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वोपदेव

सूची वोपदेव

वोपदेव विद्वान्, कवि, वैद्य और वैयाकरण ग्रंथाकार थे। इनके द्वारा रचित व्याकरण का प्रसिद्ध ग्रंथ 'मुग्धबोध' है। इनका लिखा कविकल्पद्रुम तथा अन्य अनेक ग्रंथ प्रसिद्घ हैं। ये 'हेमाद्रि' के समकालीन थे और देवगिरि के यादव राजा के दरबार के मान्य विद्वान् रहे। इनका समय तेरहवीं शती का पूर्वार्ध मान्य है। ये देवगिरि के यादव राजाओं के यहाँ थे। यादवों के प्रसिद्ध विद्वान् मंत्री हेमाद्रि पंत (हेमाड पंत) का उन्हें आश्रय था। "मुक्ताफल" और "हरिलीला" नामक ग्रंथों की इन्होंने रचना की। हरिलीला में संपूर्ण भागवत संक्षेप में आया है। बोपदेव यादवों के समकालीन, सहकारी, पंडित और भक्त थे। कहते हैं, वे विदर्भ के निवासी थे। उन्होंने प्रचुर और बहुविध ग्रंथों की रचना की। उन्होंने व्याकरण, वैद्यशास्त्र, ज्योतिष, साहित्यशास्त्र और अध्यात्म पर उपयुक्त ग्रंथों का प्रणयन करके अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने भागवत पर हरिलीला, मुक्ताफल, परमहंसप्रिया और मुकुट नामक चार भाष्यग्रंथों की सरस रचना की। उन्होंने मराठी में भाष्यग्रंथ लेखनशैली का श्रीगणेश किया। .

8 संबंधों: दौलताबाद, भागवत पुराण, मराठी भाषा, मुग्धबोध, साहित्य सिद्धान्त, ज्योतिष, व्याकरण, वैयाकरण

दौलताबाद

देवगिरि दुर्ग तथा चाँद मीनार दौलताबाद महाराष्ट्र का एक नगर है। इसका प्राचीन नाम देवगिरि है।। मुहम्म्द बिन तुगलक़ की राजधानी। यह औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह शहर हमेशा शक्‍तिशाली बादशाहों के बहन लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्‍वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्‍य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्‍मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने दिल्‍ली की समस्‍त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्‍ली लानी पड़ी।बहन .

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भागवत पुराण

सन १५०० में लिखित एक भागवत पुराण मे यशोदा कृष्ण को स्नान कराते हुए भागवत पुराण (Bhaagwat Puraana) हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् (Shrimadbhaagwatam) या केवल भागवतम् (Bhaagwatam) भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण का रचयिता वेद व्यास को माना जाता है। श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है। .

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मराठी भाषा

मराठी भारत के महाराष्ट्र प्रांत में बोली जानेवाली सबसे मुख्य भाषा है। भाषाई परिवार के स्तर पर यह एक आर्य भाषा है जिसका विकास संस्कृत से अपभ्रंश तक का सफर पूरा होने के बाद आरंभ हुआ। मराठी भारत की प्रमुख भाषओं में से एक है। यह महाराष्ट्र और गोवा में राजभाषा है तथा पश्चिम भारत की सह-राजभाषा हैं। मातृभाषियों कि संख्या के आधार पर मराठी विश्व में पंद्रहवें और भारत में चौथे स्थान पर है। इसे बोलने वालों की कुल संख्या लगभग ९ करोड़ है। यह भाषा 900 ईसवी से प्रचलन में है और यह भी हिन्दी के समान संस्कृत आधारित भाषा है। .

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मुग्धबोध

मुग्धबोध, संस्कृत व्याकरण का ग्रन्थ है जिसके रचयिता वोपदेव है। इसकी रचना तेरहवीं शताब्दी में हुई थी। .

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साहित्य सिद्धान्त

साहित्य सिद्धान्त (Literary theory) साहित्य की प्रकृति का क्रमबद्ध अध्ययन एवं साहित्य के विश्लेषण की विधि है। वह विद्या या शास्त्र जिसमें रचनाओं के साहित्य पक्ष तथा स्वरूप पर शास्त्रीय ढंग से विचार किया जाता है। प्राचीन काव्यशास्त्र, जिसमें रसों, अलंकारों रीतियों आदि पर विचार किया जाता था, भी साहित्यशास्त्र है। .

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ज्योतिष

ज्‍योतिष या ज्यौतिष विषय वेदों जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्‍य खगोलीय पिण्‍डों का अध्‍ययन करने के विषय को ही ज्‍योतिष कहा गया था। इसके गणित भाग के बारे में तो बहुत स्‍पष्‍टता से कहा जा सकता है कि इसके बारे में वेदों में स्‍पष्‍ट गणनाएं दी हुई हैं। फलित भाग के बारे में बहुत बाद में जानकारी मिलती है। भारतीय आचार्यों द्वारा रचित ज्योतिष की पाण्डुलिपियों की संख्या एक लाख से भी अधिक है। प्राचीनकाल में गणित एवं ज्यौतिष समानार्थी थे परन्तु आगे चलकर इनके तीन भाग हो गए।.

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व्याकरण

किसी भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण (ग्रामर) कहलाता है। व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी "भाषा" के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "व्याकरण" कहलाता है, जैसे कि शरीर के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन "शरीरशास्त्र" और किसी देश प्रदेश आदि का वर्णन "भूगोल"। यानी व्याकरण किसी भाषा को अपने आदेश से नहीं चलाता घुमाता, प्रत्युत भाषा की स्थिति प्रवृत्ति प्रकट करता है। "चलता है" एक क्रियापद है और व्याकरण पढ़े बिना भी सब लोग इसे इसी तरह बोलते हैं; इसका सही अर्थ समझ लेते हैं। व्याकरण इस पद का विश्लेषण करके बताएगा कि इसमें दो अवयव हैं - "चलता" और "है"। फिर वह इन दो अवयवों का भी विश्लेषण करके बताएगा कि (च् अ ल् अ त् आ) "चलता" और (ह अ इ उ) "है" के भी अपने अवयव हैं। "चल" में दो वर्ण स्पष्ट हैं; परंतु व्याकरण स्पष्ट करेगा कि "च" में दो अक्षर है "च्" और "अ"। इसी तरह "ल" में भी "ल्" और "अ"। अब इन अक्षरों के टुकड़े नहीं हो सकते; "अक्षर" हैं ये। व्याकरण इन अक्षरों की भी श्रेणी बनाएगा, "व्यंजन" और "स्वर"। "च्" और "ल्" व्यंजन हैं और "अ" स्वर। चि, ची और लि, ली में स्वर हैं "इ" और "ई", व्यंजन "च्" और "ल्"। इस प्रकार का विश्लेषण बड़े काम की चीज है; व्यर्थ का गोरखधंधा नहीं है। यह विश्लेषण ही "व्याकरण" है। व्याकरण का दूसरा नाम "शब्दानुशासन" भी है। वह शब्दसंबंधी अनुशासन करता है - बतलाता है कि किसी शब्द का किस तरह प्रयोग करना चाहिए। भाषा में शब्दों की प्रवृत्ति अपनी ही रहती है; व्याकरण के कहने से भाषा में शब्द नहीं चलते। परंतु भाषा की प्रवृत्ति के अनुसार व्याकरण शब्दप्रयोग का निर्देश करता है। यह भाषा पर शासन नहीं करता, उसकी स्थितिप्रवृत्ति के अनुसार लोकशिक्षण करता है। .

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वैयाकरण

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