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केन्द्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान

सूची केन्द्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान

केन्द्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान, राँची केन्द्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान (Central institute of Psychiatry) झारखण्ड की राजधानी राँची के पास काँके में स्थित भारत का मानसिक स्वास्थ्य का प्रमुख संस्थान है। है। यह भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग द्वारा नियंत्रित है। इसकी स्थापना ब्रिटिश राज के समय १७ मई १९१८ को हुई थी और उस समय इसका नाम 'राँची यूरोपियन लुनैटिक एसाइलम' (Ranchi European Lunatic Asylum) था। यहाँ केवल यूरोपीय मानसिक रोगियों की चिकित्सा की जाती थी। .

9 संबंधों: दुश्चिंता, फोबिया, मनोचिकित्सा, मनोविदलता, मनोग्रसित-बाध्यता विकार, शराब, स्वलीनता, व्यसन, काँके

दुश्चिंता

दुश्चिंता (या, व्यग्रता विकार या घबराहट) (अंग्रेज़ी:Anxiety disorder) एक प्रकार का मनोरोग है। साधारण शब्दों में चिंता या घबराहट आने वाले समय में कुछ बुरा या खराब घटने की आशंका होना है जबकि इनका कोई वास्तविक आधार नहीं होता। थोड़ी-बहुत चिन्ता सभी को होती है और यह हमारे लक्ष्य की प्राप्ति या सफलता के लिए आवश्यक भी है। यदि चिंता बहुत बढ़ जाती है और इसके व्यापक दुष्प्रभाव व्यक्ति के पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन पर पड़ने लगता है तो हम इसे घबराहट और चिंता रोग (Anxiety Disorder) कहते हैं। .

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फोबिया

दुर्भीति या फोबिया (Phobia) एक प्रकार का मनोविकार है जिसमें व्यक्ति को विशेष वस्तुओं, परिस्थितियों या क्रियाओं से डर लगने लगता है। यानि उनकी उपस्थिति में घबराहट होती है जबकि वे चीजें उस वक्त खतरनाक नहीं होती है। यह एक प्रकार की चिन्ता की बीमारी है। इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति को हल्के अनमनेपन से लेकर डर के भयावह दौरा तक पड़ सकता है। दुर्भीति की स्थिति में व्यक्ति का ध्यान कुछ एक लक्षणों पर केन्द्रित हो सकता है, जैसे-दिल का जोर-जोर से धड़कना या बेहोशी लगना। इन लक्षणों से जुड़े हुए कुछ डर होते है जैसे-मर जाने का भय, अपने उपर नियंत्रण खो देने या पागल हो जाने का डर। .

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मनोचिकित्सा

किसी मनोचिकित्सक द्वारा किसी मानसिक रोगी के साथ सम्बन्धपूर्वक बातचीत एवं सलाह मनोचिकित्सा या मनश्चिकित्सा (Psychotherapy) कहलाती है। यह लोगों की व्यवहार सम्बन्धी विविध समस्याओं में बहुत उपयोगी होती है। मनोचिकित्सक कई तरह की तकनीकें प्रयोग करते हैं, जैसे- प्रायोगिक सम्बन्ध-निर्माण, संवाद, संचार तथा व्यवहार-परिवर्तन आदि। इनसे रोगी का मानसिक-स्वास्थ्य एवं सामूहिक-सम्बन्ध (group relationships) सुधरते हैं। डॉ॰ विक्टर फ्रैंकलिन ने गहन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि पूरा मनोविज्ञान और मनोचिकित्सा की पद्धति जीवन की सार्थकता के विचार पर ही आधारित होती हैं। मनोचिकित्सा शास्त्र में किसी रोगी की बुनियादी दिक्कतों को समझने की कोशिश की जाती है। आधुनिक समाज में हम वास्तविक खुशियों से दूर होते जा रहे हैं। आधुनिकता का सही मतलब हम नहीं समझते हैं। जीवन के लिए क्या और कितना जरूरी है। क्या गैर-जरूरी है। आंख मूंद कर, तर्क किए बगैर हम चीजों का अनुसरण करने लग जाते हैं। जीवन का लुत्फ उठाना और पीड़ा की उपेक्षा करना ही केवल मनुष्य को प्रेरित नहीं करती है। मनोचिकित्सा या एक मनोचिकित्सक के साथ व्यक्तिगत परामर्श, एक साभिप्राय अंतर्वैयक्तिक सम्बन्ध होता है, जिसका प्रयोग प्रशिक्षित मनोचिकित्सक एक ग्राहक या रोगी की जीवनयापन संबंधी समस्याओं के निवारण में सहायता के लिए करते हैं। इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति में अपने कल्याण के प्रति भावना को बढाना होता है। मनोचिकित्सक अनुभवजनित सम्बन्ध निर्माण, संवाद, संचार और व्यवहार पर आधारित तकनीकों की एक विस्तृत श्रंखला का प्रयोग करते हैं, इन तकनीकों की संरचना ग्राहक या रोगी के मानसिक स्वास्थ अथवा समूह के साथ उसके व्यवहार में सुधार करने वाली होती है, (जैसे परिवार में रोगी का व्यवहार).

