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हृदयाघात

सूची हृदयाघात

रोधगलन (MI) या तीव्र रोधगलन (AMI) को आमतौर पर हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल के दौरे के रूप में जाना जाता है, जिसके तहत दिल के कुछ भागों में रक्त संचार में बाधा होती है, जिससे दिल की कोशिकाएं मर जाती हैं। यह आमतौर पर कमजोर धमनीकलाकाठिन्य पट्टिका के विदारण के बाद परिहृद्-धमनी के रोध (रूकावट) के कारण होता है, जो कि लिपिड (फैटी एसिड) का एक अस्थिर संग्रह और धमनी पट्टी में श्वेत रक्त कोशिका (विशेष रूप से बृहतभक्षककोशिका) होता है। स्थानिक-अरक्तता के परिणामस्वरूप (रक्त संचार में प्रतिबंध) और ऑक्सीजन की कमी होती है, अगर लम्बी अवधि तक इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो हृदय की मांसपेशी ऊतकों (मायोकार्डियम) की क्षति या मृत्यु (रोधगलन) हो सकती है। तीव्र रोधगलन के शास्त्रीय लक्षणों में अचानक छाती में दर्द, (आमतौर पर बाएं हाथ या गर्दन के बाएं ओर), सांस की तकलीफ, मिचली, उल्टी, घबराहट, पसीना और चिंता (अक्सर कयामत आसन्न भावना के रूप में वर्णित) शामिल हैं.

41 संबंधों: ट्राईग्लीसेराइड, एड्स, एसिडिटी, एस्पिरिन, धमनी, नाभिकीय चिकित्सा, न्यूमोनिया, पक्षाघात, पॉलीमर, फुल्लन, फोलिक अम्ल, भारत, मधुमेह, मानस शास्त्र, मानव शरीर, मेडलाइन प्लस, मोटापा, रक्तचाप, रक्तदान, रोग, शरीर द्रव्यमान सूचकांक, शिक्षा, शवपरीक्षा, श्वेत रक्त कोशिका, सोनोग्राफी, हृदय, हृदय धमनी बाईपास सर्जरी, हृदयाघात, जीवाणु, व्यायाम, गंजापन, इनफ़्लुएंज़ा, कैल्सियम, कोलेस्टेरॉल, कोलेजन, कोकेन, अमीनो अम्ल, अल्कोहल, अवकाशिका (जीवविज्ञान), उच्च रक्तचाप, उल्टी

ट्राईग्लीसेराइड

एक असंतृप्त वसा ट्राईग्लीसराइड का उदाहरण। बायां भाग: ग्लीसेरॉल, दायां भाग (ऊपर से नीचे): पाल्मिटिक अम्ल, ओलिक अम्ल, अल्फा-लिनोलीनिक अम्ल, रासायनिक सूत्र:C५५H९८O६ ट्राईग्लीसेराइड या ट्राईग्लीसेरॉल वे ग्लीसेराइड होते हैं, जो तीन वसा अम्ल से एस्टरीकृत किये होते हैं। ये वनस्पति तेल एवं जंतु वसा के प्रमुख संघटक होते हैं। .

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एड्स

उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण या एड्स (अंग्रेज़ी:एड्स) मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (एच.आई.वी) संक्रमण के बाद की स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता खो देता है। एड्स स्वयं कोई बीमारी नही है पर एड्स से पीड़ित मानव शरीर संक्रामक बीमारियों, जो कि जीवाणु और विषाणु आदि से होती हैं, के प्रति अपनी प्राकृतिक प्रतिरोधी शक्ति खो बैठता है क्योंकि एच.आई.वी (वह वायरस जिससे कि एड्स होता है) रक्त में उपस्थित प्रतिरोधी पदार्थ लसीका-कोशो पर आक्रमण करता है। एड्स पीड़ित के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर क्षय रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं। एच.आई.वी.

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एसिडिटी

गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफलक्स डिजीज एसिडिटी को चिकित्सकीय भाषा में गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफलक्स डिजीज (GERD) के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद में इसे अम्ल पित्त कहते हैं। .

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एस्पिरिन

एस्पिरिन (यूएसएएन)(USAN), जिसे एसिटाइलसैलिसाइलिक एसिड (संक्षिप्त में एएसए), भी कहते हैं, एक सैलिसिलेट औषधि है, जो अकसर हल्के दर्दों से छुटकारा पाने के लिये दर्दनिवारक के रूप में, ज्वर कम करने के लिये ज्वरशामक के रूप में और शोथ-निरोधी दवा के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। एस्पिरिन का एक प्लेटलेट-विरोधी प्रभाव भी होता है, जो थ्राम्बाक्सेन उत्पादन के अवरोध से उत्पन्न होता है, जो सामान्य परिस्थितियों में प्लेटलेटों के अणुओं को आपस में बांधकर रक्त नलिकाओं के भीतर की भित्तियों पर हुई चोट पर एक चकत्ते का निर्माण करता है। चूंकि प्लेटलेटों का चकत्ता काफी बड़ा होकर रक्त-प्रवाह में उस स्थान पर या आगे कहीं भी रूकावट पैदा कर सकता है, इसलिये रक्त के थक्कों के विकास के अधिक जोखम वाले लोगों में एस्पिरिन का प्रयोग लंबे समय के लिये कम मात्रा में हृदयाघात, मस्तिष्क-आघात और रक्त के थक्कों की रोकथाम के लिये भी किया जाता है। यह भी पाया गया है कि हृदयाघात के तुरंत बाद थोड़ी मात्रा में एस्पिरिन देकर एक और हृदयाघात या हृदय के ऊतक की मृत्यु का जोखम कम किया जा सकता है। एस्पिरिन के, विशेषकर अधिक मात्रा में लेने पर, मुख्य अवांछित दुष्प्रभावों में आमाशय व आंतों में छाले, आमाशय में रक्तस्राव और कानों में आवाज आना शामिल हैं। बच्चों और किशोरों में रेइज़ सिंड्रोम के जोखम के कारण, फ्लू जैसे लक्षणों या छोटी चेचक (चिकनपॉक्स) या अन्य वाइरस रोगों के लक्षणों के नियंत्रण के लिये अब एस्पिरिन का इस्तेमाल नहीं किया जाता.

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धमनी

धमनियां वे रक्त वाहिकाएं होती हैं, जो हृदय से रक्त को आगे पहुंचाती हैं। पल्मोनरी एवं आवलनाल धमनियों के अलावा सभी धमनियां ऑक्सीजन-युक्त रक्त लेजाती हैं। .

