सव के अवसर पर उन्हें पंडित रविशंकर शुक्ल सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित किया था। .

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केशव बलिराम हेडगेवार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा.

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केवल रतन मलकानी

केवल रतन मलकानी (19 नवम्बर 1921 - 27 अक्टूबर 2003) भारत के एक प्रसिद्ध चिन्तक, राजनेता एवं पत्रकार थे। वे भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष एवं पांडीचेरी के राज्यपाल रहे। वे एक समर्थ विचारक एवं लेखक थे। .

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कोच्चि

कोच्चि, जिसे कोचीन भी कहा जाता था, लक्षद्वीप सागर के दक्षिण-पश्चिम तटरेखा पर स्थित एक बड़ा बंदरगाह शहर है, जो भारतीय राज्य केरल के एर्नाकुलम जिले का एक भाग है। कोच्चि को काफ़ी समय से प्रायः एर्नाकुलम भी कहा जाता है, जिसका अर्थ नगर का मुख्यभूमि भाग इंगित करता है। कोच्चि नगर निगम के अधीनस्थ (जनसंख्या ६,०१,५७४) ये राज्य का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर है। ये कोच्चि महानगरीय क्षेत्र के विस्तार सहित (जनसंख्या २१ लाख) केरल राज्य का सबसे बड़ा शहरी आबादी क्षेत्र है। कोच्चि नगर ग्रेटर कोच्चि क्षेत्र का ही एक भाग है, और इसे भारत सरकार द्वारा द्वितीय दर्जे वाला शहर वर्गीकृत किया गया है। नगर की देख-रेख व अनुरक्षण दायित्त्व १९६७ में स्थापित हुआ कोच्चि नगर निगम देखता है। इसके अलावा पूरे क्षेत्र के सर्वांगीण विकास का भार ग्रेटर कोचीन डवलपमेंट अथॉरिटी (GCDA) एवं गोश्री आईलैण्ड डवलपमेंट अथॉरिटी (GIDA) पर है। कोच्चि १४वीं शताब्दी से ही भारत की पश्चिमी तटरेखा का मसालों का व्यापार केन्द्र रहा है और इसे अरब सागर की रानी के नाम से जाना जाता था। १५०३ में यहां पुर्तगालियों का आधिपत्य हुआ और यह उपनिवेशीय भारत की प्रथम यूरोपीय कालोनी बना और १५३० में गोवा के चुने जाने तक ये पुर्तगालियों का यहां का प्रधान शक्ति केन्द्र रहा था।क्कालांतर में कोच्चि राज्य के रजवाड़े में परिवर्तित होने के क्साथ ही ये डच एवं ब्रिटिश के नियन्त्रण में आ गया। आज केरल में कुल अन्तर्देशीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों के आगमन संख्या में प्रथम स्थान बनाये हुए है। नीलसन कम्पनी के आउटलुक ट्रैवलर पत्रिका के लिये किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार कोच्चि आज भी भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटक आकर्षणों में छठवें स्थान पर बना हुआ है। मैकिन्से ग्लोबल संस्थान द्वारा किये गए एक शोध के अनुसार, कोच्चि २०२५ तक के विश्व के सकल घरेलु उत्पाद में ५०% योगदान देने वाले ४४० उभरते हुए शहरों में से एक था। भारतीय नौसेना के दक्षिणी नौसैनिक कमान का केन्द्र तथा भारतीय तटरक्षक का राज्य मुख्यालय भी इसी शहर में स्थित है, जिसमें एयर स्क्वैड्रन ७४७ नाम की एक वायु टुकड़ी भी जुड़ी है। नगर के वाणिज्यिक सागरीय गतिविधियों से सम्बन्धित सुविधाओं में कोच्चि बंदरगाह, अन्तर्राष्ट्रीय कण्टेनर ट्रांस्शिपमेण्ट टर्मिनल, कोचीन शिपयार्ड, कोच्चि रिफ़ाइनरीज़ का अपतटीय (ऑफ़शोर) सिंगल बॉय मूरिंग (एस.पी.एम), एवं कोच्चि मैरीना भी हैं। कोच्चि में ही कोचीन विनिमय एक्स्चेंज, इंटरनेशनल पॅपर एक्स्चेंज भी स्थित हैं, तथा हिन्दुस्तान मशीन टूल्स (एच.एम.टी), सायबर सिटी, एवं किन्फ़्रा हाई-टेक पाक एवं बड़ी रासायनिक निर्माणियां जैसे फ़र्टिलाइज़र्स एण्ड कैमिकल्स त्रावणकौर (फ़ैक्ट), त्रावणकौर कोचीन कैमिकल्स (टीसीसी), इण्डियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (आई.आर.ई.एल), हिन्दुस्तान ऑर्गैनिक कैमिकल्स लिमिटेड (एच.ओ.सी.एल) कोच्चि रिफ़ाइनरीज़ के साथ साथ ही कई विद्युत कंपनियां जैसे टी.ई.एल.के एवं औद्योगिक पार्क भी बने हैं जिनमें कोचीन एपेशल इकॉनोमिक ज़ोन एवं इन्फ़ोपार्क कोच्चि प्रमुख हैं। कोच्चि में ही प्रमुख राज्य न्यायपीठ केरल एवं लक्षद्वीप उच्च न्यायालय एवं कोचीन युनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी भी स्थापित हैं। इसी नगर में केरल का नेशनल लॉ स्कूल, नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ़ एडवांस्ड लीगल स्टडीज़ को भी स्थान मिला है। .

