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कशेरुकी प्राणी

सूची कशेरुकी प्राणी

कशेरुकी जन्तु कशेरुकी या कशेरुकदंडी (वर्टेब्रेट, Vertebrate) प्राणिसाम्राज्य के कॉरडेटा (Chordata) समुदाय का सबसे बड़ा उपसमुदाय है। जिसके सदस्यों में रीढ़ की हड्डियाँ (backbones) या पृष्ठवंश (spinal comumns) विद्यमान रहते हैं। इस समुदाय में इस समय लगभग 58,000 प्रजातियाँ वर्णित हैं। इसमें बिना जबड़े वाली मछलियां, शार्क, रे, उभयचर, सरीसृप, स्तनपोषी तथा चिड़ियाँ शामिल हैं। ज्ञात जन्तुओं में लगभग 5% कशेरूकी हैं और शेष अकेशेरूकी। .

69 संबंधों: चौपाये, चीता, टेस्टोस्टेरॉन, ऐम्नीओट, ऐक्टिनोप्टरिजियाए, डायनासोर, डार्टर, ड्यूटेरोस्टोमिया, डोडो, दृष्टि पटल, न्यूरॉन, नीला विल्डबीस्ट, पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना, पर्सिफ़ोर्मेज़, पासरीफ़ोर्मीज़, पित्त, पित्त-वाहिनी, प्राणी, पृथ्वी का इतिहास, पैर, पीनियल ग्रंथि, बंदर, बुलबुल, भूवैज्ञानिक समय-मान, रज्जुकी, रंगहीनता, लाल रक्त कोशिका, शिश्न, शुतुरमुर्ग, श्रीलंका के वन्य जीव, सरीसृप, सार्कोप्टरिजियाए, स्तनधारी, स्तनिकी, स्क्वमाटा, सैलामैंडर, हाँगर, हाथी, हृदय, हीमोग्लोबिन, ज़ीब्रा, जैव संरक्षण, जीव, जीव (हिन्दू धर्म), घड़ियाल, घड़ियाल, पशु, विल्डबीस्ट, विषाणु विज्ञान, खरगोश, गर्दन, ..., गंगा सूंस (डॉल्फिन), गुर्दा, ग्रहणी, गौर, गैलापागोस कछुआ, ऑस्टियोपोरोसिस, ऑक्सीटॉसिन, ओस्टीइक्थीज़​, आन्तर कर्ण, आमाशय (पेट), इरावदी डालफिन, कठफोड़वा, कबूतर, कशेरुक जीवाश्मिकी, कशेरुकदंडी भ्रूणतत्व, काला विल्डबीस्ट, कॉन्ड्रीइक्थीज़, अग्न्याशय, अकशेरुकी प्राणी सूचकांक विस्तार (19 अधिक) »

चौपाये

चौपाये (Tetrapod) या चतुरपाद उन प्राणियों का महावर्ग है जो पृथ्वी पर चार पैरों पर चलने वाले सर्वप्रथम कशेरुकी (यानि रीढ़-वाले) प्राणियों के वंशज हैं। इसमें सारे वर्तमान और विलुप्त उभयचर (ऐम्फ़िबियन), सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल), पक्षी और कुछ विलुप्त मछलियाँ शामिल हैं। यह सभी आज से लगभग ३९ करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के डिवोनी कल्प में उत्पन्न हुई कुछ समुद्री लोब-फ़िन मछलियों से क्रम-विकसित हुए थे। चौपाये सब से पहले कब समुद्र से निकल कर ज़मीन पर फैलने लगे, इस बात को लेकर अनुसंधान व बहस जीवाश्मशास्त्रियों में जारी है। हालांकि वर्तमान में अधिकतर चौपाई जातियाँ धरती पर रहती हैं, पृथ्वी की पहली चौपाई जातियाँ सभी समुद्री थीं। उभयचर अभी-भी अर्ध-जलीय जीवन व्यतीत करते हैं और उनका आरम्भ पूर्णतः जल में रहने वाले मछली-रूपी बच्चें से होता है। लगभग ३४ करोड़ वर्ष पूर्व ऐम्नीओट (Amniotes) उत्पन्न हुये, जिनके शिशुओं का पोषण अंडों में या मादा के गर्भ में होता है। इन ऐम्नीओटों के वंशजों ने पानी में अंडे छोड़ने-वाले उभयचरों की अधिकतर जातियों को विलुप्त कर दिया हालांकि कुछ वर्तमान में भी अस्तित्व में हैं। आगे चलकर यह ऐम्नीओट भी दो मुख्य शाखाओं में बंट गये। एक शाखा में छिपकलियाँ, डायनासोर, पक्षी और उनके सम्बन्धी उत्पन्न हुए, जबकि दूसरी शाखा में स्तनधारी और उनके अब-विलुप्त सम्बन्धी विकसित हुए। जहाँ मछलियों में क्रम-विकास से चार-पाऊँ बनकर चौपाये बने थे, वहीं सर्प जैसे कुछ चौपायों में क्रम-विकास से ही यह पाऊँ ग़ायब हो गये। कुछ ऐसे भी चौपाये थे जो वापस समुद्री जीवन में चले गये, जिनमें ह्वेल शामिल है। फिर-भी जीववैज्ञानिक दृष्टि से चौपायों के सभी वंशज चौपाये ही समझे जाते हैं, चाहें उनके पाँव हो या नहीं और चाहे वे समुद्र में रहें या धरती पर। .

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चीता

बिल्ली के कुल (विडाल) में आने वाला चीता (एसीनोनिक्स जुबेटस) अपनी अदभुत फूर्ती और रफ्तार के लिए पहचाना जाता है। यह एसीनोनिक्स प्रजाति के अंतर्गत रहने वाला एकमात्र जीवित सदस्य है, जो कि अपने पंजों की बनावट के रूपांतरण के कारण पहचाने जाते हैं। इसी कारण, यह इकलौता विडाल वंशी है जिसके पंजे बंद नहीं होते हैं और जिसकी वजह से इसकी पकड़ कमज़ोर रहती है (अतः वृक्षों में नहीं चढ़ सकता है हालांकि अपनी फुर्ती के कारण नीची टहनियों में चला जाता है)। ज़मीन पर रहने वाला ये सबसे तेज़ जानवर है जो एक छोटी सी छलांग में १२० कि॰मी॰ प्रति घंटे ऑलदो एकोर्डिंग टू चीता, ल्यूक हंटर और डेव हम्मन (स्ट्रुइक प्रकाशक, 2003), pp.

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टेस्टोस्टेरॉन

टेस्टोस्टेरॉन एंड्रोजन समूह का एक स्टीरॉएड हार्मोन है। स्तनपाइयों में टेस्टॉस्टेरॉन प्राथमिक रूप से नरों में अंडकोष से व मादाओं में अंडाशय से स्रावित होता है। हालांकि कुछ मात्रा अधिवृक्क ग्रंथि से भी स्रवित होती है।। हिन्दुस्तान लाइव। १६ मार्च २०१० यह प्रधान नर-सेक्स हार्मोन एवं एक एनाबोलिक स्टीरॉएड होता है। टेस्टोस्टेरॉन पुरुष यौन लक्ष्णों के विकास को बढ़ाता है और इसका संबंध यौन क्रियाकलापों, रक्त संचरण और मांसपेशियों के परिमाण के साथ साथ एकाग्रता, मूड और स्मृति से भी होता है। जब कोई पुरुष चिड़चिड़ा या गुस्सैल हो जाता है तो लोग इसे उसके काम या आयु का प्रभाव मानते हैं, पर यह टेस्टोस्टेरॉन की कमी से भी होता है। एक परीक्षण के अनुसार, इससे प्रभावित अधिकतर लोग ३५ साल से कम आयु के थे और कुछ की तो एक दो साल पहले ही शादी हुई थी। इसके अनुसार टेस्टोस्टेरॉन का स्तर निर्णय लेने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और जिन रोगियों मेंउनकी जानकारी के बगैर इसका स्तर बढ़ाया गया, उनका सामाजिक व्यवहार अन्य की तुलना में समाज के प्रति अधिक सकारात्मक हो गया। जिन रोगियों का मानना था कि टेस्टोस्टेरॉन अधिकता से आक्रामक व्यवहार उत्पन्न होता है अथवा जिन्होंने जानकारी में मात्रा ली, उनका प्रदर्शन अपेक्षाकृत कम ठीक रहा। पुरुषत्व के हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन मांसपेशियां सुगठित बनाने में भी सहायक होता है। चिकित्सकों के अनुसार टेस्टोस्टेरॉन की अधिक मात्र के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। आर्थिक दबावों और बढ़ती महंगाई के अलावा सामाजिक समस्याओं के कारण पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन के स्तर में गिरावट सकती है और यह गिरावट अंततः स्तंभन ह्रास जैसी समस्याएं पैदा करती हैं। हाल के वर्षो में पति पत्नी घर, परिवार एवं दाम्पत्य संबंधों के बजाय व्यवसाय, वेतन और पैसे आदि को लेकर ही अधिक चिंता का वातावरण बना है। इनसे प्रभावित व्यक्ति के अंदर उपस्थित टेस्टोस्टेरॉन का स्तर उसके सामाजिक व्यवहारों को प्रभावित करता है। यह लोगों की मानसिक शांति के साथ-साथ उनके यौन जीवन पर ही ग्रहण लगा रही है। इससे पुरुषों में यौन शक्ति पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लंबे समय तक बना रहने वाला तनाव पुरुषों में उक्त हार्मोन के स्तर को कम कर सकता है। टेस्टोस्टेरॉन क्रम-विकास से ही अधिकतर कशेरुकियों में संरक्षित है, हालांकि मछलियों में भी ये एक अन्य रूप में, ११-कीटोटेस्टॉस्टेरॉन नाम से मिलता है। .

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ऐम्नीओट

उल्बीय प्राणी या ऐम्नीओट (Amniotes) ऐसे कशेरुकी (रीढ़-वाले) चौपाये प्राणियों का क्लेड (समूह) है जो या तो अपने अंडे धरती पर देते हैं या जन्म तक अपने शिशु का आरम्भिक पोषण मादा के गर्भ के अंदर ही करते हैं। सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल) और पक्षी तीनों ऐम्नीओटों की श्रेणी में आते हैं। इसके विपरीत उभयचर (ऐम्फ़िबियन) और मछलियाँ ग़ैर-ऐम्नीओट या अनैम्निओट (anamniotes) होते हैं जो अधिकतर अपने अंडे जल में देते हैं। ऐम्नीओट चौपाये होते हैं (चार-पाँव और रीढ़ वाले प्राणियों के वंशज) और इनके अंडों में उल्ब (amniotic fluid, द्रव) भरा होता है - चाहे वे किसी छिलके में मादा से बाहर हो या फिर मादा के गर्भ के भीतर पनप रहें हो। इस उल्ब के कारण ऐम्नीओटों को बच्चे जनने के लिये किसी भी समुद्री या अन्य जलीय स्थान जाने की कोई आवश्यकता नहीं। इसके विपरीत ग़ैर-ऐम्नीओटों को अपने अंडे किसी जल-युक्त स्थान पर या सीधा समुद्र में ही देने की ज़रूरत होती है। यह अंतर क्रम-विकास (इवोल्यूशन) में एक बड़ा पड़ाव था जिस कारण से चौपाये समुद्र से निकलकर पृथ्वी के ज़मीनी क्षेत्रों पर फैल पाये। .