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नाभिकीय चिकित्सा

सामान्य पूर्ण शरीर स्कैन, कैंसरhttp://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2641976.cms कैंसर के खिलाफ जंग में नई मशीन कारगर।हिन्दी चिह्न।नवभारत टाइम्स।२१ दिसंबर, २००७।लखनऊ आदि में उपयोगी नाभिकीय चिकित्सा (अंग्रेज़ी:न्यूक्लियर मेडिसिन) एक प्रकार की चिकित्सकीय जाँच तकनीक होती है। इसमें रोग चाहे आरंभिक अवस्था में हों या गंभीर अवस्था में, उनकी गहन जाँच और उपचार संभव है।। याहू जागरण।१४ मई, २००८ कोशिका की संरचना और जैविक रचना में हो रहे परिवर्तनों पर आधारित इस तकनीक से चिकित्सा की जाती है। इस पद्धति को न्यूक्लियर मेडिसिन भी कहा जाता है। वर्तमान प्रचलित चिकित्सा पद्धति में रोगों का मात्र अंदाजा या अनुमान ही लगाते हैं और उपचार करते हैं, जबकि नाभिकीय चिकित्सा में न केवल रोग को बहुत आरंभिक अवस्था में पकड़ा जाता है, वरन यह प्रभावशाली ईलाज और दवाइयों के बारे में भी स्पष्टता से बहुत कुछ बता पाने में सक्षम है। इससे किसी भी बीमारी की विस्तृत जानकारी, उसके प्रभाव और उसके उपचार निपटने के प्रभावशाली उपायों आदि के बारे में पता चलता है। इतना ही नहीं, इससे बीमारी के आगे बढ़ने के बारे में यानी भविष्य में इसके फैलने की गति, दिशा और तरीके का भी ज्ञान हो जाता है।।। हिन्दी मिलाप।६ अप्रैल, २००८ यह तकनीक सुरक्षित, कम खर्चीली और दर्द रहित चिकित्सा तकनीक है।।। याहू जागरण।१२ मार्च, २००८। डॉ॰मुकेश जैन:डी.एन.बी, न्यूक्लियर मेडिसिन) सामान्यतः किसी प्रकार का रोग होने के बाद ही सी. टी. स्कैन, एम.आर.आई और एक्स-रे आदि से परीक्षण करने से प्रभावित अंगो की स्थिति का पता चल पाता है। इस पद्धति में रोगी को एक रेडियोधर्मी समस्थानिक को दवाई के रूप में इंजेक्शन के रास्ते शरीर में दिया जाता है। फिर उसके रास्ते को स्कैनिंग के जरिये देख्कर पता लगाय़ा जाता है, कि शरीर के किस भाग में कौन सा रोग हो रहा है। इसके साथ ही इनकी स्कैनिंग के कुछ दुष्प्रभाव (साइड इफैक्ट) की भी संभावना होती है। हाइपरथायरॉएडिज़्म आकलन हेतु आयोडीन-१२३ स्कैन नाभिकीय चिकित्सा में रोगी के शरीर में इंजेक्शन द्वारा बहुत ही कम मात्रा में रेडियोधर्मी तत्व प्रविष्ट करा दिये जाते हैं, जिसे शरीर में संक्रमित या प्रभावित कोशिका इसे अवशोषित कर लेती है। इससे होने वाले विकिरण को एक विशेष प्रकार के गामा कैमरे में उतार कर रोग की सटीक और विस्तृत जाँच की जाती है। न्यूक्लियर मेडिसिन स्कैनिंग से मिले अलग फिल्म में प्रभावित अंग की विस्तृत जानकारी मिलती है। नाभिकीय चिकित्सा तकनीक में रेडियो धर्मी तत्व का प्रयोग इतनी कम मात्र में किया जाता है कि इससे होने वाले विकिरण का प्रभाव कोशिकाओं पर नहीं पड़ता है। नाभिकीय चिकित्सा द्वारा कैंसर।। छत्तीसगढ़ न्यूज़।, हृदय, मस्तिष्क, फेफड़ा, थायरॉइड अपटेक स्कैन और बोन स्कैन किए जाते हैं। इसके अलावा अन्य रोगों का ईलाज भी नाभिकीय चिकित्सा द्वारा किया जाता है। अवटु ग्रंथि में आई खराबी और हड्डी में लगातार हो रहे दर्द का इलाज इसी तकनीक से होता है। .

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न्यूमोनिया

फुफ्फुसशोथ या फुफ्फुस प्रदाह (निमोनिया) फेफड़े में सूजन वाली एक परिस्थिति है—जो प्राथमिक रूप से अल्वियोली(कूपिका) कहे जाने वाले बेहद सूक्ष्म (माइक्रोस्कोपिक) वायु कूपों को प्रभावित करती है। यह मुख्य रूप से विषाणु या जीवाणु और कम आम तौर पर सूक्ष्मजीव, कुछ दवाओं और अन्य परिस्थितियों जैसे स्वप्रतिरक्षित रोगों द्वारा संक्रमण द्वारा होती है। आम लक्षणों में खांसी, सीने का दर्द, बुखार और सांस लेने में कठिनाई शामिल है। नैदानिक उपकरणों में, एक्स-रे और बलगम का कल्चर शामिल है। कुछ प्रकार के निमोनिया की रोकथाम के लिये टीके उपलब्ध हैं। उपचार, अंतर्निहित कारणों पर निर्भर करते हैं। प्रकल्पित बैक्टीरिया जनित निमोनिया का उपचार प्रतिजैविक द्वारा किया जाता है। यदि निमोनिया गंभीर हो तो प्रभावित व्यक्ति को आम तौर पर अस्पताल में भर्ती किया जाता है। वार्षिक रूप से, निमोनिया लगभग 450 मिलियन लोगों को प्रभावित करता है जो कि विश्व की जनसंख्या का सात प्रतिशत है और इसके कारण लगभग 4 मिलियन मृत्यु होती हैं। 19वीं शताब्दी में विलियम ओस्लर द्वारा निमोनिया को "मौत बांटने वाले पुरुषों का मुखिया" कहा गया था, लेकिन 20वीं शताब्दी में एंटीबायोटिक उपचार और टीकों के आने से बचने वाले लोगों की संख्या बेहतर हुई है।बावजूद इसके, विकासशील देशों में, बहुत बुज़ुर्गों, बहुत युवा उम्र के लोगों और जटिल रोगियों में निमोनिया अभी मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है। .

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पक्षाघात

पक्षाघात या लकवा मारना (Paralysis) एक या एकाधिक मांसपेशी समूह की मांसपेशियों के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ होने की स्थिति को कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावी क्षेत्र की संवेदन-शक्ति समाप्त हो सकती है या उस भाग को चलना-फिरना या घुमाना असम्भव हो जाता है। यदि दुर्बलता आंशिक है तो उसे आंशिक पक्षाघात कहते हैं। .