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अनासक्ति योग

राग और द्वेष से असंपृक्त हो जाना ही अनासक्ति है। महात्मा गाँधी ने गीता के श्लोकों का सरल अनुवाद करके अनासक्ति योग का नाम दिया। कर्तव्य कर्म करते समय निष्पृह भाव में चले जाना ही अनासक्त भाव है। बुद्ध ने इसे 'उपेक्षा' कहा है। श्रेणी:महात्मा गांधी श्रेणी:योग आधार श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अनुग्रह नारायण सिंह

डा अनुग्रह नारायण सिंह एक भारतीय राजनेता और बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री (1946-1957) थे। अनुग्रह बाबू (1887-1957) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक तथा राजनीतिज्ञ रहे हैं।उन्होंने महात्मा गांधी एवं डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद के साथ चंपारण सत्याग्रह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। वे आधुनिक बिहार के निर्माताओं में से एक थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें बिहार विभूति के रूप में जाना जाता था। उनका सौभ्य, स्निग्ध, शीतल, परोपकारी, अहंकारहीन और दर्पोदीप्त शख़्सियत बिहार के जन गण मन पर अधिकार किए हुए था।वे देश के स्वाधीनता-संग्राम के महान नायकों में एक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पद चिह्नों पर चलने वाले उनके प्रिय अनुयायी थे। .

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अन्टू दिस लास्ट

अनटू दिस लास्ट, अंग्रेज लेखक रस्किन की एक पुस्तक है। जिसका अर्थ है - इस अंतवाले को भी। यह एक अर्थनीति सम्बन्धी लेख शृंखला के रूप में दिसम्बर १८६० को एक मासिक पत्रिका (Cornhill Magazine) में प्रकाशित हुआ था। रस्किन ने इन लेखों को सन १८६२ में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। यह पुस्तक १८वीं एवं १९वीं शताब्दी के पूँजीवादी विचारकों ली तीव्र आलोचना करती है। सारतः रस्किन को सामाजिक अर्थनीति का जनक कहा जा सकता है। यह पुस्तक गाँधीजी को सन १९०४ में हेनरी पोलाक से प्राप्त हुई। गांधीजी पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा था। उन्होने गुजराती में सर्वोदय नाम से सन १९०८ में इसका अनुवाद किया। गांधीजी के अधिकांश सामाजिक और आर्थिक विचार "अन्टु दिस लास्ट" से प्रभावित थे। .

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अन्ना मणी

अन्ना मणि (23 अगस्त 1918 – 16 अगस्त 2001) एक भारतीय भौतिक और मौसम वैज्ञानिक थीं। वह भारत के मौसम विभाग के उप-निदेशक थीं। उन्होने मौसम विज्ञान उपकरणों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किए हैं; सौर विकिरण, ओज़ोन और पवन ऊर्जा माप के विषय में अनुसन्धान किया है और कई शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। .

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अमरकांत

अमरकांत (1925 - 17 फ़रवरी 2014) हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार थे। यशपाल उन्हें गोर्की कहा करते थे।रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २०१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-६ .

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अमिताभ ठाकुर

अमिताभ ठाकुर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, कवि, व लेखक हैं। वे एक आई। पी.एस.