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ऐक्टिनोप्टरिजियाए

ऐक्टिनोप्टरिजियाए (Actinopterygii) या किरण-फ़िन मछलियाँ (ray-finned fishes) वह हड्डीदार मछलियाँ होती हैं जिनके फ़िन (पर) का ढांचा उनके धड़ से किरणों की तरह निकलती कई हड्डियों से बना होता है जिसके ऊपर मांस और त्वचा लगी होती है। इनके विपरीत हड्डीदार मछलियों की दूसरी मुख्य श्रेणी है, जिसे सार्कोप्टरिजियाए (Sarcopterygii) या लोब-फ़िन मछलियाँ (lobe-finned fishes) कहते हैं, जिनमें फ़िन केवल एक मुख्य हड्डी से उनके धड़ से जुड़े होते है और उस हड्डी के इर्द-गिर्द फ़िन एक लोब (पालि) की तरह बना होता है।, Reed Wicander, James S. Monroe, pp.

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डायनासोर

डायनासोर जिसका अर्थ यूनानी भाषा में बड़ी छिपकली होता है लगभग 16 करोड़ वर्ष तक पृथ्वी के सबसे प्रमुख स्थलीय कशेरुकी जीव थे। यह ट्राइएसिक काल के अंत (लगभग 23 करोड़ वर्ष पहले) से लेकर क्रीटेशियस काल (लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले), के अंत तक अस्तित्व में रहे, इसके बाद इनमें से ज्यादातर क्रीटेशियस -तृतीयक विलुप्ति घटना के फलस्वरूप विलुप्त हो गये। जीवाश्म अभिलेख इंगित करते हैं कि पक्षियों का प्रादुर्भाव जुरासिक काल के दौरान थेरोपोड डायनासोर से हुआ था और अधिकतर जीवाश्म विज्ञानी पक्षियों को डायनासोरों के आज तक जीवित वंशज मानते हैं। हिन्दी में डायनासोर शब्द का अनुवाद भीमसरट है जिस का संस्कृत में अर्थ भयानक छिपकली है। डायनासोर पशुओं के विविध समूह थे। जीवाश्म विज्ञानियों ने डायनासोर के अब तक 500 विभिन्न वंशों और 1000 से अधिक प्रजातियों की पहचान की है और इनके अवशेष पृथ्वी के हर महाद्वीप पर पाये जाते हैं। कुछ डायनासोर शाकाहारी तो कुछ मांसाहारी थे। कुछ द्विपाद तथा कुछ चौपाये थे, जबकि कुछ आवश्यकता अनुसार द्विपाद या चतुर्पाद के रूप में अपने शरीर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकते थे। कई प्रजातियां की कंकालीय संरचना विभिन्न संशोधनों के साथ विकसित हुई थी, जिनमे अस्थीय कवच, सींग या कलगी शामिल हैं। हालांकि डायनासोरों को आम तौर पर उनके बड़े आकार के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ डायनासोर प्रजातियों का आकार मानव के बराबर तो कुछ मानव से छोटे थे। डायनासोर के कुछ सबसे प्रमुख समूह अंडे देने के लिए घोंसले का निर्माण करते थे और आधुनिक पक्षियों के समान अण्डज थे। "डायनासोर" शब्द को 1842 में सर रिचर्ड ओवेन ने गढ़ा था और इसके लिए उन्होंने ग्रीक शब्द δεινός (डीनोस) "भयानक, शक्तिशाली, चमत्कारिक" + σαῦρος (सॉरॉस) "छिपकली" को प्रयोग किया था। बीसवीं सदी के मध्य तक, वैज्ञानिक समुदाय डायनासोर को एक आलसी, नासमझ और शीत रक्त वाला प्राणी मानते थे, लेकिन 1970 के दशक के बाद हुये अधिकांश अनुसंधान ने इस बात का समर्थन किया है कि यह ऊँची उपापचय दर वाले सक्रिय प्राणी थे। उन्नीसवीं सदी में पहला डायनासोर जीवाश्म मिलने के बाद से डायनासोर के टंगे कंकाल दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रमुख आकर्षण बन गए हैं। डायनासोर दुनियाभर में संस्कृति का एक हिस्सा बन गये हैं और लगातार इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें डायनासोर पर आधारित हैं, साथ ही जुरासिक पार्क जैसी फिल्मों ने इन्हें पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे जुड़ी नई खोजों को नियमित रूप से मीडिया द्वारा कवर किया जाता है। .

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डार्टर

डार्टर या स्नेकबर्ड, एनहिंगिडे परिवार के मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय जलपक्षी हैं। इसकी चार जीवित प्रजातियां हैं जिनमें से तीन बहुत ही आम हैं और दूर-दूर तक फ़ैली हुई हैं जबकि चौथी प्रजाति अपेक्षाकृत दुर्लभ है और आईयूसीएन (IUCN) द्वारा इसे लगभग-विलुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है। "स्नेकबर्ड" शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर किसी संयोजन के बिना किसी भी एक क्षेत्र में पायी जाने वाली पूरी तरह से एलोपैट्रिक प्रजातियों के बारे में बताने करने के लिए किया जाता है। इसका संदर्भ उनकी लंबी पतली गर्दन से है जिसका स्वरूप उस समय सांप-की तरह हो जाता है जब वे अपने शरीर को पानी में डुबाकर तैरती हैं या जब साथी जोड़े अपनी अनुनय प्रदर्शन के दौरान इसे मोड़ते हैं। "डार्टर" का प्रयोग किसी विशेष प्रजाति के बारे में बताने के क्रम में एक भौगोलिक शब्दावली के साथ किया जाता है। इससे भोजन प्राप्त करने के उनके तरीके का संकेत मिलता है क्योंकि वे मछलियों को अपने पतली, नुकीली चोंच में फंसा लेती हैं। अमेरिकन डार्टर (ए. एन्हिंगा) को एन्हिंगा के रूप में भी जाना जाता है। एक स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष कारण से दक्षिणी अमेरिका में इसे वाटर टर्की कहा जाता है; हालांकि अमेरिकन डार्टर जंगली टर्की से काफी हद तक असंबद्ध होता है, ये बड़ी और काले रंग की होती हैं जिनके पास लंबी पूंछ होती है जिससे कभी-कभी भोजन के लिए शिकार किया जाता है। Answers.com, बीएलआई (BLI) (2009), मायर्स आदि.

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ड्यूटेरोस्टोमिया

ड्यूटेरोस्टोमिया (Deuterostomia, लातीनी भाषा में अर्थ: दूसरा मुँह) प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक अधिसंघ है। यह अपनी बहन क्लेड, प्रोटोस्टोमिया, के साथ अपने से ऊँचा नेफ़्रोज़ोआ (Nephrozoa) नामक क्लेड बनाता है। ड्यूटेरोस्टोमिया और प्रोटोस्टोमिया के सदस्य प्राणियों में यह अंतर है कि ड्यूटेरोस्टोमिया के भ्रूण (एम्ब्रियो) के विकास में सबसे पहले जो छिद्र खुलता है वह गुदा बनता है जबकि अधिकतर प्रोटोस्टोमिया भ्रूण में सबसे पहले विकसित होने वाला छिद्र उसका मुँह होता है। नेफ़्रोज़ोआ स्वयं बाइलेटेरिया क्लेड का सदस्य है। .

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डोडो

डोडो (रैफस कुकुलैटस) हिंद महासागर के द्वीप मॉरीशस का एक स्थानीय पक्षी था। यह पक्षी वर्ग में होते हुए भी थलचर था, क्योंकि इसमे उड़ने की क्षमता नहीं थी। १७वीं सदी के अंत तक यह पक्षी मानव द्वारा अत्याधिक शिकार किये जाने के कारण विलुप्त हो गया। यह पक्षी कबूतर और फाख्ता के परिवार से संबंधित था। यह मुर्गे के आकार का लगभग एक मीटर उँचा और २० किलोग्राम वजन का होता था। इसके कई दुम होती थीं। यह अपना घोंसला ज़मीन पर बनाता था, तथा इसकी खुराक में स्थानीय फल शामिल थे। डोडो मुर्गी से बड़े आकार का भारी-भरकम, गोलमटोल पक्षी था। इसकी टांगें छोटी व कमजोर थीं, जो उसका वजन संभाल नहीं पाती थीं। इसके पंख भी बहुत ही छोटे थे, जो डोडो के उड़ने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इस कारण यह न तेज दौड़ सकता था, न उड़ सकता था। रंग-बिरंगे डोडो झुंड में लुढ़कते-गिरते चलते थे, तो स्थानीय लोगों का मनोरंजन होता था। डोडो शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द दोउदो से हुई है, जिसका अर्थ मूर्ख या बावला होता है। कहा जाता है कि उन्होंने डोडो पक्षी को मुगल दरबार में भी पेश किया था, जहाँ के दरबारी चित्रकार ने इस विचित्र और बेढंगे पक्षी का चित्र भी बनाया था। कुछ प्राणिशास्त्रियों के अनुसार पहले अतीत में उड़ानक्षम डोडो, परिस्थितिजन्य कारणों से धीरे-धीरे उड़ने की क्षमता खो बैठे। अब डोडो मॉरीशस के राष्ट्रीय चिह्न में दिखता है। इसके अलावा डोडो की विलुप्ति को मानव गतिविधियों के कारण हुई न बदलने वाली घटनाओं के एक उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। मानवों के मॉरीशस द्वीप पर आने से पूर्व डोडो का कोई भी प्राकृतिक शिकारी इस द्वीप पर नहीं था। यही कारण है कि यह पक्षी उड़ान भरने मे सक्षम नहीं था। इसका व्यवहार मानवों के प्रति पूरी तरह से निर्भीक था और अपनी न उड़ पाने की क्षमता के कारण यह आसानी से शिकार बन गया। .

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दृष्टि पटल

कशेरुकी जीवों में दृष्टि पटल, आंख के अंदर एक प्रकाश-संवेदी ऊतक पर्त को कहते हैं। आंख की प्रणाली एक लेंस की सहायता से इस पटल पर सामने का दृष्य प्रकाश रूप में उतारती है और ये पटल लगभग एक फिल्म कैमरा की भांति उसे रासायनिक एवं विद्युत अभिक्रियाओं की एक श्रेणी के द्वारा तंत्रिकाओं को भेज देता है। ये मस्तिष्क के दृष्टि केन्द्रों को दृष्टि तंत्रिकाओं द्वाआ भेज दिये जाते हैं। .