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पॉलीमर

रिअल लीनिअर पॉलीमर कड़ियां, जो परमाणिव्क बल सूक्ष्मदर्शी द्वारा तरल माध्यम के अधीन देखी गयी हैं। इस बहुलक की चेन लंबाई ~२०४ नैनो.मीटर; मोटाई is ~०.४ नै.मी.वाई.रोइटर एवं एस.मिंको, http://dx.doi.org/10.1021/ja0558239 ईफ़एम सिंगल मॉलिक्यूल एक्स्पेरिमेंट्स ऐट सॉलिड-लिक्विड इंटरफ़ेस, अमरीकन कैमिकल सोसायटी का जर्नल, खण्ड १२७, ss. 45, pp. 15688-15689 (2005) वहुलक या पाॅलीमर बहुत अधिक अणु मात्रा वाला कार्बनिक यौगिक होता है। यह सरल अणुओं जिन्हें मोनोमर कहा जाता; के बहुत अधिक इकाईयों के पॉलीमेराइजेशन के फलस्वरूप बनता है।। नैनोविज्ञान। वर्ल्डप्रेस पर पॉलीमर में बहुत सारी एक ही तरह की आवर्ती संरचनात्मक इकाईयाँ यानि मोनोमर संयोजी बन्ध (कोवैलेन्ट बॉण्ड) से जुड़ी होती हैं। सेल्यूलोज, लकड़ी, रेशम, त्वचा, रबर आदि प्राकृतिक पॉलीमर हैं, ये खुली अवस्था में प्रकृति में पाए जाते हैं तथा इन्हें पौधों और जीवधारियों से प्राप्त किया जाता है। इसके रासायनिक नामों वाले अन्य उदाहरणों में पालीइथिलीन, टेफ्लान, पाॅली विनाइल क्लोराइड प्रमुख पाॅलीमर हैं। कृत्रिम या सिंथेटिक पॉलीमर मानव निर्मित होते हैं। इन्हें कारखानों में उत्पादित किया जा सकता है। प्लास्टिक, पाइपों, बोतलों, बाल्टियों आदि के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली पोलीथिन सिंथेटिक पॉलीमर है। बिजली के तारों, केबलों के ऊपर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक कवर भी सिंथेटिक पॉलीमर है। फाइबर, सीटकवर, मजबूत पाइप एवं बोतलों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली प्रोपाइलीन भी सिंथेटिक पॉलीमर है। वाल्व सील, फिल्टर क्लॉथ, गैस किट आदि टेफलॉन से बनाए जाते हैं। सिंथेटिक रबर भी पॉलीमर है जिससे मोटरगाड़ियों के टायर बनाए जाते हैं। हॉलैंड के वैज्ञानिकों के अनुसार मकड़ी में उपस्थित एक डोप नामक तरल पदार्थ उसके शरीर से बाहर निकलते ही एकप प्रोटीनयुक्त पॉलीमर के रूप में जाला बनाता है। पॉलीमर शब्द का प्रथम प्रयोग जोंस बर्जिलियस ने १८३३ में किया था। १९०७ में लियो बैकलैंड ने पहला सिंथेटिक पोलीमर, फिनोल और फॉर्मएल्डिहाइड की प्रक्रिया से बनाया। उन्होंने इसे बैकेलाइट नाम दिया। १९२२ में हर्मन स्टॉडिंगर को पॉलीमर के नए सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे पहले यह माना जाता था कि ये छोटे अणुओं का क्लस्टर है, जिन्हें कोलाइड्स कहते थे, जिसका आण्विक भार ज्ञात नहीं था। लेकिन इस सिद्धांत में कहा गया कि पाॅलीमर एक शृंखला में कोवेलेंट बंध द्वारा बंधे होते हैं। पॉलीमर शब्द पॉली (कई) और मेरोस (टुकड़ों) से मिलकर बना है। एक ही प्रकार की मोनोमर इकाईयों से बनने वाले बहुलक को होमोपॉलीमर कहते हैं। जैसे पॉलीस्टायरीन का एकमात्र मोनोमर स्टायरीन ही है। भिन्न प्रकार की मोनोमर इकाईयों से बनने वाले बहुलक को कोपॉलीमर कहते हैं। जैसे इथाइल-विनाइल-एसीटेट भिन्न प्रकार के मोनोमरों से बनता है। भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार पर इन्हें दो वर्गों में बांटा जा सकता है: right.

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फुल्लन

अंगुली में सूजन (अन्तर देखिये) शरीर के किसी भाग का अस्थायी रूप से (transient) बढ़ जाना आयुर्विज्ञान में फुल्लन (स्वेलिंग) कहा जाता है। हिन्दी में इसे उत्सेध, फूलना और सूजन भी कहते हैं। ट्यूमर भी इसमें सम्मिलित है। सूजन, प्रदाह के पाँच लक्षणों में से एक है। (प्रदाह के अन्य लक्षण हैं - दर्द, गर्मी, लालिमा, कार्य का ह्रास) यह पूरे शरीर में हो सकती है, या एक विशिष्ट भाग या अंग प्रभावित हो सकता है| एक शरीर का अंग चोट, संक्रमण, या रोग के जवाब में और साथ ही एक अंतर्निहित गांठ की वजह से, प्रफुल्लित हो सकता है| .

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फोलिक अम्ल

फोलिक अम्ल को विटामिन बी-9 या फोलासीन और फोलेट के नाम से भी जाना जाता है। ये विटामिन बी-9 के जल-घुल्य रूप हैं। फोलिक एसीड शरीर के विभिन्न कार्यों के संपादन के लिए आवश्यक हैं। ये न्युक्लिटाइड के संश्लेषण से लेकर हिमोसाइटिन के रिमिथाइलेशन के लिए जरूरी है। यह कोशिका निर्माण और कोशिका वृद्धि के दौरान काफी उपयोगी माना जाता है। स्वस्थ रक्त कोशिका के निर्माण के लिए बच्चों और व्यस्कों में फोलिक एसीड समान रूप से जरूरी है। ये रक्तहीनता को रोकता है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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मधुमेह

डायबिटीज मेलेटस (डीएम), जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है, चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक उच्च रक्त शर्करा का स्तर होता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है।  यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, मधुमेह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है।  तीव्र जटिलताओं में मधुमेह केटोएसिडोसिस, नॉनकेटोटिक हाइपरोस्मोलर कोमा, या मौत शामिल हो सकती है। गंभीर दीर्घकालिक जटिलताओं में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है। मधुमेह के कारण है या तो अग्न्याशय  पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकायें इंसुलिन को ठीक से जवाब नहीं करती। मधुमेह के तीन मुख्य प्रकार हैं.

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मानस शास्त्र

साइकोलोजी या मनोविज्ञान (ग्रीक: Ψυχολογία, लिट."मस्तिष्क का अध्ययन",ψυχήसाइके"शवसन, आत्मा, जीव" और -λογία-लोजिया (-logia) "का अध्ययन ") एक अकादमिक (academic) और प्रयुक्त अनुशासन है जिसमें मानव के मानसिक कार्यों और व्यवहार (mental function) का वैज्ञानिक अध्ययन (behavior) शामिल है कभी कभी यह प्रतीकात्मक (symbol) व्याख्या (interpretation) और जटिल विश्लेषण (critical analysis) पर भी निर्भर करता है, हालाँकि ये परम्पराएँ अन्य सामाजिक विज्ञान (social science) जैसे समाजशास्त्र (sociology) की तुलना में कम स्पष्ट हैं। मनोवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं को धारणा (perception), अनुभूति (cognition), भावना (emotion), व्यक्तित्व (personality), व्यवहार (behavior) और पारस्परिक संबंध (interpersonal relationships) के रूप में अध्ययन करते हैं। कुछ विशेष रूप से गहरे मनोवैज्ञानिक (depth psychologists) अचेत मस्तिष्क (unconscious mind) का भी अध्ययन करते हैं। मनोवैज्ञानिक ज्ञान मानव क्रिया (human activity) के भिन्न क्षेत्रों पर लागू होता है, जिसमें दैनिक जीवन के मुद्दे शामिल हैं और -; जैसे परिवार, शिक्षा (education) और रोजगार और - और मानसिक स्वास्थ्य (treatment) समस्याओं का उपचार (mental health).