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अरविन्द गौड़

अरविन्द गौड़, भारतीय रंगमंच निदेशक, सामाजिक और राजनीतिक प्रासंगिक रंगमंच में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। अरविंद गौड़ के नाटक समकालीन हैं। व्यापक सामाजिक राजनीतिक मुद्दों - सांप्रदायिकता, जातिवाद, सामंतवाद, घरेलू हिंसा, राज्य के अपराध, सत्ता की राजनीति, हिंसा, अन्याय, सामाजिक- भेदभाव और नस्लवाद उनके रंगमंच के प्रमुख विषय हैं। गौड़ एक अभिनेता प्रशिक्षक (ट्रेनर), सामाजिक कार्यकर्ता और एक अच्छे कथा -वाचक (स्टोरी टेलर) हैं। अरविन्द गौड़ ने भारत और विदेश के प्रमुख नाट्य महोत्सवो मैं भाग लिया है। ऊन्होने नाटक कार्यशालाओं का विभिन्न कॉलेजों, संस्थानों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों में आयोजन किया है। वह बच्चों के लिए भी नाटक (थिएटर) कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं। अरविन्द ने विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर नुक्कड़ नाटकॉ के साथ- साथ दो दशकों में 60 से अधिक मंच नाटकों का निर्देशन किया है। अरविन्द गौड़ ने विदेशों में अमेरिका, रुस, फ्रांस, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, एडिनबर्ग फेस्टिवल (ब्रिटेन), आर्मेनिया और संयुक्त अरब इमारात (यू ए ई) के साथ नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) महोत्सव (भारत रंग महोत्सव),संगीत नाटक अकादमी, साहित्य कला परिषद, दर्पणा अकादमी ऑफ आर्टस् (अहमदाबाद), नान्दिकार (कोलकाता), विवेचेना थिएटर महोत्सव (जबलपुर), ओल्ड वल्ड् थिएटर महोत्सव, टाइम्स महोत्सव, गजानन माधव 'मुक्तिबोध' नाट्य महोत्सव, वर्ल्ड सोशल फोरम और नेहरू सेंटर महोत्सव (मुम्बई) मे भी भाग लिया है। पद्मश्री हबीब तनवीर के नया थिएटर के प्रमुख नाटको के लिए अरविन्द ने प्रकाश व्यवस्था भी डिजाइन की। आजकल अरविन्द गौड़ अस्मिता थियेटर ग्रुप के निदेशक के रूप मैं कार्यरत है। कुछ प्रमुख सिनेमा अभिनेताओं - कंगना राणावत, दीपक डोबरियाल, शिल्पा शुक्ला(चक दे इंडिया (2007 फ़िल्म)), पीयूष मिश्र, लुशिन दुबे, बबल्रस सबरवाल, ऐशवरया निधि (सिडनी), तिलोत्त्त्त्मा शोम (मानसून वेडिंग), राशि बनि, रुथ शेअर्द् (ब्रिटिश अभिनेत्री),मनु ऋषि, सीमा आज़मी (चक दे इंडिया), सुसान बरार (फिल्म-समर 2007), चन्दन आनंद, जैमिनि कुमार, शक्ति आनंद आदि ने उसके साथ काम किया है। .

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अर्थशास्त्र

---- विश्व के विभिन्न देशों की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर (सन २०१४) अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है। अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य, कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि। प्रो.

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अल्मोड़ा जिला

अल्मोड़ा भारत के उत्तराखण्ड नामक राज्य में कुमांऊँ मण्डल के अन्तर्गत एक जिला है। इस जिले का मुख्यालय भी अल्मोड़ा में ही है। अल्मोड़ा अपनी सांस्कृतिक विरासत, हस्तकला, खानपान और ठेठ पहाड़ी सभ्यता व संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। .

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अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, (उर्दू: اشفاق اُللہ خان, अंग्रेजी:Ashfaq Ulla Khan, जन्म:22 अक्तूबर १९००, मृत्यु:१९२७) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और १९ दिसम्बर सन् १९२७ को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है। .