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न्यूरॉन

तंत्रिका कोशिकाओं तंत्रिकोशिका या तंत्रिका कोशिका (अंग्रेज़ी:न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र में स्थित एक उत्तेजनीय कोशिका है। इस कोशिका का कार्य मस्तिष्क से सूचना का आदान प्रदान और विश्लेषण करना है।। हिन्दुस्तान लाइव। १ फ़रवरी २०१० यह कार्य एक विद्युत-रासायनिक संकेत के द्वारा होता है। तंत्रिका कोशिका तंत्रिका तंत्र के प्रमुख भाग होते हैं जिसमें मस्तिष्क, मेरु रज्जु और पेरीफेरल गैंगिला होते हैं। कई तरह के विशिष्ट तंत्रिका कोशिका होते हैं जिसमें सेंसरी तंत्रिका कोशिका, अंतरतंत्रिका कोशिका और गतिजनक तंत्रिका कोशिका होते हैं। किसी चीज के स्पर्श छूने, ध्वनि या प्रकाश के होने पर ये तंत्रिका कोशिका ही प्रतिक्रिया करते हैं और यह अपने संकेत मेरु रज्जु और मस्तिष्क को भेजते हैं। मोटर तंत्रिका कोशिका मस्तिष्क और मेरु रज्जु से संकेत ग्रहण करते हैं। मांसपेशियों की सिकुड़न और ग्रंथियां इससे प्रभावित होती है। एक सामान्य और साधारण तंत्रिका कोशिका में एक कोशिका यानि सोमा, डेंड्राइट और कार्रवाई होते हैं। तंत्रिका कोशिका का मुख्य हिस्सा सोमा होता है। तंत्रिका कोशिका को उसकी संरचना के आधार पर भी विभाजित किया जाता है। यह एकध्रुवी, द्विध्रुवी और बहुध्रुवी (क्रमशः एकध्रुवीय, द्विध्रुवीय और बहुध्रुवीय) होते हैं। तंत्रिका कोशिका में कोशिकीय विभाजन नहीं होता है जिससे इसके नष्ट होने पर दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। किन्तु इसे स्टेम कोशिका के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि अस्थिकणिका को तंत्रिका कोशिका में बदला जा सकता है। तंत्रिका कोशिका शब्द का पहली बार प्रयोग जर्मन शरीर विज्ञानशास्त्री हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर ने किया था। २०वीं शताब्दी में पहली बार तंत्रिका कोशिका प्रकाश में आई जब सेंटिगयो रेमन केजल ने बताया कि यह तंत्रिका तंत्र की प्राथमिक प्रकार्य इकाई होती है। केजल ने प्रस्ताव दिया था कि तंत्रिका कोशिका अलग कोशिकाएं होती हैं जो कि विशिष्ट जंक्शन के द्वारा एक दूसरे से संचार करती है। तंत्रिका कोशिका की संरचना का अध्ययन करने के लिए केजल ने कैमिलो गोल्गी द्वारा बनाए गए सिल्वर स्टेनिंग तरीके का प्रयोग किया। मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका की संख्या प्रजातियों के आधार पर अलग होती है। एक आकलन के मुताबिक मानव मस्तिष्क में १०० अरब तंत्रिका कोशिका होते हैं। टोरंटो विश्वविद्यालय में हुए अनुसंधान में एक ऐसे प्रोभूजिन की पहचान हुई है जिसकी मस्तिष्क में तंत्रिकाओं के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रोभूजिन की सहायता से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को और समझना भी सरल होगा व अल्जामरर्स जैसे रोगों के कारण भी खोजे जा सकेंगे। एसआर-१०० नामक यह प्रोभूजिन केशरूकीय क्षेत्र में पाया जाता है साथ ही यह तंत्रिका तंत्र का निर्माण करने वाले जीन को नियंत्रित करता है। एक अमरीकी जरनल सैल (कोशिका) में प्रकाशित बयान के अनुसार स्तनधारियों के मस्तिष्क में विभिन्न जीनों द्वारा तैयार किए गए आनुवांशिक संदेशों के वाहन को नियंत्रित करता है। इस अध्ययन का उद्देश्य ऐसे जीन की खोज करना था जो मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका के निर्माण को नियंत्रित करते हैं। ऎसे में तंत्रिका कोशिका के निर्माण में इस प्रोभूजिन की महत्त्वपूर्ण भूमिका की खोज तंत्रिका कोशिका के विकास में होने वाली कई अपसामान्यताओं से बचा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिका निर्माण के समय कुछ गलत संदेशों वाहन से तंत्रिका कोशिका का निर्माण प्रभावित होता है। तंत्रिका कोशिका का विकृत होना अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों के कारण भी होता है। इस प्रोभूजिन की खोज के बाद इस दिशा में निदान की संभावनाएं उत्पन्न हो गई हैं। .

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नीला विल्डबीस्ट

नीला विल्डबीस्ट, सामान्य विल्डबीस्ट या सफ़ेद दाढ़ी वाला विल्डबीस्ट विल्डबीस्ट की दो जातियों में से एक है। इसका सबसे करीबी रिश्तेदार काला विल्डबीस्ट है। यह जाति अफ़्रीका महाद्वीप में पाई जाती है। यह खुले मैदानों में, दक्षिण अफ़्रीका और पूर्वी अफ़्रीका के खुले जंगलों में पाये जाते हैं और २० वर्ष से अधिक उम्र तक जीवित रहते हैं। नर अपने क्षेत्र की रक्षा के मामले में बहुत उग्र होता है और अपने क्षेत्र को जताने के लिए गंध और अन्य तरीकों का इस्तेमाल करता है। इनकी सबसे बड़ी संख्या सेरेंगेटी, तंज़ानिया में है जहाँ यह १० लाख से भी ज़्यादा हैं। इनके प्रमुख शिकारी सिंह, लकड़बग्घे और नील नदी के मगरमच्छ होते हैं। कभी-कभी २ से ३ चीतों को भी इनका शिकार करते देखा गया है। इनका शिकार झुण्ड में अफ़्रीका के जंगली कुत्ते भी करते हैं। नर की कंधे तक औसतन ऊँचाई १४५ से.मी.

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पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना

पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना (Permian–Triassic extinction event) पृथ्वी के पेलियोज़ोइक (पुराजीवी) महाकल्प के पर्मियन कहलाने वाले अंतिम युग और उसके उपरांत आने वाले ट्राइऐसिक युग के बीच घटित विलुप्ति घटना को कहते हैं। आज से लगभग २५.२ करोड़ वर्ष पूर्व घटी इस महाविलुप्ति में पृथ्वी की लगभग ९६% समुद्री जीव जातियाँ और ज़मीन पर रहने वाली लगभग ७०% कशेरुकी (रीढ़-वाली) जीव जातियाँ हमेशा के लिये विलुप्त हो गई। यह पृथ्वी के अब तक के पूरे इतिहास की सब से भयंकर महाविलुप्ति रही है। यह पृथ्वी की इकलौती ज्ञात विलुप्ति घटना है जिसमें कीटों की भी सामूहिक विलुप्ति हुई। अनुमान लगाया जाता है कि, कुल मिलाकर ७०% जीववैज्ञानिक कुल (families) और ८३% जीववैज्ञानिक वंश (genera) विनाशित हो गये। इतने बड़े पैमाने पर जैव विविधता खोने के बाद पृथ्वी को फिर से पूरी तरह जीवों से परिपूर्ण होते हुए अन्य विलुप्ति घटनाओं की तुलना में अधिक समय लगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि विश्व में फिर जीव-संख्या और विविधता बनते-बनते १ करोड़ वर्ष लग गये। .

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पर्सिफ़ोर्मेज़

पर्सिफ़ोर्मेज़ (Perciformes) कशेरुकी जन्तुओं (रीढ़ की हड्डी वाले) का सबसे बड़ा जीववैज्ञानिक गण है जिसमें लगभग ४०% हड्डीदार मछलियाँ आती हैं। लातिनी भाषा में 'पर्सिफ़ोर्मेज़' का मतलब 'पर्च-जैसी' होता है। यह मछलियाँ किरण-फ़िन मछलियों के जीववैज्ञानिक वर्ग का भाग हैं और इसमें लगभग सभी जलीय वातावरणों में मिलने वाली लगभग १०,००० मछलियों की जातियाँ आती हैं। पर्सिफ़ोर्मेज़ मछलियों के आकार में भी किसी भी अन्य कशेरुकी गण से अधिक विवधता है: कुछ जातियाँ केवल ७ मिलीमीटर और कुछ १६ फ़ुट (५ मीटर​) तक लम्बी होती हैं।, Thomas Scott, pp.

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पासरीफ़ोर्मीज़

पासरीफ़ोर्मीज़ (Passeriformes) पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक गण है जिसमें सभी ज्ञात पक्षी जातियों की लगभग ५०% जातियाँ शामिल हैं। इन पक्षियों की विशेषता यह है कि इनके पाँव के तीन पंजे आगे की ओर और एक पंजा पीछे की ओर सज्जित होता है। इस से वे किसी टहनी या अन्य पतली वस्तु को आसानी से जकड़कर उसपर संतुलित प्रकार से देर तक बैठने में सक्षम हैं। यह कशेरुक (रीढ़दार) प्राणियों के सबसे विविध जीववैज्ञानिक गणों में से एक है। पासरीफ़ोर्मीज़ की ५,००० से भी अधिक जातियाँ हैं और चौपाये प्राणियों में केवल सरिसृपों के स्क्वमाटा गण में ही इस से अधिक जातियाँ पाई जाती हैं। .

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पित्त

लीवर की बायोप्सी करने पर '''पित्त''' पीले रंग में दिखायी दे रहा है। शरीररचना-विज्ञान तथा पाचन के सन्दर्भ में, पित्त (Bile या gall) गहरे हरे या पीले रंग का द्रव है जो पाचन में सहायक होता है। यह कशेरुक प्राणियों के यकृत (लीवर) में बनता है। मानव के शरीर में यकृत द्वारा पित्त का सतत उत्पादन होता रहता है जो पित्ताशय में एकत्र होता रहता है। .

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पित्त-वाहिनी

पित्त-वाहिनी (bile duct) एक या एक से अधिक उन नलिकाओं को कहते हैं जो कशेरुक प्राणियों के पित्ताशय से पित्त को लेकर ग्रहणी तक पहुँचाती हैं। श्रेणी:पाचन तंत्र.

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प्राणी

प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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पैर

पैर या पाँव किसी कशेरुकी प्राणी के शरीर की टाँग के अंत पर स्थित अंग होता है। अक्सर इस पैर का तलुआ धरती के साथ लगकर प्राणी का भार उठाने और उसके चलने में सहायक होता है। .

