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हिन्दी वर्तनी मानकीकरण और १९६२

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

हिन्दी वर्तनी मानकीकरण और १९६२ के बीच अंतर

हिन्दी वर्तनी मानकीकरण vs. १९६२

भाषा की वर्तनी का अर्थ उस भाषा में शब्दों को वर्णों से अभिव्यक्त करने की क्रिया को कहते हैं। हिन्दी में इसकी आवश्यकता काफी समय तक नहीं समझी जाती थी; जबकि अन्य कई भाषाओं, जैसे अंग्रेजी व उर्दू में इसका महत्त्व था। अंग्रेजी व उर्दू में अर्धशताब्दी पहले भी वर्तनी (अंग्रेज़ी:स्पेलिंग, उर्दू:हिज्जों) की रटाई की जाती थी जो आज भी अभ्यास में है। हिन्दी भाषा का पहला और बड़ा गुण ध्वन्यात्मकता है। हिन्दी में उच्चरित ध्वनियों को व्यक्त करना बड़ा सरल है। जैसा बोला जाए, वैसा ही लिख जाए। यह देवनागरी लिपि की बहुमुखी विशेषता के कारण ही संभव था और आज भी है। परन्तु यह बात शत-प्रतिशत अब ठीक नहीं है। इसके अनेक कारण है - क्षेत्रीय आंचलिक उच्चारण का प्रभाव, अनेकरूपता, भ्रम, परंपरा का निर्वाह आदि। जब यह अनुभव किया जाने लगा कि एक ही शब्द की कई-कई वर्तनी मिलती हैं तो इनको अभिव्यक्त करने के लिए किसी सार्थक शब्द की तलाश हुई (‘हुई’ शब्द की विविधता द्रष्टव्य है - हुइ, हुई, हुवी)। इस कारण से मानकीकरण की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। हिन्दी शब्द लिखने की दो प्रचलित वर्तनियाँ (ऊपर), (नीचे)हिन्दी फोनोलॉजी सारणी (बाएं), आर्यभाट्ट सारणी (दाएं) . 1962 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

हिन्दी वर्तनी मानकीकरण और १९६२ के बीच समानता

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हिन्दी वर्तनी मानकीकरण और १९६२ के बीच तुलना

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संदर्भ

यह लेख हिन्दी वर्तनी मानकीकरण और १९६२ के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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