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अशोक मेहता

अशोक मेहता (२४ अक्टूबर १९११ - १९८४) भारत के प्रमुख समाजवादी नेता, सांसद तथा विचारक थे। उन्होने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया। अशोक मेहता का जन्म सौराष्ट्र के भावनगर कस्बे में हुआ था। उनकी शिक्षा विल्सन कालेज मुम्बई में हुई। उनके विचारों पर रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी और रवीन्द्रनाथ ठाकुर का प्रभाव पड़ा। साथ ही वे हेराल्ड लास्की और कार्ल मार्क्स के विचारों से बहुत प्रभावित थे। १९३२ के बाद अशोक मेहता कई बार जेल गये। इन जेल यात्राओं में उनका सम्पर्क अच्युत पटवर्धन और जयप्रकाश नारायण जैसे व्यक्तियों से हुआ। १९३४ में जब कांग्रेस समाजवादी दल का गठन हुआ तब २३ वर्ष के नवयुवक मेहता उसके सदस्य थे। अपने पार्टी के साप्ताहिक 'कांग्रेस सोसलिस्ट' का उन्होने १९३९ तक सम्पादन किया। उनका सम्बन्ध भारत के किसान और श्रमिक आन्दोलन से भी था। भारत छोड़ो आन्दोलन में उनकी प्रमुख भूमिका रही। स्वतंत्रता के बाद अशोक मेहता की अध्यक्षता में प्रजा सोसलिस्ट पार्टी बनी। वे दो बार लोकसभा सदस्य चुने गये। वे कुछ समय तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। वे भारत के केंद्रीय सरकार के मंत्री भी रहे। १९६९ में कांग्रेस विभाजन के बाद 'संगठन कांग्रेस' में चले गये। १९८४ में उनका निधन हो गया। श्रेणी:समाजवाद श्रेणी:राजनीतिज्ञ श्रेणी:1911 में जन्मे लोग श्रेणी:१९८४ में निधन.

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अशोक आत्रेय

अशोक आत्रेय बहुमुखी प्रतिभा के संस्कृतिकर्मी सातवें दशक के जाने माने वरिष्ठ हिन्दी-कथाकार और (सेवानिवृत्त) पत्रकार हैं | मूलतः कहानीकार होने के अलावा यह कवि, चित्रकार, कला-समीक्षक, रंगकर्मी-निर्देशक, नाटककार, फिल्म-निर्माता, उपन्यासकार और स्तम्भ-लेखक भी हें| .

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अहमदाबाद में पर्यटन

अहमदाबाद, स्थानीय भाषा में अम्दावाद, भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात का एक महत्वपूर्ण नगर है। यह भारत का सातवाँ सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र और गुजरात राज्य की पूर्व राजनैतिक राजधानी भी रहा है। राज्य के व्यावसायिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र होने के कारण यह शहर गुजरात में एक खास स्थान रखता है। ६५ लाख से अधिक की आबादी के साथ यह वर्तमान में यह गुजरात का सबसे बड़ा और पूरे देश में छठा सबसे बड़ा नगर है। साबरमती नदी के तट पर बसा यह नगर गुजरात की राजनैतिक राजधानी गाँधीनगर से ३० किलोमीटर की दूरी पर है। अहमदाबाद का तापमान भारत के दूसरे अन्य भागों से अधिक गर्म और अधिक शुष्क होता है। अर्ध शुष्क वातावरण वाले गुजरात में ग्रीष्म, वर्षा और शीत यही तीन प्रकार के मौसम होते हैं। ग्रीष्मकाल की अवधि मार्च से लेकर जून के अंत तक रहती है। इस दौरान अधिकतम और न्यूनतम तापमान ४३ °सेल्सीयस (१०९ °फॉरेहाइट) से २४ °°सेल्सीयस (७५°फॉरेहाइट) के मध्य ही रहता है। इसके बाद अक्तूबर तक मानसून का समय होता है जिस दौरान औसतन ३१ इंच अथवा ८०० मिलीमीटर वर्षा होती है। पूरे साल में यह एकमात्र समय होता जब यहाँ के वातावरण में नमी होती है। शीत ऋतु सामान्यतः नवंबर से शुरू हो फ़रवरी तक रहती है। इस दौरान अधिकतम और न्यूनतम तापमान क्रमशः ३० °सेल्सीयस (८५ °फॉरेहाइट) से 13 °°सेल्सीयस (५५°फॉरेहाइट) के बीच पाया जाता है। मई १८ और १९ २०१६ अहमदाबाद के अबतक के सबसे गर्म दिन थे जब तापमान ५० °°सेल्सीयस (१२२°फॉरेहाइट) से भी अधिक हो गया था। .