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पीनियल ग्रंथि

पीनियल ग्रंथि (जिसे पीनियल पिंड, एपिफ़ीसिस सेरिब्रि, एपिफ़ीसिस या "तीसरा नेत्र" भी कहा जाता है) पृष्ठवंशी मस्तिष्क में स्थित एक छोटी-सी अंतःस्रावी ग्रंथि है। यह सेरोटोनिन व्युत्पन्न मेलाटोनिन को पैदा करती है, जोकि जागने/सोने के ढर्रे तथा मौसमी गतिविधियों का नियमन करने वाला हार्मोन है। इसका आकार एक छोटे से पाइन शंकु से मिलता-जुलता है (इसलिए तदनुसार नाम) और यह मस्तिष्क के केंद्र में दोनों गोलार्धों के बीच, खांचे में सिमटी रहती है, जहां दोनों गोलकार चेतकीय पिंड जुड़ते हैं। .

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बंदर

बंदर एक मेरूदण्डी, स्तनधारी प्राणी है। इसके हाथ की हथेली एवं पैर के तलुए छोड़कर सम्पूर्ण शरीर घने रोमों से ढकी है। कर्ण पल्लव, स्तनग्रन्थी उपस्थित होते हैं। मेरूदण्ड का अगला भाग पूँछ के रूप में विकसित होता है। हाथ, पैर की अँगुलियाँ लम्बी नितम्ब पर मांसलगदी है। .

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बुलबुल

बुलबुल, शाखाशायी गण के पिकनोनॉटिडी कुल (Pycnonotidae) का पक्षी है और प्रसिद्ध गायक पक्षी "बुलबुल हजारदास्ताँ" से एकदम भिन्न है। ये कीड़े-मकोड़े और फल फूल खानेवाले पक्षी होते हैं। ये पक्षी अपनी मीठी बोली के लिए नहीं, बल्कि लड़ने की आदत के कारण शौकीनों द्वारा पाले जाते रहे हैं। यह उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है। बुलबुल कलछौंह भूरे मटमैले या गंदे पीले और हरे रंग के होते हैं और अपने पतले शरीर, लंबी दुम और उठी हुई चोटी के कारण बड़ी सरलता से पहचान लिए जाते हैं। विश्व भर में बुलबुल की कुल ९७०० प्रजातियां पायी जाती हैं। इनकी कई जातियाँ भारत में पायी जाती हैं, जिनमें "गुलदुम बुलबुल" सबसे प्रसिद्ध है। इसे लोग लड़ाने के लिए पालते हैं और पिंजड़े में नहीं, बल्कि लोहे के एक (अंग्रेज़ी अक्षर -टी) (T) आकार के चक्कस पर बिठाए रहते हैं। इनके पेट में एक पेटी बाँध दी जाती है, जो एक लंबी डोरी के सहारे चक्कस में बँधी रहती है। .

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भूवैज्ञानिक समय-मान

यह घड़ी भूवैज्ञानिक काल के प्रमुख ईकाइयों के के साथ-साथ पृथ्वी के जन्म से लेकर आज तक की प्रमुख घटनाओं को भी दिखा रही है। भूवैज्ञानिक समय-मान (geologic time scale) कालानुक्रमिक मापन की एक प्रणाली है जो स्तरिकी (stratigraphy) को समय के साथ जोड़ती है। यह एक स्तरिक सारणी (stratigraphic table) है। भूवैज्ञानिक, जीवाश्मवैज्ञानिक तथा पृथ्वी का अध्ययन करने वाले अन्य वैज्ञानिक इसका प्रयोग धरती के सम्पूर्ण इतिहास में हुई सभी घटनाओं का समय अनुमान करने के लिये करते हैं। जिस प्रकार चट्टानो के अधिक पुराने स्तर नीचे होते हैं तथा अपेक्षाकृत नये स्तर उपर होते हैं, उसी प्रकार इस सारणी में पुराने काल और घटनाएँ नीचे हैं जबकि नवीन घटनाएँ उपर (पहले) दी गई हैं। विकिरणमितीय प्रमाणों (radiomeric evidence) से पता चलता है पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 अरब वर्ष है। .

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रज्जुकी

रज्जुकी (संघ कॉर्डेटा) जीवों का एक समूह है जिसमें कशेरुकी (वर्टिब्रेट) और कई निकट रूप से संबंधित अकशेरुकी (इनवर्टिब्रेट) शामिल हैं। इनका इस संघ मे शामित होना इस आधार पर सिद्ध होता है कि यह जीवन चक्र मे कभी न कभी निम्न संरचनाओं को धारण करते हैं जो हैं, एक पृष्ठ‍रज्जु (नोटोकॉर्ड), एक खोखला पृष्ठीय तंत्रिका कॉर्ड, फैरेंजियल स्लिट एक एंडोस्टाइल और एक पोस्ट-एनल पूंछ। संघ कॉर्डेटा तीन उपसंघों मे विभाजित है: यूरोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व ट्युनिकेट्स द्वारा किया जाता है; सेफालोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व लैंसलेट्स द्वारा किया जाता है और क्रेनिएटा, जिसमे वर्टिब्रेटा शामिल हैं। हेमीकॉर्डेटा को चौथे उपसंघ के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है पर अब इसे आम तौर पर एक अलग संघ के रूप में जाना जाता है। यूरोकॉर्डेट के लार्वा में एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है पर वयस्क होने पर यह लुप्त हो जातीं हैं। सेफालोकॉर्डेट एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है लेकिन कोई मस्तिष्क या विशेष संवेदना अंग नहीं होता और इनका एक बहुत ही सरल परिसंचरण तंत्र होता है। क्रेनिएट ही वह उपसंघ है जिसके सदस्यों में खोपड़ी मिलती है। इनमे वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। इनमे जनन स्तर सदैव त्री स्तरीय पाया जाता है। सामान्यत लैंगिक जनन पाया जाता है। सामान्यत प्रत्यक्ष विकास होता है। इनमे RBC उपस्थित होती है। इनमे द्वीपार्शविय सममिती पाई जाती है। इसके जंतु अधिक विकसित होते है। श्रेणी:जीव विज्ञान *.

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रंगहीनता

रंगहीनता (ऐल्बिनिज़म) (लैटिन ऐल्बस, "सफ़ेद" से; विस्तारित शब्द व्युत्पत्ति देखें, इसे ऐक्रोमिया, ऐक्रोमेसिया, या ऐक्रोमेटोसिस (वर्णांधता या अवर्णता) भी कहा जाता है), मेलेनिन के उत्पादन में शामिल एंजाइम के अभाव या दोष की वजह से त्वचा, बाल और आँखों में रंजक या रंग के सम्पूर्ण या आंशिक अभाव द्वारा चिह्नित किया जाने वाला एक जन्मजात विकार है। ऐल्बिनिज़म, वंशानुगत तरीके से रिसेसिव जीन एलील्स को प्राप्त करने के परिणामस्वरूप होता है और यह मानव सहित सभी रीढ़धारियों को प्रभावित करता है। ऐल्बिनिज़म से प्रभावित जीवधारियों के लिए सबसे आम तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द "रजकहीन जीव (एल्बिनो) " है। अतिरिक्त क्लिनिकल विशेषणों के तहत कभी-कभी जानवरों को संदर्भित करने के लिए "ऐल्बिनोइड" और "ऐल्बिनिक" शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। ऐल्बिनिज़म कई दृष्टि दोषों के साथ जुड़ा हुआ है, जैसे फोटोफोबिया (प्रकाश की असहनीयता), नीस्टैगमस (अक्षिदोलन) और ऐस्टिगमैटिज्म (दृष्टिवैषम्य).

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लाल रक्त कोशिका

मानव की लाल रुधिर कणिकाओं का परिवर्धित दृश्य लाल रक्त कोशिका (red blood cells), रक्त की सबसे प्रमुख कोशिका है। यह रीढ़धारी जन्तुओं के श्वसन अंगो से आक्सीजन लेकर उसे शरीर के विभिन्न अंगों की कोशिकाओं तक पहुंचाने का सबसे सहज और व्याप्त माध्यम है। इस कोशिका में केन्द्रक नहीं होता है। इसकी औसत आयु १२० दिन की है।.

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शिश्न

शिश्न की संरचना: 1 — मूत्राशय, 2 — जघन संधान, 3 — पुरस्थ ग्रन्थि, 4 — कोर्पस कैवर्नोसा, 5 — शिश्नमुंड, 6 — अग्रत्वचा, 7 — कुहर (मूत्रमार्ग), 8 — वृषणकोष, 9 — वृषण, 10 — अधिवृषण, 11— शुक्रवाहिनी शिश्न (Penis) कशेरुकी और अकशेरुकी दोनो प्रकार के कुछ नर जीवों का एक बाह्य यौन अंग है। तकनीकी रूप से शिश्न मुख्यत: स्तनधारी जीवों में प्रजनन हेतु एक प्रवेशी अंग है, साथ ही यह मूत्र निष्कासन हेतु एक बाहरी अंग के रूप में भी कार्य करता है। शिश्न आमतौर स्तनधारी जीवों और सरीसृपों में पाया जाता है। हिन्दी में शिश्न को लिंग भी कहते हैं पर, इन दोनो शब्दों के प्रयोग में अंतर होता है, जहाँ शिश्न का प्रयोग वैज्ञानिक और चिकित्सीय संदर्भों में होता है वहीं लिंग का प्रयोग आध्यात्म और धार्मिक प्रयोगों से संबंद्ध है। दूसरे अर्थो में लिंग शब्द, किसी व्यक्ति के पुरुष (नर) या स्त्री (मादा) होने का बोध भी कराता है। हिन्दी में सभी संज्ञायें या तो पुल्लिंग या फिर स्त्रीलंग होती हैं। .