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मानव शरीर

मानव शरीर मानव शरीर एक मानव जीव की संपूर्ण संरचना है, जिसमें एक सिर, गर्दन, धड़, दो हाथ और दो पैर होते हैं। किसी मानव के वयस्क होने तक उसका शरीर लगभग 50 ट्रिलियन कोशिकाओं, जो कि जीवन की आधारभूत इकाई हैं, से मिल कर बना होता है। इन कोशिकाओं के जीववैज्ञानिक संगठन से अंतत: पूरे शरीर की रचना होती है। .

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मेडलाइन प्लस

मेडलाइन प्लस एक वेबसाइट है जहाँ स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचनाएँ मिलती हैं। यह चिकित्साशास्त्र से सम्बन्धित विश्व के सबसे बड़े पुस्तकालय यूनाइटेड स्टेट्स नेस्नल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन से स्वास्थ्य सम्बन्धित सूचनाएँ उपलब्ध कराता है। .

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मोटापा

मोटापा (अंग्रेज़ी: Obesity) वो स्थिति होती है, जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यह आयु संभावना को भी घटा सकता है। शरीर भार सूचकांक (बी.एम.आई), मानव भार और लंबाई का अनुपात होता है, जब २५ कि.ग्रा./मी.

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रक्तचाप

रक्तचापमापी या स्फाइगनोमैनोमीटर, रक्तचाप मापने के यंत्र को कहते हैं। ऊपर देखें एक मर्करी रक्तचापमापी रक्तचाप (अंग्रेज़ी:ब्लड प्रैशर) रक्तवाहिनियों में बहते रक्त द्वारा वाहिनियों की दीवारों पर द्वारा डाले गये दबाव को कहते हैं। धमनियां वह नलिका है जो पंप करने वाले हृदय से रक्त को शरीर के सभी ऊतकों और इंद्रियों तक ले जाते हैं। हृदय, रक्त को धमनियों में पंप करके धमनियों में रक्त प्रवाह को विनियमित करता है और इसपर लगने वाले दबाव को ही रक्तचाप कहते हैं। किसी व्यक्ति का रक्तचाप, सिस्टोलिक/डायास्टोलिक रक्तचाप के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। जैसे कि १२०/८० सिस्टोलिक अर्थात ऊपर की संख्या धमनियों में दाब को दर्शाती है। इसमें हृदय की मांसपेशियां संकुचित होकर धमनियों में रक्त को पंप करती हैं। डायालोस्टिक रक्त चाप अर्थात नीचे वाली संख्या धमनियों में उस दाब को दर्शाती है जब संकुचन के बाद हृदय की मांसपेशियां शिथिल हो जाती है। रक्तचाप हमेशा उस समय अधिक होता है जब हृदय पंप कर रहा होता है बनिस्बत जब वह शिथिल होता है। एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति का सिस्टोलिक रक्तचाप पारा के 90 और १२० मिलिमीटर के बीच होता है। सामान्य डायालोस्टिक रक्तचाप पारा के ६० से ८० मि.मि.

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रक्तदान

रक्तदान का चित्रीय आरेख रक्तदान तब होता है जब एक स्वस्थ व्यक्ति स्वेच्छा से अपना रक्त देता है और रक्त-आधान (ट्रांसफ्यूजन) के लिए उसका उपयोग होता है या फ्रैकशेनेशन नामक प्रक्रिया के जरिये दवा बनायी जाती है। विकसित देशों में, अधिकांश रक्तदाता अवैतनिक स्वयंसेवक होते हैं, जो सामुदायिक आपूर्ति के लिए रक्त दान करते हैं। गरीब देशों में, स्थापित आपूर्ति सीमित हैं और आमतौर पर परिवार या मित्रों के लिए आधान की जरूरत होने पर ही रक्तदाता रक्त दिया करते हैं। अनेक दाता दान के रूप में रक्त देते हैं, लेकिन कुछ लोगों को भुगतान किया जाता है और कुछ मामलों में पैसे के बजाय काम के समय में सवैतनिक छुट्टी के रूप में प्रोत्साहन दिए जाते हैं। कोई दाता अपने भविष्य के उपयोग के लिए रक्त दान कर सकता है। रक्त दान अपेक्षाकृत सुरक्षित है, लेकिन कुछ दाताओं को उस जगह खरोंच आ जाती है जहां सूई डाली जाती है या कुछ लोग मूर्छा महसूस कर सकते है। संभावित दाताओं का मूल्यांकन किया जाता है ताकि उनके खून का उपयोग असुरक्षित न रहे। जांच में एचआईवी और वायरल हैपेटाइटिस जैसी बिमारियों के परीक्षण शामिल हैं जो रक्त-आधान के जरिये संक्रमित हो सकते हैं। दाता से उसके चिकित्सा इतिहास के बारे में भी पूछा जाता है और दाता के स्वास्थ्य पर दान से कोई क्षतिकारक प्रभाव नहीं पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए उसकी एक संक्षिप्त शारीरिक जांच की जाती है। कितनी बार एक दाता दान कर सकता है यह दिनों और महीनों में भिन्न हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर है कि वह क्या दान कर रहा या कर रही है और किस देश में दान दिया-लिया जा रहा है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक दाता को पूर्ण रक्त दानों के बीच 8 हफ्ते (56 दिन) का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन प्लेटलेटफेरेसिस दानों के लिए सिर्फ तीन दिनों का। दिए जाने वाले रक्त की मात्रा और तरीके अलग-अलग हो सकते है, लेकिन एक आदर्श दान पूरे खून का 450 मिलीलीटर (या लगभग एक यूएस पिंट) होता है। इसे मैनुअली या स्वचालित उपकरण से संग्रहित किया जा सकता है जो कि केवल खून के विशिष्ट भाग को लेता है। आधान के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले खून के अधिकांश घटक का छोटा अचल जीवन होता है और लगातार आपूर्ति बनाये रखना एक स्थायी समस्या है। .

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रोग

पहले मोटापा को 'बड़प्पन' का सूचक माना जाता था। आजकल प्राय: इसे रोग माना जाता है। रोग अर्थात अस्वस्थ होना। यह चिकित्साविज्ञान का मूलभूत संकल्पना है। प्रायः शरीर के पूर्णरूपेण कार्य करने में में किसी प्रकार की कमी होना 'रोग' कहलाता है। किन्तु रोग की परिभाषा करना उतना ही कठिन है जितना 'स्वास्थ्य' को परिभाषित करना। .

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शरीर द्रव्यमान सूचकांक

एक शरीर द्रव्यमान सूचकांक का ग्राफ़ यहां दिखाया गया है। डैश वाली रेखा प्रधान श्रेणी के खण्ड दिखाती है। कम भार के उपखण्ड हैं: अत्यंत, मध्यम एवं थोड़ा। ''विश्व स्वास्थ्य संगठन के http://www.who.int/bmi/index.jsp?introPage.

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शिक्षा

अफगानिस्तान के एक विद्यालय में वृक्ष के नीचे पढ़ते बच्चे शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। शिक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर अनेक परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है। शिक्षा एक गतिशील प्रकिया है निखिल .