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अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का ध्वज अखिल भारत हिन्दू महासभा भारत का एक राजनीतिक दल है। यह एक भारतीय राष्ट्रवादी संगठन है। इसकी स्थापना सन १९१५ में हुई थी। विनायक दामोदर सावरकर इसके अध्यक्ष रहे। केशव बलराम हेडगेवार इसके उपसभापति रहे तथा इसे छोड़कर सन १९२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। भारत के स्वतन्त्रता के उपरान्त जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तब इसके बहुत से कार्यकर्ता इसे छोड़कर भारतीय जनसंघ में भर्ती हो गये। .

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अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। .

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अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस या मई दिन मनाने की शुरूआत 1 मई 1886 से मानी जाती है जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों नें काम का समय 8 घंटे से ज़्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किस ने फेंका किसी का कोई पता नहीं। इसके निष्कर्ष के तौर पर पुलिस ने मज़दूरों पर गोली चला दी और सात मज़दूर मार दिए। "भरोसेमंद गवाहों ने तस्दीक की कि पिस्तौलों की सभी फलैशें गली के केंद्र की तरफ से आईं जहाँ पुलिस खड़ी थी और भीड़ की तरफ़ से एक भी फ्लैश नहीं आई। इस से भी आगे वाली बात, प्राथमिक अखबारी रिपोर्टों में भीड़ की तरफ से गोलीबारी का कोई ज़िक्र नहीं। मौके पर एक टेलीग्राफ खंबा गोलियों के साथ हुई छेद से पुर हुआ था, जो सभी की सभी पुलिस वाले तरफ़ से आईं थीं।" चाहे इन घटनाओं का अमेरिका पर एकदम कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा था लेकिन कुछ समय के बाद अमेरिका में 8 घंटे काम करने का समय निश्चित कर दिया गया था। मौजूदा समय भारत और अन्य मुल्कों में मज़दूरों के 8 घंटे काम करने से संबंधित क़ानून लागू है। अंतरराष्ट्रीय मज़दूर आंदोलन, अराजकतावादियों, समाजवादियों, तथा साम्यवादियों द्वारा समर्थित यह दिवस ऐतिहासिक तौर पर केल्त बसंत महोत्सव से भी संबंधित है। इस दिवस का चुनाव हेमार्केट घटनाक्रम की स्मृति में, जो कि 4 मई 1886 को घटित हुआ था, द्वितीय अंतरराष्ट्रीय के दौरान किया गया। .

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अंतर्राष्ट्रीय अंहिसा दिवस

अंतर्राष्ट्रीय अंहिसा दिवस महात्मा गांधी के जन्मदिन पर २ अक्टूबर को मनाया जाता है। इसे भारत में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। १५ जून २००७ को संयुक्त राष्ट्र महासभा में २ अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस स्थापित करने के लिए मतदान हुआ। महासभा में सभी सदस्यों ने २ अक्टूबर को इस रूप में स्वीकार किया। .

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अंतःकरण

अंत:करण (Conscience / कांशेंस) का तात्पर्य उस मानसिक शक्ति से है जिससे व्यक्ति उचित और अनुचित का निर्णय करता है। सामान्यत लोगों की यह धारणा होती है कि व्यक्ति का अंतकरण किसी कार्य के औचित्य और अनौचित्य का निर्णय करने में उसी प्रकार सहायता कर सकता है जैसे उसके कर्ण सुनने में, अथवा नेत्र देखने में सहायता करते हैं। व्यक्ति में अंतःकरण का निर्माण उसके नैतिक नियमों के आधार पर होता है। अंतकरण व्यक्ति की आत्मा का वह क्रियात्मक सिद्धांत माना जा सकता है जिसकी सहायता से व्यक्ति द्वंद्वों की उपस्थिति में किसी निर्णय पर पहुँचता है। अभिज्ञान शाकुंतलम् (१,१९) में कालिदास कहते हैं: .

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अंजुमन ए तरक्क़ी ए उर्दू

अंजुमन ए तरक्क़ी ए उर्दू: (उर्दू: انجمن ترقئ اردو) भारत और पाकिस्तान में उर्दू भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रचार और प्रसार के लिए काम कर रहे एक प्रमुख संगठन है। "अंजुमन-ए ताराकी-उर्दू (अब से अंजुमन कहा जाता है) दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा उर्दू विद्वानों के प्रचारक संघ है।" .