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शुतुरमुर्ग

शुतुरमुर्ग (Struthio camelus) पहले मध्य पूर्व और अब अफ्रीका का निवासी एक बड़ा उड़ान रहित पक्षी है। यह स्ट्रुथिओनिडि (en:Struthionidae) कुल की एकमात्र जीवित प्रजाति है, इसका वंश स्ट्रुथिओ (en:Struthio) है। शुतुरमुर्ग के गण, स्ट्रुथिओफॉर्म के अन्य सदस्य एमु, कीवी आदि हैं। इसकी गर्दन और पैर लंबे होते हैं और आवश्यकता पड़ने पर यह ७० किमी/घंटा की अधिकतम गति से भाग सकता है जो इस पृथ्वी पर पाये जाने वाले किसी भी अन्य पक्षी से अधिक है।शुतुरमुर्ग पक्षिओं की सबसे बड़ी जीवित प्रजातियों मे से है और यह किसी भी अन्य जीवित पक्षी प्रजाति की तुलना में सबसे बड़े अंडे देता है। प्रायः शुतुरमुर्ग शाकाहारी होता है लेकिन उसके आहार में अकशेरुकी भी शामिल होते हैं। यह खानाबदोश गुटों में रहता है जिसकी संख्या पाँच से पचास तक हो सकती है। संकट की अवस्था में या तो यह ज़मीन से सट कर अपने को छुपाने की कोशिश करता है या फिर भाग खड़ा होता है। फँस जाने पर यह अपने पैरों से घातक लात मार सकता है। संसर्ग के तरीक़े भौगोलिक इलाकों के मुताबिक भिन्न होते हैं, लेकिन क्षेत्रीय नर के हरम में दो से सात मादाएँ होती हैं जिनके लिए वह झगड़ा भी करते हैं। आमतौर पर यह लड़ाइयाँ कुछ मिनट की ही होती हैं लेकिन सर की मार की वजह से इनमें विपक्षी की मौत भी हो सकती है।आज दुनिया भर में शुतुरमुर्ग व्यावसायिक रूप से पाले जा रहे हैं मुख्यतः उनके पंखों के लिए, जिनका इस्तेमाल सजावट तथा झाड़ू बनाने के लिए किया जाता है। इसकी चमड़ी चर्म उत्पाद तथा इसका मांस व्यावसायिक तौर से इस्तेमाल में लाया जाता है। .

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श्रीलंका के वन्य जीव

श्रीलंका के वन्यजीव, वनस्पतियां एवं जीव जंतु अपने प्राकृतिक निवास में रहते हैं। श्रीलंका मैं जैविक स्थानिकता की विश्व में उच्चतम दर है (16% जीव और पौधों की 23% हैं) .

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सरीसृप

सरीसृप (Reptiles) प्राणी-जगत का एक समूह है जो कि पृथ्वी पर सरक कर चलते हैं। इसके अन्तर्गत साँप, छिपकली,मेंढक, मगरमच्छ आदि आते हैं। .

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सार्कोप्टरिजियाए

सार्कोप्टरिजियाए (Sarcopterygii) या लोब-फ़िन मछलियाँ (lobe-finned fishes) वह हड्डीदार मछलियाँ होती हैं जिनके फ़िन (पर) केवल एक मुख्य हड्डी से उनके धड़ से जुड़े होते है और उस हड्डी के इर्द-गिर्द फ़िन एक लोब (पालि) की तरह बना होता है। इनके विपरीत हड्डीदार मछलियों की दूसरी मुख्य श्रेणी है, जिसे ऐक्टिनोप्टरिजियाए (Actinopterygii) या किरण-फ़िन मछलियाँ (ray-finned fishes) कहते हैं, जिनमें फ़िन का ढांचा उनके धड़ से किरणों की तरह निकलती कई हड्डियों से बना होता है जिसके ऊपर मांस और त्वचा लगी होती है।, Reed Wicander, James S. Monroe, pp.

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स्तनधारी

यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.

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स्तनिकी

जन्तुविज्ञान में, स्तनधारी प्राणियों के अध्ययन को स्तनिकी (mammalogy) कहा जाता है। स्तनधारियों की लगभग 4,200 विभिन्न प्रजातियाँ हैं। .

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स्क्वमाटा

स्क्वमाटा (Squamata) प्राणियों का वह गण है जिसके सदस्य सारे शल्क-वाले सरीसृप (रेप्टाइल) हैं। सारे साँप व छिपकलियाँ इसी गण में शामिल हैं। स्क्वमाटा में लगभग ९००० भिन्न जीववैज्ञानिक जातियाँ शामिल हैं और, पर्सिफ़ोर्म मछलियों के बाद, यह कशेरुकी जन्तुओं (रीढ़ की हड्डी वाले) का दूसरा सबसे बड़ा गण है। .

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सैलामैंडर

सैलामैंडर (Salamander) उभयचरों की लगभग 500 प्रजातियों का एक सामान्य नाम है। इन्हें आम तौर पर इनके पतले शरीर, छोटी नाक और लंबी पूँछ, इन छिपकली-जैसी विशेषताओं से पहचाना जाता है। सभी ज्ञात जीवाश्म और विलुप्त प्रजातियाँ कॉडाटा जीववैज्ञानिक वंश के अंतर्गत आती हैं, जबकि कभी-कभी विद्यमान प्रजातियों को एक साथ यूरोडेला के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ज्यादातर सैलामैंडरों के अगले पैरों में चार और पिछले पैरों में पाँच उंगलियाँ होती हैं। उनकी नम त्वचा आम तौर पर उन्हें पानी में या इसके करीब या कुछ सुरक्षा के तहत (जैसे कि नम सतह), अक्सर एक गीले स्थान में मौजूद आवासों में रहने लायक बनाती है। सैलामैंडरों की कुछ प्रजातियाँ अपने पूरे जीवन काल में पूरी तरह से जलीय होती हैं, कुछ बीच-बीच में पानी में रहती हैं और कुछ बिलकुल स्थलीय होती हैं जैसे कि वयस्क.

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हाँगर

हाँगर या शार्क एक पृष्ठवंशी समुद्री जल में रहने वाला प्राणी है। इसका शरीर बहुत लम्बा होता है जो शल्कों से ढका रहता है। इन शल्कों को प्लेक्वायड कहते हैं। त्वचा चिकनी होती है। त्वचा के नीचे वसा (चर्बी) की मोटी परत होती है। इसके शरीर में हड्डी की जगह उपास्थि (कार्टिलेज) पाई जाती है। शरीर नौकाकार होता है। इसका निचला जबड़ा ऊपरी जबड़े से छोटा होता है। अतः इसका मुँह सामने न होकर नीचे की ओर होता है जिसमें तेज दाँत होते हैं। यह एक माँसाहारी प्राणी है। शार्क के शरीर में देखने के लिए एक जोड़ी आँखें, तैरने के लिए पाँच जोड़े पखने और श्वांस लेने के लिए पाँच जोड़े क्लोम होते हैं। श्रेणी:जलचर श्रेणी:विद्युतभानी प्राणी.

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हाथी

अफ़्रीकी हाथी का कंकाल हाथी जमीन पर रहने वाला एक विशाल आकार का प्राणी है। यह जमीन पर रहने वाला सबसे विशाल स्तनपायी है। यह एलिफैन्टिडी कुल और प्रोबोसीडिया गण का प्राणी है। आज एलिफैन्टिडी कुल में केवल दो प्रजातियाँ जीवित हैं: ऍलिफ़स तथा लॉक्सोडॉण्टा। तीसरी प्रजाति मैमथ विलुप्त हो चुकी है।जीवित दो प्रजातियों की तीन जातियाँ पहचानी जाती हैं:- ''लॉक्सोडॉण्टा'' प्रजाति की दो जातियाँ - अफ़्रीकी खुले मैदानों का हाथी (अन्य नाम: बुश या सवाना हाथी) तथा (अफ़्रीकी जंगलों का हाथी) - और ऍलिफ़स जाति का भारतीय या एशियाई हाथी।हालाँकि कुछ शोधकर्ता दोनों अफ़्रीकी जातियों को एक ही मानते हैं,अन्य मानते हैं कि पश्चिमी अफ़्रीका का हाथी चौथी जाति है।ऍलिफ़ॅन्टिडी की बाकी सारी जातियाँ और प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं। अधिकतम तो पिछले हिमयुग में ही विलुप्त हो गई थीं, हालाँकि मैमथ का बौना स्वरूप सन् २००० ई.पू.

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हृदय

कोरोनरी धमनियों के साथ मानव हृदय. हृदय या हिया या दिल एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है। कशेरुकियों का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में ७२ बार धड़कता है, जो (लगभग ६६वर्ष) एक जीवन काल में २.५ बिलियन बार धड़कता है। इसका भार औसतन महिलाओं में २५० से ३०० ग्राम और पुरुषों में ३०० से ३५० ग्राम होता है। .

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हीमोग्लोबिन

मानव के रुधिरवर्णिका की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। रुधिरवर्णिका या हीमोग्लोबिन (वर्तनी में हेमोग्लोबिन और संक्षिप्त में एचबी या एचजीबी) पृष्ठवंशियों की लाल रक्त कोशिकाओं और कुछ अपृष्ठवंशियों के ऊतकों में पाया जाने वाला लौह-युक्त आक्सीजन का परिवहन करने वाला धातुप्रोटीन है.

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ज़ीब्रा

ज़ीब्रा या ज़ेब्रा अफ़्रीका में घोड़े के कुल की कई जातियाँ हैं जो अपने शरीर में सफ़ेद और काली धारियों से पहचाने जाते हैं। इसकी धारियाँ अलग-अलग प्रकार की होती हैं और मनुष्य के अंगुलियों के निशान की तरह दो जानवरों की धारियाँ एक जैसी नहीं होती हैं। यह सामाजिक प्राणी होते हैं जो छोटे से लेकर बड़े झुण्डों में रहते हैं। अपने करीबी रिश्तेदारों घोड़े और गधे के विपरीत ज़ीब्रा को कभी पालतू नहीं बनाया जा सका। ज़ीब्रा की तीन जातियाँ जीवित हैं — मैदानी ज़ीब्रा, ग्रॅवी का ज़ीब्रा और पहाड़ी ज़ीब्रा। मैदानी और पहाड़ी ज़ीब्रा हिप्पोटिग्रिस उपवंश के हैं लेकिन ग्रॅवी का ज़ीब्रा डॉलिकोहिप्पस उपवंश का है। ग्रॅवी का ज़ीब्रा गधे की तरह ज़्यादा दीखता है और उससे करीबी रूप से सम्बन्धित भी है, जबकि पहले दो घोड़े रूपी अधिक होते हैं। तीनों ऍक्वस प्रजाति के अंतर्गत आते हैं। .

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जैव संरक्षण

जैव संरक्षण, प्रजातियां, उनके प्राकृतिक वास और पारिस्थितिक तंत्र को विलोपन से बचाने के उद्देश्य से प्रकृति और पृथ्वी की जैव विविधता के स्तरों का वैज्ञानिक अध्ययन है। यह विज्ञान, अर्थशास्त्र और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के व्यवहार से आहरित अंतरनियंत्रित विषय है। शब्द कन्सर्वेशन बॉयोलोजी को जीव-विज्ञानी ब्रूस विलकॉक्स और माइकल सूले द्वारा 1978 में ला जोला, कैलिफ़ोर्निया स्थित कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मेलन में शीर्षक के तौर पर प्रवर्तित किया गया। बैठक वैज्ञानिकों के बीच उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई, लुप्त होने वाली प्रजातियों और प्रजातियों के भीतर क्षतिग्रस्त आनुवंशिक विविधता पर चिंता से उभरी.