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मनोविदलता

मनोविदलता (Schizophrenia/स्किज़ोफ्रेनिया) एक मानसिक विकार है। इसकी विशेषताएँ हैं- असामान्य सामाजिक व्यवहार तथा वास्तविक को पहचान पाने में असमर्थता। लगभग 1% लोगो में यह विकार पाया जाता है। इस रोग में रोगी के विचार, संवेग तथा व्यवहार में आसामान्य बदलाव आ जाते हैं जिनके कारण वह कुछ समय लिए अपनी जिम्मेदारियों तथा अपनी देखभाल करने में असमर्थ हो जाता है। 'मनोविदलता' और 'स्किज़ोफ्रेनिया' दोनों का शाब्दिक अर्थ है - 'मन का टूटना'। .

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मनोग्रसित-बाध्यता विकार

मनोग्रसित-बाध्यता विकार से ग्रसित कुछ लोग बार-बार हाथ धोते हैं। मनोग्रसित-बाध्यता विकार (Obsessive–compulsive disorder /OCD) एक तरह का चिन्ता विकार है। इस विकार से ग्रसित व्यक्ति एक ही चीज की बार-बार जाँच करने की आवश्यकता अनुभव करता है, कुछ विशेष कामों को बार-बार करता है (जैसे बार-बार हाथ धोना), या कुछ विचार उसके मन में बार-बार आते हैं। अर्थात उस व्यक्ति में बाध्यताओं (कम्पल्सन्स) या मनोग्रस्तियों के लक्षण पाए जाते हैं। ऐसे अन्तर्वेधी (intrusive) विचार आते हैं जिनके कारण बेचैनी, डर, चिन्ता पैदा होती है। इस विकार से ग्रसित व्यक्ति जो काम प्रायः करते हैं, वे ये हैं- बार-बार हाथ धोना, बार-बार वस्तुओं को गिनना, बार-बार जाकर देखना कि दरवाजा बन्द है कि नहीं। ये क्रियाएँ वह इतनी बार करता है कि उसका दैनिक जीवन ही प्रभावित होने लगता है। प्रायः दिन भर में इन कामों में वह कम से कम एक घण्टा तो खपा ही देता है। अधिकांध वयस्क लोगों को यह लगता भी है कि ऐसा व्यवहार का कोई मतलब नहीं है। इसके प्रमुख लक्षण हैं-.