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अंग्रेजी हटाओ आंदोलन

स्वतंत्र भारत में साठ के दशक में अंग्रेजी हटाओं-हिन्दी लाओ के आंदोलन का सूत्रपात राममनोहर लोहिया ने किया था। इस आन्दोलन की गणना अब तक के कुछ इने गिने आंदोलनों में की जा सकती है। समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से अंगरेजी के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महात्मा गांधी के बाद सबसे ज्यादा काम राममनोहर लोहिया ने किया। वे सगुण समाजवाद के पक्षधर थे। उन्होंने लोकसभा में कहा था- १९५० में जब भारतीय संविधान लागू हुआ तब उसमें भी यह व्यवस्था दी गई थी कि 1965 तक सुविधा के हिसाब से अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उसके बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा। इससे पहले कि संवैधानिक समयसीमा पूरी होती, डॉ राममनोहर लोहिया ने 1957 में अंग्रेजी हटाओ मुहिम को सक्रिय आंदोलन में बदल दिया। वे पूरे भारत में इस आंदोलन का प्रचार करने लगे। 1962-63 में जनसंघ भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गया। लेकिन इस दौरान दक्षिण भारत के राज्यों (विशेषकर तमिलनाडु में) आंदोलन का विरोध होने लगा। तमिलनाडु में अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके पार्टी ने हिंदी विरोधी आंदोलन को और तेज कर दिया। इसके बाद कुछ शहरों में आंदोलन का हिंसक रूप भी देखने को मिला। कई जगह दुकानों के ऊपर लिखे अंग्रेजी के साइनबोर्ड तोड़े जाने लगे। उधर 1965 की समयसीमा नजदीक होने की वजह से तमिलनाडु में भी हिंदी विरोधी आंदोलन काफी आक्रामक हो गया। यहां दर्जनों छात्रों ने आत्मदाह कर ली। इस आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1963 में संसद में राजभाषा कानून पारित करवाया। इसमें प्रावधान किया गया कि 1965 के बाद भी हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल राजकाज में किया जा सकता है। ‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन को उन दिनों यह कहकर खारिज करने की कोशिश की गई कि अगर अंग्रेजी की जगह हिंदी आयेगी तो हिन्दी का वर्चस्ववाद कायम होगा और तटीय भाषाएँ हाशिए पर चली जायेंगी। सत्ताधारियों ने हिन्दी को साम्राज्यवादी भाषा के के रूप में पेश कर हिन्दी बनाम अन्य भारतीय भाषाओं (बांग्ला, तेलुगू, तमिल, गुजराती, मलयालम) का विवाद छेड़ इसे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा बता दिया। इसे देश जोड़क भाषा नहीं, देश तोड़क भाषा बना दिया। लोहिया ने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी ने देश जोड़क भाषा का काम किया है। देश में एकता स्थापित की है, आगे भी इस भाषा में संभावना है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि हिंदी को राजकाज, प्रशासन, कोर्ट-कचहरी की भाषा नहीं बनाना चाहते तो इसकी जगह अन्य किसी भी भारतीय भाषा को बना दिया जाए। जरूरी हो तो हिन्दी को भी शामिल कर लिया जाए। लेकिन भारत की मातृभाषा की जगह अंग्रेजी का वर्चस्ववाद नहीं चलना चाहिए। लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते हैं, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं है। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी है। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को हैदराबाद में लोहिया ने कहा था, उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था– दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में मद्रास और कोयंबटूर में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें हैदराबाद में हुई। तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। दुर्भाग्य से सन १९६७ में लोहिया का असमय देहान्त हो गया जिससे इस आन्दोलन को भारी धक्का लगा। यह यह आंदोलन सफल होता तो आज भाषाई त्रासदी का यह दौर न देखना पडता। लोहिया इस तर्क कि "अंग्रेजी का विरोध न करें, हिन्दी का प्रचार करें" की अंतर्वस्तु को भली भांति समझते थे। वे जानते थे कि यह एक ऐसा भाषाई षडयंत्र है जिसके द्वारा औपनिवेशिक संस्कृति की मृत प्राय अमरबेल को पुन: पल्लवित होने का अवसर प्राप्त हो जायेगा। उनका कहना था, .

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अंग्रेजी अनिवार्यता विरोधी समिति

कोई विवरण नहीं।

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अक्टूबर

अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर और जूलियन कैलेंडर का दसवाँ महीना है। और यह उन सात महीनों में से एक है जिनके दिनों की संख्या ३१ होती है। श्रेणी:चित्र जोड़ें .

