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शास्त्रार्थ और संचार का इतिहास

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

शास्त्रार्थ और संचार का इतिहास के बीच अंतर

शास्त्रार्थ vs. संचार का इतिहास

प्राचीन भारत में दार्शनिक एवं धार्मिक वाद-विवाद, चर्चा या प्रश्नोत्तर को शास्त्रार्थ (शास्त्र + अर्थ) कहते थे। इसमें दो या अधिक व्यक्ति किसी गूढ़ विषय के असली अर्थ पर चर्चा करते थे। किसी विषय के सम्बन्ध में सत्य और असत्य के निर्णय हेतु परोपकार के लिए जो वाद-विवाद होता है उसे शास्त्रार्थ कहते हैं। शास्त्रार्थ का शाब्दिक अर्थ तो शास्त्र का अर्थ है, वस्तुतः मूल ज्ञान का स्रोत शास्त्र ही होने से प्रत्येक विषय के लिए निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए शास्त्र का ही आश्रय लेना होता है अतः इस वाद-विवाद को शास्त्रार्थ कहते हैं जिसमे तर्क,प्रमाण और युक्तियों के आश्रय से सत्यासत्य निर्णय होता है | शास्त्रार्थ और डिबेट (debate) में बहुत अन्तर है। शास्त्रार्थ विशेष नियमों के अंतर्गत होता है,अर्थात ऐसे नियम जिनसे सत्य और असत्य का निर्णय होने में आसानी हो सके इसके विपरीत डिबेट में ऐसे पूर्ण नियम नहीं होते | शास्त्रार्थ में महर्षि गौतम कृत न्यायदर्शन द्वारा प्रतिपादित विधि ही प्रामाणिक है | . संचार का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। संचार के अन्तर्गत तुच्छ विचार-विनिमय से लेकर शास्त्रार्थ एवं जनसंचार (mass communication) सब आते हैं। कोई २००,००० वर्ष पूर्व मानव-वाणी के प्रादुर्भाव के साथ मानव संचार में एक क्रान्ति आयी थी। लगभग ३०,००० वर्ष पूर्व प्रतीकों का विकास हुआ एवं लगभग ७००० ईसापूर्व लिपि और लेखन का विकास हुआ। इनकी तुलना में पिछली कुछ शताब्दियों में ही दूरसंचार के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास हुआ है। .

शास्त्रार्थ और संचार का इतिहास के बीच समानता

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संदर्भ

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