वर्ण (बहुविकल्पी शब्द) और वैश्य के बीच समानता
वर्ण (बहुविकल्पी शब्द) और वैश्य आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): हिन्दू वर्ण व्यवस्था।
हिन्दू वर्ण व्यवस्था
वर्ण-व्यवस्था हिन्दू धर्म में सामाजिक विभाजन का एक आधार है। हिंदू धर्म-ग्रंथों के अनुसार समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इसमे ब्राह्मण वर्ण को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। हालाकी शूद्र वर्ण को बाकी सब वर्ण की सेवा करने का प्रावधान इन धर्म ग्रंथो मे किया गया है। सुत्तनिपात मृतुराज क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य,शूद्र, चंडाल और भंगी- किसी को कोभी नहीं छोड़ता, सबको कुचल डालता है। वे सभी जो सुरत है, विनम्र हो सत्कर्मों में लगे है, सुदंत है, आत्मसंयम का जीवन जीते है, वे सभी परिनिवृत है, चाहे वे क्षत्रिय हो, ब्राह्मण हो, वैश्य हो, शूद्र हो, चण्डाल हो या भंगी हो विद्वानों का मत है कि आरंभ में यह विभाजन कर्म आधारित था लेकिन बाद में यह जन्माधारित हो गया। वर्तमान में हिंदू समाज में इसी का विकसित रूप जाति-व्यवस्था के रूप में देखा जा सकता है। जाति एक अंतर्विवाही समूह है। 1901 की जाति आधारित जनगणना के अनुसार भारत में दो हजार से अधिक जातियां निवास करती हैं। .
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वर्ण (बहुविकल्पी शब्द) और वैश्य के बीच तुलना
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संदर्भ
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