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उत्तर प्रदेश

आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .

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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ का भवन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये कार्यरत प्रमुख संस्था है। यह उत्तर प्रदेश शासन के भाषा विभाग के अधीन है। अन्य कार्यक्रमों के अलावा हिन्दी के प्रचार प्रसार हेतु विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिये साहित्यकारों को यह कई पुरस्कार भी प्रदान करती है। प्रदेश का मुख्य मन्त्री इसका पदेन अध्यक्ष होता है। वही कार्यकारी अध्यक्ष व निदेशक की नियुक्ति करता है। .

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उत्तर प्रदेश का इतिहास

उत्तर प्रदेश का भारतीय एवं हिन्दू धर्म के इतिहास मे अहम योगदान रहा है। उत्तर प्रदेश आधुनिक भारत के इतिहास और राजनीति का केन्द्र बिन्दु रहा है और यहाँ के निवासियों ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभायी। उत्तर प्रदेश के इतिहास को निम्नलिखित पाँच भागों में बाटकर अध्ययन किया जा सकता है- (1) प्रागैतिहासिक एवं पूर्ववैदिक काल (६०० ईसा पूर्व तक), (2) हिन्दू-बौद्ध काल (६०० ईसा पूर्व से १२०० ई तक), (3) मध्य काल (सन् १२०० से १८५७ तक), (4) ब्रिटिश काल (१८५७ से १९४७ तक) और (5) स्वातंत्रोत्तर काल (1947 से अब तक)। .

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उपनाम

नाम के साथ प्रयोग हुआ दूसरा शब्द जो नाम कि जाति या किसी विशेषता को व्यक्त करता है उपनाम (Surname / सरनेम) कहलाता है। जैसे महात्मा गाँधी, सचिन तेंदुलकर, भगत सिंह आदि में दूसरा शब्द गाँधी, तेंदुलकर, सिंह उपनाम हैं। .

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उषा मेहता

उषा मेहता (२५ मार्च, १९२० - ११ अगस्त, २०००) ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी और स्वतंत्रता के बाद वह गांधीवादी दर्शन के अनुरूप महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयासरत रही। वह भारत छोड़ो आंदोलन के समय खुफिया कांग्रेस रेडियो चलाने के कारण पूरे देश में विख्यात हुईं। .

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१ फ़रवरी

1 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 32वां दिन है। साल मे अभी और 333 दिन बाकी है (लीप वर्ष मे 334)। .

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११ सितंबर

11 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 254वॉ (लीप वर्ष में 255 वॉ) दिन है। साल में अभी और 111 दिन बाकी है। .

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१३ जनवरी

१३ जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १३वाँ दिन है। वर्ष में अभी और ३५२ दिन बाकी है (लीप वर्ष में ३५३)। .

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१७ दिसम्बर

17 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 351वॉ (लीप वर्ष मे 352 वॉ) दिन है। साल में अभी और 14 दिन बाकी है। .

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१८६९

१८६९ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९२१

1921 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९२४

1924 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१९२९

1929 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९४४

1944 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१९४८

1948 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१९७२

१९७२ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२ अक्तूबर

2 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 275वॉ (लीप वर्ष में 276 वॉ) दिन है। साल में अभी और 90 दिन बाकी है। .

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२२ नवम्बर

२२ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३२६वॉ (लीप वर्ष मे ३२७ वॉ) दिन है। साल मे अभी और ३९ दिन बाकी हैं। .

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२२ अगस्त

22 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 234वॉ (लीप वर्ष मे 235 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 131 दिन बाकी है। .

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३ जनवरी

3 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 3रॉ दिन है। साल में अभी और 362 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 363)। .

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३० जनवरी

30 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 30वाँ दिन है। साल में अभी और 335 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 336)। .

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४ फ़रवरी

4 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 35वॉ दिन है। साल मे अभी और 330 दिन बाकी है (लीप वर्ष मे 331)। इस दिन श्रीलंका में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। .

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६ नवम्बर

६ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३१०वाँ (लीप वर्ष मे 311 वॉ) दिन है। साल मे अभी और ५५ दिन बाकी है। .

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६ जनवरी

6 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 6वाँ दिन है। साल में अभी और 359 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 360)।.

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९ जनवरी

९ जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ९वाँ दिन है। वर्ष में अभी और ३५६ दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में ३५७)।.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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