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जीव

कवक जीव (Organism) शब्द जीवविज्ञान में सभी जीवन-सन्निहित प्राणियों के लिए प्रयुक्त होता है, जैसे: कशेरुकी जन्तु, कीट, पादप अथवा जीवाणु। एक जीव में एक या एक से अधिक कोशिकाएँ होते हैं। जिनमें एक कोशिका पाया जाता है उसे एक कोशिकीय जीव है; एक से अधिक कोशिका होने पर उस जीव को बहुकोशिकीय जीव कहा जाता है। मनुष्य का शरीर विशेष ऊतकों और अंगों में बांटा होता है, जिसमें कोशिकाओं के कई अरबों की रचना में बहुकोशिकीय जीव होते हैं। .

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जीव (हिन्दू धर्म)

जीव शब्द का प्रयोग जीवित प्राणियों के लिए किया जाता है। जीव शब्द का प्रयोग जीव विज्ञान में सभी जीवन-सन्निहित प्राणियों के लिए किया जाता हैं। जैन ग्रंथों, हिन्दू धर्म ग्रंथो, बौद्धधर्म एवं सूफी धर्म ग्रंथो में इस शब्द का प्रयोग किया गया हैं। .

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घड़ियाल

कोई विवरण नहीं।

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घड़ियाल, पशु

घड़ियाल (Gavialis gangeticus), गवीएलिस किल के दो वर्तमान सदस्यों में से एक है। इसे फ़िश ईटिंग क्रोकोडाइल(मछली खानेवाला मगरमच्छ) भी कहते हैं यह मगरमच्छ जैसा सरीसृप होता है जिसके लंबे किंतु संकरे दाड़े होती हैं। यह एकदम विलुप्तप्राय प्रजाति है। घड़ियाल यह मगरमच्छों की जीवित प्रजातीयों में से सबसे लंबा 3.5 से 4.5 (11 से 15 फुट) तक होती है। सैन डियागो ज़ू में नर घड़ियाल नर घड़ियाल का निकट दृश्य .

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विल्डबीस्ट

विल्डबीस्ट जिसे ग्नू भी कहते हैं अफ़्रीका में पाया जाने वाला द्विखुरीयगण प्राणी है जो कि सींग वाले हिरनों की बिरादरी का है। इसके नाम का डच (हॉलैंड) भाषा में मतलब होता है जंगली जानवर या जंगली मवेशी क्योंकि अफ़्रीकान्स भाषा में beest का मतलब मवेशी होता है जबकि इसका वैज्ञानिक नाम कॉनोकाइटिस यूनानी भाषा के दो शब्दों से बना है — konnos जिसका मतलब दाढ़ी होता है और khaite जिसका मतलब लहराते बाल होता है। ग्नू नाम खोइखोइ भाषा से उद्घृत है। यह बोविडी कुल का प्राणी है, जिसमें बारहसिंगा, मवेशी, बकरी और कुछ अन्य सम-अंगुली सींगवाले खुरदार प्राणी होते हैं। कॉनोकाइटिस प्रजाति में दो जातियाँ समाविष्ट हैं और यह दोनों ही अफ़्रीका के मूल निवासी हैं: काला विल्डबीस्ट (कॉनोकाइटिस नू) और नीला विल्डबीस्ट या सामान्य विल्डबीस्ट (कॉनोकाइटिस टॉरिनस)। जीवाश्म सबूत बताते हैं कि उपरोक्त दोनों जातियाँ लगभग १० लाख साल पहले विभाजित हो गई थीं, जिसके कारण उत्तरी (नीला विल्डबीस्ट) तथा दक्षिणी (काला विल्डबीस्ट) जातियाँ अलग-अलग हो गईं। नीली जाति में अपने पूर्वजों से शायद ही कोई बदलाव आया, जबकि काली जाति को ख़ुद को खुले मैदानों के अनुरूप ढालना पड़ा। .

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विषाणु विज्ञान

विषाणु विज्ञान, जिसे प्रायः सूक्ष्मजैविकी या विकृति विज्ञान का भाग माना जाता है, जैविक विषाणुओं व विषाणु-सम अभिकर्ताओं के वर्गीकरण, संरचना एवं विकास, उनकी प्रजनन हेतु कोशिका दूषण या संक्रमण पद्धति, उनके द्वारा होने वाले रोगों, उन्हें पृथक करने व संवर्धन करने की विधियां, तथा उनके अन्तर्निहित शक्तियां शोध व प्रयोगों में करने के अध्ययन को विषाणु विज्ञान कहते हैं। एच आई वी विषाणु, जो एड्स की भयंकर रोग के लिये उत्तरदायी है। .

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खरगोश

ख़रघोश खरहारूपी गण के खरहादृष्ट कुल के, खरहा और पिका के साथ, छोटे स्तनधारी हैं। खनखरहा शशबिल में यूरोपीय ख़रगोश और उसके वंशज, पालतू ख़रगोश की दुनिया की ३०५ नस्ले शामिल हैं। सिल्वीखरहा में तेरह वन्य ख़रगोश शामिल हैं, जिनमें से सात कपासपुच्छ के प्रकार हैं। अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर परिचय में आया हुआ यूरोपीय ख़रगोश, दुनिया भर में एक जंगली शिकार प्राणी के रूप में और पशुधन और पालतू जानवर के पालतू रूप में परिचित है। पारिस्थितिकी और संस्कृतियों पर इसके व्यापक प्रभाव के साथ, खरगोश (या बनी) दुनिया के कई क्षेत्रों में, दैनिक जीवन का एक हिस्सा है- भोजन, कपड़ों और साथी के रूप में, और कलात्मक प्रेरणा के स्रोत के रूप में। वह लेपोरिडी परिवार का एक छोटा स्तनपायी है, जो विश्व के अनेक स्थानों में पाया जाता है। विश्व में खरगोश की आठ प्रजातियाँ पायी जाती हैं। खरगोश जंगलों, घास के मैदानों, मरुस्थलों तथा पानी वाले इलाकों में समूह में रहते हैं। अंगोरा ऊन खरगोश से प्राप्त होता है। ख़रगोश अपने दिमाग़ में हर जगह का नक़्शा बनाता है और उसको कोई चीज़ इधर से उधर होना पसंद नहीं होता है। .

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गर्दन

गर्दन सिर को धड़ से जोड़ती है गर्दन शरीर का वह हिस्सा होती है जो मानव और अन्य रीढ़-वाले जीवों में सिर को धड़ से जोड़ती है। लातिन भाषा में गर्दन से सम्बंधित चीज़ों के लिए "सर्विकल" शब्द इस्तेमाल किया जाता है। .

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गंगा सूंस (डॉल्फिन)

सिंधु नदी डॉल्फिन गंगा नदी डॉल्फिन (Platanista gangetica gangetica) and सिंधु नदी डॉल्फिन (Platanista gangetica minor) मीठे पानी की डॉल्फिन की दो प्रजातियां हैं। ये भारत, बांग्लादेश, नेपाल तथा पाकिस्तान में पाई जाती हैं। गंगा नदी डॉल्फिन सभी देशों के नदियों के जल, मुख्यतः गंगा नदी में तथा सिंधु नदी डॉल्फिन, पाकिस्तान के सिंधु नदी के जल में पाई जाती है। केंद्र सरकार ने ०५ अक्टूबर २००९ को गंगा डोल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है। गंगा नदी में पाई जाने वाली गंगा डोल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जीव है जिसकी घ्राण शक्ति अत्यंत तीव्र होती है। विलुप्त प्राय इस जीव की वर्तमान में भारत में २००० से भी कम संख्या रह गयी है जिसका मुख्य कारण गंगा का बढता प्रदूषण, बांधों का निर्माण एवं शिकार है। इनका शिकार मुख्यतः तेल के लिए किया जाता है जिसे अन्य मछलियों को पकडनें के लिए चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। एस समय उत्तर प्रदेश के नरोरा और बिहार के पटना साहिब के बहुत थोड़े से क्षेत्र में गंगा डोल्फिन बचीं हैं। बिहार व उत्तर प्रदेश में इसे 'सोंस' जबकि आसामी भाषा में 'शिहू' के नाम से जाना जाता है। यह इकोलोकेशन (प्रतिध्वनि निर्धारण) और सूंघने की अपार क्षमताओं से अपना शिकार और भोजन तलाशती है। यह मांसाहारी जलीय जीव है। यह प्राचीन जीव करीब १० करोड़ साल से भारत में मौजूद है। यह मछली नहीं दरअसल एक स्तनधारी जीव है। मादा के औसत लम्बाई नर डोल्फिन से अधिक होती है। इसकी औसत आयु २८ वर्ष रिकार्ड की गयी है। 'सन ऑफ़ रिवर' कहने वाले डोल्फिन के संरक्षण के लिए सम्राट अशोक ने कई सदी पूर्व कदम उठाये थे। केंद्र सरकार ने १९७२ के भारतीय वन्य जीव संरक्षण कानून के दायरे में भी गंगा डोल्फिन को शामिल लौया था, लेकिन अंततः राष्ट्रीय जलीव जीव घोषित करने से वन्य जी संरक्षण कानून के दायरे में स्वतः आ गया। १९९६ में ही इंटर्नेशनल यूनियन ऑफ़ कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर भी इन डॉल्फिनों को तो विलुप्त प्राय जीव घोषित कर चुका था। गंगा में डॉल्फिनों की संख्या में वृद्धि 'मिशन क्लीन गंगा' के प्रमुख आधार स्तम्भ होगा, क्योंकि केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश के अनुसार जिस तरह बाघ जंगल की सेहत का प्रतीक है उसी प्रकार डॉल्फिन गंगा नदी के स्वास्थ्य की निशानी है। .