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शवपरीक्षा

शवपरीक्षण के बाद लिया गया फोटो शवपरीक्षा (Autopsy या post-mortem examination) एक विशिष्ट प्रकार की शल्य प्रक्रिया है जिसमें शव की आद्योपान्त (thorough) परीक्षण किया जाता है ताकि पता चल सके कि मृत्यु किन कारणों से और किस तरीके से हुई है। शवपरीक्षा एक विशिष्ट चिकित्सक द्वारा की जाती है जिसे 'विकृतिविज्ञानी' (पैथोलोजिस्ट) कहते हैं। मृत्यु के पश्चात् आकस्मिक दुर्घटनाग्रस्त, अथवा रोगग्रस्त, मृतक के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधान के हेतु शरीर की परीक्षा, अथवा शवपरीक्षा करना अतिआवश्यक है। रोग उपचारक शवपरीक्षा के द्वारा ही रोग की प्रकृति, विस्तार, विशालता एवं जटिलता के विषय में भली प्रकार तथ्य जान सकता है। शवपरीक्षा भली प्रकार करना उचित है एवं सहयोग के हेतु रोगग्रसित अंग अथवा ऊतक, की सूक्ष्मदर्शी द्वारा परीक्षा एवं कीटाणुशास्त्रीय परीक्षा अपेक्षित है। उस प्रत्येक मृतक की, जिसकी मृत्यु का कारण आकस्मिक दुर्घटना हो और उचित कारण अज्ञात हो, मृत्यु का कारण एवं उसकी प्रकृति ज्ञात करने के लिए शवपरीक्षा करना नितांत आवश्यक रूप से अपेक्षित है। शवपरीक्षा करने के पूर्व मृतक के निकट संबंधी से सहमति प्राप्त करना आवश्यक है और शवपरीक्षा मृत्यु के 6 से 10 घंटे के भीतर ही कर लेनी चाहिए, अन्यथा शव में मृत्युपरांत अवश्यंभावी प्राकृतिक परिवर्तन हो जाने की आशंका रहेगी, जैसे शव ऐंठन (rigor mortis), शवमलिनता (postmortem) एवं विघटन (decomposition)। यह परिवर्तन अधिकतर रोगावस्था के परिवर्तनों के समान ही होते हैं। .

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श्वेत रक्त कोशिका

सामान्य मानव रक्त की स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी छवि। अनियमित आकार की श्वेत रक्त कोशिकाओं के अलावा लाल रक्त कोशिकायें और चकती के आकार के बिम्बाणु दिख रहे हैं। श्वेत रक्त कोशिकायें (WBC), या श्वेताणु या ल्यूकोसाइट्स (यूनानी: ल्यूकोस-सफेद और काइटोस-कोशिका), शरीर की संक्रामक रोगों और बाह्य पदार्थों से रक्षा करने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकायें हैं। ल्यूकोसाइट्स पांच विभिन्न और विविध प्रकार की होती हैं, लेकिन इन सभी की उत्पत्ति और उत्पादन अस्थि मज्जा की एक मल्टीपोटेंट, हीमेटोपोईएटिक स्टेम सेल से होता है। ल्यूकोसाइट्स पूरे शरीर में पाई जाती हैं, जिसमें रक्त और लसीका प्रणाली शामिल हैं।इनका निर्माण अस्थि मज्जा में होता है। इसे शरीर का सिपाही के नाम से भी जाना जाता है। ये एंटीजन और एंटीबॉडी का निर्माण करती है जो प्रतिरक्षा तंत्र में भाग लेती है।एक बार बनी हुयी एंटीबॉडी जीवन भर नष्ट नहीं होती है।स्वेत रक्त कोशिकाओं का अपने स्तर से कम बनना ल्यूकेमिया कहलाता है जिसे हम ब्लड कैंसर भी कह सकते हैं। रक्त में ल्यूकोसाइट्स की संख्या प्रायः किसी रोग का सूचक होता है। आमतौर पर रक्त की एक लीटर मात्रा में 4×109 से लेकर 1.1×1010 के बीच श्वेत रक्त कोशिकायें होती हैं, जो किसी स्वस्थ वयस्क में रक्त का लगभग 1% होता है। ल्यूकोसाइट्स की संख्या में ऊपरी सीमा से अधिक हुई वृद्धि श्वेताणुवृद्धि या ल्यूकोसाइटोसिस (leukocytosis) कहलाती है जबकि निम्न सीमा के नीचे की संख्या को श्वेताणुह्रास या ल्यूकोपेनिया (leucopenia) कहा जाता है। ल्यूकोसाइट्स के भौतिक गुण, जैसे मात्रा, चालकता और कणिकामयता, सक्रियण, अपरिपक्व कोशिकाओं की उपस्थिति, या श्वेतरक्तता (ल्यूकेमिया) की हालत में घातक ल्यूकोसाइट्स की उपस्थिति के कारण बदल सकते हैं। .

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सोनोग्राफी

प्रतिध्वनि-इम्पल्स सोनोग्राफी का योजनामूलक चित्र अल्ट्रासाउन्ड द्वारा गर्भवती स्त्री के गर्भस्थ शिशु की जाँच १२ सप्ताह के गर्भस्थ शिशु का पराश्रव्य द्वारा लिया गया फोटो सोनोग्राफी या अल्ट्रासोनोग्राफी, चिकित्सीय निदान (diagnostics) का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह पराश्रव्य ध्वनि पर आधारित एक चित्रांकन (इमेजिंग) तकनीक है। चिकित्सा क्षेत्र में इसके कई उपयोग हैं जिसमें से गर्भावस्था में गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी की प्राप्ति सर्वाधिक जानीमानी है। भौतिकी में ऐसी तरंगो को पराश्रव्य कहते हैं जो मानव के कानों से सुनने योग्य आवृति से अधिक की हो। प्राय: २० हजार हर्ट्स से अधिक आवृत्ति की तरंगों को पराश्रव्य कहा जाता है। वास्तव में निदान के लिये प्रयुक्त पराश्रव्य सेंसर प्राय: २ से १८ मेगाहर्ट्स पर काम करते हैं जो कि मानव द्वारा सुनने योग्य आवृत्ति से सैकड़ों गुना अधिक है। अधिक आवृत्ति की पराश्रव्य तरंग कम गहराई तक घुस पाती है लेकिन इससे बना चित्र अधिक स्पष्ट (अधिक रिजोलूशन वाला) होता है। पराश्रव्य तरंग का उपयोग पनडुब्बी चलाने के लिए किया जाता है। .

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हृदय

कोरोनरी धमनियों के साथ मानव हृदय. हृदय या हिया या दिल एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है। कशेरुकियों का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में ७२ बार धड़कता है, जो (लगभग ६६वर्ष) एक जीवन काल में २.५ बिलियन बार धड़कता है। इसका भार औसतन महिलाओं में २५० से ३०० ग्राम और पुरुषों में ३०० से ३५० ग्राम होता है। .

