3 संबंधों: राम नारायण, सुल्तान खान, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत।
राम नारायण
thumbnail राम नारायण (२५ दिसम्बर १९२७) भारतीय संगीतज्ञ हैं। उन्हें सामान्यतः पण्डित राम नारायण भी पुकारा जाता है। ये महाराष्ट्र से हैं। उन्हें हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत एकल संगीत सारंगी वादन ने लोकप्रिय बनाया और प्रथम अन्तरराष्ट्रीय सारंगीवादक बने। नारायण का जन्म उदयपुर के पास हुआ और छोटी आयु में सारंगीवादन की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने विभिन्न सारंगी वादन के शिक्षकों और गायकों से शिक्षा प्राप्त की और किशोरावस्था में संगीत शिक्षक और यात्रा संगीतकार के रूप में कार्य किया। आकाशवाणी, लाहौर ने नारायण को १९४४ में गायकों के संगतकार के रूप में रखा। वो १९४७ में भारत के विभाजन के समय दिल्ली आ गये लेकिन संगतकार की भूमिका से आगे बढ़ने के स्थान पर सहायक भूमिका में निराश होकर, नारायण १९४९ में भारतीय सिनेमा के लिए काम करने मुम्बई विस्थापित हो गये। १९५४ में एक असफल प्रयास के बाद नारायण १९५६ में सहवादन एकल कलाकार बने और तत्पश्चात संगत को त्याग दिया। उन्होंने एकल एलबम अभिलिखित किया और १९६० में अमेरिका और यूरोप की यात्रा आरम्भ कर दी। नारायण ने भारतीय और विदेशी छात्रों को शिक्षा दी और २००० के दशक में भारत के बाहर भी प्रस्तुतियाँ दी। उन्हें २००५ में भारत के द्वितीय सर्वोच्य नागरीक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। .
नई!!: सारंगी और राम नारायण · और देखें »
सुल्तान खान
उस्ताद सुल्तान खान (१५ अप्रैल १९४० – २७ नवम्बर २०११) सीकर घराणे के भारतीय सारंगी वादक और शास्त्रीय गायक थे। वो भारतीय फ्यूजन ग्रूप तबला बीट साइंस के ज़ाकिर हुसैन और बिल लैसवेल सहित एक सदस्य थे। उन्हें वर्ष २०१० में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। .
नई!!: सारंगी और सुल्तान खान · और देखें »
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो प्रमुख शैली में से एक है। दूसरी प्रमुख शैली है - कर्नाटक संगीत। यह एक परम्प्रिक उद्विकासी है जिसने 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने भारतीय संगीत की दिशा को नया आयाम दिया। यह दिशा प्रोफेसर ललित किशोर सिंह के अनुसार यूनानी पायथागॉरस के ग्राम व अरबी फ़ारसी ग्राम के अनुरूप आधुनिक बिलावल ठाठ की स्थापना मानी जा सकती है। इससे पूर्व काफी ठाठ शुद्ध मेल था। किंतु शुद्ध मेल के अतिरिक्त उत्तर भारतीय संगीत में अरबी-फ़ारसी अथवा अन्य विदेशी संगीत का कोई दूसरा प्रभाव नहीं पड़ा। "मध्यकालीन मुसलमान गायकों और नायकों ने भारतीय संस्कारों को बनाए रखा।" राजदरबार संगीत के प्रमुख संरक्षक बने और जहां अनेक शासकों ने प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रोत्साहन दिया वहीं अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन भी किए। हिंदुस्तानी संगीत केवल उत्तर भारत का ही नहीं। बांगलादेश और पाकिस्तान का भी शास्त्रीय संगीत है। .