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गुर्दा

वृक्क या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका प्रधान कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से वर्टिब्रेट पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और रक्तचाप का नियामन होता है। इनका मल स्वरुप मूत्र कहलाता है। इसमें मुख्यतः यूरिया और अमोनिया होते हैं। गुर्दे युग्मित अंग होते हैं, जो कई कार्य करते हैं। ये अनेक प्रकार के पशुओं में पाये जाते हैं, जिनमें कशेरुकी व कुछ अकशेरुकी जीव शामिल हैं। ये हमारी मूत्र-प्रणाली का एक आवश्यक भाग हैं और ये इलेक्ट्रोलाइट नियंत्रण, अम्ल-क्षार संतुलन, व रक्तचाप नियंत्रण आदि जैसे समस्थिति (homeostatic) कार्य भी करते है। ये शरीर में रक्त के प्राकृतिक शोधक के रूप में कार्य करते हैं और अपशिष्ट को हटाते हैं, जिसे मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है। मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं; गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं। गुर्दे हार्मोन भी उत्पन्न करते हैं, जिनमें कैल्सिट्रिओल (calcitriol), रेनिन (renin) और एरिथ्रोपिटिन (erythropoietin) शामिल हैं। औदरिक गुहा के पिछले भाग में रेट्रोपेरिटोनियम (retroperitoneum) में स्थित गुर्दे वृक्कीय धमनियों के युग्म से रक्त प्राप्त करते हैं और इसे वृक्कीय शिराओं के एक जोड़े में प्रवाहित कर देते हैं। प्रत्येक गुर्दा मूत्र को एक मूत्रवाहिनी में उत्सर्जित करता है, जो कि स्वयं भी मूत्राशय में रिक्त होने वाली एक युग्मित संरचना होती है। गुर्दे की कार्यप्रणाली के अध्ययन को वृक्कीय शरीर विज्ञान कहा जाता है, जबकि गुर्दे की बीमारियों से संबंधित चिकित्सीय विधा मेघविज्ञान (nephrology) कहलाती है। गुर्दे की बीमारियां विविध प्रकार की हैं, लेकिन गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के रोगियों में अक्सर विशिष्ट चिकित्सीय लक्षण दिखाई देते हैं। गुर्दे से जुड़ी आम चिकित्सीय स्थितियों में नेफ्राइटिक और नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम, वृक्कीय पुटी, गुर्दे में तीक्ष्ण घाव, गुर्दे की दीर्घकालिक बीमारियां, मूत्रवाहिनी में संक्रमण, वृक्कअश्मरी और मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न होना शामिल हैं। गुर्दे के कैंसर के अनेक प्रकार भी मौजूद हैं; सबसे आम वयस्क वृक्क कैंसर वृक्क कोशिका कर्कट (renal cell carcinoma) है। कैंसर, पुटी और गुर्दे की कुछ अन्य अवस्थाओं का प्रबंधन गुर्दे को निकाल देने, या वृक्कुच्छेदन (nephrectomy) के द्वारा किया जा सकता है। जब गुर्दे का कार्य, जिसे केशिकागुच्छीय शुद्धिकरण दर (glomerular filtration rate) के द्वारा नापा जाता है, लगातार बुरी हो, तो डायालिसिस और गुर्दे का प्रत्यारोपण इसके उपचार के विकल्प हो सकते हैं। हालांकि, पथरी बहुत अधिक हानिकारक नहीं होती, लेकिन यह भी दर्द और समस्या का कारण बन सकती है। पथरी को हटाने की प्रक्रिया में ध्वनि तरंगों द्वारा उपचार शामिल है, जिससे पत्थर को छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्राशय के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है। कमर के पिछले भाग के मध्यवर्ती/पार्श्विक खण्डों में तीक्ष्ण दर्द पथरी का एक आम लक्षण है। .

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ग्रहणी

ग्रहणी (duodenum) अधिकांश उच्चतर कशेरुकी प्राणियों (जैसे स्तनधारी, सरिसृप, पक्षी आदि) के क्षुदांत्र का प्रथम भाग होता है। .

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गौर

गौर (Bos gaurus, पहले Bibos gauris) दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया मे पाया जाने वाला एक बड़ा, काले लोम से ढका गोजातीय पशु है। आज इसकी सबसे बड़ी आबादी भारत में पाई जाती हैं। गौर जंगली मवेशियों मे से सबसे बड़ा होता है। पालतू गौर 'गायल' या 'मिथुन' कहलाता है। भारत के भिन्न भिन्न भागों में इसका भिन्न भिन्न स्थानीय नाम है, जैसे गौरी गाय, बोदा, गवली इत्यादि। यह बोविडी कुल (Bavidae Family) के शफ गण (Order Ungulate) का एक जंगली स्तनपोषी शाकाहारी पशु है। गवल भारत प्रायद्वीप, असम, बर्मा, मलाया प्रायद्वीप तथा स्याम के पहाड़ी वनों में पाया जाता है। इसका सर्वोत्तम विकास दक्षिण भारतीय पहाड़ियों तथा असम में होता है। किसी समय यह प्राणी श्रीलंका में भी प्राप्य था, किंतु अब वहां से, संभवत: किसी पशुरोग के ही कारण लुप्त हो गया है। यूरोपीय शिकारी गौर को 'बाइसन' (Bison / एक प्रकार का जंगली भैंसा) कहते हैं, परंतु भारतीय गवल को बाइसन कहना ठीक प्रतीत नहीं होता। वस्तुत: यूरोप तथा उत्तरी अमरीका के बाइसन भारतीय गवल से भिन्न होते हैं। पाश्चात्य बाइसनों की सीगें छोटी और रूक्ष दाढ़ियाँ हाती हैं। .

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गैलापागोस कछुआ

गैलापागोस द्वीपसमूह के सात द्वीपों पर पाया जाने वाला गैलापागोस कछुआ या गैलापागोस विशाल कछुआ (Geochelone nigra) विश्व का सबसे बड़ा कछुआ है। पूर्ण विकसित वयस्क कछुए का का भार 300 किलोग्राम (£ 661) और माप 1.2 मीटर (4 फीट) तक हो सकता है। यह लंबे समय तक जीवित रहते हैं और एक अनुमान के अनुसार जंगल में इनकी जीवन प्रत्याशा 100-150 साल तक होती है। सत्रहवीं सदी के बाद से मनुष्य द्वारा शिकार किए जाने और शिकारी और पालतू जानवरों को इन द्वीपों पर लाए जाने की वजह से इनकी आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट दर्ज की गयी है। अब मूल बारह प्राजातियों में से केवल दस ही जंगल में बची हैं। हालाँकि, गैलापागोस राष्ट्रीय उद्यान और चार्ल्स डार्विन फाउंडेशन की स्थापना के बाद से इनके संरक्षण के प्रयासों में सफलता मिली है और सैकड़ों-बाल कछुओं को वापस उनके मातृद्वीपों पर छोड़ा गया है। यह गैलापागोस द्वीप समूह के सबसे प्रतीकात्मक जीव हैं। .

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ऑस्टियोपोरोसिस

अस्थिसुषिरता या ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) हड्डी का एक रोग है जिससे फ़्रैक्चर का ख़तरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस में अस्थि खनिज घनत्व (BMD) कम हो जाता है, अस्थि सूक्ष्म-संरचना विघटित होती है और अस्थि में असंग्रहित प्रोटीन की राशि और विविधता परिवर्तित होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस को DXA के मापन अनुसार अधिकतम अस्थि पिंड (औसत 20 वर्षीय स्वस्थ महिला) से नीचे अस्थि खनिज घनत्व 2.5 मानक विचलन के रूप में परिभाषित किया है; शब्द "ऑस्टियोपोरोसिस की स्थापना" में नाज़ुक फ़्रैक्चर की उपस्थिति भी शामिल है। ऑस्टियोपोरोसिस, महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद सर्वाधिक सामान्य है, जब उसे रजोनिवृत्तोत्तर ऑस्टियोपोरोसिस कहते हैं, पर यह पुरुषों में भी विकसित हो सकता है और यह किसी में भी विशिष्ट हार्मोन संबंधी विकार तथा अन्य दीर्घकालिक बीमारियों के कारण या औषधियों, विशेष रूप से ग्लूकोकार्टिकॉइड के परिणामस्वरूप हो सकता है, जब इस बीमारी को स्टेरॉयड या ग्लूकोकार्टिकॉइड-प्रेरित ऑस्टियोपोरोसिस (SIOP या GIOP) कहा जाता है। उसके प्रभाव को देखते हुए नाज़ुक फ़्रैक्चर का ख़तरा रहता है, हड्डियों की कमज़ोरी उल्लेखनीय तौर पर जीवन प्रत्याशा और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। ऑस्टियोपोरोसिस को जीवन-शैली में परिवर्तन और कभी-कभी दवाइयों से रोका जा सकता है; हड्डियों की कमज़ोरी वाले लोगों के उपचार में दोनों शामिल हो सकती हैं। जीवन-शैली बदलने में व्यायाम और गिरने से रोकना शामिल हैं; दवाइयों में कैल्शियम, विटामिन डी, बिसफ़ॉसफ़ोनेट और कई अन्य शामिल हैं। गिरने से रोकथाम की सलाह में चहलक़दमी वाली मांसपेशियों को तानने के लिए व्यायाम, ऊतक-संवेदी-सुधार अभ्यास; संतुलन चिकित्सा शामिल की जा सकती हैं। व्यायाम, अपने उपचयी प्रभाव के साथ, ऑस्टियोपोरोसिस को उसी समय बंद या उलट सकता है। .

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ऑक्सीटॉसिन

ऑक्सीटॉसिन (जिसे पाइटोसिन, सिन्टोसाइनॉन के रूप में बेचा जाता है), एक स्तनपायी संबंधी हार्मोन है जो मुख्य रूप से मस्तिष्क में तंत्रिका संबंधी प्रेषित्र का कार्य करता है। अल्फा-हाइफोफाइमिन (α-hypophamine) के रूप में भी जाना जाने वाला ऑक्सीटॉसिन को जैव रासायनिक रूप से विन्सेंट डू विग्नेऑड एट ऐल द्वारा 1953 में सर्वप्रथम अनुक्रमित और संश्लेषित किये जाने का श्रेय प्राप्त है। ऑक्सीटॉसिन महिला प्रजनन में अपनी भूमिकाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ रूप से जाना जाता है: 1) यह प्रसव काल के दौरान गर्भाशय ग्रीवा और योनी के फैलाव और 2) स्तनाग्र (निपल) की उत्तेजना के बाद प्रचुर मात्रा में स्रावित होता है, जिससे क्रमश: प्रसव और स्तनपान सहज होता है। हाल के अध्ययनों ने कामोन्माद, सामाजिक मान्यता, युग्म संयोजन, चिंता, विश्वास, प्रेम और मातृ व्यवहारों सहित विभिन्न व्यवहारों में ऑक्सीटॉसिन की भूमिका की जांच आरंभ की है। .

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ओस्टीइक्थीज़​

ओस्टीइक्थीज़​ (Osteichthyes) या हड्डीदार मछलियाँ (bony fish) ऐसी मछलियों की वह श्रेणी होती है जिनके अंदरूनी ढाँचे (सख़्त) हड्डी के बने होते हैं। इनसे विपरीत वह मछलियाँ होती हैं जिनके भीतरी ढाँचे हड्डियों की बजाय उपास्थि (कार्टिलेज) के बने होते हैं, यानि उपास्थिदार मछलियाँ। दुनिया के अधिकतर मछलियाँ ओस्टीइक्थीज़​ हैं और इस विस्तृत और विविध श्रेणी में २९,००० से ज़्यादा जातियाँ आती हैं। अगर रज्जुकी (रीढ़ की हड्डी वाले) जानवरों का पूरा संघ देखा जाए तो हड्डीदार मछलियाँ उसकी सबसे बड़ी श्रेणी है। इनके सबसे प्राचीन मिले जीवाश्म (फ़ॉसिल​) ४२ करोड़ वर्ष पुराने हैं और वे शार्कों (हाँगरों) और हड्डीदार मछलियों दोनों के दन्त-ढांचों के पहलु दिखाते हैं जिस से हड्डीदार मछलियों के क्रम-विकास (एवोल्यूशन) के बारे में भी संकेत मिलता है। .