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हृदय धमनी बाईपास सर्जरी

'''कोरोनरी आर्टरी बाईपास सर्जरी''' का आपरेशन तीन हृदय धमनी बाईपास ग्राफ़्ट हृदय धमनी बाईपास शल्य-क्रिया (अंग्रेज़ी:कोरोनरी आर्टरी बाईपास सर्जरी, सी.ए.बी.जी.), बाईपास सर्जरी, हृदय बाईपास, आदि नामों से प्रसिद्ध ये शल्य क्रिया हृदय को रक्त पहुंचाने वाली 3 धमनियों की शल्य क्रिया को कहते हैं।हृदय की धमनी (कोरोनरी आर्टरी) में कुछ रुकावट होने को हृदय धमनी रोग (कोरोनरी आर्टरी डिजीज; सीएडी) कहते हैं। यह रुकावट वसा के जमाव होने से होती है, जिससे धमनी कठोर हो जाती है व रक्त के निर्बाध बहाव में रुकावट आती है। हृदय के वाल्व खराब होने, रक्तचाप बढ़ने, हृदय की मांसपेशी बढ़ने और हृदय कमजोर होने से हृदयाघात हो जाता है। यदि समय पर इलाज हो तो बचा जा सकता है। धमनी के पूर्ण बंद होने की स्थिति में हृदयाघात की आशंका बढ़ जाती हैं। हृदय की तीन मुख्य धमनियों में से किसी भी एक या सभी में अवरोध पैदा हो सकता है। ऐसे में शल्य क्रिया द्वारा शरीर के किसी भाग से नस निकालकर उसे हृदय की धमनी के रुके हुए स्थान के समानांतर जोड़ दिया जाता है। यह नई जोड़ी हुई नस धमनी में रक्त प्रवाह पुन: चालू कर देती है। इस शल्य-क्रिया तकनीक को बाईपास सर्जरी कहते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। प्रायः छाती के अंदर से मेमेरी आर्टरी या हाथ से रेडिअल आर्टरी या पैर से सफेनस वेन निकालकर हृदय की धमनी से जोड़ी जाती है। इस क्रिया में पुरानी रुकी हुई धमनी को हटाते नहीं है, बल्कि उसी धमनी में ब्लाक या रुकावट के आगे नई नस जोड़ दी जाती है, इसी से रक्त प्रवाह पुन: सुचारु होता है। धमनी रुकावट के मामले में बायपास सर्जरी सर्वश्रेष्ठ विकल्प होत है। इसका दूसरा और अपेक्षाकृत सस्ता विकल्प है एंजियोप्लास्टी। .

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हृदयाघात

रोधगलन (MI) या तीव्र रोधगलन (AMI) को आमतौर पर हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल के दौरे के रूप में जाना जाता है, जिसके तहत दिल के कुछ भागों में रक्त संचार में बाधा होती है, जिससे दिल की कोशिकाएं मर जाती हैं। यह आमतौर पर कमजोर धमनीकलाकाठिन्य पट्टिका के विदारण के बाद परिहृद्-धमनी के रोध (रूकावट) के कारण होता है, जो कि लिपिड (फैटी एसिड) का एक अस्थिर संग्रह और धमनी पट्टी में श्वेत रक्त कोशिका (विशेष रूप से बृहतभक्षककोशिका) होता है। स्थानिक-अरक्तता के परिणामस्वरूप (रक्त संचार में प्रतिबंध) और ऑक्सीजन की कमी होती है, अगर लम्बी अवधि तक इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो हृदय की मांसपेशी ऊतकों (मायोकार्डियम) की क्षति या मृत्यु (रोधगलन) हो सकती है। तीव्र रोधगलन के शास्त्रीय लक्षणों में अचानक छाती में दर्द, (आमतौर पर बाएं हाथ या गर्दन के बाएं ओर), सांस की तकलीफ, मिचली, उल्टी, घबराहट, पसीना और चिंता (अक्सर कयामत आसन्न भावना के रूप में वर्णित) शामिल हैं.

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जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

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व्यायाम

एक यू एस मैरीन ट्रायाथलॉन के तैरने के हिस्से को पूरा कर पानी से बाहर आता हुआ। व्यायाम वह गतिविधि है जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को भी बढाती है। यह कई अलग अलग कारणों के लिए किया जाता है, जिनमे शामिल हैं: मांसपेशियों को मजबूत बनाना, हृदय प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, एथलेटिक कौशल बढाना, वजन घटाना या फिर सिर्फ आनंद के लिए। लगातार और नियमित शारीरिक व्यायाम, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा देता है और यह हमारी नींद कम करता है इससे हमें सुबह उठने पर तकलीफ नहीं होतीहृदय रोग, रक्तवाहिका रोग, टाइप 2 मधुमेह और मोटापा जैसे समृद्धि के रोगों को रोकने में मदद करता है। यह मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है और तनाव को रोकने में मदद करता है। बचपन का मोटापा एक बढ़ती हुई वैश्विक चिंता का विषय है और शारीरिक व्यायाम से बचपन के मोटापे के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। .

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गंजापन

पुरुष पैटर्न का गंजापन गंजापन (Baldness) की स्थिति में सिर के बाल बहुत कम रह जाते हैं। गंजापन की मात्रा कम या अधिक हो सकती है। गंजापन को एलोपेसिया भी कहते हैं। जब असामान्य रूप से बहुत तेजी से बाल झड़ने लगते हैं तो नये बाल उतनी तेजी से नहीं उग पाते या फिर वे पहले के बाल से अधिक पतले या कमजोर उगते हैं। इसके चलते बालों का कम होना या कम घना होना शुरू हो जाता है और ऐसी हालत में सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि यह स्थिति गंजेपन की ओर जाती है। .

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इनफ़्लुएंज़ा

इनफ्लुएंजा (श्लैष्मिक ज्वर) एक विशेष समूह के वायरस के कारण मानव समुदाय में होनेवाला एक संक्रामक रोग है। इसमें ज्वर और अति दुर्बलता विशेष लक्षण हैं। फुफ्फुसों के उपद्रव की इसमें बहुत संभावना रहती है। यह रोग प्राय: महामारी के रूप में फैलता है। बीच-बीच में जहाँ-तहाँ रोग होता रहता है। .