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शराब

सफेद मदिरा लाल मदिरा मदिरा, सुरा या शराब अल्कोहलीय पेय पदार्थ है। रम, विस्की, चूलईया, महुआ, ब्रांडी, जीन, बीयर, हंड़िया, आदि सभी एक है क्योंकि सबमें अल्कोहल होता है। हाँ, इनमें एलकोहल की मात्रा और नशा लाने कि अपेक्षित क्षमता अलग-अलग जरूर होती है परन्तु सभी को हम 'शराब' ही कहते है। कभी-कभी लोग हड़िया या बीयर को शराब से अलग समझते हैं जो कि बिलकुल गलत है। दोनों में एल्कोहल तो होता ही है। शराब अक्सर हमारे समाज में आनन्द के लिए पी जाती है। ज्यादातर शुरूआत दोस्तों के प्रभाव या दबाव के कारण होता है और बाद में भी कई अन्य कारणों से लोग इसका सेवन जारी रखते है। जैसे- बोरियत मिटाने के लिए, खुशी मनाने के लिए, अवसाद में, चिन्ता में, तीव्र क्रोध या आवेग आने पर, आत्माविश्वास लाने के लिए या मूड बनाने के लिए आदि। इसके अतिरिक्त शराब के सेवन को कई समाज में धार्मिक व अन्य सामाजिक अनुष्ठानों से भी जोड़ा जाता है। परन्तु कोई भी समाज या धर्म इसके दुरूपयोग की स्वीकृति नहीं देता है। .

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स्वलीनता

स्वलीनता (ऑटिज़्म) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिन्दी में इसे 'आत्मविमोह' और 'स्वपरायणता' भी कहते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह सब बच्चे के तीन साल होने से पहले ही शुरु हो जाता है।। हिन्दुस्तान लाइव।।७ अक्तूबर, २००९। डॉ अरूण कुमार (मनोवैज्ञानिक) इन लक्षणों का समुच्चय (सेट) आत्मविमोह को हल्के (कम प्रभावी) आत्मविमोह स्पेक्ट्रम विकार (ASD) से अलग करता है, जैसे एस्पर्जर सिंड्रोम। ऑटिज़्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से ही या बाल्यावस्था से नज़र आने लगतें हैं। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो की अपेक्षा असामान्य होता है। .

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व्यसन

व्यसन या आसक्ति (Addiction) की विशेषता है कि दुष्परिणामों के बावजूद व्यक्ति को ड्रग/अल्कोहल की बाध्यकारी लत लग जाती है। व्यसन को एक जीर्ण मानसिक रोग भी कह सकते हैं। मादक द्रव्य वैसे पदार्थ को कहते हैं जिनके सेवन से नशे का अनुभव होता है तथा लगातार सेवन करने से व्यक्ति उसका आदी बन जाता है। हमारे समाज में कई प्रकार के मादक द्रव्यों का प्रचलन है जैसे- शराब, ह्वीस्की, रम, बीयर, महुआ, हंड़िया आदि सामाजिक मान्यता प्राप्त वैध पदार्थ हैं। अनेक अवैध पदार्थ भी काफी प्रचलित हैं जैसे- भाँग, गांजा, चरस, हेरोइन, ब्राउन सुगर तथा कोकिन आदि। डाक्टरों द्वारा नींद के लिए या चिन्ता या तनाव के लिए लिखी दवाइयों का उपयोग भी मादक द्रव्यों के रूप में होता है। तम्बाकूयुक्त पदार्थ जैसे सिगरेट, खैनी, जर्दा, गुटखा, बीड़ी आदि भी इनके अन्तर्गत आते हैं। इनके अलावे कुछ पदार्थों का भी प्रचलन देखा जाता है जैसे- कफ सीरप, फेन्सीडिल या कोरेक्स का सेवन। वाष्पशील विलायक (वोलाटाइल सोलवेन्ट) यानि वैसे रासायनिक पदार्थों का सेवन जिनके वाष्प को श्वास द्वारा खींचने पर शराब के नशे से मिलता-जुलता असर होता है, जैसे-पेट्रोल, नेल पॉलिश रिमूभर, पेन्ट्स, ड्राई क्लीनींग सोल्यूसन आदि भी मादक पदार्थ हैं। .

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काँके

काँके बाँध काँके झारखण्ड के राँची जिले का एक कस्बा है। यहाँ पर एक विशाल जलाशय है जिसे 'कांके बांध' कहते हैं। इसी से राँची शहर को जल आपूर्ति की जाती है। यहाँ का केन्द्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त यहाँ बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, कोयला प्रबन्धन संस्थान, पशुचिकित्सा संस्थान एवं कुछ अन्य संस्थान स्थित हैं। रांची रेलवे स्टेशन से कांके डैम की दूरी पांच किलोमीटर है। श्रेणी:झारखण्ड का भूगोल.

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