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आन्तर कर्ण

आंतर कर्ण (inner ear या internal ear या auris interna) कशेरुकों के कान का सबसे भीतरी भाग है। मुख्यतः आन्तर कर्ण ही कशेरुकों में ध्वनि संसूचन (डिटेक्शन) एवं संतुलन बनाने का काम करता है। .

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आमाशय (पेट)

कशेरुकी, एकाइनोडर्मेटा वंशीय जंतु, कीट (आद्यमध्यांत्र) और मोलस्क सहित, कुछ जंतुओं में, आमाशय एक पेशीय, खोखला, पोषण नली का फैला हुआ भाग है जो पाचन नली के प्रमुख अंग के रूप में कार्य करता है। यह चर्वण (चबाना) के बाद, पाचन के दूसरे चरण में शामिल होता है। आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के बीच में स्थित होता है। यह छोटी आंतों में आंशिक रूप से पचे भोजन (अम्लान्न) को भेजने से पहले, अबाध पेशी ऐंठन के माध्यम से भोजन के पाचन में सहायता के लिए प्रोटीन-पाचक प्रकिण्व(एन्ज़ाइम) और तेज़ अम्लों को स्रावित करता है (जो ग्रासनलीय पुरःसरण के ज़रिए भेजा जाता है).

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इरावदी डालफिन

इरावदी डॉल्फ़िन (Orcaella brevirostris) एक यूरीहैलाइन प्रजाति होती है, जो सागर तटों के निकट और ईस्टुअरी तथा नदियों में पायी जाती है। इसका आवास स्थान बंगाल की खाड़ी दक्षिण पूर्वी एशिया है। इस प्रजाति का नाम बर्मा की प्रमुख नदी ऎयारवाडी के नाम पर पड़ा है जहॉ यह बहुतयात मे पायी जाती है। सुंदरवन का उपग्रह चित्र .

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कठफोड़वा

कठफोड़वा पक्षी कठफोड़वा (वुडपैकर / woodpeckers) पक्षियों की एक प्रजाति है। इसे हुदहुद भी कहा जाता है। इस परिवार के सदस्य दुनिया भर में पाए जाते हैं, ऑस्ट्रेलिया, न्यू गिनी, न्यूजीलैंड, मेडागास्कर, और चरम ध्रुवीय क्षेत्रों के लिए छोड़कर। .

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कबूतर

कबूतर पूरे विश्व में पाये जाने वाला पक्षी है। यह एक नियततापी, उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढँका रहता है। मुँह के स्थान पर इसकी छोटी नुकीली चोंच होती है। मुख दो चंचुओं से घिरा एवं जबड़ा दंतहीन होता है। अगले पैर डैनों में परिवर्तित हो गए हैं। पिछले पैर शल्कों से ढँके एवं उँगलियाँ नखरयुक्त होती हैं। इसमें तीन उँगलियाँ सामने की ओर तथा चौथी उँगली पीछे की ओर रहती है। यह जन्तु मनुष्य के सम्पर्क में रहना अधिक पसन्द करता है। अनाज, मेवे और दालें इसका मुख्य भोजन हैं। भारत में यह सफेद और सलेटी रंग के होते हैं पुराने जमाने में इसका प्रयोग पत्र और चिट्ठियाँ भेजने के लिये किया जाता था। .

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कशेरुक जीवाश्मिकी

कशेरुक जीवाश्मिकी (Vertebrate paleontology) जीवाश्मिकी की विशाल शाखा है जो अश्मीभूत कशेरुकों के अवशेषों के अध्ययन के आधार पर उनके व्यवहार, प्रजनन तथा स्वरूप आदि की खोज करती है। कशेरुक प्राणी वे कहलाते हैं जिनके कशेरुक दण्ड (vertebrae) होता है। उद्विकास की समयरेखा का प्रयोग करते हुए यह शाखा पुराकाल के जन्तुओं तथा उनके वर्तमान संबन्धियों को भी जोड़ने का प्रयत्न करती है। जीवाश्मों के अध्ययन से पता चलता है कि आरम्भिक काल में कशेरुक प्राणी जलीय-जन्तु थे जिनसे विकसित होकर आज के स्तनपोषी बने हैं। जेप्सेन, मेयर एवं सिम्पसन के शब्दों में, कशेरुकीय जीवाश्म विज्ञान समय की सीमा में बँधे तुलनात्मक अस्थिविज्ञान का अध्ययन है। कारण कि (1) जैवाश्मिकीय न्यास (data) मूल रूप से कंकाल (sdeleton) तंत्र तक ही सीमित होते हैं। (2) जीवाश्मवैज्ञानिकों के पास अध्ययन सामग्री के रूप में विविध पुराकालिक कंकालों के संकलन मात्र होते हैं। (ग्लेन एल. जेप्सेन, अर्न्स्ट मेयर तथा जार्ज गेलार्ड सिम्पसन: जेनेटिक्स, पैलिओन्टोलाजी एंड इवोल्यूशन, प्रिंस्टन यूनि. प्रेस, प्रिंस्टन, न्यूजर्सी, 1949)। 'कशेरुकीय जीवाश्मिकी' (Vertebrate paleontology) की दो मुख्य शाखाएँ हैं.

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कशेरुकदंडी भ्रूणतत्व

८-९ सप्ताह का मानव भ्रूण प्रत्येक कशेरुकदंडी अपना जीवन एक संसेचित अंडे के रूप में प्रारंभ करता है। संसेचन की क्रिया अंडे के कोशिकाद्रव्य के भीतर एक शुक्राणु के प्रवेश करने से होती हैं। शुक्राणु का केवल सिर ही कोशिकाद्रव्य के भीतर प्रवेश करता है। यथार्थ शुक्राणु का सिर केवल केंद्रक का ही बना होता है, इसमें कोशिकाद्रव्य की मात्रा बहुत ही कम होती है। अंडे और शुक्राणु के केंद्रक का एक दूसरे से समेकन होता है। संयुक्त केंद्रक के विभाजन के साथ ही कोशिकाद्रव्य का विभाजन भी होता रहता है। संसेचन से दो कार्य सिद्ध होते हैं। एक तो इस क्रिया से नर और मादा के आनुवंशिक पदार्थ एकत्र होते हैं, दूसरे इस क्रिया से अंडे का उद्दीपन होता है जिससे एक संजटिल परंतु समन्वित विधि की एक श्रेणी आरंभ होती हैं, जिसे भ्रूणीय विकास कहते हैं। युग्मज खंडीभवन योक की मात्रा पर निर्भर रहता है। कम योकवाले या योक रहित अंडे पूर्णभाजित (होलोब्लास्टिक, holoblastic) और योक के प्राचुर्यवाले अंडे अपूर्णभाजित (मेरोब्लास्टिक, meroblastic) होते हैं। सरीसृपों और पक्षियों के अंडे योक से परिपूर्ण के अंडे योक से परिपूर्ण होते हैं। इनमें युग्मज विभाजन की रेखा अंडे के कोशिकाद्रव्य-काय ध्रव (पोल Pole) की सीमा के आगे नहीं पहुँचती। ऐसे जंतुओं में ब्लैस्टीडर्म का विकास योक के ऊपर होता है। ऐंफ़ीबिआ में पूरा युग्मज विभाजित होता है परंतु जंतु ध्रुव (ऐनिमल पोल, animal pole) की अपेक्षा वेजिटल पोल (vegital pole) की कोशिकाएँ अधिक शीघ्रता से विभाजित होती हैं। मानव भ्रूणोद्भव .

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काला विल्डबीस्ट

काला विल्डबीस्ट या सफ़ेद पूँछ वाला नू विल्डबीस्ट की दो जातियों में से एक है। यह जाति अफ़्रीका महाद्वीप के दक्षिणी इलाके में पाई जाती है। इसका सबसे करीबी रिशतेदार नीला विल्डबीस्ट है। यह दक्षिण अफ़्रीका, स्वाज़ीलैण्ड और लेसोथो में पाया जाता है। १९वीं शताब्दी के अंत तक अत्यधिक शिकार के कारण इनकी संख्या कुछ ही जानवर केवल दो फ़ार्मों तक सीमित रह गयी थी। तब से इसके संरक्षण का भर्सक प्रयत्न किया गया है और अब इनकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इनको इनके प्राकृतिक क्षेत्र के बाहर (नामीबिया) में भी प्रचलित किया गया है। एक अनुमान के मुताबिक इनकी संख्या १८००० के लगभग हो गई है जिसमें ८०% फ़ार्मों में और बचे २०% प्राकृतिक आवासों में रह रहे हैं। .

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कॉन्ड्रीइक्थीज़

कॉन्ड्रीइक्थीज़​ (Chondrichthyes) या उपास्थिदार मछलियाँ (cartilaginous fish) जबड़े-वाली मछलियों की वह श्रेणी होती है जिनके अंदरूनी ढाँचे हड्डियों की बजाय उपास्थि (कार्टिलेज) के बने होते हैं। इनसे विपरीत वह मछलियाँ होती हैं जिनके भीतरी ढाँचे हड्डी के बने होते हैं, यानि हड्डीदार मछलियाँ। उपास्थिदार मछलियों के जोड़ेदार क्लोम (गिल) और नासिकाएँ होती हैं और इनके हृदय द्विकक्ष (दो ख़ानों वाले) होते हैं। हाँगर (शार्क) और शंकुश (रे) कुछ प्रसिद्ध उपास्थिदार मछलियाँ हैं। आमतौर पर उपास्थिदार मछलियों का अकार अन्य मछलियों से बड़ा होता है।, John Morrissey, James Sumich, pp.

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अग्न्याशय

अग्न्याशय कशेरुकी जीवों की पाचन व अंतःस्रावी प्रणाली का एक ग्रंथि अंग है। ये इंसुलिन, ग्लुकागोन, व सोमाटोस्टाटिन जैसे कई ज़रूरी हार्मोन बनाने वाली अंतःस्रावी ग्रंथि है और साथ ही यह अग्न्याशयी रस निकालने वाली एक बहिःस्रावी ग्रंथि भी है, इस रस में पाचक किण्वक होते हैं जो लघ्वांत्र में जाते हैं। ये किण्वक अम्लान्न में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, व वसा का और भंजन करते हैं। .

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अकशेरुकी प्राणी

कुछ अकशेरुक प्राणी अकशेरुकी प्राणी (Invertebrate) उन प्राणियों को कहते हैं जिनमें मेरुदंड नहीं होता और न ही किसी अवस्था में मेरुदण्ड विकसित होता है। परिभाषा के अनुसार इसमें कशेरुक प्राणियों के अलावा सभी प्राणी आ जाते हैं। अकशेरुक प्राणियों के कुछ प्रमुख उदाहरण ये हैं - कीट, केकड़ा, झिंगा, घोंघा, ऑक्टोपस, स्टारफिश आदि। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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