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कैल्सियम

कैल्सियम (Calcium) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्तसारणी के द्वितीय मुख्य समूह का धातु तत्व है। यह क्षारीय मृदा धातु है और शुद्ध अवस्था में यह अनुपलब्ध है। किन्तु इसके अनेक यौगिक प्रचुर मात्रा में भूमि में मिलते है। भूमि में उपस्थित तत्वों में मात्रा के अनुसार इसका पाँचवाँ स्थान है। यह जीवित प्राणियों के लिए अत्यावश्यक होता है। भोजन में इसकी समुचित मात्र होनी चाहिए। खाने योग्य कैल्शियम दूध सहित कई खाद्य पदार्थो में मिलती है। खान-पान के साथ-साथ कैल्शियम के कई औद्योगिक इस्तेमाल भी हैं जहां इसका शुद्ध रूप और इसके कई यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। आवर्त सारणी में कैल्शियम का अणु क्रमांक 20 है और इसे अंग्रेजी शब्दों ‘Ca’ से इंगित किया गया है। 1808 में सर हम्फ्री डैवी ने इसे खोजा था। उन्होंने इसे कैल्सियम क्लोराइड से अलग किया था। चूना पत्थर, कैल्सियम का महत्वपूर्ण खनिज स्रोत है। पौधों में भी कैल्शियम पाया जाता है। अपने शुद्ध रूप में कैल्शियम चमकीले रंग का होता है। यह अपने अन्य साथी तत्वों के बजाय कम क्रियाशील होता है। जलाने पर इसमें से पीला और लाल धुआं उठता है। इसे आज भी कैल्शियम क्लोराइड से उसी प्रक्रिया से अलग किया जाता है जो सर हम्फ्री डैवी ने 1808 में इस्तेमाल की थी। कैल्शियम से जुड़े ही एक अन्य यौगिक, कैल्सियम कार्बोनेट को कंक्रीट, सीमेंट, चूना इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अन्य कैल्शियम कंपाउंड अयस्कों, कीटनाशक, दुर्गन्धहर, खाद, कपड़ा उत्पादन, कॉस्मेटिक्स, लाइटिंग इत्यादि में इस्तेमाल किया जाता है। जीवित प्राणियों में कैल्शियम हड्डियों, दांतों और शरीर के अन्य हिस्सों में पाया जाता है। यह रक्त में भी होता है और शरीर की अंदरूनी देखभाल में इसकी विशेष भूमिका होती है। कैल्सियम अत्यंत सक्रिय तत्व है। इस कारण इसको शुद्ध अवस्था में प्राप्त करना कठिन कार्य है। आजकल कैल्सियम क्लोराइड तथा फ्लोरस्पार के मिश्रण को ग्रेफाइट मूषा में रखकर विद्युतविच्छेदन द्वारा इस तत्व को तैयार करते हैं। शुद्ध अवस्था में यह सफेद चमकदार रहता है। परन्तु सक्रिय होने के कारण वायु के आक्सीजन एवं नाइट्रोजन से अभिक्रिया करता है। इसके क्रिस्टल फलक केंद्रित घनाकार रूप में होते हैं। यह आघातवर्ध्य तथा तन्य तत्व है। इसके कुछ गुणधर्म निम्नांकित हैं- साधारण ताप पर यह वायु के ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से धीरे धीरे अभिक्रिया करता है, परंतु उच्च ताप पर तीव्र अभिक्रिया द्वारा चमक के साथ जलता है और कैलसियम आक्साइड (CaO) बनाता है। जल के साथ अभिक्रिया कर यह हाइड्रोजन उन्मुक्त करता है और लगभग समस्त अधातुओं के साथ अभिक्रिरिया कर यौगिक बनाता है। इसके रासायनिक गुण अन्य क्षारीय मृदा तत्वों (स्ट्रांशियम, बेरियम तथा रेडियम) की भाँति है। यह अभिक्रिया द्वारा द्विसंयोजकीय यौगिक बनाता है। ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होने पर कैलसियम ऑक्साइड का निर्माण होता है, जिसे कली चूना और बिना बुझा चूना (quiklime) भी कहते हैं। पानी में घुलने पर कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड या शमित चूना या बुझा चूना (slaked lime) बनता है। यह क्षारीय पदार्थ है जिसका उपयोग गृह निर्माण कार्य में पुरतान काल से होता आया है। चूने में बालू, जल आदि मिलाने पर प्लास्टर बनता है, जो सूखने पर कठोर हो जाता है और धीरे-धीरे वायुमण्डल के कार्बन डाइऑक्साइड से अभिक्रिया कर कैलसियम कार्बोनेट में परिणत हो जाता है। कैलसियम अनेक तत्वों (जैसे हाइड्रोजन, फ्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन आयोडीन, नाइट्रोजन सल्फर आदि) के साथ अभिक्रिया कर यौगिक बनता है। कैलसियम क्लोराइड, हाइड्रोक्साइड, तथा हाइपोक्लोराइड का एक मिश्रण और ब्लिचिंग पाउडर कहलाता है जो वस्त्रों आदि के विरंजन में उपयोगी है। कैलसियम कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट भी उपयोगी है। अपाचयक तत्व होने के कारण कैलसियम अन्य धातुओं के निर्माण में काम आता है। कुछ धातुओं में कैलसियम मिश्रित करने पर उपयोगी मिश्र धातुएँ बनती हैं। कैलसियम के यौगिक के अनेक उपयोग हैं। कुछ यौगिक (नाइट्रेट, फॉसफेट आदि) उर्वरक के रूप में उपयोग में आते है। कैलसियम कार्बाइड का उपयोग नाइट्रोजन स्थिरीकरण उद्योग में होता है और इसके द्वारा एसिटिलीन गैस बनाई जाती है। कैलसियम सल्फेट द्वारा प्लास्टर ऑफ पेरिस बनाया जाता है। इसके अतिरक्ति कुछ यौगिक चिकित्सा, पोर्स्लोिन उद्योग, काच उद्योग, चर्म उद्योग तथा लेप आदि के निर्माण में उपयोगी है। भारत के प्राचीन निवासी कैलसियम के यौगिक तत्वों से परिचित थे। उनमें चूना (कैलसियम आक्साइड) मुख्य है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के भग्नावशेषों से ज्ञात होता है तत्कालीन निवासी चूने का उपयोग अनेक कार्यों में करते थे। चूने के साथ कतिपय अन्य पदार्थों के मिश्रण से 'वज्रलेप' तैयार करने का प्राचीन साहित्य में प्राप्त होता है। चरक ने ऐसे क्षारों का वर्णन किया है जिनको विभिन्न समाक्षारों पर चूने की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता था। कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में कोपिया नामक एक स्थान से काँच बनाने के एक प्राचीन कारखाने के अवशेष प्राप्त हुए हैं। उसका काल लगभग पाँचवी शती ईसवी पूर्व अनुमान किया जाता है। वहाँ से मिली काँच की वस्तुओं की परीक्षा से ज्ञात हुआ है कि उस काल के काँच बनाने में चूने का उपयोग होता था। .

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कोलेस्टेरॉल

कोलेस्ट्रॉल क्रिस्टल का सूक्ष्मदर्शी दर्शन, जल में। छायाचित्र ध्युवीकृत प्रकाश में लिया गया है। कोलेस्ट्रॉल या पित्तसांद्रव मोम जैसा एक पदार्थ होता है, जो यकृत से उत्पन्न होता है। यह सभी पशुओं और मनुष्यों के कोशिका झिल्ली समेत शरीर के हर भाग में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल कोशिका झिल्ली का एक महत्वपूर्ण भाग है, जहां उचित मात्रा में पारगम्यता और तरलता स्थापित करने में इसकी आवश्यकता होती है। कोलेस्ट्रॉल शरीर में विटामिन डी, हार्मोन्स और पित्त का निर्माण करता है, जो शरीर के अंदर पाए जाने वाले वसा को पचाने में मदद करता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल भोजन में मांसाहारी आहार के माध्यम से भी पहुंचता है यानी अंडे, मांस, मछली और डेयरी उत्पाद इसके प्रमुख स्रोत हैं। अनाज, फल और सब्जियों में कोलेस्ट्रॉल नहीं पाया जाता। शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लगभग २५ प्रतिशत उत्पादन यकृत के माध्यम से होता है। कोलेस्ट्रॉल शब्द यूनानी शब्द कोले और और स्टीयरियोज (ठोस) से बना है और इसमें रासायनिक प्रत्यय ओल लगा हुआ है। १७६९ में फ्रेंकोइस पुलीटियर दी ला सैले ने गैलेस्टान में इसे ठोस रूप में पहचाना था। १८१५ में रसायनशास्त्री यूजीन चुरवेल ने इसका नाम कोलेस्ट्राइन रखा था। मानव शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता मुख्यतः कोशिकाओं के निर्माण के लिए, हारमोन के निर्माण के लिए और बाइल जूस के निर्माण के लिए जो वसा के पाचन में मदद करता है; होती है। फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में नैशनल पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के प्रमुख रिसर्चर डॉ॰ गांग हू के अनुसार कोलेस्ट्रॉल अधिक होने से पार्किंसन रोग की आशंका बढ़ जाती है। .

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कोलेजन

ट्रोपोकोलेजन ट्रिपल हेलिक्स. कोलेजन एक स्वाभाविक रूप से पाए जाने वाले प्रोटीन का समूह है। प्रकृति में, यह जानवरों में विशेष रूप से पाया जाता है। यह संयोजी ऊतक का मुख्य प्रोटीन है। यह स्तनपायियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला प्रोटीन है, जो समग्र-शरीर की प्रोटीन सामग्री का लगभग 25% से 35% अंश बनता है। मांसपेशी ऊतक में यह एंडोमिशियम के एक प्रमुख घटक के रूप में कार्य करता है। मांसपेशी ऊतक का 1% से 2% कोलेजन से बना है और मज़बूत, कंडरीय मांसपेशियों के वज़न का 6% इससे गठित है। जिलेटिन, जिसका खाद्य और उद्योग में प्रयोग किया जाता है, कोलेजन से व्युत्पन्न है। .

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कोकेन

कोकेन (Benzoylmethylecgonine) एक क्रिस्टलीय ट्रोपेन उपक्षार है, जो कोका पौधे की पत्तियों से प्राप्त होता है।अग्रवाल, अनिल.

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अमीनो अम्ल

फिनाइल एलानिन, एक सामान्य अमीनो अम्ल अमीनो अम्ल, वे अणु हैं जिनमें अमाइन तथा कार्बोक्सिल दोनों ही ग्रुप पाएं जाते हैं। इनका साधारण सुत्र H2NCHROOH है। इसमें R एक पार्श्व कड़ी है। जो परिवर्तनशील विभिन्न अणुओं का ग्रूप होता है। कार्बोक्सिल (-COOH) तथा अमाइन (-NH2) ग्रूप कार्बन परमाणु से लगा रहता है। अमीनो अम्ल प्रोभूजिन के गठनकर्ता अणु हैं। बहुत सारे अमीनो अम्ल पेप्टाइड बंधन द्वारा युक्त होकर प्रोभूजिन बनाते हैं। प्रोभूजिन बनाने में 20 अमीनो अम्ल भाग लेते हैं। यह प्रोभूजिन निर्माण के कर्णधार होते हैं। प्रकृति में लगभग बीस अमीनों अम्लों का अस्तित्व है। प्रोभूजिन अणुओं में सैंकड़ों या हजारों अमीनो अम्ल एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक प्रोभूजिन में प्रायः सभी अमीनो अम्ल एक विशेष अनुक्रम से जुड़े रहते हैं। विभिन्न अमीनो अम्लों का यही अनुक्रम प्रत्येक प्रोभूजिन को उसकी विशेषताएं प्रदान करता है। अमीनो अम्लों का यही विशिष्ट अनुक्रम डी एन ए के न्यूक्लोटाइडस के क्रम से निर्धारित होता है। श्रेणी:जैवरसायनिकी श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी श्रेणी:अनुवांशिकी *.

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अल्कोहल

अल्कोहल के अणु में उपस्थित हाइड्रॉक्सिल (OH) क्रियात्मक समूह अल्कोहल:-कार्बनिक यौगिक से एक या एक से अधिक हाइड्रोजन परमाणु का प्रतिस्थापन एक या एक से अधिक -O-H समूह द्वारा कर दिया जाए तो बनने वाले यौगिक अल्कोहल कहलाते है। यौगिक मे उपस्थित -OH समूह की संख्या के आधार पर इसे चार भागो मे बाँटा गया है।.

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अवकाशिका (जीवविज्ञान)

एक धमनी की शारीरिकी। अवकाशिका सबसे ऊपर वाला स्थान है।आंत की अनुप्रस्थ काट। अवकाशिका बीच का स्थान है।जीवविज्ञान के संदर्भ में अवकाशिका या ल्यूमेन (लैटिन:Lumen) किसी नलिकामय संरचना के आंतरिक स्थान को कहते हैं। वनस्पति विज्ञान में यह स्थान पुटी कहलाता है। उदाहरण के लिए किसी धमनी या आंत जैसी एक नलिकामय संरचना के अंदर की जगह जिसमें से क्रमश: रक्त और भोजन का प्रवाह होता है। ल्यूमेन किसी कोशिकीय संरचना के आंतरिक स्थान को भी कहते हैं जैसे कि एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम (अंतःप्रद्रव्य जालिका)। उदाहरणः -.

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उच्च रक्तचाप

(HTN) हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, जिसे कभी कभी धमनी उच्च रक्तचाप भी कहते हैं, एक पुरानी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है। दबाव की इस वृद्धि के कारण, रक्त की धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाये रखने के लिये दिल को सामान्य से अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती है। रक्तचाप में दो माप शामिल होती हैं, सिस्टोलिक और डायस्टोलिक, जो इस बात पर निर्भर करती है कि हृदय की मांसपेशियों में संकुचन (सिस्टोल) हो रहा है या धड़कनों के बीच में तनाव मुक्तता (डायस्टोल) हो रही है। आराम के समय पर सामान्य रक्तचाप 100-140 mmHg सिस्टोलिक (उच्चतम-रीडिंग) और 60-90 mmHg डायस्टोलिक (निचली-रीडिंग) की सीमा के भीतर होता है। उच्च रक्तचाप तब उपस्थित होता है यदि यह 90/140 mmHg पर या इसके ऊपर लगातार बना रहता है। हाइपरटेंशन प्राथमिक (मूलभूत) उच्च रक्तचाप तथा द्वितीयक उच्च रक्तचाप के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 90-95% मामले "प्राथमिक उच्च रक्तचाप" के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं, जिसका अर्थ है स्पष्ट अंतर्निहित चिकित्सीय कारण के बिना उच्च रक्तचाप। अन्य परिस्थितियां जो गुर्दे, धमनियों, दिल, या अंतःस्रावी प्रणाली को प्रभावित करती हैं, शेष 5-10% मामलों (द्वितीयक उच्च रक्तचाप) का कारण होतीं हैं। हाइपरटेंशन स्ट्रोक, मायोकार्डियल रोधगलन (दिल के दौरे), दिल की विफलता, धमनियों की धमनी विस्फार (उदाहरण के लिए, महाधमनी धमनी विस्फार), परिधीय धमनी रोग जैसे जोखिमों का कारक है और पुराने किडनी रोग का एक कारण है। धमनियों से रक्त के दबाव में मध्यम दर्जे की वृद्धि भी जीवन प्रत्याशा में कमी के साथ जुड़ी हुई है। आहार और जीवन शैली में परिवर्तन रक्तचाप नियंत्रण में सुधार और संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को कम कर सकते हैं। हालांकि, दवा के माध्यम से उपचार अक्सर उन लोगों के लिये जरूरी हो जाता है जिनमें जीवन शैली में परिवर्तन अप्रभावी या अपर्याप्त हैं। .

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उल्टी

200px आमाशय के अन्दर के पदार्थों को बलपूर्वक शरीर के बाहर निकालने की क्रिया को उल्टी या वमन (Vomiting) कहते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि गैस्ट्रीक, जहर या मस्तिष्क का ट्यूमर इत्यादि.

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